कुच्छ ऐसा ही रोहन के साथ कहानी में हुआ.. हमेशा अपनी मस्ती में ही मस्त रहने वाला एक करोड़पति बाप का बेटा अचानक अपने आपको गहरी आसमनझास में घिरा महसूस करता है जब कोई अंजान सुंदरी उसके सपनों में आकर उसको प्यार की दुहाई देकर अपने पास बुलाती है.. और जब ये सिलसिला हर रोज़ का बन जाता है तो अपनी बिगड़ती मनोदशा की वजह से मजबूर होकर निकलना ही पड़ता है.. उसकी तलाश में.. उसके बताए आधे अधूरे रास्ते पर.. लड़की उसको आख़िरकार मिलती भी है, पर तब तक उसको अहसास हो चुका होता है कि 'वो' लड़की कोई और है.. और फिर से मजबूरन उसकी तलाश शुरू होती है, एक अनदेखी अंजानी लड़की के लिए.. जो ना जाने कैसी है...
इस अंजानी डगर पर चला रोहन जाने कितनी ही बार हताश होकर उसके सपने में आने वाली लड़की से सवाल करता है," मैं विस्वाश क्यूँ करूँ?" .. तो उसकी चाहत में तड़प रही लड़की का हमेशा एक ही जवाब होता है:
'' मुर्दे कभी झूठ नही बोलते "
दोस्तों कहानी का ये पार्ट पढ़ने के बाद कमेन्ट जरूर देना इस कहानी को आगे भी पोस्ट करू या नही
गतांक से आगे ............................
" ओह माइ गॉड! मतलब तुम्हारे लिए कोई लड़की सदियों से तड़प रही है.. आज तक!" अमन ने पूरी कहानी सुन'ने के बाद ही प्रतिक्रिया दी..," मैने तो ऐसा सिर्फ़ कहानियों में ही सुना था.. आज पहली बार जीता जागता सबूत देख रहा हूँ..."
"अबे घोनचू! ये भी तो कहानी ही है.." नशे और मस्ती में झूल रहे शेखर ने पनीर का टुकड़ा प्लेट से उठाकर उसके मुँह पर दे मारा...
"मतलब? ... ये कहानी है रोहन?" अमन ने रोहन की और अचरज से देखा...
रोहन कुच्छ नही बोला.. पिच्छली बातें याद करते करते उसके चेहरे पर पसीना छलक आया था.. शरीर में रह रह कर अंजान सी सिहरन सी दौड़ जाती थी.... वह सिर झुकाए बैठा रहा....
"अरे यार.. सपने कहानियाँ ही तो होते हैं.. सपने में ही तो आती है ना वो.. और जो कुच्छ जीते जागते में हुआ है.. उसके बारे में नितिन भाई ठीक ही कह रहा है.. वो ज़रूर उस बुड्ढे और लौंडिया की साज़िश है.. ज़रूर किसी मन्त्र तन्त्र का सहारा लेकर इसके सपने में आ जाती होगी... तू क्या कहता है रवि?" शेखर ने सबके लिए एक एक पैग और बना दिया.....
"साला! कुत्ता! कमीना.... 2 महीने से ऐसे ही रोनी सी सूरत बनाए हुए है.. कभी मुझे दोस्त नही समझा... मुझे आज तक कुच्छ भी नही बताया इसने..!" अब तक चुप चाप गौर से सारी बातें सुन रहा रवि उठा और रोहन के पास बैठकर उसकी छाती से लग गया...," पहले क्यूँ नही बताया यार... मैं चलता तुम्हारे साथ.. हर जगह.. तूने मुझे अपना नही माना यार... मुझे अपना नही माना ओये!"
"अब चुप भी कर यार.. ज़रा सी चढ़ते ही शुरू हो जाता है.." रोहन ने भी उसके गले लग कर उसकी कमर थपथपाई....
"आज मैं उस तरह से शुरू नही हुआ हूँ यार.. कितना हंसता था तू.. कितनी मस्ती करते थे हम दोनो.. पर दो महीने से तू पता नही कैसा हो गया है.. ना कहीं घूमने चलता.. ना कभी फोन उठता.. और मिलता भी है तो दिलीप कुमार की स्टाइल में.. मैं सोचता तो था कि कहीं तेरा कुच्छ चक्कर तो नही चल गया है.. पर ये तो मैने सपने में भी नही सोचा था की ये सारा चक्कर सपने का है... पर अब चिंता मत कर.. यहाँ बतला में ही है ना वो...?" रवि भावुक होते हुए बोला...
"हूंम्म.." रोहन ने हामी भारी...
"उसको ढूँढना ही है ना बस.. बाकी काम तो तू कर लेगा?" रवि ने पूचछा...
"सिर्फ़ ढूँढना नही है यार... उसको वहाँ लेकर भी जाना है.. उसी टीले पर.." रोहन ने सपस्ट किया...
"तो वो तो चल ही पड़ेगी ना... जब तुझसे इतना प्यार करती है.. तेरे लिए तो वो सारी दुनिया को छ्चोड़ सकती है भाई.. फिर बतला में क्या रखा है? पुराने टीले पर रहेंगे चलकर.. एक छ्होटा सा मकान बना लेंगे यहाँ..." रवि ने अपनी बटेर जैसी मोटी आँखें रोहन के सामने पूरी खोल दी....
"तुझसे तो बात करना ही बेकार है यार.. भेजे में तो मुर्गियों ने अंडे दे रखे हैं तेरे में.. कुच्छ समझ में तो आता नही .. तेरे को क्या घंटा बताता में...." रोहन उसकी ऊल-जलूल बातें सुनकर झल्ला उठा...
"ऐसे क्यूँ बोल रहा है यार.. चल अच्छे से एक बार और सुना दे पूरी कहानी.. इस बार में ज़रूरी बातें नोट करता रहूँगा अपनी डाइयरी में.. मेरी डाइयरी कहाँ गयी?" रवि ने भोलेपन से कहा और सभी ठहाका लगाकर हंस पड़े..
"तुझे कहानी सुन'ने की कोई ज़रूरत नही है.. आगे की सुन ले बस.. पहले नीरू को ढूँढना है.. फिर उस'से दोस्ती करनी है.. फिर सारी बातें उसको बतानी हैं और उसको अपने साथ एक बार पुराने टीले पर चलने के लिए मनाना है... समझ गया! और अब वहाँ मकान बनाने की प्लॅनिंग शुरू मत करना.. वहाँ रहना नही है हमें..." रोहन ने खास खास बातें दोहरा दी....
"रहना नही तो फिर क्यूँ चलना है वहाँ.. क्यूँ बेचारी भाभी को डरा रहे हो यार.." रवि के दिमाग़ में एक और सवालों का लट्तू जगमगा उठा...
"अबे डमरू.. वहीं चलकर उसको सब कुच्छ याद आएगा.. समझा.." रोहन ने गुस्से से कहा...
"ऊहह.. अच्च्छा...... ठीक है...एक मिनिट.....पर तुझे कैसे पता कि उसको वहीं सब कुच्छ याद आएगा..." रवि ने एक और सवाल दागा...
"खुद नीरू ने ही बताया है मुझे, सपने में.... याअर.." रोहन समझाते समझाते थक गया....
"जब उसको पता ही है तो याद दिलाने की क्या ज़रूरत है.. ? बस ये एक लास्ट बात और क्लियर कर दे..."
"साले.. तेरे दिमाग़ में चढ़ गयी है दारू.. यहाँ वाली नीरू को कुच्छ पता नही है... वो टीले पर जो है.. वो केयी जनम पहले की प्रिया का दिल है.. जो कहती है कि मैं देव था और वो प्रिया.. हम एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे.. इस जनम में प्रिया नीरू है और और देव रोहन.. यानी की मैं.. इस'से ज़्यादा मुझे कुच्छ नही पता.. मैं सिर्फ़ देखना चाहता हूँ कि ये सब सच भी है या नही.. कल सुबह नीरू को ढूँढने चलेंगे.. अब इसके बाद कोई सवाल किया ना तो... देख ले फिर.." रोहन बोलते बोलते तक गया....
"एक मिनिट रोहन..मान लो तेरा सपना हक़ीकत है.... शहर में तो काई नीरू हो सकती हैं.. तू उसको ढूंढेगा कैसे...?"
"उसका घर गवरमेंट. कॉलेज के पास है.. वहीं पता करेंगे कोई नीरू वहाँ है भी या नही...." रोहन ने जवाब दिया....
"गूव्ट. कॉलेज के पास? वहाँ का तो मैं अभी पता लगा सकता हूँ.. आक्च्युयली सलमा और साना वहीं रहती हैं...!"
रोहन और रवि एक साथ बोल पड़े," पता कर ना यार..!"
"हां.. अभी पता करो यार.. पता चल जाएगा कि सपना हक़ीक़त है या फसाना...!" शेखर भी उत्सुक होकर मोबाइल निकाल रहे अमन की और देखने लगा...
अमन ने उनके बीच बैठे बैठे ही सलमा को कॉल की ओर स्पीकर ऑन कर लिया.. काफ़ी लंबी बेल जाने के बाद सलमा ने फोन उठाया," जानू.. अम्मी यहीं पर हैं.. मैं उपर जाती हूँ.. 5 मिनिट बाद फोन करना" खुस्फुसती हुई आवाज़ में कहते हुए सलमा ने झट से फोन काट दिया..
"अम्मी! साना कहाँ है?" सलमा ने फोन अपनी जेब में डाला और किचन से बाहर आते हुए बोली..
"उपर पढ़ रही होगी.. क्यूँ?" अम्मी ने काम करते करते ही जवाब दिया...
"मैने दूध गॅस पर रख दिया है अम्मी.. एक बार देख लेना.. मैं अभी आती हूँ.." सलमा ने सीढ़ियाँ चढ़ते हुए कहा...
सलमा उपर गयी तो कमरे का दरवाजा अंदर से बंद मिला.. उसने झिर्री से अंदर झाँका.. बिस्तेर पर टांगे लंबी किए हुए साना ने अपने लोवर को घुटनो तक नीचे किया हुआ था और झुक कर वहाँ कुच्छ ढूँढ सी रही थी.. अचानक सलमा की हँसी सुनकर वह हड़बड़ाती हुई उच्छल सी गयी.. और झट से अपना लोवर उपर सरका लिया...
"क्या कर रही है बन्नो.. चल दरवाजा खोल!" सलमा ने हंसते हुए कहा...
"क्कुच्छ नही.. वो पॅड बदल रही थी..!" साना ने दरवाजा खोलते हुए कहा...
"हाअ? थोड़ी देर पहले तो ठीक थी तू.. 'डेट्स' आ गयी क्या?" सलमा जाकर बिस्तेर पर दीवार के साथ सिरहाना लगाकर बैठ गयी और अपना मोबाइल निकाल लिया...
"पता नही.. पर 'उसके' बाद थोड़ी थोड़ी देर में खून आ रहा है.. 'डेट्स' तो अभी 10 दिन पहले ही गयी हैं... ऐसा होता है क्या?" साना ने जिगयसा से पूचछा...
"मुझे तो नही हुआ था... छिल विल गयी होगी.. हो जाएगी ठीक.. अमन का फोन आया था.. मैं उसके पास कॉल कर रही हूँ.. एक बार...!" सलमा ने जवाब दिया...
"मैं नही जाउन्गि वहाँ.. आज के बाद!" साना ने उसके पास बैठते हुए कहा...
"क्यूँ? मज़ा नही आया क्या?" सलमा ने हंसते हुए पूचछा...
"वो बात नही है.. पर अब में किसी और के साथ 'ये' नही करूँगी!" साना ने निस्चय सा करते हुए बोला...
"क्यूँ.. ? प्यार हो गया क्या उस'से?" सलमा ने उसकी आँखों में आँखें डालते हुए पूचछा....
"नही... बस ऐसे ही.. मेरा मन नही मान'ता..." साना ने कहते हुए नज़रें फेर ली...
"निकाह के बाद तो करना ही पड़ेगा ना..? फिर 2 से करो या 100 से.. क्या फरक पड़ता है अब?" सलमा ने अपना नज़रिया उसपर थोंपा...
"मैं निकाह करूँगी ही नही!" साना की आँखों में आँसू आ गये...
"आ.. तू तो सेंटी हो गयी यार.. भूल जा.. आजकल ये सब तो चलता ही रहता है.. इसमें शादी ना करने वाली कौनसी बात हो गयी... 'वो' क्या अब शादी नही करेगा?" सलमा ने उसको कंधों से पकड़ कर अपने सीने की और झुका लिया....
"मुझे उस'से क्या मतलब? छ्चोड़.. मुझे नींद आ रही है.." साना ने कहा और उसके सीने से हटकर दूसरी और करवट लेकर लेट गयी.....
सलमा कुच्छ पल उसको अजीब सी प्यार भरी निगाहों से देखती रही.. तभी अमन की कॉल दोबारा आ गयी...
"अमन.. तुम्हे पता है? आज तुम्हारे दोस्त ने हमारा रेप कर दिया...
"किसने? कब" अमन ने फोन पर आस्चर्य और गुस्सा सा दिखाते हुए वहाँ सबकी और देख कर बत्तीसी निकाली....
"मुझे नाम नही पता... पर जब तुम नीचे चले गये थे तो कोई दूसरा उपर आ गया था.. कहने लगा मैने तुम्हारी अमन के साथ मूवी बना रखी है.. और फिर ब्लॅकमेल करने लगा.. मजबूरन उसने जो कुच्छ कहा, हमें करना पड़ा... साना तो अब तक रो रही है बेचारी..." सलमा बात कर ही रही थी कि अचानक फोन पर सबको एक दूसरी आवाज़ सुनाई दी...," झूठ क्यूँ बोल रही है..? मैने तो अपनी मर्ज़ी से प्यार किया था उसके साथ... ज़बरदस्ती की होगी तुम्हारे साथ..."
"हां.. वो.. ज़बरदस्ती तो मेरे साथ ही की थी.. इसको पता नही क्या हो गया था अचानक.. ये भी बीच में कूद पड़ी.." सलमा ने अपनी बात से पलट'ते हुए कहा...
" पर यार.. तुम इतनी पागल कैसे हो? ऐसे कैसे कोई हमारी मूवी बना लेगा.. वो भी 2न्ड फ्लोर पर.. चल छ्चोड़ अभी.. इसको बाद में देखेंगे.. मुझे तुमसे एक बात पूछनी है..." अमन ने काम की बात करते हुए कहा....
"हुम्म.. बोलो जानू!" सलमा की टोन अचानक बदल गयी....
"ये.. तुम्हारे आसपास कोई 'नीरू' नाम की लड़की रहती है क्या?" अमन ने कहा...
"बड़े बेशर्म हो तुम.. मुझसे काम नही चलता क्या?" सलमा ने आवाज़ में गुस्सा सा लाते हुए कहा...
"क्यूँ? लड़कियाँ क्या सिर्फ़ इसी काम के लिए होती हैं..? तुम बताओ ना जल्दी...." अमन चिदता हुआ सा बोला....
"हूंम्म्ममम... ओके! किस एज की है..?" सलमा ने पूचछा...
अमन ने हाथ से इशारा करके रोहन से एज का आइडिया पूचछा.. और रोहन के 'ना' में गर्दन हिलने पर बोला," यही कोई.. तुम्हारी उमर की होगी...!"
सलमा ने अपना दिमाग़ चारों और दौड़ाया और बोली," ना.... हमारी उमर की क्या? मेरे ख़याल से तो किसी उमर की लड़की इस नाम की नही है कोई...!"
सलमा का जवाब सुनकर रोहन के अरमानो पर पानी सा फिर गया.. ," पक्का ये गवरमेंट. कॉलेज के पास ही रहती है ना...!"
सलमा ने उसकी आवाज़ सुन ली...," हां यार.. कुल मिलाकर 40-50 घर ही तो हैं यहाँ.. सब एक दूसरे को जानते हैं... कोई इस नाम की नही है यहाँ पर..."
"चल ठीक है.. अभी रखता हूँ.. कल बात करूँगा... ओके! बाइ" और अमन ने उसकी बात सुने बिना ही फोन काट दिया...
"मैने बोला नही था.. सपने सपने ही होते हैं यार.. जस्ट चिल आंड एंजाय दा लाइफ!" शेखर ने कहा....
अब किसी के पास बोलने को कुच्छ बचा नही था.. रोहन ने सोफे पर सिर टीकाया और आँखें बंद कर ली... वहाँ एकद्ूम सन्नाटा सा पसर गया....
"तूने ये क्यूँ बोला कि उसने रेप किया था..? अपनी मर्ज़ी से गयी थी मैं तो.. और तू भी तो बाद में अपनी मर्ज़ी से ही गयी थी उसके पास...!" साना ने सलमा के फोन रखते ही गुस्से से कहा....
"तो क्या हो गया? तू तो ऐसे कर रही है जैसे तुझे उस'से प्यार हो गया हो... उसके दोस्त ने भी तो बताया होगा उसको नीचे जाकर.. अमन क्या सोचता मेरे बारे में.. मैने तो उसको यकीन दिलाने के लिए कहा था कि हमने अपनी मर्ज़ी से वो सब नही किया.. उसने डरा दिया था हमको.. तू क्या सोच रही है? मुझे सी.डी. वाली बात पर यकीन हो गया था... मेरा तो दिल कर रहा था..पर तेरी वजह से शर्मा रही थी..." सलमा बोलकर मुस्कुराने लगी...
"चल छ्चोड़.. किस लड़की के बारे में पूच्छ रहा था अमन?" साना ने बात को टालते हुए कहा..
"वो!.. पता नही.. याद नही आ रहा.. पर अपने लिए नही पूच्छ रहा था.. किसी और ने पुच्छवाया होगा.. पर अपनी कॉलोनी में तो कोई नीरू... हां.. नीरू नाम की लड़की पूच्छ रहा था... अपने यहाँ नही है ना कोई...?" सलमा को बोलते बोलते नाम याद आ गया...
