अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी compleet

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raj..
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Unread post by raj.. » 14 Dec 2014 10:56

नीरू के पापा सीधे बस-स्टॅंड ही पहुँचे... अंदर आए और अमृतसर जाने वाली बस के पास जाकर खड़े हो गये.. अचानक उनको घर से फोन आ गया.. वो वापस पलटे और थोड़ी दूर खड़े होकर घर फोन निकाल लिया..

"हांजी" मम्मी की आवाज़ सुनकर पापा ने रुनवासी आवाज़ में पूचछा....

"ऋतु कह रही है कि वो अमृतसर जाने की बोल रही थी.. अपनी सहेली 'गरिमा' के पास...." मम्मी ने बताया....

ऋतु भी तब तक वहीं आ चुकी थी..

"षुक्र है भगवान का....!" पापा ने राहत की साँस ली..," वही ना जो हॉस्टिल में रहती है.....?"

"हांजी.. वही!" मम्मी ने हामी भारी....

"ठीक है... तुम वहाँ फोन मत करना... मैं उसको लेकर ही आउन्गा... रख दो!" पापा ने कहा और फोन काट दिया.....

फोन वापस जेब में डाल कर पापा अमृतसर वाली बस में चढ़ गये...

उन्होने सवारियों पर नज़र डाली, पर नीरू वहाँ नही थी... वो सीधे कंडक्टर के पास पहुँचे..,"इस'से पहले कोई बस गयी है क्या अमृतसर....?"

"हांजी.... बस 15 मिनिट पहले ही निकली है... क्यूँ?" कंडक्टर ने विनम्रता से पूचछा....

"नही... कुच्छ नही..." पापा ने कहा और तेज़ी से उतरते हुए बाहर निकल कर अपनी गाड़ी में बैठे और गाड़ी अमृतसर की और दौड़ा दी.....

--------------------------------------------------------------------------------------------

5-7 मिनिट का टाइम मिलने पर नीरू बस से उतर कर बस-स्टॅंड के PCओ बूथ में चली गयी थी... वहीं से उसने गरिमा के हॉस्टिल में फोन मिलाया.. पर किसी ने फोन उठाया नही....

वह बाहर निकालने ही वाली थी कि उसने पापा को बस से बाहर खड़े देख लिया... नीरू एक दम सहम गयी और वापस पी.सी.ओ. में घुस गयी...

"हांजी मेडम! फोन कर लिया हो तो बाहर आ जाइए... मुझे भी करना है..." बाहर नीरू के बाहर आने की प्रतीक्षा कर रहे आदमी ने कहा...

"एक मिनिट प्लीज़...." कहकर नीरू ने मजबूरी में रिसीवर उठाकर नंबर. रिडाइयल कर लिया...

पर फोन नही उठाया गया... नीरू ने बाहर देखा.. पापा बस से उतरे थे... नीरू ने एक बार और फोन मिला लिया....

"हेलो!" इस बार किसी ने फोन उठा लिया था....

"एक बार रूम नो. 13 से गरिमा को बुला देंगे प्लीज़!" नीरू ने रिक्वेस्ट की...

"कॉलेज में 3 दिन की छुट्टिया हैं... सभी बच्चे घर पर गये हुए हैं... आप कौन?" उधर से आवाज़ आई...

सुनते ही बुरी तरह से हताश होकर नीरू ने फोन रख दिया... पापा जा चुके थे और उसी वक़्त बस भी चल पड़ी... वह बाहर निकली और बस-स्टॅंड के पिछे चली गयी...

"हे भगवान! अब क्या करूँ..." विडंबना और असमन्झस के मारे नीरू की आँखों से आँसू छलक उठे....

--------------------------------------------------------------------------------

पापा ने बस पकड़ने में ज़्यादा देर नही लगाई... बस को रुक्वाकर वो गाड़ी में चढ़े.... पर उस'में भी नीरू को ना पाकर हताश हो गये... बस से उतरकर उन्होने गाड़ी अमृतसर की और ही दौड़ा दी... होस्टल में जाकर नीरू का इंतजार करने के अलावा उनके पास कोई चारा बचा ही नही था...

उधर नीरू के पास भी कोई चारा नही बचा था... लगभग वह आधे घंटे तक इसी असमन्झस में फँसी रही कि घर वापस जाउ या नही..... फिर अचानक उसके मंन में जाने क्या ख़याल आया कि वह बाहर निकली और एक ऑटो में बैठ गयी..,"चलो भैया!"

ओह माइ गोद! नीरू अमन की कोठी के सामने खड़ी थी...

"वो घर पर हैं?" नीरू ने बाहर खड़े नौकर से पूचछा....

"जी.. एक मिनिट!" कहकर राजू अंदर चला गया... सबसे पहले उसको रवि मिला अंदर...

"साहब! एक मे'म साहब आई हैं.. पूच्छ रही हैं आप लोगों को.. क्या बोलूं?"

"कौन है?" कहते हुए रवि बाहर निकल आया...

बाहर आते ही एक पल को तो वो जड़ सा होकर रह गया.. पागलों की तरह उसको कुच्छ देर तक दूर से ही देखता रहा.. फिर अपने सिर को पकड़ कर बेतहाशा अंदर की और भागा..,"भाई.... भाई!"

"क्या हो गया? चिल्ला क्यूँ रहा है..." रोहन ने पूचछा....

"ववो... वो आप खुद ही देख लो... मैं नही बताता..." रवि के चेहरे की चमक बता रही थी कि कुच्छ ना कुच्छ अच्च्छा ही हुआ है!

"कहाँ देख लूँ.. बता तो सही... तू इतना उतावला क्यूँ हो रहा है..." रोहन ने आस्चर्य से पूचछा...

"नही नही... तुम मत देखो... तुम कपड़े बदल लो... मैं लेकर आता हूँ उन्हे अंदर...." रवि ने कुच्छ सोचते हुए कहा...

"कपड़े बदल लूँ?" रोहन की कुच्छ समझ में नही आया.. रवि को घूर कर देखता हुआ रोहन बाहर निकल आया...

"आअ...आप!" रोहन की भी नीरू को देखते ही हवाइयाँ उड़ने लगी... वह तेज़ी से गेट की तरफ गया और फिर से बोला..,"आप... यहाँ?"

"अंदर आ जाउ?" नीरू ने मुरझाए चेहरे से ही कहा...

"ह..हां हां.. आइए ना... आप... क्या हो गया?" रोहन नीरू के साथ साथ चलता हुआ बोल रहा था,"सब ठीक तो है ना...."

नीरू के चेहरे से लग नही रहा था कि सब ठीक है... इसीलिए वो गहरी असमन्झस में था....

"हुम्म... वो... तुम क्या कह रहे थे पुराने टीले के बारे में!" नीरू ने सहजता से पूचछा...

"वो.. मुझे सच में सपने आते हैं.. आप की.... रवि की कसम.. भगवान की कसम... मैं कुच्छ भी झूठ नही बोल रहा था.." रोहन बात को समझ नही पाया था... तब तक अमन और रवि भी वहीं आ चुके थे...

"आप बैठिए ना!" अमन ने आग्रह किया....

"मेरा वो मतलब नही है" नीरू ने बैठते हुए कहा..," आप कह रहे थे ना कि टीले पर चल कर मुझे सब याद आ जाएगा..."

