एक अनोखा बंधन

Discover endless Hindi sex story and novels. Browse hindi sex stories, adult stories ,erotic stories. Visit theadultstories.com
The Romantic
Platinum Member
Posts: 1803
Joined: 15 Oct 2014 22:49

Re: एक अनोखा बंधन

Unread post by The Romantic » 14 Dec 2014 22:18

19

अब आगे....

मैं: नेहा... बेटा मेरे पास आओ| आप मम्मी से घबरा क्यों रहे हो?

नेहा ने कुछ नहीं किया बस अपनी मम्मी से नजरें चुरा के मेरे गले लग गई| भाभी का दिल भी पसीज गया पर उनके बार-बार बुलाने पर भी वो डर के मारे उनके पास नहीं जा रही थी| बस मेरे से चिपकी हुई थी...

मैं: बेटा अच्छा मेरी बात सुनो... मम्मी ने आपको गलती से डाँटा था.. देखो अब वो माफ़ी भी मांग रहीं हैं .. देखो तो एक बार|

भाभी ने अपने कान पकडे हुए थे ... परन्तु नेहा उनकी ओर देखने से भी कतरा रही थी....

भाभी: अच्छा बेटा लो मैं उठक-बैठक करती हूँ|

मैं: नेहा.. देखो आपकी मम्मी अभी कितना कमजोर हैं फिर भी अपनी बेटी कि ख़ुशी के लिए उठक-बैठक करने के लिए तैयार हैं| आप यही चाहते हो???

नेहा थी तो छोटी पर इतना तो समझती थी कि उसकी मम्मी कि तबियत अभी पूरी तरह ठीक नहीं हुई है... और ऐसी हालत में वो उठक-बैठक नहीं कर सकती| इसीलिए उसने भाभी कि ओर देखा...

मैं: बेटा अगर मैं आपको कभी डाँट दूँगा तो आप मुझसे भी बात नहीं करोगे?

नेहा ने ना में सर हिलाया ....

मैं: चलो अब अपनी मम्मी को माफ़ कर दो.. आगे से वो आपको कभी नहीं डांटेंगी| अगर इन्होने कभी आपको डाँटा तो मुझे बताना मैं इनको डाँटूंगा... ठीक है?

बड़ी मुश्किल से नेहा भाभी कि गोद में गई और भाभी उसे लाड-दुलार करने लगीं| उसके माथे और गालों को चूमने लगीं... तब जा के कहीं नेहा मानी| सच मित्रों छोटे बच्चों को मानना आसान काम नहीं!!!

तकरीबन आठ बजे होंगे.. मैंने भाभी को क्रोसिन कि गोली दी... उनका माथा स्पर्श किया तो वो दोपहर जैसा तप नहीं रहा था परन्तु बुखार अवश्य था| मुझे एक चिंता हो रही थी कि रात में भाभी को अगर बाथरूम जाना होगा तो वो कैसे जाएँगी? बिना सहारे अगर वो गिर पड़ीं तो? मैं उनके पास ही सोना चाहता था ताकि जर्रूरत पड़ने पे उन्हें बाथरूम तक लेजा सकूँ परन्तु मेरा ऐसा करना सब कि आँखों में खटकता .... इसलिए मैंने भाभी से जिद्द कि की जब तक उन्हें नींद नहीं आ जाती मैं वहीँ बैठूंगा... जब की मेरा प्लान था की आज रात जाग के भाभी की पहरेदारी करनी है| ताकि जब भी भाभी को जरुरत पड़े मैं उनकी देख-भाल कर सकूँ| भाभी को लेटा के मैं पास पड़ी चारपाई पर बैठ गया... नेहा मेरी ही गोद में सर रख के सो गई| पर भाभी को अभी तक नींद नहीं आई थी...

मैं: क्या हुआ भाभी नींद नहीं आ रही?

भाभी: हाँ

मैं: रुको मुझे पता है की आपको नींद कैसे आएगी|

मैं धीरे से उठा और नेहा का सर उठा के तकिये पे रखा और भाभी के माथे पे झुक के उनके माथे को चूमा| जैसे ही मैंने उनके माथे को चूमा भाभी ने अपनी आँखें बंद कर लीं| एक पल के लिए तो मन किया की भाभी के गुलाबी होंठो को चुम लूँ पर ऐसा करना उस समय मुझे उचित नहीं लगा| मैं वापस अपनी जगह बैठ गया और नेहका सर अपने गोद में रख लिया और बैठे-बैठे मुझे भी नींद सताने लगी थी| भाभी को नींद आ चुकी थी... और आज मैं पहली बार उन्हें सोते हुए देख रहा था| उनके चेहरे पे एक अजीब सी मुस्कान और शान्ति के भाव थे| उन्हें इस तरह सोता हुआ देख के मन बहुत प्रसन्न हो रहा था| करीब दस बजे होंगे की अजय भैया मुझे ढूंढते हुए अन्दर आये... मैंने जान बुझ कर दरवाजा खुला छोड़ा था ताकि किसी को संदेह न हो| जैसे ही मैंने भैया को देखा मैंने उन्हें इशारे से अपने मुख पे ऊँगली रख के चुप कराया| वो मेरे पास आये और मेरे कान में खुसफुसाये:

अजय भैया: मनु भैया... आप सोये नहीं अभी तक?

मैं: भैया आपको तो पता हिअ की भौजी की तबियत ठीक नहीं है.. उनको बुखार अभी भी है! शरीर कमजोर है .. और अगर रात में उन्हें किसी चीज की जरुरत होगी तो वो किसे कहेंगी? इसलिए मैं आजरात पहरेदारी पे हूँ!!!

अजय भैया: आप कहो तो मैं बड़े भैया को कह देता हूँ वो यहाँ सो जायेंगे|

मैं: भैया आज दोपहर को ही भैया भौजी पे भड़क उठे थे.. अगर रात में भौजी ने उन्हें उठाया तो वो आग बबूला होक उनको और डांटेंगे|

अजय भैया: मैं आपकी भाभी को कह देता हूँ वो यहाँ ओ जाएगी|

मैं: नहीं भैया वो भी दिन भर के काम से थकी होंगी.. आप चिंता मत करो मुझे वैसे भी नींद नहीं आ रही| (मैंने उनसे झूठ बोला|) आप सो जाओ...

किसी तरह अजय भैया को समझा-बुझा के भेजा...कमरे की रौशनी बुझाई... शुक्र था की भाभी जाएगी नहीं थी वरना वो मुझे जगा हुआ देख के मुझपे भड़क जाती| जब भी भाभी करवट लेटी तो चारपाई की आवाज से मैं जाग जाता और अपनी तसल्ली करता की वो ठीक तो हैं| रात के डेढ़ बजे... मुझे नींद का झोंक आ रहा था की तभ मुझे हलचल होती हुई महसूस हुई| कमरे में चाँद को थोड़ा बहुत प्रकाश आ रहा था ... मैंने देखा की भाभी काँप रही हैं|

मैं तुरंत उनके पास लपका:
मैं: क्या हुआ भौजी?

भाभी: मानु.. तुम? यहाँ क्या कर रहे हो? सोये नहीं अभी तक?

