मैने उस से पूछा अगर में प्रेग्नेंट हो गयी तो.
वो बोला, एक बार से कुछ नही होता मेडम और धक्के मारता रहा
वो बहुत देर तक लगा रहा और आख़िर में तेज, तेज धक्के मार कर रुक गया. उसने मुझे अंदर से और ज़्यादा गीला कर दिया.”
दीप्ति गुस्से में बोली, तो तू उस कामीने अशोक को अपना सब कुछ दे बैठी.
नेहा ने धीरे से कहा मैं क्या करती मैं बहक गयी थी, सेक्स का ये मेरा पहला अनुभव था.
दीप्ति ने पूछा, तो क्या उसके बाद भी उसने कभी तेरे साथ कुछ किया.
नेहा बोली, एक बार सेक्स का मज़ा पा कर मेरी बार बार इच्छा होने लगी, और वो तो हर वक्त तैयार रहता है. वो अक्सर मुझे अपने घर ले जाता है.
दीप्ति बोली, और ती चुपचाप उसके साथ चली जाती है.
नेहा ने कोई जवाब नही दिया.
थोड़ी देर बाद नेहा बोली, एक दिन अशोक जब मुझे रात के 11 बजे कॉलेज छोड़ने आया तो, हॉस्टिल के वॉचमेन ने हमे देख लिया, शायद उसी ने हमारे बारे में अफवाह फैलाई है. मैं अब परेशान हू कि क्या करू.
दीप्ति ने कहा, करना क्या है फॉरन उस कामीने से पीछा छुड़ा और अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे”
उस रात ये घटना इस लिए याद आ गयी थी क्योंकि नेहा की तरह मैं भी अशोक के हाथो लूट चुकी थी.
पर मैं नेहा की तरह मजबूर नही बन-ना चाहती थी इश्लीए मैने फ़ैसला किया कि अब अशोक की कोई चाल कामयाब नही होने दूँगी.
ये सब सोचते सोचते मुझे कब नींद आ गयी पता ही नही चला.
अगले दिन मैं दिल में एक नयी उमीद ले कर उठी.
मैं संजय और चिंटू के जाने के बाद मौसी के यहा चली गयी ताकि मेरा ध्यान पीछले दिन की घटना से हट जाए.
सारा दिन शांति से बीत गया, कोई भी ऐसी वैसी घटना नही हुई.
मुझे ख़याल आया मुझे संजय की बताई कंपनी में जा कर देखना चाहिए, और मैने फ़ैसला किया कि मैं कल सुबह वाहा जा कर देख कर आती हू.
अगले दिन में सुबह संजय की बताई कंपनी में जाने को तैयार हो गयी.
संजय ने कहा, मैं तुम्हे बाहर बस स्टॉप तक छोड़ दूँगा.
मैने कहा ठीक है.
संजय ने मुझे बस स्टॉप पर छोड़ दिया.
मैं बस का इंतेज़ार करने लगी. मुझे ये अछा लग रहा था कि आज बहुत दीनो बाद कुछ अछा होने जा रहा है.
अपने पैरो पर खड़े होने का मेरा बहुत दीनो से सपना था. मैं प्रे कर रही थी कि सब कुछ ठीक निकले.
मैं पीछले दीनो के दुख भुला देना चाहती थी.
पर अभी बस 2 मिनूट ही हुवे थे कि सब कुछ फिर से बिगड़ता हुवा दीखाई दिया.
सामने से वही साइकल वाला आदमी आ रहा था, उसकी नज़र मुझ पर पहले पड़ गयी और उसने मुझे पहचान लिया, वरना मैं पहले ही वाहा से हट जाती.
मैं सोचने लगी की इस कम्बख़त को भी अभी आना था, किस मनहूस की शकल देख ली, जाने मेरी नौकरी का क्या होगा ?
