जिस्म की प्यास--25
गतान्क से आगे……………………………………
वो दोनो लड़के उनके साथ ही चल रहे थे और ललिता को कुच्छ समझ नहीं आ रहा था कि अब आगे क्या होगा
और फिर उसे एक जानी पहचानी आवाज़ सुनाई दी...
"हां जी मेमसाहिब कहाँ जाना है आपको" ये तो वोई आदमी था जिसके रिक्शा में ललिता कयि बारी बैठके घर
जा चुकी थी... ललिता दोनो लड़को की झंड करते हुए उस रिक्शा में बैठ गयी.... रिक्शा हमेशा की
तरह बहुत तेज़ चल रहा था और ललिता अब तीसरी बारी इसी रिक्शा में बैठी हुई थी... पिच्छली दो बारी उस आदमी
ने उस सुनसान सड़क (जोकि एक शॉर्ट कट था) पे जाके उस रिक्शा से उतर करके झाड़ियों में जाके मूता था
और शायद इस बारी भी वो यही करेगा ऐसा ललिता सोचके बैठी थी.... और जब वो रिक्शा उस सुनसान सड़क की
तरफ पहुचा तो तब ललिता बोली "एक मिनट रुकना भैया..."
ललिता रिक्शा से अपना पर्स लेकर उतरी और बड़ी हिम्मत दिखाते हुए उन झाड़ियों की तरफ बढ़ी...
उसे नहीं पता था कि वो रिक्शा वाला भैया क्या रहा है और वो पिछे मुड़ना भी नहीं चाहती थी...
उस सड़क पर हमेशा की तरह अंधेरा छाया हुआ था और जब तक ललिता उन झाडियो तक बढ़ी वो अंधेरे में
गुम हो गयी मगर झाडियो की आवाज़ आती रही और फिर पूरी शांति हो गयी.... ललिता इतने अंधेरे में
सहम कर वही खड़ी रही और उस रिक्शा वाले का बेसब्री से इंतजार करने लगी... वो झाडिय सामने दिखने
में काफ़ी भयानक लगती थी मगर अभी ऐसा कुच्छ नहीं लग रहा था...उन झाडियो के उधर हद से ज़्यादा
पेशाब की बू आ रही थी जो अब ललिता की नाक में फेल गयी थी... कहीं वो भैया ये तो नहीं सोच रहा कि मैं
भी यहाँ मूतने ही आई हूँ?? ऐसा ख़याल ललिता के दिमाग़ मैं आया मगर कुच्छ देर बाद ललिता को चलने की
आवाज़ आई और फिर झाड़ियों को हटाकर उसके सामने वोई आदमी खड़ा हो गया.... अंधेरे में दोनो
एक दूसरे को देख नहीं पाए मगर उस रिक्शा वाले के हाथ सीधा ललिता के स्तनो को दबाने लगे.....
इस एहसास के लिए नज़ाने ललिता कितने दिनो से बेताब थी... उस रिक्शा वाले ने ललिता को मम्मो से ही खीचा
और उसके होंठो पे एक गीली चुम्मि करी....रिक्शा वाला अच्छी तरह जानता था कि यहा खड़ा रहना ख़तरे से
खाली नही है और यहाँ वो इस अमीर लड़की को चोद भी नही पाएगा तो उसने जल्दी से अपनी पॅंट को नीचे
उतारा और अपना लंड ललिता के हाथो में थमा दिया... ललिता समझ गयी थी कि ये रिक्शा वाले भैया क्या
चाह रहे है और उन झाडियो में बैठ गयी... उस लंड के उधर की बू इन झडियो की बू में कुच्छ फरक
नहीं था... ललिता ने उस लंड को पकड़ा जो कि ज़्यादा बड़ा नहीं था मगर सख़्त हो गया था और अपना
मुँह खोलके उसको चूसने लगी..... उस भैया ने अपना हाथ ललिता के सिर पे रखा और उसको अपनी रफ़्तार से
आगे पीछे करने लगा....
