गाँव का राजा

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007
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Re: गाँव का राजा

Unread post by 007 » 08 Nov 2014 12:13

"हाई दैया उधर क्या करने जाता है ये सुअर"

"बसंती के पिछे भी पड़े हुए है छ्होटे मलिक, वो भी साली खूब दिखा दिखा के नहाती है,,,,,, साली को जैसे ही छ्होटे मालिक को देखती और ज़यादा चूतर मटका मटका के चलने लगती है, छ्होटे मलिक भी पूरा लट्तू हुए बैठे है"

"क्या जमाना आ गया है, इतना पढ़ाने लिखाने का कुच्छ फ़ायदा नही हुआ, सब मिट्टी में मिला दिया, इन्ही भंगिनो और धोबनो के पिछे घूमने के लिए इसे शहर भेजा था"

दो मोटी-मोटी उंगलियों को चूत में कच-कच पेलते, निकालते हुए आया ने कहा,

"आप भी मालकिन बेकार में नाराज़ हो रही हो, नया खून है थोड़ा बहुत तो उबाल मारेगा ही, फिर यहा गाओं में कौन सा उनका मन लगता होगा, मन लगाने के लिए थोड़ा बहुत इधर उधर कर लेते है"

"नही रे, मैं सोचती थी कम से कम मेरा बेटा तो ऐसा ना करे"

"वाह मालकिन आप भी कमाल की हो, अपने बेटे को भी अपने ही जैसा बना दो"

"क्या मतलब है रे तेरा"

"मतलब क्या है आप भी समझती हो, खुद तो आग में जलती रहती हो और चाहती हो की बेटा भी जले"

नज़रे छुपाते हुए चौधरायण ने कहा

"मैं कौन सी आग में जलती हू री कुतिया....."

"क्यों जलती नही हो क्या, मुझे क्या नही पता की मर्द के हाथो की गर्मी पाए आपको ना जाने कितने साल बीत चुके है, जैसे आपने अपनी इच्च्छाओ को दबा के रखा हुआ है वैसा ही आप चाहती हो छ्होटे मालिक भी करे"

"ऐसा नही है रे, ये सब काम करने की भी एक उमर होती है वो अभी बच्चा है"

"बच्चा है, आरे मालकिन वो ना जाने कितनो को अपने बच्चे की मा बना दे और आप कहती हो बच्चा है".

"चल साली क्या बकवास करती है"

आया ने चूत के क्लिट को सहलाते हुए और उंगलियों को पेलते हुए कहा "मेरी बाते तो बकवास ही लगेंगी मगर क्या आपने कभी छ्होटे मलिक का औज़ार देखा है"

"दूर हट कुतिया, क्या बोल रही है बेशरम तेरे बेटे की उमर का है"

आया ने मुस्कुराते हुए कहा- "बेशरम बोलो या फिर जो मन में आए बोलो मगर मालकिन सच बोलू तो मुन्ना बाबू का औज़ार देख के तो मेरी भी पनिया गई थी" कह कर चुप हो गई और चौधरायण की दोनो टाँगो को फैला कर उसके बीच में बैठ गई. फिर धीरे से अपने जीभ को चूत की क्लिट पर लगा कर चलाने लगी. चौधरायण ने अपने जाँघो को और ज़यादा फैला दिया, चूत पर आया की जीभ गजब का जादू कर रही थी.

आया के पास 25 साल का अनुभव था हाथो से मालिश करने का मगर जब उसका आकर्षण औरतो की तरफ बढ़ा तो धीरे धीरे उसने अपने हाथो के जादू को अपनी ज़ुबान में उतार दिया था. जब वो अपनी जीभ को चूत के उपरी भाग में नुकीला कर के रगड़ती थी तो शीला देवी की जलती हुई चूत ऐसे पानी छोड़ती थी जैसे कोई झरना छोड़ता है. चूत के एक एक पेपोट को अपने होंठो के बीच दबा दबा के ऐसे चुस्ती थी कि शीला देवी के मुँह से बरबस सिसकारिया फूटने लगी थी. गांद हवा में 4 इंच उपर उठा-उठा के वो आया के मुँह पर रगड़ रही थी. शीला देवी काम-वासना की आग में जल उठी थी. आया ने जब देखा मालकिन अब पूरे उबाल पर आ गई है तो उसको जल्दी से झदाने के इरादे से उसने अपनी ज़ुबान हटा के फिर कचक से दो मोटी उंगलिया पेल दी और गाचा-गच अंदर बाहर करने लगी. आया ने फिर से बातो का सिलसिला शुरू कर दिया......

