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अब आगे...
तब भाभी ने अपनी दूसरी चाल चली;
रसिका भाभी: पिताजी (बड़के दादा) रात को मैं साउंगी कहाँ?
बड़के दादा: क्यों? तुम बड़े घर में सो जाना, हमेशा वहीँ तो सोती हो तुम|
रसिका भाभी: वो पिताजी ... आज तो घर में हम तीन ही हैं| मुझे वहाँ अकेले सोने में डर लगता है| ऐसा कीजिये आप यहाँ रसोई के पास सो जाइये और मैं, वरुण और मानु जी बड़े घर में सो जाते हैं|
बड़के दादा: जैसे तुम ठीक समझो|
अब भाभी की बात सुन के मेरी आँखें खुली की खुली रह गईं| मैं तो जैसे पलक झपकना ही भूल गया| कैसी औरत है ये जो अपने ही ससुर से कह रही है की उसे मेरे साथ सोना है? अब बड़के दादा तो रसोई के पास अपनी चारपाई पे लेट गए| अब मुझे और रसिका भाभी को बड़े घर में सोना था...वो भी अकेले!! अब मैं अपनी चारपाई खींच के स्नान घर के पास ले गया और भाभी की चारपाई प्रमुख दरवाजे से कुछ बारह कदम दूरी पर थी| मेरी और भाभी की चारपाई में करीब पंद्रह फुट की दूरी थी| अब मैं लेट गया पर नींद नहीं आ रही थी| पिछले दो-तीन दिनों से मैंने रसिका भाभी के हाथ का बना कुछ भी नहीं खाया था| एक बस चाय का सहारा था जो बड़की अम्मा सुबह-शाम बनाया करती थीं, पर आज तो वो भी नहीं मिली क्योंकि अम्मा चलीं गई थी| इसलिए आज पेट बिलकुल खाली था और ऊपर से जो मैं ठन्डे पानी से नहाया था तो शरीर ठण्ड से काँप अलग रह था|
मैं आँख बंद किये सीधा लेटा था और दायें हाथ से अपनी आँखों को ढक रखा था| आँखें बंद किये भौजी को याद कर रहा था... सोच रहा था की अगर वो यहाँ होती तो हम कितनी बातें करते... नेहा की भी याद आ रही थी| मेरी बगल में ही वरुण लेटा था, मैंने उससे कहा की "बेटा आप आज मम्मी के पास सो जाओ"| ताकि आज भाभी उसे उठाने के बहाने फिर मुझसे छेड़खानी ना करें| पर मेरी बात भाभी ने आगे खुद ही पूरी कर दी; "बेटा आओ मेरे पास सो जाओ| चाचा को आराम से सोने दो|" शायद वो मुझे खुश करने के लिए कह रहीं हो पर मैंने उन्हें जरा भी तूल नहीं दी| मैं फिर अपने ख्यालों में डूब गया .... भौजी को याद करके मन थोड़ा खुश हुआ| वो उनका हर बार जिद्द करना...मुझसे नाराज होना... और जब वो टूटी-फूटी अंग्रेजी बोला करती थीं वो सब मुझे बहुत याद आ रहा था| खड़ी की सुइयाँ तेजी से भागने लॉगिन और रात के करीब दो बजे होंगे, जब मुझपे उस घायल शेरनी ने हमला किया| मैंने एक चादर ओढ़ रखी थी, जिसे एक झटके में भाभी ने खींच लिया और इससे पहले मैं कोई प्रतिक्रिया करता वो मेरे ऊपर लेट गेन... वो भी नंगी! उनके शरीर पे कपडे का एक टुकड़ा भी नहीं था| एक दम से उन्होंने मेरे दोनों हाथों को अपने हाथों से पकड़ लिया, पता नहीं उनमें इतनी ताकत कहाँ से आ जाती थी| मैं खुद को छुड़ाने की भरपूर कोशिश करने लगा पर कोई फायदा नहीं था| वो मुझे Kiss करने की कोशिश करने लगीं और मैं बार-बार अपना मुँह इधर-उधर घुमा लेता था|
अब अगर मैंने भाभी की वो कातिल जवानी की तारीफ नहीं की तो आप लोग मुझे ही गालियां दोगे| पर मैं बता दूँ ये तारीफ सिर्फ आपके लिए है, मेरे लिए ये बस एक जब्बर्दस्ती का काम है जो मैं सिर्फ आपके लिए कर रहा हूँ|
एक दम गोरा बदन .... दूध से सफ़ेद उनके बूब्स*.... भूरे रंग के निप्पल.... बालों का जुड़ा बना हुआ.... चूत पे बालों का घना जंगल जो मुझे बिलकुल पसंद नहीं है| छत्तीस की कमर और मुलायम टांगें तो मेरे पाँव से रगड़ खा रहीं थी|
(मैं बूब्स और चूत जैसे शब्द का प्रयोग केवल और केवल रसिका भाभी के लिए कर रहा हूँ| मैं इसका प्रयोग कभी भी भौजी के लिए नहीं करूँगा| क्योंकि जो मजा "स्तन" या "योनि" कहने में है वो बूब्स कहने में नहीं!"
तो सीन ये था की भाभी मुझे बेतहाशा चूमने की कोशिश कर रहीं थीं पर चूँकि उनके हाथ मेरे हाथों को रोकने में व्यस्त थे इसलिए वो कामयाब नहीं हो रहीं थी| इधर मेरा लंड जो अपने ऊपर भाभी की चूत की गर्मी झेल रहा था वो भी भी अपनी ताकत दिखाने को तरस रहा और पजामे में तम्बू बना चूका था| अब भाभी को भी अपनी चूत पे नीचे से मेरे लंड की आंच महसूस कर रहीं थी;
रसिका भाभी: हाय मानु जी..... देखो अब तो आपके लंड ने भी बगावत कर दी| देखो वो भी कितना प्यासा है... बुझा लेने दो उसे अपनी प्यास|
मैं: कभी नहीं... हटो मुझ पर से| (मैं छटपटाने लगा)
रसिका भाभी: बड़े जालिम हो तुम... और स्वार्थी भी!
