अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति compleet
Re: अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति
अजय के ऊपर झुकते हुये दीप्ति ने सही आसन जमाया. "अजय, अब तुम जो चाहो वो करो. ठीक है" दीप्ति की मुस्कुराहट में वासना और ममता का सम्मिश्रण था. अजय ने सिर उठा कर मां के निप्पलों को होठों के बीच दबा लिया. दीप्ति के स्तनों से बहता हुआ करन्ट सीधा उनकी चूत में पहुंचा. हांलाकि दोनों ही ने अपनी सही गति को बनाये रखा. जवान जोड़ों के विपरीत उनके पास घर की चारदीवारी और पूरी रात थी.
दीप्ति ने खुद को एक हाथ पर सन्तुलित करते हुये दूसरे हाथ से अपनी चूचीं पकड़ कर अजय के मुहं में घुसेड़ दी. अजय ने भी भूखे जानवर की तरह बेरहमी से उन दो सुन्दर स्तनों का मान मर्दन शुरु कर दिया. मां के हाथ की जगह अपना हाथ इस्तेमाल करते हुये अजय ने दोनों निप्पलों को जोर से उमेठा. नीचे मां और पुत्र की कमर हिलते हुये दोनों के बीच उत्तेजना को नियन्त्रण में रख रही थी.
अब मां ने आसन बदलते हुये एक नया प्रयोग करने का मन बनाया. अजय की टांगों को चौड़ा करके दीप्ति उनके बीच में बैठ गयीं. एक बार के लिये अजय का लन्ड चूत से बाहर निकल गया परन्तु अब वो अपने पैरों को अजय की कमर के आस पास लपेट सकती थी. जब अजय भी उठ कर बैठा तो उसका लन्ड खड़ी अवस्था में ही मां के पेट से जा भिड़ा. दीप्ति ने नज़र नीची करके उस काले नाग की तरह फ़ुंफ़कारते लन्ड को अपनी नाभी के पास पाया. २ सेकेन्ड पहले भी ये लन्ड यहीं था लेकीन उस वक्त यह उनके अन्दर समाया हुआ था. अजय की गोद में बैठ कर दीप्ति ने एक बार फ़िर से लन्ड को अपनी चूत में भरा. चूत के होंठ बार बार सुपाड़े के ऊपर फ़िसल रहे थे. अजय ने घुटनों को मोड़ कर उपर ऊठाने का प्रयत्न किया किन्तु मां के भारी शरीर के नीचे बेबस था.
"ऊईईई माआआं" दीप्ति सीत्कारी. अजय की इस कोशिश ने उनको उठाया तो धीरे से था पर गिरते वक्त कोई जोर नहीं चल पाया और खड़े लन्ड ने एक बार फ़िर मां की चूत में नई गहराई को छू लिया था. दीप्ति ने बेटे के कन्धे पर दांत गड़ा दिये उधर अजय भी इस प्रक्रिया को दुहराने लगा. दीप्ति ने अजय का कन्धा पकड़ उसे दबाने की कोशिश की. इतना ज्यादा आनन्द उसके लिये अब असहनीय हो रहा था. मां पुत्र की ये सैक्सी कुश्ती सिसकियों और कराहों के साथ कुछ क्षण और चली.
पसीने से तर दोनों थक कर चूर हो चूके थे पर अभी तक इस राऊंड में चरम तक कोई भी नहीं पहुंचा था. थोड़ी देर रुक कर दीप्ति अपने लाड़ले बेटे के सीने और चेहरे को चूमने चाटने लगी. अजय को अपने सीने से लगाते हुये पूछा, "शोभा कौन है तुम्हारी?".
"कौन?" इस समय ऐसे सवाल का क्या जवाब दिया जा सकता था? अजय ने एक जोरदार धक्का मारते हुये कहा.
"कोई नहीं, राईट?" दीप्ति ने भी अजय के धक्के के जवाब में कमर को झटका दे उसके लन्ड को अपनी टाईट चूत में खींच लिया. मां के जोश को देख कर बेटा समझ गया कि शोभा जो कोई भी हो अब उसे भूलना पड़ेगा.
"उसका काम था तुम को मर्द बना कर मेरे पास लाना. बस. अब वो हमेशा के लिये गई. समझ गये?" दीप्ति के गुलाबी होंठों पर जीत की मुस्कान बिखर गई.
इतनी देर से चल रहे इस चुदाई कार्यक्रम से अजय के लन्ड का तो बुरा हाल था ही दीप्ति कि चूत भी अन्दर से बुरी तरह छिल गय़ी थी. शोभा सही थी. उसके बेटे ने जानवरों जैसी ताकत पाई है. और ये अब सिर्फ़ और सिर्फ़ उसकी है. अजय को वो किसी भी कीमत पर किसी के साथ भी नहीं बाटेगी.
