रश्मि एक सेक्स मशीन compleet
Re: रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -52
गतान्क से आगे...
“ वाह क्या ग़ज़ब लग रही हो. आज तो सारे मर्दों के लंड झुकने का नाम ही नही लेंगे.” रत्ना ने मुझे निहारते हुए कहा.
रत्ना मुझे लेकर आश्रम के बीच बने कुंड पर ले आई. जिसे सब कुंड कह रहे थे वो एक तरह से स्विम्मिंग पूल ही था. रत्ना ने कहा,
" जाओ इसमे प्रवेश करके एक डुबकी लगाओ. इसका पानी सूद्ढ़ और अभिमंत्रित है. यहाँ के हर शिष्य शिष्या को सख़्त आदेश है कि इस कुंड से अपने बदन को सूद्ढ़ किए बिना किसी भी प्रकार के पूजा अर्चना नही शुरू करें. "
तभी मैने देखा कि एक आश्रम का शिष्य कमर पर छ्होटी सी लंगोट बँधे उस कुंड मे प्रवेश किया. कुच्छ मंत्र पढ़ते हुए उसने दो डुबकी लगाई और बाहर आ गया. बाहर आते वक़्त उसकी छ्होटी सी लंगोट गीले बदन से चिपक गयी थी. लंगोट के अंदर से
उसका तगड़ा लिंग जो पहले आँखों की ओट मे था अब एकदम सॉफ सॉफ दिखाई दे रहा था.
उनका लिंग किसी बेल पर लगे मोटे खीरे की तरह लटक रहा था. उसे देख कर मेरा चेहरा शर्म से लाल हो गया. उसका लंड अभी सोया हुआ था मगर उस अवस्था मे भी उसका आकार अच्छे अच्छो के खड़े लंड के बराबर था. मैने मन ही मन सोचा की वैसा मोटा तगड़ा लंड जब खड़ा होता होगा तो कितना ख़तरनाक लगता होगा.
मैने अपने बदन पर एक नज़र डाली पानी से बाहर आने पर मेरी हालत उससे भी बदतर होने वाली थी. काफ़ी सारे शिष्य कुंड के चारों इधर उधर आ-जा रहे थे. मैं झिझकते हुए कुंड मे प्रवेश कर गयी . मैं दो डुबकी लगा कर बाहर आई. अब मेरा बदन पूरा ही नग्न हो गया था. बदन की सारी का होना और ना होना बराबर ही था. सारी गीली होगार मेरे बदन से किसी केंचुली की तरह चिपक गयी थी. मेरे बड़े बड़े सुडोल बूब्स एक दम बेपर्दा हो गये थे. मेरे दोनो निपल्स खड़े होकर बड़ी हसरत से सामने वाले को आमंत्रित कर रहे थे. सारी गीली होकर पारदर्शी हो जाने के कारण
मेरी योनि के उपर उगे रेशमी बाल भी साफ साफ नज़र आ रहे थे. मैं अपनी योनि के उपर से रेशमी बालों को साफ नही करती थी. वो इस वक़्त एक काले धब्बे की तरह नज़र आ रहे थे. अब मेरे लिए दूसरों की नज़रों से छिपाने के लिए कुच्छ भी नही बचा था.
मुझे उसी हालत मे त्रिलोकनंद जी के पास ले जाया गया. रत्ना कमरे के बाहर ही रह गयी थी. त्रिलोकनंद जी ने मुझे उपर से नीचे तक देखा. फिर अपने सामने खड़ा कर के मेरी सारी को मेरे बदन से हटाने लगे. मेरे पूरे बदन से और सारी से अब भी पानी टपक रहा था. मैं उनके सामने सिर झुकाए खड़ी थी. पूरी सारी को मेरे बदन से हटा कर उन्होने मुझे पूरी तरह नंगी कर दिया. फिर मेरे नग्न बदन पर उपर से नीचे तक अपने दोनो हाथों को फिराया. उनकी उंगलियों ने मेरे जिस्म के हर शिखर और कंदराओ को च्छुआ. उनकी उंगलियों की चुअन पूरे बदन पर सैकड़ो चींटियाँ चला रही थी. मेरे सारे रोएँ ऐसे खड़े हो कर तन गये थे जैसे वो बाल ना होकर काँटे हों. ऐसा लग रहा था मानो कोई मेरे बदन पर मोर पंख फेर रहा हो. सिहरन से मेरे निपल्स खड़े होकर कठोर हो गये. उनके हाथ पूरे बदन पर फिसल रहे थे. अपने कंधे पर पड़ी चुनरी को उन्हो ने उतारा और मेरे गीले बदन को पोंच्छने लगे.
पोंच्छने के साथ साथ जगह जगह पर सहलाते भी जा रहे थे. मेरे बदन को
पोंच्छने के बाद उन्हों ने मुझे खींच कर अपने बदन से सटा लिया और मेरे चेहरे को अपने हाथों से थाम कर मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए. काफ़ी देर तक यूँ ही मेरे होंठों को चूमते रहे.
उन्हों ने कमरे के एक कोने पर विराजमान देवता जी की मूर्ति के पैरों के पास से भभूत जैसी कोई चीज़ अपने हाथों मे ले कर मेरे पूरे बदन परमालने लगे. फिर एक सुराही से एक ग्लास मटमैले रंग का कोई तरल भर कर मुझे पीने को दिया. उस शरबत जैसी चीज़ बहुत तेज थी. उसका स्वाद कुच्छ कुच्छ वैसा ही था जैसा मैने कई बार उस आश्रम मे पिया था.
जब मैं एक एक घूँट ले कर उस ग्लास को खाली कर रही थी तब वो मेरे निपल्स को अपनी जीभ से कुच्छ ऐसे चाट रहे थे जैसे कोई बच्चा सॉफ्टी के उपर लगे चर्री को चाट्ता है.
" देवी, ये अवसर मैं बहुत कम महिलाओं को ही देता हूँ. तुम बहुत अच्छि हो और बहुत सेक्सी……मुझे तुम पसंद आई इसलिए तुम्हे भी मेरा वीर्य अपने कोख मे लेने का अवसर मिला. अब एक हफ्ते तक तुम्हे सब कुच्छ भूल कर मेरी बीवी की तरह रहना होगा. तुम्हारे बदन का मालिक मैं और सिर्फ़ मैं होऊँगा." कहते हुए उन्हों ने अपने तपते होंठ मेरे होंठों पर रख दिए, “ तुम मेरी इच्छा की विरुढ़ह कुच्छ नही कर सकती. मेरे आदेशों का पालन किसी गुलाम की तरह सिर झुका कर करना पड़ेगा. हल्का सा भी विरोध तुम्हारी पूरी मेहनत, पूरी तपस्या एक पल मे ख़त्म कर सकती है.”
मुझे ऐसा लगा मानो मेरे ठंडे होंठों को किसी ने अंगारो से च्छुआ दिए हों. मेरा गीला बदन भी उनके शरीर से लग कर तप रहा था. मेरे हाथ अपने आप नीचे उनकी जांघों के बीच जाकर उनके तने हुए विशालकाय लिंग को थाम लिए. मेरे होंठ उत्तेजना से खुल गये और मैं अपनी जीभ निकाल कर पहले मेने उनके होंठों पर फिराया और फिर मैने उनके मुँह मे अपनी जीभ को डाल दिया.
" आआअहह……कब से मैं तड़प रही थी इसी मौके के लिए. मैं आपकी शरण मे आइ हूँ. आपको पूरा अधिकार है मुझे जैसी इच्छा हो आपकी उसी तरह यूज़ करो. मुझे तोड़ मरोड़ कर रख दो. मुझे अपनी दासी बना कर रखो. मैं आपके साथ बीते हर पल को एंजाय करना चाहती हूँ. मुझे अपने जिस्म से लगा कर मेरी प्यास को शांत कर दो. मुझे अपने चर्नो मे जगह दे दो गुरु देव. मुझे अपना बना लो." उन्हों ने अपने होंठों को खोल कर मेरी जीभ को अंदर प्रवेश करने दिया.
" दिशा…….मेरे लिंग को अपने अंदर लेने से पहले मेरे बीज को अपनी कोख मे लेने से पहले इस आश्रम के बाकी सारे मर्दों का आशीर्वाद लेना पड़ेगा. उन्हे खुश करके उनसे अनुमति लेनी पड़ेगी. उन्हे एक बार खुश करना पड़ेगा." मैने बिना कुच्छ कहे उनकी नज़रों मे झाँका ये कहने के लिए कि मैं उनकी हर शर्त मानने के लिए तैयार हूँ. मुझे रत्ना ने हर बात बड़ी तसल्ली से मुझे समझा दिया था. मुझे सब पता था कब किसके साथ क्या करना था.
