Bhoot bangla-भूत बंगला

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raj..
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Re: Bhoot bangla-भूत बंगला

Unread post by raj.. » 14 Dec 2014 11:59

भूत बंगला पार्ट--10

गतान्क से आगे...................

"फिर एक दिन मुझे पता चला कि मेरे जाने के बाद उसने उस हैदर रहमान को सरे आम घर पर बुलाना शुरू कर दिया था. पापा ने रोकने की कोशिश की या नही ये तो मैं जानती नही पर उसके बाद शायद वो भूमिका तो जैसे पापा के मरने का इंतेज़ार ही करती होगी ताकि वो उस हैदर से शादी कर सके. और इसी बीच मेरे पापा भी घर छ्चोड़कर चले गये, शायद अपनी बीवी को अपने ही घर में किसी और के साथ देखना बर्दाश्त नही हुआ उनसे"
"ऐसा आपको लगता है पर फिर भी हम पक्के तौर पर नही कह सकते के आपके पापा ने घर क्यूँ छ्चोड़ा था" मैने शक जताते हुए कहा
"वो भूमिका क्या कहती है?" रश्मि ने पुचछा
"कोई साफ वजह तो वो भी नही बता पा रही पर......."
"कोई और वजह होगी तो बताएगी ना" रश्मि ने मेरी बात काट दी "मेरी बात मानो इशान उसी ने पापा को मरवाया है"
"हमारे पास कोई सबूत नही है" मैने कहा
"हम ढूँढ सकते हैं" रश्मि बोली
"मुझे नही लगता" मैने इनकार में सर हिलाया
"अगर हम उस घर की तलाशी लें जहाँ पापा रह रहे थे?" रश्मि ने पुचछा
"वो काम पोलीस ऑलरेडी कर चुकी है और मैं भी उस वक़्त साथ था वहीं. यकीन जानिए घर में कुच्छ हासिल नही हुआ" मैने कहा
"मैं खुद एक बार देखना चाहूँगी" रश्मि ने कहा

उस वक़्त उसके चेहरे पर जो एक्सप्रेशन थे उनको देखकर वो अगर मेरी जान भी माँग लेती तो मैं हरगिज़ इनकार ना करता. आँखों में हल्की सी नमी लिए वो मेरी तरफ ऐसी उम्मीद भरी नज़र से देख रही थी जैसे मैं ही अब वो एक आखरी इंसान हूँ जिसपर वो भरोसा कर सकती है. मैं अगर चाहता भी तो ना नही कह सकता था और हुआ भी वही, मैं ना नही कह सका.

मैने रश्मि से कहा के मैं बंगलो 13 के मालिक से बात करके उसको फोन करूँगा. हम थोड़ी देर तक और बैठे बातें करते रहे और फिर मैं होटेल से निकल आया. बाहर रात का अंधेरा घिर चुका था और सड़क सुनसान हो चली थी. मेरी कार खराब कहीं खड़ी थी इसलिए मेरे पास इस बात के अलावा कोई चारा नही था के मैं टॅक्सी से ही घर वापिस जाऊं.

सड़क पर थोड़ी देर खड़े रहने के बाद भी जब मुझे कोई टॅक्सी नज़र नही आई मैने पैदल ही घर की तरफ चलने का इशारा किया. सड़क के किनारे पर थोड़ी दूर एक टॅक्सी खड़ी ज़ावरूर थी पर उसके खिड़की दरवाज़े सब बंद थे और ना ही ड्राइवर कहीं नज़र आ रहा था. मैने अपना फोन जेब से निकाला और कानो में इयरफोन लगाकर गाने सुनता हुआ पैदल ही घर की तरफ चल पड़ा. मुझे म्यूज़िक हमेशा लाउड वॉल्यूम पर सुनने की आदत थी इसलिए उस वक़्त मुझे इयरफोन से आते हुए गाने के साइवा कुच्छ सुनाई नही दे रहा था.उस वक़्त तक होटेल के बाहर जो एक दो गाड़ियाँ थी वो भी जा चुकी थी और सड़क पर ट्रॅफिक ना के बराबर था.

मुश्किल से मैं 10 कदम ही चला था के मुझे अपने पिछे हेडलाइट्स की रोशनी दिखाई दी. पलटकर देखा तो जो टॅक्सी सड़क के किनारे बंद खड़ी थी मेरी तरफ बढ़ रही थी. मैने राहत की साँस ली के टॅक्सी के लिए भटकना नही पड़ा. हाथ दिखाकर मैने टॅक्सी को रुकने का इशारा किया. टॅक्सी की स्पीड धीमी हुई और वो सड़क के किनारे पर मेरी तरफ बढ़ी. हेडलाइट्स की रोशनी सीधी मेरी आँखों पर पड़ रही थी जिसकी वजह से मुझे टॅक्सी सॉफ दिखाई नही दे रही थी और इसलिए टॅक्सी में बैठा वो दूसरा आदमी मुझे तब तक दिखाई नही दिया जब तक के टॅक्सी मेरे काफ़ी करीब नही आ गयी. मुझसे कुच्छ मीटर्स के फ़ासले पर टॅक्सी की खिड़की से एक हाथ बाहर को निकला.
और उसी वक़्त एक ही पल में बहुत कुच्छ एक साथ हुआ.

टॅक्सी मेरे काफ़ी करीब आ चुकी थी. एक हाथ टॅक्सी से निकला और मुझे उसमें कुच्छ चमकती हुई सी चीज़ नज़र आई.
तभी टॅक्सी ड्राइवर ने हेडलाइट्स हाइ बीम पर कर दी जिससे मेरी आँखें एक पल के लिए बंद हो गयी.
म्यूज़िक अब भी मेरे कानो में फुल वॉल्यूम पर बज रहा था पर फिर भी उसके बीच भी वो आवाज़ मुझे सॉफ सुनाई दी.
"इशान......."
एक ही पल में मैं पहचान गया के ये उसी औरत की आवाज़ है जिसे मैं अक्सर गाता हुआ सुनता हूँ. आवाज़ फिर मेरे ठीक पिछे से आ रही थी. मैं चौंक कर फ़ौरन एक कदम पिछे को हुआ और पलटकर अपने पिछे देखा.
उसी पल टॅक्सी मेरे पिछे से गुज़री और मुझ अपने कंधे पर तेज़ दर्द महसूस हुआ जैसे को जलती हुई चीज़ मेरे अंदर उतार दी गयी हो.
वो औरत मेरे पिछे नही थी.
मैने हाथ अपने कंधे पर रखा और फिर सड़क की तरफ पलटा.
टॅक्सी मुझसे अब दूर जा रही थी. एक हाथ मुझे टॅक्सी के अंदर वापिस जाता हुआ दिखाई दिया जिसमें एक खून से सना हुआ चाकू था. मेरे खून से सना हुआ.
लड़की की कहानी जारी है .......................
हल्की सी आहट से उसकी आँख खुली. वो फ़ौरन बिस्तर में उठकर बैठ गयी और ध्यान से सुनने लगी के आवाज़ क्या थी. कुच्छ देर तक कान लगाकर सुनने के बाद उसको एहसास हो गया के शायद वो कोई सपना देख रही थी और फिर बिस्तर पर करवट लेकर लेट गयी.

वो घर के सामने बने छ्होटे से आँगन में चारपाई डालकर सोती थी. गर्मी हो या सर्दी, उसको वहीं सोना पड़ता था और हाल ये था के अगर बारिश हो जाए, तो वो रात भर नही सो पाती थी क्यूंकी घर के दरवाज़े फिर भी उसके लिए नही खुलते थे और ना ही उसकी हिम्मत होती थी के नॉक करे. बस कहीं एक कोने में बारिश से बचने के लिए छुप जाती थी.

ये सिलसिला कुच्छ साल पहले शुरू हुआ था और इसकी वजह भी वो अच्छी तरह से जानती थी. चाचा चाची का वो खेल जो वो अक्सर रात को खेला करते थे. बचपन से ही वो ये खेल अक्सर हर दूसरी रात देखा करती थी. अक्सर रात में किसी आहट से उसकी आँख खुलती और अंधेरे में जब वो गौर से देखती तो अपने चाची को टांगे फेलाए लेटा हुआ पाती और चाचा उनके उपेर चढ़े हुए टाँगो के बीच उपेर नीचे हो रहे होते. कमरे के अंधेरे में कुच्छ ख़ास नज़र तो नही आता था पर जितना भी दिखाई देता था उसको देखकर उसके दिल में एक अजीब सी गुदगुदी होती थी. वो अक्सर रात को उस खेल का इंतेज़ार किया करती थी और इसी चक्कर में देर रात तक जागती रहती थी. वो अच्छी तरह से जानती थी के जो कुच्छ भी वो खेल था, वो उसके देखने के लिए नही था इसलिए अक्सर रात को चाचा उसकी चाची से कहता था के थोड़ी देर रुक जाए ताकि सब सो जाएँ.

