मैंने डिबिया, जो कि मेरे हाथ में थी, खोली और अशफाक उड़ के उस डिबिया में समां गया! सब ख़तम हो गया था, शिवानी को मैंने मंत्र पढ़े सरसों के दाने मारे और मै और शर्मा जी कमरे से बाहर निकल आये, सुबह हो चुकी थी, सारा परिवार जागा हुआ था, एक दो पडोसी भी आ गए थे, मैंने रमेश जी कि पत्नी से कहा, कि वो शिवानी के पास जाएँ, अब वो होश में आने वाली है, आप उसको नहलवा दें, अब सब कुछ ठीक है!
इतना सुनते ही रमेश जी और उनकी पानी कि रुलाई फूट पड़ी, मुंह से शब्द नहीं निकले, रमेश जी मेरे से लिपट के रो रहे थे, शर्मा जी ने उनको संयत किया,
"मै कैसे चुकाऊंगा आपका एहसान साहब, आपने मुझे बर्बाद होने से बचा लिया, आप मेरे लिए मेरे भगवान कि तरह हो" वो रोते भी जा रहे थे और कहते भी जा रहे थे, उनका बीटा भी आँखों में आंसू लेकर वहीँ खड़ा था, मैंने रमेश जी से कहा,
"रमेश जी आप ज़रा हमारा नहाने का प्रबंध करवा दीजिये"
उन्होंने देर नहीं लगाई और प्रबंध हो गया, मै नहाने चल दिया, शर्मा जी कमरे से बाहर निकले और अपना सारा सामान इकठ्ठा करने लगे,
कोई सुबह १० बजे, मै शिवानी से मिलने गया, वो अब बिलकुल ठीक थी, रमेश जी वहां मौजूद थे, मेरे अन्दर आते ही वो खड़े हो गए, मैंने शिवानी से पूछा,
"अब कैसी हो आप"
उसने बस हाँ में अपना सर हिलाया,
रमेश जी को मैंने कमरे में आने के लिए इशारा किया और मै दूसरे कमरे कि तरफ बढ़ गया, करीब १० मिनट के बाद रमेश जी और उनकी पत्नी कमरे में आये, रमेश जी ने मेरे हाथ में ५०० के नोटों कि एक गड्डी मेरे हाथ में थमा दी, मैंने कहा,
"नहीं रमेश जी, मै नहीं लूँगा, ये पैसा आप शिवानी के ब्याह में लगा देना, उन्होंने बहुत मिन्नत कि लेकिन मै नहीं माना,
हमने दोपहर में खाना खाया और शाम को चलने कि तैयारी करने लगे, रमेश जी ने बहुत रोका लेकिन हमारा रुकना अब उचित नहीं था, शाम को रमेश जी के परिवार से विदा ली और रमेश जी हमको छोड़ने बस-अड्डे तक आये, हमने आखिरी नमस्कार किया और हम दिल्ली के लिए रवाना हो गए!
वर्ष २००६, अक्टूबर महीने में, रमेश जी मेरे पास दिल्ली आये, काफी खुश थे, उन्होंने बताया कि शिवानी बाद में सामान्य हो गयी थी, उसे सदमे से उबरने में २ महीने लगे, लेकिन बिलकुल ठीक हो गयी!
"ये लीजिये!" उन्होंने कहा,
मैंने पूछा, "ये क्या है?"
उन्होंने कहा, "शिवानी कि शादी ही २९ अक्टूबर कि, और मुझे और शर्मा जी को अवश्य ही आना है!"
मैंने कहा," बिलकुल रमेश जी बिलकुल, मै अवश्य ही आऊंगा" थोड़ी देर बाद वो लोग चले गए!
"२९ अक्टूबर को हम कानपुर पहुंचे, विवाह में शामिल हुए, शिवानी को देखा, बहुत सुंदर लग रही थी शिवानी उस दिन!
रमेश जी आज तक मेरे संपर्क में हैं, मै कभी कानपुर जाऊं तो वो हमे अपने घर में ही ठहराते हैं!
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कानपुर की एक घटना
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