वो भी मेरे पीछे पीछे आ गया और मेरी शीट के बाईं और खड़ा हो गया.
वो बोला, प्लीज़ दीप्ति, ले लो ना थोड़ा सा मूह में.
मैने कहा, ठीक है पर तुम वादा करो कि इशके बाद शादी तक तुम मुझे परेशान नही करोगे.
वो बोला, ठीक है, नही करूँगा, अब ले लो ना !!
मैं थोड़ा उसकी ओर घूम गयी, उसका पेनिस बिल्कुल मेरे मूह के सामने था.
उसने झट से अपना पेनिस मेरे मूह से सटा दिया.
मैने कहा, रूको तो सही, मैं कर तो रही हूँ.
ही सेड, ओके, सॉरी !! आइ अम गेटिंग क्रेज़ी टुडे.
मैने अपना मूह खोला और उशके पेनिस के उपर के हिस्से को अपने होंटो में दबा लिया.
वो बोला, आआअहह मज़ा आ रहा है, क्या छुवन है तुम्हारे होंटो की, फीलिंग वेरी सॉफ्ट-सॉफ्ट अराउंड माइ डिक
उसने मेरा सर पकड़ लिया और अपने पेनिस को मेरे मूह में पुश करते हुवे बोला, थोड़ा और अंदर लो ना.
मैने उशके पेनिस से मूह हटा कर कहा, देखो मुझे जितना आता है मैं कर रही हूँ, मुझे प्लीज़ इन्स्ट्रक्षन्स मत दो.
वो बोला, तुम बहुत अछा चूस रही हो, मैं तो बस ये चाहता था कि मेरे लंड का हर हिस्सा तुम्हारे प्रेम रस में डूब जाए. चलो जैसे तुम्हे करना है करो, मुझे तो मज़े से मतलब है.
ये कह कर उसने फिर से मेरे मूह पर अपना पेनिस सटा दिया.
मैने मूह खोला और उशके पेनिस को कोई एक इंच मूह में ले कर चूसने लगी.
उसने फिर से मेरा सर पकड़ लिया और फिर से अपने पेनिस को मेरे मूह में और अंदर धकेलने लगा.
उसने थोड़ा ज़ोर लगा कर कोई चार इंच मेरे मूह में सरका दिया.
मेरे लिए साँस लेना मुश्किल हो रहा था. पर वो हल्की हल्की आहें भर रहा था और कह रहा था, आअहह…. दीप्ति….. यू गिव वेरी गुड हेड, मज़ा आ रहा है….…… प्लीज़ कीप सकिंग माइ कॉक…… आआहह
मेरा मूह दुखने लगा था, पर उसने मेरे सर को थाम रखा था. मैं हट तो सकती थी पर ये सोच कर नही हट रही थी कि, चलो शादी से पहले महेश को थोडा सकुन मिलेगा.
वो बोला, वाउ….. ग्रेट……… काश आज तुम्हारी पुसी भी मिल जाती तो मज़ा आ जाता, चलो ना कहीं चलते है और आराम से मज़े करते है.
मैने उशके पेनिस को मूह से निकाल कर कहा, महेश आज मैं नही जा सकती, वैसे भी अब सब कुछ शादी के बाद, ये सिर्फ़ ट्रेलर है.
वो हंसते हुवे बोला, ट्रेलर इतना सेक्सी है तो पूरी पिक्चर कैसी होगी ? सच खूब मज़ा आएगा तुम्हारी चूत मारने में.
मैने शर्मा कर नज़रे झुका ली.
वो बोला, चूस ना, मज़ा आ रहा है, अभी रुक मत. मेरे लंड पर तुम्हारे होंटो की छुवन बहुत प्यारी लग रही है.
मैने उशके पेनिस को हाथ में लिया और उसे फिर से चूसने लगी.
वो बोला, तुम तो लंड चूसने में एक्सपर्ट लग रही हो.