क्या सही है या ग़लत ये अब ललिता के दिमाग़ ने सोचना ज़रूरी नही समझा और वो उन झाडियो के अंधकार
में रॅंडियो की तरह एक रिक्शा वाले के गंदे लंड को चूसे जा रही थी.... उस भैया ने अपना
सीधा हाथ बढ़ाया और ललिता के मम्मो को उसकी टी-शर्ट के उपर से ही मसल्ने लग गया.... उसे कभी नही
लगा था की ये ज़िंदगी उसे ऐसे मौके भी देगी... ललिता ने भी आगे बढ़ के रिक्शा वाले के अंडे को आहिस्ते
आहिस्ते से दबाने लग गयी.... देखते ही देखते उस भैया ने अपना सारा वीर्य ललिता के गाल माथे होंठो पे छिड़क दिया.... ललिता की चूत चुद्ने के इंतजार में लगी हुई थी मगर उससे पहले वो कुच्छ कह पाती
वो आदमी अपना लंड हिलाता हुआ वहाँ से चला गया.... ललिता ने अपने पर्स में से हॅंकी निकाला और
अपने चेहरे को ढंग से सॉफ करके उस हॅंकी को वही फेंक दिया... ललिता नीचे ज़मीन को देखती हुई रिक्शा
में बैठ गयी... उसके बाद किसी ने भी अपना मुँह तक नही खोला और जब ललिता ने उस रिक्शा वाले को
पैसे दिए तो उसने मना कर दिया और पूछा "अब कब मिलोगि" .... ललिता पीछे मूड गयी और बोली "जल्द ही"
ललिता जानती थी कि अब वो दिल्ली में कुच्छ ही दिनो की मेहमान है और इसके बाद शायद ही वो मयंक,
उस चौकीदार, रिचा के नौकर और इस रिक्शा वाले से मिलेगी.... उसे खुशी इस बात की थी कि जाने से पहले
दिल्ली ने उसे एक छोटी बच्ची से एक जवान लड़की बना दिया था... घर पहूचके ही उसने सबसे पहले नहाना
ज़रूरी समझा तो वो अपने कपड़े ले के टाय्लेट में चली गयी... उसको अपने बदन में से उस रिक्शा वाले की बदबू सी आने लगी थी... उसने अपनी पैंटी को देखकर ही अंदाज़ा लगा लिया था कि उस रिक्शा के वाले लंड में
कितना दम था जो उसकी चूत को काफ़ी गीला कर चुका था.... आज उसने नहाने में हद्द से ज़्यादा देर करदी थी
क्यूंकी वो अपने बदन को वो ज़रूरते पूरी कर रही थी जो वो रिक्शा वाला नहीं कर सका...
अपने मम्मो को दबा कर अपनी चुचियो को मसल कर अपनी चूत में उंगली घुसाती हुई नज़ाने वो अपनी इस
रोमांचक दुनिया में कितना खो चुकी थी....
जिस्म की प्यास compleet
Re: जिस्म की प्यास
उसकी मा बिस्तर पर पड़ी अपनी बदन से खेल रही थी और उनको कोई होश नहीं था... ललिता को यह पता चल गया था
कि उसकी मा का यह हाल किसी से फोन पे बात करने की वजह से था मगर एक बात ललिता को नही पता थी कि
वो सब चेतन का कारण था... जितनी भी इज़्ज़त वो अपनी मम्मी की करती थी वो अब सारी ख़तम हो गयी थी...
वो अपने पापा नारायण के बारे में सोचके अफ़सोस जताने लगी... उसे समझ नही आ रहा था कि वो ये किसी को बताए
भी या नहीं... काई सारे सवाल थे जिसका जवाब उसके पास नही था...
आज का दिन दोनो बहनो के लिए दिल्ली में आखरी दिन था... दोनो ने घर पे वक़्त बिताना ही ठीक समझा मगर उनके भाई चेतन का कुच्छ आता पता नहीं था... शन्नो ने अपने बेटे के फोन पे मैसेज लिख दिया था कि कल डॉली और ललिता
भोपाल जा रहे है जैसा कि तुम चाहते थे..... इस मैसेज के भेजने के बाद ही चेतन कुच्छ घंटे में घर आ गया था....
चेतन शन्नो के प्रति बिल्कुल एक अच्छे बेटे की तरह व्यवहार कर रहा था मगर ललिता ऐसा कुच्छ भी नही कर रही थी...