मैं: हटो मुझ पर से ....छोडो मेरा हाथ!!! (मैं गुस्सा दिखाते हुए बोला)
रसिका भाभी: ऐसे कैसे कल से आज तक तीन थप्पड़ खा चुकी हूँ.... इसका जुरमाना तो तुम्हें भरना ही पड़ेगा| बहुत जबर्दस्स्त हाथ है तुम्हारा बस एक गलती करते हो.... अपनी ये ताकत मेरी प्यास बुझाने में लगाओ ना की मेरे गाल लाल करने में|
मैं: बहुत हो गया अब... आअह्ह्ह्ह्ह्ह
मैंने अपनी पूरी ताकत लगाईं और अपना सीधा हाथ उनसे छुड़ा लिया और छिटक के दूर जा खड़ा हुआ.... मैंने तुरंत नीचे पड़ी चादर उठाई और भाभी के मुँह पे फेंक के मारी|
मैं: Enough !!! (मैंने चिल्ला के कहा)
पर उस गंवार औरत पे क्या फर्क पड़ना था... अरे उसे समझ ही नहीं आया होगा|
मैं: भाभी बहुत हो गया... आपने अपनी साड़ी शर्म हाय बेच खाई| अब इस चादर से को खुद को ढको|
रसिका भाभी: क्यों ढकूँ?
मैं: मुझे नहीं देखना आपको इस तरह!
रसिका भाभी: तो तुम अपनी आँखें बंद कर लो| खुद तो कभी अपना लंड दिखाते नहीं जो.. और जब मैं अपनी चूत दिखा रही हूँ तो वो भी नहीं देखि जाती तुम से!!!
मैं: मुझे क्या आपने अपने जितना गिरा हुआ समझा है|
रसिका भाभी: अच्छा एक बात बताओ की तुम मुझसे इतना दूर क्यों भागते हो .... मानो मुझसे नफरत करते हो| मैंने तुम से माँगा ही क्या है? यही न की एक बार मेरी प्यास बुझा दो ! बस... मैंने तुमसे कोई जायदाद तो नहीं माँग ली? पता है जिस तरह तुम मुझसे से व्यवहार करते हो... मुझे तो लगता है की तुम कुंवारे हो.... कुंवारा मतलब तो समझ ही गए होगे तुम?
मैं: जो आप चाहते हो वो मैं नहीं कर सकता क्योंकि मैं आपसे प्यार नहीं करता| मैं ये सब उसी के साथ करूँगा जिससे मैं प्यार करता हूँ|
रसिका भाभी: पर मैं तो तुमसे प्यार करती हूँ|
मैं: सिर्फ अपने काम के लिए .... और आप मुझे दिल से प्यार नहीं करते बस उस नीचे वाले मुँह में कुछ डालने के लिए ये सब कर रहे हो|
रसिका भाभी: हाय... तुम उतने भी ना समझ नहीं जितना बनते हो|
मैं आगे उनसे कुछ नहीं बोला और पैर पटकता हुआ अपने कमरे में जा के चारपाई पे बैठ गया और सर झुका के सोचने लगा| इतने में भाभी उठ के मेरे सामने नंगी खड़ी होगी| वो चौखट पे अपने कंधे टिका के खड़ी थीं और और डायन हाथ उनकी कमर पे था जिससे उनकी गांड का उभार साफ़ दिख रहा था|
उनके बूब्स आगे की ओर निकले हुए साफ़ दिख रहे थे| मैंने एक नजर उन्हें देखा और फिर अपना तौलिया उठा के उनकी ओर बढ़ा;
रसिका भाभी: कहाँ जा रहे हो तौलिया ले के?
मैं कुछ नहीं बोला पर मुझे स्नान घर की ओर जाता देख वो समझ गईं की मैं कहाँ जा रहा हूँ|
रसिका भाभी: मानु इतनी रात को नहाओगे तो ठण्ड लग जाएगी| पानी बहुत ठंडा है! मान जाओ!!!
मैं अब भी कुछ नहीं बोला और स्नान घर में घुस गया| स्नान घर में दिवार करीब चारफूट ऊँची है| तो जब कोई खड़ा हो के नहाता है तो गर्दन से ऊपर का भाग साफ़ दिखाई देता है| मैं उसी दिवार की आड़ लेके नहा रहा था| मैंने अपनी टी-शर्ट उतारी, फिर पजामा उतार और आखिर में अपना कच्छा भी उतार के उसी दिवार पे रख दिया| जैसे ही मैंने पहला लोटा पानी का डाला तो मेरी कंप-कंपी छूट गई...बर्फ सा ठंडा पानी था... मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे| मैंने साबुन लगा के रगड़ के नहाना शुरू कर दिया;
रसिका भाभी: हाय ...मानु जी... अब कौन सी मिटटी में खेल के आये हो जो इतना रगड़-रगड़ के नहा रहे हो?
मैं: आपकी वजह से नहाना पड़ रहा है| (गुस्से में)
रसिका भाभी: अरे बाबा मैंने क्या कर दिया?
