मैं इतनी ज़्यादा मदहोश हो गयी कि मुझे कुछ होश नही रहा.
बिल्लू ने पूछा, कैसा लग रहा है ?
मैने हड़बड़ाते हुवे कहा, बहुत अछा, प्लीज़ रुकना मत मेरे संयम का बाँध टूटने वाला है.
वो बोला, तू चिंता मत कर ये गाड़ी स्टेशन से पहले नही रुकेगी. वो और तेज़ी से मेरी योनि में धक्के मारने लगा.
मेरी साँसे बहुत तेज हो गयी, मैं खुद को रोक नही पाई और अचानक भावनाओ के सागर में बह गयी.
मैने बिल्लू से कहा प्लीज़ रुक जाओ अब नही सहा जा रहा.
बिल्लू तुरंत रुक गया और मेरी योनि से अपना लिंग निकाल लिया.
मैं खड़ी होने लगी तो बिल्लू ने मुझे रोक दिया.
वो बोला, थोड़ा रूको आखरी बार तेरी गांद तो मार लू.
बिल्लू मेरे नितंबो को थाम कर बोला, इनका तो मैं देवाना हूँ.
ये कह कर वो मेरे नितंबो को बेतहासा चूमने लगा.
मैं फिर से मदहोश होने लगी.
अचानक बिल्लू ने कुछ अजीब किया.
उसने मेरे नितंबो को फैलाया और मेरी गुदा को अपनी जीभ से चाटने लगा.
मैने पूछा, ये क्या कर रहे हो.
वो बोला, तुझे प्यार कर रहा हूँ ताकि तू मुझे हमेशा याद रखे.
मुझे विश्वास नही हो रहा था कि वो मुझे वाहा चूम रहा है पर ये बात सच थी कि मुझे अछा लग रहा था.
मेरी गुदा को ठीक से गीला कर के बिल्लू उठ गया उसका लिंग मेरे नितंबो पर लग रहा था.
उसने कहा, अपनी गांद को दोनो हाथो से पकड़ कर फैला लो अंदर लेने में आसानी होगी.
मैं इतनी मदहोश हो चुकी थी कि मैने बिना झीजक के अपने नितंबो को फैला लिया.
उसने मेरे गुदा द्वार पर अपना लिंग लगा दिया और बोला, चिंता मत करना मैं आराम से डालूँगा.
ये कह कर उसने मेरी गुदा में अपना लिंग घुस्सा दिया.
मैं फिर से दर्द में चील्ला उठी आआआआअहह
उसने पूछा, ज़्यादा दर्द है क्या ? निकाल लू क्या बाहर.
मैने कहा, नही ठीक है तुम कर लो, पर आराम से.
बिल्लू ने धीरे धीरे अपना पूरा लिंग मेरी गुदा में सरका दिया.
इस बार उसने मुझे परेशान नही किया और धीरे धीरे मेरे नितंबो में धक्के लगाने लगा.
मुझे फिर से मज़ा आने लगा. फराक सिर्फ़ इतना था कि ये मज़ा मुझे योनि में नही बल्कि मेरी गुदा में आ रहा था.
अचानक बिल्लू तेज तेज धक्के मारने लगा.
मेरी साँसे फुलती चली गयी.
तभी अचानक मुझे अपने पीछे कुछ आहट सुनाई दी.
मैने पीछे मूड कर देखा, तो मेरे पैरो के नीचे से ज़मीन निकल गयी, मेरी आँखो के आगे अंधेरा छा गया.
बिल्लू के थोडा पीछे अशोक खड़ा था और अशोक के साथ बिल्लू का दोस्त राजू खड़ा था.
दोनो ने अपनी ज़िप खोल रखी थी और दोनो अपने हाथो से अपने लिंग को सहला रहे थे.
मैने बिल्लू से चील्ला कर कहा, हटो, वरना मैं शोर मचाउन्गि.
वो मुझे मजबूती से थामे रहा और मेरे नितंबो में तेज तेज धक्के लगता रहा.
अचानक मेरे किचन की खिड़की खुली.
मैने जो देखा वो मेरी जींदगी का सबसे बड़ा शॉक था, एक शॉक तो मैं ऑलरेडी देख चुकी थी.