"मालकिन, अपने लिए भी कुच्छ इंतज़ाम कर लो अब,

"क्या मतलब है रीए तेराअ उईईईई सस्स्स्स्स्स्सिईईईई जल्दी जल्दी हाथ चला साली"

"मतलब तो बड़ा सीधा साधा है मालकिन, कब तक ऐसे हाथो से करवाती रहोगी"

"तो फिर क्या करू रे, साली ज़यादा दिमाग़ मत चला हाथ चला"

"मालकिन आपकी चूत मांगती है लंड का रूस और आप हो कि इसको ..........खीरा ककरी खिला रही हो"

"चुप साली, अब कोई उमर रही है मेरी ये सब काम करवाने की"

"अच्छा आपको कैसे पता की आपकी उमर बीत गई है, ज़रा सा छु देती हू उसमे तो पनिया जाती है आपकी और बोलती हो अब उमर बीत गई"

"नही रे,,, लड़का जवान हो गया, बिना मर्द के सुख के इतने दिन बीत गये अब क्या अब तो बुढ़िया हो गई हू"

"क्या बात करती हो मालकिन, आप और बुढ़िया ! अभी भी अच्छे अछो के कान काट दोगि आप, इतना भरा हुआ नशीला बदन तो इस गाओं आस-पास के चार सौ गाओं में ढूँढे नही मिलेगा.

"चल साली क्यों चने के झाड़ पर चढ़ा रही है"

007
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Re: गाँव का राजा

Unread post by 007 » 08 Nov 2014 12:14

"क्या मालकिन मैं क्यों ऐसा करूँगी, फिर लड़का जवान होने का ये मतलब थोड़े ही है की आप बुढ़िया हो गई हो क्यों अपना सत्यानाश करवा रही हो"

"तू मुझे बिगाड़ने पर क्यों तुली हुई है"

आया ने इस पर हस्ते हुए कहा, "थोड़ा आप बिगड़ो और थोड़ा छ्होटे मालिक को भी बिगड़ने का मौका दो"

"छ्हि रनडिीई ....कैसी कैसी बाते करती है ! मेरे बेटे पर नज़र डाली तो मुँह नोच लूँगी"

"मालकिन मैं क्या करूँगी, छ्होटे मलिक खुद ही कुच्छ ना कुच्छ कर देंगे"

"वो क्यों करेगा रे.......वो कुच्छ नही करने वाला"

"मालकिन बड़ा मस्त हथियार है छ्होटे मलिक का, गाओं की छोरियाँ छोड़ने वाली नही"

"हराम जादि, छोरियो की बात छ्चोड़ मुझे तो लगता है तू ही उसको नही छोड़ेगी, शरम कर बेटे की उमर का है"

"हाई मालकिन औज़ार देख के तो सब कुच्छ भूल जाती हू मैं"

इतनी देर से अपने बेटे की बराई सुन-सुन के शीला देवी के मन में भी उत्सुकता जाग उठी थी. उसने आख़िर आया से पुच्छ ही लिया.....

"कैसे देखा लिया तूने मुन्ना का". आया ने अंजान बनते हुए पुचछा "मुन्ना बाबू का क्या मालकिन". एक फिर आया को चौधरैयन की एक लात खानी पड़ी, फिर चुधरायण ने हस्ते हुए कहा "कमिनि सब समझ के अंजान बनती है". आया ने भी हस्ते हुए कहा "मालकिन मैने तो सोचा की आप अभी तो बेटा बेटा कर रही थी फिर उसके औज़ार के बारे में कैसे पुछोगि?". आया की बात सुन कर चौधरैयन थोड़ा शर्मा गई. उसकी समझ में ही नही आ रहा था कि क्या जवाब दे वो आया को, फिर भी उसने थोड़ा झेप्ते हुए कहा.

