सीता --एक गाँव की लड़की--16
काफी देर तक हम दोनों चिपक के सोते रहे...फिर सन्नी उठा और बाथरूम में फ्रेश होने घुस गया..मैं उसे जाते ही गीली तौलिया से बदन को ढ़क ली..और कमप्यूटर स्क्रीन पर नजर डाली तो दोनों कपड़े पहन रहे थे..
मतलब वो दोनों कभी भी इधर आ सकते थे...मैंने तेजी से उसी तौलिये से खुद को साफ की..और कपड़े पहन ली..
तभी बंटी बाहर आया और हमें कपड़े में देख आश्चर्य से देखने लगा तो मैंने उसे कमप्यूटर की तरफ इशारा कर दी..वो स्क्रीन की तरफ देखते ही मुस्कराता हुआ अपने कपड़े पहन लिए और कमप्यूटर पर कोई नई गाने प्ले कर दिया...
मैं भी अपनी नजर चल रही संगीत की तरफ कर दी मानों जब से आईहूं, गाने ही देख रही हूँ..तभी मैंने सन्नी से पूछी,"तुम पूजा की फिल्म क्यों बनाए हो?"
" बस यादगार के लिए ताकि जब किसी वजह से ये सब नहीं हो पाता तो वही सब देख के खुद को शांत कर लेता हूँ" सन्नी मेरी तरफ देख बेहिचक बोल दिया...उसके बोलने से ऐसा बिल्कुल नहीं लग रहा था ये मेरी इस सवाल से थोड़ी भी नर्वस है...
मतलब आदमी जब ऐसे कुछ कहता है तो लगता नहीं कि ये कुछ गलत करेगा..मैंने उसकी बातों को सुन चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट लाती हुई बोली," अच्छा तो तुमने मेरी भी बना ली है?"
उसने हंसते हुए हां में सिर हिला दिया..मैं बेड से हंसते हुए उठी और उसके गोद में जाकर बैठती हुई उसके होंठो के पास अपने होंठ ले जाती हुई बोली," फिर तुम्हें बताना चाहिए था ना ताकि मैं और अच्छी से परफॉमेंस करती जिससे मूवी और बेस्ट लगती.."
वो एक बार तो सोच में पड़ गया कि पता नहीं मैं कैसा बिहेव करूंगी पर शायद उसे इतना जरूर विश्वास था कि मैं ज्यादा गुस्से नहीं करूंगी..पर अब तो वो शायद ये सोच रहा होगा कि या तो इसे काफी मजा आ रहा है या पहले से ही रंडी है....
मेरी बात सुनते ही उसने अपने होंठ मेरे होंठ पर चिपका दिया..कुछ देर चूसने के बाद वो हटा और बोला,"चिंता मत करो जान, अभी तो शुरूआत है..अगली बार से मैं और भी बहुत कुछ करूंगा जो शायद तुम सोच भी नहीं सकती.."
"अच्छा...." और मैं उसके गालों पर अपने दांत लगा दी..वो कसमसा गया दर्द से... तभी गेट धड़ाम से खुली और पूजा मुझे सन्नी की गोद में देख वॉव करती हुई अपने होंठ गोल कर देखने लगी..
पीछे से बंटी भी आया और मुझे देखते ही बोला,"सीता, अब अगर तुम्हारी ये तोता-मैना का प्यार खत्म हुआ हो तो घर चलने का कष्ट करेंगे क्योंकि बारिश बंद हो चुकी है.."
ओह गॉड! मैं भी कितनी पागल थी, अब तक सन्नी की गोद से उठी नहीं थी..मैं झेंपते हुए तेजी से उठी और खड़ी हो गई..सब मेरी इस हरकत से हँस पड़े..
"भाभी, चलेंगे या और रूकेंगे.." पूजा मेरी तरफ हंसती हुई बोली..मैं उसकी बात सुनते ही बिना कुछ कहे बाहर की तरफ चल दी..
फिर वो तीनों भी पीछे से हंसते हुए आए..फिर हम सब बाइक पर बैठे और घर की तरफ चल दी..सच, काफी मजा आया आज सन्नी के साथ..सन्नी कितना केयर करता था मेरी...मैं बाईक पर ही सन्नी के कंधे पर सर टिकाती चिपक के सो गई थी...एक तो सन्नी जैसा केयरिंग बॉयफ्रेंड पा कर और दूसरी बारिश के बाद लग रही ठंड की वजह से...
कुछ कुछ अंधेरा घिरने लगी थी तो मैंने उसे घर तक चलने बोली वर्ना मेन रोड पर उतरनी पड़ती..5 मिनट में ही हम घर पहुंच गए..हम दोनों गुड बाय किस किए और फिर वो दोनों चला गया...
अंदर आते ही हम दोनों कपड़े चेंज किए और किचन में घुस गए..कुछ घंटों में श्याम भी आ गए थे..फिर खाना खा एक चरण जम के श्याम से चुदी और सो गई...
सुबह रोज की भांति मेरी नींद खुली तो देखी मैं सिर्फ पेंटी में अपने पति की बांहों में सोई थी..चेहरे पर मुस्कान लाते हुए मैं आहिस्ते से उठी ताकि श्याम की नींद ना खुले..फिर नंगी शीशे के पास खड़ी हो जोर की अंगड़ाई ली..ऐसी अवस्था में देख मैं खुद शर्मा गई..
फिर मेरी गंदी दिमाग एक्टिव हो मुझे एक आइडिया दे गई जिसे सोच मैं पानी-2 हो गई..फिर मैं अपने होंठो पर हंसी लाते चल दी...
अब मै सिर्फ पेंटी में या यूं कहिए पूरी नंगी..अपने फ्लैट के बालकनी में खड़ी थी..सुबह की ताजी हवा सीधी मेरे अंदर प्रवेश कर रही थी जिससे मैं तेजी से तरोताजा हो रही थी.. एक नजर दूसरे घरों पर नजर डाली जहां कुछ पक्षी के अलावा कोई नहीं था..
अब मैं निश्चिंत हो कर खड़ी हो गई और अपनी दोनों बांहें दोनों तरफ फैला दी..सूरज की हल्की किरणों के साथ ताजी हवा का आनंद लिए जा रही थी..अगली कुछ ही पलों में मेरी आँखें अनायास ही बंद हो गई..और सिर ऊपर की तरफ कर तन के खड़ी थी...मेरी दोनों कबूतर पर पड़ रही लाल रोशनी से काफी चमक रही थी..और मेरी तरह उसकी निप्पल भी सुबह का आनंद कड़क हो ले रही थी...
अचानक मेरे कानों में डोरबेल की आवाज गनगनाती हुई घुसी..मैं चौंकती सी आंख खोल के सामने देखी तो...ओहहह मर गईई...दूधवाले अंकल घंटी बजा कर मुंह खोल मेरी तरफ ताके जा रहे थे..
मैं तेजी से मुड़ भागती हुई अंदर दौड़ पड़ी..अंदर आते ही मैं हांफ रही थी..ये मैं दौड़ने से नहीं बल्कि खुद को नंगी दूधवाले के सामने दिखने से हो रही थी...
फिर मैं हंसती हुई शांत हुई और कपड़े पहनने के लिए आगे बढ़ी...सामने मेरी कल वाली कैप्री और टी-शर्ट टंगी थी जो रात भर में सूख गई थी..मैं आगे बढ़ी और कैप्री टीशर्ट पहन ली..अंदर ब्रॉ नहीं पहनी जिससे मोरी कड़क निप्पल अभी भी खड़ी थी..फिर मैं किचन से बर्तन ले बाहर की तरफ चल दी...
बाहर मेन गेट खोलते ही मेरी नजर दूधवाले से टकरा गई..मैं अगले ही पल नजरे नीची करती बर्त्तन आगे कर दी..वो चुपचाप अपने खड़े लंड पर काबू करते हुए बर्त्तन ले दूध डालने लगा..मैं दूध ले वापस जाने मुड़ी ही थी कि वो बोला,"मैडम जी, मैं तो यहां रोज कई घरों में ऐसे देखता हूं..और यहां तो अपने देह को नंगी करना एक फैशन है..कुछ तो पूरी नंगी दूध लेने भी आ जाती..आप यहां नई हो और शायद पहली बार ऐसा कीतो शर्म आ रही है,,पर जल्द ही आदत पड़ जाएगी.."
मैं अभी भी उसकी तरफ गांड़ किए खड़ी उसकी बातें सुन रही थी..और वो अपनी बात कहते हुए ठीक मेरे पीछे आ गया..फिर अपने एक हाथ मेरी टीशर्ट को उठा पेट पर रख हल्के से पीछे खींच मेरी गांड़ में अपना लंड फंसाते हुए बोला,"वैसे आप मस्त लग रही थी नंगी..काश ये मेन गेट लॉक नहीं रहता...पर कोई बात नहीं, अगली बार गेट खोल के रखना मैडम,,आपको मैं इस दूध के साथ वो दूध भी दे दूंगा.."
और उसने एक झटका मार मुझे छोड़ वापस अपने साइकिल की तरफ चला गया; बिना मेरी जवाब सुने...मैं भी उसकी हरकत से काफी गरम हो गई और पेंटी को भिंगोने लगी थी..
