Hindi Sex Stories By raj sharma

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raj..
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Re: Hindi Sex Stories By raj sharma

Unread post by raj.. » 01 Nov 2014 13:30



ये सब देखते हुए मुझे होश भी नही रहा कि कब सौरभ का एक हाथ मेरे कुर्ते के अंदर मेरे यौवन-शिखरो को तथा दूसरा मेरे सलवार के नाडे को खोलकर मेरी पॅंटी मे घुस चुका था.वो धीरे-धीरे मेरी योनि और मेरे यौवन-शिखरो को सहला रहा था,मेरी मस्ती बढ़ती चली गयी……मगर दिमाग़ को झटका देते हुए मैने उसके हाथो को पकड़ कर उसको रोक दिया.उसने मेरे कान मे धीरे से पुच्छा , क्या हुआ?अच्च्छा नही लग रहा क्या….मैं खामोश खड़ी रही,मेरी खामोशी को मेरी मंज़ूरी समझते हुए वो फिर से अपने काम मे मशगूल हो गया.उसके हाथो के जादू ने मुझे एक नशे की हालत मे पहुचा दिया था. सर्र्ररर-सर्र्र्ररर कब मेरी सलवार मेरे पैरो से और कब मेरा कुर्ता मेरे उपरी-शरीर से अलहदा हो गये मुझे पता ही नही चला.जब उसने मेरी पॅंटी और ब्रा को भी उतार दिया तो मैने उसकी तरफ देखा जो, वो वही चिर-परिचित मुस्कान लिए मेरी तरफ देखा रहा था.उसकी आँखो मे मनुहार थी,मेरे शरीर की तारीफ़ थी और लाल रंग केड ओर भी थे जो उसकी खुमारी की निशानी थी. उसने धीरे से मेरे बूब्स को चूमा,मैं उसके चूमने की सिहरन बर्दाश्त नही कर पाई और काँपने लगी.उसने अपने दोनो हाथो मे मुझे उठा लिया और बड़े नज़ाकत के साथ मुझे बेड पर लिटा दिया.


उसकी ज़बान मेरे शेरर पर हलचल मचती हुई अपना असर छ्चोड़ रही थी और मैं उत्तेजना के शिखार पर पहुचि हुई ततर काअंप रही थी.मेरी योनि से पानी का बहाव निकले ही जा रहा था. मगर सौरभ एकदम शांत-चित्त भाव से अपनी रफ़्तार से जुटा हुआ था.ना कम नाजयदा, वो एक रफ़्तार से मुझे चूमे-चाते जा रहा था. माने बेखयाअली मे उसकी पीठ को अपने नाखुनो से खरोंच-खरोंच कर लाल कर दिया था. उसने अपने कपड़े उतारे और फिर से मेरी तरफ आगेया उसके लिंग को देखा कर मैं घबरा गयी. ये तो अशोक के लंड से भी लंबा था. मैने सौरभ को बताया कि मैं वर्जिन हू प्ल्ज़्ज़ बी जेंटल विथ मी. उसने मुझे प्यार से देखते हुए हामी मे सर हिला दिया. सौरभ ने मेरे पैरो को फैला कर अपने लिंग को मेरी योनि पर टीका दिया और मुझ पर झुकता चला गया, उसका लिंग धीरे-धीरे मेरी योनि मे समाने लगा.मुझे दर्द के साथ-साथ एक सुखद और अंजाना एहसास प्राप्त हुआ जो मैं अपनी जिंदगी मे पहली बार तजुर्बा कर रही थी. उसने धीरे-धीरे घर्षण चालू किया जिससे मैं उत्तेजना के शिखर पर पहुच गयी और झाड़ गयी. मगर वो ना रुका और लगभग 30मिनट तक अपना काम करता रहा,अचानक वो हान्फता हुआ मेरे उपर गिर पड़ा.मैने अपनी योनि मे उसके वीर्य को महसूस किया. जाने कब तक हम ऐसे ही पड़े रहे.खुमारी उतरने के बाद मुझे मेरी हालत का अंदाज़ा हुआ और मैं फ़ौरन अपने कपड़े पहन कर बाहर की तरफ निकल पड़ी. बाहर मुझे वैशाली ड्र.अशोक के साथ खड़ी मिली जो मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी मानो इशारो ही इशारो मे मुझसे पूछना चाह रही हो कि ये तजुर्बा कैसा रहा जो तुम अभी-अभी करके आ रही हो.

