बदनाम रिश्ते

Discover endless Hindi sex story and novels. Browse hindi sex stories, adult stories ,erotic stories. Visit theadultstories.com
rajaarkey
Platinum Member
Posts: 3125
Joined: 10 Oct 2014 10:09

Re: बदनाम रिश्ते

Unread post by rajaarkey » 02 Nov 2014 17:29

झाडियों के पीछे से आ के, फिर अपने चुतडों को जमीन पर सटाये हुए ही, थोडा आगे सरकते हुए मेरे पास आई। उसके सरक कर आगे आने से उसकी साडी थोडी-सी उपर हो गई, और उसका आंचल उसकी गोद में गीर गया। पर उसको इसकी फिकर नही थी। वो अब एकदम से मेरे नजदीक आ गई थी और उसकी गरम सांसे मेरे चेहरे पर महसूस हो रही थी। वो एक पल के लिये ऐसे ही मुझे देखती रही, फिर मेरी ठुड्डी पकड कर मुझे उपर उठाते हुए, हल्के-से मुस्कुराते हुए धीरे से बोली,
"क्यों रे बदमाश, क्या कर रहा था ?, बोलना, क्या बदमाशी कर रहा था, अपनी बहिन के साथ ?"
फिर मेरे फूले-फूले गाल पकड कर हल्के-से मसल दिये। मेरे मुंह से तो आवाज ही नही नीकल रही थी। फिर उसने हल्के-से अपना एक हाथ मेरी जांघो पर रखा और सहलाते हुए बोली,
"हाये, कैसे खडा कर रख है, मुए ने ?"
फिर सीधा पजामे के उपर से मेरे खडे लंड (जो की बहिन के जगने से थोडा ढीला हो गया था, पर अब उसके हाथों का स्पर्श पा के फिर से खडा होने लगा था) पर उसने अपना हाथ रख दिया,
"उईइ मां, कैसे खडा कर रखा है ?, क्या कर रहा था रे, हाथ से मसल रहा था, क्या ? हाये बेटा, और मेरी इसको भी मसल रहा था ? तु तो अब लगता है, जवान हो गया है। तभी मैं कहुं कि, जैसे ही मेरा पेटिकोट नीचे गीरा, ये लडका मुझे घुर-घुर के क्यों देख रहा था ? हाये, इस लडके की तो अपनी बहिन के उपर ही बुरी नजर है।"
"हाये बहिन, गलती हो गई, माफ कर दो।"
"ओहो, अब बोल रहा है गलती हो गई, पर अगर मैं नही जगती तो, तु तो अपना पानी नीकाल के ही मानता ना ! मेरी छातियों को दबा दबा के !! उमम्म्,,,, बोल, नीकालता की नही, पानी ?"
"हाये बहिन, गलती हो गई।"
"वाह रे तेरी गलती, कमाल की गलती है। किसी का मसल दो, दबा दो, फिर बोलो की गलती हो गई। अपना मजा कर लो, दुसरे चाहे कैसे भी रहे।",
कह कर बहिन ने मेरे लंड को कास् के दबाया, उसके कोमल हाथों का स्पर्श पा के मेरा लंड तो लोहा हो गया था, और गरम भी काफी हो गया था। "हाये राखी छोडो, क्या कर रही हो ?" आभा उसी तरह से मुस्कुराती हुई बोली,
"क्यों प्यारे, तुने मेरा दबाया तब, तो मैने नही बोला कि छोडो। अब क्यों बोल रहा है, तु ?"
मैने कहा,
"हाये, राखी तु दबायेगी तो सच में मेरा पानी निकल जायेगा। हाये, छोडो ना आभा।" "क्यों, पानी निकालने के लिये ही तो तु दबा रहा था ना मेरी छातियां ? मैं अपने हाथ से निकाल देती हुं, तेरे गन्ने से तेरा रस। चल, जरा अपना गन्ना तो दिखा।"
"हाये राखी , छोडो, मुझे शरम आती है।"
"अच्छा, अभी तो बडी शरम आ रही है, और हर रोज जो लुन्गी और पजामा हटा-हटा के, जब सफाई करता है तब,,,?, तब क्या मुझे दिखाई नही देता क्या ?, अभी बडी एक्टींग कर रहा है।"
"हाय, नही राखी , तब की बात तो और है, फिर मुझे थोडे ही पता होता था की तुम देख रही हो।"
ओह, ओह, मेरे भोले राजा, बडा भोला बन रहा है, चल दिखा ना, देखुं कितना बडा और मोटा है, तेरा गन्ना ? मैं कुछ बोल नही पा रहा था। मेरे मुंह से शब्द नही निकल पा रहे थे। और लग रहा था जैसे, मेरा पानी अब निकला की तब निकला। इस बीच राखी ने मेरे पजामे का नाडा खोल दिया, और अंदर हाथ डाल के मेरे लंड को सीधा पकड लिया। मेरा लंड जो की केवल उसके छु ने के कारण से फुफकारने लगा था, अब उसके पकडने पर अपनी पुरी औकात पर आ गया और किसी मोटे लोहे की रोड की तरह एकदम तन कर उपर की तरफ मुंह उठाये खडा था। राखी मेरे लंड को अपने हाथों में पकडने की पुरी कोशिश कर रही थी, पर मेरे लंड की मोटाई के कारण से वो उसे अपनी मुठ्ठी में, अच्छी तरह से कैद नही कर पा रही थी। उसने मेरे पजामे को वहीं खुले में, पेड के नीचे, मेरे लंड पर से हटा दिया।
"हाये राखी , छोडो, कोई देख लेगा। ऐसे कपडे मत हटाओ।"
मगर राखी शायद पुरे जोश में आ चुकी थी।

