गर्ल'स स्कूल compleet

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rajaarkey
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Re: गर्ल'स स्कूल

Unread post by rajaarkey » 12 Dec 2014 08:43

गर्ल्स स्कूल--27

"चलो.. जल्दी से कपड़े निकालो!" राकेश अब तक अपनी शर्ट निकाल चुका था और पॅंट खोलने की तैयारी में था....

"दिनेश को तो आ जाने दो... बार बार....." निशा ने बेड पर बैठते हुए कहा...

"साले की मा की चूत... पैसे में लगाउ.. और मज़े वो लूटे.. जल्दी करो मेरी जान.. मैने फोन ऑफ कर दिया है.. अब वो भूट्नी का बाहर ही इंतज़ार करेगा.. उसको देनी हो तो गाँव में दे देना... चल जल्दी दिखा अपना माल!" राकेश ने अपनी पॅंट निकाल दी थी.. उसका लंड कच्च्चे को फाड़ने को बेताब था!

निशा राकेश की गाली गलोच सुनकर हक्की बक्की रह गयी," तुम ऐसे क्यूँ बोल रहे हो.. उस बेचारे को भी बुला लो ना" दरअसल निशा ने आज तक दिनेश के जितना मोटा लंड देखा नही था.. और वो उसको करीब से देखना चाहती थी...

"बेचारे की बेहन चोदुन्गा आज.. चल अब निकाल भी दे.. क्यूँ टाइम वेस्ट कर रही है..."

"नही.. उसके आने से पहले मैं कपड़े नही निकालूंगी.." डरी सहमी सी निशा ने हूल्का सा विरोध दिखाने की चेस्टा की.....

"अब ये तेरे बाप का घर नही है साली... तुझे पता नही कितना इंतज़ार किया है तेरा... अब जल्दी से कपड़े निकाल कर कुतिया बन जा.. नही तो खींच कर निकाल दूँगा.. आए हाए.. मुझे तो यकीन ही नही था.. तेरी चूत मारने को मिल जाएगी..." राकेश ने अपना लंड अंडरवेर से बाहर निकाल कर लहराया...

" पर तुमने तो सिर्फ़ देखने की बात की थी.. ज़बरदस्ती करोगे तो मैं शोर मचा दूँगी..." निशा बुरी तरह काँप उठी...

"शोर मचाएगी साली बहनचोड़... चल मचा शोर.. सारा होटेल पहले तुझे चोदेगा और फिर पूछेगा.. यहाँ क्या अपनी मा चुदवाने आई थी..." कहते हुए राकेश ने निशा के पास जाकर एक हाथ उसकी कमर के पिछे लगाया और दूसरी हाथ से उसकी चूची को बड़ी मुश्किल से अपने हाथ में पकड़ कर मसल दिया..," क्या मस्त चूचियाँ हैं तेरी... सारी रात इनका रस पियुंगा जाने मॅन.."

"रूको! मैं निकालती हूँ... पर प्लीज़ आधे घंटे में मुझे यहाँ से जाने देना..." निशा की आँखों में आँसू आ गये थे.. जवानी के जोश में वो ये क्या कर बैठी थी...

"2000 रुपए मैने तेरी नंगी मूर्ति देखने के लिए खर्च नही किए.. तेरी चूत का मुरब्बा निकालना है सारी रात.. तुझे कपड़ों में देखकर ही जाने कितनी बार अपना लंड ठंडा किया है मैने.. आज तो जी भर कर चोदुन्गा तुझे मेरी रानी.." कहते हुए राकेश ने स्कर्ट के अंदर हाथ डाल कर उसकी जांघों तक पहुँचा दिया.. निशा को झुरजुरी सी आई और उसने आनमने मंन से अपनी योनि को जांघें भींच कर च्छूपा लिया...

"खोल रही है की फाड़ डालूं तेरे कपड़ों को.. देख प्यार से मान जा वरना....."

निशा समझ गयी थी.. ऐसे या वैसे आज तो राकेश से मरवा कर ही पीचछा छूटेगा.. फिर अब तक वो पिच्छली बातों को भूल कर अपने रंग में आना शुरू हो गयी तही....," एक मिनिट रूको तो सही.. निकालती हूँ ना..."

"ना.. अब निकालूँगा मैं.. तू तो मेरे लौदे से खेल" कह कर राकेश ने अपना लंड निशा के हाथ में पकड़ा दिया...

हालाँकि राकेश का हथियार दिनेश वाले के सामने कहीं नही ठहरता था पर जो दो आज तक उसने चखे थे, उनसे तो बड़ा ही था... निशा ने लंड को अपनी मुट्ही में भींचने की कोशिश की पर वो पूरा नही समा पाया.. निशा जाने क्या सोचते हुए राकेश के लंड के सुपादे को निहारने लगी...

"सोच क्या रही है मेरी जान... अपने होंठों से चखकर देख इसको.... आइस्क्रीम की तरह चूस और केले की तरह खा.. बड़ा मज़ा आएगा." कहते हुए राकेश ने एक पल को उसके हाथ उपर कराए और कमीज़ खींच कर निकाल दिया..

समीज़ के अंदर से नज़र आ रही चूचियों का आकर और उनके बीच का कटाव इतना मनमोहक था की कुच्छ पल के लिए राकेश उनको अपलक निहारता रहा.. दूध जैसा सफेद रंग और कसे हुए ढाँचे में ढले सेब के आकर की तनी तनी चुचियाँ किसी को भी पागल बना'ने के लिए काफ़ी थी.. चुचियों पर गुलाबी दाने समीज़ के अंदर से ही अपनी हुल्की झलक दिखाकर राकेश को अपने होश खोने पर मजबूर कर रहे थे," तू तो इंपोर्टेड आइटम लगती है रे!" राकेश ने समीज़ के अंदर हाथ डाल कर निशा की छ्चातियों की गर्मी और कसाव मापते हुए सिसकारी सी लेकर कहा.. निशा ने फिर से उसके तने हुए लंड को अपनी मुट्ही में लेने की कोशिश शुरू कर दी..

"एक मिनिट शांति तो कर ले रंडी..." और राकेश ने उसका समीज़ भी निकाल कर हवा में उच्छल दिया...

समीज़ की क़ैद से आज़ाद होते ही निशा का यौवन इतरा उठा... दोनो चुचियाँ पेंडुलम की तरह हिल हिल कर अपनी मस्ती का प्रदर्शन करने लगी.. राकेश ने झट से निशा को धक्का देकर बेड पर लिटा दिया.. लेकिन उनकी उँचाई पहले की तरह यथावत रही.. हां छेड़ छाड़ से दानो की उँचाई और मोटाई ज़रूर बढ़ गयी और वो पहले से भी ज़्यादा गुलाबी हो उठे.....

राकेश ने निशा के निप्पल्स को अपनी उंगलियों में पकड़ा और धीरे धीरे मसल्ने लगा.. निशा की आँखें बंद हो गयी और वो सिसकारी भरने लगी.. उसके हाथ एक बार फिर बिना इजाज़त लिए राकेश के लंड तक जा पहुँचे...

"खेली खाई लगती है साली... तुझमें तो ज़रा भी शरम नही है.... ये ले..." राकेश उसकी छाती पर चढ़ बैठा और अपना तननाया हुआ लंड उसके गुलाबी होंठों पर रख दिया.. निशा तो मदहोश थी ही.. अपने होंठो को खोलकर उसने तीसरे मर्द के लंड पर अपनी जीभ फिराई... थोड़ी तडी ज़बरदस्ती नॉर्मल सेक्स से कहीं ज़्यादा मज़ा देती है...

शुपाडे पर जीभ लगते ही राकेश सीत्कार उठा... इतनी सुंदर लड़की उसके लंड को चूसेगी... राकेश पागल सा हो गया और एक झटके के साथ आधा लंड निशा के हुलक में उतार दिया...

निशा इसके लिए तैयार नही थी.. वह गला रुकने की वजह से अचानक बेचैन सी हो गयी और अपने हाथ हिलाकर रहम की भीख माँगी.. शुक्रा है राकेश ने लंड वापस खींच लिया...

"मेरी जान निकल जाती.. गले में फँस गया था"

"ऐसी जान नही निकलती रानी... अँग्रेज़ी फिल्मों में देखा नही क्या.. तुमने तो आधा ही अंदर लिया है.. वो तो पूरा का पूरा गले में उतार लेती हैं.." कहकर राकेश उसकी छाती से नीचे उतर गया और दोनो हाथों में उसकी चूचियाँ पकड़ कर अपनी जीभ से बारी बारी चाटने लगा...

आनंद में पागल सी हो चुकी निशा बिस्तेर की चादर को अपने हाथो में पकड़ कर खींचने लगी........ कमरा मादक सिसकारियों से भर उठा....

