कमसिन कलियाँ--16
गतान्क से आगे..........
राजेश: बेटा…देखो कितने सेक्सी तरीके से मैनें तुम्हारे कपड़े तुम्हारे जिस्म से अलग कर दिए। अब इसी तरह तुम मेरे कपड़े भी उतार दो…
टीना: (थोड़ा सकुचाते हुए) पापा प्लीज आप ही उतार लो… (और कह कर अपने बालरहित कटिप्रदेश को हाथों से ढकने की नाकाम चेष्टा करती है)
राजेश: न बेटा… यह तुम्हें करना है। हाँ जो तुम ढकने की कोशिश कर रही हो उस को मै अपने हाथों से ढक देता हूँ…(कहते हुए अपनी एक हथेली टीना की नग्न योनि पर रख देता है)
(टीना धीरे से राजेश के शर्ट के बटन खोलती है। राजेश अपनी शर्ट को उतार फेंकता है। उसकी बालिष्ट छाती पर टीना प्यार से अपनी कोमल उंगलियों को फिराती है। फिर वह बेल्ट को ढीला करके राजेश की पैन्ट की जिप को खोलती है। पैन्ट ढीली हो कर कमर से सरक कर जमीन पर आ जाती है। अब टीना के हाथों का निशाना राजेश के वी-शेप जांघिया पर है और एक झटके के साथ उसे भी शरीर से अलग कर देती है। दोनों थोड़ा सा हट कर एक दूसरे का नग्न जिस्म को अपनी-अपनी आँखों से पीते है।)
टीना: आपके…(लिंग की ओर इशारा करते हुए) ल्ड क्या हुआ है। यह ऐसे कैसे लटका हुआ है… पहले तो यह इतना कठोर होता था।
राजेश: बेटा इसको ल्ड नहीं लंड या लौड़ा कहते है। इस बेचारे की हालत तुम्हारी वजह से ऐसी है। आज सारे दिन यह सिर्फ तुम्हारे नीचे वाले मुख में विराजमान होना चाह रहा था परन्तु तुम इतनी कठोर हो गयी तो इसकी सारी कठोरता समाप्त हो गयी है।
टीना: पापा छोड़िए सब कुछ्…आइए हम अपना रूटीन करते है। बताइए क्या करना है।
राजेश: बेटा…सब से पहले हम लूजनिंग एक्सरसाइज करेंगें… जा कर बेड पर सीधी हो कर लेट जाओ और अपने जिस्म को उपर लगे हुए आईने में निहारों। (टीना के नग्न कमसिन जिस्म को सहलाते हुए) …बेटा तुम बिल्कुल अजन्ता की मुर्ती दिखती हो…
(टीना सामने पड़े किंग साइज बेड पर जा कर लेट जाती है। उपर लगे हुए मिरर में अपने उमड़ते हुए यौवन को निहारती है। पुष्ट सीने पर ताज की तरह गुलाबी चूचियाँ एक अजीब सी अकड़न के कारण तड़क रही है। टीना की मासूम आँखों में एक बार फिर से लाल-लाल डोरे तैरने लगते है। अजीब बैचैनी और कश्मकश में टीना अपनी आँखे मूंद लेती है। छातियों की घुन्डियों मे से करन्ट फिर से प्रावाहित होना शुरु कर देता है। राजेश की निगाह कटिप्रदेश पर पड़ती है तो चूत की दो फांकों के बीच से लाल घुन्डी अपना मुख बाहर निकालती हुई दिखाई देती है।)
राजेश: (अपनी उँगली से बाहर झाँकती हुई घुन्डी पर वार करता हुआ) टीना… तुम्हारी क्लिट मेरे लौड़े को ढूँढ रही है…तुम्हारी चूत इसको पूरा निगलना चाहती है…
टीना: नहीं पापा…यह सब गलत है…
(राजेश अपने हाथों में टीना का चेहरा ले कर, बड़े प्यार से अपने होंठ टीना के होठों पर रख देता है और धीरे से अपनी जुबान का अग्र भाग टीना के निचले होंठ पर फिराता है। इस खेल में पूर्णतः निपुण टीना के होंठ थोड़े से अपनेआप खुल जाते है। उसी क्षण राजेश के होंठ टीना के निचले होंठ को अपने कब्जे मे ले लेते है और धीरे-धीरे निचले होंठ को चूसना शुरु कर देता है और बीच-बीच में अपनी जुबान टीना के उपरी होंठ पर फिराता है।टीना अपने आपे में नहीं रह पाती और अपने होठों को पूरा खोल देती है पर राजेश टीना से अलग हो जाता है। टीना आँखे मूंदें अपने झोंक में राजेश के होंठों को छूने के लिये आगे को झुकती है पर कुछ न पा कर आँखें खोलती है तो राजेश से आँख मिलते ही झेंप जाती है।)
राजेश: बेटा… यह वो आग है जिसमें मै इतने सालों से झुलस रहा हूँ… और तुम हो कि…
टीना: (अन्दर लगी हुई आग में बेचैन होते हुए) पापा…
(टीना की कमर को पकड़ कर राजेश धीरे से उसे अपने नीचे ले लेता है। दोनों की दिल की धड़कने बड़ने लगती हैं क्योंकि अब दोनों के गुप्तांग अपने-अपने दिमाग से सोच रहें है। टीना के स्तन राजेश के सीने में गड़ जाते है और नीचे से लिंगदेव भी हरकत में आ कर बहती हुई योनिद्वार पर ठोकर मारते है। बार-बार राजेश की गर्म साँसों का आघात अपने चेहरे पर और कभी ज़ाँघो के अन्द्रुनी हिस्सों पर फनफनाते हुए एक आँख वाले अजगर के एहसास ने टीना को विचलित कर रखा है। राजेश धीरे से पंखुडी से होठों पर अपने होंठों से लगातार प्रहार करता है। थोड़ा रुक कर, फिर गले से होता हुआ दो हसीन पहाड़ियॉ के बीचोंबीच बनी खाई पर आ कर रुक जाता है। इधर टीना भी उत्तेजना की चरम सीमा पर पहुँचने को हो रही है, कभी गुदगुदी का एहसास, कभी शरीर मे सिहरन, कभी अनजानी राह की अनिश्चितता, और इन सब में धीमी आँच मे जलता हुआ उसका कमसिन बदन राजेश के फौलादी जिस्म के नीचे दब कर तड़प रहा है।)
राजेश धीरे से लाल हुए मुकुट मटर को अपनी उँगली से छेड़ देता है। टीना:.उ.अ..आह.पा…अ.उउआ.पाआह....
राजेश: बेटा तुम्हारी चूत को अपनी आग ठंडी करने के लिए मेरा लंड चाहिए… इस वक्त तुम्हारी…चूत को एक सख्त हथौड़े…नहीं लौड़े की जरुरत है। क्या कहती हो…चाहिए कि नहीं?
टीना: पा…अ.उउआ.पाआह.... (योनिद्वार के मुहाने पर लिंगदेव के फूले हुए सिर को महसूस करती हुई) प…आपा… यह गलत…है
राजेश: (अपना पैंतरा बदलते हुए) बेटा यह गलत नहीं है…हम एक्सरसाइज कर रहें…हमारे शरीर में टाक्सिन बन रहें है…इसमें क्या गलत है। जब तुम बीमार होती हो तब तुम्हें दवाई पीनी पड़ती है या उसका इन्जेक्शन लगता है… तुम मेरे बनाए गए टाक्सिन बहुत बार अपने मुख से ले चुकी हो…परन्तु जो आग तुम्हारे अन्दर भड़क चुकी है उसके लिए इन्जेक्शन जरूरी है… तो इसमें क्या गलत है।
टीना: पा…अ.उउआ.पाआह....हम एक्सरसाइज कर रहें है।
राजेश: हाँ… और क्या कर रहें है…
(राजेश का एक हाथ एक बार फिर से टीना की गोरी पहाड़ियों के मर्दन में और उसका मुख गुलाबी बुर्जीयों को लाल करने में वयस्त हो जाते है। हल्के हाथ से नग्न नितंबो को सहलाते हुए, कुछ दबाते हुए और अपने हथियार को बेरोकटोक योनिच्छेद पर घिसते हुए राजेश पूरी हरकत मे आ गया है। अपनी भुजाओं मे कस कर, राजेश धीरे से उत्तेजना से बेबस टीना का बायां पाँव उपर उठा कर अपने लिंग को ढकेलता है। एक हल्की सिसकारी के साथ टीना कस के राजेश को चिपट जाती है।)
टीना: पा .उई....प.आ...पा.…उ.उ.उ...आह.....
राजेश: बेटा…(टीना के थिरकते होठों को अपने होठों के कब्जे में लेकर लगातार चूमता हुआ और दोनों अनावरित उन्नत पहाड़ियों को सहलाते हुए कभी चोटियों पर उँगलियॉ फिराता और कभी दो उँगलियों मे घुन्डियों को फँसा कर खींचता, कभी पहाड़ियों को अपनी हथेलियों मे छुपा लेता और कभी उन्हें जोर से मसक देता। उधर आँखे मुदें हुए टीना का चेहरा उत्तेजना से लाल होता चला जा रहा है।)
राजेश: टीना अब आगे बढ़ा जाए…
टीना: हुं….उई....अ.आ...क.…उ.उ.उ.ल..न्…हई…आह.....
(राजेश बालोंरहित कटिप्रदेश और योनिमुख को अपनी उंगलियों से टटोलता है और अपनी उँगलियों जुड़ी हुई संतरे की फाँकों को अलग करता है। राजेश की उंगली योनिच्छेद में जगह बनाती अकड़ी हुई घुन्डी पर जा टिकती है।)
टीना: .उई...माँ….पअ.पा.……उफ.उ.उ...न्हई…आह.....
(राजेश अपनी उंगली से सिर उठाती हुई घुन्डी का घिसाव जारी रखता है। अपने होठों से टीना के होंठों को सीलबन्द कर देता है। नये उन्माद में टीना की सिसकारियाँ बढ़ती जाती हैं।)
राजेश: (टीना के निचले होंठ को चूसते और धीरे से काटते हुए) टीना…टीना…
टीना: (शर्म से अधमरी हुई जा रही) हुं…
राजेश: क्या हुआ…अब कैसा लग रहा है?
टीना: हुं…(एक सिसकारी भरती हुई)…ठीक हूँ…
(एक बार फिर से कभी जुबान से फूले हुए निप्पल को छेड़ता और कभी पूरी पहाड़ी को निगलने की कोशिश करता है। राजेश अपने तन्नायें हुए हथियार को मुठ्ठी में लेकर धीरे से एक-दो बार हिलाता है और फिर टीना की चूत पर टिका देता है। लोहे सी गर्म राड का एहसास होते ही टीना के मुख से एक सिसकारी निकल जाती है। राजेश प्यार से संतरे की फाँकों को खोल कर अकड़ी हुई घुन्डी पर अपने फनफनाते हुए अजगर से रगड़ता है और फिर धीरे-धीरे रगड़ाई की लम्बाई बढ़ाता है)
टीना: (आँखें मूदें महसूस करती हुई कि एक गर्म सलाख सिर उठाती घुन्डी को दबाते हुए सरकते हुए योनिच्छेद को छेड़ते हुए नीचे की ओर बड़ती हुई नितंबों के बीच में छुपे हुए छिद्र पर जा कर टिक गयी और जैसे ही वापस होने को हुई)…उ.उई...पापा.उ… उक.……उफ.उ...न्हई…आह.....
(राजेश अपनी जुबान से टीना के होंठों को खोल कर उसके गले की गहराई नापता है। घुन्डी के उपर लिंगदेव का घिसाव अन्दर तक टीना को विचलित कर देता है। राजेश तन्नाये हुए लिंगदेव को टीना की चूत के अन्दर डालने का प्रयास करता है और उत्तेजना में तड़पती टीना के चेहरे और होंठों पर राजेश अपने होंठों और जुबान से भँवरें की भाँति बार-बार चोट मार रहा है।)
राजेश: टीना… आज तुम्हारी पहली बार है…याद है कि पहली बार तुम्हें इन्जेक्शन लगा था तो बहुत दर्द हुआ था परन्तु बाद में सब ठीक हो गया था…अपने आप को ढीला छोड़ दो और मेरे लंड को अपने भीतर जाते हुए मह्सूस करो…
(राजेश प्यार से संतरे की फाँकों को खोल कर घुन्डी को दबाते हुए सरकते हुए योनिच्छेद के मुख पर लगा कर अपने कड़कते हुए लंड को धीरे से ठेलता है। संकरी और गीली जगह होने की वजह से फुला हुआ कुकुरमुत्तेनुमा लाल सुपाड़ा फिसल कर जगह बनाते हुए कमसिन चूत के दोनों होंठों को खोल कर अन्दर घुस जाता है।)
टीना: …उ.उई.माँ..पाअ.…पा.……उफ...न्हई…आह.....
