गाँव का राजा

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007
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Re: गाँव का राजा

Unread post by 007 » 08 Nov 2014 12:15

आया की बात अभी पूरी नही हुई थी कि चौधरैयन ने बीच में बोल पड़ी "ओह मेरी तो किस्मत ही फुट गई, मेरा बेटा रंडियों पर पैसा लूटा रहा है, किसी को लहनगा तो किसी हरम्जदि को पायल बाँट रहा है, कह कर आया को फिर से एक लात लगाई और थोड़े गुस्से से बोली "हरम्खोर, तू ये सारा नाटक वाहा खड़ी हो के देखे जा रही थी, तुझे ज़रा भी मेरा ख्याल ना आया, एक बार जा के दोनो को ज़रा सा धमका देती दोनो भाग जाते". आया ने मुँह बिचकाते हुए कहा "शेर के मुँह के आगे से नीवाला छीनने की औकात नही है मेरी मालकिन मैं तो बस चुप चाप तमाशा देख रही थी". कह कर आया चुप हो गई और चूत की मालिश करने लगी. चौधरैयन के मन की उत्सुकता दबाए नही दब रही थी कुच्छ देर में खुद ही कसमसा कर बोली "चुप क्यों हो गई आगे बता ना"

"फिर क्या होना था मालकिन, लाजवंती वही घास पर लेट गई और छ्होटे मालिक उसके उपर, दोनो गुत्थम गुत्था हो रहे थे. कभी वो उपर कभी मालिक उपर. छ्होटे मालिक ने अपना मुँह लाजवंती चोली में दे दिया और एक हाथ से उसके लहंगे को उपर उठा के उसकी चूत में उंगली डाल दी, लाजवंती के हाथ में मालिक का मोटा लंड था और दोनो चिपक चिपक के मज़ा लूटने लगे. कुच्छ देर बाद छ्होटे मालिक उठे और लाजवंती के दोनो टांगो के बीच बैठ गये. उस छिनाल ने भी अपने साड़ी को उपर उठा दिया और दोनो टाँगो को फैला दिया. मुन्ना बाबू ने अपना मुसलांड सीधा उसकी चूत के उपर रख के धक्का मार दिया. साली चुड़क्कड़ एक दम से मिम्याने लगी. इतना मोटा लंड घुसने के बाद तो कोई कितनी भी बड़ी रंडी हो उसकी हेकड़ी तो एक पल के लिए गुम हो ही जाती है. पर मुन्ना बाबू तो नया खून है, उन्होने कोई रहम नही दिखाया, उल्टा और कस कस के धक्के लगाने लगे"

"ठीक किया मुन्ना ने, साली रंडी की यही सज़ा है" चौधरैयन ने अपने मन की खुंदक निकाली, हालाँकि उसको ये सुन के बड़ा मज़ा आ रहा था कि उसके बेटे के लंड ने एक रंडी के मुँह से भी चीखे निकलवा दी.

"कुच्छ धक्को के बाद तो मालकिन साली चुदैल ऐसे अपनी गांद को उपर उच्छालने लगी और गपा गॅप मुन्ना बाबू के लंड को निगलते हुए बोल रही थी 'हाई मालिक फाड़ दो, हाई ऐसा लंड आज तक नही मिला, सीधा बच्चेदानी को छु रहा है, लगता है मैं ही चौधरी के पोते को पैदा करूँगी, मारो कस कस्के', मुन्ना बाबू भी पूरे जोश में थे, गांद उठा उठा के ऐसा धक्का लगा रहे थे कि क्या कहना, जैसे चूत फाड़ के गांद से लंड निकाल देंगे, दोनो हाथ से चुचि मसल रहे थे और, पका पक लंड पेल रहे थे. लाजवंती साली सिसकार रही थी और बोल रही थी 'मलिक पायल दिलवा देना फिर देखना कितना मज़ा कर्वौन्गि, अभी तो जल्दी में चुदाई हो रही है, मारो मालिक, इतने मोटे लंड वाले मालिक को अब नही तरसने दूँगी, जब बुलाओगे चली आउन्गि, हाई मालिक पूरे गाओं में आपके लंड के टक्कर का कोई नही है'. इतना कह कर आया चुप हो गई.

आया ने जब लाजवंती के द्वारा कही गई ये बात की पूरे गाओं में मुन्ना के लंड के टक्कर का कोई नही है सुन कर चौधरैयन के माथे पर बल पड़ गये. वो सोचने लगी कि क्या सच में ऐसा है. क्या सच में उसके लरके का लंड ऐसा है जो की पूरे गाओं के लंडो से बढ़ कर है. वो थोड़ी देर तक चुप रही फिर बोली "तू जो कुच्छ भी मुझे बता रही है वो सच है ना"

"हा मालकिन सो फीसदी सच बोल रही हू"

"फिर भी एक बात मेरी समझ में नही आती कि मुन्ना का इतना बड़ा कैसे हो सकता है जितना बड़ा तू बता रही है"