उधर एक घंटा बीत चूकने पर भी राकेश का फोन ना आने पर दिनेश गुस्से से लाल हो उठा... "साला दगाबाज.. फोन ऑफ कर दिया... अब क्या करूँ.. मैं तो उस'से पैसे लेने भी भूल गया की रूम लेकर खुद ही ढूँढ लेता सालों को..." सोचते हुए गुस्से में तमतमा रहे दिनेश ने बदला लेने की नीयत से 100 नो. डाइयल कर दिया और पोलीस को होटेल में चल रही मस्ती की सूचना दे दी.......

गुलाबी रंगत में रंगते जा रहे निशा की चुचियों के निप्पल्स मादक करारी मस्ती से सराबोरे होते जा रहे थे.. अब सहन करना ना इसके वश में था ना उसमें.. राकेश ने एक निप्पल को अपने दाँतों के बीच दबाया जैसे काट ही डाला...

"ऊऊऊईीईई मुंम्म्ममय्ययी!" दर्द निशा के लिए असहनीया था....

निशा की इश्स तड़प भारी चीख ने राकेश की मस्ती और बढ़ा दी... उसने पूरी जीभ बाहर निकाल कर अपने हाथो में दबोचे हुए स्तनों पर घुमानी शुरू कर दी.. थूक से गीली होकर चुचियाँ चमकने लगी.. निशा आधी आँखें बंद किए हुए बदहवास सी होकर अपने हाथों को मर्द की प्यासी अपनी योनि तक पहुँचने

की कोशिश करने लगी.. राकेश को अब जाकर ख़याल आया की उपर लटक रहे प्रेम फलों में ही वो इतना मदहोश हो गया की नीचे का खजाना याद तक नही रहा.. राकेश अपनी ग़लती का अहसास होते ही निशा की चूचियों को छ्चोड़ उसकी सलवार के नाडे की और लपका पर दोस्तो हाए री बाद किस्मती....

दरवाजे पर बेल बजी...

एक पल को राकेश चौका फिर ये सोच कर की वेटर आया होगा फिर से निशा पर टूट पड़ा.....

"खाट खाट खाट...." अबकी बार दरवाजे पर ज़ोर से दस्तक दी गयी....

"तुम ऐसे ही लेटी रहो मेरी जान.. मैं अभी उसको सबक सिखाता हूँ.." राकेश उठ कर खड़ा हुआ,"कौन है बे भूट्नी के... यहाँ दोबारा खाट खाट की तो साले तेरी मा....." राकेश को आगे बोलने का मौका ही नही मिला.. दरवाजा खोलते ही सामने दो पोलीस वालों और पोलीस वाली को देख कर उसका पेशाब नीचे उतर आया..," आअ.. वुवू.. मैं.... "

दो स्टार वाले पोलीस जी ने उसकी बातों पर ध्यान ना देकर पहले अंदर बैठी नायाब कली के हुष्ण का दीदार करने की सोची.. उसने राकेश की छाती में धक्का सा मारा और एक पल में अंदर घुस गया..

पोलीस आई देख निशा थर थर काँपने लगी.. पहले उसका ध्यान अपनी सलवार पर गया.. वो अभी तक उसकी 'चिड़िया' को ढके हुए थी.. हड़बड़ाहट में एक हाथ से अपने दोनो रसीले फलों को ढकने की नाकाम कोशिश करते हुए उसने इधर उधर से अपने कपड़े उठाने की कोशिश करी.. पर वो तो फर्श पर बिखरे पड़े थे...

निशा का दूसरा हाथ भी इज़्ज़त बचाने में पहले हाथ की मदद करने पहुँच गया... पर तब तक जितना उस सब-इनस्पेक्टर ने देख लिया था.... उसको पागल बना'ने के लिए काफ़ी था....

"क्या तीतर मारा है साले...!" सब.इनस्पेक्टर. ने होंठों पर जीभ फिराते हुए कहा.....

पोलीस में भी अच्छे इंसान होते हैं.. निशा को पहली बार तब पता चला जब उस नौ-जवान पोलीस वाली ने अंदर आकर फर्श पर बिखरे कपड़े उठाए और निशा की तरफ उच्छाल कर उसके आगे खड़ी हो गयी," कपड़े पहन लो!" हालाँकि उसके स्वर में कोई हमदर्दि नही थी....

"एस.एच.ओ. साहब को तुम्ही मिली थी क्या.. मेरे साथ राइड पर भेजने के लिए... देख भी नही सकता क्या जी भर कर...." एस.आइ. गुस्से से तमतमा गया...

"दिस ईज़ माइ जॉब सर... यू प्लीज़ हॅंडल दट गे!" अब भी उस पोलीस वाली की आवाज़ उतनी ही निर्दयी थी...

"ठीक है भगवान! लगता है सारी उमरा तुमसे ही गुज़ारा करना पड़ेगा..." एस.आइ. ने खिसियया हुआ सा मज़ाक किया...

"नीलम के चेहरे पर एक पल के लिए मुस्कान बिखरी," इधर उधर मुँह मारना था तो फेरे क्यूँ लिए थे..." फिर निशा की तरफ मुखातिब हुई," चलो.. थाने चलते हैं...."

"नही.. मेडम.. प्लीज़.... वो.. ये मुझे ज़बरदस्ती लेकर आया थ..." निशा ने कांपति आवाज़ में अपनी सफाई दी...

"ज़्यादा बकवास की ना तो एक झापड़ दूँगी खींच के... शरम नही आती ऐसे होटलों में गुलच्छर्रे उड़ाते हुए... अरे तुम जैसी लड़कियों ने ही तो नारी के नाम पर ऐसा कलंक लगाया है की उनको सिर्फ़ भोग की वस्तु समझा जाता है... क्या सोच कर जी लेती हो तुम... हां? शरीर की हवस क्या तुम्हारी खुद की और तुम्हारे घर वालों की इज़्ज़त से बढ़कर है..? चली आती हो मर्द के हाथों का खिलौना बन'ने... इससके अलावा भी कुच्छ सोचा है या नही जिंदगी में....?" नीलम तमतमा उठी थी...

"बस भी करो अब.. बच्ची है... तुम तो कहीं भी भसंबाज़ी शुरू कर देती हो...!"

"तुम चुप करो जी! कल को अगर हमारे बच्च्चे ऐसा करेंगे.. तो भी क्या तुम यही कह कर संतोष कर लोगे... मैं इन्नके पेरेंट्स को बुलाए बगैर इनको नही छ्चोड़ूँगी... चल खड़ी हो जल्दी....." नीलम ने हाथ से पकड़ कर निशा को खींचा....

बेचारे पातिदेव के पास बोलने को कुच्छ बचा ही नही था.. राकेश को कॉलर से पकड़ा और बाहर खींच ले गया....

निशा बुरी तरह बिलख रही थी.... ये क्या हो गया उस'से? घर वालों को कैसे मुँह दिखाएगी...

नीलम लगभग घसीट'ती हुई उसको बाहर ले गयी.

"हूंम्म... कहाँ की रहने वाली हो?" नीलम अभी तक गुस्से में थी...

"ज्ज्ज..जी वो...." निशा गाँव का नाम लेने से हिचक रही थी....

"मैं तुम्हे ऐसे ही छ्चोड़ने की ग़लती नही करने वाली हूँ... किसी ना किसी को तो तुम्हे बुलाना ही पड़ेगा.. समझी..! बोलो किसको बुलवाना है...?"

"प्लीज़ मेडम.. मैं आइन्दा कभी ऐसा नही करूँगी.. मुझे माफ़ कर दो.. मैं अंधी हो गयी थी..." निशा बुरी तरह गिडगिडाने लगी...

"एक झापड़ दिया ना तो सारी आक्टिंग भूल जाएगी.. ये सब वादे अपने घर वालों के सामने करना.. हो सकता है उन्हे तुम पर विस्वास हो जाए... जल्दी बताओ.. कोई नंबर. बताओ मैं डाइयल करती हूँ..." नीलम पर निशा के गिड़गिदाने का कोई प्रभाव नही पड़ा...

"नंबर. की बात सुनते ही निशा के दिमाग़ में वो मोबाइल नंबर. कौंध गया जो उसने राका की फॅक्टरी के बाहर बोर्ड पर पढ़ा था.. आगे की कुच्छ ना सोचते हुए उसने नीलम को वही नो. बता दिया....

नीलम ने नंबर. डाइयल किया.. खुसकिस्मती से नंबर. राका का ही था..," हेलो!"

"दिस ईज़ एस.आइ. नीलम स्पीकिंग फ्रॉम सिटी थाना हिस्सर.. हियर ईज़ वन ऑफ उर रिलेटिव सिट्टिंग व्ड मी.. प्लीज़ कम सून अदरवाइज़ शी माइट बे इन ट्रबल.."

