पायल ने भी मुस्कुरकर बोला "मुझे कुच्छ मूवीस की सीडीज़ चाहिए"
वो आदमी बोला "जी कौनसी चाहिए मेडम हिन्दी वाली या अँग्रेज़ी"
पायल बोली "फिलहाल हिन्दी दिखा दो"
वो आदमी ने एक बड़ा सा बंड्ल निकाला और उसमें काई सारी पिक्चरो की सीडीज़ दिखाने लग गया....
ललिता भी पायल के साथ उनको देखने लगी... ललिता की नज़र कयि सारी बी-ग्रेड मूवीस पर पड़ी और उनके नाम
पढ़कर मन ही मन हंस पड़ी... उनमें से एक का नाम पढ़कर वो हंस ही पड़ी वो नाम था "खेत में गुटार गू"
पायल ने दो-तीन मूवीस रखली और बोली "और भी है क्या"
वो आदमी बोला "नहीं और तो हिन्दी में नहीं होगी... साउत इंडियन ही होंगी"
पायल अपना सिर हिलाके बोली "नहीं वो नहीं चाहिए और कुच्छ"
ललिता को क्यूँ लग रहा था कि वो आदमी बार बार उसके मम्मो पे नज़रे घूमाए जा रहा था...
पायल के मम्मो उससे छोटे थे शायद इस बात का मज़ा ललिता को मिल रहा था... वो आदमी बोला
"बाकी तो भोज पुरी ही होंगी... या फिर डबल क्ष या ट्रिपल क्ष" ये बोलने में वो आदमी काफ़ी झिझक रहा था मगर
जब उसने पायल के मुँह से सुना "हां वो दिखाना" उसकी तो हवा ही निकल गयी... वो ही हाल ललिता का भी था..
उसे नहीं पता था कि उसकी दोस्त उसको खीचकर अडल्ट मूवी खरीदने आई है... ललिता भी अब उसको छोड़के
जा नहीं सकती थी या फिर जाना नहीं चाहती थी...
उस आदमी ने अपनी ड्रॉयर में काई सारी मूवीस निकालके दोनो लड़कियों के सामने रख दी... उसके चेहरे से
सॉफ ज़ाहिर हो गया कि मुश्किल से ही कभी लड़किया ऐसी मूवी खरीदने आती होंगी और वो शाम के सात बजे तो
नामुमकिन ही था... हर एक सीडी के कवर पे गंदी सी लड़किया आधे आधे कपड़ो में थी... पायल सीडीज़ को छाँटने लग
गयी और वो आदमी बड़ा उत्सुक्त होकर उसको बताने लगा कि "मेडम ये वाली अच्छी है.. इसको लीजिए आप...
इससे बेहतर तो पिच्छली वाली थी"
दोनो लड़किया समझ गयी थी कि ये हर रोज़ नयी पॉर्न देखता होगा घर लेजाकर तभी साले को इतना पता है...
पायल भी अब उस आदमी से काफ़ी खुल के बात कर रही थी जिससे ललिता को भी जोश आ गया... रिचा के घर इतनी
सारी पॉर्न देखने के बाद वो भी उन्हे पसंद करने लग गयी थी और उसने भी 2-3 सीडीज़ अपने लिए अलग से निकाल ली...
उस बंदे ने सीडीज़ को एक पोलिथीन में डालके एक भूरा पेपर बॅग में डालते हुए कहा 'मेडम एक बात बोलू...
बुर्रा ना मानना.. इन सीडीज़ में ज़्यादा कुच्छ रखा नहीं है... असली में करने में जो बात है वो इनमे नही है"
उस आदमी की इस बात को सुनके दोनो लड़कियों ने एक शर्मिंदगी वाली मुस्कुराहट मारी मगर अंदर ही अंदर वो
हंस पड़े थे... ज़्यादा समय बर्बाद ना करते हुए ललिता और पायल ने उन्न सीडीज़ को अपने पर्स में डाला और
अपने दोस्तो के पास चले गये...