"अजय बेटा. बस बहुत हो गया. अब झड़ जा. मां कल भी तेरे पास आयेगी" दीप्ति हांफ़ने लगी थी. अजय का भी हाल बुरा था. उसके दिमाग ने काम करना बन्द कर दिया था. समझ में नहीं आ रहा था कि क्या जवाब दे. बस दीप्ति के फ़ुदकते हुये मुम्मों को हाथ के पंजों में दबा कमर उछाल रहा था.
"ऊहहहहहहहहहह! हां! ऊइइइ मांआआ!" चेहरे पर असीम आनन्द की लहर लिये दीप्ति बिना किसी दया के अजय के मुस्टंडे लन्ड पर जोर जोर से चूत मसलने लगी. "आ आजा बेटा, भर दे अपनी मां को", अजय को पुचकारते हुये बोली.
इन शब्दों ने जादू कर दिया. अजय रुक गया. दोनों जानते थे कि अभी ये कार्यक्रम कफ़ी देर तक चल सकता है लेकिन उन दोनों के इस अद्भुत मिलन की साथी उन आवाजों को सुनकर गोपाल किसी भी वक्त जाग सकते थे और यहां कमरे में आकर अपने ही घर में चलती इस पाप लीला को देख सकते थे. काफ़ी कुछ खत्म हो सकता था उसके बाद और दोनों ही ऐसी कोई स्थिति नहीं चाहते थे. अजय ने धक्के देना बन्द कर आंखे मूंद ली. लन्ड ने गरम खौलते हुये वीर्य की बौछारे मां की चूत की गहराईयों में उड़ेल दी. "ओह" दीप्ति चीख पड़ी. जैसे ही पुत्र वीर्य की पहली बौछार का अनुभव उन्हें हुआ अपनी चूत से अजय के फ़ौव्वारे से लन्ड को कस के भींच लिया. अगले पांच मिनट तक लन्ड से वीर्य की कई छोटी बड़ी फ़ुहारें निकलती रहीं.
थोड़ी देर बाद जब ज्वार उतरा तो दीप्ति बेटे के शरीर पर ही लेट गय़ीं. भारी भरकम स्तन अजय की छातियों से दबे हुये थे. अजय ने मां के माथे को चूमा और गर्दन को सहलाया.
"मां, मैं हमेशा सिर्फ़ तुम्हारा रहूंगा. तुम जब चाहो जैसे चाहो मेरे संग सैक्स कर सकती हो, आज के बाद मैं किसी और की तरफ़ आंख उठा कर भी नहीं देखूंगा", अजय ने अपनी मां, काम क्रीड़ा की पार्टनर दीप्ति को वचन दिया.
दीप्ति ने धीरे से सिर हिलाया. उनका बेटा उनके प्यार की गहराई को समझ चुका था. अजय आज के बाद उनकी आंखों से दुनिया देखेगा. एक बार फ़िर अजय को सब कुछ सिखाने की जिम्मेदारी उनके ऊपर थी. और अब उन्हें भी सैक्स में वो सब करने का मौका मिलेगा जो उनके पति के दकियानूसी विचारों के कारण आज तक वह करने से वंचित रहीं. अपने बेटे को फ़िर से पा लेने की सन्तुष्टी ने उनके मन से अपने कृत्य की ग्लानि को भी मिटा दिया था.
दीप्ति ने अजय के मोबाईल में सवेरे जल्दी उठने का अलार्म सेट किया ताकि अपने पति से पहले उठ कर खुद नहा धो कर साफ़ हो सकें. मोबाईल वापिस रख अजय के होठों पर गुड नाईट किस दिया और उस की बाहों में ही सो गयीं.
Re: अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति
अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति--पार्ट -७
उस रात के बाद दीप्ति के जीवन में एक नया परिवर्तन आ गया. अपने बेटे अजय के साथ संभोग करते समय हर तरह का प्रयोग करने की छूट थी जो उनका उम्रदराज पति कभी नहीं करने देता था. हालांकि दैनिक जीवन में मां बेटे काफ़ी सतर्क रहते थे. दोनों के बीच बातचीत में उनके सैक्स जीवन का जिक्र कभी नहीं आता था. दीप्ति ने अजय के व्यवहार में भी बदलाव महसूस किया. अजय पहले की तुलना में काफ़ी शान्त और समझदार हो गया था.सबकुछ अजय के बेडरूम में ही होता था और वो भी रात में कुछ घन्टों के लिये. दीप्ति ही अजय के बेडरूम में जाती थी जब उन्हें महसूस होता था की अजय की जरुरत अपने चरम पर है. बाकी समय दोनों के बीच सब कुछ सामान्य था या यूं कहें की मां बेटे और ज्यादा करीब आ गये थे. हाँ, अजय के कमरे में दोनों के बीच दुनिया की कोई तीसरी चीज नहीं आ सकती थी. अजय और दीप्ति यहां वो सब कर सकते थे जो वो दोनों अश्लील फ़िल्मों में देखते और सुनते थे. एक दूसरे को सन्तुष्ट करने की भावना ही दोनों को इतना करीब लाई थी.