"वॉट नॉनसेन्स यू आर टॉकिंग? हू ईज़ शी...?" राका अचंभे में पड़ गया...

"उम्म्म्म.." कहते हुए नीलम ने निशा से पूचछा..," तुम्हारा नाम क्या है लड़की?"

"ज्ज्जिई.. मैं बात कर लूँ..." निशा ने अनुनायपूर्वक नीलम की और देखा..

"ओ.के..." फिर फोन पर राका से मुखातिब हुई," आस्क हर..!" और फोन निशा को दे दिया..

सब कुच्छ अच्च्छा ही हो रहा था.. नीलम के लिए बाहर से आवाज़ आई और वो उठ कर बाहर चली गयी...

"हेलो सर.. म्माई वही लड़की हूँ.. जो दो लड़कों के साथ आपकी गाड़ी में बैठकर आई थी... प्लीज़ मुझे बचा लीजिए सर.. वरना मैं मर जाउन्गि...." निशा धीरे से गिड़गिडाई...

राका को माजरा समझते देर ना लगी... कार

में ही वो उनकी हरकतों से काफ़ी कुच्छ समझ गया था," पर तुम्हे मेरा नंबर. कहाँ से मिला?"

"वो मैं बाद में बता दूँगी.. प्लीज़ सर आप आ जाइए.."

राका ने बिना कुच्छ कहे फोने डिसकनेक्ट कर दिया...

निशा रो पड़ी... शायद कोई उम्मीद नही थी....

"हां... आ रहा है क्या कोई.." करीब 4 मिनिट बाद नीलम अंदर आई...

निशा ने यूँही हां में सिर हिला दिया... और बिलख पड़ी....

"अगर तुम्हे पता है की ये बातें इतनी शर्मिंदगी की हैं तो पहले कभी क्यूँ नही सोचा..... अब अगर में. तुम्हे यूँही छ्चोड़ देती तो तुम 2-4 दिन में ही सब कुच्छ भूल जाती... उम्मीद करती हूँ की आइन्दा तुम ऐसा काम नही करोगी.... कितनी देर

मे आ रहे हैं वो... क्या लगते हैं तुम्हारे?"

निशा कुच्छ ना बोली.. बस आँसू टपकाती रही..... नीलम ने भी जान'ने में ज़्यादा दिलचस्पी नही दिखाई....

और कमाल हो गया.... करीब आधे घंटे बाद वही चमचमाती हुई गाड़ी थाने के बाहर आकर रुकी जिसमें निशा सुबह बैठकर आई थी.

लगभग सारा स्टाफ ही राका को जानता था.. लोकल सेलेब्रिटी जो थे... एस.एच.ओ. साहब ने उनसे हाथ मिलाया और पूचछा.. "कैसे आना हुआ भाई साहब!"

राका उनका हाथ पकड़े पकड़े ही उनके रेस्ट रूम में चला गया....," ये लड़की जो आपकी कस्टडी में है.. मेरी दूर की जान पहचान वाली है.. उसको छ्चोड़ देंगे प्लीज़!"

एस.एच.ओ. भी कोई कच्चा खिलाड़ी तो था नही.. समझता था की कौनसी दूर की जान पहचान हो सकती है.. पर पंगा कौन ले; हुल्के से राका का हाथ दबाया," अरे फोन कर दिया होता भाई साहब... हमें क्या पता था..... और सुनायिये क्या लेंगे..?"

"थॅंक्स.. बट अभी ज़रा जल्दी में हूँ... फिर कभी.." राका नज़रें चुरा रहा था.. जाने थानेदार क्या सोचता होगा...

"नो प्राब्लम.. आप लड़की को लेकर जा सकते हैं... कहो तो लड़के की थुकाइ करवा दूं...." थानेदार ने मस्के लगाने की कोशिश की...

"नही प्लीज़... हमारे जाने के बाद उनको छ्चोड़ देना... बाकी जैसे तुम चाहो... अब चलूं?"

"ओके.. बाइ.. कभी काम पड़े तो याद करना भाई साहब......."

"बाइ.. नाइस टू मीट यू!" कहकर राका बाहर निकला तो निशा भी उसके पिछे पिछे आ गयी.. बिना कहे ही आगे वाली खिड़की खोली और राका के पास जा बैठी.. वह समझ नही पा रही थी की उसके अहसान का बदला कैसे चुकाए......

"अब क्या है? अब कहीं और छ्चोड़ कर आना है क्या?" राका ने रूखे स्वर में उत्तर दिया....

निशा फफक फफ्ख कर रो पड़ी.... राका ने कुच्छ पल उसको निहारा और फिर गाड़ी स्टार्ट करके दौड़ा दी........


rajaarkey
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Re: गर्ल'स स्कूल

Unread post by rajaarkey » 12 Dec 2014 08:45

गर्ल्स स्कूल पार्ट --28

गाड़ी शहर के भीड़-भाड़ वाले इलाक़े से धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी. राका की चुप्पी अंदर ही अंदर निशा को और शर्मिंदा कर रही थी.. पर खुद बोले भी तो क्या बोले! अपनी मोटी नशीली आँखों को तिरछा कर कयि बार कनखियों से निशा ने राका को देखा.. उसके चेहरे पर रूखापन था... निशा का दिल बार बार राका को सॉरी बोलने को कर रहा था, पर हिम्मत उसका साथ नही दे रही थी....

बस-स्टॅंड जाकर राका ने पार्किंग में ले जाकर गाड़ी रोक दी,"कहाँ जाना है?" राका की आवाज़ में भी रूखापन सॉफ झलक रहा था...

निशा ने अपनी नज़रें तुरंत नीचे झुका ली.. दबी हुई सी लंबी साँस ली और अपने हाथ की उंगलियों को आपस में जाकड़ कर हौले से बोली," घर!"

"ठीक है.. तुम्हे यहाँ से भिवानी की बस मिल जाएगी.. आगे का तुम्हे पता ही होगा!" कहकर राका गाड़ी से बाहर उतर आया.. मजबूरन निशा को भी नीचे आना पड़ा.. पर वह गयी नही... उसकी आँखें डॅब्डबॉ गयी..

"अब क्या है?" राका जल्दी में लग रहा था..

"क्क्क.. कुच्छ नही..." निशा इसके आगे कुच्छ ना बोली...

"ठीक है फिर.. मैं चलता हूँ.. संभाल कर जाना.. " राका जाकर गाड़ी में बैठ गया...

"आ....आपका नाम क्या है.. सर?" इश्स बार निशा के लब लरज गये...

"आम तौर पर मैं आवारा लड़कियों के मुँह नही लगता. बाइ" कहकर राका गाड़ी घूमने के लिए आगे की तरफ ले गया.....

कहते हैं होनी को कोई टाल नही सकता, और भगवान की इच्च्छा के बगैर पत्ता भी नही हिल सकता.. फिर राका किस खेत की मूली था. गाड़ी घूमकर जब राका वापस आया था तो निशा वही खड़ी गाड़ी को अपनी और आते देख रही थी.. उसकी आँखों में अपनापन सा झलक रहा था.. खुद को आवारा लड़की के खिताब से नवाज़ी जाने के बाद भी भीगी आँखों में अजीब सा अपनापन झलक रहा था.. राका ने उसको अविचल वहीं खड़े देखा पर वो रुका नही...

मुश्किल से राका एक किलोमेटेर भी नही गया होगा की होनी का खेल शुरू हो गया.. तेज आँधी चलने लगी. जाने कहाँ से काली घटायें घूमड़ घूमड़ कर इकट्ठा हो गयी.. शाम के 3:00 बजे ही सूरज छिप गया और लगने लगा मानो रात हो गयी हो.. घोर अंधेरा छा गया.."ओह माइ गॉड! इश्स हालत में वो अकेली कैसे जाएगी.... क्या करूँ?", राका ने अपने अंतर्मन से पूचछा और आवाज़ वही आई जो होनी को मंजूर था...

अगले कट से राका ने यू-टर्न ले लिया.....

राका वापस बस-स्टॅंड जा पहुँचा... निशा वहीं खड़ी थी जहाँ उसको राका छ्चोड़ कर गया था... धरती अभी प्यासी ही था.. पर निशा की आँखों से निर्झर बरसात जारी थी.. शायद ग़लत रास्ते पर चलने का पस्चाताप आँसुओ की शकल में बाहर आ रहा था.. निशा अब भी सिर झुकाए खड़ी थी.. गोरे गालों पर अश्कों के मोती लगातार बह रहे थे...

"सुनो!"

चिरपरिचित सी आवाज़ सुनकर निशा चौंक कर पलटी.. राका पीछे खड़ा मुश्कुरा रहा था,"तुम मुझे राका कह सकती हो!"