"जी... वो कह रही थी.. नीरू... सपने में.. सच कह रहा हूँ...." रोहन अब तक खड़ा ही था...

"तो चलो...!" नीरू ने कहा....

"कहाँ?" रोहन ने पूचछा....

"पुराने टीले पर..." नीरू ने जवाब दिया....

"क्या? सच ?" रोहन की खुशी का कोई ठिकाना नही रहा.. पर अगले ही पल वा मायूस होते हुए बोला,"पर वो तो यहाँ से बहुत दूर है.. आज चलकर वापस नही आ सकते..."

"कितने दिन लग जाएँगे... 3, 4, हफ़्ता?" नीरू ने पूचछा...

"हां.. हफ्ते में तो सब कुच्छ हो जाएगा... मतलब हम आराम से जा सकते हैं... पर....?" रोहन पूच्छना चाहता था कि घर वाले क्या कहेंगे.... पर नीरू ने बीच में ही टोक दिया...

"ठीक है... चलो!" नीरू ने उदासी भरे चेहरे से ही कहा...

--------------------------------------------------------------------------

"हे भगवान! पता नही कहाँ चली गयी वो पागल! यही करना था तो बता तो देती... हम रहने देते शादी से...." घर वापस आकर उसके पापा सबके साथ गहरी सोच में बैठे हुए थे....

"पर अगर होस्टल बंद है तो कहाँ गयी होगी... कहीं कुच्छ हो गया तो उसको.. वो तो अकेली कहीं जाती भी नही थी..." मम्मी लगातार आँसू बहाए जा रही थी....

"भाई साहब! उनको तो मना कर दो.. कम से कम वहाँ वाला पंगा तो नही रहेगा..!" ऋतु के पिताजी ने कहा....

"क्या कहूँ? ... कैसे कहूँ? मैं अमृतसर जा रहा था तो उनका फोन आया था.. मैने तब तो कुच्छ कहा भी नही.. अब तो उनके रिश्तेदार भी आ चुके होंगे... ये कैसा दिन दिखाया भगवान!" पापा की आँखें भी गीली हो गयी...

अचानक उनको बाहर दो गाड़ियाँ रुकने की आवाज़ सुनाई दी.. सब सहम गये... बाहर निकले तो देखा वही थे...

"अब क्या किया जाए?" बड़बड़ाते हुए नीरू के पापा मानव के पापा की और बढ़े...

मानव के पापा बड़ी ही गरम जोशी से आकर उनसे गले मिले...," अरे! ऐसे चेहरा क्यूँ लटका रखा है यार... ये लो! संभलो. मेरा बेटा और शीनू बिटिया को मुझे सौंप दो..." उन्होने खिलखिलाते हुए कहा..

मानव ने आकर उनके इज़्ज़त से चरण च्छुए... पर ग्लनीवश नीरू के पापा उनको आशीर्वाद तक देना भूल गये...

"मेरे साथ आएँगे प्लीज़.. कुच्छ बात करनी है...!" नीरू के पापा ने आहिस्ता से कहा....

"देखो भाई.. दहेज की बात मत करना.. हम बेटा दे रहे हैं.. दहेज नही देंगे..." कहकर मानव के पापा ने अट्टहास किया...

"आप आइए तो सही.. एक बार.. उपर.." नीरू के पापा ने उनका हाथ पकड़ा और उपर जाने लगे... ऋतु के पापा भी उनके साथ ही थे... आने वाली पार्टी में हर किसी के चेहरे से उल्लास झलक रहा था... सब नीचे ही रहकर घर वालों से मेल मिलाप में लग गये.....

--------------------------------------------------------------------

"ये क्या कह रहे हैं भाई साहब! आपको पहले ही पूच्छ लेना चाहिए था... अब.. ये तो मेरी पगड़ी उच्छलने वाली बात हो गयी" सारा माजरा सुनते ही मानव के पिताजी के होश फाख्ता हो गये.. चेहरा का सारा रंग उड़ सा गया...

"भाई साहब मैं मानता हूँ... पर आप किसी तरह से आज का कार्यक्रम टाल दीजिए.. कुच्छ दिन बाद तो वो वापस आ ही जाएगी... आपको तो पता है नीरू के नेचर का... वो ऐसी नही है... उसके आने के बाद हम कोशिश करेंगे कि 'वो' मान जाए..." नीरू के पापा ने सिर झुका कर कहा...

"कमाल कर रहे हैं आप, भाई साहब! मेरे रिश्तेदारों को में क्या कहूँ? ये कि मेरी बहू आज कहीं चली गयी है बिना बताए... और फिर आने के बाद भी उसको ज़बरदस्ती शादी के लिए तैयार करने का क्या फायडा.. कल को फिर चली जाएगी.. हमारे घर से... नही नही! ये नही हो सकता भाई साहब!" मानव के पापा खफा से हो गये....

"तो फिर आप ही बतायें.. मैं क्या करूँ? ये तो उन्होनी है..." नीरू के पापा ने सिर झुकाए हुए ही कहा...

"ना ना! उन्होनी नही, ये आपकी नादानी है.. ज़बरदस्ती आपको अड़ना ही नही चाहिए था, रिश्ते के लिए.. वो मना कर रही थी तो आप कल तक भी फोन करके बात टाल सकते थे... हम कुच्छ भी कह देते.. पर आज की तरह ज़िल्लत का सामना ना करना पड़ता..." मानव के पापा ने गहरी साँस ली....

"अब पिच्छली बातों को दोहराने से क्या फायडा भाई साहब.. जो होना था, वा हो चुका.. ये सोचिए की अब क्या कर सकते हैं.. " ऋतु के पापा ने बीच में बोलते हुए कहा....

"यार, अब करने को रह क्या गया... मैं तो किसी को मुँह दिखाने लायक रहा नही.. मुझे तो बहू चाहिए थी.. वो यहाँ है ही नही..." मानव के पापा बहुत ज़्यादा हताश थे...

"एक बात कहूँ.. भाई साहब! अगर पसंद आए तो...." कहकर ऋतु के पापा रुक गये...

बिना कुच्छ बोले ही नीरू और मानव के पापा उनकी और देखने लगे...

"अगर आपको मेरा घर बार पसंद हो तो मैं अपनी बेटी देने को तैयार हूँ..." ऋतु के पापा ने कहा...

नीरू के पापा अवाक से उसके मुँह की और देखने लगे....

"वो तो लंबी कहानी हो गयी भाई साहब.. मानव उसको देखेगा.. अब शीनू तो उसको बेहद पसंद थी... आप तो समझते होंगे आज कल के बच्चों को.... फिर क्या पता आपकी बेटी को भी ऋतु की तरह मानव पसंद नही आया तो...और फिर ये सब एक ही दिन में तो नही हो सकता ना..." मानव के पापा के चेहरे पर अब भी हताशा और निराशा ही थी...

"मेरी बेटी नीचे है.. मैं उसकी मा और ऋतु को बुला लेता हूँ.. आप मानव को बुला लीजिए.. देख लीजिए अगर बात बन'ती है तो?" ऋतु के पापा ने कहा...

और कोई चारा अब बचा भी तो नही था... वो बाहर निकले और मानव को उपर बुलाया.....