और इस सब के बीच में फ़िर से शोभा चाची का आना हुआ. काफ़ी दिनों से कुमार अपने बड़े भाई के घर जाना चाहता था और शोभा इस बार उसके साथ जाना चाहती थी. पिछली बार शोभा ने कुमार को वहां से जल्दी लौटने के लिये जोर डाला था और कुमार बिचारा बिना कुछ जाने परेशान सा था कि अचानक से शोभा का मूड क्यूं बिगड़ गया. खैर अब सब कुछ फ़िर से सामान्य होता नज़र आ रहा था.उधर शोभा अपने घर लौटने के बाद भी अजय को अपने दिमाग से नहीं निकाल पाई थी. अजय के साथ हुये उस रात के अनुभव को उसने कुमार के साथ दोहराने का काफ़ी प्रयत्न किया परन्तु कुमार में अजय की तरह किशोरावस्था की वासना और जानवरों जैसी ताकत का नितान्त अभाव था. कुमार काफ़ी पुराने विचारों वाला था. शोभा को याद नहीं कि कभी कुमार ने उसने ढंग से सहलाया और चाटा हो. लेकिन अजय ने तो उस एक रात में ही उसके पेटीकोट में घुस कर सूंघा था. क्या पता अगर वो अजय को उस समय थोड़ा प्रोत्साहन देती तो लड़का और आगे बढ़ सकता था. चलो फ़िर किसी समय सही....शोभा दीप्ति के घर में फ़िर से उसी रसोईघर में मिली जहां उसने अजय के साथ अपनी रासलीला को स्वीकारा था. अजय एक मिनट के लिये अपनी चाची से मिला परन्तु जल्द ही शरमा कर चुपचाप खिसक लिया था. अभी तक वो अपनी प्रथम चुदाई का अनुभव नहीं भूला था जब उसकी चाची ने गरिमापूर्ण तरीके से उसे सैक्स जीवन का महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाया था. "सो, कैसा चल रहा है सब कुछ", शोभा ने पूछा."क्या कैसा चल रहा है?" दीप्ति ने शंकित स्वर में पूछा. अपनी और अजय की अतरंगता को वो शोभा के साथ नहीं बांट सकती थी."वहीं सबकुछ, आपके और भाई साहब के बीच में.." शोभा ने दीप्ति को कुहनी मारते हुये कहा. दोनों के बीच सालों से चलता आ रहा था इस तरह का मजाक और छेड़खानी."आह, वो", दीप्ति ने दिमाग को झटका सा दिया. अब उसे बिस्तर में अपने पति की जरुरत नहीं थी. अपनी शारीरिक जरुरतों को पूरा करने के लिये रात में किसी भी समय वो अजय के पास जा सकती थी. अजय जो अब सिर्फ़ उनका बेटा ही नहीं उनका प्रेमी भी था."दीदी, क्या हुआ?" शोभा के स्वर ने दीप्ति के विचारों को तोड़ा."नहीं, कुछ नहीं. आओ, हॉल में बैठ कर बातें करते हैं". साड़ी के पल्लू से अपने हाथ पोंछती हुई दीप्ति बाहर हॉल की तरफ़ बढ़ गई.हॉल में इस समय कोई नहीं था. दोनों मर्द खाने के बाद अपने अपने कमरों मे सोने चले गये थे और अजय का कहीं अता पता नहीं था. दिन भर में अजय ने सिर्फ़ एक बार ही अपनी चाची से बात की थी और पहले की तुलना में काफ़ी सावधानी बरत रहा था. उसके हाथ शोभा को छूने से बच रहे थे और ये बात शोभा को बिल्कुल पसन्द नहीं आई थी.
दीप्ति सोफ़े पर पसर गई और शोभा उसके बगल में आकर जमीन पर ही बैठ गयी."आपने जवाब नहीं दिया दीदी.""क्या जवाब?" दीप्ति झुंझला गयी. ये औरत चुप नहीं रह सकती. "मुझे अब उनकी जरुरत नहीं है" फ़िर थोड़ा संयन्त स्वर में बोली. "क्यूं?" शोभा ने दीप्ति के चेहरे को देखते हुए पूछा. "क्या कहीं और से...?" शोभा के होठों पर शरारत भरी मुस्कान फ़ैल गई.दीप्ति शरमा गई. "क्य कह रही हो शोभा? तुम्हें तो पता है कि मैं गोपाल को कितना प्यार करती हूं. तुम्हें लगता है कि मैं ऐसा कर सकती हूं?" "हां तुम ने जरूर ये कोशिश की थी" दीप्ति ने बात का रुख पलटते हुये कहा. अजय और शोभा के संसर्ग को अभी तक दिमाग से नहीं निकाल पाई थी. चूंकि अब वो भी अजय के युवा शरीर के आकर्षण से भली भांति परिचित थी अतः वो इसका दोष अकेले शोभा को भी नहीं दे सकती थी. लेकिन अजय को अब वो सिर्फ़ अपने लिये चाहती थी.शोभा दीप्ति के कटाक्ष से आहत थी. खुद को नैतिक स्तर पर दीप्ति से काफ़ी छोटा महसूस कर रही थी."