मैं: जब-जब आप मुझे छूते हो आपकी गंध मेरे शरीर में बस जाती है| उसी गंध को छुड़ाने के लिए मैं इतना रगड़-रगड़ के नहा रहा हूँ|
रसिका भाभी: हाय दैया मैं इतनी बड़ी अछूत हूँ? और अगर मेरी महक तुम्हें इतना तंग करती है तो मेरे हाथ का बना खाना कैसे कहते हो? (उन्होंने मुझे ताना मार)
मैं: हुंह...पिछले दो दिनों से मैंने आप के हाथ का बना कुछ भी नहीं खाया|
रसिका भाभी: तो जो मैं खाना परोस के देती हूँ उसे क्या तुम फेंक देते हो?
मैं: मैं अन्न की इज्जत करता हूँ| जो झना आप परोस के देते हो उसे मैं आपके ही सपूत वरुण को खिला देता हूँ|
रसिका भाभी: तो ये बताओ की अपनी भौजी के साथ जो चिपके रहते हो तो उनकी महक नहीं बस जाती तुम्हारी नाक में?
मैं: उनके मन में मेरे लिए वासना नहीं है| प्यार है... इज्जत है|
रसिका भाभी: हाँ भाई हमारे मन में तो सिर्फ वासना ही भरी है!
इतना कहके उन्होंने फिर से अपनी ओछी हरकत की| वो मेरे सामने अपनी टांगें खोल के उकड़ूँ होक बैठ गईं और अपनी झांटों वाली चूत मुझे दिखाते हुए उसमें ऊँगली करने लगी| मैंने मुंह फेर लिया, पर जब मैंने कनखी आँखों से देखा तो वो अब भी मेरी ओर देख के अपनी चूत में ऊँगली कर रहीं थीं और हस्त मैथुन कर रहीं थी| मैं उन पे ध्यान नहीं देना चाहता था पर वो जान-बुझ के अपने मुंह से सिस्कारिया निकाल रहीं थी जिससे मेरा ध्यान भंग हो रहा था| मैंने जल्दी से अपना नहाना खत्म किया और नए कपडे पहन के (कुरता-पजामा) पहन के बहार आ गया, सामने देखा तो जमीन पे भाभी की चूत से जो पानी निकला था वो जमीन पे पड़ा हुआ था| मैं नाक सिकोड़ के छत पे भाग गया| अब जो कुछ अभी हुआ था उससे ये बात तो साफ़ थी की मैं नीचे नहीं सो सकता वरना ये सुबह तक मुझे नोच खायेंगी| मैं छत के सबसे दूर वाले कोने पे बैठ गया और पेरापेट दिवार से पीठ लगा के बैठ गया| मुझे बहुत जोर की ठण्ड लग रही थी और बुरी तरह काँप रहा था| पर मैं नीचे नहीं जाना चाहता था.... करीब एक घंटे बाद मैंने छत से नीचे आँगन में झाँका तो देखा भाभी चारपाई पे ब्लाउज और पेत्तिसोअत पहने लेती हुई हैं| मैं वापस अपनी जगह बैठ गया और उम्मीद करने लगा की अब सुबह होगी...अब सुबह होगी... और ऐसे करते-करते सुयभ हो ही गई| साड़ी रात आँख खोले जागता रहा, और जैसे ही सूरज की किरण मेरे ठन्डे पड़ चुके शरीर पे पड़ी तो दिल ने कुछ रहत की साँस ली|
एक अनोखा बंधन
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Re: एक अनोखा बंधन
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अब आगे...
मैंने उठ के छत से नीचे आँगन में झाँका तो देखा भाभी उठ के चाय बनाने जा चुकीं थी| मैं उठा और नीचे आके ब्रश किया, कपडे बदले...अब नहा तो मैं रात को ही चूका था और ऊपर से ठण्ड इतनी लग रही थी की पानी छूने का मन नहीं कर रहा था| मैं रसोई के पास आया तो बड़के दादा नाश्ता कर रहे थे| उन्होंने मुझे भी नाश्ता करने को कहा पर मैं भला भाभी के हाथ का बना कुछ भी कैसे खा सकता था? मैंने ये कह के बात ताल दी की आज मैं फ़ाक़ा करूँगा| मैं बिना कुछ और बोले खेत चला गया| करीब आधे घंटे बाद बड़के दादा भी आ गए| आज मैं खुश था...क्योंकि आज मेरा प्यार जो वापस लौटने वाला था| मैं दो बस हसीन सपने सजोने में लगा था| और आज पूरी ताकत से काम करना चाहता था...मतलब जितनी भी बची थी| भौजी से मिलने की ख़ुशी इतनी थी की कल रात का सारा वाक्य भूल गया..ना भूख लग रही थी ना ही प्यास! इस मिलने के एक एहसास ने मेरे अंदर एक नै ताकत सँजो दी थी और मन कर रहा था की अकेला सारा खेत काट डालूँ| दोपहर तक मैं बिना रुके...पूरे जोश से लगा हुआ था और बड़के दादा तक मेरा जोश देख के हैरान थे और खुश भी थे| इधर रसिका भाभी भी कुछ देर बाद आ गईं और वो भी हाथ बताने लगीं| मैंने उनि जरा भी ध्यान नहीं दिया और अपने काम में लगा रहा| एक अलग ही मनुस्कान मेरे मुख पे तैर रही थी| इतना खुश तो मैं तब भी नहीं हुआ था जब मैं भौजी से मिलने गाँव आया था| रसिका भाभी भी हैरान दिख रहीं थी की आज मैं इतना खुश क्यों हूँ? खेर दोपहर के भोजन का समय हुआ तो हम वापस घर लौटे| मैं तो ख़ुशी से इधर से उधर चक्कर लगा रहा था| सड़क पे नजरें बिछाये बेसब्री से भौजी के आने का रास्ता देख रहा था| बड़के दादा ने भोजन के लिए कहा पर मैंने अनसुना कर दिया| कल रात को जो मैं ठन्डे पानी से नहाया था अब वो भी असर दिखाने लगा था| गाला भारी हो गया था और नाक बंद हो गई थी| बदन भी दर्द करने लगा था... पर दिल जिस्म की शिकायतों को अनसुना कर रहा था| जब घडी में तीन बजे और बड़के दादा पुनः खेत में जाने के लिए कहने लगे तब एक पल के लिए लगा की भौजी आज आएँगी ही नहीं| शायद सासु जी और ससुर जी ने उन्हीं रोक लिया होगा| मन थोड़ा मायूस हुआ पर दिल कह रहा था की थोड़ा सब्र कर वो शाम तक जर्रूर आ जाएँगी| दिमाग ने तैयारी कर ली थी की जैसे ही वो आएँगी मैं उन्हें कस के गले लगा लूँगा| खेर मैं बेमन से खेत में काम करने छाला गया|
बड़के दादा: अरे मुन्ना आज क्या बात है, तुम सुबह तो बड़े जोश से काम कर रहे थे| मुझे तो लग रहा था की तुम अकेले सारा खेत काट डालोगे, पर अब तुम ढीले पड़ गए| क्या हुआ?