----------------------------------------------------------------------

मानव भी सारी बात सुनकर सन्न रह गया.. अगले ही पल उसको अहसास हुआ कि हो ना हो नीरू रोहन के पास ही है... पर फिर वही बात होती.. ज़बरदस्ती का रिश्ता... मानव ने अपने पापा के चेहरे पर फैली चिंता की लकीरों को देखा और भरे गले से कहा," ठीक है पापा! जैसा आप ठीक समझे करें.. मुझे कोई ऐतराज नही है..."

पापा ने लपक कर खड़ा होते हुए अपने बच्चे को बाहों में भर लिया,"ऐसी होती है औलाद.. मुझे तुम पर.. गर्व है बेटा...!" आँसू उनकी आँखों से निर्झर बहने लगे....

"आप ऐसा क्यूँ कर रहे हैं पापा.. मैने ऋतु को देखा है... मुझे पसंद है ये रिश्ता... मैं ही पागल था... मैं कभी नीरू की आँखों के भाव पढ़ ही नही पाया.. आप ऋतु से पूच्छ लें... अगर उनको मजूर हो तो ये मेरा सौभाग्य ही होगा...." मानव का गला रुंध सा गया था....

"हमें माफ़ कर देना बेटा... हमसे चूक हो गयी..." नीरू के पापा ने खड़े होकर पासचताप सा प्रकट किया...

"आप भी अंकल... उपर वाले की मर्ज़ी के बगैर कभी कुच्छ होता है क्या? कोई ग़लती नही हुई आपसे.. प्लीज़ मुझे शर्मिंदा ना करें..." मानव ने कहा तो नीरू के पापा भी खुद को उसको अपनी बाहों में भरने से ना रोक सके....

---------------------------------------------------------------

जब ऋतु उपर आई तो उसको आभाष भी नही था कि क्या से क्या हो गया है.. वह तो यही सोच रही थी कि नीरू के बारे में पूच्छने के लिए ही उसको बुलाया गया है....

"बेटी... अगर मानव से शादी करने में तुम्हे कोई ऐतराज ना हो तो हमारी इज़्ज़त बच जाएगी.." मानव के पापा ने सीधे सीधे ही पूच्छ लिया....

ऋतु को अपने कानो पर यकीन ही नही हुआ.. लंबा छर्हरा इनस्पेक्टर उसके सामने खड़ा उसको ही देख रहा था," म्म..मैं?"

"कोई ज़बरदस्ती की बात नही है बेटी.. तुम्हारे पापा ने हम पर उपकार करने के बहाने ही ये उपाय सुझाया है... पर अगर तुम्हे कोई ऐतराज है तो....

ऋतु ने मानव से नज़रें मिलाई और शर्मकार अपनी मम्मी के पहलू में छिप गयी....

"बोल दे बेटा.. जो कुच्छ भी तेरे मंन में है बोल दे...!" मम्मी ने उसको दुलार्ते हुए कहा...

"मुझे क्यूँ ऐतराज होगा मम्मी... मेरे लिए तो ये सौभाग्य की बात होगी.. और फिर इस'से अच्च्छा हल निकल भी नही सकता..."ऋतु ने मम्मी के कान में धीरे से कहा.. पर सुन सबने लिया.....

इसके साथ ही घर में फिर से खुशियाँ फैल गयी...

मौका देखकर नीरू के पापा ऋतु के पापा के पास गये," आपने मुझे बचा लिया भाई साहब! मैं तो बर्बाद ही हो जाता... ये ग्लानि लेकर जी नही पाता मैं...." और दोनो एक दूसरे से गले मिलकर मिनूटों आँसू बहाते रहे... खुशी के भी, और गम के भी.....

क्रमशः..................................


raj..
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Unread post by raj.. » 14 Dec 2014 10:59

नीरू के पापा सीधे बस-स्टॅंड ही पहुँचे... अंदर आए और अमृतसर जाने वाली बस के पास जाकर खड़े हो गये.. अचानक उनको घर से फोन आ गया.. वो वापस पलटे और थोड़ी दूर खड़े होकर घर फोन निकाल लिया..

"हांजी" मम्मी की आवाज़ सुनकर पापा ने रुनवासी आवाज़ में पूचछा....

"ऋतु कह रही है कि वो अमृतसर जाने की बोल रही थी.. अपनी सहेली 'गरिमा' के पास...." मम्मी ने बताया....

ऋतु भी तब तक वहीं आ चुकी थी..

"षुक्र है भगवान का....!" पापा ने राहत की साँस ली..," वही ना जो हॉस्टिल में रहती है.....?"

"हांजी.. वही!" मम्मी ने हामी भारी....

"ठीक है... तुम वहाँ फोन मत करना... मैं उसको लेकर ही आउन्गा... रख दो!" पापा ने कहा और फोन काट दिया.....

फोन वापस जेब में डाल कर पापा अमृतसर वाली बस में चढ़ गये...

उन्होने सवारियों पर नज़र डाली, पर नीरू वहाँ नही थी... वो सीधे कंडक्टर के पास पहुँचे..,"इस'से पहले कोई बस गयी है क्या अमृतसर....?"

"हांजी.... बस 15 मिनिट पहले ही निकली है... क्यूँ?" कंडक्टर ने विनम्रता से पूचछा....

"नही... कुच्छ नही..." पापा ने कहा और तेज़ी से उतरते हुए बाहर निकल कर अपनी गाड़ी में बैठे और गाड़ी अमृतसर की और दौड़ा दी.....

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5-7 मिनिट का टाइम मिलने पर नीरू बस से उतर कर बस-स्टॅंड के PCओ बूथ में चली गयी थी... वहीं से उसने गरिमा के हॉस्टिल में फोन मिलाया.. पर किसी ने फोन उठाया नही....

वह बाहर निकालने ही वाली थी कि उसने पापा को बस से बाहर खड़े देख लिया... नीरू एक दम सहम गयी और वापस पी.सी.ओ. में घुस गयी...

"हांजी मेडम! फोन कर लिया हो तो बाहर आ जाइए... मुझे भी करना है..." बाहर नीरू के बाहर आने की प्रतीक्षा कर रहे आदमी ने कहा...

"एक मिनिट प्लीज़...." कहकर नीरू ने मजबूरी में रिसीवर उठाकर नंबर. रिडाइयल कर लिया...

पर फोन नही उठाया गया... नीरू ने बाहर देखा.. पापा बस से उतरे थे... नीरू ने एक बार और फोन मिला लिया....

"हेलो!" इस बार किसी ने फोन उठा लिया था....

"एक बार रूम नो. 13 से गरिमा को बुला देंगे प्लीज़!" नीरू ने रिक्वेस्ट की...

"कॉलेज में 3 दिन की छुट्टिया हैं... सभी बच्चे घर पर गये हुए हैं... आप कौन?" उधर से आवाज़ आई...

सुनते ही बुरी तरह से हताश होकर नीरू ने फोन रख दिया... पापा जा चुके थे और उसी वक़्त बस भी चल पड़ी... वह बाहर निकली और बस-स्टॅंड के पिछे चली गयी...

"हे भगवान! अब क्या करूँ..." विडंबना और असमन्झस के मारे नीरू की आँखों से आँसू छलक उठे....

