रश्मि एक सेक्स मशीन compleet

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raj..
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Re: रश्मि एक सेक्स मशीन

Unread post by raj.. » 12 Nov 2014 10:03

raj sharma stories

रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -44

गतान्क से आगे...

तभी रत्ना जी ने हाथ बढ़ा कर एक स्विच ऑन किया तो छत से लटकता हुआ एक कॉनिकल शेड के अंदर का बल्ब जल उठा. उसकी तेज रोशनी हमारे चारों ओर एक गोल सर्कल बना रही थी. रोशनी इतनी तेज थी की हमारी आँखें चोंधिया गयी थी. वो बल्ब सिर से कोई 4-5 फीट उपर लगा हुआ था. उस रोशनी के गोल दायरे के बाहर घुप अंधेरा था. रत्ना ने मुझे खींच कर उस रोशनी के दायरे के बीच मे खड़ा कर दिया. कमरे मे चारों ओर घुप अंधेरा था उस दायरे से बाहर कुच्छ भी नही दिखाई पड़ रहा था. पूरा वातावरण ही रहश्मयी सा लग रहा था.



“ ये…. तुम मुझे कहाँ ले आए हो?” मैने उनसे सतते हुए पूछा, “ मुझे यहा पता नही कैसा अजीब सा महसूस हो रहा है. मानो कई जोड़ी आँखें मुझे घूर रही हो.”



“ ये तुम्हारे मन का वेहम है दिशा. ये आश्रम का सबसे पवित्र स्थान है. यहीं सबको दीक्षा दी जाती है. यहीं पर तन और मन का सुद्धि करण किया जाता है. इसी कमरे मे अमृत की धारा बहती है.” वो पता नही क्या क्या बोले जा रही थी. मेरी समझ मे कुच्छ भी नही आ रहा था. मैं बस आँखें फाड़ फाड़ कर उस कमरे का जयजा लेने की कोशिश कर रही थी.



“ रश्मि तुम्हे यहाँ आश्रम मे घूमने फिरने के लिए मेरी तरह के वस्त्र पहनने पड़ेंगे. बाहर के डूसिट वस्त्र यहाँ अलोड नही हैं.”



“लेकिन….” मैं कुच्छ विरोध करना चाहती थी. मगर उसने मेरे विरोध को दबा दिया.

“ इस आश्रम के कुच्छ कठोर उसूल है. और ये उनमे से एक है कि कोई भी व्यक्ति बाहर के कपड़े पहन कर सभा स्थल के अलावा कहीं नही जा सकता. लो इन्हे पहन लो. देखो मैने भी तो पहन रखा है. इसमे झिझकने जैसी तो कोई बात ही नही है.” उसने कहा.



मैं अब भी कुच्छ कुच्छ हिचकिचा रही थी. मेरी हिचकिचाहट को देखते हुए रत्ना जी ने कहा. “ घबराओ नही तुमने देखा नही यहा मौजूद सारे आदमी और औरत इसी तरह का वस्त्र पहनते है. चलो अपने सारे वस्त्र उतार कर मुझे दे दो. मैं उन्हे सम्हाल कर रख देती हूँ. वापस जाते समय हम इसी कमरे मे आकर अपने वस्त्र पहन लेंगे.”



मैने हिचकिचाते हुए अपनी सारी के प्लीट्स पर लगे पिन को खोल कर अपने आँचल को नीचे गिर जाने दिया. मेरे गुलाबी ब्लाउस मे कसे बड़े बड़े स्तन दो मिज़ाइल्स की तरह तने हुए खड़े थे. मैने एक बार चारों ओर नज़र दौड़ाई ये देखने के लिए की कहीं कोई दूसरा तो नही है.



“ चलो सारी उतार कर मुझे दो.” रत्ना ने अपने हाथ मेरी ओर बढ़ा दिए.



मैने अपनी सारी के प्लीट्स को अपने पेटिकोट से खींच कर निकाला और सारी को अपने बदन से अलग कर दिया. रत्ना जी ने जल्दी से मेरी सारी को समेट लिया. मैने अपना हाथ उसकी तरफ गाउन लेने के लिए बढ़ाया. उसने अपने जिस हाथ मे गाउन थाम रखा था उसे मेरी पहुँच से दूर कर दिया



“ उन्ह अभी नही. तुझे ये भी उतारना पड़ेगा. ये शुद्ध वस्त्र किसी दूषित वस्त्र के उपर नही पहन सकती.” उसने ब्लाउस और पेटिकोट की ओर इशारा किया. मैने चौंक कर उसकी तरफ देखा. आख़िर कुच्छ भी हो औरतें किसी और की मौजूदगी मे अपने इन वस्त्रों को अपने बदन से अलग करने मे हिचकति हैं.