उसने अपनी साइकल एक तरफ खड़ी कर दी और बस स्टॉप पर मुझ से थोड़ी दूरी पर खड़ा हो गया.
मैने मन ही मन सूकर मनाया की अछा है यहा और लोग भी है वरना ये मुझे परेशान करता.
अचानक वो मेरी तरफ बढ़ा, और मेरे सामने से शीटी बजता हुवा निकल गया.
मैने मन ही मन कहा, कमीना कही का, आ गया अपनी औकात पर.
छोटी सी भूल compleet
Re: छोटी सी भूल
वो अब दूसरी तरफ खड़ा हो गया.
मैने उसकी और तिरछी नज़र से देखा, तो पाया कि वो एक तक मेरी तरफ ही देख रहा है.
उसने मुझे उसे देखते हुवे देख लिया और झट से अपना लिंग मसल्ने लगा.
मैने फॉरन अपनी नज़रे घुमा ली.
तभी मुझे दूर से एक बस आती हुई दीखाई दी.
मैने पास में खड़ी एक लेडी से पूछा, ये बस क्या एमजी रोड तक जाएगी ?
उसने कहा हा जाएगी पर थोड़ा वक्त लेगी.
मैने सोचा यहा रुकना ठीक नही है इसी बस में चल देती हू.
जैसे ही बस रुकी, लोगो ने बस के गेट को घेर लिया, मैं सब से पीछे रह गयी. मैने पीछे मूड कर देखा तो वो आदमी मुस्कुरा रहा था.
मैं हर हाल में बस में चढ़ना चाहती थी. मुझे लग रहा था कि यहा बस स्टॉप पर रुकना ठीक नही है, ये आदमी बे-वजह परेशान करेगा.
जैसे तैसे में भी बस में चढ़ ही गयी, और चैन की साँस ली.
पर परेशानी ये थी कि मैं सबसे आख़िर में गेट के बिल्कुल पास खड़ी थी, और बस खचखुच भरी हुई थी.
बस चली ही थी कि वो आदमी भी बस में चढ़ गया और मेरे बिल्कुल पीछे सॅट गया. मुझे यकीन ही नही हुवा.
वो अपनी साइकल छोड़ कर बस में चढ़ जाएगा मैने सोचा भी नही था, वरना में इस भीड़ भरी बस में कभी ना चढ़ती
मेरे आगे काफ़ी लोग थे. में बस के बिल्कुल गेट पर थी और मेरे पीछे वो घिनोना आदमी. बहुत ही बेकार सिचुयेशन थी वो मेरे लिए. एक पल को तो मन हुवा की बस से कूद जा-ऊँ, पर फिर सोचा कि शायद थोड़ी देर में कुछ लोग उतर जाएँ तो कोई शीट खाली हो.
वो धीरे से बोला, क्या बात है मेरी जान आज अकेली कहा जा रही हो, वो तेरा यार कहा है.
मैने कोई रिक्षन नही किया.
वो बोला, आज मेरे साथ चल, तुझे खुस कर दूँगा.
मैने पीछे मूड कर गुस्से से उसे देखा.
पर उस पर कोई असर नही हुवा.
वो बोला, तू गुस्से में बहुत प्यारी लगती है पर कभी मेरी तरफ प्यार से भी देख लिया कर, मैं भी तेरा एक दीवाना हू.
मैने कहा, तुम यहा से दफ़ा होते हो कि नही.
वो बड़ी बेशर्मी से बोला, “नही मेरी जान आज तू नही बचेगी” और ये कहते हुवे मेरे नितंबो को दबोच लिया.
मैने उसका हाथ वाहा से झटक दिया.
मैं किसी और मुसीबत में नही फँसना चाहती थी. मुझे ख्याल आया कि मुझे किसी तरह से वाहा से आगे चलना चाहिए, पर आगे जाना आसान नही था.
मैं ये सब सोच ही रही थी कि मुझे अपने नितंबो पर उसका लिंग महसूस हुवा. मैं हड़बड़ा गयी.
