मैं उसके पास बैठ गया। और उसकी जाँघों पर हाथ फेरने लगा। वाह.. क्या मस्त मुलायम संग-ए-मरमर सी नाज़ुक जांघें थी। मैंने धीरे से पेंटी के ऊपर से ही उसकी चूत पर अंगुली फिराई। वो तो पहले से ही गीली थी। आह … मेरी अंगुली भी भीग सी गई। मैंने उस अंगुली को पहले अपनी नाक से सूंघा। वाह क्या मादक महक थी। कच्चे नारियल जैसी जवान चूत के रस की मादक महक तो मुझे अन्दर तक मस्त कर गई। मैंने अंगुली को अपने मुंह में ले लिया। कुछ खट्टा और नमकीन सा लिजलिजा सा वो रस तो बड़ा ही मजेदार था।
मैं अपने आप को कैसे रोक पाता। मैंने एक चुम्बन उसकी जाँघों पर ले ही लिया। वो थोडा सा कुनमुनाई पर जगी नहीं। अब मैंने उसके उरोज देखे। वह क्या गोल गोल अमरुद थे। मैंने कई बार उसे नहाते हुए नंगा देखा था। पहले तो इनका आकार नींबू जितना ही था पर अब तो संतरे नहीं तो अमरुद तो जरूर बन गए हैं। गोरे गोरे गाल चाँद की रोशनी में चमक रहे थे। मैंने एक चुम्बन उन पर भी ले लिया। मेरे होंठों का स्पर्श पाते ही कनिका जग गई और अपनी आँखों को मलते हुए उठ बैठी।
“क्या कर रहे हो भाई?” उसने उनिन्दी आँखों से मुझे घूरा।
“वो. वो… मैं तो प्यार कर रहा था ?”
“पर ऐसे कोई रात को प्यार करता है क्या ? “
“प्यार तो रात को ही किया जाता है ?” मैंने हिम्मत करके कह ही दिया।
उसके समझ में पता नहीं आया या नहीं। फिर मैंने कहा,”कनिका एक मजेदार खेल देखोगी ?”
“क्या ?” उसने हैरानी से मेरी और देखा।
“आओ मेरे साथ !” मैंने उसका बाजू पकड़ा और सीढ़ियों से नीचे ले आया और हम बिना कोई आवाज किये उसी खिड़की के पास आ गए। अन्दर का दृश्य देख कर तो कनिका की आँखें फटी की फटी ही रह गई। अगर मैंने जल्दी से उसका मुंह अपनी हथेली से नहीं ढक दिया होता तो उसकी चीख ही निकल जाती। मैंने उसे इशारे से चुप रहने को कहा। वो हैरान हुई अन्दर देखने लगी।
मामी घोड़ी बनी फर्श पर खड़ी थी और अपने हाथ बेड पर रखे थे। उनका सिर बेड पर था और नितम्ब हवा में थे। मामा उसके पीछे उसकी कमर पकड़ कर धक्के लगा रहे थे। उन 8 इंच का लंड मामी की गांड में ऐसे जा रहा था जैसे कोई पिस्टन अन्दर बाहर आ जा रहा हो। मामा उनके नितम्बों पर थपकी लगा रहे थे। जैसे ही वो थपकी लगाते तो नितम्ब हिलने लगते और उसके साथ ही मामी की सीत्कार निकलती,”हाईई और जोर से मेरे राजा और जोर से आज सारी कसर निकाल लो और जोर से मारो मेरी गांड बहुत प्यासी है ये हाईई …”
“ले मेरी रानी और जोर से ले … या … सऽ विऽ ता… आ.. आ ……” मामा के धक्के तेज होने लगे और वो भी जोर जोर से चिलाने लगे।
पता नहीं मामा कितनी देर से मामी की गांड मार रहे थे। फिर मामा मामी से जोर से चिपक गए। मामी थोड़ी सी ऊपर उठी। उनके पपीते जैसे स्तन नीचे लटके झूल रहे थे। उनकी आँखें बंद थी। और वह सीत्कार किये जा रही थी,”जियो मेरे राजा मज़ा आ गया !”
मैंने धीरे धीरे कनिका के वक्ष मसलने शुरू कर दिए। वो तो अपने मम्मी पापा की इस अनोखी रासलीला देख कर मस्त ही हो गई थी। मैंने एक हाथ उसकी पेंटी में भी डाल दिया। उफ़ … छोटे छोटे झांटों से ढकी उसकी बुर तो कमाल की थी। नीम गीली। मैंने धीरे से एक अंगुली से उसके नर्म नाज़ुक छेद को टटोला। वो तो चुदाई देखने में इतनी मस्त थी कि उसे तो तब ध्यान आया जब मैंने गच्च से अपनी अंगुली उसकी बुर के छेद में पूरी घुसा दी।
“उईई माँ ….” उसके मुंह से हौले से निकला। “ओह … भाई ये क्या कर रहे हो ?” उसने मेरी ओर देखा। उसकी आँखें बोझिल सी थी और उनमें लाल डोरे तैर रहे था। मैंने उसे बाहों में भर लिया और उसके होंठों को चूम लिया।
हम दोनों ने देखा कि एक पुच्क्क की आवाज के साथ मामा का लंड फिसल कर बाहर आ गया और मामी बेड पर लुढ़क गई। अब वहाँ रुकने का कोई मतलब नहीं रह गया था। हम एक दूसरे की बाहों में सिमटे वापस छत पर आ गए।
“कनिका ? “
“हाँ… भाई ?”
कनिका के होंठ और जबान कांप रही थी। उसकी आँखों में एक नई चमक थी। आज से पहले मैंने कभी उसकी आँखों में ऐसी चमक नहीं देखी थी। मैंने फिर उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसके होंठ चूसने लगा। उसने भी बेतहाशा मुझे चूमना शुरू कर दिया। मैंने धीरे धीरे उसके स्तन भी मसलने चालू कर दिए। जब मैंने उसकी पेंटी पर हाथ फिराया तो उसने मेरा हाथ पकड़ते कहा,”नहीं भाई… इस से आगे नहीं !”
“क्यों क्या हुआ ? “
“मैं रिश्ते में तुम्हारी बहन लगती हूँ, भले ही ममेरी ही हूँ पर आखिर हूँ तो बहन ही ना ? और भाई और बहन में ऐसा नहीं होना चाहिए !”
“अरे तुम किस ज़माने की बात कर रही हो ? लंड और चूत का रिश्ता तो कुदरत ने बनाया है। लंड और चूत का सिर्फ एक ही रिश्ता होता है और वो है चुदाई का। ये तो केवल तथाकथित सभ्य कहे जाने वाले समाज और धर्म के ठेकेदारों का बनाया हुआ ढकोसला (प्रपंच) है। असल में देखा जाए तो ये सारी कायनात ही इस प्रेम रस में डूबी है जिसे लोग चुदाई कहते हैं।” मैं एक ही सांस में कह गया।
“पर फिर भी इंसान और जानवरों में फर्क तो होता है ना ?”
“जब चूत की किस्मत में चुदना ही लिखा है तो फिर लंड किसका है इससे क्या फर्क पड़ता है ? तुम नहीं जानती कनिका तुम्हारा ये जो बाप है अपनी बहन, भाभी, साली और सलहज सभी को चोद चुका है और ये तुम्हारी मम्मी भी कम नहीं है। अपने देवर, जेठ, ससुर, भाई और जीजा से ना जाने कितनी बार चुद चुकी है और गांड भी मरवा चुकी है ?”
कनिका मेरी ओर मुंह बाए देखे जा रही थी। उसे ये सब सुनकर बड़ी हैरानी हो रही थी ” नहीं भाई तुम झूठ बोल रहे हो ? “
“देखो मेरी बहना तुम चाहे कुछ भी समझो ये जो तुम्हारा बाप है ना वो तो तुम्हें भी भोगने के चक्कर में है ? मैंने अपने कानों से सुना है !”
“क … क्या … ?” उसे तो जैसे मेरी बातों पर यकीन ही नहीं हुआ। मैंने उसे सारी बातें बता दी जो। आज मामा मामी से कह रहे थे। उसके मुंह से तो बस इतना ही निकला “ओह… नोऽऽ ?”
“बोलो … तुम क्या चाहती हो अपनी मर्जी से प्यार से तुम अपना सब कुछ मुझे सौंप देना चाहोगी या फिर उस 45 साल के अपने खडूश और ठरकी बाप से अपनी चूत और गांड की सील तुड़वाना चाहती हो … बोलो ?”
“मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा है ?”
“अच्छा एक बात बताओ ?”
“क्या ?”
“क्या तुम शादी के बाद नहीं चुदवाओगी ? या सारी उम्र अपनी चूत नहीं मरवाओगी ?”
“नहीं पर ये सब तो शादी के बाद की बात होती है ?”
“अरे मेरी भोली बहना ! ये तो खाली लाइसेंस लेने वाली बात है। शादी विवाह तो चुदाई जैसे महान काम को शुरू करने का उत्सव है। असल में शादी का मतलब तो बस चुदाई ही होता है !”
“पर मैंने सुना है कि पहली बार में बहुत दर्द होता है और खून भी निकलता है ? “
“अरे तुम उसकी चिंता मत करो ! मैं बड़े आराम से करूँगा ! देखना तुम्हें बड़ा मज़ा आएगा !”
“पर तुम गांड तो नहीं मारोगे ना ? पापा की तरह ?”
“अरे मेरी जान पहले चूत तो मरवा लो ! गांड का बाद में सोचेंगे !” और मैंने फिर उसे बाहों में भर लिया।
उसने भी मेरे होंठों को अपने मुंह में भर लिया। वह क्या मुलायम होंठ थे, जैसे संतरे की नर्म नाज़ुक फांकें हों। कितनी ही देर हम आपस में गुंथे एक दूसरे को चूमते रहे। अब मैंने अपना हाथ उसकी चूत पर फिराना चालू कर दिया। उसने भी मेरे लंड को कस कर हाथ में पकड़ लिया और सहलाने लगी। लंड महाराज तो ठुमके ही लगाने लगे। मैंने जब उसके उरोज दबाये तो उसके मुंह से सीत्कार निकालने लगी। “ओह…। भाई कुछ करो ना ? पता नहीं मुझे कुछ हो रहा है !”
उत्तेजना के मारे उसका शरीर कांपने लगा था साँसें तेज होने लगी थी। इस नए अहसास और रोमांच से उसके शरीर के रोएँ खड़े हो गए थे। उसने कस कर मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया।
अब देर करना ठीक नहीं था। मैंने उसकी स्कर्ट और टॉप उतार दिए। उसने ब्रा तो पहनी ही नहीं थी। छोटे छोटे दो अमरुद मेरी आँखों के सामने थे। गोरे रंग के दो रस कूप जिनका एरोला कोई एक रुपये के सिक्के जितना और निप्पल्स तो कोई मूंग के दाने जितने बिलकुल गुलाबी रंग के। मैंने तड़ से एक चुम्बन उसके उरोज पर ले लिया। अब मेरा ध्यान उसकी पतली कमर और गहरी नाभि पर गया।
जैसे ही मैंने अपना हाथ उसकी पेंटी की ओर बढ़ाया तो उसने मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा,”भाई तुम भी तो अपने कपड़े उतारो ना ?”
“ओह… हाँ ?”
मैंने एक ही झटके में अपना नाईट सूट उतार फेंका। मैंने चड्डी और बनियान तो पहनी ही नहीं थी। मेरा 7 इंच का लंड 120 डिग्री पर खड़ा था। लोहे की रॉड की तरह बिलकुल सख्त। उस पर प्री-कम की बूँद चाँद की रोशनी में ऐसे चमक रही थी जैसे शबनम की बूँद हो या कोई मोती।
“कनिका इसे प्यार करो ना ?”