समाप्त



raj..
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Re: Hindi Sex Stories By raj sharma

Unread post by raj.. » 01 Nov 2014 13:32

कोका - पंडित



एक बार ब्रज भूमि मैं एसी एक चुड़ैल ओरात पैदा हुई जिस'की चूत मैं हमैशा आग लगी रहती थी. उस'की सदैव एक ही इच्च्छा रहती थी कि उस'की चूत मैं दिन रात मोटा और तगरा लंड रहे. वह हमैशा मर्दों की सोहबत मैं रहती. उस'ने अप'ने कई प्रेमी बनाए लेकिन कोई भी उस'की चूत की ज्वाला को शांत नहीं कर पाया. जब उस'की कामाग्नि और बढ़ गई तो उस'ने अप'ने सारे वस्त्र उतार दिए और रास्तों पर नंगी ही फिर'ने लगी. लोग उस'से तरह तरह के सवाल पूच्छ'ने लगे, जिस'के जबाब मैं वह कहती,
"मैं'ने अप'ने सारे कप'रे उतार दिए हैं और जो चाहे मुझे ले सक'ता है और अप'नी मर्दान'जी साबित करे. मैं कसम खाती हूँ मैं जब तक नंगी घूम'ती रहूंगी तब तक की मुझे एसा मर्द न मिल जाए जो मेरी काम की ज्वाला को पूर्ण रूप से शांत कर सके."
एसा कह कर वह ब्रज भूमि के समस्त शहरों मैं घूम'ने लगी. कई लोगों ने उस'की प्यास बुझाने की चेस्टा भी की पर कोई भी सफल न हुआ. इस'से उस'की हिम्मत और बढ़ गई और वह ब्रज की राज'धानी मथुरा के दर'बार मैं नंगी ही पहून्च गई. यह देख'कर पूरी राज सभा अचम्भित हो गई और एक दर'बारी ने पूचछा,
"अरे हराम'जादी कुतिया तुम कौन हो और कहाँ से आई हो? इस तरह से राज दर'बार में आने में तुम्हें ज़रा भी लज्जा नहीं आई."
तब वह पूरी सभा की और बिल्कुल निडर'ता से मूडी और बोली,

"अरे हराम'जादे मुझे तुम क्या कुत्ती बोल रहे हो. तुम तो साले सब के सब हिंज'रे हो. क्या यहाँ एक भी एसा मर्द मौजूद है जो मेरी वास'ना शांत कर सके. अरे तुम लोगों ने तो अप'ने रनिवास और हारमों मैं रंडिया पाल रखी है जिन'की आग तुम आप'ने लौरों से नहीं बल्कि उन्हें धन दौलत और जेवर देकर बूझाते हो." वह अप'ने चुत्तऱ पर हाथ रखे हुए और अप'नी मस्त चूचियों को आगे उभार'ती हुई पूरी सभा को लल'कारे जा रही थी. फिर उस'ने अप'नी टाँगें फैलाई और इस प्रकार पूरी सभा को अप'नी भोस'री ठीक से दिखाई और कहा,
"अरे मथुरा के दर'बार के हिंज'रों देखो, तुम सारे के सारे चूतिए हो, अगर किसी मैं दम है तो मेरे पास आ जाए."
सारे के सारे दर'बारी आपस मैं चर्चा कर'ने लगे. "इस बेशर्म रन्डी का क्या उपा'य किया जा'य जो सरे आम हमारी बेइजाती कर रही है."
तभी सभा मैं से एक रंजीत सिंग नाम के राजपूत ने दर'बारियों से कहा,
"मेरे दर'बारी दोस्तों! मैं अप'ने आप को इस दर'बार की इज़्ज़त बचाने के लिए समर्पित कर'ता हूँ. मैं अलग अलग जाती की 10 ओरटों के साथ रहा हूँ और मुझे काम का अच्च्छा ख़ासा अनुभव है. मुझे आगे बढ़'ने दीजिए मैं इस'की चुनौती स्वीकार कर'ता हूँ."
यह सुन'कर दर'बारियों के चह'रे खिल गये और रंजीत सिंग ने राजा से आग्या माँगी की उसे इस ओरात के साथ एक रात बिताने दी जा'य. उसे आग्या मिल गई और वह उसे अप'ने महल मैं ले गया. रात मैं उस'ने हर तरह से कोशीस की पर वह उस ओरात की काम अग्नि शांत न कर सका. उस ओरात ने उसे बूरी तरह से निचौऱ लिया. दूसरे दिन वह बहुत ही थका हुआ राज'दरबार मैं पाहूंचा और अप'नी हार स्वीकार कर ली.
"महाराज! मुझे क्षमा करें. मैं अप'नी हार स्वीकार कर'ता हूँ. यह ओरात मेरे बस की नहीं." वह ओरात भी वहाँ मौजूद थी और दुगुने जोश से कहे जा रही थी,
"अरे राजपूतों तुम पर शर्म है. तुम केवल बऱी बऱी बातें कर'ना जान'ते हो. इस सभा मैं एक भी मर्द का बच्चा नहीं है. अरे तुम से तो हिंज'रे ही भले. यह सिद्ध हो गया कि राजपूत लंड एक कम'ज़ोर लंड है."
राज'दरबार मैं सन्नट छा गया और दर'बारियों ने अप'ने सर झुका लिए. किसी के मूँ'ह से बोल नहीं फूट रहा था. तभी राजा ने सभा का सनाट भंग कर'ते हुए कहा,
"हे रंजीत सिंग तुम'ने पूरी राजपूत जाती की नाक कटा दी. अब हम क्या कर सक'ते हैं? अब यह ओरात और शोर मचाएगी और पूरी राजपूत जाती की बाद'नामी करेगी. इस'की तुम्हें सज़ा मिलेगी."
"महाराज! क्षमा करें, क्षमा करें. यह ओरात एक नंबर की रन्डी और कुत्ती है. मैने अप'ने जीवन मैं एसी कामिनी ओरात नहीं देखी. पता नहीं इस'की चूत मैं क्या है, शायद कोई जादू टोना जान'ती हो."
यह सुन कर एक दूसरा राजपूत हीरो आगे आया, जिस'का नाम मान सिंग था. वह आप'नी जवानमर्दी के लिए विख्यात था. उस'ने उस ओरात के साथ एक रात बिताने की इच्च्छा जाहिर की. उस'ने दावा किया कि वह उस'की एसी चुदाई करेगा की रन्डी आने वाले 10 दिनों तक चल भी नहीं पाएगी. सारे दर'बारी बहुत खुस हुए और एक स्वर से महाराज से वीं'टी की कि मान सिंग को एक मौका दिया जा'य.
"ठीक है मान सिंग हम तुम्हें यह मौका देते हैं. पर ख़याल रहे यदि तुम काम'याब नहीं हुए तो हम तुम्हें देश निकाला दे देंगे."
"महाराज यदि मैं अस'फल रहा तो राज'सभा को अप'ना मूँ'ह नहीं दिखऊन्ग." एसा कह कर मान सिंग उस ओरात को आप'ने साथ ले गया.