आप जैसा समझ रही हैं वैसा कुछ भी नहीं था मेरे मन में. अपने ही बेटे जैसे भतीजे की जरुरत को पूरा करने के लिये ही मैनें ये सब किया था. हां उसके कमरे में गलती से में घुसी जरूर थी", वो दीप्ति के सामने सिर झुकाये बैठी रही.दीप्ति ने अपना हाथ शोभा के कन्धे पर रखते हुये कहा "हमने कभी इस बारे में खुल कर बात नहीं की ना?""मुझे लगा आप मुझसे नाराज है. इसी डर से तो में उस दिन चली गई थी" शोभा बोली."लेकिन मैं तुमसे नाराज नहीं थीं." शोभा के कन्धे पर दबाव बढ़ाते हुये दीप्ति ने कहा."फ़िर आप कुछ बोली क्यूं नहीं""मैं उस वक्त कुछ सोच रही थी और जब मुड़ कर देखा तो तुम जा चुकी थीं. अब मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है. इस उम्र के बच्चों को ही अच्छे बुरे की पहचान नहीं होती और फ़िर तुम उसके कमरे में गलती से ही घुसी थीं. अजय को देख कर कोई भी औरत आकर्षित हो सकती है"."हां दीदी, मैं भी आज तक उस रात को नहीं भूली. उसकी वो ताकत और वो जुनून मुझे आज भी रह रह कर याद आता है. कुमार और मैं सैक्स सिर्फ़ एक दुसरे की जरूरत पूरा करने के लिये ही करते हैं." "अजय ने मेरी बरसों से दबी हुई इच्छाओं को भड़का दिया है और ये अब मुझे हमेशा तड़पाती रहेंगी. लेकिन जो हुआ वो हुआ. उस वक्त हालात ही कुछ ऐसे थे. अब ये सब मैं दुबारा नहीं होने दूंगी.
उस रात के बाद दीप्ति के जीवन में एक नया परिवर्तन आ गया. अपने बेटे अजय के साथ संभोग करते समय हर तरह का प्रयोग करने की छूट थी जो उनका उम्रदराज पति कभी नहीं करने देता था. हालांकि दैनिक जीवन में मां बेटे काफ़ी सतर्क रहते थे. दोनों के बीच बातचीत में उनके सैक्स जीवन का जिक्र कभी नहीं आता था. दीप्ति ने अजय के व्यवहार में भी बदलाव महसूस किया. अजय पहले की तुलना में काफ़ी शान्त और समझदार हो गया था.सबकुछ अजय के बेडरूम में ही होता था और वो भी रात में कुछ घन्टों के लिये. दीप्ति ही अजय के बेडरूम में जाती थी जब उन्हें महसूस होता था की अजय की जरुरत अपने चरम पर है. बाकी समय दोनों के बीच सब कुछ सामान्य था या यूं कहें की मां बेटे और ज्यादा करीब आ गये थे. हाँ, अजय के कमरे में दोनों के बीच दुनिया की कोई तीसरी चीज नहीं आ सकती थी. अजय और दीप्ति यहां वो सब कर सकते थे जो वो दोनों अश्लील फ़िल्मों में देखते और सुनते थे. एक दूसरे को सन्तुष्ट करने की भावना ही दोनों को इतना करीब लाई थी.और इस सब के बीच में फ़िर से शोभा चाची का आना हुआ. काफ़ी दिनों से कुमार अपने बड़े भाई के घर जाना चाहता था और शोभा इस बार उसके साथ जाना चाहती थी. पिछली बार शोभा ने कुमार को वहां से जल्दी लौटने के लिये जोर डाला था और कुमार बिचारा बिना कुछ जाने परेशान सा था कि अचानक से शोभा का मूड क्यूं बिगड़ गया. खैर अब सब कुछ फ़िर से सामान्य होता नज़र आ रहा था.उधर शोभा अपने घर लौटने के बाद भी अजय को अपने दिमाग से नहीं निकाल पाई थी. अजय के साथ हुये उस रात के अनुभव को उसने कुमार के साथ दोहराने का काफ़ी प्रयत्न किया परन्तु कुमार में अजय की तरह किशोरावस्था की वासना और जानवरों जैसी ताकत का नितान्त अभाव था. कुमार काफ़ी पुराने विचारों वाला था. शोभा को याद नहीं कि कभी कुमार ने उसने ढंग से सहलाया और चाटा हो. लेकिन अजय ने तो उस एक रात में ही उसके पेटीकोट में घुस कर सूंघा था. क्या पता अगर वो अजय को उस समय थोड़ा प्रोत्साहन देती तो लड़का और आगे बढ़ सकता था. चलो फ़िर किसी समय सही....शोभा दीप्ति के घर में फ़िर से उसी रसोईघर में मिली जहां उसने अजय के साथ अपनी रासलीला को स्वीकारा था. अजय एक मिनट के लिये अपनी चाची से मिला परन्तु जल्द ही शरमा कर चुपचाप खिसक लिया था. अभी तक वो अपनी प्रथम चुदाई का अनुभव नहीं भूला था जब उसकी चाची ने गरिमापूर्ण तरीके से उसे सैक्स जीवन का महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाया था. "सो, कैसा चल रहा है सब कुछ", शोभा ने पूछा."