(टीना के स्तन को अपने मुख में भर कर राजेश रसपान करने मे लग जाता है। लिंगदेव अपना सिर अटकाए शान्ति से इन्तजार करते है कि अनछुई चूत इस नये प्राणी की आदि हो जाए। राजेश के धीरे-धीरे आगे पीछे होने से सिर का घिसाव अन्दर तक टीना को विचलित कर देता है। इधर चूत मे फँसे हुए लिंगदेव अपने सिर की जगह बन जाने के बाद और अन्दर जाने मे प्रयासरत हो जाते है। उधर उत्तेजना और मीठे से दर्द में तड़पती टीना अपने होंठ काटती हुई कसमसाती है। बार-बार हल्की चोट मारते हुए राजेश जगह बनाते हुए एक भरपूर धक्का लगाता है। आग में तपता हुआ लौड़ा प्रेम रस से सरोबर सारे संकरेपन को खोलता हुआ और टीना के कौमर्य को भंग करता हुआ जड़ तक जा कर अन्दर फँस जाता है। टीना की आँखें खुली की खुली रह गयी और मुख से दबी हुई चीख निकल गयी।)
टीना: उ.उई.माँ..उफ…मररउक.…गय…यईई…उफ..नई…आह..ह..ह.
राजेश: (पुरी तरह अपने लिंग को जड़ तक बिठा कर) शश…शशश्…टीना…ना
टीना: पापा निका…उ.उई.माँ..अँ.उफ…मररगय…यईई…निक्…उफ..लि…ए…आह..ह..ह.
राजेश: शश…श…बस अब सारा कष्ट खत्म, बस आगे आनंद ही आनंद…।
(टीना की चूत ने भी राजेश के लिंग को अपने शिकंजे मे बुरी तरह जकड़ रखा है। चूत की गहराई नापने की कोशिश मे टीना की चूत में कैद राजेश का लंड भी अपने फूले हुए सिर को पूरी तरह निचुड़ा हुआ पा रहा है। क्षण भर रुक कर, राजेश ने टीना के गोल सुडौल नितंबो को दोनों हाथों को पकड़ कर एक लय के साथ आगे-पीछे हो कर वार शुरु करता है। एक तरफ लंड का फूला हुआ नंगा सिर टीना की बच्चेदानी के मुहाने पर चोट मार कर खोलने पर आमादा हो जाता है और फिर वापिस आते हुआ कुकुरमुत्ते समान सिर छिली हुई जगह पर रगड़ मारते हुए बाहर की ओर आता। धीरे से बाहर खींचते हुए जैसे ही लंड की गरदन तक निकलता, एक बार फिर से उतनी ही स्पीड से अन्दर का रास्ता तय करता। टीना की चूत भी अब इस प्रकार के दखल की धीरे-धीरे आदि हो गयी है।)
राजेश: (गति कम करते हुए) टीना… बेटा अब दर्द तो नहीं हो रहा है…
टीना: हाँ …पापा बहुत दर्द हो रहा है…
राजेश: (रोक कर)… ठीक है मै फिर निकाल देता हूँ… (और अपने को पीछे खींचता है)
टीना: (अपनी टाँगे राजेश की कमर के इर्द-गिर्द कस कर लपेटते हुए) …न…हीं, अभी नही…
राजेश: अगर मजा आ रहा है तो …
टीना: पापा प्लीज्…
(ऐसे ही जबरदस्त धक्कों मे ही राजेश के जिस्म मे लावा खौलना आरंभ हो गया। वह अपने आप को कंट्रोल मे करने के लिए एक पल के लिए रुक जाता है। वह टीना के जिस्म को सहलाते हुए अपनी उत्तेजना को काबू मे लाने की कोशिश करता है। कभी टीना के गुलाबी गालों को चूमता है और कभी अपने मुख मे भर कर चूसने मे लग जाता है। कभी वह कमसिन चूचियों को चूसता है और कभी पूरी पहाड़ी को निगलने की कोशिश करता है। इसी बीच टीना की कमसिन चूत मे एक बार भूचाल आता है और अपनी चूत को हिलाने की कोशिश करती है। परन्तु राजेश के नीचे दबी होने के कारण वह हिल नहीं पाती। राजेश उसके मचलते हुए जिस्म की आग को महसूस करते हुए एक बार फिर से धीरे-धीरे धक्के लगाना आरंभ कर देता है। अबकी बार टीना मस्ती मे राजेश का साथ देने लगती है। धक्कों का सिलसिला अब धीरे-धीरे जोर पकड़ने लगता है और एक वक्त ऐसा आता है कि दोनों अपनी आग बुझाने के लिए तड़प उठते है। राजेश अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुका है। ज्वालामुखी फटने से पहले एक जबरदस्त आखिरी वार करता है। नौ इंची का अजगर अपनी जगह बनाते हुए बच्चेदानी का मुख खोल कर गरदन तक जा कर अन्दर धँस जाता है। इस वार को टीना बरदाश्त नहीं कर पाती और मीठी सी पीड़ा और रगड़ की जलन आग मे घी का काम करते हुए धनुषाकार बनाती हुई टीना की चूत झरझरा कर बहने लगती है और राजेश के लंड को जकड़ कर झट्के लेते हुए दुहना शुरु कर देती है। हर्षोन्मत्त टीना की आँखों के सामने तारे नाँचने लगते हैं। राजेश को इसका एहसास होते ही उसका लंड भी सारे बाँध तोड़ते हुए बिना रुके अपने मुख से लावा उगलना शुरु कर देता है। टीना की चूत को अपने प्रेमरस से लबालब भरने के बाद भी राजेश अपने लंड को फँसाये रखता है और नई-नवेली संकरी चूत का कुछ देर लुत्फ लेता है। राजेश बड़े प्यार से टीना को चूमता है। टीना शिथिल अवस्था मे उसके नीचे दबी पड़ी हुई है। एक बार फिर से राजेश दो चार धक्के देकर अपने ढीले पड़ते हुए लंड को जगाने की कोशिश करता है लेकिन हारे हुए सैनिक की तरह उसका लंड शहीद हुए सैनिक की तरह अपने आप बाहर सरक कर निकल आता है। लंड के निकलते ही, टीना की चूत से प्रेमरस धीरे से रिसता हुआ नीचे बिछी हुई सफेद बेड-शीट पर हल्के गुलाबी रंग से टीना के प्रथम एकाकार की कहानी लिखता हुआ प्रतीत होता है।)
राजेश: (गालों को सहलाते हुए) टीना…टीना…
टीना: (कुछ क्षणों के बाद)….गअँ.न्ई…आह..... (अपनी आँखें खोलती हुई) पापा…
राजेश: (टीना के सिर को सहारा दे कर उठाते हुए) क्या हुआ टीना…।
टीना: (पल्कें झपकाती हुई) कुछ नहीं पापा, साँस घुटती हुई लगी और मेरी आँखों के आगे अंधेरा छा गया।
राजेश: इस स्तिथि को सातवें आसमान पर कहते हैं।
टीना: (खुश हो कर) अच्छा…
राजेश: (अपने सीने से लगाते हुए) जो लड़की बहुत कामुक, संवेदनशील और रोमांटिक प्रवऋत्ति की होती हैं वही इस स्तिथि का बोध कर पाती है। टीना तुम तो गजब हो… क्या एक बार फिर से…।
टीना: नहीं पापा…कुछ देर के बाद। अभी बहुत दुख रहा है…
राजेश: बेटा तुम जरा थोड़ी देर ऐसे ही लेटी रहोगी तो सब कुछ जम जाएगा। ऐसा करो कुछ तकलीफ़ तो होगी परन्तु तुम्हारी चूत को इससे बहुत फायदा होगा अगर तुम पालथी मार कर बैठ जाओ…
टीना: अच्छा… पर आप मेरी मदद करो क्योंकि मुझसे हिला भी नहीं जा रहा है।
(राजेश धीरे से टीना को बैठाता है और फिर दोनों पाँवों को पकड़ कर पालथी मारता है। जैसे ही पाँव मोड़ता है टीना के मुख से चीख निकल जाती है। लेकिन पालथी मारते ही की चूत की अधखुली सुरंग पूरी तरह खुल जाती है और गाड़े गुलाबी रंग का प्रेमरस उबल कर बेड-शीट को रंगता हुआ सारी ओर फैल जाता है।)
टीना: (घबराहट में) पापा…यह क्या हुआ…यह खून कैसा…
राजेश: बेटा घबराने की कोई बात नहीं है। यह हमारे पहले एकाकार की कहानी है…अब कैसा लग रहा है।
टीना: हाँ…अब दर्द कम हो गया है…
राजेश: बेटा तुम इस तरफ आ कर लेट जाओ और आराम करो…मै यह चादर बदल देता हूँ।
(राजेश यह कहते हुए उठता है और एक नयी चादर लेने के लिए अलमारी की ओर बढ़ जाता है। टीना बेड पर से उतर कर सोफे के पास आ कर खड़ी हो जाती है। अभी भी प्रेमरस धीरे से रिसते हुए टीना की जांघ पर आकर सूख गया है। राजेश रंगी हुई चादर को निकाल देता है और एक नयी सफेद चादर बिछा देता है। राजेश अपनी बाँहों मे टीना को उठाता है और फिर धीरे से ला कर उसे बेड पर लिटा देता है।)
राजेश: बेटा तुम आराम कर लो मै कुछ तुम्हारे लिए एनर्जी ड्रिंक और खाने के लिए सनैक्स ले कर आता हूँ।
(राजेश यह कहते हुए बाहर रसोई में जाता है। टीना को थकान की वजह से नींद आ जाती है। रसोई से राजेश अपने हाथ में गर्म दूध लिए बेडरूम में आता है। कुछ देर पूर्व हुई काम क्रीड़ा के पश्चात, सामने पूर्णता निर्वस्त्र टीना बेड पर गहरी नींद में सो रही है। उसके चेहरे पर संतुष्टि की आभा है और होंठों पर चिरपरिचित मुस्कुराहट जो उसके हुस्न को चार चाँद लगा रही है। धीरे से राजेश बेड के सिरहाने आ कर खड़ा हो जाता है।)
राजेश: टीना…टीना बेटे…
टीना: (अधखुली आँखों से) हूँ…
राजेश: बेटा उठ कर दूध पी लो…
टीना: (नींद में बुदबुदाते हुए)…नहीं, मुझे नहीं पीना…सोने दिजीए (कहते हुए करवट बदलती है और पीठ कर के फिर से सो जाती है)
राजेश: (सिरहाने रखी साइड टेबल पर गिलास रखता है और टीना के साथ लेट कर टीना को अपनी ओर घुमाता है) बेटा… उठो, यह दूध इस वक्त पीने से शरीर के लिए बहुत लाभदायक है। उठो…(जबरदस्ती पकड़ कर टीना को बैठाता है)…
टीना: पापा…(कुनमुनाते हुए दूध पीती है। अचानक अपनी नग्नता का आभास होते ही हाथ मे थामा गिलास छलक जाता है और थोड़ा सा दूध टीना के नग्न सीने से बहता हुआ नाभि और फिर उसके नीचे कटिप्रदेश से होता हुआ चादर पर टपक जाता है)…ओह शिट……सौरी
राजेश: (टीना के कंधे को पकड़ कर)…क्या हुआ…
टीना: (कुछ देर पहले का घमासान एक चलचित्र की भाँति कुछ क्षणों में आँखों के सामने से गुजर जाता है) …पापा (कहते हुए राजेश से शर्मा कर लिपट जाती है)।
राजेश: अब कैसा लग रहा है… दर्द तो नहीं है।
टीना: (गरदन हिला कर मना करते हुए) इतना नहीं…परन्तु नीचे हल्की सी पीड़ा हो रही है।
राजेश: कहाँ पर भीतर या बाहर…
टीना: भीतर…(अपनी उँगलियों से महसूस करती हुई)
राजेश: बेटा…(टीना के उँगलियों को रोकते हुए)…अब हम दोनों का टाक्सिन तुम्हारे अन्दर मिल गया है (अपनी एक उँगली से योनिमुख को सहलाता हुआ) अब तुम बड़ी हो गयी हो क्योंकि तुम्हारी चूत मेरा पूरा लंड निगल गयी थी।
टीना: अब मै बड़ी हो गयी हूँ…पापा मेरी चूत में कुछ हो रहा है
राजेश: बेटा यह आग की जलन है। अभी आग पूरी तरह से बुझी नहीं है और अगर जल्दी से तुमने मेरे लंड को नहीं निगला तो यह आग फिर से भड़क जाएगी…(कहते हुए अपनी लुंगी खोल कर पास ही फेंक देता है)
(यह कहते हुए राजेश ने टीना को एक बार फिर से बेड पर लिटा कर उसके नग्न जिस्म को अपने जिस्म से ढक देता है। राजेश धीरे से अपने होंठ टीना के होठों पर रख देता है और धीरे से अपनी जुबान का अग्र भाग टीना के निचले होंठ पर फिराता है। टीना भी इस खेल में राजेश का साथ भरपूर देती है)
राजेश: बेटा…जब मेरा लंड तुम्हारी चूत के मुहाने पर दस्तक देता है तो तुम्हारी आग से बेचारा झुलस जाता है…
टीना: पापा…
(टीना की कमर को पकड़ कर राजेश धीरे से अपने नीचे लेता है। टीना के उन्नत स्तनों को अपनी हथेली में लेकर कर मसकता है। राजेश की गर्म साँसों का आघात अपने चेहरे पर महसूस करते हुए टीना अधिक उत्साह से अपनी टांगों को राजेश की कमर पर लपेट देती है। भावतिरेक हो कर राजेश का लंड अपना भयावह रूप धारण कर लेता है और टीना की ज़ाँघो के अन्द्रुनी हिस्सों पर से सरकता हुआ चूत के मुहाने पर जा कर ठोकर मारता है। राजेश धीरे से पंखुड़ियों से होठों पर अपने होंठों से लगातार उनका रस निचोड़ता है। थोड़ा रुक कर, फिर गले से होता हुआ दो हसीन पहाड़ियॉ के बीचोंबीच बनी खाई पर अपने होंठों की मौहर अंकित करता है। इधर टीना भी उत्तेजना में अपना सिर इधर-उधर पटकती है।)
क्रमशः
कमसिन कलियाँ compleet
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Re: कमसिन कलियाँ
कमसिन कलियाँ--17
गतान्क से आगे..........
