चाचा बड़े जालिम हो तुम compleet

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raj..
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Re: चाचा बड़े जालिम हो तुम

Unread post by raj.. » 01 Nov 2014 22:22


अपना हाथ छुड़ाते रज़िया बोली, "ठीक है चाचा, नाइटी का सोचूँगी, अब आप जाओ." यह कहते हरी को घर से रज़िया रवाना करती है. रज़िया को मालूम था हरी कौन्से इलाज की बात कर रहा था, और यह भी पता था कि आज कैसा इलाज होनेवाला है उसका. रज़िया भी हरी से इलाज करवाने तय्यार थी. हरी के जाने के बाद रज़िया 1 घंटा सोई. शाम को उठके हरी के आने से पहले उसने अपना घर एकदम सॉफ सुथरा किया. सॉफ सफाई करते-करते पसीने से रज़िया की हालत काफ़ी खराब हो गयी, मानो पसीने से वो नहा गयी हो. सॉफ सफाई होने के बाद उसने खाना बनाके और ख़ाके हरी की थाली टेबल पे लगाई. इतने गड़बड़ मे 9 कब बजे उससे पता नही चला. रज़िया ने जान बुझ के इतना काम लिया क्योकि आज वो जो करने जा रही थी उसके बारे मे ज़्यादा सोचके उसे अब पीछे नही हटना था. शादी के बाद पहली बार वो पराए मर्द के सामने नंगी होके सोनेवाली थी,सिर्फ़ एक औलाद पाने के लिए और उसे उसके इस फ़ैसले के अच्छे - बुरे के बारे मे ज़्यादा सोचके अब रुकना नही था.


बराबर 9 बजे हरी आया. हरी सॉफ लूँगी बनियान मे था. सामने पसीने से भरी रज़िया की हालत देखके उसे अच्छा लगा. पसीने से ब्लाउस गीला होके निपल दिख रहा था क्योकि रज़िया ने ब्रा जो नही पहनी थी. हरी को देखते ही पल्लू से माथे और सीने का पसीना बिंदास पोछते रज़िया बोली, "अर्रे चाचा आप आ गये? मुझे तो वक़्त का पता तक नहीं चला घर की सॉफ सफाई करते - करते."


स्माइल करते हरी बोला, "हां आ गया बेटी, आरे कितना पसीना पसीना हुई है तू, आओ मैं पोंछ दूं? नही तो जैसा मैं करता हूँ वैसा कर पसीना आने पे, चाहे तो पल्लू नीचे करके हवा ले."

हरी के कहने के मुताबिक रज़िया पल्लू से हवा लेने लगी.इससे उसकी साफ आर्म्पाइट हरी को दिखती है और ब्लाउस मे मम्मो की हल्की हलचल. हवा लेते रज़िया बोली,"आहह चाचा, अब अच्छा लग रहा है.मैं अब आप ही का इंतेज़ार कर रही थी. चाचा मैं अभी नहाने जा रही हूँ कुछ चाहिए तो ले लेना. अपना ही घर समझना चाचा, मैं 10 मिनिट मैं आई नहा के."


"रूको बेटी, पहले पसीना तो पोछने दे मुझे तेरा." इतना कहते हरी रज़िया के पल्लू से उसका पसीना पोछने लगा. पीठ, नेक, फेस और फिर हल्के से सीना पोछते वो बोला, "अब क्यो नहा रही हो? इलाज के बाद मे नहा लेना. तुम सामने रहोगी तो ही खाना खाउन्गा मैं, यह क्या मेहमान को बुला के बोलना कि खाना ख़ालो और खुद नहाने चली जाओ.क्या यह अच्छी बात है?"


हरी के हाथ रज़िया के नंगे सीने पे है और गरम सासे उसके फेस पे छोड़ रहा था.रज़िया कैसे भी करके हरी के हाथ हटा के बाथरूम मे जाते बोली, "रहने दो चाचा, प्लीज़ खा लो जो मैने प्यार से बनाया है.इलाज के बाद चाहो तो फिर नहा लेंगे."


हरी बाथरूम के पास आके बोला, "ठीक है बेटी पर अच्छे से नहा ले, एकदम रगड़ के नहा लेना, बाद मे बहुत पसीना आनेवाला है तुझे बेटी. नहाने के बाद आके मुझे खाना परोसना, आज तेरे हाथ से पहले खाना और बाद मे दूध पियुंगा समझी?"