और फिर एक दिन जब उसको बाहर सोने के लिए कहा गया तो जैसे उसका दिल ही टूट गया. उसके हर रात वो खेल देखने की आदत सी हो गयी थी. वो जानती थी के ये वही खेल है जो चाचा अक्सर दिन में अकेले में उसके साथ खेला करता था और रात को चाची के साथ. पर चाची के साथ वो थोड़ा अलग होता था. उसके साथ तो चाचा सिर्फ़ उसको लंड हिलने को कहता था पर चाची के साथ तो जाने क्या क्या करता था. अंधेरे में वो बस उन दोनो को उपेर नीचे होता हुआ देखता रहती थी. और फिर जबसे वो बाहर सोने लगी तबसे चाचा चाची का वो खेल देखना उसके लिए बंद हो गया.

फिर जब चाचा ने एक दिन उसके पिछे अपना वो घुसाया तो वो समझ गयी के वो चाची के साथ रात को क्या करता था. पर उसको हैरत थी के चाची कुच्छ नही कहता थी जबकि उसे तो कितना दर्द हुआ था. वो दर्द के मारे बेहोश हो गयी थी और बाद में उसको बुखार भी हो गया था. वो ठीक से चल भी नही पा रही थी. इसका नतीजा ये हुआ के चाचा खुद बहुत डर गया था और फिर उसने दोबारा ये कोशिश नही की और फिर से उस खेल को सिर्फ़ लंड हिलाने तक ही सीमित रखा.

"सुनो" आवाज़ सुनकर उसके कान खड़े हो गये. आवाज़ चाची की थी जो कमरे के अंदर से आ रही थी.
थोड़ी देर तक खामोशी रही.
"सुनो ना" चाची की आवाज़ दोबारा आई.
"क्या है?" चाचा की नींद से भरी गुस्से में आवाज़ आई.
"छोड़ो ना. मैं गरम हो गयी हूँ. नींद भी नही आ रही इस वजह से" चाची ने कहा तो वो फ़ौरन समझ गयी के वही खेल दोबारा शुरू होने वाला है. पर अफ़सोस के वो ये खेल देख नही सकती थी.
"उपेर आओ ना" थोड़ी देर बाद फिर से चाची की आवाज़.
उसके बाद जवाब में उसको कुच्छ अजीब सी आआवाज़ आई जैसे चाची को मारा हो या धक्का दिया हो और फिर चाची के करहने की आवाज़ से उसको पता चल गया के ऐसा ही हुआ है.
"रांड़ साली सोने दे" चाचा की आवाज़ फिर गुस्से में थी "जब देखो चूत खोले पड़ी रहती है"

उसको बाद फिर थोड़ी देर तक कोई आवाज़ नही आई. वो भी समझ गयी थी के हमेशा की तरह चाची ही ये खेल खेलना चाहती है पर आज रात चाचा मना कर रहा है. हर रात यही होता था. पहेल उसकी चाची ही करती थी और थोड़ी देर तक उसको चाचा को मनाती रहती थी खेल के लिए.

कुच्छ पल बाद कमरे का दरवाज़ा खुला. उसने फ़ौरन अपनी आँखें बंद कर ली और फिर हल्की सी खोलकर दरवाज़े की तरफ देखा. दरवाज़े पर चाची खड़ी थी और उनके हाथ में एक चादर और तकिया था.

"मरो अकेले अंदर" कहते हुए चाची ने दरवाज़ा बंद कर दिया और फिर उसकी चारपाई के पास ही नीचे ज़मीन में चादर बिछाकर लेट गयी.

चाँदनी रात थी इसलिए हर तरफ रोशनी थी. चाची उसकी चारपाई के पास ही नीचे लेटी हुई थी इसलिए वो आसानी से उनको देख सकती थी. आँखें हल्की सी खोले हुए उसने एक नज़र चाची पर उपेर से नीचे तक डाली.

वो एक ब्लाउस और नीचे पेटिकट पहने उल्टी लेटी हुई थी. चाची हल्की सी मोटी थी पर बहुत ज़्यादा नही. कमर के दोनो तरह हल्की सी चर्बी थी और गांद एकदम उपेर को उठी हुई. उस वक़्त उल्टी लेटी होने की वजह से उनके पेटिकट में उनकी गंद पूरी तरह उभर कर सामने आई हुई थी. वो बस चुपचाप नज़र गड़ाए एकटूक चाची की गांद की तरफ देखती रही.

यूँ तो उसने अपनी चाची को कई बार रात के खेल में पूरी तरह नंगी देखा था पर उस वक़्त कमरे में बिल्कुल अंधेरा होता था. वो सिर्फ़ उनके जिस्म को देखकर ये अंदाज़ा लगा लेती थी के दोनो चाचा चाची नंगे हैं पर वो नज़र नही आते थे. अंधेरे में बस उनकी जिस्म का काला अक्स ही दिखाई देता था. उससे पहले भी घर में अक्सर काम करते वक़्त जब चाची झुकती तो उनकी बड़ी बड़ी छातिया जैसे ब्लाउस से बाहर गिरने को तैय्यार रहती जिन्हें वो अक्सर छुप्कर देखा करती. चाची को देख कर उसके दिमाग़ में अक्सर ये ख्याल आता था के उसकी खुद की इतनी बड़ी क्यूँ नही हैं.

पर उस दिन शाम को जब वो वापिस आई थी तब उसने पहली बार चाची को पूरी तरह नंगी देखा था जब वो उस आदमी के साथ वही खेल खेल रही थी और बस देखती रह गयी थी. चाचा का लंड वो अक्सर देखा करती थी इसलिए उसमें उसके लिए कुच्छ नया नही था पर पहली बार वो एक पूरी जवान औरत को पूरी तरह से नंगी देख रही थी. वो नज़ारा जैसे उसके दिमाग़ पर छप सा गया था. उसके बाद भी कई दिन तक वो जब चाची की तरफ देखती तो उसको वही टांगे फेलाए नंगी पड़ी चाची ही दिखाई देती. हाल ये हो गया था के खाना खाते वक़्त जब चाची मुँह खोलती तो उसको यही याद आता था के कैसे चाची ने उस आदमी के सामने मुँह खोला था और कैसे उसने लंड में से वो सफेद सी चीज़ उनके मुँह में गिराई थी.

पर उस सारे खेल में भी जो एक हिस्सा वो नही देख पाई थी वो थी चाची की गांद. चाची पूरे खेल में इस तरह से रही के एक बार भी उनकी गांद पूरी तरह से उसके सामने नही आई. अब भी चाची की तरफ देखती हुई वो यही सोच रही थी के चाची की नंगी गांद कैसी दिखती होगी और कहीं दिल में ये चाह रही थी के कास ये पेटिकट हट जाता.

चाची ने हल्की सी हरकत की तो उसने फ़ौरन अपनी आँखें बंद कर ली और फिर थोड़ी देर बाद हल्की सी खोली. अब सामने नज़ारा हल्का सा बदल चुका था. चाची अब भी उसी तरह उल्टी पड़ी हुई थी पर उनकी गांद हल्की सी हवा में उठी गयी थी. उसके दिल की धड़कन तब एकदम रुक सी गयी जब उसने देखा के उनका पेटिकट उपेर तक सरका हुआ था. इतना उपेर तक के उनकी जाँघो का पिच्छा हिस्सा पूरा नंगा था और पेटिकट बस गांद को ही ढके हुए हल्का सा नीचे तक जा रहा था. वो हैरत में पड़ी देखती रही के चाची क्या कर रही है. चाची के घुटने मुड़े हुए थे जिसकी वजह से गांद हल्की हवा में थी और जब उसने ध्यान दिया तो देखा के चाची का एक हाथ नीचे था. सामने की तरफ से ब्लाउस पूरा उपेर तक उठा हुआ था और चाची का एक हाथ उनकी टाँगो के बीच हिल रहा था. उसको कुच्छ समझ नही आया के क्या हो रहा है और चाची क्या कर रही है.