” देवी तुम्हे अपने करमो से साबित करना पड़ेगा की तुम भूखी हो मेरे वीर्य रस की. तुम्हे अपनी गर्मी का अहसास दिलाना पड़ेगा हर किसी को. तुम्हे इस आश्रम मे मौजूद हर व्यक्ति की उत्तेजना को शांत करना होगा तब जा कर तुम मेरे अमृत को ग्रहण करने के योग्य हो पओगि.” उन्हों ने मुझे कहा.
वो मेरे बदन से अलग होकर पूजा के स्थान से एक छ्होटा सा पीतल का कलश ले आए. उसे मेरे हाथों मे थमाया और बोले,
" लो इसे सम्हालो" मैने कलश को थाम लिया, " ये अमृत कुंड है. इसे तुम्हे भर कर लाना होगा."
मैने सिर हिला कर पीछे उन्हे अपनी राजा मंदी जताई. जब मैने बाहर जाने के लिए मुड़ना चाहा तो उन्हों ने रोक दिया.
" अरे पगली इसे पानी से भर कर थोड़े ही लाना है. इसे अंकुरित बीजों से भरना है. यहाँ इस आश्रम मे सेवकराम को मिलाकर दस शिष्य हैं. दसों मर्द तुम्हे अपने आगोश मे लेने के लिए आतुर हैं.तुम्हे इस कलश को उनके वीर्य से भर कर लाना होगा. तुम्हे उनसे प्रणय निवेदन कर अपने साथ संभोग के लिए राज़ी करना होगा."
मेरा उनकी बातें सुन कर चौंक गयी. मेरा मुँह खुला का खुला रह गया. मेरे मुँह से कोई आवाज़ नही निकली. रत्ना मुझे सब समझाते हुए भी शायद कुच्छ बातों को छिपा गयी थी. वो बोलते जा रहे थे,
" इसके लिए तुम्हे हर शिश्य के कमरे मे जाकर उनको उत्तेजित करना है. उन्हे अपने साथ संभोग के लिए राज़ी करवाना होगा और उनसे सेक्स करने के बाद उनका वीर्य अपनी योनि मे या इधर उधर बर्बाद करने की जगह इस छ्होटे से कलश मे इकट्ठा करना होगा. इसके लिए तुम्हे अपना रूप, अपने बदन, अपना सोन्दर्य और अपनी अदाओं का भरपूर इस्तेमाल करना होगा."
मैं चुपचाप उनको सुन रही थी. जब वो पल भर को रुके तो मैने,” जी” कह कर उन्हे अपनी सहमति जताई.
" अभी पाँच बज रहे हैं. तुम अभी से शुरू हो जाओ क्योंकि सुर्य अस्त होने से पहले तुम्हे ये काम निबटना पड़ेगा. जाओ तैयार हो जाओ. सबसे पहले सेवक राम के पास
जाना. उस के लिंग के रस से ही तो आधा भर जाएगा. बहुत रस है उसके अंदर. जाओ उसे निचोड़ लो. हाहाहा…." उन्हों ने एक पहले जैसी ही सूखी सारी लाकर मुझे दी.
" वो सारी तो अब पहनने लायक नही है. पूरी तरह गीली हो चुकी है. लो इसे अपने बदन पर लप्पेट लो" स्वामी जी ने कहा. मैने उसे अपने बदन पर लप्पेट ने लगी. स्वामी जी ने उस सारी को मुझे पहनने मे मदद की.
मैं उनके चरण च्छू कर बाहर निकली. मुझे अगले दस-बारह घंटे मे दस मर्दों की काम वासना शांत करना था. पंद्रह बलिष्ठ मर्दों से सहवास करते हुए बदन का टूटना तो लाजिमी ही था. जाने कितनी कुटाई होनी थी शाम से पहले. एक ओर बदन उत्तेजित था पंद्रह मर्दों से सहवास के बारे मे सोच कर तो दूसरी ओर मन मे एक दार भी था की शाम तक कहीं मुझे लोगों का सहारा ना लेना पड़े खड़े होने के लिए भी.
रत्ना को साथ मैने पूरे वक़्त मेरे साथ ही रहने को कहा. सेवकराम जी जैसे दस आदमियों को झेलते हुए मेरी जो दुर्गति होनी थी वो मैं ही जानती हूँ. हिम्मत बढ़ने के लिए काम से काम रत्ना जैसी किसी जानकार महिला का होना बहुत ज़रूरी था जिससे मैं पहले से ही घुली मिली थी.
मैं रत्ना को साथ लेकर चलते हुए सबसे पहले सेवकराम जी के पास गयी. उन्हों ने मेरे हाथ मे थामे कलश को देख कर मुस्कुराते हुए कहा,
"आओ अंदर आओ. रत्ना तुम बाहर ही ठहरो. इसे अभी छ्चोड़ता हूँ." सेवक राम जी ने रत्ना को बाहर ही रोक कर मेरी कमर मे अपनी बाँहें डाल कर कमरे मे ले गये.
सेवक रामजी ने मुझे अपना वस्त्र बदन से हटाने को कहा. मैने उनके सामने बेझिझक अपनी सारी उतार कर रख दी. उनके साथ तो वैसे ही कई बार संभोग कर चुकी थी इसलिए अब कोई झिझक नही बची थी. उन्हों ने भी अपनी कमर से लिपटा एक मात्र वस्त्र को उतार कर एक ओर फेंक दिया. मैने देखा कि उनका वही चिर परिचित लंड पूरे जोश के साथ खड़ा हो कर मुझे ललकार रहा था.
उन्हों ने मुझे सामने की दीवार का सहारा लेकर खड़ा किया. मैने दीवार की तरफ मुँह करके अपने हाथ दीवार पर रख कर उसका सहारा लिया और अपनी कमर को कुच्छ बाहर निकाला. क्रमशः............
Re: रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -53
गतान्क से आगे...
वो पीछे की तरफ से आकर मेरे बदन से चिपक गये और अपने हाथ मेरे बगलों के नीचे से निकाल कर मेरे दोनो स्तनो को थाम कर उन्हे मसल्ने लगे. उनकी साँसे मैं अपनी गर्दन पर महसूस कर रही थी. उनके होंठ मेरी पीठ पर मेरी गर्देन के पीछे और यहाँ तक की मेरे नितंबों पर भी घूम रहे थे.
मेरी आँखें उत्तेजना से खुद बा खुद बंद होने लगी और होंठ खुल गये. सारा जिस्म सेक्स की आग से तप रहा था और मेरा दिल व दिमाग़ अपने जांघों के जोड़ पर किसी चिर परिचित मेहमान का इंतेज़ाए कर रहा था. मेरी टाँगें उनके लंड के इंतेज़ार मे अपने आप ही एक दूसरे से अलग होकर उनको रास्ता दिखाने लगी.
उनके लिंग की छुअन मैं अपने नितंबों के बीच महसूस कर रही थी. उनके होंठ मेरे कंधों पर फिरते हुए मेरे गर्दन पर घूमने लगे. उन्हों ने मेरी गर्दन के पीछे अपने दाँत गढ़ा दिए और हल्के हल्के से काटने लगे. पूरा बदन सिहरन से भर उठा. बदन के रोएँ कांटो के जैसे खड़े हो गये. मेरी योनि से तरल प्रेकुं रिस रिस कर बाहर आ रहा था.
"आआआहह… ..म्म्म्मममम… ..क्यों साताआ रहीए हूऊऊ" कहकर मैने
अपना एक हाथ दीवार पर से हटाया और पीछे ले जाकर उनके लिंग को दो बार सहलाया. फिर उनके लिंग को अपनी योनि के द्वार पर ले जाकर उससे सटा दिया. ऐसा करने के लिए मैने अपने नितंबों को पीछे की ओर धकेला.
उन्हों ने मेरे निपल्स को अपनी उंगलियों से दबा कर ज़ोर से खींचते हुए अपने लिंग को मेरी योनि मे डाल दिया. उनका लिंग काफ़ी मोटा है इसलिए जब भी मेरी योनि मे घुसता है तो चाहे जितनी भी गीली हो ऐसा लगता है मानो उसे चीर कर रख देगा. मैं इतनी बार
उसने संभोग करने के बावजूद आज भी उनके पहले धक्के से कराह उठती हूँ. आआज तक मैं उनके लिंग की अभ्यस्त नही हो पाई.
