प्यासी शबाना

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The Romantic
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Re: प्यासी शबाना

Unread post by The Romantic » 14 Dec 2014 18:44

फिर कुछ देर बाद कईं लोग ईद मिलने आये और दोपहर के बाद तक घर काफी बिज़ी रहा। जब सब जा चुके तो, असलम गले मिलते मिलते थक चुका था। अब वो बेडरूम में जाकर बोतल खोलकर बैठ गया और मुझे भी बुला लिया, “आओ बेगम शबाना! दो-दो जाम हो जायें इस मुबरक मौके पर!” मैंने देखा कि आज कोई बहुत ही महंगी इंपोर्टेड शराब की बोतल थी जो शायद उसे किसी ने रिश्वत में दी थी। अगले आधे घंटे में मैंने भी दो पैग पी गयी। वाकय में बेहद उमदा शराब थी। शौहर असलम भी इतने में चार-पाँच पैग गटक चुका था। फिर हमेशा की तरह मेरी हसरतों की ज़रा भी परवाह किये बगैर मेरे खुदगर्ज़ नामर्द शौहर ने मुझे अपना लण्ड चूसने का हुक्म दिया। मैंने भी फ़र्ज़ी तौर पर उसका लण्ड चूस कर उसका पानी पिया। फिर मैंने अपने लिये तीसरा पैग ग्लास में डाल लिया और पीने लगी। आमतौर पर मैं दो पैग से ज्यादा नहीं लेती पर शराब माशा अल्लाह बेहद उमदा थी और बलराम के बारे में सोचते-सोचते मैं चौथा पैग भी पी गयी। पहले तो हल्का सा ही सुरूर था पर फिर अचानक तेज़ नशा महसूस होने लगा और मैं हवा में उड़ने लगी। शौहर असलम के भी कुछ ही देर में टुन्न होकर खर्राटे भरने शुरू हो गये।



मैं आज बहुत हसीन लग रही थी। हाथों में मेहंदी, लाल रंग का कीमती सलवार सूट, लाल रंग के ही पैरों में ऊँची पेंसिल हील के खूबसूरत सैंडल और मेरी हसीन मुस्लिम नशीली अदायें! बलराम की आज की हरकत ने मेरी मुस्लिम चूत को पहले ही बहुत जोश दे रखा था। अब शराब के नशे में तो मेरी आँखों के सामने उसका अनकटा गोरा हलब्बी हिंदू लण्ड नाचने लगा और मेरी चूत में चिंगारियाँ उठने लगीं। नशे में झूमती हुई मैं उठी तो चलते हुए ऊँची हील की सैंडल में मेरे कदम लड़खड़ा रहे थे पर मुझे तो कोई होश या परवाह नहीं थी। मैं नशे में झूमती लड़खड़ाती हुई सीढ़ियाँ चढ़ कर ऊपर जाने लगी इस उम्मीद में कि शायद बलराम से छत्त पर मुलाकात हो जाये। लेकिन हाय अल्लाह ये क्या! वो तो पहले से ही मेरे घर की ऊपर वाली सीढ़ियों पर बैठा हुआ था। मैंने नशे में बहकी आवाज़ में कहा, “जनाब पहले से मौजूद हैं! बड़े बेकरार लग रहे हो?” और खिलखिला कर हंस पड़ी।



“मोहतरमा भी खूब नशे में बदमस्त हैं! लगता है शराब की पुरी बोतल ही खाली करके आ रही हैं!” बलराम ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे ज़ोर से अपनी तरफ़ खींचा तो मैं बलखा कर बलराम की हिंदू गोदी में जा गिरी। उफ़्फ़! बलराम की हिंदू साँसें मेरे मुस्लिम कानों में थीं। मैं बहकी आवाज़ में गाना गुनगुनाने लगी, “थोड़ी सी जो पी ली है... चोरी तो नहीं की है!” फिर मैंने इठलाते हुए नशीली आँखों से बलराम की आँखों में देखा और नशे में फिर हंसने लगी। “शराब से भी ज्यादा तो नशा तो तुम्हारे उस नज़राने ने किया है जो तुमने इन सैंडलों में छिपा कर दिया था! अब तक उसकी मस्त खुशबू मेरे ज़हन में महक रही है!” मैं फिर हंसते हुए बोली। “मैं तो उस दिन दुकान में ही समझ गया था कि तू एक नंबर की मुसल्ली राँड है!” उसने कहा और कमीज़ के ऊपर से मेरा एक मम्मा मसल दिया!



“बेहद पाज़ी हो तुम! वैसे सैंडल हैं बेहद खूबसूरत… हैं भी बहुत कीमती!” मैंने अपना एक पैर उठा कर हवा में हिलाते हुए कहा। “अरे तेरे जैसी हसीना के लिये तो मेरी दुकान में मौजूद हर सैंडल की जोड़ी निसार है!” वो बोला तो मैं फिर हंसते हुए इठला कर बोली, “हाय सच! बेहद शौकीन हूँ मैं ऊँची हील के सैंडलों की! ज़ेवरों से भी ज्यादा… और शौहर की ऊपरी कमाई का बेशतर हिस्सा सैंडल पर खर्च करती हूँ!” उसने भी हंसते हुए कहा, “तू चिंता मत कर! अपनी दुकान समझ और जब चाहे मेरी दुकान पर आकर अपनी पसंद के सैंडल ले जा!”



