मौसी का गुलाम compleet

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raj..
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Re: मौसी का गुलाम

Unread post by raj.. » 11 Oct 2014 08:39

मौसी का गुलाम---3

गतान्क से आगे………………………….

तृप्त होकर मौसी ने मुझे उठाया और पलंग पर ले गई "बड़ा फास्ट लरनर है रे तू, चुनमूनियाँ का अच्छा गुलामा बनेगा तेरे मौसाजी की तरह अब चल बेटे, आराम से लेट कर मज़ा लेंगे" पलंग पर लेट कर मेरे फनफनाए लंड को सहलाती हुई वह बोली "झडेगा तो नहीं रे जल्दी?"

मैंने उसे आश्वस्त किया और मौसी मुझे पलंग पर लिटा कर मेरे मुँह पर चढ बैठी अपनी दोनों टाँगें मेरे सिर के इर्द गिर्द जमाते हुए वह बोली "अब घंटे भर तेरा मुँह चोदून्गि और तुझे चुनमूनियाँ का रस पिलावँगी मैंने वादा किया था तुझे परीक्षा में तीसरा आने पर इनाम देने का, सो अब ले, मन भर कर अपनी मौसी के अमृत का पान कर"

अपनी चुनमूनियाँ मेरे होंठों के इंच भर उपर जमाते हुई वह बोली"अब देख, तुझे इतना चूत रस पिलाऊन्गि कि तेरा पेट भर जाएगा तू बस चाटता और चूसता रहा" मैं पास से उसकी रसीली चुनमूनियाँ का नज़ारा देख रहा था और उसे सूंघ रहा था

इतने में वह चुनमूनियाँ को मेरे मुँह पर दबाकर मेरे चेहरे पर बैठ गई और मेरा चेहरा अपनी घनी झांतों में छुपा लिया मैंने मुँहा मारना शुरू कर दिया और उसे ऐसा चूसा कि मौसी के मुँह से सुख की सिसकारियाँ निकलने लगीं "तू तो चुनमूनियाँ चूसने में अपने मौसा की तरह एकदमा उस्ताद हो गया एक ही घंटे में" कसमसा कर स्खलित होते हुए वह बोली

कुछ देर मेरे मुँह पर बैठने के बाद मौसी बोली "राज बेटे, अपनी जीभ कड़ी कर और मेरी चूत में डाल दे, तेरी जीभ को लंड जैसा चोदून्गि" मेरी कड़ी निकली हुई जीभ को मौसी ने अपने भगोष्ठो में लिया और फिर उछल उछल कर उपर नीचे होते हुई चोदने लगी उसकी मुलायम गीली चुनमूनियाँ की म्यान मेरी जीभ को बड़े लाड से पकड़ने की कोशिश कर रही थी

मेरी जीभ कुछ देर बाद दुखने लगी थी पर मैं उसे निकाले रहा जब तक मौसी फिर एक बार नहीं झड गई मेरे चुनमूनियाँ रस पीने तक वह मेरे मुँह पर बैठी रही और फिर उठ कर मेरे पास लेट गई और बड़े लाड से मुझे बाँहों में भर कर प्यार करने लगी "मज़ा आया बेटे? कैसा लगा मेरी चुनमूनियाँ का पानी?" उसने पूछा

मैं क्या कहता, सिर्फ़ यही कह पाया कि मौसी, अगर अमृत का स्वाद कोई पूछे तो मैं तो यही कहूँगा कि मेरी मौसी की चुनमूनियाँ के रस से अच्छा तो नहीं होगा मेरी इस बड़े बूढ़ों जैसी बात को सुनकर वह हँस पडी

जल्द ही मेरी माँ की वह चुदैल छोटी बहन फिर गरमा हो गई और शायद मुझे चुनमूनियाँ चूसाने का सोच रही थी पर मेरा वासना से भरा चेहरा देख कर वह मेरी दशा समझ गई "राज, तू इतना तडप रहा है झडने के लिए, मैं तो भूल ही गयी थी चल अब सिक्स्टी-नाइन करते हैं, तू मेरी चूत चूस और मैं तेरा लंड चूसती हूँ"