थोड़ी देर तक चाची उसी पोज़िशन में रही. उल्टी पड़ी हुई, घुटने हल्के मुड़े हुए, गांद हल्की सी हवा में उठी हुई, मुँह तकिया में घुसा हुआ, पिछे से बाल बिखरे हुए और एक हाथ सामने से नीचे उनकी टाँगो के बीच घुसा हुआ. वो देखती रही के चाची के हाथ की हरकत तेज़ होती जा रही थी और उनकी गांद भी हल्की सी हिल रही थी. तभी उन्होने एक तेज़ झटका मारा और उनका पूरा जिस्म काँप गया और वो पल था जब शायद भगवान ने उसके दिल की सुन ली थी.

यूँ झटका लगने के कारण पेटिकट का वो हिस्सा जो गांद को ढके हुए था और सरक गया. चाची की गांद उपेर को उठी हुई थी इसलिए पेटिकट सरक कर उनकी कमर तक आ गया और अगले ही पल चाची कमर के नीचे पूरी तरह नंगी हो गयी. उसकी तो जैसे दिल की मुराद पूरी हो गयी. चाची की गांद आज पहली बार पूरी तरह उसके सामने नंगी थी जिसे वो हैरत से देखे जा रही थी. जितनी बड़ी बड़ी चाची की छातिया थी उतनी ही बड़ी उनकी गांद भी थी. हवा में उठी हुई उनकी भारी गांद को धीरे धीरे हिलता हुआ देखकर उसका कलेजा जैसे उसके मुँह को आ गया थी. पर एक चीज़ जो उसको अब भी नज़र नही आ रही थी के चाची हाथ से क्या कर रही है. पेटिकोट कमर पर पड़ा होने के कारण उनका हाथ पेटिकोट में घुसा हुआ था जिसको वो देख नही पा रही थी.

अचानक चाची फिर से कराही, बदन काँपा था और वो फिर से पूरी तरह सीधी लेट गयी. घुटने सीधे कर लिए पर पेटिकोट नीचे नही किया जिसकी वजह से उनकी गांद अब भी उसके सामने थी. वो उपेर चारपाई पर पड़ी नीचे लेटी अपनी चाची को कभी हैरत से देखती तो कभी यूँ सोचती के उसका खुद का जिस्म ऐसा क्यूँ नही है.
"हे भगवान" चाची ने ऐसी आवाज़ में कहा जैसे वो बहुत तकलीफ़ में हों.
और फिर चाची पलटी और सीधी होकर लेट गयी. उनके सीधे होते ही उसने फिर से आँखें बंद कर ली और फिर थोड़ी देर बाद हल्की सी खोलकर चाची पर नज़र डाली. सामने का मंज़र फिर बदल चुका था. अब चाची सीधी लेटी हुई थी पर नीचे से अब भी नंगी थी. पेटिकोट कमर तक चढ़ा हुआ था और सामने से उनके पेट पर पड़ा हुआ था. चाची के घुटने मुड़े हुए थे और दोनो टांगे हल्की सी हवा में उठी हुई थी. एक हाथ अब भी टाँगो के बीच हिल रहा था जिसे वो इस बार भी पेटिकोट की वजह से देख नही पा रही थी. वो उस अजीब से अंदाज़ में पड़ी अपनी चाची को बस देखती रही जिनका एक हाथ टाँगो के बीच हिल रहा था और दूसरा उनकी चूचियो को एक एक करके दबा रहा था. चाची के मुँह से अजीब सी आह आह की आवाज़ आ रही थी जो उनकी हाथ की तेज़ी के साथ ही कभी बढ़ती तो कभी कम हो जाती.

वर्तमान मे.............................
उस रात ज़ख़्म खाने के बाद मैं एक दूसरी टॅक्सी लेकर घर वापिस आया था. मेरे कंधे पर टॅक्सी में बैठे उस दूसरे आदमी ने चाकू से वार किया था जो किस्मत से ज़्यादा गहरा नही हुआ. बस चाकू कंधे को च्छुकर निकल गया था जिसकी वजह से कंधे पर एक लंबा सा कट आ गया था. मेरा खून बह रहा था और शर्ट खून से सनी हुई थी. वहाँ से मैं टॅक्सी लेकर एक डॉक्टर के पास गया जो मेरी पहचान का था. उसको मैने ये बहाना मार दिया के किसी से झगड़ा हो गया था और क्यूंकी मैं उसको जानता था इसलिए उसने पोलीस को फोन भी नही किया.

एक पल को मेरे दिमाग़ में ये ख्याल आया के मैं मिश्रा को फोन करके सब बता दूँ पर फिर मैने इरादा बदल दिया. मेरे ऐसा करने से काफ़ी सवाल उठ सकते थे जैसे के मैं वहाँ क्या कर रहा था और रश्मि से मिलने क्यूँ गया था. मिश्रा मेरा दोस्त सही पर एक ईमानदार पोलिसेवला था और मैं जानता था के अगर उसको मुझपर खून का शक हुआ तो वो मुझे अरेस्ट करने से भी नही रुकेगा.

रात को मैं घर पहुँचा तो देवयानी और रुक्मणी दोनो सो चुके थे. ये भी अच्छा ही हुआ वरना मुझे उनको बताना पड़ता के मेरी शर्ट खून से सनी हुई क्यूँ है. घर पहुँचकर मैने अपने लिए एक कप कॉफी बनाई और उस दिन की घटना के बारे में सोचने लगा था.

ये बात ज़ाहिर थी के वो जो कोई भी टॅक्सी में था, मुझपर हमले के इरादे से ही आया था इसलिए होटेल के बाहर टॅक्सी में मेरा इंतेज़ार कर रहा था. पर सवाल ये था के वो कौन था और ऐसा क्यूँ चाहता था और मुझे एक चाकू मारकर क्या साबित करना चाहता था? या उसका इरादा कुच्छ और था? क्या वो मुझे सिर्फ़ चाकू मारना चाहता था या मेरा खेल ही ख़तम करना चाहता था?

और तभी मेरे दिमाग़ में जो ख्याल आया उसे सोचकर मैं खुद ही सिहर उठा. उस आदमी के हाथ में जो चाकू था वो यक़ीनन काफ़ी बड़ा और ख़तरनाक था. वो चाकू मेरे कंधे के पिच्छले हिस्से पर बस लगा ही था पर जहाँ तक वो मेरे कंधे पर खींचा, वहीं तक काट दिया. जब वो टॅक्सी मेरी तरफ बढ़ी थी उस वक़्त मैं सीधा खड़ा था तो इसका मतलब अगर मैं पलटा आखरी सेकेंड पर एक कदम पिछे होकर पलटा ना होता तो वो चाकू का वार सीधा मेरी गर्दन पर पड़ता और ज़ाहिर है के वो चाकू अगर मेरी गर्दन पर खींच दिया गया होता तो मैं वहीं किसी बकरे की तरह हलाल हो जाता.

फिर मेरा ध्यान अपने पिछे से आई उस आवाज़ की तरफ गया. वो आवाज़ ठीक उसी वक़्त आई थी जब ड्राइवर ने लाइट्स को हाइ बीम पर किया था. मतलब वार होने से बस कुच्छ सेकेंड्स पहले. और उसी आवाज़ की वजह से ही मैं पलटा था. अगर वो औरत मेरे पिछे से मेरा नाम ना बुलाती तो मैं वैसा ही खड़ा रहता और वार सीधा मेरी गर्दन पर होता. मतलब देखा जाए तो वो आवाज़ ही थी जिसकी वजह से मैं अब तक यहाँ ज़िंदा बैठा था.

मेरा दिमाग़ घूमने लगा. कुच्छ समझ नही आ रहा था. क्या है ये आवाज़? शायद मैं एक पल के लिए इसको अपना भ्रम मान भी लेता पर आज जिस तरह से उस आवाज़ ने मेरी जान बचाई थी, उससे इस बात को नही नकारा जा सकता था के ये सिर्फ़ मेरा वहाँ नही है. पर अगर भ्रम नही है तो क्या है?
और मुझपर हमला? कोई मेरी जान क्यूँ लेना चाहेगा? मेरा तो किसी से झगड़ा भी नही.

और फिर जैसे मुझे मेरे सवाल का जवाब खुद ही मिल गया. वो रेप केस जिसमें मैं इन्वॉल्व्ड था. मुझे एक धमकी भरा फोन आया था जिसको मैं पूरी तरह भूल चुका था. मेरे जान लेने की धमकी मुझे दी गयी थी और फिर कोशिश भी की गयी. पर क्या वो लोग इतने बेवकूफ़ हैं के वकील को यूँ सरे आम मार देंगे? इससे तो बल्कि प्रॉसिक्यूशन का केस और भी मज़बूत हो जाएगा और ये बात अपने आप में उनके खिलाफ एक सबूत बन जाएगी.