raj..
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Re: Hindi Sex Stories By raj sharma

Unread post by raj.. » 01 Nov 2014 13:32


उस रात मान सिंग ने उस'की कस के चुदाई क़ी. मान सिंग ने उस के अंदर 3 बार अप'ना वीर्या झाड़ा पर वह ओरात फिर भी सन्तुश्ट नहीं हुई. वह चोथी बार मान सिंग को चुदाई कर'ने के लिए उक्'साने लगी, पर उस'में और ताक़त नहीं बची थी. वह सुबह उस ओरात को सोता छोड़ के ही न जाने कहाँ चला गया.
दूस'रे दिन वह ओरात अकेली और बिल'कुल नंगी फिर दर'बार मैं पाहूंची. उस ओरात को दरबार मैं देख'ते ही राजा के साथ साथ सारे दर'बारी भी सक'ते मैं आ गये. वह कह'ने लगी,
"महाराज! मैने आप राजपूतों की ताक़त देख ली. आप'का लौंडा तो न जाने कहाँ चला गया. किसी राजपूत लंड मैं और ताक़त बची है तो ज़ोर आज'मा ले."
सारे दर'बारियों के सर शर्म से झुक गये. तभी एक दुबला पतला ब्राह्मण आगे आया. उस ब्राह्मण का नाम कोका पंडित ( राज शर्मा )था और वह दर'बार का ज्योत्शी था. उस'ने कहा,
"महाराज आप एक अव'सर मुझे दें. यदि मेरी हार हो जाती है तो सारे दर'बार की हार मान ली जाएगी."
इस पर सारे राजपूत बहुत क्रोधित हुए. यह दुब'ला पात'ला ब्राह्मण अप'ने आप को क्या समझ'ता है. इस उम्र में इस'की मति क्यों फिर गई है. एक दर'बारी चिल्ला कर बोला,
"अरे जब बड़े बड़े राजपूत लंड इस ओरात की चूत की गर्मी ठन्डी नहीं कर सके तो तेरा छोटा सा ब्राह्मण लंड क्या कर लेगा. यह तो सब जान'ते हैं कि क्षत्रिया लंड के मुकाब'ले ब्राह्मण लंड छ्होटा और कम'ज़ोर होता है."
चारों तरफ से लोग उस'के सुर मैं सुर मिलाने लगे. और उस ब्राह्मण का हंस हंस के उप'हास उड़ाने लगे. पर ब्राह्मण शांत था और राजा के बोल'ने का इंत'ज़ार कर रहा था. जब दर'बारी शांत हो गये तो राजा ने कहा,
"राजपूत जाती के श्रेस्ठ व्यक्ति भी इस ओरात की प्यास बुझाने मैं असफल रहे हैं. हम अब'तक असफल रहे हैं और यदि अब हम'ने इस ओरात को एसे ही जाने दिया तो हम अप'ने सर कभी भी उँचे नहीं उठा सकेंगे. हम मैं से कोई भी ब्रज की नारी को छ्छूने की कभी भी हिम्मत नहीं जुट पाएगा. अब यदि इस ब्राह्मण के अलावा और कोई इस ओरात के साथ रात बिताना चाह'ता है तो वह आगे आए. नहीं तो इस ब्राह्मण को मौका नहें देना अन्याय होगा."
राजा की यह बात सुन'कर सभा मैं एक बार फिर सन्नाटा छा गया. कोई भी आप'नी बेइज़्ज़ती के डर से आगे नहीं आ रहा था. तब राजा ने कोका पंडित को आग्या दे दी. कोका उस ओरात को अप'ने घर ले गया.