वो पीछे की तरफ से मेरी योनि मे धक्के मारने लगे. उनके धक्के इतने ज़ोर दार थे की हर धक्के के साथ मेरे उरोज दीवार से रगड़ खा जाते थे. निपल्स इतने तन चुके थे कि दीवार से रगड़ खा खा कर दुखने लगे थे. कुच्छ देर बाद इस तरह के ज़ोर दार झेलते झेलते मेरे हाथों ने जवाब दे दिया और मेरा पूरा बदन दीवार से जा चिपका. उसी हालत मे वो मुझे आधे घंटे तक चोद्ते रहे. मेरे निपल्स दीवार से रगड़ खाते खाते छिल गये थे. मेरी टाँगें भी उनके वजन को थामे दुखने लगी थी. मैं दो बार इस बीच झाड़ चुकी थी.
" आअहह…….ऊऊऊहह…….उउउइईई…..हहुूहह….माआ………आब्ब बुसस्स भीइ करूऊ…..सेवकराम जी…….अभी तो बहुत लोगोणणन्न् का लेआणा हाईईईईईईईई…. इससस्स तरह तूऊऊओ….मैईईईई… मार ही जौंगिइइइ……" मैं सिसक उठी थी.
" चल….आअज मैं तुझे चोदता हूँ……” कहकर उन्हों ने अपने धक्कों की गति बढ़ा दी. मेरे स्तनो को थाम कर तो उन्हे मसल कर रख दिया और पूरे वेग से अपने लंड से मेरी चुदाई करने लगे. मुश्किल से दो मिनिट हुए की उनका बदन अकड़ने लगा. मैं समझ गयी की अब इनका वीर्यपात होने वाला है.
“ले …..मेरे वीर्य को अपने कलश मे भर ले." कहकर सेवक रामजी ने एक झटके से अपने लिंग को बाहर निकाला. में हन्फ्ते हुए दीवार से सॅट कर ज़मीन पर बैठ गयी और पास रखे कलश को उठा कर उनके लिंग पर लगाया. उन्हों ने अपने लिंग को मेरे कलश की दिशा मे कर रखा था.
अपने दूसरे हाथ से उनके लिंग को पकड़ कर सहलाने लगी. दो – तीन बार सहलाते ही एक तेज दूध की तरह सफेद धार निकल कर उस कलश मे इकट्ठा होने लगी. उन्होने ढेर सारा वीर्य मेरे हाथो मे पकड़े उस कलश मे भर दिया. जब तक उनके लंड से आख़िरी बूँद तक ना निकल गयी तब तक मैने उनके लंड को छ्चोड़ा नही.
मेरी भी योनि से ढेर सारा वीर्य बह निकाला था. वो बाते बाते मेरी जांघों को और मेरे नितंबों को गीला कर रहा था. कुच्छ कतरे ज़मीन पर भी गिर गये थे.
मेरा गला सूखने लगा था. वो मेरी हालत को समझ कर दो ग्लास ले कर आए. एक मे पानी था और दूसरे मे वही शक्ति वर्धक पेय था. मैने एक घूँट पानी पीकर दूसरे ग्लास को लिया और उसे एक झटके मे खाली कर दिया. आज मुझे सारे दिन इसी पेय की ज़रूरत थी. जिससे मेरे जिस्म मे एक अन्बुझि आग पूरे दिन जलती रहे और मैं अपने कार्य को पूरे मन से संपूर्ण कर सकूँ.
मैं कुच्छ देर वही दीवार के सहारे नंगी ज़मीन पर बैठी रही. सेवकराम जी मेरे बालों पर हाथ फेर रहे थे और मेरे बदन को सहला कर प्यार कर रहे थे. मैं चुपचाप आँखें बंद किए बैठी अपनी सांसो को व्यवस्थित करती रही. जाब साँसे कुच्छ नॉर्मल हुई तो उठकर सारी को अपने बदन से लपेटा और सेवकराम जी के चरण च्छू कर उस कमरे से निकल गयी.
मैने अपने दोनो हाथों मे वही कलश थाम रखा था जिसमे सेवकराम जी का गाढ़ा वीर्य इकट्ठा था. कुच्छ ही देर मे वापस मेरे बदन मे सेक्स की ज्वाला सी जलने लगी थी. उस दिन तो मेरा बदन सेक्स की आग से तप रहा था.
बाहर रत्ना मेरे इंतेज़ार मे मिल गयी. वो मुझे देखते ही खिल उठी. आगे आकर उसने उस कलश मे झाँका और फिर मुस्कुराते हुए पूछा,
“ कैसा लगा? कोई परेशानी तो नही हुई?”
“ सेवकराम जी के साथ परेशानी कैसी? वो तो मेरे अंग अंग से अब तक वाक़िफ़ हो चुके हैं. हमेशा की तरह उनके साथ सेक्स मे मज़ा आ गया. उनकी मर्दानगी तो लाजवाब है. एक एक अंग को तोड़ कर रख देते हैं. लेकिन आज उन्हों नेज्यदा परेशान नही किया.” मैने कहा.
वो मुझे लेकर दूसरे कमरे के द्वार पर गयी. मैने दरवाजे को दो बार खटखटाया. एक 60 – 65 साल के बुजुर्ग ने दरवाजा खोला. काले रंग का वो शिष्य बदन से भी कमजोर था. उसके चेहरे पर चेचक के दाग थे उसपर हल्की दाढ़ी
किसी कॅक्टस के कांटो समान दिख रही थी. सिर पर एक भी बाल नही थे.
वो दो पल हमे जिग्यासा भरी नज़रों से देखते रहे. फिर मेरे हाथों मे कलश को देख कर वो बिना कुच्छ कहे दरवाजे से हट गये. रत्ना ने मेरी बाँह पकड़ कर आगे की ओर हल्का सा धकेला. मैं उनकी बगल से होती हुई अंदर प्रवेश कर गयी. अपने पीछे मैने दरवाजे के बंद होने की आवाज़ सुनी. मैं कमरे के बीच चुपचाप खड़ी रही. वो मेरे पास आकर मेरे हाथो से कलश को लेकर एक ओर रखा.
" अब किसका इंतेज़ार कर रही हो? चलो फटाफट अपने कपड़े उतार डालो. कपड़ों के उपर से तो एक दम गाथा हुआ मजबूत माल लग रही हो. अब मैं तो बुड्ढ़ा होने लगा हूँ. देखो…." कहकर उन्हों ने अपने बदन को ढके इकलौते वस्त्र अपनी धोती को एक झटके मे उतार दिया. मैने भी अपनी सारी को बदन से उतार दिया.
" वाआह शानदार... .........क्या माल है. काश आज से बीस तीस साल पहले मिली होती तो तुझे चोद चोद कर चौड़ा कर देता.” कहकर उन्हों ने अपने बेजान लटके हुए लिंग को मसला, “लड़की इस उम्र मे इससे दूध निकालने के लिए तुझे खुद मेहनत करनी होगी. इस मे जीवन का संचार करना होगा." उन्हों ने अपने सोए हुए लिंग की तरफ इशारा किया. मैने अपना हाथ बढ़ा कर उनके लिंग को थाम लिया और सहलाने लगी. मुझे गुस्सा आ रहा था. इधर तो मेरा बदन जल रहा था और यही बुड्ढ़ा मिला था अपने तन की आग बुझाने के लिए. रत्ना अभी तो किसी कड़क मर्द से मेरी मुलाकात करवा सकती थी. इससे तो बाद मे जब मैं थक जाती तब ही मिलना बेहतर होता.
मैं उसके लिंग को अपने हाथों मे लेकर सहलाने लगी. लेकिन उसमे कोई हरकत नही हुई.
"देवी इस तरह कुच्छ भी नही होगा. इसे अपने मुँह मे लेकर प्यार करो." कहकर उसने अपने दोनो हाथ मेरे कंधों पर रख कर मुझे नीचे झुकने का इशारा किया. मुझे उस आदमी के साथ और एस्पेशली उसके लिंग को अपने मुँह मे लेने मे घिंन आ रही थी. क्योंकि उसके बदन से पसीने की बू भी आ रही थी.
लेकिन मेरी मर्ज़ी का यहा कोई महत्व ही नही था. यहाँ तो मैं तो आज सिर्फ़ एक सेक्स मशीन थी. मुझे बिना किसी लग लप्पेट के इनसे चुदना था और अपना काम निकालना था. मैने अपने घुटने मोड़ लिए और उनके सामने ज़मीन पर बैठ गयी.
मेरे आँखों से कुच्छ इंच की दूरी पर उनका लिंग किसी मरे चूहे की तरह लटक रहा था. मैने झिझकते उसके लिंग को अपने एक हाथ से थामा और उसे उठा कर अपने होंठों के सामने ले कर आई. मैने अपने होंठों से उनके लिंग को चूमा फिर कुच्छ देर अपने होंठ उनके लिंग पर फिराती रही.
“ इसे मुँह मे लेकर चूसो कुच्छ देर तब जाकर इसमे हरकत आएगी.” कह कर वो नीचे झुक कर मेरे स्तनो को अपनी हथेलियों मे थाम कर उन्हे मसल दिए.