सोचते सोचते मेरे सर में दर्द होने लगा तो मैं उठकर बिस्तर पर आ गया और आँखें बंद कर ली. पर नींद तो जैसे आँखों से बहुत दूर थी. मुझे समझ नही आ रहा था के मिश्रा को सब बताउ या ना बताउ? और तभी फिर वही गाने की आवाज़ मेरे कानो में आई. एक पल के लिए मैने सोचा के उठकर देखूं के ये आख़िर है तो क्या है पर मैं उस वक़्त काफ़ी थका हुआ था. और फिर वही हुआ जो हमेशा होता था, मैं अगले कुच्छ मिनिट्स के अंदर ही नींद के आगोश में जा चुका था.

क्रमशः...............................

raj..
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Re: Bhoot bangla-भूत बंगला

Unread post by raj.. » 14 Dec 2014 12:00

भूत बंगला पार्ट--11

गतान्क से आगे................

इशान

सुबह मेरी आँख खुली तो मेरा वो कंधा जहाँ चाकू का घाव था बुरी तरह आकड़ा हुआ था. मुझे हाथ सीधा करने में तकलीफ़ हो रही थी पर मैं जानता था के अगर रुक्मणी को पता चला तो वो फ़िज़ूल परेशान होगी. और अगर उसको ज़रा भी ये भनक लग गयी के मैं बंगलो में हुए खून के चक्कर में पड़ा हुआ हूँ तो वो मुझे खुद ही जान से मार देगी इसलिए मेरे लिए ये बहुत ज़रूरी था के कल रात की घटना का ज़िक्र उससे बिल्कुल ना करूँ.

मैं तैय्यर होकर अपने कमरे से बाहर आया तो ड्रॉयिंग रूम में कोई नही था. आम तौर पर इस वक़्त रुक्मणी घर की सफाई में लगी होती थी या किचन में खड़ी दिखाई देती थी पर उस वक़्त वहाँ कोई नही था. मुझे लगा के वो अब तक सो रही है और ये सोचकर मैं उसके कमरे की तरफ बढ़ा.

कमरे का दरवाज़ा आधा खुला हुआ था. मैने हल्के से नॉक किया तो अंदर से कोई जवाब नही आया. मैने हल्का सा धक्का दिया तो दरवाज़ा खुलता चला गया. मैं कमरे के अंदर दाखिल हुआ और एक नज़र बेड पर डाली. वो एक किंगसिज़े बेड था जिसपर रुक्मणी और देवयानी साथ सोते थे. यूँ तो घर में और भी कई कमरे थे पर दोनो बहने साथ सोती थी ताकि देर रात तक गप्पे लड़ा सकें. उस वक़्त बेड बिल्कुल खाली था. मैने कमरे में चारो तरफ नज़र डाली और जब नज़र अटॅच्ड बाथरूम की तरफ गयी तो बस वहीं जम कर रह गयी.

बाथरूम का दरवाज़ा पूरी तरह खुला हुआ था और अंदर एक औरत का पूरा नंगा जिस्म मेरी नज़र के सामने था. वो मेरी तरफ पीठ किए खड़ी थी और शवर से गिरता हुआ पानी उसके जिस्म को भीगो रहा था. एक नज़र उसपर पड़ते ही मैं समझ गया के वो देवयानी है. यूँ तो मुझे फ़ौरन अपनी नज़र उसपर से हटा लेनी चाहिए थी पर उस वक़्त का वो नज़ारा ऐसा था के मेरे पावं जैसे वहीं जाम गये. सामने खड़े उस नंगे जिस्म को मैं उपेर से नीचे तक निहारता रहा. रुक्मणी और देवयानी में शकल के सिवा एक फरक ये भी था के देवयानी जिम और एरोबिक्स क्लास के लिए जाती थी जिसकी वजह से उसका पूरा जिस्म गाथा हुआ था. कहीं भी ज़रा सी चर्बी फालतू नही थी जबकि रुक्मणी एक घरेलू औरत थी. चर्बी उसपर भी नही थी पर जो कसाव देवयानी के जिस्म में था वो रुक्मणी के जिस्म में नही था. उसकी कमर 26 से ज़्यादा नही थी पर गांद में बला का उठान था. उसका पूरा शरीर जैसे एक साँचे में ढला हुआ था.

"क्या देख रहे हो इशान?"
मैं उसको देखता हुआ अपनी ही दुनिया में खोया हुआ था के देवयानी की आवाज़ सुनकर जैसे नींद से जागा. वो जानती थी के पिछे खड़ा मैं उसको नंगी देख रहा हूँ. ये ख्याल आते ही मैं जैसे शरम से ज़मीन में गड़ गया.. अचानक वो मेरी तरफ पलटी और उसके साथ ही मैं भी दूसरी तरफ पलट गया. अब मेरी पीठ उसकी तरफ थी और वो मेरी तरफ देख रही थी.

"क्या देख रहे थे?" उसने फिर से सवाल किया
"आपको दरवाज़ा बंद कर लेना चाहिए था. मैं रुक्मणी को ढूंढता हुआ अंदर आ गया और बाथरूम का दरवाज़ा भी खुला हुआ था इसलिए ....... " मुझे समझ नही आया के इससे आगे क्या कहूँ.

"रुक्मणी तो सुबह सुबह ही मंदिर चली गयी थी और रही दरवाज़े की बात, घर में तुम्हारे सिवा कोई और है ही नही तो दरवाज़ा क्या बंद करना. और तुम? तुमसे भला कैसी शरम" वो मेरे पिछे से बोली
"मतलब?" मैने सवाल किया
"इतने भी भोले मत बनो इशान" उसकी आवाज़ से लग रहा था के वो अब ठीक मेरे पिछे खड़ी थी "मैं जानती हूँ के तुम्हारे और मेरी बहेन के बीच क्या रिश्ता है. उसने मुझे नही बताया पर बच्ची नही हूँ मैं. इतने बड़े घर में तुम फ्री में रहते हो और किराए के बदले मेरी बहेन को क्या देते हो ये भी जानती हूँ मैं"

उसकी बात सुनकर मुझे थोड़ा गुस्सा आ गया. ये बात वो एक बार पहले भी कह चुकी थी और इस बार ना जाने क्यूँ मैने उसको जवाब देने का फ़ैसला कर लिया और इसी इरादे से मैं उसकी तरफ पलटा.

मुझे उम्मीद थी के मुझे वहाँ खड़ा देखकर उसने कुच्छ पहेन लिए होगा पर पलटकर देखते ही मेरा ख्याल ग़लत साबित हो गया. वो बिना कुच्छ पहने वैसे ही नंगी बाथरूम से बाहर आ गयी थी और मेरे पिछे खड़ी थी. उसको नंगी देखकर मैं फ़ौरन फिर से दूसरी तरफ पलट गया. यूँ तो मैने बस एक पल के लिए ही नज़र उसपर डाली थी पर उस पल में ही मेरी नज़र उसकी चूचियो से होकर उसकी टाँगो के बीच काले बालों तक हो आई थी.
"क्या हुआ?" वो बोली "पलट क्यूँ गये? मेरी बहेन पसंद है, मैं पसंद नही आई?"
मैने जवाब नही दिया
"देखो मेरी तरफ इशान" उसने दोबारा कहा

अगर मैं चाहता तो उसको वहीं बिस्तर पर पटक कर चोद सकता था और एक पल के लिए मेरे दिमाग़ में ऐसा करने का ख्याल आया भी. पर सवाल रुक्मणी का था. मैं जानता था के वो मुझे बहुत चाहती है और अगर अपनी बहेन के साथ मेरे रिश्ते की भनक भी उसको पड़ गयी तो उसका दिल टूट जाएगा. रुक्मणी के दिल से ज़्यादा फिकर मुझे इस बात की थी के वो मुझे घर से निकाल देगी और इतने आलीशान में फ्री का रहना खाना हाथ से निकल जाएगा. एक चूत के लिए इतना सब क़ुरबान करना मुझे मंज़ूर नही था.

देवयानी पिछे से मेरे बिल्कुल मेरे करीब आ गयी. उसका एक हाथ मेरी साइड से होता हुआ सीधा पेंट के उपेर से मेरे लंड पर आ टीका.