हरी किचन मे वैसे ही नीचे ज़मीन पे बैठ जाता है, बनियान निकालके लूँगी उप्पर करके. उधर से रज़िया बोली, "ओके चाचा तो रूको, मैं नाहके आके खाना परोसती हूँ आपको. और हां एकदम रगड़ के नहाउंगी, बहुत पसीना है. ये बाद मे क्यों बहुत पसीना आनेवाला है मुझे चाचा?"


बाथरूम की तरफ देखते हरी बोला,"वो तू खुद समझेगी बेटी, हां पर नहाने के बाद अब ज़्यादा टाइट कपड़े मत पहनना, ज़रा नरम और हल्के कपड़े पहनो."

raj..
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Re: चाचा बड़े जालिम हो तुम

Unread post by raj.. » 01 Nov 2014 22:22



"मतलब कैसे चाचा? समझाओ तो सही. नही तो ऐसा करो, बेडरूम मे अलमारी मे जो कपड़े है उनमे से जैसे कपड़े चाहते हो निकालके रखो मेरे लिए, ठीक है चाचा."


रज़िया ने जानबूझके 1-2 ही नाइटी रखी थी अलमारी मे जो उसके हिसाब से सेक्सी थी. हरी रज़िया के बेडरूम जाके, उसका कपबोर्ड खोलता है. उसमे से 2-3 नाइटी देख के एक निकालता है जो घुटनो तक है और एकदम ट्रॅन्स्परेंट है, उसकी नेक बड़े नही यह देखके हरी उसके 2 हुक्स तोड़ कर बिस्तर पे वो नाइटी रख कर बाहर आके बोला, "बेटी मैने तेरे बिस्तर पे नाइटी रखी है, वो पहन लेना, इससे तुझे आराम पड़ेगा और पसीना भी नही आएगा समझी?"


रज़िया हां बोलती है. हरी जाके किचन मे बैठता है. बाथरूम से टवल लपेटे रज़िया बाहर आके हरी के सामने से बेडरूम मे आके हरी से निकलवा कर रखी काली नाइटी पहनती है जो ट्रॅन्स्परेंट है. लेकिन काली है इसके अंदर कुछ पहना है या नही उसका पता नही चलता. अपने आपको आईने मे रज़िया देखती है. पहली बार ऐसी नाइटी पहनने से उसे ज़रा शर्म आती है. उप्पर से बटन भी टूटे देखके वो समझ जाती है कि यह हरी का ही कारनामा है. जब वो नाइटी पहनती है तो आधे से ज़्यादा नंगा सीना खुला देखके वो थोड़ा झिझकति है पर फिर सारी शर्म छोड़ कर वैसे ही गीले बालो से वो किचन मे आके हरी के सामने खड़ी होती है. एक बार उप्पर से नीचे तक रज़िया को देखते हरी बोला, "आहा बेटी, अब तो एकदम मस्त लगती है. देखा यह नाइटी कैसे जच रही है तुझे? लगता है चाचा की बात मान कर एकदम रगड़ रगड़ कर नहाई हो इसलिए तुम्हारा बदन इतना चमक रहा है." हरी नीचे बैठा है इसलिए नाइटी के अंदर तक नज़र जाती है उसकी. उप्पर की तरफ देखते वो बोला, "रज़िया, चल अब खाना परोस मुझे, बड़ी भूक लगी है, अब खाना नही परोसा तो तुझे ही खा डालूँगा मैं समझी?"
क्रमशः.......



raj..
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Re: चाचा बड़े जालिम हो तुम

Unread post by raj.. » 01 Nov 2014 22:24

Raj-Sharma-stories
चाचा बड़े जालिम हो तुम--3
गतान्क से आगे......

यह बोलते स्माइल करके हरी रूपा की टाँग पकड़के जाँघ खाने का एक्शन करता है. डरने की आक्टिंग करके फिर रज़िया अपने पैर छुड़ाते बोली, "हां हां बाबा, परोसती हूँ आपको खाना. क्या पता सच मे मेरी जाँघ खा जाओगे तुम." अब रज़िया बारी - बारी 1-1 चीज़ प्लॅटफॉर्म से उतार कर हरी की थाली मे परोसने लगी. नीचे झुकने और कपड़ा ढीला होने की वजह से हरी को अंदर का काफ़ी हिस्सा दिखाई देता है.

हरी रज़िया की जाँघ सहलाते बोला, "आरे रज़िया, सब नीचे ले, बार - बार झुकेगी तो थक जाएगी. यही नीचे बैठके परोस मुझे खाना, तो तुझे देखते खाना खा सकता हूँ और बात भी कर सकता हूँ तुमसे.थक जाएगी तो इलाज कैसे लोगि?"