“सोच लो बलराम जी! लुट जाओगे!” मैंने शरारत से हंसते हुए कहा। नशे में मैं बात-बात पर हंस रही थी। बलराम बोला, “लुटुँगा मैं नहीं बल्कि तेरा शौहर! तेरे शौहर की तो खैर नहीं है आज!” मैंने हल्के से शरारती अंदाज़ में बलराम के सीने पर मार कर कहा, “क्या मतलब है आपका बलराम जी!” वो बोला, “साला हरामी मुझसे झगड़ता है… उसका बदला मैं तेरी मुस्लिम चूत को चोद कर लुँगा! तुझे अपनी रखैल बना लुँगा!”



मैं जोर से हंसी और बोली, “पहले ज़रा शीर-खोरमा तो ले आऊँ… तुम्हें जो ताना मारा था मैंने, तुम्हारी मर्दानगी को पिला ही दुँगी शीर-खोरमा!” मैं बलराम की गोदी से झूमती हुई उठी। “संभल कर जा मुसल्ली राँड! नशे में लुढ़क ना जाना!” मुझे नशे में लहराते देख बलराम हंस कर बोला। मैं भी ज़ोर से खिलखिला कर हंश दी और बोली, “लुढ़क भी गयी तो तुम हो ना मुझे संभालने के लिये!” मैं फिर उसी गाने के टूटे-फूटे से जुमले गुनगुनाती हुई और बीच-बीच में हंसती हुई सीड़ियों की हैंड-रेल पकड़ कर नशे में झूमती लहराती नीचे जाने लगी।



“थोड़ी सी जो पी ली है... चोरी तो... कोई तो संभालो... कहीं हम गिर ना पड़ें.... कैसे ना पियूँ प्यासी ये रात है... कहीं हम गिर ना पड़ें... थोड़ी सी... पी ली...!”



नीचे बेडरूम में झाँक कर देखा तो असलम के खर्राटे अभी भी उरूज पर थे। फिर डगमगाती हुई किचन में जा कर मैंने अबड़-धबड़ किसी तरह शीर-खोरमा कटोरे में डाला क्योंकि नशे में हाथ भी बेतरतीब चल रहे थे। फिर नशे में झूमती लड़खड़ाती हुई ऊपर सीढ़ियों में जाकर बलराम की गोद में जा गिरी और फिर गाँड टिका कर बैठ गयी।

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Re: प्यासी शबाना

Unread post by The Romantic » 14 Dec 2014 18:44





“हाय अल्लाह! ये क्या है?” मैं अचानक चिहुक पड़ी तो वो ज़ोर से हंसा, “तेरी मुस्लिम गाँड और मेरा अनकटा लौड़ा है शबाना राँऽऽड!” मैंने झट से चम्मच भर कर शीर-खोरमा बलराम के मुँह में डाला और बोली, “मेरे हिंदू दिलबर लो पियो अब!” उसे शीर-खोरमा पिलाते हुए बीच-बीच में नशे में लहकते मेरे हाठ से थोड़ा मेरी चूचियों पर भी ढलक जाता था। बलराम ने थोड़ा ही शीर-खोरमा पीया और फिर बोला, “राँड! क्या अब मेरे मुँह में ही डालती रहेगी?” और कहते हुए उसने अपना हिंदू त्रिशूल पैंट से बाहर निकाला और मुझे गोद से उठा कर सीढ़ी पर बिठा दिया। फिर वो कटोरा लेकर मेरे सामने नंगा हिंदू लंड लेकर खड़ा हो गया। उसने चम्मच निकाल कर बाजू में रख दिया और शीर-खुरमे में अपना अनकटा हिंदू लंड डाल दिया। “हाय तौबा ये क्या करा...?” अभी मैं बोल ही रही थी कि बलराम ने अपने लंड को शीर-खुरमे में भिगोया और मेरे मुँह में डाल दिया।



अब तक रमेश के हिंदू लंड से कितनी ही बार उसकी मलाई पी थी मैंने… लेकिन इस तरह लंड से पहली बार इस तरह कुछ पी रही थी थी। मैंने मुस्लिमा अंदाज़ में बलराम के लंड से शीर-खोरमा चूसा और फिर पीते हुए बोली, “शीर-खुरमे से ज़्यादा तो शीर-खुरमे का गोश्त मज़ेदार है!” बलराम ने हंसते हुए फिर से लंड को कटोरे में डाला और मेरे मुँह में दे दिया। “इससे निकलने वाला शीर-खोरमा भी तो मेरे इस शीर-खुरमे से ज्यादा मज़ेदार है!” मैं फिर बोली और वो शीर-खुरमे में अपना लंड डुबो-डुबो कर चुसवाने लगा। उसके अनकटे गोरे हलब्बी लंड का गुलाबी सुपारा भी आलूबुखारे जैसा मोटा था।



