गाँव का राजा
Re: गाँव का राजा
"मालिक नारियल तेल लगा लो.." लाजवंती बोली
"चूत तो पानी फेंक रही है…इसी से काम चला लूँगा.."
"अर्रे नही मालिक आप नही जानते…आपका सुपरा बहुत मोटा है…नही घुसेगा…लगा लो"
मुन्ना उठ कर गया और टेबल से नारियल तेल का डिब्बा उठा लाया. फिर बसंती की जाँघो के बीच बैठ कर तेल हाथ में ले उसकी चूत उपर मल दिया. फांको को थोड़ा फैला कर उसके अंदर तेल टपका दिया.
"अपने सुपरे और लंड पर भी लगा लो मलिक" लाजवंती ने कहा. मुन्ना ने थोडा तेल अपने लंड पर भी लगा दिया.
"बहुत नाटक हो गया भौजी अब डाल देता हू.."
"हा मालिक डालो" कहते हुए लाजवंती ने बसंती की अनचुड़ी बुर के छेद की दोनो फांको को दोनो हाथो की उंगलियों से चौड़ा दिया. मुन्ना ने चौड़े हुए छेद पर सुपरे को रख कर हल्का सा धक्का दिया. कच से सुपरा कच्ची बुर को चीरता अंदर घुसा. बसंती तड़प कर मछली की तरह उछली पर तब तक लाजवंती ने अपना हाथ चूत पर से हटा उसके कंधो को मजबूती से पकड़ लिया था. मुन्ना ने भी उसकी जाँघो को मजबूती से पकड़ कर फैलाए रखा और अपनी कमर को एक और झटका दिया. लंड सुपरा सहित चार इंच अंदर धस गया. बसंती को लगा बुर में कोई गरम डंडा डाल रहा है मुँह से चीख निकल गई "आआआ मार..माररर्र्ररर गेयीयियीयियी". आह्ह्ह्ह्ह्ह भाभी बचाऊऊऊलाजवंती उसके उपर झुक कर उसके होंठो और गालो को चूमते हुए चूची दबाते हुए बोली "कुच्छ नही हुआ बित्तो कुच्छ नही…बस दो सेकेंड की बात है". मुन्ना रुक गया उसको नज़र उठा इशारा किया काम चालू रखो. मुन्ना समझ गया और लंड खींच कर धक्का मारा और आधे से अधिक लंड को धंसा दिया. बसंती का पूरा बदन अकड़ गया था. खुद मुन्ना को लग रहा था जैसे किसी जलती हुए लकड़ी के गोले के अंदर लंड घुसा रहा है लंड की चमड़ी पूरी उलट गई. आज के पहले उसने किसी अनचुड़ी चूत में लंड नही डाला था. जिसे भी चोदा था वो चुदा हुआ भोसड़ा ही था. बसंती के होंठो को लाजवंती ने अपने होंठो के नीचे कस कर दबा रखा था इसलिए वो घुटि घुटे आवाज़ में चीख रही थी और छटपटा रही थी. मुन्ना उसकी इन चीखो को सुन रुका मगर लाजवंती ने तुरंत मुँह हटा कर कहा "मालिक झटके से पूरा डाल दो एक बार में….ऐसे धीरे धीरे हलाल करोगे तो और दर्द होगा साली को…डालो" मुन्ना ने फिर कमर उठा कर गांद तक का ज़ोर लगा कर धक्का मारा. कच से नारियल तेल में डूबा लंड बसंती की अनचुड़ी चूत की दीवारों को कुचालता हुआ अंदर घुसता चला गया. बसंती ने पूरा ज़ोर लगा कर लाजवंती को धकेला और चिल्लाई "ओह…..मार दियाआआअ….आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्हहरामी ने मार दिया….कुट्टी साली भौजी हरम्जदि……बचा लूऊऊऊ…आआ फाड़ दीयाआआआआअ…खून भीईीईईईईईईई…" अरीईईईई कोइईईईईई तूऊऊऊओ बचाऊऊऊऊलाजवंती ने जल्दी से उसका मुँह बंद करने की कोशिश की मगर उसने हाथ झटक दिया. मुन्ना अभी भी चूत में लंड डाले उसके उपर झुका था.