"अरे.. वो शीनू.. जो कोने वाले बड़े से घर में रहती है.. उसी का तो नाम है नीरू..!" साना कहते कहते बैठ गयी...
"अच्च्छा! ... पर तुझे कैसे पता? उसको यो सब शीनू ही कहते हैं... वो तो बहुत प्यारी है यार.. किसकी किस्मत जाग गयी? ... ना.. पर मुझे नही लगता ये बात होगी.. वो तो घर से ही बहुत कम निकलती है.. और लड़कों की और तो देखती तक नही.. वो नीरू नही होगी.. या फिर कोई दूसरी ही बात होगी.. इस चक्कर में तो कतयि नही पूचछा होगा अमन ने... पक्का नीरू ही है ना वो?" सलमा ने बोलते बोलते फोन निकाल लिया....
"अरे हां... पक्का पता है मुझे.. अपनी कॉलोनी में तो बस वही एक नीरू है.." साना ने ज़ोर देकर कहा....
"ठीक है.. एक मिनिट.. मैं अमन को बता दूं.." कहकर सलमा ने अमन का नंबर. डाइयल कर दिया.....
अमन ने फोन उठाकर देखा और वापस रख दिया....
"क्या हुआ? किसकी कॉल है?" शेखर ने अमन को कॉल रिसीव ना करते देख पूचछा...
"वही यार.. सलमा.. ये लड़कियाँ पका देती हैं फोन कर कर के.. नही? कयि बार तो रात के 2-2 बजे फोन करके पूछेन्गि," क्या कर रहे हो जानू? हा हा हा..." अमन हंसते हंसते रोहन का गमगीन सा चेहरा देख कर चुप हो गया," तो क्या हो गया यार...? हो जाता है.. तू इतना सेंटी क्यूँ हो रहा है? तेरे को एक से एक अच्च्ची लड़की मिल जाएगी.. टाइम पास के लिए भी और पर्मनेंट भी.. कहो तो आज ही बुलाउ एक टाइम पास.. मस्त लड़की है.. देखते ही घूँघरू बज़ेंगे दिल में..."
"हां.. बुला ले यार..!" रवि चहकते हुए बोला...
"तेरा भरा नही अभी भी.. एक का तो आज रिब्बन काटा है साले ने... बोल रोहन! क्या कहता है..?" शेखर ने रवि को दुतकरते हुए रोहन से पूचछा....
"सोना है मुझे..!" रोहन ने इतना ही कहा था कि अमन का फोन फिर बज उठा...
"क्या है यार? तुम्हे पता है ना की आज यार दोस्त आए हैं.. दोबारा फोन मत करना.." अमन ने कॉल रिसीव करते ही कहा...
"एक मिनिट.. एक मिनिट... वो नीरू है एक हमारी कॉलोनी में.. क्या करना था उसका..? सलमा ने कहा ही था कि अमन आस्चर्य और खुशी से उच्छलता हुआ खड़ा हो गया," व्हत? नीरू मिल गयी?"
अमन की प्रतिक्रिया सुन सबके चेहरे खिल उठे.. और वो सब भी अमन के साथ खड़े हो गये.. रोहन का चेहरा अप्रत्याशित रूप से चमक उठा...
सलमा उसके आस्चर्य को समझ नही पाई," ऐसा क्या हो गया?"
"पर पहले तुमने मना क्यूँ कर दिया था.. ?" अमन ने उसकी ना सुनते हुए अपना सवाल किया...
"वो यहाँ सब उसको शीनू कहते हैं.. मुझे नही पता था कि उसका असली नाम नीरू है.. अभी साना ने बताया..." सलमा ने अपनी बात पूरी भी नही की थी कि रोहन ने अमन के हाथ से फोन छ्चीन सा लिया," कककैसी है वो.. मतलब दिखने में..?"
"कौन हो तुम?" आवाज़ बदली देख सलमा ने पूचछा...
"मैं.. रोहन!" रोहन का कलेजा उच्छल रहा था.. बोलते हुए...
"क्यूँ? रिश्ता आया है क्या उसका.. तुम्हारे लिए?" सलमा ने सीरीयस होकर पूचछा...
"नही.. वो.. पर..!" रोहन की समझ में नही आ रहा था कि वो क्या बोले...
"नही? तो ऐसा करो उसका ख़याल भी अपने दिमाग़ से निकाल दो.. वो ऐसी नही है.. बिल्कुल अलग टाइप की है.. सारी लड़कियों से अलग.. तुम समझ रहे हो ना... वो कभी कभार ही घर से निकलती है.. सीधी कॉलेज जाती है.. सीधी आती है... लड़कों की तरफ देखती भी नही.. और ना ही कभी उन्हे अपने पास फटक'ने देती... वहाँ कोशिश करोगे तो अपना टाइम ही बर्बाद करोगे.. समझ गये..?" सलमा ने अपनी तरफ से कोई कसर नही छ्चोड़ी.. रोहन को समझने में...
"हुम्म.. पर दिखती कैसी है? ये तो बता दो..?" रोहन का मन अब भी ना माना...
"लड़कियाँ लड़कों के सामने दूसरी लड़कियों की तारीफ़ नही किया करती.. खास तौर से जब वो उस'से उपर हो.. हे हे हे.. ऑल दा बेस्ट! अमन को फोन देना..." सलमा ने कहा..
रोहन ने फोन अमन को पकड़ाया और सोफे पर जाकर बैठ गया... अमन ने फोन लेते ही कान से लगा लिया," हां...!"
"क्या मामला है? मेरी तो कुच्छ समझ में नही आया..." सलमा ने अमन से कहा...
"तुम इस बात को छ्चोड़ो.. तुम्हे मेरा एक काम करना होगा..." अमन ने सलमा से कहा..
"क्या?" सलमा ने पूचछा...
"नीरू को बताना है कि उस'से कोई मिलने आया है.. और हो सके तो उसको बुलाकर लाना है..." अमन ने कहा....
"नही यार.. मैं बता तो रही हूँ.. बुलाकर लाना तो दूर.. अगर उसके सामने इस तरह की बात भी कर दी तो बात घर तक पहुँच जाएगी..... मैं कुच्छ नही कर सकती... सॉरी..!" सलमा ने मायूस सा होकर कहा...
"सॉरी का क्या मैं आचार डालूँगा अब!" अमन ने गुस्सा होते हुए फोन काट दिया.....
ओये देखो ओये.. मेरे यार का चेहरा कितने दीनो बाद फिर से खिला है... अब तो नीरू भाभी को यहाँ से लेकर ही जाएँगे.. टीले पर.." रोहन के चेहरे पर खुशी देखकर नशे ने रवि का सुरूर और बढ़ा दिया...
"पर यार, सलमा ने तो सॉफ मना कर दिया.. हम उस तक पहुँचेंगे कैसे? आइ मीन.. बात कैसे करेंगे.. वैसे भी सलमा बता रही थी कि वो तो निहायत ही शरीफ लड़की है.. कोई ना कोई तो लिंक ढूँढना ही पड़ेगा...!" अमन ने अपने दिमाग़ पर ज़ोर देते हुए कहा...," चलो छ्चोड़ो.. अब आराम से सो जाओ.. कल सुबह देखेंगे..!"
"अमन भाई.. एक बार उसका घर पूच्छ लेते तो.. अभी जाकर देख आते...!" रोहन उतावला सा हो गया...
"कमाल करता है यार.. रात के 9:00 बजे.. और वो भी ऐसी लड़की जो बेवजह बाहर निकलती ही नही.. तुझे घर के बाहर मिलेगी.. तुझे शकल दिखाने के लिए..?" अमन ने अपनी बात ज़ोर देकर कही....
"नही वो... बस ऐसे ही.. बाहर से यूँही देख आते..." रोहन ने अपना सिर खुजाते हुए शेखर और अमन को देखा....
"चलो भाई.. गाड़ी बाहर निकालो.. भाभी जी का घर देख कर आएँगे... अभी के अभी.." नशे में झूमते हुए रवि खड़ा हो गया...
शेखर ने भी कंधे उचका दिए तो अमन खड़ा हो गया," चलो फिर.. बाहर की हवा खाकर आते हैं...
गाड़ी में चलते हुए अमन ने सलमा को फोन किया...," सलमा!"
"अब कैसे आ गयी मेरी याद जानू? दोस्त गये क्या?" सलमा ने अंगड़ाई लेते हुए सीधे लेट कर किताब अपनी छाती पर रखी और मस्ती सी करने लगी.. साना पास ही बैठी थी...
"मुझे थोड़ी जल्दी है.. वो नीरू के घर की लोकेशन बताना..?" अमन सीधे मतलब की बात पर आ गया...
"यहाँ आ रहे हो क्या?" सलमा खुशी से उच्छल पड़ी...
"हुम्म.. बताओ भी.."
"मुझे भी ले चलना अपने साथ..." सलमा की जवानी अंगड़ाई ले उठी...
"पागल तो नही हो.. कैसे ले जा सकता हूँ मैं?" अमन खिज सा उठा...
" उस दिन भी तो लेकर गये थे रात को.. साना यहाँ संभाल लेगी.. मुझे सवेरा होने से पहले छ्चोड़ जाना...लगता है तुम्हारा अब मुझसे मंन भर गया है.." सलमा का चेहरा उतर गया...
"यार, समझने की कोशिश करो.. मेरे दोस्त आए हुए हैं.. उन्हे छ्चोड़ कर... आज सब्र कर लो.. एक दो दिन में वादा रहा.. अब तुम मुझे जल्दी से नीरू का घर बता दो.. हम गवरमेंट. कॉलेज के पास पहुँच गये..." अमन ने आख़िरकार उसको वादा कर ही दिया...
"हमारा घर याद है ना?"
"हां...!"
"उसी गली में जब तुम हमारे घर की तरफ आओगे तो जो चौंक दूसरे नंबर. पर है.. उस चौंक के उपर ही उनका घर है.. बड़ा सा.. डार्क ग्रे कलर का पैंट है.. पर अभी वहाँ जाकर करोगे क्या?" सलमा ने घर बताने के बाद सवाल किया...
"ओक, बाइ थॅंक्स" अमन ने कहा और फोन काट दिया....
चौंक पर जाते ही अमन को सलमा के बताए अनुसार घर मिल गया.. दो गलियों से लगते हुए खूबसूरत 2 मंज़िला घर के दोनो ओर गेट थे..," ले भाई रोहन.. मिल गया नीरू का घर.. अब बोल क्या करना है?" अमन ने गाड़ी चौंक से पहले ही रोक दी...
नीरू का घर मिलने की बात सुनते ही रोहन सिहर सा गया.. उसकी धड़कने बढ़ने लगी.. उसको मन ही मन आभास हुआ जैसे वो पुराने टीले पर खड़ा है और नीरू दूर से उसको पुकार रही है.. रोहन ने घर देखते ही आँखें बंद कर ली.. पर नीरू की उसके दिमाग़ में जो तस्वीर उभरी, वह श्रुति की थी..," वापस चलो..!" रोहन के माथे पर पसीना छलक आया...
"अब क्या हुआ?" शेखर ने पूचछा...
"कुच्छ नही.. बस घर देखना था.. देख लिया.. चलो अब!" रोहन ने कहा और अमन ने चौंक से गाड़ी घुमा दी....
अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी compleet
Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी
प्यार--9 एक होरर लव स्टोरी
" कहाँ है तू यार? कल सुबह से तेरा फोन ट्राइ कर रहा हूँ.. फोन ऑफ क्यूँ कर रखा है?" नितिन के पास जैसे ही सुबह उठते ही रोहन ने रवि के नंबर. से फोन किया तो वह खुशी से झूम उठा...
"वो.. फोन खो गया है भाई.. मैने आपको बताया तो था कि मैं रवि के साथ बतला जा रहा हूँ.. वहीं हूँ मैं अभी..." रोहन ने जवाब दिया...
"हां.. बताया था.. पर रवि का नंबर. मेरे पास कहाँ है.. घर भी गया था.. वहाँ से भी नही मिला.. तू पहले भी तो फोन कर सकता था.. पता है कितना परेशान हूँ मैं तेरे लिए.." नितिन ने ढीली आवाज़ में रोहन के लिए फ़िकरमंद होने का नाटक किया...
"पता है भाई! पर यहाँ आने के बाद समय ही नही मिला.. अभी सुबह उठते ही सबसे पहले आपको फोन किया है... पता है..." रोहन चहकति हुई आवाज़ में बोलने लगा था कि नितिन ने उसको टोक दिया..," सुन.. वो मैने श्रुति से सब उगलवा लिया है.. दरअसल तेरे सपने के पिछे और कोई नही.. वही है.. मैं उस तांत्रिक से भी मिल आया हूँ, जिसने उसकी मदद की.... तू अपना वहाँ छ्चोड़ और वापस आजा..!"
नितिन की बात ने रोहन को झटका सा दिया.. वह बौखलता हुआ सा बोला," पर... ये कैसे हो सकता है...?"
नितिन ने एक बार फिर उसको बीच में ही रोक दिया," हो सकता है नही यार.. यही हुआ है.. तू वापस आएगा तो मैं तुझे सब समझा दूँगा... पर यार उसकी नियत ग़लत नही है.. वो तुझसे बे-इंतहा प्यार करती है.. सच में... तुझ पर जान देती है वो.. कल जब बोल रही तो बिलख बिलख कर रो रही थी.. तुम्हारे लिए... अब तू जल्दी वापस आकर उस'से मिल ले.. फिर मैं घर वालों से बात कर लूँगा.. आ रहा है ना.."
"पर भाई.. मुझे यहाँ नीरू मिल गयी है.. और जैसा मुझे सपना आया था.. ठीक उसी जगह.. !" रोहन की इस बात ने नितिन के प्लान पर जैसे घाड़ों पानी डाल दिया..," ये कैसे हो सकता है?" वह आस्चर्य चकित तो हुआ ही था....
"हां.. भाई.. बिल्कुल उसी जगह उसका घर है.. एक बात और बताऊं.. मुझे सपने में भी अक्सर यही घर दिखाई देता था.. एक दम डिटो.. मुझे तो पसीना आ गया था वो घर देखा जब कल...!" रोहन ने अपनी बात पूरी की...
"दिखने में कैसी है?" नितिन मन मसोस कर बोला...
"मैने देखा नही है भाई.. पर सब पता कर लिया है.. उसका नाम नीरू ही है.. पर सब यहाँ उसको शीनू कहते हैं.. बहुत शरीफ लड़की है.. कभी घर से बाहर नही निकलती बेवजह.. और कहते हैं कि बहुत सुन्दर भी है..." कहते हुए रोहन की आँखें चमकने लगी....
"देख.. तू मुझे भाई कहता है.. इसीलिए बड़े भाई के नाते समझा रहा हूँ.. अभी के अभी वापस आ जा.. वरना किसी बड़े पंगे में फँस जाएगा... श्रुति कम सुंदर है यार? और मैं दावा कर सकता हूँ कि तेरी नीरू उस'से सुन्दर नही हो सकती.. तुझे इतना प्यार करती है कि क्या बताउ... और उसकी शराफ़त तो तू देख ही चुका है.. उसका कुसूर सिर्फ़ इतना ही है कि वो तुझसे पागलों की तरह प्यार करती है.. बस कहने से शर्मा रही थी....." नितिन अपनी बात के पक्ष में तर्क देता ही जा रहा था कि रोहन ने उसको टोक दिया...," पर भाई.. उसने तो मुझे पहले कभी देखा भी नही था.. फिर वो मुझसे प्यार कब करने लगी.. और मान लो मुझे कहीं देखा भी होगा तो बिना जाने मेरे लिए तांत्रिक वंतरिक के पास क्यूँ जाएगी.. बता..!"
नितिन ने इन्न बातों का कोई जवाब तैयार नही किया था.. उसके मन में तो यही था की रोहन को कोई नीरू मिलने वाली नही है.. और जैसे ही उसको वह बताएगा कि श्रुति ही वो सब कर रही थी.. वह उस पर विस्वास करके दौड़ा चला आएगा वापस..
"तू आएगा तभी तो बतावँगा ना.. यहाँ फोन पर कैसे समझाऊं.. बहुत लंबा मा'म्ला है.. चल रहा है ना आज ही...?"
रोहन की समझ में कुच्छ नही आ रहा था," मैं.. मैं थोड़ी देर बाद फोन करता हूँ भाई.."
"जैसी तेरी मर्ज़ी.. पर मैं इंतजार करूँगा तेरे फोन का..." नितिन ने फोन काटा और गुस्से और हताशा में बेड पर पटक दिया..," उसको आज फिर श्रुति से मिलने जाना था...
"क्या हुआ भाई!" रोहन के चेहरे पर असमन्झस के भाव देखकर रवि ने उस'से पूचछा...
"क्या बताउ यार.. कुच्छ समझ में ही नही आ रहा" और रोहन ने उसको नितिन के साथ हुई पूरी बात का सर सुना दिया....
"एक बात बोलूं?" रवि संजीदा होकर बोला....
"हां.. बोलो ना!" रोहन उसकी और देखने लगा...
"देख.. दिल से बड़ा कुच्छ नही होता.. तू अपने दिल की बात सुन.. और खुद डिसाइड कर.. नितिन भाई की बात मान भी लें तो फिर भी एक सवाल का जवाब तो नही मिलता ना!" रवि ने कहा...
"वो क्या?" रोहन ने गौर से उसकी तरफ देखा...
