गतान्क से आगे ......
“ऊफ़….! ठीक है कविता.. अर्रर…. मेरा मुतलब है कंचन. जैसा तुम कहो.”
उसके बाद तो पापा ने मम्मी को खूब जम के चोदा. मैं सोच रही थी कि पापा इस वक़्त मम्मी को सुचमुच अपनी बेटी समझ के चोद रहे हैं? अब तो मेरी भी शादी हो चुकी थी. मेरे मन में पापा के लिए वासना की आग भड़क उठी. अगले दिन पापा टूर पे चले गये लेकिन मेरे दिमाग़ में उस रात का नज़ारा घूम रहा था.
इसी बीच एक उन्होनी घटना हो गयी. पापा 15 दिन के टूर के बाद वापस आए थे और अगले ही दिन फिर उन्हें दो महीने के लिए टूर पे जाना था. मम्मी की तबीयत खराब चल रही थी. आज ही शाम को उन दोनो को पार्टी में जाना था. मम्मी तबीयत खराब होने के कारण नहीं जा सकी और पापा को अकेले ही पार्टी में जाना पड़ा. पार्टी में पापा कुच्छ ज़्यादा ही पी जाते थे. जिस दिन वो ज़्यादा पी जाते थे उसके अगले दिन उन्हें कुच्छ याद नहीं रहता था कि उन्होने शराब के नशे में क्या किया. रात को मम्मी बोली,
“कंचन बेटी, आज मैं तेरे कमरे में सो जाती हूँ. मेरी तबीयत ठीक नहीं है. सिर में भयंकर दर्द हो रहा है. तेरे पापा रात को देर से आएँगे तो मुझे डिस्टर्ब होगा. मैं नींद की गोली खा कर सोना चाहती हूँ. आज तू मेरे कमरे में सो जा. पापा आएँगे तो बता देना मेरी तबीयत ठीक नहीं थी इसलिए मैं नींद की गोली खा के तेरे कमरे में सो रही हूँ.”
“ठीक है मम्मी, आप मेरे कमरे में सो जाओ. मैं पापा को बता दूँगी.”
मैने मम्मी को अपने बिस्तेर पर लिटा दिया और उनके सिर पे बाम लगा के उन्हें नींद की गोली दे के सुला दिया. रात को अचानक भयंकर तूफान आया. बहुत तेज़ बारिश होने लगी. हवा भी सायँ सायँ करके चल रही थी. तभी पूरे मोहल्ले की लाइट चली गयी. फोन करके पूछा तो पता लगा कि बिजली के कुच्छ खंबे उखड़ गये हैं और लाइट तो अब कल ही आएगी. घर में घुप अंधेरा था. मैं मम्मी पापा के कमरे में गयी और एक कॅंडल जला दी. मुझे मालूम था कि आज मम्मी मेरे कमरे में क्यों सोई थी. पापा आज 15 दिन के बाद वापस आए थे. पापा के लिए 15 दिन तो बहुत ज़्यादा टाइम था. वो तो मम्मी के बिना एक दिन भी नहीं रह सकते थे. जब तक वो रोज़ एक बार मम्मी को चोद नहीं लेते उनकी वासना की भूख शांत नहीं होती थी. हालाँकि मम्मी भी उनके बिना नहीं रह सकती थी. लेकिन आज मम्मी की तबीयत बहुत खराब थी. मम्मी को मालूम था कि पापा 15 दिन के बाद आए हैं और कल फिर दो महीने के लिए जा रहे हैं. चोदने के लिए उतावले हो रहे होंगे. ऊपर से पार्टी से शराब पी कर आएँगे. शराब आदमी की वासना को और भी भड़का देती है. इसीलिए मम्मी ने आज मुझे अपने कमरे में सोने को कहा था.