उसे अपनी मम्मी पे गुस्सा आ रहा था क्यूंकी कल रात वो किसी से फोन पे बात करते हुए नंगी बिस्तर पे पड़ी अपने
जिस्म से खेल रही थी.... कोई भी बेटी अपनी मा को ऐसी हालत में देखना पसंद नही करेगी मगर इसका असर एक अलग तरह से हुआ शन्नो की बेटी पे.... खैर पूरा दिन ऐसे ही बीत चुका था....
उधर भोपाल में रश्मि आज स्कूल से जल्दी चली गयी थी... नारायण को पूरे आधा दिन स्कूल में राहत मिली जिसका
वो बहुत आनंद उठा रहा था... रश्मि के आस पास भटकने के कारण उसके काई काम रुके हुए पड़े थे...
सब कुच्छ निपटाते निपटाते काफ़ी देर हो चुकी थी.. नारायण ने घड़ी पे समय देखा तो 3:30 तक बज चुके थे...
नारायण ने सोच लिया था कि घर जाकर वो चैन की नींद सोएगा... अपने कॅबिन को बंद करके वो अपना बॅग लेके स्कूल बाहर जाने के लिए निकला... उसे लगा था कि पूरा स्कूल जा चुका है क्यूंकी कोई दिखाई नहीं दे रहा था...
वो जल्दी जल्दी चलके जाने लगा और फिर उसे टेबल या चेर के हिलने की आवाज़ आई... उसके कदम एक दम से रुक गये
और वो धीरे धीरे पीछे की तरफ जाने लगा... हर क्लास के कमरे पर ताला लगा हुआ था मगर उसकी नज़र एक
कमरे पे पड़ी जिसपे कोई ताला नहीं था... उस क्लास रूम पर छोटा सा शीसा था जिसकी वजह से अंदर बाहर
देखा जा सकता था... नारायण ने अपनी आखें फैला कर देखा तो उसे कुच्छ दिखाई नही दिया...
वो थोड़ा टेढ़ा हुआ तो उसे किसी का पाँव हिलते हुए दिखाई दिया जोकि हर अगले सेकेंड आगे पीछे हीले जा रहा था...
नारायण को पता चल गया था कि कमरे में कुच्छ गड़बड़ हो रही है... वो ज़ोर ज़ोर से उस कमरे के दरवाज़े पर
मारने लग गया.... हाथो के साथ साथ लाते भी दरवाज़े पर बरसाने लगा और फिर उसे कुण्डी खुलने की आवाज़ आई...
क्लास रूम का दरवाज़ा खोलने वाला एक पीयान जोकि नारायण को देखकर ज़रा सा भी नहीं घबराया...
नारायण ने उसको हल्क्का सा धक्का देते हुए हटाया तो वो दंग रह गया... उस कमरे के कोने में एक टेबल पे टाँगें
फेला कर रीत बैठी हुई.. रीत के जिस्म पर सिर्फ़ के सफेद रंग की कच्छि थी और वो बेहद शर्मिंदा लग रही थी..
नारायण गुस्से में कमरे में गया और उससे पहले वो कुच्छ बोलता रीत ने कहा " सर आप जैसा कह रहे है मैं वैसा ही कर रही हूँ... प्लीज़ आप मेरे घर वालो को कुच्छ मत बताईएएगा"
ये सुनकर नारायण वहाँ खड़ा का खड़ा रह गया... वो बोला "ये क्या बकवास कर रही हो तुम"
रीत बोली " सर आपने ही तो कहा था कि इस पीयान के साथ के मुझे ये सब करना पड़ेगा तभी आप वो म्मस क्लिप मेरे घर वालो को नहीं दिखाओगे.."
नारायण के माथे पर पसीना छाया हुआ था और मूड के देखा तो वो पीयान भी वहाँ से जा चुका था... उसके पास रीत से कहने के लिए कुच्छ नहीं था मगर वो समझ गया था कि रश्मि उसे और रीत दोनो को ब्लॅकमेल कर रही है....
नारायण ने रीत को कपड़े पहनने के लिए कहा और यहाँ से जाने के लिए कहा... इन सब हर्कतो में नारायण को एक बात समझ नहीं आई कि आख़िर कार क्यूँ रश्मि रीत को एक पीयान से चुद्वायेगी
कि उसकी मा का यह हाल किसी से फोन पे बात करने की वजह से था मगर एक बात ललिता को नही पता थी कि
वो सब चेतन का कारण था... जितनी भी इज़्ज़त वो अपनी मम्मी की करती थी वो अब सारी ख़तम हो गयी थी...
