गर्ल'स स्कूल compleet

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rajaarkey
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Re: गर्ल'स स्कूल

Unread post by rajaarkey » 12 Dec 2014 09:31

गर्ल्स स्कूल पार्ट --54

बस ने मोहन नगर टी-जंक्षन से दायें मुड़कर गाज़ियाबाद ट्रॅफिक लाइट की और हाइवे नंबर. 24 की और बायें टर्न लिया....

" मानसी.. तू मनु को अपने पास बुला ले ना.. मैं पिछे चली जाती हूँ..!" जल भुन कर रख हो गयी वाणी ने अपने साथ बैठी मानसी से कहा...

" क्यूँ क्या हुआ..?" मानसी को वाणी की बात अटपटी सी लगी.. उसने पीछे मुड़कर मनु को देखा.. वाणी की नज़रों की भाषा समझ कर मनु की हालत ऐसी हो गयी थी जैसे बिना जहर वाले साँप को किसी ने बिल में घुसते देख उसकी पूंच्छ से पकड़ लिया हो.. शकल तो उसकी शरीफ पहले ही थी..

" क्यूँ कह रही है तू ऐसा.. क्या हुआ.. बताओ ना..?" मानसी ने फिर से वाणी पर नज़रें जमाकर कहा...

" कुच्छ नही.. बस तू उसको यहाँ बुला ले.. अगर मेरी बात माननी है तो.." कहकर वाणी उठकर पिच्छली सीट पर चली गयी.. वहाँ दिव्या अकेली बैठी हुई थी...

कुच्छ देर सोचने के बाद मानसी ने मनु को आवाज़ दी," भैया.. इधर आना.."

" ले मैं कह रहा था ना सा.. तू मेरी बॅंड बजवाएगा.. बाजवा दी ना.." बड़बड़ाता हुआ मनु वहाँ से उठकर अँगारे बरसाती हुई वाणी से महज एक सेकेंड के लिए नज़रे मिलाता हुआ मानसी के पास जा बैठा..," क्या हुआ मानी?"

" कुच्छ नही.. आप यहीं बैठे रहो.. बस!" मानसी ने धीरे से मनु से कहा..

" आख़िर कुच्छ हुआ भी होगा? मैं वहाँ ठीक तो बैठा था.. आराम से.. मैं तो कुच्छ बोल भी नही रहा था किसी से..!" मनु ने ये सफाई मानसी को नही बुल्की उसके पिछे बैठकर उसकी शर्ट खींच रही वाणी को देनी ज़रूरी समझी...

"वाणी खाँसी तो मनु ने पिछे मुड़कर देखा.. वाणी उसकी और आँखें निकाले हुए दाँत पीस रही थी.. बेचारा मनु मन मार कर रह गया.. ये टाइम उस'से ज़्यादा खुलकर सफाई देने का था भी तो नही...

" मैं वापस जाउ?" मनु की एक आँख मानसी पर और दूसरी वाणी पर थी..

मानसी ने पिछे मुड़कर वाणी को देखा.....

" मेरी तरफ क्यूँ देख रही हो.. मेरी तरफ से तो चाहे कोई भाड़ में जाए.. मुझे क्या..?" वाणी अब भी उसकी शर्ट को पकड़ कर खींचे हुए थी...

"ठीक है.. मैं यहीं बैठ जाता हूँ.. वैसे भी पीछे नही बैठना चाह रहा मैं..." और बेचारा मनु.....

-------------------------------------------

विकी काफ़ी देर से शमशेर को कुच्छ कहने का सोच रहा था.. पर वासू के पास 3 घंटे से ज़्यादा बैठने के बाद उसको ऐसा लग रहा था जैसे किसी आश्रम में बैठा हो... उसके प्रवचन सुन सुन कर उसके कान पक गये थे... आख़िरकार उस'से रहा ना गया..," शमशेर भाई.. एक मिनिट पिछे आओगे..!"

" हां.. बता ना.. क्या बात है? यहीं बोल दे...!" शमशेर ने पिछे घूमते हुए कहा...

" नही यार.. एक बार पिछे आ जा...!"

"चल!" शमशेर खड़ा हो गया और दोनो जाकर बस की पिच्छली सीटो पर बैठ गये..," क्या बात है..?"

" बात क्या है यार.. तुमने सुना नही क्या?" ये कैसे कैसे अध्यापक.. ओह माइ गॉड! मैं भी उसकी भाषा बोलने लग गया.. ये कैसे टीचर को साथ ले आया तू भी.. लगता है जैसे मौज मस्ती के लिए नही.. तीर्थ यात्रा पर जा रहे हों... सारे.. तीर्थ.. सारे श्लोक.. सारे मन्त्र.. मुझे सुना दिए इसने.. कुच्छ कुच्छ तो मुझे याद हो भी गया.. सुनाऊं.. ओम विश्वाणी देव: सवीतूर, दुरीतानी परा शुव: यद भद्रम आसुव:...."

" यार ये क्या पागलपन है.. मुझे क्यूँ सुना रहा है ये सब.. बात क्या है.. वो बता ना..." शमशेर ने हंसते हुए कहा..

" देख ले.. तुझसे एक छन भी नही सुना गया.. तू सोच.. मैने पूरे हवन के मन्त्र कैसे झेले होंगे यार.. कैसे झेला होगा इस.. इसको 3 घंटे से ज़्यादा..." विकी ने बेचारा सा मुँह बनाते हुए कहा," अच्च्छा भला.. स्नेहा के पास बैठ रहा था.. वहाँ से भी मना कर दिया.." विकी रो तो नही रहा था.. पर हालत उस'से भी कहीं ज़्यादा गयी गुज़री थी.....

" तो क्या करना है.. स्नेहा के साथ बैठना है अभी...!" शमशेर ने मतलब की बात पर आते हुए कहा...

" नही भाई... अब.. स्नेहा के पास बैठने से भी क्या होगा.. इस कम्बख़त ने तो बातों ही बातों में मेरी इज़्ज़त सी लूट ली है.. मुझे कुच्छ भी याद नही.. सिवाय उसके प्रवचनो के..!" विकी का बुरा हाल था...

" हा हा हा हा.. नही यार.. वो मस्त आदमी है.. बस बातें कुच्छ ज़्यादा करता है.. तू बता.. क्या चाहिए तुझे अब..?" शमशेर हँसना तो और भी चाहता था.. पर विकी की रोनी सूरत देख कर उसको रहम आ गया...

" दारू! दारू चाहिए भाई.. अभी के अभी.. वरना मैं पागल हो जाउन्गा..!"

" यहाँ तो ठीक नही है विकी.. समझा कर...!" शमशेर ने उसको समझाने की कोशिश की..

" तो ऐसा करो.. मुझे यहीं उतार दो.. मैं वापस चला जवँगा.. ये उपकार तो कर ही सकते हो.. मेरे भाई.." विकी की शकल सच में ही देखने लायक थी...

" चल.. मैं देखता हूँ.. थोड़ा आगे चलकर खाना खाएँगे.. तब देखते हैं.. ओके?"

"कितनी दूर और चलना पड़ेगा...?" विकी के चेहरे पर हल्की सी रौनक लौट आई..

" यहाँ से बाबुगारह करीब 15 काइलामीटर और है.. वहाँ से 50 काइलामीटर है गजरौला.. वहाँ पर खाएँगे......" शमशेर ने उसको थपकी देते हुए कहा...

"ठीक है भाई.. पर मैं वापस उसके पास नही जाउन्गा.. यहीं बैठा रहूँगा तब तक...." विकी ने मुरझाए हुए चेहरे से कहा..

" तू चल ना यार.. आ.. मैं स्नेहा को तेरे साथ बैठवाने का जुगाड़ करता हूँ.. दिशा से कहकर.... आजा!"

"आ रिया! देख ना, राज स्लीवलेशस टी-शर्ट में कितना क्यूट लग रहा है!" प्रिया ने नज़रें घूमाकर एक बार फिर से राज पर निगाह डाली...

" और वीरू? वो जाग रहा है क्या?" रिया ने पिछे नही देखा.. बस उसी से पूच्छ लिया..

"हूंम्म.. मुझसे क्यूँ पूच्छ रही है.. तुझे आँखें नही दी क्या भगवान ने?" प्रिया ने चटखारे लेते हुए कहा...

" मुझे नही देखना उसको! मचकर्चॅड!" रिया ने कहते हुए अपनी आँखें बंद कर ली.. कहीं आँखों से उसके दिल की बात ना पता चल जाए..

" उम्म? क्या बोला तूने? मचकर्चॅड? हा हा हा!" प्रिया पिछे मुड़कर वीरू के चेहरे पर उग्ग रही हुल्की मूँछहों पर गौर करते हुए हंस पड़ी.. वीरू ने एक पल को उस'से नज़रें मिलाई और फिर अपना चेहरा दूसरी और कर लिया..

" और क्या? जब ये मुझसे बात नही करता तो दिल करता है अपने नाखूनओ से इसकी मून्छे उखाड़ डालूं.. पता नही क्या समझता है अपने आपको.. तूने भी तो प्रोमिस किया था ना.. मेरे लिए बात करेगी.. अब तो भूल गयी होगी तू.. तेरा काम तो बन ही गया है..." रिया ने मुँह फुलाते हुए कहा..

" नही यार.. ऐसी बात नही है... तेरी तरह मुझे भी उस'से बात करते हुए डर लगता है.. पर मैं राज को बोलकर देखूँगी.. मौका मिलने दे..!" प्रिया ने रिया को शंतवना दी..

" देख ले.. तेरी मर्ज़ी है.. वरना मैने तो ऐसा प्लान सोच रखा है कि बस.. बाद में मुझे मत कहना ये क्या कर दिया...!" रिया ने भी उसको अलटिमेटम दे डाला..

" क्या? ऐसा क्या करेगी तू?" प्रिया ने संभावित आसचर्या में पहले ही अपना मुँह खोल लिया...

" वो तो बस तभी पता चलेगा.. अगर तूने उसके मुझसे ढंग से बात करने के लिए राज़ी नही किया तो.. अब तू देख ले..." रिया ने राज को राज ही रखा..

" देख रिया.. कुच्छ उल्टा सीधा करने की मत सोचना.. मैं कह रही हूँ ना.. मैं बात करूँगी..... आ.. वो देख.. स्नेहा विकी वाली सीट पर चली गयी.. हाए.. काश! मैं भी राज के साथ बैठ सकती..." प्रिया ने बोलते बोलते अचानक रिया का ध्यान आगे की और खींचा..

" और देख.. वो 'सर' उस लड़की के साथ बैठ गये.. उनका भी कुच्छ चक्कर है क्या?" रिया ने वासू की और इशारा किया...

" धात! पागल.. अब स्नेहा उसकी सीट पर जाएगी तो वो क्या वहीं बैठे रहेंगे.. इसीलिए नीरू के पास जाकर बैठ गये होंगे.. 'वो' तो 'सर' हैं उसके!" प्रिया ने रिया के मन का 'मैल' निकालने की कोशिश की...

" बेशक सर हों.. पर तू चाहे शर्त लगा ले.. कुच्छ ना कुच्छ बात ज़रूर है.. अभी देखा नही तूने.. दोनो एक दूसरे से नज़रें मिलकर कैसे खिल उठे थे.. हां.. कुच्छ ना कुच्छ चक्कर ज़रूर मिलगे इनका भी!" रिया अपनी बात पर अड़ गयी..

"चल ना.. तू तो पागल है.. अब चुप कर ये बातें.. कोई सुन लेगा!" कहते हुए प्रिया ने एक बार और राज को और वीरू की 'मूँछहों' को देखा और सीधी बैठ गयी...

--------------------------------

"तुम ठीक तो हो ना.. नीरू! उल्टियाँ वग़ैरह तो नही आने वाली हैं ना...!" अपने वासू ने क्या टॉपिक ढूँढा था.. बात शुरू करने के लिए.. वा!

नीरू ने गर्दन नीचे करके अपना सिर 'ना' में हिला दिया.. वासू की जांघें उसकी जांघों के साथ सटा'ते ही उसके बदन में वासनात्मक सुगबुगाहट सी शुरू हो गयी थी... इस 'मस्ती' को और बढ़ाने के लिए उसने अपनी जांघें थोड़ी सी खोल कर वासू से और ज़्यादा चिपका दी...

" श.. क्षमा करना! मैने जान-बूझ कर ऐसा नही किया.." कहते हुए वासू ने सरकते हुए अपने को नीरू से थोड़ा अलग कर लिया.. उस लल्लू को ये लगा की नीरू का भरी बस में उसके साथ साथ कर बैठना अच्च्छा नही लगा होगा...

बेचारी नीरू क्या बोलती! खून का घूँट पीकर रह गयी.. अब ऐसे 'दिलजले' से यारी की है तो भुगतना तो पड़ेगा ही..

-----------------------------------------

"थॅंक्स विकी!" स्नेहा ने चुपके से विकी के कान में कहते हुए अपना सिर उसके कंधे पर टीका दिया...

विकी ने अपना हाथ स्नेहा की गर्दन के पिछे से ले जाते हुए दूसरी तरफ उसके कंधे पर रख लिया..

" तुम मुझसे अभी भी प्यार करती हो ना.. सानू!" विकी ने हौले से ये बात स्नेहा के कान में कहकर उसको अंदर तक गुदगुदा दिया..

" पता नही.." कहकर स्नेहा ने उसको कोहनी मारी..

" बता ना.. मैं सीरियस्ली पूच्छ रहा हूँ.." विकी ने फिर से उसके कान में कहा..

" सीरियस्ली?" स्नेहा ने सवाल किया..

" हां.. यार सीरियस्ली.."

स्नेहा ने अपना चेहरा थोड़ा सा उपर उठाया और उसके कान के पास अपने होंठ ले गयी..," मेरा 'प्यार' करने का बहुत दिल कर रहा है.. मैं मरी जा रही हूँ.. तुम्हारी बाहों में आने के लिए.. कब पहुँचेंगे नैनीताल?"

विकी को जवाब मिल गया.. वा और उसका दिल, दोनो झूम उठे..," थॅंक्स सानू! मैं भी तुम्हारे लिए अब उतना ही तड़प रहा हून.." कहते हुए विकी ने स्नेहा के कंधे को दबाकर अपने से सटा लिया..

" मैं.. तुम्हारी गोद में सिर रख लूँ..?" स्नेहा ने अपनी गरम साँसें विकी के कानो के पास छ्चोड़ी तो विकी का 'सब कुच्छ' अकड़ गया..

" यहाँ? अभी? सबके सामने? सबको अजीब नही लगेगा क्या?"

" लगने दो.. यहाँ मुझे कौन जानता है.. और जो जानते हैं.. उनका पता ही है कि मैं तुम्हारी ही हूँ.. क्या फ़र्क़ पड़ता है..?" स्नेहा उसके थोड़ा और करीब आकर बोली..

" ठीक है.. आ जाओ.. मुझे भी कोई प्राब्लम नही है..?" विकी ने उस'से थोड़ा दूर हटकर स्नेहा के उसकी गोद में सिर रखने का रास्ता सॉफ कर दिया..

स्नेहा ने एक पल को झिझकते हुए अपने बायें देखा और फिर आँखें बंद करके विकी की गोद में सिर टीका दिया...