मैने उशके पेनिस से मूह हटाया और कहा, मैं कोई एक्सपर्ट नही हूँ, मैं तो बस तुम्हे खुस करने के लिए यू ही कुछ कुछ कर रही हूँ.
वो बोला, मुझे पता है, मैं तो बस तुम्हारी तारीफ़ कर रहा हूँ. प्लीज़ एक बार पूरा अंदर लो ना.
मैने कहा, पागल हो क्या, इतना बड़ा पूरा मूह में कैसे आएगा.
वो बोला आएगा, मैं डाल कर दिखाउ.
ये कह कर उसने मेरा मूह पकड़ा और और अपना लगभग पूरा पेनिस मेरे मूह में डाल दिया.
मेरी साँसे उखाड़ गयी और मेरी आँखो में पानी उतर आया. मेरे छोटे से मूह में उसका पूरा पेनिस संभालना मुश्किल हो रहा था.
पर वो मज़े से मेरे सर को थामे, मेरे मूह में पेनिस डाल कर खड़ा था और हल्की हल्की सिसकियाँ भर रहा था.
अचानक मुझे अपने कॅबिन के बाहर किसी के कदमो की आहट शुनाई दी.
मैं फॉरन महेश के पेनिस को छोड़ कर अपनी शीट से उठ गयी.
मैने कहा, इसे जल्दी अंदर करो, लुंक्क ब्रेक ख़तम हो चुका है, लोग वापस आ रहें है.
महेश ने तुरंत, अपने पेनिस को अंदर कर लिया और बोला, चलो फिर कभी ट्राइ करेंगे, तुम बहुत अछा सक करती हो, पर सच बताओ, कहीं से सीखा है क्या ?
मैने कहा, ये क्या बकवास है, ई जस्ट ट्राइड टू मेक यू हॅपी.
ही सेड, ओके ओके यार, जस्ट जोकिंग, डॉन’ट टेक एवेरितिंग सीरियस्ली.
मैने कहा, अब तुम जाओ, मुझे मीटिंग के लिए जाना है, उसकी कुछ तैयारी भी करनी है.
वो बोला, ठीक है, मैं जा रहा हूँ, पर मैं फिर कभी एक कंप्लीट ब्लोवजोब ज़रूर कर्वाउन्गा, यू आर वेरी गुड सकर.
ये कह कर वो चला गया. महेश के जाते ही मैने चैन की साँस ली और वापस अपनी कुर्सी पर बैठ गयी.
…………………………………………….............
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मैने दीप्ति से कहा, ये तो कोई ट्रॅजिडी नही है, शादी से पहले फियान्से के साथ थोड़ा बहुत तो चलता है.
दीप्ति बोली, अभी आगे तो सुन तुझे पता चलेगा कि ये ट्रॅजिडी थी कि नही.
मेरा आगे सुन-ने का बिल्कुल मन नही था, क्योंकि मैं सेक्स के कारण ही तो मुशिबत में फँसी थी. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं कोई एरॉटिक टेल सुन रही हूँ. पर क्योंकि दीप्ति कह रही थी कि कोई ट्रॅजिडी है इश्लीए मैने कहा ठीक है शुनाओ.
मैने ये भी सोचा कि दीप्ति ने भी तो मेरी पूरी बात सुनी थी इसलिए अब मुझे भी उसकी पूरी बात सुन-नि चाहिए.
क्रमशः............................
छोटी सी भूल compleet
Re: छोटी सी भूल
गतांक से आगे .........................
मैने दीप्ति से कहा, प्लीज़ थोड़ा ब्रीफ्ली शुनाओ मुझ से शुना नही जा रहा, मुझे बार बार अपनी कहानी याद आती है.
वो बोली, तभी मैं कह रही थी कि फिर कभी बात करेंगे.