“कैसे ? “
“अरे बाबा इतना भी नहीं जानती? इसे मुंह में लेकर चूसो ना ?”
“मुझे शर्म आती है ?”
मैं तो दिलो जान से इस अदा पर फ़िदा ही हो गया। उसने अपनी निगाहें झुका ली पर मैंने देखा था कि कनखियों से वो अभी भी मेरे तप्त लंड को ही देखे जा रही थी बिना पलकें झपकाए।
मैंने कहा,”चलो, मैं तुम्हारी बुर को पहले प्यार कर देता हूँ फिर तुम इसे प्यार कर लेना ?”
“ठीक है !” भला अब वो मना कैसे कर सकती थी।
और फिर मैंने धीरे से उसकी पेंटी को नीचे खिसकाया :
गहरी नाभि के नीचे हल्का सा उभरा हुआ पेडू और उसके नीचे रेशम से मुलायम छोटे छोटे बाल नजर आने लगे। मेरे दिल की धड़कने बढ़ने लगी। मेरा लंड तो सलामी ही बजाने लगा। एक बार तो मुझे लगा कि मैं बिना कुछ किये-धरे ही झड़ जाऊँगा। उसकी चूत की फांकें तो कमाल की थी। मोटी मोटी संतरे की फांकों की तरह। गुलाबी चट्ट। दोनों आपस में चिपकी हुई। मैंने पेंटी को निकाल फेंका। जैसे ही मैंने उसकी जाँघों पर हाथ फिराया तो वो सीत्कार करने लगी और अपनी जांघें कस कर भींच ली।
मैं जानता था कि यह उत्तेजना और रोमांच के कारण है। मैंने धीरे से अपनी अंगुली उसकी बुर की फांकों पर फिराई। वो तो मस्त ही हो गई। मैंने अपनी अंगुली ऊपर से नीचे और फिर नीचे से ऊपर फिराई। 3-4 बार ऐसा करने से उसकी जांघें अपने आप चौड़ी होती चली गई। अब मैंने अपने दोनों हाथों से उसकी बुर की दोनों फांकों को चौड़ा किया। एक हलकी सी पुट की आवाज के साथ उसकी चूत की फांकें खुल गई।
आह. अन्दर से बिलकुल लाल चुर्ट। जैसे किसी पके तरबूज की गिरी हो। मैं अपने आप को कैसे रोक पाता। मैंने अपने जलते होंठ उन पर रख दिए। आह … नमकीन सा नारियल पानी सा खट्टा सा स्वाद मेरी जबान पर लगा और मेरी नाक में जवान जिस्म की एक मादक महक भर गई। मैंने अपनी जीभ को थोड़ा सा नुकीला बनाया और उसके छोटे से टींट (मदनमणि) पर टिका दिया। उसकी तो एक किलकारी ही निकल गई। अब मैंने ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर जीभ फिरानी चालू कर दी। उसने कस कर मेरे सिर के बालों को पकड़ लिया। वो तो सीत्कार पर सीत्कार किये जा रही थी।
बुर के छेद के नीचे उसकी गांड का सुनहरा छेद उसके कामरज से पहले से ही गीला हो चुका था। अब तो वो भी खुलने और बंद होने लगा था। कनिका आंह … उन्ह … कर रही थी। ऊईई … मा..आ… एक मीठी सी सीत्कार निकल ही गई उसके मुंह से।
अब मैंने उसकी बुर को पूरा मुंह में ले लिया और जोर की चुस्की लगाई। अभी तो मुझे 2 मिनट भी नहीं हुए होंगे कि उसका शरीर अकड़ने लगा और उसने अपने पैर ऊपर करके मेरी गर्दन के गिर्द लपेट लिए और मेरे बालों को कस कर पकड़ लिया। इतने में ही उसकी चूत से काम रस की कोई 4-5 बूँदें निकल कर मेरे मुंह में समां गई। आह क्या रसीला स्वाद था। मैंने तो इस रस को पहली बार चखा था। मैं उसे पूरा का पूरा पी गया।
अब उसकी पकड़ कुछ ढीली हो गई थी। पैर अपने आप नीचे आ गए। 2-3 चुस्कियां लेने के बाद मैंने उसके एक उरोज को मुंह में ले लिया और चूसना चालू कर दिया। शायद उसे इन उरोजों को चुसवाना अच्छा नहीं लगा था। उसने मेरा सिर एक और धकेला और झट से मेरे खड़े लंड को अपने मुंह में ले लिया। मैं तो कब से यही चाह रहा था। उसने पहले सुपाड़े पर आई प्री कम की बूँदें चाटी और फिर सुपाड़े को मुंह में भर कर चूसने लगी जैसे कोई रस भरी कुल्फी हो।
आह … आज किसी ने पहली बार मेरे लंड को ढंग से मुंह में लिया था। कनिका ने तो कमाल ही कर दिया। उसने मेरा लंड पूरा मुंह में भरने की कोशिश की पर भला सात इंच लम्बा लंड उसके छोटे से मुंह में पूरा कैसे जाता।
मैं चित्त लेटा था और वो उकडू सी हुई मेरे लंड को चूसे जा रही थी। मेरी नजर उसकी चूत की फांकों पर दौड़ गई। हलके हलके बालों से लदी चूत तो कमाल की थी। मैंने कई ब्लू फिल्मों में देखा था की चूत के अन्दर के होंठों की फांके 1.5 या 2 इंच तक लम्बी होती हैं पर कनिका की तो बस छोटी छोटी सी थी। बिलकुल लाल और गुलाबी रंगत लिए। मामी की तो बिलकुल काली काली थी। पता नहीं मामा उन काली काली फांकों को कैसे चूसते हैं।
मैंने कनिका की चूत पर हाथ फिराना चालू कर दिया। वो तो मस्त हुई मेरे लंड को बिना रुके चूसे जा रही थी। मुझे लगा अगर जल्दी ही मैंने उसे मना नहीं किया तो मेरा पानी उसके मुंह में ही निकल जाएगा और मैं आज की रात बिना चूत मारे ही रह जाऊँगा। मैं ऐसा हरगिज नहीं चाहता था।
मैंने उसकी चूत में अपनी अंगुली जोर से डाल दी। वो थोड़ी सी चिहुंकी और मेरे लंड को छोड़ कर एक और लुढ़क गई।
वो चित्त लेट गई थी। अब मैं उसके ऊपर आ गया और उसके होंठों को चूमने लगा। एक हाथ से उसके उरोज मसलने चालू कर दिए और एक हाथ से उसकी चूत की फांकों को मसलने लगा। उसने भी मेरे लंड को मसलना चालू कर दिया। अब लोहा पूरी तरह गर्म हो चुका था और हथोड़ा मारने का समय आ गया था। मैंने अपने उफनते हुए लंड को उसकी चूत के मुहाने पर रख दिया। अब मैंने उसे अपने बाहों में जकड़ लिया और उसके गाल चूमने लगा। एक हाथ से उसकी कमर पकड़ ली। इतने में मेरे लंड ने एक ठुमका लगाया और वो फिसल कर ऊपर खिसक गया।
कनिका की हंसी निकल गई।
मैंने दुबारा अपने लंड को उसकी चूत पर सेट किया और उसके कमर पकड़ कर एक जोर का धक्का लगा दिया। मेरा लंड उसके थूक से पूरा गीला हो चुका था और पिछले आधे घंटे से उसकी चूत ने भी बेतहाशा कामरज बहाया था। मेरा आधा लंड उसकी कुंवारी चूत की सील को तोड़ता हुआ अन्दर घुस गया।
इसके साथ ही कनिका की एक चीख हवा में गूंज गई। मैंने झट से उसका मुंह दबा दिया नहीं तो उसकी चीख नीचे तक चली जाती।
कोई 2-3 मिनट तक हम बिना कोई हरकत किये ऐसे ही पड़े रहे। वो नीचे पड़ी कुनमुना रही थी। अपने हाथ पैर पटक रही थी पर मैंने उसकी कमर पकड़ रखी थी इस लिए मेरा लंड बाहर निकालने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता था। मुझे भी अपने लंड के सुपाड़े के नीचे जहां धागा होता है जलन सी महसूस हुई। ये तो मुझे बाद में पता चला कि उसकी चूत की सील के साथ मेरे लंड की भी सील (धागा) टूट गई है। चलो अच्छा है अब आगे का रास्ता दोनों के लिए ही साफ़ हो गया है। हम दोनों को ही दर्द हो रहा था। पर इस नए स्वाद के आगे ये दर्द भला क्या माने रखता था।
“ओह … भाई मैं तो मर गई रे ….” कनिका के मुंह से निकला “ओह … बाहर निकालो मैं मर जाउंगी !”
“अरे मेरी बहना रानी ! बस अब जो होना था हो गया है। अब दर्द नहीं बस मजा ही मजा आएगा। तुम डरो नहीं ये दर्द तो बस 2-3 मिनट का और है उसके बाद तो बस जन्नत का ही मजा है !”
“ओह. नहीं प्लीज. बाहर… निका … लो … ओह… या… आ…. उन्ह … या…”
मैं जानता था उसका दर्द अब कम होने लगा है और उसे भी मजा आने लगा है। मैंने हौले से एक धक्का लगाया तो उसने भी अपनी चूत को अन्दर से सिकोड़ा। मेरा लंड तो निहाल ही हो गया जैसे। अब तो हालत यह थी कि कनिका नीचे से धक्के लगा रही थी। अब तो मेरा लंड उसकी चूत में बिना किसी रुकावट अन्दर बाहर हो रहा था। उसके कामरज और सील टूटने से निकले खून से सना मेरा लंड तो लाल और गुलाबी सा हो गया था।
“उईई . मा .. आह .. मजा आ रहा है भाई तेज करो ना .. आह ओर तेज या …” कनिका मस्त हुई बड़बड़ा रही थी।
अब उसने अपने पैर ऊपर उठा कर मेरी कमर के गिर्द लपेट लिए थे। मैंने भी उसका सिर अपने हाथों में पकड़ कर अपने सीने से लगा लिया और धीरे धीरे धक्के लगाने लगा। जैसे ही मैं ऊपर उठता तो वो भी मेरे साथ ही थोड़ी सी ऊपर हो जाती और जब हम दोनों नीचे आते तो पहले उसके नितम्ब गद्दे पर टिकते और फिर गच्च से मेरा लंड उसकी चूत की गहराई में समां जाता। वो तो मस्त हुई आह उईई माँ. ही करती जा रही थी। एक बार उसका शरीर फिर अकड़ा और उसकी चूत ने फिर पानी छोड़ दिया। वो झड़ गई थी। आह ……। एक ठंडी सी आनंद की सीत्कार उसके मुंह से निकली तो लगा कि वो पूरी तरह मस्त और संतुष्ट हो गई है।
मैंने अपने धक्के लगाने चालू रखे। हमारी इस चुदाई को कोई 20 मिनिट तो जरूर हो ही गए थे। अब मुझे लगाने लगा कि मेरा लावा फूटने वाला है।
मैंने कनिका से कहा तो वो बोली,”कोई बात नहीं, अन्दर ही डाल दो अपना पानी ! मैं भी आज इस अमृत को अपनी कुंवारी चूत में लेकर निहाल होना चाहती हूँ !”