खिड़की में संजय थे, मैं उन्हे अपने सामने देख कर शरम से पानी पानी हो गयी.
इतने बड़े शॉक के कारण मैं लगभग अनकनसियस हो गयी थी. मैं समझ नही पा रही थी कि आख़िर हो क्या रहा है.
मेरे हाथ पाँव काम करना बंद कर चुके थे, बिल्लू अभी भी बड़ी बेशर्मी से मेरे अंदर धक्के लगा रहा था.
अचानक मैने खिड़की में देखा तो पाया कि संजय वाहा नही है.
मैने बेहोशी की हालत में ही बिल्लू से कहा, बिल्लू……. हट……… जाओ.
पर बिल्लू नही माना.
अचानक मुझे गोली की आवाज़ सुनाई दी.
मैने नज़र उठा कर देखा तो पाया कि संजय खिड़की पर वापस लॉट आए है और उनके हाथ में पिस्टल है.
अचानक बिल्लू मेरे पीछे से हट गया.
मैं लड़खड़ा कर नीचे गिर गयी, गिरते हुवे मैने देखा कि बिल्लू को गोली लगी है. मैं मन ही मन दुआ कर रही थी वो मर जाए और काश एक गोली मुझे भी लग जाए. ये सब सोचते सोचते मैं बेहोश हो गयी.
क्रमशः ..............................................
छोटी सी भूल compleet
Re: छोटी सी भूल
गतांक से आगे .........................
मैं मन ही मन बड़बड़ा रही थी कि कितना भयानक सपना है. मैं बेचानी में अपनी टांगे पटक रही थी.
और अचानक मेरी आँख खुल गयी और मैने पाया कि मैं हॉस्पिटल के बेड पर पड़ी हूँ और मुझे ग्लूकोस की बॉटल लगी है.
सबसे पहला ख्याल यही आया कि हे भगवान ये सपना नही सच था ! ये कौन से जनम की सज़ा मिली है मुझे ?
मैने चारो और देखा तो यही लगा कि ये ज़रूर संजय का ही क्लिनिक है, क्योंकि मैं काई बार संजय के क्लिनिक आ चुकी थी, और मैं इस क्लिनिक को आछे से जानती थी.
मैं अभी तक गहरे शॉक में थी. संजय ने मुझे जिस हालत में देखा था, उसे में उन्हे कभी भी नही समझा सकती थी. मैं ये सोच कर घबरा रही थी कि अब में क्या मूह ले कर उनके सामने जाउन्गि.
कहते है कि इंशान पहाड़ से गिर कर बच सकता है पर नज़रो से गिर कर नही. मैं संजय की नज़रो में तो गिरी ही थी उस से भी ज़्यादा बड़ी बात ये थी कि मैं खुद अपनी नज़रो में भी गिर गयी थी.
मुझे नही लगता था कि मैं कभी खुद से नज़रे मिला पाउन्गि
मुझे अपने कॉलेज के दीनो की एक पुस्तक में लिखी एक बात याद आ गयी, जिसने मुझे अक्सर जीवन में प्रेरणा दी थी.
“इन दा ग्रेट स्कीम ऑफ थिंग्स, व्हाट मॅटर्स ईज़ नोट हाउ लोंग यू लाइव, बट वाइ यू लाइव, व्हाट यू स्टॅंड फॉर, आंड व्हाट यू आर विल्लिंग टू डाइ फॉर”
और ये बात सोच कर अपने आप मेरी आँखो से आँसू बहने लगे, मैं अपने जीवन में भटक चुकी थी, अब चारो तरफ अंधेरा ही अंधेरा नज़र आ रहा था.
मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि “व्हाट आइ स्टॅंड फॉर ?????” और मैने क्यो अपनी जींदगी के साथ ये घिनोना खिलवाड़ किया ? मुझे खुद से नफ़रत हो रही थी.
जाने अंजाने मैने जो कुछ भी किया था वो माफी के लायक नही था.
इसी उधैीडबुन में मैने फिर से आँखे बंद कर ली और गहरी चिंता में डूब गयी.
अचानक मुझे ख्याल आया कि बिल्लू को गोली लगी थी.