फिर बलराम ने अचानक मुझे अपनी मजबूत बाँहों में उठाया और सीढ़ियों से नीचे ले गया। नीचे आकर सीधे मेरे बेडरूम में उसने मुझे सोते हुए शौहर असलम शरीफ के सामने ले जाकर खड़ा कर दिया। उफ़्फ़ खुदा! मेरा शौहर सामने नशे में धुत्त सो रहा है और मैं खुद भी ईद के दिन शराब के नशे की हालत में सजी धजी एक हिंदू मर्द के साथ चिपकी हुई हूँ जिसने अपना अनकटा मोटा हिंदू लंड पैंट से निकल कर खड़ा किया हुआ है। बलराम ने मेरी कमीज़ को नीचे किया और हाथ डाल कर ब्रा में कैद मेरी गोल खूबसुरत बड़ी बड़ी मुस्लिम चूचियों को बाहर निकाला और फिर मेरी कमीज़ ऊपर उठा कर मेरी सलवार का नाड़ा खोल दिया। मेरी सलवार मेरे सोते हुए शौहर के सामने नीचे गिर गयी और मैंने भी अपने सैंडल वाले पैर उसमें से निकाल कर सलवार को ठोकर से एक तरफ खिसका दिया।



बलराम ने मेरी दोनों मुस्लिम चूचियाँ पकड़ कर आहिस्ता से मेरे कान में कहा, “तूने जो ताना मारा था ना... देख अब तेरे ही घर में तेरे ही कटवे मुल्ले के सामने हमेशा बुऱके में छुपे रहने वाले तेरे जिस्म को मैंने नंगा कर दिया!” फिर मेरे कंधे पर दोनों हाथ रख कर मुझे नीचे बिठा दिया और लंड को मेरे चेहरे के आसपास फेरने लगा। मैंने ज़रा सा सहमते हुए अंदाज़ में एक बार शौहर की तरफ़ देखा और फिर बलराम का हिंदू कड़क गदाधारी लंड अपने मुँह में ले लिया और आहिस्ते-आहिस्ते चूसने लगी। मैं बिना सलवार और कमीज़ में से छोटी सी ब्रा में से झाँकती मुस्लिम चूचियाँ बाहर निकाले हुए… खर्राटे मारकर सो रहे शौहर असलम शरीफ के सामने बलराम का हिंदू लंड चूस रही थी।



वैसे तो शौहर के घर में मौजूदगी के वक्त पहले भी रमेश के साथ छत्त पर छिप कर रात-रात भर चुदवाती थी लेकिन शौहर के बिल्कुल सामने इस तरह बलराम का लंड चूसना जोखिम भरा था। मेरे मन में थोड़ा अंदेशा तो था लेकिन बलराम के हिंदू अनकटे लंड की चाहत और शराब के नशे में मैं बिल्कुल बे-हया होकर बलराम का लण्ड चूस रही थी। मैं कभी शौहर को देखती कभी बलराम के हिंदू लंड को चूसते हुए बलराम की आँखों में देखती। जब भी बलराम की आँखों में देखती तो वो मुझे “राँऽऽड! मुल्लनी, हिजाबी रंडी! छिनाल!” जैसी गालियाँ देता हुआ अपने अज़ीम लंड को मेरे मुस्लिम मुँह में घुसेड़ देता।



बलराम ने फिर मुझे उठा कर खड़ा किया। मैं नशे में झूमती हुई उसकी गर्दन में बाँहें डालें उससे चिपक कर खड़ी हो गयी। उसने मेरी कमीज़ को ऊपर से उतार दिया और फिर पैंटी को पहले तो हाथ से मेरे घुटनों तक नीचे खिसकाया और फिर अपने पैर से मेरी पैंटी को बिल्कुल नीचे कर दिया और फिर ब्रा के हूक खोले बगैर उसने ज़ोर से ब्रा खींच कर हुक तोड़ते हुए निकाल दी। मेरे मुँह से हल्के से निकला, “उफ़्फ़ अल्लाह! मर गयी!” अब मैं बस अपने पैरों में बलराम के तोहफे में दिये लाल रंग के ऊँची हील वाले सैंडल पहने हुए बिल्कुल नंगी थी। बलराम ने मुझे उसे नंगा करने का इशारा किया तो मैंने भी नशे में जूझते हाथों से मैंने उसकी शर्ट के कुछ बटन खोले और कुछ तोड़े और शर्ट उतार दी। फिर नंगी बैठ कर उसकी पैंट भी खोल दी। अब बलराम का हिंदू बदन भी नंगा था। मैं बलराम के हट्टे-कट्टे चौड़े हिंदू सीने से अपने मुस्लिम मम्मों रगड़ने लगी।