"मैं जानती हूँ के तुम भी यही चाहते हो" कहते हुए उसने अपना सर मेरे कंधे पर पिछे से टीका दिया, ठीक उस जगह जहाँ कल रात चाकू की वजह से घाव था.
दर्द की एक तेज़ ल़हेर मेरे जिस्म में दौड़ गयी और जैसे उसके साथ ही मैं ख्यालों की दुनिया से बाहर आ गया. मैं दर्द से कराह उठा जिसकी वजह से देवयानी भी चौंक कर एक कदम पिछे हो गयी.
"क्या हुआ?" उसने पुचछा
"मैं चलता हूँ" मैने कहा और उसको यूँ ही परेशान हालत में छ्चोड़कर बिना उसपर नज़र डाले कमरे से निकल आया.
...............................
"कैसे आना हुआ?" मिश्रा ने चाय का कप मेरे सामने रखते हुए पुचछा
उस दिन कोर्ट में मेरी कोई हियरिंग नही थी इसलिए पूरा दिन मेरे पास था. ऑफीस जाने के बजे मैने प्रिया को फोन करके कहा के मैं थोड़ा देर से आऊंगा और सीधा पोलीस स्टेशन जा पहुँचा.

"वो तुझे बताया था ना मैने के बंगलो 13 के बारे में एक बुक लिखने की सोच रहा हूँ?" मैने कहा
मिश्रा ने हां में सर हिलाया
"तो मैं सोच रहा था के उसके पुराने मलिक के बारे मीं कुच्छ पता करूँ और वहाँ हुए पहले खून के बारे में कुच्छ और जानकारी हासिल करूँ" मैने कहा
मिश्रा ने सवालिया नज़र से मेरी तरफ देखा जैसे पुच्छ रहा हो के मैं उससे क्या चाहता हूँ.

"तो मैं सोच रहा था के क्या मैं अदिति मर्डर केस की फाइल पर एक नज़र डाल सकता हूँ?" मैने पुचछा
मिश्रा ने थोड़ी देर तक जवाब नही दिया. बस मेरी तरफ खामोशी से देखता रहा.
"पक्का किताब के लिए ही चाहिए ना इन्फर्मेशन?" उसने पुचछा
"नही. गाड़े मुर्दे उखाड़ने के लिए चाहिए. अदिति के भूत से प्यार हो गया है मुझे" मैने कहा तो हम दोनो ही हस पड़े.
"पुचछा पड़ता है यार. क्लासिफाइड इन्फर्मेशन है और साले तू दोस्त है इसलिए तुझे दे रहा हूँ. आए काम कर इधर आ" मिश्रा ने एक कॉन्स्टेबल को आवाज़ दी

मिश्रा के कहने पर वो कॉन्स्टेबल मुझे लेकर रेकॉर्ड रूम में आ गया. अदिति मर्डर केस बहुत पुराना था इसलिए वो फाइल ढूँढने में हम दोनो को एक घंटे से ज़्यादा लग गया. फाइल मिलने पर मैं वहीं एक डेस्क पर उसको पढ़ने बैठ गया और जो इन्फर्मेशन मेरे काम को हो सकती थी वो सब अलग लिखने लग गया. मुझे कोई अंदाज़ा नही था के मैं ये सब क्यूँ कर रहा था. सोनी मर्डर केस का इस मर्डर से कोई लेना देना नही था सिवाय इसके के दोनो एक ही घर में हुए थे. सोनी मर्डर पर मेरी मदद रश्मि सोनी को चाहिए थी पर अदिति मर्डर केस में मुझसे किसी ने मदद नही माँगी थी और इतनी पुरानी फाइल्स खोलने के मेरे पास कोई वजह भी नही थी सिवाय इसके के उस बंगलो में अक्सर रातों में लोगों ने किसी को गाते सुना था और आजकल मुझे भी एक गाने की आवाज़ तकरीबन हर रोज़ सुनाई देती थी.

आधे घंटे की मेहनत के बाद मैने फाइल बंद कर दी. जो इन्फर्मेशन मुझे अपने काम की लगी और जो मैने लिख ली वो कुच्छ यूँ थी.

* अदिति कौन थी और कहाँ से आई थी ये कोई नही जानता था. उसके बारे में जो कुच्छ भी फाइल्स में था वो बस वही था जितना उसने अपने पति को खुद बताया था.
* फाइल्स के मुताबिक अदिति के पति ने पोलीस को बताया था के अदिति कहीं किसी गाओं से आई थी. उसके माँ बाप बचपन में ही मर गये थे और किसी रिश्तेदार ने उसको पालकर बड़ा किया था. पर वो उसके साथ मार पीट करते थे इसलिए वो वहाँ से शहेर भाग आई थी ताकि कुच्छ काम कर सके.
* वो देखने में बला की खूबसूरत थी. यूँ तो पोलीस फाइल्स में उसकी एक ब्लॅक & वाइट फोटो भी लगी हुई थी पर उसमें कुच्छ भी नज़र नही आ रहा था. बस एक धुँधला सा चेहरा.
* उसकी खूबसूरती की वजह से उसको नौकरी ढूँढने में कोई परेशानी नही हुई. बंगलो 13 में उसने सॉफ सफाई का काम कर लिया और बाद में उसके मालिक से शादी भी कर ली.
* उसके पति के हिसाब से शादी की 2 वजह थी. एक तो उसकी खूबसूरती और दूसरा उनके बीच बन चुका नाजायज़ रिश्ता. वो घर में सफाई के साथ बंगलो के मालिक का बिस्तर भी गरम करती थी. मलिक एक बहुत ही शरिफ्फ किस्म का इंसान था और उसको लगा के उसने बेचारी उस लड़की का फयडा उठाया है इसलिए अपने गुनाह को मिटाने के लिए उसने घर की नौकरानी को घर की मालकिन बना दिया.
* उसके पति के हिसाब से शादी के बाद ही अदिति के रंग ढंग बदल गये थे. जो एक बात अदिति ने खुद ही उसके सामने कबूल की थी वो ये थी के वो पहले भी किसी के साथ हमबिस्तर हो चुकी थी पर कौन ये नही बताया और ना ही उसके पति ने जाने की कोशिश की क्यूंकी वो गुज़रे कल को कुरेदने की कोशिश नही करना चाहता था.
* अदिति का नेचर बहुत वाय्लेंट था. वो ज़रा सी बात पर भड़क जाती और उसके सर पर जैसे खून सवार हो जाता था. इस बात का पता पोलीस को पड़ोसियों से भी चला था.
* उसके पति ने बताया था के शादी के बाद एक बार खुद अदिति ने ये बात कबुली थी के उसका कहीं पोलीस रेकॉर्ड भी रह चुका था. कहाँ और क्यूँ ये उसने नही बताया.

और सबसे ख़ास बातें

* अदिति की लाश पोलीस को कभी नही मिली. उसके पति के हिसाब से उसने उसको मारा, फिर काटकर छ्होटे छ्होटे टुकड़े किए और जला दिया. ये बात एकीन करने के लायक नही थी क्यूंकी हर किसी ने उस वक़्त इस बात की गवाही दी थी के अदिति का पति बहुत ही शांत नेचर का आदमी था.
* अदिति का खून हुआ इस बात का फ़ैसला सिर्फ़ इस बिना पर हुआ था के उसके पति के जुर्म कबूल किया था पर और वो हथ्यार पेश किया था जिसपर अदिति के खून के दाग थे.
* अदिति गाती बहुत अच्छा थी. उसके पति के हिसाब से हर रात उसके गाने की आवाज़ से ही उसको नींद आती थी.
* आखरी कुच्छ दीनो में उसके पति को शक हो चला था के अदिति का कहीं और चक्कर भी है. अदिति ने अक्सर अपने पति को अपने गाओं के एक दोस्त के बारे में बताया था जिसके साथ वो शहेर आई थी पर खून के बाद पोलीस उस आदमी का कुच्छ पता नही लगा सकी.
* उसके पति के हिसाब से, अदिति को उसकी जानकारी के बाहर एक बच्चा भी था, शायद एक बेटी क्यूंकी उसे लगा था के उसने अदिति को अक्सर किसी छ्होटी बच्ची के लिए चीज़ें खरीदते देखा था.

मैं पोलीस रेकॉर्ड रूम से बाहर आया तो मिश्रा कहीं गया हुआ था. पोलीस स्टेशन से निकलकर मैं अपनी गाड़ी में आ बैठा और ऑफीस की तरफ बढ़ गया.