मैं पापा मम्मी की चुदाइ का खेल बचपन में कई बार देख चकी थी. बहुत ही प्यार से और अच्छी तरह चोदते थे मम्मी को. मम्मी भी उनका पूरा साथ देती थी. मम्मी को भी चुदाई का बहुत शौक था और पापा की प्यास बुझाने में कोई कसर नहीं छ्चोड़ती थी. और पापा का लंड ! बाप रे ! शायद दुनिया का सबसे मोटा लंड था. मम्मी की चूत की क्या हालत कर रखी थी. चुदाई के दौरान जब पापा मम्मी की चूत में से लंड बाहर निकालते थे तो मम्मी की चूत देखते ही बनती थी. फैली हुए टाँगों के बीच में जैसे कोई कुआ बन गया हो. पापा के मोटे लंड ने मम्मी की चूत को चोद चोद कर सुचमुच ही कुआ बना दिया था. इतना मोटा लंड तो बहुत नसीब वाली औरतों को ही मिलता है. लेकिन इतने मोटे लंड से चुद कर औरत किसी और मरद से चुदवाने के काबिल भी नहीं रह जाती है. पापा का मोटा लंड बचपन से ही मेरी आँखों के सामने घूमता रहता था. लेकिन अभी 15 दिन पहले जो मैने देखा और सुना था, उसके बाद से तो मेरे दिल में पापा के लिए वासना जाग गयी थी. मम्मी के कमरे में आ के मेरे दिमाग़ में केयी तरह के विचार आ रहे थे. पापा के उस भयंकर लंड की याद करके मेरी चूत गीली होने लगी थी. वक़्त भी पूरा साथ दे रहा था. मम्मी नींद की गोली खा के मेरे कमरे में सो रही थी. पापा शराब के नशे में आएँगे और चोदने के लिए बेताब हो रहे होंगे. सुबह तक पापा को कुच्छ याद नहीं रहेगा. बाहर भयंकर तूफान आ रहा था. घर में घुप अंधेरा था. अंधेरे में और नशे के कारण पापा को पता भी नहीं चलेगा कि मैं हूँ या मम्मी. मम्मी और मेरा डील डोल एक सा ही था. मम्मी अपनी नाइटी पहन के सो रही थी नहीं तो मैं उनकी नाइटी पहन लेती. अक्सर मम्मी पेटिकोट और ब्लाउस में भी सोती थी. मैने पेटिकोट और ब्लाउस पहनना ही ठीक समझा. दिमाग़ कह रहा था कि ये सब ठीक नहीं है, पाप है. लेकिन दिल पे वासना का भूत सवार था. मम्मी पापा की चुदाई और पापा के मोटे लंड की याद आते ही मेरी चूत की आग भड़क उठती. मैने सोच लिया था कि आज के बाद फिर ऐसा मौका हाथ नहीं आएगा. मैं कॅंडल जला के मम्मी के बिस्तेर पे लाइट गयी और पापा के आने का इंतज़ार करने लगी. लेटे लेटे पुरानी बचपन की हसीन यादों में खो गयी……… …………….
कंचन -बेटी बहन से बहू तक का सफ़र
दोस्तो यहाँ से कहानी थोड़ी से फ्लेश बैक मे जाएगी
कंचन लेटे लेटे पुरानी बचपन की हसीन यादों में खो गयी……… …………….
पापा के मन में क्या है ये तो मुझे बचपन में ही पता लग गया था.
कंचन बचपन से ही एक बहुत चंचल, शोख और हँसमुख स्वाभाव की लड़की थी. कंचन के पिता विजय शर्मा एक बड़ी कंपनी में ऑफीसर थे. पड़ोस के लोग उन्हें शर्मा जी के नाम से बुलाते थे. कंचन की मा कविता एक बहुत सुन्दर सुडौल और कसे हुए बदन की औरत थी. इस उमर में भी उसकी जवानी कम नहीं हुई थी. जवानी तो कम हुई ही नहीं थी बल्कि साथ में जवानी की आग भी कम नहीं हुई थी. शर्मा जी अपनी बीवी के दीवाने थे. वो अपनी बीवी के मांसल बदन और ख़ास कर उसके चौड़े फैले हुए चूतेरो पे जान छिडकते थे. कविता भी अपने पति की दीवानी थी. वो भी बहुत कामुक स्वाभाव की औरत थी. लेकिन कभी उसने अपने पति के इलावा दूसरे मरद की ओर नहीं देखा था. शर्मा जी लंबे तगड़े इंसान थे और कविता को उन्होने तृप्त कर रखा था. कविता अपने आप को बहुत भाग्यशाली समझती थी जिसका कारण था उसके पति यानी शर्मा जी का लंड. शरमा जी का लंड करीब 9 इंच का था. उनके लंड को बहुत बड़ा तो नहीं कहा जा सकता लेकिन आम आदमी के लंड से तो काफ़ी बड़ा था. लेकिन उनके लंड की ख़ासियत उसकी लंबाई नहीं बल्कि मोटाई थी. बहुत ही मोटा था. शायद पूरे शहर में इतना मोटा लंड किसी का ना हो. कविता को तो दोनो हाथों का इस्तेमाल करना पड़ता था. शर्मा जी को चोदने का बहुत शौक था. शादी के बाद तो वो कविता को पूरी पूरी रात पाँच छेह बार चोदते थे और दिन में भी कम से कम दो बार तो चोद ही लेते थे. जैसे जैसे बच्चे बड़े होने लगे दिन में चोदना बंद हो गया. बढ़ती उमर के साथ रात को भी चोदना थोड़ा कम हो गया लेकिन अब भी रोज़ रात को एक बार तो चोद ही लेते थे.