मुझे अपने सामने उल्टी तरफ से लिटा कर मौसी ने अपनी एक टाँग उठाई और मेरे चेहरे को अपनी चुनमूनियाँ में खींच लिया फिर अपनी टाँग नीचे करके मेरे सिर को जांघों में जकडती हुई बोली "मेरी निचली जाँघ का तकिया बना कर लेट जा मेरी झांतों में मुँहा छिपाकर चूस मेरी टाँगों के बीच तेरा सिर दबता है उसकी तकलीफ़ तो नहीं होती तुझे? असल में मुझे बहुत अच्छा लगता है तेरे सिर को ऐसे पकडकर"

मैंने सिर्फ़ सिर हिलाया क्योंकि मेरे होंठ तो मौसी की चुनमूनियाँ के होंठों ने, उन मोटे भगोष्ठो ने पकड़ रखे थे उसकी रेशमी सुगंधित झांतों में मुँह छुपाकर मुझे ऐसा लग रहा था जैसे किसी सुंदरी की ज़ुल्फों में मैं मुँह छुपाए हू मौसी ने अब धक्के दे देकर मेरे मुँह पर अपनी चुनमूनियाँ रगडते हुए हस्तमैथुन करना शुरू कर दिया

फिर मौसी ने मेरी कमर पकडकर मुझे पास खींचा और मेरे लंड को चूमने लगी कुछ देर तक तो वह मेरे शिश्न से बड़े प्यार से खेलती रही, कभी उसे चूमती, ज़ोर से हिलाती, कभी हल्के से सुपाडा चाट लेती मस्ती में आकर मैं उसकी चुनमूनियाँ के भगोष्ठ पूरे मुँह में भर लिए और किसी फल जैसा चूसने लगा

मौसी हुमककर मेरे मुँह में स्खलित हो गई मुझे चुनमूनियाँ रस पिलाने के बाद उसने मेरा लंड पूरा लालीपोप जैसा मुँह में ले लिया और चूसने लगी मैं तो मानों कामदेव के स्वर्ग में पहुँच गया मौसी के गरम तपते मुँह ने और मेरे पेट पर महसूस होती हुई उसकी गरमा साँसों ने ऐसा जादू किया कि मैं तिलमिला कर झड गया मौसी चटखारे ले ले कर मेरा वीर्यापान करने लगी

मेरी वासना शांत होते ही मैंने चुनमूनियाँ चूसना बंद कर दिया था मौसी ने मेरा झडा हुआ ज़रा सा लंड मुँह से निकाला और मुझे डाँतती हुई बोली "चुनमूनियाँ चूसना क्यों बंद कर दिया बेटे? अपना काम हो गया तो चुप हो गये? तू चूसता रह राजा, मेरी चुनमूनियाँ अब भी खेलने के मूड में है, उसमें अभी बहुत रस है अपने लाल के लिए"

मैं सॉरी कहकर फिर चुनमूनियाँ चूसने लगा और मौसी मज़े ले लेकर मेरे लंड को चूस कर फिर खड़ा करने के काम में लग गयी आधे घंटे में मैं फिर तैयार था और तब तक मौसी तीन चार बार मेरे मुँह में झडकर मुझे चिपचिपा शहद पिला चुकी थी

हम पड़े पड़े आराम करने लगे वह मेरे लंड से खेलती रही और मैं पास से उसकी खूबसूरत चुनमूनियाँ का मुआयना करने लगा उंगलियों से मैंने मौसी की चुनमूनियाँ फैलाई और खुले छेद में से अंदर देखा ऐसा लग रहा था कि काश मैं छोटा चार पाँच इंच का गुड्डा बन जाऊ और उस मुलायम गुफा में घुस ही जाऊ पास से उसका क्लिटोरिस भी बिलकुल अनार के दाने जैसा कड़ा और लाल लाल लग रहा था और उसे मैं बार बार जीभ से चाट रहा था मौसी की झांतों का तो मैं दीवाना हो चुका था "मौसी, तुम्हारी रेशमी झांतें कितनी घनी हैं इनमेंसे खुशबू भी बहुत अच्छी आती है, जैसे डाबर आमला वाली सुंदरी के बाल हों"

मौसी आराम करने के बाद और मेरे उसकी चुनमूनियाँ से खेलने के कारण फिर कामुक नटखट मूड में आ गयी थी मुझसे बोली "मालूम है मैं जब अकेली होती हूँ तो क्या करती हूँ? यह मेरी बहुत पुरानी आदत है और कभी कभी तो तेरे मौसाजी की फरमाइश पर भी यह नज़ारा उन्हें दिखाती हूँ"