मैं: जी सुबह-सुबह फूर्ति ज्यादा होती है और अभी थोड़ा थकावट लग रही है|
बड़के दादा: तो जाके थोड़ा आराम कर लो|
मैं: जी ठीक है|
मैं उठ के जाने लगा तभी बड़के दादा के फ़ोन की घंटी बज उठी| ये फ़ोन पिताजी ने किया था| बात होने के बाद बड़के दादा ने बताया की माँ, पिताजी और बड़की अम्मा कुछ दिन और रुकेंगे| पर हो सकता है की बड़की अम्मा कल लौट आएं| खेर मैं बहुत थक चूका था और कल रात से तो मानसिक और शारीरिक से पीड़ित था!
मैं खेत से घर आ रहा था तो रास्ते में मुझे माधुरी खड़ी दिखी, ऐसा लगा जैसे वो मेरा ही इन्तेजार कर रही हो| उसे देख के मेरा मन फिर से दुखी हो गया| मैं वहीँ खड़ा हो गया ... और दो सेकंड बाद वो ही चल के मेरे पास आई;
माधुरी: मानु जी....
मैं: बोल.... (मैंने मन में सोचा की एक तू ही बची थी ... तू भी ले ले मुझसे मजे|)
माधुरी: आपकी तबियत ठीक नहीं लग रही|
मैं: वो सब छोड़.... तू बता क्या चाइये तुझे?
माधुरी: आप बड़े रूखे तरीके से बात कर रहे हो|
मैं: देख मुझ में इतनी ताकत नहीं है की मैं तुझसे यहाँ खड़े रह के बात करूँ| तू साफ़-साफ़ ये बता की तुझे क्या चाहिए?
माधुरी: वो.... मेरे पिताजी ने जो लड़का पसंद किया है वो "अम्बाले" का है... लड़के वाले इस गाँव तक बरात लेके नहीं आ सकते क्योंकि..... यहाँ की हलात तो आप जानते ही हो| तो पिताजी ने ये तय किया है की शादी अम्बाला में मेरे मामा के घर पर ही होगी|
मैं: तो?
माधुरी: हमें कल ही निकलना है....और जाने से पहले मिअन चाहती हूँ की एक बार आप अगर....
मैं: अगर क्या?
माधुरी: मेरे साथ सेक्स कर लें तो.....
मैं: तेरा दिमाग ख़राब है क्या? तेरी शादी होने वाली है और तेरे अंदर अब भी वो कीड़ा कुलबुला रहा है? तुझ जैसी गिरी हुई लड़की मैंने अब तक नहीं देखि|
माधुरी: उस दिन आपने बड़े rough तरीके से किया था... तो इस बार....
मैं: मैं तुझसे प्यार नहीं करता ...जो तेरे साथ प्यार से वो सब करता| और वैसे भी वो सब करने के लिए तूने मुझे मजबूर किया था| तब मैं नहीं जानता था की तेरी असलियत क्या है... गर मैं जानता तो मरते मर जाता पर तुझे कभी हाथ नहीं लगता| भले ही तू मर जाती पर....मैं तेरा कहा कभी नहीं करता!
माधुरी: कैसी असलियत? (उसने अनजान बनते हुए कहा)
मैं: तू पुराने मास्टर साहब के लड़के को अपने साथ भगा कर ले गई थी ना?
माधुरी: नहीं...वो मुझे भगा के ....
मैं: चुप कर... मैं जानता हूँ कौन किसे भगा के ले गया|
माधुरी: नहीं...नहीं... आप मुझे गलत समझ रहे हैं!
मैं: मुझे ये बात तेरी ही सहेली ने बताई है...रसिका भाभी ने! अब कह दे की वो झूठ कह रहीं थी!
माधुरी का सर शर्म से झुक गया|
मैं: उस दिन जब मैं बीमार था और तू मुझसे मिलने आई थी... तब तूने जो कुछ कहा.... उसे सुन के एक पल के लिए मुझे विश्वास हो गया था की तू मुझसे सच में प्यार करती है| पर जब मुझे तेरी सारी असलियत पता चली तो मुझे एहसास हुआ की तू मुझसे कोई प्यार-व्यार नहीं करती| तुझे तो बस शहरी लड़कों का चस्का है|
माधुरी: (आँखों में आँसूं भरे) पर मैंने आपको अपना कुंवारापन सौंपा था!