क्या कैसा चल रहा है?" दीप्ति ने शंकित स्वर में पूछा. अपनी और अजय की अतरंगता को वो शोभा के साथ नहीं बांट सकती थी."वहीं सबकुछ, आपके और भाई साहब के बीच में.." शोभा ने दीप्ति को कुहनी मारते हुये कहा. दोनों के बीच सालों से चलता आ रहा था इस तरह का मजाक और छेड़खानी."आह, वो", दीप्ति ने दिमाग को झटका सा दिया. अब उसे बिस्तर में अपने पति की जरुरत नहीं थी. अपनी शारीरिक जरुरतों को पूरा करने के लिये रात में किसी भी समय वो अजय के पास जा सकती थी. अजय जो अब सिर्फ़ उनका बेटा ही नहीं उनका प्रेमी भी था."दीदी, क्या हुआ?" शोभा के स्वर ने दीप्ति के विचारों को तोड़ा."नहीं, कुछ नहीं. आओ, हॉल में बैठ कर बातें करते हैं". साड़ी के पल्लू से अपने हाथ पोंछती हुई दीप्ति बाहर हॉल की तरफ़ बढ़ गई.हॉल में इस समय कोई नहीं था. दोनों मर्द खाने के बाद अपने अपने कमरों मे सोने चले गये थे और अजय का कहीं अता पता नहीं था. दिन भर में अजय ने सिर्फ़ एक बार ही अपनी चाची से बात की थी और पहले की तुलना में काफ़ी सावधानी बरत रहा था. उसके हाथ शोभा को छूने से बच रहे थे और ये बात शोभा को बिल्कुल पसन्द नहीं आई थी.
दीप्ति सोफ़े पर पसर गई और शोभा उसके बगल में आकर जमीन पर ही बैठ गयी."आपने जवाब नहीं दिया दीदी.""क्या जवाब?" दीप्ति झुंझला गयी. ये औरत चुप नहीं रह सकती. "मुझे अब उनकी जरुरत नहीं है" फ़िर थोड़ा संयन्त स्वर में बोली. "क्यूं?" शोभा ने दीप्ति के चेहरे को देखते हुए पूछा. "क्या कहीं और से...?" शोभा के होठों पर शरारत भरी मुस्कान फ़ैल गई.दीप्ति शरमा गई. "क्य कह रही हो शोभा? तुम्हें तो पता है कि मैं गोपाल को कितना प्यार करती हूं. तुम्हें लगता है कि मैं ऐसा कर सकती हूं?" "हां तुम ने जरूर ये कोशिश की थी" दीप्ति ने बात का रुख पलटते हुये कहा. अजय और शोभा के संसर्ग को अभी तक दिमाग से नहीं निकाल पाई थी. चूंकि अब वो भी अजय के युवा शरीर के आकर्षण से भली भांति परिचित थी अतः वो इसका दोष अकेले शोभा को भी नहीं दे सकती थी. लेकिन अजय को अब वो सिर्फ़ अपने लिये चाहती थी.शोभा दीप्ति के कटाक्ष से आहत थी. खुद को नैतिक स्तर पर दीप्ति से काफ़ी छोटा महसूस कर रही थी."आप जैसा समझ रही हैं वैसा कुछ भी नहीं था मेरे मन में. अपने ही बेटे जैसे भतीजे की जरुरत को पूरा करने के लिये ही मैनें ये सब किया था. हां उसके कमरे में गलती से में घुसी जरूर थी", वो दीप्ति के सामने सिर झुकाये बैठी रही.दीप्ति ने अपना हाथ शोभा के कन्धे पर रखते हुये कहा "हमने कभी इस बारे में खुल कर बात नहीं की ना?""मुझे लगा आप मुझसे नाराज है. इसी डर से तो में उस दिन चली गई थी" शोभा बोली."लेकिन मैं तुमसे नाराज नहीं थीं." शोभा के कन्धे पर दबाव बढ़ाते हुये दीप्ति ने कहा."फ़िर आप कुछ बोली क्यूं नहीं""मैं उस वक्त कुछ सोच रही थी और जब मुड़ कर देखा तो तुम जा चुकी थीं. अब मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है. इस उम्र के बच्चों को ही अच्छे बुरे की पहचान नहीं होती और फ़िर तुम उसके कमरे में गलती से ही घुसी थीं. अजय को देख कर कोई भी औरत आकर्षित हो सकती है"."हां दीदी, मैं भी आज तक उस रात को नहीं भूली. उसकी वो ताकत और वो जुनून मुझे आज भी रह रह कर याद आता है. कुमार और मैं सैक्स सिर्फ़ एक दुसरे की जरूरत पूरा करने के लिये ही करते हैं." "अजय ने मेरी बरसों से दबी हुई इच्छाओं को भड़का दिया है और ये अब मुझे हमेशा तड़पाती रहेंगी. लेकिन जो हुआ वो हुआ. उस वक्त हालात ही कुछ ऐसे थे. अब ये सब मैं दुबारा नहीं होने दूंगी.
