ज़िंदगी के रंग compleet

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rajaarkey
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Re: ज़िंदगी के रंग

Unread post by rajaarkey » 13 Oct 2014 16:36

बिस्तर पे मोना उल्टी लेटी घेरी नींद सो रही थी और हल्के हल्के खर्राटे भी मार रही थी. उसकी कमीज़ थोड़ी उपर को खिसक गयी थी और उसकी कुँवारी गांद शलवार से सॉफ महसूस हो रही थी. ये देख कर बंसी के मूह मे तो पानी आ गया और उसका लंड जिस ने कुछ देर पहले ही ममता की ठुकाई की थी पत्थर की तरहा सख़्त हो गया. वो धीरे से मोना की तरफ बढ़ने लगा. उसके पास दबे कदमों से जा कर खड़ा हो गया के कहीं वो कच्ची नींद मे तो नही? जब देखा के वो वैसे ही खर्राटे भर रही है तो उसकी चिंता दूर हो गयी. धीरे से उसने उसकी कमीज़ जो पहले से ही थोड़ी उपर को खिसकी थी को और उपर कर दिया. अब मोना की सलवार पे बिल्कुल कमीज़ नही थी और उसकी पूरी गांद सॉफ महसूस हो रही थी. उसने नहाने के बाद जिस्म को अची तरहा से खुश्क भी नही किया था जिसकी वजा से शलवार का कपड़ा गांद के साथ ही चिपका हुआ था और कुछ जगा से तो शलवार सी थ्रू हो गयी थी. "आरे बाप रे बाप क्या मस्त माल है ये! इसकी तो गांद मारने का भी अपना ही मज़ा होगा." बंसी सोच कर मुस्कराने लगा. वो धीरे से अपना हाथ मोना की गांद की ओर ले गया और धीरे से छुआ.

मोना वैसे ही खर्राटे मार के सोती रही. जवानी की नींद की बात ही कुछ और होती है सफ़र से मोना तो थॅकी भी हुई थी. बंसी कुछ देर वैसे ही हाथ उसकी गांद पे रख के खड़ा गौर से मोना की तरफ देखता रहा पर जब यकीन हो गया के वो अभी तक सो रही है तो उसकी हिम्मत और बढ़ गयी. "क्या मस्त गरमा गरम गांद है साली की और टाइट भी बहुत लगती है. इसको देख के वैसे भी लगता है के अभी इसने किसी से चुदाई नही करवाई. ये सब काम भी मुझे ही करना पड़ेगा." बंसी ने अब दूसरा हाथ भी उसके दूसरे चूतर पर रख दिया. उसका लंड तो आसमान को छू रहा था अब. दिल तो उसका कर रहा था के अभी मोना की सलवार उतार के उसकी कुँवारी गांद को टिका कर चोदे लेकिन उससे पता था के अगर ये जाग गयी तो कहीं लेने के देने ना पड़ जाए क्यूँ के साला डॉक्टर भी घर पे था अब. वो धीरे धीरे मोना की गांद पे हाथ फेरने लगा. "उम्म्म" मोना के मूह से नींद मे निकला पर वो अभी भी नींद मे थी. सच तो ये है के उसने जो आज देखा वो ही उसको सपने मे आ रहा था मगर ममता की जगा वो लेटी हुई थी और बंसी उसकी टाँगों मे घुसा हुआ था. इस सपने को देखते हुए बंसी जो धीरे धीरे उसकी गांद पे हाथ फेर रहा था उससे उसको नींद मे और भी माज़ा आ रहा था. मोना ने शलवार के नीचे जो लाल रंग की पॅंटी पहनी थी वो बंसी को हल्की हल्की नज़र आ रही थी. मोना की टाँगें थोड़ी खुली हुई थी जिसका फ़ायदा उठा के बंसी धीरे धीरे हाथ फेरते हुए उसकी टाँगो के बीच मे ले गया. जैसे ही उसने वहाँ धीरे से अपनी उंगली से छुआ तो मोना के मूह से "उम्म्म" की आवाज़ निकली. "लगता है साली को माज़ा आ रहा है." ये सौच कर बंसी ने अपनी उंगली आहिस्ता आहिस्ता वहाँ फेरनी शुरू कर दी. वहाँ सपने मे मोना देख रही थी के उसकी टाँगे बंसी के कंधौं पर हैं जैसे कुछ देर पहले ममता की थी और बंसी का लंड मोना के अंदर बाहर हो रहा है. बंसी उंगली फेरते हुए जो मोना की गांद की गर्मी महसूस कर रहा था उसने उसको मोना का दीवाना बना दिया था. थोड़ी देर मे उसने महसूस किया के मोना की शलवार वहाँ से थोड़ी सी गीली होने लगी थी और वहाँ से एक अजब सी भीनी भीनी खुसबु आ रही थी. वो अपना चेहरा उसकी गांद के पास ले गया पर साथ साथ वैसे ही उंगली फेरता रहा धीरे धीरे. "वाह क्या मस्त खुसबु है इसकी तो. दिल करता है शलवार उतार के इसकी चूत को अच्छी तरहा चातु. जिस की खुसबु ऐसी है उसका मॅज़ा कैसा होगा?" ये सौच कर वो अपनी उंगली जिसे वो मोना की चूत पे फेर रहा था अपने मुँह मे ले गया. "वाह क्या मस्त माल है ये! एक यह है और एक वो किसी सेकेंड हॅंड ट्रॅक्टर की गांद वाली ममता. उंगली फेरने का इतना मज़ा है तो लंड से छूने का कितना होगा? अब तक वो हवस मे पागल हो चुका था और उसने अपना लंड पाजामे मे से बाहर निकाल लिया.