पोलीस स्टेशन से मैं ऑफीस पहुँचा तो प्रिया जैसे मेरे इंतेज़ार में ही बैठी थी.
"कहाँ रह गये थे? कहीं डेट मारके आ रहे हो क्या?" मुझे देखते ही वो बोल पड़ी

मैने एक नज़र उसपर डाली तो बस देखता ही रह गया. ये तो नही कह सकता के वो बहुत सुंदर लग रही थी पर हां मुझे यकीन था के अगर वो उस हालत में सड़क पर चलती तो शायद हर मर्द पलटकर उसको ही देखता. उसने ब्लू कलर की एक शॉर्ट शर्ट पहनी हुई थी और नीचे एक ब्लॅक कलर की जीन्स. वो शर्ट ज़ाहिर था के उसकी बड़ी बड़ी चूचियो की वजह से उसके जिस्म पर काफ़ी टाइट थी और सामने से काफ़ी खींच कर बटन्स बंद किए गये थे. उसको देखने से लग रहा था के शर्ट के बटन अभी टूट जाएँगे और च्चातियाँ खुलकर सामने आ जाएँगी. यही हाल नीचे उसकी जीन्स का भी था. वो बहुत ज़्यादा टाइट थी जिसमें उसकी गांद यूँ उभर कर सामने आ रही थी के अगर वो प्रिया की जगह कोई और होती तो शायद मैं किसी जानवर की तरह उसपर टूट पड़ता.

मेरे दिमाग़ में अब भी अदिति के बारे में वो बातें घूम रही थी इसलिए मैं बस उसको देखकर मुस्कुराया और जाकर अपनी सीट पर बैठ गया. मेरे यूँ खामोशी से जाकर बैठ जाने की वजह से उसको लगा के मैं किसी बात को लेकर परेशान हूँ इसलिए वो मेरी डेस्क के सामने आकर बैठ गयी.

"कुच्छ नही ऐसे ही" मैने उसको कहा "तुमने खाना खाया?"
"मूड खराब है?" उसने सवाल किया "या थके हुए हो?"
"नही ऐसा कुच्छ नही है" मैने हस्ने की फ़िज़ूल कोशिश की जो शायद उससे भी छुप नही सकी.
"मैं जानती हूँ के आपकी थकान कैसे दूर करनी है" कहते हुए वो उठी और घूमकर मेरी टेबल के उस तरफ आई जिधर मैं बैठा हुआ था. ये उसकी आदत थी के जब मैं थका होता तो अक्सर मेरे पिछे खड़े होकर मेरा सर दबाती थी और उसकी ये हरकत असर भी करती थी. उसके हाथों में एक जादू सा था और पल भर में मेरी थकान दूर हो जाती थी.

पर जाने क्यूँ उस वक़्त मेरा मंन हुआ के मैं उसको रोक दूं इसलिए जैसे ही वो मेरी तरफ आई मैने अपना चेहरा उठाकर उसकी तरफ देखा. पर उस वक़्त तक वो मेरे काफ़ी करीब आ चुकी थी और जैसे ही मैने चेहरा उसकी तरफ उठाया तो मेरा मुँह सीधा उसकी एक चूची से जा लगा. लगना क्या यूँ कहिए के पूरा उसकी छाती में ही जा घुसा.
"आइ आम सॉरी" मैने जल्दी से कहा.
"अब सीधे बैठिए" उसने ऐसे कहा जैसे उसको इस बात का कोई फरक ही ना पड़ा हो और मेरे पिछे आ खड़ी हुई.

थोड़ी ही देर बाद मैं आँखें बंद किए बैठा और उसके मुलायम हाथ मेरे सर पर धीरे धीरे मसाज कर रहे थे. कई बार वो मसाज करते हुए आगे को होती या मेरा सर हल्का पिछे होता तो मुझे उसकी चूचिया सर के पिच्छले हिस्से पर महसूस होती. ये एक दो तरफ़ा तकरीना साबित हुआ मेरी थकान उतारने का. एक तो उसका यूँ सर दबाना और पिछे से मेरे सर और गले पर महसूस होती उसकी चूचिया. पता नही वो ये जान भूझकर कर रही थी या अंजाने में या उसको इस बात का एहसास था भी या नही.

"बेटर लग रहा है?" उसने मुझे पुचछा तो मैने हां में सर हिला दिया
थोड़ी देर बाद मेरा सर दबाने के बाद उसके हाथ मेरे फोर्हेड पर आ गये और वो दो उंगलियों से मेरा माथा दबाने लगी. ऐसे करने के लिए उसको मेरा सर पिछे करके मेरा चेहरा उपेर की ओर करना पड़ा. ऐसा करने का सीधा असर ये हुआ के मेरा सर जो पहले उसकी चूचियो पर कभी कभी ही दब रहा था अब सीधा दोनो चूचियो के बीच जा लगा, जैसे किसी तकिये पर रख दिया गया हो. मेरी आँखें बंद थी इसलिए बता नही सकता के उस वक़्त प्रिया के दिमाग़ में क्या चल रहा था या उसके चेहरे के एक्सप्रेशन्स क्या थे पर मैं तो जैसे जन्नत में था. एक पल के लिए मैने सोचा के आँखें खोलकर उसकी तरफ देखूं पर फिर ये सोचकर ख्याल बदल दिया के शायद वो फिर शर्मा कर हट जाए. दूसरी तरफ मुझे खुद पर यकीन नही हो रहा था के मेरी वो सेक्रेटरी जिसे मैं एक पागल लड़की समझता आज उसी को देख कर मैं सिड्यूस हो रहा था.

raj..
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Re: Bhoot bangla-भूत बंगला

Unread post by raj.. » 14 Dec 2014 12:01


वो काफ़ी देर से मेरा सर दबा रही थी. ऐसा अक्सर होता नही था. वो 5 या 10 मीं मेरा सर दबाके हट जाती थी पर इस बार 20 मिनट से ज़्यादा हो चुके थे. ना इस दौरान मैने ही कुच्छ कहा और ना ही उसने खुद हटने की कोशिश की. अब मेरा सर लगातार उसकी चूचियो पर ही टीका हुआ था और बीच बीचे में उसके मेरे सर पर हाथ से ज़ोर डालने की वजह से चूचियो पर दबने भी लगता था. ऐसा होने पर वो मेरे सर को कुच्छ पल के लिए यूँ ही दबाके रखती और उसकी इस हरकत से मुझे शक होने लगा था के वो ये जान भूझकर कर रही थी.

जाने ये खेल और कितनी देर तक चलता या फिर कहाँ तक जाता पर तभी मेरे सामने रखे फोन की घंटी बजने लगी. घंटी की आवाज़ सुनते ही मैने फ़ौरन अपनी आँखें खोली और प्रिया मुझे एक झटके से दूर हो गयी, जैसे नींद से जागी हो.
"हेलो" मैने फोन उठाया. प्रिया वापिस अपनी डेस्क पर जाकर बैठ चुकी थी.
"मिस्टर आहमेद" दूसरी तरफ से वही आवाज़ आई जिसे सुनकर मैं दीवाना सा हो गया था "मैं रश्मि सोनी बोल रही हूँ"
"हाँ रश्मि जी" मैने कहा
"मैं सोच रही के के क्या आपको बंगलो 13 से बात करने का मौका मिला?"
मैं इस बारे में भूल ही चुका था. मुझे उसको बंगलो दिखाने ले जाना था.
"मैं आपको शाम को फोन करता हूँ" मैने कहा.
फोन रखने के बाद मैं प्रिया की तरफ पलटा तो वो मुस्कुरा रही थी.
"रश्मीईीईईईईई" उसने जैसे गाना सा गया
"सिर्फ़ क्लाइंट है" मैने जवाब दिया
"तो चेहरा इतना चमक क्यूँ रहा है उसकी आवाज़ सुनके" प्रिया बोली तो मैं किसी नयी दुल्हन की तरह शर्मा गया.

ये प्यार भी साला एक अजीब बला होती है. वैसा ही जैसा घालिब जे अपनी एक गाज़ल में कहा था "ये इश्क़ नही आसान बस इतना समझ लीजिए, एक आग का दरिया है और डूबके जाना है". मेरे साथ भी कुच्छ ऐसा ही हो रहा था. रश्मि का ख्याल आते ही समझ नही आता था के हसु या रो पदू. दिल में दोनो तरह की फीलिंग्स एक साथ होती थी. अजीब गुदगुदी सी महसूस होती थी जबकि उससे मिले मुझे अभी सिर्फ़ एक दिन ही हुआ था. उसका वो मासूम खूबसूरत चेहरा मेरे आँखों के सामने आते ही मुझे अजीब सा सुकून मिलता था और उसी के साथ दिल में बेचैनी भी उठ जाती थी.
मैं जब लॉ पढ़ रहा था उस वक़्त एक हॉस्टिल में रहता था.