पर उनको देखने की फ़ुर्सत किसके पास थी.. सब या तो 'अपने अपनों' पर नज़र रखे हुए थे या फिर सो चुके थे... सिवाय आरज़ू को छ्चोड़कर.. उसका कोई ऐसा 'अपना' तो बस में था नही.. और नींद उसकी उड़ा ही दी थी.. अमित ने.. 'बंदर और कुतिया' वाली बात कहकर.. जाने अंजाने.. काफ़ी देर तक उसका ध्यान इसी बात पर टीका रहा.. और जब उस बात से ध्यान हटा तो 'विकी' पर आकर टिक गया...

विकी और स्नेहा की चुहलबाज़ियाँ उसके तन-मन में गुदगुदी सी पैदा कर रही थी.. और जैसे ही स्नेहा झुक कर विकी की गोद में लेटी.. 'कल्पना शक्ति' की डोर उसको विकी की जांघों के बीच ले गयी..और अनायास ही उसकी जांघें कसकर एक दूसरी से सॅट गयी.. जाने कैसा अहसास था.. पर जो भी था.. आरज़ू के चेहरे पर बड़े ही कामुक भाव उजागर हो गये.. 'इस्स्श्ह्ह'

" ये क्या है? तुम तो अभी से तैयार हो?" स्नेहा ने जैसे ही विकी की गोद में सिर रखा.. एक 'जानी-पहचानी 'चीज़' उसके गालों से आकर सॅट गयी.. वो कहते हुए शरारत से मुस्कुरा पड़ी..

विकी कुच्छ नही बोला.. बस मुस्कुराया और उसके चेहरे पर प्यार से हाथ फेरने लगा...

" मुझे नही पता.. मुझे सिर रखने में दिक्कत हो रही है.. इसको ठीक करो पहले.." स्नेहा ने शरारती तरीके से अपने गाल और उस 'चीज़' के बीच अपना हाथ रखते हुए धीरे से कहा.. हाथ का स्पर्श जीन के उपर से पाते ही 'वो' और भी अकड़ गया.. और भी सीधा हो गया.. और भी लंबा..

" देखो.. मैं पहले ही बोल रही हूँ... वरना...!" स्नेहा ने जैसे कुच्छ ठान ही लिया था..

"मैं क्या करूँ.. अयाया" बोलते बोलते विकी की सिसकी निकल गयी.. स्नेहा ने अपने दाँतों से जीन का वो उभरा हुआ भाग काट खाया था..

विकी की सिसकी सुनकर स्नेहा की हँसी छ्छूट गयी.. वो कहते हैं ना.. 'चोरी चोरी प्यार में है जो मज़ा!'

गर्ल'स स्कूल--55

बस ने मोहन नगर टी-जंक्षन से दायें मुड़कर गाज़ियाबाद ट्रॅफिक लाइट की और हाइवे नंबर. 24 की और बायें टर्न लिया....

" मानसी.. तू मनु को अपने पास बुला ले ना.. मैं पिछे चली जाती हूँ..!" जल भुन कर रख हो गयी वाणी ने अपने साथ बैठी मानसी से कहा...

" क्यूँ क्या हुआ..?" मानसी को वाणी की बात अटपटी सी लगी.. उसने पीछे मुड़कर मनु को देखा.. वाणी की नज़रों की भाषा समझ कर मनु की हालत ऐसी हो गयी थी जैसे बिना जहर वाले साँप को किसी ने बिल में घुसते देख उसकी पूंच्छ से पकड़ लिया हो.. शकल तो उसकी शरीफ पहले ही थी..

" क्यूँ कह रही है तू ऐसा.. क्या हुआ.. बताओ ना..?" मानसी ने फिर से वाणी पर नज़रें जमाकर कहा...

" कुच्छ नही.. बस तू उसको यहाँ बुला ले.. अगर मेरी बात माननी है तो.." कहकर वाणी उठकर पिच्छली सीट पर चली गयी.. वहाँ दिव्या अकेली बैठी हुई थी...

कुच्छ देर सोचने के बाद मानसी ने मनु को आवाज़ दी," भैया.. इधर आना.."

" ले मैं कह रहा था ना सा.. तू मेरी बॅंड बजवाएगा.. बाजवा दी ना.." बड़बड़ाता हुआ मनु वहाँ से उठकर अँगारे बरसाती हुई वाणी से महज एक सेकेंड के लिए नज़रे मिलाता हुआ मानसी के पास जा बैठा..," क्या हुआ मानी?"

" कुच्छ नही.. आप यहीं बैठे रहो.. बस!" मानसी ने धीरे से मनु से कहा..

" आख़िर कुच्छ हुआ भी होगा? मैं वहाँ ठीक तो बैठा था.. आराम से.. मैं तो कुच्छ बोल भी नही रहा था किसी से..!" मनु ने ये सफाई मानसी को नही बुल्की उसके पिछे बैठकर उसकी शर्ट खींच रही वाणी को देनी ज़रूरी समझी...

"वाणी खाँसी तो मनु ने पिछे मुड़कर देखा.. वाणी उसकी और आँखें निकाले हुए दाँत पीस रही थी.. बेचारा मनु मन मार कर रह गया.. ये टाइम उस'से ज़्यादा खुलकर सफाई देने का था भी तो नही...

" मैं वापस जाउ?" मनु की एक आँख मानसी पर और दूसरी वाणी पर थी..

मानसी ने पिछे मुड़कर वाणी को देखा.....

" मेरी तरफ क्यूँ देख रही हो.. मेरी तरफ से तो चाहे कोई भाड़ में जाए.. मुझे क्या..?" वाणी अब भी उसकी शर्ट को पकड़ कर खींचे हुए थी...

"ठीक है.. मैं यहीं बैठ जाता हूँ.. वैसे भी पीछे नही बैठना चाह रहा मैं..." और बेचारा मनु.....

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विकी काफ़ी देर से शमशेर को कुच्छ कहने का सोच रहा था.. पर वासू के पास 3 घंटे से ज़्यादा बैठने के बाद उसको ऐसा लग रहा था जैसे किसी आश्रम में बैठा हो... उसके प्रवचन सुन सुन कर उसके कान पक गये थे... आख़िरकार उस'से रहा ना गया..," शमशेर भाई.. एक मिनिट पिछे आओगे..!"

" हां.. बता ना.. क्या बात है? यहीं बोल दे...!" शमशेर ने पिछे घूमते हुए कहा...

" नही यार.. एक बार पिछे आ जा...!"

"चल!" शमशेर खड़ा हो गया और दोनो जाकर बस की पिच्छली सीटो पर बैठ गये..," क्या बात है..?"

" बात क्या है यार.. तुमने सुना नही क्या?" ये कैसे कैसे अध्यापक.. ओह माइ गॉड! मैं भी उसकी भाषा बोलने लग गया.. ये कैसे टीचर को साथ ले आया तू भी.. लगता है जैसे मौज मस्ती के लिए नही.. तीर्थ यात्रा पर जा रहे हों... सारे.. तीर्थ.. सारे श्लोक.. सारे मन्त्र.. मुझे सुना दिए इसने.. कुच्छ कुच्छ तो मुझे याद हो भी गया.. सुनाऊं.. ओम विश्वाणी देव: सवीतूर, दुरीतानी परा शुव: यद भद्रम आसुव:...."

" यार ये क्या पागलपन है.. मुझे क्यूँ सुना रहा है ये सब.. बात क्या है.. वो बता ना..." शमशेर ने हंसते हुए कहा..

" देख ले.. तुझसे एक छन भी नही सुना गया.. तू सोच.. मैने पूरे हवन के मन्त्र कैसे झेले होंगे यार.. कैसे झेला होगा इस.. इसको 3 घंटे से ज़्यादा..." विकी ने बेचारा सा मुँह बनाते हुए कहा," अच्च्छा भला.. स्नेहा के पास बैठ रहा था.. वहाँ से भी मना कर दिया.." विकी रो तो नही रहा था.. पर हालत उस'से भी कहीं ज़्यादा गयी गुज़री थी.....

" तो क्या करना है.. स्नेहा के साथ बैठना है अभी...!" शमशेर ने मतलब की बात पर आते हुए कहा...

" नही भाई... अब.. स्नेहा के पास बैठने से भी क्या होगा.. इस कम्बख़त ने तो बातों ही बातों में मेरी इज़्ज़त सी लूट ली है.. मुझे कुच्छ भी याद नही.. सिवाय उसके प्रवचनो के..!" विकी का बुरा हाल था...

" हा हा हा हा.. नही यार.. वो मस्त आदमी है.. बस बातें कुच्छ ज़्यादा करता है.. तू बता.. क्या चाहिए तुझे अब..?" शमशेर हँसना तो और भी चाहता था.. पर विकी की रोनी सूरत देख कर उसको रहम आ गया...

" दारू! दारू चाहिए भाई.. अभी के अभी.. वरना मैं पागल हो जाउन्गा..!"

" यहाँ तो ठीक नही है विकी.. समझा कर...!" शमशेर ने उसको समझाने की कोशिश की..

" तो ऐसा करो.. मुझे यहीं उतार दो.. मैं वापस चला जवँगा.. ये उपकार तो कर ही सकते हो.. मेरे भाई.." विकी की शकल सच में ही देखने लायक थी...

" चल.. मैं देखता हूँ.. थोड़ा आगे चलकर खाना खाएँगे.. तब देखते हैं.. ओके?"

"कितनी दूर और चलना पड़ेगा...?" विकी के चेहरे पर हल्की सी रौनक लौट आई..

" यहाँ से बाबुगारह करीब 15 काइलामीटर और है.. वहाँ से 50 काइलामीटर है गजरौला.. वहाँ पर खाएँगे......" शमशेर ने उसको थपकी देते हुए कहा...

"ठीक है भाई.. पर मैं वापस उसके पास नही जाउन्गा.. यहीं बैठा रहूँगा तब तक...." विकी ने मुरझाए हुए चेहरे से कहा..

" तू चल ना यार.. आ.. मैं स्नेहा को तेरे साथ बैठवाने का जुगाड़ करता हूँ.. दिशा से कहकर.... आजा!"

"आ रिया! देख ना, राज स्लीवलेशस टी-शर्ट में कितना क्यूट लग रहा है!" प्रिया ने नज़रें घूमाकर एक बार फिर से राज पर निगाह डाली...

" और वीरू? वो जाग रहा है क्या?" रिया ने पिछे नही देखा.. बस उसी से पूच्छ लिया..

"हूंम्म.. मुझसे क्यूँ पूच्छ रही है.. तुझे आँखें नही दी क्या भगवान ने?" प्रिया ने चटखारे लेते हुए कहा...

" मुझे नही देखना उसको! मचकर्चॅड!" रिया ने कहते हुए अपनी आँखें बंद कर ली.. कहीं आँखों से उसके दिल की बात ना पता चल जाए..

" उम्म? क्या बोला तूने? मचकर्चॅड? हा हा हा!" प्रिया पिछे मुड़कर वीरू के चेहरे पर उग्ग रही हुल्की मूँछहों पर गौर करते हुए हंस पड़ी.. वीरू ने एक पल को उस'से नज़रें मिलाई और फिर अपना चेहरा दूसरी और कर लिया..

" और क्या? जब ये मुझसे बात नही करता तो दिल करता है अपने नाखूनओ से इसकी मून्छे उखाड़ डालूं.. पता नही क्या समझता है अपने आपको.. तूने भी तो प्रोमिस किया था ना.. मेरे लिए बात करेगी.. अब तो भूल गयी होगी तू.. तेरा काम तो बन ही गया है..." रिया ने मुँह फुलाते हुए कहा..

" नही यार.. ऐसी बात नही है... तेरी तरह मुझे भी उस'से बात करते हुए डर लगता है.. पर मैं राज को बोलकर देखूँगी.. मौका मिलने दे..!" प्रिया ने रिया को शंतवना दी..

" देख ले.. तेरी मर्ज़ी है.. वरना मैने तो ऐसा प्लान सोच रखा है कि बस.. बाद में मुझे मत कहना ये क्या कर दिया...!" रिया ने भी उसको अलटिमेटम दे डाला..

" क्या? ऐसा क्या करेगी तू?" प्रिया ने संभावित आसचर्या में पहले ही अपना मुँह खोल लिया...

" वो तो बस तभी पता चलेगा.. अगर तूने उसके मुझसे ढंग से बात करने के लिए राज़ी नही किया तो.. अब तू देख ले..." रिया ने राज को राज ही रखा..

" देख रिया.. कुच्छ उल्टा सीधा करने की मत सोचना.. मैं कह रही हूँ ना.. मैं बात करूँगी..... आ.. वो देख.. स्नेहा विकी वाली सीट पर चली गयी.. हाए.. काश! मैं भी राज के साथ बैठ सकती..." प्रिया ने बोलते बोलते अचानक रिया का ध्यान आगे की और खींचा..

" और देख.. वो 'सर' उस लड़की के साथ बैठ गये.. उनका भी कुच्छ चक्कर है क्या?" रिया ने वासू की और इशारा किया...

" धात! पागल.. अब स्नेहा उसकी सीट पर जाएगी तो वो क्या वहीं बैठे रहेंगे.. इसीलिए नीरू के पास जाकर बैठ गये होंगे.. 'वो' तो 'सर' हैं उसके!" प्रिया ने रिया के मन का 'मैल' निकालने की कोशिश की...

" बेशक सर हों.. पर तू चाहे शर्त लगा ले.. कुच्छ ना कुच्छ बात ज़रूर है.. अभी देखा नही तूने.. दोनो एक दूसरे से नज़रें मिलकर कैसे खिल उठे थे.. हां.. कुच्छ ना कुच्छ चक्कर ज़रूर मिलगे इनका भी!" रिया अपनी बात पर अड़ गयी..

"चल ना.. तू तो पागल है.. अब चुप कर ये बातें.. कोई सुन लेगा!" कहते हुए प्रिया ने एक बार और राज को और वीरू की 'मूँछहों' को देखा और सीधी बैठ गयी...

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"तुम ठीक तो हो ना.. नीरू! उल्टियाँ वग़ैरह तो नही आने वाली हैं ना...!" अपने वासू ने क्या टॉपिक ढूँढा था.. बात शुरू करने के लिए.. वा!

नीरू ने गर्दन नीचे करके अपना सिर 'ना' में हिला दिया.. वासू की जांघें उसकी जांघों के साथ सटा'ते ही उसके बदन में वासनात्मक सुगबुगाहट सी शुरू हो गयी थी... इस 'मस्ती' को और बढ़ाने के लिए उसने अपनी जांघें थोड़ी सी खोल कर वासू से और ज़्यादा चिपका दी...

" श.. क्षमा करना! मैने जान-बूझ कर ऐसा नही किया.." कहते हुए वासू ने सरकते हुए अपने को नीरू से थोड़ा अलग कर लिया.. उस लल्लू को ये लगा की नीरू का भरी बस में उसके साथ साथ कर बैठना अच्च्छा नही लगा होगा...

बेचारी नीरू क्या बोलती! खून का घूँट पीकर रह गयी.. अब ऐसे 'दिलजले' से यारी की है तो भुगतना तो पड़ेगा ही..

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"थॅंक्स विकी!" स्नेहा ने चुपके से विकी के कान में कहते हुए अपना सिर उसके कंधे पर टीका दिया...