मैं: मुझे लगा की आप को शायद किसी चीज की जरूररत पड़े इसलिए मैं यहीं बैठा था|

भाभी: तुम तब से यहीं बैठे हो? हे भगवान !!! जाओ जा के सो जाओ...

मैं: मेरी बात छोडो... आपका शरीर काँप रहा है|

जब मैंने उन्हें छुआ तो मैं दंग रह गया| उनका शरीर आग की तरह जल रहा था... बुखार फिर से बढ़ गया था|

मैं: भौजी आपको फिर से बुखार चढ़ गया है... रुको मई आपके लिए चादर लता हूँ|

मैंने पास पड़ी एक साफ़ चादर उठाई और भाभी को ओढ़ा दी... उनका शरीर अब भी काँप रहा था .. मैं बाहर गया और अपनी चारपाई पे बिछी हुई चादरें भी उठा लाया और सब भाभी को ओढ़ा दी| मुझे याद आय की भाभी को क्रोसिन दिए करीबन पाँच घंटे हो गए हैं.. और अब मुझे उन्हें दूसरा डोज देना है| मैं बड़े घर की ओर भागा पर वहां ताला लगा हुआ था.. मैं वापस बड़की अम्मा (बड़ी चाची) के पास आया और उन्हें धीरे से जगाया ...

"अम्मा... भौजी को बुखार चढ़ गया है... उनका बदन भट्टी की तरह तप रहा है| आप मुझे बड़े घर की चाबी दे दो मैं उन्हें क्रोसिन की गोली खिला देता हूँ तो भुखार काबू में आ जायेगा|"

मेरी बात सुन बड़की अम्मा जल्दी से उठीं और मुझे चाबी दी.. मैं बड़े घर की ओर भागा और जल्दी से क्रोसिन ले के भाभी के पास आया| अम्मा भाभी के सर सहला रहीं थी... भाभी को सहारा दे के उठाया और उन्हें गोली दी| भाभी के शरीर में बिलकुल जान नहीं लग रही थी| वो फिर से लेट गईं .. उनका शरीर अब भी थर-थरा रहा था| डर के मारे मेरी हालत खराब थी.. मन में बार-बार बुरे ख़याल आ रहे थे| अम्मा ने मुझे जा के सोने के लिए कहा:

अम्मा: मुन्ना तुम जा की सो जाओ.. दिन भर के थके हुए हो|

मैं: नहीं अम्मा ... मुझे नींद नहीं आ रही| आप सो जाओ मैं यहीं बैठता हूँ|

अम्मा: मुन्ना देखो मैं जानती हूँ की तुम्हें अपनी भाभी की बहुत चिंता है ... पर तुम आराम करो मैं हूँ ना|

मैं: अम्मा आप सो जाओ .. मेरी नींद तो उड़ गई| अगर जरूररत पड़ी तो मैं आपको उठा दूँगा|

मैं अपनी जिद्द पे अड़ा था ... मैंने बहुत जोर लगा के अम्मा को वापस सोने के लिए भेज ही दिया| भाभी अब भी कप-कपा रही थी... मुझे एक बात सूझी की क्यों न मैं भाभी को अपने शरीर से गर्मी दूँ| इससे पहले की आप कुछ गलत सोचें मैं आप सभी को कुछ बताना चाहता हूँ:

बात मेरे जन्म से पहले की है... दरअसल जब मैं माँ के पेट में था तब मेरी माँ को रक्तचाप अर्थात BP की समस्या थी| डॉक्टर ने मेरी माँ को नमक और चावल खाने से मन किया था और साथ ही कुछ दवाइंया भी लिखी| मेरे पिताजी की लापरवाही की वजह से माँ ने न तो समय पे दवाइयाँ ली और न ही डॉक्टर द्वारा बताये परहेजों पे ध्यान दिया था| जिसके परिणाम स्वरुप जब मैं पैदा हुआ तो शारीरिक रूप से कमजोर था तथा मेरे शरीर का तापमान सामान्य बच्चों के मुकाबले अधिक था| इस कारन मुझे गर्मी अधिक लगती है परन्तु सर्दियों में मेरा शरीर मुझे अंदर से गर्म रखता है|

जब भाभी की कंप-काँपी बंद नहीं हुई तो मुझे अपने शरीर से भाभी के शरीर को गर्मी देना ठीक लगा| मैंने ज्यादा देर न करते हुए अपना कुरता उतार और भाभी की बगल में लेट गया| मैंने भाभी की ओर करवट ली और अपना बायां हाथ सीधा फैला दिया| भाभी ने मेरे बाएं हाथ को अपना तकिया समझ उसपे अपना सर रख दिया| उनका बयाना हाथ मेरी बगल में आ गया था और मैंने भाभी को अपने आगोश में ले लिया| मैंने भाभी को अपने से कास के गले लगा लिया था... उनका शरीर का तापमान बहुत अधिक लग रहा था| मुझे ऐसा लग रहा था मानो किसी ने मुझे एक दम गर्म सॉना में लेटा दिया| इस प्रकार साथ चिपके होने के बावजूद भी मेरे अंदर वासना नहीं भड़की थी... रह-रह कर मुझे भाभी की चिंता हो रही थी| मैं कामना कर रहा था की अँधेरी काली रात जल दी ढल जाए और सुबह होते ही मैं भाभी को डॉक्टर के ले जाऊं| पर ये रात थी की खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी|

करीबन एक घंटा बीता हुए मुझे महसूस हुआ की भाभी की कंप-काँपी बंद हो चुकी थी... उनके शरीर का तापमान भी काम लग रहा था| लग रहा था की क्रोसिन ने अपना असर दिखा दिया था... मैं धीरे से भाभी से अलग हुआ और अपना कुरता वापस पहन के नेहा की चारपाई पे बैठ गया| घडी देखि तो सुबह के साढ़े तीन बजे थे.... मैं उठा और अपना मुंह धोया... नींद अब मुझ पे बहुत जोर से हावी होने लगी थे| आजतक कभी ऐसे नहीं हुआ था की मुझे किसी भी वजह से साड़ी रात जागना पड़े! जब मैं वापस आया तो देखा भाभी उठ के बैठी हुई थीं...मैं तुरंत उनके पास पहुंचा और उनसे तबियत के बारे में पूछने लगा| उन्होंने बताया की उन्हें अब कुछ आराम है पर उन्हें प्यास लगी थी... मैंने उन्हें अपने हाथ से पानी पिलाया|

भाभी: मानु तुम मेरी वजह से साड़ी रात नहीं सोये|

मैं: भौजी... आप ये सब बातें छोडो ... और आप लेट जाओ| सुबह मैं आपको डॉक्टर के ले जाऊँगा|

भाभी: मानु... मुझे बाथरूम जाना है|

मैं: ठीक है मैं आपको ले चलता हूँ....