टीना:.उ.अ..आह.पा…अ.उउआ.पाआह....
राजेश: बेटा…तुम्हारी चूत को मेरा लंड चाहिए… इस वक्त तुम्हारी…चूत को मेरे लौड़े की जरुरत है।
टीना: पा…अ.उउआ.पाआह.... (योनिद्वार के मुहाने पर राजेश के चिरपरिचित लंड के फूले हुए सुपाड़े को महसूस करती हुई) प…आपा… जल्दी से डालो न…
राजेश: (अपना पैंतरा बदलते हुए) बेटा…इस आग को और भड़कने दो…
टीना: पा…अ.उउआ.पाआह....प्लीज (अपनी चूत से टटोलते हुए नीचे से राजेश के लंड पर दबाव बना कर अन्दर डालने की चेष्टा करती है)
राजेश: क्या कर रही हो…टीना…(थोड़ा सा पीछे हटते हुए परन्तु टीना की टांगों से जकड़े होने के कारण टीना भी खिंचती हुई पीछे हो गयी)
(राजेश का एक हाथ एक बार फिर से टीना की गुलाबी बुर्जीयों को लाल करने में वयस्त हो जाते है। कभी पूरा स्तन अपने मुख मे भर कर निचोड़ता है और कभी स्तन पर विराजमान अंगूर के दाने को अपने होंठों में दबा कर चूसता है। हल्के हाथ से नग्न नितंबो को सहलाते हुए, फिर कुछ दबाते हुए और अपने लंड के सुपाड़े को बेरोकटोक चूत के मुहाने को खोल कर सिर उठाये बीज पर घिसता है)
टीना: (एक्साइट्मेंट में चीखते हुए) पा…अ.उउआ.पाआह....प्लीज
(अब राजेश से भी नहीं रुका जा रहा। उसका लंड भी अकड़ कर अपनी लार टीना के चूत के मुहाने पर टपकाने लगा है। राजेश अपनी भुजाओं मे कस कर, राजेश धीरे से टीना का बायां पाँव उपर उठा कर अपने लंड को अन्दर की ओर ढकेलता है। जैसे ही लंड का पुरा सुपाड़ा सरक कर चूत के मुहाने में जाता है, एक लम्बी सी सिसकारी के साथ टीना कस के राजेश को जकड़ लेती है।)
टीना: .उउआ.पाआह...पा.उई....प.आ...पा.…उ.उ.उ...आह.....
राजेश: बेटा…(टीना के थिरकते होठों को अपने होठों के कब्जे में लेकर लगातार चूमता हुआ और दोनों अनावरित उन्नत पहाड़ियों को सहलाते हुए कभी चोटियों पर उँगलियॉ फिराता और कभी दो उँगलियों मे घुन्डियों को फँसा कर खींचता, कभी पहाड़ियों को अपनी हथेलियों मे छुपा लेता और कभी उन्हें जोर से मसक देता। उधर आँखे मुदें हुए टीना का चेहरा उत्तेजना से लाल होता चला जा रहा है।)
टीना: (मस्ती भरी अवाज में) हुं….उई....अ.आ...क.…उ.उ.उ.ल..न्…हई…आह.....
(राजेश अपनी उंगलियों से टीना की गाँड के छिद्र को टटोलता है और अपनी उँगली को मुहाने पर रख दबाव डालता है। इस वार से अचकचा कर टीना हड़बड़ा कर आँखे खोलती हुई उठने की कोशिश करती है। राजेश एक झटके से अपनी उँगली वहाँ से हटा लेता है।)
टीना: .उई...माँ….पअ.पा.……उफ.उ.उ...न्हई…आह.....
(राजेश अपनी उंगली टीना के होंठों पर फिराता है। हर्षोन्मत्त हुई टीना अपने होंठों को थोड़ा सा खोल देती है। राजेश अपनी उंगली टीना के होंठों पर फिरता हुआ मुख के भीतर डाल कर जुबान से छेड़छाड़ शुरू करता है। राजेश की उंगली को लेकर टीना अपनी जुबान से खेलती हुई चूसती है। नये उन्माद में टीना की सिसकारियाँ बढ़ती जाती हैं।)
राजेश: (टीना के निचले होंठ को चूसते और धीरे से काटते हुए) टीना…टीना…
टीना: (अपने कुल्हे को जोर से राजेश की ओर धक्का देते हुए ) हुं…आहह
राजेश: (थोड़ा सा लंड को भीतर करते हुए)…अब कैसा लग रहा है?
टीना: हुं…(एक सिसकारी भरती हुई)…बहुत अच्छा……(आँखें मूदें महसूस करती हुई कि एक गर्म सलाख अन्दर धँसती जा रही है। राजेश एक बार फिर से अपनी उँगली से नितंबों के बीच में छुपे हुए छिद्र के मुख पर जा कर टिका देता है)…उ.उई...पापा.उ… उक.……उफ.उ...न्हई…आह.....
(राजेश अपनी जुबान से टीना के होंठों को खोल कर उसके गले की गहराई नापता है। राजेश अपने तन्नाये हुए लंड को टीना की संकरी चूत में तीन-चौथाई धँसा देता है। कुकुरमुत्ते सा फूला हुआ सुपाड़ा बच्चेदानी के मुख पर आ कर रुक जाता है। उत्तेजना में तड़पती टीना के चेहरे और होंठों पर राजेश अपने होंठों और जुबान से भँवरें की भाँति बार-बार चोट मार रहा है और अपनी उंगली गाँड के मुहाने पर फिरा रहा है।)
टीना: …उ.उई.माँ..पाअ.…पा.……उफ...न्हई…आह.....
(टीना के स्तन को अपने मुख में भर कर रसपान करता है। राजेश अपने लंड को अन्दर धँसा कर शान्ति से इन्तजार करता है। उधर उत्तेजना और मीठे से दर्द में तड़पती टीना अपने होंठ काटती हुई कसमसाती है। बार-बार हल्की चोट मारते हुए राजेश जगह बनाते हुए एक भरपूर धक्का लगाता है। आग में तपता हुआ लौड़ा प्रेम रस से सरोबर सारे संकरेपन को खोलता हुआ जड़ तक धँस कर फँस गया है। टीना की आँखें खुली की खुली रह जाती है और मुख से दबी हुई चीख निकल जाती है।)
टीना: उ.उई.माँ..उफ…मररउक.…गय…यईई…उफ..नई…आह..ह..ह.
राजेश: (पुरी तरह अपने लिंग को जड़ तक बिठा कर) शश…शशश्…टीना…ना
(टीना की चूत ने भी राजेश के लिंग को अपने शिकंजे मे बुरी तरह जकड़ रखा है। चूत की गहराई नापने की कोशिश मे टीना की चूत में कैद राजेश का लंड भी अपने फूले हुए सिर को पूरी तरह निचुड़ा हुआ पा रहा है। क्षण भर रुक कर, राजेश ने टीना के नितंबो को दोनों हाथों से पकड़ कर एक लय के साथ आगे-पीछे हो कर अपना वार शुरु करता है। एक तरफ लंड का फूला हुआ नंगा सिर टीना की बच्चेदानी के भीतर जा कर फँस जाता है और दूसरी ओर गाँड के छिद्र के मुहाने को खोल कर राजेश की उँगली पूरी अन्दर तक धँस जाती है। धीरे से बाहर खींचते हुए जैसे ही लंड गरदन तक बाहर आता है, एक बार फिर से दुगनी स्पीड से अन्दर का रास्ता तय करता। ऐसा करते हुए राजेश गाँड में फँसी हुई उँगली को भी अन्दर-बाहर करते हुए छिद्र का मुख खोलता है। टीना की चूत और गाँड अब इस प्रकार के दखल की धीरे-धीरे आदि हो गये है)
राजेश: (गति बढ़ाते हुए) टीना……
टीना: हाँ…पापा प्लीज्…
(काफी देर तक ऐसे ही जबरदस्त धक्कों मे ही राजेश के जिस्म मे ज्वालामुखी फटने को तैयार हो गया और धीरे-धीरे वह अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुका है। ज्वालामुखी फटने से पहले एक जबरदस्त आखिरी दोहरा वार करता है। इक तरफ अपने लंड के सुपाड़े को बच्चेदानी का मुख खोल कर भीतर फँसा देता है और दूसरी तरफ अपनी उँगली को कड़ा करके टीना की गाँड में पूरा धँसा देता है। इस दो तरफा वार को टीना बरदाश्त नहीं कर पाती और धनुषाकार बनाती हुई टीना की चूत झरझरा कर बहने लगती है। टीना की चूत झट्के लेते हुए राजेश के लंड को दुहना शुरु कर देती है। राजेश का लंड सारे बाँध तोड़ते हुए बिना रुके टीना की बच्चेदानी मे लावा उगलना शुरु कर देता है। टीना की चूत को अपने प्रेमरस से लबालब भरने के बाद राजेश बड़े प्यार से टीना को चूमता है)
राजेश: (गालों को सहलाते हुए) टीना…टीना…
टीना: (कुछ क्षणों के बाद)…..न्ई…आह...(अपनी आँखें खोलती हुई) पापा…
राजेश: (टीना के सिर को सहारा दे कर उठाते हुए) टीना…क्या एक बार फिर सांतवें आसमान का चक्कर लगाने चली गयी थी।
टीना: पापा…मेरे अच्छे पापा… मुझे ऐसा लगा कि मै आसमान में उड़ रही हूँ…
राजेश: (टीना के उपर से हटते हुए)…बेटा तुम्हारा जिस्म मेरा था और आज से मेरा ही हो कर रहेगा…तुम्हारी आग को बुझाने के लिए यह (प्रेमरस से नहाए हुए लिंगदेव को हिलाते हुए) हमेशा तैयार खड़ा हुआ मिलेगा।
टीना: पापा… आपसे अच्छा कोई नहीं (कहते हुए राजेश के होंठ चूम लेती है)
राजेश: बेटा…तुम्हारे दो मुख तो मेरा लंड निगल चुके…अब तीसरे मुख की बारी है। (अपनी उँगली को टीना की गाँड के छिद्र पर फिराते हुए)…इस का कब उद्घाटन करना है…
टीना: अभी नहीं… आपकी उँगली ने तो आज इसका उद्घाटन कर दिया है। फिर किसी और दिन यह आपके लंड को भी निगल जाएगी। अभी तो दूसरे मुख से काम चलाईए…
राजेश: आज मेरी उँगली अन्दर का जायजा ले कर आई है और इसके बाद मै ज्यादा इंतजार नहीं कर सकूँगा। कल इसका भी उद्घाटन कर देते है…
टीना: (राजेश के लंड को सहलाती हुई) पापा पहले इसको …छोड़िए भी…कर लेना…अच्छा अब मुझे प्यार करिए…(कहते हुए राजेश के साथ एक बेल की भाँति लिपट गयी)…
राजेश: (टीना को अपने आगोश में जकड़ कर) मेरा प्यारा बेटा…(कहते हुए टीना के होंठों को अपने होंठों की गिरफ्त में ले कर उनका रस सोखने में लग गया)
टीना: (गहरी साँस छोड़ते हुए) पापा…आपको करीना कैसी लगती है…
राजेश: (चौंकते हुए) इस वक्त ऐसा सवाल क्यों…
टीना: बताईए न…
राजेश: बहुत सुन्दर… मगर तुमसे ज्यादा नहीं।
टीना: थैंक्स पापा…
राजेश: (टीना के स्तन के साथ खेलते हुए) पर आज हमारे मिलन के क्षणों में करीना को क्यों याद कर रही हो…।
टीना: ऐसे ही…उसकी याद आ गयी…
राजेश: उसे देखता हूँ तो… (दरवाजे की घंटी बजती है। दोनों हड़बड़ा कर उठते है। जल्दी-जल्दी अपने-अपने कपड़े पहनते है।)
टीना: पापा…आप पैन्ट क्यों पहन रहे हो…सामने लुंगी पड़ी हुई है…
राजेश: (घबराहट में) सौरी बेटा…थैंक्स फ़ोर एड्वाईस (लुंगी बाँध कर दरवाजे की ओर बढ़ता है)
टीना: पापा… प्लीज मेरी ब्रा का हुक लगा दिजीए…