इससे पहले के वो मोना का पास जाता नीचे से ममता ने ज़ोर से आवाज़ मारी "आरे बंसी कहाँ मर गया है टू? मोना जल्दी आओ" बंसी जल्दी से कमरे से बाहर लंड पाजामे मे कर के निकल गया. मोना शोर से आहिस्ता से उठ गयी. धीरे धीरे जब वो होश मे आई तो उसे कुछ अजीब सा लगा फिर जब टाँगों मे कुछ गीला गीला महसूस हुआ तो अपना हाथ वो वहाँ ले गयी. "आए भगवान ये क्या हो रहा है?" वो परेशान हो कर सौचने लागी. "मेडम अब आ भी जाओ नीचे" ममता की गुस्से से भरी आवाज़ उसे आई. "जी आंटी अभी आई" ये कह कर उसने कमरे का दरवाज़ा बंद कर लिया और जल्दी से अपने कपड़ा और पॅंटी बदलने लगी.

ममता:"ये कोई हरकते हैं क्या घर मे रहने वाली? कॉलेज से आ कर म साहब कुत्ते बेच के सो रही है. हम इसके नौकर लगे हुए हैं ना जो खाना बना कर इंतेज़ार कर रहे हैं."

डॉक्टर साहब."आरे अब बस भी कर दो. बेचारी का पहले दिन था कॉलेज मे थक गयी होगी."

ममता:"आप को बड़ी फिकर हो रही है "बेचारी" की. खेर तो है ना? इससे पहले के वो कुछ जवाब दे पाते मोना वहाँ भागी भागी आ गयी.

क्रमशः....................

rajaarkey
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Re: ज़िंदगी के रंग

Unread post by rajaarkey » 13 Oct 2014 16:37

ज़िंदगी के रंग--3

गतान्क से आगे..................

ममता:"देख देख केसे हंस रहा है हरामी. तुझे शरम नही आती आपनी मालकिन को ऐसे चोदते हुए?"