मैंने अपने धक्कों की रफ़्तार बढ़ा दी और फिर गर्म गाढ़े रस की ना जाने कितनी पिचकारियाँ निकलती चली गई और उसकी चूत को लबा लब भरती चली गई। उसने मुझे कस कर पकड़ लिया। जैसे वो उस अमृत का एक भी कतरा इधर उधर नहीं जाने देना चाहती थी। मैं झड़ने के बाद भी उसके ऊपर ही लेटा रहा।
मैंने कहीं पढ़ा था कि आदमी को झड़ने के बाद 3-4 मिनट अपना लंड चूत में ही डाले रखना चाहिए इस से उसके लंड को फिर से नई ताकत मिल जाती है। और चूत में भी दर्द और सूजन नहीं आती।
थोड़ी देर बाद हम उठ कर बैठ गए। मैंने कनिका से पूछा,”कैसी लगी पहली चुदाई मेरी जान ?”
“ओह बहुत ही मजेदार थी मेरे भैया ?”
“अब भैया नहीं सैंया कहो मेरी जान ! “
“हाँ हाँ मेरे सैंया ! मेरे साजन ! मैं तो कब की इस अमृत की प्यासी थी। बस तुमने ही देर कर रखी थी !”
“क्या मतलब ?”
“ओह. तुम भी कितने लल्लू हो। तुम क्या सोचते हो मुझे कुछ नहीं पता ?”
“क्या मतलब ? ”
“मुझे सब पता है तुम मुझे नहाते हुए और मूतते हुए चुपके चुपके देखा करते हो और मेरा नाम ले ले कर मुट्ठ भी मारते हो ?”
“ओह … तुम भी ना … एक नंबर की चुद्दकड़ हो ?”
“क्यों ना बनूँ आखिर खानदान का असर मुझ पर भी आएगा ही ना ?” और उसने मेरी और आँख मार दी। और फिर आगे बोली “पर तुम्हें क्या हुआ मेरे भैया ?”
“चुप साली अब भी भैया बोलती है ! अब तो मैं दिन में ही तुम्हारा भैया रहूँगा रात में तो मैं तुम्हारा सैंया और तुम मेरी सजनी बनोगी !” और फिर मैंने एक बार उसे अपनी बाहों में भर लिया। उसे भला क्या ऐतराज हो सकता था।
बस यही कहानी है तरुण की। यह कहानी आपको कैसी लगी मुझे जरुर बताएं।
आपका प्रेम गुरु
लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
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Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
माया मेम साब
लेखक प्रेम गुरु
बाद मुर्दन के जन्नत मिले ना मिले ग़ालिब क्या पता
गाण्ड मार के इस दूसरी जन्नत का मज़ा तो लूट ही ले
बाथरूम की ओर जाते समय पीछे से उसके भारी और गोल मटोल नितम्बों की थिरकन देख कर तो मेरे दिल पर छुर्रियाँ ही चलने लगी। मैं जानता था पंजाबी लड़कियाँ गाण्ड भी बड़े प्यार से मरवा लेती हैं। और वैसे भी आजकल की लड़कियाँ शादी से पहले चूत मरवाने से तो परहेज करती हैं पर गाण्ड मरवाने के लिए अक्सर राज़ी हो जाती हैं। आप तो जानते ही हैं मैं गाण्ड मारने का कितना शौक़ीन हूँ। बस मधु ही मेरी इस इच्छा को पूरी नहीं करती थी बाकी तो मैंने जितनी भी लड़कियों या औरतों को चोदा है उनकी गाण्ड भी जरूर मारी है। इतनी खूबसूरत सांचे में ढली मांसल गाण्ड तो मैंने आज तक नहीं देखी थी। काश यह भी आज राज़ी हो जाए तो कसम से मैं तो इसकी जिन्दगी भर के लिए गुलामी ही कर लूं।
इसी कहानी से......
हमारी शादी को 4-5 महीने होने को आये थे और हम लगभग रोज़ ही मधुर मिलन (चुदाई) का आनंद लिया करते थे। मैंने मधुर को लगभग हर आसन में और घर के हर कोने में जी भर कर चोदा था। पता नहीं हम दोनों ने कामशास्त्र के कितने ही नए अध्याय लिखे होंगे। पर सच कहूं तो चुदाई से हम दोनों का ही मन नहीं भरा था। कई बार तो रात को मेरी बाहों में आते ही मधुर इतनी चुलबुली हो जाया करती थी कि मैं रति पूर्व क्रीड़ा भी बहुत ही कम कर पाता था और झट से अपना पप्पू उसकी लाडो में डाल कर प्रेम युद्ध शुरू कर दिया करता था।
एक बात आपको और बताना चाहूँगा। मधुर ने तो मुझे दूध पीने और शहद चाटने की ऐसी आदत डाल दी है कि उसके बिना तो अब मुझे नींद ही नहीं आती। और मधुर भी मलाई खाने की बहुत बड़ी शौक़ीन बन गई है। आप नहीं समझे ना ? चलो मैं विस्तार से समझाता हूँ :
हमारा दाम्पत्य जीवन (चुदाई अभियान) वैसे तो बहुत अच्छा चल रहा था पर मधु व्रत त्योहारों के चक्कर में बहुत पड़ी रहती है। आये दिन कोई न कोई व्रत रखती ही रहती है। ख़ास कर शुक्र और मंगलवार का व्रत तो वो जरूर रखती है। उसका मानना है कि इस व्रत से पति का शुक्र गृह शक्तिशाली रहता है। पर दिक्कत यह है कि उस रात वो मुझे कुछ भी नहीं करने देती। ना तो वो खुद मलाई खाती है और ना ही मुझे दूध पीने या शहद चाटने देती है।
लेकिन शनिवार की सुबह वह जल्दी उठ कर नहा लेती है और फिर मुझे एक चुम्बन के साथ जगाती है। कई बार तो उसकी खुली जुल्फें मेरे चहरे पर किसी काली घटा की तरह बिखर जाती हैं और फिर मैं उसे बाँहों में इतनी जोर से भींच लेता हूँ कि उसकी कामुक चित्कार ही निकल जाती है और फिर मैं उसे बिना रगड़े नहीं मानता। वो तो बस कुनमुनाती सी रह जाती है। और फिर वो रात (शनिवार) तो हम दोनों के लिए ही अति विशिष्ट और प्रतीक्षित होती है। उस रात हम दोनों आपस में एक दूसरे के कामांगों पर शहद लगा कर इतना चूसते हैं कि मधु तो इस दौरान 2-3 बार झड़ जाया करती है और मेरा भी कई बार उसके मुँह में ही विसर्जित हो जाया करता है जिसे वो किसी अमृत की तरह गटक लेती है।
रविवार वाले दिन फिर हम दोनों साथ साथ नहाते हैं और फिर बाथरूम में भी खूब चूसा चुसाई के दौर के बाद एक बार फिर से गर्म पानी के फव्वारे के नीचे घंटों प्रेम मिलन करते रहते हैं। कई बार वो बाथटब में मेरी गोद में बैठ जाया करती है या फिर वो पानी की नल पकड़ कर या दीवाल के सहारे थोड़ी नीचे झुक कर अपने नितम्बों को थिरकाती रहती है और मैं उसके पीछे आकर उसे बाहों में भर लेता हूँ और फिर पप्पू और लाडो दोनों में महा संग्राम शुरू हो जाता है। उसके गोल मटोल नितम्बों के बीच उस भूरे छेद को खुलता बंद होता देख कर मेरा जी करता अपने पप्पू को उसमें ही ठोक दूँ। पर मैं उन पर सिवाय हाथ फिराने या नितम्बों पर चपत (हलकी थपकी) लगाने के कुछ नहीं कर पाता। पता नहीं उसे गाण्ड मरवाने के नाम से ही क्या चिढ़ थी कि मेरे बहुत मान मनोवल के बाद भी वो टस से मस नहीं होती थी। एक बात जब मैंने बहुत जोर दिया तो उसने तो मुझे यहाँ तक चेतावनी दे डाली थी कि अगर अब मैंने दुबारा उसे इस बारे में कहा तो वो मुझ से तलाक ही ले लेगी।
मेरा दिल्ली वाला दोस्त सत्य जीत (याद करें लिंगेश्वर की काल भैरवी) तो अक्सर मुझे उकसाता रहता था कि गुरु किसी दिन उल्टा पटक कर रगड़ डालो। शुरू शुरू में सभी पत्नियाँ नखरे करती हैं वो भी एक बार ना नुकर करेगी फिर देखना वो तो इसकी इतनी दीवानी हो जायेगी कि रोज़ करने को कहने लगेगी।
ओह …यार जीत सभी की किस्मत तुम्हारे जैसी नहीं होती भाई।
एक और दिक्कत थी। शुरू शुरू में तो हम बिना निरोध (कंडोम) के सम्भोग कर लिया करते थे पर अब तो वो बिना निरोध के मुझे चोदने ही नहीं देती। और माहवारी के उन 3-4 दिनों में तो पता नहीं उसे क्या बिच्छू काट खाते हैं वो तो मधु से मधु मक्खी ही बन जाती है। चुदाई की बात तो छोड़ो वो तो अपने पुट्ठे पर हाथ भी नहीं धरने देती। और इसलिए पिछले 3 दिनों से हमारा चुदाई कार्यक्रम बिल्कुल बंद था और आज उसे जयपुर जाना था, आप मेरी हालत समझ सकते हैं।
आप की जानकारी के लिए बता दूं राजस्थान में होली के बाद गणगौर उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। कुंवारी लड़कियाँ और नव विवाहिताएं अपने पीहर (मायके) में आकर विशेष रूप से 16 दिन तक गणगौर का पूजन करती हैं मैं तो मधु को भेजने के मूड में कतई नहीं था और ना ही वो जाना चाहती थी पर वो कहने लगी कि विवाह को 3-4 महीने हो गए हैं वो इस बहाने भैया और भाभी से भी मिल आएगी।
मैं मरता क्या करता। मैं इतनी लम्बी छुट्टी लेकर उसके साथ नहीं जा सकता था तो हमने तय किया कि मैं गणगोर उत्सव के 1-2 दिन पहले जयपुर आ जाऊँगा और फिर उसे अपने साथ ही लेता आऊंगा। मैंने जब उसे कहा कि वहाँ तुम्हें मेरे साथ ही सोना पड़ेगा तो वो तो मारे शर्म के गुलज़ार ही हो गई और कहने लगी,"हटो परे … मैं भला वहाँ तुम्हारे साथ कैसे सो सकती हूँ?"
"क्यों ?"
"नहीं… मुझे बहुत लाज आएगी ? वहाँ तो रमेश भैया, सुधा भाभी और मिक्की (तीन चुम्बन) भी होंगी ना? उनके सामने मैं … ना बाबा ना … मैं नहीं आ सकूंगी … यहाँ आने के बाद जो करना हो कर लेना !"
"तो फिर मैं जयपुर नहीं आऊंगा !" मैंने बनावती गुस्से से कहा।
"ओह …?" वो कातर (निरीह-उदास) नज़रों से मुझे देखने लगी।
"एक काम हो सकता है?" उसे उदास देख कर मैंने कहा।
"क्या?"
"वो सभी लोग तो नीचे सोते हैं। मैं ऊपर चौबारे में सोऊंगा तो तुम रात को चुपके से दूध पिलाने के बहाने मेरे पास आ जाना और फिर 3-4 बार जम कर चुदवाने के बाद वापस चली जाना !" खाते हुए मैंने उसे बाहों में भर लेना चाहा।
"हटो परे … गंदे कहीं के !" मधु ने मुझे परे धकेलते हुए कहा।
"क्यों … इसमें गन्दा क्या है?"