"वो ये कि अगर मान भी लें कि श्रुति तुम्हारे प्यार में ये सब टोटके करवा रही थी.. तो वो अपना नाम नीरू क्यूँ बताती.. श्रुति ना बताती.. और बतला का अड्रेस क्यूँ देती.. बोल.. सोचने की बात है कि नही.. और यहीं बतला में हमें नीरू मिल भी गयी है.. और उसका घर.. सबसे बड़ी बात तो उसका घर मिलना है.. जिसके बारे में तूने कल आकर बताया था कि तुझे सपने में वही घर दिखाई देता था.. इसीलिए तुझे डर कर पसीना आ गया..." रवि ने बात पूरी करके कहा," अब बोल.. क्या कहता है तेरा दिल...?"
"अपना फोन ऑफ कर दे!" कहकर रोहन मुस्कुराने लगा...," तुझमें इतनी अकल आई कहाँ से यार.. मैने तो ये सब सोचा ही नही.. फोन ऑफ कर दे.. अभी हमें वहीं चलना है.. नहा धो ले...!"
"कहाँ चलना है?" रवि ने पूचछा...
"वहीं यार.. मेरी ससुराल.. तेरी भाभी को देखकर आएँगे आज.. चाहे पूरा दिन वहीं बीत जाए..." रोहन हँसने लगा.. उसके चेहरे की खोई हुई रौनक लौट आई थी...
रोहन और रवि चौंक पर खड़े थे.. अमन और शेखर को उन्होने जानबूझ कर गली के कोने से ही वाहा भेज दिया.. खिड़कियों के अंदर लहरा रहे पर्दे, कॉपर कलर का गेट और दीवारों पर पुता रंग.. सब कुच्छ रोहन का जाना पहचाना सा था.. इसीलिए थोड़ा विचलित था...
"यार किसी ना किसी को तो बाहर आना चाहिए था... पता नही अंदर कोई है भी या नही...!" रोहन ने हताश होते हुए कहा...
"आ जाएगा यार.. यहाँ बैठकर आराम से मूँगफली ख़ाता रह.. कभी ना कभी तो भाभी जी दिख ही जाएँगी...." रवि ने कहा... एक मूँगफली की रेहदी के पास सामने वाले घर के चबूतरे पर दोनो बैठे थे...
अचानक घर के अंदर से आई आवाज़ ने दोनो को उच्छलने पर मजबूर कर दिया...
"नीरू बेटी.. मैं मार्केट जा रही हूँ.. आकर दरवाजा बंद कर ले...!"
"आई मम्मी... जाओ आप.. मैं कर लूँगी.. जल्दी आना.. मुझे टूवुशन जाना है.." बाहर बैठकर आवाज़ पर कान लगाए बैठे रोहन और रवि को अंदाज़ा लगाने में देर ना हुई कि बाद में आई निहायत ही सुरीली आवाज़ सिर्फ़ और सिर्फ़ नीरू की ही थी..," यार.. आवाज़ तो बड़ी प्यारी है.. भगवान करे.. शकल भी आवाज़ के मुताबिक ही हो...!" रवि ने दुआ की...
"पता है रवि.. जब हम बतला के लिए चले थे तो मैं सिर्फ़ यही सोच रहा था कि एक बार सिर्फ़ देख कर आना है.. कि मेरे सपने में कुच्छ सच्चाई भी है या नही.. सीरियस्ली नीरू से मुझे कोई लेना देना नही था... पर यार.. यहाँ की आबो-हवा, ये घर.. ये चौंक.. और ये आवाज़.. सब कुच्छ अपना सा लग रहा है यार.. ऐसा लगता ही नही कि ये सब मेरे लिए नया है... ऐसा लग रहा है जैसे.. यहीं पर रहने लग जाउ.. ये आवाज़ सुनता रहूं.. सच यार.. मुझे यहाँ बहुत अपनापन महसूस हो रहा है.. कोई तो बात होगी ना..? वो भी मेरा यूँही इंतजार कर रही होगी या नही? ... अगर उसने मेरी बात सुन'ने से सॉफ मना कर दिया तो...!" रोहन आँखों ही आँखों में कहीं और ही खोया हुआ था...
"अभी से इतनी लंबी मत सोच यार.. देख.. आंटी जी आ रही हैं... ये ही तेरी सासू मा है.. गौर से देख ले.." कहते ही रवि खड़ा हो गया और सिर झुका कर दोनो हाथ जोड़ लिए," नमस्ते आंटी जी!" रोहन घबराकर पलटी मार गया
"नमस्ते बेटा जी!" कहकर माताजी रुक गयी..," कुच्छ काम है बेटा?"
"नही.. बस आंटीजी.. यूँ ही.. आप बड़े हैं.. बुजुर्ग हैं हमारे.. बस इसीलिए..." रवि अभी भी हाथ जोड़े खड़ा था...
"भगवान तुम्हारा भला करे बेटा.. जुग जुग जियो!" कहकर माताजी मुस्कुराइ और आगे बढ़ गयी...
"ओये.. मरवाएगा क्या साले..? ऐसे क्यूँ टोका?" रोहन ने उनके जाते ही रवि को लताड़ लगाई...
"हे हे हे.. भाई.. मैं तो अभी से जान पहचान कर रहा हूँ.. शादी के बाद भाभी जी को लेने तुम्हारे साथ मुझे ही तो आना है.. और फिर देख.. आशीर्वाद भी मिल गया..!" रवि को रोहन की लताड़ से कोई फ़र्क़ नही पड़ा....
"तू भी घम्चक्कर है पूरा.. अगर आज नीरू नही दिखाई दी तो? इन्होने अब तेरा चेहरा भी याद कर लिया होगा.. आज के बाद मेरे साथ यहाँ मत आना....!" रोहन ने गुस्सा होते हुए कहा....
"छ्चोड़ ना यार.. आज के बाद यहाँ आना ही नही पड़ेगा तुझे.. बाहर ही मिलना भाभी जी से.. एक मिनिट.. मैं अभी आया...." रवि ने कहा और दरवाजे की और बढ़ गया...
"ओये रवि.. मरवाएगा क्या? कहाँ जा रहा है..? वापस आ..!" रोहन हड़बड़कर खड़ा हो गया...
रवि ने वापस मुड़कर बत्तीसी दिखाई और रोहन की परवाह ना करते हुए गेट पर पहुँच गया और बेल बजा दी....
तभी उसको गेट की झिर्रियों के बीच से लड़की के आ रहे होने का अहसास हुआ.. मन ही मन उसने भगवान को याद किया और गेट खुलने का इंतजार करने लगा....
"हां जी.. तूमम्म्म?" हां जी सिर्फ़ लड़की ने बोला था.. पर 'तूमम्म्म' दोनो के मुँह से एक साथ निकला... रवि दो कदम पिछे हट गया.. दरवाजे पर ऋतु खड़ी थी.. वही पतली और लंबी सुंदर सी लड़की जिसके साथ रवि की बस में और फिर कार में मुठभेड़ हुई थी.....
"आ.. आ.. हांजी.. पर आपका नाम तो ऋतु है ना?" रवि बौखलते हुए बोला...
"हां.. तो? यहाँ क्या लेने आए हो..? तुम्हे कैसे मिला ये घर..." ऋतु ने तुनक्ते हुए अपने दोनो हाथ कुल्हों पर जमा लिए....
"ववो.. हम तो.. ऐसे ही आ गये थे जी.. भटकते हुए.. माफ़ करना.. पर ववो.. कहाँ हैं?" रवि ने गिरते पड़ते अपनी बात पूरी की....
"वो कौन? तुम्हे चाहिए क्या?" ऋतु की आवाज़ तेज होकर अब रोहन के भी कानो में पड़ने लगी थी....
ऋतु के गुस्से से बोलते रहने के कारण रवि अभी तक संभाल नही पाया था..," ववो.. बभ.. भाभी जी!"
"कौन भाभी जी.. ? तुम्हारा दिमाग़ खराब है क्या? यहाँ कोई भाभी जी नही रहती... तुम आख़िर आए क्या लेने हो?" जैसे ही ऋतु ने उसको खरी खरी सुनाते हुए अपना हाथ आगे किया.. रवि को गजब का बहाना मिल गया," हमारा फोन! ओये रोहन.. आजा.. मिल गया तेरा फोन.. मेरा शक सही था.. इन्होने ही चुराया है.. शकल से ही पता लग रहा था... कि इन्ही का काम है?" रवि अब उसको हावी होने का मौका नही देना चाहता था..
"फोन?" रोहन की समझ में अभी तक नही आया था कि वो किसलिए गया था और अब क्या बक रहा है.. पर रवि के बुलाने पर वह मॅन ही मॅन उसको गलियाँ देता हुआ गेट पर ही पहुँच गया," क्या हुआ?"
"अरे.. तेरा फोन.. ये देख इसके हाथ में..!" रवि ऋतु के हाथ में रोहन के जैसा फोन देखा तो उसके सिर पर चढ़ने को उतारू हो गया...
अब हड़बड़ाने की बारी ऋतु की थी.. इस तरह से खुद पर गली में इल्ज़ाम लगते देख वह हड़बड़ा गयी..," हमें तो ये.. बस में मिला था...!" ऋतु की नज़रें झुक गयी...
"अच्च्छा.. बस में मिला था.. बस में तो मैं भी बैठा था... मुझे क्यूँ नही उठा लाई तुम.. बोलो.. कह देती मिल गया था बस में...!" रवि लगातार उसके सिर पर चढ़ता जा रहा था...
"चुप भी कर यार अब.. इतना बोलने की ज़रूरत क्या है?" रोहन ने उसको शांत करने की कोशिश की....
"क्यूँ ना बोलूं मैं? घर आए मेहमान को पानी पूच्छना तो दूर.. इज़्ज़त उतारने पर उतर आई ये...! इसको तो ये भी याद नही रहा कि कैसे मैने इनको लिफ्ट दिलवाई थी...." रवि की आवाज़ और ऊँची हो गयी....
"आ..आप प्लीज़ अंदर आ जाइए.. यहाँ तमाशा क्यूँ कर रहे हैं..?" ऋतु ने पूरी नज़ाकत के साथ कहा....
"नही.. हमें नही आना... " रवि बोल ही रहा था कि रोहन ने उसको पिछे से धक्का मारा," चल रहा हूँ ना यार.. धक्का क्यूँ मार रहा है.." और फिर ऋतु को घूरते हुए इस अंदाज में उस'से भी आगे बढ़ गया जैसे वो उनका नही, उसका घर हो...
"आ जाइए.. आप अंदर बैठिए.. मैं अभी आती हूँ..!" कहकर ऋतु उपर भाग गयी...
"तू इतना चिल्ला क्यूँ रहा था बे? मेरा पत्ता सॉफ करवाना है क्या?" रोहन ने अंदर जाकर सोफे पर बैठते ही रवि को कोसा....
"अच्च्छा.. तुझे मेरा चिल्लाना सुन गया.. उसका नही सुना किस तरह मेरी इज़्ज़त तार तार कर रही थी.. फिर मुझे उसके हाथ में तेरा फोन दिख गया.. मैं इतना सुनहरा मौका कैसे जाने देता.. हे हे हे!" रवि ने हंसते हुए अपनी छाती चौड़ी कर ली...
" ठीक है यार.. पर हम यहाँ नीरू के लिए आए थे.. भूल गया क्या?" रोहन ने शांत होते हुए कहा....
"ओह तेरी.. मैं तो सच में ही भूल गया था.. सॉरी यार.. अरी.. हम तो घर के अंदर आ गये.. देख!" रवि सोफे से उच्छल पड़ा....
"चुप.. कोई आ रहा है.." रोहन के कहते ही दोनो शांत हो गये....
और नीरू के कमरे में कदम रखते ही रोहन सुध बुध खोकर खड़ा हो गया और उसको अपलक देखने लगा.. हालाँकि वो इस परी को पहले देख चुका था.. पर अब की तो बात ही दूसरी थी... पटियाला हल्का नीला कढ़ाई वाला सूट डाले हुए वो सचमुच किसी परी से कम नही लग रही थी.. उसके अंग अंग से नज़ाकत टपक रही थी... रोहन का मन मयूर थिरक उठा.. हुश्न ऐसा की कुर्बान होने को दिल करे.. फिर रोहन तो उसको देखने से पहले ही अपना मान चुका था.. इस असीम खुशी को सहन नही कर पा रहा उसका दिल बल्लियों पर आ टंगा..
धीमे धीमे कदमों से नज़रें झुकाए हुए वो चलकर उनके पास आई और जैसे ही झुक कर उसने ट्रे टेबल पर रखी.. रेशमी बालों की एक लट उसकी आँखों के सामने लुढ़क आई...
खड़ी होकर उसने अपनी लट को कान से पिछे ले जाते हुए मधुर आवाज़ में आग्रह किया..," बैठिए ना...!"
रोहन तो खड़ा होकर जैसे बैठना ही भूल गया.. अपलक उसको देखते हुए बोला," जी.. थॅंक्स!" पर खड़ा ही रहा...
"अरे.. बैठिए तो सही.. ठंडा लीजिए...!" नीरू ने उसको फिर टोका....
"जी.. बैठ रहा हूँ..!" नीरू के चेहरे पर बरस रहे सौंदर्या के अनुपम नूर में रोहन इस कदर खो गया था कि इस बार भी खड़ा ही रहा... रवि ने उसका हाथ पकड़ कर खींच लिया.." बैठ जा यार...!"
"ओह हां..!" रोहन नीरू के मोह्पाश से जैसे अभी मुक्त हुआ...
"आप लीजिए हम आते हैं.." कहकर नीरू जाने लगी....
"आप ही नीरू भ.. जी हैं ना..!" रवि के मुँह से भाभी जी निकलता निकलता रह गया..
इतना सुनते ही नीरू चौंक कर पलटी...," आपको मेरा नाम कैसे मालूम? ये नाम तो कोई लेता ही नही.. यहाँ पर.. बचपन में था मेरा ये नाम...!" नीरू ने अचरज से रवि के मुँह की और देखा....," मेरा नाम अब शीनू है.. प्लीज़ दोबारा वो नाम मत लेना....
"देख लो जी.. हैं ना हम कमाल के.. हम तो आपके पिच्छले जन्मों की बात भी जानते हैं...!" रवि ने मुस्कुराते हुए कहा...
नीरू ने इस बात को मज़ाक में लिया.. रवि के मज़ाक को इज़्ज़त देने के लिए हल्का सा मुस्कुराइ और बाहर निकल गयी....
"कैसी लगी भाभी जी?" उसके जाते ही रवि ने रोहन के कंधे से कंधा भिड़ाया...
"ये तो मैने कभी सपने में भी नही सोचा था यार... इतनी सुंदर लड़की मैने आज तक नही देखी..!" रोहन सातवें आसमान पर था....
"देखी क्यूँ नही? उस दिन बस में नही देखी थी क्या?" रवि ने याद दिलाया...
"हां पर.. उस दिन मैने इस नज़र से नही देखा था यार.. बस एक पल के लिए ही नज़रें ठहरी होंगी इस पर...!" रोहन ने अपनी बात भी पूरी नही की थी कि ऋतु और नीरू दोनो कमरे में आ गयी," ये लीजिए आपका फोन..!"
"थॅंक्स.." फोन लेते हुए जैसे ही रोहन की उंगलियों ने नीरू के हाथ को स्पर्श किया.. उसके दिल के सभी तार मानो झंझणा उठे.. इतना जादू था उसके हाथों में...
तभी ऋतु भरभराती हुई बोल पड़ी," हमने चोरी नही किया था.. सीट के नीचे पड़ा था.. हमने सोचा सरदार जी का होगा.. हमने वहीं ड्राइवर को भी देने की सोची थी.. पर हमें लगा ये ठीक नही.. जिसका भी होगा वो फोन तो करेगा ही.. तभी उसको बता देंगे.. घर आकर देखा तो इसकी बॅटरी डेड हो चुकी थी.. हमारे पास चारजर भी नही था इसका... चाहो तो आंटिजी से पूच्छ लेना.. हमने आते ही उनको बता दिया था...."
"ओहो.. आप तो दिल पे ले गयी.. आपको पता है ना कि मेरी मज़ाक करने की आदत है.." रवि कहकर मुस्कुराने लगा....
"तुमसे कौन बात कर रहा है?" ऋतु ने गुस्से से कहा तो नीरू हंस पड़ी...
"ठीक है.. थॅंक्स.. हम चलते हैं.." कहते हुए रोहन उठ खड़ा हुआ...
बाहर निकलने से पहले रोहन ने मुड़कर देखा.. पर नीरू तो उसको छ्चोड़ने बाहर तक भी नही आई.. वह दूसरी ओर मुँह किए सीढ़ियाँ चढ़ रही थी.....
"अब क्या इरादा है बॉस?" सारी कहानी बड़ी दिलचस्पी से सुन'ने के बाद अमन ने रोहन से पूचछा....
"इरादा क्या होना है.. उसके सामने बार बार जाना है.. उसके दिल में उतर कर अपना बनाना है और साथ चलने के लिए मनाना है.. और क्या?" रोहन ने चहकते हुए जवाब दिया....
"मतलब आज से तू पूरा लड़कीबाज हो जाएगा.. हे हे हे!" रवि ने जुमला ठोंका...
"लड़कीबाज नही.. नीरुबाज बोल.. मैने आज तक किसी लड़की के बारे में ऐसा वैसा सोचा भी है.. बता?" रोहन ने जाकर उसकी गर्दन पकड़ ली...
"छ्चोड़ सा... जान लेगा क्या?" रवि अपने आपको छुड़ाते हुए बोला," तो कौनसा तीस्मारखा बन गया तू.. तेरे उपर मरने वाली लड़कियाँ तुझे 'नल्ला' समझने लगी होंगी अब तक हाँ.. हा हा हा!" रवि ताली बजाकर हँसने लगा...
