सबाना और ताजीन की चुदाई compleet
Re: सबाना और ताजीन की चुदाई
अब ताज़ीन खड़ी हुई. प्रताप ने पहली बार उसे ऊपर से नीचे तक देखा. ताज़ीन ने झुक कर उसे चूम लिया. उसके होंठों को अपनी जीभ से चटा और मुस्कुरा कर बाहर निकल गई. प्रताप ने इधर उधर देखा शबाना भी कमरे में नहीं थी. बाथरूम से पानी की आवाज़ आ रही थी. शबाना नहा रही थी.
"क्यों प्रताप कैसी रही ?" "मज़ा आ गया, एक के साथ एक फ्री" प्रताप ने हंसते हुए कहा. शबाना भी मुस्कुरा दी.
ताज़ीन वहीं बैठी हुई थी, उसने चुटकी ली "साली तेरे तो मज़े हैं, प्रताप जैसा लंड मिल गया है चुदाई के लिए. मन तो करता है मैं भी यहीं रह जाऊं और रोज चुदाई करवाउ. बहुत दिनों के बाद कोई असली लंड मिला है". "अभी पंद्रह दिन और हैं ताज़ीन जितने चाहे मज़े लेले, फिर तो तुझे जाना ही है. हां कल तुम्हारे भैया आ जाएँगे तो थोड़ा सावधान रहना होगा."
तभी ताज़ीन ने कहा "प्रताप तुम्हारा कोई दोस्त है तो उसे भी ले आओ. दोनो तरफ दो-दो होंगे तो मज़ा भी ज़्यादा आएगा"
"यह क्या बक रही हो ताज़ीन तुम तो चली जाओगी मुझे तो यहीं रहना है, किसी को पता चल गया तो में तो गई काम से."
"आज तक किसी को पता चला क्या ? और प्रताप का दोस्त होगा तो भरोसेमंद ही होगा, उसपर तो भरोसा है ना तुम्हें ? और मुझे मौका है तो में दो तीन के साथ मज़े करना चाहती हूँ. प्लीज़ शबाना मान जाओ ना, मज़ा आएगा"
थोड़ी ना-नुकर के बाद शबाना मान गई.
प्रताप ने अपना फोन निकाला और उन लोंगों को फोन में अपने दोस्तों के साथ की कुच्छ तस्वीरें दिखाई. इरादा पक्का हुआ जगबीर सिंग पर. वो एक सरदार था, यह भी एक प्लस पॉइंट था. क्योंकि सरदार भरोसे के काबिल होते ही हैं. फिर उसकी खुद की भी शादी हो चुकी थी, तो वो किसी को क्यों बताने लगा, वो खुद मुसीबत में आ जाता अगर किसी को पता चल जाता तो.
"हाई जगबीर प्रताप बोल रहा हूँ" "बोल प्रताप आज कैसे याद कर लिया ?" एक रौबदार आवाज़ ने जवाब दिया.
इधर उधर की बातें करने के बाद प्रताप सीधे मुद्दे पर आ गया. "आज रात क्या कर रहा है ?" "कुच्छ नहीं यार बीवी तो मैके गई है, घर पर ही हूँ, पार्टी दे रहा है क्या ? "
"पार्टी ही समझ ले, शराब और शबाब दोनों की "
"यार तू तो जानता है में इन रंडियों के चक्कर में नहीं पड़ता, बीमारियाँ फैली हुई है"
"अबे रंडियों के पास तो में भी नहीं जाता, भाभी हैं. इंटेरेस्ट है तो बोल. वो आज रात घर पर अकेली हैं, उनके घर पर ही जाना है. बोल क्या बोलता है ?"
"नेकी और पूच्छ पूछ, बता कहाँ आना है"
प्रताप ने अड्रेस वग़ैरह कन्फर्म कर दिया.
रात के नौ बजे डोर बेल बजी. शबाना ने दरवाज़ा खोला, प्रताप और जगबीर ही थे. जगबीर के हाथ में एक बॉटल थी, विस्की की. शबाना ने दरवाज़ा बंद किया और दोनों को ड्रॉयिंग रूम में बैठा दिया. जगबीर ने शबाना को देखा तो देखता ही रह गया - उसने सारी पहन रखी थी.