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पापा ने बस पकड़ने में ज़्यादा देर नही लगाई... बस को रुक्वाकर वो गाड़ी में चढ़े.... पर उस'में भी नीरू को ना पाकर हताश हो गये... बस से उतरकर उन्होने गाड़ी अमृतसर की और ही दौड़ा दी... होस्टल में जाकर नीरू का इंतजार करने के अलावा उनके पास कोई चारा बचा ही नही था...

उधर नीरू के पास भी कोई चारा नही बचा था... लगभग वह आधे घंटे तक इसी असमन्झस में फँसी रही कि घर वापस जाउ या नही..... फिर अचानक उसके मंन में जाने क्या ख़याल आया कि वह बाहर निकली और एक ऑटो में बैठ गयी..,"चलो भैया!"

ओह माइ गोद! नीरू अमन की कोठी के सामने खड़ी थी...

"वो घर पर हैं?" नीरू ने बाहर खड़े नौकर से पूचछा....

"जी.. एक मिनिट!" कहकर राजू अंदर चला गया... सबसे पहले उसको रवि मिला अंदर...

"साहब! एक मे'म साहब आई हैं.. पूच्छ रही हैं आप लोगों को.. क्या बोलूं?"

"कौन है?" कहते हुए रवि बाहर निकल आया...

बाहर आते ही एक पल को तो वो जड़ सा होकर रह गया.. पागलों की तरह उसको कुच्छ देर तक दूर से ही देखता रहा.. फिर अपने सिर को पकड़ कर बेतहाशा अंदर की और भागा..,"भाई.... भाई!"

"क्या हो गया? चिल्ला क्यूँ रहा है..." रोहन ने पूचछा....

"ववो... वो आप खुद ही देख लो... मैं नही बताता..." रवि के चेहरे की चमक बता रही थी कि कुच्छ ना कुच्छ अच्च्छा ही हुआ है!

"कहाँ देख लूँ.. बता तो सही... तू इतना उतावला क्यूँ हो रहा है..." रोहन ने आस्चर्य से पूचछा...

"नही नही... तुम मत देखो... तुम कपड़े बदल लो... मैं लेकर आता हूँ उन्हे अंदर...." रवि ने कुच्छ सोचते हुए कहा...

"कपड़े बदल लूँ?" रोहन की कुच्छ समझ में नही आया.. रवि को घूर कर देखता हुआ रोहन बाहर निकल आया...

"आअ...आप!" रोहन की भी नीरू को देखते ही हवाइयाँ उड़ने लगी... वह तेज़ी से गेट की तरफ गया और फिर से बोला..,"आप... यहाँ?"

"अंदर आ जाउ?" नीरू ने मुरझाए चेहरे से ही कहा...

"ह..हां हां.. आइए ना... आप... क्या हो गया?" रोहन नीरू के साथ साथ चलता हुआ बोल रहा था,"सब ठीक तो है ना...."

नीरू के चेहरे से लग नही रहा था कि सब ठीक है... इसीलिए वो गहरी असमन्झस में था....

"हुम्म... वो... तुम क्या कह रहे थे पुराने टीले के बारे में!" नीरू ने सहजता से पूचछा...

"वो.. मुझे सच में सपने आते हैं.. आप की.... रवि की कसम.. भगवान की कसम... मैं कुच्छ भी झूठ नही बोल रहा था.." रोहन बात को समझ नही पाया था... तब तक अमन और रवि भी वहीं आ चुके थे...

"आप बैठिए ना!" अमन ने आग्रह किया....

"मेरा वो मतलब नही है" नीरू ने बैठते हुए कहा..," आप कह रहे थे ना कि टीले पर चल कर मुझे सब याद आ जाएगा..."

"जी... वो कह रही थी.. नीरू... सपने में.. सच कह रहा हूँ...." रोहन अब तक खड़ा ही था...

"तो चलो...!" नीरू ने कहा....

"कहाँ?" रोहन ने पूचछा....

"पुराने टीले पर..." नीरू ने जवाब दिया....

"क्या? सच ?" रोहन की खुशी का कोई ठिकाना नही रहा.. पर अगले ही पल वा मायूस होते हुए बोला,"पर वो तो यहाँ से बहुत दूर है.. आज चलकर वापस नही आ सकते..."

"कितने दिन लग जाएँगे... 3, 4, हफ़्ता?" नीरू ने पूचछा...

"हां.. हफ्ते में तो सब कुच्छ हो जाएगा... मतलब हम आराम से जा सकते हैं... पर....?" रोहन पूच्छना चाहता था कि घर वाले क्या कहेंगे.... पर नीरू ने बीच में ही टोक दिया...

"ठीक है... चलो!" नीरू ने उदासी भरे चेहरे से ही कहा...

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"हे भगवान! पता नही कहाँ चली गयी वो पागल! यही करना था तो बता तो देती... हम रहने देते शादी से...." घर वापस आकर उसके पापा सबके साथ गहरी सोच में बैठे हुए थे....

"पर अगर होस्टल बंद है तो कहाँ गयी होगी... कहीं कुच्छ हो गया तो उसको.. वो तो अकेली कहीं जाती भी नही थी..." मम्मी लगातार आँसू बहाए जा रही थी....

"भाई साहब! उनको तो मना कर दो.. कम से कम वहाँ वाला पंगा तो नही रहेगा..!" ऋतु के पिताजी ने कहा....

"क्या कहूँ? ... कैसे कहूँ? मैं अमृतसर जा रहा था तो उनका फोन आया था.. मैने तब तो कुच्छ कहा भी नही.. अब तो उनके रिश्तेदार भी आ चुके होंगे... ये कैसा दिन दिखाया भगवान!" पापा की आँखें भी गीली हो गयी...

अचानक उनको बाहर दो गाड़ियाँ रुकने की आवाज़ सुनाई दी.. सब सहम गये... बाहर निकले तो देखा वही थे...

"अब क्या किया जाए?" बड़बड़ाते हुए नीरू के पापा मानव के पापा की और बढ़े...

मानव के पापा बड़ी ही गरम जोशी से आकर उनसे गले मिले...," अरे! ऐसे चेहरा क्यूँ लटका रखा है यार... ये लो! संभलो. मेरा बेटा और शीनू बिटिया को मुझे सौंप दो..." उन्होने खिलखिलाते हुए कहा..

मानव ने आकर उनके इज़्ज़त से चरण च्छुए... पर ग्लनीवश नीरू के पापा उनको आशीर्वाद तक देना भूल गये...

"मेरे साथ आएँगे प्लीज़.. कुच्छ बात करनी है...!" नीरू के पापा ने आहिस्ता से कहा....

"देखो भाई.. दहेज की बात मत करना.. हम बेटा दे रहे हैं.. दहेज नही देंगे..." कहकर मानव के पापा ने अट्टहास किया...

"आप आइए तो सही.. एक बार.. उपर.." नीरू के पापा ने उनका हाथ पकड़ा और उपर जाने लगे... ऋतु के पापा भी उनके साथ ही थे... आने वाली पार्टी में हर किसी के चेहरे से उल्लास झलक रहा था... सब नीचे ही रहकर घर वालों से मेल मिलाप में लग गये.....

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"ये क्या कह रहे हैं भाई साहब! आपको पहले ही पूच्छ लेना चाहिए था... अब.. ये तो मेरी पगड़ी उच्छलने वाली बात हो गयी" सारा माजरा सुनते ही मानव के पिताजी के होश फाख्ता हो गये.. चेहरा का सारा रंग उड़ सा गया...