मैंने उत्सुकता से पूछा कि वह क्या करेगी "अरे, हस्तमैथुन करूँगी, जिसे आत्मरती भी कहते हैं, या खडी बोली में कहो तो मुठ्ठ मारूँगी, या सडका लगाऊन्गि मुझे मालूम है कि तेरे जैसे हरामी लडके भी हमेशा यही करते हैं बोल तू मेरे नाम से सडका मारता था या नहीं?" मैंने झेंप कर स्वीकार किया कि बात सच थी

मेरे सामने फिर मौसी ने मुठ्ठ मार कर दिखाई अपनी उपरी टाँग उठा कर घुटना मोड कर पैर नीचे रखा और अपनी दो उंगलियाँ अपनी चुनमूनियाँ में डाल कर अंदर बाहर करने लगी मैं अभी भी मौसी की निचली जाँघ को तकिया बनाए लेटा था इसलिए बिलकुल पास से मुझे उसके हस्तमैथुन का सॉफ दृश्‍य दिख रहा था मौसी का अंगूठा बड़ी सफाई से अपने ही मनी पर चल रहा था बीच बीच में मैं मौसी की चुनमूनियाँ को चूम लेता और हस्तमैथुन के कारण निकलते उस चिकने पानी को चाट लेता मेरी तरफ शैतानी भरी नज़रों से देखते देखते मौसी ने मन भर कर आत्मरती की और आख़िर एक सिसकारी लेकर झड गई

लस्त होकर मौसी ने तृप्ति की साँस ली और अपनी दोनों उंगलियाँ चुनमूनियाँ में से निकालकर मेरी नाक के पास ले आई "सूंघ राज, क्या मस्त मदभरी सुगंध है देख मुझे भी अच्छी लगती है, फिर पुरूषों को तो यह मदहोश कर देगी" मैंने देखा कि उंगलियाँ ऐसी लग रही थीं जैसे किसीने सफेद चिपचिपे शहद की बोतल में डुबोई हों मैंने तुरंत उन्हें मुँह में लेकर चाट लिया और फिर मौसी की चुनमूनियाँ पर मुँह लगाकर सारा रस चाट चाट कर सॉफ कर दिया मौसी ने भी बड़े प्यार से टाँगें फैलाकर अपनी झडी चुनमूनियाँ चटवाई

मैं अब वासना से अधीर हो चुका था और आख़िर साहस करके शन्नो मौसी से पूछ ही लिया "मौसी, चोदने नहीं दोगी तुम मुझे? उस रात जैसा? "

मौसी बोली "हाई, कितनी दुष्ट हूँ मैं! भूल ही गई थी अरे असला में चोदना तो मेरे और तेरे मौसाजी के लिए बिलकुल सादी बात हो कर रह गयी है हमारा ध्यान इधर उधर की सोच कर और तरह की क्रिया करने में ज़्यादा रहता है आ जा मेरे लाल, चोद ले मुझे"

टाँगें फैला कर मौसी चुतडो के नीचे एक तकिया लेकर लेट गई और मैं झट से उसकी जांघों के बीच बैठ गया मौसी ने मेरा लंड पकड़ा और अपनी चुनमूनियाँ में घुसेड लिया उस गरम तपती गीली चुनमूनियाँ में वह बड़ी आसानी से जड तक समा गया मैं मौसी के उपर लेट गया और उसे चोदने लगा

मौसी ने मेरे गले में बाँहें डाल दीं और मुझे खींच कर चूमने लगी मैंने भी अपने मुँह में उसके रसीले लाल होंठ पकड़ लिए और उन्हें चूसता हुआ हचक हचक कर पूरे ज़ोर से मौसी को चोदने लगा इस समय कोई हमें देखता तो बड़ा कामुक नज़ारा देखता कि एक किशोर लडका अपनी माँ की उमर की एक भरे पूरे शरीर की अधेड औरत पर चढ कर उसे चोद रहा है