मुझे थोड़ी प्यास सी महसूस हुई तो मैंने हाथ बढ़ा कर पास ही रखी वो शराब की बोतल उठा ली। उसमें अभी भी थोड़ी शराब बाकी थी। “साली रंडी! पहले ही नशे में इतनी चूर है अब और कितना पियेगी!” मैंने भी बोतल से होंठ लगा कर एक घूँट पिया और फिर दो-तीन गानों के जुमले मिला कर धीरे से उल्टा-सीधा गुनगुनाने लगी, “नशा शराब में होता तो नाचती बोतल... हमें तो है जवानी का नशा... उसपे फिर नशा है तेरे प्यार का...!” और फिर बोतल मुँह से लगाकर पीने लगी। बलराम ने भी मेरी चूचियाँ चूसनी शुरू कर दीं और कुछ देर उसने मेरी मुस्लिम चूचियों को शौहर असलम के सामने ही चूसा।



“साली पियक्कड़ मुसल्ली राँड! नशे में ज्यादा शायराना हो रही है! बाद में तुझे लंड की कुदरती शराब पिलाउँगा आज!” वो मेरे निप्पल अपने दाँतों से कुतरते हुए धीरे से बोला। मैं उसका इशारा कुछ-कुछ समझ गयी थी लेकिन शक दूर करने के लिये पूछा, “तुम्हारा मतलब पे-पेशाब?” वो बोला, “हाँ साली कुत्तिया!” फिर मेरे हाथ से शराब की बोतल ले कर रख दी। “बहुत बड़े अव्वल दर्जे के पाजी हो तुम! अब क्या पेशाब पिलाओगे मुझे!” मैंने शरारती अंदाज़ में गुस्सा दिखाते हुए कहा! “एक बार चख लेगी तो रोज़-रोज़ पियेगी। तेरे जैसी चुदक्कड़ी मुस्लिम राँडें बहुत शौक से पिती हैं!” वो बोला।



फिर इशारे से मुझे बाहर चलने को कहा। मैं झूमती हुई बाहर जाने लगी थी कि उसने पीछे मेरे चूतड़ों को पकड़ कर बेदर्दी से भींच दिया। मैंने पलट कर इशारे से पूछा, “क्या हुआ?” तो कान के पास आकर बलराम ने कहा, “साली शबाना राँड मुल्लनी! तेरी चूत का भोंसड़ा साली! कटेले की पियक्कड़ बीवी! हाथ में लौड़ा पकड़ और फिर बाहर चल हिजाबी कुत्तिया।” हिंदू बलराम का अनकटा बड़ा लंड पकड़ कर मैं नंगी नशे में झूमती डगमगाती कमरे से बाहर आ गयी। बाहर आते ही बलराम ने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया और बाहर से कुँडी लगा दी। मेरा नशा और परवान चढ़ने लगा था और मुझे झूमते देख बलराम मुझे सहारा दे कर बाहर दूसरे बेडरूम में ले जाने लगा! मैं भी हिन्दू बलराम के सहारे डगमगा कर चलती हुई उसके हिंदू लंड को लगातार पकड़े हुई थी और दबा रही थी।



दूसरे बेडरूम में पहुँचते ही उसने ज़ोर से मेरी चूची दबायी और बोला, “साली हिजाबी रंडी! तेरी रंडी चूत का चाँद आज मैं ईद के दिन हिंदू हलब्बी लंड से चोदुँगा!” फिर मुझे गोद में उठा कर बेड पर फेंक दिया और मेरी दोनों टाँगें फैला कर खोल दीं। मेरी मुस्लिम चूत का दरवाजा उसके कड़क हिंदू लंड के लिये बेकरारी से खुल गया। बलराम ने मेरी चूत के छेद पर अपना हिंदू लंड रखा और एक ज़ोर के झटके में तमाम गदाधारी हिंदू त्रिशूल लंड मेरी मुस्लिमा चूत में घुसेड़ दिया। मेरी तो जान ही निकल गयी और मुँह से एक चींख निकल गयी, “आआआईईईई मर गयीऽऽऽऽ! अल्लाऽऽह!” बलराम मेरी चूत के अंदर अपना लंड दाखिल करके रुक गया। मेरी आँखें दर्द के मारे फाट गयी थी और मुँह खुला हुआ था। मैं रमेश के आठ इंच लंबे मूसल जैसे हिंदू लंड से चुदने की आदी थी लेकिन बलराम का लण्ड तो उससे भी कहीं ज्यादा अज़ीम था।