"ओह .. प्रेम … तुम भी… ना.. चलो ठीक है पर तुम कमरे की बत्ती बिल्कुल बंद रखना … मैं बस थोड़ी देर के लिए ही आ पाऊँगी !" मधु होले होले मुस्कुरा रही थी।
मैं जानता था उसे भी मेरा यह प्रस्ताव जम गया है। इसका एक कारण था।
मधु चुदाई के बाद लगभग रोज़ ही मुझे छुहारे मिला गर्म दूध जरुर पिलाया करती है। वो कहती है इसके पीने से आदमी सदा जवान बना रहता है। वैसे मैं तो सीधे उसके दुग्धकलशों से दूध पीने का आदि बन गया था पर चलो उसका मेरे पास आने का यह बहाना बहुत ही सटीक था।
मधु के जयपुर चले जाने के बाद वो 10-15 दिन मैंने कितनी मुश्किल से बिताये थे, मैं ही जानता हूँ। उसकी याद तो घर के हर कोने में बसी थी। हम रोज़ ही घंटों फ़ोन पर बातें और चूमा चाटी भी करते और उन सुहानी यादों को एक बार फिर से ताज़ा कर लिया करते।
मैं गणगोर उत्सव से 2 दिन पहले सुबह सुबह ही जयपुर पहुँच था। आप सभी को वो छप्पनछुरी "माया मेम साब" तो जरुर याद होगी ? ओह … मैंने बताया तो था ? (याद कीजिये "मधुर प्रेम मिलन") अरे भई मैं सुधा भाभी की छोटी बहन माया की बात कर रहा हूँ जिसे सभी ‘माया मेम साब’ के नाम से बुलाते हैं ? पूरी पटाका (आइटम बम) लगती है जैसे लिम्का की बोतल हो। और उसके नखरे तो बस बल्ले बल्ले … होते हैं। नाक पर मक्खी नहीं बैठने देती। दिन में कम से कम 6 बार तो पेंटी बदलती होगी।
माया में साब अहमदाबाद में एम बी ए कर रही है पर आजकल परीक्षा पूर्व की छुट्टियों में जयपुर में ही जलवा अफरोज थी। एक बार मेरे साथ उसकी शादी का प्रस्ताव भी आया था पर मधु ने बाज़ी मार ली थी।
सच कहूं तो उसके नितम्ब तो जीन्स और कच्छी में संभाले ही नहीं संभलते। साली के क्या मस्त कूल्हे और मम्मे हैं। उनकी लचक देख कर तो बंद अपने होश-ओ-हवास ही खो बैठे। और ख़ास कर उसके लचक कर चलने का अंदाज़ तो इतना कातिलाना था कि उसे देख कर मुझे अपनी जांघों पर अखबार रखना पड़ा था। जब कभी वो पानी या नाश्ता देने के बहाने झुकती है तो उसके गोल गोल कंधारी अनारों को देख कर तो मुँह में पानी ही टपकने लगता है। पंजाबी लडकियाँ तो वैसे भी दिलफेंक और आशिकाना मिजाज़ की होती हैं मुझे तो पूरा यकीन है माया कॉलेज के होस्टल में अछूती तो नहीं बची होगी।
दिन में रमेश (मेरा साला) तो 3-4 दिनों के लिए टूर पर निकल गए और मधु अपनी भाभी के साथ उसके कमरे में ही चिपकी रही। पता नहीं दोनों सारा दिन क्या खुसर-फुसर करती रहती हैं। मेरे पास माया मेम साब और मिक्की के साथ कैरम बोट और लूडो खेलने के अलावा कोई काम नहीं था। माया ने जीन का निक्कर पहन रखा था जिसमें उसकी गोरी गोरी पुष्ट जांघें तो इतनी चिकनी लग रही थी जैसे संग-ए-मरमर की बनी हों। उसकी जाँघों के रंग को देख कर तो उसकी चूत के रंग का अंदाज़ा लगाना कतई मुश्किल नहीं था। मेरा अंदाज़ा था कि उसने अन्दर पेंटी नहीं डाली होगी। उसने कॉटन की शर्ट पहन रखी थी जिसके आगे के दो बटन खुले थे। कई बार खेलते समय वो घुटनों के बल बैठी जब थोड़ा आगे झुक जाती तो उसके भारी उरोज मुझे ललचाने लगते। वो फिर जब कनखियों से मेरी ओर देखती तो मैं ऐसा नाटक करता जैसे मैंने कुछ देखा ही ना हो। पता नहीं उसके मन में क्या था पर मैं तो यही सोच रहा था कि काश एक रात के लिए मेरी बाहों में आ जाए तो मैं इसे उल्टा पटक कर अपने दबंग लण्ड से इसकी गाण्ड मार कर अपना जयपुर आना और अपना जीवन दोनों को धन्य कर लूं।
काश यह संभव हो पाता। मुझे ग़ालिब का एक शेर याद आ रहा है :
बाद मुर्दन के जन्नत मिले ना मिले ग़ालिब क्या पता
गाण्ड मार के इस दूसरी जन्नत का मज़ा तो लूट ही ले !
शाम को हम सभी साथ बैठे चाय पी रहे थे। माया तो पूरी मुटियार बनी थी। गुलाबी रंग की पटियाला सलवार और हरे रंग की कुर्ती में उसका जलवा दीदा-ए-वार (देखने लायक) था। माया अपने साथ मुझे डांस करने को कहने लगी।
मैंने उसे बताया कि मुझे कोई ज्यादा डांस वांस नहीं आता तो वो बोली "यह सब तो मधुर की गलती है।"
"क्यों ? इसमें भला मेरी क्या गलती है ?" मधु ने तुनकते हुए कहा।
"सभी पत्नियाँ अपने पतियों को अपनी अंगुली पर नचाती हैं यह बात तो सभी जानते हैं !"
उसकी इस बात पर सभी हंसने लगे। फिर माया ने "ये काली काली आँखें गोरे गोरे गाल … देखा जो तुम्हें जानम हुआ है बुरा हाल" पर जो ठुमके लगाए कि मेरा दिल तो यह गाने को करने लगा "ये काली काली झांटे … ये गोरी गोरी गाण्ड …"
कहानी जारी रहेगी !
आपका प्रेम गुरु
लेखक प्रेम गुरु
बाद मुर्दन के जन्नत मिले ना मिले ग़ालिब क्या पता
गाण्ड मार के इस दूसरी जन्नत का मज़ा तो लूट ही ले
बाथरूम की ओर जाते समय पीछे से उसके भारी और गोल मटोल नितम्बों की थिरकन देख कर तो मेरे दिल पर छुर्रियाँ ही चलने लगी। मैं जानता था पंजाबी लड़कियाँ गाण्ड भी बड़े प्यार से मरवा लेती हैं। और वैसे भी आजकल की लड़कियाँ शादी से पहले चूत मरवाने से तो परहेज करती हैं पर गाण्ड मरवाने के लिए अक्सर राज़ी हो जाती हैं। आप तो जानते ही हैं मैं गाण्ड मारने का कितना शौक़ीन हूँ। बस मधु ही मेरी इस इच्छा को पूरी नहीं करती थी बाकी तो मैंने जितनी भी लड़कियों या औरतों को चोदा है उनकी गाण्ड भी जरूर मारी है। इतनी खूबसूरत सांचे में ढली मांसल गाण्ड तो मैंने आज तक नहीं देखी थी। काश यह भी आज राज़ी हो जाए तो कसम से मैं तो इसकी जिन्दगी भर के लिए गुलामी ही कर लूं।
इसी कहानी से......
हमारी शादी को 4-5 महीने होने को आये थे और हम लगभग रोज़ ही मधुर मिलन (चुदाई) का आनंद लिया करते थे। मैंने मधुर को लगभग हर आसन में और घर के हर कोने में जी भर कर चोदा था। पता नहीं हम दोनों ने कामशास्त्र के कितने ही नए अध्याय लिखे होंगे। पर सच कहूं तो चुदाई से हम दोनों का ही मन नहीं भरा था। कई बार तो रात को मेरी बाहों में आते ही मधुर इतनी चुलबुली हो जाया करती थी कि मैं रति पूर्व क्रीड़ा भी बहुत ही कम कर पाता था और झट से अपना पप्पू उसकी लाडो में डाल कर प्रेम युद्ध शुरू कर दिया करता था।
एक बात आपको और बताना चाहूँगा। मधुर ने तो मुझे दूध पीने और शहद चाटने की ऐसी आदत डाल दी है कि उसके बिना तो अब मुझे नींद ही नहीं आती। और मधुर भी मलाई खाने की बहुत बड़ी शौक़ीन बन गई है। आप नहीं समझे ना ? चलो मैं विस्तार से समझाता हूँ :
हमारा दाम्पत्य जीवन (चुदाई अभियान) वैसे तो बहुत अच्छा चल रहा था पर मधु व्रत त्योहारों के चक्कर में बहुत पड़ी रहती है। आये दिन कोई न कोई व्रत रखती ही रहती है। ख़ास कर शुक्र और मंगलवार का व्रत तो वो जरूर रखती है। उसका मानना है कि इस व्रत से पति का शुक्र गृह शक्तिशाली रहता है। पर दिक्कत यह है कि उस रात वो मुझे कुछ भी नहीं करने देती। ना तो वो खुद मलाई खाती है और ना ही मुझे दूध पीने या शहद चाटने देती है।
लेकिन शनिवार की सुबह वह जल्दी उठ कर नहा लेती है और फिर मुझे एक चुम्बन के साथ जगाती है। कई बार तो उसकी खुली जुल्फें मेरे चहरे पर किसी काली घटा की तरह बिखर जाती हैं और फिर मैं उसे बाँहों में इतनी जोर से भींच लेता हूँ कि उसकी कामुक चित्कार ही निकल जाती है और फिर मैं उसे बिना रगड़े नहीं मानता। वो तो बस कुनमुनाती सी रह जाती है। और फिर वो रात (शनिवार) तो हम दोनों के लिए ही अति विशिष्ट और प्रतीक्षित होती है। उस रात हम दोनों आपस में एक दूसरे के कामांगों पर शहद लगा कर इतना चूसते हैं कि मधु तो इस दौरान 2-3 बार झड़ जाया करती है और मेरा भी कई बार उसके मुँह में ही विसर्जित हो जाया करता है जिसे वो किसी अमृत की तरह गटक लेती है।
रविवार वाले दिन फिर हम दोनों साथ साथ नहाते हैं और फिर बाथरूम में भी खूब चूसा चुसाई के दौर के बाद एक बार फिर से गर्म पानी के फव्वारे के नीचे घंटों प्रेम मिलन करते रहते हैं। कई बार वो बाथटब में मेरी गोद में बैठ जाया करती है या फिर वो पानी की नल पकड़ कर या दीवाल के सहारे थोड़ी नीचे झुक कर अपने नितम्बों को थिरकाती रहती है और मैं उसके पीछे आकर उसे बाहों में भर लेता हूँ और फिर पप्पू और लाडो दोनों में महा संग्राम शुरू हो जाता है। उसके गोल मटोल नितम्बों के बीच उस भूरे छेद को खुलता बंद होता देख कर मेरा जी करता अपने पप्पू को उसमें ही ठोक दूँ। पर मैं उन पर सिवाय हाथ फिराने या नितम्बों पर चपत (हलकी थपकी) लगाने के कुछ नहीं कर पाता। पता नहीं उसे गाण्ड मरवाने के नाम से ही क्या चिढ़ थी कि मेरे बहुत मान मनोवल के बाद भी वो टस से मस नहीं होती थी। एक बात जब मैंने बहुत जोर दिया तो उसने तो मुझे यहाँ तक चेतावनी दे डाली थी कि अगर अब मैंने दुबारा उसे इस बारे में कहा तो वो मुझ से तलाक ही ले लेगी।
मेरा दिल्ली वाला दोस्त सत्य जीत (याद करें लिंगेश्वर की काल भैरवी) तो अक्सर मुझे उकसाता रहता था कि गुरु किसी दिन उल्टा पटक कर रगड़ डालो। शुरू शुरू में सभी पत्नियाँ नखरे करती हैं वो भी एक बार ना नुकर करेगी फिर देखना वो तो इसकी इतनी दीवानी हो जायेगी कि रोज़ करने को कहने लगेगी।
ओह …यार जीत सभी की किस्मत तुम्हारे जैसी नहीं होती भाई।
एक और दिक्कत थी। शुरू शुरू में तो हम बिना निरोध (कंडोम) के सम्भोग कर लिया करते थे पर अब तो वो बिना निरोध के मुझे चोदने ही नहीं देती। और माहवारी के उन 3-4 दिनों में तो पता नहीं उसे क्या बिच्छू काट खाते हैं वो तो मधु से मधु मक्खी ही बन जाती है। चुदाई की बात तो छोड़ो वो तो अपने पुट्ठे पर हाथ भी नहीं धरने देती। और इसलिए पिछले 3 दिनों से हमारा चुदाई कार्यक्रम बिल्कुल बंद था और आज उसे जयपुर जाना था, आप मेरी हालत समझ सकते हैं।
आप की जानकारी के लिए बता दूं राजस्थान में होली के बाद गणगौर उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। कुंवारी लड़कियाँ और नव विवाहिताएं अपने पीहर (मायके) में आकर विशेष रूप से 16 दिन तक गणगौर का पूजन करती हैं मैं तो मधु को भेजने के मूड में कतई नहीं था और ना ही वो जाना चाहती थी पर वो कहने लगी कि विवाह को 3-4 महीने हो गए हैं वो इस बहाने भैया और भाभी से भी मिल आएगी।
मैं मरता क्या करता। मैं इतनी लम्बी छुट्टी लेकर उसके साथ नहीं जा सकता था तो हमने तय किया कि मैं गणगोर उत्सव के 1-2 दिन पहले जयपुर आ जाऊँगा और फिर उसे अपने साथ ही लेता आऊंगा। मैंने जब उसे कहा कि वहाँ तुम्हें मेरे साथ ही सोना पड़ेगा तो वो तो मारे शर्म के गुलज़ार ही हो गई और कहने लगी,"हटो परे … मैं भला वहाँ तुम्हारे साथ कैसे सो सकती हूँ?"