वो अपने पापा नारायण के बारे में सोचके अफ़सोस जताने लगी... उसे समझ नही आ रहा था कि वो ये किसी को बताए
भी या नहीं... काई सारे सवाल थे जिसका जवाब उसके पास नही था...
आज का दिन दोनो बहनो के लिए दिल्ली में आखरी दिन था... दोनो ने घर पे वक़्त बिताना ही ठीक समझा मगर उनके भाई चेतन का कुच्छ आता पता नहीं था... शन्नो ने अपने बेटे के फोन पे मैसेज लिख दिया था कि कल डॉली और ललिता
भोपाल जा रहे है जैसा कि तुम चाहते थे..... इस मैसेज के भेजने के बाद ही चेतन कुच्छ घंटे में घर आ गया था....
चेतन शन्नो के प्रति बिल्कुल एक अच्छे बेटे की तरह व्यवहार कर रहा था मगर ललिता ऐसा कुच्छ भी नही कर रही थी...
उसे अपनी मम्मी पे गुस्सा आ रहा था क्यूंकी कल रात वो किसी से फोन पे बात करते हुए नंगी बिस्तर पे पड़ी अपने
जिस्म से खेल रही थी.... कोई भी बेटी अपनी मा को ऐसी हालत में देखना पसंद नही करेगी मगर इसका असर एक अलग तरह से हुआ शन्नो की बेटी पे.... खैर पूरा दिन ऐसे ही बीत चुका था....
उधर भोपाल में रश्मि आज स्कूल से जल्दी चली गयी थी... नारायण को पूरे आधा दिन स्कूल में राहत मिली जिसका
वो बहुत आनंद उठा रहा था... रश्मि के आस पास भटकने के कारण उसके काई काम रुके हुए पड़े थे...
सब कुच्छ निपटाते निपटाते काफ़ी देर हो चुकी थी.. नारायण ने घड़ी पे समय देखा तो 3:30 तक बज चुके थे...
नारायण ने सोच लिया था कि घर जाकर वो चैन की नींद सोएगा... अपने कॅबिन को बंद करके वो अपना बॅग लेके स्कूल बाहर जाने के लिए निकला... उसे लगा था कि पूरा स्कूल जा चुका है क्यूंकी कोई दिखाई नहीं दे रहा था...
वो जल्दी जल्दी चलके जाने लगा और फिर उसे टेबल या चेर के हिलने की आवाज़ आई... उसके कदम एक दम से रुक गये
और वो धीरे धीरे पीछे की तरफ जाने लगा... हर क्लास के कमरे पर ताला लगा हुआ था मगर उसकी नज़र एक
कमरे पे पड़ी जिसपे कोई ताला नहीं था... उस क्लास रूम पर छोटा सा शीसा था जिसकी वजह से अंदर बाहर
देखा जा सकता था... नारायण ने अपनी आखें फैला कर देखा तो उसे कुच्छ दिखाई नही दिया...
वो थोड़ा टेढ़ा हुआ तो उसे किसी का पाँव हिलते हुए दिखाई दिया जोकि हर अगले सेकेंड आगे पीछे हीले जा रहा था...
नारायण को पता चल गया था कि कमरे में कुच्छ गड़बड़ हो रही है... वो ज़ोर ज़ोर से उस कमरे के दरवाज़े पर
मारने लग गया.... हाथो के साथ साथ लाते भी दरवाज़े पर बरसाने लगा और फिर उसे कुण्डी खुलने की आवाज़ आई...
क्लास रूम का दरवाज़ा खोलने वाला एक पीयान जोकि नारायण को देखकर ज़रा सा भी नहीं घबराया...
नारायण ने उसको हल्क्का सा धक्का देते हुए हटाया तो वो दंग रह गया... उस कमरे के कोने में एक टेबल पे टाँगें
फेला कर रीत बैठी हुई.. रीत के जिस्म पर सिर्फ़ के सफेद रंग की कच्छि थी और वो बेहद शर्मिंदा लग रही थी..