मैने कहा, नही नही ऐसी कोई बात नही है, बस तेरी बाते सुन कर मेरा ध्यान बिल्लू पर जा रहा है, वो कमीना भी ऐसी ही हरकते करता था.
वो बोली, हां ठीक कह रही हो, तभी तो तुम्हारी कहानी सुन कर मैं आज फिर परेशान हो गयी.
मैने पूछा तो फिर क्या हुवा,
दीप्ति के शब्दो में :----
महेश के जाने के बाद में कुर्सी पर बैठी ही थी कि मुझे अपने कॅबिन की खिड़की पर किसी के होने का आभास हुवा.
मुझे ऐसा लगा मानो कोई खिड़की से झाँक रहा हो,
सबसे पहला ख्याल मुझे यही आया कि कहीं किसी ने मुझे ये सब करते देख तो नही लिया.
पर फिर मेरा ध्यान इस बात पर गया कि मेरी खिड़की पर तो किसी का होना नामुमकिन है, फिर वाहा कोई कैसे पहुँच गया
मेरे कॅबिन की खिड़की जहा खुलती थी, वाहा का रास्ता बंद था, इसलये मैं बिना किसी चिंता के अक्सर खिड़की खुली रखती थी.
मैं फॉरन अपनी शीट से उठी और दौड़ कर अपने कॅबिन का दरवाजा खोला.
बाहर सेक्यूरिटी गार्ड घूम रहा था, वो थोड़ा परेशान दिख रहा था.
मैने पूछा, क्या बात है ?
वो बोला, मेडम कोई अजनबी थोड़ी देर पहले ऑफीस में घुस्सा था, पता नही वो कहा गया ?
मैने पूछा, क्या ? तुम क्या कर रहे थे ??
वो बोला, मेडम मैं थोड़ा बीड़ी लेने चला गया था.
मैने कहा, मुझे लगता है, मेरे कॅबिन के पिछली तरफ, बाहर बाल्कनी में कोई है.
वो बोला, पर वाहा का रास्ता तो बंद है.
मैने कहा, मैने अभी किसी को वाहा देखा है ?
वो बोला, अभी चेक करता हूँ मेडम जी, आप चिंता मत करो.
अचानक एक आदमी हमारी और आता हुवा दिखाई दिया, वो उसी रास्ते से आ रहा था, जहा से मेरे कॅबिन के पीछे का रास्ता था.
सेक्यूरिटी गार्ड बोला, यही है वो मेडम जी, मैं अभी इसे पकड़ता हूँ.
गार्ड ने उस से पूछा, कौन हो तुम और यहा क्या कर रहे हो ?
वो बोला, पीछे हट मैं तेरे जैसे छोटे लोगो से मूह नही लगता.
तभी मैं भी उन दोनो के पास पहुँच गयी.
मैने उस आदमी से पूछा, हे मिस्टर, तुम यहा क्या कर रहे हो ? बताते क्यो नही.
वो बोला, मेडम मैं यहा अपने दोस्त से मिलने आया था.
मैने पूछा, क्या नाम है तुम्हारे दोस्त का.
वो थोड़ा सोच में पड़ गया और बोला, शायद मैं ग़लत अड्रेस पर आ गया, सॉरी मैं चलता हूँ.
मैने सेक्यूरिटी गार्ड को कहा, पोलीस को बुलाओ ?
वो बोला, मेडम, मेरी बात सुनो आप मुझे ग़लत समझ रहे हो.
मैने पूछा, क्या तुम बाहर मेरे कॅबिन की खिड़की पर थे ?
वो बोला, हां मेडम मैं था.
मेरी रागो में खून दौड़ उठा, मैने उसके गाल पर एक ज़ोर दार थप्पड़ रसीद कर दिया.
वो गिड़गिदा कर बोला, मेडम मेरी पूरी बात तो शुणिए.
मैने गार्ड से कहा, पोलीस को बुलाओ जल्दी.
इस से पहले की हम कुछ कर पाते वो मुझे और गार्ड को एक तरफ धकेल कर वाहा से भाग गया.
मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि आख़िर हो क्या रहा है.
मैने दीप्ति से कहा, प्लीज़ थोड़ा ब्रीफ्ली शुनाओ मुझ से शुना नही जा रहा, मुझे बार बार अपनी कहानी याद आती है.
वो बोली, तभी मैं कह रही थी कि फिर कभी बात करेंगे.
मैने कहा, नही नही ऐसी कोई बात नही है, बस तेरी बाते सुन कर मेरा ध्यान बिल्लू पर जा रहा है, वो कमीना भी ऐसी ही हरकते करता था.
वो बोली, हां ठीक कह रही हो, तभी तो तुम्हारी कहानी सुन कर मैं आज फिर परेशान हो गयी.
मैने पूछा तो फिर क्या हुवा,
दीप्ति के शब्दो में :----
महेश के जाने के बाद में कुर्सी पर बैठी ही थी कि मुझे अपने कॅबिन की खिड़की पर किसी के होने का आभास हुवा.
मुझे ऐसा लगा मानो कोई खिड़की से झाँक रहा हो,
सबसे पहला ख्याल मुझे यही आया कि कहीं किसी ने मुझे ये सब करते देख तो नही लिया.
पर फिर मेरा ध्यान इस बात पर गया कि मेरी खिड़की पर तो किसी का होना नामुमकिन है, फिर वाहा कोई कैसे पहुँच गया
मेरे कॅबिन की खिड़की जहा खुलती थी, वाहा का रास्ता बंद था, इसलये मैं बिना किसी चिंता के अक्सर खिड़की खुली रखती थी.
मैं फॉरन अपनी शीट से उठी और दौड़ कर अपने कॅबिन का दरवाजा खोला.
बाहर सेक्यूरिटी गार्ड घूम रहा था, वो थोड़ा परेशान दिख रहा था.
मैने पूछा, क्या बात है ?
वो बोला, मेडम कोई अजनबी थोड़ी देर पहले ऑफीस में घुस्सा था, पता नही वो कहा गया ?
मैने पूछा, क्या ? तुम क्या कर रहे थे ??
वो बोला, मेडम मैं थोड़ा बीड़ी लेने चला गया था.
मैने कहा, मुझे लगता है, मेरे कॅबिन के पिछली तरफ, बाहर बाल्कनी में कोई है.
वो बोला, पर वाहा का रास्ता तो बंद है.
मैने कहा, मैने अभी किसी को वाहा देखा है ?
वो बोला, अभी चेक करता हूँ मेडम जी, आप चिंता मत करो.
अचानक एक आदमी हमारी और आता हुवा दिखाई दिया, वो उसी रास्ते से आ रहा था, जहा से मेरे कॅबिन के पीछे का रास्ता था.
सेक्यूरिटी गार्ड बोला, यही है वो मेडम जी, मैं अभी इसे पकड़ता हूँ.
गार्ड ने उस से पूछा, कौन हो तुम और यहा क्या कर रहे हो ?
वो बोला, पीछे हट मैं तेरे जैसे छोटे लोगो से मूह नही लगता.
तभी मैं भी उन दोनो के पास पहुँच गयी.
मैने उस आदमी से पूछा, हे मिस्टर, तुम यहा क्या कर रहे हो ? बताते क्यो नही.
वो बोला, मेडम मैं यहा अपने दोस्त से मिलने आया था.
मैने पूछा, क्या नाम है तुम्हारे दोस्त का.
वो थोड़ा सोच में पड़ गया और बोला, शायद मैं ग़लत अड्रेस पर आ गया, सॉरी मैं चलता हूँ.
मैने सेक्यूरिटी गार्ड को कहा, पोलीस को बुलाओ ?
वो बोला, मेडम, मेरी बात सुनो आप मुझे ग़लत समझ रहे हो.