"मेरी शराफ़त को कोई नल्लगिरी समझे तो समझे.. मैं तो शुरू से ही मानता आया हूँ कि अगर आदमी अपनी बीवी से वफ़ा की उम्मीद करता है तो उसको भी तो उसके लिए वफ़ादार होना चाहिए.. इंतजार करना चाहिए...!" रोहन ने तर्क दिया...और चार्जिंग पर लगाया हुआ अपना फोन ऑन कर लिया....
"एक दम सॉलिड बात बोली रोहन भाई.. पर लड़कियाँ कहाँ कुँवारी रहती हैं आज कल.. शादी से पहले ही भोंपु बज जाता है बहुतों का.. तू किस्मत वाला है जो तुझे नीरू मिल गयी..!" अमन ने भी बहस में ताल ठोनकी...
"अभी कहाँ मिल गयी यार.. अभी तो सिर्फ़ देखा है.. कहानी लंबी चलेगी लगता है!", शेखर ने पटाक्षेप किया...
"हुम्म.. डॉन'ट वरी रोहन.. जब तक तुम्हे मंज़िल नही मिल जाती.. तुम यहीं रहोगे.. मेहमान बनकर नही.. अपना घर समझकर.. मैं ज़रा बाहर जाकर आता हूँ.. एंजाय करो..!" कहकर अमन खड़ा हो गया...
"और मैं? मैं कहाँ रहूँगा...!" रवि ने मज़ाक किया...
"तुम सलमा की बाहों में रहो यार.. मेरा उस'से मन भर गया है.. बहुत पकाती है साली.. उसको संभलो तुम.. आज भी आने को बोल रही है.. बुला लूँ?"
"बुला लो यार.. नेक काम में देरी कैसी? हे हे हे" रवि ने ताल से ताल ठोनकी...
अमन बाहर निकला ही था कि रोहन का फोन बज उठा.. नितिन का नंबर. देख रोहन ने फोन उठा लिया," हां.. भाई.. वो नीरू मिल गयी..!"
"व्हत? क्या बकवास कर रहे हो यार..? ये कैसे हो सकता है..?" नितिन की फटी हुई सी आवाज़ फोन पर उभरी....
"हाँ भाई सच में... मैने उसको देख भी लिया है.. जैसा उसने मुझे सपने में बताया था.. बिल्कुल उसी जगह पर है उसका घर...!" रोहन रोमांचित सा हो उठा...
"मुझे यकीन हो गया है कि इस सपने के चक्कर में अपनी जिंदगी बर्बाद कर लोगे... मैने बताया तो था की सब कुच्छ श्रुति का किया धरा था.. और नीरू नाम की हज़ार लड़कियाँ दिखा सकता हूँ में.. क्या नाम के चक्कर में तुम किसी भी नीरू को अपना सब कुच्छ सॉन्प दोगे....?" नितिन का इशारा उसकी जायदाद की ओर था...
"पर भाई वो बहुत सुंदर है.. इतनी प्यारी है कि.. बस.. और नेच्रिवाइज़ तो और भी खास है.. और..." रोहन कुच्छ बोल ही रहा था कि नितिन ने बीच में ही टोक दिया," मैं वहीं आ रहा हूँ.. श्रुति भी मेरे साथ ही आ रही है..!" नितिन ने कहा....
"क्या? पर यहाँ कैसे? ... और वो श्रुति कैसे आ गयी...? तुम लोग रहोगे कहाँ?" एक ही साँस में आसचर्यचकित रोहन ने सवालों की झड़ी लगा दी....
"जहाँ तू रहेगा वहाँ हम नही रह सकते क्या? बाकी बातें आने के बाद बताउन्गा.. हम कल सुबह निकलेंगे.. घर से कुच्छ लेकर आना है ना..?" नितिन ने जल्दी में कहा....
"हां भाई.. मेरा पर्स लेते आना.. जल्दी में मैं घर ही भूल आया.. मेरे एटीएम वग़ैरह सभी कुच्छ उसमें है.. और हां.. 5-7 ड्रेस लेते आना.. पर श्रुति कैसे आ सकती है भाई.." रोहन की समझ में कुच्छ नही आ रहा था...
"बोला ना यार.. सबकुच्छ आकर बताउन्गा..!" नितिन ने कहते ही फोन काट दिया....
श्रुति उसके साथ ही बैठी थी..."मुझे बहुत डर लग रहा है.. बापू को अगर ये पता चल गया कि कॉलेज से कोई टूर नही जा रहा तो?" श्रुति का दिल बैठा हुआ था.. नितिन ने साथ चलने की बात जब से कही थी.. वह अंदर ही अंदर घुट रही थी..
"क्यूँ बेवजह अपना दिमाग़ खराब कर रही है..? इसका तुझे बतला में बहुत यूज़ करना है.. ले.. तेरा गाँव आ गया.. भूलना मत.. कल सुबह 8:30 पर.. यहीं.." कहते हुए नितिन ने उसकी जांघों पर चिकौती काट ली... श्रुति जैसे रो ही पड़ी थी.. पर आँसुओं को उसने सिसकियाँ ना बन'ने दिया... चुपचाप गाड़ी से उतरी और अपने घर की और चल पड़ी.. भारी भारी कदमों से...
अमन शहर के बीचों बीच धीरे धीरे गाड़ी चलते हुए आगे बढ़ता जा रहा था.. उसके मन में रह रहकर रोहन के अजीब से सपने को लेकर ख़याल आ रहे थे.. और सपना भी ऐसा जो सच हो गया... पूर्वज़नम होता है.. ये उसने बहुतों से सुना था.. पर इसको साक्षात सच होता हुआ वो पहली बार ही देख रहा था.. उसको रोहन की किस्मत पर नाज़ था और इसीलिए शायद उस'से लगाव सा भी हो गया था.. यादों के भंवर में उलझे अमन को अचानक अपने पहले प्यार की याद आ गयी और बरबस ही उसकी आँखों से आँसू छलक उठे.. कितनी प्यारी थी वो! एक दम फूल सी नाज़ुक.. दोनो को एक दूसरे से प्यार हो गया था.. पर इकरार कभी नही कर पाए.. वो उसको देख कर रह जाता.. और वो उसको देख कर रह जाती.. घर की मुंडेर पर खड़े होकर घंटों एक दूसरे को निहारते रहने का सिलसिला एकद्ूम बंद हो गया.. उस दिन अमन रात होने तक वहीं खड़ा रहा था.. अगले दिन जब उसको पता चला क़ि 'वो' अपने मा बाप के साथ शहर छ्चोड़कर चली गयी है तो अमन तड़प उठा.. 2 दिन तक खाना भी नही खा पाया.. कम से कम बता तो देती... पर हो भी क्या सकता था.. वो उसको रोक थोड़े ही लेता.. आख़िर उम्र ही क्या थी उनकी उस वक़्त.. पर प्यार उम्र देखकर थोड़े ही होता है.. 'वो' तो बस हो जाता है.. कहीं भी.. किसी से भी.. अचानक!
अचानक अमन ने गाड़ी साइड में रोकी और एक फोटोकॉपी निकाल कर पढ़ने लगा...
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"हाई अमन!
जिस दिन तुमने मुझे पहली बार छत पर खड़े देखा था.. शायद पहली बार देखा था... पर मैने पहली बार नही.. मैं तो तुम्हे कितने ही दीनो से गली में क्रिकेट खेलते हुए देखती आ रही थी.. अपने घर की खिड़की से तुम्हे छत पर खड़े हो पतंग उड़ाते हुए देखती आ रही थी... पतंग उड़ाते हुए तुम जब भी पिछे हट'ते हुए बिल्कुल मुंडेर के पास आ जाते थे तो मेरा नन्हा सा दिल धड़क उठता था.. कहीं तुम गिर ना जाओ.. मेरा तुम्हे पुकार कर वहाँ से हट जाने के लिए कहने को मन करता.. पर कभी आवाज़ ही नही निकल पाई.. तुम्हारा नाम लेना शायद मेरे वश में था ही नही.. और शायद मेरी किस्मत में भी नही...
तुम्हे याद है एक बार अंकल ने तुम्हे तुम्हारी छत पर आकर चांटा लगाया था.. (पता नही क्यूँ) तुम तो सिर्फ़ रोए थे.. पर मेरी चीख निकल गयी.. मेरी मम्मी दौड़ी हुई आई थी छत पर.. क्या बताती उनको?
साल पूरा होने को है.. तुम रोज़ छत पर आते हो.. पर हमेशा मुझसे लेट. हमेशा मैं ही तुम्हारा इंतजार करती हुई मिलती थी.. है ना? कयि बार तो तुम आधा आधा घंटा इंतजार करवा कर आते.. मेरा तुमसे रूठने को मन करता.. पर फिर मनाता कौन? तुम्हे देखकर ही इतना सुकून मिलता था कि हर रोज़ नीचे जाते ही अगले दिन की शाम का इंतजार करना मुश्किल हो जाता था.. तुमसे मिलने को इतनी तड़प रही थी कि सोते हुए तकिया सिर से निकाल कर सीने पर चिपका लेती थी.. पर तुम्हारा सीना कभी उस 'तकिये' की जगह नही ले पाया...
कितनी ही बार तुम्हारे आगे से गुज़री.. पर तुमने रोका ही नही.. कितनी ही बार जानबूझ कर तुम्हारी बॅटिंग या बॉलिंग के टाइम विकेट्स के बीच जाकर खड़ी हुई.. पर कभी तुमने टोका ही नही...
" कहाँ है तू यार? कल सुबह से तेरा फोन ट्राइ कर रहा हूँ.. फोन ऑफ क्यूँ कर रखा है?" नितिन के पास जैसे ही सुबह उठते ही रोहन ने रवि के नंबर. से फोन किया तो वह खुशी से झूम उठा...
"वो.. फोन खो गया है भाई.. मैने आपको बताया तो था कि मैं रवि के साथ बतला जा रहा हूँ.. वहीं हूँ मैं अभी..." रोहन ने जवाब दिया...
"हां.. बताया था.. पर रवि का नंबर. मेरे पास कहाँ है.. घर भी गया था.. वहाँ से भी नही मिला.. तू पहले भी तो फोन कर सकता था.. पता है कितना परेशान हूँ मैं तेरे लिए.." नितिन ने ढीली आवाज़ में रोहन के लिए फ़िकरमंद होने का नाटक किया...
"पता है भाई! पर यहाँ आने के बाद समय ही नही मिला.. अभी सुबह उठते ही सबसे पहले आपको फोन किया है... पता है..." रोहन चहकति हुई आवाज़ में बोलने लगा था कि नितिन ने उसको टोक दिया..," सुन.. वो मैने श्रुति से सब उगलवा लिया है.. दरअसल तेरे सपने के पिछे और कोई नही.. वही है.. मैं उस तांत्रिक से भी मिल आया हूँ, जिसने उसकी मदद की.... तू अपना वहाँ छ्चोड़ और वापस आजा..!"
नितिन की बात ने रोहन को झटका सा दिया.. वह बौखलता हुआ सा बोला," पर... ये कैसे हो सकता है...?"
नितिन ने एक बार फिर उसको बीच में ही रोक दिया," हो सकता है नही यार.. यही हुआ है.. तू वापस आएगा तो मैं तुझे सब समझा दूँगा... पर यार उसकी नियत ग़लत नही है.. वो तुझसे बे-इंतहा प्यार करती है.. सच में... तुझ पर जान देती है वो.. कल जब बोल रही तो बिलख बिलख कर रो रही थी.. तुम्हारे लिए... अब तू जल्दी वापस आकर उस'से मिल ले.. फिर मैं घर वालों से बात कर लूँगा.. आ रहा है ना.."
"पर भाई.. मुझे यहाँ नीरू मिल गयी है.. और जैसा मुझे सपना आया था.. ठीक उसी जगह.. !" रोहन की इस बात ने नितिन के प्लान पर जैसे घाड़ों पानी डाल दिया..," ये कैसे हो सकता है?" वह आस्चर्य चकित तो हुआ ही था....
"हां.. भाई.. बिल्कुल उसी जगह उसका घर है.. एक बात और बताऊं.. मुझे सपने में भी अक्सर यही घर दिखाई देता था.. एक दम डिटो.. मुझे तो पसीना आ गया था वो घर देखा जब कल...!" रोहन ने अपनी बात पूरी की...
"दिखने में कैसी है?" नितिन मन मसोस कर बोला...
"मैने देखा नही है भाई.. पर सब पता कर लिया है.. उसका नाम नीरू ही है.. पर सब यहाँ उसको शीनू कहते हैं.. बहुत शरीफ लड़की है.. कभी घर से बाहर नही निकलती बेवजह.. और कहते हैं कि बहुत सुन्दर भी है..." कहते हुए रोहन की आँखें चमकने लगी....
"देख.. तू मुझे भाई कहता है.. इसीलिए बड़े भाई के नाते समझा रहा हूँ.. अभी के अभी वापस आ जा.. वरना किसी बड़े पंगे में फँस जाएगा... श्रुति कम सुंदर है यार? और मैं दावा कर सकता हूँ कि तेरी नीरू उस'से सुन्दर नही हो सकती.. तुझे इतना प्यार करती है कि क्या बताउ... और उसकी शराफ़त तो तू देख ही चुका है.. उसका कुसूर सिर्फ़ इतना ही है कि वो तुझसे पागलों की तरह प्यार करती है.. बस कहने से शर्मा रही थी....." नितिन अपनी बात के पक्ष में तर्क देता ही जा रहा था कि रोहन ने उसको टोक दिया...," पर भाई.. उसने तो मुझे पहले कभी देखा भी नही था.. फिर वो मुझसे प्यार कब करने लगी.. और मान लो मुझे कहीं देखा भी होगा तो बिना जाने मेरे लिए तांत्रिक वंतरिक के पास क्यूँ जाएगी.. बता..!"
नितिन ने इन्न बातों का कोई जवाब तैयार नही किया था.. उसके मन में तो यही था की रोहन को कोई नीरू मिलने वाली नही है.. और जैसे ही उसको वह बताएगा कि श्रुति ही वो सब कर रही थी.. वह उस पर विस्वास करके दौड़ा चला आएगा वापस..
"तू आएगा तभी तो बतावँगा ना.. यहाँ फोन पर कैसे समझाऊं.. बहुत लंबा मा'म्ला है.. चल रहा है ना आज ही...?"
रोहन की समझ में कुच्छ नही आ रहा था," मैं.. मैं थोड़ी देर बाद फोन करता हूँ भाई.."
"जैसी तेरी मर्ज़ी.. पर मैं इंतजार करूँगा तेरे फोन का..." नितिन ने फोन काटा और गुस्से और हताशा में बेड पर पटक दिया..," उसको आज फिर श्रुति से मिलने जाना था...
"क्या हुआ भाई!" रोहन के चेहरे पर असमन्झस के भाव देखकर रवि ने उस'से पूचछा...
"क्या बताउ यार.. कुच्छ समझ में ही नही आ रहा" और रोहन ने उसको नितिन के साथ हुई पूरी बात का सर सुना दिया....
"एक बात बोलूं?" रवि संजीदा होकर बोला....
"हां.. बोलो ना!" रोहन उसकी और देखने लगा...
"देख.. दिल से बड़ा कुच्छ नही होता.. तू अपने दिल की बात सुन.. और खुद डिसाइड कर.. नितिन भाई की बात मान भी लें तो फिर भी एक सवाल का जवाब तो नही मिलता ना!" रवि ने कहा...
"वो क्या?" रोहन ने गौर से उसकी तरफ देखा...
"वो ये कि अगर मान भी लें कि श्रुति तुम्हारे प्यार में ये सब टोटके करवा रही थी.. तो वो अपना नाम नीरू क्यूँ बताती.. श्रुति ना बताती.. और बतला का अड्रेस क्यूँ देती.. बोल.. सोचने की बात है कि नही.. और यहीं बतला में हमें नीरू मिल भी गयी है.. और उसका घर.. सबसे बड़ी बात तो उसका घर मिलना है.. जिसके बारे में तूने कल आकर बताया था कि तुझे सपने में वही घर दिखाई देता था.. इसीलिए तुझे डर कर पसीना आ गया..." रवि ने बात पूरी करके कहा," अब बोल.. क्या कहता है तेरा दिल...?"
"अपना फोन ऑफ कर दे!" कहकर रोहन मुस्कुराने लगा...," तुझमें इतनी अकल आई कहाँ से यार.. मैने तो ये सब सोचा ही नही.. फोन ऑफ कर दे.. अभी हमें वहीं चलना है.. नहा धो ले...!"
"कहाँ चलना है?" रवि ने पूचछा...
"वहीं यार.. मेरी ससुराल.. तेरी भाभी को देखकर आएँगे आज.. चाहे पूरा दिन वहीं बीत जाए..." रोहन हँसने लगा.. उसके चेहरे की खोई हुई रौनक लौट आई थी...
रोहन और रवि चौंक पर खड़े थे.. अमन और शेखर को उन्होने जानबूझ कर गली के कोने से ही वाहा भेज दिया.. खिड़कियों के अंदर लहरा रहे पर्दे, कॉपर कलर का गेट और दीवारों पर पुता रंग.. सब कुच्छ रोहन का जाना पहचाना सा था.. इसीलिए थोड़ा विचलित था...
"यार किसी ना किसी को तो बाहर आना चाहिए था... पता नही अंदर कोई है भी या नही...!" रोहन ने हताश होते हुए कहा...
"आ जाएगा यार.. यहाँ बैठकर आराम से मूँगफली ख़ाता रह.. कभी ना कभी तो भाभी जी दिख ही जाएँगी...." रवि ने कहा... एक मूँगफली की रेहदी के पास सामने वाले घर के चबूतरे पर दोनो बैठे थे...
अचानक घर के अंदर से आई आवाज़ ने दोनो को उच्छलने पर मजबूर कर दिया...
"नीरू बेटी.. मैं मार्केट जा रही हूँ.. आकर दरवाजा बंद कर ले...!"