“ यहाँ?” मैने चारों ओर देखते हुए आगे पूछा,” यहा बाथरूम किधर है..”



“ तेरा दिमाग़ खराब हुया है. इस वस्त्र को तू बाथरूम मे ले जाएगी?” रत्ना ने मुझे घूरते हुए पूछा,” इसे यहा पहनने मे क्या दिक्कत है?”



“ यहाँ? कमरे मे कोई आ गया तो?” मैने झिझकते हुए पूछा.



“यहाँ कोई नही आ सकता. किसी को भी बिना सूचना इस कमरे मे आने पर पाबंदी है. चलो जल्दी करो. मैं हूँ ना.” रत्ना ने मुझसे कहा



“ कम से कम अंधेरा तो कर दो.”



“अरे आज हो क्या गया है तुझे क्यों बेकार की बहस कर रही है.” रत्ना ने मुझे झिड़कते हुए कहा.



मैं अभी भी आश्वस्त नही हो पाई थी और अपने बदन को निवस्त्र करने से झिझक रही थी.



“ अरे बाबा घबरा क्यों रही है. यहाँ पर मेरे और तुम्हारे अलावा है कौन. और अगर मैने तुम्हारा नग्न बदन देख भी लिया तो क्या फ़र्क पड़ जाएगा. पहली बार तो तुम नग्न हो नही रही हो मेरे सामने. वैसे तुम हो बहुत ही खूबसूरत. कोई अगर ग़लती से तुम्हे देख भी ले तो मुझे विश्बवास है कि वो अपने उपर कंट्रोल नही रख पाएगा.” उसने मेरे बदन को निहारते हुए मेरे नितंब पर पेटिकोट के उपर से ही चिकोटी काटी. मैने भी उसकी बातों पर दोबारा विचार किया और अपने ब्लाउस के बटन्स एक एक करके खोलने लगी.



कुच्छ ही देर मे अपने ब्लाउस के सारे बटन्स खोल कर मैने अपना ब्लाउस उतार कर पास खड़ी रत्ना को दे दिया. मैं अब नेट की बनी एक पारदर्शी ब्रा पहने हुई थी. मेरे सामने रत्ना खड़ी थी इसलिए मैने अपने नग्न होते बदन को च्चिपाने की कोई कोशिश नही की. वो मुझे बड़ी गहरी नज़रों से निहार रही थी. मानो वो पहली बार मुझे इस हालत मे देख रही हो.



अब मैने अपने पेटिकोट की डोर खींच दी. एक ही झटके मे गाँठ खुल गयी. डोर को हाथ से छ्चोड़ते ही मेरा पेटिकोट पैरों से सरकता हुआ ज़मीन पर ढेर हो गया. जिसे मैने अपने पैरोंसे निकाल कर रत्ना को दे दिया. रत्ना ने उसे भी झपट कर मेरी हाथों से ले लिया.



मेरे बदन पर अब एक जालीदार ब्रा और वैसी ही एक छ्होटी सी पॅंटी ही बची थी. मेरा लगभग नग्न बदन रोशनी मे शीशे सा चमक रहा था. रत्ना ने एक हाथ से ब्रा मे कसे मेरे स्तनो को सहलाया और फिर हाथ को नीचे ले जाकर मेरी योनि को पॅंटी के उपर से मसला. मैने वापस कपड़े के लिए उसकी तरफ हाथ बढ़ाया तो उसने मना कर दिया.



“ नही अभी सारे वस्त्र कहाँ उतरे. इन्हे भी उतार. अंदर किसी भी तरह का दूषित वस्त्र पहन कर घूमना बिल्कुल निषेध है.” रत्ना जी ने कहा. मैं कुच्छ विरोध करना चाहती थी लेकिन ना जाने क्यों मैं चुप रह गयी. मैने अपने हाथ अपनी पीठ की ओर बढ़ाए अपने ब्रा के हुक को खोलने के लिए. लेकिन तभी रत्ना ने मुझे रोक दिया.



“ ठहरो “ कहकर रत्ना जी मेरे पीछे की ओर चली गयी और कहा“ इधर मेरी तरफ घूमो.”