उनके लिंग से एक अजीब सी बदबू आ रही थी. मेरा जी मचल रहा था और उबकाई सी आने लगी. मैने साँस रोक कर अपना मुँह खोला और उनके लिंग को अपने मुँह मे ले लिया. साँस लेते ही ज़ोर से उबकाई आई.
मैं उनके लिंग को मुँह से निकाल कर अपनी उबकाई रोकने के लिए अपने मुँह को हथेली से दाब कर बाथरूम की तरफ जाना चाहती थी लेकिन उन्हों ने मेरे बाल सख्ती से पकड़
लिए.
" कहाँ जा रही है. मेरे लिंग का अनादर करके तू बच नही सकती. हरामजादी पता नही कितनो से चुद चुकी है और मेरे लंड को मुँह मे लेने मे तुझे उल्टी आ रही है. चल नखरे मत कर. मुँह खोल और इसे अंदर ले." उनके बोलने का लहज़ा ऐसा था मानो वो किसी दो टके की वेश्या से बातें कर रहे हों. इतने बड़े महात्मा के शिष्य होकर बाजारू भाषा का प्रयोग कर रहे थे.
मुझे गुस्सा तो बहुत आया लेकिन उसे अपने चेहरे पर नज़र आने नही दिया. मैने अपना
मुँह खोल कर उनके लिंग को अंदर ले लिया. मैं अपनी दो उंगलियों से उनके लिंग को थाम कर उसे चूसने लगी. वो झुक कर मेरी पीठ पर हाथ फेर रहा था और मेरे गालों को सहला रहा था. काफ़ी देर तक चूसने के बाद उसके लिंग मे हरकत आनी शुरू हुई. धीरे धीरे उसका लिंग तनने लगा.
जिस लिंग को मैं बेजान समझ रही थी उसका आकार जब बढ़ने लगा तो मैं अस्चरय से रुक गयी. उसकी मोटाई और लंबाई अद्भुत रूप से बढ़ने लगी थी. उसका आकार बड़ा ही विकारल हो गया. वो मेरे सिर को अपने हाथों से थाम कर अपने लिंग पर दबाने लगे. अब उनके लिंग को पूरा मुँह मे लेने मे भी परेशानी हो रही थी.
उनका तना हुआ लिंग आधा भी मुँह मे नही जा पा रहा था. जब उनका लिंग अपने आकर मे आ गया तो उसे देख अब मुझे भी मुख मैथुन मे मज़ा आने लगा. अब उनके लिंग को मैं तेज़ी से मुँह मे लेने लगी. मेरी रफ़्तार काफ़ी तेज हो गयी थी. उन्हों ने अपना कमर आगे की ओर बढ़ा दिया था और मेर हर धक्के का साथ वो भी अपनी कमर से धक्का लगा कर दे रहे थे. ऐसा लग रहा था मानो वो मेरे मुँह को नही बल्कि मेरी चूत को ठोक रहे हों.
क्रमशः............
गतान्क से आगे...
वो पीछे की तरफ से आकर मेरे बदन से चिपक गये और अपने हाथ मेरे बगलों के नीचे से निकाल कर मेरे दोनो स्तनो को थाम कर उन्हे मसल्ने लगे. उनकी साँसे मैं अपनी गर्दन पर महसूस कर रही थी. उनके होंठ मेरी पीठ पर मेरी गर्देन के पीछे और यहाँ तक की मेरे नितंबों पर भी घूम रहे थे.
मेरी आँखें उत्तेजना से खुद बा खुद बंद होने लगी और होंठ खुल गये. सारा जिस्म सेक्स की आग से तप रहा था और मेरा दिल व दिमाग़ अपने जांघों के जोड़ पर किसी चिर परिचित मेहमान का इंतेज़ाए कर रहा था. मेरी टाँगें उनके लंड के इंतेज़ार मे अपने आप ही एक दूसरे से अलग होकर उनको रास्ता दिखाने लगी.
उनके लिंग की छुअन मैं अपने नितंबों के बीच महसूस कर रही थी. उनके होंठ मेरे कंधों पर फिरते हुए मेरे गर्दन पर घूमने लगे. उन्हों ने मेरी गर्दन के पीछे अपने दाँत गढ़ा दिए और हल्के हल्के से काटने लगे. पूरा बदन सिहरन से भर उठा. बदन के रोएँ कांटो के जैसे खड़े हो गये. मेरी योनि से तरल प्रेकुं रिस रिस कर बाहर आ रहा था.
"आआआहह… ..म्म्म्मममम… ..क्यों साताआ रहीए हूऊऊ" कहकर मैने
अपना एक हाथ दीवार पर से हटाया और पीछे ले जाकर उनके लिंग को दो बार सहलाया. फिर उनके लिंग को अपनी योनि के द्वार पर ले जाकर उससे सटा दिया. ऐसा करने के लिए मैने अपने नितंबों को पीछे की ओर धकेला.
उन्हों ने मेरे निपल्स को अपनी उंगलियों से दबा कर ज़ोर से खींचते हुए अपने लिंग को मेरी योनि मे डाल दिया. उनका लिंग काफ़ी मोटा है इसलिए जब भी मेरी योनि मे घुसता है तो चाहे जितनी भी गीली हो ऐसा लगता है मानो उसे चीर कर रख देगा. मैं इतनी बार
उसने संभोग करने के बावजूद आज भी उनके पहले धक्के से कराह उठती हूँ. आआज तक मैं उनके लिंग की अभ्यस्त नही हो पाई.
वो पीछे की तरफ से मेरी योनि मे धक्के मारने लगे. उनके धक्के इतने ज़ोर दार थे की हर धक्के के साथ मेरे उरोज दीवार से रगड़ खा जाते थे. निपल्स इतने तन चुके थे कि दीवार से रगड़ खा खा कर दुखने लगे थे. कुच्छ देर बाद इस तरह के ज़ोर दार झेलते झेलते मेरे हाथों ने जवाब दे दिया और मेरा पूरा बदन दीवार से जा चिपका. उसी हालत मे वो मुझे आधे घंटे तक चोद्ते रहे. मेरे निपल्स दीवार से रगड़ खाते खाते छिल गये थे. मेरी टाँगें भी उनके वजन को थामे दुखने लगी थी. मैं दो बार इस बीच झाड़ चुकी थी.
" आअहह…….ऊऊऊहह…….उउउइईई…..हहुूहह….माआ………आब्ब बुसस्स भीइ करूऊ…..सेवकराम जी…….अभी तो बहुत लोगोणणन्न् का लेआणा हाईईईईईईईई…. इससस्स तरह तूऊऊओ….मैईईईई… मार ही जौंगिइइइ……" मैं सिसक उठी थी.
" चल….आअज मैं तुझे चोदता हूँ……” कहकर उन्हों ने अपने धक्कों की गति बढ़ा दी. मेरे स्तनो को थाम कर तो उन्हे मसल कर रख दिया और पूरे वेग से अपने लंड से मेरी चुदाई करने लगे. मुश्किल से दो मिनिट हुए की उनका बदन अकड़ने लगा. मैं समझ गयी की अब इनका वीर्यपात होने वाला है.
“ले …..मेरे वीर्य को अपने कलश मे भर ले." कहकर सेवक रामजी ने एक झटके से अपने लिंग को बाहर निकाला. में हन्फ्ते हुए दीवार से सॅट कर ज़मीन पर बैठ गयी और पास रखे कलश को उठा कर उनके लिंग पर लगाया. उन्हों ने अपने लिंग को मेरे कलश की दिशा मे कर रखा था.
अपने दूसरे हाथ से उनके लिंग को पकड़ कर सहलाने लगी. दो – तीन बार सहलाते ही एक तेज दूध की तरह सफेद धार निकल कर उस कलश मे इकट्ठा होने लगी. उन्होने ढेर सारा वीर्य मेरे हाथो मे पकड़े उस कलश मे भर दिया. जब तक उनके लंड से आख़िरी बूँद तक ना निकल गयी तब तक मैने उनके लंड को छ्चोड़ा नही.
मेरी भी योनि से ढेर सारा वीर्य बह निकाला था. वो बाते बाते मेरी जांघों को और मेरे नितंबों को गीला कर रहा था. कुच्छ कतरे ज़मीन पर भी गिर गये थे.
मेरा गला सूखने लगा था. वो मेरी हालत को समझ कर दो ग्लास ले कर आए. एक मे पानी था और दूसरे मे वही शक्ति वर्धक पेय था. मैने एक घूँट पानी पीकर दूसरे ग्लास को लिया और उसे एक झटके मे खाली कर दिया. आज मुझे सारे दिन इसी पेय की ज़रूरत थी. जिससे मेरे जिस्म मे एक अन्बुझि आग पूरे दिन जलती रहे और मैं अपने कार्य को पूरे मन से संपूर्ण कर सकूँ.