"लंड बाहर निकालो,आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह मुझे नही चुदाआआआआआनाआआआआअ ... भौजिइइईईईईईईई को चोदूऊऊओ... मलिक उतर जाओ... तुम्हरीईईईईए पाओ पड़ती हू... मररर्र्र्र्र्ररर जाउन्गीईईईई.." तब लाजवंती बोली "मालिक रूको मत…जल्दी जल्दी धक्का मारो मैं इसकी चुचि दबाती हू ठीक हो जाएगा.." बस मुन्ना ने बसंती की कलाईयों को पकड़ नीचे दबा दिया और कमर उठा-उठा कर आधा लंड खींच-खींच कर धक्के लगाना शुरू कर दिया. कुच्छ देर में सब ठीक हो गया. बसंती गांद उचकाने लगी. चेहरे पर मुस्कान फैल गई. लॉरा आराम से चूत के पानी में फिसलता हुआ सटा-सॅट अंदर बाहर होने लगा…..
उस रात भर खूब रासलीला हुई. बसंती कीदो बार चुदाइ हुई. चूत सूज गई मगर दूसरी बार में उसको खूब मज़ा आया. बुर से निकले खून को देख पहले थोड़ा सहम गई पर बाद में फिर खुल कर चुदवाया. सुबह चार बजे जब अगली रात फिर आने का वादा कर दोनो विदा हुई तो बसंती थोड़ा लंगड़ा कर चल रही थी मगर उसके आँखो में अगली रात के इंतेज़ार का नशा झलक रहा था. मुन्ना भी अपने आप को फिर से तरो ताज़ा कर लेना चाहता था इसलिए घोड़े बेच कर सो गया.
आम के बगीचे में मुन्ना की कारस्तानिया एक हफ्ते तक चलती रही. मुन्ना के लिए जैसे मौज मज़े की बाहर आ गई थी. तरह तरह के कुतेव और करतूतो के साथ उसने लाजवंती और बसंती का खूब जम के भोग लगाया. पर एक ना एक दिन तो कुच्छ गड़बड़ होनी ही थी और वो हो गई. एक रात जब बसंती और लाजवंती अपनी चूतो की कुटाई करवा कर अपने घर में घुस रही थी कि आया की नज़र पर गई. वो उन्दोनो के घर के पास ही रहती थी. उसके शैतानी दिमाग़ को झटका लगा की कहा से आ रही है ये दोनो. लाजवंती के बारे में तो पहले से पता था की गाओं भर की रंडी है. ज़रूर कही से चुदवा कर आ रही होगी. मगर जब उसके साथ बसंती को देखा तो सोचने लगी की ये छ्छोकरी उसके साथ कहाँ गई थी.
दूसरे दिन जब नदी पर नहाने गई तो संयोग से लाजवंती भी आ गई. लाजवंती ने अपनी साड़ी ब्लाउस उतारा और पेटिकोट खींच कर छाती पर बाँध लिया. पेटिकोट उँचा होते ही आया की नज़र लाजवंती के पैरो पर पड़ी. देखा पैरो में नये चमचमाते हुए पायल. और लाजवंती भी ठुमक ठुमक चलती हुई नदी में उतर कर नहाने लगी.
"अर्रे बहुरिया मरद का क्या हाल चाल है…"
"ठीक ठाक है चाची….परसो चिट्ठी आई थी"
"बहुत प्यार करता है…और लगता है खूब पैसे भी कमा रहा है"
"का मतलब चाची ….."
"वाह बड़ी अंजान बन रही हो बहुरिया….अर्रे इतना सुंदर पायल कहा से मिला ये तो…"
"कहा से का क्या मतलब चाची….जब आए थे तब दे गये थे"
"अर्रे तो जो चीज़ दो महीने पहले दे गया उसको अब पहन रही है"
लाजवंती थोड़ा घबरा गई फिर अपने को सम्भालते हुए बोली "ऐसे ही रखा हुआ था….कल पहन ने का मन किया तो…"
आया के चेहरे पर कुटिल मुस्कान फैल गई
"किसको उल्लू बना….सब पता है तू क्या-क्या गुल खिला रही है….हमको भी सिखा दे लोगो से माल एंठाने के गुण"
इतना सुनते ही लाजवंती के तन बदन में आग लग गई.