अब की बार राका की मुश्कूराहट उसको 'अपनी' सी लगी.. एक पल को निशा के दिल में ज़रूर आया होगा की वह दो कदम बढ़ा कर राका के सीने से चिपक जाए और बता दे की अब वो 'आवारा' नही रही.. उसकी आँखों में पलभर को आई चमक से ऐसा अहसास राका को भी हुआ होगा... पर वो चमक पल भर में ही गायब हो गयी और निशा ने फिर अपनी पलकें झुका ली...

राका ने पहली बार उसको गौर से देखा.. निशा के रंग-रूप, नयन-नक्स, चेहरे की मासूमियत और ललाट के तेज से कहीं ऐसा नही लगता था की वो कोई आवारा लड़की है... हां, उस कमसिन उम्र में बहकना अलग बात होती है.. निशा का यौवन अप्रतिम था.. ऐसी हूर तो जन्नत में भी नही मिलती होंगी.. ज़रूर राका ने यही सब सोचकर ऐसा कहा होगा," तुमने अपना नाम तो बताया ही नही!"

5'-6" की निशा को राका की नज़रों में झाँकने के लिए अपनी गर्दन काफ़ी उठानी पड़ी," निशा!"

परिचय संपन्न हुआ और प्रण की अग्नि में आसमान की आहुति शुरू हो गयी.. घटाओ ने जमकर बरसना शुरू कर दिया.. राका ने निशा का हाथ पकड़ा और गाड़ी की और भागा... बारिश इतनी तेज थी की करीब 20 मीटर की दूरी पर खड़ी गाड़ी तक भाग कर पहुँचने पर भी दोनो पानी पानी हो गये... और निशा तो बारिश से भीगा अपना बदन देखकर अंदर तक ही पानी पानी हो गयी... होटेल से निकलते वक़्त हड़बड़ाहट में वो समीज़ डालना भूल गयी थी...

तेज बारिश की झमाझम के बीच गाड़ी सड़क पर सरपट दौड़ने लगी.. निशा को अपने छातियों के बीचों बीच सिर उठाए खड़े बेपर्दा सी हालत में गुलाबी दानों का अहसास हो गया था.. इसीलिए उसने अपने आपको टेढ़ा करके राका की तरफ पीठ घुमा ली और बाहर की और देखते हुए अपने लबों को खोला," हम कहाँ जा रहे हैं"

"तुम्हारे घर.. तुम्हे कहीं और......?" राका ने उत्तर देते हुए जैसे ही निशा की और देखा.. आवाज़ उसके गले में ही अटक गयी... कमीज़ भीगने की वजह से निशा की कमर लगभग पारदर्शी हो गयी थी.. ऐसा नायाब बदन... कुल्हों से उपर कटाव इतना शानदार था की शायद स्वर्ग की अप्सरा 'मेनका' की उपमा भी फीकी पड़ जाए.. कूल्हे अपेक्षाकृत अधिक सुडौल थे.. कमर में से बूँदों की शकल में चू रहा पानी.. पानी नही अमृत लग रहा था.. मानो अभी अपने होंठो से उसको चख कर अमर हो लिया जाए.. सचमुच क्या बदन था.. राका के बदन में तूफान सा आ गया... उसके लिए अब ड्राइविंग पर ध्यान देना कठिन हो रहा था.... वो आगे से भी इश्स स्वपनिल सुंदरी का रूप देखने को बेताब हो उठा," ऐसे क्यूँ बैठी हो? सीधी होकर आराम से बैठो ना!"

राका को क्या मालूम था.. जो राका देखना चाह रहा था.. वही तो निशा च्छूपा रही थी," नही.. ऐसे ठीक है!" निशा का बदन इतने शानदार युवक को साथ पाकर काई बार मचला.. पर हर बार उसके बदल चुके मॅन ने उसको शांत कर दिया......

"क्या करती हो तुम?" राका बात बढ़ाए बिना ना रह सका..

"अभी 12थ के एग्ज़ॅम दिए हैं.. रिज़ल्ट आने वाला है..." निशा ने कमर से चिपके कपड़े को अपने हाथ से खींच कर ठीक किया...

"तुम बहुत ही सुंदर हो... बहुत ही प्यारी" राका ने झूठी तारीफ़ नही की थी.. वो बेमिशाल थी....

निशा के शरीर में झुरजुरी सी उठी.. उसके मुँह से अपनी तारीफ़ सुन'ना उसको बहुत अच्च्छा लगा...," थॅंक्स सर......"

चिर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्ररर! राका को ब्रेक लगाने पर मजबूर होना पड़ा...

निशा चौंक कर पलटी और राका की और देखा," क्या हुआ?"

"आगे रास्ता बंद है.. वो देखो!" राका ने सड़क पर गिरे भारी भरकम पेड़ की और इशारा किया.. बारिश अब भी उतनी ही तेज थी.

"अब क्या करें?" निशा ने उसकी और परेशान निगाहों से देखा..

"डॉन'ट वरी.. थोड़ी पिछे एक कच्चा रास्ता है.. वहाँ से निकाल लेते हैं" कहते हुए राका ने गाड़ी वापस घुमा ली...

इसीलिए तो कहा था.. होनी को कोई नही टाल सकता.. पता नही राका ने ध्यान नही दिया या देने की सुध ही नही थी.. कच्चे रास्ते पर मुश्किल से वो एक किलोमेटेर चले होंगे की गाड़ी बीच रास्ते फँस गयी. बारिश की वजह से कीचड़ बहुत हो गया था... और एक जगह जाकर करीब 2 फीट गहरे गड्ढे से गाड़ी बाहर नही निकल पाई.. ना ही पिछे एक इंच ही हिली.. भगवान जाने; राका ने निकालने लायक कोशिश की भी थी या नही..

"शिट.. यहाँ बुरे फँसे.. अब क्या करें?" राका ने स्टियरिंग पर ज़ोर से हाथ पटका..

"मेरी वजह से आप भी कितने परेशान हो गये हैं सर..!" निशा ने परेशान होने की बजाय अपनी सहानुभूति दिखाना ठीक समझा.....

"कोई बात नही..निशा... जो होता है अच्छे के लिए होता है.." राका कैसे बताता वो परेशान नही है.. शुक्र है उपर वाले का.. नही तो वो चाहता तो एक क्या 10 गाड़ी मंगवा सकता था...

खेतों में दूर दूर तक कोई नज़र नही आ रहा था. करीब 10 मिनिट तक दोनो कुच्छ नही बोले... दोनो के मॅन में एक दूसरे के ही ख़यालात थे.. हालाँकि निशा नज़रें मिलने से कतरा रही थी...

आख़िरकार.. राका से ना रहा गया..," मैं तो बारिश में नहा रहा हूँ.. आना चाहो तो आ सकती हो..."

"छ्ह्ह्हीइ!" निशा बुरी तरह शर्मा गयी.. पहले से भीगे यौवन को तो वह संभाल नही पा रही थी... और कैसे नहाएगी...

"एज यू विश!" राका ने कहा और बाहर जाकर खेत की मेड पर लगी घास पर बैठ गया....

अंदर बैठी निशा का बदन तपने लगा.. राका ने खुद ही तो उसको बोला है.. नहाने के लिए.. उसकी छाती से लगने की निशा की तड़प एक बार फिर उसके मॅन पर हावी हो गयी....

निशा ने शीशा नीचे करके राका को आवाज़ लगाई," आ जाऊं.. मैं भी.. अंदर दिल नही लग रहा..."

"नेकी और पूच्छ पूच्छ! आ जाओ ना.. बड़े दीनो के बाद ऐसे खुले में नहाने का मौका मिल रहा है........

निशा ने नीचे उतरने से पहले एक बार फिर अपने भीगे जिस्म का मुआयना किया.. बदन से चिपके हुए कमीज़ में से उसकी शानदार चूचियों का आकर बिना किसी दिक्कत के महसूस किया जा सकता था. तने हुए अनार के दानों जैसे निप्पल्स तो किसी की भी साँस रोक देने के लिए काफ़ी थे.. वी- आकार के गले की कमीज़ से दिखाई दे रही गहरी खाई स्वर्गिक सुख के द्वार का प्रतीक प्रतीत हो रही थी. "हाए राम.. ऐसे कैसे जाउ?" राका के एक व्यंगया ने निशा को लड़की होने का मतलब समझा दिया था.. अब वह आवारा नही रहना चाहती थी...

"आ रही थी तुम..?" राका ने निशा को पुकारा...

"उम्म्म्मममम... नही, तुम्ही नहा लो!" बाहर निकलने की प्रबल इच्च्छा के बावजूद निशा को 'ना' ही कहना पड़ा....