फिर कुछ लम्हों के बाद मेरी चूत उसके घोड़े जैसे लंबे-मोटे लंड की आदी हो गयी तो मैंने बलराम की आँखों में देखा और कहा, “कटेले की मुस्लिम बीवी की छिनाल चूत में आपके हिंदू लंड को मैं सलाम करती हूँ! उफ़्फ़ अल्लाह! मेरे हिंदू खसम! मेरे हिंदू महबूब! बलराम जानू! मेरी कुत्तिया बनी हिजाबी रंडी चूत को चोदो मेरे हिंदू दिलबर!” बलराम ने मेरी मुस्लिम चूचियाँ हाथ में पकड़ीं और मेरे मुस्लिम होंठों पर अपने होंठ रख कर उन्हें चूसते हुए अपने हिंदू अनकटे त्रिशूल जैसे लंड को मेरी मुस्लिमा चूत में चोदने लगा। उसका भुजंग मोटा अनकटा हिंदू लंड मेरी मुस्लिमा चूत के होंठों को चीरते हुए अंदर बाहर हो रहा था। मैंने अपने हाथों से बलराम के चूतड़ दबाये हुए थे और मैं हिंदू बलराम के नीचे बुरी तरह चुद रही थी। बलराम ने मेरे होंठों से होंठ अलग किये और मेरी आँखों में देखा और अपना हिंदू गदा जैसा लंड आधा बाहर निकाला और बोला, “साली रंडी! हरामी… मुल्ले कटवे की हिजाबी बीवी! तेरी मुस्लिम चूत का भोंसड़ा!” ये कहते हुए मेरे होंठों पर फिर से होंठ रख कर ज़ोर के झटके मेरी मुस्लिम चूत में मारने लगा।



मेरी दोनों टाँगें हवा में खुली हुई थीं और लाल सैंडल वाले पैरों के तलवे छत्त की तरफ थे। मेरे गोरे जिस्म पर मानो जैसे बलराम का हिंदू बदन हुकुमत कर रहा था। उसके चूतड़ मेरी मुस्लिम चूत चोदने के वक्त कभी मेरे हाथों में उभरते तो जब कभी वो पूरा हिंदू लंड मेरी चूत में डालता तो सिकुड़ जाते। उधर शौहर असलम के खर्राटों की आवाज़ और इधर हिंदू बलराम और मेरी चूत की चुदाई की आवाज़।

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Re: प्यासी शबाना

Unread post by The Romantic » 14 Dec 2014 18:47



फिर बलराम ने मेरी चूत में मुसलसिल झटके मारते हुए मुझसे कहा, “अब तैयार हो जा रंडी छिनाल! तेरी मुसल्ली चूत में हिंदू लंड का पानी गिरने वाला है!” मैंने भी दोनों टाँगें और ज्यादा खोल लीं और बलराम की आँखों में देखने लगी। वो मेरी आँखों में देख कर मेरी मुस्लिमा चूत में अपने अनकटे लंड से ज़ोर-ज़ोर के झटके मारने लगा। अब बलराम का चेहरा हल्का सा लाल होने लगा और वो कुछ गुस्सैले अंदाज़ में मेरी आँखों में देखने लगा। मैंने उसकी आँखों में देखते हुए अपनी मुस्लिमा चूत को उससे चिपकाने की कोशिश की। “राँऽऽऽड मुल्लानीऽऽऽ साऽऽली कटीऽऽली छीनाऽऽल! मुल्ले की राँऽऽऽड बीवी! तेरी मुस्लिमा चूत का मुस्लिम भोंसड़ाऽऽऽ शबानाऽऽ मुस्लिमाऽऽ ले साऽऽली। ले अपनी छिनाल चूत में मेरा पानी! भोंसड़ी की!” कहता हुआ झटकों से मेरी हिजाबी मुसिल्मा चूत में अपना पानी डालने लगा। उफ़्फ़ उसके अनकटे लण्ड का सारा पानी मेरी मुस्लिम चूत में था और एक आखिरी झटके के साथ वो मेरी मुस्लिम चूचियाँ अपने सीने से दबाते हुए मेरे मुस्लिम जिस्म पर लेट गया। फिर कुछ देर मेरी चूत में अपने अनकटे लंड को आराम देकर उसने बाहर निकाला और मेरे ऊपर ही लेटा रहा। मेरे सुर्ख गुलाबी होंठों में अपने मर्दाना होंठ रख कर चूसने लगा। मेरा पूरा गोरा पाक मुस्लिमा जिस्म बलराम के हिंदू मर्दाना बदन के नीचे दबा हुआ था।



फिर उसने बैठ कर अपना हिंदू लंड मेरे चेहरे के सामने ला कर मेरे होंठों पर रख दिया। मैंने शरारत से उसकी आँखों में देखते हुए अपने होंठ खोल कर उसका अनकटा लंड जो कि मेरी चूत और उसके खुद के पानी से सना हुआ था, अपने मुँह में ले लिया। उसके मर्दाना हिंदू लंड में अभी भी काफी सख्ती बरकरार थी। मुझे अपनी चूत और उसके लण्ड के पानी का मिलाजुला स्वाद बहुत ही लज़ीज़ लग रहा था। मेरे चूसने से उसका लण्ड फिर फूलने लगा और उसने झटके मारते हुए मेरा मुँह चोदना शुरू कर दिया।