"क्यों ?"
"नहीं… मुझे बहुत लाज आएगी ? वहाँ तो रमेश भैया, सुधा भाभी और मिक्की (तीन चुम्बन) भी होंगी ना? उनके सामने मैं … ना बाबा ना … मैं नहीं आ सकूंगी … यहाँ आने के बाद जो करना हो कर लेना !"
"तो फिर मैं जयपुर नहीं आऊंगा !" मैंने बनावती गुस्से से कहा।
"ओह …?" वो कातर (निरीह-उदास) नज़रों से मुझे देखने लगी।
"एक काम हो सकता है?" उसे उदास देख कर मैंने कहा।
"क्या?"
"वो सभी लोग तो नीचे सोते हैं। मैं ऊपर चौबारे में सोऊंगा तो तुम रात को चुपके से दूध पिलाने के बहाने मेरे पास आ जाना और फिर 3-4 बार जम कर चुदवाने के बाद वापस चली जाना !" खाते हुए मैंने उसे बाहों में भर लेना चाहा।
"हटो परे … गंदे कहीं के !" मधु ने मुझे परे धकेलते हुए कहा।
"क्यों … इसमें गन्दा क्या है?"
"ओह .. प्रेम … तुम भी… ना.. चलो ठीक है पर तुम कमरे की बत्ती बिल्कुल बंद रखना … मैं बस थोड़ी देर के लिए ही आ पाऊँगी !" मधु होले होले मुस्कुरा रही थी।
मैं जानता था उसे भी मेरा यह प्रस्ताव जम गया है। इसका एक कारण था।
मधु चुदाई के बाद लगभग रोज़ ही मुझे छुहारे मिला गर्म दूध जरुर पिलाया करती है। वो कहती है इसके पीने से आदमी सदा जवान बना रहता है। वैसे मैं तो सीधे उसके दुग्धकलशों से दूध पीने का आदि बन गया था पर चलो उसका मेरे पास आने का यह बहाना बहुत ही सटीक था।
मधु के जयपुर चले जाने के बाद वो 10-15 दिन मैंने कितनी मुश्किल से बिताये थे, मैं ही जानता हूँ। उसकी याद तो घर के हर कोने में बसी थी। हम रोज़ ही घंटों फ़ोन पर बातें और चूमा चाटी भी करते और उन सुहानी यादों को एक बार फिर से ताज़ा कर लिया करते।
मैं गणगोर उत्सव से 2 दिन पहले सुबह सुबह ही जयपुर पहुँच था। आप सभी को वो छप्पनछुरी "माया मेम साब" तो जरुर याद होगी ? ओह … मैंने बताया तो था ? (याद कीजिये "मधुर प्रेम मिलन") अरे भई मैं सुधा भाभी की छोटी बहन माया की बात कर रहा हूँ जिसे सभी ‘माया मेम साब’ के नाम से बुलाते हैं ? पूरी पटाका (आइटम बम) लगती है जैसे लिम्का की बोतल हो। और उसके नखरे तो बस बल्ले बल्ले … होते हैं। नाक पर मक्खी नहीं बैठने देती। दिन में कम से कम 6 बार तो पेंटी बदलती होगी।
माया में साब अहमदाबाद में एम बी ए कर रही है पर आजकल परीक्षा पूर्व की छुट्टियों में जयपुर में ही जलवा अफरोज थी। एक बार मेरे साथ उसकी शादी का प्रस्ताव भी आया था पर मधु ने बाज़ी मार ली थी।
सच कहूं तो उसके नितम्ब तो जीन्स और कच्छी में संभाले ही नहीं संभलते। साली के क्या मस्त कूल्हे और मम्मे हैं। उनकी लचक देख कर तो बंद अपने होश-ओ-हवास ही खो बैठे। और ख़ास कर उसके लचक कर चलने का अंदाज़ तो इतना कातिलाना था कि उसे देख कर मुझे अपनी जांघों पर अखबार रखना पड़ा था। जब कभी वो पानी या नाश्ता देने के बहाने झुकती है तो उसके गोल गोल कंधारी अनारों को देख कर तो मुँह में पानी ही टपकने लगता है। पंजाबी लडकियाँ तो वैसे भी दिलफेंक और आशिकाना मिजाज़ की होती हैं मुझे तो पूरा यकीन है माया कॉलेज के होस्टल में अछूती तो नहीं बची होगी।
दिन में रमेश (मेरा साला) तो 3-4 दिनों के लिए टूर पर निकल गए और मधु अपनी भाभी के साथ उसके कमरे में ही चिपकी रही। पता नहीं दोनों सारा दिन क्या खुसर-फुसर करती रहती हैं। मेरे पास माया मेम साब और मिक्की के साथ कैरम बोट और लूडो खेलने के अलावा कोई काम नहीं था। माया ने जीन का निक्कर पहन रखा था जिसमें उसकी गोरी गोरी पुष्ट जांघें तो इतनी चिकनी लग रही थी जैसे संग-ए-मरमर की बनी हों। उसकी जाँघों के रंग को देख कर तो उसकी चूत के रंग का अंदाज़ा लगाना कतई मुश्किल नहीं था। मेरा अंदाज़ा था कि उसने अन्दर पेंटी नहीं डाली होगी। उसने कॉटन की शर्ट पहन रखी थी जिसके आगे के दो बटन खुले थे। कई बार खेलते समय वो घुटनों के बल बैठी जब थोड़ा आगे झुक जाती तो उसके भारी उरोज मुझे ललचाने लगते। वो फिर जब कनखियों से मेरी ओर देखती तो मैं ऐसा नाटक करता जैसे मैंने कुछ देखा ही ना हो। पता नहीं उसके मन में क्या था पर मैं तो यही सोच रहा था कि काश एक रात के लिए मेरी बाहों में आ जाए तो मैं इसे उल्टा पटक कर अपने दबंग लण्ड से इसकी गाण्ड मार कर अपना जयपुर आना और अपना जीवन दोनों को धन्य कर लूं।
काश यह संभव हो पाता। मुझे ग़ालिब का एक शेर याद आ रहा है :
बाद मुर्दन के जन्नत मिले ना मिले ग़ालिब क्या पता
गाण्ड मार के इस दूसरी जन्नत का मज़ा तो लूट ही ले !
शाम को हम सभी साथ बैठे चाय पी रहे थे। माया तो पूरी मुटियार बनी थी। गुलाबी रंग की पटियाला सलवार और हरे रंग की कुर्ती में उसका जलवा दीदा-ए-वार (देखने लायक) था। माया अपने साथ मुझे डांस करने को कहने लगी।
मैंने उसे बताया कि मुझे कोई ज्यादा डांस वांस नहीं आता तो वो बोली "यह सब तो मधुर की गलती है।"
"क्यों ? इसमें भला मेरी क्या गलती है ?" मधु ने तुनकते हुए कहा।
"सभी पत्नियाँ अपने पतियों को अपनी अंगुली पर नचाती हैं यह बात तो सभी जानते हैं !"
उसकी इस बात पर सभी हंसने लगे। फिर माया ने "ये काली काली आँखें गोरे गोरे गाल … देखा जो तुम्हें जानम हुआ है बुरा हाल" पर जो ठुमके लगाए कि मेरा दिल तो यह गाने को करने लगा "ये काली काली झांटे … ये गोरी गोरी गाण्ड …"
कहानी जारी रहेगी !
आपका प्रेम गुरु
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Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
बाद मुर्दन के जन्नत मिले ना मिले ग़ालिब क्या पता
गाण्ड मार के इस दूसरी जन्नत का मज़ा तो लूट ही ले !
शाम को हम सभी साथ बैठे चाय पी रहे थे। माया तो पूरी मुटियार बनी थी। गुलाबी रंग की पटियाला सलवार और हरे रंग की कुर्ती में उसका जलवा दीदा-ए-वार (देखने लायक) था। माया अपने साथ मुझे डांस करने को कहने लगी।
मैंने उसे बताया कि मुझे कोई ज्यादा डांस वांस नहीं आता तो वो बोली "यह सब तो मधुर की गलती है।"
"क्यों ? इसमें भला मेरी क्या गलती है ?" मधु ने तुनकते हुए कहा।
"सभी पत्नियाँ अपने पतियों को अपनी अंगुली पर नचाती हैं यह बात तो सभी जानते हैं !"
उसकी इस बात पर सभी हंसने लगे। फिर माया ने "ये काली काली आँखें गोरे गोरे गाल … देखा जो तुम्हें जानम हुआ है बुरा हाल" पर जो ठुमके लगाए कि मेरा दिल तो यह गाने को करने लगा "ये काली काली झांटे … ये गोरी गोरी गाण्ड …"
सच कहूँ तो उसके नितम्बों को देख कर तो मैं इतना उत्तेजित हो गया था कि एक बार तो मेरा मन बाथरूम हो आने को करने लगा। मेरा तो मन कर रहा था कि डांस के बहाने इसे पकड़ कर अपनी बाहों में भींच ही लूँ !