मैने उसकी और तिरछी नज़र से देखा, तो पाया कि वो एक तक मेरी तरफ ही देख रहा है.
उसने मुझे उसे देखते हुवे देख लिया और झट से अपना लिंग मसल्ने लगा.
मैने फॉरन अपनी नज़रे घुमा ली.
तभी मुझे दूर से एक बस आती हुई दीखाई दी.
मैने पास में खड़ी एक लेडी से पूछा, ये बस क्या एमजी रोड तक जाएगी ?
उसने कहा हा जाएगी पर थोड़ा वक्त लेगी.
मैने सोचा यहा रुकना ठीक नही है इसी बस में चल देती हू.
जैसे ही बस रुकी, लोगो ने बस के गेट को घेर लिया, मैं सब से पीछे रह गयी. मैने पीछे मूड कर देखा तो वो आदमी मुस्कुरा रहा था.
मैं हर हाल में बस में चढ़ना चाहती थी. मुझे लग रहा था कि यहा बस स्टॉप पर रुकना ठीक नही है, ये आदमी बे-वजह परेशान करेगा.
जैसे तैसे में भी बस में चढ़ ही गयी, और चैन की साँस ली.
पर परेशानी ये थी कि मैं सबसे आख़िर में गेट के बिल्कुल पास खड़ी थी, और बस खचखुच भरी हुई थी.
बस चली ही थी कि वो आदमी भी बस में चढ़ गया और मेरे बिल्कुल पीछे सॅट गया. मुझे यकीन ही नही हुवा.
वो अपनी साइकल छोड़ कर बस में चढ़ जाएगा मैने सोचा भी नही था, वरना में इस भीड़ भरी बस में कभी ना चढ़ती
मेरे आगे काफ़ी लोग थे. में बस के बिल्कुल गेट पर थी और मेरे पीछे वो घिनोना आदमी. बहुत ही बेकार सिचुयेशन थी वो मेरे लिए. एक पल को तो मन हुवा की बस से कूद जा-ऊँ, पर फिर सोचा कि शायद थोड़ी देर में कुछ लोग उतर जाएँ तो कोई शीट खाली हो.
वो धीरे से बोला, क्या बात है मेरी जान आज अकेली कहा जा रही हो, वो तेरा यार कहा है.
मैने कोई रिक्षन नही किया.
वो बोला, आज मेरे साथ चल, तुझे खुस कर दूँगा.
मैने पीछे मूड कर गुस्से से उसे देखा.
पर उस पर कोई असर नही हुवा.
वो बोला, तू गुस्से में बहुत प्यारी लगती है पर कभी मेरी तरफ प्यार से भी देख लिया कर, मैं भी तेरा एक दीवाना हू.
मैने कहा, तुम यहा से दफ़ा होते हो कि नही.
वो बड़ी बेशर्मी से बोला, “नही मेरी जान आज तू नही बचेगी” और ये कहते हुवे मेरे नितंबो को दबोच लिया.
मैने उसका हाथ वाहा से झटक दिया.
मैं किसी और मुसीबत में नही फँसना चाहती थी. मुझे ख्याल आया कि मुझे किसी तरह से वाहा से आगे चलना चाहिए, पर आगे जाना आसान नही था.
मैं ये सब सोच ही रही थी कि मुझे अपने नितंबो पर उसका लिंग महसूस हुवा. मैं हड़बड़ा गयी.
Re: छोटी सी भूल
मैं बहुत कोशिस करके लोगो को पीछे हटाते हुवे वाहा से आगे चली गयी, और जिस लेडी से मैने बस के बारे में पूछा था, उसके पास आ कर खड़ी हो गयी.
मुझे यकीन था कि उस लेडी के साथ में सुरक्षित हू.
तभी वो भी भीड़ को चीरते हुवे मेरे पास आ गया.