मैं यही दुवा कर रही थी कि काश वो मर जाए.
मैं विश्वास नही कर पा रही थी कि जिशे मैने अपना सब कुछ दे दिया उसने मुझे फिर से इतना बड़ा धोका दिया.
मेरे दीमाग में फिर से वो सीन दौड़ गया जब मैने पीछे मूड कर देखा था. मैं समझ नही पा रही थी कि आख़िर अशोक और राजू वाहा क्या कर रहे थे, बिल्लू ने तो मुझे वादा किया था कि अब मेरे और उशके बीच कोई नही आएगा.
मैं ये सोच कर और ज़्यादा घबरा गयी कि कही उनका मेरे साथ कोई ज़बरदस्ती करने का तो इरादा नही था ??
फिर अचानक ये ख्याल आया कि जब संजय ने ये सब देखा होगा तो उन्हे कैसा लगा होगा.
ये सोच कर मैं अंदर तक काँप उठी. मुझे ये अहसाश हो रहा था कि अगर कोई भी हमारी खिड़की से मुझे ऐसी हालत में देखता तो यही समझता कि मैं तीन लोगो के साथ अपनी मर्ज़ी से हूँ.
ये सोच कर मेरा दिल बहुत भारी हो गया. ऐसा लग रहा था कि मैं घुट कर मर जाउन्गि. और सच पूछो तो मैं चाहती भी यही थी की मेरा वही दम निकल जाए.
मैं पड़े पड़े यही सब सोच रही थी कि अचानक किसी के कमरे में आने की आहट शुनाई दी.
मुझ में इतनी हिम्मत नही थी कि मैं आँखे खोल कर देख पाउ कि कौन है, मुझे डर था कि कही ये संजय ना हो.
मैं आँखे बंद किए चुपचाप पड़ी रही.
तभी किसी और के आने की भी आहट शुनाई दी.
मैं मन ही मन बड़बड़ा रही थी कि कितना भयानक सपना है. मैं बेचानी में अपनी टांगे पटक रही थी.
और अचानक मेरी आँख खुल गयी और मैने पाया कि मैं हॉस्पिटल के बेड पर पड़ी हूँ और मुझे ग्लूकोस की बॉटल लगी है.
सबसे पहला ख्याल यही आया कि हे भगवान ये सपना नही सच था ! ये कौन से जनम की सज़ा मिली है मुझे ?
मैने चारो और देखा तो यही लगा कि ये ज़रूर संजय का ही क्लिनिक है, क्योंकि मैं काई बार संजय के क्लिनिक आ चुकी थी, और मैं इस क्लिनिक को आछे से जानती थी.
मैं अभी तक गहरे शॉक में थी. संजय ने मुझे जिस हालत में देखा था, उसे में उन्हे कभी भी नही समझा सकती थी. मैं ये सोच कर घबरा रही थी कि अब में क्या मूह ले कर उनके सामने जाउन्गि.
कहते है कि इंशान पहाड़ से गिर कर बच सकता है पर नज़रो से गिर कर नही. मैं संजय की नज़रो में तो गिरी ही थी उस से भी ज़्यादा बड़ी बात ये थी कि मैं खुद अपनी नज़रो में भी गिर गयी थी.
मुझे नही लगता था कि मैं कभी खुद से नज़रे मिला पाउन्गि
मुझे अपने कॉलेज के दीनो की एक पुस्तक में लिखी एक बात याद आ गयी, जिसने मुझे अक्सर जीवन में प्रेरणा दी थी.
“इन दा ग्रेट स्कीम ऑफ थिंग्स, व्हाट मॅटर्स ईज़ नोट हाउ लोंग यू लाइव, बट वाइ यू लाइव, व्हाट यू स्टॅंड फॉर, आंड व्हाट यू आर विल्लिंग टू डाइ फॉर”
और ये बात सोच कर अपने आप मेरी आँखो से आँसू बहने लगे, मैं अपने जीवन में भटक चुकी थी, अब चारो तरफ अंधेरा ही अंधेरा नज़र आ रहा था.
मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि “व्हाट आइ स्टॅंड फॉर ?????” और मैने क्यो अपनी जींदगी के साथ ये घिनोना खिलवाड़ किया ? मुझे खुद से नफ़रत हो रही थी.