शर्मा जी के दो बच्चे थे कंचन और विकी. कंचन विकी से दो साल बड़ी थी. कंचन बचपन से ही बहुत चंचल, शोख और हँसमुख मिज़ाज़ की थी. शर्मा जी एक आछे पिता थे. कंचन अपने पापा की लाडली थी. दोनो बाप बेटी में बहुत पटती थी. शर्मा जी को कंचन का चुलबुलापन बहुत अच्छा लगता था. कंचन अपने पापा के साथ कोई ना कोई शरारत करती ही रहती थी. शर्मा जी कंचन को अक्सर परिओ की शहज़ादी, गुड़िया, राजकुमारी और बेबी डॉल आदि नामों से बुलाते थे और कंचन भी पापा को कभी पापू, पंपकिन आदि नामों से पुकारा करती थी. देखते ही देखते शर्मा जी के बच्चे बड़े हो गये. कंचन अब 9थ में थी छातिया उभरने लगी थी. बदन भरने लगा था. लेकिन शर्मा जी के लिए तो वो अब भी बच्ची थी. कंचन को स्पोर्ट्स का बहुत शौक था. वो अपने स्कूल की लड़कियो की कबड्डी और बॅस्केटबॉल टीम की कॅप्टन थी. शर्मा जी ने बिटिया के लिए अपने घर के लॉन में बॅस्केटबॉल का पोल लगा दिया था जहाँ कंचन प्रॅक्टीस किया करती थी.
एक दिन की बात है. कंचन अपनी पाँच सहेलिओं के साथ स्कूल से आई. सभी लड़कियाँ स्कूल ड्रेस में ही थी यानी स्कर्ट और ब्लाउस में और बहुत एग्ज़ाइटेड थी.
कंचन आते ही शर्मा जी से बोली,
“पापा हमारे स्कूल का कल कबड्डी का मॅच है. हम यहाँ प्रॅक्टीस करना चाहती हैं.”
“ ज़रूर करो बेटी. तुम लोगों को मॅच ज़रूर जीतना चाहिए.”
कंचन और उसकी सहेलियाँ लॉन में कबड्डी की प्रॅक्टीस करने लगी. शर्मा जी अंडर ऑफीस का कुच्छ काम करने लगे. इतने में कंचन भागी भागी आई और बोली,
“पापा आपने एक बार बताया था कि आप भी अपने कॉलेज की कबड्डी की टीम में थे.”
“हाँ बेटी, हमने तो बहुत कबड्डी खेली है.”
“तो फिर आइए ना.. हमे भी कुच्छ कबड्डी के गुर बताइए.”
“बेटी अभी नहीं हमे बहुत काम है.”
“पापा प्लीईईआसए…..मैं अपनी सहेलिओं को बोल के आई हूँ कि आप अपने ज़माने के बहुत आछे खिलाड़ी थे. चलिए ना….. अब तो मेरी इज़्ज़त का सवाल है.”
शर्मा जी अपनी लाडली बिटिया को मना नहीं कर सके.
“ओफ बेटी, तुम तो बहुत ज़िद्दी हो. चलो.”
“ये हुई ना बात ! पापू आप बहुत अच्छे हैं.” ये कहते हुए कंचन ने शर्मा जी के गाल को चूम लिया.
शर्मा जी बाहर लॉन में आए और बोले,
“बोलो लड़कियो क्या प्राब्लम है?”
“अंकल, हमारी सबसे बड़ी प्राब्लम ये है कि जब हम सब मिल के दूसरी टीम के खिलाड़ी को पकड़ लेते हैं तो वो अक्सर लाइन पे हाथ लगाने में कामयाब हो जाती है. ऐसे में हमारी टीम की तीन चार लड़कियाँ आउट हो जाती हैं.” कंचन की सहेली नीलम बोली.
“ हां बेटी, ये सबसे ख़तरनाक साबित हो सकता है. एक ही बार में पूरी टीम आउट हो सकती है.”
“तो इसका क्या इलाज है अंकल ?” सुनीता ने पूचछा.