कुछ मिनटों बाद मौसी ने मेरा सिर अपनी छातियों पर दबा लिया और एक निपल मेरे मुँह में दे दिया फिर मेरा सिर कस कर अपनी चूची पर दबा कर आधे से ज़्यादा मम्मा मेरे मुँह में घुसेडकर गान्ड उचका उचका कर चुदाने लगी साथ ही मुझे उत्तेजित करने को वह गंदी भाषा में मुझे उत्साहित करने लगी "चोद साले अपनी मौसी को ज़ोर ज़ोर से, और ज़ोर से धक्का लगा घुसेड अपना लंड मेरी चुनमूनियाँ में, हचक कर चोद हरामी, फाड़ दे मेरी चुनमूनियाँ"

मैने भरसक पूरी मेहनत से मौसी को चोदा जब तक वह चिल्ला कर झड नहीं गई "झड गयी रे राजा, खलास कर दिया तूने मुझे! मर गई रे, हाइ रे" कहकर वह लस्त पड गई फिर मैं भी ज़ोर से स्खलित हुआ और लस्त होकर मौसी के गुदाज शरीर पर पड़ा पड़ा उस स्वर्गिक सुख का मज़ा लेता रहा

क्रमशः……………………..

raj..
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Re: मौसी का गुलाम

Unread post by raj.. » 11 Oct 2014 08:40

मौसी का गुलाम---4

गतान्क से आगे………………………….

मौसी मुझे चूम कर बोली "मेरे मुँह से ऐसी गंदी भाषा और गालियाँ सुनकर तुझे बुरा तो नहीं लगता बेटे?" मैंने कहा "नहीं मौसी, बल्कि लौडा और खड़ा हो जाता है" वह बोली "मुझे भी मस्ती चढती है हम रोज बोल चाल में इतनी सभ्य भाषा बोलते हैं इसीलिए ऐसी भाषा से कामवासना बढ़ती है तेरे मौसाजी भी खूब बकते हैं जब तैश में होते हैं"

मैं इतना थक गया था मौसी से गप्पें लगाते लगाते ही कब मेरी आँख लग गई, मुझे पता भी नहीं चला

जब मैं सुबह उठा तो मौसी किचन में काम कर रही थी मुझे जगा देखकर मेरे लिए ग्लास भर दूध लेकर आई उसने एक पतला गाउन पहना था और उसके बारीक कपड़े में से उसके उभरे स्तन और खड़े चूचुक सॉफ दिख रहे थे मेरा चुंबन लेकर वह पास ही बैठ गई मैं दूध पीने लगा तब तक वह मेरे लंड को हाथ से बड़े प्यार से सहलाती रही

दूध खतम करके जब मैंने पहनने को कपड़े माँगे तो हँस कर शन्नो मौसी बोली "छुपा दिए मैने, मेरे लाडले, अब तो जब तक तू यहाँ है, कपड़े नहीं पहनेगा और घर में नंगा ही घूमेगा, अपना तन्नाया प्यारा लंड लेकर जब भी चाहूँगी, मैं तुझे चोद लूँगी कोई आए तो अंदर छुप जाना कपड़े पहनना ही हो तो मैं बता दूँगी पर अब नहाने को चल"

बाथरूम में जाकर मौसी ने झट से गाउन उतार दिया दिन के तेज प्रकाश में तो उसका मादक भरापूरा शरीर और भी लंड खड़ा करने वाला लग रहा था शावर चालू करके मौसी मुझे साबुन लगाने लगी अगले कुछ मिनट वह मेरे के शरीर को मन भर सहलाती और दबाती रही उसने मेरे लंड को इतना साबुन लगाकर रगडा कि आख़िर मुझे लगा कि मैं झड जाउन्गा लंड बुरी तरह से सूज कर उछल रहा था पर फिर मौसी ने हँस कर अपना हाथ हटा लिया

"इसको अब दिन भर खड़ा रहना सिखा दो, खड़ा रहेगा तब तू दिन भर मैं कहूँगी वैसे मेरी सेवा करेगा" मैंने भी मौसी से हठ किया कि मुझे उसे साबुन लगाने दे मौसी मान गयी और आराम से अपने हाथ उपर करके खडी हो गई मैंने जब उसकी कांखो में साबुन लगाया तो उन घुंघराले घने बालों का स्पर्श बड़ा अच्छा लगा मौसी के स्तन मैंने साबुन लगाने के बहाने खूब दबाए फिर जब उसकी चुनमूनियाँ पर पहुँचा तो उन घनी झांतों में साबुन का ऐसा फेन आया कि क्या कहना मौसी की फूली चुनमूनियाँ की लकीर में भी मैंने उंगली डाल कर खूब रगडा