"क्यों मालकिन ऐसा क्यों बोल रही हो आप"

"नही ऐसे ही मैं सोच रही हू इतना बड़ा आम तौर पे होता तो नही, फिर तेरे मलिक के अलावा और किसी के साथ.................." बात अधूरी छ्होर कर चौधरैयन चुप हो गई. आया सब समझ गई और धीरे से मुस्कुराती हुई बोली "आरे मालकिन कोई ज़रूरी थोड़े ही है कि जितना बड़ा चौधरी साहब का होगा उतना ही बड़ा छ्होटे मालिक का भी होगा, चौधरी साहब का तो कद भी थोड़ा छ्होटा ही है मगर छ्होटे मालिक को देखो इसी उमर में पूरे 6 फुट के हो गये है". बात थोड़ी बहुत चौधरैयन के भेजे में भी घुस गई, मगर अपने बेटे के अनोखे हथियार को देखने की तमन्ना भी शायद उसके दिल के किसी कोने में जाग उठी थी.

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Re: गाँव का राजा

Unread post by 007 » 08 Nov 2014 12:16

मुन्ना उसी समय घर के आँगन से मा ......मा पुकारता हुआ अपनी मा के कमरे की ओर दौड़ता हुआ आया और पूरी तेज़ी के साथ भड़ाक से चुधरैयन के कमरे के दरवाजे को खोल के अंदर घुस गया. अंदर घुसते ही उसकी आँखे चौधिया गई. कलेजे पर जैसे बिजली चल गई. मुँह से बोल नही फुट रहे थे. चौधारायन लगभग पूरी नंगी और आया अधनंगी हो के बैठी थी. मुन्ना की आँखों ने एक पल में ही अपनी मा का पूरा मुआयना कर डाला. ब्लाउस खुला हुआ था दोनो बड़ी बड़ी गोरी गोरी नारियल के जैसी चुचिया अपनी चोंच को उठाए खड़ी थी , साडी उपर उठी हुई थी और मोटे मोटे कन्द्लि के खम्भे जैसे जंघे ट्यूब लाइट की रोशनी में चमक रही थी. काले घने झांतो के जंगल में घिरी चूत तो नही दिख रही थी मगर उन झांतो के उपर लगा चूत का रस अपनी कहानी बयान कर रहा था. .ना तो आया ना ही चौधरैयन के मुँह से कोई कुच्छ निकला. कुच्छ देर तक ऐसे ही रहने के बाद आया को जैसे कुच्छ होश आया उसने जल्दी से जाँघो पर साड़ी खींच दी और साड़ी के पल्लू से दोनो चुचियों को धक दिया. अपने नंगे अंगो के ढके जाने पर चौधरैयन को जैसे होश आया वो झट से अपने पैरो को समेटे हुए उठ कर बैठ गई. चुचियों को अच्छी तरह से ढकते हुए झेंप मिटाते हुए बोली "क्या बात मुन्ना, क्या चाहिए". मा की आवाज़ सुन मुन्ना को भी एक झटका लगा और उसने अपना सिर नीचे करते हुए कहा, कुच्छ नही मैं तो पुच्छने आया था की शाम में फंक्षन कब शुरू होगा मेरे दोस्त पुच्छ रहे थे"

शीला देवी अब अपने आप को संभाल चुकी थी और अब उसके अंदर ग्लानि और गुस्सा दोनो भाव पैदा हो गये थे. उसने धीमे स्वर में जवाब दिया "तुझे पता नही है क्या जो 6-7 बजे से फंक्षन शुरू हो जाएगा. और क्या बात थी"

"वो मुझे भूख भी लगी थी"

"तो नौकरानी से माँग लेना था, जा उस को बोल के माँग ले"

मुन्ना वाहा से चला गया. आया ने झट से उठ कर दरवाजा बंद किया और चौधरैयन ने अपने कपड़े ठीक किए. आया बोलने लगी की "दरवाजा तो ठीक से बंद ही था मगर लगता है पूरी तरह से बंद नही हुआ था, पर इतना ध्यान रखने की ज़रूरत तो कभी रही नही क्यों की आम तौर पर आपके कमरे में तो कोई आता नही"

"चल जाने दे जो हुआ सो हुआ क्या कर सकते है" इतना बोल कर चौधरैयन चुप हो गई मगर उसके मन में एक गाँठ बन गई और अपने ही बेटे के सामने नंगे होने का अपराध बोध उस हावी हो गया.