मुझे समझ मे नही आया कि वो मुझे ऐसा क्यों कह रही है. लेकिन मैने उससे कुच्छ पूछा नही. मैं उनके कहे अनुसार पीछे मूड गयी. मैने वापस अपने हाथ पीछे ले जाकर ब्रा के हुक को खोल दिया. रत्ना जी की नज़र मेरी छातियो पर गढ़ी हुई थी. मैने ब्रा को अपनी छातियो से उतार कर उसको दे दिया. मैं अपने हाथों से अपनी नग्न छातियो ढँकने की कोशिश कर रही थी. उसने मेरी हथेलियों को पकड़ कर सीन एके उपर से हटा दिया.

उसकी नज़रों मे मेरी छातियो के लिए प्रशन्षा के भाव थे. मेरे निपल्स कुच्छ तो ए/सी की ठंडक से और कुच्छ सामने खड़ी रत्ना जी की आँखों की तपिश से तन कर खड़े हो गये. हो सकता है इसमे उस नशीली और कामोत्तेजक शरबत का भी कुच्छ कमाल रहा हो. मेरे स्तनो का शेप तो पहले से ही लुभावना था उस पर मेरे खड़े निपल्स और सेक्सी बना रहे थे.



“ एम्म्म….क्या रसीले स्तन हैं तेरे. कोई मर्द इन नारंगियों को देखे तो मसल मसल कर इनका रंग भी नारंगी जैसा कर दे. “रत्ना ने अपनी उंगलियों से पहले उन्हे च्छुआ फिर हल्के से दोनो बूब्स को प्रेस किया. वो अपनी दोनो हाथों की उंगलियों से मेरे निपल्स थाम कर उनसे खेलने लगी.



“ रत्ना जी आज आपको क्या हो गया है. आप आज इस तरह का बर्ताव क्यों कर रही हो. अब?”



“ बहुत शानदार फिगर है. तभी आस पड़ोस के सारे मर्द दीवाने रहते हैं तुम्हारी एक झलक के लिए.” रत्ना ने कहा.



मैं हल्के से मुस्कुरा दी. पता नही आज रत्ना इस तरह का बर्ताव क्यों कर रही थी मानो वो मुझे इस हालत मे पहली बार देख रही हों.



“ अब उसके भी तो दर्शन करवा दो.” उसने मेरी योनि की तरफ इशारा किया.



“आप गाउन तो देदो. गाउन पहन कर मैं अपनी पॅंटी खोल कर आपको दे दूँगी. मुझे इस तरह शर्म आ रही है.”



“ नही पहले पॅंटी को अपने बदन से दूर करो तभी तुम इन कपड़ों को छ्छू सकती हो.”

क्रमशः............


raj..
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Re: रश्मि एक सेक्स मशीन

Unread post by raj.. » 12 Nov 2014 10:04

raj sharma stories

रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -45

गतान्क से आगे...

मैने अपनी पॅंटी की एलास्टिक मे उंगलियाँ फँसाई और उसे नीचे झुक कर नीचे की ओर खींचने लगी की उसने फिर मुझे रोका.



“ ऐसे नही. “ उसने कहा “ पॅंटी को बहुत आहिस्ता आहिस्ता उतारो और उतारते हुए पीछे की तरफ घूमो.”



“ क्यों?” मैं उसके इस आदेश का मतलब नही समझ पाई थी.



“ जैसा कह रही हूँ करो.”



मैने धीरे धीरे अपनी पॅंटी को नीचे करना शुरू किया. जैसे जैसे मेरी पॅंटी नीचे जा रही थी मेरा बदन सामने की ओर झुकता जा रहा था. मैं उस तरह झुकते हुए पीछे की तरफ घूम रही थी. जिस वक़्त मैं पीछे घूम कुकी थी तब मेरी पॅंटी घुटनो के नीचे जा चुकी थी. मेरी बड़ी बड़ी चूचियाँ सामने की ओर झूल रही थी.



मैने अपनी पॅंटी को घुटनो के नीचे ले जा कर छ्चोड़ दिया और खड़ी हो गयी. पॅंटी ढीली होकर खुद ही सरक्ति हुई पंजों पर गिर पड़ी. मैं उसे अपने पैरों से निकाल कर रत्ना को देने के लिए पीछे घूमना चाहती थी.



“ नही नही पीछे मत घूमना. मैं इसे ले लेती हूँ.” कह कर उसने मेरे हाथ से पॅंटी ले ली. मैं अब बिल्कुल नंगी हालत मे सीधी खड़ी थी. शरीर पर कपड़े का एक रेशा तक नही था. उन्नत उरोज, खड़े कठोर निपल और जांघों के बीच उगा घना काला रेशमी बालों का जंगल, भारी नितंब सब कुच्छ बेपर्दा था.उस तीव्र रोशनी मे मेरा दूधिया रंग का बदन चमक रहा था.