फिर मैं फर्श पर बैठ कर मौसी की जांघों और पिंडलियों को साबुन लगाने लगा उसके पीछे बैठ कर मैंने जब उसके नितंबों को साबुन लगाया तो मेरा बदन थरथरा उठा गोरे भरे पूरे चुतड और उनमें की वह गहरी लकीर, ऐसा लगता था कि चाट लूँ और फिर अपना लंड उसमें डाल दूं पर किसी तरह मैंने सब्र किया कि कहीं वह बुरा ना मान जाए जब मैं मौसी के पैरों तक पहुँचा तो मेरा तन्नाया लंड और उछलने लगा क्योंकि मौसी के पैर बड़े खूबसूरत थे बिलकुल गोरे और चिकने, पैरों की उंगलियाँ भी नाज़ुक और लंबी थीं; उनपर मोतिया रंग का नेल पालिश तो और कहर ढा रहा था

बचपन से ही मुझे औरतों के पैर बड़े अच्छे लगते थे माँ बताती थी कि मैं जब छोटा था तो खिलौने छोड़कर उसकी चप्पलो से ही खेला करता था इसलिए मौसी के कोमल चरण देख मुझसे ना रहा गया और झुक कर मैंने उन्हें चूम लिया फिर मैं बेतहाशा उन्हें चाटने और चूमने लगा

मौसी के पैर उठा कर उसके गुलाबी चिकने तलवे चाटने में तो वह मज़ा आया कि जो अवर्णनीय है मौसी को भी बड़ा मज़ा आ रहा था जब मैं उसका पैर का अंगूठा मुँह में लेकर चूसने लगा तो वह बोली "मौसी की चरण पूजा कर रहा है, बहुत प्यारा लडका है, मौसी खुश होकर और आशीर्वाद देगी तुझे"

शावर चालू करके शन्नो मौसी यह कहते हुए पैर फैलाकर दीवाल से टिक कर खडी हो गई और मेरे कान पकडकर मेरा सिर अपनी धुली चमकती चुनमूनियाँ पर दबा लिया मैं मौसी की टाँगों के बीच बैठकर उसकी चुनमूनियाँ चूसने लगा चुनमूनियाँ में से टपक कर गिरता ठंडा शावर का पानी चुनमूनियाँ के रस से मिलकर शरबत सा लग रहा था झडने के बाद भी मौसी मेरे सिर को अपनी चुनमूनियाँ पर दबाए रही "प्यार से आराम से चूसो बेटे, कोई जल्दी नहीं है, मेरी चुनमूनियाँ लबालब भरी है, जितना रस पियोगे, उतना तेरा ज़्यादा खड़ा होगा"

आख़िर नहाना समाप्त कर हम बदन पोछते हुए बाहर आए मौसी तो एक बार झड ली थी और बड़ी खुश थी पर मेरा हाल बुरा था फनफनाते लंड के कारण चलना भी मुझे बड़ा अजीब लग रहा था पर मौसी मुझे झडाने को अभी तैयार नही थी

हमने नाश्ता किया और मौसी ब्लओज़ और साड़ी पहन कर अपना काम करने लगी मुझे उसने वहीं अपने सामने एक कुर्सी में ही नंगा बिठा लिया जिससे मेरे लंड को उछलता हुआ देख कर मज़ा ले सके सहन ना होने से मैंने अपने लंड को पकडकर मुठियाने की कोशिश की तो एक करारा थप्पड मेरे गाल पर रसीद हुआ "लंड को छूना भी मत, नहीं तो बहुत मार खाएगा" वह गुस्से से बोली

याने मेरे लंड पर अब मेरा कोई अधिकार नहीं था, सिर्फ़ उसका था और यह बात उस तमाचे के साथ उसने मुझे समझा दी थी! तमाचे से मेरा सिर झन्ना गया पर मज़ा भी बहुत आया ऐसा लगा कि जैसे मैं अपनी मौसी का गुलाम हूँ और वह मेरी मालकिन!