अचानक उसने अपना लण्ड मेरे मुँह से बाहर निकाला। उसका हिंदू अज़ीम लंड फिर से पूरा सख्त हो कर फूल गया था। “चल साली मुसल्ली राँड! घोड़ी बन जा! अब तेरी मुस्लिमा नवाबी गाँड की धज्जियाँ उड़ाउँगा!” उसने कहा। रमेश अक्सर अपने आठ इंच लंबे मोटे लंड से मेरी नवाबी गाँड मारता था और मुझे भी बेहद मज़ा आता था लेकिन बलराम का लंड तो उससे कहीं ज्यादा लम्बा मोटा था। इसलिये मुझे थोड़ी हिचकिचाहट तो हुई लेकिन इतना अज़ीम अनकटा लण्ड अपनी गाँड में लेने के ख्याल से सनसनी भी महसुस होने लगी। मैंने बलराम को देखते हुए कहा, “नहीं! नहीं! तुम्हारा ये गदाधारी लण्ड-ए-अज़ीम तो मेरी गाँड फाड़ डालेगा!” लेकिन मेरी आवाज़ मुस्तकिल नहीं थी और मेरी आँखों और चेहरे के जज़्बातों से भी बलराम समझ गया कि मैं सिर्फ नखरा कर रही हूँ।



“मुझे पता है मुसल्ली राँड! तेरी मोटी गाँड में भी बहुत खुजली है! एक बार मेरा लंड अपनी छिनाल मुस्लिमा नवाबी गाँड में ले लेगी तो हर रोज़ गाँड मरवाने के लिये भीख माँगेगी!” वो बोला और मुझे बिस्तर से उठाकर ज़मीन पर खड़ा किया और मुझे बिस्तर पर झुकने को कहा। “चल मुसल्ली छिनाल! खड़ी-खड़ी ही बिस्तर पर हाथ रख कर झुक जा!” जैसे ही मैं बिस्तर पर झुकी, बलराम ने मेरे चूतड़ों पर दो-तीन थप्पड़ मारे और फिर मेरी गाँड के छेद पर अपने लंड का गदा जैसा सुपाड़ा टिका दिया और फिर धीरे-धीरे मेरी गाँड में घुसेड़ने लगा।



“आआईईईईऽऽऽ! अल्लाहऽऽऽऽ मर गयी!!!” मैं दर्द बर्दाश्त करते हुए चिल्लायी। उसने बिना तवज्जो दिये मेरी गाँड में अपना खंबे जैसा हिंदू मर्दाना लंड घुसेड़ना ज़ारी रखा। “हायऽऽ अल्लाहऽऽऽ! नहींऽऽऽ अल्लाह!” मेरी आवाज़ दर्द और वासना दोनों मौजूद थीं। दर्द भी इस कदर था कि मैं खुद को छटपटाने से रोक नहीं पा रही थी और तड़प कर ज़ोर-ज़ोर से अपने चूतड़ हिलाने लगी। बलराम ने फिर मेरे चूतड़ों पर थप्पड़ मारे और फिर झुक कर मेरे छटपटाते जिस्म को अपनी मजबूत बाँह में कस कर पकड़ लिया और अपना बाकी का हिंदू ना-कटा लंड मेरी गाँड में ढकेलने लगा।



धीरे-धीरे मेरा दर्द काफूर होने लगा और मुझे और मज़ा आने लगा। मेरी गाँड बलराम के हिंदू लण्ड पर चिपक कर कस गयी और मैं उसके नीचे दबी हुई उसका लंड अपनी गाँड में और अंदर लेने की कोशिश में अपने चूतड़ उछालने लगी। कुछ ही लम्हों में उसका तमाम लण्ड मेरी गाँड में दाखिल हो गया। अब बलराम ज़ोर-ज़ोर से झटके मारने लगा और उसके मर्दाना पुट्ठे मेरे चूतड़ों पर टकराने लगे। “चोदो मेरे हिंदू राजा! मेरी मुस्लिमा नवाबी गाँड में अपना शाही लण्ड ज़ोर-ज़ोर से चोदो!” मैं मस्ती में बोलते हुए अपने चूतड़ हिलाने लगी। बलराम अब इतनी ज़ोर-ज़ोर से झटके मार कर अपना लण्ड मेरी छिनाल कसी हुई नवाबी गाँड में पेल रहा था कि मैं ऊँची हील के सैंडल में अपने पैरों पर खड़ी नहीं रह सकी और अपने पैर और टाँगें ज़मीन से हवा में उठा कर बिस्तर पर पेट के बल सपाट झुक गयी। अब मेरी चूत भी नीचे से बिस्तर पर रगड़ रही थी। करीब दस मिनट तक बलराम ने मेरी गाँड अपने हिंदू अज़ीम लंड से मारी और मेरी चूत ने तीन बार पानी छोड़ा। फिर बलराम भी मेरी कमर पर झुका और तमाम हिंदू लण्ड मेरी गाँड में ठाँस कर रुक गया और फिर मेरी गाँड अपने पानी से भर दी।



हम दोनों कुछ देर इसी तरह पड़े हाँफते रहे और पिर धीरे-धीरे बलराम ने अपना हिंदू अनकटा लंड मेरी मुसलिमा गाँड में से बाहर निकाला। फिर वो खड़ा हुआ तो मैं भी पलट कर उसकी आँखों में देखते हुए मुस्कुराने लगी।