तभी ताज़ीन भी बाहर आ गई, उसने मिनी स्कर्ट पहन रखी थी और शॉर्ट टी-शर्ट उसका जिस्म च्छूपा कम आंड दिखा ज़्यादा था. जगबीर फोटो में जितना दिख रहा था उससे कहीं ज़्यादा आकर्षक था. पक्का सरदार - कसरती बदन और पूरा मर्दाना था, काफ़ी बाल थे उसके शरीर पर. वहीं दूसरी ओर प्रताप भी बिकुल वैसा ही था - सिर्फ़ पगड़ी नहीं बँधी थी और क्लीन शेव था. कौन ज़्यादा आकर्षक है कहना मुश्किल था.
Re: सबाना और ताजीन की चुदाई
शबाना तब तक ग्लास में बर्फ और पानी ले आई. प्रताप ने बता दिया था कि जगबीर 2-3 पेग ज़रूर मारेगा.
जब वो पीने लगा तो ताज़ीन उसके पास आकर बैठ गई और उसकी जांघों पर हाथ फिराने लगी, अंदर की तरफ. जगबीर का भी लंड उठने लगा था, और ताज़ीन बराबर उसके घुटनों से लेकर उसकी ज़िप तक अपने हाथ घुमा रही थी. जगबीर ने अपना दूसरा पेग बनाया "अकेले ही पियोगे क्या ?" शबाना ने अपना पैर जगबीर की जाँघ पर रखते हुए पूचछा. "यह क्या कह रही हो ताज़ीन तुम शराब पिओगी ?" शबाना ने जगबीर के कुच्छ बोलने से पहले ही पूच्छ लिया - वो किचन से बाहर आई. "शबाना यह तो चलता है, में कभी कभी पी लेती हूं, जब किसी मर्द का साथ होता है और वो हिजड़ा जावेद बाहर होता है" ऐसा कहकर उसने जगबीर का पेग उठाया और सीधे एक साँस में अपने मुँह में उडेल लिया. जहाँ शबाना थोड़ा संकोच करती थी - वहीं ताज़ीन काफ़ी खुली हुई और ज़िंदगी का मज़ा लेने वालों में थी. उसने काफ़ी लंड खाए थे.
अब जगबीर ने दूसरा पेग बनाया और दूसरे ग्लास में भी शराब उदेलने लगा तो ताज़ीन ने रोक दिया "एक से ही पी लेंगे, तुम अपने मुँह से पिलाओ मुझे". वो उठ कर जगबीर की गोद में बैठ गई उसकी स्कर्ट और ऊपर हो गई, उसने अपनी चूत जगबीर के लंड के उभार पर रगडी और उसके गले में बाहें डालकर उसके होंठों को चूम लिया "पहली बार कोई सरदार मिला है, मज़ा आ जाएगा" उसने ग्लास उठाया और जगबीर को पिलाया - फिर जगबीर के होंठो को चूमने लगी. जगबीर ने अपने मुँह की शराब उसके मुँह में डाल दी. इस तरह दोनों 3-4 पेग पेग पी गये. अब ताज़ीन नशे में धुत्त थी और उसके असली रंग बाहर आने वाले थे. जी हाँ, नशे में ही सही सोच बाहर आती है.
अब जगबीर की उंगलियाँ ताज़ीन की स्कर्ट में घुस कर उसकी चूत का जायज़ा ले रही थी. उसके होंठ ताज़ीन के होंठो से जैसे चिपक गये थे और उसकी जीभ ताज़ीन की जीभ को जैसे मसल कर रख देना चाहती थी. ताज़ीन भी बेकाबू हो रही थी और उसने जगबीर की शर्ट के सारे बटन खोल दिए थे. जगबीर ने उसकी टी-शर्ट में हाथ घुसा दिए, और उसके मम्मों को रौंदना शुरू कर दिया. उसके निपल्स को अपनी उंगलियों में दबाकर उनको कड़क कर रहा था. ताज़ीन ने ब्रा नहीं पहनी थी. फिर ताज़ीन ने अपने हाथ ऊपर उठा दिए, और जगबीर ने उसकी टी-शर्ट को निकाल फेंका.