"चुप साली तू क्या बोलेगी …हराम्जादी कुतिया खाली इधर का बात उधर करती रहती है…."
आया का माथा भी इतना सुनते घूम गया और अपने बाए हाथ से लाजवंती के कंधे को पकड़ धकेलते हुए बोली "हरम्खोर रंडी…चूत को टकसाल बना रखा है…..मरवा के पायल मिला होगा तभी इतना आग लग रहा है".
"हा हा मरवा के पायल लिया है..और भी बहुत कुच्छ लिया है…तेरी गांद में क्यों दर्द हो रहा है चुगलखोर…" जो चुगली करे उसे चुगलखोर बोल दो तो फिर आग लगना तो स्वाभाभिक है.
"साली भोसर्चोदि मुझे चुगलखोर बोलती है सारे गाओं को बता दूँगी बेटाचोदी तू किस किस से मरवाती फिरती है" इतनी देर में आस पास की नहाने आई बहुत सारी औरते जमा हो गई. ये कोई नई बात तो थी नही रोज तालाब पर नहाते समय किसी ना किसी का पंगा होता ही था और अधनंगी औरते एक दूसरे के साथ भिड़ जाती थी, दोनो एक दूसरे को नोच ही डालती मगर तभी एक बुढ़िया बीच में आ गई. फिर और भी औरते आ गई और बात सम्भाल गई. दोनो को एक दूसरे से दूर हटा दिया गया.
नहाना ख़तम कर दोनो वापस अपने घर को लौट गई मगर आया के दिल में तो काँटा घुस गया था. इश्स गाओं में और कोई इतने बड़ा दिलवाला है नही जो उस रंडी को पायल दे. तभी ध्यान आया की चौधरैयन का बेटा मुन्ना उस दिन खेत में पटक के जब लाजवंती की ले रहा था तब उसने पायल देने की बात कही थी, कही उसी ने तो नही दिया. फिर रात में लाजवंती और बसंती जिस तरफ से आ रही थी उसी तरफ तो चौधरी का आम का बगीचा है. बस फिर क्या था अपने भारी भरकम पिच्छवाड़े को मॅटकाते हुए सीधा चौधरैयन के घर की ओर दौड़ पड़ी.
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चौधरैयन ने जब आया को देखा तो उसके चेहरे पर मुस्कान फैल गई. हस्ती हुई बोली "क्या रे कैसे रास्ता भूल गई…कहा गायब थी….थोड़ा जल्दी आती अब तो मैने नहा भी लिया"
माथे का पसीना पोछ्ति हुई आया बोली "का कहे मालकिन घर का बहुत सारा काम….फिर तालाब पर नहाने गई तो वाहा…"
"क्यों क्या हुआ तालाब पर…?"
"छोड़ो मालकिन तालाब के किससे को, ये सब तो…अंदर चलो ना बिना तेल के थोड़ी बहुत तो सेवा कर दू.."
"आररी नही रहने दे…" पर आया के ज़ोर देने पर शीला देवी ने पलंग पर लेट अपने पैर पसार दिए. आया पास बैठ कर शीला देवी के पैरों के तलवे को अपने हाथ में पकड़ हल्के हल्के मसल्ते हुए दबाने लगी. शीला देवी ने आँखे बंद कर रखी थी. आया कुच्छ देर तक तो इधर उधर की बकवास करती रही फिर पेट में लगी आग भुझाने के लिए बोली "मालकिन मुन्ना बाबू कहा है नज़र नही आते…पहले तो गाओं के लड़कों को साथ घूमते फिरते मिल जाते थे अब तो…."
"उसके दिमाग़ का कुच्छ पता चलता….घर में ही होगा अपने कमरे में सो रहा होगा.."
"ये कोई टाइम है भला सोने का….रात में ठीक से सोते नही का…"
"नही सुबह में बड़ी जल्दी उठ जाता है….इसलिए शायद दिन में सोता है बेचारा"
"सुबह में जल्दी उठ जाते या फिर रात भर सोते ही नही है…." बाए जाँघ को धीरे धीरे दबाती हुई आया बोली.