मैं कुच्छ देर वही दीवार के सहारे नंगी ज़मीन पर बैठी रही. सेवकराम जी मेरे बालों पर हाथ फेर रहे थे और मेरे बदन को सहला कर प्यार कर रहे थे. मैं चुपचाप आँखें बंद किए बैठी अपनी सांसो को व्यवस्थित करती रही. जाब साँसे कुच्छ नॉर्मल हुई तो उठकर सारी को अपने बदन से लपेटा और सेवकराम जी के चरण च्छू कर उस कमरे से निकल गयी.
मैने अपने दोनो हाथों मे वही कलश थाम रखा था जिसमे सेवकराम जी का गाढ़ा वीर्य इकट्ठा था. कुच्छ ही देर मे वापस मेरे बदन मे सेक्स की ज्वाला सी जलने लगी थी. उस दिन तो मेरा बदन सेक्स की आग से तप रहा था.
बाहर रत्ना मेरे इंतेज़ार मे मिल गयी. वो मुझे देखते ही खिल उठी. आगे आकर उसने उस कलश मे झाँका और फिर मुस्कुराते हुए पूछा,
“ कैसा लगा? कोई परेशानी तो नही हुई?”
“ सेवकराम जी के साथ परेशानी कैसी? वो तो मेरे अंग अंग से अब तक वाक़िफ़ हो चुके हैं. हमेशा की तरह उनके साथ सेक्स मे मज़ा आ गया. उनकी मर्दानगी तो लाजवाब है. एक एक अंग को तोड़ कर रख देते हैं. लेकिन आज उन्हों नेज्यदा परेशान नही किया.” मैने कहा.
वो मुझे लेकर दूसरे कमरे के द्वार पर गयी. मैने दरवाजे को दो बार खटखटाया. एक 60 – 65 साल के बुजुर्ग ने दरवाजा खोला. काले रंग का वो शिष्य बदन से भी कमजोर था. उसके चेहरे पर चेचक के दाग थे उसपर हल्की दाढ़ी
किसी कॅक्टस के कांटो समान दिख रही थी. सिर पर एक भी बाल नही थे.
वो दो पल हमे जिग्यासा भरी नज़रों से देखते रहे. फिर मेरे हाथों मे कलश को देख कर वो बिना कुच्छ कहे दरवाजे से हट गये. रत्ना ने मेरी बाँह पकड़ कर आगे की ओर हल्का सा धकेला. मैं उनकी बगल से होती हुई अंदर प्रवेश कर गयी. अपने पीछे मैने दरवाजे के बंद होने की आवाज़ सुनी. मैं कमरे के बीच चुपचाप खड़ी रही. वो मेरे पास आकर मेरे हाथो से कलश को लेकर एक ओर रखा.
" अब किसका इंतेज़ार कर रही हो? चलो फटाफट अपने कपड़े उतार डालो. कपड़ों के उपर से तो एक दम गाथा हुआ मजबूत माल लग रही हो. अब मैं तो बुड्ढ़ा होने लगा हूँ. देखो…." कहकर उन्हों ने अपने बदन को ढके इकलौते वस्त्र अपनी धोती को एक झटके मे उतार दिया. मैने भी अपनी सारी को बदन से उतार दिया.
" वाआह शानदार... .........क्या माल है. काश आज से बीस तीस साल पहले मिली होती तो तुझे चोद चोद कर चौड़ा कर देता.” कहकर उन्हों ने अपने बेजान लटके हुए लिंग को मसला, “लड़की इस उम्र मे इससे दूध निकालने के लिए तुझे खुद मेहनत करनी होगी. इस मे जीवन का संचार करना होगा." उन्हों ने अपने सोए हुए लिंग की तरफ इशारा किया. मैने अपना हाथ बढ़ा कर उनके लिंग को थाम लिया और सहलाने लगी. मुझे गुस्सा आ रहा था. इधर तो मेरा बदन जल रहा था और यही बुड्ढ़ा मिला था अपने तन की आग बुझाने के लिए. रत्ना अभी तो किसी कड़क मर्द से मेरी मुलाकात करवा सकती थी. इससे तो बाद मे जब मैं थक जाती तब ही मिलना बेहतर होता.
मैं उसके लिंग को अपने हाथों मे लेकर सहलाने लगी. लेकिन उसमे कोई हरकत नही हुई.
"देवी इस तरह कुच्छ भी नही होगा. इसे अपने मुँह मे लेकर प्यार करो." कहकर उसने अपने दोनो हाथ मेरे कंधों पर रख कर मुझे नीचे झुकने का इशारा किया. मुझे उस आदमी के साथ और एस्पेशली उसके लिंग को अपने मुँह मे लेने मे घिंन आ रही थी. क्योंकि उसके बदन से पसीने की बू भी आ रही थी.
लेकिन मेरी मर्ज़ी का यहा कोई महत्व ही नही था. यहाँ तो मैं तो आज सिर्फ़ एक सेक्स मशीन थी. मुझे बिना किसी लग लप्पेट के इनसे चुदना था और अपना काम निकालना था. मैने अपने घुटने मोड़ लिए और उनके सामने ज़मीन पर बैठ गयी.
मेरे आँखों से कुच्छ इंच की दूरी पर उनका लिंग किसी मरे चूहे की तरह लटक रहा था. मैने झिझकते उसके लिंग को अपने एक हाथ से थामा और उसे उठा कर अपने होंठों के सामने ले कर आई. मैने अपने होंठों से उनके लिंग को चूमा फिर कुच्छ देर अपने होंठ उनके लिंग पर फिराती रही.
“ इसे मुँह मे लेकर चूसो कुच्छ देर तब जाकर इसमे हरकत आएगी.” कह कर वो नीचे झुक कर मेरे स्तनो को अपनी हथेलियों मे थाम कर उन्हे मसल दिए.
उनके लिंग से एक अजीब सी बदबू आ रही थी. मेरा जी मचल रहा था और उबकाई सी आने लगी. मैने साँस रोक कर अपना मुँह खोला और उनके लिंग को अपने मुँह मे ले लिया. साँस लेते ही ज़ोर से उबकाई आई.
मैं उनके लिंग को मुँह से निकाल कर अपनी उबकाई रोकने के लिए अपने मुँह को हथेली से दाब कर बाथरूम की तरफ जाना चाहती थी लेकिन उन्हों ने मेरे बाल सख्ती से पकड़
लिए.
" कहाँ जा रही है. मेरे लिंग का अनादर करके तू बच नही सकती. हरामजादी पता नही कितनो से चुद चुकी है और मेरे लंड को मुँह मे लेने मे तुझे उल्टी आ रही है. चल नखरे मत कर. मुँह खोल और इसे अंदर ले." उनके बोलने का लहज़ा ऐसा था मानो वो किसी दो टके की वेश्या से बातें कर रहे हों. इतने बड़े महात्मा के शिष्य होकर बाजारू भाषा का प्रयोग कर रहे थे.
मुझे गुस्सा तो बहुत आया लेकिन उसे अपने चेहरे पर नज़र आने नही दिया. मैने अपना
मुँह खोल कर उनके लिंग को अंदर ले लिया. मैं अपनी दो उंगलियों से उनके लिंग को थाम कर उसे चूसने लगी. वो झुक कर मेरी पीठ पर हाथ फेर रहा था और मेरे गालों को सहला रहा था. काफ़ी देर तक चूसने के बाद उसके लिंग मे हरकत आनी शुरू हुई. धीरे धीरे उसका लिंग तनने लगा.
जिस लिंग को मैं बेजान समझ रही थी उसका आकार जब बढ़ने लगा तो मैं अस्चरय से रुक गयी. उसकी मोटाई और लंबाई अद्भुत रूप से बढ़ने लगी थी. उसका आकार बड़ा ही विकारल हो गया. वो मेरे सिर को अपने हाथों से थाम कर अपने लिंग पर दबाने लगे. अब उनके लिंग को पूरा मुँह मे लेने मे भी परेशानी हो रही थी.
उनका तना हुआ लिंग आधा भी मुँह मे नही जा पा रहा था. जब उनका लिंग अपने आकर मे आ गया तो उसे देख अब मुझे भी मुख मैथुन मे मज़ा आने लगा. अब उनके लिंग को मैं तेज़ी से मुँह मे लेने लगी. मेरी रफ़्तार काफ़ी तेज हो गयी थी. उन्हों ने अपना कमर आगे की ओर बढ़ा दिया था और मेर हर धक्के का साथ वो भी अपनी कमर से धक्का लगा कर दे रहे थे. ऐसा लग रहा था मानो वो मेरे मुँह को नही बल्कि मेरी चूत को ठोक रहे हों.