राका उठ कर खिड़की के पास आया," क्यूँ क्या हुआ? मुझसे डर लग रहा है?" कह कर राका ने कामुक मुस्कान निशा की और उच्छाली...

निशा ने राका को सामने देख शर्माकर अपने दोनो हाथ अपने कंधों पर ले जाकर मचल रही मस्त चूचियों को कोहनियों में छिपा लिया," नही.. आपसे कैसा डर...?"

"क्यूँ क्या मैं मर्द नही हूँ?" कहकर राका ने ज़ोर का ठहाका लगाया.. अब उसकी कोशिश निशा की हिचक दूर करने की थी.

राका की बात का मतलब समझ कर निशा का चेहरा एक दम लाल हो गया.. होन्ट लरज उठे.. कोहनियाँ और सख्ती से चूचियों से जा चिपकी.. पर आवाज़ ना निकली. एक वाक्य ने निशा को कितना बदल दिया था ' मैं आवारा लड़कियों के मुँह नही लगता!'

अगर पहले वाली निशा होती तो पहल वही करती.. पर अब निशा सचमुच ही 19 साल की मासूम लड़की लग रही थी..

"एक बात पूच्छू?" राका खिड़की पर झुक गया...

निशा ने हां में सिर हिलाया.... नज़रें वो फिर भी ना मिला सकी...

"तुम क्या जान बूझ कर उनके साथ आई थी..."

निशा क्या बोलती.. चुप ही रही...

"बोलो ना" हाथों के बीच से निशा के अंदर झाँकते हुए राका ने कहा..

सच बोलने का मतलब खुद को आवारा साबित करने के लिए काफ़ी था और झूठ बोलने के लिए वो क्या कहानी बनाती....

निशा की आँखों से छलक आए अश्कों ने सारी बात बयान कर दी...

"ये क्या बात हुई.. होता है.. ग़लती इंसान से ही होती है.. वैसे एक बात कहूँ; तुमसे प्यारी लड़की आज तक मेरी नज़र में नही आई.." गीले चेहरे की वजह से निशा के गालों पर फैल गये अश्कों को राका ने अपनी हथेलियों में थाम लिया.. निशा सिसक उठी.. आँखें बंद हो गयी और होन्ट काँपने लगे. उसका हसीन चेहरा राका की हथेलियों में क़ैद था.

राका ने आँसू पोंच्छ कर हाथ हटा लिए.. निशा जैसे सपनों की दुनिया से वापस ज़मीन पर आई... पहली बार उसको प्यार होने का अहसास हुआ.. पल भर में ही उसने क्या कुच्छ नही पा लिया ....

"आओ ना बाहर.. मौसम की पहली बरसात है.. मुझे तो लग रहा है जैसे हमारे लिए ही सावन बरसा है आज..." राका ने खिड़की खोल कर अपना हाथ बढ़ाया तो बेसूध सी निशा ने अपना हाथ राका के हाथ में दे दिया.. अपनी तरफ से हमेशा के लिए!

निशा राका के साथ बाहर आ गयी.. खुले आसमान के नीचे! दिल ज़ोर से धड़क रहा था.. उसका जवान शरीर तपने लगा था.. राका तो जाने कब से निशा के पहलू में फ़ना हो जाना चाह रहा था...

"अगर तुम्हे ऐतराज ना हो तो मैं बियर की कॅन निकाल लून क्या? ठंडी हो गयी होंगी.. प्यास लगी है..

निशा ने अपने कंधे उचका दिए.. अभी तक उसको अधिकार ही कहाँ मिला था, मना करने का....

राका ने अपने दिल को निकाल कर निशा के सामने रख देने का माहौल तैयार कर लिया था.. एक तो इतनी हसीन लड़की साथ में.. उपर से बारिश और साथ में बियर.. एक केन में ही राका झूमने लगा. अब राका नही, पहली नज़र में ही निशा का दीवाना हो चुका दिल बोल रहा था," निशा!"

"हूंम्म!" बारिश से तर बदन को समेटे बैठी निशा भी मानो मदहोश सी हो चुकी थी.. उसके 'हूंम्म्म' से कुच्छ ऐसा ही लगा.

"तुम्हे मैं कैसा लगता हूँ?"

निशा बिना कुच्छ बोले अपनी गर्दन तिर्छि करके राका की आँखों में देखने लगी.. राका तो पहले ही उसकी और देख रहा था.. सच मानो तो आँखें चार होना इसी को कहते हैं.. निशा की काली बिल्लौरी आँखों ने उसके सवाल का जवाब दे दिया और राका की बेताब आँखों ने मतलब पढ़ लिया..

राका ने निशा का हाथ अपने हाथ में ले लिया.. दोनो अब भी एक दूसरे से आँखों ही आँखों में बतिया रहे थे..

निशा के होंठो से हल्की सी सिसकी निकली.. ये पता नही की कारण दिल था या बदन....

"क्या तुम अपना हाथ मेरे हाथ में दे सकती हो.. हमेशा के लिए!" राका दिल से बोल रहा था.

निशा को विस्वास नही हुआ.. 'हमेशा के लिए' ... राका के हाथ में समाया उसका हाथ कसमसा उठा... राका ने हाथ छ्चोड़ दिया," क्या हुआ.. अगर बुरा लगा हो तो सॉरी!"

निशा को जवाब देना ही पड़ा," म्म..मैं आपके लायक नही हूँ.. रा... सर!" कह कर निशा हिचकिया ले ले कर सिसकने लगी.. उसने जल्दबाज़ी क्यों की.. इंतज़ार क्यूँ नही किया.. आज तक का.. राका का!"

राका ने उसकी और घूम कर उसका चेहरा अपने हाथों में ले लिया," किसने कहा पगली..!"

सिसकते हुए ही निशा ने जवाब दिया," म्‍मैई... अच्च्ची लड़की नही थी.. मैं....." कहकर निशा सुबकने लगी...

"मेरे लिए इसके कोई मायने नही हैं पगली.. लड़के और लड़की के लिए अलग पैमाने समाज ने बनाए हैं और मैं लकीर का फकीर नही हूँ... अगर लड़का अपनी जिंदगी जैसे चाहे जी सकता है तो लड़की क्यूँ नही.. हां उम्मीद करूँगा की शादी के बाद तुम मुझे ही अपनी दुनिया मानो.. मैं भी वादा करता हूँ!"

'शादी' ये शब्द सुनते ही निशा का नरित्व जाग उठा.. आज की बारिश ने मानो उसके सारे पाप धो दिए हों.... निशा ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और राका के हाथ में दे दिया.. हमेशा के लिए,"सच्ची" निशा कमाल के फूल की तरह सावन की फुहारों में खिल उठी..

"हां! आइ लव यू निशा.. मुझे कल देखते ही तुमसे प्यार हो गया था..." राका ने निशा का दूसरा हाथ भी अपने हाथ में ले लिया.. अब भी हुल्की हुल्की फुहारें इश्स नायाब जोड़ी को अपना आशीर्वाद दे रही थी..

"मुझे ठंड लग रही है.. गाड़ी में चलें.." गरम हो चुके बदन पर बरसात की शीतल बूँदें अब सहन नही हो रही थी..

"चलो!" राका के कहते ही दोनो उठ खड़े हुए और गाड़ी के पास चले गये..

"श.. आगे वाली सीट गीली हो गयी हैं.. हम शीशा चढ़ाना भूल गये निशा"

"तो क्या हुआ.. हम तो पहले से ही गीले हैं.." निशा अब चहक रही थी.. राका के रूप में उसको अपना राजकुमार नज़र आ रहा था. जिसके लिए हर लड़की सपनें संजोती है...

"नही.. पीछे बैठते हैं कुच्छ देर.. फिर में कंपनी में फोन करके दूसरी गाड़ी मंगवा लूँगा"

"ठीक है.." निशा ने कहा और पिच्छली सीट पर जा बैठी. राका ने भी उसके करीब बैठने में देर नही लगाई.....

तुम्हारे होन्ट कितने प्यारे हैं.. एक दम गुलाब की पंखुड़ियों जैसे!" राका ने मस्का लगाना शुरू किया....

"हे हे हे हे हे!" निशा चहक उठी.. उसकी हँसी में अपनी प्रशंसा सुन'ने की ख़ुसी के साथ हूल्का सा अभिमान भी था.. हो भी क्यूँ ना.. इतनी खूबसूरती के साथ भगवान हर किसी को नही तराष्ता..