"आई मम्मी... जाओ आप.. मैं कर लूँगी.. जल्दी आना.. मुझे टूवुशन जाना है.." बाहर बैठकर आवाज़ पर कान लगाए बैठे रोहन और रवि को अंदाज़ा लगाने में देर ना हुई कि बाद में आई निहायत ही सुरीली आवाज़ सिर्फ़ और सिर्फ़ नीरू की ही थी..," यार.. आवाज़ तो बड़ी प्यारी है.. भगवान करे.. शकल भी आवाज़ के मुताबिक ही हो...!" रवि ने दुआ की...
"पता है रवि.. जब हम बतला के लिए चले थे तो मैं सिर्फ़ यही सोच रहा था कि एक बार सिर्फ़ देख कर आना है.. कि मेरे सपने में कुच्छ सच्चाई भी है या नही.. सीरियस्ली नीरू से मुझे कोई लेना देना नही था... पर यार.. यहाँ की आबो-हवा, ये घर.. ये चौंक.. और ये आवाज़.. सब कुच्छ अपना सा लग रहा है यार.. ऐसा लगता ही नही कि ये सब मेरे लिए नया है... ऐसा लग रहा है जैसे.. यहीं पर रहने लग जाउ.. ये आवाज़ सुनता रहूं.. सच यार.. मुझे यहाँ बहुत अपनापन महसूस हो रहा है.. कोई तो बात होगी ना..? वो भी मेरा यूँही इंतजार कर रही होगी या नही? ... अगर उसने मेरी बात सुन'ने से सॉफ मना कर दिया तो...!" रोहन आँखों ही आँखों में कहीं और ही खोया हुआ था...
"अभी से इतनी लंबी मत सोच यार.. देख.. आंटी जी आ रही हैं... ये ही तेरी सासू मा है.. गौर से देख ले.." कहते ही रवि खड़ा हो गया और सिर झुका कर दोनो हाथ जोड़ लिए," नमस्ते आंटी जी!" रोहन घबराकर पलटी मार गया
"नमस्ते बेटा जी!" कहकर माताजी रुक गयी..," कुच्छ काम है बेटा?"
"नही.. बस आंटीजी.. यूँ ही.. आप बड़े हैं.. बुजुर्ग हैं हमारे.. बस इसीलिए..." रवि अभी भी हाथ जोड़े खड़ा था...
"भगवान तुम्हारा भला करे बेटा.. जुग जुग जियो!" कहकर माताजी मुस्कुराइ और आगे बढ़ गयी...
"ओये.. मरवाएगा क्या साले..? ऐसे क्यूँ टोका?" रोहन ने उनके जाते ही रवि को लताड़ लगाई...
"हे हे हे.. भाई.. मैं तो अभी से जान पहचान कर रहा हूँ.. शादी के बाद भाभी जी को लेने तुम्हारे साथ मुझे ही तो आना है.. और फिर देख.. आशीर्वाद भी मिल गया..!" रवि को रोहन की लताड़ से कोई फ़र्क़ नही पड़ा....
"तू भी घम्चक्कर है पूरा.. अगर आज नीरू नही दिखाई दी तो? इन्होने अब तेरा चेहरा भी याद कर लिया होगा.. आज के बाद मेरे साथ यहाँ मत आना....!" रोहन ने गुस्सा होते हुए कहा....
"छ्चोड़ ना यार.. आज के बाद यहाँ आना ही नही पड़ेगा तुझे.. बाहर ही मिलना भाभी जी से.. एक मिनिट.. मैं अभी आया...." रवि ने कहा और दरवाजे की और बढ़ गया...
"ओये रवि.. मरवाएगा क्या? कहाँ जा रहा है..? वापस आ..!" रोहन हड़बड़कर खड़ा हो गया...
रवि ने वापस मुड़कर बत्तीसी दिखाई और रोहन की परवाह ना करते हुए गेट पर पहुँच गया और बेल बजा दी....
तभी उसको गेट की झिर्रियों के बीच से लड़की के आ रहे होने का अहसास हुआ.. मन ही मन उसने भगवान को याद किया और गेट खुलने का इंतजार करने लगा....
"हां जी.. तूमम्म्म?" हां जी सिर्फ़ लड़की ने बोला था.. पर 'तूमम्म्म' दोनो के मुँह से एक साथ निकला... रवि दो कदम पिछे हट गया.. दरवाजे पर ऋतु खड़ी थी.. वही पतली और लंबी सुंदर सी लड़की जिसके साथ रवि की बस में और फिर कार में मुठभेड़ हुई थी.....
"आ.. आ.. हांजी.. पर आपका नाम तो ऋतु है ना?" रवि बौखलते हुए बोला...
"हां.. तो? यहाँ क्या लेने आए हो..? तुम्हे कैसे मिला ये घर..." ऋतु ने तुनक्ते हुए अपने दोनो हाथ कुल्हों पर जमा लिए....
"ववो.. हम तो.. ऐसे ही आ गये थे जी.. भटकते हुए.. माफ़ करना.. पर ववो.. कहाँ हैं?" रवि ने गिरते पड़ते अपनी बात पूरी की....
"वो कौन? तुम्हे चाहिए क्या?" ऋतु की आवाज़ तेज होकर अब रोहन के भी कानो में पड़ने लगी थी....
ऋतु के गुस्से से बोलते रहने के कारण रवि अभी तक संभाल नही पाया था..," ववो.. बभ.. भाभी जी!"
"कौन भाभी जी.. ? तुम्हारा दिमाग़ खराब है क्या? यहाँ कोई भाभी जी नही रहती... तुम आख़िर आए क्या लेने हो?" जैसे ही ऋतु ने उसको खरी खरी सुनाते हुए अपना हाथ आगे किया.. रवि को गजब का बहाना मिल गया," हमारा फोन! ओये रोहन.. आजा.. मिल गया तेरा फोन.. मेरा शक सही था.. इन्होने ही चुराया है.. शकल से ही पता लग रहा था... कि इन्ही का काम है?" रवि अब उसको हावी होने का मौका नही देना चाहता था..
"फोन?" रोहन की समझ में अभी तक नही आया था कि वो किसलिए गया था और अब क्या बक रहा है.. पर रवि के बुलाने पर वह मॅन ही मॅन उसको गलियाँ देता हुआ गेट पर ही पहुँच गया," क्या हुआ?"
"अरे.. तेरा फोन.. ये देख इसके हाथ में..!" रवि ऋतु के हाथ में रोहन के जैसा फोन देखा तो उसके सिर पर चढ़ने को उतारू हो गया...
अब हड़बड़ाने की बारी ऋतु की थी.. इस तरह से खुद पर गली में इल्ज़ाम लगते देख वह हड़बड़ा गयी..," हमें तो ये.. बस में मिला था...!" ऋतु की नज़रें झुक गयी...
"अच्च्छा.. बस में मिला था.. बस में तो मैं भी बैठा था... मुझे क्यूँ नही उठा लाई तुम.. बोलो.. कह देती मिल गया था बस में...!" रवि लगातार उसके सिर पर चढ़ता जा रहा था...
"चुप भी कर यार अब.. इतना बोलने की ज़रूरत क्या है?" रोहन ने उसको शांत करने की कोशिश की....
"क्यूँ ना बोलूं मैं? घर आए मेहमान को पानी पूच्छना तो दूर.. इज़्ज़त उतारने पर उतर आई ये...! इसको तो ये भी याद नही रहा कि कैसे मैने इनको लिफ्ट दिलवाई थी...." रवि की आवाज़ और ऊँची हो गयी....
"आ..आप प्लीज़ अंदर आ जाइए.. यहाँ तमाशा क्यूँ कर रहे हैं..?" ऋतु ने पूरी नज़ाकत के साथ कहा....
"नही.. हमें नही आना... " रवि बोल ही रहा था कि रोहन ने उसको पिछे से धक्का मारा," चल रहा हूँ ना यार.. धक्का क्यूँ मार रहा है.." और फिर ऋतु को घूरते हुए इस अंदाज में उस'से भी आगे बढ़ गया जैसे वो उनका नही, उसका घर हो...
"आ जाइए.. आप अंदर बैठिए.. मैं अभी आती हूँ..!" कहकर ऋतु उपर भाग गयी...
"तू इतना चिल्ला क्यूँ रहा था बे? मेरा पत्ता सॉफ करवाना है क्या?" रोहन ने अंदर जाकर सोफे पर बैठते ही रवि को कोसा....
"अच्च्छा.. तुझे मेरा चिल्लाना सुन गया.. उसका नही सुना किस तरह मेरी इज़्ज़त तार तार कर रही थी.. फिर मुझे उसके हाथ में तेरा फोन दिख गया.. मैं इतना सुनहरा मौका कैसे जाने देता.. हे हे हे!" रवि ने हंसते हुए अपनी छाती चौड़ी कर ली...
" ठीक है यार.. पर हम यहाँ नीरू के लिए आए थे.. भूल गया क्या?" रोहन ने शांत होते हुए कहा....
"ओह तेरी.. मैं तो सच में ही भूल गया था.. सॉरी यार.. अरी.. हम तो घर के अंदर आ गये.. देख!" रवि सोफे से उच्छल पड़ा....
"चुप.. कोई आ रहा है.." रोहन के कहते ही दोनो शांत हो गये....
और नीरू के कमरे में कदम रखते ही रोहन सुध बुध खोकर खड़ा हो गया और उसको अपलक देखने लगा.. हालाँकि वो इस परी को पहले देख चुका था.. पर अब की तो बात ही दूसरी थी... पटियाला हल्का नीला कढ़ाई वाला सूट डाले हुए वो सचमुच किसी परी से कम नही लग रही थी.. उसके अंग अंग से नज़ाकत टपक रही थी... रोहन का मन मयूर थिरक उठा.. हुश्न ऐसा की कुर्बान होने को दिल करे.. फिर रोहन तो उसको देखने से पहले ही अपना मान चुका था.. इस असीम खुशी को सहन नही कर पा रहा उसका दिल बल्लियों पर आ टंगा..
धीमे धीमे कदमों से नज़रें झुकाए हुए वो चलकर उनके पास आई और जैसे ही झुक कर उसने ट्रे टेबल पर रखी.. रेशमी बालों की एक लट उसकी आँखों के सामने लुढ़क आई...
खड़ी होकर उसने अपनी लट को कान से पिछे ले जाते हुए मधुर आवाज़ में आग्रह किया..," बैठिए ना...!"
रोहन तो खड़ा होकर जैसे बैठना ही भूल गया.. अपलक उसको देखते हुए बोला," जी.. थॅंक्स!" पर खड़ा ही रहा...
"अरे.. बैठिए तो सही.. ठंडा लीजिए...!" नीरू ने उसको फिर टोका....
"जी.. बैठ रहा हूँ..!" नीरू के चेहरे पर बरस रहे सौंदर्या के अनुपम नूर में रोहन इस कदर खो गया था कि इस बार भी खड़ा ही रहा... रवि ने उसका हाथ पकड़ कर खींच लिया.." बैठ जा यार...!"
"ओह हां..!" रोहन नीरू के मोह्पाश से जैसे अभी मुक्त हुआ...
"आप लीजिए हम आते हैं.." कहकर नीरू जाने लगी....
"आप ही नीरू भ.. जी हैं ना..!" रवि के मुँह से भाभी जी निकलता निकलता रह गया..
इतना सुनते ही नीरू चौंक कर पलटी...," आपको मेरा नाम कैसे मालूम? ये नाम तो कोई लेता ही नही.. यहाँ पर.. बचपन में था मेरा ये नाम...!" नीरू ने अचरज से रवि के मुँह की और देखा....," मेरा नाम अब शीनू है.. प्लीज़ दोबारा वो नाम मत लेना....
"देख लो जी.. हैं ना हम कमाल के.. हम तो आपके पिच्छले जन्मों की बात भी जानते हैं...!" रवि ने मुस्कुराते हुए कहा...
नीरू ने इस बात को मज़ाक में लिया.. रवि के मज़ाक को इज़्ज़त देने के लिए हल्का सा मुस्कुराइ और बाहर निकल गयी....
"कैसी लगी भाभी जी?" उसके जाते ही रवि ने रोहन के कंधे से कंधा भिड़ाया...
"ये तो मैने कभी सपने में भी नही सोचा था यार... इतनी सुंदर लड़की मैने आज तक नही देखी..!" रोहन सातवें आसमान पर था....
"देखी क्यूँ नही? उस दिन बस में नही देखी थी क्या?" रवि ने याद दिलाया...
"हां पर.. उस दिन मैने इस नज़र से नही देखा था यार.. बस एक पल के लिए ही नज़रें ठहरी होंगी इस पर...!" रोहन ने अपनी बात भी पूरी नही की थी कि ऋतु और नीरू दोनो कमरे में आ गयी," ये लीजिए आपका फोन..!"
"थॅंक्स.." फोन लेते हुए जैसे ही रोहन की उंगलियों ने नीरू के हाथ को स्पर्श किया.. उसके दिल के सभी तार मानो झंझणा उठे.. इतना जादू था उसके हाथों में...
तभी ऋतु भरभराती हुई बोल पड़ी," हमने चोरी नही किया था.. सीट के नीचे पड़ा था.. हमने सोचा सरदार जी का होगा.. हमने वहीं ड्राइवर को भी देने की सोची थी.. पर हमें लगा ये ठीक नही.. जिसका भी होगा वो फोन तो करेगा ही.. तभी उसको बता देंगे.. घर आकर देखा तो इसकी बॅटरी डेड हो चुकी थी.. हमारे पास चारजर भी नही था इसका... चाहो तो आंटिजी से पूच्छ लेना.. हमने आते ही उनको बता दिया था...."
"ओहो.. आप तो दिल पे ले गयी.. आपको पता है ना कि मेरी मज़ाक करने की आदत है.." रवि कहकर मुस्कुराने लगा....
"तुमसे कौन बात कर रहा है?" ऋतु ने गुस्से से कहा तो नीरू हंस पड़ी...
"ठीक है.. थॅंक्स.. हम चलते हैं.." कहते हुए रोहन उठ खड़ा हुआ...
बाहर निकलने से पहले रोहन ने मुड़कर देखा.. पर नीरू तो उसको छ्चोड़ने बाहर तक भी नही आई.. वह दूसरी ओर मुँह किए सीढ़ियाँ चढ़ रही थी.....
"अब क्या इरादा है बॉस?" सारी कहानी बड़ी दिलचस्पी से सुन'ने के बाद अमन ने रोहन से पूचछा....
"इरादा क्या होना है.. उसके सामने बार बार जाना है.. उसके दिल में उतर कर अपना बनाना है और साथ चलने के लिए मनाना है.. और क्या?" रोहन ने चहकते हुए जवाब दिया....
"मतलब आज से तू पूरा लड़कीबाज हो जाएगा.. हे हे हे!" रवि ने जुमला ठोंका...
"लड़कीबाज नही.. नीरुबाज बोल.. मैने आज तक किसी लड़की के बारे में ऐसा वैसा सोचा भी है.. बता?" रोहन ने जाकर उसकी गर्दन पकड़ ली...
"छ्चोड़ सा... जान लेगा क्या?" रवि अपने आपको छुड़ाते हुए बोला," तो कौनसा तीस्मारखा बन गया तू.. तेरे उपर मरने वाली लड़कियाँ तुझे 'नल्ला' समझने लगी होंगी अब तक हाँ.. हा हा हा!" रवि ताली बजाकर हँसने लगा...
"मेरी शराफ़त को कोई नल्लगिरी समझे तो समझे.. मैं तो शुरू से ही मानता आया हूँ कि अगर आदमी अपनी बीवी से वफ़ा की उम्मीद करता है तो उसको भी तो उसके लिए वफ़ादार होना चाहिए.. इंतजार करना चाहिए...!" रोहन ने तर्क दिया...और चार्जिंग पर लगाया हुआ अपना फोन ऑन कर लिया....
"एक दम सॉलिड बात बोली रोहन भाई.. पर लड़कियाँ कहाँ कुँवारी रहती हैं आज कल.. शादी से पहले ही भोंपु बज जाता है बहुतों का.. तू किस्मत वाला है जो तुझे नीरू मिल गयी..!" अमन ने भी बहस में ताल ठोनकी...
"अभी कहाँ मिल गयी यार.. अभी तो सिर्फ़ देखा है.. कहानी लंबी चलेगी लगता है!", शेखर ने पटाक्षेप किया...
"हुम्म.. डॉन'ट वरी रोहन.. जब तक तुम्हे मंज़िल नही मिल जाती.. तुम यहीं रहोगे.. मेहमान बनकर नही.. अपना घर समझकर.. मैं ज़रा बाहर जाकर आता हूँ.. एंजाय करो..!" कहकर अमन खड़ा हो गया...
"और मैं? मैं कहाँ रहूँगा...!" रवि ने मज़ाक किया...
"तुम सलमा की बाहों में रहो यार.. मेरा उस'से मन भर गया है.. बहुत पकाती है साली.. उसको संभलो तुम.. आज भी आने को बोल रही है.. बुला लूँ?"
"बुला लो यार.. नेक काम में देरी कैसी? हे हे हे" रवि ने ताल से ताल ठोनकी...
अमन बाहर निकला ही था कि रोहन का फोन बज उठा.. नितिन का नंबर. देख रोहन ने फोन उठा लिया," हां.. भाई.. वो नीरू मिल गयी..!"
"व्हत? क्या बकवास कर रहे हो यार..? ये कैसे हो सकता है..?" नितिन की फटी हुई सी आवाज़ फोन पर उभरी....
"हाँ भाई सच में... मैने उसको देख भी लिया है.. जैसा उसने मुझे सपने में बताया था.. बिल्कुल उसी जगह पर है उसका घर...!" रोहन रोमांचित सा हो उठा...