प्रताप और शबाना उठ कर बेडरूम में चले गये. दोस्तो कहानी अपने पूरे शब्बाब पर आने वाली है अब दोनो हसीनाए मस्त हो चुकी है उनकी चूत लंड खाने को बेताब हो चुकी है आगे की कहानी अगले भाग मे पढ़ते रहे आपका दोस्त राज शर्मा क्रमशः................
Re: सबाना और ताजीन की चुदाई
Raj-Sharma-stories
सबाना और ताजीन की चुदाई -4
गतान्क से आगे............
अब जगबीर ने उसके गोरे मुलायम मम्मों को चूमना चाटना और काटना शुरू कर दिया. "और काटो जग्गू बहोत दिनों से आग लगी हुई है. मज़ा आ गया." जगबीर ने अपना हाथ उसकी स्कर्ट में घुसाकर पॅंटी को साइड में किया और चूत पर उंगली रगड़ने लगा. ताज़ीन मदहोश हो रही थी उसने जगबीर के होंठों को कस कर अपने होंठों में दबा लिया और अपनी जीभ घुसा दी. फिर जगबीर ने उसे वहीं सोफे पर लिटा दिया और उसकी स्कर्ट और चड्डी एक झटके से खींच कर नीचे फेंक दी. ताज़ीन के दोनों टाँगों के बीच जगबीर की उंगलियों में रेस लगी हुई थी, चूत में घुसने और बाहर निकालने की. सीधी चूत में घुसती और बाहर निकल जाती. जगबीर की उंगली एकदम भीतर तक जाकर ताज़ीन को पागल कर रही थी. "अब उंगली ही करोगे या चूसोगे भी, आग लगी है चूत में, जग्गू खा लो इसे. मेरी चूत को आज फाड़ कर रख दो जग्गू" तभी जगबीर ने उसकी चूत को फैलाया और उसके दाने को अपने मुँह में भर लिया, नीचे से अंगूठा घुसा दिया. ऊपर जीभ घुसा कर चूत को अपनी जीभ से मसलकर रख दिया. पागल हो गई ताज़ीन उसने अपनी टाँगें जगबीर की गर्दन से लपेट ली और अपनी गंद उठाकर चूत उसके मुँह में ठूंस दी. जगबीर भी पक्का सयाना था, उसने चूत चूसना जारी रखा और अब अंगूठा चूत से निकालकर उसके गंद में घुसा दिया, जिससे ताज़ीन की पकड़ थोड़ी ढीली हो गई. और जगबीर फिर चूत का रस पीने लगा - और ताज़ीन की गंद फिर उच्छलने लगी. उसकी गंद में जगबीर का अंगूठा आराम से जा रहा था. फिर जगबीर ने उसकी चूत को छ्चोड़ा और ताज़ीन को सोफे पर बैठा दिया और उसके सामने खड़ा हो गया. ताज़ीन ने जल्दी से उसकी पॅंट की ज़िप खोली और पॅंट निकाल दी, फिर अंडरवेर भी. अब जगबीर बिल्कुल नंगा खड़ा था ताज़ीन के सामने. "यार इस पूरे लंड का मज़ा ही कुच्छ और है." ताज़ीन ने जगबीर के लंड को आगेपीच्चे करते हुए कहा. जैसे जैसे वो उसे आगे पीछे करती उसके ऊपर की चमड़ी आगे आकर सूपदे को ढँक देती फिर उसे फिर से खोल देती, जैसे कोई साँप अंदर बाहर हो रहा हो. "मज़ा आ जाएगा लंड खाने में." तभी जगबीर ने उसके सर को पकड़ा और अपना लंड ज़ोर से उसके मुँह पर हर जगह रगड़ने लगा.