वैसे मधुर भी बहुत अच्छा डांस करती है पर आज उसने पता नहीं क्यों डांस नहीं किया वरना तो वो ऐसा कोई मौका कभी नहीं चूकती।
खाना खाने के बाद रात को कोई 11 बजे माया और मिक्की अपने कमरे में चली गई थी। मैं भी मधु को दूध पिला जाने का इशारा करना चाहता था पर वो कहीं दिखाई नहीं दे रही थी।
मैं सोने के लिए ऊपर चौबारे में चला आया। हालांकि मौसम में अभी भी थोड़ी ठंडक जरुर थी पर मैंने अपने कपड़े उतार दिए थे और मैं नंगधडंग बिस्तर पर बैठा मधु के आने का इंतज़ार करने लगा। मेरा लण्ड तो आज किसी अड़ियल टट्टू की तरह खड़ा था। मैं उसे हाथ में पकड़े समझा रहा था कि बेटा बस थोडा सा सब्र और कर ले तेरी लाडो आती ही होगी। मेरे अन्दर पिछले 10-15 दिनों से जो लावा कुलबुला रहा था मुझे लगा अगर उसे जल्दी ही नहीं निकाला गया तो मेरी नसें ही फट पड़ेंगी। आज मैंने मन में ठान लिया था कि मधु के कमरे में आते ही चूमाचाटी का झंझट छोड़ कर एक बार उसे बाहों में भर कर कसकर जोर जोर से रगडूंगा।
मैं अभी इन खयालों में डूबा ही था कि मुझे किसी के आने की पदचाप सुनाई दी। वो सर झुकाए हाथों में थर्मस और एक गिलास पकड़े धीमे क़दमों से कमरे में आ गई। कमरे में अँधेरा ही था मैंने बत्ती नहीं जलाई थी।
जैसे ही वो बितर के पास पड़ी छोटी स्टूल पर थर्मस और गिलास रखने को झुकी मैंने उसे पीछे से अपनी बाहों में जकड़ लिया। मेरा लण्ड उसके मोटे मोटे नितम्बों की खाई से जा टकराया। मैंने तड़ातड़ कई चुम्बन उसकी पीठ और गर्दन पर ही ले लिए और एक हाथ नीचा करके उसके उरोजों को पकड़ लिया और दूसरे हाथ से उसकी लाडो को भींच लिया। उसने पतली सी नाइटी पहन रखी थी और अन्दर ब्रा और पेंटी नहीं पहनी थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उसके नितम्ब और उरोज इन 10-15 दिनों में इतने बड़े बड़े और भारी कैसे हो गए। कहीं मेरा भ्रम तो नहीं। मैंने अपनी एक अंगुली नाइटी के ऊपर से ही उसकी लाडो में घुसाने की कोशिश करते हुए उसे पलंग पर पटक लेने का प्रयास किया। वह थोड़ी कसमसाई और अपने आप को छुड़ाने की कोशिश करने लगी। इसी आपाधापी में उसकी एक हलकी सी चीख पूरे कमरे में गूँज गई ......
"ऊईईई... ईईईई ... जीजू ये क्या कर रहे हो.......? छोड़ो मुझे ... !"
मैं तो उस अप्रत्याशित आवाज को सुनकर हड़बड़ा ही गया। वो मेरी पकड़ से निकल गई और उसने दरवाजे के पास लगे लाईट के बटन को ऑन कर दिया। मैं तो मुँह बाए खड़ा ही रह गया। लाईट जलने के बाद मुझे होश आया कि मैं तो नंग धडंग ही खड़ा हूँ और मेरा 7 इंच का लण्ड कुतुबमीनार की तरह खड़ा जैसे आये हुए मेहमान को सलामी दे रहा है। मैंने झट से पास रखी लुंगी अपनी कमर पर लपेट ली।
"ओह ... ब ...म... माया तुम ?"
"जीजू ... कम से कम देख तो लेना था ?"
"वो ... स .. सॉरी ... मुझे लगा मधु होगी ?"
"तो क्या तुम मधु के साथ भी इस तरह का जंगलीपन करते हो?"
"ओह .. सॉरी ..." मैं तो कुछ बोलने की हालत में ही नहीं था।
वो मेरी लुंगी के बीच खड़े खूंटे की ओर ही घूरे जा रही थी।
"मैं तो दूध पिलाने आई थी ! मुझे क्या पता कि तुम मुझे इस तरह दबोच लोगे ? भला किसी जवान कुंवारी लड़की के साथ कोई ऐसा करता है?" उसने उलाहना देते हुए कहा।
"माया ... सॉरी ... अनजाने में ऐसा हो गया ... प्लीज म ... मधु से इस बात का जिक्र मत करना !" मैं हकलाता हुआ सा बोला।
मेरे मुँह से तो आवाज ही नहीं निकल रही थी, मैंने कातर नज़रों से उसकी ओर देखा।
"किस बात का जिक्र?"
"ओह... वो... वो कि मैंने मधु समझ कर तुम्हें पकड़ लिया था ना ?"
"ओह ... मैं तो कुछ और ही समझी थी ?" वो हंसने लगी।
"क्या ?"
"मैं तो यह सोच रही थी कि तुम कहोगे कि कमरे में तुम्हारे नंगे खड़े होने वाली बात को मधु से ना कहूं ?" वो खिलखिला कर हंस पड़ी।
अब मेरी जान में जान आई।
"वैसे एक बात कहूं ?" उसने मुस्कुराते हुए पूछा।
"क ... क्या ?"
"वैसे आप बिना कपड़ों के भी जमते हो !"
"धत्त शैतान ... !"
"हुंह ... एक तो मधु के कहने पर मैं दूध पिलाने आई और ऊपर से मुझे ही शैतान कह रहे हो ! धन्यवाद करना तो दूर बैठने को भी नहीं कहा ?"
"ओह... सॉरी ? प्लीज बैठो !" मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह विचित्र ब्रह्म माया मेम साब इतना जल्दी मिश्री की डली बन जायेगी। यह तो नाक पर मक्खी भी नहीं बैठने देती।
"जीजू एक बात पूछूँ?" वो मेरे पास ही बिस्तर पर बैठते हुए बोली।
"हम्म ... ?"
"क्या वो छिपकली (मधुर) रोज़ इसी तरह तुम्हें दूध पिलाती है?"
"ओह ... हाँ ... पिलाती तो है !"
"ओये होए ... होर नाल अपणा शहद वी पीण देंदी है ज्या नइ ?" (ओहो ... और साथ में अपना मधु भी पीने देती है या नहीं) वो मंद मंद मुस्कुरा रही थी। सुधा भाभी और माया पटियाला के पंजाबी परिवार से हैं इसलिए कभी कभी पंजाबी भी बोल लेती हैं।
अजीब सवाल था। कहीं मधु ने इसे हमारे अन्तरंग क्षणों और प्रेम युद्ध के बारे में सब कुछ बता तो नहीं दिया? ये औरतें भी बड़ी अजीब होती हैं पति के सामने तो शर्माने का इतना नाटक करेंगी और अपनी हम उम्र सहेलियों को अपनी सारी निजी बातें रस ले ले कर बता देंगी।
"हाँ ... पर तुम क्यों पूछ रही हो ?"
"उदां ई ? चल्लो कोई गल नइ ! जे तुस्सी नई दसणा चाहंदे ते कोई गल नइ ... मैं जान्नी हाँ फेर ?" (ऐसे ही ? चलो तुम ना बताना चाहो तो कोई बात नहीं ...। मैं जाती हूँ फिर) वो जाने के लिए खड़ी होने लगी।
मैंने झट से उसकी बांह पकड़ते हुए फिर से बैठते हुए कहा,"ओह ... तुम तो नाराज़ हो गई? वो ... दरअसल ... भगवान् ने पति पत्नी का रिश्ता ही ऐसा बनाया है !"
"अच्छाजी ... होर बदले विच्च तुस्सी की पिलांदे ओ?" (अच्छाजी ... और बदले में आप क्या पिलाते हो) वो मज़ाक करते हुए बोली।
हे लिंग महादेव ! यह किस दूध मलाई और शहद की बात कर रही है ? अब तो शक की कोई गुंजाइश ही नहीं रह गई थी। लगता है मधुर ने इसे हमारी सारी अन्तरंग बातें बता दी हैं। जरुर इसके मन भी कुछ कुलबुला रहा है। मैं अगर थोड़ा सा प्रयास करूँ तो शायद यह पटियाला पटाका मेरी बाहों में आ ही जाए।
"ओह .. जब तुम्हारी शादी हो जायेगी तब अपने आप सब पता लग जाएगा !" मैंने कहा।
"कि पता कोई लल्लू जिहा टक्कर गिया ताँ ?" (क्या पता कोई लल्लू टकर गया तो)
"अरे भई ! तुम इतनी खूबसूरत हो ! तुम्हें कोई लल्लू कैसे टकराएगा ?"
"ओह ... मैं कित्थे खूबसूरत हाँ जी ?" (ओह... मैं कहाँ खूबसूरत हूँ जी)
मैं जानता था उसके मन में अभी भी उस बात की टीस (मलाल) है कि मैंने उसकी जगह मधु को शादी के लिए क्यों चुना था। यह स्त्रीगत ईर्ष्या होती ही है, और फिर माया भी तो आखिर एक स्त्री ही है अलग कैसे हो सकती है।
"माया एक बात सच कहूं ?"
"हम्म... ?"
"माया तुम्हारी फिगर ... मेरा मतलब है खासकर तुम्हारे नितम्ब बहुत खूबसूरत हैं !"
"क्यों उस मधुमक्खी के कम हैं क्या ?"
"अरे नहीं यार तुम्हारे मुकाबले में उसके कहाँ ?"
वो कुछ सोचती जा रही थी। मैं उसके मन की उथल पुथल को अच्छी तरह समझ रहा था।
मैंने अगला तीर छोड़ा,"माया मेम साब, सच कहता हूँ अगर तुम थोड़ी देर नहीं चीखती या बोलती तो आज ... तो बस ....?"
"बस ... की ?" (बस क्या ?)
"वो ... वो ... छोड़ो ... मधु को क्या हुआ वो क्यों नहीं आई ?" मैंने जान बूझ कर विषय बदलने की कोशिश की। क्या पता चिड़िया नाराज़ ही ना हो जाए।
"किउँ ... मेरा आणा चंगा नइ लग्या ?" (क्या मेरा आणा अच्छा नहीं लगा ?)
"ओह... अरे नहीं बाबा वो बात नहीं है ... मेरी साली साहिबा जी !"
"पता नहीं खाना खाने के बाद से ही उसे सरदर्द हो रहा था या बहाना मार रही थी सो गई और फिर सुधा दीदी ने मुझे आपको दूध पिला आने को कहा ..."
"ओह तो पिला दो ना ?" मैंने उसके मम्मों (उरोजों) को घूरते हुए कहा।
"पर आप तो दूध की जगह मुझे ही पकड़ कर पता नहीं कुछ और करने के फिराक में थे ?"
"तो क्या हुआ साली भी तो आधी घरवाली ही होती है !"
"अई हई ... जनाब इहो जे मंसूबे ना पालणा ? मैं पटियाला दी शेरनी हाँ ? इदां हत्थ आउन वाली नइ जे ?" (ओये होए जनाब इस तरह के मंसूबे मत पालना ? मैं पटियाला की शेरनी हूँ इस तरह हाथ आने वाली नहीं हूँ)
"हाय मेरी पटियाला की मोरनी मैं जानता हूँ ... पता है पटियाला के बारे में दो चीजें बहुत मशहूर हैं ?"
"क्या ?"
"पटियाला पैग और पटियाला सलवार ?"
"हम्म ... कैसे ?"
"एक चढ़ती जल्दी है और एक उतरती जल्दी है !"