“ मेरे पापू को सब पता है. बहुत अच्छे खिलाड़ी रह चुके हैं.” कंचन बड़े गर्व से अपने पापा को देखते हुए बोली. शर्मा जी बोले,
“देखो बच्चो, जब पहले दूसरी टीम की लड़की को खूब अंडर अपने इलाक़े में आने दो. फिर उसे दो लड़कियाँ घेर लो और पहले ज़मीन पे गिरा दो. ज़मीन पे गिरते ही दो लड़कियाँ उसकी टाँगें पकड़ लें, दो लड़कियाँ उसके ऊपर चढ़ के उसे दबा के रखें और एक लड़की उसके हाथों को लाइन से टच ना होने दे. इस तरह अगर प्लान करोगी तो हमेशा जीतोगि. अब तुम सब लोग इसकी प्रॅक्टीस करो.”
“अरे लेकिन हम तो पाँच ही हैं. हम पाँच तो पकड़ने का काम करेंगी. पापा आप प्लीज़ दूसरी टीम की तरफ से एक प्रॅक्टीस करा दो.” कंचन ज़िद करती हुई बोली.
“ठीक है चलो.”
कंचन लेटे लेटे पुरानी बचपन की हसीन यादों में खो गयी……… …………….
पापा के मन में क्या है ये तो मुझे बचपन में ही पता लग गया था.
कंचन बचपन से ही एक बहुत चंचल, शोख और हँसमुख स्वाभाव की लड़की थी. कंचन के पिता विजय शर्मा एक बड़ी कंपनी में ऑफीसर थे. पड़ोस के लोग उन्हें शर्मा जी के नाम से बुलाते थे. कंचन की मा कविता एक बहुत सुन्दर सुडौल और कसे हुए बदन की औरत थी. इस उमर में भी उसकी जवानी कम नहीं हुई थी. जवानी तो कम हुई ही नहीं थी बल्कि साथ में जवानी की आग भी कम नहीं हुई थी. शर्मा जी अपनी बीवी के दीवाने थे. वो अपनी बीवी के मांसल बदन और ख़ास कर उसके चौड़े फैले हुए चूतेरो पे जान छिडकते थे. कविता भी अपने पति की दीवानी थी. वो भी बहुत कामुक स्वाभाव की औरत थी. लेकिन कभी उसने अपने पति के इलावा दूसरे मरद की ओर नहीं देखा था. शर्मा जी लंबे तगड़े इंसान थे और कविता को उन्होने तृप्त कर रखा था. कविता अपने आप को बहुत भाग्यशाली समझती थी जिसका कारण था उसके पति यानी शर्मा जी का लंड. शरमा जी का लंड करीब 9 इंच का था. उनके लंड को बहुत बड़ा तो नहीं कहा जा सकता लेकिन आम आदमी के लंड से तो काफ़ी बड़ा था. लेकिन उनके लंड की ख़ासियत उसकी लंबाई नहीं बल्कि मोटाई थी. बहुत ही मोटा था. शायद पूरे शहर में इतना मोटा लंड किसी का ना हो. कविता को तो दोनो हाथों का इस्तेमाल करना पड़ता था. शर्मा जी को चोदने का बहुत शौक था. शादी के बाद तो वो कविता को पूरी पूरी रात पाँच छेह बार चोदते थे और दिन में भी कम से कम दो बार तो चोद ही लेते थे. जैसे जैसे बच्चे बड़े होने लगे दिन में चोदना बंद हो गया. बढ़ती उमर के साथ रात को भी चोदना थोड़ा कम हो गया लेकिन अब भी रोज़ रात को एक बार तो चोद ही लेते थे.
शर्मा जी के दो बच्चे थे कंचन और विकी. कंचन विकी से दो साल बड़ी थी. कंचन बचपन से ही बहुत चंचल, शोख और हँसमुख मिज़ाज़ की थी. शर्मा जी एक आछे पिता थे. कंचन अपने पापा की लाडली थी. दोनो बाप बेटी में बहुत पटती थी. शर्मा जी को कंचन का चुलबुलापन बहुत अच्छा लगता था. कंचन अपने पापा के साथ कोई ना कोई शरारत करती ही रहती थी. शर्मा जी कंचन को अक्सर परिओ की शहज़ादी, गुड़िया, राजकुमारी और बेबी डॉल आदि नामों से बुलाते थे और कंचन भी पापा को कभी पापू, पंपकिन आदि नामों से पुकारा करती थी. देखते ही देखते शर्मा जी के बच्चे बड़े हो गये. कंचन अब 9थ में थी छातिया उभरने लगी थी. बदन भरने लगा था. लेकिन शर्मा जी के लिए तो वो अब भी बच्ची थी. कंचन को स्पोर्ट्स का बहुत शौक था. वो अपने स्कूल की लड़कियो की कबड्डी और बॅस्केटबॉल टीम की कॅप्टन थी. शर्मा जी ने बिटिया के लिए अपने घर के लॉन में बॅस्केटबॉल का पोल लगा दिया था जहाँ कंचन प्रॅक्टीस किया करती थी.