Re: अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति
शोभा के स्वर में उदासी समाई हुई थी. मालूम था की झूठ बोल रही है. उस रात के बारे में सोचने भर से उसकी चूत में पानी भर गया था.दीप्ति ने शोभा की ठोड़ी पकड़ कर उसका चेहरा ऊपर उठाया, बोली "उदास मत हो छोटी, अजय है ही ऐसा. मैनें भी उसे महसूस किया है. सच में एक एक इन्च प्यार करने के लायक है वो".शोभा दीप्ति के शब्दों से दंग रह गयी,"क्या कह रही हो दीदी?"दीप्ति को अपनी गलती का अहसास हो गया. भावनाओं में बह कर उसने शोभा को उसके और अजय के बीच बने नये संबंधों का इशारा ही दे दिया था. दीप्ति ने शोभा को हाथ पकड़ कर अपने पास खींचा और बाहों में भर लिया. "क्या हुआ था दीदी" शोभा की उत्सुकता जाग गयी."मैं नहीं चाहती थी अजय मेरे अलावा किसी और को चाहे. पर उसके मन में तो सिर्फ़ तुम समाई हुयीं थी.""तो, आपने क्या किया?""उस रात, तुम्हारे जाने के बाद मैं उसके कमरे में गई, बिचारा मुट्ठ मारते हुये भी तुम्हारा नाम ले रहा था. मुझसे ये सब सहन नहीं हुआ और मैनें उसका लन्ड अपने हाथों में ले लिया और फ़िर...." दीप्ति अब टूट चुकी थी.शोभा के हाथ दीप्ति की पीठ पर मचल रहे थे. जेठानी के बदन से उठती आग वो महसूस कर सकती थी. "क्या अजय ने आपके चूंचें भी चूसे थे?" बातों में शोभा ही हमेशा बोल्ड रही थी."हां री, और मुझे याद है कि उसने तुम्हारे भी चूसे थे." दीप्ति ने पिछले वार्तालाप को याद करते हुये कहा. उसके हाथ अब शोभा के स्तनों पर थे. अंगूठे से वो अपनी देवरानी के निप्पल को दबाने सहलाने लगी. अपनी बहन जैसी जेठानी से मिले इस सिग्नल के बाद तो शोभा के जिस्म में बिजलियां सी दौड़ने लगीं. दीप्ति भी अपने ब्लाऊज और साड़ी के बीच नन्गी पीठ पर शोभा के कांपते हाथों से सिहर उठी. अपने चेहरे को शोभा के चेहरे से सटाते हुये दीप्ति ने दूसरा हाथ भी शोभा के दूसरे स्तन पर जमा दिया. दोनों पन्जों ने शोभा के यौवन कपोतों को मसलना शुरु कर दिया. शोभा के स्तन आकार में दीप्ति के स्तनों से कहीं बड़े और भारी थे.
शोभा ने पीछे हटते हुये दीप्ति और अपने बीच में थोड़ी जगह बना ली ताकि दीप्ति आराम से उसके दुखते हुये मुम्मों को सहला सके। उसका चेहरा दीप्ति के गालों से रगड़ रहा था और होंठ थरथरा रहे थे "आप बहुत लकी है दीदी. रोज रात आपको अजय का साथ मिलता है" शोभा की गर्म सांसे दीप्ति के चेहरे पर पड़ रहीं थीं. दोनों के होंठ एक दूसरे की और लपके और अगले ही पल दोनों औरतें प्रेमी युगल की भांति एक दूसरे को किस कर रही थीं. दोनों की अनुभवी जीभ एक दूसरे के मुहं में समाई हुई थी."उसे मुम्मे बहुत पसन्द हैं. तुम्हारे मुम्मे तो मेरे मुम्मों से भी कहीं ज्यादा भरे हुये है" "जी भर के चूसा होगा इनको अजय ने" दीप्ति शोभा के स्तनों को ब्लाऊज के ऊपर से ही दबाते हुये बोली. अजय ने इन्हीं मुम्मों को चूसा था ना. जैसा मेरे साथ करता है उसी तरह से छोटी के मुम्मों की भी दुर्गति की होगी. शोभा दीप्ति के मन की बात समझ गई. तुरन्त ही ब्लाऊज के सारे बटन खोल कर पीछे पीठ पर ब्रा के हुक भी खोल दिये. शोभा के भारी भारी चूचें अपनी जामुन जैसे बड़े निप्पलों के साथ बाहर को उछल पड़े. दीप्ति जीवन में पहली बार किसी दुसरी औरत के स्तनों को देख रही थी. कितने मोटे और रसीले है ये. निश्चित ही अजय को अपने वश में करना शोभा के लिये कोई कठिन काम नहीं था.