जाने अंजाने मैने जो कुछ भी किया था वो माफी के लायक नही था.
इसी उधैीडबुन में मैने फिर से आँखे बंद कर ली और गहरी चिंता में डूब गयी.
अचानक मुझे ख्याल आया कि बिल्लू को गोली लगी थी.
मैं यही दुवा कर रही थी कि काश वो मर जाए.
मैं विश्वास नही कर पा रही थी कि जिशे मैने अपना सब कुछ दे दिया उसने मुझे फिर से इतना बड़ा धोका दिया.
मेरे दीमाग में फिर से वो सीन दौड़ गया जब मैने पीछे मूड कर देखा था. मैं समझ नही पा रही थी कि आख़िर अशोक और राजू वाहा क्या कर रहे थे, बिल्लू ने तो मुझे वादा किया था कि अब मेरे और उशके बीच कोई नही आएगा.
मैं ये सोच कर और ज़्यादा घबरा गयी कि कही उनका मेरे साथ कोई ज़बरदस्ती करने का तो इरादा नही था ??
फिर अचानक ये ख्याल आया कि जब संजय ने ये सब देखा होगा तो उन्हे कैसा लगा होगा.
ये सोच कर मैं अंदर तक काँप उठी. मुझे ये अहसाश हो रहा था कि अगर कोई भी हमारी खिड़की से मुझे ऐसी हालत में देखता तो यही समझता कि मैं तीन लोगो के साथ अपनी मर्ज़ी से हूँ.
ये सोच कर मेरा दिल बहुत भारी हो गया. ऐसा लग रहा था कि मैं घुट कर मर जाउन्गि. और सच पूछो तो मैं चाहती भी यही थी की मेरा वही दम निकल जाए.
मैं पड़े पड़े यही सब सोच रही थी कि अचानक किसी के कमरे में आने की आहट शुनाई दी.
मुझ में इतनी हिम्मत नही थी कि मैं आँखे खोल कर देख पाउ कि कौन है, मुझे डर था कि कही ये संजय ना हो.
मैं आँखे बंद किए चुपचाप पड़ी रही.
तभी किसी और के आने की भी आहट शुनाई दी.
Re: छोटी सी भूल
मुझे शुनाई दिया, अरे संजय क्या हुवा, भाबी को ? मुझे अभी-अभी पता चला, वो यहा क्लिनिक में है
संजय ने कहा, बस पूछ मत यार, मुझे खुद कुछ समझ नही आ रहा, मेरा दीमाग घूम रहा है.
मैं आवाज़ से समझ चुकी थी कि दूसरी आवाज़ संजय के दोस्त विवेक की है. वो संजय का बहुत अछा दोस्त था.
विवेक बोला, बता तो सही आख़िर हुवा क्या है ?
संजय ने कहा, मुझे लगता है, ऋतु का रेप हुवा है और वो भी मेरे घर के पीछे और मैने खुद अपनी आँखो से ये सब देख भी लिया. मैं गहरे शॉक में हूँ.
विवेक ने कहा, क्या ? तूने पोलीस में रिपोर्ट की.
संजय ने कहा, उसकी कोई ज़रूरत नही है, मैं उन लोगो को बर्बाद कर दूँगा. एक को तो मैने गोली भी मार दी थी, मुझे यकीन है वो मर चुका होगा.
विवेक ने हैरानी भरे शब्दो में कहा, क्या ? कितने लोग थे वाहा ?
संजय ने कहा, तीन
विवेक बोला, हे भगवान, वैसे तुम वाहा कैसे पहुँच गये.
संजय ने कहा, मुझे एक फोन आया था कि अपने घर आ कर अपनी बर्बादी देखो. और जब में घर पहुँचा तो मुझे एक एसएमएस आया कि अपने किचन की खिड़की खोल कर देखो कि तुम्हारी बीवी किस हाल में है.
विवेक बोला, फिर क्या देखा तूने ?
संजय ने कहा, मैने देखा कि ऋतु छटपटा रही थी और वो कमीना बिल्लू उशके साथ…………………..
विवेक बोला, बिल्लू ! कौन बिल्लू ?