मैने पूछा, क्या तुम बाहर मेरे कॅबिन की खिड़की पर थे ?
वो बोला, हां मेडम मैं था.
मेरी रागो में खून दौड़ उठा, मैने उसके गाल पर एक ज़ोर दार थप्पड़ रसीद कर दिया.
वो गिड़गिदा कर बोला, मेडम मेरी पूरी बात तो शुणिए.
मैने गार्ड से कहा, पोलीस को बुलाओ जल्दी.
इस से पहले की हम कुछ कर पाते वो मुझे और गार्ड को एक तरफ धकेल कर वाहा से भाग गया.
मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि आख़िर हो क्या रहा है.
Re: छोटी सी भूल
पोलीस आई और अपनी खाना पूर्ति कर के चली गयी. उस आदमी का कुछ पता नही चला.
कोई एक हफ्ते बाद मुझे एक लेटर आया, उस पर किसी भेजने वाले का नाम नही था.
मैने उसे खोल कर देखा तो पाया कि उस में एक सीडी है, और एक कागज का टुकड़ा है.
उस कागज पर लिखा था,
बहुत शॉंक है ना थप्पड़ मारने का तुम्हे, मैं तुम्हे बताता हूँ कि थप्पड़ कैसे मारा जाता है. कल शाम को ठीक 6 बजे मुझे होटेल सूर्या के बाहर मिलो. तुम नही आई तो तुम्हारी करतूत का म्म्स बना कर नेट पर डाल दूँगा, और टाइटल दूँगा, “असिस्टेंट मॅनेजर, दीप्ति, अपने कॅबिन में लंड चूस्ति हुई”.
ये पढ़ कर मेरे रोंगटे खड़े हो गये.
मैने तुरंत काँपते हाथो से सीडी को कंप्यूटर में डाला और सीडी को प्ले कर दिया.
उस में वो पूरा सीन था जब मैं अपनी कुर्सी पर बैठी हुई महेश को सक कर रही थी.
एक पल को मेरा सर घूम गया कि ये क्या हो रहा है. मेरा अंग, अंग किसी अंजान डर से काँप रहा था
मैं बहुत डर गयी थी कि अब क्या करूँ. उस आदमी ने मुझे अगले दिन शाम के 6 बजे बुलाया था. पता नही वो मुझ से क्या चाहता था ?
मैने दीप्ति को वही टोक दिया, रूको, कहीं तुमने मेरे जैसी ग़लती तो नही की ?
दीप्ति बोली, ग़लती ? ह्म्म… पहले तुम पूरी बात सुन लो फिर बताना कि मैं कहा ग़लत थी और कहा सही. मेरे लिए ये डिसाइड करना मुश्किल है, पर शायद तुम पूरी बात सुन कर मुझे कुछ बता पाओ. और , हां, ये सब बाते डिसकस करने का मतलब भी तभी है जब हम अपनी जींदगी से कुछ सीख पाएँ ताकि हम आगे कोई ग़लती ना करें.
मैने गहरी साँस ले कर कहा, आगे अगर कुछ बचा ही ना हो तो सीखने का भी क्या फ़ायडा ?
वो बोली, तू कैसी बात करती है ? अपनी कहानी क्या मैं तुम्हे यू ही शुना रही हूँ ? मैं तुम्हे ये बताना चाहती हूँ कि देखो मेरी जींदगी में भी क्या कुछ नही हुवा ? पर मैने हार नही मानी और आज भी हर हालात का सामना करने के लिए तैयार हूँ. हर दिन एक नया दिन होता है ऋतु और जींदगी का सफ़र चलता रहता है, आइ कॅन से ओन्ली वन थिंग, “नो बॉडी कॅन गो बॅक आंड स्टार्ट ए न्यू बिगिनिंग, बट एनिवन कॅन स्टार्ट टुडे आंड मेक ए न्यू एंडिंग”. सब कुछ तुम्हारे हाथ में है कि अब तुम क्या करोगी.