एक दिन की बात है. कंचन अपनी पाँच सहेलिओं के साथ स्कूल से आई. सभी लड़कियाँ स्कूल ड्रेस में ही थी यानी स्कर्ट और ब्लाउस में और बहुत एग्ज़ाइटेड थी.
कंचन आते ही शर्मा जी से बोली,
“पापा हमारे स्कूल का कल कबड्डी का मॅच है. हम यहाँ प्रॅक्टीस करना चाहती हैं.”
“ ज़रूर करो बेटी. तुम लोगों को मॅच ज़रूर जीतना चाहिए.”
कंचन और उसकी सहेलियाँ लॉन में कबड्डी की प्रॅक्टीस करने लगी. शर्मा जी अंडर ऑफीस का कुच्छ काम करने लगे. इतने में कंचन भागी भागी आई और बोली,
“पापा आपने एक बार बताया था कि आप भी अपने कॉलेज की कबड्डी की टीम में थे.”
“हाँ बेटी, हमने तो बहुत कबड्डी खेली है.”
“तो फिर आइए ना.. हमे भी कुच्छ कबड्डी के गुर बताइए.”
“बेटी अभी नहीं हमे बहुत काम है.”
“पापा प्लीईईआसए…..मैं अपनी सहेलिओं को बोल के आई हूँ कि आप अपने ज़माने के बहुत आछे खिलाड़ी थे. चलिए ना….. अब तो मेरी इज़्ज़त का सवाल है.”
शर्मा जी अपनी लाडली बिटिया को मना नहीं कर सके.
“ओफ बेटी, तुम तो बहुत ज़िद्दी हो. चलो.”
“ये हुई ना बात ! पापू आप बहुत अच्छे हैं.” ये कहते हुए कंचन ने शर्मा जी के गाल को चूम लिया.
शर्मा जी बाहर लॉन में आए और बोले,
“बोलो लड़कियो क्या प्राब्लम है?”
“अंकल, हमारी सबसे बड़ी प्राब्लम ये है कि जब हम सब मिल के दूसरी टीम के खिलाड़ी को पकड़ लेते हैं तो वो अक्सर लाइन पे हाथ लगाने में कामयाब हो जाती है. ऐसे में हमारी टीम की तीन चार लड़कियाँ आउट हो जाती हैं.” कंचन की सहेली नीलम बोली.
“ हां बेटी, ये सबसे ख़तरनाक साबित हो सकता है. एक ही बार में पूरी टीम आउट हो सकती है.”
“तो इसका क्या इलाज है अंकल ?” सुनीता ने पूचछा.
“ मेरे पापू को सब पता है. बहुत अच्छे खिलाड़ी रह चुके हैं.” कंचन बड़े गर्व से अपने पापा को देखते हुए बोली. शर्मा जी बोले,
“देखो बच्चो, जब पहले दूसरी टीम की लड़की को खूब अंडर अपने इलाक़े में आने दो. फिर उसे दो लड़कियाँ घेर लो और पहले ज़मीन पे गिरा दो. ज़मीन पे गिरते ही दो लड़कियाँ उसकी टाँगें पकड़ लें, दो लड़कियाँ उसके ऊपर चढ़ के उसे दबा के रखें और एक लड़की उसके हाथों को लाइन से टच ना होने दे. इस तरह अगर प्लान करोगी तो हमेशा जीतोगि. अब तुम सब लोग इसकी प्रॅक्टीस करो.”
“अरे लेकिन हम तो पाँच ही हैं. हम पाँच तो पकड़ने का काम करेंगी. पापा आप प्लीज़ दूसरी टीम की तरफ से एक प्रॅक्टीस करा दो.” कंचन ज़िद करती हुई बोली.
“ठीक है चलो.”