(राजेश वापिस आता है। हुक लगाते हुए घंटी एक बार फिर से बज उठती है। राजेश सब कुछ छोड़ कर दरवाजे की ओर भागता है और जा कर खोलता है। सामने करीना खड़ी हुई है)
राजेश: करीना इस वक्त… कैसे
करीना: नमस्ते (हल्के स्वर में) डार्लिंग… अंकल
राजेश: नमस्ते…(झेंपते हुए)
करीना: टीना है…मुझे कुछ उससे काम था…
राजेश: हाँ…आओ…(तभी टीना राजेश के बेडरूम से बाहर निकलती हुई)
टीना: हाय करीना…
करीना: (टीना की ओर जाते हुए) हाय… क्या बिजी है… तेरे को क्या हुआ
टीना: (झेंपती हुई) क्यों क्या हुआ…।
करीना: (मुस्कुराती हुई) बाल फैले हुए है…उल्टी टी-शर्ट… क्या चक्कर है…
(राजेश पीछे खड़ा हुआ सारी बातें सुन रहा है। बात को संभालता हुआ…)
राजेश: कुछ खास चक्कर नहीं…टीना मेरे साथ बेडरूम साफ करा रही है… अब तुम आ गयी हो तो तुम भी कुछ मदद करो…
करीना: सौरी अंकल…मैनें नाहक ही आप दोनों को डिसटर्ब किया…
राजेश: न बेटा… अभी टीना और मैं तुम्हारी बात ही कर रहे थे… बहुत लम्बी उमर पायी है।
करीना: (कुछ शैतानी की मुस्कुराहट लाते हुए) अच्छा जी… टीना मेरे पीछे मेरी क्या बुराई कर रही थी…
टीना: तू पापा को बहुत सुन्दर लगती है…
करीना: (खिसिया कर) अच्छा…
राजेश: (घबरा कर)…नहीं मै तो यह कह रहा था कि…।
टीना: आप झूठ बोल रहें है…आपने ही कहा था कि करीना आपको बहुत सुन्दर लगती है…
राजेश: हाँ…ठीक तो है। करीना बहुत सुन्दर है… परन्तु…
करीना: परन्तु क्या…(चिड़ाते हुए)…अंकल
टीना: तू बस अब रहने दे… चल मेरे रूम में
(कहते हुए टीना और करीना सीड़ीयाँ चड़ते हुए टीना के रूम में प्रवेश कर गयीं। राजेश टकटकी लगा कर दोनों को देखता रह गया। पिछ्ले तीन दिनों में इन्हीं दोनों कमसिन हसीन लड़कियों को पुरे तन और मन से भोग चुका था। दोनों अपने आप में एक से बढ़ कर एक थी। जहाँ टीना का छरहरा बदन है, वहीं पर करीना का कटाव लेता हुआ भरा हुआ जिस्म है। दोनों के अंग-अंग से वाकिफ, राजेश इस दुविधा में कि कौन ज्यादा खूबसूरत है। अगर टीना को पा कर एक पेग विह्स्की का नशा है तो करीना वोदका की तरह किक देता हुआ नशा है। कुछ सोच कर राजेश चुपचाप बिना आहट किये उपर का रुख करता है। अन्दर से दोनों के खिलखिलाने की आवाज आ रही है। टीना के दरवाजे पर राजेश कान लगा कर सुनने का प्रयत्न करता है।)
करीना: मुझे तो प्यार हो गया है।
टीना: मै तो कहती थी कि तू मरती है…अगर तेरे उपर हाथ रख दें तू पिघल जाएगी…
करीना: हाँ यार… तू सच कहती थी। आज तूने भी देख लिया…पूरा अजगर की भाँति है…
टीना: हाँ यार…पर तूने तो मुझे बहुत डरा दिया था…
(इतना ही सुन कर राजेश को कुछ-कुछ समझ आ गया था। बिना देर किए जल्दी से नीचे उतर कर अपने बेडरूम मे आ जाता है। तभी दरवाजे की घंटी बजती है। राजेश जा कर दरवाजा खोलता है। सामने मुमु खड़ी हुई है और चेहरा गुस्से से तमतमा रहा है।)
राजेश: (अन्दर आते हुए) क्यों क्या हुआ…
मुमु: (रुआँसी आवाज में) क्या तुम ने पिताजी को मेरा मोबाइल नम्बर दिया था…
राजेश: क्यों क्या फिर से उन्होंने काल किया…
मुमु: मै उनसे कोई सबंन्ध नहीं रखना चाहती हूं पर मेरे को चैन से जीने नहीं देते…
राजेश: चलो खाक डालो…खाने का क्या करना है? उपर टीना और करीना बैठे हुए है…यह बात हम बाद में भी कर सकते हैं।
मुमु: मै तैयारी कर के गयी थी…खाने मे कुछ टाइम लगेगा। पहले मै फ्रेश हो कर आती हूँ।
(इतना कह कर मुमु बेडरूम जाती है। राजेश टीवी के सामने बैठ कर न्यूज सुनता है। कुछ देर के बाद मुमु तैयार हो कर बाहर आती है और रसोई की ओर रुख करती है। टीना और करीना नीचे उतर कर दरवाजे का रुख करती है।)
राजेश: मेरी दुनिया की सबसे हसीन अप्सारायें रात में किधर चल दी…
टीना: मै करीना को घर छोड़ने जा रही हूँ।
राजेश: अर…रे खाना लग गया है…खाना खा कर जाना…करीना तुम भी
मुमु: (रसोई से आवाज देते हुए) टीना कहीं नहीं जाना। पहले खाना खा लो फिर जाना कहीं पर्…(कहते हुए रसोई से खाना ला कर मेज पर सजा देती है)
(टीना और करीना मेज पर आ कर बैठ जाते है। राजेश भी सब को डाईनिंग टेबल पर जौइन करता है। मुमु सबके लिए खाना परोसती है। सब मिल कर खाना खाते है। खाना खाने के बाद टीना और करीना बाहर का रुख करती हैं। राजेश और मुमु बेडरूम कि ओर चले जाते हैं।)
क्रमशः
गतान्क से आगे..........
टीना:.उ.अ..आह.पा…अ.उउआ.पाआह....
राजेश: बेटा…तुम्हारी चूत को मेरा लंड चाहिए… इस वक्त तुम्हारी…चूत को मेरे लौड़े की जरुरत है।
टीना: पा…अ.उउआ.पाआह.... (योनिद्वार के मुहाने पर राजेश के चिरपरिचित लंड के फूले हुए सुपाड़े को महसूस करती हुई) प…आपा… जल्दी से डालो न…
राजेश: (अपना पैंतरा बदलते हुए) बेटा…इस आग को और भड़कने दो…
टीना: पा…अ.उउआ.पाआह....प्लीज (अपनी चूत से टटोलते हुए नीचे से राजेश के लंड पर दबाव बना कर अन्दर डालने की चेष्टा करती है)
राजेश: क्या कर रही हो…टीना…(थोड़ा सा पीछे हटते हुए परन्तु टीना की टांगों से जकड़े होने के कारण टीना भी खिंचती हुई पीछे हो गयी)
(राजेश का एक हाथ एक बार फिर से टीना की गुलाबी बुर्जीयों को लाल करने में वयस्त हो जाते है। कभी पूरा स्तन अपने मुख मे भर कर निचोड़ता है और कभी स्तन पर विराजमान अंगूर के दाने को अपने होंठों में दबा कर चूसता है। हल्के हाथ से नग्न नितंबो को सहलाते हुए, फिर कुछ दबाते हुए और अपने लंड के सुपाड़े को बेरोकटोक चूत के मुहाने को खोल कर सिर उठाये बीज पर घिसता है)
टीना: (एक्साइट्मेंट में चीखते हुए) पा…अ.उउआ.पाआह....प्लीज
(अब राजेश से भी नहीं रुका जा रहा। उसका लंड भी अकड़ कर अपनी लार टीना के चूत के मुहाने पर टपकाने लगा है। राजेश अपनी भुजाओं मे कस कर, राजेश धीरे से टीना का बायां पाँव उपर उठा कर अपने लंड को अन्दर की ओर ढकेलता है। जैसे ही लंड का पुरा सुपाड़ा सरक कर चूत के मुहाने में जाता है, एक लम्बी सी सिसकारी के साथ टीना कस के राजेश को जकड़ लेती है।)
टीना: .उउआ.पाआह...पा.उई....प.आ...पा.…उ.उ.उ...आह.....
राजेश: बेटा…(टीना के थिरकते होठों को अपने होठों के कब्जे में लेकर लगातार चूमता हुआ और दोनों अनावरित उन्नत पहाड़ियों को सहलाते हुए कभी चोटियों पर उँगलियॉ फिराता और कभी दो उँगलियों मे घुन्डियों को फँसा कर खींचता, कभी पहाड़ियों को अपनी हथेलियों मे छुपा लेता और कभी उन्हें जोर से मसक देता। उधर आँखे मुदें हुए टीना का चेहरा उत्तेजना से लाल होता चला जा रहा है।)
टीना: (मस्ती भरी अवाज में) हुं….उई....अ.आ...क.…उ.उ.उ.ल..न्…हई…आह.....
(राजेश अपनी उंगलियों से टीना की गाँड के छिद्र को टटोलता है और अपनी उँगली को मुहाने पर रख दबाव डालता है। इस वार से अचकचा कर टीना हड़बड़ा कर आँखे खोलती हुई उठने की कोशिश करती है। राजेश एक झटके से अपनी उँगली वहाँ से हटा लेता है।)
टीना: .उई...माँ….पअ.पा.……उफ.उ.उ...न्हई…आह.....
(राजेश अपनी उंगली टीना के होंठों पर फिराता है। हर्षोन्मत्त हुई टीना अपने होंठों को थोड़ा सा खोल देती है। राजेश अपनी उंगली टीना के होंठों पर फिरता हुआ मुख के भीतर डाल कर जुबान से छेड़छाड़ शुरू करता है। राजेश की उंगली को लेकर टीना अपनी जुबान से खेलती हुई चूसती है। नये उन्माद में टीना की सिसकारियाँ बढ़ती जाती हैं।)
राजेश: (टीना के निचले होंठ को चूसते और धीरे से काटते हुए) टीना…टीना…
टीना: (अपने कुल्हे को जोर से राजेश की ओर धक्का देते हुए ) हुं…आहह
राजेश: (थोड़ा सा लंड को भीतर करते हुए)…अब कैसा लग रहा है?
टीना: हुं…(एक सिसकारी भरती हुई)…बहुत अच्छा……(आँखें मूदें महसूस करती हुई कि एक गर्म सलाख अन्दर धँसती जा रही है। राजेश एक बार फिर से अपनी उँगली से नितंबों के बीच में छुपे हुए छिद्र के मुख पर जा कर टिका देता है)…उ.उई...पापा.उ… उक.……उफ.उ...न्हई…आह.....
(राजेश अपनी जुबान से टीना के होंठों को खोल कर उसके गले की गहराई नापता है। राजेश अपने तन्नाये हुए लंड को टीना की संकरी चूत में तीन-चौथाई धँसा देता है। कुकुरमुत्ते सा फूला हुआ सुपाड़ा बच्चेदानी के मुख पर आ कर रुक जाता है। उत्तेजना में तड़पती टीना के चेहरे और होंठों पर राजेश अपने होंठों और जुबान से भँवरें की भाँति बार-बार चोट मार रहा है और अपनी उंगली गाँड के मुहाने पर फिरा रहा है।)
टीना: …उ.उई.माँ..पाअ.…पा.……उफ...न्हई…आह.....
(टीना के स्तन को अपने मुख में भर कर रसपान करता है। राजेश अपने लंड को अन्दर धँसा कर शान्ति से इन्तजार करता है। उधर उत्तेजना और मीठे से दर्द में तड़पती टीना अपने होंठ काटती हुई कसमसाती है। बार-बार हल्की चोट मारते हुए राजेश जगह बनाते हुए एक भरपूर धक्का लगाता है। आग में तपता हुआ लौड़ा प्रेम रस से सरोबर सारे संकरेपन को खोलता हुआ जड़ तक धँस कर फँस गया है। टीना की आँखें खुली की खुली रह जाती है और मुख से दबी हुई चीख निकल जाती है।)
टीना: उ.उई.माँ..उफ…मररउक.…गय…यईई…उफ..नई…आह..ह..ह.