ताज़ीन की आँखे बंद हो गई और जगबीर अपना लंड उसके मुँह पर यहाँ वहाँ सब जगह रगडे जा रहा था, उसने अपना मुँह खोल दिया लंड मुँह में लेने की लिए. मगर जगबीर ने सीधे अपनी गोतिया उसके मुँह में डाल दी, और वो उन गोटियों को चूसने लगी, उन्हें अपने मुँह में भरकर दाँतों मे दबाकर खींचने लगी, फिर
गोलियों से होती हुई जगबीर के लंड की जड़ को मुँह मे लेने लगी, फिर जड़ से होती हुई टोपी पर पहुँच गई और लंड को मुँह में खींच लिया. अब वो बेतहाशा लंड चूसे जा रही थी. गजब के एक्सपीरियेन्स था उसे लंड चूसने का, जगबीर की सिसकारियाँ निकल रही थी. फिर ताज़ीन अचानक उठी और सोफे पर खड़ी हो गई और जगबीर के गले में बाहें डालकर झूल गई. उसने अपना हाथ नीचे किया और जगबीर का लंड अपनी चूत में घुसाकर अपने पैर उसकी कमर के चारों ओर लपेट ली. अब वो जगबीर की गोद में थी और जगबीर का लंड उसकी चूत में घुसा हुआ था. जगबीर उसी अंदाज़ में उसे धक्के लगाने लगा ताजीन की चूत पानी छ्चोड़ रही थी जो ज़मीन पर गिर रहा था, जगबीर का लंड पूरी तरह से भीग गया था. फिर जगबीर उसी हालत में उसे बेडरूम में ले गया और बिस्तर पर पटक दिया. "ओह जग्गू आज मेरी चूत तेरा लंड खा जाएगी, पीस डालेगी तेरे लंड को मेरी जान" ताज़ीन की गंद उच्छाल रही थी और ज़बान फिसल रही थी, कुच्छ शराब और कुच्छ सेक्स का असर था. अचानक जगबीर ने उसकी चूत से लंड को बाहर निकाला और उसकी टाँगें एकदम से उठा दी. और अपना लंड सीधे ताज़ीन की गंद में घुसा दिया. एक बार तो ताज़ीन की चीख निकल गई लेकिन उसने अपने आप को संभाल लिया. फिर जगबीर ने उसकी गंद मारनी शुरू कर दी. कुच्छ देर बाद ताज़ीन की सिसकारिया फिर कमरे में गूंजने लगी "ओह जग्गू मज़ा आ गया गंद मरवाने का, मेरे जिस्म में जितने भी छेद हैं, सब में अपना लंड घुसा दो जग्गू. मेरी चूत तेरे लंड की प्यासी है जग्गू और मेरी गंद तेरा लंड खाने ही बनी है. मेरी जान आज की चुदाई ज़िंदगी भर याद रहनी चाहिए." काफ़ी देर उसकी गंद मारने के बाद जगबीर ने अपना लंड निकाला और ताज़ीन की चूत पर मसल्ने लगा. "और कितना तड़पावगे मेरी जान" ऐसा कहकर ताज़ीन झटके से उठी और जगबीर को नीचे गिरा लिया और उसपर चढ़ बैठी, उसने जगबीर के लंड को अपनी चूत में घुसाया और ज़ोर ज़ोर से उच्छलने लगी. पागल जैसे हो गई थी वो "जग्गू देख मेरी चूत तेरे लंड का क्या हाल करेगी. पीस कर रख देगी वो तेरे लंड को. खा जाएगी तेरा लंड." ऐसा कहते कहते उसकी रफ़्तार तेज़ हो गई और वो एकदम से झुक गई जगबीर पर और अपनी गंद को और जोरों से हिलाने लगी, जगबीर समझ गया की यह जाने वाली है, उसने भी नीचे से धक्के लगाने शुरू कर दिए "हां जग्गू ऐसे ही, मेरी चूत के पानी में डूबने वाला है तेरा लंड. बस ऐसे ही और थोड़े झटके लगा, में तेरे लंड को नहला दूँगी अपनी चूत के रस से, मेरी चूत में भी अपने लंड का पानी पिला दे." तभी वो ज़ोर से उच्छली और फिर धीरे धीरे आखरी दो झटके दिए और जगबीर पर गिर पड़ी. उसकी चूत ने पानी छ्चोड़ दिया था. और जगबीर ने भी. वो ऐसे ही लेटे रहे कुच्छ देर.