विकी ने अपना हाथ स्नेहा की गर्दन के पिछे से ले जाते हुए दूसरी तरफ उसके कंधे पर रख लिया..

" तुम मुझसे अभी भी प्यार करती हो ना.. सानू!" विकी ने हौले से ये बात स्नेहा के कान में कहकर उसको अंदर तक गुदगुदा दिया..

" पता नही.." कहकर स्नेहा ने उसको कोहनी मारी..

" बता ना.. मैं सीरियस्ली पूच्छ रहा हूँ.." विकी ने फिर से उसके कान में कहा..

" सीरियस्ली?" स्नेहा ने सवाल किया..

" हां.. यार सीरियस्ली.."

स्नेहा ने अपना चेहरा थोड़ा सा उपर उठाया और उसके कान के पास अपने होंठ ले गयी..," मेरा 'प्यार' करने का बहुत दिल कर रहा है.. मैं मरी जा रही हूँ.. तुम्हारी बाहों में आने के लिए.. कब पहुँचेंगे नैनीताल?"

विकी को जवाब मिल गया.. वा और उसका दिल, दोनो झूम उठे..," थॅंक्स सानू! मैं भी तुम्हारे लिए अब उतना ही तड़प रहा हून.." कहते हुए विकी ने स्नेहा के कंधे को दबाकर अपने से सटा लिया..

" मैं.. तुम्हारी गोद में सिर रख लूँ..?" स्नेहा ने अपनी गरम साँसें विकी के कानो के पास छ्चोड़ी तो विकी का 'सब कुच्छ' अकड़ गया..

" यहाँ? अभी? सबके सामने? सबको अजीब नही लगेगा क्या?"

" लगने दो.. यहाँ मुझे कौन जानता है.. और जो जानते हैं.. उनका पता ही है कि मैं तुम्हारी ही हूँ.. क्या फ़र्क़ पड़ता है..?" स्नेहा उसके थोड़ा और करीब आकर बोली..

" ठीक है.. आ जाओ.. मुझे भी कोई प्राब्लम नही है..?" विकी ने उस'से थोड़ा दूर हटकर स्नेहा के उसकी गोद में सिर रखने का रास्ता सॉफ कर दिया..

स्नेहा ने एक पल को झिझकते हुए अपने बायें देखा और फिर आँखें बंद करके विकी की गोद में सिर टीका दिया...

पर उनको देखने की फ़ुर्सत किसके पास थी.. सब या तो 'अपने अपनों' पर नज़र रखे हुए थे या फिर सो चुके थे... सिवाय आरज़ू को छ्चोड़कर.. उसका कोई ऐसा 'अपना' तो बस में था नही.. और नींद उसकी उड़ा ही दी थी.. अमित ने.. 'बंदर और कुतिया' वाली बात कहकर.. जाने अंजाने.. काफ़ी देर तक उसका ध्यान इसी बात पर टीका रहा.. और जब उस बात से ध्यान हटा तो 'विकी' पर आकर टिक गया...

विकी और स्नेहा की चुहलबाज़ियाँ उसके तन-मन में गुदगुदी सी पैदा कर रही थी.. और जैसे ही स्नेहा झुक कर विकी की गोद में लेटी.. 'कल्पना शक्ति' की डोर उसको विकी की जांघों के बीच ले गयी..और अनायास ही उसकी जांघें कसकर एक दूसरी से सॅट गयी.. जाने कैसा अहसास था.. पर जो भी था.. आरज़ू के चेहरे पर बड़े ही कामुक भाव उजागर हो गये.. 'इस्स्श्ह्ह'

" ये क्या है? तुम तो अभी से तैयार हो?" स्नेहा ने जैसे ही विकी की गोद में सिर रखा.. एक 'जानी-पहचानी 'चीज़' उसके गालों से आकर सॅट गयी.. वो कहते हुए शरारत से मुस्कुरा पड़ी..

विकी कुच्छ नही बोला.. बस मुस्कुराया और उसके चेहरे पर प्यार से हाथ फेरने लगा...

" मुझे नही पता.. मुझे सिर रखने में दिक्कत हो रही है.. इसको ठीक करो पहले.." स्नेहा ने शरारती तरीके से अपने गाल और उस 'चीज़' के बीच अपना हाथ रखते हुए धीरे से कहा.. हाथ का स्पर्श जीन के उपर से पाते ही 'वो' और भी अकड़ गया.. और भी सीधा हो गया.. और भी लंबा..

" देखो.. मैं पहले ही बोल रही हूँ... वरना...!" स्नेहा ने जैसे कुच्छ ठान ही लिया था..

"मैं क्या करूँ.. अयाया" बोलते बोलते विकी की सिसकी निकल गयी.. स्नेहा ने अपने दाँतों से जीन का वो उभरा हुआ भाग काट खाया था..

विकी की सिसकी सुनकर स्नेहा की हँसी छ्छूट गयी.. वो कहते हैं ना.. 'चोरी चोरी प्यार में है जो मज़ा!'


rajaarkey
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Re: गर्ल'स स्कूल

Unread post by rajaarkey » 12 Dec 2014 09:32

गर्ल्स स्कूल पार्ट --55

"आ.. ये क्या.. सबको पता चल जाएगा.." विकी ने सिसक'ते हुए झुक कर धीरे से कहा...

" अच्च्छा.. अब नही करूँगी.. पर बाद में तुम्हे छ्चोड़ूँगी नही.. देख लेना!" स्नेहा ने विकी की आँखों में झँकते हुए शरारत से अपनी आँखें मत्कायि.. और नीचे ही नीचे अपने हाथों से 'उस' को सहलाने लगी.. विकी पर प्यार करने की खुमारी चढ़ती जा रही थी...

आरज़ू बड़े गौर से पल पल बदलते विकी के चेहरे के भावों को देख रही थी.. उसको पूरा यकीन था की नीचे 'कुच्छ' ना 'कुच्छ' हो रहा है...

" सोना! तूने कुच्छ देखा क्या?" आरज़ू सोनिया के कान में फुसफुसाई..

" क्या?" सोने की तैयारी कर रही सोनिया ने आरज़ू के चेहरे की और देखते हुए कहा..

" मेरी तरफ क्या देख रही है? उधर देख.. सामने!" आरज़ू ने सोनिया को कोहनी मारी..

सोनिया ने बस में आगे की तरफ नज़रें दौड़ाई, पर उसकी नज़रें वो नही देख पाई जो आरज़ू देख रही थी.. या फिर देख कर भी समझ नही पाई," क्या देखूं?"

" अरे.. वो लड़की.. स्नेहा उसकी गोद में सिर रखे लेटी है... दिखता नही क्या तुझे?"

" एयेए हां.. पर मैं देखु क्या?" सोनिया अभी भी अंजान थी..

" तू तो बिल्कुल बुद्धू है.. कभी 'वैसी' मूवी नही देखी क्या?"

" सोनिया 'वैसी मूवी' का मतलब तुरंत समझ गयी," मैं.. मैं क्यूँ देखूँगी.. वैसी मूवी.. पर तू कहना क्या चाह रही है...?" सोनिया ने आरज़ू के कान में फुसफुसाया...

" ओहो.. तू तो जैसे बिल्कुल ही भोली है.. सुन.. इधर आ" आरज़ू ने कहा और सोनिया उसके चेहरे की और झुक गयी..," क्या?"

" मैने देखी है एक बार... उसमें एक अँग्रेजन किसी अंग्रेज का 'वो' मुँह में लेकर चूस रही थी.."

सोनिया ने आरज़ू को बीच में ही टोक दिया..," धात! ऐसी बातें क्यूँ कर रही है..?"

" अरे.. मैं ऐसी बात ऐसे ही नही बोल रही.. तू सुन तो सही.. जब वो ऐसा कर रही थी तो वो अंग्रेज भी ऐसे ही सिसक रहा था.. जैसे ये..."

"मतलब... स्नेहा.. हे भगवान.." और सोनिया ने आसचर्या और शरम में अपने हाथ से अपना मुँह ढक लिया..

"तू ध्यान से देख.. तुझे अपने आप समझ आ जाएगा..."

" पर.. वो ऐसा क्यूँ कर रही है..? शरम नही आती उसको.." सोनिया का चेहरा शरम से लाल हो गया था..

" मज़े भी तो आ रहे होंगे.." आरज़ू ने सोनिया के सामानया ज्ञान में इज़ाफा किया..

"मज़े?? इस काम में कैसे मज़े?" बेशक सोनिया ये सवाल कर रही थी.. पर अब तक उसकी मांसल जांघों के बीच उसको भी तरलता का अहसास होने लगा था... कुदरतन!

"अब मैं तुझे करके दिखाउ क्या? तू सच में नही समझती क्या ये सब.." सोनिया ने पीछे मुड़कर देखा.. अमित नींद के आगोश में पड़ा सो रहा था..

" नही.. कसम से.. मैने कभी नही किया ऐसा कुच्छ" सोनिया ने भोली बनते हुए कहा...

" एक बात बताऊं.. किसी को बोलेगी तो नही ना..? आरज़ू ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा..

" मैने तेरी कभी कोई बात किसी को बताई है क्या?" कहते हुए सोनिया मन ही मन वो नाम याद करने लगी थी जिस जिस को वो आरज़ू का 'राज' बता कर अपना पेट हूल्का कर सकेगी.. आख़िर लड़की थी भाई

" मैने है ना.. एक बार.. देख तुझे मेरी कसम है.. किसी को बोलना मत.." सोनिया कहते कहते रुक गयी..

" अरे बोल ना बाबा.. नही बताउन्गि.. प्रोमिस!"

" ठीक है.. एक बार मुझे एक 'गंदी' मूवी घर पर मिली थी.. मैं अकेली ही थी.. मैने मूवी चला ली... उसमें .. मैने अभी बताया था ना तुझे...?" आरज़ू ने अपना चेहरा सोनिया से दूर करते हुए उसके मनो भावों को पढ़ने की कोशिश की..

" हां.. हां.. तू बता ना.. जल्दी" सोनिया ने कामुकता से अपनी जांघों को कसकर भीच लिया.. अजीब सी गुदगुदी हो रही थी.. उसके बदन में...

" उसमें लड़की 'उसको' मुँह में लेकर चूस रही थी.. और वो 'बहुत' बड़ा हो गया था.." आरज़ू ने अपने अंगूठे और उंगलियों को एक दूसरे से दूर फैलाते हुए 'उसका' साइज़ समझाने की कोशिश की," और फिर बाद में 'वो' भी 'उसकी' चाट रहा था..."

सोनिया का हाथ स्वतः: ही उसकी गोद से नीचे चला गया था.. शायद चिपचिपी हो गयी पॅंटी को दुरुस्त करने के लिए.. या फिर 'उस' मीठे अहसास को हाथों से महसूस करने के लिए...," हाए राअं! फिर..?"

" फिर क्या? फिर वो प्यार करने लगे..." आरज़ू ने अपनी आँखों को फैलाते हुए कहा..

" प्यार? ये प्यार कैसे होता है अजजु!" सोनिया के बदन में आग सी लग गयी.. उसको 'ये' बातें सुनकर इतना मज़ा आ रहा था की उसने अपनी एक जाँघ को दूसरी के उपर चढ़ा लिया...

सोनिया का भी लगभग वैसा ही हाल था.. अब वो दोनो विकी और स्नेहा से अपना ध्यान हटाकर एक दूसरी का हाथ मसल्ने में लगी हुई थी.. और शायद उनमें से किसी को इसकी खबर भी ना हो.. सब कुच्छ अपने आप हो रहा था..," प्यार.. 'उसको' 'उसमें' डाल कर करते हैं.." सोनिया हर अंग के लिए 'उस' और 'वो' सर्वनाम का प्रयोग कर रही थी... चाहे वो पुरुष का हो या स्त्री का..

" ये उसको उसमें क्या लगा रखा है.. खुल के बोल ना.. मुझे समझ नही आ रहा" समझ तो सोनिया को सब आ रहा था.. पर वो भी क्या करती.. मरी जा रही थी.. 'उसको' 'उसमें' का नाम आरज़ू के मुँह से सुन'ने को....

" तुझे समझना है तो समझ ले.. मैं नाम नही लूँगी.. इतनी बेशर्म नही हूँ में..." आरज़ू किनारे पर रह कर ही 'काम-नदी' में तैरने का अहसास सोनिया को करना चाहती थी...

" अच्च्छा चल बोल.. मैं कुच्छ कुच्छ समझ रही हूँ.. पर उसमें मज़े क्या आते होंगे.. लड़की को दर्द नही हो रहा होगा.. इतना बड़ा... " सोनिया ने भी हाथ से 'उसकी' लंबाई मापते हुए कहा...

" वही तो मैं देखना चाहती थी.. घर पर मैं अकेली तो थी ही.. मैने सोचा.. देखूं तो सही.. क्या मज़ा आता है.. फिर मैने.. देख किसी को बताना मत!" आरज़ू पशोपेश में थी.. बताए कि नही...

सोनिया ने मौखिक जवाब नही दिया.. बस अपने हाथ से उसका हाथ कसकर दबा दिया..

"फिर मैने.. अपनी सलवार निकाल कर देखी.. 'मेरी वो' लाल हो गयी थी.. और उसमें से पानी टपक रहा था..."

"हाए.. फिर.." सोनिया ने एक बार उसका हाथ छ्चोड़ कर 'अपनी' की सलामती चेक की.. और फिर से उसका हाथ पकड़ लिया... और सहलाने लगी.. उसकी आँखें बंद होने लगी थी.. कामुकता से...

"फिर मैने 'उसको' हाथ लगा कर देखा.. बहुत गरम हो रखी थी.. हाथ लगाने में बड़ा मज़ा आया.. उस वक़्त.. पता नही क्यूँ.. ? उस वक़्त मेरी आँखों के सामने 'कविश' का चेहरा घूम रहा था.. हमारे पड़ोस में जो रहता है.. मुझ पर लाइन मारता है अभी तक.."

"फिर.. तूने उसको बुला लिया क्या?" सोनिया ने आसचर्या से अलग हट'ते हुए आरज़ू के चेहरे को देखा...

" नही यार.. तू सुन तो सही.. फिर पता नही मुझे क्या सूझी.. मैं उंगली से 'इसको' कुरेदने लगी.. और अचानक पूरी उंगली इसके अंदर घुस गयी..

" फिर..." सोनिया का चेहरा तमतमा उठा...

" फिर क्या? इतना दर्द हुआ की पूच्छ मत.. मेरी तो चीख ही निकलने को हो गयी थी.. 'वहाँ' से खून बहने लगा.. मैं रोने लगी..!"

"पर वो तो आता ही है.. पहली बार.. मैने सुना है..." सोनिया कामवेस में भूल ही गयी की वो नादान बन'ने का नाटक कर रही है...

" हां.. पर 'वो' मुझे तब नही पता था ना.. मैं छ्होटी थी.. पर मैने उसी दिन फ़ैसला कर लिया था.. ये काम में किसी के साथ नही करूँगी.. चाहे कविश हो या कोई और... ये लड़की किसी के हाथ नही आएगी.." ( )

" फिर क्या हुआ? बता ना.. पूरी बात बता..." सोनिया का हाथ आरज़ू की जाँघ पर लहराने लगा..