मेरे बाई तरफ वो लेडी खड़ी थी और मेरे पीछे कोई मोटा सा आदमी खड़ा था जो की देखने में भले घर का लग रहा था, क्योंकि वो बिल्कुल मुझ से थोड़ी दूरी बनाए खड़ा था.
वो साइकल वाला, मेरे पास खड़ी लेडी के पीछे खड़ा हो गया.
मैं पहली बार बस में ऐसा माहॉल देख रही थी.
अचानक मेरे पास खड़ी लेडी थोडा आगे बढ़ गयी.
ये सॉफ था कि वो उस साइकल वाले से परेशान होकर ही आगे बढ़ी थी.
पर वो साइकल वाला भी उसके पीछे पीछे आगे बढ़ गया. अब वो दोनो बिल्कुल मेरी आँखो के सामने थे.
मेरे पीछे वही मोटा आदमी खड़ा था.
मुझे कोई तकलीफ़ नही थी बजाए इशके कि वो साइकल वाला, उस लेडी से छेड़छाड़ कर रहा था. पर मेरी तरह और लोग भी ये नज़ारा देख रहे थे, कोई कुछ नही बोल रहा था.
मुझे अफ़सोश हो रहा था कि मेरी नजाह से वो लेडी मुसीबत में फँस गयी थी.
मैं अपना ध्यान वाहा से हटा कर अपनी जॉब के बारे में सोचने लगी कि कैसी होगी ये नौकरी, मुझे अछी लगेगी कि नही.
अचानक मैने पाया कि वो साइकल वाला, उस लेडी के नितंबो को बड़ी बेशर्मी से सरेआम मसल रहा है, और वो लेडी चुपचाप सब कुछ सह रही है.
मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था, पर उस भीड़ में जब सब चुपचाप तमाशा देख रहे थे तो में भी ऐसे में क्या कर सकती थी.
वो साइकल वाला, उस लेडी के नितंबो को मसल्ते मसल्ते मेरी और सर घुमा कर बोला, तू कहे तो तेरे पीछे आ कर तेरी सेवा भी कर दू.
मैने अपनी नज़रे फिरा ली.
वो अपने काम में लगा रहा.
मैं सोच रही थी की आख़िर ये सब औरत के साथ क्यो होता है ?
मैं इन सब विचारो में खोई थी कि मुझे मेरे नितंबो पर कुछ महसूस हुवा.
मैने पीछे मूड कर देखा तो पाया कि वो मोटा आदमी मेरे बिल्कुल करीब आ गया है. मुझे पूरा यकीन था कि अभी जो मुझे महसूस हुवा वो उसका वो था.
मैं अब और ज़्यादा परेशान हो गयी. जिशे अछा आदमी समझा था वो भी एक नंबर का कमीना निकला.
मैने गुस्से में उसकी और देखा तो वो थोडा पीछे हो गया.
मैने दुबारा अपने सामने नज़रे उठा कर देखा तो पाया कि वो साइकल वाला अपनी ज़िप खोल रहा है.
मैं हैरान रह गयी कि आख़िर सारे आम वो ऐसा कैसे कर सकता है ?
उसने अपना लिंग निकाल कर उस लेडी के नितंबो में फँसा दिया.
मैं सब कुछ देख कर हैरान हो रही थी.
वो फिर मेरी और मुड़ा और बोला, देख ये कितना मज़ा ले रही है और एक तू है जो मुझ से दूर भागती है.
उसका लिंग अब मेरी आँखो के सामने था.
जैसा उसका चेहरा भयानक था, वैसे ही उसका लिंग भी बहुत भयनक था, वो बिल्कुल अशोक के साइज़ का लग रहा था.
उसने फिर से उस लेडी के नितंबो के बीच अपना लिंग फँसा दिया और हल्के हल्के धक्के मारने लगा.
मुझे यकीन था कि उस लेडी के साथ में सुरक्षित हू.