सब्जी बना कर मौसी आख़िर हाथ पोंछती हुई मेरे पास आई अब तक तो मैं पागल सा होकर वासना से सिसक रहा था लंड तो ऐसा सूज गया था जैसे फट जाएगा मौसी को आख़िर मुझ पर दया आ गई मेरे सामने एक नीचे मूढे पर बैठ कर उसने अपना मुँह खोल दिया और मुझे पास बुलाया मैं समझ गया और खुशी खुशी दौडकर मौसी के पास खड़े होकर उसके मुँह में अपना लंड डाल दिया

मौसी ने उसे पूरा निगल लिया और फिर बड़े लाड से धीरे धीरे चूसने लगी अपनी जीभ से उसे रगडा और थोड़ा चबाया भी उसे भी एक किशोर लंड को चूसने में बड़ा मज़ा आ रहा था मैं पाँच मिनट में ही कसमसा कर झड गया और मौसी के सिर को पकडकर कस कर अपने पेट पर दबा लिया पूरा वीर्य चूसकर मौसी ने लंड मुँह से निकाला और प्यार से पूछा "मज़ा आया बेटे? राहत मिली? अब तो मौसी की सेवा करेगा कुछ?"

मेरे खुशी खुशी हामी भरने पर मौसी ने टेबल के दराज में से एक किताब निकाली किताब पर आपस में लिपटी हुई दो नंगी औरतों का चित्र देख कर ही मैं समझ गया कि कैसी किताब है मैंने भी किशोरावस्था में आने के बाद ऐसी खूब पढ़ी थीं और मुठ्ठ मारते हुए उन्हें पढने का आनंद लिया था मौसी सोफे में बैठते हुए बोली "राज, ऐसी काम-क्रीडा वाली किताबों को पढ़ते पढ़ते मैं हमेशा खुद को उंगली करती हूँ पर आज तो तू है, मेरी चूत चूस दे बेटे, बड़ा मज़ा आएगा तुझसे चुनमूनियाँ चुसवाते हुए इसे पढने में"

मौसी ने अपनी साड़ी उठाकर अपनी नंगी बाल भरी चुनमूनियाँ दिखाई और मुझे अपने काम में जुट जाने को कहा मैं उसकी टाँगों के बीच बैठ गया और मुँह लगाकर चुनमूनियाँ चूसने लगा मौसी ने मेरे सिर को कस कर अपनी चुनमूनियाँ में दबाया और फिर पैरों को सिमटाकर मेरे सिर को अपनी जांघों में दबाकर बैठ गई साड़ी मेरे शरीर के उपर से धक कर उसने नीचे कर ली और मैं पूरा उस साड़ी में छुप गया फिर आगे पीछे होकर मेरे मुँह पर मुठ्ठ मारती हुई उसने किताब पढना शुरू किया

पढ़ते पढ़ते मस्ती से सिसककर बोली "राज डार्लिंग, क्या मज़ा आ रहा है आज यह किताब पढने में, मालूम है इसमें क्या है? ननद भाभी की प्रेमा कथा है, और अभी मैं जो पढ़ रही हूँ उसमें ननद अपनी भाभी की चुनमूनियाँ चूस रही है, हाय मेरे राजा, तू तो मुझे दिख भी नहीं रहा है, ऐसा लगता है जैसे तू पूरा मेरी चुनमूनियाँ में समा गया है"

मौसी ने एक घंटे में पूरी किताब पढ़ डाली और तभी उठी उस एक घंटे में मैंने चूस चूस कर उसे कम से कम चार बार झड़ाया होगा

अब खाने का समय भी हो गया था इसलिए मौसी साड़ी संभालती हुई उठी तृप्त स्वर में मुझे बोली "राज बेटे, आज मैं इतना झडी हूँ जितना कभी नहीं झडी चल माँग क्या माँगता है तेरे इनाम में"

मैं मौसी को छोड़ कर उसकी चुनमूनियाँ का स्वाद बदलना नहीं चाहता था अभी दिन भर मैं चुनमूनियाँ चूसना चाहता था, चोदना तो रात को सोने के पहले ही ठीक रहेगा ऐसा मैंने सोचा पर मेरा ध्यान बड़ी देर से मौसी के गोरे गोरे नरम नरम भारी भरकम चुतडो पर था किताबों में भी 'गांद मारने' के बहुत किस्से मैं पढ़ चुका था इसलिए अब मेरी तीव्र इच्छा थी कि मौसी की गांद मारूं डरते डरते और शरमाते हुए मैंने मौसी से अपनी इच्छा जाहिर की