" और क्या बताऊं? हो तो गयी पूरी बात..." आरज़ू ने उसका हाथ परे झटकते हुए कहा.. बातों ही बातों में वो भी कब की बहकर 'होश' में आ चुकी थी..

" क्या तू सच में ही किसी को कभी भी हाथ नही लगाने देगी अजजु?"

" नही.. अब सोच रही हूँ.. लगाने दूँगी.. अब तो 'वो' भी बड़ी हो गयी होगी ना.." कहकर आरज़ू ने बत्तीसी निकाल दी..

रोहित सबसे अलग थलग चुप चाप आँखें बंद किए बैठा शालिनी के ख्यालों में खोया हुआ था. 3 साल से एक दूसरे की आँखों में बसे थे दोनो.. बे-इंतहा प्यार करते थे एक दूसरे से.. और दोनो को ही इस का अहसास था.. पर दोनो के बीच झिझक ज्यों की त्यों कायम थी.. सिर्फ़ एक मौका ऐसा आया था जब रोहित उसके रूप यौवन को देख कर बहक सा गया था.. बाली उमर थी दोनो की, शालिनी इकरार करने के बाद सातवी बार उस'से मिलने आई थी.. अकेली.. टिलैयर लेक पर.. और दोनो वहाँ पायदों की झुर्मुट में जा बैठे थे.. एकांत में माहौल ही ऐसा बन गया था की रोहित उसके ग्रे टॉप में छुपे मादक उभारों को देख अपनी सुध बुध खो बैठा..

" तुम मुझसे प्यार करती हो ना शालिनी...?" रोहित से रहा ना गया तो उसने उसको छूने की इजाज़त के रूप में ये सवाल पूच्छ ही लिया...

शालिनी कितनी ही देर से उसकी आँखों में झाँक रही थी.. पर वो नादान रोहित के लड़कपन में छिपि जवान लड़की के प्रति उसकी मर्दानी प्यास को ताक ना सकी थी.. रोहित के सवाल पूछ्ते ही उसने अपनी नज़रें हसीन अंदाज में झुकाई और उसकी काली ज़ुल्फो में से एक लट उसकी आँखों के सामने आ गिरी.. मानो वो कोई परदा हो.. हया का परदा.. कुच्छ देर यूँही चुप रहने के बाद उसने शरमाते हुए लंबी साँस लेते हुए कहा..," कितनी.. बार पूछोगे?"

" जब तक तुम्हारा जवाब 'हां' में मिलता रहेगा तब तक.. जब जब तुम मेरे सामने आओगी.. तब तब.. तुम्हे नही पता शालु.. तुम्हारे चेहरे पर ये हया की लाली तभी आती है , जब मैं तुमसे ये सवाल पूछ्ता हूँ.. और तुम्हारी इसी अदा पर में जान देता हूँ.." आज रोहित को वो कुच्छ ज़्यादा ही सेक्सी लग रही थी..

" हां.. करती हूँ.. आइन्दा मत पूच्छना वरना मैं मना कर दूँगी हां..." शालिनी के चेहरे पर वही मुस्कान उभर आई.. जिसने पहली नज़र में ही रोहित को उसका दीवाना बना दिया था....

" तुम इश्स दुनिया की सबसे हसीन खावहिश हो शालु.. तुमको पाकर तो में पागल ही हो जवँगा..."

"वो तो तुम अब भी हो.. पागल! हे हे.." और स्नेहा ने फिर से रोहित की आँखों में आँखे डाल ली...

" तुम्हारी आँखें कितनी प्यारी हैं शालु.. मन करता है.. इन्हे देखता ही रहूं.."

" और कोई काम नही है क्या?" शालिनी ने मुस्कुराते हुए उसको चिड़या....

"है ना.. तुम्हारे होंठ कितने प्यारे हैं.. मन करता है.. इनको चूम लूँ..."

"धात.. तुम तो सच में पागल हो.. " शालिनी ने अपने होंठो को उसकी नज़र से बचाने के लिए अपनी जीभ निकाल दी.. तब भी बात नही बनी तो असहज होकर नज़रें झुकाती हुई बोली..," ऐसे मत देखो प्लीज़!"

" क्यूँ ना देखूं.. सब कुच्छ मेरा ही तो है ये.. तुम सिर से पाँव तक सारी मेरी हो ना शालु.. मैं जो चाहे कह सकता हूँ.. जहाँ चाहे देख सकता हूँ.. जो चाहे छू सकता हूँ.. है ना?" रोहित अधीर हो उठा था...

शालिनी शर्मा कर दूसरी और घूम गयी.. रोहित के इन्न शब्दों ने उसकी पवित्रता को चुनौती सी दी थी.. उसके अरमानो को हवा सी दी थी..

रोहित ने अपना कांपता हुआ हाथ उसकी कमर पर रख दिया.. ये उसका भी पहला मौका था.. कुँवारी लड़की के तपते जिस्म को छूने का...

स्पर्श पाते ही शालिनी का पूरा जिस्म लरज सा गया.. उसकी कमर ने यूँ झटका खाया मानो किसी नाव की पतवार टूट गयी हो," नही प्लीज़...!"

" छूने दो ना मुझे.. छूकर देखने दो ना.. तुम.. अंदर से कैसी हो.." रोहित की साँसें उखाड़ने लगी थी..

" नही.. !" शालिनी अपनी कमर को झटका सा देते हुए उसकी और घूम गयी.. और उसका हाथ पकड़ लिया..," मैं मर जाउन्गि.. ऐसे मत बोलो प्लीज़.."

तभी अचानक दोनो ठगे से रह गये.. एक पोलीस वाला जाने कहाँ से निकल कर उनके सामने आ गया..," क्या हो रहा है?"

दोनो सकपका कर एकद्ूम उठ खड़े हुए.. ," कुच्छ नही.. बस.. बातें कर रहे थे..!" जवाब रोहित ने दिया था.. शालिनी उन्न दोनो से कुच्छ दूर जाकर मुँह फेर कर खड़ी हो गयी...

" हुम्म.. मुझे सब पता है.. यहाँ कैसी बातें होती हैं.. जानते नही क्या यहाँ रंडीपने पर रोक है...!" पोलीस वाले ने शालिनी को उपर से नीचे तक देखते हुए कहा..," चलो.. साहब के पास चलो..."

रोहित का खून खौल गया.. पर वा बात को बढ़ाना नही चाहता था..," मेरे पास ये 200 रुपए हैं...!"

पोलीस वाले ने बिना देर किए दोनो नोट लपक लिए..," आइन्दा कभी आओ तो पहले मुझसे मिल लेना.. समझे.. मैं वहाँ गेट के पास ही मिलता हूँ.. चलो ऐश करो!" कहते हुए पोलीस वाला वहाँ से गायब हो गया...

" आओ शालु.. बैठ जाओ.. अब कोई डर नही है.. कुत्ता हड्डी लेकर चला गया..!" रोहित शालिनी के पास आकर खड़ा हो गया...

" नही.. चलो यहाँ से.. मैं यहाँ नही रुक सकती.." शालिनी पलटी तो उसकी आँखों में आँसू थे.. पोलीस वाले ने बात ही ऐसी कही थी.. 'रंडीपना'

उसके बाद दोनो वहाँ से चल दिए.. रोहित ने उस'से बात करने की कोशिश की पर वह सामान्य नही हो सकी.. अंत में भी दोनो बिना बोले ही एक दूसरे से अलग हो गये...

'वो' दिन था और आज का दिन.. रोहित और शालिनी के प्यार को फिर कभी शारीरिक जज्बातों के पंख नही लग पाए.. वो आज भी ऐसे ही थे.. जैसे पहले दिन.. एक दूसरे से बे-इंतहा प्यार करते थे.. पर आँखों ही आँखों में.. कभी हाथ तक नही पकड़ा था.. दोनो ने एक दूसरे का...

रोहित ने आँखें खोल कर शालिनी को देखा... वह सोई हुई थी.. उस'से 2 सीट आगे


rajaarkey
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Re: गर्ल'स स्कूल

Unread post by rajaarkey » 12 Dec 2014 09:34

गर्ल्स स्कूल पार्ट --56



मनु ने नज़रें घूमाकर पिछे बैठी वाणी को देखा, वह मनु की सीट के पिछे सिर रख कर सो चुकी थी.. मानसी भी सोई हुई थी.. 'अमित' के पास चला जाए' ऐसा सोचकर जैसे ही वह उठने को हुआ, उसको हूलका सा झटका लगा और वाणी एकदम से उठ गयी.. एक हाथ से आँखें मलते हुए मनु को घूरा.. वह वापस ही बैठ गया..

वाणी के दूसरे हाथ में अब भी मनु की शर्ट का कोना था जो उसने मजबूती से पकड़ा हुआ था.. आँखों को एक खास तेवर से मतकाते हुए उसने आँखों ही आँखों में पूचछा," कहाँ भाग रहे हो बच्चू!"

"कुच्छ नही.. पर मेरी शर्ट तो छ्चोड़ दो.. फट जाएगी..." मनु ने कुच्छ बात धीरे से बोलकर और कुच्छ बात इशारों में कही...

वाणी ने अपने दोनो हाथ उठाकर एक मादक सी अंगड़ाई ली.. सचमुच उसका कोई जवाब नही था.. मनु ने वाणी के अंगड़ाई लेते हुए हर पल का भरपूर आनंद लिया.. वाणी ने जमहाई सी लेते हुए अपने मुँह पर हाथ रखा और सोई सोई सी आवाज़ में बोली," कहाँ आ गये हम.. और कितनी दूर रह गया नैनीताल...

मनु के जवाब ना दे पाने पर वह उठी और सबसे आगे वाली सीट के पास पहुँच गयी.. दिशा शमशेर की छ्चाटी पर सिर टिकाए आराम से सोई हुई थी..

"जीजू!" वाणी ने शमशेर का कंधा पकड़ कर हिलाया.. शमशेर तुरंत उठ गया," हां वाणी? क्या हुआ?"

" और कितनी देर लगेगी? मुझे भूख लगी है..." वाणी ने पिछे बैठकर उसको टकटकी लगाकर देख रहे मनु की और देखते हुए कहा..

शमशेर ने शीशे पर अपने हाथ लगाकर उनके बीच अपनी आँखें जमा कर बाहर देखते हुए अंदाज़ा लगाने की कोशिश की ही थी कि ड्राइवर ने अचानक ब्रेक लगा दिए.. बस में बैठे सभी लोगों की झटके के साथ ही आँख खुल गयी.. अगर वाणी ने सीट को अच्छे से ना पकड़ा होता तो वह आगे की और गिर ही गयी थी बस!

"क्या हुआ?" शमशेर ने वाणी को संभाला और झल्लाते हुए ड्राइवर से पूचछा...

"अचानक कोई बस के आगे आ गया साहब.. परदेशी लगते हैं.. उनके साथ कोई में साब भी हैं...हाथ दे रहे हैं..." ड्राइवर के बोलते बोलते बस की खिड़की पर थपकियाँ लगनी शुरू हो गयी थी....

शमशेर, वासू और विकी ने एक दूसरे की और देखा और वासू सबसे पहले बोल पड़ा.." बिठा लेते हैं बेचारों को.. पिछे जगह तो है ही... वैसे भी अगर आदमी आदमी के काम नही आएगा तो फिर हम'मे और जानवरों में अंतर ही क्या रहेगा? हर धर्म यही......"

" खोल रहा हूँ प्रभु.. खोल रहा हूँ.." विकी में अब और प्रवचन सहन करने की ताक़त नही बची थी.. वह उठा और झट से बस की खिड़की खोल दी," हां.. क्या बात है..."

खिड़की के सामने खड़ा गोरा चिटा युवक कोई 22-23 साल का रहा होगा.. कद करीब करीब 5'9".. उसके पिछे सिर से पाँव तक परदा किए खड़ी युवती का कद उस्स'से इंच भर ही कम था..

युवक ने बात करने में समय जाया नही किया और उपर ही आ चढ़ा... युवती की फुर्ती भी देखते ही बन रही थी.. वह भी साथ साथ ही उपर आ चढ़ि और अपना घूँघट उतार फैंका," हा हा हा हा हा..."

" ऊई मुम्मय्ययी... मूँछहों वाली आंटी!" वाणी की आसचर्या से चीख निकल गयी....

"चुप कर.. लूटेरे हैं... " सहमी हुई दिशा ने वाणी का हाथ पकड़ कर पिछे खींच लिया... इस दौरान वासू ने अपनी मुत्ठियाँ कस ली थी.. उनको सबक सिखाने के लिए...

" नही जी बेहन जी.. हम क्या आपको लूटेरे लगते हैं... हम तो नैनीताल जा रहे थे. बाइक ट्रिप पर.. बाइक हमारी रास्ते में ही खराब हो गयी और .. पैसे हो गये ख़तम.... दोनो के.. कोई लिफ्ट दे ही नही रहा था.. माफ़ करना.. हमें ये रास्ता इकतियार करना पड़ा.. हे हे हे..." युवक ने बत्तीसी निकालते हुए शमशेर की और देखा.. जो अब तक हँसने लगा था...," अब इसकी साडी तो उतरवा दो.. बड़ा बेहूदा लग रहा है ये नौटंकी बाज..."

"हमें ले तो चलोगे ना.. भाई साहब! " सदी वाले लड़के ने शमशेर की और हाथ जोड़ते हुए कहा....

" चलो ड्राइवर... " शमशेर ने कहा और उनसे मुखातिब हुआ," वैसे कौनसी जगह है ये.. ?"

" गजरौला यहाँ से 5 काइलामीटर आगे है... ये जगह कौनसी है.. ये हमें नही पता.. हमारी सीट कौनसी है..? साडी को उतारकर बॅग में रखते हुए उसने कहा..

" हमारे सिर पर बैठ जाओ! पीछे सीट नही दिख रही क्या?" विकी ने झल्लाते हुए कहा.. कम्बख़्तों ने उसके और स्नेहा के रंग में भंग डाल दिया था...

बस रुकते ही सब एक एक करके उतरने लगे.. राज ने उठते हुए वीरू के कंधे पर हाथ रखा और कहा," तुम यहीं रहो.. मैं तुम्हारे लिए खाना यहीं ले आता हूँ..बेवजह तकलीफ़ होगी..."

"कोई ज़रूरत नही है भाई.. मुझे भूख नही है.. तुम जाकर खा लो.. मेरे लिए बस पानी ले आना.." वीरू ने काफ़ी देर से घुटने से मूडी हुई टाँग को सीधी करके बराबर वाली सीट पर फैला दिया...

"चल ठीक है.. मैं खाना पॅक करवा लाता हूँ.. बाद में दोनो इकट्ठे ही खा लेंगे.."

"अरे कहा ना.. मुझे भूख नही है... तुम खा लो यार.."

"चल ठीक है.. तुम आराम करो.." कहते हुए राज भी दूसरों के साथ बस से उतर गया...

नये मुसाफिर चुपचाप अपनी सीटो पर बैठे थे.. विकी उनके पास आया और बोला..," तुम्हे भूख नही है क्या?"

"भूख तो बहुत जोरों की लगी है.. बड़े भैया.. पर हमारे पास पैसे नही हैं.. पहले बता देना अच्च्छा होता है.. है ना?" साडी वाले छैला ने कहा...