बदन पर कपड़ों के अलावा सारे गहने वैसे ही रहने दिए थे. गले पर भारी मन्गल्सुत्र, हाथों मे भारी चूड़ीयाँ और माथे पर कुमकुम एक अप्सरा सी लग रही थी. यहाँ तक की पैरों मे अभी तक हाइ हील्स के सॅंडल मौजूद थे.



मुझे इस तरह खड़े होने मे बहुत शर्म आ रही थी. लेकिन मैने अपने गुप्तांगों को च्चिपाने की कोई कोशिश नही की. क्योंकि मैं जानती थी की रत्ना मेरी एक नही चलने देगी. आज उसे पता नही क्या हो रहा था. इस तरह घर के अलावा किसी पब्लिक प्लेस पर मैं पहली बार नंगी हुई थी. गुस्सा भी आ रहा था की मैं इनके साथ बिना कुच्छ सोचे समझे क्यों चली आइ.



“ अब तो मुझे कपड़ा दे दो. अब तो सारे कपड़े उतार दिए मैने. आज आपकी नियत कुच्छ सही नही लग रही है. मगर जो करना है वो घर जा कर ही करना बेहतर होगा इस तरह पब्लिक प्लेस मे कोई भी हमे देख सकता है.” मैने अपने हाथ उसकी ओर बढ़ाए.



“ अब अपने हाथ छत की ओर उठा दो” रत्ना जी ने मेरी बात को बिल्कुल अनसुना करते हुए कहा.



“ लेकिन इसके साथ उस वस्त्र को पहनने का क्या संबंध है? “ मैने आख़िर मे पूछ ही लिया. मेरे पूरे बदन मे सिहरन सी दौड़ रही थी शायद उस शरबत का ही कुच्छ कमाल था. मेरी योनि भी गीली हो चुकी थी. उसमे से चिपचिपा प्रदार्थ निकल रहा था. उस महॉल मे इस तरह निवस्त्र होते होते मुझमे भी काम का ज्वार चढ़ने लगा.



“ जैसा मैं कहती हूँ वैसा ही करो. ये सब यहाँ का रिवाज है इसे तुम्हे मानना ही पड़ेगा. कुच्छ रस्में हैं जिसे पूरा करने के बाद ही तुम इस वस्त्र को पहन सकती हो. देखो मेरे अलावा कोई और तुम्हे देख सकता इसलिए घबराओ नही. किसी तरह का मन मे डर हो तो उसे निकाल दो.”



मैने उसकी बातों मे आकर अपने हाथ हवा मे उपर उठा दिए. मेरा योवन बेपर्दा हो गया था.



“ अब अपनी टाँगों को चौड़ा करो.” रत्ना की आवाज़ सुनाई दी. मैने धीरे धीरे झिझकते हुए अपनी टाँगें फैलानी शुरू की. ऐसा लग रहा था मानो किसी के आगे मैं अपने कटीले हुष्ण की किसी को नुमाइश करवा रही हूँ. मुझे बड़ी शर्म आ रही थी. ऐसा लग रहा था मानो मैं कोई रांड़ हूँ और अपने बेपर्दा जिस्म किसी ग्राहक को दिखा रही हूँ. रत्ना मेरे पीछे थी. मैं उसकी ओर मुड़ना चाहती थी मगर उसने मुड़ने नही दिया.



“ अब तो मुझे कपड़े देदो.” मैने कहा मगर रत्ना की तरफ से कोई आवाज़ नही आइ.



मैं इसी उत्तेजक अवस्था मे खड़ी रही. तभी अचानक एक हल्की सी “क्लिकक” की आवाज़ सुनाई दी. मैने गर्देन घुमा कर देखा रत्ना मेरे उतारे हुए कपड़े और जो कपड़े साथ लाई थी सारे समेट कर मेरे पास से गायब हो चुकी है. मैं दौड़ कर दरवाजे की ओर गयी. मगर दरवाजा उसने बाहर से लॉक कर दिया था. मैं वापस अपनी जगह आकर इधर उधर कपड़े ढूँढने लगी.



मैं इससे पहले की कुच्छ समझ पाती पूरा हॉल रोशनी से जगमगा उठा. सामने देखा कमरे के दूसरे छ्होर पर सेवकराम जी पूरे नग्न अवस्था खड़े थे. उनके जांघों के बीच उनका लिंग किसी खंबे की तरह खड़ा था. वो मेरी हालत को देख कर मुस्कुराते हुए अपने लिंग को सहला रहे थे.