तेज कदमों से चलती मैं अपने रूम में घुस गई...उसकी इस हिम्मत की तो दाद देनी होगी..कैसे वो एक ही पल में अपना बड़ा सा लंड मेरी गांड़ पर अड़ा दिया...ओफ्फफ..मेरी चूत भी पानी छोड़ रही थी जब उसका लंड सटा था...तभी मुझे बाहर तेज आवाज की गानों के साथ ऑटो की आवाज सुनाई दी...
पर मैं अब बहती चूत लेकर वापस उस ऑटो वाले को लाईन देने नहीं जाने वाली थी..मैंने दूध किचन में रखी और दूधवाले के नाम पर अपनी चूत रगड़ने बाथरूम में घुस गई..
बॉथरूम से निकल मैं किचन में घुस गई जहाँ पहले चाय बनानी शुरू की...चाय बनाते वक्त भी मेरे जेहन में दूधवाले की बातें दिमाग में नाच रही थी...किसी तरह चाय बनाई और श्याम को जगाने बेडरूम की तरफ चाय ले चल दी...
रोज की भांति आज भी मैंने मॉर्निंग किस करते हुए श्याम को जगाई.. उनकी नींद भी मेरे लब सटते ही खुल गई पर आँखें बंद ही थी..वे बंद आँखों में ही जोरदार किस किए, फिर आँखें खोलते हुए जम्हाई सहित उठ बैठे...
उनकी आँखें खुलते ही चौंक से गए मुझे ऐसे कपड़ो में देख..फिर वो एक बार अपने सिर को झटक पूरी तरह से जगते हुए देखने लगे..अब तो उन्हें पूरी यकीं हो गई थी कि वे किसी सपने में नहीं बल्कि सचमुच मैं चुस्त टीशर्ट और कैप्री में खड़ी हूँ...सच कहूँ तो मैं बस उनकी रजामंदी लेने के लिए पहनी थी कि अगर इन्हें ठीक लगे तो पहनूंगी वर्ना नहीं..अगर ये खुश रहेंगे तभी तो मैं भी अपनी जिंदगी के मजे उठा सकती हूँ...
"वॉव सीता, मुझे नहीं मालूम नहीं था कि ऐसे ड्रेस में मेरी पत्नी नहीं, एक टंच माल लगोगी..कब ली ये ड्रेस?"अपनी राय और मुझे आगे पहनने की हां कहते हुए वे बेड से उतर मेरी तरफ आने लगे..मैं जल्द ही भांप गई कि इनको माल दिख रही हूं मतलब सुबह-2 ये अब हमें छोड़ने वाले नहीं हैं..
"कल खरीदी हूं और हाँ आप पहले फ्रेश हो लीजिए फिर मेरे निकट आइएगा.." कहते हुए मैं तेजी से पीछे पलट किचन की तरफ भाग खड़ी हुई..अपने मनसूबे पर पानी फिरता देख ये भी "भागती किधर है, रूक पहले..." कहते हुए मेरी तरफ लपके..मैं तब तक किचन में घुस गई थी और किचन का गेट बंद करनी चाही, तब तक ये पहुंच गए और हल्का धक्का देते हुए हंसते हुए अंदर घुस गए..
"प्लीज, अभी कुछ मत करिएगा वर्ना आपको भूखा ही ऑफिस जाना होगा.." मैं भी इनकी शरारत के मजे लेती कुछ मस्ती और बढ़ाते हुए बोली..वैसे पति- पत्नी में रोज हल्की- फुल्की नोंक-झोंक हो तो जिंदगी कितनी रंगीन हो जाती, आप अंदाजा नहीं लगा सकते...
"भांड़ में जाए ऑफिय और खाना..पहले जो मस्त पीस सामने मौजूद है,उसे तो खाने दो.." कहते हुए श्याम मुझ पर झपट्टा मारते हुए दबोच लिए और सीधा अपने दांत से मेरी चुची को मुंह में भर लिए..मैं किकयाती हुई छटपटाते हुए छूटने की पूरी कोशिश की पर नाकाम रही...मेरी टीशर्ट इतनी पतली और चुस्त थी कि उनके दांत मुझे अपनी नंगी चुची पर महसूस हो रही थी..मेरी आँखें गीली हो गई थी दर्द से...
जब लगा कि मेरी चुची के कुछ अंश कट जाएंगे तो किसी तरह इनसे बोली,"आहहहह प्लीज, धीरे करिए ना...काफी दर्द कर रही है ओहहहहहह मम्मीईईईईईई..."मेरी दर्द भरी स्वर इनके कानों पड़ते ही चुची को छोड़ मेरे गले पर किस करते हुए बोले,"सॉरी जानू, तुम इतनी कयामत लग रही हो कि मैं बेकाबू हो गया था.." और फिर वे अपने काम में भिड़ गए मतलब कभी गर्दन पर कभी गालों पर,कभी उरेजों पर किसे की बौछार करने लगे..मैं थोड़ी नाराजगी दिखाते हुए शिकायत की,"भागी थोड़े ही जा रही थी जो ऐसे काट लिए..चलिए हटिए अब, कैसे खून बहा दिए है.."
मेरी बात सुनते ही किस करना रोक दिए और एक ही झटके में मेरी टीशर्ट ऊपर करते हुए मेरी चुची आजाद कर दिए...फिर निहारते हुए बोले,"जान, खून तो नहीं निकला पर हमारे प्यार की निशानी जरूर पड़ गई है..." और उन्होंने फिर अपने होंठ उसी चुची पर लगाते हुए दर्द मिटाने की कोशिश करने लगे..मैंने उनके गाल पर प्यार वाली थप्पड़ जड़ते हुए बोली,"अब क्या,सच्ची की खून निकालोगे?"
वे मुस्कुराते हुए ऊपर मुंह किए और बिना कुछ कहे मेरे होंठों को अपने होंठों से मिला दिए...
मॉर्निंग स्मूच कितनी मस्त होती है, आज मालूम पड़ी..हल्की दुर्गंध आती हुई लब, पल भर में मदमोहक हो गई...मैं अपने सारे दर्द भूला उनके गर्दन को जोर से भींचती कस ली और इस स्मूच को और गहरी कर दी..हम दोनों के लार ट्रांसफर हो रहे थे वो भी रॉकेट की गति से..उनका हाथ मेरी नंगी चुची को धीमे-2 मसल रहा था..
ऊपर से आनंदमयी स्मूच और नीचे रोमांटिक अंदाज में चुची की सेंकाई...ओफ्फ्फ्फ..मैं और मेरी वो बर्दाश्त नहीं कर पाई और पेंटी को लगातार दूसरी बार नहलानी शुरू कर दी..अगली ही पल मेरी हाथ उनके तौलिये के अंदर घुसी और अंडरवियर के ऊपर से ही अपने प्राण को मसलने लगी...अब उफ्फ करने की बारी इनकी थी...ज्यादा देर तक ये मेरे स्पर्श को सह नहीं सके और "आहहहह सीताआआआआ" कहते हुए स्मूच तोड़े और तौलिया नीचे करते हुए अपने लंड को आजादवकर दिए..उफ्फ..पूरी तरह गर्म जलती कोयले वाली ताप निकल रही थी..ऐसा महसूस कर रही थी कि मेरी नाजूक हाथ अब इस गरमी में जल जाएगी...
और ये भी देख ली कि सुबह के पल लंड में कितनी तनाव,गर्मी,जोश और खतरनाक रहती है...सुबह के वक्त मर्द की स्टेमिना भी काफी बढ़ जाती है..मैं अपने ठंडे और कोमल हाथों से उनके लंड को आगे पीछे करने लगी..वे सिसकारी भरते हुए अपने मुंह ऊपर की तरफ कर लिए..उनका हाथ मेरी नंगी चुची पर जरूर था पर कोई हरकत नहीं कर रहा था..
हम दोनों की हालत खराब होने लगी थी..इस हालत को और खराब करने के ख्याल से मैं सेकंड भर के अंदर ही बैठी और गप्प से गर्म रॉकेट को मुंह में भर ली...आदी तो नहीं हुई थी पर अब उतनी बुरी भी नहीं लगती थी..श्याम तो मेरी इस अदा पर झूम उठे और मस्ती की सेकेंड लास्ट वाली गेट पर पहुंच गए...उन्हें उम्मीद भी नहीं थी मैं बिना कहे ऐसे मुँह में ले लूंगी..
कुछ मिनटों की चुसाई में ही उत्तेजना से हांफने लगे..उनका लंड इन चंद घड़ी में बढ़ के 6.5 से 7.5 इंच हो गई..ये सब सुबह की ताकत के परिणाम थे...वे अब बर्दाश्त नहीं कर सकते थे मेरी और चुसाई को तो एक झटके से मेरी खुली बाल को समेटते हुए पकड़े और अगले ही क्षण मेरी थूक से तरबतर उनका लंड मेरी आँखों के सामने ठुमके लगाने लगा..
अगले ही पल वो मेरी बालों को पकड़े ही ऊपर उठा दिए हमें...उनकी इस पहली बार की वहशी देख मैं फूला नहीं समा रही थी..दर्द में हर औरत कितनी जोश में आ जाती है, ये बात काश दुनिया के सारे मर्द समझ पाते...मैं दर्द की मुस्कान देते हुए उठ गई और अपने पति की अगली आज्ञा का इंतजार करने लगी..श्याम अगले ही पल मेरी कैप्री में उंगली डाले और जोर से नीचे कर दिए..टाइट तो थी पूरी, ताकत लगते ही छोटी सी बटन छिटकती हुई दूर जा गिरी और मैं सिर्फ पेंटी में रह गई...