मौसी हँसने लगी "सब मर्द एक से होते हैं, तू भी झान्ट सा छोकरा और मेरी गांद मारेगा? चल ठीक है मेरे लाल, पर खाने के बाद दोपहर में मारना और मारने के पहले एक बार और मेरी चुनमूनियाँ चूसना" मैं खुशी से उछल पड़ा और मौसी को चूम लिया मौसी ने ज़बरदस्ती मुझे चड्डी पहना दी नहीं तो उसके ख्याल में मैं खाने के पहले ही झड जाता, इतना उत्तेजित मैं हो गया था

मौसी जब तक किचन प्लेटफार्म के सामने खडी होकर चपातियाँ बना रही थी, मैं उसके पीछे खड़ा होकर ब्लओज़ पर से ही उसकी चुचियाँ मसलता रहा और अपना मुँह उसके घने खुले बालों में छुपाकर उसकी ज़ूलफें चूमता रहा चड्डी के नीचे से ही मैं उसकी साड़ी के उपर से चुतडो के बीच की खाई में अपना लंड रगडता रहा और मौसी को भी इसमें बड़ा मज़ा आया जल्दी से खाना खाकर मैं भाग कर बेडरूम में आ गया और मौसी का इंतजार करने लगा

मौसी आधे घंटे बाद आई मैंने मचल कर अपने बचपन के अंदाज में कहा "मौसी, जाओ मैं तुझ से कट्टी, कितनी देर लगा दी!" अपनी साड़ी और ब्लओज़ निकालती हुए उसने मुझे समझाया "बेटे, अपनी नौकरानी ललिता बाई छुट्टी पर है इसलिए सब काम भी मुझे ही करने पड़ते हैं चल अब मैं आ गयी मेरे राजा बेटा के पास, अपनी गाम्ड मराने को पर पहले तू अपना काम कर, जल्दी से एक बार मेरी चुनमूनियाँ चूस ले"

नग्न होकर टाँगें फैलाकर वह बिस्तर पर लेट गई और मुझे पास बुलाया मैं कूदकर उसकी टाँगों के बीच लेट गया और उसकी चुनमूनियाँ चाटने लगा मेरी जीभ चलते ही मौसी ने मेरा सिर पकड़ा और चुतड उछाल उछाल कर चुनमूनियाँ चुसवाने लगी "बहुत अच्छी चूत चूसता है रे तू मालूम है इस काम के बड़े पैसे मिलते हैं चिकने युवकों को इन धनवान मोटी सेठानियों को तो बहुत चस्का रहता है इसका, उनके पति तो कभी उनकी चूसते नहीं उन औरतों को तेरे जैसा चिकना छोकरा मिले तो हज़ारों रुपये देंगी तुझसे चूत चुसवाने के लिए"

क्रमशः……………………..

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Re: मौसी का गुलाम

Unread post by raj.. » 12 Oct 2014 08:30

मौसी का गुलाम---5

गतान्क से आगे………………………….

मौसी का स्खलन होने के बाद जब वह शांत हुई तो वायदे के अनुसार पट होकर पलंग पर लेट गई अपने मोटे नितंब हिला हिला कर उसने मुझे दावत दी "ले राज, जो करना है वह कर मेरे चूतडो के साथ यह अब तेरे हैं बेटे"

मैं कुछ देर तक तो उन तरबूजों जैसे विशाल गोरे चिकने नितंबों को देखता रहा, फिर मैं उनपर टूट पड़ा मन भर के मैंने उन्हें दबाया, मसला, चूमा, चाटा और आख़िर में मौसी के गुदा द्वार पर मुँह लगाकर उस कोमल छेद को चूसने लगा, यहाँ तक कि मैंने उसमें अपनी जीभ भी डाल दी गान्ड का स्वाद और गंध इतनी मादक थी कि मैं और काबू ना कर पाया और मौसी पर चढ बैठा

अपने लंड के सुपाडे को मैंने उस छेद पर रखा और ज़ोर से पेला मुझे लगा कि गान्ड के छेद में लंड जाने में कुछ कठिनाई होगी पर मेरा लंड बड़े प्यार से मौसी की गान्ड में समा गया अंदर से मौसी की गान्ड इतनी मुलायम और चिकनी थी और इतनी तपी हुई थी कि जब तक मैं ठीक से मौसी के शरीर पर लेट कर उसकी गान्ड मारने की तैयारी करता, मैं करीब करीब झडने को आ गया बस तीन चार धक्के ही लगा पाया और स्खलित हो गया इतना सुखद अनुभव था कि मैं मौसी की पीठ पर पड़ा पड़ा सिसकने लगा, कुछ सुख से और कुछ इस निराशा से कि इतनी मेहनत के बाद जब गान्ड मारने का मौका मिला तो उस का पूरा मज़ा नहीं ले पाया