ललिता को छोड़के बाकी सारे एक साथ एक मेट्रो में चढ़ गये... ललिता अपने घर जाने के लिए मेट्रो में
चढ़ गयी और खड़ी रहकर उस बंदे की गंदी बात पे ध्यान देने लगी की असली में जो करने में मज़े है वो
इन्न सीडीज़ में नहीं है.... अगला स्टेशन बारहखंबा था और ललिता ने एक बहुत अजीब सा काम कर दिया...
वो उस स्टेशन पे उतरके वापस उस ट्रेन में चढ़ि मगर इस बार एक नॉर्मल वाले डिब्बे में जहाँ 3-4
औरतो को छोड़के दूर दूर तक सिर्फ़ आदमी ही दिखाई दे रहे थे... इतनी छ्होटी उम्र की लड़की के बदन
पर इतने बड़े खरबूजो को देख कर सभी लड़को आदमियों का मन खराब हो रहा था... उन आदमियो को धक्का
दे दे कर कहीं सुरक्षित खड़ा होना बड़ा ही मुश्किल काम था और ललिता वो करने भी नहीं आई थी....
वो सीधे दरवाज़े से थोड़ा दूर होकर खड़ी हो गयी पोल को पकड़ कर... उसके आगे पीछे लड़के आदमी का
ही घेरा बँधा हुआ था... ललिता को वो पॉर्न याद आगाई जो उसने रिचा के घर पे देखी थी जिसमें एक स्कूल
की लड़की को कयि लोगो ने मिलके बस में चोदा था... वो सोचके ही ललिता को मस्ती चढ़ गयी...
ट्रेन के चलते ही ललिता का बदन कई लोगो के बदन से टकराया... ललिता के आगे दो लड़के खड़े थे जो उसी की
उम्र के थे.. दोनो दोस्त लग रहे थे जोकि शायद ललिता के बारे में ही कानापूसी कर रहे थे...
उनकी नज़रो के सामने ललिता के मम्मे थे जिन्हे छूने का उनका बड़ा मन कर रहा था मगर उनमे हिम्मत
नहीं थी... ललिता को इन महीनो में इतना पता था बड़े, लो क्लास लोगो में असली गुर्दा होता है और चोद्ने की
ताक़त भी और कहीं ना कहीं वो उन्ही का इंतेज़ार कर रही थी.... मगर अगले स्टेशन्स पे भीड़ बढ़ी ललिता धक्के
खा खा कर उन दोनो लड़को के बीच में खड़ी हो गयी...
जिस्म की प्यास compleet
Re: जिस्म की प्यास
साइड से देखने में ललिता के मम्मे और
भी रोमांचक लग रहे थे... दोनो दोस्त बात करने के बहाने ललिता के स्तनो पे नज़रे घुमा रहे थे जिससे
ललिता को ज़रा भी दिक्कत नहीं थी...फिर ट्रेन पे हल्के सा झटका लगा और उल्टे हाथ पे खड़े लड़के
के कंधे ने ललिता के उल्टे स्तन को च्छू लिया... उस लड़के के चेहरे पे इतनी खुशी छ्छा गयी थी कि जैसे ओलिमपिक्स
में गोल्ड मेडल मिल गया.....ललिता दोनो के बीच खड़े हुए काफ़ी बोर हो गयी थी तब उसको लगा कि अब
उसे कुच्छ करना पड़ेगा तो ललिता ने अपना पर्स खोला और उसमें से उन खरीदी हुई सीडीज़ को निकाला और
बड़ी शान से उन्हे देखने लगी... उसे नहीं मालूम था कि कितने लोग उस सीडी पे बने कवर को देख पा
रहे थे मगर इतना पक्का था कि उन दोनो लड़को की आँखें फॅटी की फॅटी रह गयी थी...
ललिता के हाथो से एक सीडी नीचे गिर गयी तो दोनो लड़के उत्साहित होके नीचे झुके और उनमें से एक ने उस
सीडी को पकड़के ललिता को दे दिया... ललिता दोनो के बच्पने को देखकर अंदर ही अंदर हंस पड़ी...