अब इतनी कामुक घड़ी में मेरी चूत कब तक पेंटी के सहारे खुद को बचा पाती..उफ्फफफ...मैं चूत की सलामती ढंग से सोची भी नहीं थी कि तब तक मेरी पेंटी चर्रर्रर्रर्रर्र की आवाज के साथ दो टुकड़ो में बंट गए...और मैं कुछ सोचने की सोचती, तब तक श्याम के मुंह मेरी द्वार में समा गई...ओहहहहह मम्मीई,,,श्याम तो पहले मेरी चूत को चूसने के बारे में कभी बोले भी नहीं थे,, पर आज पता नहीं क्या हो गया इन्हें...शायद मैं बिना बोले इनका लंड मुंह में ली तो ये भी....
मैं दीवाल के सहारे लग गई और अपनी चूत पर हो रही जीभ के हमले को सहने की कोशिश करने लगी..वे मेरी चूत के दाने को दांतों से पकड़ खींचने लगे..मैं तड़पती हुई उनके बालों को जोर से पकड़ी और नोंचने लगी..मेरी सिसकारी अब किचन में गूंजने लगी.और मेरी चूत लगातार रस बहाए जा रही थी जो श्याम के पूरे चेहरे को भिंगोती नीचे गिर रही थी...
सीता --गाँव की लड़की शहर में compleet
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Re: सीता --गाँव की लड़की शहर में
सीता --एक गाँव की लड़की--17
मैं चीखती हुई "श्याम्म्म्म्म्म्म प्लीईईईईज" बोली जिसे सुन श्याम मेरी चूत से हटे और मेरी कैप्री को मेरे पैरों से निकाल खड़े हो गए..मैं हांफती हुई श्याम की तरफ नशीली आँखों से देखने लगी..बदले में श्याम भी मेरी इन नशीली नयन को अपनी आँखों से पीते हुए मेरी एक पैर उठा दिए..मैं अपनी मुंह खोली उनकी तरफ देखे जा रही थी..
तभी उनका गर्म काका मेरी धुली हुई काकी से टच करने लगी..फिर मेरी आँखों में झांकते हुए पोजीशन लिए और एक वहशीपूर्ण धक्का दे दिए..धक्का इतनी तीव्र थी कि मैं दीवाल में पूरी तरह चिपक गई...हम दोनों के मुख से आहहहह निकल पड़ी..उनका लंड अंदर पड़ते ही मेरे जेहन में अपने भैया का लंड याद आ गया जो 8 इंची था और इसी तरह मेरी नाजुक चूत को चीरा था...
अचानक से पड़े दूसरी धक्के ने मुझे वापस किचन में अपने पति के लंड के नीचे पटक दिया..फिर चल पड़ा एक धुंआधार काका-काकी की लड़ाई..जिसमें हम दोनों पति-पत्नी सुरीली कामुक धुनें बिखेरते मजे ले रहे थे..मेरी तन की गर्मी झरने की तरह बहती हुई नीचे आ रही थी..
पर साथ ही ये भी जानती थी कि झरना नीचे आ और खूबसूरत तरीके से उग्र हो जाती है,वही हालत मेरी भी होगी अब कि और चाहिए लंड...
काफी देर तक सुबह की ताकत से मेरी चूत बजाने के बाद श्याम मेरे कंधों पर दांत गड़ाते हुए दबी आवाज में चीखने लगे, जिसे मैं सह नहीं पाई और अपने तेज नाखून से उनकी पीठ छलनी करती रोती हुई झड़ने लगी..पर हम दोनों को इस स्खलन में दर्द कहीं भी नजर नहीं आई..बस एक अलग दुनिया में खोई रही..
झड़ने के पश्चात ही हम दोनों एक-दूसरे से लिपटे ही धम्म से नीचे बैठ गए..करीब 5 मिनट तक यूं ही बैठे रहने के बाद श्याम मेरे होंठों पर किस दिए और बोले,"शुक्रिया जानू, अब उठो, जब तक मैं फ्रेश होता हूँ तुम नाश्ता तैयार कर दो."
मैं मुस्काती हुई कैप्री पहनती हुई बोली,"मस्त चीज खा ही लिए, अब नाश्ता नहीं बनेगा.."मेरी बात को सुनते ही मेरे गालों को चूमे और हंसते हुए बाथरूम की तरफ चल दिए..पीछे मैं भी कपड़े पहन किचन के ही बेशिन में हाथ मुँह धोई और नाश्ता तैयार करने लगी..
नाश्ता करने के बाद श्याम ऑफिस चले गए..पूजा भी कॉलेज के लिए निकल गई..
मैं भी स्नान आदि से सम्पन्न हो आराम करने चली गई..बेड पर अभी लेटी ही थी कि मेरी फोन बजने लगी..
मैंने बेड के एक कोने में पड़ी फोन लेते हुए स्क्रीन पर नजर डाली कि कौन हैं इस वक्त याद करने वाले?
नागेश्वर अंकल का फोन था..मैं फिर से बेड पर लेटी और होंठो पर हल्की मुस्कान लाते हुए फोन रिसीव की..
"प्रणाम अंकल,आज गलती से कैसे नम्बर इधर आ गई.." मैंने शिकायत भरी लब्जों में पूछी..
"प्रणाम मोहतर्मा, फोन गलती से नहीं बल्कि पूरे होशोहवास में किया हूँ..समझी.."अंकल रौब के साथ अपनी सफाई देते हुए हंस पड़े..
मैं भी खुद पर काबू नहीं रख सकी और हंसते हुए बात को आगे बढ़ाई,"अच्छा, फिर तो जरूर फुर्सत में लग रहे हैं."
"हाँ,बस दो दिन और..आज वोटिंग हो रही है और परसों रिजल्ट..फिर तो फुर्सत ही फुर्सत.."अंकल अपने आने वाले दिनों के बारे में छोटी सी नमूना आगे रख दिए..
"मतलब जीतने के बाद घोड़े बेच के सोने का इरादा है क्या?"मैं थोड़ी सी मजाकिया लहजे में चुटकी ली..
"मैं वैसा नहीं हूँ मैडम, अगर होता तो जनता हमें मुखिया पद में हैट्रिक नहीं लगाने देती..अब विधायक में तो और काम करने का मूड है..बस आप साथ देती रहना.."अंकल अपनी इमानदारी और कर्मनिष्ठ का परिचय देते बोले..साथ में बड़ी ही सफाई से बातचीत की ट्रैक को चेंज कर दिए..
मैं उनकी इस अदा पर हँसती हुई बोली,"मैं,...विधायक बनने के बाद आप तो खुद पावर में रहेंगे तो भला मैं क्या साथ दूंगी.."
"हाँ पर उस पावर को लागू करने में हमारी जो एनर्जी खर्च होगी तो उसे रिचार्ज तो तुम्हें ही करनी होगी ना.."अंकल सीधे मुँह तो नहीं पर द्विअर्थी शब्दों में कह डाले जिसे मैं क्या सब समझ जाए..
"मिलने तो ढ़ंग से आते नहीं फिर रिचार्ज कैसे होंगे?"मैं हल्की आवाजों में शिकायत की मानों पड़ोसी ना सुन ले कहीं..
"ओह मेरी जान, अब नहीं होगी ऐसी गलती..बस दो दिन की बात है..वैसे जीतने के बाद मैं भी पटना में ही रहूँगा." अंकल गलती स्वीकारते हुए बोले..
"सच में.."मैं उनके पटना रहने वाली बात सुन चहकती सी बोली..
"शत-प्रतिशत सच मेरी जान.."अंकल अपनी बात को पूरे विश्वसनीय करते हुए बोले..
मैं उन्हें पटना रहने की बात सुन भविष्य में होनी वाली अंकल से हर वक्त मुलाकात की दुनिया में खो गई..कैसे जब मन होगी तब मैं चली जाउंगी मिलने और अंकल की इच्छा हुई तो वे आ जाएंगे..
"हैल्लो साहिबा, कहां खो गई आप.."अंकल मेरी तरफ से कोई जवाब ना पाकर बोले..
मैं उनकी बात से झेंपती हुई मुस्कुराते हुए बोली,"कुछ नहीं अंकल."
"अच्छा, काफी बातचीत हो चुकी है, अब जल्दी से एक चुम्मा दे दो.."अंकल इस बात को खत्म कर नई बातें शुरू कर दी..
मैं अंकल की अचानक सी कही बात पर चौंक सी गई..फिर हँसते हुए बोली,"यहाँ से...?"
"हाँ, क्यों फोन पर श्याम को कभी नहीं दी क्या..अब बहाने मत बनाओ और जल्दी से दो..अभी घर पर ही हूँ तो ज्यादा देर बात करना ठीक नहीं होगा.."
मैं अंकल की बात और उनकी हालात समझ हल्की सी हँसी और फोन को अपने होंठो से सटाती हुई एक चुम्मी दे दी,"मुअअआआआह.."
"मिली ?"किस देने के बाद शर्माते हुए पूछी..
"क्या, तुम दे दी..उफ्फ..कितनी धीमी देती हो..कुछ सुनाई नहीं दिया..फिर से दो.."अंकल बिल्कुल ही नकारते हुए बोल पड़े..
मैं तो अंदर ही अंदर गुस्से से भर गई पर क्या कहती..