अपनी जाँघ बिना छुड़ाए रज़िया बोली, "नही - नही चाचा नीचे फर्श गंदा होगा. और मुझे प्लॅटफॉर्म सॉफ करना बाकी है. चाचा खाते हुए आप मेरे को क्यूँ छूते हो? खाना खाओ ना आप इतमीनान से. और अब मुझे इस लिबास और आपके इलाज़ के बीच का रीलेशन समझाओ."

इस बार हरी रज़िया का हाथ पकड़के खिचता है, रज़िया आधी झुकी जिससे उसके ओपन नेक से मम्मे साफ दिखते है. रज़िया हाथ हरी के नंगे सीने पे रखती है. फिर कमर मे हाथ डालके हरी उसे पास खिचता है जिससे अब रज़िया का सीना एकदम उसके मूह के पास आता है. होंठो पे जीब फेरते हरी बोला, “आरे रज़िया, क्यों हर बात को मना करती है? चाचा की बात मान और नीचे बैठ मेरे साथ, तेरा काम करने और दूध पीने के बाद हम पूरा किचन सॉफ करंगे." हरी झुकी रज़िया को और ज़रा खिचता है जिससे रज़िया एकदम हरी की गोदी मे आके बैठती है. हरी की इस हरकत से उसके मम्मे उछलते है. रज़िया की कमर मे हाथ डालते हरी बोला, "हां यह ठीक है बेटी, तू मेरी गोदी मे बैठ के मुझे खाना खिला और मैं तुझे बताउन्गा कि तेरे इस लिबास और तेरे इलाज़ का क्या संबंध है."


मस्ती से हरी की गोदी मे बैठने से रज़िया की नाइटी उपर चली जाती है और हरी की गोदी मे उसकी गांद हरी के लंड को छूती है. हरी की गोद से उठने का कोई प्रयास ना करते रज़िया अब ज़रा नखरे से बोली, "अब आपको खाना खिलाना इतना ही तो बाकी था. खा लो ना आप ही आपके हाथ से खाना चाचा. इतने बड़े हो गये हो लेकिन बच्चे जैसे हो, पहले बोला दूध पिलाना और अब बोलते हो खाना खिलाओ."


कमर मे हाथ डालके रज़िया के पेट पे हाथ रखके हरी अपनी उंगली मम्मो तक लाता है. नाइटी उपर होने से आधी गांद नंगी है, दूसरे हाथ से रज़िया का हाथ पकड़के उसमे नीवाला लेके मूह मे डलवाते समय रज़िया की उंगली चाट कर हरी बोला, "आरे बेटी हर मर्द मे एक बच्चा छुपा होता है जो अपना बचपना कभी नही भूलता. मौका आने पे वो दूध और खाना माँगता है. और रज़िया, तू एक भूके को खाना खिलाएगी और दूध पिलाएगी तो तुझे पुण्या भी मिलेगा ना?"


रज़िया बिना कहे मंडी हां मे हिलाते दूसरा नीवाला अपने आप उठाके हरी को खिलाते बोली, "चाचा वो इलाज और यह नाइटी के संबंध के बारे मे बताओ ना अब जो मैने आपकी बात मान के आपको खाना खिलाने लगी हूँ."


हरी अब नाइटी का एक और हुक खोलते हाथ मम्मे पे रखते बोला, "हां बेटी बताता हूँ, पर उसके लिए तुझे बेशरम होके मेरी बातो का जवाब देना होगा, तू तय्यार है ना?"


"बेशर्म मतलब क्या? और कैसी बातो का? कौनसी बातो का जवाब देना पड़ेगा मुझे चाचा?" यह पूछ ते वक़्त रज़िया का ध्यान नही देती कि हरी उसके बूब्स पे हाथ रखा है और रज़िया की इस बेफिक्री का फ़ायदा उठाके हरी बाकी बचा लास्ट हुक भी खोलता है.सब हुक्स खोलके हरी हल्के से एक मम्मे से नाइटी हटा के उसे नंगा करते बोला, ”मैं तेरे पति और तेरे संबंध के बारे मे अब तुझसे पूछूँगा. तूने ठीक जवाब नही दिया तो इलाज़ ठीक नही होगा समझी?"


रज़िया अब ज़रा शरम से अपने मम्मे पे नाइटी ओढ़ते बोली, "हां चाचा ठीक से बिना शरमाये एकदम साफ-साफ लफ्जो मे जवाब दूँगी, पर उसका मेरे कपड़ो से क्या वास्ता चाचा?


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