"भाई साहब मैं मानता हूँ... पर आप किसी तरह से आज का कार्यक्रम टाल दीजिए.. कुच्छ दिन बाद तो वो वापस आ ही जाएगी... आपको तो पता है नीरू के नेचर का... वो ऐसी नही है... उसके आने के बाद हम कोशिश करेंगे कि 'वो' मान जाए..." नीरू के पापा ने सिर झुका कर कहा...

"कमाल कर रहे हैं आप, भाई साहब! मेरे रिश्तेदारों को में क्या कहूँ? ये कि मेरी बहू आज कहीं चली गयी है बिना बताए... और फिर आने के बाद भी उसको ज़बरदस्ती शादी के लिए तैयार करने का क्या फायडा.. कल को फिर चली जाएगी.. हमारे घर से... नही नही! ये नही हो सकता भाई साहब!" मानव के पापा खफा से हो गये....

"तो फिर आप ही बतायें.. मैं क्या करूँ? ये तो उन्होनी है..." नीरू के पापा ने सिर झुकाए हुए ही कहा...

"ना ना! उन्होनी नही, ये आपकी नादानी है.. ज़बरदस्ती आपको अड़ना ही नही चाहिए था, रिश्ते के लिए.. वो मना कर रही थी तो आप कल तक भी फोन करके बात टाल सकते थे... हम कुच्छ भी कह देते.. पर आज की तरह ज़िल्लत का सामना ना करना पड़ता..." मानव के पापा ने गहरी साँस ली....

"अब पिच्छली बातों को दोहराने से क्या फायडा भाई साहब.. जो होना था, वा हो चुका.. ये सोचिए की अब क्या कर सकते हैं.. " ऋतु के पापा ने बीच में बोलते हुए कहा....

"यार, अब करने को रह क्या गया... मैं तो किसी को मुँह दिखाने लायक रहा नही.. मुझे तो बहू चाहिए थी.. वो यहाँ है ही नही..." मानव के पापा बहुत ज़्यादा हताश थे...

"एक बात कहूँ.. भाई साहब! अगर पसंद आए तो...." कहकर ऋतु के पापा रुक गये...

बिना कुच्छ बोले ही नीरू और मानव के पापा उनकी और देखने लगे...

"अगर आपको मेरा घर बार पसंद हो तो मैं अपनी बेटी देने को तैयार हूँ..." ऋतु के पापा ने कहा...

नीरू के पापा अवाक से उसके मुँह की और देखने लगे....

"वो तो लंबी कहानी हो गयी भाई साहब.. मानव उसको देखेगा.. अब शीनू तो उसको बेहद पसंद थी... आप तो समझते होंगे आज कल के बच्चों को.... फिर क्या पता आपकी बेटी को भी ऋतु की तरह मानव पसंद नही आया तो...और फिर ये सब एक ही दिन में तो नही हो सकता ना..." मानव के पापा के चेहरे पर अब भी हताशा और निराशा ही थी...

"मेरी बेटी नीचे है.. मैं उसकी मा और ऋतु को बुला लेता हूँ.. आप मानव को बुला लीजिए.. देख लीजिए अगर बात बन'ती है तो?" ऋतु के पापा ने कहा...

और कोई चारा अब बचा भी तो नही था... वो बाहर निकले और मानव को उपर बुलाया.....

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मानव भी सारी बात सुनकर सन्न रह गया.. अगले ही पल उसको अहसास हुआ कि हो ना हो नीरू रोहन के पास ही है... पर फिर वही बात होती.. ज़बरदस्ती का रिश्ता... मानव ने अपने पापा के चेहरे पर फैली चिंता की लकीरों को देखा और भरे गले से कहा," ठीक है पापा! जैसा आप ठीक समझे करें.. मुझे कोई ऐतराज नही है..."

पापा ने लपक कर खड़ा होते हुए अपने बच्चे को बाहों में भर लिया,"ऐसी होती है औलाद.. मुझे तुम पर.. गर्व है बेटा...!" आँसू उनकी आँखों से निर्झर बहने लगे....

"आप ऐसा क्यूँ कर रहे हैं पापा.. मैने ऋतु को देखा है... मुझे पसंद है ये रिश्ता... मैं ही पागल था... मैं कभी नीरू की आँखों के भाव पढ़ ही नही पाया.. आप ऋतु से पूच्छ लें... अगर उनको मजूर हो तो ये मेरा सौभाग्य ही होगा...." मानव का गला रुंध सा गया था....

"हमें माफ़ कर देना बेटा... हमसे चूक हो गयी..." नीरू के पापा ने खड़े होकर पासचताप सा प्रकट किया...

"आप भी अंकल... उपर वाले की मर्ज़ी के बगैर कभी कुच्छ होता है क्या? कोई ग़लती नही हुई आपसे.. प्लीज़ मुझे शर्मिंदा ना करें..." मानव ने कहा तो नीरू के पापा भी खुद को उसको अपनी बाहों में भरने से ना रोक सके....

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जब ऋतु उपर आई तो उसको आभाष भी नही था कि क्या से क्या हो गया है.. वह तो यही सोच रही थी कि नीरू के बारे में पूच्छने के लिए ही उसको बुलाया गया है....

"बेटी... अगर मानव से शादी करने में तुम्हे कोई ऐतराज ना हो तो हमारी इज़्ज़त बच जाएगी.." मानव के पापा ने सीधे सीधे ही पूच्छ लिया....

ऋतु को अपने कानो पर यकीन ही नही हुआ.. लंबा छर्हरा इनस्पेक्टर उसके सामने खड़ा उसको ही देख रहा था," म्म..मैं?"

"कोई ज़बरदस्ती की बात नही है बेटी.. तुम्हारे पापा ने हम पर उपकार करने के बहाने ही ये उपाय सुझाया है... पर अगर तुम्हे कोई ऐतराज है तो....

ऋतु ने मानव से नज़रें मिलाई और शर्मकार अपनी मम्मी के पहलू में छिप गयी....

"बोल दे बेटा.. जो कुच्छ भी तेरे मंन में है बोल दे...!" मम्मी ने उसको दुलार्ते हुए कहा...

"मुझे क्यूँ ऐतराज होगा मम्मी... मेरे लिए तो ये सौभाग्य की बात होगी.. और फिर इस'से अच्च्छा हल निकल भी नही सकता..."ऋतु ने मम्मी के कान में धीरे से कहा.. पर सुन सबने लिया.....

इसके साथ ही घर में फिर से खुशियाँ फैल गयी...

मौका देखकर नीरू के पापा ऋतु के पापा के पास गये," आपने मुझे बचा लिया भाई साहब! मैं तो बर्बाद ही हो जाता... ये ग्लानि लेकर जी नही पाता मैं...." और दोनो एक दूसरे से गले मिलकर मिनूटों आँसू बहाते रहे... खुशी के भी, और गम के भी.....

क्रमशः..................................


raj..
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Unread post by raj.. » 14 Dec 2014 10:59

अधूरा प्यार--19 एक होरर लव स्टोरी

गतांक से आगे ..................................

"पर.. आज कैसे जाएँगे? अभी तो मेरे पास गाड़ी भी नही है..." रोहन ने सकुचाते हुए नीरू से कहा...