राजेश: (पुरी तरह अपने लिंग को जड़ तक बिठा कर) शश…शशश्…टीना…ना
(टीना की चूत ने भी राजेश के लिंग को अपने शिकंजे मे बुरी तरह जकड़ रखा है। चूत की गहराई नापने की कोशिश मे टीना की चूत में कैद राजेश का लंड भी अपने फूले हुए सिर को पूरी तरह निचुड़ा हुआ पा रहा है। क्षण भर रुक कर, राजेश ने टीना के नितंबो को दोनों हाथों से पकड़ कर एक लय के साथ आगे-पीछे हो कर अपना वार शुरु करता है। एक तरफ लंड का फूला हुआ नंगा सिर टीना की बच्चेदानी के भीतर जा कर फँस जाता है और दूसरी ओर गाँड के छिद्र के मुहाने को खोल कर राजेश की उँगली पूरी अन्दर तक धँस जाती है। धीरे से बाहर खींचते हुए जैसे ही लंड गरदन तक बाहर आता है, एक बार फिर से दुगनी स्पीड से अन्दर का रास्ता तय करता। ऐसा करते हुए राजेश गाँड में फँसी हुई उँगली को भी अन्दर-बाहर करते हुए छिद्र का मुख खोलता है। टीना की चूत और गाँड अब इस प्रकार के दखल की धीरे-धीरे आदि हो गये है)
राजेश: (गति बढ़ाते हुए) टीना……
टीना: हाँ…पापा प्लीज्…
(काफी देर तक ऐसे ही जबरदस्त धक्कों मे ही राजेश के जिस्म मे ज्वालामुखी फटने को तैयार हो गया और धीरे-धीरे वह अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुका है। ज्वालामुखी फटने से पहले एक जबरदस्त आखिरी दोहरा वार करता है। इक तरफ अपने लंड के सुपाड़े को बच्चेदानी का मुख खोल कर भीतर फँसा देता है और दूसरी तरफ अपनी उँगली को कड़ा करके टीना की गाँड में पूरा धँसा देता है। इस दो तरफा वार को टीना बरदाश्त नहीं कर पाती और धनुषाकार बनाती हुई टीना की चूत झरझरा कर बहने लगती है। टीना की चूत झट्के लेते हुए राजेश के लंड को दुहना शुरु कर देती है। राजेश का लंड सारे बाँध तोड़ते हुए बिना रुके टीना की बच्चेदानी मे लावा उगलना शुरु कर देता है। टीना की चूत को अपने प्रेमरस से लबालब भरने के बाद राजेश बड़े प्यार से टीना को चूमता है)
राजेश: (गालों को सहलाते हुए) टीना…टीना…
टीना: (कुछ क्षणों के बाद)…..न्ई…आह...(अपनी आँखें खोलती हुई) पापा…
राजेश: (टीना के सिर को सहारा दे कर उठाते हुए) टीना…क्या एक बार फिर सांतवें आसमान का चक्कर लगाने चली गयी थी।
टीना: पापा…मेरे अच्छे पापा… मुझे ऐसा लगा कि मै आसमान में उड़ रही हूँ…
राजेश: (टीना के उपर से हटते हुए)…बेटा तुम्हारा जिस्म मेरा था और आज से मेरा ही हो कर रहेगा…तुम्हारी आग को बुझाने के लिए यह (प्रेमरस से नहाए हुए लिंगदेव को हिलाते हुए) हमेशा तैयार खड़ा हुआ मिलेगा।
टीना: पापा… आपसे अच्छा कोई नहीं (कहते हुए राजेश के होंठ चूम लेती है)
राजेश: बेटा…तुम्हारे दो मुख तो मेरा लंड निगल चुके…अब तीसरे मुख की बारी है। (अपनी उँगली को टीना की गाँड के छिद्र पर फिराते हुए)…इस का कब उद्घाटन करना है…
टीना: अभी नहीं… आपकी उँगली ने तो आज इसका उद्घाटन कर दिया है। फिर किसी और दिन यह आपके लंड को भी निगल जाएगी। अभी तो दूसरे मुख से काम चलाईए…
राजेश: आज मेरी उँगली अन्दर का जायजा ले कर आई है और इसके बाद मै ज्यादा इंतजार नहीं कर सकूँगा। कल इसका भी उद्घाटन कर देते है…
टीना: (राजेश के लंड को सहलाती हुई) पापा पहले इसको …छोड़िए भी…कर लेना…अच्छा अब मुझे प्यार करिए…(कहते हुए राजेश के साथ एक बेल की भाँति लिपट गयी)…
राजेश: (टीना को अपने आगोश में जकड़ कर) मेरा प्यारा बेटा…(कहते हुए टीना के होंठों को अपने होंठों की गिरफ्त में ले कर उनका रस सोखने में लग गया)
टीना: (गहरी साँस छोड़ते हुए) पापा…आपको करीना कैसी लगती है…
राजेश: (चौंकते हुए) इस वक्त ऐसा सवाल क्यों…
टीना: बताईए न…
राजेश: बहुत सुन्दर… मगर तुमसे ज्यादा नहीं।
टीना: थैंक्स पापा…
राजेश: (टीना के स्तन के साथ खेलते हुए) पर आज हमारे मिलन के क्षणों में करीना को क्यों याद कर रही हो…।
टीना: ऐसे ही…उसकी याद आ गयी…
राजेश: उसे देखता हूँ तो… (दरवाजे की घंटी बजती है। दोनों हड़बड़ा कर उठते है। जल्दी-जल्दी अपने-अपने कपड़े पहनते है।)
टीना: पापा…आप पैन्ट क्यों पहन रहे हो…सामने लुंगी पड़ी हुई है…
राजेश: (घबराहट में) सौरी बेटा…थैंक्स फ़ोर एड्वाईस (लुंगी बाँध कर दरवाजे की ओर बढ़ता है)
टीना: पापा… प्लीज मेरी ब्रा का हुक लगा दिजीए…
(राजेश वापिस आता है। हुक लगाते हुए घंटी एक बार फिर से बज उठती है। राजेश सब कुछ छोड़ कर दरवाजे की ओर भागता है और जा कर खोलता है। सामने करीना खड़ी हुई है)
राजेश: करीना इस वक्त… कैसे
करीना: नमस्ते (हल्के स्वर में) डार्लिंग… अंकल
राजेश: नमस्ते…(झेंपते हुए)
करीना: टीना है…मुझे कुछ उससे काम था…
राजेश: हाँ…आओ…(तभी टीना राजेश के बेडरूम से बाहर निकलती हुई)
टीना: हाय करीना…
करीना: (टीना की ओर जाते हुए) हाय… क्या बिजी है… तेरे को क्या हुआ
टीना: (झेंपती हुई) क्यों क्या हुआ…।
करीना: (मुस्कुराती हुई) बाल फैले हुए है…उल्टी टी-शर्ट… क्या चक्कर है…
(राजेश पीछे खड़ा हुआ सारी बातें सुन रहा है। बात को संभालता हुआ…)
राजेश: कुछ खास चक्कर नहीं…टीना मेरे साथ बेडरूम साफ करा रही है… अब तुम आ गयी हो तो तुम भी कुछ मदद करो…
करीना: सौरी अंकल…मैनें नाहक ही आप दोनों को डिसटर्ब किया…
राजेश: न बेटा… अभी टीना और मैं तुम्हारी बात ही कर रहे थे… बहुत लम्बी उमर पायी है।
करीना: (कुछ शैतानी की मुस्कुराहट लाते हुए) अच्छा जी… टीना मेरे पीछे मेरी क्या बुराई कर रही थी…
टीना: तू पापा को बहुत सुन्दर लगती है…
करीना: (खिसिया कर) अच्छा…
राजेश: (घबरा कर)…नहीं मै तो यह कह रहा था कि…।
टीना: आप झूठ बोल रहें है…आपने ही कहा था कि करीना आपको बहुत सुन्दर लगती है…
राजेश: हाँ…ठीक तो है। करीना बहुत सुन्दर है… परन्तु…
करीना: परन्तु क्या…(चिड़ाते हुए)…अंकल
टीना: तू बस अब रहने दे… चल मेरे रूम में
(कहते हुए टीना और करीना सीड़ीयाँ चड़ते हुए टीना के रूम में प्रवेश कर गयीं। राजेश टकटकी लगा कर दोनों को देखता रह गया। पिछ्ले तीन दिनों में इन्हीं दोनों कमसिन हसीन लड़कियों को पुरे तन और मन से भोग चुका था। दोनों अपने आप में एक से बढ़ कर एक थी। जहाँ टीना का छरहरा बदन है, वहीं पर करीना का कटाव लेता हुआ भरा हुआ जिस्म है। दोनों के अंग-अंग से वाकिफ, राजेश इस दुविधा में कि कौन ज्यादा खूबसूरत है। अगर टीना को पा कर एक पेग विह्स्की का नशा है तो करीना वोदका की तरह किक देता हुआ नशा है। कुछ सोच कर राजेश चुपचाप बिना आहट किये उपर का रुख करता है। अन्दर से दोनों के खिलखिलाने की आवाज आ रही है। टीना के दरवाजे पर राजेश कान लगा कर सुनने का प्रयत्न करता है।)
करीना: मुझे तो प्यार हो गया है।
टीना: मै तो कहती थी कि तू मरती है…अगर तेरे उपर हाथ रख दें तू पिघल जाएगी…
करीना: हाँ यार… तू सच कहती थी। आज तूने भी देख लिया…पूरा अजगर की भाँति है…
टीना: हाँ यार…पर तूने तो मुझे बहुत डरा दिया था…
(इतना ही सुन कर राजेश को कुछ-कुछ समझ आ गया था। बिना देर किए जल्दी से नीचे उतर कर अपने बेडरूम मे आ जाता है। तभी दरवाजे की घंटी बजती है। राजेश जा कर दरवाजा खोलता है। सामने मुमु खड़ी हुई है और चेहरा गुस्से से तमतमा रहा है।)
राजेश: (अन्दर आते हुए) क्यों क्या हुआ…
मुमु: (रुआँसी आवाज में) क्या तुम ने पिताजी को मेरा मोबाइल नम्बर दिया था…
राजेश: क्यों क्या फिर से उन्होंने काल किया…
मुमु: मै उनसे कोई सबंन्ध नहीं रखना चाहती हूं पर मेरे को चैन से जीने नहीं देते…
राजेश: चलो खाक डालो…खाने का क्या करना है? उपर टीना और करीना बैठे हुए है…यह बात हम बाद में भी कर सकते हैं।
मुमु: मै तैयारी कर के गयी थी…खाने मे कुछ टाइम लगेगा। पहले मै फ्रेश हो कर आती हूँ।
(इतना कह कर मुमु बेडरूम जाती है। राजेश टीवी के सामने बैठ कर न्यूज सुनता है। कुछ देर के बाद मुमु तैयार हो कर बाहर आती है और रसोई की ओर रुख करती है। टीना और करीना नीचे उतर कर दरवाजे का रुख करती है।)
राजेश: मेरी दुनिया की सबसे हसीन अप्सारायें रात में किधर चल दी…
टीना: मै करीना को घर छोड़ने जा रही हूँ।
राजेश: अर…रे खाना लग गया है…खाना खा कर जाना…करीना तुम भी
मुमु: (रसोई से आवाज देते हुए) टीना कहीं नहीं जाना। पहले खाना खा लो फिर जाना कहीं पर्…(कहते हुए रसोई से खाना ला कर मेज पर सजा देती है)
(टीना और करीना मेज पर आ कर बैठ जाते है। राजेश भी सब को डाईनिंग टेबल पर जौइन करता है। मुमु सबके लिए खाना परोसती है। सब मिल कर खाना खाते है। खाना खाने के बाद टीना और करीना बाहर का रुख करती हैं। राजेश और मुमु बेडरूम कि ओर चले जाते हैं।)
क्रमशः
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Re: कमसिन कलियाँ
कमसिन कलियाँ--18
गतान्क से आगे..........
टीना:.उ.अ..आह.पा…अ.उउआ.