"मुझे यकीन हो गया है कि इस सपने के चक्कर में अपनी जिंदगी बर्बाद कर लोगे... मैने बताया तो था की सब कुच्छ श्रुति का किया धरा था.. और नीरू नाम की हज़ार लड़कियाँ दिखा सकता हूँ में.. क्या नाम के चक्कर में तुम किसी भी नीरू को अपना सब कुच्छ सॉन्प दोगे....?" नितिन का इशारा उसकी जायदाद की ओर था...
"पर भाई वो बहुत सुंदर है.. इतनी प्यारी है कि.. बस.. और नेच्रिवाइज़ तो और भी खास है.. और..." रोहन कुच्छ बोल ही रहा था कि नितिन ने बीच में ही टोक दिया," मैं वहीं आ रहा हूँ.. श्रुति भी मेरे साथ ही आ रही है..!" नितिन ने कहा....
"क्या? पर यहाँ कैसे? ... और वो श्रुति कैसे आ गयी...? तुम लोग रहोगे कहाँ?" एक ही साँस में आसचर्यचकित रोहन ने सवालों की झड़ी लगा दी....
"जहाँ तू रहेगा वहाँ हम नही रह सकते क्या? बाकी बातें आने के बाद बताउन्गा.. हम कल सुबह निकलेंगे.. घर से कुच्छ लेकर आना है ना..?" नितिन ने जल्दी में कहा....
"हां भाई.. मेरा पर्स लेते आना.. जल्दी में मैं घर ही भूल आया.. मेरे एटीएम वग़ैरह सभी कुच्छ उसमें है.. और हां.. 5-7 ड्रेस लेते आना.. पर श्रुति कैसे आ सकती है भाई.." रोहन की समझ में कुच्छ नही आ रहा था...
"बोला ना यार.. सबकुच्छ आकर बताउन्गा..!" नितिन ने कहते ही फोन काट दिया....
श्रुति उसके साथ ही बैठी थी..."मुझे बहुत डर लग रहा है.. बापू को अगर ये पता चल गया कि कॉलेज से कोई टूर नही जा रहा तो?" श्रुति का दिल बैठा हुआ था.. नितिन ने साथ चलने की बात जब से कही थी.. वह अंदर ही अंदर घुट रही थी..
"क्यूँ बेवजह अपना दिमाग़ खराब कर रही है..? इसका तुझे बतला में बहुत यूज़ करना है.. ले.. तेरा गाँव आ गया.. भूलना मत.. कल सुबह 8:30 पर.. यहीं.." कहते हुए नितिन ने उसकी जांघों पर चिकौती काट ली... श्रुति जैसे रो ही पड़ी थी.. पर आँसुओं को उसने सिसकियाँ ना बन'ने दिया... चुपचाप गाड़ी से उतरी और अपने घर की और चल पड़ी.. भारी भारी कदमों से...
अमन शहर के बीचों बीच धीरे धीरे गाड़ी चलते हुए आगे बढ़ता जा रहा था.. उसके मन में रह रहकर रोहन के अजीब से सपने को लेकर ख़याल आ रहे थे.. और सपना भी ऐसा जो सच हो गया... पूर्वज़नम होता है.. ये उसने बहुतों से सुना था.. पर इसको साक्षात सच होता हुआ वो पहली बार ही देख रहा था.. उसको रोहन की किस्मत पर नाज़ था और इसीलिए शायद उस'से लगाव सा भी हो गया था.. यादों के भंवर में उलझे अमन को अचानक अपने पहले प्यार की याद आ गयी और बरबस ही उसकी आँखों से आँसू छलक उठे.. कितनी प्यारी थी वो! एक दम फूल सी नाज़ुक.. दोनो को एक दूसरे से प्यार हो गया था.. पर इकरार कभी नही कर पाए.. वो उसको देख कर रह जाता.. और वो उसको देख कर रह जाती.. घर की मुंडेर पर खड़े होकर घंटों एक दूसरे को निहारते रहने का सिलसिला एकद्ूम बंद हो गया.. उस दिन अमन रात होने तक वहीं खड़ा रहा था.. अगले दिन जब उसको पता चला क़ि 'वो' अपने मा बाप के साथ शहर छ्चोड़कर चली गयी है तो अमन तड़प उठा.. 2 दिन तक खाना भी नही खा पाया.. कम से कम बता तो देती... पर हो भी क्या सकता था.. वो उसको रोक थोड़े ही लेता.. आख़िर उम्र ही क्या थी उनकी उस वक़्त.. पर प्यार उम्र देखकर थोड़े ही होता है.. 'वो' तो बस हो जाता है.. कहीं भी.. किसी से भी.. अचानक!
अचानक अमन ने गाड़ी साइड में रोकी और एक फोटोकॉपी निकाल कर पढ़ने लगा...
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"हाई अमन!
जिस दिन तुमने मुझे पहली बार छत पर खड़े देखा था.. शायद पहली बार देखा था... पर मैने पहली बार नही.. मैं तो तुम्हे कितने ही दीनो से गली में क्रिकेट खेलते हुए देखती आ रही थी.. अपने घर की खिड़की से तुम्हे छत पर खड़े हो पतंग उड़ाते हुए देखती आ रही थी... पतंग उड़ाते हुए तुम जब भी पिछे हट'ते हुए बिल्कुल मुंडेर के पास आ जाते थे तो मेरा नन्हा सा दिल धड़क उठता था.. कहीं तुम गिर ना जाओ.. मेरा तुम्हे पुकार कर वहाँ से हट जाने के लिए कहने को मन करता.. पर कभी आवाज़ ही नही निकल पाई.. तुम्हारा नाम लेना शायद मेरे वश में था ही नही.. और शायद मेरी किस्मत में भी नही...
तुम्हे याद है एक बार अंकल ने तुम्हे तुम्हारी छत पर आकर चांटा लगाया था.. (पता नही क्यूँ) तुम तो सिर्फ़ रोए थे.. पर मेरी चीख निकल गयी.. मेरी मम्मी दौड़ी हुई आई थी छत पर.. क्या बताती उनको?
साल पूरा होने को है.. तुम रोज़ छत पर आते हो.. पर हमेशा मुझसे लेट. हमेशा मैं ही तुम्हारा इंतजार करती हुई मिलती थी.. है ना? कयि बार तो तुम आधा आधा घंटा इंतजार करवा कर आते.. मेरा तुमसे रूठने को मन करता.. पर फिर मनाता कौन? तुम्हे देखकर ही इतना सुकून मिलता था कि हर रोज़ नीचे जाते ही अगले दिन की शाम का इंतजार करना मुश्किल हो जाता था.. तुमसे मिलने को इतनी तड़प रही थी कि सोते हुए तकिया सिर से निकाल कर सीने पर चिपका लेती थी.. पर तुम्हारा सीना कभी उस 'तकिये' की जगह नही ले पाया...
कितनी ही बार तुम्हारे आगे से गुज़री.. पर तुमने रोका ही नही.. कितनी ही बार जानबूझ कर तुम्हारी बॅटिंग या बॉलिंग के टाइम विकेट्स के बीच जाकर खड़ी हुई.. पर कभी तुमने टोका ही नही...
Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी
तुम्हे याद है जब एक दिन हम दोनो एक ही कलर की शर्ट पहन कर छत पर आ गये थे तो दोनो कितना हँसे थे..? कलर याद होगा ना? उसके बाद तुम्हारी सभी शर्ट्स के कलर मैने याद कर लिए थे.. रोज़ सोचकर पहनती और उपर आती की तुमने शायद यही कलर डाल रखा हो.. पर उसके बाद कभी कलर नही मिले.. एक दिन तुम्हारे उपर आते ही मैं भाग कर नीचे गयी थी.. पता है क्यूँ? तुम्हारी शर्ट के कलर का सूट डालने.. हे हे..
तुम आज शाम आए ही नही छत पर.. आज तो तुम्हारा आना सब से ज़्यादा ज़रूरी था.. आज मैं तुमसे कुच्छ बोलना चाहती थी.. पहली बार.. और शायद आख़िरी बार भी.. पर मेरी किस्मत में शायद था ही नही.. एक बार तुमसे बोलना.. तुमहरा हाथ पकड़ कर रोना.. और बताना कि आँखों ही आँखों में तुम मेरे क्या बन गये हो....
मैं कल जा रही हूँ.. हमेशा के लिए.. पापा का ट्रान्स्फर हो गया है.. अब छत पर नज़र नही आऊँगी कभी.. पर तुम्हे भूल भी नही पाउन्गि.. तुम भी नही भूलोगे ना?
तुम सुबह देर से उठते हो.. इसीलिए लेटर तुम्हारे दोस्त बबलू को देकर जाउन्गि.. उम्मीद है वो तुम्हे दे देगा..
कभी बोल नही पाई तुमसे.. बोलने का बड़ा मन करता था.. कभी मिल नही पाई.. मिलने का बड़ा मन करता था.. कभी कह नही पाई.. कहने का बड़ा मन करता था.. आइ लव यू!
मैं बिल्कुल भी नही रो रही.. तुम भी रोना मत प्लीज़!
तुम्हारी,
(नाम मिट गया था.. शायद आँसुओं ने मिटा दिया,)
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अमन कागज को वापस पर्स में रखते हुए मुस्कुरा उठा.. पर उसकी आँखें तो छलक आई थी.. मुस्कुराहट शायद बेबस आँखों को दिलासा देने के लिए ही आई होगी...
आँखों से आँसू पोंचछते हुए जैसे ही वो गवरमेंट. कॉलेज के सामने से गुजरा, उसकी नज़र बाबबलू पर पड़ गयी," ओये बाबबलू!" अमन ने चिल्लाकर उसको पुकारा..
बाबबलू भागा हुआ उसके पास आया और खिड़की खोलकर गाड़ी में बैठ गया," क्या चक्कर है यार.. आजकल अंदर ही अंदर रहता है?"
"तू बता पहले? यहाँ लड़कियों के कॉलेज के गेट पर क्या काम है तेरा.. नौकरी माँगने आया है क्या?" अमन ने मज़ाक किया...
"अरे नौकरी करें हमारे दुश्मन.. मैं तो लाइन मार रहा हूँ... हे हे!"
"किस पर.. कोई दे रही है क्या..... लाइन?" अमन हंसा...
"दे देगी यार.. मैं तो अपना कर्म कर रहा हूँ.. देना दिलवाना तो प्रभु के हाथ में है.. क्या पता किस घड़ी किसी नजनीन को तरस आ जाए.. मेरी भारी जवानी पर... हे हे हे.. बता ना.. कहाँ जा रहा है?" बाबबलू ने आख़िर में पूचछा...
"ओह तेरी भरी जावाअनी.. कहीं चलकर आना है.. तेरे कर्म तो फिर भी होते रहेंगे.. चलें?" अमन ने पूचछा...
"चलो यार.. कभी तुझे मना किया है?" बाबबलू ने बाहर निकल कर वक़ार को पुकारा," मेरी गाड़ी ले जाना भाई.." फिर बैठकर खिड़की बंद कर ली और गाड़ी चल पड़ी.....
"अरे आंटी जी.. कोई है क्या?" अमन ने एक घर के बाहर जाकर आवाज़ लगाई...
"कौन है?" अंदर से लगभग भागती हुई एक छर्हरे बदन की लंबी सी गोरी लड़की दरवाजे तक आते हुए बोली और अमन को देखते ही खुश हो गयी,"अमन! आज कैसे याद आ गयी इस घर की.. आज तो बारिश होनी चाहिए!" और खिलखिलाते हुए दरवाजा खोल दिया...," आओ!"
अमन और बाबबलू दोनो टहलते हुए घर के अंदर जा पहुँचे..," आंटी जी कहाँ है गौरी?"
"वो तो नही हैं.. शाम तक आएँगी.. कुच्छ काम था?" गौरी ने उनको पानी देते हुए कहा...
"नही.. कुच्छ खास नही था.. मैं फिर आ जाउन्गा.. अच्च्छा!" अमन ने पानी पीकर गिलास टेबल पर रखा और खड़ा हो गया... बाबबलू ने भी वैसा ही किया....
"अर्रे.. ये भी कोई बात हुई... अभी आए और चल भी दिए.. बैठो ना.. चाय लाती हूँ बनाकर.." गौरी हक़ सा जताते हुए दरवाजे पर खड़ी हो गयी...
"नही गौरी.. आज जल्दी में हूँ.. वो शेखर आया है.. ज़्यादा देर अकेला छ्चोड़ा तो बुरा मान जाएगा.. मैं बाद में आउन्गा..." अमन ने उसको समझते हुए कहा..
शेखर का नाम अमन के मुँह से सुनकर गौरी के कान खड़े हो गये.. अचानक ही अस्चर्य की एक मीठी सी लहर उसके चेहरे पर दौड़ गयी.. फिर संभालते हुए बोली," शेखर आया है? कब? उसको क्यूँ नही लेकर आए..? कितने साल हो गये उसे शकल दिखाए हुए..?"
"वो.. दरअसल कुच्छ और भी दोस्त हैं वहाँ.. उनको अकेला छ्चोड़ना तो बिल्कुल ही अच्च्छा नही लगता.. शाम को भेज दूँगा.. अगर आया तो.." गौरी की बाजू से बाहर निकलता हुआ अमन बोला..," दरवाजा बंद कर लो.. हम जा रहे हैं..."
"ठीक है.. " गौरी चहकति हुई उनके साथ आई और दरवाजा बंद करते ही बदहवासी में अंदर की और दौड़ पड़ी... अंदर जाते ही उसने फोन उठाकर एक नंबर. मिलाया...
"गौरी, मैं क्लास में हूँ.. बाद में बात करती हूँ..." खुस्फुसती हुई सी आवाज़ फोन पर उभरी...
"शिल्पा, सुन तो.. फोन मत रखना.. बाद में पछ्तयेगि नही तो?" गौरी ने कहा...
"क्या हुआ.. ? तुम्हारी साँसें तेज क्यूँ चल रही हैं.. सब ठीक तो है.." शिल्पा की आवाज़ अब भी बहुत धीमी थी....
गौरी ने आँखें बंद करके अपनी छातियो पर हाथ रखा और बढ़ चली धड़कनो को काबू में करने की कोशिश की," हां.. बस क्या बताउ...? सुन.. वो.. शेखर आया हुआ है...!"
"क्य्ाआआअ?" शेखर का नाम सुनकर शिल्पा भूल ही गयी कि वो क्लास में है.. फिर हड़बड़ते हुए उसने फोन को छिपाने की कोशिश की तो पूरी क्लास में ठहाका गूँज उठा...
"गेट आउट ऑफ दा क्लास!" लेक्चरर ने पढ़ाना छ्चोड़ उसको एक लाइन का आदेश सुना दिया...
पूरी क्लास उम्मीद कर रही थी कि शिल्पा अब माफ़ कर देने के लिए गिड़गिडाएगी.. सब उसी की और देख रहे थे.. पर उसका जवाब सुनकर सभी चौंक पड़े," थॅंक्स सिर.. थॅंक यू वेरी मच!" शिल्पा ने ये सब भागते भागते ही कहा और क्लास से गायब हो गयी.. क्लास में सन्नाटा छा गया.. सब आँखें फाडे लेक्चरर की और देख रहे थे और लेक्चरर आँखें फाडे दरवाजे की और...
शिल्पा ने भागते भागते ही गेट पर आते ही ऑटो पकड़ी और बिना तोल मोल किए बोली," जल्दी चलो.. सीधे..!"
"कहाँ है वो?" गिरते पड़ते संभालते शिल्पा गौरी के घर पहुँची.. बड़ी मुश्किल से धौकनी की तरह चल रही अपनी साँसों पर काबू पाने की कोशिश करती हुई वह अंदर पहुँची और गौरी के अलावा किसी को भी वहाँ ना पाकर खिन्न हो गयी...
गौरी लगातार उसकी और देख कर मुस्कुरा रही थी.. शिल्पा के सोफे पर पसरते ही वो बोली," पूरी बात सुन तो लेती.. मुझे पता था.. तुम अब सीधे यहीं आओगी...!"
"नही.. वो तो प्रोफेसर ने निकाल दिया.. पर है कहाँ शेखर?" टेबल पर रखे जग को उठाकर गतगत पानी पीते हुए वो बोली....
"अमन आया था.. उसी ने बताया कि शेखर आया हुआ है.. अभी वो उसी के पास है.. शाम को आएगा शायद...!" गौरी उठकर जग को फ्रीज़ के उपर रखते हुए बोली...
"कौन अमन?" शिल्पा ने पूचछा....
"अरे वही यार.. जो पहले हमारे घर के पास रहते थे... याद नही?"
"ओह हां... पर शेखर उसका दोस्त है क्या?" शिल्पा ने उत्सुकतावश पूचछा...
"हां.. वो तो बचपन से ही अच्छे दोस्त हैं.. तुझे अमन का नाम याद नही है.. शकल से ज़रूर पहचान लोगि..." गौरी ने बताया...
"अभी रहेगा क्या यहीं.. शेखर!" शिल्पा उठकर उसके पास आ गयी...
"मुझे क्या पता? उसी से पूच्छ लेना...!" गौरी शरारत से मुस्कुराने लगी....
शिल्पा ने अपने चेहरे पर तेर गयी शरम की लाली छिपाने के लिए तकिया उठाकर गौरी के मुँह पर दे मारा," क्या अब भी वो इतना ही शर्मिला होगा? 3 साल हो गये उसको देखे हुए... तुझे याद है जब एक बार हम हाइड आंड सीक खेल रहे थे तो ग़लती से वो उसी रज़ाई में घुस गया था जिसमें मैं छिपि हुई थी.. हे हे हे हे.. पता है कैसे उच्छल पड़ा था.. जैसे उसको किसी बिच्छू ने काट लिया हो.. उसके बाद वो कभी हमारे साथ नही खेला... मैं वो दिन कभी नही भूल सकती गौरी.. पूरी जिंदगी नही भूल सकती..." कहते हुए गौरी ने पिछे सिर टीका मंद मंद मुस्कुराते हुए आँखें बंद कर ली..