उनके लिंग का टोपा किसी काले नाग की तरह लपलपा रहा था. वो मेरी ओर अपने ताने हुए लिंग को सहलाते हुए बढ़ रहे थे. मुझे समझ मे ही नही आया की मैं क्या करूँ. मेरा गला डर और घबराहट मे सूखने लगा. मैं पीछे की ओर सरकी. दो एक कदम ही पीछे खिसक पाई होंगी की सेवक राम जी मुझ तक पहुँच कर मेरे नग्न स्तनो को अपनी मुट्ठी मे भर लिए. और उन्हे ज़ोर से भींच दिया.



मैने उनके हाथ को झटक दिया और अपने हाथों से अपनी चुचियो को ढकने की असफल कोशिश करते हुए पीछे हटी तो उन्हों ने अपने हाथों से मेरी योनि के उपर रख दिया. मेरी योनि के उपर घने काले बालों को अपनी मुट्ठी मे भर कर सहलाने लगे. मैने झट अपना एक हाथ अपने स्तनो से हटा कर अपनी योनि को ढकने लगी. हाथ के हटते ही मेरे स्तन युगल बेपर्दा हो गये. सारे गुप्तांगों को एक साथ ढक पाना वश मे नही था. उनके हाथ को योनि से हटाने पर उन्होने मेरे एक नितंब को मुट्ठी मे भर कर मसल दिया.



तभी पीछे कुच्छ खटका हुआ. मैने सिर घुमा कर देखा रत्ना वापस अंदर आ रही थी. उसके हाथ अब खाली थे. मेरे वस्त्र उसके हाथ मे नही थे ना ही मेरे को पहनाया जाने वाला वो लबादा.



“ रत्ना…..ये क्याअ हो रहाआ हाईईइ. मुझे निकालो यहाआँ से.” मैने उसकी ओर देख कर गिड़गिदते हुए कहा, “ इनसे मुझे बचाओ. ये मेरे साथ ग़लत काम करना चाहते हैं. मैं…मैं शोर मचा दूँगी.”



“ बकवास मत कर दिशा…ये तुझे जन्नत की सैर कराएँगे. ये तेरे मन मे जल रही ज्वाला को शांत कर देंगे. ये तुझे खुशी और संतुष्टि की इतनी उँची मंज़िल तक ले जाएँगे जिसकी तूने कभी कल्पना भी नही की होगी. अओर एक बात ये भी सुन ले…..यहाँ तेरे विरोध के कोई मायने नही हैं. तू जितना चीख सकती है उतना चीख ले मगर तेरी आवाज़ इन चार दीवारों के बाहर नही जा पाएगी. ये कमरा साउंड प्रूफ है. इसमे से कोई आवाज़ बाहर नही जाती.”



मेरी विरोध करने की छमता ख़त्म होती जा रही थी. मैं अपने जांघों के बीच पड़ते किसी के हाथों का स्पर्श महसूस कर वापस अपना ध्यान रत्ना की ओर से हटा कर सेवकराम को देखा.



सेवक राम जी के जांघों के बीच लटकता उनका लिंग पूरे जोश मे आ चुक्का था. मेरी नज़रें एक टक सेवकराम जी के गधे के समान खड़े लिंग पर अटकी हुई थी. सेवकराम जी ने आगे बढ़ कर मुझे अपनी बाहों मे भर लिया. मुझे लग रहा था मानो मेरे साथ सब कुच्छ एक सपने की तरह घट रहा हो. मेरा दिमाग़ सुन्न होता जा रहा था. मन तो चेता रहा था कि जो कुच्छ भी हो रहा था ठीक नही हो रहा था. मगर जिस्म का हर रोया उत्तेजना मे च्चटपटाते हुए किसी काँटे के समान खड़ा हो गया था.



रत्ना जी मुझे हाथ पकड़ कर उस रोशनी के दायरे से बाहर लेगई. उसने एक ओर लगे भारी पर्दे को हटा दिया. तब तक सेवक राम ने उस लाइट को बुझा कर कमरे मे हल्की नीली रोशने के छ्होटे छ्होटे बल्ब जला दिए. पूरा कमरा मदहोश कर देने वाले वातावरण से भर गया.