नी जुबान पर लगाम रखेंगें।
मुमु: हाँ तुम ठीक कह रहे हो उन्हें यहीं पर बुला लेती हूँ… पता तो चले आखिर चाहते क्या है…
राजेश: हाँ और यह भी देख ले कि उसकी बेटी आज शहर के गणमान्य लोगों के साथ उठ्ती बैठ्ती है…
मुमु: तुम भी न …
राजेश: (उठ कर मुमु को अपने आगोश में ले लेता है) तुम भूल सकती हो… परन्तु मै अपना अपमान और तुम्हारी छोटी बहन तनवी को कभी भी नहीं भूल सकता…
मुमु: आज भी तनु की याद करके आप की आँखें नम हो जाती है…(गाल को सहलाती है और राजेश के होंठों को चूम लेती है)
राजेश: (मुमु को अपने निकट खींचकर) सिर्फ तुम्हारी वजह से आज मै इन्सान हूँ वर्ना तुम्हारे पिताजी ने तो मुझे हैवान बनाने मे कोई कसर नहीं छोड़ी थी…
मुमु: तुम नाहक ही उनके बारे में सोच रहे हो…
राजेश: तुम्हारी सबसे छोटी बहन आज कल उनके साथ रह रही है…
मुमु: हाँ बता रहे थे… और हँसते हुए बता रहे थे तुम्हारे और उसके बारे में…
राजेश: ठीक ही तो है… मेरा जन्म तो सिर्फ तुम्हारे पिताजी की लड़कियों के लिए हुआ है। याद है न मैनें तुम्हारे पिताजी से वादा किया था कि उन्होंने मेरे प्यार को मुझसे छीना है और एक दिन उनकी सारी बेटियों को मै अपनी बना कर रखूँगा। मैने तो स्वर्णाआभा से भी कहा था कि मेरे साथ चल परन्तु शायद अपने पिताजी की मर्दानगी से ज्यादा ही प्रभावित है या डर के कारण उसने मना कर दिया…
मुमु: मै जानती हूँ…तुम्हारे दिल का दर्द्। आखिर हम सब का बचपन साथ बीता है। काश मेरी माँ जिन्दा होतीं तो यह सब तो न होता…
राजेश: रहने दो… अच्छा है कि वह नहीं रही वरना अपनी बेटियों का जीवन बर्बाद होते हुए देख कर जीते जी मर जाती।
मुमु: माँ के मरने के बाद तो…
राजेश: मुमु मैनें तुमसे यह बात कभी भी पहले नहीं पूछी कि तुम्हारे संबन्ध अपने पिताजी के साथ कैसे और कब बन गये… क्या इस के बारे में बात करना चाहोगी।
मुमु: (राजेश के सीने से लगते हुए) आज तुम्हारे साथ रहते हुए चौदह साल हो गये है… सब कुछ जानते हुए भी तुमने कभी भी मुझसे इस बारे में नहीं पूछा फिर आज अचानक क्यूँ ?
राजेश: एकाएक तनवी जहन में आ गयी… खून में लथपथ फर्श पर पड़ी थी और… (राजेश फफक कर रो पड़ता है)…
मुमु: पुराने जख्म को मत कुरेदो…सोच कर दर्द ही होगा। परन्तु आज तक मैने किसी को भी अपनी आप बीती नहीं सुनाई। सारा जहर इतने साल मैने अपने सीने में दबा कर रखा…
राजेश: जितनी नफरत मै तुम्हारे पिता से करता हूँ उस से कहीं ज्यादा मोहब्बत मै तुमसे और तनवी से करता हूँ। आज भावनाओं मे बह कर तुम से पूछ बैठा… मुझे माफ कर दो…तुम सही कह रही हो पुराने घाव कुरेदने से सिर्फ पस ही निकलेगा…
मुमु: (राजेश से लिपट कर उसके सीने में मुँह छुपाते हुए) राजू आज मै अपनी आत्मा पर बहुत सालों से पड़े हुए बोझ को हटाना चाहती हूँ… मुझे मत रोको… माँ की मौत पर मै सिर्फ तेरह वर्ष की थी। मेरे शरीर में बदलाव आना शुरु हो गया था। सीने के उभार दिखने लगे था और कुल्हे और नितंबों मे भराव आना शुरु हो गया था। जब भी मै चलती तो सीने के उभार हिलते और देखने वाले मेरे सीने पर ही अपनी नजर गड़ाये रखते थे। मुझे बड़ा अजीब सा लगता था। उन्हीं दिनों में पिताजी जब शाम को घर पर लौट कर आते लड़खड़ाते हुए नशे में सीधे अपने कमरे में चले जाते थे। माँ के मरने के बाद कुछ दिनों तक तो क्रमवार यही चलता रहा परन्तु पिताजी का मेरे प्रति रवैया बदलने लगा। जब भी मन करता या कोई काम होता तभी किसी नौकर द्वारा बुला भेजते। अपने एकाकीपन को दूर करने के लिए मुझे अपने साथ सोने के लिए कहते थे। दो छोटी बहनों के देख रेख के लिए एक दाई माँ रख ली थी।
राजेश: मुमु तुम्हारे घर में तो बहुत सारे नौकर-चाकर हुआ करते थे फिर तुम्हारे पिताजी तुम्हें ही क्यों बुलाते थे…
मुमु: पहले कुछ समय तो मुझे भी नहीं समझ आया परन्तु एक लड़की पर चड़ती हुई जवानी उसे बहुत संवेदनशील बना देती है। लोगों की निगाह और उनके बात करने के हाव भाव से ही उनकी नीयत का आभास हो जाता है। ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ क्योंकि जब भी मै पिताजी के कमरे में जाती तो पिताजी रेस्टिंग चेयर पर बैठे होते और जबरदस्ती मुझे अपनी गोदी में बिठा लेते और फिर मेरे शरीर को प्यार से सहलाते हुए माँ को याद करते थे और रात को मुझसे लिपट कर सोते थे। मुझे भी अच्छा लगता था कि मेरे पिताजी मुझसे कितना प्यार करते है। लेकिन एक बार बीच रात में मेरी नींद टूट गयी क्योंकि मुझे अपनी जांघों के बीच में कुछ चुभता हुआ महसूस हुआ था। मेरे पिताजी ने अपना लंड मेरी जांघों के बीच मे फँसा कर मेरे नाजुक उभारों को अपने हाथों से दबा रहे थे। पिताजी के डर की वजह से कुछ देर मै चुपचाप पड़ी रही पर अंधेरे में उत्सुकतावश मैनें अपनी जांघों के बीच फँसी हुई वस्तु को अपने हाथ से पहचानने की कोशिश की तो पिताजी ने मेरा हाथ को दिशा दे कर अपने तन्नायें हुए लंड को पकड़ा दिया और पीछे से धीरे-धीरे धक्के लगाने लगे। यह सब मेरे लिए एक स्वप्न भाँति लग रहा था। एकाएक पिताजी के लंड ने कँपकँपी लेते हुए अपना सारा रस मेरी हथेली पर उंडेल दिया। कुछ ही देर में पिताजी के खर्राटें कमरे में गूँजने लगे परन्तु काफी देर तब इस नवीन अनुभव को मेरा नासमझ दिमाग समझने की कोशिश करता रहा। उसी रात को पहली बार मुझे अपनी चूत में खुजली महसूस हुई थी…
राजेश: तुम नाहक ही…।
मुमु: नहीं… तुम नहीं समझोगे क्योंकि तुम मर्द हो… तुम्हें क्या पता कि एक कमसिन कली पर ऐसे एहसास का क्या असर होता है। फिर कई दिनों तक यही खेल रात को बिस्तर पर चलता रहा। हम दोनों एक दूसरे को रात के खेल के बारे में अपनी अनिभिज्ञता दर्शाते थे पर दिल ही दिल में रात की बात को याद करके रोमांचित हो जाती थी। एक रात को सोने से पहले पिताजी के हाथ से पानी का गिलास फिसल कर मेरी गोदी में गिर जाने से मेरी फ्राक और जांघिया भीग गये थे। पिताजी ने कहा कि गीले कपड़े उतार कर सुखाने के लिए रख दो अगर ऐसे ही गीले कपड़े पहने सो गयी तो बीमार पड़ने का खतरा रहेगा। मै कुछ न नुकर करती, पिताजी ने जबरदस्ती मेरे सारे कपड़े उतार दिए और सूखने के लिए अपनी कुर्सी पर फैला दिए। पहली बार मेरा नग्न जिस्म मेरे पिताजी के सामने उदित हुआ था। मै शर्म के मारे मरी जा रही थी परन्तु पिताजी मुझे अपनी बाँहों मे भर कर बिस्तर पर ले जा कर लिटा दिया। पिताजी ने अपना कुर्ता उतार दिया और धोती पहने बिस्तर पर आकर मुझे अपनी बाँहो में ले कर लेट गये और मेरे सीने के उभारों के साथ खेलना शुरु कर दिया। लगातार छेड़खानी से मेरे निप्पल फूल कर खड़े हो गये थे और किसी शातिर खिलाड़ी की तरह उनहोंने मुझे अपनी ओर मोड़ कर मेरे निप्प्लों को अंगूर की तरह अपने होंठों मे दबा कर चूसने लगे और धीरे से मेरी अनछुई चूत की दरार में उँगली फिराने लगे।
राजेश: मुमु तुमने मना नहीं किया…
मुमु: क्या बताऊँ एक तरफ डर और दूसरी ओर जवानी की दहलीज पर कदम रखते हुए जिस्म की अनजान भूख… उस समय कुछ समझ नही आ रहा था। उस रात मैनें हिम्मत करके पिताजी को रुकने को कहा तो पिताजी ने धोती में से अपना काला भुजंग फनफनाता हुआ लंड निकाल कर मेरे हाथ में देते हुए कहा कि यह तेरी अम्मा की धरोहर है अब उसके जाने के बाद से यह तेरी है। जो तेरी माँ इसके साथ करती थी अब से तुझे करना होगा और यह कह कर मुझे नोचना-खसोटना शुरु कर दिया।
राजेश: पर मुमु तुम चुप क्यों रही… रोकने के लिए चीखँती…कोई तो नौकर आता बचाने को…
मुमु: तुम मेरे पिताजी के खौफ से क्या वाकिफ नहीं हो… किसी नौकर में इतना दम नहीं था कि मेरे पिताजी की आज्ञा की अवेहलना करें…पिताजी ने मुझे अपने नीचे दबा लिया और धीरे धीरे मेरे होंठों और गालों को चूसना शुरु कर दिया… फिर मेरे सीने के उभारों को अपने मुख में भर कर आम की तरह चूसना शुरु कर दिया…मेरे अन्दर भी अजीब सी आग जलने लगी थी… पिताजी को अपनी मर्दानगी पर बड़ा घमंड था और मेरे हाथ में अपने लंड को पकड़ा कर कहा की यह तेरी माँ की धरोहर है और आज से तू इसका ख्याल रखा करेगी। द्स इंच लम्बा और तीन इंच की गोलाई लिए लंड को मेरे हाथ में थमा दिया… और मुझे सरसों का तेल दे दिया और कहा की इसकी मालिश करूँ … कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ परन्तु जैसा पिताजी ने कहा मैने वैसा करना आरंभ कर दिया… पिताजी मेरे नाजुक अंगों के साथ खिलवाड़ कर रहे थे और मै उस काले भुजंग की मालिश कर रही थी… तुम्हें नहीं मालूम होगा परन्तु उनके लंड का अग्र भाग एक फूले हुए बैगंन की तरह दिखता है।
राजेश: मुमु…
मुमु: नहीं आज मुझे कहने दो… पिताजी कुछ देर तक मेरे स्तनों को नीबू की तरह निचोड़ते हुए चूसते थे और कभी अपने दाँतों में दबा कर कचकचा कर काट देते थे। मेरे स्तन पर आज तक उनके दाँतों के निशान है…(मुमु अपने नाइट गाउन को उतार कर अपने दोनों स्तनों पर कुछ निशान दिखाती है। राजेश प्यार से स्तन को अपने हाथों मे ले कर सहलाता है।)… मै दर्द से छ्टपटाती हुई पिताजी से अपने स्तन छुड़ाने का प्रयास करती तो और जोर से काट देते थे… काफी देर तक मेरे होंठों और स्तनों के साथ खेल कर उन्होनें मेरी गरदन पकड़ कर मेरे मुँह में अपना लंड जबरदस्ती धँसा दिया…और मुझसे चूसने को कहा। तुम सोच सकते हो कि एक तेरह वर्ष की नादान लड़की का पहला अनुभव कैसा रहा होगा…कि एक तरफ से उनका लंड मेरे गले में धँस कर मेरा दम घोट रहा था और दूसरी ओर से मेरे पिताजी अपनी मोटी उँगलियों से मेरी चूत को खोल कर मेरे दाने को रगड़ने में लगे हुए थे। मेरा शरीर मेरे काबू में नहीं रह गया था और कुछ ही क्षणों मेरा पहला स्खलन हो गया था…