"अर्रे रात भर क्यों जागेगा भला…"
"मालकिन जवान लड़के तो रात में ही जागते है…" कह कर दाँत निकाल कर हँसने लगी.
"चुप कमिनि जब भी आती है….उल्टा सीधा ही बोलती है"
चौधरैयन की ये बात सुन आया दाँत निकाल कर हँसने लगी. शीला देवी ने आँखे खोल कर उसकी तरफ देखा तो आँखे नचा कर बोली "बड़ी भोली हो आप भी चौधरैयन….जवान लंडो के लिए इश्स गाओं में कोई कमी है क्या…फिर अपने मुन्ना बाबू तो….सारी कहानी तो आपको पता ही है…"
"चुप रह चोत्ति…तेरी बातो पर विस्वास कर के मैने क्या-क्या सोच लिया था…मगर जिस दिन तू ये सब बता के गई थी उसी दिन से मैं मुन्ना पर नज़र रखे हू. वो बेचारा तो घर से निकलता ही नही था. चुपचाप घर में बैठा रहता था….अगर मेरे बेटे को इधर उधर मुँह मारने की आदत होती तो घर में बैठा रहता" (जैसा की आपको याद होगा मुन्ना जब अपनी मा के कमरे में आया के मालिश करते समय घुस गया था और शीला देवी के मस्ताने रसीले रूप ने उसके होश उड़ा कर रख दिए थे तो तीन चार दिन तो ऐसे ही गुम्सुम सा घर में घुसा रहा था)
"पता नही…मालकिन मैने तो जो देखा था वो सब बताया था..अब अगर मैं बोलूँगी की आज ही सुबह मैने मुन्ना बाबू को आम के बगीचे की तरफ से आते हुए देखा था तो फिर….." शीला देवी चौंक कर बैठती हुई बोली "क्या मतलब है तेरा…वो क्यों जाएगा सुबह-सुबह बगीचे में"
"अब मुझे क्या पता क्यों गये थे…मैने तो सुबह में उधर से आते देखा सो बता दिया, सुबह में लाजवंती और बसंती को भी आते हुए देखा.…लाजवंती तो नया पायल पहन ठुमक ठुमक कर चल….."
बस इतना ही काफ़ी था, उर्मिला देवी जो कि अभी झपकी ले रही थी उठ कर बैठ गई नथुने फूला कर बोली ""एक नंबर की छिनाल है तू…हराम्जादी…कुतिया तू बाज़ नही आएगी… …रंडी…निकल अभी तू यहा से …चल भाग….दुबारा नज़र मत आना…" शीला देवी दाँत पीस पीस कर मोटी मोटी गालियाँ निकल रही थी. आया समझ गई की अब रुकी तो खैर नही. उसने जो करना है कर दिया बाकी चौधरैयन की गालियाँ तो उसने कई बार खाई है. आया ने तुरंत दरवाजा खोला और भाग निकली.
आया के जाने के बाद चौधरैयन का गुस्सा थोड़ा शांत हुआ ठंडा पानी पी कर बिस्तर पर धम से गिर पड़ी. आँखो की नींद अब उड़ चुकी थी. कही आया सच तो नही बोल रही…उसकी आख़िर मुन्ना से क्या दुस्मनि जो झूठ बोलेगी. पिच्छली बार भी मैने उसकी बातो पर विस्वास नही किया था. कैसे पता चलेगा.
दीनू को बुलाया फिर उसे एक तरफ ले जाकर पुचछा. वो घबरा कर चौधरैयन के पैरो में गिर परा और गिड-गिडाने लगा "मालकिन मुझे माफ़ कर दो….मैने कुच्छ नही…मालकिन मुन्ना बाबू ने मुझे बगीचे पर जाने से मना किया…मेरे से चाभी भी ले ली…मैं क्या करता…उन्होने किसी को बताने से मना…" शीला देवी का सिर चकरा गया. एक झटके में सारी बात समझ में आ गई.