फिर आनंद विहार स्टेशन भी आ गया और उन लड़को ने कुच्छ भी नही करा... ललिता मन मारकर स्टेशन से उतरी
और वहाँ से बाहर निकलने लगी... उसको एक एहसास सा हो गया था कि वो दो लड़के उसके पीछे ही आ रहे है...
ललिता स्टेशन के बाहर भी निकल गयी और तब भी वो उसके पीछे ही आते गये और फिर उन में से एक लड़के ने
ललिता की कमर पे झपट्टा मारा... ललिता ने उस लड़के का हाथ हटा दिया और आगे चलने लगी...
क्रमशः…………………..
भी रोमांचक लग रहे थे... दोनो दोस्त बात करने के बहाने ललिता के स्तनो पे नज़रे घुमा रहे थे जिससे
ललिता को ज़रा भी दिक्कत नहीं थी...फिर ट्रेन पे हल्के सा झटका लगा और उल्टे हाथ पे खड़े लड़के
के कंधे ने ललिता के उल्टे स्तन को च्छू लिया... उस लड़के के चेहरे पे इतनी खुशी छ्छा गयी थी कि जैसे ओलिमपिक्स
में गोल्ड मेडल मिल गया.....ललिता दोनो के बीच खड़े हुए काफ़ी बोर हो गयी थी तब उसको लगा कि अब
उसे कुच्छ करना पड़ेगा तो ललिता ने अपना पर्स खोला और उसमें से उन खरीदी हुई सीडीज़ को निकाला और
बड़ी शान से उन्हे देखने लगी... उसे नहीं मालूम था कि कितने लोग उस सीडी पे बने कवर को देख पा
रहे थे मगर इतना पक्का था कि उन दोनो लड़को की आँखें फॅटी की फॅटी रह गयी थी...
ललिता के हाथो से एक सीडी नीचे गिर गयी तो दोनो लड़के उत्साहित होके नीचे झुके और उनमें से एक ने उस
सीडी को पकड़के ललिता को दे दिया... ललिता दोनो के बच्पने को देखकर अंदर ही अंदर हंस पड़ी...
फिर आनंद विहार स्टेशन भी आ गया और उन लड़को ने कुच्छ भी नही करा... ललिता मन मारकर स्टेशन से उतरी
और वहाँ से बाहर निकलने लगी... उसको एक एहसास सा हो गया था कि वो दो लड़के उसके पीछे ही आ रहे है...
ललिता स्टेशन के बाहर भी निकल गयी और तब भी वो उसके पीछे ही आते गये और फिर उन में से एक लड़के ने
ललिता की कमर पे झपट्टा मारा... ललिता ने उस लड़के का हाथ हटा दिया और आगे चलने लगी...
क्रमशः…………………..
Re: जिस्म की प्यास
जिस्म की प्यास--25
गतान्क से आगे……………………………………
वो दोनो लड़के उनके साथ ही चल रहे थे और ललिता को कुच्छ समझ नहीं आ रहा था कि अब आगे क्या होगा
और फिर उसे एक जानी पहचानी आवाज़ सुनाई दी...
"हां जी मेमसाहिब कहाँ जाना है आपको" ये तो वोई आदमी था जिसके रिक्शा में ललिता कयि बारी बैठके घर
जा चुकी थी... ललिता दोनो लड़को की झंड करते हुए उस रिक्शा में बैठ गयी.... रिक्शा हमेशा की
तरह बहुत तेज़ चल रहा था और ललिता अब तीसरी बारी इसी रिक्शा में बैठी हुई थी... पिच्छली दो बारी उस आदमी
ने उस सुनसान सड़क (जोकि एक शॉर्ट कट था) पे जाके उस रिक्शा से उतर करके झाड़ियों में जाके मूता था
और शायद इस बारी भी वो यही करेगा ऐसा ललिता सोचके बैठी थी.... और जब वो रिक्शा उस सुनसान सड़क की
तरफ पहुचा तो तब ललिता बोली "एक मिनट रुकना भैया..."
ललिता रिक्शा से अपना पर्स लेकर उतरी और बड़ी हिम्मत दिखाते हुए उन झाड़ियों की तरफ बढ़ी...