क्रमशः............
Re: रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -54
गतान्क से आगे...
वो मेरे सिर को पकड़ कर अपने लिंग को मेरे मुँह मे इतनी ज़ोर से ठोकते कि उनका लंड मेरे मुँह से होता हुया गले के अंदर तक घुस जाता था. मेरी साँसे रुक जाती थी और मेरा गला फूल जाता था. मेरी आँखें तक बाहर को उबल पड़ती थी. मगर उन्हे इन सब से कोई मतलब नही था. वो तो मुझे किसी दो टके की रांड़ की तरह चोद रहे थे. मानो अपनी एक एक पाई उसूल करना ही उनका मकसद हो.
कुच्छ देर बाद उनका लिंग उत्तेजना मे हल्के से काँपने लगा. मैं अपने सिर को हटा कर उनके वीर्य को कलश मे इकट्ठा करना चाहती थी लेकिन उन्होने पूरी ताक़त से मेरे सिर को पकड़ कर हिलने नही दिया.
" ले....ले..... मेरे प्रसाद को पहले अपने मुँह मे इकट्ठा कर और बाद मे इसे कलश मे उलीच लेना. तेरे इस सुंदर और खूबसूरत मुँह को चोदने का मज़ा ही अलग है. मैं तेरे मुँह मे भरूँगा अपना अमृत. तेरी मर्ज़ी उसे अपने कलश मे ले या अपने पेट मे भर." इसके साथ ही उनके लिंग से वीर्य की बौछार सी निकल कर मेरे मुँह मे भरने लगी. वो भद्दी भद्दी गालियाँ दे रहे थे.
मैने बड़ी मुश्किल से उनके वीर्य को अपने गले से नीचे उतरने से रोका. मेरा मुँह गुब्बारे की तरह फूल गया था. होंठों के कोनो से उनका कम निकल कर ठुड्डी से होता हुआ ज़मीन पर टपक रहा था.
सारा वीर्य स्खलित करके ही उन्हों ने मेरे सिर को छ्चोड़ा. मैने फॉरन अपने मुँह मे भरे उनके वीर्य को उस बर्तन मे खाली कर लिया. अब भी जितना वीर्य उनके लंड से टपक रहा था उतना मैने उसे कलश मे ले लिया.
“ जब हट जा यहाँ से….छिनाल” उन्होने मुझ से कहा. उनका लिंग वापस सिकुड कर मरे चूहे जैसा हो गया था. अपना वीर्य मेरे मुँह मे निकाल कर उन्हों ने मुझे धक्का दे कर अपने पास से हटा दिया और अपने नित्य के कामो मे ऐसे व्यस्त हो गये मानो मेरा कोई अस्तित्व ही नही हो. ऐसा लग रहा था मानो वो मेरी उपस्थिति से अन्भिग्य हों. एक बार भी मेरी ओर उन्हों ने नज़र उठा कर नही देखा. मैं अपने मुँह मे बचे
हुए थूक और कुच्छ वीर्य को निगलते हुए उठी. मेरा गला सूख रहा था. उनके उस लिंग की लगातार चोट की वजह से गला दर्द कर रहा था.
" पीने को थोड़ा पानी मिलेगा?" मैने पूछा तो उन्हों ने कमरे के एक कोने पर रखे मटके की तरफ इशारा कर दिया. मैं उस मे से पानी निकाल कर एक घूँट पी ली जिससे गले का दर्द कुच्छ शांत हो और मुँह से वीर्य का कसैला स्वाद ख़त्म हो जाए. मैने देखा कि वो वापस अपने नहाने के लिए बाथरूम मे घुस गये थे.
मैने अपने इकलौते वस्त्र को जैसे तैसे बदन पर लपेटा और कलश को अपने हाथों मे लेकर बाहर आई.
रत्ना बाहर मुझे कहीं नही दिखी. मैं कुच्छ देर तक दरवाजे के बाहर उसे इधर उधर देखते हुए यूँ ही खड़ी रही. समझ मे नही आ रहा था कि अब क्या किया जाए. अब आगे किस दरवाजे पर जाउ. फिर कुच्छ सोच कर मैं अगले दरवाजे की ओर बढ़ गयी. उस दरवाजे पर खटखटाते ही एक बहुत बलिष्ठ शिष्य ने दरवाजा खोला. वो शिष्य बहुत हंडसॉम था. उसे देखते ही मेरा मन प्रसन्न हो गया. क्या पर्सनॅलिटी थी छह फुट के उपर हाइट, चौड़े कंधे साँसे मे गढ़ा हुया कसरती बदन, निहायत ही आकर्षक चेहरा और छ्होटे घुंघराले बाल. ऐसा लग रहा था मानो कोई रोम का देव पुरुष उठ आया हो.
" ओह अद्भुत…….आओ देवी अंदर आजओ…" उसने दरवाजे से हटने का अपनी ओर से कोई उपक्रम नही किया. मैं अपनी जगह पर असमंजस मे खड़ी रही. दरवाजे की चौखट और उसके जिस्म के बीच थोड़ी सी जगह बची थी. जिससे मेरे जैसी भरे जिस्म की महिला बिना अपना बदन उससे रगडे अंदर नही जा सकती थी. शायद वो भी ऐसा ही चाह रहा था.
" क्या हुआ? अंदर तो आओ….ऊवू मैं तो भूल ही गया तुम आओगी कैसे." उसने एक ओर हटते हुए कहा. मैं आगे बढ़ने को हुई तो उसने अपने दोनो हाथ बढ़कर मेरी सारी के उपर से मेरे निपल्स पकड़ लिए और खींचते हुए अंदर ले गये.
“ ऊवू…..माआ.” मैं दर्द से बिलबिला उठी. अब मैं अपने दर्द से च्छुतकारा पाने के
लिए उनके पीछे पीछे अंदर चली गयी.
“ जब चुदने को आए हो तो इतनी झिझक क्यों. सब के सामने ही कपड़े उतार कर कह देती कि तुझे मुझसे चुदना है. यहाँ कोई कुच्छ बुरा नही मानता.” उन्हों ने मुझे कमरे मे ले जाते हुए कहा. अंदर पहुँच कर एक ज़ोर के झटके के साथ मेरी सारी खींच कर एक कोने मे फेंक दी.
"वाआह……आअज तो मज़ा आ जाएगा. आज जी भर कर अपनी प्यास बुझाउन्गा. जब चुदना ही है तो ये सब पहनने और उतारने मे क्यों टाइम बर्बाद कर रही हो. खुद भी मज़े लो और दूसरों को मज़े दो." कह कर उसने मेरे उरोज अपने हाथों मे थाम लिए. पहले वो
उनको धीरे धीरे कुच्छ देर तक मसलता रहा.
"ह्म्म्म….काफ़ी बड़े बड़े हैं. लोग खूब नोचते और मसल्ते होंगे इन्हे. तेरी चूचियो के बीच लंड रख कर चोदने मे खूब मज़ा आएगा. आज तो खूब चुदवा रही होगी. अब तक कितनो से चुदवाया?" उनके मुँह से इस प्रकार की अश्लील बात सुन कर मैने अपनी नज़रें झुका ली. उन्हों ने अपनी धोती बदन से अलग कर दी. मैने देखा कि उनका लिंग का आकार बहुत ही बड़ा था. किसी घने जंगल के बीच विशाल पेड की तरह तन कर खड़ा था.
“ उई मा.” मैं उसके लंड को देख कर बड़बड़ा उठी.
“ कैसा लगा जानेमन. पसंद आया.” उन्हों ने पूछा. मैं चुपचाप खड़ी रही. तो उन्हों ने मेरा हाथ पकड़ कर अपने लंड पर रख कर दबाया. मैने अपने हाथ को उसके लंड पर फिराया.
“ ये…ये तो बहुत बड़ा है. मेरी योनि मे नही जा पाएगा.” मैं घबरा कर उनसे बोली.
“ डरो मत कुच्छ नही होगा. पहली बार अंदर घुसने मे तकलीफ़ होती है. बाद मे तो चूत का मुँह इतना चौड़ा हो जाता है कि उसमे मेरे लंड के घुसने के बाद भी जगह बच जाती है. तुम लोगों की चूत की बनावट ही ऐसी होती है कि अच्छे अच्छे लंड पानी भरने लगते हैं.”
“ फिर भी…..मैं ले नही पाउन्गी इसे…….मर जाउन्गी….बाप रे बाप. इतना बड़ा मैने पहली बार देखा है.” वो मुझसे लिपट गये और मुझे चूम चूम कर दिलासा देने लगे.