मैं: वो इसलिए की तू उस लड़के के साथ उसी के किसी दोस्त के यहाँ ठहरी थी| वहां वो तेरे साथ तो कुछ कर नहीं सकता था...या शायद वो लड़का साफ़ दिल का होगा| जो आग उस लड़के से नहीं बुझी उसे बुझाने के लिए तू मेरे पास आ गई| और मैं भी बेवकूफ निकला जो तेरी बातों में आ गया! इस बात का मुझे ताउम्र गिला रहेगा की मैंने तेरे जैसी लड़की की बात में आके ये दुष्कर्म किया|
......और इतने से भी तेरा दिल नहीं भरा तो तूने उस बिचारे लड़के और उसके बाप को ही फँसा दिया और बेइज्जत करके गाँव से निकलवा दिया| अगर इतनी ही दया भाव था तो तू ने उसी लड़के से शादी क्यों नहीं की?
माधुरी: आप मुझे गलत समझ रहे हो... मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ|
मैं: हुंह....प्यार? तेरे प्यार की हद्द सिर्फ जिस्म तक है| खेर मुझे अब तुझसे कोई बात नहीं करनी.... और ना ही मैं तुझसे दुबारा मिलूंगा| GOODBYE !!!
मैं इतना कहके वहाँ से चला आया| मैं घर आके चारपाई पे पड़ गया और चादर ओढ़ ली|
पेट में चूहे दौड़ रहे थे ... बुखार लग रहा था... बदन टूट रहा था और खांसीजुखाम तो पहले से ही तंग कर रहे थे| मैंने सुना था की खाली पेट दवाई नहीं लेनी चाहिए पर क्या करता ...शहर होता तो मैं खुद किचन में घुस के कुछ बना लेता पर गाँव में तो तो नियम कानों इतने हैं की पूछो मत! मैं जैसे तैसे उठा और बड़े घर जाके अपने कमरे से क्रोसिन निकाली और खाली पेट खाली! मन में सोच जो होगा देखा जायेगा! पेट को समझाया की "यार शांत हो जा...शाम को भौजी आ जाएँगी तो वो कुछ बनाएंगी तब तेरी बूख मिटेगी|" पेट ने तो जैसे-तैसे समझौता कर लिया पर बिमारी थी की तंग करने से बाज नहीं आ रही थी| कुछ समय में मेरी आंख लग गई... और जब उठा तो रात के आठ बज रहे थे| अभी तक भौजी नहीं आईं? हाय अब मेरा क्या होगा? सारी उम्मीद खत्म हो गई थी| दिल टूट के टुकड़े-टुकड़े हो गया... खुद पे गुस्सा भी आया की बड़ा आया तीसमारखां ... लोग अपने पाँव पे कुल्हाड़ी मारते हैं मैंने तो पाँव ही कुल्हाड़ी पे दे मारा|
रसिका भाभी मुझे उठाने आईं पर मैं तो पहले ही जाग चूका था;
रसिका भाभी: चलो मानु जी... खाना खा लो?
मैं: (अकड़ते हुए) आपको मेरा जवाब मालूम है ना? फिर क्यों पूछ रहे हो?
रसिका भाभी: नहीं आने वाली आपकी भौजी! अब कम से कम पंद्रह दिन बाद आएँगी तो तब तक यूँ ही भूखे बैठे रहोगे?
मैं: आपको इससे क्या?
रसिका भाभी: दीदी आके मुझे डाटेंगी की मैंने तुम्हारा ख़याल नहीं रखा!
मैं: आपने तो हद्द से ज्यादा ही ख्याल रखा है... इतना ख्याल रखा की मेरी हालत ख़राब कर दी| आप जाओ और मुझे सोने दो|
रसिका भाभी: मानु जी ... मान जाओ पिछले तीन दिनों से आप्पने कुछ नहीं खाया और आज भी सारा दिन हो गया कुछ नहीं खाया| मेरा गुस्सा खाने पे मत निकालो और कृपा करके कुछ खा लो|
मैं: मुझे नहीं खाना!!
मैं वापस लेट गया, और चादर सर पे डाल ली| रसिका भाभी पिनाक के चली गईं अब मुझे चिंता हुई की मैं आज सोऊंगा कहाँ? आँगन में सोया तो यी फिर काल रात वाला सीन दोहरायेेंगी और आज तो मुझ में इतनी ताकत भी नहीं की मैं इनका सामना कर सकूँ| मैंने एक आईडिया निकला, मैं अपने कमरे में सोने के लिए चल दिया| अब दिक्कत ये थी की कमरे के दरवाजे में अंदर से चिटकनी नहीं थी जिससे मैं दरवाजा लॉक कर सकूँ! फिर उसका भी रास्ता धुंध लिया मैंने| कमरे में एक चारपाई पड़ी थी मैंने उसे दरवाजे के सामने इस तरह से बिछा दिया की दरवाजा खुले ही ना| जब मैं चारपाई पे लेट गया तो वजन से दरवाजा बहुत थोड़ा ही खुल पाता था .. उतने Gap से केवल एक हाथ ही अंदर आ सकता था| मेरे लेटने के करीब घण्टे भर बाद भाभी आ गईं और मुझे घर के अंदर ना पाके आवाज मारने लगी| मैं कुछ नहीं बोला... कुछ देर बाद उन्होंने कमरे की खिड़की जो दरवाजे के बगल में लगी थी उसमें से झाँका तो देखा अंदर मैं सो रहा था;
रसिका भाभी: हाय राम.... बहुत उस्ताद हो? दरवाजा बंद करके सो रहे हो? डर रहे हो की मैं कल वाली हरकत फिर दोहराऊंगी?
मैं कुछ नहीं बोला बस ऐसा जताया जैसे मैं गहरी नींद में हूँ|
रसिका भाभी: अच्छा बाबा मैं कुछ नहीं करुँगी... अब तो बहार आ जाओ| मैं यहाँ अकेले कैसे सोउंगी?