और मैं उन्हें सहारा दे के स्नानघर तक ले गया.... उनका बुखार अवश्य कम था, परन्तु शरीर बहुत कमजोर हो गया था| अब दिक्कत ये थी की मैं भाभी को स्नान घर में ऐसे ही नहीं छोड़ सकता था, ना ही मैं किसी को बुला सकता था| मुझे एक तरकीब सूझी.... मैंने भाभी से कहा की आप मेरा हाथ पकड़ो और उसका सहारा लेते हुए बैठ जाओ| जैसे ही भाभी बैठी मैंने अपना मुंह दूसरी ओर घुमा लिया ... मैं सोच रहा था की अचानक मुझे में इतनी संवेदनशीलता कैसे आ गई| जब भाभी फ्री हुईं तो मैंने उन्हें सहारे से फिर खड़ा किया| उनके लिए चलना दूभर था इसलिए मैंने उन्हें अपनी गोद में उठा लिया जैसे किसी "रा वन" फिल्म में शाहरुख़ खान ने करीना को उठाया हुआ था| मैंने भाभी को वापस उनके बिस्तर पे लिटाया ओर चादरें ओढ़ा दीं|

मैं वहीँ बैठा सुबह होने का इन्तेजार कर रहा था... बबर-बार घडी देखता की कब सुबह के नौ बजे और कब मैं भाभी को डॉक्टर के पास ले जाऊँ| टिक-टॉक...टिक-टॉक...टिक-टॉक...टिक-टॉक....टिक-टॉक आखिर सुबह के सात बज गए| घर में सभी उठ चुके थे... नेहा भी आँख मलते-मलते उठी और मुझे गुड मॉर्निंग पप्पी देके बहार चली गई| माँ को जब रात की बात अम्मा से पता चलीं तो वो भी भाभी का हाल-चाल पूछने आईं| भाभी अब भी सो रहीं थीं और सच कहूँ तो बहुत प्यारी लग रही थी!!!

माँ ने इशारे से मुझे बहार बुलाया... मैं बहार आया और माँ को सारा हाल सुनाया| माँ का कहना था की बीटा तू मुझे उठा देता मैं यहाँ सो जाती और तेरी भौजी का ध्यान रख लेती| मैंने माँ को समझाया की आप और पिताजी सबसे ज्यादा थके थे ... मैं तो गर्म खून हूँ... इतनी जल्दी नहीं थकता और वैसे भी मैं दिन में सो लूंगा तो मेरी नींद पूरी हो जाएगी| खेर मैंने माँ को अंदर भाभी के पास बैठने को कहा और मैं पिताजी को ढूंढने लगा| पिताजी खेत से आ रहे थे... भाभी की बिमारी और मेरा साड़ी रात जागने की बात घर-भर में फ़ैल चुकी थी| पिताजी ने हाथ धोया और फिर मुझे आशीर्वाद देते हुए भाभी के बारे में पूछा, तभी वहां बड़के दादा भी आ गए|

मैं: पिताजी, भौजी की तबियत अभी तो ठीक लग रही है परन्तु रात में उन्हें बुखार फिर चढ़ गया था| मेरा सुझाव है की हमें भाभी को डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए|

बड़के दादा: मुन्ना पर चन्दर तो अभी-अभी अजय को साथ ले के शहर निकल गया वो तो शाम तक ही आएगा|

मैं: पिताजी आप ऐसा करो की बैलगाड़ी वाले को बुला लो मैं, भौजी और आप डॉक्टर के चले-चलते हैं| उनका डॉक्टर के पास जाना जर्रुरी है|

पिताजी: ठीक है बेटा मैं अभी जा के बैलगाड़ी वाले को बुलाता हूँ तब तक तुम तैयार हो जाओ|

इधर पिताजी बैलगाड़ी वाले को बुलाने गए और उधर मैंने भाग कर अपने बाल बनाये और रात वाले कपडे ही पहन के भाभी को जगाने आ गया|

मैं: भौजी.. उठो... बैलगाड़ी आने वाली है मैं आपको डॉक्टर के पास ले जा रहा हूँ|

भाभी उठ तो गईं पर उनके शरीर में ताकत नहीं थी.. और डॉक्टर का नाम सुन के वो ना-नुकुर करने लगीं| मेरे ज्यादा जोर देने पे भाभी मान गई ... बैलगाड़ी वाला आ चूका था परन्तु भाभी को चला के ले जाना बहुत मुश्किल काम था|मैंने एक बार फिर भाभी को अपनी गोद में उठाया और बैलगाड़ी में लाके बैठा दिया| जब मैं भाभी को गोद में बहार लाया तो सरे घर वाले हैरान थे... और खुसुर-पुसर कर रहे थे| मुझे उनकी रत्ती भर भी परवाह नहीं थी| भाभी बैलगाड़ी अपना एक हाथ का घूँघट पकडे जैसे-तैसे बैलगाड़ी में बैठ गईं| पिताजी आगे बैलगाड़ी वाले के साथ बैठ गए और मैं बीच में भाभी का हाथ पकडे हुए बैठ गया| शरीर में कमजोरी के कारन भाभी के लिए बैठना मुश्किल था ऐसे में मैंने भाभी को अपनी गोद में सर रख के लेटने को कहा| करीबन एक घंटे तक हिचकोले खाने के बाद हम डॉक्टर के पास पहुंचे|


The Romantic
Platinum Member
Posts: 1803
Joined: 15 Oct 2014 22:49

Re: एक अनोखा बंधन

Unread post by The Romantic » 14 Dec 2014 22:19

20

अब आगे....

वहां पहुँचते ही मैं तुरंत नीचे उतरा और फिर से भाभी को अपनी गोद में लेके डॉक्टर की दूकान में घुस गया और सीधा उसके कमरे में रखे बिस्तर पे लेटा दिया| डॉक्टर भी हैरान था... भाभी को उनकंफर्टबल महसूस ना हो इसलिए मैंने पिता जी को कमरे के बहार ही रुकने को बोला| जब मैं भाभी को अंदर ला रहा था तब मैंने गोर किया की डॉक्टर का बोर्ड जो बहार लगा था वो अंग्रेजी तथा हिंदी दोनों भाषाओँ में था ... मैंने अंदाजा लगाया की ये डॉक्टर अंग्रेजी अवश्य जानता होगा|
दरअसल मुझे भय था की पिछले दिनों जो हमारे बीच में हुआ उससे कहीं भाभी गर्भवती तो नहीं हो गईं? मैं ये बात डॉक्टर से सीधे-सीधे तो नहीं पूछ सकता था, परन्तु मुझे भय इस बात का भी था की कहीं डॉक्टर पिताजी के सामने भाभी के गर्भवती होने की बात कर देता तो घर में कोहराम छिड़ जाता!!!

आगे जो मेरे और डॉक्टर के बीच अंग्रेजी में बातचीत हुई उसे मैं हिंदी में भी लिखता रहूँगा|

डॉक्टर: क्या हुआ इन्हें?