आगे मुझे कुछ शुनाई नही दिया, श्याद संजय ने धीरे से कुछ कहा था.
पर अचानक संजय के मूह से बिल्लू का नाम सुन कर मैं हैरान रह गयी थी, मुझे समझ नही आ रहा था कि संजय बिल्लू को कैसे जानते है ?
मैं ये सोच ही रही थी कि तभी, विवेक बोल पड़ा, तो फिर तुमने क्या किया,
संजय ने कहा, मैने तुरंत अपने बेडरूम की अलमारी से पिस्टल निकाली और उस कामीने को गोली मार दी, पर तभी उशके एक साथी ने एक पठार उठा कर मारा और मेरी पिस्टल खिड़की से बाहर ज़मीन पर गिर गयी, और इतने में उशके साथी उशे ले कर भाग गये. ऋतु तभी बेहोश हो गयी थी. पर मुझे यकीन है वो बिल्लू नही बचेगा, गोली बिल्कुल दिल के पास लगी है.
विवेक ने पूछा, फिर क्या हुवा ?
संजय ने कहा, फिर मैं ऋतु को वाहा से उठा कर बेहोशी की हालत में ही, यहा ले आया.
विवेक ने कहा, मुझे लगता है तुझे पोलीस में रिपोर्ट तो करनी ही चाहिए.
संजय ने कहा, तू समझा कर यार, तू तो जानता ही है, ये बात इतनी सीधी नही है. रिपोर्ट की कोई ज़रूरत नही है, पोलीस से काम लेना मुझे आता है. अब तक बाकी के दो लोगो का एनकाउंटर हो चुका होगा.
विवेक ने पूछा, पर यार भाबी वाहा कैसे पहुँच गयी, किसी पड़ोसी ने क्या चीन्खने चील्लने की आवाज़ नही सुनी ?
संजय बोले, पता नही यार, ये सब तो ऋतु ही बता पाएगी. एक बार उसे होश आ जाए तो इस बारे में बात करेंगे, अभी तो वो भी शॉक में होगी.
विवेक ने कहा, मुझे शक है कि तुझे वाहा बिल्लू ने ही बुलाया होगा.
संजय ने कहा, तुझे शक है, मुझे तो पूरा यकीन है कि ये सब उसने जानबूझ कर किया है. पर अब कोई चिंता की बात नही, उसका खेल ख़तम हो चुका है.
मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि आख़िर बात क्या है, ऐसा लग रहा था जैसे की संजय और विवेक बिल्लू को आछे से जानते है.
ऐसा क्यो था मैं समझ नही पा रही थी ?
पर उनकी बाते सुन कर मेरी दुविधा दूर होती नज़र आ रही थी. मैं सोच रही थी कि अगर में ये सब रेप बता दू तो संजय से नज़रे मिला सकती हूँ, संजय भी तो ऐसा ही सोच रहे थे.
एक तरह से मुझे अपनी छोटी सी भूल को सुधारने का मोका मिल रहा था, और मैं अपने परिवार को भी बचा सकती थी.
पर फिर मुझे ख्याल आया कि मैं संजय को तो झूठ बोल दूँगी पर अपनी आत्मा को क्या जवाब दूँगी. सच क्या है वो तो मैं जानती थी, और इस सच को झुटला कर मेरे लिए अब एक पल भी जीना मुश्किल था.
संजय ने कहा, बस पूछ मत यार, मुझे खुद कुछ समझ नही आ रहा, मेरा दीमाग घूम रहा है.
मैं आवाज़ से समझ चुकी थी कि दूसरी आवाज़ संजय के दोस्त विवेक की है. वो संजय का बहुत अछा दोस्त था.
विवेक बोला, बता तो सही आख़िर हुवा क्या है ?
संजय ने कहा, मुझे लगता है, ऋतु का रेप हुवा है और वो भी मेरे घर के पीछे और मैने खुद अपनी आँखो से ये सब देख भी लिया. मैं गहरे शॉक में हूँ.
विवेक ने कहा, क्या ? तूने पोलीस में रिपोर्ट की.
संजय ने कहा, उसकी कोई ज़रूरत नही है, मैं उन लोगो को बर्बाद कर दूँगा. एक को तो मैने गोली भी मार दी थी, मुझे यकीन है वो मर चुका होगा.