मैने कहा, ह्म्म…. शायद तुम ठीक कह रही हो, अछा आगे बताओ क्या हुवा ?
दीप्ति के शब्दो में :-------
तुझे तो पता ही है, ऐसे में डर लगना नॅचुरल है. मेरे हाथ पाँव काँप रहे थे, समझ नही आ रहा था की ये सब क्या हो रहा है ?
मैं यही सोच रही थी कि पता नही ये आदमी कौन है, और मुझ से क्या चाहता है ? क्या वो यहा सिर्फ़ मेरी वीडियो बनाने आया था ? कहीं इस सब में महेश का तो हाथ नही ?
महेश पर शक जाना लाज़मी था, आख़िर जिस दिन वो आया था, उसी दिन तो ये घटना हुई थी.
मैने तुरंत महेश को फोन किया, पर बार बार ट्राइ करने के बाद भी उसका नंबर नही मिला. उसका फोन स्विच्ड ऑफ आ रहा था.
अचानक मेरे मोबाइल पर एक फोन आया, नंबर मेरे कॉंटॅक्ट लिस्ट में नही था,
मैने कहा, हेलो
फोन से आवाज़ आई, हेलो दीप्ति मेडम, पहचाना मुझे ?
मैने पूछा, नही, कौन हो तुम ?
वो बोला, वही जिसने आपकी रंगरलियाँ रेकॉर्ड की थी.
मैने कहा, तुम… आख़िर तुम मुझ से क्या चाहते हो, और ये नंबर तुम्हे किस ने दिया ?
वो बोला, वो सब छोड़ो और मेरी बात ध्यान से सुनो, तुम्हे अभी मुझ से मिलने आना होगा.
मैने कहा, क्या ?
वो बोला, हां अभी आना होगा, कल मैं कहीं बिज़ी रहूँगा.
मैने उस से फिर पूछा, आख़िर तुम मुझ से चाहते क्या हो.
वो बोला, ये सब मिल कर बताउन्गा, तुम जल्दी सूर्या होटेल के बाहर पहुँचो मैं तुम्हारा इंतेज़ार कर रहा हूँ, अगर तुमने कोई चालाकी की या फिर, ना आने की हिम्मत की तो मैं तुरंत तुम्हारी करतूत दुनिया के सामने ले आउन्गा.
कोई एक हफ्ते बाद मुझे एक लेटर आया, उस पर किसी भेजने वाले का नाम नही था.
मैने उसे खोल कर देखा तो पाया कि उस में एक सीडी है, और एक कागज का टुकड़ा है.
उस कागज पर लिखा था,
बहुत शॉंक है ना थप्पड़ मारने का तुम्हे, मैं तुम्हे बताता हूँ कि थप्पड़ कैसे मारा जाता है. कल शाम को ठीक 6 बजे मुझे होटेल सूर्या के बाहर मिलो. तुम नही आई तो तुम्हारी करतूत का म्म्स बना कर नेट पर डाल दूँगा, और टाइटल दूँगा, “असिस्टेंट मॅनेजर, दीप्ति, अपने कॅबिन में लंड चूस्ति हुई”.
ये पढ़ कर मेरे रोंगटे खड़े हो गये.
मैने तुरंत काँपते हाथो से सीडी को कंप्यूटर में डाला और सीडी को प्ले कर दिया.
उस में वो पूरा सीन था जब मैं अपनी कुर्सी पर बैठी हुई महेश को सक कर रही थी.
एक पल को मेरा सर घूम गया कि ये क्या हो रहा है. मेरा अंग, अंग किसी अंजान डर से काँप रहा था
मैं बहुत डर गयी थी कि अब क्या करूँ. उस आदमी ने मुझे अगले दिन शाम के 6 बजे बुलाया था. पता नही वो मुझ से क्या चाहता था ?