मैं: Actually Doctor for the pas two days she hasn’t eaten anything, moreover she had high fever yesterday. I was away with my parents on a trip to Varanasi, when I came ack yesterday afternoon I saw her like this… first we had lunch together and then I gave her Crocin tablet and after that her fever was somewhat in control. Atleast that’s what I thought!!! In the night we had dinner together and then again I gave her Crocin. At mid night around 1:30AM hse had a very high fever… since it was about 5 hours since the last dose, so I gave her another dose. After that somehow her fever is a bit mild.
(दरअसल डॉक्टर साहब इन्होने पिछले दो दिनों से अन्न का दाना तक नहीं खाया है और कल इन्हें बहुत तेज बुखार भी था| मैं अपने माता-पिता के साथ वाराणसी गया हुआ था, कल जब मैं लौटा तो इन्हें इस हालत में पाया| पहले मैंने इन्हें खाना खिलाया.. फिर क्रोसिन की गोली दी| उसके बाद इनका बुखार कुछ काबू में आया... काम से काम कुझे तो ऐसा लगा!!! रात में मैंने इन्हें खाना खाने के बाद एक गोली और दी| आधी रात को इनका शरीर फिर से तपने लगा और मुझे याद आया की क्रोसिन दिए हुए पांच घंटे बीत चुके हैं और एक डोज़ और बाकी है| उसे देने के बाद इनका बुखार कुछ कम हुआ| )

डॉक्टर: okay, did she eat anything in the morning?
(अच्छा.. क्या इन्होने सुबह से कुछ खाया है?)

डॉक्टर ने अपना अला लगाया, फिर उसने भाभी के शरीर का तापमान चेक करने के लिए थर्मामीटर लगाया|

मैं: I’m afraid no sir!!!
(जी नहीं डॉक्टर साहब|)

डॉक्टर: Okay from what you’ve told me I take it she’s feeling very weak… and because of your necessary precaution her fever is in control. It’s a good thing you brought her here otherwise the case sould have gone worse. I need to inject some fluids into her body so she could feel a bit normal also since you seem to be her husband, its your duty to take care of her.
(जैसे तुमने बताया उससे ये बात तो पक्की है की इनका शरीर कमजोर हो गया है| तुम्हारी समझदारी के कारन इनका बुखार अब काबू में है| अच्छा हुआ तुम इन्हें यहाँ ले आये वार्ना हालत और भी गंभीर हो सकती थी| मुझे इन्हें ग्लूकोस चढ़ाना होगा ताकि इनके शरीर को थोड़ी ताकत मिले| और चूँकि टीम इनके पति हो तुम्हें नका ख़याल ज्यादा रखना होगा|)


मैं: Actually sir, I’m not her husband… she’s my cousin’s wife.
(दरअसल डॉक्टर साहब मैं इनका पति नहीं हूँ| एमेरे चचेरे भाई की पत्नी हैं|)

डॉक्टर: Oh I see, so she’s your Bhabhi? Then where’s her husband? Isn’t he concerned about her wife’s health?
(ओह्ह .. तो ये आपकी भाभी हैं| तो इनके पति कहाँ हैं? और उन्हें इनकी ज़रा भी फ़िक्र नहीं|)

मैं: Sir he doesn’nt know anything about her health. He’s working in Delhi and I’ve sent a telegram to him.
(डॉक्टर साहब उन्हिएँ तो भाभी की तबियत के बारे में कुछ पता ही नहीं है.. दरअसल वो डेल्ही में काम करते हैं और मैंने उन्हें टेलीग्राम कर दिया है|)

डॉक्टर: Oh I see!! You seem to take good care of your bhabhi. Good!!!
(अच्छा!!! तुम अपनी भाभी का बहुत अच्छे से ख़याल रख रहे हो| शाबाश !!!)

भाभी हमारी अंग्रेजी में हो रही गुफ्तगू बड़े गोर से सुन रही थी... हालाँकि उन्हें समझ कुछ नहीं आया था| पर जब डॉक्टर ने सुई निकाली तो भाभी की सिटी-पिट्टी गुल हो गई| वो गर्दन हिला के ना-ना करने लगीं|

डॉक्टर ने मुझे इशारे से उन्हें समझाने को कहा:

मैं: भौजी ... ये आपको ग्लूकोस चढ़ा रहे हैं इसे आपके शरीर में ताकत आएगी और आप जल्दी अच्छे हो जाओगे|

पिताजी ने भ मेरी बात सुन ली थी और वो कमरे के बहार से ही भाभी को सांत्वना देने लगे||

पिताजी: कोई बात नहीं बहु .. ज्यादा दर्द नहीं होगा| अपने देवर की बात ही मान लो|

जैसे तैसे भाभी मानी... डॉक्टर जब उन्हें सुई लगा रहा था तो भाभी मुंह बना रहीं थीं जिसे देख के मुझे बड़ा मजा रा रहा था| जब डॉक्टर ने भाभी की नस में सुई लगा दी तो मुझे अपने साथ बहार आने को बोला| भाभी मुझे अपने हाथ के इशारे से अपने पास बुला रही थी| मैंने उन्हें कहा की मैं बस दो मिनट में आया| डॉक्टर मैं और पिताजी बहार के कमरे में बैठे थे.. डॉक्टर ने भाभी का हाल चाल सुनाया और उन्हें ज्यादा से ज्यादा आराम करने की सलाह दी| पिताजी और डॉक्टर के बीच में सहज रूप से बात-चीत चल रही थी और मेरा डर कम हो गया था की जो मैं सोच रहा था वो नहीं हुआ| डॉक्टर अब मेरी तारीफों के पल बाँध रहा था की कैसे उसे आज एक अरसे बाद अंग्रेजी बोलने वाला इंसान मिला| मैं भाभी के पास अंदर आ गया और घुटनों के बल बैठ के उनके कान में फुस-फसाया:

मैं: भौजी.. अब आप जल्द ही ठीक हो जाओगे|

भाभी: मानु तुम डॉक्टर से अंग्रेजी में क्या बात कर रहे थे?

मैं: अभी नहीं भौजी... घर चलो सब बताऊँगा|

टिप-टिप करते हुए ग्लूकोस की बोतल हुए खाली होने लगी और सारा ग्लूकोस भाभी के खून में मिलने लगा| इधर पिताजी और डॉक्टर की बातों की आवाज अंदर तक आ रही थी और भाभी मेरी बढ़ाई सुन के खुश हो रही थी| जब बोतल लगभग खाली हो गई तब मैंने डॉक्टर को अंदर बुलाया... उसने भाभी के हाथ से लुइ निकाली और वापस पट्टी का दी| अब उसने मुझे दो-तीन तरह की दवाइयाँ भाभी को नियमित रूप से खिलने के लिए बोला| मैंने बड़े ध्यान से सभी दवाइयों को समय के अनुसार याद कर लिया| मैंने भाभी को फिर से गोद में उठाया और बैलगाड़ी में बैठा दिया| पिताजी आगे बैठे थे और मैं मैं भाभी की बगल में| ग्लूकोस चढ़ने से भाभी की हालत में सुधार आया था| एक बार फिर हम हिचकोले कहते हुए घर पहुँच गए .. मैंने भाभी को एक बार फिर गोद में उठाया और उनके कमरे में ला के लेटा दिया|

मैं जब जाने लगा तो भाभी ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे रोका:

भाभी: मानु ..तुम कल सारी रात मेरी वजह से परेशान रहे हो... तुमने सारी रात जाग के मेरी देखभाल की ... तुम बहुत थके हुए लग रहे हो, अब थोड़ा आराम भी कर लो| तुम जा के सो जाओ.. मैं अब पहले से बेहतर महसूस कर रही हूँ|