सबाना और ताजीन की चुदाई -4
गतान्क से आगे............
अब जगबीर ने उसके गोरे मुलायम मम्मों को चूमना चाटना और काटना शुरू कर दिया. "और काटो जग्गू बहोत दिनों से आग लगी हुई है. मज़ा आ गया." जगबीर ने अपना हाथ उसकी स्कर्ट में घुसाकर पॅंटी को साइड में किया और चूत पर उंगली रगड़ने लगा. ताज़ीन मदहोश हो रही थी उसने जगबीर के होंठों को कस कर अपने होंठों में दबा लिया और अपनी जीभ घुसा दी. फिर जगबीर ने उसे वहीं सोफे पर लिटा दिया और उसकी स्कर्ट और चड्डी एक झटके से खींच कर नीचे फेंक दी. ताज़ीन के दोनों टाँगों के बीच जगबीर की उंगलियों में रेस लगी हुई थी, चूत में घुसने और बाहर निकालने की. सीधी चूत में घुसती और बाहर निकल जाती. जगबीर की उंगली एकदम भीतर तक जाकर ताज़ीन को पागल कर रही थी. "अब उंगली ही करोगे या चूसोगे भी, आग लगी है चूत में, जग्गू खा लो इसे. मेरी चूत को आज फाड़ कर रख दो जग्गू" तभी जगबीर ने उसकी चूत को फैलाया और उसके दाने को अपने मुँह में भर लिया, नीचे से अंगूठा घुसा दिया. ऊपर जीभ घुसा कर चूत को अपनी जीभ से मसलकर रख दिया. पागल हो गई ताज़ीन उसने अपनी टाँगें जगबीर की गर्दन से लपेट ली और अपनी गंद उठाकर चूत उसके मुँह में ठूंस दी. जगबीर भी पक्का सयाना था, उसने चूत चूसना जारी रखा और अब अंगूठा चूत से निकालकर उसके गंद में घुसा दिया, जिससे ताज़ीन की पकड़ थोड़ी ढीली हो गई. और जगबीर फिर चूत का रस पीने लगा - और ताज़ीन की गंद फिर उच्छलने लगी. उसकी गंद में जगबीर का अंगूठा आराम से जा रहा था. फिर जगबीर ने उसकी चूत को छ्चोड़ा और ताज़ीन को सोफे पर बैठा दिया और उसके सामने खड़ा हो गया. ताज़ीन ने जल्दी से उसकी पॅंट की ज़िप खोली और पॅंट निकाल दी, फिर अंडरवेर भी. अब जगबीर बिल्कुल नंगा खड़ा था ताज़ीन के सामने. "यार इस पूरे लंड का मज़ा ही कुच्छ और है." ताज़ीन ने जगबीर के लंड को आगेपीच्चे करते हुए कहा. जैसे जैसे वो उसे आगे पीछे करती उसके ऊपर की चमड़ी आगे आकर सूपदे को ढँक देती फिर उसे फिर से खोल देती, जैसे कोई साँप अंदर बाहर हो रहा हो. "मज़ा आ जाएगा लंड खाने में." तभी जगबीर ने उसके सर को पकड़ा और अपना लंड ज़ोर से उसके मुँह पर हर जगह रगड़ने लगा.