मैं कुछ नहीं बोला और आखिर में भाभी हार मान के आँगन में अपनी चारपाई पे लेट गईं| सुबह कब हुई पता ही नहीं चला| सुबह मुझे बड़के दादा ने जगाया| उन्होंने दरवाजे पे दस्तक दी तब जाके मैं उठा और मैंने दरवाजा खोला| घडी सुबह के साढ़े नौ बजा चुकी थी| शरीर बिलकुल जवाब दे चूका था... जरा सी भी ताकत नहीं बची थी| बड़के दादा मेरे पास बैठे और मेरे सर पे हाथ फेरा तब उन्हें पता चला की मुझे बुखार है| उन्होंने मुझे आराम करने की हिदायत दी और खेत पे चले गए| मैं वापस लेट गया, कुछ देर बाद वरुण मेरे पास आया| मैंने उसे ये कहके खुद से दूर कर दिया की "मुझे जुखाम-खांसी है... और अगर आप मेरे पास रहोगे तो आपको भी हो जायेगा|" वो बिचारा बच्चा चुप-चाप बाहर चला गया| ऐसा नहीं है की मैं उससे नफरत करता था, पर मैं नहीं चाहता था की वो मेरी वजह से बीमार पड़ जाए|
अभी मैंने चैन की सांस ली ही थी की इतने में भाभी आ गईं;
रसिका भाभी: मानु जी... ये गर्म-गर्म काली मिर्च वाली चाय पी लो, जुखाम-खांसी ठीक हो जायेगा|
मैं: No Thank You !
मैं और कुछ नहीं बोला और अपने दाहिने हाथ से आँखों को ढका और सोने लगा| घड़ी में करीब डेढ़ बजा होगा जब किसी ने मुझे जगाया| ये कोई और नहीं बड़की अम्मा थीं|
बड़की अम्मा: मुन्ना तुम्हें तो बुखार है?
मैं: अम्मा.... आप कब आए?
बड़की अम्मा: कुछ देर हुई बेटा| पर तुम ये बताओ की ये क्या हाल बना रखा है? तुम्हारे बड़के दादा तो कह रहे थे मुन्ना ने बहुत काम किया खेत में| आधा खेत तो उसने ही काटा है! लगता है बेटा कुछ ज्यादा ही म्हणत कर ली तुमने?
मैं: अरे नहीं अम्मा...वो तो बस...... खेर एक बात कहूँ अम्मा आज आपके हाथ की अदरक वाली चाय पीने का मन कर रहा है|
बड़की अम्मा: पर बेटा ये तो खाने का समय है?
मैं: अम्मा आप तो देख ही रहे हो की गाला भारी है... अदरक वाली चाय पियूँगा तो गले को आराम मिलेगा और ताकत भी आएगी| अभी आधा खेत भी तो बाकी है!
बड़की अम्मा: नहीं बेटा तुम आराम करो.....काम होता रहेगा|
मैं: नहीं अम्मा....आप देख ही रहे हो मौसम अचानक से ठंडा हो गया है| अगर बारिश हो गई तो बहुत नुक्सान होगा|
बड़की अम्मा: पर बेटा....
मैं: नहीं अम्मा ... प्लीज!!!
बड़की अम्मा: ठीक है बेटा ... पहले मैं चाय लाती हूँ|
मैं उठा और बड़की अम्मा के पीछे-पीछे जा पहुंचा| दरअसल मैं ये पक्का करना चाहता था की चाय अम्मा ही बनाएं| मैं छप्पर के नीचे तख़्त पे पसर गया| मेरी नजर रसोई पे थी... अम्मा ने हाथ-मुंह धोया और चाय बनाने घुस गईं| बड़के दादा ने मुझे खाने के लिए कहा पर मैंने ये बहन कर दिया की खाना खाने से सुस्ती आएगी और मुझे खेतों में काम करना है| रसिका भाभी ने मेरी शिाकायत करनी चाही;
बड़के दादा: मुन्ना कुछ तो खा लो?
मैं: नहीं दादा... अभी मन सिर्फ अम्मा के हाथ की चाय पीने का है| शहर में तो पेपरों के दिनों में मैं सिर्फ माँ की हाथ की चाय ही पीटा हूँ| ताकि दिन में नींद ना आये|
रसिका भाभी: पिताजी...मानु जी ने चार दिनों से.....
मैं: (बीच में बात काटते हुए) अम्मा... माँ और पिताजी कब आ रहे हैं?
बड़की अम्मा: बेटा वो परसों आएंगे|
मैं: तो आप अकेले आए हो?
बड़की अम्मा: नहीं बेटा ... तुम्हारे मामा का लड़का छोड़ गया था|
मैंने इसी तरह बातों का सील-सिला जारी रखा ताकि भाभी को बोलने का मौका ही ना मिले| मैंने अम्मा और दादा को बातों में असा उलझाया की रसिका भाभी को बात शुरू करने का कोई मौका ही नहीं मिला| बातें करते-करते हम खेत चले गए और मैंने अपनी पूरी ताकत कटाई में झौंक दी| शाम को वापस आए तो मेरी हालत नहीं थी की मैं कुछ कर सकूँ| मैं बस अपने कमरे में गया और वहां चारपाई पे पसर गया| सारा दिन मैंने खुद को बहुत सजा दी थी... बीमार होते हुए भी कटाई जारी रखी.... हाँ एक बात थी की अम्मा के हाथ की बानी चाय ने मुझ में कुछ तो जान फूंकी थी!!! करीब दो घंटे ककी कटाई रह गई थी बाकी सब मैंने और बड़के दादा ने मिलके काट डाला था| चारपाई पे लेटते ही मैं बेसुध होके सो गया| बस सुबह आँख खुली और अब मेरी तबियत बहुत खराब थी| बुखार से बदन तप रहा था .. गले से आवाज नहीं निकल रही थी क्योंकि खांसी और बलगम ने गला चोक कर दिया था| मैं बस एक चादर ओढ़े पड़ा था| दिमाग ने तो भौजी के आने की उम्मीद ही छोड़ दी थी पर दिल था जो अब भी कह रहा था की नहीं तेरा प्यार जर्रूर आएगा|
अब आगे...