मैं: नहीं... ये सब मेरी गलती है| ना मैं आपसे अपने वापस आने की बात छुपाता और ना ही आपका ये हाल होता| इसलिए अब जब तक आप पूरी तरह ठीक नहीं होते मैं आपकी देखभाल में लगा रहूँगा फिर चाहे मेरी ही तबियत क्यों न खराब हो जाए|

इतना कह के मैं वहां से चला गया.... बहार आके देखा तो घर के सभी लोग छप्पर के नीचे बैठे भाभी की सेहत के बारे में बात कर रहे थे| बड़की अम्मा ने तो मुझे गले लगा के दुलार भी किया, और कहने लगी:

"मुन्ना तुम्न्हें सच में अपनी भौजी की हमसब से ज्यादा फ़िक्र है| सारी रात ये लड़का जागता रहा .... मैंने मना भी किया तब भी नहीं माना|और एक चन्दर है... जिसे जरा भी फ़िक्र नहीं अपनी बीवी की.... "

सभी को इस बात का अफ़सोस था की चन्दर भैया और भाभी के रिश्ते में दरार आ चुकी है|
देखा जाए तो मैं उस तारीफ को पाने का हकदार नहीं था, मेरे ही कारन भाभी की जान पे बन आई थी|
दोपहर के भोजन के बाद मैंने भाभी को दवाई दी और मैं नेहा के साथ दूसरी चारपाई पे लेट गया| नेहा लेटे-लेटे मेरे साथ मस्ती कर रही थी.. कभी मेरे बाल खींचती तो कभी मेरी नाक.... भाभी गुम-सुम थी और मुझसे ये बर्दाश्त नहीं हुआ तो मैंने उनसे उनकी नाराजगी का कारन पूछा?

मैं: क्या हुआ? आप चुप-चाप क्यों हो?

भाभी: कुछ नहीं... बस ऐसे ही...

बातों से लग रहा था की भाभी कुछ छुपा रहीं हैं... या इस डर से कुछ नहीं बोल रहीं की कहीं नेहा ना सुन ले| मैं यूँ ही नेहा के साथ खेलता रहा.. कभी उसे गुड-गुड़ी करता तो कभी उसके सर पे हाथ फेरता ताकि वो जल्दी से सो जाये| करीब आधा घंटा लगा उसे सुलाने में.. आखिर अब मेरी बेचैनी मुझ पे हावी होने लगी थी|

मैं: नेहा सो गई है| अब बताओ की क्या बात है? क्यों उदास हो?

भाभी: तुम अब मेरी बात नहीं मानते... बड़े हो गए हो... जिम्मेदारियां उठाने लगे हो... क्यों सुनोगे मेरी?

मैं: ऐसा नहीं है... आपको पता है डॉक्टर से मेरी क्या बात है?

भाभी: क्या?

मैं: जब मैं आपको अपनी गोद में लिए डॉक्टर के पास पहुँचा और आपकी तबियत के बारे में उसे बताया तो उसे लगा की मैं आपका पति हूँ...

भाभी: तो उसमें गलत क्या है?

मैं: गलत तो कुछ नहीं है.. पर आप ही मुझे अपनी देख-भाल करने से रोक रहे हो| वैसे अगर उसने यही बात हिंदी में पिताजी से कही होती तो? ये तो शुक्र था की मैंने ही उससे अंग्रेजी में बात की वार्ना वो ये बात सच में कह देता|

भाभी: मैं तुम रोक नहीं रही पर में ये बर्दाश्त नहीं कर सकती की मेरी वजह से तुम बीमार पड़ जाओ|

मैं: जब आप ये बर्दाश्त नहीं कर सकते की मैं आपकी वजह से बीमार पड़ जाऊं...तो सोचो मेरे दिल पे क्या बीती होगी जब मैंने आपको बीमार देखा था| मेरे दिल की धड़कन रूक गई थी...

भाभी की आँखें भर आईं थी... मैं उन्हें और दुःख नहीं देना चाहता था| मैं उनके पास उन्हीं की चारपाई पर बैठा और झुक के उनके होंठों को चूम लिया और उनको गले लगा लिया| भाभी का मन भर आया था पर मेरे आलिंगन ने उन्हें रोने नहीं दिया|

भाभी: पहले तुम दुःख देते हो और फिर मरहम भी खुद ही लगाते हो| अच्छा ये बताओ की तुम डॉक्टर से अंग्रेजी में बात क्यों कर रहे थे?

मैं: वो मुझे डर था...

भाभी: कैसा डर?

मैं: मुझे डर था की कहीं पिछले कुछ दिनों में जो हुआ उससे आप प्रेग्नेंट तो नहीं हो गए?

भाभी: अगर हो भी जाती तो क्या होता?

मैं: आप मजाक कर रही हो ना?

भाभी: नहीं तो ... ज्यादा से ज्यादा तुम्हारे भैया मुझे मारते-पीटते ... घर से निकाल देते बस!

मैं: आपको ये इतना आसान लगता है, और मुझ पे क्या गुजरती ये सोचा आपने? और नेहा और हमारे बच्चे का क्या होता? ये सोचा आपने?

भाभी: मुझे तो लगा था की तुम मुझे अपने साथ रखोगे?

मैं: माँ और पिताजी से क्या कहता? और क्या वो आपको मेरे साथ रहने देते?

भाभी: तो तुम मुझे भगा के ले चलो?

मैं: हुंह... आपको ये सब मजाक लग रहा है| मैं आपको भगा के कहाँ ले जाता? क्या खिलाता? नेहा की परवरिश कैसे होती? मैंने तो अभी पढ़ रहा हूँ... जनौकरी मिलना इतना आसान नहीं होता|

भाभी: तुम्हारी बातों से लगता है की हमने "पाप" किया है? जो कुछ भी हुआ वो सब तुम्हारे लिये खेल था... तुम मुझसे प्यार-व्यार कुछ नहीं करते!!!

भाभी की बातें मुझे तीर की तरह चुभ रहीं थी... इसलिए मैंने उनकी किसी भी बात का जवाब नहीं दिया और उठ के चल दिया| भाभी मुझे गलत समझ रही थी... मैं उनसे प्यार करता था पर मैं अभी शादी और बच्चे की जजिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार नहीं था, उनके लिए कहना आसान था पर मेरे लिए सुनना आसान नहीं था| मैं भाभी को समझाना चाहता था की वो मुझे गलत समझ रहीं हैं| परन्तु इस समय मैं उनका सामना नहीं कर सकता था...
शाम आने को आई थी... और भाभी की दवाई का समय भी हो आया था| मैं भाभी को दवाई देने के लिए पहुँचा तो भाभी कमरे में एक किनारे जमीन पे बैठी थी... और अपने मुंह को अपने घुटनों में छुपाये रो रहीं थी| मुझसे देखा नहीं गया और मैं उनके पास घुटनों के बल बैठ गया.. उनका मुंह उठाया तो देखा रो-रो के उन्होंने अपना बुरा हाल कर लिया था|

मैं: आप क्यों रो रहे हो? प्लीज चुप हो जाओ ... मेरे लिए नहीं तो नेहा के लिए ही चुप हो जाओ| अच्छा ये बताओ की हुआ क्या? किसी ने आपसे कुछ कहा? या आप दोपहर की बात की वजह से परेशान हो?

