"चलो तुम अपने कपड़े उतार कर इसे ओढ़ लो. हम बाहर जाते हैं." कह कर अरुण और मुकुल गाड़ी से बाहर निकल गये. गाड़ी का दरवाज़ा बंद करते ही लाइट बंद हो गयी. दो मर्दों के सामने वस्त्र उतरने के ख़याल से ही शर्म अराही थी. मगर करने को कुछ नहीं था ठंड के मारे दाँत बज रहे तेओर बदन के सारे रोएँ ठंड के मारे एक दम काँटों की तरह तन गये थे.
ऐसा लग रहा था मैं बर्फ की सिल्लिओ से घिरी हुई बैठी हूँ. मैने झिझकते हुए सबसे पहले अपनी सारी को बदन से उतार दी. मगर उस से भी कोई राहत नहीं मिली तो मैंन ईक बार चारों ओर देखा. अंधेरा घना था कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था. मैने अपने बाकी वस्त्र भी उतार देने का मन बनाया.
मैने एक एक कर के ब्लाउस के सारे बटन खोल दिए. ब्लाउस को बदन से अलग करने से पहले मैने वापस चारों ओर नज़र दौड़ाई. कुछ भी नहीं दिख रहा था फिर मैने ब्लाउस को बदन से उतार दिया. उसके बाद मैने अपने पेटिकोट को भी उतार दिया. मैं अब सिर्फ़ ब्रा और पॅंटी मे थी. मैने उस अवस्था मे ही चादर को अपने बदन पर लपेट लिया. लेकिन कुछ ही देर मे गीली ब्रा और पॅंटी मेरे बदन को ठंडा करने लगे तो मैने उन्हे भी उतार देने का इरादा किया. मैने अपने हाथ पीछे ले जाकर अपने ब्रा को भी बदन से अलग कर दिया. और उस चादर से वापस बदन पर लपेट लिया. पॅंटी को बदन पर ही रहने दिया. गाड़ी का दरवाज़ा खोल कर मैने उन्हे निचोड़ कर सुखाने का सोचा मगर दरवाज़ा खोलते ही बत्ती जल गयी. मेरे बदन पर केवल एक जगह जगह से फटी हुई चादर के अलावा एक तीन अंगुल की छोटी सी पॅंटी थी. उन फटे हिस्सों से आधा बदन सॉफ नज़र अरहा था. मेरा राइट स्तन पर से चादर हटा हुआ था. मैने देखा अरुण भोचक्का सा एकटक मेरी नग्न छाती को घूर रहा है. मैने झट चादर को ठीक किया.
चादर कई जगह से फटी हुई थी इसलिए एक अंग धकति तो दोसरा बाहर निकल आता. इस कोशिश मे कई बार मैं टॉपलेस भी हो गयी. दोनो मेरे निवस्त्र योवन को निहार रहे थे. आख़िर मैने हारकर दरवाजा वापस बंद कर लिया. गाड़ी के अंदर की बत्ती बंद हो गयी तो कुछ राहत आई.
"अरुण प्लीज़ मेरे कपड़ों को सूखने देदो." मैने खिड़की खोल कर अपने गीले कपड़े बाहर निकाले और कहा. अरुण ने मेरे हाथों से कपड़े ले लिए और उन्हे निचोड़ कर एक पत्थर के उपर सूखने को डालने लगा. वो कपड़ों से धीरे धीरे इस तरह खेल रहा था मानो वो कपड़ों को नही मेरे बदन को ही मसल रहा हो. सारी, पेटिकोट और ब्लाउस फैला देने के बाद हाथ मे अब सिर्फ़ मेरी ब्रा बची थी. उसे हाथ मे लेकर एक बार गाड़ी की तरफ देखा. चारों ओर अंधेरा देख कर उसने सोचा की उसकी हरकतें मुझे नही दिख रही होंगी लेकिन हल्की हल्की रोशनी उसके हरकतों को समझने के लिए काफ़ी थी. मैने देखा की उसने ब्रा को अपनी नाक पर लगा कर कुछ देर तक लंबी लंबी साँसें लेकर मेरे बदन की खुश्बू को अपने दिल मे समा लेने की कोशिश की. फिर उसने मेरे ब्रा के दोनो कप्स को अपने होंठों से लगा कर पहले तो चूमा फिर अपनी जीभ निकाल कर उन पर फिराई. शर्म से मेरा चेहरा लाल हो गया होगा क्यों कि मुझे इतनी बेशर्मी कभी नही झेलनी पड़ी थी. फिर उसने उस ब्रा को भी सूखने डाल दिया.