rajaarkey
Platinum Member
Posts: 3125
Joined: 10 Oct 2014 10:09

Re: बदनाम रिश्ते

Unread post by rajaarkey » 02 Nov 2014 17:30


"चल, कोई नही देखता। फिर सामने बैठी हुं, किसी को नजर भी नही आयेगा। देखुं तो सही, मेरे भाई का गन्ना आखिर, है कितना बडा ?"
और मेरा लंड देखते ही, आश्चर्य से उसका मुंह खुला का खुला रह गया। एकदम से चौंकती हुई बोली,
"हाये दैय्या,,,!! ये क्या ,,,,??? इतना मोटा, और इतना लम्बा ! ये कैसे हो गया रे, तेरे जीजा का तो बित्ते भर का भी नही है, और यहां तु बेलन के जैसा ले के घुम रहा है।"
"ओह बहिन, मेरी इसमे क्या गलती है। ये तो शुरु में पहले छोटा-सा था, पर अब अचानक इतना बडा हो गया है, तो मैं क्या करुं ?"
"गलती तो तेरी ही है, जो तुने इतना बडा जुगाड होते हुए भी, अभी तक मुझे पता नही चलने दिया। वैसे जब मैने देखा था नहाते वक्त, तब तो इतना बडा नही दिख रहा था रे,,,,?"
"हाये बहिन, वो,,, वो,,,,"
मैं हकलाते हुए बोला,
"वो इसलिये, क्योंकि उस समय ये उतना खडा नही रहा होगा। अभी ये पुरा खडा हो गया है।"
"ओह, ओह, तो अभी क्यों खडा कर लिया इतना बडा ?, कैसे खडा हो गया अभी तेरा ?अब मैं क्या बोलता कि कैसे खडा हो गया। ये तो बोल नही सकता था कि, बहिन तेरे कारण खडा हो गया है मेरा। मैने सकपकाते हुए कहा,
"अरे, वो ऐसे ही खडा हो गया है। तुम छोडो, अभी ठीक हो जायेगा।"
"ऐसे कैसे खडा हो जाता है तेरा ?",
बहिन ने पुछा, और मेरी आंखो में देख कर, अपने रसीले होठों का एक कोना दबा के मुसकाने लगी ।
"अरे, तुमने पकड रखा है ना, इसलिये खडा हो गया है मेरा। क्या करुं मैं ?, हाये छोड दो ना।"
मैं किसी भी तरह से, बहिन का हाथ अपने लंड पर से हटा देना चाहता था। मुझे ऐसा लग रहा था कि, बहिन के कोमल हाथों का स्पर्श पा के कहीं मेरा पानी निकल ना जाये। फिर बहिन ने केवल पकडा तो हुआ नही था। वो धीरे-धीरे मेरे लंड को सहला भी, और बार-बार अपने अंगुठे से मेरे चिकने सुपाडे को छु भी रही थी।
"अच्छा, अब सारा दोष मेरा हो गया, और खुद जो इतनी देर से मेरी छातियां पकड के मसल रहा था और दबा रहा था, उसका कुछ नही ?""चल मान लिया गलती हो गई, पर सजा तो इसकी तुझे देनी पडेगी, मेरा तुने मसला है, मैं भी तेरा मसल देती हुं।",
कह कर बहिन अपने हाथो को थोडा तेज चलाने लगी और मेरे लंड का मुठ मारते हुए, मेरे लंड की मुंडी को अंगुठे से थोडी तेजी के साथ घीसने लगी। मेरी हालत एकदम खराब हो रही थी। गुदगुदाहत और सनसनी के मारे मेरे मुंह से कोई आवाज नही निकल पा रही थी। ऐसा लग रहा था, जैसे कि, मेरा पानी अब निकला की तब निकला। पर बहिन को मैं रोक भी नही पा रहा था। मैने सिसयाते हुए कहा,
"ओह बहिन, हाये निकल जायेगा, मेरा निकल जायेगा।"
इस पर बहिन और जोर से हाथ चलाते हुए अपनी नजर उपर करके, मेरी तरफ देखते हुए बोली,
"क्या निकल जायेगा ?"
"ओह, ओह, छोडोना, तुम जानती हो, क्या निकल जायेगा,,,? क्यों परेशान कर रही हो ?"
"मैं कहां परेशान कर रही हुं ? तु खुद परेशान हो रहा है।"
"क्यों, मैं क्यों भला खुद को परेशान करुन्गा ? तुम तो खुद ही जबरदस्ती, पता नही क्यों मेरा मसले जा रही हो ?"
"अच्छा, जरा ये तो बता, शुरुआत किसने कि थी मसलने की ?",
कह कर बहिन मुस्कुराने लगी।