बंसी:"शरम कैसी? अभी तो तेरी मोटी गांद भी मारूँगा कुतिया." इस हालत मे पोहन्च कर ममता को अच्छा लगता था जब बंसी उसको गंदी गंदी गलियाँ देते हुए चोदता था. उसके पति ने तो शादी के बाद कभी उसकी प्यास सही तराहा से बुझाई ही नही. डॉक्टर साहब का तो शादी की रात को भी सही तरहा से खड़ा नही हुआ था तो आगे जा के क्या खाक कुछ करना था?

वहाँ मोना ये सब देख कर और जैसी गंदी ज़ुबान बंसी और ममता इस्तीमाल कर रहे थे थर थर काँप रही थी. बड़ी मुस्किल से उसने धीरे धीरे कमरे से पीछे हटना शुरू किया. और धीरे धीरे सीढ़ियाँ चढ़ के अपने कमरे मे जा के दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया. जाने क्यूँ उसका जिस्म अभी तक काँप रहा था और तन मे एक अजीब सी आग लगी हुई थी. दिल कर रहा था के जा के ठंडे पानी से नहा ले लेकिन टांगे साथ ही नही दे पा रही थी. वो चुपके से अपने बिस्तर पे लेट गयी और उपर चादर ले ली. ऐसा तो नही था के नैनीताल मे उसने मोहल्ले की कुछ औरतो को कभी सब्ज़ी वाले तो कभी गली मे खड़े आवारा लड़कों को इशारा कर के अपने घर मे बुलाते ना देखा हो. फिर ऐसा क्यूँ था के वो ये सब कुछ देख कर इस हालात मे चली गयी थी? शायद इस लिए के जब वो नैनीताल मे अपने स्कूल से घर आया करती थी तो घर दाखिल होते साथ ही उससे उसकी मा पूजा पाट करती नज़र आती थी. उसके पिता जी भी घर उसके साथ ही आते थे और उसकी माता जी सब को पूजा से फारिग हो कर खाना परोस देती थी. और अब देखो यहाँ क्या देखना पड़ रहा है? उसकी तबीयत ऐसी हुई थी के इन चीज़ो से उसे घिन आना सॉफ ज़ाहिर था लेकिन ये भी सच है के उसके दिमाग़ मे उसने जो भी देखा उसकी फिल्म अभी तक चल रही थी. ये भी पहली बार था जब उसने किसी मरद के लंड को ऐसे देखा हो. "कैसा अजीब लग रहा था वो? साँप की तरह खड़ा हुआ और देखने मे इतना सख़्त पर जाने क्यूँ उससे छूने का मोना का मन किया था. कैसा लगता होगा उसको पकड़ के?" जाने कब नैनीताल से उसके ख़याल जो उसने देखा वहाँ चले गये और बार बार उसे बंसी का लंड याद आ रहा था. जब थोड़ी सी उसने होश संभाली थी हैरत से काँप उठी. मोना का हाथ उसकी शलवार के अंदर था...