ठीक पहले वाली तरीके से पर ज्यादा जोर से एक और किस दे दी और बोली,"अब आप भी दो एक.."
जल्दी से मैं भी मांग ली ताकि फिर ना कहें कि नहीं मिली..मेरी किस मिलते ही आहें भरते हुए बोले,"आहह मेरी रानी..कितनी गरम थी किस.."
और उन्होंने फिर एक के बाद एक कई किस देते हुए बोलने लगे," ये होंठों पर, ये गालों पर...ये गर्दन पर...ये चुची पर...ये पेट पर...ये नाभि पर...
उनकी किस के क्रम को जल्द ही भांप गई और बीच में रोकती हुई बोली," बस,..बस.. अंकल..एक किस कब की हो चुकी."और हँस पड़ी जिससे अंकल भी हँस पड़े..
फिर हम दोनों बॉय कर फोन रख दिए..इस फोन के दौरान हुई किस से ही मेरी चूत पानी छोड़ने लगी थी..
मैंने जल्दी से साड़ी उतार फेंकी और चूत में एक साथ तीन उंगली घसेड़ दी..मुंह से एक आह निकल गई..
फिर तेज तेज चूत को चोदने की कोशिश करने लगी..
मैं काफी देर तक उंगली चलाती रही पर मेरी चूत झड़ने का नाम ही नहीं ले रही थी..इसे तो अब लण्ड की आदत पड़ गई थी..
अगर लंड को मेरी चूत स्पर्श भी कर लेती तो शायद झड़ जाती पर क्या करती..इस वक्त कहां से लाती लंड..पूजा के आने में भी अभी 3 घंटे बाकी थी..
तो क्या तब तक मैं तड़पूं..ये कुत्ते अंकल बेवजह हमें फंसा दिए..कितनी आराम से सोने वाली थी..
तभी मेरे दिमाग में एक आइडिया कौंधी..गांव में हमारी भाभी एक बार बहुत ही सुंदर और बड़ी सी ककड़ी हमें दिखाती हुई बोली थी," सीतीजी, ये चाहिए क्या?"
मैं तो समझी कि भाभी शायद खाने के लिए दे रही है..जैसे ही मैं लेने के लिए बढ़ी तो भाभी पीछे हटती बोली,"खाने के लिए नहीं दूँगी.."
मैं चौंकती हुई अपनी भौंहे खड़ी करती प्रश्नवाचक मुद्रा में देखने लगी..तो भाभी बड़ी ही बेशर्मी के साथ ककडी को अपनी चूत पर सटाई और बोली,"यहां डालने के लिए लीजीएगा तो बोलो.."
मैं चूत लंड जानती थी पर कभी कुछ की नहीं थी.. और भाभी की ऐसी बातें सुन मैं शर्म से लाल हो गई और गुस्से में "कमीनी" कहती भाग गई थी..पीछे भाभी जोर-2 से हंसने लगी..
मैं तेजी से उठी और किचन की तरफ भागी..सामने टोकरी में पड़ी ककड़ी जैसे ही दिखी मैं उठाई और एक ही झटके में अंदर कर ली..
फिर बेडरूम में ककड़ी डाले आई और बैठते हुए ककड़ी से चुदने लगी..कुछेक देर तक चलाने के बाद मेरी हाथ ऐंठने लगी..उफ्फ..अब ये कौन सी मुसीबत है..
मैं जल्द से जल्द झड़ना चाहती थी..हाथ में दर्द के बावजूद ककड़ी धकेलने लगी..पर जिस चूत की खुजली लंड से ही बुझती हो उसे ककड़ी से कैसे शांत करती..
मैं अब रोती हुई चीखती जा रही थी..अपनी ही चूत से रहम की भीख मांग रही थी कि मुझ पर तरस खाओ प्लीज...
पर ये कमीनी लंड की जिद किए जा रही थी..काफी देर बाद मेरी हालत देख थोड़ी सी रहम कर दी..
और मैं चीख पड़ी.. चूत अपनी सिर्फ छोटी नल खोली..मतलब झड़ तो रही थी पर खुजली नहीं मिटी थी..मैं सोची ककड़ी और डालती हूँ संतुष्ट भी हो जाऊं..
पर शाली चूत तो लॉक कर रखी थी बड़ी नल..बस धीमी-2 पानी बह रही थी..कुछ देर बाद तो वो पानी भी कम होती नजर आने लगी..
मैं गुस्से से खीझ उठी और ककड़ी को झटके से चूत से निकालती मुंह मेमं लेती जोरों से खच्च करती आधी काट ली..
कटे ककड़ी को धीमी गति से चबाए जा रही थी जो मेरी चूतरस से भींगी थी और सोचे जा रही थी कि अब क्या करूं..
अगर जल्द से जल्द कोई लंड की सूरत नहीं दिखाई तो से कमीनी हमें तड़पा-2 के जान लेगी..वो तो शुक्र है कि थोड़ी सी रहम कर दी..
झड़ तो गई थी पर खुजली कैसे मिटाऊँ...??
मैं चीखती हुई "श्याम्म्म्म्म्म्म प्लीईईईईज" बोली जिसे सुन श्याम मेरी चूत से हटे और मेरी कैप्री को मेरे पैरों से निकाल खड़े हो गए..मैं हांफती हुई श्याम की तरफ नशीली आँखों से देखने लगी..बदले में श्याम भी मेरी इन नशीली नयन को अपनी आँखों से पीते हुए मेरी एक पैर उठा दिए..मैं अपनी मुंह खोली उनकी तरफ देखे जा रही थी..
तभी उनका गर्म काका मेरी धुली हुई काकी से टच करने लगी..फिर मेरी आँखों में झांकते हुए पोजीशन लिए और एक वहशीपूर्ण धक्का दे दिए..धक्का इतनी तीव्र थी कि मैं दीवाल में पूरी तरह चिपक गई...हम दोनों के मुख से आहहहह निकल पड़ी..उनका लंड अंदर पड़ते ही मेरे जेहन में अपने भैया का लंड याद आ गया जो 8 इंची था और इसी तरह मेरी नाजुक चूत को चीरा था...
अचानक से पड़े दूसरी धक्के ने मुझे वापस किचन में अपने पति के लंड के नीचे पटक दिया..फिर चल पड़ा एक धुंआधार काका-काकी की लड़ाई..जिसमें हम दोनों पति-पत्नी सुरीली कामुक धुनें बिखेरते मजे ले रहे थे..मेरी तन की गर्मी झरने की तरह बहती हुई नीचे आ रही थी..
पर साथ ही ये भी जानती थी कि झरना नीचे आ और खूबसूरत तरीके से उग्र हो जाती है,वही हालत मेरी भी होगी अब कि और चाहिए लंड...
काफी देर तक सुबह की ताकत से मेरी चूत बजाने के बाद श्याम मेरे कंधों पर दांत गड़ाते हुए दबी आवाज में चीखने लगे, जिसे मैं सह नहीं पाई और अपने तेज नाखून से उनकी पीठ छलनी करती रोती हुई झड़ने लगी..पर हम दोनों को इस स्खलन में दर्द कहीं भी नजर नहीं आई..बस एक अलग दुनिया में खोई रही..
झड़ने के पश्चात ही हम दोनों एक-दूसरे से लिपटे ही धम्म से नीचे बैठ गए..करीब 5 मिनट तक यूं ही बैठे रहने के बाद श्याम मेरे होंठों पर किस दिए और बोले,"शुक्रिया जानू, अब उठो, जब तक मैं फ्रेश होता हूँ तुम नाश्ता तैयार कर दो."
मैं मुस्काती हुई कैप्री पहनती हुई बोली,"मस्त चीज खा ही लिए, अब नाश्ता नहीं बनेगा.."मेरी बात को सुनते ही मेरे गालों को चूमे और हंसते हुए बाथरूम की तरफ चल दिए..पीछे मैं भी कपड़े पहन किचन के ही बेशिन में हाथ मुँह धोई और नाश्ता तैयार करने लगी..
नाश्ता करने के बाद श्याम ऑफिस चले गए..पूजा भी कॉलेज के लिए निकल गई..
मैं भी स्नान आदि से सम्पन्न हो आराम करने चली गई..बेड पर अभी लेटी ही थी कि मेरी फोन बजने लगी..
मैंने बेड के एक कोने में पड़ी फोन लेते हुए स्क्रीन पर नजर डाली कि कौन हैं इस वक्त याद करने वाले?
नागेश्वर अंकल का फोन था..मैं फिर से बेड पर लेटी और होंठो पर हल्की मुस्कान लाते हुए फोन रिसीव की..
"प्रणाम अंकल,आज गलती से कैसे नम्बर इधर आ गई.." मैंने शिकायत भरी लब्जों में पूछी..
"प्रणाम मोहतर्मा, फोन गलती से नहीं बल्कि पूरे होशोहवास में किया हूँ..समझी.."अंकल रौब के साथ अपनी सफाई देते हुए हंस पड़े..
मैं भी खुद पर काबू नहीं रख सकी और हंसते हुए बात को आगे बढ़ाई,"अच्छा, फिर तो जरूर फुर्सत में लग रहे हैं."
"हाँ,बस दो दिन और..आज वोटिंग हो रही है और परसों रिजल्ट..फिर तो फुर्सत ही फुर्सत.."अंकल अपने आने वाले दिनों के बारे में छोटी सी नमूना आगे रख दिए..