"हां.. तूने बताया था.. वो पूरा का पूरा तेरे उपर लेट गया था... !" गौरी ने कुच्छ और भी याद दिलाने की कोशिश की.. पर शायद शिल्पा तो पहले से ही उसी पल में खोई हुई थी... कैसे अंजाने में ही रज़ाई में घुसते हुए उसका एक हाथ सीधा शिल्पा की उभरती हुई छाती पर आकर जम गया था और उसके मुँह से कामुक सिसकी निकल गयी थी... पर वो झटका बिजली के झटके जैसा ही था.. जितनी तेज़ी से उसके हाथ ने उस के लड़कीपाने के अहसास को जगाया था.. उतनी ही तेज़ी से वो वापस भी हट गया.. और शिल्पा तड़प उठी थी.. वो तड़प आज तक उसके सीने में आग लगाए हुए थी.. पर उस आग को बुझाने के लिए उसको 20 की होने पर भी कोई और हाथ गवारा नही था.. उसको सिर्फ़ वही हाथ चाहिए था.. वो उस'से तब भी प्यार करती थी.. और आज भी करती है.. सिर्फ़ कभी बोल नही पाई थी...
"चार साल बाद!" आँखें बंद किए हुए ही शिल्पा के मुँह से निकला...
"क्या?" गौरी ने पूचछा...
"आज चार साल बाद वो मुझे दिखाई देगा.. भूल तो नही गया होगा ना...!" शिल्पा ने दोहराया.. और आँखें खोल दी...
"तुझे कैसे भूल सकता है वो? तू ही तो उस'से सबसे ज़्यादा झगड़ा करती थी.. और फिर मनाती भी तो तू ही थी... और भूल भी गया हो तो तू याद दिला देना.. रज़ाई वाली बात बताकर.. हे हे हे...!" गौरी हँसने लगी....
"वो फिर भाग जाएगा.. रज़ाई वाली बात याद दिला दी तो.. झेँपू कहीं का.. हे हे.. कितना प्यारा था ना वो.." शिल्पा की आँखें चमक उठी....
"था क्यूँ बोल रही है पागल... वो तो अभी भी है.." गौरी ने उसको टोका....
"हे हे हे.. पर क्या वो अब भी इतना ही क्यूट होगा.. लल्लूराम!" खुद ही कहकर शिल्पा खुद ही शर्मा गयी.. तकिया उठाकर अपने चेहरे को ढक लिया...
..................................................................................
यार.. मेरी तो समझ में नही आ रहा कि नितिन आख़िर यहाँ आ क्यूँ रहा है? और वो भी श्रुति को लेकर?" रोहन विचलित सा बैठा कुच्छ सोचते सोचते अचानक बोल पड़ा...
"अरे भाई इसमें इतना दिमाग़ खपाने वाली बात कौनसी है.. आ रहा है तो आने दे.. उसकी भी सुन लेना.. दिक्कत क्या है?" शेखर ने रोहन के पास बैठकर उसके कंधे पर हाथ रख लिया...
"वो बात नही है यार... पर वो रहेंगे कहाँ? नितिन को भी अड्जस्ट कर लेते.. पर श्रुति...!" बोलते बोलते वह अचानक रुक गया...
पास बैठा रवि मौके का फायडा उठाने से नही चूका," यार, लड़की की इतनी दिक्कत मान रहा है तो मैं रख लूँगा ना, अपने रूम में.. हे हे हे...!"
"तुझे इसके अलावा भी कोई काम है कि नही.. जब देखो..." रोहन बौखला सा गया...
"यार, इस बात को तो भूल ही जाओ.. इतनी बड़ी कोठी मैं क्या 6 लोग भी नही रह सकते..?" शेखर ने उसको फिर समझाने की कोशिश की...," अगर ज़रूरत हुई भी तो हम रूम शेर भी तो कर सकते हैं.. लड़की अकेली रह लेगी... क्या दिक्कत है.."
"वो बात नही है यार.. पहले ही आपने और अमन भाई ने हम पर अहसान कर रखा है...." रोहन बोल ही रहा था कि शेखर ने उसको प्यार से लताड़ लगाई..," तुमने खूब दोस्त माना भाई.. अहसान की बात कहकर तो मुझे शर्मिंदा ही कर दिया.. अमन को तुम ठीक से जानते नही हो.. यारों का यार है वो.. अगर तुम पूरी जिंदगी भी यहाँ रहना चाहो तो उसके चेहरे पर शिकन नही आएगी.. बुल्की वो तो और भी खुश होगा.. अकेला रह रह कर ही तो वो शराब का सहारा लेने लग गया.. उस जैसा 'दोस्त' ना मैने कभी देखा है.. और शायद ना ही तुम कभी देख पाओगे.. जस्ट रिलॅक्स आंड कॉन्सेंट्रेट ऑन नीरू, ओके?"
"ठीक है यार... पर मैं कोशिश करूँगा उन्हे जल्द वापस भेजने की..." रोहन ने कहा ही था कि अमन कमरे में आ गया," किसको जल्दी भेज रहे हो भाई?"
"वो यार.. मेरा एक दोस्त और आ रहा है कल.. एक लड़की भी है साथ में...!" रोहन ने जवाब दिया...
"अरे वाह.. फिर तो पार्टी होनी चाहिए यार... वो.. लड़की पर्सनल है क्या?" अमन ने कुच्छ रुककर पूचछा...
"नही यार.. वो ऐसी नही है.. बहुत ही शरीफ और भोली है.. उसके साथ कोई लाफदा नही प्लीज़... मुझे तो यही समझ नही आ रहा की नितिन उसको लाएगा कैसे? मतलब उसके घर पर क्या कहेगा....?" रोहन ने अमन की और देखते हुए कहा...
"शरीफ लड़कियों से तो मुझे वैसे ही डर लगता है भाई.. मैं तो चालू लड़कियों से ही काम चला लेता हूँ.. चल आने दे.. देखते हैं तेरी उस शरीफ और शर्मीली लड़की को भी.. आज का क्या प्रोग्राम है.. पार्टी करते होगे ना?" कहकर अमन हँसने लगा...," और तेरा क्या ख़याल है.. सलमा को बुलाउ कि नही.. रात को आने को बोल रही है?" उसने रवि की और आँख मारी....
"कितने बजे तक आ जाएगी..? हा हा हा!" रवि ने कहकर ठहाका लगाया...
उसकी बात का जवाब देने ही वाला था कि अमन को गौरी की बात याद आ गयी, उसने अमन की और देखा और बोला," गौरी याद है तुम्हे?"
"गौरी? ... अच्च्छा गौरी.. हा...हां.. याद है.. क्या हुआ?" शेखर को अचानक याद आ गया...
"तुम्हे बुला रही थी.. घर पर..! शाम को चले जाना... एक बार.." अमन ने कहा..
"मुझे? .. पर मुझे क्यूँ?" शेखर ने अचंभित होते हुए पूचछा...
"ये ले! ये भी मैं ही बताउन्गा.. कुच्छ चक्कर होगा तुम्हारा उसके साथ.. जाने से पहले...!" अमन ने चटखारा लिया...
"नही यार.. ऐसी तो कोई बात थी ही नही... जहाँ तक मुझे याद है.. और एक और भी तो लड़की रहती थी उनके साथ वाले घर में.. उम्म्म्म...शिल्पा!" शेखर को नाम अच्छि तरह याद था.. पर जान बूझ कर उसने याद सा करने का नाटक किया.. नही तो अमन उसकी अभी लेनी शुरू कर देता... 'रज़ाई' वाली बात वो भी आज तक नही भूला था.. आख़िर पहली बार उसने लड़की की नरम और गरम गोलाइयों को च्छुआ था.. पहला स्पर्श कौन भूल सकता है भला...
"हुम्म.. वो भी वहीं रहती होगी अब भी.. उसकी मम्मी को देखा था मैने.. गाड़ी से उतरते हुए.. उसके साथ कुच्छ पंगा था क्या?" अमन ने पूचछा...
"सबको अपने जैसा नंगा क्यूँ समझता है तू.. लड़की का नाम आते ही तुझे 'पंगा' नज़र आने लगता है.." शेखर कहते ही हँसने लगा....
"ठीक है.. चला जाएगा ना... चला जाना यार एक बार.. नही तो वो समझेगी मैने बोला ही नही होगा...!" अमन ने सीरीयस होते हुए कहा...
"हुम्म.. चला जवँगा...!" शेखर की आँखों में शिल्पा को देखने की ललक उभर आई थी.....
करीब 5 बजे एक गाड़ी गौरी के घर के सामने रुकी.. शेखर का पलकें बिच्छायें इंतजार कर रही शिल्पा की दिल की धड़कने अचानक बढ़ गयी,"गौरी, देख तो! आ गया क्या?"
"आया होगा तो अंदर ही आएगा.. वो क्या घर भूल गया होगा?" गौरी ने मज़ाक में कहा और खिड़की खोल कर बाहर झाँकने लगी....
शेखर ने गाड़ी से उतरते ही शिल्पा के घर पर निगाह डाली.. कोई नज़र नही आया.. बेताब निगाहों से बार बार उधर ही देखते हुए वो गौरी के घर के दरवाजे पर जाकर खड़ा हो गया.. अपने कपड़े दुरुस्त किए और धीरे से नॉक किया...
"आ गया.. जा.. तू ही उसका स्वागत कर..!" गौरी हँसने लगी...
"नही यार.. मुझे शर्म आ रही है.. जा ना.. जल्दी जा..!" शिल्पा ने हड़बड़ाहट में अपने आपको उपर से नीचे तक देखा.. उसका ध्यान सबसे पहले अपनी मस्त सुडौल चूचियो पर ही गया. 4 साल पहले से शेखर के हाथों के स्पर्श को संजोए उसके 2 छ्होटे अमरूद अब रसीले दानो वाले अनार बन चुके थे.. ब्रा ना होने की वजह से टॉप के उपर से ही दानो की सीधी नोक हल्की सी महसूस की जा सकती थी... "हाए राअं.. मैं क्या करूँ..?" आनन फानन में खुद से ही सवाल करती हुई शिल्पा शेखर को गौरी के साथ आता देख ड्रॉयिंग रूम के साथ वाले कमरे में छिप गयी...
शेखर को नज़र भर देखने से ही शिल्पा के दिल में हुलचल सी मच गयी.. कल तक जिसको वो लल्लूराम कहकर चिड़या करती थी, आज शारीरिक सौष्ठव और सौंदर्या में किसी फिल्मी हीरो से कम नही लग रहा था.. शिल्पा दरवाजे के पिछे च्चिप कर अपनी साँस रोक कर खड़ी हो गयी...
गौरी शेखर को शिल्पा के रूप में सर्प्राइज़ देना चाहती थी.. पर अंदर आते ही जब उसने शिल्पा को ही गायब पाया तो उसकी हँसी छ्छूट गयी....
"क्या हुआ?" शेखर ने बैठते हुए पूचछा..," अंकल आंटी जी नही हैं क्या?"
"नही.. कुच्छ नही..!" गौरी ने मंद मंद मुस्कुराते हुए कहा," मम्मी बाहर गयी हैं.. और पापा तो हफ्ते में ही आते हैं.. ये लो!" गौरी पानी लेकर आई थी..
"ओह थॅंक्स.. यहाँ तो कुच्छ भी नही बदला.. सब कुच्छ वैसा का वैसा ही है..!" शेखर शिल्पा के बारे में पूच्छने के लिए भूमिका बनाने लगा...
"पर तुम तो बहुत बदल गये हो शेखर.. मॉडेलिंग की तैयारी कर रहे हो क्या? हे हे हे..." गौरी ने उसके सामने बैठते हुए अपरोक्ष रूप से शेखर के डील डौल और शकल सूरत की सराहना की...
"अरे नही यार.. कहाँ मॉडेलिंग? इंसान तो बदलते ही रहते हैं.. वक़्त के साथ.." शेखर ने दार्शनिक नज़रिए से कहा....
"सच! पर अगर कोई अब तक भी नही बदला हो तो?.." गौरी के चेहरे पर रहस्यमयी मुस्कान तेर गयी...
"क्या मतलब? शेखर सचमुच कुच्छ नही समझा था...
"एक मिनिट.." कहकर हंसते हुए गौरी अंदर गयी और दरवाजे के पिछे खड़ी शिल्पा को पकड़ कर बाहर खींचने लगी... शिल्पा लज्जा से मरी जा रही थी," आ.. छ्चोड़ मुझे.. प्लीज़.. छ्चोड़ दे ना..!"
तुम आज शाम आए ही नही छत पर.. आज तो तुम्हारा आना सब से ज़्यादा ज़रूरी था.. आज मैं तुमसे कुच्छ बोलना चाहती थी.. पहली बार.. और शायद आख़िरी बार भी.. पर मेरी किस्मत में शायद था ही नही.. एक बार तुमसे बोलना.. तुमहरा हाथ पकड़ कर रोना.. और बताना कि आँखों ही आँखों में तुम मेरे क्या बन गये हो....
मैं कल जा रही हूँ.. हमेशा के लिए.. पापा का ट्रान्स्फर हो गया है.. अब छत पर नज़र नही आऊँगी कभी.. पर तुम्हे भूल भी नही पाउन्गि.. तुम भी नही भूलोगे ना?
तुम सुबह देर से उठते हो.. इसीलिए लेटर तुम्हारे दोस्त बबलू को देकर जाउन्गि.. उम्मीद है वो तुम्हे दे देगा..
कभी बोल नही पाई तुमसे.. बोलने का बड़ा मन करता था.. कभी मिल नही पाई.. मिलने का बड़ा मन करता था.. कभी कह नही पाई.. कहने का बड़ा मन करता था.. आइ लव यू!
मैं बिल्कुल भी नही रो रही.. तुम भी रोना मत प्लीज़!
तुम्हारी,
(नाम मिट गया था.. शायद आँसुओं ने मिटा दिया,)
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अमन कागज को वापस पर्स में रखते हुए मुस्कुरा उठा.. पर उसकी आँखें तो छलक आई थी.. मुस्कुराहट शायद बेबस आँखों को दिलासा देने के लिए ही आई होगी...
आँखों से आँसू पोंचछते हुए जैसे ही वो गवरमेंट. कॉलेज के सामने से गुजरा, उसकी नज़र बाबबलू पर पड़ गयी," ओये बाबबलू!" अमन ने चिल्लाकर उसको पुकारा..
बाबबलू भागा हुआ उसके पास आया और खिड़की खोलकर गाड़ी में बैठ गया," क्या चक्कर है यार.. आजकल अंदर ही अंदर रहता है?"
"तू बता पहले? यहाँ लड़कियों के कॉलेज के गेट पर क्या काम है तेरा.. नौकरी माँगने आया है क्या?" अमन ने मज़ाक किया...
"अरे नौकरी करें हमारे दुश्मन.. मैं तो लाइन मार रहा हूँ... हे हे!"
"किस पर.. कोई दे रही है क्या..... लाइन?" अमन हंसा...
"दे देगी यार.. मैं तो अपना कर्म कर रहा हूँ.. देना दिलवाना तो प्रभु के हाथ में है.. क्या पता किस घड़ी किसी नजनीन को तरस आ जाए.. मेरी भारी जवानी पर... हे हे हे.. बता ना.. कहाँ जा रहा है?" बाबबलू ने आख़िर में पूचछा...
"ओह तेरी भरी जावाअनी.. कहीं चलकर आना है.. तेरे कर्म तो फिर भी होते रहेंगे.. चलें?" अमन ने पूचछा...
"चलो यार.. कभी तुझे मना किया है?" बाबबलू ने बाहर निकल कर वक़ार को पुकारा," मेरी गाड़ी ले जाना भाई.." फिर बैठकर खिड़की बंद कर ली और गाड़ी चल पड़ी.....
"अरे आंटी जी.. कोई है क्या?" अमन ने एक घर के बाहर जाकर आवाज़ लगाई...
"कौन है?" अंदर से लगभग भागती हुई एक छर्हरे बदन की लंबी सी गोरी लड़की दरवाजे तक आते हुए बोली और अमन को देखते ही खुश हो गयी,"अमन! आज कैसे याद आ गयी इस घर की.. आज तो बारिश होनी चाहिए!" और खिलखिलाते हुए दरवाजा खोल दिया...," आओ!"
अमन और बाबबलू दोनो टहलते हुए घर के अंदर जा पहुँचे..," आंटी जी कहाँ है गौरी?"
"वो तो नही हैं.. शाम तक आएँगी.. कुच्छ काम था?" गौरी ने उनको पानी देते हुए कहा...
"नही.. कुच्छ खास नही था.. मैं फिर आ जाउन्गा.. अच्च्छा!" अमन ने पानी पीकर गिलास टेबल पर रखा और खड़ा हो गया... बाबबलू ने भी वैसा ही किया....
"अर्रे.. ये भी कोई बात हुई... अभी आए और चल भी दिए.. बैठो ना.. चाय लाती हूँ बनाकर.." गौरी हक़ सा जताते हुए दरवाजे पर खड़ी हो गयी...
"नही गौरी.. आज जल्दी में हूँ.. वो शेखर आया है.. ज़्यादा देर अकेला छ्चोड़ा तो बुरा मान जाएगा.. मैं बाद में आउन्गा..." अमन ने उसको समझते हुए कहा..
शेखर का नाम अमन के मुँह से सुनकर गौरी के कान खड़े हो गये.. अचानक ही अस्चर्य की एक मीठी सी लहर उसके चेहरे पर दौड़ गयी.. फिर संभालते हुए बोली," शेखर आया है? कब? उसको क्यूँ नही लेकर आए..? कितने साल हो गये उसे शकल दिखाए हुए..?"