मोना अपना हाथ अपनी सलवार मे देख कर हैरान रह गयी. उसका हाथ कैसे सलवार मे चला गया वो ये भी पूरी तरहा समझ नही पाई थी के देखा के वो अपना हाथ धीरे धीरे अपनी चूत पे मल रही है. घबरा के जब उसने हाथ बाहर निकाला तो देखा के उसकी उंगलियाँ गीली थी. "ये मुझे क्या हो रहा है?" वो सोचने लगी. उसके तन मे एक अजब सी आग लगी हुई थी. दिमाग़ ठंडा करने के लिए वो नहाने चली गयी. ठंडे पानी की बूँदें जैसे ही उसके गर्म बदन पे पड़ी तो वो काँप उठी. धीरे धीरे जैसे जैसे उसका जवान बदन पानी मे भीगता गया, उसका दिमाग़ भी ठंडा होता चला गया. नहा धो के जब वो अपने कमरे मे आ गयी तो अब हवस की जगह गुस्सा उसके सर पे सवार हो गया था. "भला ममता आंटी ऐसे किस तरहा कर सकती हैं? कितनी खुश नशीब हैं वो के इतना प्रेम करने वाले पति मिले हैं और फिर भी वो अपने बेटे की उम्र के लड़के के साथ यौं मूह काला कर रही हैं? अब मे क्या करूँ? आंटी से ऐसी बात भला कैसे कह सकती हूँ पर चुप रहना भी तो ठीक नही." कुछ कॉलेज की थकान थी तो कुछ भूक से भी वो नढाल हो गयी थी. उपर से ये जो कुछ भी उस ने देखा उसके बारे मे सौच सौच कर उसका दिमाग़ भी थक गया था. ये ही बाते सौचते सौचते उसकी आँख लग गयी. कुछ घंटे बाद जब खाने के लिए उसको बंसी बुलाने आया तो देखा के कमरे का दरवाज़ा खुला हुआ है. अंदर बिस्तर पे मोना उल्टी लेटी गहरी नींद सो रही थी और हल्के हल्के खर्राटे भी मार रही थी. उसकी कमीज़ थोड़ी उपर को खिसक गयी थी और उसकी कुँवारी गांद शलवार से साफ महसूस हो रही थी. ये देख कर बंसी के मूह मे तो पानी आ गया और उसका लंड जिस ने कुछ देर पहले ही ममता की ठुकाई की थी पत्थर की तरहा सख़्त हो गया. वो धीरे से मोना की तरफ बढ़ने लगा........

rajaarkey
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Re: ज़िंदगी के रंग

Unread post by rajaarkey » 13 Oct 2014 16:38

असलम साहब यूँ तो अभी 48 साल के ही हुए थे मगर जैसी ज़िंदगी जी थी उसकी वजा से वो अपने आप को 70-80 साल का महसूस करने लग गये थे. उनकी धरम पत्नी को गुज़रे हुए कोई 7 साल हो गये थे. सुमेरा की मौत के कुछ ही दिनो बाद उनके दोस्त और खानदान वाले उनको दूसरी शादी करने के मशवरे देने लग गये थे. पर उन्होने बच्चे जवान हो गये हैं का बहाना बना के टाल दिया. सच तो ये था के वो आज भी अपनी सुमेरा को उतना ही चाहते थे. सुमेरा की मौत ने तो जैसे उनके अंदर के इंसान को मार ही दिया था. ना किसी चीज़ मे खुशी मिलती थी अब और ना ही कोई शाम को घर वापिस आने की वजा दिखाई देती थी. दोस्त वगिरा को जब उनकी धरम पत्नियो के साथ देखता तो सुमेरा की याद और भी तंग करने लगती थी. उनके बच्चे अली और इमरान ही उनके जीने की अब तो वजा रह गये थे. इमरान की अभी पछले साल ही उन्हो ने बड़े धूम धाम से शादी करवाई थी और वो धीरे धीरे काम मे भी पहले से ज़्यादा ध्यान देने लग गया था. ये देख के उन्हे बहुत खुशी होती थी. अब तो बस अली ही रह गया था. "वो भी पढ़ाई मुकामल कर ले तो उसके लिए भी कोई अच्छा सा रिश्ता देखता हूँ" वो सोचते हुए घर आ गये. घर आने के बाद उनकी नज़र अली पे पढ़ी जो टीवी के सामने बैठा हुआ था. टीवी पे कोई क्रिकेट मॅच लगा हुआ था. ये देख कर उनको हैरत हुई क्यूँ के अली तो क्रिकेट बिल्कुल शुक से नही देखता था. जब उन्हो ने उसको गौर से देखा तो ना जाने किन ख्यालो मे खोया हुआ था. उसने तो ये भी महसूस नही किया के वो पास ही खड़े हुए हैं. पछले कुछ दिन से असलम साहब देख रहे थे के अली चुप चाप सा रहने लगा था और ना जाने किन ख्यालो मे खोया रहता था.वो भी इस उम्र से गुज़रे हुए थे और दुनिया देखी थी. उससे ऐसा देख कर सौचने लगे "कहीं इससे प्यार तो नही हो गया?"............