"तुम्हारी आँखें भी बड़ी प्यारी हैं... एक दम सीप के माफिक.. बड़ी बड़ी.. सच में तुम बहुत प्यारी हो निशा.. मुझे यकीन नही होता की तुम मेरे नशीब में हो.." ( दोस्तो एक छोटी सी चूत के लिए आदमी पता नही क्या क्या करता है इस समय विचारा राका यही सब कर रहा था तो क्या बुरा कर रहा था आपका दोस्त राज शर्मा ) राका ने अपनी तरफ से उपमा देने में कसर नही छ्चोड़ी थी..

निशा गौर से राका के चेहरे को देखती रही.. उसके चेहरे पर अपरिमित मुस्कान

थी..

"तुम्हारी......" कहकर राका रुक गया.. तीन तीन नशे साथ होने पर भी वा आगे ना बढ़ पाया..

निशा तो भूल ही चुकी थी की उसके बदन को ढक'ने वाले कपड़े पारदर्शी हो चुके हैं... राका को अपनी चूचियों की ओर एकटक देखता पाकर वह हड़बड़ा गयी.. निशा के हाथ राका ने अपने हाथों में संभाल रखे थे.. जब निशा को अपना अर्ध्नग्न बदन छिपाने का कोई उपाय ना सूझा तो झुक कर राका की छाति में अपना सिर छिपा लिया..

निशा की गरम साँसें अपनी छाति पर महसूस करके राका दहक उठा.. उसकी पॅंट के अंदर आई हुलचल को उसकी गोद में रखे निशा के हॉथो ने भी महसूस किया..,"आह!"

राका ने अपना एक हाथ निशा की पतली कमर पर रखा और उसको अपने और करीब सटा लिया...," निशा! क्या मैं तुम्हे छ्छू सकता हूँ?"

"कहाआँ?" निशा का सारा बदन अंगड़ाई ले उठा...

"तुम्हारे होंठों को......"फिर थोड़ा रुक कर राका ने बात पूरी की,"..... अपने होंठों से.."

निशा की हालत पहले ही राका की मर्दानगी को महसूस करके पतली हो चुकी थी.. अपना चेहरा उपर करके निशा ने अपने होंठ राका के हवाले कर दिए.. सुर्ख लाल होंठ काँप रहे थे... निशा की साँसों की मादक महक जब राका के नथुनो से टकराई तो एक बार फिर निशा ने उसके और सख़्त हो गये हथियार की चुभन अपने हॉथो पर हुई...

राका के होंठ जैसे ही निशा के लबों को चूमने के लिए आगे बढ़े, होंठ अपने आप खुल गये, एक दूसरे के होंठों को इज़्ज़त देने के लिए..

"उम्म्म्मममम!" राका ने अगर पहले ऐसा किया भी होगा तो इतना मज़ा नही आया होगा.. निशा भी सब कुच्छ भूल कर बदहवास होती जा रही थी.. राका के दोनो हाथ निशा की कमर पर रेंगने लगे.. निशा के हाथ राका के बालों में जा फँसे.. बेइंतहा मस्ती में मगन निशा अपनी एक टाँग सीधी करके राका की जांघों के उपर फैला कर उस'से और चिपक गयी.. निशा की जाँघ राका की जाँघ पर टिकी हुई थी.. दोनो की साँसे उखाड़ने लगी...

अचानक राका ने निशा के होंठो को अपनी क़ैद से अलग किया और बेकरारी से बोला..," निशा.. मैं तुम्हे और भी छूना चाहता हूँ.. मैं तुम्हे हर जगह छूना चाहता हूँ" कहकर राका फिर उसके होंठों से चिपक गया..

निशा में भी सेक्स कूट कूट कर भरा हुआ था.. और अब ये बदन था ही किसका," अपने होंठ आज़ाद करते हुए उखड़ चुकी साँसों को वश में करने की कोशिश करते हुए बोली..," छ्छू लो जान.. अब मैं सिर्फ़ तुम्हारी हूँ.. छ्छू लो मुझे.. जहाँ दिल करे.. मार डालो मुझे!" निशा भावनात्मक हो उठी....

राका ने निशा को सीट पर लिटा दिया और गौर से उसके जिस्म की हर हड्डी को अपनी आँखों में उतारने लगा...

"क्या देख रहे हो...?" निशा राका को इश्स तरह देखता पाकर रोमांचित हो उठी...

"मेरी तो समझ में ही नही आ रहा.. देखूं या कुच्छ करूँ.. तुम्हारा सब कुच्छ कमाल का है.."

"क्या कमाल का है?" निशा ने इतराते हुए पूचछा..

"नाम लेकर बताऊं क्या?" राका की नज़र निशा की मस्त गोलाइयों पर थी....

"नही !" निशा एक बार फिर शर्मा गयी.. फिर आँखें बंद करके बोली.. जो चाहो करो जान.. पर कुच्छ करो.. अब सहन नही होता.. मैं मर जाउन्गि.. बाद में देखते रहना.. सारी उम्र!"

राका ने अपने हाथ आगे ले जाकर चूचियों पर टीके दानों की चुभन को महसूस किया...

"आआआहह!" निशा ने राका के हॉथो पर हाथ रख कर उन्हे वहीं दबा लिया.. राका ने ज्यों ही गोलाइयों की सख्ती को अपने हाथो में समेट कर दबाया तो निशा कामुकता से उच्छल पड़ी... उसने दूसरी टांगे भी फैला कर राका की दूसरी जाँघ पर रख दी..

अब निशा की गान्ड राका की जांघों के बीच में रखी थी... और राका का लंड उसकी फांकों के बीच में फुफ्कार रहा था.... निशा तंन और मॅन को मिले इश्स अहसास से महक उठी, दहक उठी...

राका ने निशा की कमीज़ का पल्लू पकड़ा और कमर से उपर का हिस्सा अनावृत कर दिया.. निशा का पतला पेट मारे उत्तेजना के काँप रहा था.. राका उसके शरीर का गठन देख कर बाग बाग हो गया....

"कपड़े निकल दूं क्या?" निशा के उपर झुक कर उसके कानों के पास अपने होंठ ले जाकर राका ने धीरे से कहा..."

"मुझसे कुच्छ मत पूच्छो जान.. बस जल्दी से मेरी जान ले लो... मार डालो!"

और राका ने उसको बैठकर उसका कमीज़ गोरे बदन से निकाल दिया.. निशा आँखें बंद किए हाँफ रही थी.. वह जल्द से जल्द अपने अंदर राका को पायबस्त कर लेना चाहती थी पर हिम्मत नही हो रही थी कहने की.. हालाँकि वह अपनी गान्ड को हिला हिला कर अपनी बेताबी ज़रूर पर्दर्शित कर रही थी.... लगातार..

नंगी चूचियों को छ्छूने से ही राका पागल हो उठा था.. और जब उसने उनका स्वाद अपने होंठों से चखा तो दोनो में तूफान सा आ गया.. तूफान बीच रास्ते पर खड़ी गाड़ी के बाहर भी महसूस किया जा सकता था...

राका ने चूस चूस कर गुलाबी निप्पालों को लाल कर दिया.. उनसे दिल भरता तो राका आगे की सोचता ना...

निशा का सब्र दम तोड़ गया," अब डाल दो ना अंदर.. प्लीज़.. ऐसे तो मैं पहले ही दम तोड़ दूँगी.....

"ओह हां.. वो तो मैं भूल ही चुका था.. और राका ने निशा की सलवार का नाडा खोल दिया...

इतनी हसीन दुनिया के दीदार के बारे में राका ने कभी सोचा भी नही था.. नीचे के कटाव उपर से इक्कीस ही थे.. निशा की योनि एकदम गीली थी.. पानी से नही.. उसके अपने रस से.. फूली हुई फांकों में पतली सी दरार ने राका के होश उड़ा दिए.. जैसे ही राका ने अपनी उंगली उसके बीचों बीच रखी, निशा उच्छल पड़ी.. अब देर मत करो, मैं होने वाली हूँ... "

"बस एक बार चखने दो जान.." कहकर राका पिछे हटा और निशा की तितली के उपर अपने होंठ लगा दिए.. अचानक उसकी नायाब तितली के पंख फड्फाडा उठे.. जीभ दरार से होती हुई ज्योन्हि योनि के दाने से टकराई.. उसने दम तोड़ ही दिया,"आआआः मैने कहा था ना.." कहते हुए निशा ने राका का सिर वही दबा लिया.. ना दबाती तो भी राका वहाँ से हटने वाला नही था.. जब तक उस 'रस का एक एक कतरा हजम नही करता...

राका ने जब अपना सिर हटाया तो दोनो के चेहरे पर सन्तुस्ति की मुस्कान थी...

राका ने अपनी पॅंट उतार फेंकी और अंडरवेर की साइड से अपना लंबा तगड़ा लंड निकाल कर निशा के हाथ में पकड़ा दिया," अब तुम्हारी बारी..."