"वो.. दरअसल कुच्छ और भी दोस्त हैं वहाँ.. उनको अकेला छ्चोड़ना तो बिल्कुल ही अच्च्छा नही लगता.. शाम को भेज दूँगा.. अगर आया तो.." गौरी की बाजू से बाहर निकलता हुआ अमन बोला..," दरवाजा बंद कर लो.. हम जा रहे हैं..."
"ठीक है.. " गौरी चहकति हुई उनके साथ आई और दरवाजा बंद करते ही बदहवासी में अंदर की और दौड़ पड़ी... अंदर जाते ही उसने फोन उठाकर एक नंबर. मिलाया...
"गौरी, मैं क्लास में हूँ.. बाद में बात करती हूँ..." खुस्फुसती हुई सी आवाज़ फोन पर उभरी...
"शिल्पा, सुन तो.. फोन मत रखना.. बाद में पछ्तयेगि नही तो?" गौरी ने कहा...
"क्या हुआ.. ? तुम्हारी साँसें तेज क्यूँ चल रही हैं.. सब ठीक तो है.." शिल्पा की आवाज़ अब भी बहुत धीमी थी....
गौरी ने आँखें बंद करके अपनी छातियो पर हाथ रखा और बढ़ चली धड़कनो को काबू में करने की कोशिश की," हां.. बस क्या बताउ...? सुन.. वो.. शेखर आया हुआ है...!"
"क्य्ाआआअ?" शेखर का नाम सुनकर शिल्पा भूल ही गयी कि वो क्लास में है.. फिर हड़बड़ते हुए उसने फोन को छिपाने की कोशिश की तो पूरी क्लास में ठहाका गूँज उठा...
"गेट आउट ऑफ दा क्लास!" लेक्चरर ने पढ़ाना छ्चोड़ उसको एक लाइन का आदेश सुना दिया...
पूरी क्लास उम्मीद कर रही थी कि शिल्पा अब माफ़ कर देने के लिए गिड़गिडाएगी.. सब उसी की और देख रहे थे.. पर उसका जवाब सुनकर सभी चौंक पड़े," थॅंक्स सिर.. थॅंक यू वेरी मच!" शिल्पा ने ये सब भागते भागते ही कहा और क्लास से गायब हो गयी.. क्लास में सन्नाटा छा गया.. सब आँखें फाडे लेक्चरर की और देख रहे थे और लेक्चरर आँखें फाडे दरवाजे की और...
शिल्पा ने भागते भागते ही गेट पर आते ही ऑटो पकड़ी और बिना तोल मोल किए बोली," जल्दी चलो.. सीधे..!"
"कहाँ है वो?" गिरते पड़ते संभालते शिल्पा गौरी के घर पहुँची.. बड़ी मुश्किल से धौकनी की तरह चल रही अपनी साँसों पर काबू पाने की कोशिश करती हुई वह अंदर पहुँची और गौरी के अलावा किसी को भी वहाँ ना पाकर खिन्न हो गयी...
गौरी लगातार उसकी और देख कर मुस्कुरा रही थी.. शिल्पा के सोफे पर पसरते ही वो बोली," पूरी बात सुन तो लेती.. मुझे पता था.. तुम अब सीधे यहीं आओगी...!"
"नही.. वो तो प्रोफेसर ने निकाल दिया.. पर है कहाँ शेखर?" टेबल पर रखे जग को उठाकर गतगत पानी पीते हुए वो बोली....
"अमन आया था.. उसी ने बताया कि शेखर आया हुआ है.. अभी वो उसी के पास है.. शाम को आएगा शायद...!" गौरी उठकर जग को फ्रीज़ के उपर रखते हुए बोली...
"कौन अमन?" शिल्पा ने पूचछा....
"अरे वही यार.. जो पहले हमारे घर के पास रहते थे... याद नही?"
"ओह हां... पर शेखर उसका दोस्त है क्या?" शिल्पा ने उत्सुकतावश पूचछा...
"हां.. वो तो बचपन से ही अच्छे दोस्त हैं.. तुझे अमन का नाम याद नही है.. शकल से ज़रूर पहचान लोगि..." गौरी ने बताया...
"अभी रहेगा क्या यहीं.. शेखर!" शिल्पा उठकर उसके पास आ गयी...
"मुझे क्या पता? उसी से पूच्छ लेना...!" गौरी शरारत से मुस्कुराने लगी....
शिल्पा ने अपने चेहरे पर तेर गयी शरम की लाली छिपाने के लिए तकिया उठाकर गौरी के मुँह पर दे मारा," क्या अब भी वो इतना ही शर्मिला होगा? 3 साल हो गये उसको देखे हुए... तुझे याद है जब एक बार हम हाइड आंड सीक खेल रहे थे तो ग़लती से वो उसी रज़ाई में घुस गया था जिसमें मैं छिपि हुई थी.. हे हे हे हे.. पता है कैसे उच्छल पड़ा था.. जैसे उसको किसी बिच्छू ने काट लिया हो.. उसके बाद वो कभी हमारे साथ नही खेला... मैं वो दिन कभी नही भूल सकती गौरी.. पूरी जिंदगी नही भूल सकती..." कहते हुए गौरी ने पिछे सिर टीका मंद मंद मुस्कुराते हुए आँखें बंद कर ली..
"हां.. तूने बताया था.. वो पूरा का पूरा तेरे उपर लेट गया था... !" गौरी ने कुच्छ और भी याद दिलाने की कोशिश की.. पर शायद शिल्पा तो पहले से ही उसी पल में खोई हुई थी... कैसे अंजाने में ही रज़ाई में घुसते हुए उसका एक हाथ सीधा शिल्पा की उभरती हुई छाती पर आकर जम गया था और उसके मुँह से कामुक सिसकी निकल गयी थी... पर वो झटका बिजली के झटके जैसा ही था.. जितनी तेज़ी से उसके हाथ ने उस के लड़कीपाने के अहसास को जगाया था.. उतनी ही तेज़ी से वो वापस भी हट गया.. और शिल्पा तड़प उठी थी.. वो तड़प आज तक उसके सीने में आग लगाए हुए थी.. पर उस आग को बुझाने के लिए उसको 20 की होने पर भी कोई और हाथ गवारा नही था.. उसको सिर्फ़ वही हाथ चाहिए था.. वो उस'से तब भी प्यार करती थी.. और आज भी करती है.. सिर्फ़ कभी बोल नही पाई थी...
"चार साल बाद!" आँखें बंद किए हुए ही शिल्पा के मुँह से निकला...
"क्या?" गौरी ने पूचछा...
"आज चार साल बाद वो मुझे दिखाई देगा.. भूल तो नही गया होगा ना...!" शिल्पा ने दोहराया.. और आँखें खोल दी...
"तुझे कैसे भूल सकता है वो? तू ही तो उस'से सबसे ज़्यादा झगड़ा करती थी.. और फिर मनाती भी तो तू ही थी... और भूल भी गया हो तो तू याद दिला देना.. रज़ाई वाली बात बताकर.. हे हे हे...!" गौरी हँसने लगी....
"वो फिर भाग जाएगा.. रज़ाई वाली बात याद दिला दी तो.. झेँपू कहीं का.. हे हे.. कितना प्यारा था ना वो.." शिल्पा की आँखें चमक उठी....
"था क्यूँ बोल रही है पागल... वो तो अभी भी है.." गौरी ने उसको टोका....
"हे हे हे.. पर क्या वो अब भी इतना ही क्यूट होगा.. लल्लूराम!" खुद ही कहकर शिल्पा खुद ही शर्मा गयी.. तकिया उठाकर अपने चेहरे को ढक लिया...
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यार.. मेरी तो समझ में नही आ रहा कि नितिन आख़िर यहाँ आ क्यूँ रहा है? और वो भी श्रुति को लेकर?" रोहन विचलित सा बैठा कुच्छ सोचते सोचते अचानक बोल पड़ा...
"अरे भाई इसमें इतना दिमाग़ खपाने वाली बात कौनसी है.. आ रहा है तो आने दे.. उसकी भी सुन लेना.. दिक्कत क्या है?" शेखर ने रोहन के पास बैठकर उसके कंधे पर हाथ रख लिया...
"वो बात नही है यार... पर वो रहेंगे कहाँ? नितिन को भी अड्जस्ट कर लेते.. पर श्रुति...!" बोलते बोलते वह अचानक रुक गया...
पास बैठा रवि मौके का फायडा उठाने से नही चूका," यार, लड़की की इतनी दिक्कत मान रहा है तो मैं रख लूँगा ना, अपने रूम में.. हे हे हे...!"
"तुझे इसके अलावा भी कोई काम है कि नही.. जब देखो..." रोहन बौखला सा गया...
"यार, इस बात को तो भूल ही जाओ.. इतनी बड़ी कोठी मैं क्या 6 लोग भी नही रह सकते..?" शेखर ने उसको फिर समझाने की कोशिश की...," अगर ज़रूरत हुई भी तो हम रूम शेर भी तो कर सकते हैं.. लड़की अकेली रह लेगी... क्या दिक्कत है.."
"वो बात नही है यार.. पहले ही आपने और अमन भाई ने हम पर अहसान कर रखा है...." रोहन बोल ही रहा था कि शेखर ने उसको प्यार से लताड़ लगाई..," तुमने खूब दोस्त माना भाई.. अहसान की बात कहकर तो मुझे शर्मिंदा ही कर दिया.. अमन को तुम ठीक से जानते नही हो.. यारों का यार है वो.. अगर तुम पूरी जिंदगी भी यहाँ रहना चाहो तो उसके चेहरे पर शिकन नही आएगी.. बुल्की वो तो और भी खुश होगा.. अकेला रह रह कर ही तो वो शराब का सहारा लेने लग गया.. उस जैसा 'दोस्त' ना मैने कभी देखा है.. और शायद ना ही तुम कभी देख पाओगे.. जस्ट रिलॅक्स आंड कॉन्सेंट्रेट ऑन नीरू, ओके?"
"ठीक है यार... पर मैं कोशिश करूँगा उन्हे जल्द वापस भेजने की..." रोहन ने कहा ही था कि अमन कमरे में आ गया," किसको जल्दी भेज रहे हो भाई?"
"वो यार.. मेरा एक दोस्त और आ रहा है कल.. एक लड़की भी है साथ में...!" रोहन ने जवाब दिया...
"अरे वाह.. फिर तो पार्टी होनी चाहिए यार... वो.. लड़की पर्सनल है क्या?" अमन ने कुच्छ रुककर पूचछा...
"नही यार.. वो ऐसी नही है.. बहुत ही शरीफ और भोली है.. उसके साथ कोई लाफदा नही प्लीज़... मुझे तो यही समझ नही आ रहा की नितिन उसको लाएगा कैसे? मतलब उसके घर पर क्या कहेगा....?" रोहन ने अमन की और देखते हुए कहा...
"शरीफ लड़कियों से तो मुझे वैसे ही डर लगता है भाई.. मैं तो चालू लड़कियों से ही काम चला लेता हूँ.. चल आने दे.. देखते हैं तेरी उस शरीफ और शर्मीली लड़की को भी.. आज का क्या प्रोग्राम है.. पार्टी करते होगे ना?" कहकर अमन हँसने लगा...," और तेरा क्या ख़याल है.. सलमा को बुलाउ कि नही.. रात को आने को बोल रही है?" उसने रवि की और आँख मारी....
"कितने बजे तक आ जाएगी..? हा हा हा!" रवि ने कहकर ठहाका लगाया...
उसकी बात का जवाब देने ही वाला था कि अमन को गौरी की बात याद आ गयी, उसने अमन की और देखा और बोला," गौरी याद है तुम्हे?"
"गौरी? ... अच्च्छा गौरी.. हा...हां.. याद है.. क्या हुआ?" शेखर को अचानक याद आ गया...
"तुम्हे बुला रही थी.. घर पर..! शाम को चले जाना... एक बार.." अमन ने कहा..
"मुझे? .. पर मुझे क्यूँ?" शेखर ने अचंभित होते हुए पूचछा...
"ये ले! ये भी मैं ही बताउन्गा.. कुच्छ चक्कर होगा तुम्हारा उसके साथ.. जाने से पहले...!" अमन ने चटखारा लिया...
"नही यार.. ऐसी तो कोई बात थी ही नही... जहाँ तक मुझे याद है.. और एक और भी तो लड़की रहती थी उनके साथ वाले घर में.. उम्म्म्म...शिल्पा!" शेखर को नाम अच्छि तरह याद था.. पर जान बूझ कर उसने याद सा करने का नाटक किया.. नही तो अमन उसकी अभी लेनी शुरू कर देता... 'रज़ाई' वाली बात वो भी आज तक नही भूला था.. आख़िर पहली बार उसने लड़की की नरम और गरम गोलाइयों को च्छुआ था.. पहला स्पर्श कौन भूल सकता है भला...
"हुम्म.. वो भी वहीं रहती होगी अब भी.. उसकी मम्मी को देखा था मैने.. गाड़ी से उतरते हुए.. उसके साथ कुच्छ पंगा था क्या?" अमन ने पूचछा...
"सबको अपने जैसा नंगा क्यूँ समझता है तू.. लड़की का नाम आते ही तुझे 'पंगा' नज़र आने लगता है.." शेखर कहते ही हँसने लगा....
"ठीक है.. चला जाएगा ना... चला जाना यार एक बार.. नही तो वो समझेगी मैने बोला ही नही होगा...!" अमन ने सीरीयस होते हुए कहा...
"हुम्म.. चला जवँगा...!" शेखर की आँखों में शिल्पा को देखने की ललक उभर आई थी.....
करीब 5 बजे एक गाड़ी गौरी के घर के सामने रुकी.. शेखर का पलकें बिच्छायें इंतजार कर रही शिल्पा की दिल की धड़कने अचानक बढ़ गयी,"गौरी, देख तो! आ गया क्या?"
"आया होगा तो अंदर ही आएगा.. वो क्या घर भूल गया होगा?" गौरी ने मज़ाक में कहा और खिड़की खोल कर बाहर झाँकने लगी....
शेखर ने गाड़ी से उतरते ही शिल्पा के घर पर निगाह डाली.. कोई नज़र नही आया.. बेताब निगाहों से बार बार उधर ही देखते हुए वो गौरी के घर के दरवाजे पर जाकर खड़ा हो गया.. अपने कपड़े दुरुस्त किए और धीरे से नॉक किया...
"आ गया.. जा.. तू ही उसका स्वागत कर..!" गौरी हँसने लगी...
"नही यार.. मुझे शर्म आ रही है.. जा ना.. जल्दी जा..!" शिल्पा ने हड़बड़ाहट में अपने आपको उपर से नीचे तक देखा.. उसका ध्यान सबसे पहले अपनी मस्त सुडौल चूचियो पर ही गया. 4 साल पहले से शेखर के हाथों के स्पर्श को संजोए उसके 2 छ्होटे अमरूद अब रसीले दानो वाले अनार बन चुके थे.. ब्रा ना होने की वजह से टॉप के उपर से ही दानो की सीधी नोक हल्की सी महसूस की जा सकती थी... "हाए राअं.. मैं क्या करूँ..?" आनन फानन में खुद से ही सवाल करती हुई शिल्पा शेखर को गौरी के साथ आता देख ड्रॉयिंग रूम के साथ वाले कमरे में छिप गयी...
शेखर को नज़र भर देखने से ही शिल्पा के दिल में हुलचल सी मच गयी.. कल तक जिसको वो लल्लूराम कहकर चिड़या करती थी, आज शारीरिक सौष्ठव और सौंदर्या में किसी फिल्मी हीरो से कम नही लग रहा था.. शिल्पा दरवाजे के पिछे च्चिप कर अपनी साँस रोक कर खड़ी हो गयी...
गौरी शेखर को शिल्पा के रूप में सर्प्राइज़ देना चाहती थी.. पर अंदर आते ही जब उसने शिल्पा को ही गायब पाया तो उसकी हँसी छ्छूट गयी....
"क्या हुआ?" शेखर ने बैठते हुए पूचछा..," अंकल आंटी जी नही हैं क्या?"
"नही.. कुच्छ नही..!" गौरी ने मंद मंद मुस्कुराते हुए कहा," मम्मी बाहर गयी हैं.. और पापा तो हफ्ते में ही आते हैं.. ये लो!" गौरी पानी लेकर आई थी..
"ओह थॅंक्स.. यहाँ तो कुच्छ भी नही बदला.. सब कुच्छ वैसा का वैसा ही है..!" शेखर शिल्पा के बारे में पूच्छने के लिए भूमिका बनाने लगा...
"पर तुम तो बहुत बदल गये हो शेखर.. मॉडेलिंग की तैयारी कर रहे हो क्या? हे हे हे..." गौरी ने उसके सामने बैठते हुए अपरोक्ष रूप से शेखर के डील डौल और शकल सूरत की सराहना की...
"अरे नही यार.. कहाँ मॉडेलिंग? इंसान तो बदलते ही रहते हैं.. वक़्त के साथ.." शेखर ने दार्शनिक नज़रिए से कहा....
"सच! पर अगर कोई अब तक भी नही बदला हो तो?.." गौरी के चेहरे पर रहस्यमयी मुस्कान तेर गयी...
"क्या मतलब? शेखर सचमुच कुच्छ नही समझा था...
"एक मिनिट.." कहकर हंसते हुए गौरी अंदर गयी और दरवाजे के पिछे खड़ी शिल्पा को पकड़ कर बाहर खींचने लगी... शिल्पा लज्जा से मरी जा रही थी," आ.. छ्चोड़ मुझे.. प्लीज़.. छ्चोड़ दे ना..!"