वो आगे बढ़ कर बिस्तर पर बैठ गये. और मेरे हाथ को पकड़ कर अपनी ओर खींचा, "आ इधर आ मेरी गोद मे बैठ जा." मैं चुप चाप उनकी गोद मे बैठ गयी. उन्हों ने मेरे उरजों को अब सख्ती से मसलना शुरू कर दिया. मैं दर्द और उत्तेजना से कसमसाने लगी. ना चाहते हुए भी मुँह से अब दबी दबी कराह निकल रही थी. मेरे उरोज उनके
हाथों मे आते की तरह गुथे जा रहे थे. मैने उनके हाथों पर अपने हाथ रख कर उन्हे रोकना चाहा तो उन्हों ने एक झटके से मेरी हथेलियों को हटा दिया और वापस दुगने जोश से मेरे स्तनो पर टूट पड़े.
उनकी इस तरह की हरकत से कुच्छ ही देर मे मेरे दोनो दूधिया उरोज एकदम लाल सुर्ख हो गये. मैने उनके गले मे अपनी बाहें डाल दी थी और "आआआहह… .ऊऊऊहह ….उईईईईईईईईईईईईईई…… नहियीईईई" जैसी आवाज़े अपने मुँह से निकलने से नही रोक पा रही थी.
दर्द की अधिकता से तो एक बार आँखों मे आँसू तक छलक आए. वो उन मम्मो को
लगता था उखाड़ कर ही दम लेगा. काफ़ी देर तक यूँही मसल्ते हुए उसने मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए. मेरे निचले होंठ को अपनी होंठों के बीच लेकर मुँह के अंदर ले लिया और चूसने लगे. उत्तेजना से मेरी योनि से काम रस बहने लगा. मेरे दोनो जाँघ चिपचिपे हो रहे थे.
कुच्छ देर तक इस तरह चूसने के कारण मेरा होंठ दर्द करने लगा. मैने उनका ध्यान उस तरफ से हटाने के लिए उनके मुँह मे अपनी जीभ डाल दी और उनके मुँह मे अपनी जीभ फिराने लगी. उन्हों ने तब जाकर मेरे होंठ को छोड़ा और अपनी जीभ से ढेर सारा थूक मेरे मुँह मे डाल दिया. मुझे उनके साथ सेक्स के खेल मे मज़ा आने लगा. वो मुझे छ्चोड़ कर बिस्तर पर लेट गये.
"चल मेरे पूरे बदन पर अपने होंठ फिरा. अपनी जीच फिरा. मुझे खूब प्यार कर." मैं उनके उपर झुक कर अपने होंठ उनके पूरे बदन पर फिराने लगी. उनके छ्होटे छ्होटे निपलेस को अपनी जीभ से प्यार करके उनके उनकी नाभि के अंदर अपनी जीभ घुसाने लगी. उत्तेजना से उनके बदन के रोएँ खड़े होने लगे थे. मैने अपने होंठ नीचे ले जाते हुए उनके लिंग को चूसा और उसके नीचे लटकते उनके बड़े बड़े गेंदों को भी मुँह मे भर कर प्यार किया. फिर मेरे होठ पैरों से होते हुए नीचे जाने लगे. नीचे मेरे होंठ उनके पंजों पर जाकर रुके.
"ले मेरे पैरों को चाट कर सॉफ कर" उन्हों ने मेरे सिर को अपने पैरों पर दबाया. मैं अपनी जीभ निकाल कर उनके पैरों पर फिराने लगी. जब मैं एक पैर पर अपने होंठ फिरा रही थी तब वो दूसरे पैर को मेरे सीने पर रख कर उसके अंगूठे और उंगलियों के बीच मेरे निपल्स को पकड़ कर दबा रहे थे.
“ आआहह….नहियिइ…..दर्द हो रहाआ है….प्लीईएससे ..इन्हें छ्चोड़ दो…एयाया..उईईई म्माआ…” मैं तड़प उठी. कुच्छ देर बाद उन्हों ने करवट ली और बिस्तर पर ओन्धे लेट गये.
"चल मेरे नितंबों को अब प्यार कर. इन्हे अच्छे से चाट." मैं वापस उपर उठ कर उनके नितंबों पर अपनी जीभ फिराने लगी.
"हाआँ ….हाआँ ऐसे……म्म्म्मम…..हाआँ जीब को दोनो के बीच डाल." वो अपने चेहरे को बिस्तर के अंदर धंसाए बड़बड़ा रहे थे.
क्रमशः............
गतान्क से आगे...
वो मेरे सिर को पकड़ कर अपने लिंग को मेरे मुँह मे इतनी ज़ोर से ठोकते कि उनका लंड मेरे मुँह से होता हुया गले के अंदर तक घुस जाता था. मेरी साँसे रुक जाती थी और मेरा गला फूल जाता था. मेरी आँखें तक बाहर को उबल पड़ती थी. मगर उन्हे इन सब से कोई मतलब नही था. वो तो मुझे किसी दो टके की रांड़ की तरह चोद रहे थे. मानो अपनी एक एक पाई उसूल करना ही उनका मकसद हो.
कुच्छ देर बाद उनका लिंग उत्तेजना मे हल्के से काँपने लगा. मैं अपने सिर को हटा कर उनके वीर्य को कलश मे इकट्ठा करना चाहती थी लेकिन उन्होने पूरी ताक़त से मेरे सिर को पकड़ कर हिलने नही दिया.
" ले....ले..... मेरे प्रसाद को पहले अपने मुँह मे इकट्ठा कर और बाद मे इसे कलश मे उलीच लेना. तेरे इस सुंदर और खूबसूरत मुँह को चोदने का मज़ा ही अलग है. मैं तेरे मुँह मे भरूँगा अपना अमृत. तेरी मर्ज़ी उसे अपने कलश मे ले या अपने पेट मे भर." इसके साथ ही उनके लिंग से वीर्य की बौछार सी निकल कर मेरे मुँह मे भरने लगी. वो भद्दी भद्दी गालियाँ दे रहे थे.
मैने बड़ी मुश्किल से उनके वीर्य को अपने गले से नीचे उतरने से रोका. मेरा मुँह गुब्बारे की तरह फूल गया था. होंठों के कोनो से उनका कम निकल कर ठुड्डी से होता हुआ ज़मीन पर टपक रहा था.
सारा वीर्य स्खलित करके ही उन्हों ने मेरे सिर को छ्चोड़ा. मैने फॉरन अपने मुँह मे भरे उनके वीर्य को उस बर्तन मे खाली कर लिया. अब भी जितना वीर्य उनके लंड से टपक रहा था उतना मैने उसे कलश मे ले लिया.
“ जब हट जा यहाँ से….छिनाल” उन्होने मुझ से कहा. उनका लिंग वापस सिकुड कर मरे चूहे जैसा हो गया था. अपना वीर्य मेरे मुँह मे निकाल कर उन्हों ने मुझे धक्का दे कर अपने पास से हटा दिया और अपने नित्य के कामो मे ऐसे व्यस्त हो गये मानो मेरा कोई अस्तित्व ही नही हो. ऐसा लग रहा था मानो वो मेरी उपस्थिति से अन्भिग्य हों. एक बार भी मेरी ओर उन्हों ने नज़र उठा कर नही देखा. मैं अपने मुँह मे बचे
हुए थूक और कुच्छ वीर्य को निगलते हुए उठी. मेरा गला सूख रहा था. उनके उस लिंग की लगातार चोट की वजह से गला दर्द कर रहा था.
" पीने को थोड़ा पानी मिलेगा?" मैने पूछा तो उन्हों ने कमरे के एक कोने पर रखे मटके की तरफ इशारा कर दिया. मैं उस मे से पानी निकाल कर एक घूँट पी ली जिससे गले का दर्द कुच्छ शांत हो और मुँह से वीर्य का कसैला स्वाद ख़त्म हो जाए. मैने देखा कि वो वापस अपने नहाने के लिए बाथरूम मे घुस गये थे.
मैने अपने इकलौते वस्त्र को जैसे तैसे बदन पर लपेटा और कलश को अपने हाथों मे लेकर बाहर आई.
रत्ना बाहर मुझे कहीं नही दिखी. मैं कुच्छ देर तक दरवाजे के बाहर उसे इधर उधर देखते हुए यूँ ही खड़ी रही. समझ मे नही आ रहा था कि अब क्या किया जाए. अब आगे किस दरवाजे पर जाउ. फिर कुच्छ सोच कर मैं अगले दरवाजे की ओर बढ़ गयी. उस दरवाजे पर खटखटाते ही एक बहुत बलिष्ठ शिष्य ने दरवाजा खोला. वो शिष्य बहुत हंडसॉम था. उसे देखते ही मेरा मन प्रसन्न हो गया. क्या पर्सनॅलिटी थी छह फुट के उपर हाइट, चौड़े कंधे साँसे मे गढ़ा हुया कसरती बदन, निहायत ही आकर्षक चेहरा और छ्होटे घुंघराले बाल. ऐसा लग रहा था मानो कोई रोम का देव पुरुष उठ आया हो.