पर्दे के उस ओर दीवार के साथ एक डबल बेड लगा था. रत्ना मुझे खींचते हुए उस बेड पर ले गयी. बेड पर मुलायम गद्दे के उपर सफेद रंग का रेशमी चादर बिच्छा था. रत्ना उस बेड पर बैठ गयी और खींच कर मुझे भी अपने पास बिठा लिया. उस वक़्त रत्ना गाउन पहने थी और मैं बिल्कुल नग्न. मेरा सिर घूम रहा था और मैं किसी नशे के जाल मे फँस गयी थी. मुझे अपनी नग्नता पर भी कोई अफ़सोस नही हो रहा था. बस हल्की हल्की सी एक तरंग पूरे बदन को सिहरा देती थी. मेरे पूरे बदन को एक अजीब सी खुमारी ने अपने आगोश मे ले लिया था



हमारे साथ साथ सेवकराम जी भी वहाँ पर आ गये. रत्ना मेरे पूरे बदन पर अपनी उंगलियाँ इतने आहिस्ता से फिरा रही थी कि ऐसा लग रहा था मानो बदन पर चींटियाँ चल रही हों. मेरी आँखें खुद बा खुद मूंडने लगी. मेरे होंठ एक दूसरे से अलग हो गये. मेरी गर्देन पर और कानो की लबों पर किसी की गर्म साँसों की तपिश मिल रही थी. मेरा बदन गन्गनाने लगा. मैने अपने सिर को झटका दिया. मेरे लंबे रेशमी बाल पूरे चेहरे पर बिखर गये.

क्रमशः............


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Re: रश्मि एक सेक्स मशीन

Unread post by raj.. » 12 Nov 2014 10:05

raj sharma stories

रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -46

गतान्क से आगे...

अचानक किसी ने मेरे रेशमी बालों को पीछे से उठाया और मेरी गर्देन पर अपनी जीभ फिराने लगा. एक जीभ कभी मेरे एक निपल को हल्के से छुति तो कभी दूसरे निपल को. मेरा अपने बदन पर से कंट्रोल ख़तम हो चुक्का था. दोनो मुझे उत्तेजना की इतनी उँची शिखर तक ले गये थे कि अब मेरा कोई ज़ोर नही चल रहा था. मैं जानती थी कि अब क्या होने वाला है. दिमाग़ वॉर्निंग दे रहा था कि मैं अपने आप पर कंट्रोल कर लूँ नही तो वापस लौटने के सारे रास्ते बंद हो जाएँगे. मगर जिस्म तो इस कदर फूँक रहा था कि अगर वो मेरे साथ सेक्स करने से मना कर देते तो मैं किसी पागल शेरनी की तरह उनको नोच खाती. मैं खुद उनको रेप कर देती.



फिर दोनो ने मेरे एक एक निपल को अपने होंठों के बीच दबा लिया. दोनो के होंठ मेरे तने हुए निपल्स को चूसने मे व्यस्त थे और उनके हाथ मेरे पूरे बदन पर रेंग रहे थे. मैं धीरे धीरे बिस्तर पर लेट गयी. दोनो भी मेरे बदन से चिपके हुए मुझ पर पसर गये.



कुच्छ देर तक मेरे एक निपल से खेलने के बाद रत्ना मुहे छ्चोड़ कर उठी. मैने देखा मेरा निपल किसी अंगूर से भी बड़ा दिख रहा था. अब सेवकराम को तो पूरी छ्छूट मिल गयी थी उसने एक निपल को तो अपने मुँह मे भर ही रखा था, रत्ना के हटते ही दूसरे स्तन को अपनी मुट्ठी मे थाम कर उसे सहलाने लगा.



तभी रत्ना जी ने बिस्तर के साइड के टेबल से दो छ्होटी छ्होटी किसी देवता की मूर्तियाँ उठा कर मेरे दोनो हाथों मे थमा दी. तब मैने अपनी आँखें खोल कर देखा कि वो कर क्या रही थी.



“ लो इन्हे पाकड़ो. इन्हे अपनी मुट्ठी मे सख्ती से पकड़े रखना.” रत्ना ने मुझे कहा.



“ ये क्या हैं.” मैने कुच्छ ना समझ कर उससे पूछा.



“ ये देवता की मूर्तियाँ हैं. काम के देवता ये तेरे जिस्म मे इतनी आग भर देंगे कि तुझे ठंडा कर पाना किसी एक मर्द के बस का काम नही रह जाएगा.” उसने कहा.