उसे नहीं पता था कि वो रिक्शा वाला भैया क्या रहा है और वो पिछे मुड़ना भी नहीं चाहती थी...
उस सड़क पर हमेशा की तरह अंधेरा छाया हुआ था और जब तक ललिता उन झाडियो तक बढ़ी वो अंधेरे में
गुम हो गयी मगर झाडियो की आवाज़ आती रही और फिर पूरी शांति हो गयी.... ललिता इतने अंधेरे में
सहम कर वही खड़ी रही और उस रिक्शा वाले का बेसब्री से इंतजार करने लगी... वो झाडिय सामने दिखने
में काफ़ी भयानक लगती थी मगर अभी ऐसा कुच्छ नहीं लग रहा था...उन झाडियो के उधर हद से ज़्यादा
पेशाब की बू आ रही थी जो अब ललिता की नाक में फेल गयी थी... कहीं वो भैया ये तो नहीं सोच रहा कि मैं
भी यहाँ मूतने ही आई हूँ?? ऐसा ख़याल ललिता के दिमाग़ मैं आया मगर कुच्छ देर बाद ललिता को चलने की
आवाज़ आई और फिर झाड़ियों को हटाकर उसके सामने वोई आदमी खड़ा हो गया.... अंधेरे में दोनो
एक दूसरे को देख नहीं पाए मगर उस रिक्शा वाले के हाथ सीधा ललिता के स्तनो को दबाने लगे.....
इस एहसास के लिए नज़ाने ललिता कितने दिनो से बेताब थी... उस रिक्शा वाले ने ललिता को मम्मो से ही खीचा
और उसके होंठो पे एक गीली चुम्मि करी....रिक्शा वाला अच्छी तरह जानता था कि यहा खड़ा रहना ख़तरे से
खाली नही है और यहाँ वो इस अमीर लड़की को चोद भी नही पाएगा तो उसने जल्दी से अपनी पॅंट को नीचे
उतारा और अपना लंड ललिता के हाथो में थमा दिया... ललिता समझ गयी थी कि ये रिक्शा वाले भैया क्या
चाह रहे है और उन झाडियो में बैठ गयी... उस लंड के उधर की बू इन झडियो की बू में कुच्छ फरक
नहीं था... ललिता ने उस लंड को पकड़ा जो कि ज़्यादा बड़ा नहीं था मगर सख़्त हो गया था और अपना
मुँह खोलके उसको चूसने लगी..... उस भैया ने अपना हाथ ललिता के सिर पे रखा और उसको अपनी रफ़्तार से
आगे पीछे करने लगा....
क्या सही है या ग़लत ये अब ललिता के दिमाग़ ने सोचना ज़रूरी नही समझा और वो उन झाडियो के अंधकार
में रॅंडियो की तरह एक रिक्शा वाले के गंदे लंड को चूसे जा रही थी.... उस भैया ने अपना
सीधा हाथ बढ़ाया और ललिता के मम्मो को उसकी टी-शर्ट के उपर से ही मसल्ने लग गया.... उसे कभी नही
लगा था की ये ज़िंदगी उसे ऐसे मौके भी देगी... ललिता ने भी आगे बढ़ के रिक्शा वाले के अंडे को आहिस्ते
आहिस्ते से दबाने लग गयी.... देखते ही देखते उस भैया ने अपना सारा वीर्य ललिता के गाल माथे होंठो पे छिड़क दिया.... ललिता की चूत चुद्ने के इंतजार में लगी हुई थी मगर उससे पहले वो कुच्छ कह पाती
वो आदमी अपना लंड हिलाता हुआ वहाँ से चला गया.... ललिता ने अपने पर्स में से हॅंकी निकाला और
अपने चेहरे को ढंग से सॉफ करके उस हॅंकी को वही फेंक दिया... ललिता नीचे ज़मीन को देखती हुई रिक्शा
में बैठ गयी... उसके बाद किसी ने भी अपना मुँह तक नही खोला और जब ललिता ने उस रिक्शा वाले को
पैसे दिए तो उसने मना कर दिया और पूछा "अब कब मिलोगि" .... ललिता पीछे मूड गयी और बोली "जल्द ही"
ललिता जानती थी कि अब वो दिल्ली में कुच्छ ही दिनो की मेहमान है और इसके बाद शायद ही वो मयंक,
उस चौकीदार, रिचा के नौकर और इस रिक्शा वाले से मिलेगी.... उसे खुशी इस बात की थी कि जाने से पहले
दिल्ली ने उसे एक छोटी बच्ची से एक जवान लड़की बना दिया था... घर पहूचके ही उसने सबसे पहले नहाना
ज़रूरी समझा तो वो अपने कपड़े ले के टाय्लेट में चली गयी... उसको अपने बदन में से उस रिक्शा वाले की बदबू सी आने लगी थी... उसने अपनी पैंटी को देखकर ही अंदाज़ा लगा लिया था कि उस रिक्शा के वाले लंड में
कितना दम था जो उसकी चूत को काफ़ी गीला कर चुका था.... आज उसने नहाने में हद्द से ज़्यादा देर करदी थी
क्यूंकी वो अपने बदन को वो ज़रूरते पूरी कर रही थी जो वो रिक्शा वाला नहीं कर सका...