"साली मैं तो ये पुच्छ रही थी की तूने कैसे देख लिया"

"मैने बताया तो था मालकिन की छ्होटे मालिक जिधर गाओं की औरते दिशा-मैदान करने जाती है उधर घूमते रहते है, फिर ये साली बसंती भी उनपे लट्तू हुई बैठी है. एक दिन शाम में मैं जब पाखाना करने गई थी तो देखा झारियों में खुशुर पुसुर की आवाज़ आ रही है. मैने सोचा देखु तो ज़रा कौन है, देखा तो हक्की-बक्की रह गई क्या बताउ, मुन्ना बाबू और बसंती दोनो खुसुर पुसुर कर रहे थे. मुन्ना बाबू का हाथ बसंती की चोली में और बसंती का हाथ मुन्ना बाबू के हाफ पॅंट में घुसा हुआ था. मुन्ना बाबू रीरयते हुए बसंती से बोल रहे थे एक बार अपना माल दिखा दे और बसंती उनको मना कर रही थी". इतना कह कर आया चुप हो गई और एक हाथ से शीला देवी की चुचि दबाते हुए अपनी उंगलिया चूत के अंदर तेज़ी से घूमने लगी.

शीला देवी सिसकरते हुए बोली "हा फिर क्या हुआ, मुन्ना ने क्या किया". चौधरैयन के अंदर अब उत्सुकता जाग उठी थी.

"मुन्ना बाबू ने फिर ज़ोर से बसंती की एक चुचि को एक हाथ में थाम लिया और दूसरी हाथ की हथेली को सीधा उसकी दोनो जाँघो के बीच रख के पूरी मुठ्ठी में उसकी चूत को भर लिया और फुसफुसाते हुए बोले 'हाई दिखा दे एक बार, चखा दे अपना लल्मुनिया को बस एक बार रानी फिर देख मैं इस बार मेले में तुझे सबसे मह्न्गा लहनगा खरीद दूँगा, बस एक बार चखा दे रानी', इतनी ज़ोर से चुचि डबवाने पर साली को दर्द भी हो रहा होगा मगर साली की हिम्मत देखो एक बार भी छ्होटे मलिक के हाथ को हटाने की उसने कोशिश नही की, खाली मुँह से बोल रही थी 'हाई छोड़ दो मालिक छोड़ दो मालिक' मगर छ्होटे मालिक हाथ आई मुर्गी को कहा छोड़ने वाले थे" . शीला देवी की चूत पसीज रही थी अपने बेटे की करतूत सुन कर उसे पता नही क्यों गुस्सा नही आ रहा था. उसके मन में एक अजीब तरह का कौतूहल भरा हुआ था. आया भी अपने मालकिन के मन को खूब समझ रही थी इसलिए वो और नमक मिर्च लगा कर मुन्ना की करतूतों की कहानी सुनाए जा रही थी.

"फिर मालकिन मुन्ना बाबू ने उसके गाल का चुम्मा लिया और बोले 'बहुत मज़ा आएगा रानी बस एक बार चखा दो, हाई जब तुम गांद मटका के चलती हो तो क्या बताए कसम से कलेजे पर छुरि चल जाती है, बसंती बस एक बार चखा दो' बसंती शरमाते हुए बोली 'नही मालिक आपका बहुत मोटा है, मेरी फट जाएगी' इस पर मुन्ना बाबू ने कहा 'हाथ से पकड़ने पर तो मोटा लगता ही है जब चूत में जाएगा तो पता भी नही चलेगा' फिर बसंती के हाथ को अपनी निक्केर से निकाल के उन्होने झट से अपनी निक्केर उतार दी, है मालकिन क्या बताउ कलेजा धक से मुँह को आ गया, बसंती तो चीख कर एक कदम पिछे हट गई, क्या भयंकर लंड था मलिक का एक दम से काले साँप की तरह, लपलपाता हुआ, मोटा मोटा पहाड़ी आलू के जैसा नुकीला गुलाबी सुपरा और मालकिन सच कह रही हू कम से कम 10 इंच लंबा और कम से कम 2.5 इंच मोटा लॉडा होगा छ्होटे मलिक का, अफ ऐसा जबरदस्त औज़ार मैने आज तक नही देखा था, बसंती अगर उस समय कोशिश भी करती तो चुदवा नही पाती, वही खेत में ही बेहोश हो के मर जाती साली मगर छ्होटे मलिक का लंड उसकी चूत में नही जाता"