मैने दीप्ति को वही टोक दिया, रूको, कहीं तुमने मेरे जैसी ग़लती तो नही की ?
दीप्ति बोली, ग़लती ? ह्म्म… पहले तुम पूरी बात सुन लो फिर बताना कि मैं कहा ग़लत थी और कहा सही. मेरे लिए ये डिसाइड करना मुश्किल है, पर शायद तुम पूरी बात सुन कर मुझे कुछ बता पाओ. और , हां, ये सब बाते डिसकस करने का मतलब भी तभी है जब हम अपनी जींदगी से कुछ सीख पाएँ ताकि हम आगे कोई ग़लती ना करें.
मैने गहरी साँस ले कर कहा, आगे अगर कुछ बचा ही ना हो तो सीखने का भी क्या फ़ायडा ?
वो बोली, तू कैसी बात करती है ? अपनी कहानी क्या मैं तुम्हे यू ही शुना रही हूँ ? मैं तुम्हे ये बताना चाहती हूँ कि देखो मेरी जींदगी में भी क्या कुछ नही हुवा ? पर मैने हार नही मानी और आज भी हर हालात का सामना करने के लिए तैयार हूँ. हर दिन एक नया दिन होता है ऋतु और जींदगी का सफ़र चलता रहता है, आइ कॅन से ओन्ली वन थिंग, “नो बॉडी कॅन गो बॅक आंड स्टार्ट ए न्यू बिगिनिंग, बट एनिवन कॅन स्टार्ट टुडे आंड मेक ए न्यू एंडिंग”. सब कुछ तुम्हारे हाथ में है कि अब तुम क्या करोगी.
मैने कहा, ह्म्म…. शायद तुम ठीक कह रही हो, अछा आगे बताओ क्या हुवा ?
दीप्ति के शब्दो में :-------
तुझे तो पता ही है, ऐसे में डर लगना नॅचुरल है. मेरे हाथ पाँव काँप रहे थे, समझ नही आ रहा था की ये सब क्या हो रहा है ?
मैं यही सोच रही थी कि पता नही ये आदमी कौन है, और मुझ से क्या चाहता है ? क्या वो यहा सिर्फ़ मेरी वीडियो बनाने आया था ? कहीं इस सब में महेश का तो हाथ नही ?
महेश पर शक जाना लाज़मी था, आख़िर जिस दिन वो आया था, उसी दिन तो ये घटना हुई थी.
मैने तुरंत महेश को फोन किया, पर बार बार ट्राइ करने के बाद भी उसका नंबर नही मिला. उसका फोन स्विच्ड ऑफ आ रहा था.
अचानक मेरे मोबाइल पर एक फोन आया, नंबर मेरे कॉंटॅक्ट लिस्ट में नही था,
मैने कहा, हेलो
फोन से आवाज़ आई, हेलो दीप्ति मेडम, पहचाना मुझे ?
मैने पूछा, नही, कौन हो तुम ?
वो बोला, वही जिसने आपकी रंगरलियाँ रेकॉर्ड की थी.
मैने कहा, तुम… आख़िर तुम मुझ से क्या चाहते हो, और ये नंबर तुम्हे किस ने दिया ?
वो बोला, वो सब छोड़ो और मेरी बात ध्यान से सुनो, तुम्हे अभी मुझ से मिलने आना होगा.
मैने कहा, क्या ?
वो बोला, हां अभी आना होगा, कल मैं कहीं बिज़ी रहूँगा.
मैने उस से फिर पूछा, आख़िर तुम मुझ से चाहते क्या हो.
वो बोला, ये सब मिल कर बताउन्गा, तुम जल्दी सूर्या होटेल के बाहर पहुँचो मैं तुम्हारा इंतेज़ार कर रहा हूँ, अगर तुमने कोई चालाकी की या फिर, ना आने की हिम्मत की तो मैं तुरंत तुम्हारी करतूत दुनिया के सामने ले आउन्गा.