rajaarkey
Platinum Member
Posts: 3125
Joined: 10 Oct 2014 10:09

Re: बदनाम रिश्ते

Unread post by rajaarkey » 02 Nov 2014 17:31


मुझे तो जैसे सांप सुंघ गया था। मैं भला क्या जवाब देता। कुछ समझ में ही नही आ रहा था कि क्या करुं, क्या ना करुं ? उपर से मजा इतना आ रहा था कि जान निकली जा रही थी। तभी बहिन ने अचानक मेरा लंड छोड दिया और बोली,
"अभी आती हुं।"
और एक कातिल मुस्कुराहट छोडते हुए उठ कर खडी हो गई, और झाडियों की तरफ चल दी। मैं उसको झाडियों कि ओर जाते हुए देखता हुआ, वहीं पेड के नीचे बैठा रहा। झाडियां, जहां हम बैठे हुए थे, वहां से बस दस कदम की दूरी पर थी। दो-तीन कदम चलने के बाद राखी पिछे कि ओर मुडी और बोली,
"बडी जोर से पेशाब आ रही थी, तुझे आ रही हो तो तु भी चल, तेरा लंड भी थोडा ढीला हो जायेगा। ऐसे बेशरमों की तरह से खडा किये हुए है।"

और फिर अपने निचले होंठ को हल्के-से काटते हुए आगे चल दी। मेरी कुछ समझ में ही नही आ रहा था कि मैं क्या करुं। मैं कुछ देर तक वैसे ही बैठा रहा। इस बीच राखी झाडियों के पिछे जा चुकी थी। झाडियों की इस तरफ से जो भी झलक मुझे मिल रही, वो देख कर मुझे इतना तो पता चल ही गया था कि, राखी अब बैठ चुकी है और शायद पेशाब भी कर रही है। मैने फिर थोडी हिम्मत दिखाई और उठ कर झाडियों की तरफ चल दिया। झाडियों के पास पहुंच कर नजारा कुछ साफ दिखने लगा था। राखी आराम से अपनी साडी उठा कर बैठी हुई थी, और मुत रही थी उसके इस अंदाज से बैठने के कारण, पिछे से उसकी गोरी-गोरी झांघे तो साफ दिख ही रही थी, साथ-साथ उसके मख्खन जैसे चुतडों का निचला भाग भी लगभग साफ-साफ दिखाई दे रहा था। ये देख कर तो मेरा लंड और भी बुरी तरह से अकडने लगा था। हालांकि उसकी झांघो और चुतडों की झलक देखने का ये पहला मौका नही था, पर आज, और दिनो से कुछ ज्यादा ही उत्तेजना हो रही थी। उसके पेशाब करने की अवाज तो आग में घी का काम कर रही थी। सु,,,उ,उ,उ,,सु,,,सु,उ,उ,उ, करते हुए, किसी औरत के मुतने की आवाज में पता नही क्या आकर्षण होता है, किशोर उमर के सारे लडकों को अपनी ओर खींच लेती है। मेरा तो बुरा हाल हो रखा था। तभी मैने देखा कि राखी उठ कर खडी हो गई। जब वो पलटी तो मुझे देख कर मुस्कुराते हुए बोली,