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Re: गाँव का राजा

Unread post by 007 » 08 Nov 2014 12:15

चौधरैयन एक टक गौर से अपने बेटे की काली करतूतो का बखान सुन रही थी. उसका बदन काम-वासना से जल रहा था और आया की वासना भारी बाते जो कहने को तो उसके बेटे के बारे में थी पर फिर भी उसके अंदर एक अनोखी कसक पैदा कर रही थी. आया को चुप देख कर उस से रहा नही गया और वो पुच्छ बैठी "आगे क्या हुआ".

आया ने फिर हस्ते हुए बताया "अर्रे मालकिन होना क्या था, तभी अचानक झारियों में सुरसूराहट हुई, मुन्ना बाबू तो कुच्छ समझ नही पाए मगर बसंती तो चालू है, मालकिन, साली झट से लहनगा समेत कर पिछे की ओर भागी और गायब हो गई. और मुन्ना बाबू जब तक संभालते तब तक उनके सामने बसंती की भाभी आ के खड़ी हो गई. अब आप तो जानती ही हो कि इस साली लाजवंतीको ठीक अपने नाम की उलट बिना किसी लाज शर्म की औरत है. जब साली बसंती की उमर की थी और नई नई शादी हो के गाओं में आई थी तब से उसने 2 साल में गाओं के सारे जवान मर्दो के लंड का पानी चख लिया होगा. अभी भी हरम्जादी ने अपने आप को बना सॉवॅर के रखा हुआ है". इतना बता कर आया फिर से चुप हो गई.

" फिर क्या हुआ, लाजवंती तो खूब गुस्सा हो गई होगी"

"अर्रे नही मालकिन, उसे कहा पता चला की अभी अभी 2 सेकेंड पहले मुन्ना बाबू अपना लंड उसकी ननद को दिखा रहे थे. वो साली तो खुद अपने चक्कर में आई हुई थी. उसने जब मुन्ना बाबू का बलिश्त भर का खड़ा मुसलान्ड देखा तो उसके मुँह में पानी आ गया और मुन्ना बाबू को पटाने के इरादे से बोली 'यहा क्या कर रहे है छ्होटे मालिक आप कब से हम ग़रीबो की तरह से खुले में दिशा करने लगे'. छोटे मलिक तो बेचारे हक्के बक्के से खड़े थे, उनकी समझ में नही आ रहा था कि क्या करे, एक दम देखने लायक नज़ारा था. हाफ पॅंट घुटनो तक उतरी हुई थी और शर्ट मोड़ के पेट पर चढ़ा रखा था, दोनो जाँघो के बीच एक दम काला भुजंग मुसलांड लहरा रहा था".

"छ्होटे मालिक तो बस "उः आह उः" कर के रह गये. तब तक लाजवंती छ्होटे मालिक के एक दम पास पहुच गई और बिना किसी जीझक या शर्म के उनके हथियार को पकड़ लिया और बोली 'क्या मालिक कुच्छ गड़बड़ तो नही कर रहे थे पूरा खड़ा कर के रखा हुआ है. इतना क्यों फनफना रहा है आपका औज़ार, कही कुच्छ देख तो नही लिया'. इतना कह कर हस्ने लगी".