नारायण गुस्से में कमरे में गया और उससे पहले वो कुच्छ बोलता रीत ने कहा " सर आप जैसा कह रहे है मैं वैसा ही कर रही हूँ... प्लीज़ आप मेरे घर वालो को कुच्छ मत बताईएएगा"
ये सुनकर नारायण वहाँ खड़ा का खड़ा रह गया... वो बोला "ये क्या बकवास कर रही हो तुम"
रीत बोली " सर आपने ही तो कहा था कि इस पीयान के साथ के मुझे ये सब करना पड़ेगा तभी आप वो म्मस क्लिप मेरे घर वालो को नहीं दिखाओगे.."
नारायण के माथे पर पसीना छाया हुआ था और मूड के देखा तो वो पीयान भी वहाँ से जा चुका था... उसके पास रीत से कहने के लिए कुच्छ नहीं था मगर वो समझ गया था कि रश्मि उसे और रीत दोनो को ब्लॅकमेल कर रही है....
नारायण ने रीत को कपड़े पहनने के लिए कहा और यहाँ से जाने के लिए कहा... इन सब हर्कतो में नारायण को एक बात समझ नहीं आई कि आख़िर कार क्यूँ रश्मि रीत को एक पीयान से चुद्वायेगी
Re: जिस्म की प्यास
अगले दिन दोनो बहने भोपाल के लिए शताब्दी ट्रेन में बैठके चली गयी थी.. ट्रेन में दोनो अपनी दुनिया में खोई हुई थी.. डॉली को राज से मिलने की
जल्दी थी अब और उससे और दूर नहीं रह सकती थी.. .. ललिता को ये बात समझ आ गयी थी कि जीतनो से भी वो चुदि थी वो सारे उसको कभी हासिल नहीं कर पाते
और शायद इसी वजह से उन्होने उसको कुत्तिया की तरह चोदा था जिसमें उसको भी बहुत मज़ा आया था और वहीं दूसरी ओर चंदर के साथ उसको वो मज़ा
नहीं मिलता और वो इन सारी ख़ुशनसीबी से वंचित रहती.... फिर डॉली ने हिम्मत दिखाते हुए ललिता को अपने बॉय फ्रेंड राज के बारे में सब कुच्छ बता दिया...
अपनी बहन को सारी कहानी बताते वक़्त भी वो इतना शर्मा रही थी कि कोई भी देख कर बता सकता था कि वो कितना प्यार करने लगी थी राज को....
ललिता को खुशी थी कि उसकी बहन का एक बॉय फ्रेंड है और वो भी भोपाल में मगर उसे इस बात की समझ नही आई कि वो लड़का उसकी बहन से 3-4 साल छोटा है तो वो
डॉली को खुश कैसे रखता होगा??
भोपाल में जब नारायण स्कूल में पहुचा तो असेंब्ली के बाद उसने स्कूल के सारे पीयन्स को अपने कॅबिन में बुलाया... अगले 10 मिनट में एक साथ सब
प्रिंसिपल के कॅबिन में पहुचे और नारायण सब को गौर से देखने लग गया... उसकी नज़र उसी पीयान पे पड़ी जो कल की दोपहर स्कूल के बाद रीत के साथ क्लास रूम
में मिला था... नारायण ने उस पीयान को वही रुकने के लिए कहा और बाकी सबको भेज दिया.... उस पीयान के माथे पर पसीना सॉफ दिख रहा था...
नारायण ने थोड़ी भारी आवाज़ करके पूछा "नाम क्या है तुम्हारा??"
वो पीयान बोला "जी.. मेरा.. नाम... सर मेरा नाम मोती है"
"पूरा नाम बोलो जल्द ही" नारायण ने गुस्से में कहा
पीयान बोला "मोती लाल है नाम"
नारायण बोला " अब जो भी मैं तुमसे पुच्छू तुम सच सच उसका जवाब दोगे.....कल दोपहर तुम उसे क्लास रूम में उस लड़की के साथ क्या कर रहे थे"
"सर जी मैने कुच्छ अपनी मर्ज़ी से नहीं करा.." मोटी लाल ने घबरा के कहा
"तो फिर किसने कहा था??" नारायण ने पूछा
मोटी लाल ने कहा "सीर परसो रिसेस के दौरान मैं जब खाना ख़ाके कुच्छ काम कर रहा तब वो ही लड़की मेरे पास आई थी और उसने मुझे कुच्छ अजीब से इशारे करें...