मुमु: राजू उस वक्त मै नासमझ और बेबस थी… मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। पिताजी मुझे एक गुड़िया की भाँति इस्तेमाल कर रहे थे… अचानक मेरे पिताजी ने अपना लंड मेरे मुख से निकाल कर मुझे गोदी मे ले लिया तो मुझे साँस लेने में कुछ राहत महसूस हुई। पुचकारते हुए पिताजी ने मुझे अपनी ओर खींचकर मेरी चूत के मुहाने पर अपना लंड रख घिसना आरंभ कर दिया और मेरी कमर को कस कर पकड़ कर अपनी ओर धक्का दिया। सरसों के तेल से भीगा हुआ लंड का अग्र भाग मेरी चूत के मुख को जबरदस्ती खोल कर अन्दर जा कर फँस गया। मेरी आँखों के आगे अंधेरा छाता चला गया… और मै दर्द के मारे बेहोश हो गयी…जब तक मुझे होश आया तब तक मेरा कौमर्य भंग हो चुका था। मेरे पिताजी अपना लंड मेरी चूत में फँसा कर मेरे उपर लेटे हुए थे। मेरी चूत में बर्छियाँ चल रही थी और मैं पीड़ा से छटपटा रही थी। मेरा बाप मेरे शरीर को रौंदने में लगा हुआ था। मेरी परवाह किए बिना, पिताजी लम्बे और गहरे धक्के लगाते हुए जल्दी ही अपना सारा रस मेरी चूत में उंडेल कर एक तरफ पड़ गये… मेरा क्या हाल था मै क्या बयान करूँ…
राजेश: मुमु मै समझ सकता हूँ… (अपनी उँगली मुमु की चूत की दरार पर फिराते हुए) मुझे पता है इस ने कितनी यातनाएँ सही है… (और चूत के होंठों को उँगलियों से खोल कर उठे हुए बीज को चूमते हुए अपने होंठों में दबा लेता है।)
मुमु: अ आह्… नहीं प्लीज। आज मै तुम्हें सब कुछ बता कर अपना बोझ हलका करना चाहती हूँ (कहती हूई राजेश के चेहरे को अपने नग्न सीने पर रख कर) पुरे चार दिन तक मै अपने बिस्तर से नहीं उठ पाई और सारे दिन मै पीड़ा से तड़पती रहती थी। पिताजी रोज मेरे पास आकर प्यार से बात करते थे पर डर के कारण उस रात का कोई जिकर नहीं होता था। पिताजी ने मेरी हालत देख कर दाई माँ को बुलाया और उसे मेरा इलाज करने के लिए छोड़ दिया और गाँव भर में मेरी चरित्रहीनता की खबर फैला दी। एक हफ्ते बाद मेरे पिताजी ने रात को मुझे अपने कमरे में फिर से बुलाया तो दाई अम्मा मुझे अपने साथ ले कर उनके कमरे मे छोड़ आयीं।
राजेश: मुमु तुम्हें याद होगा जब मै पहली बार तुम्हारे घर आया था तो तुम मुझे एक दुखी और मासूम परन्तु बहुत नकचड़ी और घमंडी सी लड़की लगी थी।
मुमु: मेरे भाग्य की विडम्बना थी… एक तरफ मेरा डर और दूसरी ओर यौन शोषण ने मुझे बहुत चिड़चिड़ी बना दिया था। रोज रात को पिताजी मेरा को हर तरह से भोगते थे। अब मेरा शरीर भी इस खेल का आदि हो चुका था। पहले मै डर के मारे पिताजी का इस काम में साथ देती थी परन्तु कुछ समय बाद पिताजी के लंड को लिए बिना मुझे नींद नहीं आती थी। कुछ ही दिनों में पिताजी ने मेरे शरीर के सारे छेदों का अपने प्रेमरस से भर दिया था। इसका परिणाम यह हुआ कि मेरे पेट में लीना आ गयी। पहले तो पिताजी दाई अम्मा से बच्चे को गिराने की बात करते रहे पर ज्यादा दिन होने की वजह से जान को खतरा था इस लिए बच्चे को गिराने का ख्याल दिल से निकाल दिया। माँ बनने के कारण अब मै पिताजी की आग शान्त करने में अस्मर्थ थी। अब तक तनवी ने जवानी की दहलीज पर पहला कदम रख दिया था। देखने मे तो वह हम सब से सुन्दर थी और उसके कमसिन बदन में भी भराव आने लगा था। मैनें गौर किया कि अब पिताजी की नजर उस पर लगी हुई थी।
राजेश: (मुमु के सीने की दोनों पहाड़ियों के बीच मे से मुख निकाल कर) तुम्हें कब मालूम हुआ कि मेरे और तनवी के बीच में प्रगाड़ संबन्ध है…
मुमु: जब पिताजी ने पहली बार तनवी को रात में अपने साथ सोने के लिए बुलवाया था और तनवी ने साफ मना कर दिया था। वह मेरे पास रोती हुई आई थी कि वह किसी और की अमानत है की… बहुत पूछने पर भी जब उसने कोई नाम नहीं लिया तो मै यह तो समझ गयी थी कोई जानकार है परन्तु तुम दोनों के बारे में पहली बार पिताजी के मुख से सुना था।
राजेश: फिर क्या हुआ… (मुमु के उन्नत उभारों से खेलते हुए)
मुमु: जब तनवी मेरे पास अपना दुखड़ा सुना कर गयी तब मैने पहली बार पिताजी की खिलाफत की थी। उनके पास जा कर मैने साफ लफ्जों में कह दिया कि मेरी बहनों मे से किसी के एक के साथ भी उन्होंने कुछ करने की कोशिश की तो मै सब को होने वाले बच्चे के पिता का नाम बता दूँगी… मेरी धमकी से पिताजी डर गये और फिर जब तक लीना हुई उन्होंने तनवी पर कोई दबाव नहीं डाला… राजू तुम बताओ तनु के साथ तुम्हारा प्यार कब और कैसे हुआ… तुम तो होस्टल मे रहा करते थे और हमारे घर सिर्फ छुट्टियों में खेलने आते थे…
राजेश: मुमु यह उन दिनों की बात है जब तुम्हारे पेट में लीना थी… मै अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी करके कुछ समय के लिए घर पर रहने आया था… तीन महीने बाद मुझे अमरीका आगे पढ़ने के लिए जाना था… उन दिनों मै अपने खेतों पर रह कर इधर-उधर घूमता रहता था। एक दिन तनवी अकेली लंगड़ाती हुई स्कूल से लौट रही थी। हम पहले से एक दूसरे को जानते थे क्योंकि तुम्हारे घर मे मेरे परिवार का आना-जाना था। उसकी यह हालत देख कर मुझ से रहा नहीं गया सो मैनें उसे रोका और अपनी बाँहों मे ले कर इधर-उधर की बात करते हुए उसे घर पर छोड़ दिया। मै हमेशा उसे छोटी बच्ची की तरह देखा था इसी लिए उसमें मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी। मैं अठारह का हो चुका था और वह मुश्किल से तेरहवें वर्ष में लगी थी या लगने वाली थी।
क्रमशः
गतान्क से आगे..........
टीना:.उ.अ..आह.पा…अ.उउआ.
नी जुबान पर लगाम रखेंगें।
मुमु: हाँ तुम ठीक कह रहे हो उन्हें यहीं पर बुला लेती हूँ… पता तो चले आखिर चाहते क्या है…
राजेश: हाँ और यह भी देख ले कि उसकी बेटी आज शहर के गणमान्य लोगों के साथ उठ्ती बैठ्ती है…
मुमु: तुम भी न …
राजेश: (उठ कर मुमु को अपने आगोश में ले लेता है) तुम भूल सकती हो… परन्तु मै अपना अपमान और तुम्हारी छोटी बहन तनवी को कभी भी नहीं भूल सकता…
मुमु: आज भी तनु की याद करके आप की आँखें नम हो जाती है…(गाल को सहलाती है और राजेश के होंठों को चूम लेती है)
राजेश: (मुमु को अपने निकट खींचकर) सिर्फ तुम्हारी वजह से आज मै इन्सान हूँ वर्ना तुम्हारे पिताजी ने तो मुझे हैवान बनाने मे कोई कसर नहीं छोड़ी थी…
मुमु: तुम नाहक ही उनके बारे में सोच रहे हो…
राजेश: तुम्हारी सबसे छोटी बहन आज कल उनके साथ रह रही है…
मुमु: हाँ बता रहे थे… और हँसते हुए बता रहे थे तुम्हारे और उसके बारे में…
राजेश: ठीक ही तो है… मेरा जन्म तो सिर्फ तुम्हारे पिताजी की लड़कियों के लिए हुआ है। याद है न मैनें तुम्हारे पिताजी से वादा किया था कि उन्होंने मेरे प्यार को मुझसे छीना है और एक दिन उनकी सारी बेटियों को मै अपनी बना कर रखूँगा। मैने तो स्वर्णाआभा से भी कहा था कि मेरे साथ चल परन्तु शायद अपने पिताजी की मर्दानगी से ज्यादा ही प्रभावित है या डर के कारण उसने मना कर दिया…
मुमु: मै जानती हूँ…तुम्हारे दिल का दर्द्। आखिर हम सब का बचपन साथ बीता है। काश मेरी माँ जिन्दा होतीं तो यह सब तो न होता…
राजेश: रहने दो… अच्छा है कि वह नहीं रही वरना अपनी बेटियों का जीवन बर्बाद होते हुए देख कर जीते जी मर जाती।
मुमु: माँ के मरने के बाद तो…
राजेश: मुमु मैनें तुमसे यह बात कभी भी पहले नहीं पूछी कि तुम्हारे संबन्ध अपने पिताजी के साथ कैसे और कब बन गये… क्या इस के बारे में बात करना चाहोगी।
मुमु: (राजेश के सीने से लगते हुए) आज तुम्हारे साथ रहते हुए चौदह साल हो गये है… सब कुछ जानते हुए भी तुमने कभी भी मुझसे इस बारे में नहीं पूछा फिर आज अचानक क्यूँ ?
राजेश: एकाएक तनवी जहन में आ गयी… खून में लथपथ फर्श पर पड़ी थी और… (राजेश फफक कर रो पड़ता है)…
मुमु: पुराने जख्म को मत कुरेदो…सोच कर दर्द ही होगा। परन्तु आज तक मैने किसी को भी अपनी आप बीती नहीं सुनाई। सारा जहर इतने साल मैने अपने सीने में दबा कर रखा…
राजेश: जितनी नफरत मै तुम्हारे पिता से करता हूँ उस से कहीं ज्यादा मोहब्बत मै तुमसे और तनवी से करता हूँ। आज भावनाओं मे बह कर तुम से पूछ बैठा… मुझे माफ कर दो…तुम सही कह रही हो पुराने घाव कुरेदने से सिर्फ पस ही निकलेगा…
मुमु: (राजेश से लिपट कर उसके सीने में मुँह छुपाते हुए) राजू आज मै अपनी आत्मा पर बहुत सालों से पड़े हुए बोझ को हटाना चाहती हूँ… मुझे मत रोको… माँ की मौत पर मै सिर्फ तेरह वर्ष की थी। मेरे शरीर में बदलाव आना शुरु हो गया था। सीने के उभार दिखने लगे था और कुल्हे और नितंबों मे भराव आना शुरु हो गया था। जब भी मै चलती तो सीने के उभार हिलते और देखने वाले मेरे सीने पर ही अपनी नजर गड़ाये रखते थे। मुझे बड़ा अजीब सा लगता था। उन्हीं दिनों में पिताजी जब शाम को घर पर लौट कर आते लड़खड़ाते हुए नशे में सीधे अपने कमरे में चले जाते थे। माँ के मरने के बाद कुछ दिनों तक तो क्रमवार यही चलता रहा परन्तु पिताजी का मेरे प्रति रवैया बदलने लगा। जब भी मन करता या कोई काम होता तभी किसी नौकर द्वारा बुला भेजते। अपने एकाकीपन को दूर करने के लिए मुझे अपने साथ सोने के लिए कहते थे। दो छोटी बहनों के देख रेख के लिए एक दाई माँ रख ली थी।
राजेश: मुमु तुम्हारे घर में तो बहुत सारे नौकर-चाकर हुआ करते थे फिर तुम्हारे पिताजी तुम्हें ही क्यों बुलाते थे…
मुमु: पहले कुछ समय तो मुझे भी नहीं समझ आया परन्तु एक लड़की पर चड़ती हुई जवानी उसे बहुत संवेदनशील बना देती है। लोगों की निगाह और उनके बात करने के हाव भाव से ही उनकी नीयत का आभास हो जाता है। ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ क्योंकि जब भी मै पिताजी के कमरे में जाती तो पिताजी रेस्टिंग चेयर पर बैठे होते और जबरदस्ती मुझे अपनी गोदी में बिठा लेते और फिर मेरे शरीर को प्यार से सहलाते हुए माँ को याद करते थे और रात को मुझसे लिपट कर सोते थे। मुझे भी अच्छा लगता था कि मेरे पिताजी मुझसे कितना प्यार करते है। लेकिन एक बार बीच रात में मेरी नींद टूट गयी क्योंकि मुझे अपनी जांघों के बीच में कुछ चुभता हुआ महसूस हुआ था। मेरे पिताजी ने अपना लंड मेरी जांघों के बीच मे फँसा कर मेरे नाजुक उभारों को अपने हाथों से दबा रहे थे। पिताजी के डर की वजह से कुछ देर मै चुपचाप पड़ी रही पर अंधेरे में उत्सुकतावश मैनें अपनी जांघों के बीच फँसी हुई वस्तु को अपने हाथ से पहचानने की कोशिश की तो पिताजी ने मेरा हाथ को दिशा दे कर अपने तन्नायें हुए लंड को पकड़ा दिया और पीछे से धीरे-धीरे धक्के लगाने लगे। यह सब मेरे लिए एक स्वप्न भाँति लग रहा था। एकाएक पिताजी के लंड ने कँपकँपी लेते हुए अपना सारा रस मेरी हथेली पर उंडेल दिया। कुछ ही देर में पिताजी के खर्राटें कमरे में गूँजने लगे परन्तु काफी देर तब इस नवीन अनुभव को मेरा नासमझ दिमाग समझने की कोशिश करता रहा। उसी रात को पहली बार मुझे अपनी चूत में खुजली महसूस हुई थी…