" चलो उठो... खाना खा लो..." विकी ने कहा और नीचे उतर गया.. वो दोनो भी उसके पिछे पिछे हो लिए...

"अब बोल शमशेर भाई.. अब तो तेरा गजरौला भी आ गया..." विकी ने शमशेर को एक तरफ बुलाते हुए कहा...

" छ्चोड़ ना यार.. अब तो वासू जी से तेरा पिछा छ्छूट गया ना.. क्यूँ टेन्षन लेता है.. नैनीताल चलकर मैं भी तेरे साथ पीऊँगा... प्रोमिस!"

"और आपके पिच्छले प्रोमिस का क्या हुआ.. नही भाई.. मैं अब नही मान'ने वाला.. तूने यहाँ तक सब्र रखने के लिए बोला था.. मैने रख लिया.. अब और सहन नही होगा.. यहाँ से तो टंकी फुल करके ही चलूँगा.. तुम्हे साथ ना देना हो ना सही.. मैं अकेला ही गम हल्का कर लूँगा.." कहकर विकी बार की तरफ बढ़ने लगा...

"अच्च्छा रुक तो सही.. मैं वासू जी को बोल देता हूँ.. वो बच्चों को संभाल लेंगे... वासू जी!" शमशेर ने वासू को आवाज़ लगाई...

" आइए ना शमशेर जी.. कब से पेट में चूहे नाच रहे हैं.." वासू ने पास आते ही कहा..

" वो क्या है कि.. हम थोड़ी देर में हाज़िर होते हैं.. ज़रा बच्चों का ख़याल रखिएगा.." शमशेर ने वासू को कहा...

"पर क्यूँ.. आप कहाँ जा रहे हैं..?" वासू ने तुरंत सवाल किया...

" कहीं नही.. पहले बच्चे खा लें.. हम तब तक यहीं बैठ जाते हैं.. बार में.. इसी बहाने मूड भी फ्रेश हो जाएगा.. विकी भाई का.. क्यूँ विकी जी..?" शमशेर ने विकी की और देखते हुए कहा...

विकी ने काई बार अपनी गर्दन को 'हां' में हिलाया..

"छ्हि.. छि.. छि.. पढ़े लिखे होकर भी आप.. वो देखिए वहाँ विग्यपन के उपर कितने बड़े बड़े अक्षरों में लिखा है.. 'शराब स्वास्थया के लिए हानिकारक है.. और फिर..." वासू को इस बार विकी ने बीच में ही रोक दिया..

" शास्त्री जी, स्वास्थ की फिकर वो लोग करते हैं.. जिनके स्वास्थ में कोई प्राब्लम हो.. हमें अपने उपर कोई शक नही है.. पूरे हत्ते कत्ते मर्द हैं.. फिर क्यूँ ना जिंदगी का मज़ा लें.. क्यूँ ना खा पीकर जियें? ये टिप्पणी सिर्फ़ कमजोर और बीमार लोगों के लिए होती है.. उनको इस'से बचकर रहना चाहिए..!"

"खूब कहा आपने.. इसका अर्थ तो ये हुआ कि अगर मैं शराब नही पीता तो मैं कमजोर आदमी हूँ.. मैं मर्द नही हूँ क्या?" और वासू ने कहते हुए अपनी आस्तीन उपर चढ़ा ली... "चलिए.. मैं भी चलता हूँ आपके साथ.. देखूं तो सही कौनसी मर्दानी दवा लेते हैं आप?"

शमशेर ने वासू को टालना चाहा पर विकी ने वासू को जैसे ललकार ही दिया," आप रहने ही दें तो अच्च्छा है.. अंदर गंध बड़ी तेज होती है.. आपका कोमल शरीर सहन नही कर पाएगा...."

"नही नही.. मैं भी साथ ही चलता हूँ.. देखते हैं किसका शरीर कोमल है.. किसको होता है नशा.. मैं ज़रा अंजलि जी को बोल आता हूँ.. बच्चों का ध्यान रखने के लिए..."कहकर वासू तेज़ी से अंजलि की और बढ़ गया.. होटेल के बाहर खड़े सभी उनका इंतजार कर रहे थे..

"क्या है विकी.. तुझे पीनी थी तो पी लेता चुपचाप.. तमाशा हो जाएगा.. पता है.. उसने कभी पी नही है..!" शमशेर ने विकी पर बिगड़ते हुए कहा..

" तभी तो मज़ा आएगा.. इसी ने तो मेरे आधे रास्ते की मा-बेहन की थी.. तू मत बोलना भाई.. सफ़र में थोडा बहुत तमाशा हो भी गया तो चलेगा.. तौर पर आख़िर आते किसलिए हैं.. मस्ती करने के लिए ही ना..." कहते हुए विकी ने बत्तीसी निकाल दी... "ओये.. तुम लोग क्या बातें सुन रहे हो... चलो खाना खाओ!" विकी ने अचानक पिछे पलट'ते हुए कहा.. वो दोनो वहीं खड़े थे.. विकी के पिछे पिछे आकर..

"भाई.. वो क्या है की.. पैसे तो हमारे पास नही हैं.. पर हम सोच रहे हैं कि लगे हाथ हम भी अपनी मर्दानगी चेक कर लें.. हे हे हे!" युवक धीरे धीरे उंगली पकड़ कर कलाई तक आ गया था...

विकी ने शमशेर को देखा.. उसकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया ना मिलने पर खुद ही बोल पड़ा," पहले पी तो रखी होगी ना.. कभी कभार..!"

" कभी कभार..? हां.. पी रखी है.. कभी कभार..!" दोनो एक साथ बोल पड़े..

"फिर ठीक है.. ठीक है ना शमशेर भाई.. अब तो ये भी हमसफर ही हैं.. ओये.. तुम लोग अपने अपने नाम तो बता दो..!"

"मैं हूँ मानव.. और ये है रोहन.. " साडी वाले ने इंट्रोडक्षन करवाई..

तब तक वासू भी आ गया था..," चलो.. देखते हैं.. मैं बोल आया मेडम को.."

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प्रिया, रिया, राज और स्नेहा एक ही टेबल पर बैठे थे..

" मैं वीरू को पानी दे आता हूँ.. " कहकर राज जैसे ही उठने लगा, रिया ने उसको रोक दिया," मुझे भी भूख नही है राज! लाओ.. मैं ले जाती हूँ.. पानी.."

रिया ने उसके हाथ से पानी ले लिया..

"पर उसने मुझको बोला था", राज को वीरू के व्यवहार का पता था...

" मेरे छ्छूने से क्या ये जहर हो जाएगा...?" रिया ने बनावटी गुस्से से उसको देखा...

"नही, मेरा ये मतलब नही था.. पर..." राज की बात बिना सुने ही रिया वहाँ से निकल गयी... रिया ने बस के बाहर खड़े होकर देखा.. बाहर रोशनी होने की वजह से बस के अंदर का कुच्छ दिखाई नही दे रहा था.. उसने 'लंबी' साँस लेकर हिम्मत जुटाई और बस में चढ़ गयी...

"ये लो पानी..!" रिया ने हाथ आगे बढ़कर वीरू से कहा...

" राज कहाँ मर गया है.. मैने उसको कहा था.. पानी लाने के लिए..!"

" तो क्या हुआ.. मुझे भी भूख नही थी.. मुझे आना था.. इसीलिए मैं ले आई.. वो खाना खा रहा है.." रिया ने हाथ आगे किए हुए ही कहा.. वीरू का प्यारा चेहरा देखकर उसका मॅन हो रहा था की एक चुम्मि तो ले ही ले..

वीरू ने अपना हाथ बढ़कर उस'से पानी ले लिया.. उसके बाद भी जब रिया वहीं खड़ी रही तो वीरू बौखला सा गया," अब यूँ टुकूर टुकूर क्या देख रही हो.. जाओ!"

"पर मुझे भूख नही है.. मैं जाकर क्या करूँगी वहाँ.." रिया ने कोमल आवाज़ में कहते हुए अपना हाथ वीरू के सामने वाली सीट पर रख लिया..

" तो मत जाओ.. मेरे सामने क्यूँ खड़ी हो.. जाकर अपनी सीट पर क्यूँ नही बैठती.."

"लो बैठ गयी!" कहते हुए रिया वीरू के सामने वाली सीट पर जा बैठी.. जिसपर पहले से ही वीरू का पैर रखा हुआ था.. जाने- अंजाने उसकी कमसिन जांघें उसकी जीन के उपर से वीरू का पैर छ्छू रही थी....

प्रिया, रिया, राज और स्नेहा एक ही टेबल पर बैठे थे..

" मैं वीरू को पानी दे आता हूँ.. " कहकर राज जैसे ही उठने लगा, रिया ने उसको रोक दिया," मुझे भी भूख नही है राज! लाओ.. मैं ले जाती हूँ.. पानी.."

रिया ने उसके हाथ से पानी ले लिया..

"पर उसने मुझको बोला था", राज को वीरू के व्यवहार का पता था...

" मेरे छ्छूने से क्या ये जहर हो जाएगा...?" रिया ने बनावटी गुस्से से उसको देखा...

"नही, मेरा ये मतलब नही था.. पर..." राज की बात बिना सुने ही रिया वहाँ से निकल गयी... रिया ने बस के बाहर खड़े होकर देखा.. बाहर रोशनी होने की वजह से बस के अंदर का कुच्छ दिखाई नही दे रहा था.. उसने 'लंबी' साँस लेकर हिम्मत जुटाई और बस में चढ़ गयी...

"ये लो पानी..!" रिया ने हाथ आगे बढ़कर वीरू से कहा...

" राज कहाँ मर गया है.. मैने उसको कहा था.. पानी लाने के लिए..!"

" तो क्या हुआ.. मुझे भी भूख नही थी.. मुझे आना था.. इसीलिए मैं ले आई.. वो खाना खा रहा है.." रिया ने हाथ आगे किए हुए ही कहा.. वीरू का प्यारा चेहरा देखकर उसका मॅन हो रहा था की एक चुम्मि तो ले ही ले..

वीरू ने अपना हाथ बढ़कर उस'से पानी ले लिया.. उसके बाद भी जब रिया वहीं खड़ी रही तो वीरू बौखला सा गया," अब यूँ टुकूर टुकूर क्या देख रही हो.. जाओ!"

"पर मुझे भूख नही है.. मैं जाकर क्या करूँगी वहाँ.." रिया ने कोमल आवाज़ में कहते हुए अपना हाथ वीरू के सामने वाली सीट पर रख लिया..

" तो मत जाओ.. मेरे सामने क्यूँ खड़ी हो.. जाकर अपनी सीट पर क्यूँ नही बैठती.."

"लो बैठ गयी!" कहते हुए रिया वीरू के सामने वाली सीट पर जा बैठी.. जिसपर पहले से ही वीरू का पैर रखा हुआ था.. जाने- अंजाने उसकी कमसिन जांघें उसकी जीन के उपर से वीरू का पैर छू रही थी....

वीरू ने एक नज़र रिया की और देखा और अपना पैर वापस खींच लिया.. अपनी टाँग को वापस सीट के नीचे से लंबा करते हुए वा सीधा होकर बैठ गया..

"एक बात पूच्छू?" रिया ने हुल्की आवाज़ में वीरू को टोका...

"क्यूँ?" वीरू ने अजीब तरीके से उसको घूरा.. जैसे उसको मालूम हो की वो क्या पूच्छने वाली है..

"रहने देती हूँ.. पर तुम बात बात पर ऐसे फदक क्यूँ जाते हो?.. तुम्हे तो मेरा पास बैठना भी नही सुहाता.. आराम से ही तो पूचछा था.." रिया ने अपना मुँह पिचकाते हुए कहा...

"तो क्या अब डॅन्स करने लग जाउ? तुम कोई रिया सेन हो जो तुम्हारे पास बैठने से ही मैं पागल हो जाउन्गा.. यहाँ बैठो, वहाँ बैठो.. मुझे क्या फरक पड़ता है.." वीरू ने बिगड़ते हुए कहा और बोतल खोल कर अपने होंठो से लगा ली..

"तुम्हे रिया सेन बहुत पसंद है क्या?" रिया ने उसकी बात आगे बढ़ने से उत्साहित होते हुए कहा..

"नही.. बहुत घटिया लगती है मुझे.. थर्ड क्लास.. मुझे तो इश्स नाम से ही नफ़रत है...तुम्हे कोई प्राब्लम है..?" वीरू ने जान बूझ कर उसको चिड़ाया..

"नही.. मुझे क्या प्राब्लम होगी भला" रिया सहम सी गयी..," मुझे पानी पीना है.."

"तो पी लो जाकर.. मुझसे पूच्छ कर करती हो क्या हर काम..."

"इसी मैं से थोड़ा दे दो ना.. मैं जाकर और ले आउन्गि.. बाद में.." रिया ने अपनी सुरहिदार गर्दन को खुजलाते हुए कहा..

"नही.. ये मैने झूठी कर दी.. तुम नीचे जाकर पी लो..!" वीरू टस से मस ना हुआ..

"मुझे कोई प्राब्लम नही है.. तुम्हारा झूठा पीने में.." रिया ने अपनी नज़रें वीरू की आँखों में गाड़ा दी...

" पर मुझे है.. मैं क्यूँ किसी को.." वीरू की बात अधूरी ही रह गयी.. रिया ने बोतल को धोखे से उसके हाथों से झटकने की कोशिश की.. दोनो के हाथ बोतल पर बँधे हुए थे अब..

"छ्चोड़ो इसे.. मैं पहले ही कह रहा हूँ.. छ्चोड़ो नही तो एक दूँगा कान के नीचे.." वीरू ने कहते हुए महसूस किया.. उसका विरोध रिया के कोमल हाथों के स्पर्श से पिघलता जा रहा है.. वीरू के हाथ रिया के हाथों के उपर थे.. कहते कहते उसकी पकड़ ढीली होती गयी.. और अंतत: बोतल उसके हाथों से छ्छूट कर रिया के हाथों में थी...

रिया उसकी और विजयी भाव लेकर शरारती ढंग से मुस्कुराइ और अपने गुलाबी होंठो को खोल कर गोल करके बोतल का मुँह उनमें फँसा लिया.. और मुँह उपर करके उसमें से पानी गटक'ने लगी..

वीरू हतप्रभ सा उसको देखता रह गया.. बोतल के मुँह पर ठीक उसी जगह उसके होंठ चिपके हुए थे.. उसको ऐसा महसूस हो रहा था जैसे रिया पानी नही बल्कि उसको पी रही है... अपने होंठो से.. अंजाने में ही वीरू के दिल से एक 'आह' सी निकली और उसके सारे शरीर में हुलचल सी मच गयी..

रिया इतनी हसीन थी की वीरू उसको अपलक निहारता रहा.. कभी उसकी आँखों में.. कभी उसके होंठो को.. और कभी गर्दन से नीचे.. पहली बार! पहली बार उसने रिया को इतने गौर से देखा..

"क्या देख रहे हो? ये लो.. अगर झूठा नही पीना तो बोल दो.. मैं और ले आती हूँ.." रिया ने बोतल उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा...

ठगे से अपनी सीट पर बैठे वीरू ने बिना कुच्छ बोले रिया के हाथों से बोतल ले ली.. और ले क्या ली.. उसको अपने होंठो से लगा कर सारा पानी गतगत पी गया.. रिया की साँसों की महक उसमें से अब भी आ रही थी शायद.. पानी ख़तम हो गया था.. पर बोतल अब भी उसके होंठो से ही लगी थी.. जाने कौन क्षण कामदेव ने उसको भी अपनी चपेट में लपेट लिया..