"ओये होए ... वड्डे आये सलवार लाऽऽन आले ?"
"पर मेरी यह शेरनी आधी गुजराती भी तो है ?" (माया गुजरात के अहमदाबाद शहर से एम बी ए कर रही है)
"तो क्या हुआ ?"
"भई गुजराती लड़कियाँ बहुत बड़े दिल वाली होती हैं। अपने प्रेमीजनों का बहुत ख़याल रखती हैं।"
"अच्छाजी ... तो क्या आप भी जीजू के स्थान पर अब प्रेमीजन बनना चाहते हैं ?"
"तो इसमें बुरा क्या है?"
"जेकर ओस कोड़किल्ली नू पता लग गिया ते ओ शहद दी मक्खी वांग तुह्हानूं कट खावेगी ?" (अगर उस छिपकली को पता चल गया तो वो मधु मक्खी की तरह आपको काट खाएगी) वो मधुर की बात कर रही थी।
"कोई बात नहीं ! तुम्हारे इस शहद के बदले मधु मक्खी काट भी खाए तो कोई नुक्सान वाला सौदा नहीं है !" कहते हुए मैंने उसका हाथ पकड़ लिया।
मेरा अनुमान था वो अपना हाथ छुड़ा लेगी। पर उसने अपना हाथ छुड़ाने का थोड़ा सा प्रयास करते हुए कहा,"ओह ... छोड़ो जीजू क्या करते हो ... कोई देख लेगा ... चलो दूध पी लो फिर मुझे जाना है !"
"मधु की तरह तुम अपने हाथों से पिला दो ना ?"
"वो कैसे ... मेरा मतलब मधु कैसे पिलाती है मुझे क्या पता ?"
मेरे मन में तो आया कह दूं ‘अपनी नाइटी खोलो और इन अमृत कलशों में भरा जो ताज़ा दूध छलक रहा है उसे ही पिला दो’ पर मैंने कहा,"वो पहले गिलास अपने होंठों से लगा कर इसे मधुर बनाती है फिर मैं पीता हूँ !"
"अच्छाजी ... पर मुझे तो दूध अच्छा नहीं लगता मैं तो मलाई की शौक़ीन हूँ !"
"कोई बात नहीं तुम मलाई भी खा लेना !" मैंने हंसते हुए कहा।
मुझे लगा चिड़िया दाना चुगने के लिए अपने पैर जाल की ओर बढ़ाने लगी है, उसने थर्मस खोल कर गिलास में दूध डाला और फिर गिलास मेरी ओर बढ़ा दिया।
"माया प्लीज तुम भी इस दूध का एक घूँट पी लो ना?"
"क्यों ?"
"मुझे बहुत अच्छा लगेगा !"
उसने दूध का एक घूँट भरा और फिर गिलास मेरी ओर बढ़ा दिया।
मैंने ठीक उसी जगह पर अपने होंठ लगाए जहां पर माया के होंठ लगे थे। माया मुझे हैरानी से देखती हुई मंद मंद मुस्कुराने लगी थी। किसी लड़की को प्रभावित करने के यह टोटके मेरे से ज्यादा भला कौन जानता होगा।
"वाह माया मेम साब, तुम्हारे होंठों का मधु तो बहुत ही लाजवाब है यार ?"
"हाय ओ रब्बा ... हटो परे ... कोई कल्ली कुंवारी कुड़ी दे नाल इहो जी गल्लां करदा है ?" (हे भगवान् हटो परे कोई अकेली कुंवारी लड़की के साथ ऐसी बात करता है क्या) वो तो मारे शर्म ले गुलज़ार ही हो गई।
"मैं सच कहता हूँ तुम्हारे होंठों में तो बस मधु भरा पड़ा है। काश ! मैं इनका थोड़ा सा मधु चुरा सकता !"
"तुमने ऐसी बातें की तो मैं चली जाउंगी !" उसने अपनी आँखें तरेरी।
"ओह ... माया, सच में तुम्हारे होंठ और उरोज बहुत खूबसूरत हैं ... पता नहीं किसके नसीब में इनका रस चूसना लिखा है।"
"जीजू तुम फिर ....? मैं जाती हूँ !"
वो जाने का कह तो रही थी पर मुझे पता था उसकी आँखों में भी लाल डोरे तैरने लगे हैं। बस मन में सोच रही होगी आगे बढ़े या नहीं। अब तो मुझे बस थोड़ा सा प्रयास और करना है और फिर तो यह पटियाला की शेरनी बकरी बनते देर नहीं लगाएगी।
"माया चलो दूध ना पिलाओ ! एक बार अपने होंठों का मधु तो चख लेने दो प्लीज ?"
"ना बाबा ना ... केहो जी गल्लां करदे ओ ... किस्से ने वेख लया ते ? होर फेर की पता होंठां दे मधु दे बहाने तुसी कुज होर ना कर बैठो ?" (ना बाबा ना ... कैसी बातें करते हो किसी ने देख लिया तो ? और तुम क्या पता होंठों का मधु पीते पीते कुछ और ना कर बैठो)
गाण्ड मार के इस दूसरी जन्नत का मज़ा तो लूट ही ले !
शाम को हम सभी साथ बैठे चाय पी रहे थे। माया तो पूरी मुटियार बनी थी। गुलाबी रंग की पटियाला सलवार और हरे रंग की कुर्ती में उसका जलवा दीदा-ए-वार (देखने लायक) था। माया अपने साथ मुझे डांस करने को कहने लगी।
मैंने उसे बताया कि मुझे कोई ज्यादा डांस वांस नहीं आता तो वो बोली "यह सब तो मधुर की गलती है।"
"क्यों ? इसमें भला मेरी क्या गलती है ?" मधु ने तुनकते हुए कहा।
"सभी पत्नियाँ अपने पतियों को अपनी अंगुली पर नचाती हैं यह बात तो सभी जानते हैं !"
उसकी इस बात पर सभी हंसने लगे। फिर माया ने "ये काली काली आँखें गोरे गोरे गाल … देखा जो तुम्हें जानम हुआ है बुरा हाल" पर जो ठुमके लगाए कि मेरा दिल तो यह गाने को करने लगा "ये काली काली झांटे … ये गोरी गोरी गाण्ड …"
सच कहूँ तो उसके नितम्बों को देख कर तो मैं इतना उत्तेजित हो गया था कि एक बार तो मेरा मन बाथरूम हो आने को करने लगा। मेरा तो मन कर रहा था कि डांस के बहाने इसे पकड़ कर अपनी बाहों में भींच ही लूँ !
वैसे मधुर भी बहुत अच्छा डांस करती है पर आज उसने पता नहीं क्यों डांस नहीं किया वरना तो वो ऐसा कोई मौका कभी नहीं चूकती।
खाना खाने के बाद रात को कोई 11 बजे माया और मिक्की अपने कमरे में चली गई थी। मैं भी मधु को दूध पिला जाने का इशारा करना चाहता था पर वो कहीं दिखाई नहीं दे रही थी।
मैं सोने के लिए ऊपर चौबारे में चला आया। हालांकि मौसम में अभी भी थोड़ी ठंडक जरुर थी पर मैंने अपने कपड़े उतार दिए थे और मैं नंगधडंग बिस्तर पर बैठा मधु के आने का इंतज़ार करने लगा। मेरा लण्ड तो आज किसी अड़ियल टट्टू की तरह खड़ा था। मैं उसे हाथ में पकड़े समझा रहा था कि बेटा बस थोडा सा सब्र और कर ले तेरी लाडो आती ही होगी। मेरे अन्दर पिछले 10-15 दिनों से जो लावा कुलबुला रहा था मुझे लगा अगर उसे जल्दी ही नहीं निकाला गया तो मेरी नसें ही फट पड़ेंगी। आज मैंने मन में ठान लिया था कि मधु के कमरे में आते ही चूमाचाटी का झंझट छोड़ कर एक बार उसे बाहों में भर कर कसकर जोर जोर से रगडूंगा।
मैं अभी इन खयालों में डूबा ही था कि मुझे किसी के आने की पदचाप सुनाई दी। वो सर झुकाए हाथों में थर्मस और एक गिलास पकड़े धीमे क़दमों से कमरे में आ गई। कमरे में अँधेरा ही था मैंने बत्ती नहीं जलाई थी।
जैसे ही वो बितर के पास पड़ी छोटी स्टूल पर थर्मस और गिलास रखने को झुकी मैंने उसे पीछे से अपनी बाहों में जकड़ लिया। मेरा लण्ड उसके मोटे मोटे नितम्बों की खाई से जा टकराया। मैंने तड़ातड़ कई चुम्बन उसकी पीठ और गर्दन पर ही ले लिए और एक हाथ नीचा करके उसके उरोजों को पकड़ लिया और दूसरे हाथ से उसकी लाडो को भींच लिया। उसने पतली सी नाइटी पहन रखी थी और अन्दर ब्रा और पेंटी नहीं पहनी थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उसके नितम्ब और उरोज इन 10-15 दिनों में इतने बड़े बड़े और भारी कैसे हो गए। कहीं मेरा भ्रम तो नहीं। मैंने अपनी एक अंगुली नाइटी के ऊपर से ही उसकी लाडो में घुसाने की कोशिश करते हुए उसे पलंग पर पटक लेने का प्रयास किया। वह थोड़ी कसमसाई और अपने आप को छुड़ाने की कोशिश करने लगी। इसी आपाधापी में उसकी एक हलकी सी चीख पूरे कमरे में गूँज गई ......
"ऊईईई... ईईईई ... जीजू ये क्या कर रहे हो.......? छोड़ो मुझे ... !"
मैं तो उस अप्रत्याशित आवाज को सुनकर हड़बड़ा ही गया। वो मेरी पकड़ से निकल गई और उसने दरवाजे के पास लगे लाईट के बटन को ऑन कर दिया। मैं तो मुँह बाए खड़ा ही रह गया। लाईट जलने के बाद मुझे होश आया कि मैं तो नंग धडंग ही खड़ा हूँ और मेरा 7 इंच का लण्ड कुतुबमीनार की तरह खड़ा जैसे आये हुए मेहमान को सलामी दे रहा है। मैंने झट से पास रखी लुंगी अपनी कमर पर लपेट ली।
"ओह ... ब ...म... माया तुम ?"
"जीजू ... कम से कम देख तो लेना था ?"
"वो ... स .. सॉरी ... मुझे लगा मधु होगी ?"
"तो क्या तुम मधु के साथ भी इस तरह का जंगलीपन करते हो?"
"ओह .. सॉरी ..." मैं तो कुछ बोलने की हालत में ही नहीं था।
वो मेरी लुंगी के बीच खड़े खूंटे की ओर ही घूरे जा रही थी।
"मैं तो दूध पिलाने आई थी ! मुझे क्या पता कि तुम मुझे इस तरह दबोच लोगे ? भला किसी जवान कुंवारी लड़की के साथ कोई ऐसा करता है?" उसने उलाहना देते हुए कहा।
"माया ... सॉरी ... अनजाने में ऐसा हो गया ... प्लीज म ... मधु से इस बात का जिक्र मत करना !" मैं हकलाता हुआ सा बोला।
मेरे मुँह से तो आवाज ही नहीं निकल रही थी, मैंने कातर नज़रों से उसकी ओर देखा।
"किस बात का जिक्र?"
"ओह... वो... वो कि मैंने मधु समझ कर तुम्हें पकड़ लिया था ना ?"
"ओह ... मैं तो कुछ और ही समझी थी ?" वो हंसने लगी।
"क्या ?"