किरण जो कॉलेज मे कितने ही दिलों की धड़कन बन गयी थी खुद उसके दिल मे क्या था ये तो शायद भगवान ही जानता था. वो दूसरी लड़कियों से बहुत मुख्तलिफ थी. शायद इसी लिए लड़कियों से ज़्यादा उसके कोलेज मे लड़के दोस्त थे जो उसके लिए तरहा तरहा के तोफे लाया करते थे. वो उनका दिल रखने के लिए हमेशा उनके तोफे कबूल कर लेती थी. बचपन मे उसने अपने पिता को बहुत मेहनत करते देखा था. करीम ख़ान एक दफ़्तर मे चपरासी थे और मेहनत कर कर के उनके जूते घिस जाते थे मगर घर का चूल्हा भी मुस्किल से जल पाता था. किरण के शुरू से ही सपने बहुत उँचे थे पर उसके पिता अपनी ग़ुरबत की वजा से मुस्किल से ही कभी उसकी किसी भी ज़िद को पूरा कर पाते थे. किरण ने छोटी उमर से ही ये देख लिया था के इस दुनिया मे पेसे वालो की ही चाँदनी है. ग़रीब तो ज़िंदगी भर घुरबत की चक्की मे आटे की तरहा पिसते हैं और फिर भी अपने घर मे चूल्हा भी मुस्किल से जला पाते हैं. उसने तभी ये फ़ैसला कर लिया था के बड़ी हो कर वो कभी किसी चीज़ को नही तरसे गी. जो भी उसकी खुशी होगी वो ज़रूर पूरी होगी और आज ऐसा ही हो रहा था. कॉलेज की अमीर घरानों वाली लड़कियाँ भी अक्सर उसके कपड़ों वगेरह से जला करती थी. इतना मेह्न्गा बनाव सिंगार भला वो केसे कर रही थी किसी को अंदाज़ा नही थी पर किरण ज़िंदगी की एक बहुत बड़ी सच्चाई को समझ गयी थी. इस दुनिया मे हर एक चीज़ की एक कीमत होती है और कुछ पाने के लिए कुछ खोना तो पड़ता ही है........

बिस्तर पे मोना उल्टी लेटी घेरी नींद सो रही थी और हल्के हल्के खर्राटे भी मार रही थी. उसकी कमीज़ थोड़ी उपर को खिसक गयी थी और उसकी कुँवारी गांद शलवार से सॉफ महसूस हो रही थी. ये देख कर बंसी के मूह मे तो पानी आ गया और उसका लंड जिस ने कुछ देर पहले ही ममता की ठुकाई की थी पत्थर की तरहा सख़्त हो गया. वो धीरे से मोना की तरफ बढ़ने लगा. उसके पास दबे कदमों से जा कर खड़ा हो गया के कहीं वो कच्ची नींद मे तो नही? जब देखा के वो वैसे ही खर्राटे भर रही है तो उसकी चिंता दूर हो गयी. धीरे से उसने उसकी कमीज़ जो पहले से ही थोड़ी उपर को खिसकी थी को और उपर कर दिया. अब मोना की सलवार पे बिल्कुल कमीज़ नही थी और उसकी पूरी गांद सॉफ महसूस हो रही थी. उसने नहाने के बाद जिस्म को अची तरहा से खुश्क भी नही किया था जिसकी वजा से शलवार का कपड़ा गांद के साथ ही चिपका हुआ था और कुछ जगा से तो शलवार सी थ्रू हो गयी थी. "आरे बाप रे बाप क्या मस्त माल है ये! इसकी तो गांद मारने का भी अपना ही मज़ा होगा." बंसी सोच कर मुस्कराने लगा. वो धीरे से अपना हाथ मोना की गांद की ओर ले गया और धीरे से छुआ.

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