हॉस्टिल एक ईईडC नाम की कमिट चलती थी. इंडियन इस्लामिक डेवेलपमेंट कमिटी के नाम से वो ऑरजिसेशन उन मुस्सेलमान लड़के और लड़कियों की मदद के लिए बनाई गयी थी जो अपनी पढ़ाई का खर्चा खुद नही उठा सकते थे. मैं जब शहेर आया था तो जेब में बस इतने ही पैसे थे के अपने कॉलेज की फीस भर सकूँ, रहने खाने का कोई ठिकाना नही था. एक शाम मस्जिद के आगे परेशान बैठा था तो वहाँ नमाज़ पढ़ने आए एक आदमी ने मुझे इस कमिटी के बारे में बताया. एक छ्होटे से इंटरव्यू के बाद मुझे हॉस्टिल में अड्मिशन मिल गया. रहना खाना वहाँ फ्री था और पढ़ाई का खर्चा उठाने के लिए मैने एक गॅरेज में हेलपर की नौकरी कर ली.

वो हॉस्टिल मस्जिद में जमा चंदे के पैसे से चलाया जाता था पर वहाँ अड्मिशन की बस एक ही कंडीशन थी, आप इंटेलिजेंट हों और अपने फ्यूचर के लिए सीरीयस हों तो आपको मदद मिल सकती है. सिर्फ़ मुस्सेलमान हों ऐसी कोई कंडीशन नही थी जिसकी वजह से हॉस्टिल में एक मिला जुला क्राउड था. हर मज़हब के लोग वहाँ मौजूद थे. लड़के भी और लड़कियाँ भी.

मुस्लिम ऑर्गनाइज़ेशन का कंट्रोल होने की वजह से वहाँ लड़के और लड़कियों को साथ में रहने की इजाज़त नही थी. लड़कियों का हॉस्टिल वहाँ से थोड़ी दूर पर था और वहाँ ना जाने की हिदायत हर लड़के को दी गयी थी. जो कोई भी हॉस्टिल के रूल्स तोड़ता था उसको वहाँ से निकाल दिया जाता था.

वहाँ मौजूद लड़को मे ज़्यादातर ऐसे थे जो अपने फ्यूचर को लेकर काफ़ी सीरीयस थे और ये बात जानते थे के अगर हॉस्टिल से निकाले गये तो बस अल्लाह ही मालिक है. इन सबका नतीजा ये हुआ के मैं कभी किसी लड़की से दोस्ती नही कर सका. कॉलेज में कुच्छ थी साथ में पढ़ने वाली पर वहाँ किसी से बात नही हो सकी. कॉलेज के बाद मुझे नौकरी पर जाना होता था और वहाँ से वापिस आते ही बिस्तर पकड़ लेता था. उस तेज़ी से भागती ज़िंदगी में प्यार किस चिड़या का नाम है कभी पता ही ना चला. किसी लड़की के साथ हम-बिस्तर होना तो दूर की बात थी, मैने तो कभी किसी लड़की का हाथ तक नही पकड़ा था. रुक्मणी वो पहली औरत थी जिससे मेरा जिस्मानी रिश्ता बना और काफ़ी टाइम तक मेरी ज़िंदगी में बस वही एक औरत रही.

रश्मि को देखकर मुझे लगा के मैं समझ गया के प्यार क्या होता है पर अभी भी कन्फ्यूज़्ड था के ये प्यार ही है ये यूँ बस अट्रॅक्षन. परेशान इसलिए था के वो इतनी खूबसूरत है तो ज़रूर उसका कोई चाहने वाला भी होगा जिसका मतलब ये है के मेरा कोई चान्स नही था. कहते हैं के प्यार एक झलक में ही हो जाता है. मेरा इसमें कभी यकीन नही था पर शायद अब मैं अपने आपको ही ग़लत साबित कर रहा था. मेरी ज़िंदगी में औरतें थी उस वक़्त, रुक्मणी, देवयानी और प्रिया और तीनो के साथ किसी ना किसी लम्हे मेरा एक जिस्मानी तार जुड़ा ज़रूर था पर उन तीनो में से किसी के लिए भी मुझे अपने दिल में वो महसूस ना हुआ जो रश्मि को बस एक बार देखने भर से हो गया था.

मैं एक वकील था और एक लड़की पर बुरी तरह मर मिटा था पर इसके बावजूद मैं ये जानता था के जो मैं कर रहा हूँ वो मेरे लिए भी ख़तरनाक साबित हो सकता है. बिना हाँ बोले ही मैने रश्मि की मदद के लिए उसको हाँ बोल दी थी. वो एक लड़की थी जो अपने बाप की मौत का बदला लेना चाहती थी पर मुझे समझ नही आ रहा था के इसमें मेरे लिए क्या है? पैसा पर वो उस रिस्क के मामले में कुच्छ भी नही जो मैने ली है. उपेर से मेरे कानो में गूँजती वो गाने की आवाज़ जिसके वजह से मैने अदिति केस के गाड़े मुर्दे उखाड़ने शुरू कर दिए थे. जिसकी वजह से मुझे लगने लगा था के कहीं मैं पागल तो नही हो रहा. मेरा खामोश चलती ज़िंदगी अचानक इतनी तेज़ी से भागने लगी थी के मेरे लिए उसके साथ चलना मुश्किल हो गया था.

उसी शाम मैने बंगलो के मालिक से बात की. वो मुझे जानता था इसलिए काफ़ी आसानी से मुझे बंगलो की चाबी दे दी. मैने रश्मि को फोन करने की सोची पर फिर अपना ख्याल बदल कर एक मेसेज उसके सेल पर भेज दिया के वो मुझे कल सुबह 10 बजे बंगलो के पास मिले. उसका थॅंक यू मेसेज आया तो मेरा दिल जैसे एक बार फिर भांगड़ा करने लगा.

शाम को मुझे पता चला के रुक्मणी और देवयानी दोनो किसी किटी पार्टी में जा रही हैं और रात को घर वापिस नही आएँगी. उनके जाने के बाद मैं थोड़ी देर यूँ ही घर में अकेला बैठा बोर होता रहा. जिस हॉस्टिल में मैं रहता था वहाँ कोई टीवी नही था और बचपन में मेरे घर पर भी कोई टीवी नही था. पड़ोसी के यहाँ मैं कभी कभी टीवी देखने चला जाता था इसलिए जब रुक्मणी के यहाँ शिफ्ट किया तो वहाँ एक अपने टीवी पाकर मुझे बहुत खुशी हुई थी. मैं घंटो तक बैठा टीवी देखता रहता था और कभी कभी तो पूरी रात टीवी के सामने गुज़र जाती थी. पर उस वक़्त तो टीवी देखना भी जैसे एक बोरिंग लग रहा था. मैं बेसब्री से अगले दिन का इंतेज़ार कर रहा था ताकि मैं सुबह सुबह रश्मि से जाकर मिल सकूँ.

शाम के 8 बजे मैने स्विम्मिंग के लिए जाने का फ़ैसला किया. कॉलोनी में एक स्विम्मिंग पूल था जो रात को 10 बजे तक खुला रहता था इसलिए मेरे पास 2 घंटे थे. पहले मैं वहाँ तकरीबन हर रोज़ शाम को ऑफीस के बाद जाया करता था पर पिच्छले कुच्छ दिन से गया नही था. मैने अपने कपड़े बदले और बॅग उठाकर पैदल ही स्विम्मिंग पूल की तरफ निकल पड़ा.

आधे रास्ते में मेरे फोन की घंटी बजने लगी. नंबर प्रिया का था.
"हाँ बोल" मैने फोन उठाते ही कहा
"कल रात क्या कर रहे हो?" उसने मुझसे पुचछा
"कल रात?" मुझे कुच्छ समझ नही आया
"हाँ. मैं चाहती हूँ के कल रात का डिन्नर आप मेरे घर पर करें. मम्मी डॅडी से मैने बात कर ली है" वो खुश होते हुए बोली
"यार कल रात तो .........."
"प्लज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़"
मैने कुच्छ कहना शुरू ही किया था के उसने इतना लंबा प्लीज़ कहा के मैं इनकार नही कर सका और अगले दिन शाम को ऑफीस के बाद उसके घर पर डिन्नर के लिए मान गया.

जब मैं स्विम्मिंग पूल पहुँचा तो एक पल के लिए अपना स्विम्मिंग का इरादा बदलने की सोची. आम तौर पर रात को उस टाइम ज़्यादा लोग नही होते थे और पूल तकरीबन खाली होता था पर उस दिन तो जैसे पूल में कोई मेला लगा हुआ था. कुच्छ पल वहीं खड़े रहने के बाद मैने फ़ैसला किया के अब आ ही गया हूं तो थोड़ी देर स्विम कर ही लेता हूँ और कपड़े बदलकर पानी में उतर गया.