विवेक ने हैरानी भरे शब्दो में कहा, क्या ? कितने लोग थे वाहा ?
संजय ने कहा, तीन
विवेक बोला, हे भगवान, वैसे तुम वाहा कैसे पहुँच गये.
संजय ने कहा, मुझे एक फोन आया था कि अपने घर आ कर अपनी बर्बादी देखो. और जब में घर पहुँचा तो मुझे एक एसएमएस आया कि अपने किचन की खिड़की खोल कर देखो कि तुम्हारी बीवी किस हाल में है.
विवेक बोला, फिर क्या देखा तूने ?
संजय ने कहा, मैने देखा कि ऋतु छटपटा रही थी और वो कमीना बिल्लू उशके साथ…………………..
विवेक बोला, बिल्लू ! कौन बिल्लू ?
आगे मुझे कुछ शुनाई नही दिया, श्याद संजय ने धीरे से कुछ कहा था.
पर अचानक संजय के मूह से बिल्लू का नाम सुन कर मैं हैरान रह गयी थी, मुझे समझ नही आ रहा था कि संजय बिल्लू को कैसे जानते है ?
मैं ये सोच ही रही थी कि तभी, विवेक बोल पड़ा, तो फिर तुमने क्या किया,
संजय ने कहा, मैने तुरंत अपने बेडरूम की अलमारी से पिस्टल निकाली और उस कामीने को गोली मार दी, पर तभी उशके एक साथी ने एक पठार उठा कर मारा और मेरी पिस्टल खिड़की से बाहर ज़मीन पर गिर गयी, और इतने में उशके साथी उशे ले कर भाग गये. ऋतु तभी बेहोश हो गयी थी. पर मुझे यकीन है वो बिल्लू नही बचेगा, गोली बिल्कुल दिल के पास लगी है.
विवेक ने पूछा, फिर क्या हुवा ?
संजय ने कहा, फिर मैं ऋतु को वाहा से उठा कर बेहोशी की हालत में ही, यहा ले आया.
विवेक ने कहा, मुझे लगता है तुझे पोलीस में रिपोर्ट तो करनी ही चाहिए.
संजय ने कहा, तू समझा कर यार, तू तो जानता ही है, ये बात इतनी सीधी नही है. रिपोर्ट की कोई ज़रूरत नही है, पोलीस से काम लेना मुझे आता है. अब तक बाकी के दो लोगो का एनकाउंटर हो चुका होगा.
विवेक ने पूछा, पर यार भाबी वाहा कैसे पहुँच गयी, किसी पड़ोसी ने क्या चीन्खने चील्लने की आवाज़ नही सुनी ?
संजय बोले, पता नही यार, ये सब तो ऋतु ही बता पाएगी. एक बार उसे होश आ जाए तो इस बारे में बात करेंगे, अभी तो वो भी शॉक में होगी.
विवेक ने कहा, मुझे शक है कि तुझे वाहा बिल्लू ने ही बुलाया होगा.
संजय ने कहा, तुझे शक है, मुझे तो पूरा यकीन है कि ये सब उसने जानबूझ कर किया है. पर अब कोई चिंता की बात नही, उसका खेल ख़तम हो चुका है.
मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि आख़िर बात क्या है, ऐसा लग रहा था जैसे की संजय और विवेक बिल्लू को आछे से जानते है.
ऐसा क्यो था मैं समझ नही पा रही थी ?
पर उनकी बाते सुन कर मेरी दुविधा दूर होती नज़र आ रही थी. मैं सोच रही थी कि अगर में ये सब रेप बता दू तो संजय से नज़रे मिला सकती हूँ, संजय भी तो ऐसा ही सोच रहे थे.
एक तरह से मुझे अपनी छोटी सी भूल को सुधारने का मोका मिल रहा था, और मैं अपने परिवार को भी बचा सकती थी.
पर फिर मुझे ख्याल आया कि मैं संजय को तो झूठ बोल दूँगी पर अपनी आत्मा को क्या जवाब दूँगी. सच क्या है वो तो मैं जानती थी, और इस सच को झुटला कर मेरे लिए अब एक पल भी जीना मुश्किल था.