कमरे में वापस आ आँखो को बंद कर बिस्तर पर लेट गई. मुन्ना के बारे में सोचते ही उसके दिमाग़ में एक नंगे लड़के की तस्वीर उभर आती थी जो किसी लड़की के उपर चढ़ा हुआ होता. उसकी कल्पना में मुन्ना एक नंगे मर्द के रूप में नज़र आ रहा था. शीला देवी बेचैनी से करवट बदल रही थी नींद उनकी आँखो से कोषो दूर जा चुकी थी. उनको अपने बेटे पर गुस्सा भी आ रहा था कि रंडियों के चक्कर में इधर उधर मुँह मारता फिर रहा है. फिर सोचती मुन्ना ने किसी के साथ ज़बरदस्ती तो की नही अगर गाओं की लड़कियाँ खुद मरवाने के लिए तैय्यार है तो वो भी अपने आप को कब तक रोकेगा. नया लड़का है, आख़िर उसको भी गर्मी चढ़ती होगी छेद तो खोजेगा ही…घर में छेद नही मिलेगा तो बाहर मुँह मारेगा. क्या सच में मुन्ना का हथियार उतना बड़ा है जितना आया बता रही थी. बेटे के लंड के बारे में सोचते ही एक सिहरन सी दौड़ गई साथ ही साथ उसके गाल भी लाल हो गये. एक मा हो कर अपने बेटे के…औज़ार के बारे में सोचना…करीब घंटा भर वो बिस्तर पर वैसे ही लेटी हुई मुन्ना के लंड और पिच्छली बार आया की सुनाई चुदाई की कहानियों को याद करती, अपने जाँघो को भीचती करवट बदलते रही.
खाट-पाट की आवाज़ होने पर शीला देवी ने अपनी आँखे खोली तो देखा मुन्ना उसके कमरे के आगे से गुजर रहा था. शीला देवी ने लेटे लेटे आवाज़ लगाई "मुन्ना…मुन्ना ज़रा इधर आ…". शीला देवी की आवाज़ सुनते ही उसके कदम रुक गये और वो कमरे का दरवाज़ा खोल कर घुसा. शीला देवी ने उसको उपर से नीचे देखा, हाफ पॅंट पर नज़र जाते ही वो थोड़ा चौंक गई. इस समय मुन्ना की हाफ पॅंट में तंबू बना हुआ था. पर अपने आप को सम्भहाल थोड़ा उठ ती हुई बोली " इधर आ ज़रा…". शीला देवी की नज़रे अभी भी उसके तंबू में बने खंभे पर टिकी हुई थी. ये देख मुन्ना ने अपने हाथ को पॅंट के उपर रख अपने लंड को छुपाने की कोशिश की और बोला "जी….मा क्या बात है…" मुन्ना, शीला देवी से डरता बहुत था. पेशाब लगी थी मगर बोल नही पाया की मुझे बाथरूम जाना है.
लगता है इसे पेशाब लगी है…तभी हथियार खड़ा करके घूम रहा है, घर में अंडरवेर नही पहनता है शायद, ये सोच शीला देवी के बदन में सनसनी दौड़ गई. शायद आया ठीक कहती है.
"क्या बात है तुझे बाथरूम जाना है क्या…"
"नही नही मा..तुम बोलो ना क्या बात है…" अपने हाथो को पॅंट के उपर रख कर खरे लंड को छुपाने की कोशिश करने लगा. शीला देवी कुच्छ देर तक मुन्ना को देखती रही…फिर बोली "तू आज कल इतनी जल्दी कैसे उठ जाता है फिर सारा दिन सोया रहता है…क्या बात है". मुन्ना इस अचानक सवाल से घबरा गया अटकते हुए बोला "कोई बात नही है मा…सुबह आँख खुल जाती है तो फिर उठ जाता हू…"
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"तू बगीचे पर हर रोज जाता है क्या…"
इस सवाल ने मुन्ना को चौंका दिया. उसकी नज़रे नीचे को झुक गई. शीला देवी तेज नज़रो से उसे देखती रही. फिर अपने पैर समेट ठीक से बैठते हुए बोली "क्या हुआ…मैं पुच्छ रही हू, बगीचे पर गया था क्या जवाब दे…"
"वो..वो मा..बस थोड़ा…सुबह आँख खुल गई थी टहलने च…चला गया…" मुन्ना के चेहरे का रंग उड़ चुक्का था.