राजेश: तुम नाहक ही…।
मुमु: नहीं… तुम नहीं समझोगे क्योंकि तुम मर्द हो… तुम्हें क्या पता कि एक कमसिन कली पर ऐसे एहसास का क्या असर होता है। फिर कई दिनों तक यही खेल रात को बिस्तर पर चलता रहा। हम दोनों एक दूसरे को रात के खेल के बारे में अपनी अनिभिज्ञता दर्शाते थे पर दिल ही दिल में रात की बात को याद करके रोमांचित हो जाती थी। एक रात को सोने से पहले पिताजी के हाथ से पानी का गिलास फिसल कर मेरी गोदी में गिर जाने से मेरी फ्राक और जांघिया भीग गये थे। पिताजी ने कहा कि गीले कपड़े उतार कर सुखाने के लिए रख दो अगर ऐसे ही गीले कपड़े पहने सो गयी तो बीमार पड़ने का खतरा रहेगा। मै कुछ न नुकर करती, पिताजी ने जबरदस्ती मेरे सारे कपड़े उतार दिए और सूखने के लिए अपनी कुर्सी पर फैला दिए। पहली बार मेरा नग्न जिस्म मेरे पिताजी के सामने उदित हुआ था। मै शर्म के मारे मरी जा रही थी परन्तु पिताजी मुझे अपनी बाँहों मे भर कर बिस्तर पर ले जा कर लिटा दिया। पिताजी ने अपना कुर्ता उतार दिया और धोती पहने बिस्तर पर आकर मुझे अपनी बाँहो में ले कर लेट गये और मेरे सीने के उभारों के साथ खेलना शुरु कर दिया। लगातार छेड़खानी से मेरे निप्पल फूल कर खड़े हो गये थे और किसी शातिर खिलाड़ी की तरह उनहोंने मुझे अपनी ओर मोड़ कर मेरे निप्प्लों को अंगूर की तरह अपने होंठों मे दबा कर चूसने लगे और धीरे से मेरी अनछुई चूत की दरार में उँगली फिराने लगे।
राजेश: मुमु तुमने मना नहीं किया…
मुमु: क्या बताऊँ एक तरफ डर और दूसरी ओर जवानी की दहलीज पर कदम रखते हुए जिस्म की अनजान भूख… उस समय कुछ समझ नही आ रहा था। उस रात मैनें हिम्मत करके पिताजी को रुकने को कहा तो पिताजी ने धोती में से अपना काला भुजंग फनफनाता हुआ लंड निकाल कर मेरे हाथ में देते हुए कहा कि यह तेरी अम्मा की धरोहर है अब उसके जाने के बाद से यह तेरी है। जो तेरी माँ इसके साथ करती थी अब से तुझे करना होगा और यह कह कर मुझे नोचना-खसोटना शुरु कर दिया।
राजेश: पर मुमु तुम चुप क्यों रही… रोकने के लिए चीखँती…कोई तो नौकर आता बचाने को…
मुमु: तुम मेरे पिताजी के खौफ से क्या वाकिफ नहीं हो… किसी नौकर में इतना दम नहीं था कि मेरे पिताजी की आज्ञा की अवेहलना करें…पिताजी ने मुझे अपने नीचे दबा लिया और धीरे धीरे मेरे होंठों और गालों को चूसना शुरु कर दिया… फिर मेरे सीने के उभारों को अपने मुख में भर कर आम की तरह चूसना शुरु कर दिया…मेरे अन्दर भी अजीब सी आग जलने लगी थी… पिताजी को अपनी मर्दानगी पर बड़ा घमंड था और मेरे हाथ में अपने लंड को पकड़ा कर कहा की यह तेरी माँ की धरोहर है और आज से तू इसका ख्याल रखा करेगी। द्स इंच लम्बा और तीन इंच की गोलाई लिए लंड को मेरे हाथ में थमा दिया… और मुझे सरसों का तेल दे दिया और कहा की इसकी मालिश करूँ … कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ परन्तु जैसा पिताजी ने कहा मैने वैसा करना आरंभ कर दिया… पिताजी मेरे नाजुक अंगों के साथ खिलवाड़ कर रहे थे और मै उस काले भुजंग की मालिश कर रही थी… तुम्हें नहीं मालूम होगा परन्तु उनके लंड का अग्र भाग एक फूले हुए बैगंन की तरह दिखता है।
राजेश: मुमु…
मुमु: नहीं आज मुझे कहने दो… पिताजी कुछ देर तक मेरे स्तनों को नीबू की तरह निचोड़ते हुए चूसते थे और कभी अपने दाँतों में दबा कर कचकचा कर काट देते थे। मेरे स्तन पर आज तक उनके दाँतों के निशान है…(मुमु अपने नाइट गाउन को उतार कर अपने दोनों स्तनों पर कुछ निशान दिखाती है। राजेश प्यार से स्तन को अपने हाथों मे ले कर सहलाता है।)… मै दर्द से छ्टपटाती हुई पिताजी से अपने स्तन छुड़ाने का प्रयास करती तो और जोर से काट देते थे… काफी देर तक मेरे होंठों और स्तनों के साथ खेल कर उन्होनें मेरी गरदन पकड़ कर मेरे मुँह में अपना लंड जबरदस्ती धँसा दिया…और मुझसे चूसने को कहा। तुम सोच सकते हो कि एक तेरह वर्ष की नादान लड़की का पहला अनुभव कैसा रहा होगा…कि एक तरफ से उनका लंड मेरे गले में धँस कर मेरा दम घोट रहा था और दूसरी ओर से मेरे पिताजी अपनी मोटी उँगलियों से मेरी चूत को खोल कर मेरे दाने को रगड़ने में लगे हुए थे। मेरा शरीर मेरे काबू में नहीं रह गया था और कुछ ही क्षणों मेरा पहला स्खलन हो गया था…
मुमु: राजू उस वक्त मै नासमझ और बेबस थी… मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। पिताजी मुझे एक गुड़िया की भाँति इस्तेमाल कर रहे थे… अचानक मेरे पिताजी ने अपना लंड मेरे मुख से निकाल कर मुझे गोदी मे ले लिया तो मुझे साँस लेने में कुछ राहत महसूस हुई। पुचकारते हुए पिताजी ने मुझे अपनी ओर खींचकर मेरी चूत के मुहाने पर अपना लंड रख घिसना आरंभ कर दिया और मेरी कमर को कस कर पकड़ कर अपनी ओर धक्का दिया। सरसों के तेल से भीगा हुआ लंड का अग्र भाग मेरी चूत के मुख को जबरदस्ती खोल कर अन्दर जा कर फँस गया। मेरी आँखों के आगे अंधेरा छाता चला गया… और मै दर्द के मारे बेहोश हो गयी…जब तक मुझे होश आया तब तक मेरा कौमर्य भंग हो चुका था। मेरे पिताजी अपना लंड मेरी चूत में फँसा कर मेरे उपर लेटे हुए थे। मेरी चूत में बर्छियाँ चल रही थी और मैं पीड़ा से छटपटा रही थी। मेरा बाप मेरे शरीर को रौंदने में लगा हुआ था। मेरी परवाह किए बिना, पिताजी लम्बे और गहरे धक्के लगाते हुए जल्दी ही अपना सारा रस मेरी चूत में उंडेल कर एक तरफ पड़ गये… मेरा क्या हाल था मै क्या बयान करूँ…
राजेश: मुमु मै समझ सकता हूँ… (अपनी उँगली मुमु की चूत की दरार पर फिराते हुए) मुझे पता है इस ने कितनी यातनाएँ सही है… (और चूत के होंठों को उँगलियों से खोल कर उठे हुए बीज को चूमते हुए अपने होंठों में दबा लेता है।)
मुमु: अ आह्… नहीं प्लीज। आज मै तुम्हें सब कुछ बता कर अपना बोझ हलका करना चाहती हूँ (कहती हूई राजेश के चेहरे को अपने नग्न सीने पर रख कर) पुरे चार दिन तक मै अपने बिस्तर से नहीं उठ पाई और सारे दिन मै पीड़ा से तड़पती रहती थी। पिताजी रोज मेरे पास आकर प्यार से बात करते थे पर डर के कारण उस रात का कोई जिकर नहीं होता था। पिताजी ने मेरी हालत देख कर दाई माँ को बुलाया और उसे मेरा इलाज करने के लिए छोड़ दिया और गाँव भर में मेरी चरित्रहीनता की खबर फैला दी। एक हफ्ते बाद मेरे पिताजी ने रात को मुझे अपने कमरे में फिर से बुलाया तो दाई अम्मा मुझे अपने साथ ले कर उनके कमरे मे छोड़ आयीं।
राजेश: मुमु तुम्हें याद होगा जब मै पहली बार तुम्हारे घर आया था तो तुम मुझे एक दुखी और मासूम परन्तु बहुत नकचड़ी और घमंडी सी लड़की लगी थी।
मुमु: मेरे भाग्य की विडम्बना थी… एक तरफ मेरा डर और दूसरी ओर यौन शोषण ने मुझे बहुत चिड़चिड़ी बना दिया था। रोज रात को पिताजी मेरा को हर तरह से भोगते थे। अब मेरा शरीर भी इस खेल का आदि हो चुका था। पहले मै डर के मारे पिताजी का इस काम में साथ देती थी परन्तु कुछ समय बाद पिताजी के लंड को लिए बिना मुझे नींद नहीं आती थी। कुछ ही दिनों में पिताजी ने मेरे शरीर के सारे छेदों का अपने प्रेमरस से भर दिया था। इसका परिणाम यह हुआ कि मेरे पेट में लीना आ गयी। पहले तो पिताजी दाई अम्मा से बच्चे को गिराने की बात करते रहे पर ज्यादा दिन होने की वजह से जान को खतरा था इस लिए बच्चे को गिराने का ख्याल दिल से निकाल दिया। माँ बनने के कारण अब मै पिताजी की आग शान्त करने में अस्मर्थ थी। अब तक तनवी ने जवानी की दहलीज पर पहला कदम रख दिया था। देखने मे तो वह हम सब से सुन्दर थी और उसके कमसिन बदन में भी भराव आने लगा था। मैनें गौर किया कि अब पिताजी की नजर उस पर लगी हुई थी।
राजेश: (मुमु के सीने की दोनों पहाड़ियों के बीच मे से मुख निकाल कर) तुम्हें कब मालूम हुआ कि मेरे और तनवी के बीच में प्रगाड़ संबन्ध है…
मुमु: जब पिताजी ने पहली बार तनवी को रात में अपने साथ सोने के लिए बुलवाया था और तनवी ने साफ मना कर दिया था। वह मेरे पास रोती हुई आई थी कि वह किसी और की अमानत है की… बहुत पूछने पर भी जब उसने कोई नाम नहीं लिया तो मै यह तो समझ गयी थी कोई जानकार है परन्तु तुम दोनों के बारे में पहली बार पिताजी के मुख से सुना था।
राजेश: फिर क्या हुआ… (मुमु के उन्नत उभारों से खेलते हुए)
मुमु: जब तनवी मेरे पास अपना दुखड़ा सुना कर गयी तब मैने पहली बार पिताजी की खिलाफत की थी। उनके पास जा कर मैने साफ लफ्जों में कह दिया कि मेरी बहनों मे से किसी के एक के साथ भी उन्होंने कुछ करने की कोशिश की तो मै सब को होने वाले बच्चे के पिता का नाम बता दूँगी… मेरी धमकी से पिताजी डर गये और फिर जब तक लीना हुई उन्होंने तनवी पर कोई दबाव नहीं डाला… राजू तुम बताओ तनु के साथ तुम्हारा प्यार कब और कैसे हुआ… तुम तो होस्टल मे रहा करते थे और हमारे घर सिर्फ छुट्टियों में खेलने आते थे…
राजेश: मुमु यह उन दिनों की बात है जब तुम्हारे पेट में लीना थी… मै अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी करके कुछ समय के लिए घर पर रहने आया था… तीन महीने बाद मुझे अमरीका आगे पढ़ने के लिए जाना था… उन दिनों मै अपने खेतों पर रह कर इधर-उधर घूमता रहता था। एक दिन तनवी अकेली लंगड़ाती हुई स्कूल से लौट रही थी। हम पहले से एक दूसरे को जानते थे क्योंकि तुम्हारे घर मे मेरे परिवार का आना-जाना था। उसकी यह हालत देख कर मुझ से रहा नहीं गया सो मैनें उसे रोका और अपनी बाँहों मे ले कर इधर-उधर की बात करते हुए उसे घर पर छोड़ दिया। मै हमेशा उसे छोटी बच्ची की तरह देखा था इसी लिए उसमें मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी। मैं अठारह का हो चुका था और वह मुश्किल से तेरहवें वर्ष में लगी थी या लगने वाली थी।
क्रमशः