अपने मम्मो को दबा कर अपनी चुचियो को मसल कर अपनी चूत में उंगली घुसाती हुई नज़ाने वो अपनी इस
रोमांचक दुनिया में कितना खो चुकी थी....
गतान्क से आगे……………………………………
वो दोनो लड़के उनके साथ ही चल रहे थे और ललिता को कुच्छ समझ नहीं आ रहा था कि अब आगे क्या होगा
और फिर उसे एक जानी पहचानी आवाज़ सुनाई दी...
"हां जी मेमसाहिब कहाँ जाना है आपको" ये तो वोई आदमी था जिसके रिक्शा में ललिता कयि बारी बैठके घर
जा चुकी थी... ललिता दोनो लड़को की झंड करते हुए उस रिक्शा में बैठ गयी.... रिक्शा हमेशा की
तरह बहुत तेज़ चल रहा था और ललिता अब तीसरी बारी इसी रिक्शा में बैठी हुई थी... पिच्छली दो बारी उस आदमी
ने उस सुनसान सड़क (जोकि एक शॉर्ट कट था) पे जाके उस रिक्शा से उतर करके झाड़ियों में जाके मूता था
और शायद इस बारी भी वो यही करेगा ऐसा ललिता सोचके बैठी थी.... और जब वो रिक्शा उस सुनसान सड़क की
तरफ पहुचा तो तब ललिता बोली "एक मिनट रुकना भैया..."
ललिता रिक्शा से अपना पर्स लेकर उतरी और बड़ी हिम्मत दिखाते हुए उन झाड़ियों की तरफ बढ़ी...
उसे नहीं पता था कि वो रिक्शा वाला भैया क्या रहा है और वो पिछे मुड़ना भी नहीं चाहती थी...
उस सड़क पर हमेशा की तरह अंधेरा छाया हुआ था और जब तक ललिता उन झाडियो तक बढ़ी वो अंधेरे में
गुम हो गयी मगर झाडियो की आवाज़ आती रही और फिर पूरी शांति हो गयी.... ललिता इतने अंधेरे में
सहम कर वही खड़ी रही और उस रिक्शा वाले का बेसब्री से इंतजार करने लगी... वो झाडिय सामने दिखने
में काफ़ी भयानक लगती थी मगर अभी ऐसा कुच्छ नहीं लग रहा था...उन झाडियो के उधर हद से ज़्यादा
पेशाब की बू आ रही थी जो अब ललिता की नाक में फेल गयी थी... कहीं वो भैया ये तो नहीं सोच रहा कि मैं
भी यहाँ मूतने ही आई हूँ?? ऐसा ख़याल ललिता के दिमाग़ मैं आया मगर कुच्छ देर बाद ललिता को चलने की
आवाज़ आई और फिर झाड़ियों को हटाकर उसके सामने वोई आदमी खड़ा हो गया.... अंधेरे में दोनो
एक दूसरे को देख नहीं पाए मगर उस रिक्शा वाले के हाथ सीधा ललिता के स्तनो को दबाने लगे.....