पाँचों लड़कियाँ एक तरफ हो गयीं और शर्मा जी कबड्डी कबड्डी कबड्डी बोलते हुए उनके पाले में जाने लगे. जैसा शर्मा जी ने बताया था वैसे ही दो लड़कियो ने शर्मा जी को घेर के उनकी टाँगों को पकड़ लिया. अब शर्मा जी तो लंबे तगड़े आदमी थे. उन्हें गिराना लड़कियो के बस का नहीं था, इसलिए वो खुद ही जान के ज़मीन पे लेट गये. दो लड़कियाँ कूद के उनके ऊपर चढ़ गयी. लेकिन इससे पहले कि उनके हाथ को कोई पकड़े शर्मा जी ने लाइन को हाथ लगा दिया. सब लड़कियाँ आउट हो गयी. शर्मा जी बोले,
“देखा तुम सब लोग आउट हो गयी. तुमको प्रॅक्टीस की बहुत ज़रूरत है. अब मैं चलता हूँ तुम लोग प्रॅक्टीस करो.”
“नहीं नहीं पापा, एक बार और. इस बार आपको नहीं बच के जाने देंगे.” कंचन बोली.
“चलो ठीक है. लेकिन ये आख़िरी बार है.”
कंचन अपनी सहेलिओं को एक साइड में ले गयी और उन सबने मिल के प्लान बनाया कि इस बार कैसे शर्मा जी को पकड़ेंगे. काफ़ी देर हकुसूर पुसुर करने के बाद लड़कियाँ फिर मैदान में आ गयी. एक बार फिर शर्मा जी कबड्डी कबड्डी…करते हुए उनके पाले में आगे बढ़े. फिर से दो लड़कियो ने शर्मा जी को घेर के पकड़ लिया. शर्मा जी एक बार फिर जान के ज़मीन पे गिर परे और पीठ के बल चित लेट गये. दो लड़कियाँ उनके पेट पे चढ़ बैठी. इस बार जैसे ही शर्मा जी ने लाइन टच करने के लिए हाथ आगे किया, कंचन ने उनका हाथ पकड़ लिया. शर्मा जी ने हाथ छुड़ाने की कोशिश की. इतने में उनके हाथ को ज़ोर से दबाने के लिए कंचन कूद के उनके ऊपर आ गयी और उनके सिर को अपनी टाँगों के बीच में दबा कर उनके हाथों को कस के पकड़ लिया. छ्चीना झपटी में अब शर्मा जी का सिर कंचन की टाँगों के बीच फँसा हुआ था और वो उनके मुँह पे बैठी हुई थी. कंचन की स्कर्ट के नीचे शर्मा जी का मुँह च्छूप गया था और कंचन की पॅंटी में कसी हुई चूत ठीक शर्मा जी के होंठों पे थी. शर्मा जी बुरी तरह हड़बड़ा गये. लड़कियाँ काफ़ी उत्तेजित थी कि इस बार उन्होने शर्मा जी को पकड़ लिया. कंचन की चूत का दबाव शर्मा जी के मुँह पे बढ़ता जा रहा था. ..शर्मा जी का दम घुटने लगा तो उन्हें साँस लेने के लिए मुँह खोलना पड़ा. मुँह खुलते ही बेटी की पॅंटी में कसी हुई चूत उनके खुले हुए मुँह में समा गयी. हालाँकि बिटिया की चूत पॅंटी में थी, फिर भी शर्मा जी उसकी चूत की दोनो फांकों का सॉफ एहसास हो रहा था. क्यूंकी शर्मा जी का साँस टूट चुक्का था इसलिए वो हार गये थे. लड़कियो ने उन्हें छोड़ दिया. सब लड़कियाँ बहुत खुश थी. कंचन भी खुशी से कूद रही थी,
“पापा हार गये, पापा हार गये.”
उधर शर्मा जी का बुरा हाल था. उन्हें तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उनकी 18 साल की बिटिया की चूत अभी अभी उनके मुँह में थी. वो बुरी तरह बोखला गये थे. लड़कियो ने उन्हें एक बार फिर प्रॅक्टीस के लिए कहा लेकिन उन्होने सॉफ इनकार कर दिया.
“अंकल एक प्रॅक्टीस और हो जाए. देखिए इस बार हमने आपको हरा दिया.” निशा बोली.
“नहीं बेटी अब तो तुम लोग सीख गये हो खुद प्रॅक्टीस कर लो.”
“अच्छा तो पापा अगर आपको खेलना नहीं है तो कम से कम यहाँ बैठ के हमारी प्रॅक्टीस तो देख लीजिए.”