ताज़ीन की आँखे बंद हो गई और जगबीर अपना लंड उसके मुँह पर यहाँ वहाँ सब जगह रगडे जा रहा था, उसने अपना मुँह खोल दिया लंड मुँह में लेने की लिए. मगर जगबीर ने सीधे अपनी गोतिया उसके मुँह में डाल दी, और वो उन गोटियों को चूसने लगी, उन्हें अपने मुँह में भरकर दाँतों मे दबाकर खींचने लगी, फिर
गोलियों से होती हुई जगबीर के लंड की जड़ को मुँह मे लेने लगी, फिर जड़ से होती हुई टोपी पर पहुँच गई और लंड को मुँह में खींच लिया. अब वो बेतहाशा लंड चूसे जा रही थी. गजब के एक्सपीरियेन्स था उसे लंड चूसने का, जगबीर की सिसकारियाँ निकल रही थी. फिर ताज़ीन अचानक उठी और सोफे पर खड़ी हो गई और जगबीर के गले में बाहें डालकर झूल गई. उसने अपना हाथ नीचे किया और जगबीर का लंड अपनी चूत में घुसाकर अपने पैर उसकी कमर के चारों ओर लपेट ली. अब वो जगबीर की गोद में थी और जगबीर का लंड उसकी चूत में घुसा हुआ था. जगबीर उसी अंदाज़ में उसे धक्के लगाने लगा ताजीन की चूत पानी छ्चोड़ रही थी जो ज़मीन पर गिर रहा था, जगबीर का लंड पूरी तरह से भीग गया था. फिर जगबीर उसी हालत में उसे बेडरूम में ले गया और बिस्तर पर पटक दिया. "ओह जग्गू आज मेरी चूत तेरा लंड खा जाएगी, पीस डालेगी तेरे लंड को मेरी जान" ताज़ीन की गंद उच्छाल रही थी और ज़बान फिसल रही थी, कुच्छ शराब और कुच्छ सेक्स का असर था. अचानक जगबीर ने उसकी चूत से लंड को बाहर निकाला और उसकी टाँगें एकदम से उठा दी. और अपना लंड सीधे ताज़ीन की गंद में घुसा दिया. एक बार तो ताज़ीन की चीख निकल गई लेकिन उसने अपने आप को संभाल लिया. फिर जगबीर ने उसकी गंद मारनी शुरू कर दी. कुच्छ देर बाद ताज़ीन की सिसकारिया फिर कमरे में गूंजने लगी "ओह जग्गू मज़ा आ गया गंद मरवाने का, मेरे जिस्म में जितने भी छेद हैं, सब में अपना लंड घुसा दो जग्गू. मेरी चूत तेरे लंड की प्यासी है जग्गू और मेरी गंद तेरा लंड खाने ही बनी है. मेरी जान आज की चुदाई ज़िंदगी भर याद रहनी चाहिए." काफ़ी देर उसकी गंद मारने के बाद जगबीर ने अपना लंड निकाला और ताज़ीन की चूत पर मसल्ने लगा. "और कितना तड़पावगे मेरी जान" ऐसा कहकर ताज़ीन झटके से उठी और जगबीर को नीचे गिरा लिया और उसपर चढ़ बैठी, उसने जगबीर के लंड को अपनी चूत में घुसाया और ज़ोर ज़ोर से उच्छलने लगी. पागल जैसे हो गई थी वो "जग्गू देख मेरी चूत तेरे लंड का क्या हाल करेगी. पीस कर रख देगी वो तेरे लंड को. खा जाएगी तेरा लंड." ऐसा कहते कहते उसकी रफ़्तार तेज़ हो गई और वो एकदम से झुक गई जगबीर पर और अपनी गंद को और जोरों से हिलाने लगी, जगबीर समझ गया की यह जाने वाली है, उसने भी नीचे से धक्के लगाने शुरू कर दिए "हां जग्गू ऐसे ही, मेरी चूत के पानी में डूबने वाला है तेरा लंड. बस ऐसे ही और थोड़े झटके लगा, में तेरे लंड को नहला दूँगी अपनी चूत के रस से, मेरी चूत में भी अपने लंड का पानी पिला दे." तभी वो ज़ोर से उच्छली और फिर धीरे धीरे आखरी दो झटके दिए और जगबीर पर गिर पड़ी. उसकी चूत ने पानी छ्चोड़ दिया था. और जगबीर ने भी. वो ऐसे ही लेटे रहे कुच्छ देर.