"कहीं तक तो चलेंगे ना... रास्ते में रुक जाएँगे... कैसे भी करो.. पर अभी चलो यहाँ से" नीरू इस बात को लेकर डर रही थी कि कहीं मानव उसके घर वालों को लेकर ढूंढता हुआ वहीं ना आ जाए....

रोहन को आगे कुँआ पिछे खाई नज़र आ रही थी... टाल मटोल करने पर नीरू के वापस लौट जाने का डर था.. और अगर चलता भी तो नीरू को ठहराता कहाँ... रवि के सिवा वहाँ पर किसी को उसकी कहानी का पता ही नही था.. होटेल में वह उसको रखना नही चाह रहा था और रवि जहाँ पर रूम लेकर रहता था, वो नीरू को ठहराने के लिहाज से ठीक नही थी.. कुच्छ पल सोचते हुए उसने जवाब दिया," एक मिनिट मम्मी से बात कर लूँ?"

"हां, कर लो... पर जल्दी करो प्लीज़...!" नीरू हड़बड़ाई हुई सी थी....

रोहन ने फोन निकाल कर घर का नंबर. डाइयल किया....

"हेलो!" घर से नौकर की आवाज़ आई....

"देवेंदर.. मम्मी को फोन देना!" रोहन ने जल्दी में कहा...

"छ्होटे साहब! कहाँ चले गये हो आप... घर पर सब चिंता किए जा रहे हैं.. मम्मी जी बहुत गुस्सा हैं आपसे..." नौकर ने कहा...

"यार जल्दी फोन दो.. मैं समझा दूँगा उन्हे...." रोहन ने कहा....

"ये लो.. आ गयीं.. माता जी.. रोहन का फोन!" देवेंदर ने कहा और मम्मी जी को फोन देकर चला गया...

"कहाँ चला गया रे तू? यहाँ कौन जी - मर रहा है.. तुझे फिकर भी है?" मम्मी की आवाज़ से गुस्सा और प्यार दोनो झलक रहे थे....

"मम्मी.. वो.. मैं... आपको बताया तो था कि कहीं जा रहा हूँ..." रोहन सिर खुजाते हुए हल्का सा मुस्कुराता हुआ बोला....

"क्या खाक बताया था? 3 दिन की कह कर गया था.. आज पुर 8 दिन हो गये... फोन तो कर ही सकता था ना...." मम्मी जी की आवाज़ अब भी नरम नही पड़ी थी...

"ववो.. मम्मी.. सॉरी... सुनो मेरी बात..." रोहन नीरू के बारे में बात करना चाहता था....

"सॉरी!" मम्मी ने मुँह चढ़ा कर कहा...,"तेरा तो सॉरी कहकर ही काम चल जाता है... खैर.. छ्चोड़ इन बातों को.. पहले मेरी सुन.... मान'सी ने तेरे लिए बहुत अच्च्छा रिश्ता देखा है ऑस्ट्रेलिया में... लड़की पढ़ी लिखी है.. और बहुत ही सुंदर है.. अपने इंडिया के ही हैं वो... बहुत ही काबिल परिवार है... तू जल्दी से घर आजा... उसके पापा इंडिया ही आए हुए हैं आजकल... तुझसे मिल लेंगे..... क्या हुआ? फोन काट दिया क्या मुए?" मम्मी ने एक ही साँस में सब कुच्छ कहने के बाद रोहन से पूचछा... फोन पर काफ़ी देर से आवाज़ नही आई थी....

"नही मम्मी... यहीं हूँ..!" रोहन ने मरी सी आवाज़ में कहा....

"तो कल पक्का आ रहा है ना... बोल दूँ उनको!" मम्मी ने पूचछा...

"नही.. मम्मी.. वो...!" रोहन बोलता बोलता रुक गया....

"नही के बच्चे.. तू घर आजा एक बार... क्या नही नही लगा रखी है.. कल आ रहा है ना?" मम्मी उतावली सी लग रही थी... शायद ऑस्ट्रेलिया वाले रिश्ते के लिए....

"मेरी बात तो सुन लो मम्मी...!" रोहन मायूस होकर बोला....

"हां.. बोल जो बोलना है.. पर कल नही आया तो देख लेना....पहले ही बता रही हूँ तुझे...." मम्मी ने तैश में आकर कहा... पर फिर भी उनके हर शब्द से प्यार निर्झर झरने की तरह बह रहा था... 'मा तो ऐसी ही होती हैं'

"आने को तो मैं आज भी आ जाउन्गा मम्मी जी.. पर...." रोहन समझ नही पा रहा था कि नीरू के बारे में मम्मी को कैसे बताए.. कहाँ से शुरुआत करे...? और वो भी तब.. जब मम्मी ने पहले ही रिश्ते का डंका पीट दिया...

"पर क्या? ये तो और भी अच्च्ची बात है.. आज ही आजा..!" मम्मी खुश होते हुए बोली...

"मेरी बात तो सुन लो मम्मी... पहले..." रोहन मरी सी आवाज़ में बोला....

"बोलेगा तभी तो सुनूँगी बाबू.. बोल!" मम्मी ने प्यार से कहा...

"म्म.. मैं शादी नही करूँगा मम्मी...!" रोहन ने साँस छ्चोड़ते हुए आधी बात निकाल दी.....

"हाए राम! ये क्या कह रहा है? शादी क्यूँ नही करेगा तू?" मम्मी गुस्से से बोली...

"म्मेरा.. मतलब.. ये शादी नही करूँगा...!" रोहन ने सपस्ट किया....

"क्यूँ? देख तो ले पहले... मान'सी ने देखा है उसको... और वही रिश्ते के लिए ज़ोर डाल रही है....तुझे उसके गुस्से का पता है ना..." मम्मी ने धीरज सा खोते हुए कहा....

"मैं... नीरू से शादी करूँगा मम्मी... !"

बात सुनते ही मम्मी फिर से गुस्से में आ गयी..," अब ये कलमुंही कौन है.. तुझे तो मैने कभी नही देखा इन चक्करों में... कोई ज़रूरत नही है.. तेरे पापा ने तुझे बिगाड़ दिया है हां... बाकी तेरी दीदी से बात कर लेना... मैं तो उसको सॉफ सॉफ बोल दूँगी कि मेरी सुनता ही नही..."

"मैं कर लूँगा मम्मी दीदी से बात.. पर एक और प्राब्लम है अभी तो..." रोहन ने कहा....

"अब क्या हो गया? " मम्मी ने मुँह चढ़ा कर कहा...

"मैं... नीरू को घर ले आउ? आप सब भी देख लोगे...!" रोहन ने फिर से उसी मरी सी आवाज़ में पूचछा....

"ये क्या कह रहा है तू बेटा..? पागल हो गया है क्या? पराई अमानत को ऐसे घर नही लाते... ना! तू अकेला ही आजा.. किसी को साथ लाने की ज़रूरत नही है.. वैसे भी तेरा रिश्ता वहीं होगा, जहाँ मान'सी चाहती है... समझ रहा है ना तू?" मम्मी पहले चौंकी और फिर नाराज़ सी होकर प्यार से समझाने लगी....

"वो पराई नही है मम्मी... और उसका आना भी बहुत ज़रूरी है... आप प्लीज़ मान जाओ! घर आकर बात कर लेंगे...." रोहन ने प्रार्थना की.....