"अरे, तु भी चला आया ? मैने तो तुझे पहले ही कहा था कि, तु भी हल्का हो ले।"

फिर आराम से अपने हाथों को साडी के उपर बुर पे रख कर, इस तरह से दबाते हुए खुजाने लगी जैसे, बुर पर लगी पेशाब को पोंछ रही हो और, मुस्कुराते हुए चल दी, जैसे कि कुछ हुआ ही नही। मैं एक पल को तो हैरान परेशान सा वहीं पर खडा रहा। फिर मैं भी झाडियों के पिछे चला गया और पेशाब करने लगा। बडी देर तक तो मेरे लंड से पेशाब ही नही निकला, फिर जब लंड कुछ ढीला पडा, तब जा के पेशाब निकलना शुरु हुआ। मैं पेशाब करने के बाद वापस, पेड के निचे चल पडा।

पेड के पास पहुंच कर मैने देखा राखी बैठी हुई थी। मेरे पास आने पर बोली,
"आ बैठ, हल्का हो आया ?",
कह कर मुस्कुराने लगी। मैं भी हल्के-हल्के मुस्कुराते, कुछ शरमाते हुए बोला,
"हां, हल्का हो आया।"
और बैठ गया। मेरे बैठने पर राखी ने मेरी ठुड्डी पकड कर मेरा सिर उठा दिया और सीधा मेरी आंखो में झांकते हुए बोली,
"क्यों रे ?, उस समय जब मैं छु रही थी, तब तो बडा भोला बन रहा था। और जब मैं पेशाब करने गई थी, तो वहां पिछे खडा हो के क्या कर रहा था, शैतान !!"

मैने अपनी ठुड्डी पर से राखी का हाथ हटाते हुए, फिर अपने सिर को निचे झुका लिया और हकलाते हुए बोला,
"ओह राखी, तुम् भी ना,,,,,,"

"मैने क्या किया ?",
राखी ने हल्की-सी चपत मेरे गाल पर लगाई और पुछा।

"राखी, तुमने खुद ही तो कहा था, हल्का होना है तो, आ जाओ।"

इस पर राखी ने मेरे गालों को हल्के-से खींचते हुए कहा,
"अच्छा बेटा, मैने हल्का होने के लिये कहा था, पर तु तो वहां हल्का होने की जगह भारी हो रहा था। मुझे पेशाब करते हुए घुर-घुर कर देखने के लिये तो मैने नही कहा था तुम्हे, फिर तु क्यों घुर-घुर कर मजे लुट रहा था ?"

"हाय, मैं कहां मजा लुट रहा था, कैसी बाते कर रही हो राखी ?'

"ओह हो, शैतान अब तो बडा भोला बन रहा है।',
कह कर हल्के-से मेरी झांटो को दबा दिया।

"हाये, क्या कर रही हो,,,?"

पर उसने छोडा नही और मेरी आंखो में झांखते हुए फिर धीरे-से अपना हाथ मेरे लंड पर रख दिया और फुसफुसाते हुए पुछा,
"फिर से दबाउं ?"


Post Reply