शीला देवी ने फिर कड़कती आवाज़ में पुचछा "तू रात में भी वही सोता है ना…?" इस सवाल ने तो मुन्ना का गांद का बॅंड बजा दिया. उसका कलेज़ा धक से रह गया. ये बात मम्मी को कैसे पता चली. हकलाते हुए जल्दी से बोल पड़ा "नही…नही …मा…ऐसा…किसने…कहा…मैं भला रात में वहाँ क्यों…"
"तो फिर दीनू झूठ बोल रहा है…चौधरी साहिब से पुच्छू क्या…उन्होने किसको दी थी चाभी…" मुन्ना समझ गया की अगर मम्मी ने चौधरी से पुचछा तो वो तो शीला देवी के सामने झूठ बोल नही पाएँगे और उसकी चोरी पकड़ी जाएगी. साले दीनू ने फसा दिया. कल रात ही लाजवंती वादा करके गई थी कि एक नये माल को फसा कर लाउन्गि. सारा प्लान चौपट. तभी शीला देवी अपने तेवर थोड़ा ढीला करती हुई बोली "अपनी ज़मीन जयदाद की देख भाल करना अच्छी बात है, तू आम के बगीचे पर जाता है…कोई बात नही मगर मुझे बता देता….किसी नौकर को साथ ले जाता…"
"नौकरो को वाहा से हटाने के लिए ही तो मैं वाहा जाता हू…सब चोर है" मुन्ना को मौका मिल गया था और उसने तपाक से बहाना बना लिया.
"तो ये बात तूने मुझे पहले क्यों नही बताई…"
"वो मा..मा मैं डर गया था कि तुम गुस्सा करोगी…"
"ठीक है जा अपने कमरे में बैठ बाद में बात करती हू तेरे से…कही जाने की ज़रूरत नही है और खबरदार जो दीनू को कुच्छ बोला तो…". मुन्ना चुपचाप अपने कमरे में आ कर बैठ गया समझ में नही आ रहा था की क्या करे. इधर शीला देवी के मन में हलचल मच गई थी. अब उसे पूरा विस्वास हो गया था कि जो कुच्छ भी आया बोल रही थी वो सच था. मुन्ना हर रोज बगीचे पर जाकर रात भर किसी के साथ मज़ा करता है. गाओं में रंडियों की कोई कमी नही, एक खोजेगा हज़ार मिलेंगी. उसने कल्पना में मुन्ना के हथियार के बारे में सोचने की कोशिश की. फिर खुद से शरमा गई. उसने आज तक उतना बड़ा लंड नही देखा था जितने बड़े लंड के बारे में आया ने कहा था. उसने तो आज तक केवल अपने पति चौधरी का लन्ड देखा था जो लगभग 6 इंच का रहा होगा. और अब तो वो 6 इंच का लंड भी पता नही किसकी गांद में घुस गया था, कभी बाहर निकलता ही नही था. पता नही कितने दिन, महीने या साल बीत गये, उसे तो याद भी नही है, जब अंतिम बार कोई हथियार उसकी बिल में घुसा था. ये सब सोचते सोचते जाँघो के बीच सरसराहट हुई. साडी के उपर से ही हाथ लगा कर अपनी चूत को हल्का सा दबाया, चूत गीली हो चुकी थी. बेटे के लंड ने बेचैनी इतनी बढ़ा दी कि रहा नही गया और बिस्तर से उठ कर बाहर निकली. मुन्ना के कमरे का दरवाज़ा थोड़ा खुला हुआ था. धीरे से अंदर घुसी तो तो देखा मुन्ना बिस्तर पर आँखो के उपर हाथ रख कर लेटा हुआ एक हाथ पॅंट के अंदर घुसा कर हल्के हल्के चला रहा था. खड़ा लंड पॅंट के उपर से दिख रहा था. शीला देवी के कदम वही जमे रह गये, फिर दबे पाओ वापस लौट गई. बिस्तर पर लेट ते हुए सोचने