"हे हे हे.. पानी ख़तम हो गया.. और लेकर आऊँ?" रिया ने उसकी आँखों में आँखें डाल पूचछा..

वीरू ने बिना कुच्छ बोले ही बोतल उसकी और बढ़ा दी.. वह भी कुच्छ बोलना चाहता था.. पर उस मनहूस को मालूम नही था की कैसे बोले..

"पानी लाउ क्या? और.." रिया ने जैसे उसको बेहोशी से जगाया..

"उम्म.. हाँ.. ले आओ!" आख़िरकार वीरू बोला...

"मैं ही लेकर आऊँ या.. राज को भेजू?" रिया शायद वीरू के बहकने को पहचान गयी थी..

" उम्म.. तुम ही.. राज को भेज देना चाहे.. तुम्हारी मर्ज़ी है.."

रिया की आँखों में नयी चमक थी.. वीरू पर हुए असर का सुरूर उसकी आँखों में भी था.. उसकी चाल में भी.. वह लगभग मटक'ती हुई बस से नीचे उतर गयी.........

" और पी कर दिखाऊँ?" वासू ने बड़ी मुश्किल से अपना सिर टेबल से उपर उठाया और अपने गिलास को अपने सिर से भी उपर ले जाकर लहराने लगा... उसकी आँखें रह रह कर बंद हो जा रही थी...

"ये तो गया यार.. मैने पहले ही बोला था.." शमशेर अपना माथा पकड़े हुए था...

"कौन गया? कोई नही जाएगा इधार्ररर से.. कोई.. मरर्रर्ड नही जाएगा.. सिरररफ लॅडिस जाएँगी.." वासू उचक कर उठ बैठा और अपने दाँत निकाल कर फिर से ढेर हो गया.. टेबल पर...

"हा हा हा.. मर्द!" विकी ने दूसरी बोतल का ढक्कन खोल डाला...

"अब बस कर यार.. रहने दे और..." शमशेर ने उसके हाथों से बोतल लेने की कोशिश की..

"तुझे पता है ना भाई.. कुच्छ नही होगा मुझे.. तुझे पता है ना.. देख आज मुझे पी लेने दे.. क्या पता कल हो ना हो!" विकी ने शमशेर के हाथों से बोतल छ्चीन'ते हुए कहा और अपनी बत्तीसी निकाल दी...," तुम्हे और लेनी है क्या बच्चा लोग!"

"लेनी है भाई.. लेनी है.. हम आपको अकेला कैसे छ्चोड़ेंगे.. आख़िर तक साथ निभाएँगे आपका.." मानव ने गिलास खाली करके पनीर का टुकड़ा मुँह में डालते हुए कहा...

" तुम लोग भी मुझे पुर पियाक्कड़ लगते हो.. सालो.. आधी बोतल तो तुम दोनो ने अकेले ही खाली कर दी... मुझे क्या खाक नशा होगा..?" विकी ने उनके गिलास में शराब डालते हुए कहा," भाई, तुम भी लो ना.. ऐसे मज़ा नही आ रहा..!"

"सत्यानाश तो होना ही है अब.. चल बना दे मेरा भी.. देखा जाएगा.." शमशेर ने एक और गिलास सीधा कर दिया..

"भाई.. आपको दिशा से डर लगता है ना.. बोल दो लगता है.. मुझे तो वैसे भी पता है..?" विकी ने शरारती ढंग से मुस्कुराते हुए कहा..

"इसमें डर वाली कौनसी बात है..? हां.. पर अब मैं नही पीता.. उसी के कहने से.." शमशेर हँसने लगा...

"ये दिशा कौन है भाई..?" रोहन काफ़ी देर से चुपचाप बैठा था.. लड़की का नाम सुनते ही चौकन्ना हो गया...

"तुम्हारी भाभी है बे.. ऐसे आँखें क्यूँ फैला रहा है..." विकी ने जवाब दिया," वो भी साथ ही है.. बस में.. भाई साहब उसी के डर से नही पी रहे थे.. मुझे पता है.. वैसे एक और भी भाभी है तुम्हारी बस में... मेरे वाली..." विकी ने चमकते हुए कहा...

"इसमें बताने वाली बात क्या है भाई.. आपकी भाभी है तो हमारी भी भाभी ही हुई ना...!" मानव ने खीँसे निपोरी....

"आबे ढक्कन, तुम्हारी 2 भाभियाँ हैं और मेरी एक.. दूसरे वाली मेरी जान है.. मेरी होने वाली पत्नी.. स्नेहा!" विकी भाव-विहल हो उठा..

"हां.. तो इसमें बताने वाली बात क्या है.. आपकी जान है तो हमारी भी जा.." मानव की बात अधूरी ही रह गयी.. रोहन ने उसके सिर पर एक धौल जमाया," साले.. तेरे को इतनी भी अकल नही बची.. पीकर.. भाई की जान हमारी जान नही भाभी हुई.. समझा..!"

"चलो ठीक है.. पर जब सबकी जान हैं तो हमारी जान किधर हैं.. मुझे ये समझ नही आ रहा...!" मानव बहकी बहकी बातें कर रहा था..

"कितनी उमर है तेरी..?" विकी ने मानव से पूचछा... शमशेर चुपचाप उनकी बात सुन रहा था..

"22 साल भाई.. इसकी भी.."

"तो जल्दी से अपनी जान ढूँढ ले.. एक बार दुनियादारी के झमेले में फँस गया ना तो समझ ले गया काम से.. उसके बाद कुच्छ याद नही रहता.. सिवाय खाने कमाने के.. समझ गया ना तू...!" विकी ने दार्शनिक अंदाज में कहा...

"भाई.. बस में एक लड़की है.. बुरा ना मानो तो...!" रोहन ने हिचक कर दोनो की और देखा...

" आबे बोल बोल.. आज सब कुच्छ माफ़ है.. खुल कर बोल.. मुझे भाई बोला है ना.. जा किसी को हाथ लगा दे.. मैं बात कर दूँगा.. पर देख उमर भर के लिए.. ठीक कह रहा हूँ ना भाई.." विकी ने शमशेर की और देखा...

"यार! मैं बोर हो रहा हूँ.. तुम्हारी बाते सुनकर... कुच्छ और नही है क्या? बात करने के लिए...

"तू बोल.. कौनसी पसंद है तुझे.. बोल.. बता ना.." विकी ने शमशेर की बात को नज़र-अंदाज करते हुए रोहन से पूचछा...

"वो.. गौरी चित्ति सी.. जो इन सर के पास बैठी थी.. बहुत प्यारी है..." रोहन ने वासू को हाथ लगाते हुए कहा...

"ओइईई.. तेरी तो... वो तेरी भाभी है... " वासू चौंक कर उठ बैठा और रोहन का गला पकड़ लिया...

शमशेर और विकी ने चौंक कर एक दूसरे की आँखों में देखा.. बात कुच्छ कुच्छ उनकी समझ में आ गयी.. वो मुस्कुराने लगे...

" पर भाई.. मैने तो सुना था की गर्ल'स स्कूल से टूर जा रहा है.. यहाँ तो सारी बस में भाभियाँ ही भाभियाँ भरी पड़ी हैं.. कोई वेली नही है क्या?" रोहन ने मायूस होते हुए कहा...

"हा हा हा.. सभी सेट हैं बीरे.. इसीलिए तो कहता हूँ.. कल करे सो आज कर.. आज करे सो अब.. चलो.. जल्दी से ये ख़तम करो.. मूड फ्रेश हो गया है.." विकी ने सबके आख़िरी पैग बनाते हुए कहा...

पानी लेकर जब रिया दोबारा बस में चढ़ि तो वीरू सीट की एक तरफ बैठ गया था.. शायद इस इंतज़ार में की क्या पता रिया वहीं बैठ जाए.. उसके पास.. पर बदक़िस्मती से ऐसा नही हुआ

"ये लो, पानी..!" रिया ने पास आकर उसको पानी देते हुए कहा...

" हुम्म.. थॅंक्स... बैठ जाओ!" वीरू की आवाज़ अब निहायत ही शरीफ़ना थी..

रिया उसके साथ वाली दूसरी सीट पर बैठ गयी.. और चुपचाप उसको देखने लगी.. इतनी हिम्मत तो उसमें आ ही गयी थी.. वीरू की टोन बदल'ने पर...

"तुम मुझे जैसा समझती हो.. मैं वैसे नही हूँ रिया.. !" वीरू ने अपनी इमेज सुधारने के लिए भूमिका बाँधी...

"कैसा समझती हूँ मैं.. मैने तो कभी भी तुम्हे कुच्छ नही कहा.. उल्टा तुम ही मुझे धमका देते हो.. जब भी मैं तुमसे बात करने की कोशिश करती हूँ..."

"हुम्म.. वही.. मैं वही कह रहा हूँ.." वीरू ने 2 घूँट पानी पिया और बोलना जारी रखा," मुझे तुमसे कोई प्राब्लम नही है.. बट.. बेसिकली लड़कियों से मुझे चिड है.. जाने क्या समझती हैं अपने आपको.. बात करने की कोशिश करो तो समझती हैं कि... खैर.. 2 मीठी बात करते ही सिर पर चढ़ कर बैठ जाती हैं.. अपनी क्लास की लड़कियों को ही देख लो.. राज जब क्लास में आया तो कैसे उसका मज़ाक बना'ने की कोशिश कर रही थी.. हर नये लड़के के साथ वो ऐसा ही करती हैं.. भला ये कोई अच्च्ची बात है...?"

"पर मज़ाक करने में क्या बुराई है वीर..एंदर.. बाद में तो सब अच्च्चे दोस्त हो जाते हैं ना... ऐसे तो मैं भी हँसी थी.. जब मेडम ने मज़ाक किया था तुम दोनो के साथ..."

"वो मज़ाक था.. गे बोला था मेडम ने हमको.. समझती भी हो गे क्या होता है..?" वीरेंदर आवेश में आ गया..

रिया को मालूम था क्या होता है गे.. इसीलिए तो नज़र झुका कर बग्लें झाँकने लगी... वीरू ने स्थिति को भाँपा और बात सुधारते हुए बोला," गाली होती है ये.. चलो.. मेडम को तो हम कुच्छ नही कह सकते.. पर लड़कियों से चिड होगी कि नही.. ऐसे अनप शनाप बातों पर बत्तीसी निकाल कर हँसेंगी तो..."

"सॉरी वीरेंदर.. आगे से कम से कम मैं ऐसा नही करूँगी..."

"अरे नही नही.. मैने ऐसे तो नही बोला.. लो.. पानी पियो..!" वीरेंदर उसको अब और नाराज़ देखने के मूड में नही था...

"नही.. मुझे प्यास नही है.. क्या हम अच्छे दोस्त नही बन सकते वीरेंदर... क्या हम प्यार से नही रह सकते.. जैसे राज और प्रिया रहते हैं..." रिया ने भावुक होते हुए कहा...

"वो... तुम्हे पता है.. वो तो एक दूसरे से.. " बात को अधूरी छ्चोड़कर वीरू ने रिया की आँखों में झाँका.. उधर भी वैसी ही बेशबरी थी...," हम भी क्या..?" और वीरू ने बात को फिर अधूरा छ्चोड़ दिया...

"क्या?" रिया के गालों पर हया की लाली तेर गयी.. यही तो वो सुन'ना चाहती थी.. यही तो वो कहना चाहती थी.. जाने कब से?"

"तुम मुझे अच्च्ची लगने लगी हो रिया!" वीरू ने उसकी सीट के उपर रखा रिया का हाथ पकड़ लिया..

रिया को जैसे झटका सा लगा.. वीरू की स्वीकारोक्ति के बाद उसको उस स्पर्श में अजीब सी गर्माहट महसूस हुई.. ना चाहते हुए भी उसने अपना हाथ खींच लिया.. और नज़रें झुका कर अपनी उंगलियाँ मटकाने लगी...

"क्या हुआ? तुम्हे बुरा लगा..." वीरू ने भी अपना हाथ हिचकिचाकर वापस खींच लिया...

क्या कहती रिया आख़िर.. पिच्छले एक साल से उसके ही सपने देखकर नित यौवन में इज़ाफा करती आ रही रिया के लिए ये सब एक सपने जैसा ही था.. उसके सपने का साकार हो जाना.. पर उसको मालूम नही था.. अपने 'प्यार' को छ्छूने भर से जो असहनीया आनंद मिलता है.. यौवन के उस पड़ाव पर 'स्पर्श' को सिर्फ़ 'स्पर्श' तक कायम रखने की कोशिश में जान निकल जाती है.. आगे बढ़ कर चिपक जाने को मन करता है.. लिपट जाने को मन करता है.. चूम लेने को मन करता है.. उस प्यार को.. और जब ऐसा मुमकिन ना हो तो वापस हटना ही बहार होता है.. ठीक वैसा ही रिया ने किया था.. क्यूंकी 'यार' के आगोश की लत पड़'ने में वक़्त नही लगता.. पर जमाना लग जाता है, उस मीठे अहसास की टीस को दिल से निकालने में.. अगर वो स्पर्श 'स्पर्श' से आगे ना बढ़ पाए..

"सॉरी.. मुझे ऐसा नही करना चाहिए था.. पर मुझे लगा.. खैर.. बस एक आख़िर बात.. अगर किसी से ना कहो तो.." वीरू ने उसकी झुकी हुई आँखों में देखते हुए कहा..

रिया ने पलकें उठाकर वीरू से एक पल के लिए नज़रें मिलाई.. उसकी नज़रों में ही एक 'वादा' था.. किसी से कुच्छ भी ना कहने का..

"तुम मुझसे प्यार करती हो क्या?" वीरू ने बात कहने के बाद भी अपना मुँह खुला ही रखा.. मानो उसको जवाब होंठो से सुन'ना हो.. कानो से नही..

रिया हड़बड़ा गयी.. उसकी समझ में कुच्छ नही आया की क्या बोले.. क्या ना बोले.. अब ये भी कोई कहने की बात होती है.. समझ लेनी चाहिए थी वीरू को.. काफ़ी पहले ही.. रिया ने खंगार कर अपना गला सॉफ किया," मैं.. एक बार नीचे जा रही हूँ.. तुम्हारे लिए कुच्छ और लाना है क्या..?"

"नही.. !" वीरू ने सपाट सा जवाब दिया.. नाराज़गी भरा...

रिया सीट से खड़ी हो गयी.. जाने के लिए.. पर कदमों ने साथ नही दिया.. या शायद वो ही जाना नही चाह रही थी.. एक बार और 'वीरू' के मुँह से वही बात सुन'ना चाहती थी.. शायद इश्स बार 'हाँ' निकल सके..

"जाओ अब! यहाँ क्यूँ खड़ी हो..?" वीरू ने उसके चेहरे की और देखते हुए कहा..

"नही.. मुझे नही जाना.. तुम समझते क्या हो अपने आपको.. जब देखो सींग पीनाए तैयार रहते हो.. टक्कर मारने के लिए... चेहरा देखो तुम्हारा, कैसा हो गया है.." रिया ने अपने आपको वापस सीट पर पटक दिया...