भाभी मेरी किसी भी बात का जवाब नहीं दे रही थी ... नेहा की दुहाई दी तो भाभी ने रोना तो बंद कर दिया पर मुझसे बात नहीं कर रहीं थीं| मैंने उन्हें उठ के चारपाई पे बैठने को कहा तो तब भी नहीं उठीं.. मैंने दवाई खाने को कहा तब भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी ... साफ़ था की वो मुझसे नाराज हैं और शायद अब कभी भी बात ना करें| मैं बहार गया और नेहा को आवाज दी.. वो दौड़ी-दौड़ी मेरे पास आई| मैं उसे अपने साथ अंदर ले आया और उसके हाथ में दवाई दी और कहा की आप ये दवाई मम्मी को खिला दो| इस बार भाभी ने नेहा के हाथ से दवाई ली और चुप-चाप खा ली| फिर नेहा का सहारा ले के उठीं और चारपाई पर मुंह मोड़के लेट गईं| मैंने नेहा से कहा की बेटा आप यहीं मम्मी के पास रहना ... कहीं जाना मत मैं अभी आता हूँ| ये किस्सा तीन दिन तक चला.. भाभी ना तो मुझसे बात करती... ना मेरे हाथ से दवाई लेती| बस नेहा का ही सहारा था जो वो दवाइयाँ ले रहीं थी| चन्दर भैया की तो कोई दिलचस्पी थी ही नहीं.. उनकी बला से कोई जिए या मरे! मेरे साथ भी कोई बोल-चाल नहीं थी!!! ऐसा लगता था की गुस्से का गुबार उनके अंदर बढ़ता जा रहा है.. और अब वो जल्द ही फूटने को था|

इन तीन दिनों में मैं अंदर टूट चूका था.... कई बार मैंने भाभी से बात करने की कोशिश की, परन्तु भाभी या तो उठ के चली जाती या या मुंह मोड़ के लेट जाती|आज सुबह माँ और पिताजी को किसी रिश्तेदार से मिलने जाना था...उन्होंने मुझे साथ ले जाने का पर्यटन किया परन्तु मैंने यह कह के मना कर दिया की मुझे सोना है| उनके निकलने से पहले रसिका भाभी भी अपने मायके जाने वाली थीं... और जाएं भी क्यों ना ...तकरीबन एक हफ्ते से वाही तो चुलह-चूका संभाले हुए थी| यूँ तो वो कभी कोई काम करती नहीं थी... भौजी की बीमारी की मजबूरी में काम कर रहीं थी| अब जब भौजी की तबियत ठीक होने लगी थी तो वो कैसे न कैसे करके खिसकने की तैयारी में थी| कामचोर!!!


The Romantic
Platinum Member
Posts: 1803
Joined: 15 Oct 2014 22:49

Re: एक अनोखा बंधन

Unread post by The Romantic » 16 Dec 2014 14:15

21

अब आगे....

सुबह ग्यारह बजे तक सब चले गए... माँ पिताजी बैलगाड़ी से निकले और अजय भैया रसिका भाभी को छोड़ने निकल गए| अजय भैया को शाम तक आना था... बड़के दादा और बड़की अम्मा (बड़े चाचा और चाची) भी खेत निकल गए थे... और चन्दर भैया को खेत आने को कह गए| मैं तो घर पे था ही भौजी का ख्याल रखने के लिए, पर कोई नहीं जानता था की मेरे और भाभी के बीच में बोल-चाल बंद है| मैं बड़े घर में लेटा परेशान था.. अंदर ही अंदर मुझे भौजी की बातें खाए जा रही थी|मैंने दृढ़ निस्चय किया की मैं भौजी से आज अपने दिल की बात कर के ही रहूँगा... उनकी गलतफ़ैमी दूर करके ही रहूँगा| मुझे उन्हें समझाना था की मेरा प्यार झूठा नहीं था... हालाँकि शुरू-शुरू में मेरा उनकी तरफ आकर्षण का कारन सिर्फ उनका शरीर ही था परन्तु बाद में वो आकर्षण प्यार में बदल चूका था|

मैं उठा और उनके घर की और चल पड़ा... मुझे घर से शोर सुनाई दिया.. जैसे की कोई डाँट रहा हो| मैं उत्सुकता वश उनके उघार की तरफ दौड़ा... अंदर जा के देखा तो चन्दर भैया के हाथ में चंदे की बेल्ट थी... और वो भौजी को अपशब्द कह रहे थे|

(आप सब से क्षमा चाहता हूँ मित्रों, मैं वो शब्द यहाँ नहीं लिखना चाहता... ऐसी अपमान जनित भाषा स्त्रियों के लिए प्रयोग करना वाकई निंदनीय है|)

चन्दर भैया घर के आँगन में खड़े थे और भाभी स्नानघर के पास नीचे बैठीं थी... नेहा उनकी गोद में थी और रो रही थी.. भाभी और नेहा नीचे दिखाए चित्र की तरह बैठे थे|

जैसे ही चन्दर भैया ने मारने के लिए बेल्ट उठाई मैंने भागते हुए उन्हें रोकने की कोशिश की... जब मैं उनका हाथ पकड़ रहा था तब उनके मुख से देसी दारु की तेज दुर्गन्ध आ रही थी| साफ़ जाहिर था की वे नशे में धुत्त थे... उनके मस्तिष्क ने काम करना बंद कर दिया था... मदिरा उनके दिमाग पे कब्ज़ा कर चुकी थी और वो अपना गुस्सा आज भौजी पर निकालना चाहते थे| उनके बलिष्ठ शरीर के आगे मेरी एक ना चली.. उन्होंने मुझे धक्का देते हुए कहा:

"हट जा साले...वरना अगला नंबर तेरा है|"

मैं फिर भी नहीं माना और भाभी और उनके बीच खड़ा हो गया (मेरी पीठ भैया की तरफ थी और मुख भाभी की तरफ|).... शराब का नशा अब जोर मरने लगा था और उन्होंने बिना सोचे समझे अपनी बेल्ट से मेरी पीठ पे वार किया| उनके पहले वार से ही मेरी मुंह से जोर दार चीख निकली...

"आह!!! अह्ह्हह्ह!!!! उम्म्म!!!"
चन्दर भैया: अच्छा हुआ जो तू भी यहीं आगया... वरना मैं इससे निपट के तेरे पास ही आता| बड़ा शौक है तुझे इससे बचाने का न ये ले... और ले... बहुत बहूजी-भौजी कर के इसके आगे-पीछे घूमता है.. और ले ...