" ओह अद्भुत…….आओ देवी अंदर आजओ…" उसने दरवाजे से हटने का अपनी ओर से कोई उपक्रम नही किया. मैं अपनी जगह पर असमंजस मे खड़ी रही. दरवाजे की चौखट और उसके जिस्म के बीच थोड़ी सी जगह बची थी. जिससे मेरे जैसी भरे जिस्म की महिला बिना अपना बदन उससे रगडे अंदर नही जा सकती थी. शायद वो भी ऐसा ही चाह रहा था.
" क्या हुआ? अंदर तो आओ….ऊवू मैं तो भूल ही गया तुम आओगी कैसे." उसने एक ओर हटते हुए कहा. मैं आगे बढ़ने को हुई तो उसने अपने दोनो हाथ बढ़कर मेरी सारी के उपर से मेरे निपल्स पकड़ लिए और खींचते हुए अंदर ले गये.
“ ऊवू…..माआ.” मैं दर्द से बिलबिला उठी. अब मैं अपने दर्द से च्छुतकारा पाने के
लिए उनके पीछे पीछे अंदर चली गयी.
“ जब चुदने को आए हो तो इतनी झिझक क्यों. सब के सामने ही कपड़े उतार कर कह देती कि तुझे मुझसे चुदना है. यहाँ कोई कुच्छ बुरा नही मानता.” उन्हों ने मुझे कमरे मे ले जाते हुए कहा. अंदर पहुँच कर एक ज़ोर के झटके के साथ मेरी सारी खींच कर एक कोने मे फेंक दी.
"वाआह……आअज तो मज़ा आ जाएगा. आज जी भर कर अपनी प्यास बुझाउन्गा. जब चुदना ही है तो ये सब पहनने और उतारने मे क्यों टाइम बर्बाद कर रही हो. खुद भी मज़े लो और दूसरों को मज़े दो." कह कर उसने मेरे उरोज अपने हाथों मे थाम लिए. पहले वो
उनको धीरे धीरे कुच्छ देर तक मसलता रहा.
"ह्म्म्म….काफ़ी बड़े बड़े हैं. लोग खूब नोचते और मसल्ते होंगे इन्हे. तेरी चूचियो के बीच लंड रख कर चोदने मे खूब मज़ा आएगा. आज तो खूब चुदवा रही होगी. अब तक कितनो से चुदवाया?" उनके मुँह से इस प्रकार की अश्लील बात सुन कर मैने अपनी नज़रें झुका ली. उन्हों ने अपनी धोती बदन से अलग कर दी. मैने देखा कि उनका लिंग का आकार बहुत ही बड़ा था. किसी घने जंगल के बीच विशाल पेड की तरह तन कर खड़ा था.
“ उई मा.” मैं उसके लंड को देख कर बड़बड़ा उठी.
“ कैसा लगा जानेमन. पसंद आया.” उन्हों ने पूछा. मैं चुपचाप खड़ी रही. तो उन्हों ने मेरा हाथ पकड़ कर अपने लंड पर रख कर दबाया. मैने अपने हाथ को उसके लंड पर फिराया.
“ ये…ये तो बहुत बड़ा है. मेरी योनि मे नही जा पाएगा.” मैं घबरा कर उनसे बोली.
“ डरो मत कुच्छ नही होगा. पहली बार अंदर घुसने मे तकलीफ़ होती है. बाद मे तो चूत का मुँह इतना चौड़ा हो जाता है कि उसमे मेरे लंड के घुसने के बाद भी जगह बच जाती है. तुम लोगों की चूत की बनावट ही ऐसी होती है कि अच्छे अच्छे लंड पानी भरने लगते हैं.”
“ फिर भी…..मैं ले नही पाउन्गी इसे…….मर जाउन्गी….बाप रे बाप. इतना बड़ा मैने पहली बार देखा है.” वो मुझसे लिपट गये और मुझे चूम चूम कर दिलासा देने लगे.
वो आगे बढ़ कर बिस्तर पर बैठ गये. और मेरे हाथ को पकड़ कर अपनी ओर खींचा, "आ इधर आ मेरी गोद मे बैठ जा." मैं चुप चाप उनकी गोद मे बैठ गयी. उन्हों ने मेरे उरजों को अब सख्ती से मसलना शुरू कर दिया. मैं दर्द और उत्तेजना से कसमसाने लगी. ना चाहते हुए भी मुँह से अब दबी दबी कराह निकल रही थी. मेरे उरोज उनके
हाथों मे आते की तरह गुथे जा रहे थे. मैने उनके हाथों पर अपने हाथ रख कर उन्हे रोकना चाहा तो उन्हों ने एक झटके से मेरी हथेलियों को हटा दिया और वापस दुगने जोश से मेरे स्तनो पर टूट पड़े.
उनकी इस तरह की हरकत से कुच्छ ही देर मे मेरे दोनो दूधिया उरोज एकदम लाल सुर्ख हो गये. मैने उनके गले मे अपनी बाहें डाल दी थी और "आआआहह… .ऊऊऊहह ….उईईईईईईईईईईईईईई…… नहियीईईई" जैसी आवाज़े अपने मुँह से निकलने से नही रोक पा रही थी.
दर्द की अधिकता से तो एक बार आँखों मे आँसू तक छलक आए. वो उन मम्मो को
लगता था उखाड़ कर ही दम लेगा. काफ़ी देर तक यूँही मसल्ते हुए उसने मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए. मेरे निचले होंठ को अपनी होंठों के बीच लेकर मुँह के अंदर ले लिया और चूसने लगे. उत्तेजना से मेरी योनि से काम रस बहने लगा. मेरे दोनो जाँघ चिपचिपे हो रहे थे.
कुच्छ देर तक इस तरह चूसने के कारण मेरा होंठ दर्द करने लगा. मैने उनका ध्यान उस तरफ से हटाने के लिए उनके मुँह मे अपनी जीभ डाल दी और उनके मुँह मे अपनी जीभ फिराने लगी. उन्हों ने तब जाकर मेरे होंठ को छोड़ा और अपनी जीभ से ढेर सारा थूक मेरे मुँह मे डाल दिया. मुझे उनके साथ सेक्स के खेल मे मज़ा आने लगा. वो मुझे छ्चोड़ कर बिस्तर पर लेट गये.
"चल मेरे पूरे बदन पर अपने होंठ फिरा. अपनी जीच फिरा. मुझे खूब प्यार कर." मैं उनके उपर झुक कर अपने होंठ उनके पूरे बदन पर फिराने लगी. उनके छ्होटे छ्होटे निपलेस को अपनी जीभ से प्यार करके उनके उनकी नाभि के अंदर अपनी जीभ घुसाने लगी. उत्तेजना से उनके बदन के रोएँ खड़े होने लगे थे. मैने अपने होंठ नीचे ले जाते हुए उनके लिंग को चूसा और उसके नीचे लटकते उनके बड़े बड़े गेंदों को भी मुँह मे भर कर प्यार किया. फिर मेरे होठ पैरों से होते हुए नीचे जाने लगे. नीचे मेरे होंठ उनके पंजों पर जाकर रुके.
"ले मेरे पैरों को चाट कर सॉफ कर" उन्हों ने मेरे सिर को अपने पैरों पर दबाया. मैं अपनी जीभ निकाल कर उनके पैरों पर फिराने लगी. जब मैं एक पैर पर अपने होंठ फिरा रही थी तब वो दूसरे पैर को मेरे सीने पर रख कर उसके अंगूठे और उंगलियों के बीच मेरे निपल्स को पकड़ कर दबा रहे थे.
“ आआहह….नहियिइ…..दर्द हो रहाआ है….प्लीईएससे ..इन्हें छ्चोड़ दो…एयाया..उईईई म्माआ…” मैं तड़प उठी. कुच्छ देर बाद उन्हों ने करवट ली और बिस्तर पर ओन्धे लेट गये.
"चल मेरे नितंबों को अब प्यार कर. इन्हे अच्छे से चाट." मैं वापस उपर उठ कर उनके नितंबों पर अपनी जीभ फिराने लगी.
"हाआँ ….हाआँ ऐसे……म्म्म्मम…..हाआँ जीब को दोनो के बीच डाल." वो अपने चेहरे को बिस्तर के अंदर धंसाए बड़बड़ा रहे थे.
क्रमशः............