निशा राका का मतलब समझ गयी.. जड़ से लेकर सुपाडे तक अपनी उंगलियाँ चलाते हुए वह झुकी और अपने होंठ सुपाडे पर रख दिए..

दनदनाता हुआ लंड अंदर जाने के लिए फद्फडा रहा था.. पर निशा को वो साइज़ सूट नही करता था.. बड़ी मुश्किल से वो सुपाडे भर को अपने मुँह के अंदर ले पाई और होंठों का घेरा रब्बर की तरह खींच कर उसकी मोटाई के चारों और फँस गया...," नही.. ये नही होगा.. मुँह दुखने लगा है.. प्लीज़..." निशा ने सूपड़ा मुँह से निकाल दिया

"कोई बात नही.." राका ने संतोष कर लिया.. "उल्टी हो जाओ... आगे कोहनिया टेक कर..."

निशा ने वैसा ही किया.. अपने आशिक़ की बात भला कैसे टालती.. हालाँकि गाड़ी में सब कुच्छ थोड़ा सा मुश्किल था.. पर उस वक़्त मुश्किलों में कौन पीछे हट-ता..

कोहनियाँ टीका कर जैसे ही निशा ने अपनी मस्त कसी हुई गान्ड उपर उठाई.. योनि पीछे से राका को पागल बनाने लगी.. राका ने निशा की टाँगों को उपर तक सहलाया और एक बार फिर अपने होंठ उसकी चिकनी चूत पर रख दिए.. निशा से आनंद सहन नही हो पा रहा था.. वा बार बार उचक जाती और चूत उसकी जांघों में छिप जाती.. इसी लूका छिपि में निशा एक बार फिर अपने होश खोने लगी.. उसने अपनी टांगे अच्छि तरह फैला दी और चूत का मुँह राका को ललचाने के लिए खुल गया," अब तो कर दो..." निशा ने तड़प्ते हुए कहा.....

ऐसा नही था की राका इसके लिए तड़प नही रहा था.. पर उसको अहसास था की अगर उसने जल्दबाज़ी की तो निशा ज़्यादा देर तक टिक नही पाएगी और शायद उसके मोटे लंबे हथियार को दुबारा लेने के लिए जल्दी तैयार नही होगी.. अब सब कुच्छ उसके मुताबिक ही था.. एक बार स्खलन के बाद दोबारा तैयार होगी तो वह ज़्यादा देर तक

सहन कर पाएगी.. यही हुआ भी.. निशा की कमसिन चूत अब फिर अपना मुँह खोल चुकी थी और शायद इश्स बार उसकी बेकरारी भी पहले से ज़्यादा थी..

राका ने अपनी बाई टाँग का घुटना सीट पर रखा और दायां पैर सीट से नीचे घुटना मोड़ कर रख लिया.. अब लक्ष बिल्कुल सामने था.. राका ने जैसे ही अपना लंड निशा की चूत के पतले च्छेद पर रखा.. लगभग पूरी चूत सुपाडे के पिछे छिप गयी.. राका हाथ में. पकड़ कर चूत से रगड़ने लगा.. पहले से ही हाँफ रही निशा बेचैन होकर अपनी कमर को बार बार पिछे करके लंड को जल्द से जल्द अंदर लेना चाहती थी.. उसने पिछे मुँह करके बड़ी प्यासी नज़रों से राका की और देखा," आआआः.. क्यूँ तड़पा रहे हो.."

"ये लो मेरी जान!" राका ने निशा की जांघों को मजबूती से पकड़ा और एक जोरदार धक्का आगे की और लगाया.. धक्का इतना जबरदस्त था की अगर राका ने उसकी जांघों पर अपने हाथ मजबूती से ना जमाए होते तो यक़ीनन निशा का सिर खिड़की से टकराना था...

"आआआआः.. मररररर गयी मम्मी!" निशा पीड़ा से तड़प उठी.. शुक्र है वो कुँवारी नही थी नही तो बेहोश हो जानी थी.. दर्द के मारे उसकी आँखों से आँसू बह निकले....

सूपड़ा उसकी चूत में बुरी तरह फँसा हुआ था...

राका निशा की कमर पर झुक गया और अपने होंटो से कमर के चुंबन लेने लगा..," बस एक मिनिट मेरी जान.. अभी और नही डालूँगा.. बस.. रिलॅक्स.."

पर यहाँ चैन कहाँ था.. निशा योनि में दर्द से बिलबिला रही थी....

कुच्छ देर बाद जब निशा ने लंड निकालने की कोशिश बंद कर दी तो राका ने उसकी जांघों को छ्चोड़ कर अपने हाथों में उसकी दोनो चूचियाँ पकड़ ली.. गर्दन के आसपास चुंबनों की बौच्हर ने धीरे धीरे निशा को मस्त कर दिया..

"चेहरा इधर तो करो!"

जितना हो सकता था.. निशा ने अपनी गर्दन घुमा ली.. राका अपना चेहरा आगे ले जाकर अपनी जीभ से उसके होंटो को चाटने लगा.. निशा भी अपनी जीभ निकाल कर राका की जीभ से खेलने लगी.. जल्द ही खुमारी निशा पर फिर से चढ़ने लगी और वा अपनी गान्ड को आगे पीछे करके राका को अपने इरादों से अवगत करने लगी...

सही समय था.. राका एक बार फिर सीधा हुआ और अपने हाथ फिर से उसकी जांघों पर जमा दिए.. थोड़ा सा ज़ोर और लगाया और लंड अंदर सरक गया.. इश्स बार निशा ने भी दर्द पर काबू करके अपना सहयोग दिया," तुमने तो मुझे सच में ही मार दिया था जान!"

राका इतनी शानदार चीज़ को पाकर बौखला सा गया था.. अब वह बातों पर कम

और काम पर ज़्यादा ध्यान दे रहा था.. धीरे धीरे धक्के लगाते हुए आख़िरकार लंड गर्भाष्या की दीवार से जा टकराया.. निशा आनंद से सराबोर अपना वजूद भूलती जा रही थी..," अया.... आआआह.. धीरे धीरे आगे पिछे करो जान... बहुत मज़ा आ रहा है.. आआआह आआआआअह... निशा ने अपना सिर सीट पर टीका लिया और अपनी गान्ड और उपर उठा ली.. इससे धक्कों की गति बढ़ने लगी... इसके साथ ही दोनो का पागलपन भी.. धक्कों के साथ ही दोनो कुच्छ का कुच्छ बड़बड़ाने लगे....

"सीधी कर लो ना... मैं तुम्हे अपने अंदर आते जाते देखना चाहती हूँ..."

"ओके.." कहकर राका ने लंड बाहर खींच लिया.. और टूट चुकी निशा के सीधे होने में मदद की....

एक बार फिर से लंड अंदर और धक्के शुरू.. निशा अपने अंदर बाहर हो रहे लंड को देखकर और ज़्यादा उत्तेजित हो गयी... बदहवास सी वह अपनी गान्ड को उपर उठा उठा कर गाड़ी में अपेक्षाकृत कम लग रहे धक्कों में तेज़ी लाने की कोशिश करती रही.. राका झुक कर चूचियों को अपने मुँह में भरने की कोशिश करता हुआ धक्के लगाता रहा...

चरम आनंद की तमाम हदें पार करते हुए वो पल आ गया जहाँ दोनों सब कुच्छ भूल गये.. आखरी धक्का लगा कर राका निशा से चिपक गया और उसके रस की बौच्चरें रह रह कर निशा की योनि को अंदर तक आनंद से भरने लगी.. एक अलग ही तरह का गरम अहसास निशा को अपने अंदर होते ही उसने भी जवाब देना शुरू किया और किसी जोंक की तरह राका के बदन से चिपक गयी... काफ़ी देर तक एक दूसरे को चूमते रहने के बाद अचानक निशा को होश आया," अगर बच्चा हो गया तो?"

"उस'से बहुत पहले हम शादी कर लेंगे जान.. तुम सचमुच अनमोल हो.. मेरे लिए!"

निशा की आँखों से खुशी के आँसू छलक उठे.. आख़िरकार उसको मंज़िल जो मिल गयी..

एक दूसरे को सॉफ करने के बाद निशा ने राका से कहा..," मैं आज अपने घर नही जाउन्गि!"

"क्यूँ?"

"मैं तुम्हारे साथ रहूंगी...."

राका ने निशा को एक बार फिर चूम लिया," ठीक है.. तुम अपने होने वाले घर

चलो!"

"क्या वहाँ कोई नही है..?" निशा ने सवाल किया..

"है क्यूँ नही मेरी जान..! मा है.. पापा हैं... भैया भाभी हैं!"

"कुच्छ बोलेंगे तो..?"