मैने उन मूर्तियों को अपनी दोनो मुट्ठी मे थाम लिया. सेवकराम मुझे छ्चोड़ कर उठ चुका था. मैं बिस्तर पर नग्न लेटी हुई थी. सेवकराम आकर मेरे सामने खड़ा हो गया. सेवकराम कुच्छ सेकेंड्स तक मेरे निर्वस्त्र हुष्ण को सिर से पावं तक निहारता रहा. मैं भी उनके जांघों के बीच तने लिंग को अपनी आँखों से निहार रही थी और उनके अगले कदम का बेसब्री से इंतेज़ार कर रही थी.



रत्ना ने मेरी टाँगों को पकड़ कर फैला दिया. जिससे मेरी योनि भी बेपर्दा हो गयी.



“ देखो गुरुदेव…..इस के फूल से बदन मे कितनी वासना भरी हुई है. देखो इसकी चूत से कितना काम रस बह रहा है. इसकी चूत के दोनो होंठों को देखो कैसे काप रहे हैं इन्हे किसी मर्द के मोटे लंड का इंतेज़ार है. इसकी ये इच्छा आप ही पूरी कर सकते हैं. देव इस हुश्न की परी को निराश ना करें.” उसने कहा. सेवकराम की एक हथेली रत्ना ने अपने हाथों से पकड़ कर मेरी योनि के उपर फिराया. मैं कामोत्तेजना मे अपने निचले होंठ को अपने दाँतों से काट रही थी. इस हालत मे किसी गैर मर्द के सामने लेटे रहने की वजह से शर्म भी बहुत आ रही थी. मैने अपनी आँखें अपनी हथेलियों से ढँक ली थी.



फिर रत्ना ने मुझे सहारा देकर बिस्तर से उठाया. सेवक राम बिस्तर के पास ही खड़े थे. रत्ना ने मुझे घुटनो के बल ठंडे नग्न फर्श पर झुका कर बिठा दिया. सेवक राम जी पास आकर खड़े हो गये. रत्ना ने मेरे सिर को पकड़ कर उनके चरणो पर झुकाया.



“ चूमो इन्हें. इनके चरणो को अपने होंठों से चूमो. ये कोई आम आदमी नही हैं. इनका इस धरती पर आगमन ही हम जैसी महिलाओं के तन और मन को शांति प्रदान करने के लिए हुआ है. ” उसने कहा.



मैने अपने सिर को झुका कर उनके पैरों को चूम लिया. ऐसा करते वक़्त मेरे नग्न नितंब उपर की ओर उठ गये. सेवक राम ने उन्हे अपने हाथों से सहलाया. उनकी उंगलिया पल भर के लिए मेरे गुदा द्वार और योनि को उपर से सहलाई. मैं सिर उठाने लगी तो रत्ना मेरे सिर को पकड़ कर उनके लिंग के नीचे ले आई. रत्ना ने उनके लिंग को अपने हाथों से पकड़ कर मेरे सिर पर मेरी माँग पर रख कर आशीर्वाद दिया. ऐसा करते वक़्त उनके लिंग से टपकता रस मेरी माँग मे भर गया.



“ ये देवता तुल्य हैं. इनकी जितनी तन और मन से सेवा करोगी तुम्हारे जिस्म को उतनी ही ज़्यादा शांति मिलेगी.” रत्ना ने कहा, “ और तुमने ही तो कई बार मुझसे रिक्वेस्ट भी किया था कि तुम्हारे बदन की आग को बुझाने का कोई इंटेज़ाम करूँ. बदन मे जल रही कामग्नी को ठंडा करने का उपाय इनसे अच्च्छा कोई नही कर सकता.”



मैं चुपचाप किसी बुत की तरह जैसा वो कहती जा रही थी कर रही थी. मेरा दिमाग़ सुन्न होता जा रहा था. बस याद थी एक कामुक उत्तेजना जो मैं किसी भी तरह शांत करना चाहती थी.



“ बिना किसी हिचक और आशंका के अपने आप को पूरी तरह इनकी चरणो मे समर्पित कर दो. तुम्हारी हर तड़प को उनके शीतल बदन की च्छुअन शांत कर देगी. इनके चर्नो पर अपना दिल रख कर अपनी ओर से पूर्ण समर्पण दिखाते हुए इन्हे अपने बदन को छूने की याचना करो. ” रत्ना कहती ही जा रही थी.



शांता ने सेवकराम के पैरों पर मेरी दोनो छातियो को निपल्स से पकड़ कर च्छुअया और उनको उनके पैरों पर रख कर सहलाया. ऐसे मे सेवक राम ने अपने अंगूठे और उसके पास की उंगली के बीच मे मेरे एक निपल को लेकर मसला.