"सॉरी बोला ना.. मैं तो बस ऐसे ही पूच्छ रहा था..." वीरू सहमा हुआ सा उसकी और देखने लगा..

"ऐसे ही पूच्छ रहा था.." रिया ने मुँह बनाकर उसकी नकल उतारी," मुझसे ही क्यूँ पूचछा.. किसी और से क्यूँ नही.."

"कोई और मुझे अच्छि ही नही लगी आज तक.. किसी और से पूछ्ता क्यूँ?" वीरू ने तपाक से जवाब दिया..

"हुम्म.. जैसे मैं तुम्हे सबसे प्यारी लगती हूँ..!" रिया अपने हल्क नीले कमीज़ के कोने को मुँह में लेकर चबाने लगी..

" हाँ.. लगती हो.. और कैसे कहूँ..." वीरू ने हाथ बढ़ा कर उसका हाथ पकड़ लिया..

और रिया जैसे बिना वजन की गुड़िया की तरह उसके आगोश में आ गिरी और सुबकने लगी..

वीरू ने उसका चेहरा अपने हाथों में लेकर उपर उठाया," रो क्यूँ रही हो?"

"पहले क्यूँ नही बोला..." कहकर रिया ने अपनी जवानियाँ उसके सीने में गाड़ा दी.. उसकी आँखों से भले ही आँसू टपक रहे थे.. पर उसके चेहरे पर खास चमक उभर आई थी.. आँखों में भी.. बिना कुच्छ कहे ही उसने सब कुच्छ बोल दिया.. वीरू ने अपना हाथ उसकी कमर से चिपकाया और हौले से उसके कान में गुदगुदी सी कर दी," आइ लव यू, रिया!"

रिया ने जैसे तैसे खुद को संभाला और अपने आँसू पुंचछते हुए बोली," मैं खाना लेकर आ रही हूँ.. खाओगे ना.. मेरे साथ!"

वीरू ने सहमति में सिर हिलाया और मुस्कुराने लगा," मेरा बात का जवाब तो तुमने दिया ही नही..."

"कौनसी बात का?" रिया ने उसकी आँखों में देखा और मुस्कुराने लगी..

"तुम मुझसे प्यार करती हो या नही.." वीरू भी मुस्कुराया..

"नही.. बिल्कुल नही.. क्यूंकी तुम एकदम गधे हो.." कहकर रिया एक बार फिर उस'से लिपट गयी...

बस में बैठे सभी बेशबरी से शमशेर, विकी, वासू, मानव और रोहन के आने का इंतज़ार कर रहे थे.. तभी रिया और प्रिया बस में चढ़ि. रिया के हाथ में खाना था जिसे वो पॅक करवा कर लाई थी.. राज जाकर वीरू के पास बैठने लगा तो रिया ने उसको टोक दिया," तुम मेरी जगह बैठ जाओ राज... हम यहाँ खाना खा लेंगे..!"

राज का मुँह खुला का खुला रह गया," वीरू तुम्हारे साथ खाना खाएगा?" राज कभी रिया के मुस्कुराते चेहरे को देखता और कभी वीरू के शरमाये हुए चेहरे को..

"हां.. बोला ना! अब उठो भी यहाँ से.. तुम प्रिया के पास बैठ जाओ!" रिया ने शरारत से मुस्कुराते हुए कहा...

"उठ जाउ भाई?" राज को अब भी विस्वास नही हो रहा था की ये भी हो सकता है...

"अब खाना खाने देना हो तो उठ जा.. नही तो तेरी मर्ज़ी!" वीरू ने भरसक कोशिश की की कहते हुए वो नॉर्मल रह सके, पर मुस्कुराहट उसके चेहरे पर एक बार फिर आए बिना ना रह सकी...

"नही.. उठ रहा हूँ.. पर तू सच में.. मतलब खाना खाएगा ना!" राज की आँखें विस्मय से फैली हुई थी.. वीरू ने कोई जवाब नही दिया और प्रिया के साथ जा बैठा.. रिया ने अपना कमीज़ संभाला और अपने और वीरू के बीच में न्यूसपेपर पर खाना रखकर बैठ गयी...

"ये... ये कब हुआ.. मतलब.." राज का प्रिया से भी यही सवाल था...

"क्यूँ.. तुम्हे अच्च्छा नही लग रहा क्या?" प्रिया ने उसको मुस्कुरकर देखा...

"नही.. मतलब लग रहा है.. बहुत अच्च्छा.. पर ये तो कमाल हो गया.. सच में.. मुझे पता भी नही चला.. तुमने मुझे बताया भी नही.. ना ही इसने कुच्छ.. साला!" राज को हजम ही नही हो रहा था की वीरू इस तरह भी किसी लड़की से पेश आ सकता है..

"जो कुच्छ हुआ है.. अभी हुआ है.. जब ये बस में पानी देने आई थी.. मुझे भी अभी पता चला जब हम खाना पॅक करवा रहे थे... पर तुम बार बार उधर क्या देख रहे हो.. मेरे पास बैठना अच्च्छा नही लग रहा क्या?" प्रिया ने हौले से कहा...

" कमाल हो गया यार.. सच में.. ये तो कमाल हो गया.. ये गुरु घंताल भी लपेटे में आ ही गया.." कहते हुए अंजाने में ही राज ने ज़ोर से प्रिया की जाँघ पर थपकी लगा दी..

"ऊई.. ये क्या कर रहे हो.. ? तुम पागल हो गये हो क्या?" प्रिया ने उच्छलते हुए कहा..

"ओह सॉरी.. मैने वीरू की जाँघ समझ कर थपकी लगा दी.." कहकर राज भौचक्का सा उसकी जाँघ सहलाने लगा.. जहाँ उसने थोड़ी देर पहले ज़ोर की थपकी लगाई थी..

"ऱाआअज.. सब देख रहे हैं..." प्रिया ने राज की तरफ आँखें निकाली... और अपना चेहरा शरम से झुका लिया...

"अब साथ बैठकर बस में ऐसे खाना खाएँगे तो सब तो देखेंगे ही.. पर जब इन्हे कोई परवाह नही है तो हमें क्या?" राज ने हौले से कहा.. उसका हाथ अब भी प्रिया की जाँघ पर रंगे रहा था...

"अपना हाथ हताआओ.." कहकर प्रिया ने राज का हाथ परे झटक दिया... हालाँकि कोई उनकी बातों पर ध्यान नही दे रहा था.. पर प्रिया को जाने क्यूँ लग रहा था की सब उन्हे ही देख रहे हैं...

" ओह्ह्ह.. ये.. एम्म.. म्‍म्माइन.." राज को अब जाकर अहसास हुआ की वो कर क्या रहा था.. प्रिया के हाथ झटके जाने पर ही जैसे वो होश में आया..

"चुप रहो.. और सामने देखो.. मेरी और यूँ मत देखो बार बार..." कहकर प्रिया सीधी होकर बैठ गयी...

बेशक वो सब अंजाने में हुआ था.. पर अब, राज के प्रिया की मुलायम जांघों का चिकनापन अपने हाथ पर महसूस हो रहा था.. कितनी गड्राई हुई है प्रिया.. कितनी मांसल है.. कितनी मस्त! वो वाक़या उसके जहाँ में कौंध गया जब उसने प्रिया को जबरन अपनी बाहों में दबोच लिया था और प्रिया उसकी बाहों से छ्छूटने के लिए च्चटपटा रही थी.. उसके पॅंट में हुलचल होने लगी.. और दिमाग़ में भी...

वीरू और रिया दुनियादारी से बेख़बर होकर खाना खाने में लगे हुए थे.. आज खाने में कुच्छ खास बात थी.. एक खास मिठास.. खाना खाते हुए रह रह कर वो एक दूसरे की आँखों में झाँकते और खिल उठते...

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वासू आंड पार्टी के बस में चढ़ते ही बस का नज़ारा ही बदल गया.. उनमें वासू सबसे आगे था.. नशा कुच्छ हूल्का ज़रूर हुआ था पर सुरूर पूरा कायम था.. बस में चढ़ते ही वह बीच रास्ते में ही खड़ा होकर आगे बैठी नीरू को निहारने लगा.. नीरू समेत सभी को वासू का लहराता बदन देखते ही समझने में देर नही लगी की आख़िर माजरा क्या है? नीरू एक दम से कुच्छ कहने को हुई पर सबके सामने उसकी हिम्मत ना हुई.. उसने अपना मुँह बनाते हुए चेहरा एक और कर लिया...

"सॉरी.. सॉरी नीरू! वो.. विकी कह रहा था कि मर्द ही दारू पी .... सकते हैं.. मैने भी दिखा दिया.. मैं भी मर्द हूँ.. मैं भी पी सकता हूँ.. सॉरी!"

"तो.. मैं क्या कह रही हूँ...... सर!" नीरू की आँखें दबदबा गयी.. जिस तरीके से वासू उस'से मुखातिब हो रहा था.. बस तो तो भंडा फुट ही गया लगता था...

"नहिी नही.. मुझे... पता है.. तुम कह रही हो... मुझे पता है.. पर तुम अंदर ही अंदर कह रही हो.. बोल नही रही तो क्या हुआ.. अब नही कह रही तो बाद में कहोगी.. मुझे पता है.. पर मैने सबको बोल दिया.. तुम सबकी भाभी हो.. डरो मत.. अरे मर्द भी कभी किसी बात से डरते हैं भला.. जो कुच्छ करते हैं.. सीना ठोंक के करते हैं.. श.. सॉरी.. पर तुम तो मर्द हो ही नही.. तुम्हे तो डर लगेगा ही.. नही.. तुम भी मत डरो.. क्यूंकी.. प्यार करने वाले कभी डरते नही.. जो डरते हैं वो.. प्यार करते नही.." वासू आख़िर आते आते गायक बन गया...

नीरू की आँखों से अश्रुधारा बह चली.. उसको समझ नही आ रहा था कि क्या बोले.. और कैसे बोले.. पर जो कुच्छ भी वासू ने बोला.. वक़्त की नज़ाकत को देखते हुए बहुत ग़लत बोला था...

" अब बैठो भी वासू भाई.. हमें भी चढ़ना है उपर..!" पीछे से विकी की आवाज़ आई.. वासू ने रास्ता रोका हुआ था...

"ओह सॉरी.. आ जाओ.. आ जाओ.. कहकर वासू उपर आकर जैसे ही नीरू के पास बैठने लगा.. नीरू वहाँ से खड़ी हुई और पिछे चली गयी.. वासू की समझ में नही आया कुच्छ भी.. वो तो नीरू की आँखों का नीर भी नही देख पाया था... एक पल के लिए वासू वही ठिठक गया और फिर नीरू के पिछे पिछे चला गया.. सबसे पिछे...

बस चल पड़ी...

"आप भी पीकर आए हो? कम से कम उनको तो ना पिलाते.. आप ऐसे कब से हो गये?" दिशा बैठते ही शमशेर पर झल्लाई..

"अब मैने क्या किया है यार.. मैं तो शुरू से ही सबको मना कर रहा था.. कोई मना ही नही.. कहने लगे टूर है.. मस्ती तो करेंगे ही.. आख़िर में मुझे भी एक पैग पीला दिया.. ज़बरदस्ती..." शमशेर ने सफाई दी...

"नही.. जो कुच्छ भी हुआ ग़लत हुआ.. पर ये वासू और नीरू का क्या है? मेरी तो कुच्छ समझ में नही आया.." दिशा ने वहाँ बात को बढ़ाना सही नही समझा..

"हुम्म.. समझ में तो मेरी भी नही आया.. पर कुच्छ ना कुच्छ तो है ही..!" कहते हुए शमशेर ने पिछे मुड़कर देखा.. वासू नीरू के पास बैठा उसको देख रहा था.. और नीरू अपने माथे को हाथों में पकड़े सिर झुकाए बैठी थी....

"तुम भी..." स्नेहा ने विकी को पास बैठते ही घूरा," तुम कभी नही सुधर सकते!" कहकर वो मुस्कुराने लगी...

"अरे आज सुधरने के लिए ही पी है सानू.. सच में, मैं तो ये देख रहा था की प्यार का नशा ज़्यादा होता है या दारू का.." कहते हुए विकी ने बत्तीसी निकाली...

"फिर क्या पाया?" स्नेहा ने उत्सुक होते हुए पूचछा...

"तुम कमाल हो.. ये प्यार कमाल है सानू.. एक ही पल में जिंदगी बदल देता है.. रास्ते बदल देता है.. मंज़िलें बदल देता है.. आज मेरी समझ में आ गया की लोग प्यार पर कुर्बान क्यूँ हो जाते हैं.. भँवरा फूल से बच निकालने की अपेक्षा उसमें दम तोड़ना क्यूँ बेहतर समझता है.. पत्नगा क्यूँ आग में स्वाहा हो जाने को मचल जाता है.. सब प्यार ही है.. प्यार जन्नत है जान.. प्यार से बढ़कर इश्स दुनिया में कुच्छ भी नही.. तुम ही मेरा सब कुच्छ हो सानू.. आइ लव यू!" विकी कहते हुए भावुक हो उठा था.. स्नेहा उसके मुँह से ऐसी बातें सुनकर खुद्पर काबू ना रख सकी और भरी बस में उस'से लिपट गयी..

पिच्छली साथ वाली सीट पर मनु और उसके पिछे बैठी वाणी सब कुच्छ गौर से सुन रहे थे.. विकी की तुलना में वो बच्चे थे.. पर प्यार की इस गहराई को विकी से काफ़ी पहले समझ चुके थे.. महसूस कर चुके थे.. अचानक ही मनु के लिए वाणी का प्यार उमड़ पड़ा.. अगर मान'सी साथ ना होती तो शायद वो अभी जाकर उसके पास बैठ जाती.. या उसके अपने पास बुला लेती... मुश्किल से 2 फीट की दूरी अचानक उसको मील भर की लगने लगी.. वह भी उस भंवरे को खुद पर कुर्बान करने को लालायित हो उठी.. पर कोई चारा नही था...

या शायद था.....

भगवान जाने.. शायद मा'नस ने उनके दिल की बात समझ ली," मुझे लेटना है मनु.. तुम पिच्छली सीट पर चले जाओ ना...."

नेकी और पूच्छ पूच्छ.. मनु ने मुस्कुरकर पिछे की और देखा, वाणी भी मुस्कुरा उठी.. और एक पल भी बिना गँवाए एक तरफ हो ली.....

"तुम.. रो क्यूँ रही हो? किसी ने कुच्छ बोल दिया क्या?" नीरू को सुबक्ते देख ही वासू का नशा काफूर हो गया..

"कोई और क्या बोलेगा? आपने ही इतना कुच्छ बोल दिया है.." नीरू ने अपना चेहरा उपर ना उठाया...

"पर मैने तो वही बोला है जो सच है.. हां! मैं तुमसे प्यार करता हूँ.. क्या तुम नही करती?"

नीरू चाह कर भी कुच्छ ना बोली.. उसका मॅन बहुत उदास हो गया था.. उसको तनिक भी उम्मीद नही थी की वासू इस तरह से सारे-आम पीकर ऐसा ड्रामा करेगा!

"बोलो ना.. क्या तुम मुझसे प्यार नही करती?" वासू उसकी तरफ से कोई जवाब ना पाकर अधीर हो उठा..