"बोलेंगे क्यूँ नही... सभी बोलेंगे.. अपनी होने वाली बहू से!" कहकर राका ने एक बार फिर उसको अपनी बाहों में खींच लिया.....

"नही.... तुम तो सच में जान निकल देते हो..." निशा ने हंसते हुए कहा और राका से चिपक गयी..........


rajaarkey
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Re: गर्ल'स स्कूल

Unread post by rajaarkey » 12 Dec 2014 08:49

गर्ल्स स्कूल पार्ट --29

गौरी आज यूँही बाल्कनी में आ गयी थी. काफ़ी दीनो से उसकी जिंदगी में वीरानी सी छाई थी. उस रात के बाद जब राज शर्मा ने गौरी को संजय के साथ पकड़ लिया था; तब से लेकर आज तक संजय ने कभी उसका हाल जान'ने की कोशिश नही की थी... मोहब्बत की शमा दोनो के बीच जलते जलते रह गयी और गौरी के दिल में अब संजय से नफ़रत की आग ज़ोर पकड़'ने लग गयी थी.. फिर भी पहला प्यार कहते हैं भूलना आसान नही होता.. चाहकर भी गौरी संजय को भूला नही पाई थी.

गौरी के तिलिस्मि यौवन के दीदार से गाँव के लड़के आजकल वंचित ही थे.. स्कूल की छुट्टियाँ चल रही थी इसीलिए उसका बाहर निकलना कोई मजबूरी भी नही था.. ज़्यादातर टाइम वा लिविंग रूम में टी.वी. देखते हुए या फिर अपने बिस्तेर पर लेट कर कभी संजय को कोस'ने और कभी अपनी ही गद्रयि जवानी को देखकर आह भरकर संजय को याद करने में गुज़रता था..

जब तक गौरी संजय से नही मिली थी उसने भी गाँव के लड़कों को खूब तरसया था टाइट और छ्होटे कपड़ों में अपना यौवन छल्का छल्का कर... पर उसका मकसद सिर्फ़ लड़कों को अपनी और देखकर आहें भरते पाकर आत्म्सन्तुस्ति पाना होता था.. संजय पर वो सच में मर मिटी थी और उसके लिए अपना 19 सालों से कुँवारा ही संभाल कर रखा जिस्म बिना कपड़ों के उसके आगोश में समर्पित करने को तैयार भी हो गयी थी.. कितनी बड़ी बड़ी बातें कही थी संजय ने.. पर सुनील से सामने से दूम दबा कर ऐसे गायब हुआ जैसे गधे के सिर से सींग....

अंजलि भी गौरी से ज़्यादा अपनी प्यासी जवानी की चिंता में डूबी रहती थी.. शमशेर उसकी जिंदगी में जो हुलचल मचा कर गया था वो अब तक उसी भंवर में फँसी हुई थी... उसके काम चलाऊ पातिदेव की अब तक जमानत ना हुई थी और राज शर्मा भी

अब पूरा पत्निवरता बन चुका था.. ऐसे में 28 वें साल में चल रही अंजलि की तड़प भी जायज़ ही थी.. आख़िर उसने काम सुख लिया ही कितना था...

खैर उन्न बातों को अब 2 महीने से उपर हो चला था और कुच्छ ही दिन बाद स्कूल भी खुलने वाले थे... आज सुबह सुबह अपने दिल को समझा बुझा कर गौरी बाल्कनी में आकर खड़ी हो गयी... शायद एक नयी तलाश में...

गौरी उस वक़्त बाल्कनी में ही खड़ी थी जब शहरी से दिखने वाले 2 लड़के बाइक पर आकर स्कूल के बाहर रुके.. गौरी ने एक नज़र भर कर दोनो को गौर से देखा.. दोनो ही दिखने में बहुत स्मार्ट और सुन्दर लग रहे थे.. पीछे बैठे लड़के को देख कर गौरी को संजय की याद आ गयी.. लगभग उतने ही डील डौल वाला वो लड़का उस'से कहीं ज़्यादा स्मार्ट था.. तीखे नयन नक्स उसको शरारती लड़के के रूप में प्रचारित कर रहे थे.. हालाँकि दोनो ही लड़के गोरे चिट थे.. पर आगे वाला लड़का भोला सा और लड़कियों के माम'ले में अनाड़ी सा प्रतीत हो रहा था.. निशा रेलिंग पर हाथ रख कर उन्न'पर नज़रें गड़ाए रही.......

"अब घर किस'से पूच्छे यार अमित; यहाँ बाहर कोई नज़र ही नही आ रहा.. कैसा गाँव है..." आगे बैठे लड़के ने बाइक से उतर'ते हुए पिछे वाले लड़के से कहा.. उसका नाम अमित था.

"अबे, शराफ़त के चस्में उतार कर देखेगा तभी तो कोई दिखेगा.. वो देख.. क्या आइटम है यार..!" अमित ने बाल्कनी में खड़ी गौरी की और उंगली उठा कर कहा!

"तुझे तो और कोई काम है ही नही.. जहाँ देखी वहीं शुरू...! किसी घर में चल कर पूछ्ते हैं.." दूसरे लड़के ने अमित को प्यार से झिड़का..

"अबे देवदास की औलाद.. भूल गया खुद किस लिए आया है यहाँ गाँव में.... तेरे साथ मुझे भी खींच लाया.. अब टाइम पास तो मुझे भी चाहिए ना.." अमित की इश्स बात ने दूसरे लड़के को निरुत्तर कर दिया...

"ज़्यादा बकवास मत कर.. वहीं पूच्छना है तो जा.. अकेला ही पूच्छ कर आ.. मैं नही जाउन्गा!"

"देख ले बेटा! मैं तेरे लिए शहर से गाँव आ सकता हूँ और तू मेरे लिए 2 कदम भी नही चल सकता..." अमित ने गौरी पर नज़रें गड़ाए कहा..," देख ली तेरी दोस्ती.. ठीक है बेटा! मैं ही जाता हूँ.."

अमित को अपनी ओर मुस्कुराते हुए आते देख गौरी रेलिंग पर झुक गयी.. लो कट टी-शर्ट में से उसकी दूधियाँ चूचियाँ बाहर सिर निकालने लगी..

"हाई ब्यूटिफुल!" घर के बाहर नीचे आकर खड़े हुए अमित ने गौरी की और शरारतपूर्ण ढंग से हाथ हिलाया..

गौरी बोली तो कुच्छ नही पर उसकी इश्स बेबाक हरकत पर मुस्कुराए बिना ना रह सकी.. अपनी हँसी छिपाने के लिए गौरी ने अपने चेहरे को एक हाथ से छिपा लिया और बिना कुच्छ बोले वहीं खड़ी रही...

"सही कहते हैं.. गाँव की लड़कियों का शहर की लड़कियाँ मुकाबला नही कर सकती. मैं तो गाँव में ही शादी कर्वाउन्गा!" गौरी की हँसी को रज़ामंदी मानते हुए अमित ने धीरे से उस'पर लाइन मारी...

उसकी इश्स बात पर गौरी खिलखिला कर हँसे बिना ना रह सकी... शायद उस रात के बाद गौरी पहली बार हँसी थी...," मैं गाँव की नही हूँ..!"

"ओह शिट! मैं भी यही कहने वाला था.. तुम गाँव की हो ही नही सकती.. तुम्हे देखकर ही दरअसल मेरा विचार बदला था... वैसे तुम्हारा नाम क्या है.. स्वीटी!" आँख मारते हुए अमित ने गौरी से परिचय बढ़ने की कोशिश की..

इश्स हरकत पर गौरी शर्मा गयी और अंदर भाग गयी..

"ओये.. सुन तो!.. सोणिये अड्रेस तो बताती जा एक!....."

गौरी के वापिस ना आने पर अमित अपना सा मुँह लेकर वापिस आ गया..

"कहाँ बताया घर..." दूसरे लड़के ने उत्सुकता से पूचछा..

"कहाँ बताया यार.. उसने तो अपना नाम भी नही बताया.." बॅग से लेज़ का पॅकेट निकलते हुए अमित ने कहा और बाइक की सीट पर बैठ गया..

"यार तू भी ना.. घर पूच्छने गया था या नाम पूच्छने.. "

"अबे साले.. नाम बता देती तो फिर तो कुच्छ भी बता देती.. मैने सोचा स्टेप वाइज़ चलना चाहिए... पर यार... लड़की क्या है.. कयामत है कयामत.. उपर से नीचे तक गरमा गरम.. चल उसी घर में जाकर फिर पूछ्ते हैं..."

"अब तू मेरा और ज़्यादा दिमाग़ खराब ना कर.. मैं ही पूच्छ कर आता हून कहीं..." दूसरे लड़के ने कहा और दूर एक घर के बाहर बैठे आदमी को देख कर उस ओर चल पड़ा...


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