मैं बैठ कर अपने खुले हुए बाल बाँधने लगी तो बलराम झुक कर मेरी मुस्लिम चूचियाँ पकड़ कर आहिस्ता से दबाने लगा। उसका लण्ड अब ढीला पड़ गया था लेकिन फिर भी छः-सात इंच का था। मेरे शौहर असलम शरीफ की लुल्ली तो सख्त होकर भी मुश्किल से तीन-चार इंच की होती थी। बलराम का हिंदू लंड अपने पानी से सना हुआ चिपचिपा रहा था। मैंने उसे पकड़ अपने मुँह में भर लिया और चूसते हुए साफ करने लगी। बलराम जी के हिंदू लंड को चूसते हुए मुझे सिर्फ लंड के पानी का ही लज़ीज़ स्वाद नहीं बल्कि अपनी गाँड का भी हल्का-हल्का सा जाना-पहचाना ज़ायका आ रहा था। इससे पहले भी कईं बार मैंने रमेश से गाँड मरवाने के बाद उसके लण्ड से ये मज़ेदार ज़ायका लिया था।



इतने में बलराम ने कहा, “शबाना बेगम! आओ तुम्हें अपने लंड की शराब पिलता हूँ!”



“तुम मुझे अपना पेशाब पिलाये बगैर मानोगे नहीं!” मैं मुस्कुराते हुए अदा से बोली। “एक बार पी कर देख फिर तू खुद ही पेशाब पिये बगैर मानेगी नहीं!” उसने हंसते हुए जवाब दिया। फिर उसने मुझे बिस्तर से उतार कर नीचे ज़मीन पर बैठने को कहा तो मैं उसकी टाँगों के बीच में घुटने मोड़ कर बैठ गयी। अब तो मैं भी उसका पेशाब चखने के लिये मुतजस्सिस थी और गर्दन उठा कर मैं बलराम की आँखों में झाँकते हुए अदा से अपने होंठों पर जीभ फिराने लगी और बोली, “अब जल्दी से पिला दो अपने लण्ड की शराब! मैं भी देखूँ कितना नशा है इसमें!”



उसने मेरे मुलायम सुर्ख होंठों पर अपना लंड टिकाया तो मैंने होंठ खोल कर उसके लंड का आधा सुपाड़ा मुँह में ले लिया। एक लम्हे बाद ही बलराम आहिस्ता-आहिस्ता मेरे मुँह में पेशाब करने लगा। जब मेरा मुँह उसके गरम पेशाब से भर गया तो उसने अपना लंड मेरे होंठों से पीछे हटा लिया। मैंने मुँह में भरे फेशब को धीरे-धीरे मुँह में ही घुमाया और फिर आहिस्ता से अपने हलक में उतार दिया। मेरे मुँह में एक साथ कितनी ही तरह के ज़ायके एक-एक करके फूट पड़े। नमकीन, कसैला, थोड़ी सी खट्टास, थोड़ी सी कड़वाहट और फिर हल्की सी मिठास। उफ्फ अल्लाह! क्या कहुँ! इतने सारे ज़ायकों का गुलदस्ता था। फिर बलराम ने इसी तरह मेरे मुँह में सात-आठ बार अपना पेशाब भरा और हर बार मैं मुँह में पेशाब घुमा-घुमा कर पीते हुए आँखें बंद करके एक साथ इतने सारे ज़ायकों की लज़्ज़त लेने लगी। बलराम के पेशाब का आखिरी कतरा पीने के बाद मैं अपने होंठों पर जीभ फिराते हुए बलराम की आँखों में देखते हुए बोली, “शुक्रिया मेरे हिंदू सरताज़! मुझे पेशाब के मज़ेदार ज़ायके से वाकिफ कराने के लिये! वाकय में बेहद लज़िज़ और नशीली शराब है ये!”



उसके बाद हम नंगे ही उस बेडरूम में गये जहाँ मेरा शौहर असलम शरीफ खर्राटे मार कर नशे में धुत्त सो रहा था। क्योंकि हमारे कपड़े उसी कमरे में थे। मेरा नशा इतनी देर में ज़रा भी कम नहीं हुआ था और मैं बलराम के मर्दाना हिंदू जिस्म के सहारे ही लड़खड़ाती हुई चल रही थी। कमरे में आ कर बलराम अपने कपड़े पहनने लगा और मैं नशे में झूमती हुई नंगी ही बिस्तर पर बैठ कर उसे देखने लगी। शौहर असलम मेरे पास ही लेटा हुआ खर्राटे मार रहा था । अपने कपड़े पहनते हुए बलराम बोला, “ज़रा अपने शौहर का लंड कितना बड़ा है मुझे भी बता!” बलराम की बात सुनकर मैं हंस पड़ी और शौहर असलम के पास खिसक कर मैं आहिस्ते से शौहर का पजामा खोलने लगी। उसने अंदर चड्डी नहीं पहनी थी तो मैंने आहिस्ता से पजामा खींच कर नीचे कर दिया और उसकी लुल्ली की तरफ इशारे करके हंसने लगी। बलराम ने देखा तो वो भी ज़ोर से हंसने लगा।