"छ्होटे मालिक के चेहरे की रंगत देखने लायक थी. एक दम हक्के-बक्के से लाजवंती का मुँह तके जा रहे थे. अपना हाफ पॅंट भी उन्होने अभी तक नही उठाया था. लाजवंती ने सीधा उनके मूसल को अपने हाथो में पकड़ लिया और मुस्कुराती हुई बोली 'क्या मालिक औरतो को हगते हुए देखने आए थे क्या' कह कर खी खी कर के हस्ते हुए मुन्ना बाबू के औज़ार को ऐसे कस के मसला साली ने की उस अंधेरे में भी मालिक का लाल लाल मोटे पहाड़ी आलू जैसा सुपरा एक दम से चमक गया जैसे की उसमे बहुत सारा खून भर गया हो और लंड और फनफना के लहरा उठा".

" बड़ी हरम्खोर है ये लाजवंती, साली को ज़रा भी शरम नही है क्या"

"जिसने सारे गाओं के लोंडो का लंड अपने अंदर करवाया हो वो क्या शरम करेगी"

"फिर क्या हुआ, मेरा मुन्ना तो ज़रूर भाग गया होगा वाहा से बेचारा"

"मालकिन आप भी ना हद करती हो अभी 2 मिनिट पहले आपको बताया था कि आपका लाल बसंती के चुचो को दबा रहा था और आप अब भी उसको सीधा सीधा स्मझ रही हो, जबकि उन्होने तो उस दिन वो सब कर दिया जिसके बारे में आपने सपने में भी नही सोचा होगा"

चौधरायण एक दम से चौंक उठी "क्या कर दिया, क्यों बात को घूम फिरा रही है"

"वही किया जो एक जवान मर्द करता है"

"क्यों झूट बोलती हो, जल्दी से बताओ ना क्या किया"

"छ्होटे मालिक में भी पूरा जोश भरा हुआ था और उपर से लाजवंती की उकसाने वाली हरकते दोनो ने मिल कर आग में घी का काम किया. लाजवंती बोली "छोरियो को पेशाब और पाखाना करते हुए देख कर हिलाने की तैय्यारि में थे क्या, या फिर किसी लौंडिया के इंतेज़ार में खड़ा कर रखा है' मुन्ना बाबू क्या बोलते पर उनके चेहरे को देख के लग रहा था कि उनकी साँसे तेज हो गई है. उन्होने ने भी अबकी बार लाजवंती के हाथो को पकड़ लिया और अपने लंड पर और कस के चिपका दिया और बोले "हाई भौजी मैं तो बस पेशाब करने आया था' इस पर वो बोली 'तो फिर खड़ा कर के क्यों बैठे हो मालिक कुच्छ चाहिए क्या' मुन्ना बाबू की तो बाँछे खिल गई. खुल्लम खुल्ला चुदाई का निमंत्रण था. झट से बोले 'चाहिए तो ज़रूर अगर तू दे दे तो मेले में से पायल दिलवा दूँगा'. खुशी के मारे तो साली लाजवंती का चेहरा च्मकने लगा, मुफ़्त में मज़ा और माल दोनो मिलने का आसार नज़र आ रहा था. झट से वही पर घास पर बैठ गई और बोली 'हाई मालिक कितना बड़ा और मोटा है आपका, कहा कुन्वारियो के पिछे पड़े रहते हो, आपका तो मेरे जैसी शादी शुदा औरतो वाला औज़ार है, बसंती तो साली पूरा ले भी नही पाएगी' छ्होटे मालिक बसंती का नाम सुन के चौंक उठे कि इसको कैसे पता बसंती के बारे में. लाजवंती ने फिर से कहा ' कितना मोटा और लंबा है, ऐसा लंड लेने की बड़ी तमन्ना थी मेरी' इस पर छ्होटे मालिक ने नीचे बैठ ते हुए कहा 'आज तमन्ना पूरी कर ले, बस चखा दे ज़रा सा, बड़ी तलब लगी है' इस पर लाजवंती बोली 'ज़रा सा चखना है या पूरा मालिक' तो फिर मालिक बोले 'हाई पूरा चखा दे मेले से तेरी पसंद की पायल दिवा दूँगा'.

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