कोका पंडित ने सारी समस्या पर गंभीर'ता से विचार किया और उस'ने ठान लिया कि वह जल्द बाजी से काम नहीं लेगा. रात मैं वे दोनों एकांत मैं अप'ने कम'रे मैं आए और कोका ने अप'नी धोती उतारी. धोती के उतार'ते ही कोका के लंड और उस'के शरीर की कम'ज़ोर बनावट को देख वह ओरात हंस पड़ी और कह'ने लगी,
"पागल ब्राह्मण तुम्हारा लंड तो दूस'रे राजपूतों के लंड, जिन्हों ने मुझे चोदा, उनसे आधा भी नहीं है. अरे तुम से तो सीधा खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा है फिर भी तुम सोच रहे हो मेरी प्यास बुझा दोगे. तुम पागल ही नहीं पूरे अक्खऱ और सन'की भी हो."
कोका ने कहा, "हराम'जादी कुतिया आज तुम्हे तुम्हारे लायक कोई आद'मी मिला है. अरे ओरात को शांत कर'ने के लिए लंड का आकार और शरीर का तगड़ा होना ही केवल ज़रूरी नहीं है. मर्द को काम कला आनी चाहिए. मेरा लंड छोटा है तो यह कोई भी योनि मैं आराम से समा जाता है. अब तुम'ने बहुत बातें कर ली. चलो अब अप'नी टाँगें फैलाओ, वैश्या कहीं की."
तब वह बिस्तर पर चित होके लेट गई और अप'नी टाँगें फैला दी. कोका काम कला का जान'कार था जो राजपूत नहीं जान'ते थे. सब'से पह'ले उस'ने चुंबन लेने प्रारंभ किए. वह उस'की जीभ और उपर नीचे के होठों को चूस'ने लगा. वह उस'के होठों को पूरी तरह से जाकड़ उस'का पूरा साँस अप'ने फेफ'रों में ले लेता जिस'से वह बिना साँस के व्याकुल हो छट'पटाने लग'ती और जब कोका उसे छोड़ता तो ज़ोर ज़ोर से साँस भर'ने लग'ती. यह क्रिया काफ़ी देर तक चली, जिस'से वह शिथिल पड़'ने लगी.
फिर वह उस'के स्तनों पर आ गया. पह'ले उस'ने धीरे धीरे स्तन मर'दन कर'ना प्रारंभ किया. फिर चूचुक पर धीरे धीरे जीभ फेर'नी शुरू की. इस'से उस ओरात की काम ज्वाला भड़क के सात'वें आस'मान पर जा पाहूंची. वह चूत मैं लंड लेने के लिए व्याकुल हो उठी. पर इधर कोका को कोई जल्दी नहीं थी.
तब कोका उस'की नाभी के इर्द गिर्द जीभ फेर'ने लगा. कभी कभी बीच मैं उस'के पेऱू (पेल्विस) पर झांतों मैं हल्के से अंगुली फिरा देता. साथ मैं वह उस'के नितंबों के नीचे अप'नी हथैली ले जा उन्हे सहलाए भी जा रहा था और उस'के भारी चुट्टरों पर कभी कभी हल'के से नाख़ून भी गाढ रहा था. इन क्रियाओं के फल'स्वरूप वह चुड़ैल ज़ोर ज़ोर से साँस लेने लगी और कोका से चोद'ने के लिए विनती कर'ने लगी.
तब कोका ने आख़िर में उस'की चूत मैं एक अंगुली डाली. कोका धीरे धीरे उस'के चूत के दाने पर अंगुली की टिप का प्रहार कर रहा था. फिर उस'ने दो अंगुल डाली और अंत मैं तीन अंगुल उस'की चूत मैं डाल दी. वह काफ़ी देर तक उस'की अंगुल से चुदाई कर'ता रहा. वह ओरात भी गान्ड उपर उठा उठा के झट'के देने लगी मानो उस'का पूरा हाथ ही अप'नी चूत मैं समा लेना चाह'ती हो.

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