तकरीबन अगले आधे घंटे तक मैं कॉन्टिनोसली स्विम करता रहा. पूल के एक कोने से दूसरे कोने तक लगातार चक्कर लगता रहा और इसके साथ ही पूल में लोगों की भीड़ कम होती चली गयी. जब पूल में मौजूद आखरी आदमी बाहर निकला तो मैने वहीं साइड में लगी एक वॉल क्लॉक पर नज़र डाली. 9.30 हो रहे थे यानी मेरे पास अभी और आधा घंटा था पर एक घंटे की कॉन्टिनोस स्विम्मिंग के बाद मैं बुरी तरह थक चुका था. वहीं पूल के साइड में रखे एक छ्होटे से वॉटर कुशन को मैने पानी में खींचा और उसपर चढ़कर आराम से स्विम्मिंग पूल के बीच में आँखें बंद करके लेट गया.
मैं थका हुआ था इसलिए आँखें बंद करते ही मुझे लगा के मैं कहीं यहीं सो ना जाऊं. मेरे पेर अब भी पानी के अंदर थे और चारो तरफ एक अजीब सी खामोशी फेल चुकी थी. बस एक पानी के हिलने की आवाज़ आ रही थी. पूल में उस वक़्त कोई भी नही था सिवाय उस वॉचमन के जो गेट के बाहर बैठा था. मुझे खामोशी में यूँ घंटो बेते रहने की आदत थी पर उस वक़्त वो खामोशी बहुत अजीब सी लग रही थी, दिल को परेशान कर रही थी. मैने पूल से निकल कर घर जाने का फ़ैसला किया. मैं अभी निकलने के बारे में सोच ही रहा था के फिर वही गाने की आवाज़ मेरे कानो में पड़ी और जैसे सारी बेचैनी और परेशानी एक सेकेंड में हवा हो गयी. आँखें बंद किए किए में कुच्छ ही मिनिट्स में नींद के आगोश में चला गया.

तभी पानी में हुई कुच्छ हलचल से मेरी नींद फ़ौरन खुल गयी. मैने आँखें खोलकर चारो तरफ देखा ही था के जैसे किसी ने मेरा पेर पकड़ा और मुझे पानी में खींच लिया. पानी में गिरते ही मुझे ऐसा लगा जैसे मैं स्विम करना भूल गया हूँ और मेरा वज़न कई गुना बढ़ गया जिसकी वजह से मैं पानी में डूबता चला गया. जब मेरे पावं नीचे पूल के फ्लोर से जाके लगे तो मैने अपनी सारी ताक़त दोबारा जोड़ी और फिर से उपेर की तरफ स्विम करना शुरू किया. जो एक रोशनी पानी में से मुझे नज़र आ रही थी वो आसमान में चाँद की थी और मैं बस उसको देखते हुए ही पूरी हिम्मत से उपेर को तैरता रहा. पर पानी तो जैसे ख़तम होने का नाम ही नही ले रहा था. मैं उपेर को उठता जा रहा था पर पानी से बाहर नही निकल पा रहा था जैसे मैं किसी समुंदर की गहराई में जा फसा था. मेरा दम घुटने लगा था और मैं जानता था के अगर पानी से बाहर नही निकला तो यहीं मर जाऊँगा.

पानी अब भी मेरे उपेर उतना ही था और चाँद था के करीब आने का नाम ही नही ले रहा था. लग रहा था जैसे मैं एक ही जगह पर हाथ पावं मार रहा हूँ जबकि मैं जानता था के मैं उपेर उठ रहा हूँ क्यूंकी पूल का फ्लोर मुझे अब दिखाई नही दे रहा था. मेरे उपेर भी पानी था और नीचे भी. साँस और रोके रखना अब नामुमकिन हो गया था. मेरे लंग्ज़ जैसे फटने लगे थे. आँखों के आगे अंधेरा छाने लगा था और लग रहा था जैसे दिमाग़ में कोई हथोदे मार रहा है. मैं समझ गया के मेरा आखरी वक़्त आ गया है.

तभी ऐसा लगा जैसे चाँद टूट कर पूल में ही आ गिरा और पानी में रोशनी फेल गयी. मुझसे कुच्छ दूर पानी में कुच्छ बहुत तेज़ चमक रहा था. मैं एकटूक उसकी तरफ देखता रह गया और तभी मुझे एहसास हुआ के मेरा दम अब घुट नही रहा था और ना ही मुझे साँस लेने की ज़रूरत महसूस हो रही थी. मैं बिल्कुल ऐसे था जैसे मैं ज़मीन पर चल रहा हूँ. फिर भी मैने हल्की सी साँस अंदर ली तो उम्मीद के खिलाफ मुझे अपने लंग्ज़ में पानी भरता महसूस ना हुआ. सिर्फ़ हवा ही अंदर गयी और मैं बेझिझक साँस लेने लगा. मैं अब उपेर उठने की कोशिश नही कर रहा था. बस पानी में एक जगह पर रुका हुआ था पर उसके बावजूद भी डूब नही रहा था. किसी फिश की तरह मैं पानी में बस एक जगह पर रुका हुआ अपने सामने पानी में उस सफेद रोशनी को देख रहा था.

तभी मुझे फिर वही गाने की आवाज़ पानी में सुनाई दी. आवाज़ उस सफेद रोशनी की तरफ से ही आ रही थी. और उस गाने के साथी ही मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे चारो तरफ पानी में कॅंडल्स जल गयी हो. पानी में हर तरफ रोशनी ही रोशनी थी. लाल, नीली, हरी, हर तरह की रोशनी.

गाने की आवाज़ अब तेज़ हो चली थी और थोड़ी देर बाद इतनी तेज़ हो गयी थी के मुझे अपने कानो पर हाथ रखने पड़े. वो क्या गा रही थी ये तो अब भी समझ नही आ रहा था पर एक हाइ पिच की आवाज़ मेरे कान के पर्दे फाड़ने लगी. आवाज़ इतनी तेज़ हो गयी थी के मेरे लिए बर्दाश्त करना मुश्किल हो गया था. वो अब एक मधुर गाने की आवाज़ ना बनकर एक ऐसा शोर बन गयी थी जो मुझे पागल कर रहा था. मैने अपने कानो पर हाथ रखकर अपनी आँखें बंद की और एक ज़ोर से चीख मारी. इसके साथ ही शोर रुक गया और मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरे मुँह पर पानी फेंका हो.

पानी मुँह पर गिरते ही मेरी आँख खुल गयी और मैं जैसे एक बहुत लंबी नींद से जागा. मैं अब भी पानी में था और मेरा सर पानी के बाहर था.आसमान पर सूरज ही हल्की सी रोशनी फेल चुकी थी. मैने हैरान होकर घड़ी की तरफ नज़र डाली तो सुबह के 6 बज रहे थे. मेरा दिमाग़ घूम सा गया. मैं पूरी रात यहीं पूल में सोता रहा था और पानी में गिरने की वजह से मेरी आँख खुली. परेशान मैं पानी से निकला और चेंज करके गेट तक पहुँचा. गेट लॉक्ड था. मैं अभी सोच ही रहा था के क्या करूँ के तभी दरवाज़ा खुला. वो वॉचमन था जो मुझे यूँ अंदर देखकर परेशान हो उठा. वो रात को 10 बजे पूल बंद करके घर चला जाता था और सुबह 6 बजे आकर खोलता था. मैने उसको बताया के रात उसने मुझे रात अंदर ही बंद कर दिया था. उसने फ़ौरन मेरे पावं पकड़ लिए के मैं किसी को ये बात ना बताऊं वरना उसकी नौकरी जाएगी. उसके हिसाब से उसने लॉक करने से पहले पूरे पूल का चक्कर लगाया था और मैं कहीं भी उसको नज़र नही आया था.
मैने उसको भरोसा दिलाया के मैं किसी से नही कहूँगा और घर की तरफ बढ़ा. वापिस जाते हुए मेरे दिमाग़ में बस एक ही ख्याल था. वो क्या सपना था जो मैं पूल में सोते हुए देख रहा था. वो रोशनी और उस आवाज़ का इस तरह तेज़ हो जाना. और ऐसा कैसे हुआ के मैं आराम से पूल के बीचो बीच उस कुशन पर पड़ा सोता रहा और पूरी रात मुझे इस बात का एहसास भी नही हुआ जबकि मेरी नींद तो हल्की सी आवाज़ से भी खुल जाती थी. और सबसे बड़ी बात ये के जब उस वॉचमन ने पूल का चक्कर लगाया तो मैं पूल के बीचो बीच उसको सोता हुआ नज़र क्यूँ नही आया.


क्रमशः.........................

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