इस एहसास के लिए नज़ाने ललिता कितने दिनो से बेताब थी... उस रिक्शा वाले ने ललिता को मम्मो से ही खीचा
और उसके होंठो पे एक गीली चुम्मि करी....रिक्शा वाला अच्छी तरह जानता था कि यहा खड़ा रहना ख़तरे से
खाली नही है और यहाँ वो इस अमीर लड़की को चोद भी नही पाएगा तो उसने जल्दी से अपनी पॅंट को नीचे
उतारा और अपना लंड ललिता के हाथो में थमा दिया... ललिता समझ गयी थी कि ये रिक्शा वाले भैया क्या
चाह रहे है और उन झाडियो में बैठ गयी... उस लंड के उधर की बू इन झडियो की बू में कुच्छ फरक
नहीं था... ललिता ने उस लंड को पकड़ा जो कि ज़्यादा बड़ा नहीं था मगर सख़्त हो गया था और अपना
मुँह खोलके उसको चूसने लगी..... उस भैया ने अपना हाथ ललिता के सिर पे रखा और उसको अपनी रफ़्तार से
आगे पीछे करने लगा....
क्या सही है या ग़लत ये अब ललिता के दिमाग़ ने सोचना ज़रूरी नही समझा और वो उन झाडियो के अंधकार
में रॅंडियो की तरह एक रिक्शा वाले के गंदे लंड को चूसे जा रही थी.... उस भैया ने अपना
सीधा हाथ बढ़ाया और ललिता के मम्मो को उसकी टी-शर्ट के उपर से ही मसल्ने लग गया.... उसे कभी नही
लगा था की ये ज़िंदगी उसे ऐसे मौके भी देगी... ललिता ने भी आगे बढ़ के रिक्शा वाले के अंडे को आहिस्ते
आहिस्ते से दबाने लग गयी.... देखते ही देखते उस भैया ने अपना सारा वीर्य ललिता के गाल माथे होंठो पे छिड़क दिया.... ललिता की चूत चुद्ने के इंतजार में लगी हुई थी मगर उससे पहले वो कुच्छ कह पाती
वो आदमी अपना लंड हिलाता हुआ वहाँ से चला गया.... ललिता ने अपने पर्स में से हॅंकी निकाला और
अपने चेहरे को ढंग से सॉफ करके उस हॅंकी को वही फेंक दिया... ललिता नीचे ज़मीन को देखती हुई रिक्शा
में बैठ गयी... उसके बाद किसी ने भी अपना मुँह तक नही खोला और जब ललिता ने उस रिक्शा वाले को
पैसे दिए तो उसने मना कर दिया और पूछा "अब कब मिलोगि" .... ललिता पीछे मूड गयी और बोली "जल्द ही"
ललिता जानती थी कि अब वो दिल्ली में कुच्छ ही दिनो की मेहमान है और इसके बाद शायद ही वो मयंक,
उस चौकीदार, रिचा के नौकर और इस रिक्शा वाले से मिलेगी.... उसे खुशी इस बात की थी कि जाने से पहले
दिल्ली ने उसे एक छोटी बच्ची से एक जवान लड़की बना दिया था... घर पहूचके ही उसने सबसे पहले नहाना
ज़रूरी समझा तो वो अपने कपड़े ले के टाय्लेट में चली गयी... उसको अपने बदन में से उस रिक्शा वाले की बदबू सी आने लगी थी... उसने अपनी पैंटी को देखकर ही अंदाज़ा लगा लिया था कि उस रिक्शा के वाले लंड में
कितना दम था जो उसकी चूत को काफ़ी गीला कर चुका था.... आज उसने नहाने में हद्द से ज़्यादा देर करदी थी
क्यूंकी वो अपने बदन को वो ज़रूरते पूरी कर रही थी जो वो रिक्शा वाला नहीं कर सका...
अपने मम्मो को दबा कर अपनी चुचियो को मसल कर अपनी चूत में उंगली घुसाती हुई नज़ाने वो अपनी इस
रोमांचक दुनिया में कितना खो चुकी थी....