“ देख देव, ये अपने दोनो फूलों को आपको समर्पित कर रही है और इनकी प्यास शांत करने के लिए आपसे विनती कर रही है.” कहते हुए शांता ने मेरी योनि और मेरे गुदा मे अपनी उंगलिया डाल कर उन्हे सेवक राम की ओर करके फैलाया.



रत्ना ने सेवक राम के लिंग को पकड़ कर मेरी आँखों पर, मेरे गालों पर, मेरे माथे पर, मेरे होंठों पर हर जगह फिराया. मैं अपने दोनो हाथों को अपने घुटनो पर रख कर घुटनो के बल फर्श पर बैठी थी. फिर रत्ना ने एक हाथ से मेरा सिर पकड़ा और दूसरे हाथ से सेवकराम का लंड और मेरे चेहरे को उसके लंड की ओर खींचा.



“इस लिंग को पहले प्यार करो. आज से ये लिंग तुम्हारी सेवा के लिए हर वक़्त तैयार रहेगा. चलो इसे चूमो. अगर शिष्य का अपने गुरु की हर तरह से सेवा करना धर्म होता है तो उसी तरह गुरु का भी कर्तव्य होता है अपने शिष्य की हर इच्छा को पूरा करना.”



मैने झुक कर उनके लिंग को अपनी होंठों से चूम लिया. वो पास बैठी उनके लिंग को सहलाने लगी थी. उसके सहलाने से सेवकराम जी के लिंग के सूपदे के उपर की चॅम्डी बार बार उपर नीचे हो रही थी. और बार बार उनके लिंग का टोपा अंदर बाहर हो रहा था.



रत्ना ने मेरा सिर पकड़ कर दोबारा उनके लिंग से सटा दिया. उसने मेरे सिर को कुच्छ देर उनके लिंग पर दबा कर थामे रखा जिससे कहीं मैं अपना सिर हटा ना लूँ. दूसरे हाथ की उंगलियों से वो मेरी योनि को सहला रही थी.



मेरे होंठ उनके लिंग से सटे हुए थे. रत्ना ने जब देखा कि मेरे होंठ कुच्छ देर तक बंद ही रहे तो अपने दूसरे हाथ को मेरी योनि से हटा कर उनके लंड की चॅम्डी को नीचे खींच कर लाल लाल सूपदे को बाहर निकाला. फिर मेरे सिर को पकड़ कर उनके लिंग की पर वापस दबाया. मेरे हाथ दोनो ओर फैले हुए थे उनमे वो दोनो मूर्तियाँ बंद थी.



“ चलो मुँह खोल कर इसे अपने मुँह मे ले लो.” रत्ना ने कहा.



मैने अपना मुँह खोल कर उसके लिंग को अपने मुँह मे भर लिया. उनका लिंग मेरे मुँह मे जितना अंदर तक जा सकता था मैने ले लिया. अपनी जीभ से उसके लिंग को एक बार सहला कर देखा. मैने अपने हज़्बेंड का लिंग ही सिर्फ़ एक बार उनके बहुत ज़ोर देने पर अपने मुँह मे लिया था. मैं इसे एक गंदी हरकत मानती थी. मगर सेवकराम जी के लिंग को मुँह मे लेने के बाद मुझे लगा कि मैं अब तक ग़लत थी. इस तरह किसी को प्यार करना कोई बुरी चीज़ नही था.



मुख मैथुन किस तरह किया जाता है उससे मैं बिल्कुल अंजान थी. मैं लिंग को मुँह मे भर लेने को ही मुख मैथुन समझती थी. रत्ना ने मुझे इस कार्य से इतनी तसल्ली से अवगत कराया कि मैं कुच्छ ही देर मे एकदम एक्सपर्ट हो गयी. रत्ना ही मेरे सिर को पकड़ कर उनके लिंग पर आगे पीछे कर रही थी. वो उनके लिंग पर मेरे सिर को इतनी ज़ोर से दबाती की कुच्छ पलों के लिए मेरा दम घुटने लगता. फिर जैसे ही वो अपने हाथ को ढीला करती मैं साँस लेने के लिए अपने सिर को पीछे हटती. इसी तरह कुच्छ देर तक मैं उनके लिंग को अपने मुँह मे लेती रही.



कुच्छ देर बाद मे बिना किसी के मदद के ही मैं उनके लिंग को चूसने लगी. मैं उनके लिंग को चूसने चाटने मे इतना मसगूल हो गयी कि रत्ना को मेरे सिर को बालो से पकड़ कर सेवकरामके लिंग से हटाना पड़ा.

क्रमशः............


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