"मैं तो यह सोच रही थी कि तुम कहोगे कि कमरे में तुम्हारे नंगे खड़े होने वाली बात को मधु से ना कहूं ?" वो खिलखिला कर हंस पड़ी।
अब मेरी जान में जान आई।
"वैसे एक बात कहूं ?" उसने मुस्कुराते हुए पूछा।
"क ... क्या ?"
"वैसे आप बिना कपड़ों के भी जमते हो !"
"धत्त शैतान ... !"
"हुंह ... एक तो मधु के कहने पर मैं दूध पिलाने आई और ऊपर से मुझे ही शैतान कह रहे हो ! धन्यवाद करना तो दूर बैठने को भी नहीं कहा ?"
"ओह... सॉरी ? प्लीज बैठो !" मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह विचित्र ब्रह्म माया मेम साब इतना जल्दी मिश्री की डली बन जायेगी। यह तो नाक पर मक्खी भी नहीं बैठने देती।
"जीजू एक बात पूछूँ?" वो मेरे पास ही बिस्तर पर बैठते हुए बोली।
"हम्म ... ?"
"क्या वो छिपकली (मधुर) रोज़ इसी तरह तुम्हें दूध पिलाती है?"
"ओह ... हाँ ... पिलाती तो है !"
"ओये होए ... होर नाल अपणा शहद वी पीण देंदी है ज्या नइ ?" (ओहो ... और साथ में अपना मधु भी पीने देती है या नहीं) वो मंद मंद मुस्कुरा रही थी। सुधा भाभी और माया पटियाला के पंजाबी परिवार से हैं इसलिए कभी कभी पंजाबी भी बोल लेती हैं।
अजीब सवाल था। कहीं मधु ने इसे हमारे अन्तरंग क्षणों और प्रेम युद्ध के बारे में सब कुछ बता तो नहीं दिया? ये औरतें भी बड़ी अजीब होती हैं पति के सामने तो शर्माने का इतना नाटक करेंगी और अपनी हम उम्र सहेलियों को अपनी सारी निजी बातें रस ले ले कर बता देंगी।
"हाँ ... पर तुम क्यों पूछ रही हो ?"
"उदां ई ? चल्लो कोई गल नइ ! जे तुस्सी नई दसणा चाहंदे ते कोई गल नइ ... मैं जान्नी हाँ फेर ?" (ऐसे ही ? चलो तुम ना बताना चाहो तो कोई बात नहीं ...। मैं जाती हूँ फिर) वो जाने के लिए खड़ी होने लगी।
मैंने झट से उसकी बांह पकड़ते हुए फिर से बैठते हुए कहा,"ओह ... तुम तो नाराज़ हो गई? वो ... दरअसल ... भगवान् ने पति पत्नी का रिश्ता ही ऐसा बनाया है !"
"अच्छाजी ... होर बदले विच्च तुस्सी की पिलांदे ओ?" (अच्छाजी ... और बदले में आप क्या पिलाते हो) वो मज़ाक करते हुए बोली।
हे लिंग महादेव ! यह किस दूध मलाई और शहद की बात कर रही है ? अब तो शक की कोई गुंजाइश ही नहीं रह गई थी। लगता है मधुर ने इसे हमारी सारी अन्तरंग बातें बता दी हैं। जरुर इसके मन भी कुछ कुलबुला रहा है। मैं अगर थोड़ा सा प्रयास करूँ तो शायद यह पटियाला पटाका मेरी बाहों में आ ही जाए।
"ओह .. जब तुम्हारी शादी हो जायेगी तब अपने आप सब पता लग जाएगा !" मैंने कहा।
"कि पता कोई लल्लू जिहा टक्कर गिया ताँ ?" (क्या पता कोई लल्लू टकर गया तो)
"अरे भई ! तुम इतनी खूबसूरत हो ! तुम्हें कोई लल्लू कैसे टकराएगा ?"
"ओह ... मैं कित्थे खूबसूरत हाँ जी ?" (ओह... मैं कहाँ खूबसूरत हूँ जी)
मैं जानता था उसके मन में अभी भी उस बात की टीस (मलाल) है कि मैंने उसकी जगह मधु को शादी के लिए क्यों चुना था। यह स्त्रीगत ईर्ष्या होती ही है, और फिर माया भी तो आखिर एक स्त्री ही है अलग कैसे हो सकती है।
"माया एक बात सच कहूं ?"
"हम्म... ?"
"माया तुम्हारी फिगर ... मेरा मतलब है खासकर तुम्हारे नितम्ब बहुत खूबसूरत हैं !"
"क्यों उस मधुमक्खी के कम हैं क्या ?"
"अरे नहीं यार तुम्हारे मुकाबले में उसके कहाँ ?"
वो कुछ सोचती जा रही थी। मैं उसके मन की उथल पुथल को अच्छी तरह समझ रहा था।
मैंने अगला तीर छोड़ा,"माया मेम साब, सच कहता हूँ अगर तुम थोड़ी देर नहीं चीखती या बोलती तो आज ... तो बस ....?"
"बस ... की ?" (बस क्या ?)
"वो ... वो ... छोड़ो ... मधु को क्या हुआ वो क्यों नहीं आई ?" मैंने जान बूझ कर विषय बदलने की कोशिश की। क्या पता चिड़िया नाराज़ ही ना हो जाए।
"किउँ ... मेरा आणा चंगा नइ लग्या ?" (क्या मेरा आणा अच्छा नहीं लगा ?)
"ओह... अरे नहीं बाबा वो बात नहीं है ... मेरी साली साहिबा जी !"
"पता नहीं खाना खाने के बाद से ही उसे सरदर्द हो रहा था या बहाना मार रही थी सो गई और फिर सुधा दीदी ने मुझे आपको दूध पिला आने को कहा ..."
"ओह तो पिला दो ना ?" मैंने उसके मम्मों (उरोजों) को घूरते हुए कहा।
"पर आप तो दूध की जगह मुझे ही पकड़ कर पता नहीं कुछ और करने के फिराक में थे ?"
"तो क्या हुआ साली भी तो आधी घरवाली ही होती है !"
"अई हई ... जनाब इहो जे मंसूबे ना पालणा ? मैं पटियाला दी शेरनी हाँ ? इदां हत्थ आउन वाली नइ जे ?" (ओये होए जनाब इस तरह के मंसूबे मत पालना ? मैं पटियाला की शेरनी हूँ इस तरह हाथ आने वाली नहीं हूँ)
"हाय मेरी पटियाला की मोरनी मैं जानता हूँ ... पता है पटियाला के बारे में दो चीजें बहुत मशहूर हैं ?"
"क्या ?"
"पटियाला पैग और पटियाला सलवार ?"
"हम्म ... कैसे ?"
"एक चढ़ती जल्दी है और एक उतरती जल्दी है !"
"ओये होए ... वड्डे आये सलवार लाऽऽन आले ?"
"पर मेरी यह शेरनी आधी गुजराती भी तो है ?" (माया गुजरात के अहमदाबाद शहर से एम बी ए कर रही है)
"तो क्या हुआ ?"
"भई गुजराती लड़कियाँ बहुत बड़े दिल वाली होती हैं। अपने प्रेमीजनों का बहुत ख़याल रखती हैं।"
"अच्छाजी ... तो क्या आप भी जीजू के स्थान पर अब प्रेमीजन बनना चाहते हैं ?"
"तो इसमें बुरा क्या है?"
"जेकर ओस कोड़किल्ली नू पता लग गिया ते ओ शहद दी मक्खी वांग तुह्हानूं कट खावेगी ?" (अगर उस छिपकली को पता चल गया तो वो मधु मक्खी की तरह आपको काट खाएगी) वो मधुर की बात कर रही थी।
"कोई बात नहीं ! तुम्हारे इस शहद के बदले मधु मक्खी काट भी खाए तो कोई नुक्सान वाला सौदा नहीं है !" कहते हुए मैंने उसका हाथ पकड़ लिया।
मेरा अनुमान था वो अपना हाथ छुड़ा लेगी। पर उसने अपना हाथ छुड़ाने का थोड़ा सा प्रयास करते हुए कहा,"ओह ... छोड़ो जीजू क्या करते हो ... कोई देख लेगा ... चलो दूध पी लो फिर मुझे जाना है !"
"मधु की तरह तुम अपने हाथों से पिला दो ना ?"
"वो कैसे ... मेरा मतलब मधु कैसे पिलाती है मुझे क्या पता ?"
मेरे मन में तो आया कह दूं ‘अपनी नाइटी खोलो और इन अमृत कलशों में भरा जो ताज़ा दूध छलक रहा है उसे ही पिला दो’ पर मैंने कहा,"वो पहले गिलास अपने होंठों से लगा कर इसे मधुर बनाती है फिर मैं पीता हूँ !"
"अच्छाजी ... पर मुझे तो दूध अच्छा नहीं लगता मैं तो मलाई की शौक़ीन हूँ !"
"कोई बात नहीं तुम मलाई भी खा लेना !" मैंने हंसते हुए कहा।
मुझे लगा चिड़िया दाना चुगने के लिए अपने पैर जाल की ओर बढ़ाने लगी है, उसने थर्मस खोल कर गिलास में दूध डाला और फिर गिलास मेरी ओर बढ़ा दिया।
"माया प्लीज तुम भी इस दूध का एक घूँट पी लो ना?"
"क्यों ?"
"मुझे बहुत अच्छा लगेगा !"
उसने दूध का एक घूँट भरा और फिर गिलास मेरी ओर बढ़ा दिया।
मैंने ठीक उसी जगह पर अपने होंठ लगाए जहां पर माया के होंठ लगे थे। माया मुझे हैरानी से देखती हुई मंद मंद मुस्कुराने लगी थी। किसी लड़की को प्रभावित करने के यह टोटके मेरे से ज्यादा भला कौन जानता होगा।
"वाह माया मेम साब, तुम्हारे होंठों का मधु तो बहुत ही लाजवाब है यार ?"
"हाय ओ रब्बा ... हटो परे ... कोई कल्ली कुंवारी कुड़ी दे नाल इहो जी गल्लां करदा है ?" (हे भगवान् हटो परे कोई अकेली कुंवारी लड़की के साथ ऐसी बात करता है क्या) वो तो मारे शर्म ले गुलज़ार ही हो गई।
"मैं सच कहता हूँ तुम्हारे होंठों में तो बस मधु भरा पड़ा है। काश ! मैं इनका थोड़ा सा मधु चुरा सकता !"
"तुमने ऐसी बातें की तो मैं चली जाउंगी !" उसने अपनी आँखें तरेरी।
"ओह ... माया, सच में तुम्हारे होंठ और उरोज बहुत खूबसूरत हैं ... पता नहीं किसके नसीब में इनका रस चूसना लिखा है।"
"जीजू तुम फिर ....? मैं जाती हूँ !"
वो जाने का कह तो रही थी पर मुझे पता था उसकी आँखों में भी लाल डोरे तैरने लगे हैं। बस मन में सोच रही होगी आगे बढ़े या नहीं। अब तो मुझे बस थोड़ा सा प्रयास और करना है और फिर तो यह पटियाला की शेरनी बकरी बनते देर नहीं लगाएगी।
"माया चलो दूध ना पिलाओ ! एक बार अपने होंठों का मधु तो चख लेने दो प्लीज ?"
"ना बाबा ना ... केहो जी गल्लां करदे ओ ... किस्से ने वेख लया ते ? होर फेर की पता होंठां दे मधु दे बहाने तुसी कुज होर ना कर बैठो ?" (ना बाबा ना ... कैसी बातें करते हो किसी ने देख लिया तो ? और तुम क्या पता होंठों का मधु पीते पीते कुछ और ना कर बैठो)