"आप मुझे अकेला छ्चोड़ दो प्लीज़.. मैं कुच्छ नही बोलना चाहती..!" नीरू ने सिर झुकाए हुए ही जवाब दिया...

"क्यूँ नही बोलना चाहती.. क्या ये सच नही है कि.. तुमने ही मुझे प्यार सिखाया है.. दर असल तुमसे मिलने के बाद ही मैने जीना सीखा है.. हँसना आया है.. अगर तुम मेरी जिंदगी में नही आती तो शायद मैं तो यूँही रह जाता.. तुम्हारे कहने पर तो मैने गुड वाली चाय भी छ्चोड़ दी.. सच पूच्छो तो आज तुम्हारी खातिर ही मैने दारू पी है.. विकी का तो बहाना भर था.. मैं तुम्हे बताना चाहता था कि मैं भी मस्त इंसान बन सकता हूँ.. मैं भी औरों की तरह जिंदगी का आनंद ले सकता हूँ.. अगर आज ना पीता तो शायद कभी सबके सामने तुम्हे ये बात कह ही ना पाता.. और ये हिचक एक दिन तुम्हे मुझसे दूर ले ही जाती.. आज मैने एलान कर दिया है.. कि तुम मेरी हो.. अब सिर्फ़ तुम्हारा इशारा बाकी है.. गाँव में या घर पर जो कुच्छ होगा, मैं देख लूँगा.. सिर्फ़ तुम एक बार कह दो की तुम मुझसे प्यार करती हो...!" वासू ने उसके दोनो हाथ पकड़ कर उसको अपनी और देखने को मजबूर कर दिया...

नीरू की सूख चली आँखें एक बार फिर छलक उठी..," आप घर वालों को संभाल लोगे ना.. मुझे बहुत डर लग रहा है!"

"पहले बोलो, मुझसे प्यार करती हो या नही.. ?" वासू अब भी उसके हाथ ऐसे ही पकड़े हुए था...

"आपको सब मालूम है!" कहते हुए नीरू मुस्कुरा पड़ी और अपना हाथ च्छुडा कर आँसू पौंच्छने लगी...

"मुझे तो यही लगता है कि पहले तुमने ही मुझसे प्यार किया.. और फिर अपने जाल में फँसा लिया!" वासू मुस्कुराने लगा...

"आप कोई मछली हो जो मैं जाल में फँसा लूँगी... आपने ही मुझे च्छेदा था उस दिन... पहले!" नीरू सामान्य होकर धीरे धीरे बोलने लगी थी...

"किस दिन..?" वासू को याद नही आया...

"वो.. जब मैं योगा सीखने गयी थी.. आपके पास.. और मेरे पेट में दर्द हो गया था.. तब" नीरू शरमाते हुए बोली..

"फिर.. मैं तो इलाज ही कर रहा था.. च्छेदा कब था?" वासू ने सफाई दी... पर दोनो ही जान बूझ कर बात को 'उस' और लेकर जा रहे थे, जहाँ कामनायें जाग जाती हैं.. और खुद पर काबू रखना मुश्किल हो जाता है.. पल भर का भी इंतज़ार नही होता फिर...

"हुम्म.. इलाज कर रहे थे.. मुझे सब पता है.. मैं सब समझ गयी थी.." नीरू ने अपनी मोटी कजरारी आँखें वासू से चार की और तुरंत ही हटा ली...

"क्या पता है.. क्या समझ गयी थी तुम?" वासू ने आगे की और देखा, किसी का ध्यान पीछे नही था...," एक मिनिट.." कहकर वासू उठकर ड्राइवर के कॅबिन में गया और पिछे बस में जल रही धीमी सी लाइट भी बंद करवा दी.. वापस आते ही उसने फिर से वही सवाल किया.." हां! अब बोलो...क्या पता है.. क्या समझ गयी थी तुम?"

" ये लाइट आपने ही बंद करवाई है क्या?" नीरू ने वासू से उल्टा सवाल किया.. अंधेरे में वासू का हाथ उसके हाथ को अलग ही अनुभूति दे रहा था.. गर्माहट भरी...

"हुम्म!" वासू ने जवाब दिया...

"क्यूँ?" नीरू का दिल धक धक करने लगा.. किसी अंजानी मगर मनचाही उम्मीद से..

"ताकि कोई पिछे देखे तो हम उनको दिखाई ना दें.. खुल कर बात कर सकें.. इसीलिए.. तुम बोलो ना.. क्या कह रही थी तुम.. मैने तुम्हे पहले कब छेड़ा था...?" वासू ने उसके हाथों को सख्ती से पकड़ते हुए कहा..

नीरू ने अपने दोनो हाथ वासू के हाथों में अब ढीले छ्चोड़ दिए थे," मुझे शरम आ रही है.. बताते हुए..."

"अब इसमें शरमाने वाली क्या बात है? हम एक दूसरे से प्यार करते हैं.. शरमाने से कब तक काम चलेगा.. आगे चलकर बच्चे भी पैदा करने हैं.." वासू की बेबाकी में शराब का पूरा हाथ था..

ये बात सुनकर नीरू एकद्ूम लाल हो गयी.. उसके बदन में एक झुरजुरी सी उठी.. पर अंधेरा होने की वजह से वासू उसके मन के भाव भाँप ना पाया...

"बोलो ना नीरू.. कुच्छ तो बोलो..!"

"वो.. जब आपने.. आप खुद ही क्यूँ नही समझ जाते.. मुझसे मत कहलवाइए.. मुझे शरम आ रही है... प्लीज़!" नीरू बोलते बोलते रुक गयी..

"बोलो ना.. अब बोल भी दो.." वासू का एंजिन भी गरम होता जा रहा था...

"वो.. जब आपने मेरे यहाँ पर हाथ लगाया था तो बड़ा अजीब सा लगा था.. पता नही क्या हो गया था मुझे.. उस रात और उस'से अगली रात मैं सो भी ना सकी.. उसके बाद आपके पास आने की हिम्मत भी ना हुई.. पर ऐसा लगने लगा था जैसे मेरा कुच्छ खो गया है.. और वो आपके पास ही है... फिर..." कहते कहते नीरू फिर रुक गयी...

"बोलो ना.. फिर क्या?" वासू अधीर हो उठा था.. इश्स बात के बाद उसको और कुच्छ भी पूच्छना था..

"फिर मुझे लगा.. मुझे आपसे प्यार हो गया है.." कहते ही नीरू ने अपने हाथ वासू के हाथों से खींच लिया और अंधेरे में भी शर्मकार अपने चेहरे पर हाथ रखकर उसको छिपा लिया...

"फिर क्या हुआ नीरू.. !" वासू ने इस बार उसके हाथों को पकड़ने की कोशिश की तो वो पूरी ही खींची आई.. और अपना चेहरा वासू की छाती पर टीका दिया...

"फिर मैं पागल सी हो गयी.. किसी काम में मेरा मन ही नही लगता था.. घर में किसी से सीधे मुँह ना बोलती.. हमेशा आप ही आप मेरे दिमाग़ में छाये रहते.. छुट्टियाँ ख़तम होने का में बेशबरी से इंतज़ार कर रही थी.. उस दिन मेरी खुशी का कोई ठिकाना नही था जब छुट्टियों के बाद पहले दिन स्कूल लगा.. मैं स्कूल टाइम से आधा घंटा पहले स्कूल आ गयी थी.. पर जब उस दिन आपने मुझसे बात नही की तो में इतना रोई थी.... आपने मुझसे बात क्यूँ नही की...?"

"वो.. मेरी भी हिम्मत नही हो रही थी नीरू.. मुझे लगा तुम मुझसे नाराज़ हो.. पर बाद में तो मैं बोला था ना..." वासू ने सपस्त किया...

"कहाँ बोले थे आप? मैं ही आपके पास आई थी.. सवाल समझने का बहाना करके.. आप तो कभी भी नही बोलते मुझसे.. मुझे लगता है!" नीरू ने वासू के सीने पर सिर टिकाए हुए उसके दूसरी और कंधे पर हाथ रख लिया.. नीरू की ठोस छातियों में से एक वासू की बाँह से सटी हुई थी.. और वह वासू के दिलो-दिमाग़ में तहलका मचा रही थी...

"मैं समझ गया था.. इसीलिए ही तो मैने तुम्हे स्टाफ रूम में बुलाया था..." वासू ने वो हाथ निकाल कर उसकी कमर पर रख लिया जो कुच्छ देर पहले नीरू की छातियों के संपर्क में था.. अब नीरू का वो स्तन वासू की पसलियों को छू रहा था...

"आपने जब वहाँ मेरे कंधे पकड़े.. तब भी मुझे करेंट सा लगा था.. ऐसा क्यूँ होता है?" नीरू की आवाज़ में लगातार तब्दीली आ रही थी.. पहले नाराज़गी का स्थान मायूसी ने.. मायूसी का मुस्कुराहट ने और अब मुस्कुराहट का स्थान उसकी गरम साँसों से निकल रही मादकता ने ले लिया था.. वासू हर पल हो रहे इश्स परिवर्तन को महसूस कर भी रहा था...

"अब ऐसा कुच्छ नही हो रहा क्या?" वासू ने उसको छेड़ ने के अंदाज में पूचछा...

नीरू कुच्छ ना बोली.. अपनी साँसों को रोक कर खुद पर नियंत्रण करने की कोशिश करने लगी.. पर ये आग बिना 'पानी' बुझती है कभी.. और भड़कट्ी है.. सो भड़क रही थी....

"मैं तुम्हे छ्छू लूं, नीरू? मैं बेताब हूँ, तुम्हे महसूस करने को.." वासू ने उसके कान में गरम साँस छ्चोड़ते हुए कहा...

नीरू का जवाब वासू के कंधे पर बढ़ गयी उसके हाथ की जकड़न के रूप में सामने आया.. अपने आप को ढीला छ्चोड़कर वो वासू के आगोश में जाने को मचल उठी...

"बोलो ना.. प्लीज़.. कह दो हाँ!" वासू उसकी भी स्थिति समझ रहा था और खुद की भी.. पर बिना आग्या वह आगे कैसे बढ़ता...

नीरू अपना चेहरा उठाकर वासू की गर्दन के पास ले गयी.. इस स्थिति में दोनो की छातियाँ एक दूसरे से टकरा उठी.. प्यार की अग्नि में वासना की लपटें पल पल ऊँची होती जा रही थी.. वासू की गर्दन पर अपने पतले कोमल होन्ट सटकर नीरू ने साँसों ही साँसों में जवाब दिया," कोई देख लेगा..?"

"अंधेरे में कौन देखेगा.. सब सो गये होंगे.. कोई जाग भी रहा होगा तो किसी को कुच्छ दिखाई......" कहते हुए जैसे ही वासू ने अपना चेहरा नीचे किया, धधक रही नीरू ने अपने सुलगते हुए होंठ वासू के होंठो पर टीका दिए.. फिर कौन बोलता.. बोलने के लिए जगह ही कहाँ बची थी....

वासू का हाथ अपने आप ही फिसल कर नीरू की छातियों पर फिसलने लगा.. कुँवारी चूचियों पर बने छ्होटे छ्होटे दाने पहले से ही चौकन्ने होकर तन गये थे.. जैसे ही वासू का हाथ वहाँ मंडराया, नीरू कसमसा उठी और उसने वासू के होंठो को अपने दाँतों में दबाकर काट खाया.. वासू इस मीठे दर्द से तड़प उठा और उसके पंजे ने मुट्ठी बनकर नीरू के 'सेब' जैसे उभारों को कस लिया.. कमीज़ और समीज़ के उपर से ही नीरू इस अविस्मरणीया अहसास को पाकर अधमरी सी हो गयी.. और सरक कर वासू से बुरी तरह चिपक गयी...

वासू ने नीरू के होंठो को चूमते हुए ही अपना हाथ नीचे खिसका दिया, कमसिन नाभि को छूता हुआ उसका हाथ नीरू की जांघों के बीच पहुँच गया.. और ना चाहते हुए भी नीरू ने छॅट्पाटा कर अपने होंठो को आज़ाद किया और इतनी लंबी साँस ली मानो काफ़ी देर से साँस उसके अंदर से निकली ही ना हो.. एक मादक लंबी सिसकी..

"क्या हुआ?" वासू ने चौंक कर अपना हाथ उसके 'वहाँ' से हटा लिया...

"कुच्छ नही.." नीरू ने सिर्फ़ इतना ही बोला और फिर से होंठो को होंठो की क़ैद में देते हुए वासू का हाथ खींच कर फिर से अपने 'वहाँ' लगा दिया... वो अब सब कुच्छ भूल चुकी थी...

वासू एक बार फिर 'उस' दिन वाली स्थिति का सामना नही करना चाहता था.. इसीलिए थोड़ी जल्दबाज़ी दिखाते हुए उसने अपनी पॅंट की जिप खोली और नीरू का हाथ पकड़ कर नीचे ले जाकर अपनी जांघों के बीच का रास्ता दिखा दिया.. नीरू तो मदहोश ही हो चुकी थी.. बिना सोचे समझे, वासू ने उसको जो भी पकड़ाया, झट से अपनी मुठ्ठी का दायरा बना कर 'उसको' सख्ती से पकड़ लिया... कुच्छ ही देर में उसके अचेत मस्तिस्क को हाथ में पकड़े 'हथियार' की लंबाई और मोटाई का अहसास हुआ तो उसने चौंक कर अचानक अपना हाथ खींच लिया और दूर होकर फिर से एक लंबी साँस लेते हुए बोली," ययए.. क्या है?"

वासू उसके भोलेपन पर मुस्कुराए बिना ना रह सका," तुम्हे नही मालूम क्या?"

नीरू ने झिझकते हुए बोल ही दिया," हां,.. पर इतना लंबा?"

" ये तो इतना ही होता है.. तुम क्या समझती हो?" वासू ने उसके गालों का चुंबन लेते हुए पूचछा...

"नही.. ये तो उंगली जैसा होता है.. मैं देखा है!" नीरू अपनी उंगली को लंबा करते हुए बोली...

"तुम भी ना.. तुमने छ्होटे बच्चों का देखा है.. आओ ना.. अब क्यूँ तड़पा रही हो.. कहते हुए वासू ने उसको फिर से अपनी और खींच लिया.. उसके हाथ में फिर से वही 'हथियार' पकड़ा कर...

कुच्छ देर तक नीरू उस पर यूँही अचरज से हाथ फिरा फिरा कर देखती रही.. फिर जब सामान्य हो गयी तो उसने भी अपनी जांघें खोल कर वासू के हाथ को मस्ती करने की इजाज़त दे डाली.. मनचाहे ढंग से...

आख़िरकार पहली बार वासू को नारी के हाथों स्खलन सुख प्राप्त हुआ.. यूँही हिलते हिलाते करीब 15 मिनिट बाद वासू ने नीरू के हाथ से 'उसको' छ्चीना और थोडा आगे झुक कर बस में पिचकारी छ्चोड़ दी.. नीरू तो पहले ही 2 बार 'गीली' हो चुकी थी.. कुच्छ पल के लिए दोनो को अजीब सी शांति मिली.. पर इस शांति से ज़्यादा कुच्छ होना नही था.. अब तो तूफान आकर ही रहना था.. बस मौके का इंतजार था...


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