"मतलब जीतने के बाद घोड़े बेच के सोने का इरादा है क्या?"मैं थोड़ी सी मजाकिया लहजे में चुटकी ली..
"मैं वैसा नहीं हूँ मैडम, अगर होता तो जनता हमें मुखिया पद में हैट्रिक नहीं लगाने देती..अब विधायक में तो और काम करने का मूड है..बस आप साथ देती रहना.."अंकल अपनी इमानदारी और कर्मनिष्ठ का परिचय देते बोले..साथ में बड़ी ही सफाई से बातचीत की ट्रैक को चेंज कर दिए..
मैं उनकी इस अदा पर हँसती हुई बोली,"मैं,...विधायक बनने के बाद आप तो खुद पावर में रहेंगे तो भला मैं क्या साथ दूंगी.."
"हाँ पर उस पावर को लागू करने में हमारी जो एनर्जी खर्च होगी तो उसे रिचार्ज तो तुम्हें ही करनी होगी ना.."अंकल सीधे मुँह तो नहीं पर द्विअर्थी शब्दों में कह डाले जिसे मैं क्या सब समझ जाए..
"मिलने तो ढ़ंग से आते नहीं फिर रिचार्ज कैसे होंगे?"मैं हल्की आवाजों में शिकायत की मानों पड़ोसी ना सुन ले कहीं..
"ओह मेरी जान, अब नहीं होगी ऐसी गलती..बस दो दिन की बात है..वैसे जीतने के बाद मैं भी पटना में ही रहूँगा." अंकल गलती स्वीकारते हुए बोले..
"सच में.."मैं उनके पटना रहने वाली बात सुन चहकती सी बोली..
"शत-प्रतिशत सच मेरी जान.."अंकल अपनी बात को पूरे विश्वसनीय करते हुए बोले..
मैं उन्हें पटना रहने की बात सुन भविष्य में होनी वाली अंकल से हर वक्त मुलाकात की दुनिया में खो गई..कैसे जब मन होगी तब मैं चली जाउंगी मिलने और अंकल की इच्छा हुई तो वे आ जाएंगे..
"हैल्लो साहिबा, कहां खो गई आप.."अंकल मेरी तरफ से कोई जवाब ना पाकर बोले..
मैं उनकी बात से झेंपती हुई मुस्कुराते हुए बोली,"कुछ नहीं अंकल."
"अच्छा, काफी बातचीत हो चुकी है, अब जल्दी से एक चुम्मा दे दो.."अंकल इस बात को खत्म कर नई बातें शुरू कर दी..
मैं अंकल की अचानक सी कही बात पर चौंक सी गई..फिर हँसते हुए बोली,"यहाँ से...?"
"हाँ, क्यों फोन पर श्याम को कभी नहीं दी क्या..अब बहाने मत बनाओ और जल्दी से दो..अभी घर पर ही हूँ तो ज्यादा देर बात करना ठीक नहीं होगा.."
मैं अंकल की बात और उनकी हालात समझ हल्की सी हँसी और फोन को अपने होंठो से सटाती हुई एक चुम्मी दे दी,"मुअअआआआह.."
"मिली ?"किस देने के बाद शर्माते हुए पूछी..
"क्या, तुम दे दी..उफ्फ..कितनी धीमी देती हो..कुछ सुनाई नहीं दिया..फिर से दो.."अंकल बिल्कुल ही नकारते हुए बोल पड़े..
मैं तो अंदर ही अंदर गुस्से से भर गई पर क्या कहती..
ठीक पहले वाली तरीके से पर ज्यादा जोर से एक और किस दे दी और बोली,"अब आप भी दो एक.."
जल्दी से मैं भी मांग ली ताकि फिर ना कहें कि नहीं मिली..मेरी किस मिलते ही आहें भरते हुए बोले,"आहह मेरी रानी..कितनी गरम थी किस.."
और उन्होंने फिर एक के बाद एक कई किस देते हुए बोलने लगे," ये होंठों पर, ये गालों पर...ये गर्दन पर...ये चुची पर...ये पेट पर...ये नाभि पर...
उनकी किस के क्रम को जल्द ही भांप गई और बीच में रोकती हुई बोली," बस,..बस.. अंकल..एक किस कब की हो चुकी."और हँस पड़ी जिससे अंकल भी हँस पड़े..
फिर हम दोनों बॉय कर फोन रख दिए..इस फोन के दौरान हुई किस से ही मेरी चूत पानी छोड़ने लगी थी..
मैंने जल्दी से साड़ी उतार फेंकी और चूत में एक साथ तीन उंगली घसेड़ दी..मुंह से एक आह निकल गई..
फिर तेज तेज चूत को चोदने की कोशिश करने लगी..
मैं काफी देर तक उंगली चलाती रही पर मेरी चूत झड़ने का नाम ही नहीं ले रही थी..इसे तो अब लण्ड की आदत पड़ गई थी..
अगर लंड को मेरी चूत स्पर्श भी कर लेती तो शायद झड़ जाती पर क्या करती..इस वक्त कहां से लाती लंड..पूजा के आने में भी अभी 3 घंटे बाकी थी..
तो क्या तब तक मैं तड़पूं..ये कुत्ते अंकल बेवजह हमें फंसा दिए..कितनी आराम से सोने वाली थी..
तभी मेरे दिमाग में एक आइडिया कौंधी..गांव में हमारी भाभी एक बार बहुत ही सुंदर और बड़ी सी ककड़ी हमें दिखाती हुई बोली थी," सीतीजी, ये चाहिए क्या?"
मैं तो समझी कि भाभी शायद खाने के लिए दे रही है..जैसे ही मैं लेने के लिए बढ़ी तो भाभी पीछे हटती बोली,"खाने के लिए नहीं दूँगी.."
मैं चौंकती हुई अपनी भौंहे खड़ी करती प्रश्नवाचक मुद्रा में देखने लगी..तो भाभी बड़ी ही बेशर्मी के साथ ककडी को अपनी चूत पर सटाई और बोली,"यहां डालने के लिए लीजीएगा तो बोलो.."
मैं चूत लंड जानती थी पर कभी कुछ की नहीं थी.. और भाभी की ऐसी बातें सुन मैं शर्म से लाल हो गई और गुस्से में "कमीनी" कहती भाग गई थी..पीछे भाभी जोर-2 से हंसने लगी..
मैं तेजी से उठी और किचन की तरफ भागी..सामने टोकरी में पड़ी ककड़ी जैसे ही दिखी मैं उठाई और एक ही झटके में अंदर कर ली..
फिर बेडरूम में ककड़ी डाले आई और बैठते हुए ककड़ी से चुदने लगी..कुछेक देर तक चलाने के बाद मेरी हाथ ऐंठने लगी..उफ्फ..अब ये कौन सी मुसीबत है..
मैं जल्द से जल्द झड़ना चाहती थी..हाथ में दर्द के बावजूद ककड़ी धकेलने लगी..पर जिस चूत की खुजली लंड से ही बुझती हो उसे ककड़ी से कैसे शांत करती..
मैं अब रोती हुई चीखती जा रही थी..अपनी ही चूत से रहम की भीख मांग रही थी कि मुझ पर तरस खाओ प्लीज...
पर ये कमीनी लंड की जिद किए जा रही थी..काफी देर बाद मेरी हालत देख थोड़ी सी रहम कर दी..
और मैं चीख पड़ी.. चूत अपनी सिर्फ छोटी नल खोली..मतलब झड़ तो रही थी पर खुजली नहीं मिटी थी..मैं सोची ककड़ी और डालती हूँ संतुष्ट भी हो जाऊं..
पर शाली चूत तो लॉक कर रखी थी बड़ी नल..बस धीमी-2 पानी बह रही थी..कुछ देर बाद तो वो पानी भी कम होती नजर आने लगी..
मैं गुस्से से खीझ उठी और ककड़ी को झटके से चूत से निकालती मुंह मेमं लेती जोरों से खच्च करती आधी काट ली..
कटे ककड़ी को धीमी गति से चबाए जा रही थी जो मेरी चूतरस से भींगी थी और सोचे जा रही थी कि अब क्या करूं..
अगर जल्द से जल्द कोई लंड की सूरत नहीं दिखाई तो से कमीनी हमें तड़पा-2 के जान लेगी..वो तो शुक्र है कि थोड़ी सी रहम कर दी..
झड़ तो गई थी पर खुजली कैसे मिटाऊँ...??
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Re: सीता --गाँव की लड़की शहर में
सीता --एक गाँव की लड़की--18
कुछ देर तक यूँ ही बैठी रहने के बाद भी समझ नहीं आई कि क्या करूँ इस चूत की? फिर उठी और कपड़े पहने...
कपड़े पहनने के बाद हल्की मेकअप जल्दी वाली की..बालों को केवल झाड़ी ताकि सीधी रहे बाल..फिर चेहरे पर क्रीम लगाने के बाद होंठो पर गहरी लाल रंग की लिपिस्टिक लगाई..आँखों में हल्की काजल तो थी ही..
फिर घर से निकल गेट लॉक की और चल पड़ी सड़को पर..मंजिल तो अभी तक सोची नहीं थी..बस चली जा रही थी..
इधर मेरी चूत भी घंटी बजानी शुरू कर चुकी थी कि जल्द से जल्द कोई लंड दिखाओ..मैं अब मेन रोड तक आ साइड में खड़ी सोचने लगी..काश ऑटो वाला आ जाए या सन्नी..