तभी वो भी भीड़ को चीरते हुवे मेरे पास आ गया.
मेरे बाई तरफ वो लेडी खड़ी थी और मेरे पीछे कोई मोटा सा आदमी खड़ा था जो की देखने में भले घर का लग रहा था, क्योंकि वो बिल्कुल मुझ से थोड़ी दूरी बनाए खड़ा था.
वो साइकल वाला, मेरे पास खड़ी लेडी के पीछे खड़ा हो गया.
मैं पहली बार बस में ऐसा माहॉल देख रही थी.
अचानक मेरे पास खड़ी लेडी थोडा आगे बढ़ गयी.
ये सॉफ था कि वो उस साइकल वाले से परेशान होकर ही आगे बढ़ी थी.
पर वो साइकल वाला भी उसके पीछे पीछे आगे बढ़ गया. अब वो दोनो बिल्कुल मेरी आँखो के सामने थे.
मेरे पीछे वही मोटा आदमी खड़ा था.
मुझे कोई तकलीफ़ नही थी बजाए इशके कि वो साइकल वाला, उस लेडी से छेड़छाड़ कर रहा था. पर मेरी तरह और लोग भी ये नज़ारा देख रहे थे, कोई कुछ नही बोल रहा था.
मुझे अफ़सोश हो रहा था कि मेरी नजाह से वो लेडी मुसीबत में फँस गयी थी.
मैं अपना ध्यान वाहा से हटा कर अपनी जॉब के बारे में सोचने लगी कि कैसी होगी ये नौकरी, मुझे अछी लगेगी कि नही.
अचानक मैने पाया कि वो साइकल वाला, उस लेडी के नितंबो को बड़ी बेशर्मी से सरेआम मसल रहा है, और वो लेडी चुपचाप सब कुछ सह रही है.
मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था, पर उस भीड़ में जब सब चुपचाप तमाशा देख रहे थे तो में भी ऐसे में क्या कर सकती थी.
वो साइकल वाला, उस लेडी के नितंबो को मसल्ते मसल्ते मेरी और सर घुमा कर बोला, तू कहे तो तेरे पीछे आ कर तेरी सेवा भी कर दू.
मैने अपनी नज़रे फिरा ली.
वो अपने काम में लगा रहा.
मैं सोच रही थी की आख़िर ये सब औरत के साथ क्यो होता है ?
मैं इन सब विचारो में खोई थी कि मुझे मेरे नितंबो पर कुछ महसूस हुवा.
मैने पीछे मूड कर देखा तो पाया कि वो मोटा आदमी मेरे बिल्कुल करीब आ गया है. मुझे पूरा यकीन था कि अभी जो मुझे महसूस हुवा वो उसका वो था.
मैं अब और ज़्यादा परेशान हो गयी. जिशे अछा आदमी समझा था वो भी एक नंबर का कमीना निकला.
मैने गुस्से में उसकी और देखा तो वो थोडा पीछे हो गया.
मैने दुबारा अपने सामने नज़रे उठा कर देखा तो पाया कि वो साइकल वाला अपनी ज़िप खोल रहा है.
मैं हैरान रह गयी कि आख़िर सारे आम वो ऐसा कैसे कर सकता है ?
उसने अपना लिंग निकाल कर उस लेडी के नितंबो में फँसा दिया.
मैं सब कुछ देख कर हैरान हो रही थी.
वो फिर मेरी और मुड़ा और बोला, देख ये कितना मज़ा ले रही है और एक तू है जो मुझ से दूर भागती है.
उसका लिंग अब मेरी आँखो के सामने था.
जैसा उसका चेहरा भयानक था, वैसे ही उसका लिंग भी बहुत भयनक था, वो बिल्कुल अशोक के साइज़ का लग रहा था.
उसने फिर से उस लेडी के नितंबो के बीच अपना लिंग फँसा दिया और हल्के हल्के धक्के मारने लगा.