शर्मा जी मना ना कर सके और लॉन में चेर पे बैठ कर लड़कियो को प्रॅक्टीस करते हुए देखने लगे. शर्मा जी को अब अजीब सा लग रहा था. पहली बार शर्मा जी का ध्यान लड़कियो की स्कर्ट के नीचे उनकी नंगी टाँगों पर गया. शर्मा जी सोचने लगे कितनी गोरी गोरी मांसल टाँगें हैं इन लड़कियो की. और अभी तो इनकी उम्र इरफ़ 18 साल ही है. काश आज उनके मुँह पे उनकी बेटी की जगह उसकी किसी सहेली की चूत होती तो उन्हें इतना बुरा नहीं महसूस होता. दूसरे ही पल शर्मा जी अपने आप को कोसने लगे. ये लड़कियाँ उनकी बेटी की सहेलियाँ हैं. उनकी बेटी जैसी ही हैं. ये कैसे विचार आ रहे हैं दिमाग़ में? उधर लड़कियो ने फिर प्रॅक्टीस शुरू कर दी. एक लड़की को गिरा के बाकी चारों लड़कियाँ शर्मा जी के बताए हुए तरीके से उस पे चढ़ बैठी. ........अभी शर्मा जी अपने आप को कोस ही रहे थे कि उन्होने देखा, निशा जिस को बाकी लड़कियो ने दबोच रखा था अपनी टाँगें छुड़ाने के लिए छटपटा रही थी. उसकी स्कर्ट के नीचे से उसकी सफेद रंग की पॅंटी नज़र आ रही थी. शर्मा जी निशा की टाँगों के बीच से नज़र नहीं हटा पाए. इतने में छीना झपटी और तेज़ हो गयी. इस बार का नज़ारा देख कर शर्मा जी का दिल धक धक करने लगा. कंचन की स्कर्ट उसकी कमर के ऊपर चढ़ गयी थी. सफेद पॅंटी में कसे हुए बेटी के चूतेर शर्मा जी की ओर थे. खेल की छ्चीना झपटी के कारण एक तरफ से पॅंटी उसके चूतरो के बीच सिमट गयी थी और दाहिना चूतेर नंगा हो गया था. पॅंटी भी मिट्टी लगने के कारण थोड़ी मैली हो गयी थी. शर्मा जी की आँखें फटी की फटी रह गयीं. अब तो शर्मा जी के लंड में भी हरकत होने लगी. उन्हें पहली बार महसूस हुआ कि उनकी गुड़िया अब बच्ची नहीं रही. बिटिया के चूतेर कितने भारी और फैल गये थे.
क्रमशः.........
“देखा तुम सब लोग आउट हो गयी. तुमको प्रॅक्टीस की बहुत ज़रूरत है. अब मैं चलता हूँ तुम लोग प्रॅक्टीस करो.”
“नहीं नहीं पापा, एक बार और. इस बार आपको नहीं बच के जाने देंगे.” कंचन बोली.
“चलो ठीक है. लेकिन ये आख़िरी बार है.”
कंचन अपनी सहेलिओं को एक साइड में ले गयी और उन सबने मिल के प्लान बनाया कि इस बार कैसे शर्मा जी को पकड़ेंगे. काफ़ी देर हकुसूर पुसुर करने के बाद लड़कियाँ फिर मैदान में आ गयी. एक बार फिर शर्मा जी कबड्डी कबड्डी…करते हुए उनके पाले में आगे बढ़े. फिर से दो लड़कियो ने शर्मा जी को घेर के पकड़ लिया. शर्मा जी एक बार फिर जान के ज़मीन पे गिर परे और पीठ के बल चित लेट गये. दो लड़कियाँ उनके पेट पे चढ़ बैठी. इस बार जैसे ही शर्मा जी ने लाइन टच करने के लिए हाथ आगे किया, कंचन ने उनका हाथ पकड़ लिया. शर्मा जी ने हाथ छुड़ाने की कोशिश की. इतने में उनके हाथ को ज़ोर से दबाने के लिए कंचन कूद के उनके ऊपर आ गयी और उनके सिर को अपनी टाँगों के बीच में दबा कर उनके हाथों को कस के पकड़ लिया. छ्चीना झपटी में अब शर्मा जी का सिर कंचन की टाँगों के बीच फँसा हुआ था और वो उनके मुँह पे बैठी हुई थी. कंचन की स्कर्ट के नीचे शर्मा जी का मुँह च्छूप गया था और कंचन की पॅंटी में कसी हुई चूत ठीक शर्मा जी के होंठों पे थी. शर्मा जी बुरी तरह हड़बड़ा गये. लड़कियाँ काफ़ी उत्तेजित थी कि इस बार उन्होने शर्मा जी को पकड़ लिया. कंचन की चूत का दबाव शर्मा जी के मुँह पे बढ़ता जा रहा था. ..शर्मा जी का दम घुटने लगा तो उन्हें साँस लेने के लिए मुँह खोलना पड़ा. मुँह खुलते ही बेटी की पॅंटी में कसी हुई चूत उनके खुले हुए मुँह में समा गयी. हालाँकि बिटिया की चूत पॅंटी में थी, फिर भी शर्मा जी उसकी चूत की दोनो फांकों का सॉफ एहसास हो रहा था. क्यूंकी शर्मा जी का साँस टूट चुक्का था इसलिए वो हार गये थे. लड़कियो ने उन्हें छोड़ दिया. सब लड़कियाँ बहुत खुश थी. कंचन भी खुशी से कूद रही थी,
“पापा हार गये, पापा हार गये.”