ऑटो वाले का नं0 तो जानती भी नहीं तो कैसे बुलाऊं..फिर सन्नी को फोन करने की सोची..ओह गॉड..मोबाइल तो ली ही नहीं..इस चूत ने तो सब कुछ गड़बड़ किए जा रही है..
इस दौरान कई ऑटो आई और चलने की बात पूछी, पर मैं सबको ना कह दी..कहीं जाने की तो थी नहीं, बस लंड को ढ़ूँढ़ने आई हूँ..जो एक बार ऊपर से ही सही पर स्पर्श करा दे..
अब मैं वापस घर फोन के लिए लौटने के सिवाए कोई रास्ता नहीं सूझ रही थी..मैं वापसी के कदम बढ़ाने ही वाली थी कि सामने से आदमी से कचाकच भरी नगर बस आती दिखाई दी..बस के गेट पर करीब 5-7 आदमी थे तो अंदर कितने होंगे..
फिर जितने आदमी, उतने लण्ड...मेरी शरीर में झरझुर्री दौड़ गई..मैं वहीं खड़ी बस को आती देख रही थी, और उस बस में मुझे सिर्फ लंड ही नजर आ रही थी..तभी बस ठीक मेरे सामने आ रूकी..
"स्टेशनऽ...गाँधी मैदानऽ..." और ढ़ेर सारे जगह के नाम बोलता बस का उपचालक चिल्लाने लगा..मैं सरसरी नजर से बस के अंदर झांकी, जिसमें एक-दो लेडिज आगे केबिन में बैठी थी और एक-दो पीछे बैठी थी...बाकी सब मर्द भरे थे..
बस के रूकते हीदो आदमी उतरे..तभी वो खलासी मेरी तरफ देख बोला,"आइए मैडम, आगे सीट खाली होगी तो बैठ जाना..ऽ"मैं उसकी बात सुन जैसे ही पहली कदम बढ़ाई कि उसने मेरी बाँह पकड़ अपनी तरफ खींच लिया...
शुक्र थी कि मेरे पांव तेजी से बस पर चढ़ गए वर्ना गिर ही जाती..फिर वो मुझे अंदर की तरफ करते हुए मेरी बगलों से हाथ घुसा आगे वाले को जगह देने कहने लगा..जिससे उसके हाथ पूरी तरह मेरी चुची को दबा रही थी..
चंद घड़ी में ही थोड़ी सी जगह बन गई तो वो उसने हाथ पीछे खींचने लगा और अंत तक आते-2 अपनी चुटकी से मेरी निप्पल को मसल तेजी से हाथ खींच लिया...मैं चीख को किसी तरह अंदर दबा दी पर आह नहीं रोक पाई..
मेरी आहह कुछ तेज थी जिसे वहां पर खड़े सभी पैसेंजर सुन के मुस्कुराने लगे..और सभी की नजर मेरी तरफ दौड़ गई..मैं झेंपती हुई सिर नीचे की और आगे बढ़ने के लिए पैर आगे की..उफ्फ..अभी तो इतनी जगह थी और अभी मेरे पैर रखने की भी जगह नहीं है..मैं थोड़ी सी बेशर्म बनने की सोच ली कि अब जब लंड खोजने निकली तो शर्म क्यों..
मैं एक नजर सामने खड़े लोगों पर डाली तो दो साँवले एक-दूसरे की तरफ मुँह किए घूरे जा रहा था , फिर उनके आगे भी दो काले लोग इसी मुद्रा में थे..उनका लंड आपस में टच कर रहा था..मुझे इसी होकर आगे बढ़नी थी..
मैं सीधी तो किसी कीमत पर नहीं जा सकती थी इस बीच से..तभी बस हल्की धीमी हुई और एक जवान लड़का तेजी से घुसा और उसने मेरी गांड़ पर जोरदार धक्का दे दिया..ओहहह गॉड..मैं आगे दोनों मर्दों के बीच झुक गई..
इसी मौके का फायदा उठा दोनों मर्द अपने हाथ से मेरी चुची पकड़ मुझे उठाने के बहाने रगड़ने लगे..पीछे वो लड़का अभी भी लंड मेरी गांड़ पर जमाए ही था..मैं सीधी होती हुई पीछे मुड़ी तो वो लड़का एक शब्द "सॉरी" बोला और फिर अपने फोन कान में लगा लिया..भीड़ ज्यादा थी तो मैं उसे हटने भी नहीं बोल सकती थी..
"ओऽ मैडम..आगे बढ़िए ना..आगे कितनी जगह है और आप यहां जाम कर रखे हैं.." पीछे से उस खलासी की आवाज पूरे बस में गूँज उठी..तत्पश्चात सभी लंडों की नजर एक बार फिर मेरी तरफ गड़ गई..
मैं नजरे नीची की और तिरछी होती उन दोनों मर्दों के बीच घुस गई..ओहहहह...मैं जैसे ही उन दोनों के ठीक बीच पहुँची कि दोनों और जोर से चिपका गए..मैं कसमसा सी गई..नीचे उनका लण्ड फनफनाता हुआ खड़ा हुआ और मेरी चूत-गांड़ पर ठोकरें मारने लगा...
मेरी चूत पलक झपकते ही रोनी शुरू कर दी, आखिर उसे अपना यार जो काफी देर बाद मिला था..मैं कुछ ही पलों में पसीने से भींग गई..तभी पीछे वाला लड़का आया और अपना लंड सीधा मेरी कमर चिपकाते हुए बोला,"भाभीजी, और आगे बढ़िए.."
उसकी बात सुनते ही दोनों उस लड़के की तरफ ऐसे घूरने लगे मानों उसने बम फोड़ दिया हो..मैं आगे की तरफ की तरफ देखी तो आगे दो मर्द दोनों बगल से, जबकि एक थोड़ी तिरछी मेरी तरफ खड़ा था..और जगह भी इतनी सी ही थी..
सोची थोड़ी इसके भी लंड को अनुभव कर लूँ..मैं इस जकड़न से छूट अगली लंड
की कैद की तरफ बढ़ी..मगर दोनों मर्द तो चुम्बक की तरह चिपके थे..उनका लंड पूरी तरह मेरी साड़ी के ऊपर से ही पर धंसी हुई थी...मैंने पूरी ताकत लगा दी निकलने में तब जाकर निकल पाई..
और निकलते ही मैं अगली कैद में फंस गई...ये तो और बेशर्मी से पेश आ रहा था..मैंने आस पास नजर दौड़ाई तो सब अपनेआप में मशगूल था...जिसके सामने थाली मिली वो खाना शुरू., दूसरे से मतलब नहीं...पर हाँ कुछ अपनी नजरों से जरूर मजे ले रहे थे...
इसी बात का फायदा उठा सामने वाला अपना मुँह ठीक मेरे माथे के पास ले आया, जबकि पीछे वाला मेरी गर्दन पर झुक गया और दोनों तेज-2 साँसे छोड़ने लगा...तभी तिरछा वाला आदमी सीधा हुआ और अपना लंड मेरी कमर पर ठोकता हुआ बोला,"आगे और जगह नहीं है, आप यहीं पर रहो.."जिसे सुन बाकी दोनों मर्द मुस्कुरा दिया..
तभी मेरी छाती पर जोर से फूँक पड़ी..मैं चौंकती हुई नीची देखी तो ओह गॉडडडड..मेरी पल्लू तो थी ही नहीं...और ब्लॉउज में कैद बड़ी सी चुची पसीने से लथपथ उसके सीने से दबी जा रही थी...मैंने तुरंत ही पल्लू का पीछा की...
पर तब तक वो लड़का आ धमका और मेरी खाली दूसरी कमर पर भी अपना कठोर लिंग गाड़ दिया..और पल्लू उसकी बगल से गुजरती हुई दिख रही थी..मैंने एक हाथ से खींचने की कोशिश की पर नहीं आई...
"मैडम, अब वो तभी आपके पास आएगा जब आप नीचे उतरिएगा..कोई कमीना पैर से दबाए होगा..आप निश्चिंत हो सफर का मजा लीजिए." पीछे वाला आदमी मेरे कानों में बोला और अंत में अपनी जीभ मेरी कानों के नीचे फेर दिया..
मैं कांप सी गई इस छोटी सी चुसाई से और मेरे कांपते होंठो से इसससस निकल पड़ी..जिसे मेरे तरफ के चारों मर्द सुने और मुस्कुराते हुए और जोरों से कस दिए मुझे...मेरी हड्डियां तो लग रही थी मानों अब टूट जाएगी..
अचानक से दो हाथ नीचे से मेरी चुची पर जम गए..मेरी आँखें मदहोशी में बंद की कगार पर थी पर किसी तरह देखी तो ये हाथ उस लड़के और तिरछे वाले मर्द के थे...मैं कुछ बोलनी चाही कि तभी वो मेरी चुची मसलनी शुरू कर दी..
मैं जो भी कहना चाहती थी वो अगले ही पल मेरी आहहह में तब्दील हो बाहर निकल गई.. और मेरी आँखों के सामने अँधेरा छा गई...मैं आँखें बंद किए इस चतुर्मुखी लंड और द्विमुखी चुची-मर्दन के मजे लेने लगी...