"ना! बिल्कुल नही... किसी भी लड़की को शादी से पहले तो मैं घुसने ही नही दूँगी इस तरह... तू चुप चाप घर आजा.. मैं फोन रख रही हूँ...." मम्मी ने गुस्से के लहजे में कहा....

"ओह!" रोहन ने लंबी साँस ली और फोन काट कर वापस रवि और नीरू के पास आ गया....

"क्या हुआ?" रवि ने उसकी शकल पर 12 बजे देख कर पूचछा....

"कुच्छ नही... पापा के पास फोन करता हूँ..." रोहन ने कहा और वापस चला गया.....

रोहन फिर जाकर एक कोने में खड़ा हो गया....

"हेलो पापा जी!"

"ओये उल्लू के पत्थे! किधेर है तू? यहाँ एक हफ़्ता हो गया; तेरी जगह मुझे डाँट खाते हुए... आया क्यूँ नही अभी तक वापस?.." पापा जी बिल्कुल भी गुस्सा नही थे...

"आ रहा हूँ ना... मेरी बात तो सुन लो..." रोहन की बातों से लगा की उसमें और पापा में गहरी दोस्ती है...

"ओये ठीक है ठीक है... मैं तो तेरी मम्मी को सुनाने के लिए डाँट रहा था... तेरी मम्मी दूसरे फोन पर होल्ड पर थी... अब इस उमर में नही घूमेगा तो कब घूमेगा.. हा हा हा... 2 चार दिन और भी लगने हों तो कोई गल नही.. मैं संभाल लूँगा..." पापा ने खिलखिलाकर हंसते हुए कहा....

"क्या कह रही थी मम्मी.. अभी फोन पर?" रोहन नर्वस सा होकर बोला...

"अरे कुच्छ कहने ही वाली थी कि तेरा फोन आ गया... मैं बाद में बात कर लूँगा... तू बोल!" पापा ने सीरीयस होते हुए कहा....

"ववो.. आपको तो पता ही होगा... मेरा रिश्ता...." रोहन कह ही रहा था कि पापा ने टोक दिया....

"ओह ले.. ये खुशख़बरी तो मुझे देनी थी तुझे... तेरी मम्मी नंबर. बना गयी अपने...!" पापा ने बीच में रोहन को टोक दिया....

"मुझे नही करनी शादी पापा...!" रोहन ने मुँह चढ़ाकर कहा....

"ओईए... ये क्या कह रहा है तू...? क्यूँ नही करनी शादी तूने?" पापा ने डाँटने वाले अंदाज में रोहन को झिड़का...," तेरी उमर में तो तेरी दीदी भी पैदा हो गयी थी.. समझा...!"

"मतलब... मुझे वो शादी नही करनी पापा...!" रोहन ने स्पस्ट किया...

"तो कौनसी शादी करेगा लल्ला...? हां?"

"वो.. एक लड़की है.. नीरू.. मुझे उसी से शादी करनी है..." रोहन ने हल्का सा झेन्प्ते हुए कहा....

"वाह बेटा! मैं तो तुझे यूँ ही समझ रहा था.. मुझको बताया तक नही..." फिर मज़ाक करते हुए पापा अचानक सीरीयस हो गये," पर उस ऑस्ट्रेलिया वालों को क्या जवाब दें.. मान'सी तो बहुत गुस्सा हो जाएगी... पता है ना तुझे उसका....?"

"हूंम्म.. कुच्छ करो ना पापा..." रोहन ने प्रार्थना सी की...

"चल आजा... फिर देखते हैं... दोनो मिलकर सोचेंगे कोई कहानी..." पापा सहज ही मान गये....

"पर... वो भी मेरे साथ आ रही है..." रोहन ने जवाब दिया....

"वो कौन?" पापा ने आइडिया लगाने की बजाय उस'से पूच्छ लेना ही ठीक लगा.. रोहन ने आज तक झूठ जो नही बोला था...

"वही.. नीरू... और कौन?" रोहन ने टका सा जवाब दे दिया....

"आब्ब्बे... तू तो मुझसे भी आगे निकल गया... माना तुम्हारी जेनरेशन अड्वान्स है.. पर इतनी जल्दबाज़ी भी ठीक नही यार... पहले घर आकर बात तो कर ले.. फिर डोली में बिठा कर लाएँगे.. तेरी दुल्हन को... अब तो तू अकेला ही आजा..." पापा ने चौंकते हुए जवाब देना शुरू किया था.. पर आख़िर आते आते उनका लहज़ा फिर से दोस्ताना हो गया....

"पापा.. समझने की कोशिश करो.. कुच्छ प्राब्लम है तभी तो कह रहा हूँ.." रोहन ने ज़िद सी करी....

"ऐसी क्या प्राब्लम है यार... थोड़ी बहुत तो बता दे अभी...." पापा चिंतित से हो गये...

"इतनी भी बड़ी बात नही है पापा.. पर उसका मेरे साथ आना ज़रूरी है... मम्मी मना कर रही हैं... कुच्छ करो ना.. प्लीज़!" रोहन ने कहा....

"चल आजा फिर... तेरी मम्मी ने तो मेरी नींद हराम कर ही देनी है.. ऐसा कर फिर.. तू कल आजा.. तब तक मैं कुच्छ सोचता हूँ... पर ध्यान रखना.. कुच्छ उल्टी सीधी बात हुई तो मारूँगा बहुत...." पापा ने बनावटी गुस्सा दिखाया....

"ओह.. थॅंक यू पापा! आइ लव यू! ठीक है.. मैं कल नीरू को लेकर आता हूँ.. ओके बाइ!" रोहन ने कहा और फोन काट दिया....

"ओये सुन तो.... फोन ही काट दिया खोते ने..." पापा टेबल पर मोबाइल रखकर पिछे कुर्सी से कमर लगा कर लेट से गये... और आँखें बंद करके कुच्छ सोचने लगे... सोचते सोचते उनके चेहरे पर मुस्कुराहट सी पसर गयी... रोहन को जान से भी ज़्यादा चाहते थे वो... उन्हे यकीन था कि उसका बेटा कभी ग़लत तो कर ही नही सकता....

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रोहन वापस नीरू के पास पहुँचा तो उसका चेहरा खिला हुआ था...," पापा मान गये.. पर कल आने को बोला है.. क्या करें? ... तुम कल सुबह नही आ सकती क्या?"

नीरू ने कोई जवाब नही दिया... वह किन्ही और ही ख़यालों में खोई हुई थी....

यों ज्यों टाइम बीत रहा था, नीरू को घर वालों की याद आने लगी थी.. घर से आते हुए इस बात को जितना हल्का उसने लिया था.. दरअसल ये फ़ैसला अब उसको उतना ही भारी लग रहा था.. मम्मी पापा की याद और उसके बिना उनकी हालत की चिंता ने उसको बेचैन सा कर दिया था.....

"नीरू जी..." रोहन ने उसको कहीं खोया हुआ सा पाकर फिर टोका...

"हां... वो.. मेरा नाम शीनू है.. मुझे उसी नाम से बुलाओ प्लीज़..." नीरू ने अचानक वापस सी लौट'ते हुए कहा....

"वो... पापा मान गये हैं.. पर कल आने को बोला है..." रोहन ने उसकी झुकी हुई नर्वस सी हो चुकी आँखों में झाँकने की कोशिश करते हुए कहा....