लगी पता नही कितनी गर्मी है इस लड़के में. शायद मूठ मार रहा था. जबकि इसने रात में दो-दो लरकियों की चुदाई की होगी. जब जवान थी तब भी चौधरी ज़यादा से ज़यादा रात भर में उसकी दो बार लेता था वो भी शुरू के एक महीने तक. फिर पता नही क्या हुआ कुच्छ दिन बाद तो वो भी ख़तम हो गया हफ्ते में दो बार फिर घट कर एक बार से कभी कभार में बदल गया. और अब तो पता नही कितने दिन हो गये. आज तक जिंदगी में बस एक ही लंड से पाला पड़ा था. जबकि अगर आया की बातों पर विस्वास करे तो गाओं की हर औरत कम से कम दो लंडो से अपनी चूत की कुटाई करवा रही थी. उसी की किस्मत फूटी हुई थी. कुच्छ रंडियों ने तो अपने घर में ही इंतेज़ाम कर रखा था. यहा तो घर में भी कोई नही, ना देवर ना जेठ. एक लड़का जवान हो गया है…मगर वो भी बाहर की रंडियों के चक्कर में…..मेरी तरफ तो किसी का…अपने घर का माल है…मगर बेटा है कैसे उसके साथ…उसका दिमाग़ घूम फिर कर मुन्ना के औज़ार की तरफ पहुच जाता था. उत्तेजना अब उसके उपर हावी हो गई थी. छूत पासीज कर पानी छोड़ रही थी. दरवाजा बंद कर साड़ी उठा कर अपनी दो उंगलियों को चूत में डाल कर सहलाते हुए रगड़ने लगी. उंगली को मुन्ना का लंड समझ कच-कच कर चूत में जब अंदर बाहर किया तो पूरे बदन में आग लग गई. बेटे के लंड से चुदवाने के बारे में सोचने से ही इतना मज़ा आ रहा था कि वो एकदम छॅट्पाटा गई. एक हाथ से अपनी चुचि को खुद से पूरी ताक़त से मसल दिया…मुँह से आह निकल गई. उसके बदन में कसक उठने लगी. दिल कर रहा था कोई मर्द उसे अपनी बाहों में लेकर उसकी हड्डियाँ तर-तरा दे. उसकी इन उठी हुई नुकीली चुचियों को अपनी छाती से दबा कर मसल दे…. चूत में चीटियाँ सरसराने लगी थी. गन्न्ड़ में सुरसुरी होने लगी थी. भग्नाशा खड़ा होकर लाल हो चुका था और चाह रहा था कि कोई उसे मसल कर उसकी गर्मी शांत कर दे…. मगर अफ़सोस हाथ का सहारा ही उसके पास था. छॅट्पाटा ते हुए उठी और किचन में जा एक बैगान उठा लाई और कोल्ड क्रीम लगा कर अपनी चूत में डालने की कोशिश की. मगर अभी तोड़ा सा ही बैगान गया था कि चूत में छीलकं सा महसूस हुआ, दोनो टाँगे फैला कर चूत को देखने लगी. बैगान को थोडा और ठेला तो समझ में आ गया इतने दीनो से मशीन बंद रहने के कारण छेद सिकुड गया है. "….मोटा लंड मिल जाए फिर चाहे किसी का….इश्स….उफफफफ्फ़ मैं भी कैसी छिनाल…पर अब सहा नही जा रहा…कितने दीनो तक छेद और मुँह बंद…कर के….." चूत लंड माँग रही थी, चूत के कीड़े मचल रहे थे बुर की गुलाबी पत्तियाँ फेडक कर अपना मुँह खोल रही. उसकी मशीन आयिलिंग माँग रही थी. बेटे के लंड ने इतने दीनो से दबी कुचली हुई भावनाओ को भड़का दिया. कुच्छ देर बाद जैसे तैसे बैगान पेल कर चूत के अंदर बाहर करते हुए अपने आप को संतुष्ट कर वैसे ही अस्त वयस्त हालत में सो गई.