शन्नो मौसी मेरी परेशानी समझ गई और बड़े प्यार से उसने मुझे सांत्वना दी अपने गुदा की पेशियों से मेरा झडा लंड कस कर पकड़ लिया और बोली "बेटे, रो मत, मैं तुझे उतरने को थोड़े कहा रही हूँ! अभी फिर से खड़ा हो जाएगा तेरा लंड, आख़िर इतना जवान लडका है, तब जी भर कर गान्ड मार लेना"

मेरा कुछ ढाढस बाँधा क्योंकि मैं डर रहा था कि मौसी अब फिर रात तक गान्ड नहीं मारने देगी और फिर से मुझसे चुनमूनियाँ चुसवाने में लग जाएगी मैंने प्यार से मौसी की पीठ चूमी और पड़ा पड़ा अपना लंड मुठिया कर फिर खड़ा करने की कोशिश करने लगा मौसी ने प्यार से मुझे उलाहना दिया "लेटे लेटे मौसी के मम्मे तो दबा सकता है ना मेरा प्यारा भांजा? बड़ी गुदगुदी हो रही है छातियों में, ज़रा मसल दे बेटे"

शर्मा कर मैंने अपने हाथ मौसी के शरीर के इर्द गिर्द लपेटे और उसके मोटे मोटे स्तन हथेलियों में ले लिए उन्हें दबाता हुआ मैं धीरे धीरे मौसी की गान्ड में लंड उचकाने लगा मौसी के निपल धीरे धीरे कठोर होकर खड़े हो गये और मौसी भी मस्ती से चहकने लगी मेरा लंड अब तेज़ी से खड़ा हो रहा था और अपने आप मौसी के गुदा की गहराई में घुस रहा था

शन्नो मौसी ने भी अपनी गान्ड के छल्ले से उसे कस के पकड़ा और गाय के थन जैसा दुहने लगी पर मैंने अभी भी धक्के लगाना शुरू नहीं किया क्योंकि इस बार मैं खूब देर तक उसकी गान्ड मारना चाहता था अब मौसी ही इतनी गरम हो गई की मुझे डाँट कर बोली "राज, बहुत हो गया खेल, मार अब मेरी गान्ड चोद डाल उसे"

मौसी की आज मन कर मैंने उसकी गान्ड मारना शुरू कर दी धीरे धीरे मैं अपनी स्पीड बढाता गया और जल्दी ही उचक उचक कर पूरे ज़ोर से उसके चुतडो में अपना लंड पेलने लगा मौसी भी अपनी उत्तेजना में चिल्ला चिल्ला कर मुझे बढ़ावा देने लगी "मार जोरसे मौसी की गान्ड, राज बेटे, हचक हचक के मार मेरे मम्मे कुचल डाल, उन्हें दबा दबा कर पिलपिला कर दे मेरे बच्चे फाड़ दे मेरे चुतडो का छेद, खोल दे उसे पूरा"

मैंने अपना पूरा ज़ोर लगाया और इस बुरी तरह से उसकी गान्ड मारी कि मौसी का पूरा शरीर मेरे धक्कों से हिलने लगा पलंग भी चरमराने लगा आख़िर मैं एक चीख के साथ झडा और लस्त होकर मौसी की पीठ पर ही ढेर हो गया

मौसी अभी भी पूरी गरम थी वह गान्ड उचकाती हुई मेरे झडे लंड से भी मराने की कोशिश करती रही जब उसने देखा कि मैं शांत हो गया हूँ और लंड ज़रा सा हो गया है तो उसने तपाक से मेरा लंड खींच कर अपनी गुदा से निकाला और उठ बैठी मुझे पलंग पर पटक कर उसने मेरे सिर के नीचे एक तकिया रखा और फिर मेरे चेहरे पर बैठ गई अपनी चुनमूनियाँ उसने मेरे मुँह पर जमा दी और फिर उछल उछल कर मेरे होंठों पर हस्तमैथुन करने लगी

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