शौहर असलम की लुल्ली छोटी होने की वजह से ठीक से नज़र भी नहीं आ रही थी। मैंने हंसते हुए बलराम को इशारे से अपनी दो उंगलियाँ फैला कर बताया कि जब असलम की लुल्ली खड़ी होती है तो तीन इंच की होती है। बलराम ने पास आकर अपने हिंदू बड़े कड़क मूसल जैसे लंड पर मेरा हाथ रखा और मसलते हुए बड़ा करने लगा और मेरी आँखों में देखने लगा। उसकी हिंदू अदायें मेरी मुस्लिम चूत को शर्मिंदा कर रही थी लेकिन मैं अपनी चूत और गाँड में उसके हिंदू लंड का पानी लेकर चुदक्कड़ हो चुकी थी।



उसने अपने सारे कपड़े पहन लिये और मैं नंगी ही नशे झूमती उसके साथ फिर से बाहर हॉल में आ गयी। हम दोनों अभी भी मेरे शौहर का मज़ाक उड़ाते हुए हंस रहे थे। बाहर हॉल में आ कर फिर हम दोनों ने कुछ देर किस किया और मैंने उसकी पैंट की चेन खोलकर अपना एक हाथ अंदर डाल कर उसका लंड पकड़ लिया। मेरे होंठों को चूमते हुए बलराम बोला, “लगता है शबाना बेगम का अभी भी मन नहीं भरा!”



“ऊँहुँ!” मैंने ना में सिर हिलाया और फिर बोली, “वादा करो मुझे हर रोज़ इसी तरह चोदोगे!” वो हंसने लगा और पिर बोला, “तेरी मुस्लिमा चूत और गाँड कि तो हर रोज़ रात को छत्त पर अपने हिंदू लण्ड से चुदाई करुँगा मुसल्ली राँड!” फिर उसकी पैंट में आगे से हाथ डाले हुए मैं उसका हिंदू लंड पकड़ कर दरवाजे तक ले जाकर अलविदा कहा।



दूसरे दिन सुबह-सुबह मैं रिश्तेदारों से मिलने जाने के लिये बुऱका पहने शौहर असलम के साथ निकली। बलराम भी बाहर खड़ा सिगरेट पी रहा था। असलम मिय़ाँ अपनी पुरानी गाड़ी स्टार्ट करने लगे और मैं खड़ी होकर बलराम से इशारे लड़ाने लगी। कभी वो किस करने का इशारा करता कभी असलम की छोटी लुल्ली पर हंसकर हाथ से बताता। मैं भी बाहर खड़ी होकर कभी अपनी मुस्लिम चूची उभार कर दिखाती और कभी हवा में किस करती कभी अपना अंगुठा मुँह में डाल कर लंड चूसने का इशारा करती। फिर गाड़ी स्टार्ट हुई तो मैं पीछे बैठ कर जाते हुए बलराम को अपना हिजाब हटा कर किस करती हुई चली गयी।



उस दिन से मेरी ज़िंदगी ही बदल गयी। शुरू-शुरू में मैंने रमेश और बलराम दोनों को एक -दूसरे के बारे में नहीं बताया। मुझे डर था कि उन दोनों में से कहीं कोई नाराज़ ना हो जाये और मैं उन दोनों में से किसी को भी खोना नहीं चाहती थी। मैंने रमेश से बहाना बना दिया कि मेरे शौहर को हमारे तल्लुकात के बारे में शक हो गया है और इसलिये मैं उससे रात को छत्त पर नहीं मिल पाउँगी। दिन में वो जब चाहे मुझे चोद सकता है। उधर बलराम से मैं रात को ही मिल सकती थी क्योंकि दिनभर वो अपने शोरूम में होता था। अब मैं दिन में शौहर के जाने के बद रमेश के हिंदू लंड की रखैल बन कर चुदती। फिर रात को असलम मियाँ के नशे में चूर हो जाने के बाद मैं भी शराब पी कर छत्त पर बलराम के मूसल हिंदू से चुदने पहुँच जाती और आधी रात के बाद तक उसके साथ चुदवा कर नशे में झूमती हुई वापस नीचे आती।



हर रोज़ सुबह-सुबह मैं उसका ताज़ा पेशाब पीने छत्त पर पहुँच जाती। उस वक्त शौहर असलम मियाँ नीचे तैयार हो रहे होते थे। मुझे पेशाब पीने की इतनी लत्त लग गयी कि जब मैं रमेश के साथ होती तो उसका पेशाब भी पीने लगी और यहाँ तक कि कुछ ही दिनों में अपना खुद का पेशाब भी पीना शुरू कर दिया। अब तो आलम ये है कि जब कभी भी मुझे मूतना होता है तो मैं बाथरूम जाने की बजाय एक बड़े गिलास में ही पेशाब करती हूँ और फिर मज़े ले-ले कर पीती हूँ।

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