पीछे वाला तो बीच बीच में अपनी जीभ भी फेर रहा था...तभी खट्ट की आवाज आई..मैं तुरंत आँखें खोली तो देखी आगे वाला आदमी अपना हाथ नीचे कर रहा था...मेरी नजर उसके हाथ से हटी तो ये क्या? मेरी चार बटन की ब्लाउज अब दो बटन की हो गई थी..और मेरी आधी चुची बाहर छलक गई...
आज ब्रॉ भी नहीं पहनी थी...आगे वाले मर्द की तरफ देखी तो वो बड़े ही बेशर्मी से अपने होंठ पर जीभ फिरा रहा था..तभी मेरी निप्पल को उस लड़के ने जोर से उमेठ दिया..मेरी चीख निकलते-2 बची पर चूत को नहीं बचा पाई...
मेरी चूत से झरने गिरने लगी..शुक्र है पेन्टी रानी की वरना पूरी बस में पानी फैल जाती...और मैं हल्की सिसकारी लेती आगे वाले के सीने पर लद गई...पीछे वाला मेरी हालत पर बोला,"लगता है शाली का सिग्नल गिर गया.." जिसे सुन चारों हँस पड़े..
झड़ने के बाद जब थोड़ी होश आई तो मैं सीधी हुई और अपनी दोनों चुची पर से हाथ हटाते हुए निकलने की कोशिश की..अब जब काम पूरी हो गई तो भला रूकने से क्या फायदा...मैं जोर लगाई निकलने की पर नहीं निकल पाई...
"चलो ना रूम पर, 2000 दूँगा.."आगे वाला आदमी मेरे होंठो के पास अपना होंठ लगभग सटाते हुए बोला...अब मेरी हालत सच में खराब होने लगी थी..खुद पर काफी गुस्सा भी कर रही थी और पछता भी रही थी कि काश घर पर ही थोड़ी सब्र कर लेती..
ये सब तो मुझे रंडी समझ बैठे..वैसे गलती इनमें नहीं, मुझमें थी..कैसे इनके लंड के मजे ले रही थी तब से...अब झड़ गई तो सोचने लगी कि गलत हो रही है मेरे साथ...पर अब खुद को शरीफ कहती तो और इज्जत जाती मेरी इन पब्लिक बस में...क्योंकि इस मैं लग भी रही थी रंडी की तरह...
मैं सोच में पड़ गई कि क्या करूँ? तभी एक युक्ति सूझी...मैंने जोर की साँसें ली और चिल्लाते हुए बोली,"कंडक्टर साब, बस रोकिए" मेरी तेज आवाज बस से बाहर तक गूँज पड़ी..जिसे सुनते ही चारों मर्द पीछे की तरफ हो गए...
बस इतनी वक्त काफी थी मेरे लिए..अगले ही पल बस रूक गई थी...मैं फुर्ती दिखाती हुई अपने पल्लू समेटते गेट की तरफ लपकी...और फिर मैं बस से बाहर खड़ी थी...मेरे उतरते ही बस चल पड़ी आगे की ओर..
मैं सोचने लगी कि पैसे क्यों नहीं मांगे इसने...तभी बस से वो कंडक्टर फ्लाइंग किस मेरी ओर उछाल रहा था..मैं उसे देख अपनी हँसी रोक नहीं पाई..
अब मैं नजर घुमा देखी कि इस वक्त कहाँ हूँ..सामने बड़ी सी हरी भरी मैदान दिखी जिसके बीच में एक स्टैचू थी और वो मैदान चारों तरफ से लम्बे वृक्षों से घिरी थी..साथ में लोहे की छोटी चारदीवारी भी थी सभी ओर...
मतलब मैं गाँधी मैदान आ गई थी...आज पहली बार यहाँ आई हूँ तो थोड़ी घूमने की सोची अंदर जा कर...करीब 12 - 12:30 बज रहे होंगे अभी तभी तो पूरा मैदान खाली पड़ा था..पर उससे हमें क्या? पूजा भी 2 बजे के बाद ही आएगी..अगर पहले आ गई तो रहेगी अकेली बोर होती...
तभी मुझे अपनी भींगी चूत की तरफ ध्यान गई जिससे मुझे फ्रेश होने की जरूरत और बढ़ गई..सामने कहीं शौचालय नजर नहीं आ रही थी..सोची आगे बढ़ के देखती हूँ और मेरे पांव चल दिए...
कुछ देर तक यूँ ही बैठी रहने के बाद भी समझ नहीं आई कि क्या करूँ इस चूत की? फिर उठी और कपड़े पहने...
कपड़े पहनने के बाद हल्की मेकअप जल्दी वाली की..बालों को केवल झाड़ी ताकि सीधी रहे बाल..फिर चेहरे पर क्रीम लगाने के बाद होंठो पर गहरी लाल रंग की लिपिस्टिक लगाई..आँखों में हल्की काजल तो थी ही..
फिर घर से निकल गेट लॉक की और चल पड़ी सड़को पर..मंजिल तो अभी तक सोची नहीं थी..बस चली जा रही थी..
इधर मेरी चूत भी घंटी बजानी शुरू कर चुकी थी कि जल्द से जल्द कोई लंड दिखाओ..मैं अब मेन रोड तक आ साइड में खड़ी सोचने लगी..काश ऑटो वाला आ जाए या सन्नी..
ऑटो वाले का नं0 तो जानती भी नहीं तो कैसे बुलाऊं..फिर सन्नी को फोन करने की सोची..ओह गॉड..मोबाइल तो ली ही नहीं..इस चूत ने तो सब कुछ गड़बड़ किए जा रही है..
इस दौरान कई ऑटो आई और चलने की बात पूछी, पर मैं सबको ना कह दी..कहीं जाने की तो थी नहीं, बस लंड को ढ़ूँढ़ने आई हूँ..जो एक बार ऊपर से ही सही पर स्पर्श करा दे..
अब मैं वापस घर फोन के लिए लौटने के सिवाए कोई रास्ता नहीं सूझ रही थी..मैं वापसी के कदम बढ़ाने ही वाली थी कि सामने से आदमी से कचाकच भरी नगर बस आती दिखाई दी..बस के गेट पर करीब 5-7 आदमी थे तो अंदर कितने होंगे..
फिर जितने आदमी, उतने लण्ड...मेरी शरीर में झरझुर्री दौड़ गई..मैं वहीं खड़ी बस को आती देख रही थी, और उस बस में मुझे सिर्फ लंड ही नजर आ रही थी..तभी बस ठीक मेरे सामने आ रूकी..
"स्टेशनऽ...गाँधी मैदानऽ..." और ढ़ेर सारे जगह के नाम बोलता बस का उपचालक चिल्लाने लगा..मैं सरसरी नजर से बस के अंदर झांकी, जिसमें एक-दो लेडिज आगे केबिन में बैठी थी और एक-दो पीछे बैठी थी...बाकी सब मर्द भरे थे..
बस के रूकते हीदो आदमी उतरे..तभी वो खलासी मेरी तरफ देख बोला,"आइए मैडम, आगे सीट खाली होगी तो बैठ जाना..ऽ"मैं उसकी बात सुन जैसे ही पहली कदम बढ़ाई कि उसने मेरी बाँह पकड़ अपनी तरफ खींच लिया...
शुक्र थी कि मेरे पांव तेजी से बस पर चढ़ गए वर्ना गिर ही जाती..फिर वो मुझे अंदर की तरफ करते हुए मेरी बगलों से हाथ घुसा आगे वाले को जगह देने कहने लगा..जिससे उसके हाथ पूरी तरह मेरी चुची को दबा रही थी..
चंद घड़ी में ही थोड़ी सी जगह बन गई तो वो उसने हाथ पीछे खींचने लगा और अंत तक आते-2 अपनी चुटकी से मेरी निप्पल को मसल तेजी से हाथ खींच लिया...मैं चीख को किसी तरह अंदर दबा दी पर आह नहीं रोक पाई..
मेरी आहह कुछ तेज थी जिसे वहां पर खड़े सभी पैसेंजर सुन के मुस्कुराने लगे..और सभी की नजर मेरी तरफ दौड़ गई..मैं झेंपती हुई सिर नीचे की और आगे बढ़ने के लिए पैर आगे की..उफ्फ..अभी तो इतनी जगह थी और अभी मेरे पैर रखने की भी जगह नहीं है..मैं थोड़ी सी बेशर्म बनने की सोच ली कि अब जब लंड खोजने निकली तो शर्म क्यों..
मैं एक नजर सामने खड़े लोगों पर डाली तो दो साँवले एक-दूसरे की तरफ मुँह किए घूरे जा रहा था , फिर उनके आगे भी दो काले लोग इसी मुद्रा में थे..उनका लंड आपस में टच कर रहा था..मुझे इसी होकर आगे बढ़नी थी..
मैं सीधी तो किसी कीमत पर नहीं जा सकती थी इस बीच से..तभी बस हल्की धीमी हुई और एक जवान लड़का तेजी से घुसा और उसने मेरी गांड़ पर जोरदार धक्का दे दिया..ओहहह गॉड..मैं आगे दोनों मर्दों के बीच झुक गई..
इसी मौके का फायदा उठा दोनों मर्द अपने हाथ से मेरी चुची पकड़ मुझे उठाने के बहाने रगड़ने लगे..पीछे वो लड़का अभी भी लंड मेरी गांड़ पर जमाए ही था..मैं सीधी होती हुई पीछे मुड़ी तो वो लड़का एक शब्द "सॉरी" बोला और फिर अपने फोन कान में लगा लिया..भीड़ ज्यादा थी तो मैं उसे हटने भी नहीं बोल सकती थी..