शाम हो चुकी थी और शीला देवी बाहर नही निकली. गाओं में तो लोग शाम सात-आठ बजे ही खाना खा लेते है. सावन का महीना था बादलो के कारण अंधेरा जल्दी हो गया था गर्मी भी बहुत लग रही थी. मुन्ना अपने कमरे से निकला देखा मा का कमरा अभी भी बंद है घर में अभी तक खाना बनाने की खाट-पाट शुरू हो जाती थी. चक्कर क्या है ये सोच उसने हल्के से शीला देवी के कमरे के दरवाज़े को धकेला दरवाज़ा खुल गया. दरअसल शीला देवी जब किचन से बैगन ले कर वापस आई थी तो फिर दरवाज़ा बंद करना भूल गई थी. अंदर झाँकते ही ऐसा लगा जैसे लंड पानी फेंक देगा... मुन्ना की आँखो के सामने पलंग पर उसकी मा आस्त व्यस्त हालत में लेटी हुई नाक बजा रही थी. साड़ी उसके जाँघो तक उठी हुई थी और आँचल एक तरफ लुढ़का पड़ा था और ब्लाउस के बटन खुले हुए थे, एक चुचि पर से ब्लाउस का कपड़ा हटा हुआ था जिसके कारण काले रंग की ब्रा दिख रही थी. शीला देवी एकदम गहरी नींद में थी. हर साँस के साथ उसकी नुकीली चूचियाँ उपर नीचे हो रही थी. मुन्ना की साँस रुक गई. उस दिन आया जब मालिश कर रही थी तब उसने पहली बार अपनी मा को अर्धनग्न देखा था. उस दिन वो बस एक झलक ही देख पाया था और उसके होश उड़ गये थे. आज शीला देवी आराम से सोई हुई थी. वो बिना किसी लाज-शरम आँखे फाड़ उसको निहारने लगा. ब्रा के अंदर से झाँकती गोरी चुचि, गुदाज पेट और मोटी-मोटी जाँघो ने उसके होश उड़ा दिए. मोटी मांसल, गोरी, चिकनी जंघे…मामी की जाँघ से थोड़ा सा ज़यादा मोटी …चुचि भी एक दम ठोस नुकीली… "काश ये साड़ी थोड़ी और उपर होती..अफ… ये बैगन यहा पलंग पर क्या कर रहा है"…अभी मुन्ना सोच ही रहा था कि कमरे के अंदर घुस कर पलंग के नीचे बैठ दोनो टाँगो के बीच देखु. "छ्होटे मलिक…मालकिन को जगाओ…क्या खाना बनाना है..ज़रा पुछो तो सही…" पिछे से एक बुढ़िया नौकरानी की आवाज़ सुनाई दी
"आ ..हा..हा .. अभी जगाता हू.." कहते हुए मुन्ना ने दरवाज़े पर दस्तक दी. शीला देवी एक दम हॅड-बडाते हुए उठ कर बैठ गई झट से अपनी साड़ी को नीचे किया आँचल को उठा छाती पर रखा " आ हा..क्या बात है…"
"मा वो नौकरानी पुच्छ रही है…क्या खाना बनेगा…अंधेरा हो गया…मैने सोचा तुम इतनी देर तक तो…"
"पता नही क्यों आज..आँख लग गई थी ...अभी बताती हू उसको…" और पलंग से नीचे उतर गई. मुन्ना जल्दी से अपने कमरे में भाग गया. पॅंट खोल कर देखा तो लंड लोहा बना हुआ था और सुपरे पर पानी की दो बूंदे छलक आई थी.
खाना खाने के बाद शीला देवी मुन्ना के कमरे में गई और पुछा "आज बगीचे पर नही जाएगा क्या…". मुन्ना ने तो बगीचे पर जाने का इरादा छोड़ दिया था. वो समझ गया था कि भले ही शीला देवी ने कुच्छ बोला नही फिर भी उसके कारनामो की खबर उसको ज़रूर हो गई होगी.
"जाना तो था…मगर आप तो मना कर रही…".
"नही, मैने कब मना किया…वैसे भी बहुत आम चोरी हो रहे है…कम से कम तू देख भाल तो कर लेता है…"
मुन्ना खुशी से उच्छल पड़ा "तो फिर मैं जाउ…".
"हा हा…जा ज़रूर जा…और किसी नौकर को भी साथ लेता जा…"