उधर शर्मा जी का बुरा हाल था. उन्हें तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उनकी 18 साल की बिटिया की चूत अभी अभी उनके मुँह में थी. वो बुरी तरह बोखला गये थे. लड़कियो ने उन्हें एक बार फिर प्रॅक्टीस के लिए कहा लेकिन उन्होने सॉफ इनकार कर दिया.
“अंकल एक प्रॅक्टीस और हो जाए. देखिए इस बार हमने आपको हरा दिया.” निशा बोली.
“नहीं बेटी अब तो तुम लोग सीख गये हो खुद प्रॅक्टीस कर लो.”
“अच्छा तो पापा अगर आपको खेलना नहीं है तो कम से कम यहाँ बैठ के हमारी प्रॅक्टीस तो देख लीजिए.”
शर्मा जी मना ना कर सके और लॉन में चेर पे बैठ कर लड़कियो को प्रॅक्टीस करते हुए देखने लगे. शर्मा जी को अब अजीब सा लग रहा था. पहली बार शर्मा जी का ध्यान लड़कियो की स्कर्ट के नीचे उनकी नंगी टाँगों पर गया. शर्मा जी सोचने लगे कितनी गोरी गोरी मांसल टाँगें हैं इन लड़कियो की. और अभी तो इनकी उम्र इरफ़ 18 साल ही है. काश आज उनके मुँह पे उनकी बेटी की जगह उसकी किसी सहेली की चूत होती तो उन्हें इतना बुरा नहीं महसूस होता. दूसरे ही पल शर्मा जी अपने आप को कोसने लगे. ये लड़कियाँ उनकी बेटी की सहेलियाँ हैं. उनकी बेटी जैसी ही हैं. ये कैसे विचार आ रहे हैं दिमाग़ में? उधर लड़कियो ने फिर प्रॅक्टीस शुरू कर दी. एक लड़की को गिरा के बाकी चारों लड़कियाँ शर्मा जी के बताए हुए तरीके से उस पे चढ़ बैठी. ........अभी शर्मा जी अपने आप को कोस ही रहे थे कि उन्होने देखा, निशा जिस को बाकी लड़कियो ने दबोच रखा था अपनी टाँगें छुड़ाने के लिए छटपटा रही थी. उसकी स्कर्ट के नीचे से उसकी सफेद रंग की पॅंटी नज़र आ रही थी. शर्मा जी निशा की टाँगों के बीच से नज़र नहीं हटा पाए. इतने में छीना झपटी और तेज़ हो गयी. इस बार का नज़ारा देख कर शर्मा जी का दिल धक धक करने लगा. कंचन की स्कर्ट उसकी कमर के ऊपर चढ़ गयी थी. सफेद पॅंटी में कसे हुए बेटी के चूतेर शर्मा जी की ओर थे. खेल की छ्चीना झपटी के कारण एक तरफ से पॅंटी उसके चूतरो के बीच सिमट गयी थी और दाहिना चूतेर नंगा हो गया था. पॅंटी भी मिट्टी लगने के कारण थोड़ी मैली हो गयी थी. शर्मा जी की आँखें फटी की फटी रह गयीं. अब तो शर्मा जी के लंड में भी हरकत होने लगी. उन्हें पहली बार महसूस हुआ कि उनकी गुड़िया अब बच्ची नहीं रही. बिटिया के चूतेर कितने भारी और फैल गये थे.
क्रमशः.........