शोभा ने दोनों हाथों में उठा कर अपने चूंचे दीप्ति की तरफ़ बढ़ाये. दीप्ति झुकी और तनी हुई निप्पलों पर चुम्बनों की बारिश सी कर दी. कुछ दिन पहले ठीक इसी जगह उनके पुत्र के होंठ भी कुछ ऐसा ही कर रहे थे. "ओह, दीदीइइइ" शोभा आनन्द से सीत्कारी.दीप्ति ने एक निप्पल अपने मुहं मे ही दबा लिया. उसकी जीभ शोभा की तनी हुई घुंडी पर वैसे ही नाच रही थी जैसे वो रोज रात अजय के गुलाबी सुपाड़े पर फ़ुदकती थी. पहली बार एक औरत के साथ. नया ही अनुभव था ये तो. खुद एक स्त्री होने के नाते वो ये जानती थी की शोभा क्या चाहती है. अजय और शोभा में काफ़ी समानतायें थीं. अजय की तरह शोभा के बदन में भी अलग ही आकर्षण था. उसके शरीर में भी वही जोश और उत्तेजना थी जो हर रात वो अजय में महसूस करती थी. दोनों का मछली पानी जैसा साथ रहा होगा उस रात. ये सोचते सोचते ही दीप्ति शोभा के निप्पल को चबाने लगी."और क्या क्या किया दीदी अजय ने आपके साथ? क्या आपको वहां नीचे भी चाटा था उसने?" "आऊच...आह्ह्ह" शोभा के मुहं से सवाल के साथ ही दबी हुई चीख भी निकली. दीप्ति अब उस बिचारे निप्पल पर अपने दातों का प्रयोग कर रही थी."नीचे कहां?""टांगों के बीच में." कहते हुये शोभा ने अपना दूसरा स्तन हाथ में भर लिया. ये अभागा दीप्ति के प्यार की चाह में अन्दर से तड़प तड़प कर सख्त हो गया था."टांगों के बीच में?" दीप्ति ने शोभा का थूक से सना निप्पल छोड़ दिया और अविश्वास से उसकी तरफ़ देखती हुई बोली. "भला एक मर्द वहां क्यूं चाटने लगा?" फ़िर से शोभा के निप्पल को मुहं में भर लिया और पहले से भी ज्यादा तीव्रता से चुसाई में जुट गयी मानो निप्पल नहीं लन्ड हो जो थोड़ी देर में ही अपना पानी छोड़ देगा."आआआह्ह्ह्ह्ह्ह॥ दीदी, प्लीज जोर से चूसो, हां हां", शोभा दीप्ति को उकसाते हुये चीखी. उसकी चूत में तो बिजली का करंट सा दौड़ रहा था."यहां, देखो यहां घुसती है मर्द की जुबान", शोभा ने फ़ुर्ती के साथ दीप्ति कि साड़ी और पेटीकोट ऊपर कर पैन्टी की कसी हुई इलास्टिक में हाथ घुसेड़ दिया. पैन्टी को खींच कर उतारने का असफ़ल प्रयास किया तो हाथ में चुत के पानी से गीली हुई झांटे आ गईं जो इस वक्त दीप्ति के शरीर में लगी आग की चुगली खा रही थी. दीप्ति ने खुद ही साड़ी और पेटिकोट को कमर पर इकट्ठा कर उन्गली फ़सा अपनी पैन्टी नीचे जांघों तक सरका दी. इधर दीप्ति ने फ़िर से शोभा के स्तनों को जकड़ा उधर शोभा भी पूरी तैयारी में थी. चूत का साथ छोड़ चुकी पैन्टी को थोड़ा और नीचे खींच कर उसने दीप्ति की बुल्बुले उगलती चूत को बिल्कुल आजाद करा दिया. चूत के होंठों को अपनी पतली पतली उंगलियों से सहलाते हुये फ़ुसफ़ुसाई, "दीदी, आप लेट जाओ, मैं आपको बताती हूं कि कैसा महसूस होता है जब एक जीभ हम औरतों की चूत को प्यार करती है". दीप्ति की समझ में तो कुछ भी नहीं आ रहा था और शोभा अपने जिस्म में उमड़ती उत्तेजना से नशे में झूम रही थी.