भैया बिना रुके अपनी बेल्ट से वार करते रहे... और मैं कराहता रहा| भाभी ने मुझे हटने की विनती की, पर मैंने केवल ना में सर हिलाया... वो मुझे हटाने के लिए उठीं पर मैंने उन्हें धक्का दे के दूर कर दिया... मेरी आँखों से पानी लगातार बह रहा था और कराहना भी चालु था !!! भाभी नीचे पड़ी सब देख रहीं थी और रो रही थी... उन्हें पता था की चाहे कुछ भी हो मैं हटने वाला नहीं... नेहा भागती hui भाभी की गोद में अपना मुंह छुपा के बैठी थी और रो रही थी| सच कहूँ तो मेरा खून खोल रहा था.. मन कर रहा था की चाक़ू से गोद-गोद कर चन्दर भैया का खून कर दूँ.. उन्होंने मेरी फूल जैसी बच्ची को रुलाया और मेरी भौजी.. जिन्हें मैं अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता हूँ उन्हें दुःख पहुँचाया| परन्तु मेरा ऐसा कदम उठाने का मतलब होता जेल!!!

भाभी: मानु को छोड़ दो.. इसने आपका क्या बिगाड़ा है... मारना है तो मुझे मारो!!!

मैं: नहीं..... आह!!!

चन्दर भैया: तेरा भी नंबर आएगा... पहले इससे तो निपट लूँ|

अब तक भैया बीस बार बेल्ट से वार कर चुके थे .. भौजी सहमी सी बैठी थीं और फुट-फुट के रो रहीं थी .. और नेहा का तो रो-रो के बुरा हाल था| अचानक ही अजय भैया आगये... जब उन्होंने मेरे करहाने की और चन्दर भैया के मुंह से अपशब्द सुने तो वो भागे-भागे अंदर आये और चन्दर भैया के हाथ से बेल्ट छीनने की कोशिश की.. जब वो भी नाकामयाब हुए तो वो उन्हें धकेलते हुए बहार ले गए|

मैं लड़खड़ाया और जमीन पे घुटनों के बल आ गिरा, भौजी मेरे पास भागती हुई आईं.. और अपने पल्लू से मेरे मुख पे आये पसीने को पोछा| जब उन्होंने ने मेरी पीठ की और देखा तो उनकी सांसें रूक गईं... मेरी पीठ पूरी लहू-लुहान हो गई थी.. टी शर्ट कई जगह से फ़ट गईं थी.. और मेरी हालत भी ख़राब होने लगी थी| मुझे ऐसा लग रह था की मेरी पीठ सुन्न हो गई है... बस जहाँ-जहाँ जख्म हुए थे वहाँ तड़पाने वाली जलन हो रही थी| मैंने आज तक इतना दर्द नहीं सहा था!!! भाभी ने मुझे सहारा दे के उठाया और चारपाई बिछा के लेटाया.. मैं तो सीधा लेट भी नहीं सकता था इसलिए मैं पेट के बल लेटा| भाभी अब भी रो रही थी और नेहा मेरे मुख के आगे खड़ी सुबक रही थी| मैंने लेटे-लेटे उसके आंसूं पोछे... तभी भाभी रुई ले के मेरे पास आई| मैं थोड़ा हैरान था क्योंकि मुझे नहीं पता था की मेरी पीठ इतनी लहू-लोहान हैं| भाभी ने एक-एक कर रुई के टुकड़ों से मेरी पीठ पे लगे खून को साफ़ करने लगी और नीचे खून लगी रुई का ढेर लगने लगा| अब सच में मुझे ये ढेर देख के डर लगने लगा था... पता नहीं मेरे शरीर में खून बचा भी है की नहीं?

मैं: भौजी... प्लीज चुप हो जाओ! आह...मैं आपको रोते हुए नहीं देख सकता....अंह !!!

भौजी: तुम बीच में क्यों आये ? देखो तुमने अपनी क्या हालत बना ली?

मैं: तो मैं खड़ा हुआ भैया को आपको पीटते हुए देखता रहता? अंम्म्म !!! वैसे भी पिछले दो दिन से मैंने जो आपको दुःख दिया है.. आह्ह!!! उसकी कुछ तो सजा मिलनी ही थी| स्स्स्स !!!

भौजी: तुमने मुझे कोई दुःख नहीं दिया| मैंने ही तुम्हारी बातों को गलत समझा ... तुम सही कह रहे थे| अपनी अलग दुनिया बसाना इतना आसान नहीं होता| मुझे माफ़ कर दो मानु... !!!

मैं: चलो देर आये-दुरुस्त आये पर मुझे भी आपसे कुछ कहना है, ये बात मैंने आपसे पहले भी कही थी....अह्ह्ह्ह!!!

इससे पहले मैं कुछ कह पाता, अजय भैया आ गए|

अजय भैया: भाभी बड़े भैया को क्या हुआ था? वो मानु भैया को क्यों मार रहे थे?

भौजी: वो मुझे मारना चाहते थे.... मानु बीच में आगया| बहुत पी रखी थी उन्होंने .... मुझसे आ के झगड़ा करने लगे और...

मैं: भैया आपको और भौजी को मुझसे एक वादा करना होगा...

अजय भैया: क्या बोलो?

मैं: ये बात हम तीनों के आलावा और किसी को पता नहीं होनी चाहिए... ख़ास तोर पे माँ और पिताजी को, वरना आफत आ जयगी!! अह्ह्ह !!! अन्न्ह्ह !!!

अजय भैया: आप ये क्या कह रहे हो?

मैं: भैया अगर पिताजी को मेरी पीठ पे बने ये निशान दिख गए तो पिताजी घर सर पे उठा लेंगे... उम्!!! घर में लड़ाई झगड़ा हो जायेगा इस बात पे|

भौजी: मानु तुम इन घावों को कब तक छुपाओगे... वैसे भी गलती तुम्हारे भैया की है... तुम तो बस...

मैंने फिर से भौजी की बात काटी, क्योंकि मैं नहीं हःता था की अजय भैया को हमारे रिश्ते पे कोई शक हो|

मैं: नहीं भौजी...अंह्!!!

अजय भैया: नहीं मानु भैया, मैं आपकी ये बात नहीं मानूँगा| पहले तो आप मेरे साथ डॉक्टर के चलो, और फिर शाम को मैं माँ-और पिताजी को ये बात बताता हूँ| वे ही बताएँगे की क्या करना उचित है| और हाँ चन्दर भैया साइकिल ले के निकल गए हैं...

मैं: कहाँ???

अजय भैया: मामा के घर... जब भी वो घर में लड़ाई-झगड़ा करते हैं तो वहीँ जाते हैं| जब उनका नशा उतरता है तब अगले दिन वापस आजाते हैं|

मैं: ठीक है... भैया आप प्लीज मुझे एक पैन (PAIN) किलर ला दो|

अजय भैया: अभी लाया|

अजय भैया PAIN किलर लेने गए और भाभी अंदर से मलहम ले आईं.... जो पीठ थोड़ी देर पहले सुन्न थी अब जैसे उसमें वापस खून दौड़ने लगा और मेरा दर्द दुगना हो गया| जब भाभी ने मेरी पीठ पे मलहम लगाया तो मैं तड़प उठा...