"मुझे एक फोन करना है... एक मिनिट दोगे प्लीज़..."नीरू ने जवाब में इतना ही कहा...

"हां.. ये लो ना.." रोहन ने खुश होकर फोन नीरू की और बढ़ा दिया...

"वो... मुझे अकेले में बात करनी है..." नीरू ने रोहन की ओर बिना देखे ही कहा...

"ठीक है... हम अंदर जा रहे हैं.. बात करने के बाद बुला लेना.." रोहन ने कहा और रवि के साथ अंदर चला गया...

--------------------------------------------------

"हेलो" उधर से आवाज़ आई...

आवाज़ ऋतु की मम्मी की थी.. नीरू ने बिना बोले ही फोन काट दिया...

"कौन था मम्मी..?" ऋतु उनके पास ही बैठी थी...

"पता नही... फोन काट गया" मम्मी ने जवाब दिया....

"ज़रूर शीनू का होगा... अब की बार मुझे उठाने देना.. ऋतु आकर फोन के पास बैठ गयी....

"ठीक है... प्यार से बात करके पूच्छना कहाँ है... और हो सके तो उसको वापस बुला लेना...मैं थोड़ा सा काम कर लूँ... आज तो सब कुच्छ ऐसे का ऐसे ही पड़ा है..." कहकर मम्मी गयी और दरवाजे की औट में होकर दोबारा फोन आने का इंतजार करने लगी... दरअसल उसको यकीन था कि अगर फोन पर नीरू हुई तो ऋतु मानव से अपना रिश्ता तय होने की बात ज़रूर बताएगी... वो जान'ना चाहती थी कि ऋतु इस रिश्ते से खुश है भी या नही... सब कुच्छ इतनी जल्दी हो गया था कि उनको अपनी बेटी के मन की बात लेने का मौका ही नही मिला था... उनको पता था कि ऋतु नीरू से कुच्छ नही छिपाएगी.....

उम्मीद के मुताबिक ही उनके बाहर निकलते ही फिर घंटी बजी.. ऋतु ने झट से फोन उठा लिया..,"हेलो!"

"हेलो.. ऋतु!" नीरू ने मरी सी आवाज़ में कहा....

"कहाँ मर गयी तू... तू तो सच में ही चली गयी यार... ऐसे भी कोई जाता है भला...तुझे पता है सब यहाँ कितने परेशान हैं...." ऋतु नीरू की आवाज़ पहचानते ही शुरू हो गयी...

"आंटी जी किधर हैं?" नीरू ने पूचछा....

"वो बाहर हैं.. मैं अकेली ही हूँ.... बता ना कहाँ है तू..." ऋतु ने प्यार से पूचछा....

"वो.. मम्मी पापा ठीक हैं ना...!" नीरू को उनकी फिकर थी...

"ऐसे कैसे ठीक रह सकते हैं.. आंटी जी का तो सुबह से बुरा हाल है... तुझे ऐसा नही करना चाहिए था शीनू..." ऋतु ने बताया...

"वो.. आए थे क्या?" नीरू ने पूचछा....

"हां आए थे.. पर अब तुझे उनकी फिकर करने की कोई ज़रूरत नही है... तू घर आजा..." ऋतु ने कहा....

"पापा मुझे कभी माफ़ नही करेंगे... मैने उनकी इज़्ज़त मिट्टी में मिला दी... क्या मुँह लेकर वापस आउ?" नीरू के शब्द बहकने से लगे थे.. लग रहा था जैसे वह कभी भी रोना शुरू कर देगी....

"ऐसा मत कर यार.. मैं तो पहले ही तुझे समझा रही थी... पर कुच्छ नही हुआ.. घर पर सब तेरा इंतजार कर रहे हैं... तेरी टेन्षन मैने अपने गले में डाल ली..." कहने के बाद ऋतु हँसने लगी....

"क्या मतलब?" नीरू की समझ में बात आई नही....

"उनका रिश्ता मुझसे तय हो गया... अब तो खुश है ना तू..." ऋतु ने समझाया...

नीरू कुच्छ देर तक यूँ ही सुन्न सी होकर खड़ी रही.. फिर अचानक फुट पड़ी... उसका रोने की आवाज़ कमरे में रोहन और रवि तक भी पहुँची.. वो बाहर निकले.. पर नीरू को फोन कान से लगाए देख वापस अंदर चले गये.....

"आए... ये क्या कर रही है तू...? रो क्यूँ रही है? अब तेरा मंन हो गया था क्या शादी का... चिंता मत कर.. कर लेंगे अड्जस्ट..." ऋतु ने कहा और हँसने लगी....

"तू क्या है यार.. मेरे लिए तूने ये सब कर दिया... मैं क्या कहूँ.." नीरू सुबक्ते हुए कह रही थी...

"मैं पागल हूँ क्या, जो तेरे लिए करूँगी... मैने तो तुझे पहले ही कह दिया था.. कि अगर ऐसा रिश्ता मेरे लिए आता तो मैं कभी मना ना करती... वो तो पापा के दिमाग़ में जाने कैसे आ गया.. हे हे हे... अब तू सारी बातें छ्चोड़ और ये बता कहाँ है...? हॉस्टिल तो बंद है... खैर जहाँ भी है तू जल्दी आजा.. बाकी बातें यहाँ बैठकर ही करेंगे...." ऋतु ने बिना लाग लपेट के अपने दिल की बात अपनी बेहन जैसी सहेली को बता दी....

"ठीक है... तू मेरे घर पर ही मिलना.... मैं आ रही हूँ.. 20 मिनिट में..." नीरू ने कहा और फोन रख दिया....

फोन रखते ही उसने रोहन को नाम से पुकारने की कोशिश की.. पर जाने क्यूँ.. उस'से नाम लिया ही नही गया...," आए.. सुनो!"

रोहन बुलावे का इंतजार कर ही रहा था... रवि को वो अंदर रहने की बोलकर आया.. ताकि नीरू को अपने दिल की बात कहने में कोई परेशानी ना हो...," रो क्यूँ रहो हो.. आप!"

"मुझे अपने घर जाना है.." नीरू ने फोन रोहन की और बढ़ाते हुए कहा....

"याइ..ये क्या कह रही हैं आप... मैने तो पापा को भी बोल दिया..." रोहन अवाक सा खड़ा नीरू को देखता रहा...

"सॉरी... ववो.. मुझे लगता था कि... मैं जा सकती हूँ... मुझे पता है आपको बहुत बुरा लग रहा होगा... पर.. मैं नही जा सकती.. मेरे घर वाले परेशान हो रहे हैं.... सॉरी.. पर मैं आपसे बाद में बात कर लूँगी.. प्रोमिस!" नीरू सिर झुकाए हुए ही बोलती जा रही थी....

"तो क्या... आप बिना बताए आई थी... ऐसा क्यूँ किया आपने...? मैं तो पहले ही पूछ रहा था कि...."

"सॉरी!" नीरू ने पहली बार रोहन से 2 पल से ज़्यादा के लिए आँखें मिलाई... आज उसको रोहन की आँखों में अपनापन सा नज़र आया... उसकी नज़रों में वो चुभन नही थी जो नीरू को दूसरे लड़कों की आँखों में दिखाई देती थी..," मैं बाद में मिलूँगी आपसे...."

नीरू ने कहा और बाहर निकल गयी.......

क्रमशः ........................


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