मैंने उठ के छत से नीचे आँगन में झाँका तो देखा भाभी उठ के चाय बनाने जा चुकीं थी| मैं उठा और नीचे आके ब्रश किया, कपडे बदले...अब नहा तो मैं रात को ही चूका था और ऊपर से ठण्ड इतनी लग रही थी की पानी छूने का मन नहीं कर रहा था| मैं रसोई के पास आया तो बड़के दादा नाश्ता कर रहे थे| उन्होंने मुझे भी नाश्ता करने को कहा पर मैं भला भाभी के हाथ का बना कुछ भी कैसे खा सकता था? मैंने ये कह के बात ताल दी की आज मैं फ़ाक़ा करूँगा| मैं बिना कुछ और बोले खेत चला गया| करीब आधे घंटे बाद बड़के दादा भी आ गए| आज मैं खुश था...क्योंकि आज मेरा प्यार जो वापस लौटने वाला था| मैं दो बस हसीन सपने सजोने में लगा था| और आज पूरी ताकत से काम करना चाहता था...मतलब जितनी भी बची थी| भौजी से मिलने की ख़ुशी इतनी थी की कल रात का सारा वाक्य भूल गया..ना भूख लग रही थी ना ही प्यास! इस मिलने के एक एहसास ने मेरे अंदर एक नै ताकत सँजो दी थी और मन कर रहा था की अकेला सारा खेत काट डालूँ| दोपहर तक मैं बिना रुके...पूरे जोश से लगा हुआ था और बड़के दादा तक मेरा जोश देख के हैरान थे और खुश भी थे| इधर रसिका भाभी भी कुछ देर बाद आ गईं और वो भी हाथ बताने लगीं| मैंने उनि जरा भी ध्यान नहीं दिया और अपने काम में लगा रहा| एक अलग ही मनुस्कान मेरे मुख पे तैर रही थी| इतना खुश तो मैं तब भी नहीं हुआ था जब मैं भौजी से मिलने गाँव आया था| रसिका भाभी भी हैरान दिख रहीं थी की आज मैं इतना खुश क्यों हूँ? खेर दोपहर के भोजन का समय हुआ तो हम वापस घर लौटे| मैं तो ख़ुशी से इधर से उधर चक्कर लगा रहा था| सड़क पे नजरें बिछाये बेसब्री से भौजी के आने का रास्ता देख रहा था| बड़के दादा ने भोजन के लिए कहा पर मैंने अनसुना कर दिया| कल रात को जो मैं ठन्डे पानी से नहाया था अब वो भी असर दिखाने लगा था| गाला भारी हो गया था और नाक बंद हो गई थी| बदन भी दर्द करने लगा था... पर दिल जिस्म की शिकायतों को अनसुना कर रहा था| जब घडी में तीन बजे और बड़के दादा पुनः खेत में जाने के लिए कहने लगे तब एक पल के लिए लगा की भौजी आज आएँगी ही नहीं| शायद सासु जी और ससुर जी ने उन्हीं रोक लिया होगा| मन थोड़ा मायूस हुआ पर दिल कह रहा था की थोड़ा सब्र कर वो शाम तक जर्रूर आ जाएँगी| दिमाग ने तैयारी कर ली थी की जैसे ही वो आएँगी मैं उन्हें कस के गले लगा लूँगा| खेर मैं बेमन से खेत में काम करने छाला गया|
बड़के दादा: अरे मुन्ना आज क्या बात है, तुम सुबह तो बड़े जोश से काम कर रहे थे| मुझे तो लग रहा था की तुम अकेले सारा खेत काट डालोगे, पर अब तुम ढीले पड़ गए| क्या हुआ?
मैं: जी सुबह-सुबह फूर्ति ज्यादा होती है और अभी थोड़ा थकावट लग रही है|
बड़के दादा: तो जाके थोड़ा आराम कर लो|
मैं: जी ठीक है|
मैं उठ के जाने लगा तभी बड़के दादा के फ़ोन की घंटी बज उठी| ये फ़ोन पिताजी ने किया था| बात होने के बाद बड़के दादा ने बताया की माँ, पिताजी और बड़की अम्मा कुछ दिन और रुकेंगे| पर हो सकता है की बड़की अम्मा कल लौट आएं| खेर मैं बहुत थक चूका था और कल रात से तो मानसिक और शारीरिक से पीड़ित था!
मैं खेत से घर आ रहा था तो रास्ते में मुझे माधुरी खड़ी दिखी, ऐसा लगा जैसे वो मेरा ही इन्तेजार कर रही हो| उसे देख के मेरा मन फिर से दुखी हो गया| मैं वहीँ खड़ा हो गया ... और दो सेकंड बाद वो ही चल के मेरे पास आई;
माधुरी: मानु जी....
मैं: बोल.... (मैंने मन में सोचा की एक तू ही बची थी ... तू भी ले ले मुझसे मजे|)
माधुरी: आपकी तबियत ठीक नहीं लग रही|
मैं: वो सब छोड़.... तू बता क्या चाइये तुझे?