शोभा ने पीछे हटते हुये दीप्ति और अपने बीच में थोड़ी जगह बना ली ताकि दीप्ति आराम से उसके दुखते हुये मुम्मों को सहला सके। उसका चेहरा दीप्ति के गालों से रगड़ रहा था और होंठ थरथरा रहे थे "आप बहुत लकी है दीदी. रोज रात आपको अजय का साथ मिलता है" शोभा की गर्म सांसे दीप्ति के चेहरे पर पड़ रहीं थीं. दोनों के होंठ एक दूसरे की और लपके और अगले ही पल दोनों औरतें प्रेमी युगल की भांति एक दूसरे को किस कर रही थीं. दोनों की अनुभवी जीभ एक दूसरे के मुहं में समाई हुई थी."उसे मुम्मे बहुत पसन्द हैं. तुम्हारे मुम्मे तो मेरे मुम्मों से भी कहीं ज्यादा भरे हुये है" "जी भर के चूसा होगा इनको अजय ने" दीप्ति शोभा के स्तनों को ब्लाऊज के ऊपर से ही दबाते हुये बोली. अजय ने इन्हीं मुम्मों को चूसा था ना. जैसा मेरे साथ करता है उसी तरह से छोटी के मुम्मों की भी दुर्गति की होगी. शोभा दीप्ति के मन की बात समझ गई. तुरन्त ही ब्लाऊज के सारे बटन खोल कर पीछे पीठ पर ब्रा के हुक भी खोल दिये. शोभा के भारी भारी चूचें अपनी जामुन जैसे बड़े निप्पलों के साथ बाहर को उछल पड़े. दीप्ति जीवन में पहली बार किसी दुसरी औरत के स्तनों को देख रही थी. कितने मोटे और रसीले है ये. निश्चित ही अजय को अपने वश में करना शोभा के लिये कोई कठिन काम नहीं था.शोभा ने दोनों हाथों में उठा कर अपने चूंचे दीप्ति की तरफ़ बढ़ाये. दीप्ति झुकी और तनी हुई निप्पलों पर चुम्बनों की बारिश सी कर दी. कुछ दिन पहले ठीक इसी जगह उनके पुत्र के होंठ भी कुछ ऐसा ही कर रहे थे. "ओह, दीदीइइइ" शोभा आनन्द से सीत्कारी.दीप्ति ने एक निप्पल अपने मुहं मे ही दबा लिया. उसकी जीभ शोभा की तनी हुई घुंडी पर वैसे ही नाच रही थी जैसे वो रोज रात अजय के गुलाबी सुपाड़े पर फ़ुदकती थी. पहली बार एक औरत के साथ. नया ही अनुभव था ये तो. खुद एक स्त्री होने के नाते वो ये जानती थी की शोभा क्या चाहती है. अजय और शोभा में काफ़ी समानतायें थीं. अजय की तरह शोभा के बदन में भी अलग ही आकर्षण था. उसके शरीर में भी वही जोश और उत्तेजना थी जो हर रात वो अजय में महसूस करती थी. दोनों का मछली पानी जैसा साथ रहा होगा उस रात. ये सोचते सोचते ही दीप्ति शोभा के निप्पल को चबाने लगी."और क्या क्या किया दीदी अजय ने आपके साथ? क्या आपको वहां नीचे भी चाटा था उसने?" "आऊच...आह्ह्ह" शोभा के मुहं से सवाल के साथ ही दबी हुई चीख भी निकली. दीप्ति अब उस बिचारे निप्पल पर अपने दातों का प्रयोग कर रही थी."नीचे कहां?""टांगों के बीच में." कहते हुये शोभा ने अपना दूसरा स्तन हाथ में भर लिया. ये अभागा दीप्ति के प्यार की चाह में अन्दर से तड़प तड़प कर सख्त हो गया था."टांगों के बीच में?" दीप्ति ने शोभा का थूक से सना निप्पल छोड़ दिया और अविश्वास से उसकी तरफ़ देखती हुई बोली. "भला एक मर्द वहां क्यूं चाटने लगा?" फ़िर से शोभा के निप्पल को मुहं में भर लिया और पहले से भी ज्यादा तीव्रता से चुसाई में जुट गयी मानो निप्पल नहीं लन्ड हो जो थोड़ी देर में ही अपना पानी छोड़ देगा."आआआह्ह्ह्ह्ह्ह॥ दीदी, प्लीज जोर से चूसो, हां हां", शोभा दीप्ति को उकसाते हुये चीखी. उसकी चूत में तो बिजली का करंट सा दौड़ रहा था."यहां, देखो यहां घुसती है मर्द की जुबान", शोभा ने फ़ुर्ती के साथ दीप्ति कि साड़ी और पेटीकोट ऊपर कर पैन्टी की कसी हुई इलास्टिक में हाथ घुसेड़ दिया. पैन्टी को खींच कर उतारने का असफ़ल प्रयास किया तो हाथ में चुत के पानी से गीली हुई झांटे आ गईं जो इस वक्त दीप्ति के शरीर में लगी आग की चुगली खा रही थी. दीप्ति ने खुद ही साड़ी और पेटिकोट को कमर पर इकट्ठा कर उन्गली फ़सा अपनी पैन्टी नीचे जांघों तक सरका दी. इधर दीप्ति ने फ़िर से शोभा के स्तनों को जकड़ा उधर शोभा भी पूरी तैयारी में थी. चूत का साथ छोड़ चुकी पैन्टी को थोड़ा और नीचे खींच कर उसने दीप्ति की बुल्बुले उगलती चूत को बिल्कुल आजाद करा दिया. चूत के होंठों को अपनी पतली पतली उंगलियों से सहलाते हुये फ़ुसफ़ुसाई, "दीदी, आप लेट जाओ, मैं आपको बताती हूं कि कैसा महसूस होता है जब एक जीभ हम औरतों की चूत को प्यार करती है". दीप्ति की समझ में तो कुछ भी नहीं आ रहा था और शोभा अपने जिस्म में उमड़ती उत्तेजना से नशे में झूम रही थी.