अब सुनिए अपने मुन्ना बाबू की बात:-------

मुन्ना जब अपने मा के कमरे से निकला तब उसका दिमाग़ एक दम से काम नही कर रहा था. उसने आज तक अपनी मा का ऐसा रूप नही देखा. मतल्ब नंगा तो कभी नही देखा था. मगर आज शीला देवी का जो सुहाना रूप उसके सामने आया था उसने तो उसके होश उड़ा दिए थे. वो एक बदहवास हो चुका था. मा की गोरी गोरी मखमली जंघे और अल्फान्सो आम के जैसी चुचियों ने उसके होश उड़ा दिए थे. उसके दिमाग़ में रह रह कर मोटी जाँघो के बीच की काली-काली झांते उभर जाती थी. उसकी भूख मर चुकी थी. वो सीधा अपने कमरे में चला गया और दरवाजा बंद कर के तकियों के बीच अपने सिर को छुपा लिया. बंद आँखो के बीच जब मा के खूबसूरत चेहरे के साथ उसकी पलंग पर अस्त-वयस्त हालत में लेटी हुई तस्वीर जब उभरी तो धीरे-धीरे उसके लंड में हरकत होने लगी.

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Re: गाँव का राजा

Unread post by 007 » 08 Nov 2014 12:17

वैसे अपने मुन्ना बाबू कोई सीधे-सादे संत नही है इतना तो पता चल गया होगा. मगर आपको ये जान कर असचर्या होगा की अब से 2 साल पहले तक सच मुच में अपने राजा बाबू उर्फ राजेश उर्फ राजू बड़े प्यारे से भोले भाले लड़के हुआ करते थे. जब 15 साल के हुए और अंगो में आए प्रिवर्तन को स्मझने लगे तब बेचारे बहुत परेशान रहने लगे. लंड बिना बात के खड़ा हो जाता था. पेशाब लगी हो तब भी और मन में कुच्छ ख्याल आ जाए तब भी. करे तो क्या करे. स्कूल में सारे दोस्तो ने अंडरवेर पहनना शुरू कर दिया था. मगर अपने भोलू राम के पास तो केवल पॅंट थी. कभी अंडरवेर पहना ही नही. लंड भी मुन्ना बाबू का औकात से कुच्छ ज़यादा ही बड़ा था, फुल-पॅंट में तो थोड़ा ठीक रहता था पर अगर जनाब पाजामे में खेल रहे होते तो, दौड़ते समय इधर उधर डोलने लगता था.जो कि उपर दिखता था और हाफ पॅंट में तो और मुसीबत होती थी अगर कभी घुटने मोड़ कर पलंग पर बैठे हो तो जाँघो के पास के ढीली मोहरी से अंदर का नज़ारा दिख जाता था. बेचारे किसी कह भी नही पाते थे कि मुझे अंडरवेर ला दो क्योंकि रहते थे मामा मामी के पास, वाहा मामा या मामी से कुच्छ भी बोलने में बड़ी शरम आती थी. गाँव काफ़ी दीनो से गये नही थे. बेचारे बारे परेशान थे.

सौभाग्या से मुन्ना बाबू की मामी हासमुख स्वाभाव की थी और अपने मुन्ना बाबू से थोड़ा बहुत हसी मज़ाक भी कर लेती थी. उसने कई बार ये नोटीस किया था कि मुन्ना बाबू से अपना लंड सम्भाले नही स्म्भल रहा है. सुभह-सुभह तो लग-भग हर रोज उसको मुन्ना के खड़े लंड का दर्शन हो जाता था. जब मुन्ना को उठाने जाती और वो उठ कर दनदनाता हुआ सीधा बाथरूम की ओर भागता था. मुन्ना की ये मुसीबत देख कर मामी को बड़ा मज़ा आता था. एक बार जब मुन्ना अपने पलंग पर बैठ कर पढ़ाई कर रहा था तब वो भी उसके सामने प्लन्ग पर बैठ गई. मुन्ना ने उस दिन संयोग से खूब ढीला ढाला हाफ पॅंट पहन रखा था. मुन्ना पालती मार कर बैठ कर पढ़ाई कर रहा था. सामने मामी भी एक मेग्ज़ीन खोल कर देख रही थी. पढ़ते पढ़ते मुन्ना ने अपना एक पैर खोल कर घुटने के पास से हल्का सा मोड़ कर सामने फैला दिया. इस स्थिति में उसके जाँघो के पास की हाफ-पॅंट की मोहरी नीचे ढूलक गई और सामने से जब मामी जी की नज़र पड़ी तो वो दंग रह गई. मुन्ना बाबू का मुस्टंडा लंड जो की अभी सोई हुई हालत में भी करीब तीन चार इंच लंबा दिख रहा था अपने लाल सुपरे की आँखो से मामी जी की ओर ताक रहा था.

उर्मिला जी इस नज़ारे को ललचाई नज़रो से एकटक देखे जा रही थी. उसकी आँखे वहाँ से हटाए नही हट रही थी. वो सोचने लगी की जब इस छ्होकरे का सोया हुआ है, तब इतना लंबा दिख रहा है, जब जाग कर खड़ा होता होगा तब कितना बड़ा दिखता होगा. उसके पति यानी कि मुन्ना के मामा का तो बमुश्किल साढ़े पाँच इंच का था. अब तक उसने मुन्ना के मामा के अलावा और किसी का लंड नही देखा था मगर इतनी उमर होने के कारण इतना तो ज्ञान था ही मोटे और लंबे लंड कितना मज़ा देते है.


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