मेरे बदन पर अब केवल गीली पॅंटी थी जिसको की मैं अलग नहीं करना चाहती थी. ठंड अब भी लग रही थी मगर क्या किया जा सकता था.
राधा का राज compleet
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Re: राधा का राज
कुछ देर बाद दोनो भी ठंड से बचने के लिए गाड़ी मे आ गये. जैसा की मैने पहले ही कहा कि दोनो के बदन पर भी बस एक एक पॅंटी थी. उनके निवस्त्र बदन को मैने भी गहरी नज़रों से देखने लगी.
"यार, मुकुल ठंड से तो रात भर मे बर्फ की तरह जम जाएँगे. कॅबिनेट मे रम की एक बॉटल रखी है उसको निकाल." अरुण ने कहा.मुकुल ने कॅबिनेट से एक बॉटल निकाली. लाइट जला कर मुकुल डॅश बोर्ड के अंदर कुछ ढूँढने लगा.
"सर, ग्लास नहीं है." उसने कहा.
"कोई बात नही." अरुण ने रोशनी मे बॉटल को उँचा किया आधी बॉटल भरी हुई थी. उसने अपने पैरों के पास से एक पानी की बॉटल निकाल कर रम की बॉटल को पूरा भर लिया. अरुण ने बॉटल लेकर मुँह से लगाया और दो घूँट लेकर मुकुल की तरफ बढ़ाया.
"एम्म अब मज़ा आया.."
मुकुल ने भी एक घूँट लिया. और वापस बॉटल अरुण को देदी.
" राधा तू भी दो घूँट लेले सारी सर्दी निकल जाएगी." अरुण ने कहा.
" अरूण पागल तो नही हो गये. तुमको मालूम है मैं दारू नहीं पीती" मैने मना कर दिया. मगर कुछ ही देर में मुझे अपने फ़ैसले पर गुस्सा आने लगा. लेकिन उस वक़्त दो आदमख़ोरों के बीच मे मैं इस तरह का कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी. कहीं ऐसा ना हो कि मेरा
अपने उपर से कंट्रोल हट जाए. मगर ठंडक ने मेरी मति मार दी. मैं दोनो को पीते हुए देख रही थी. और ठंड से सिकुड़ी हुई बैठी काँप रही थी.
उन्होंने फिर मुझ से पूछा. इस बार मेरे ना मे दम नहीं था. अरुण ने बॉटल मुझे पकड़ा दी.
"अरे ले यार कोई पाप नहीं लगेगा. एक डॉक्टर के मुँह से इस तरह की दकियानूसी बातें सही नहीं लगती." अरुण ने कहा.
क्रमशः........................
...
"यार, मुकुल ठंड से तो रात भर मे बर्फ की तरह जम जाएँगे. कॅबिनेट मे रम की एक बॉटल रखी है उसको निकाल." अरुण ने कहा.मुकुल ने कॅबिनेट से एक बॉटल निकाली. लाइट जला कर मुकुल डॅश बोर्ड के अंदर कुछ ढूँढने लगा.
"सर, ग्लास नहीं है." उसने कहा.
"कोई बात नही." अरुण ने रोशनी मे बॉटल को उँचा किया आधी बॉटल भरी हुई थी. उसने अपने पैरों के पास से एक पानी की बॉटल निकाल कर रम की बॉटल को पूरा भर लिया. अरुण ने बॉटल लेकर मुँह से लगाया और दो घूँट लेकर मुकुल की तरफ बढ़ाया.
"एम्म अब मज़ा आया.."
मुकुल ने भी एक घूँट लिया. और वापस बॉटल अरुण को देदी.
" राधा तू भी दो घूँट लेले सारी सर्दी निकल जाएगी." अरुण ने कहा.
" अरूण पागल तो नही हो गये. तुमको मालूम है मैं दारू नहीं पीती" मैने मना कर दिया. मगर कुछ ही देर में मुझे अपने फ़ैसले पर गुस्सा आने लगा. लेकिन उस वक़्त दो आदमख़ोरों के बीच मे मैं इस तरह का कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी. कहीं ऐसा ना हो कि मेरा
अपने उपर से कंट्रोल हट जाए. मगर ठंडक ने मेरी मति मार दी. मैं दोनो को पीते हुए देख रही थी. और ठंड से सिकुड़ी हुई बैठी काँप रही थी.
उन्होंने फिर मुझ से पूछा. इस बार मेरे ना मे दम नहीं था. अरुण ने बॉटल मुझे पकड़ा दी.
"अरे ले यार कोई पाप नहीं लगेगा. एक डॉक्टर के मुँह से इस तरह की दकियानूसी बातें सही नहीं लगती." अरुण ने कहा.
क्रमशः........................
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