मैने उस वक़्त इतना ध्यान नहीं दिया था... फिर कल फिर वो आई थी और अंजान बन कर उसने मेरे मर्द्पन पे हाथ फेर दिया था और मैं उधर ही हिल गया था...
उसने मुझे जगह और समय बोला था मैं तो बस वहाँ गया था"
नारायण सोच में पड़ गया कि इसको भी रश्मि ने कुच्छ करने को नहीं कहा.... कुच्छ देर के बाद उसने मोती लाल को थोड़ा सा डांता और अपने कॅबिन से भेज दिया..
क्रमशः…………………..
जल्दी थी अब और उससे और दूर नहीं रह सकती थी.. .. ललिता को ये बात समझ आ गयी थी कि जीतनो से भी वो चुदि थी वो सारे उसको कभी हासिल नहीं कर पाते
और शायद इसी वजह से उन्होने उसको कुत्तिया की तरह चोदा था जिसमें उसको भी बहुत मज़ा आया था और वहीं दूसरी ओर चंदर के साथ उसको वो मज़ा
नहीं मिलता और वो इन सारी ख़ुशनसीबी से वंचित रहती.... फिर डॉली ने हिम्मत दिखाते हुए ललिता को अपने बॉय फ्रेंड राज के बारे में सब कुच्छ बता दिया...
अपनी बहन को सारी कहानी बताते वक़्त भी वो इतना शर्मा रही थी कि कोई भी देख कर बता सकता था कि वो कितना प्यार करने लगी थी राज को....
ललिता को खुशी थी कि उसकी बहन का एक बॉय फ्रेंड है और वो भी भोपाल में मगर उसे इस बात की समझ नही आई कि वो लड़का उसकी बहन से 3-4 साल छोटा है तो वो
डॉली को खुश कैसे रखता होगा??
भोपाल में जब नारायण स्कूल में पहुचा तो असेंब्ली के बाद उसने स्कूल के सारे पीयन्स को अपने कॅबिन में बुलाया... अगले 10 मिनट में एक साथ सब
प्रिंसिपल के कॅबिन में पहुचे और नारायण सब को गौर से देखने लग गया... उसकी नज़र उसी पीयान पे पड़ी जो कल की दोपहर स्कूल के बाद रीत के साथ क्लास रूम
में मिला था... नारायण ने उस पीयान को वही रुकने के लिए कहा और बाकी सबको भेज दिया.... उस पीयान के माथे पर पसीना सॉफ दिख रहा था...
नारायण ने थोड़ी भारी आवाज़ करके पूछा "नाम क्या है तुम्हारा??"
वो पीयान बोला "जी.. मेरा.. नाम... सर मेरा नाम मोती है"
"पूरा नाम बोलो जल्द ही" नारायण ने गुस्से में कहा
पीयान बोला "मोती लाल है नाम"
नारायण बोला " अब जो भी मैं तुमसे पुच्छू तुम सच सच उसका जवाब दोगे.....कल दोपहर तुम उसे क्लास रूम में उस लड़की के साथ क्या कर रहे थे"
"सर जी मैने कुच्छ अपनी मर्ज़ी से नहीं करा.." मोटी लाल ने घबरा के कहा
"तो फिर किसने कहा था??" नारायण ने पूछा
मोटी लाल ने कहा "सीर परसो रिसेस के दौरान मैं जब खाना ख़ाके कुच्छ काम कर रहा तब वो ही लड़की मेरे पास आई थी और उसने मुझे कुच्छ अजीब से इशारे करें...
मैने उस वक़्त इतना ध्यान नहीं दिया था... फिर कल फिर वो आई थी और अंजान बन कर उसने मेरे मर्द्पन पे हाथ फेर दिया था और मैं उधर ही हिल गया था...
उसने मुझे जगह और समय बोला था मैं तो बस वहाँ गया था"
नारायण सोच में पड़ गया कि इसको भी रश्मि ने कुच्छ करने को नहीं कहा.... कुच्छ देर के बाद उसने मोती लाल को थोड़ा सा डांता और अपने कॅबिन से भेज दिया..
क्रमशः…………………..