"आअह!!!"
अब तो उनके छूने से भी दर्द हो रहा था| तभी अजय भैया PAIN किलर लाये, मैंने झट से गोली ली और वापस उल्टा लेट गया| उसके बाद मुझे होश नहीं था की क्या हुआ.... जब मेरी आँख खुली तो भौजी मेरे सिरहाने बैठी पंखा कर रही थी|

ठंडी हवा जब मेरी पीठ को छूती तो दर्द कुछ काम होता| PAIN किलर का असर खत्म हो चूका था और रह-रह के दर्द हो रहा था|समय का ठीक से पता नहीं, पर रात हो चुकी थी ... जब मैं उठ के बैठा तो भौजी अपने आंसूं पोंछती हुई उठी और मुझे सहारा देने लगी...

"अब कैसा लगा रहा है? दर्द कुछ कम हुआ? "

मैं: नहीं... जब तक गोली का असर था तब तक तो कुछ पता नहीं था... वैसे ये कौन सी गोली दी थी भैया ने, जो मैं इतनी देर सोता रहा? ओह्ह्ह्ह !!! क्या समय हुआ है?

भौजी: नौ बजे हैं! मैंने तुम्हें दोपहर के भोजन के लिए उठाने की कोशिश की पर तुम उठे ही नहीं? चाचा-चाची का फ़ोन आया था... उन्होंने कहा की वे कल सुबह आएंगे|

मैं: आपने उन्हें इस सब के बारे में तो नहीं बताया? ओह्ह्ह !!

भौजी: नहीं.... मैंने अजय को मन कर दिया था.. नहीं तो वे चिंतित होते और आधी रात को ही यहाँ पहुँच जाते|

मैं: ठीक है.... अंह्ह्ह!!!

भौजी: पहले चलो हाथ मुंह धो लो और भोजन कर लो.... फिर मैं आयुर्वेदिक तेल से मालिश कर देती हूँ, शायद आराम मिले|
मैंने हाथ-मुँह धोया, और भोजन किया ... मेरे साथ ही भौजी ने भी भोजन किया| उन्होंने मेरे लिए सुबह से कुछ नहीं खाया था| उसके बाद भौजी ने वो आयुर्वेदिक तेल लगाया...

मैं: भौजी... अम्मा और बड़के दादा आअह!!! सो गए क्या?

भौजी: हाँ.. सब सो गए...सिर्फ तुम और मैं जगे हैं|

मैं: तो आप सब ने उनसे कुछ कहा?

भौजी: हाँ.. अजय ने उन्हें सारी बात बताई| माँ-पिताजी काफी शर्मिंदा थे..

मैं: मैं समझ सकता हूँ| उम्म्म!!! पर आपने कभी बताया नहीं की भैया इससे पहले भी आपको तंग कर चुके हैं? आपसे बदसलूकी कर चुके हैं.... अनन्नह !!!

भौजी: मैं जानती थी की तुम्हें जान के दुःख हो ग.. इसलिए नहीं बताया| उनके दिमाग में तो बस "एक" ही चीज चलती रहती है.. फर चाहे कोई जिए या मरे|

मैं: भौजी... अगर आप बुरा ना मनो तो मैं एक बात पूछूं? म्म्म्म!!!

भौजी: हाँ पूछो?

मैं: आपने बताया था की चन्दर भैया ने आपकी छोटी बहन के साथ....

मैंने जान-बुझ के बात पूरी नहीं की|

भौजी: हाँ... ये तबकी बात है जब मेरा रिश्ता तुम्हारे भैया के साथ तय हुआ था| तब वे हमारे घर दो दिन के लिए रुके थे.... उसी दौरान वो अनर्थ हुआ|

मैं: मुझे माफ़ करना भौजी मुझे आपसे वो सब नहीं पूछना चाहिए था|

भौजी: कोई बात नहीं मानु... तुम्हें ये बातें जानने का हक़ है| खेर छोडो इन बातों को... अब दर्द कुछ कम हुआ?

मैं: थोड़ा बहुत... पर अब भी पीठ जल रही है| ऐसा लग रहा है की जैसे किसी ने पीठ में अंगारे उड़ेल दिए| काश यहां बर्फ मिल जाती... अम्म्म्म !!!

भौजी से दवाई लेके मैं जैसे-तैसे करवट लेके लेट गया| पर चैन कँहा था.... ऊपर से करवट बदलने के लिए भी मुझे काफी मशक्त करनी पड़ रही थी|रात को गर्मी ज्यादा थी इसलिए मैं, भौजी और नेहा तीनों आँगन में ही सो रहे थे| रात के करीब साढ़े बारह बजे होंगे ... नींद मेरी आँखों से कोसों दूर थी| बार-बार करवट बदलने से चारपाई चूर-चूर कर रही थी.. भौजी को एहसास हो गया था की पीठ में हो रही जलन मुझे सोने नहीं देगी| मैं दुबारा बायीं करवट लेके लेट गया... तभी कुछ ऐसा हुआ जिसकी मैंने कभी कामना भी नहीं की थी|

भाभी मेरे बिस्तर पर आईं.. और मुझसे चिपक कर लेट गईं| मुझे कुछ ठंडा सा एहसास हुआ.. दरअसल भाभी ने ऊपर कुछ भी नहीं पहना हुआ था!!! उनके नंगे स्तन मेरी पीठ में धंसे हुए थे... मेरी पीठ को ठंडी रहत तो मिली|

मैं: भौजी आप ये क्या कर रही हो?

भौजी: क्यों, तुम अगर मुझे गर्माहट देने के लिए मुझसे चिपक के सो सकते हो तो क्या मैं तुम्हें अपने नंगे बदन से ठंडक भी नहीं दे सकती?

मैं कुछ नहीं बोला बस उनका हाथ जो मेरी छाती पे था उसे कास के दबा दिया| अब मैं और भौजी दोनों इस तरह चिपके लेटे रहे... मेरे अंदर वासना भड़कने लगी थी| मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे... और भौजी भी ये महसूस कर रही थी| मैं सच में वो सब नहीं करना चाहता था... इसलिए मैं उठ के बैठ गया और भौजी की और पीठ कर के खड़ा हो गया| मैं उनसे नजरें नहीं मिला पा रहा था.. खुद को रोक रहा था... अगर मेरे अंदर वासना की आग भड़की तो मैं फिर से..........................
भौजी को ये अटपटा सा लगा वो मेरे पीछे आके खड़ी हो गईं... और मुझे पीछे से जकड लिया| इस जकड़न ने मेरी आग में घी का काम किया|

भौजी: क्या हुआ मानु? तुम इस तरह यहाँ क्यों आ आगये?

मैं: बस अपने आपको रोकने की नाकाम कोशिश कर रहा था|

भौजी: रोकने की? पर क्यों? क्या तुम्हें मेरा साथ अच्छा नहीं लगता?

मैं: ऐसा नहीं है... मैं वो.....

भौजी: समझी... तुम मेरी बात को लेके अब भी नाराज हो?

मैंने कोई जवाब नहीं दिया.. परन्तु मैं जानता था की अगर मैंने कुछ नहीं किया तो भौजी का दिल टूट जायेगा और मैं ऐसा कतई नहीं चाहता था| मैंने बिना कुछ कहे भौजी के चेहरे को थाम… और उनके होंठों से अपने होठों को मिला दिया|


Post Reply