"ओऽ मैडम..आगे बढ़िए ना..आगे कितनी जगह है और आप यहां जाम कर रखे हैं.." पीछे से उस खलासी की आवाज पूरे बस में गूँज उठी..तत्पश्चात सभी लंडों की नजर एक बार फिर मेरी तरफ गड़ गई..
मैं नजरे नीची की और तिरछी होती उन दोनों मर्दों के बीच घुस गई..ओहहहह...मैं जैसे ही उन दोनों के ठीक बीच पहुँची कि दोनों और जोर से चिपका गए..मैं कसमसा सी गई..नीचे उनका लण्ड फनफनाता हुआ खड़ा हुआ और मेरी चूत-गांड़ पर ठोकरें मारने लगा...
मेरी चूत पलक झपकते ही रोनी शुरू कर दी, आखिर उसे अपना यार जो काफी देर बाद मिला था..मैं कुछ ही पलों में पसीने से भींग गई..तभी पीछे वाला लड़का आया और अपना लंड सीधा मेरी कमर चिपकाते हुए बोला,"भाभीजी, और आगे बढ़िए.."
उसकी बात सुनते ही दोनों उस लड़के की तरफ ऐसे घूरने लगे मानों उसने बम फोड़ दिया हो..मैं आगे की तरफ की तरफ देखी तो आगे दो मर्द दोनों बगल से, जबकि एक थोड़ी तिरछी मेरी तरफ खड़ा था..और जगह भी इतनी सी ही थी..
सोची थोड़ी इसके भी लंड को अनुभव कर लूँ..मैं इस जकड़न से छूट अगली लंड
की कैद की तरफ बढ़ी..मगर दोनों मर्द तो चुम्बक की तरह चिपके थे..उनका लंड पूरी तरह मेरी साड़ी के ऊपर से ही पर धंसी हुई थी...मैंने पूरी ताकत लगा दी निकलने में तब जाकर निकल पाई..
और निकलते ही मैं अगली कैद में फंस गई...ये तो और बेशर्मी से पेश आ रहा था..मैंने आस पास नजर दौड़ाई तो सब अपनेआप में मशगूल था...जिसके सामने थाली मिली वो खाना शुरू., दूसरे से मतलब नहीं...पर हाँ कुछ अपनी नजरों से जरूर मजे ले रहे थे...
इसी बात का फायदा उठा सामने वाला अपना मुँह ठीक मेरे माथे के पास ले आया, जबकि पीछे वाला मेरी गर्दन पर झुक गया और दोनों तेज-2 साँसे छोड़ने लगा...तभी तिरछा वाला आदमी सीधा हुआ और अपना लंड मेरी कमर पर ठोकता हुआ बोला,"आगे और जगह नहीं है, आप यहीं पर रहो.."जिसे सुन बाकी दोनों मर्द मुस्कुरा दिया..
तभी मेरी छाती पर जोर से फूँक पड़ी..मैं चौंकती हुई नीची देखी तो ओह गॉडडडड..मेरी पल्लू तो थी ही नहीं...और ब्लॉउज में कैद बड़ी सी चुची पसीने से लथपथ उसके सीने से दबी जा रही थी...मैंने तुरंत ही पल्लू का पीछा की...
पर तब तक वो लड़का आ धमका और मेरी खाली दूसरी कमर पर भी अपना कठोर लिंग गाड़ दिया..और पल्लू उसकी बगल से गुजरती हुई दिख रही थी..मैंने एक हाथ से खींचने की कोशिश की पर नहीं आई...
"मैडम, अब वो तभी आपके पास आएगा जब आप नीचे उतरिएगा..कोई कमीना पैर से दबाए होगा..आप निश्चिंत हो सफर का मजा लीजिए." पीछे वाला आदमी मेरे कानों में बोला और अंत में अपनी जीभ मेरी कानों के नीचे फेर दिया..
मैं कांप सी गई इस छोटी सी चुसाई से और मेरे कांपते होंठो से इसससस निकल पड़ी..जिसे मेरे तरफ के चारों मर्द सुने और मुस्कुराते हुए और जोरों से कस दिए मुझे...मेरी हड्डियां तो लग रही थी मानों अब टूट जाएगी..
अचानक से दो हाथ नीचे से मेरी चुची पर जम गए..मेरी आँखें मदहोशी में बंद की कगार पर थी पर किसी तरह देखी तो ये हाथ उस लड़के और तिरछे वाले मर्द के थे...मैं कुछ बोलनी चाही कि तभी वो मेरी चुची मसलनी शुरू कर दी..
मैं जो भी कहना चाहती थी वो अगले ही पल मेरी आहहह में तब्दील हो बाहर निकल गई.. और मेरी आँखों के सामने अँधेरा छा गई...मैं आँखें बंद किए इस चतुर्मुखी लंड और द्विमुखी चुची-मर्दन के मजे लेने लगी...
पीछे वाला तो बीच बीच में अपनी जीभ भी फेर रहा था...तभी खट्ट की आवाज आई..मैं तुरंत आँखें खोली तो देखी आगे वाला आदमी अपना हाथ नीचे कर रहा था...मेरी नजर उसके हाथ से हटी तो ये क्या? मेरी चार बटन की ब्लाउज अब दो बटन की हो गई थी..और मेरी आधी चुची बाहर छलक गई...
आज ब्रॉ भी नहीं पहनी थी...आगे वाले मर्द की तरफ देखी तो वो बड़े ही बेशर्मी से अपने होंठ पर जीभ फिरा रहा था..तभी मेरी निप्पल को उस लड़के ने जोर से उमेठ दिया..मेरी चीख निकलते-2 बची पर चूत को नहीं बचा पाई...
मेरी चूत से झरने गिरने लगी..शुक्र है पेन्टी रानी की वरना पूरी बस में पानी फैल जाती...और मैं हल्की सिसकारी लेती आगे वाले के सीने पर लद गई...पीछे वाला मेरी हालत पर बोला,"लगता है शाली का सिग्नल गिर गया.." जिसे सुन चारों हँस पड़े..
झड़ने के बाद जब थोड़ी होश आई तो मैं सीधी हुई और अपनी दोनों चुची पर से हाथ हटाते हुए निकलने की कोशिश की..अब जब काम पूरी हो गई तो भला रूकने से क्या फायदा...मैं जोर लगाई निकलने की पर नहीं निकल पाई...
"चलो ना रूम पर, 2000 दूँगा.."आगे वाला आदमी मेरे होंठो के पास अपना होंठ लगभग सटाते हुए बोला...अब मेरी हालत सच में खराब होने लगी थी..खुद पर काफी गुस्सा भी कर रही थी और पछता भी रही थी कि काश घर पर ही थोड़ी सब्र कर लेती..
ये सब तो मुझे रंडी समझ बैठे..वैसे गलती इनमें नहीं, मुझमें थी..कैसे इनके लंड के मजे ले रही थी तब से...अब झड़ गई तो सोचने लगी कि गलत हो रही है मेरे साथ...पर अब खुद को शरीफ कहती तो और इज्जत जाती मेरी इन पब्लिक बस में...क्योंकि इस मैं लग भी रही थी रंडी की तरह...
मैं सोच में पड़ गई कि क्या करूँ? तभी एक युक्ति सूझी...मैंने जोर की साँसें ली और चिल्लाते हुए बोली,"कंडक्टर साब, बस रोकिए" मेरी तेज आवाज बस से बाहर तक गूँज पड़ी..जिसे सुनते ही चारों मर्द पीछे की तरफ हो गए...
बस इतनी वक्त काफी थी मेरे लिए..अगले ही पल बस रूक गई थी...मैं फुर्ती दिखाती हुई अपने पल्लू समेटते गेट की तरफ लपकी...और फिर मैं बस से बाहर खड़ी थी...मेरे उतरते ही बस चल पड़ी आगे की ओर..
मैं सोचने लगी कि पैसे क्यों नहीं मांगे इसने...तभी बस से वो कंडक्टर फ्लाइंग किस मेरी ओर उछाल रहा था..मैं उसे देख अपनी हँसी रोक नहीं पाई..
अब मैं नजर घुमा देखी कि इस वक्त कहाँ हूँ..सामने बड़ी सी हरी भरी मैदान दिखी जिसके बीच में एक स्टैचू थी और वो मैदान चारों तरफ से लम्बे वृक्षों से घिरी थी..साथ में लोहे की छोटी चारदीवारी भी थी सभी ओर...
मतलब मैं गाँधी मैदान आ गई थी...आज पहली बार यहाँ आई हूँ तो थोड़ी घूमने की सोची अंदर जा कर...करीब 12 - 12:30 बज रहे होंगे अभी तभी तो पूरा मैदान खाली पड़ा था..पर उससे हमें क्या? पूजा भी 2 बजे के बाद ही आएगी..अगर पहले आ गई तो रहेगी अकेली बोर होती...
तभी मुझे अपनी भींगी चूत की तरफ ध्यान गई जिससे मुझे फ्रेश होने की जरूरत और बढ़ गई..सामने कहीं शौचालय नजर नहीं आ रही थी..सोची आगे बढ़ के देखती हूँ और मेरे पांव चल दिए...