माधुरी: आप बड़े रूखे तरीके से बात कर रहे हो|
मैं: देख मुझ में इतनी ताकत नहीं है की मैं तुझसे यहाँ खड़े रह के बात करूँ| तू साफ़-साफ़ ये बता की तुझे क्या चाहिए?
माधुरी: वो.... मेरे पिताजी ने जो लड़का पसंद किया है वो "अम्बाले" का है... लड़के वाले इस गाँव तक बरात लेके नहीं आ सकते क्योंकि..... यहाँ की हलात तो आप जानते ही हो| तो पिताजी ने ये तय किया है की शादी अम्बाला में मेरे मामा के घर पर ही होगी|
मैं: तो?
माधुरी: हमें कल ही निकलना है....और जाने से पहले मिअन चाहती हूँ की एक बार आप अगर....
मैं: अगर क्या?
माधुरी: मेरे साथ सेक्स कर लें तो.....
मैं: तेरा दिमाग ख़राब है क्या? तेरी शादी होने वाली है और तेरे अंदर अब भी वो कीड़ा कुलबुला रहा है? तुझ जैसी गिरी हुई लड़की मैंने अब तक नहीं देखि|
माधुरी: उस दिन आपने बड़े rough तरीके से किया था... तो इस बार....
मैं: मैं तुझसे प्यार नहीं करता ...जो तेरे साथ प्यार से वो सब करता| और वैसे भी वो सब करने के लिए तूने मुझे मजबूर किया था| तब मैं नहीं जानता था की तेरी असलियत क्या है... गर मैं जानता तो मरते मर जाता पर तुझे कभी हाथ नहीं लगता| भले ही तू मर जाती पर....मैं तेरा कहा कभी नहीं करता!
माधुरी: कैसी असलियत? (उसने अनजान बनते हुए कहा)
मैं: तू पुराने मास्टर साहब के लड़के को अपने साथ भगा कर ले गई थी ना?
माधुरी: नहीं...वो मुझे भगा के ....
मैं: चुप कर... मैं जानता हूँ कौन किसे भगा के ले गया|
माधुरी: नहीं...नहीं... आप मुझे गलत समझ रहे हैं!
मैं: मुझे ये बात तेरी ही सहेली ने बताई है...रसिका भाभी ने! अब कह दे की वो झूठ कह रहीं थी!
माधुरी का सर शर्म से झुक गया|
मैं: उस दिन जब मैं बीमार था और तू मुझसे मिलने आई थी... तब तूने जो कुछ कहा.... उसे सुन के एक पल के लिए मुझे विश्वास हो गया था की तू मुझसे सच में प्यार करती है| पर जब मुझे तेरी सारी असलियत पता चली तो मुझे एहसास हुआ की तू मुझसे कोई प्यार-व्यार नहीं करती| तुझे तो बस शहरी लड़कों का चस्का है|
माधुरी: (आँखों में आँसूं भरे) पर मैंने आपको अपना कुंवारापन सौंपा था!
मैं: वो इसलिए की तू उस लड़के के साथ उसी के किसी दोस्त के यहाँ ठहरी थी| वहां वो तेरे साथ तो कुछ कर नहीं सकता था...या शायद वो लड़का साफ़ दिल का होगा| जो आग उस लड़के से नहीं बुझी उसे बुझाने के लिए तू मेरे पास आ गई| और मैं भी बेवकूफ निकला जो तेरी बातों में आ गया! इस बात का मुझे ताउम्र गिला रहेगा की मैंने तेरे जैसी लड़की की बात में आके ये दुष्कर्म किया|
......और इतने से भी तेरा दिल नहीं भरा तो तूने उस बिचारे लड़के और उसके बाप को ही फँसा दिया और बेइज्जत करके गाँव से निकलवा दिया| अगर इतनी ही दया भाव था तो तू ने उसी लड़के से शादी क्यों नहीं की?
माधुरी: आप मुझे गलत समझ रहे हो... मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ|
मैं: हुंह....प्यार? तेरे प्यार की हद्द सिर्फ जिस्म तक है| खेर मुझे अब तुझसे कोई बात नहीं करनी.... और ना ही मैं तुझसे दुबारा मिलूंगा| GOODBYE !!!
मैं इतना कहके वहाँ से चला आया| मैं घर आके चारपाई पे पड़ गया और चादर ओढ़ ली|
पेट में चूहे दौड़ रहे थे ... बुखार लग रहा था... बदन टूट रहा था और खांसीजुखाम तो पहले से ही तंग कर रहे थे| मैंने सुना था की खाली पेट दवाई नहीं लेनी चाहिए पर क्या करता ...शहर होता तो मैं खुद किचन में घुस के कुछ बना लेता पर गाँव में तो तो नियम कानों इतने हैं की पूछो मत! मैं जैसे तैसे उठा और बड़े घर जाके अपने कमरे से क्रोसिन निकाली और खाली पेट खाली! मन में सोच जो होगा देखा जायेगा! पेट को समझाया की "यार शांत हो जा...शाम को भौजी आ जाएँगी तो वो कुछ बनाएंगी तब तेरी बूख मिटेगी|" पेट ने तो जैसे-तैसे समझौता कर लिया पर बिमारी थी की तंग करने से बाज नहीं आ रही थी| कुछ समय में मेरी आंख लग गई... और जब उठा तो रात के आठ बज रहे थे| अभी तक भौजी नहीं आईं? हाय अब मेरा क्या होगा? सारी उम्मीद खत्म हो गई थी| दिल टूट के टुकड़े-टुकड़े हो गया... खुद पे गुस्सा भी आया की बड़ा आया तीसमारखां ... लोग अपने पाँव पे कुल्हाड़ी मारते हैं मैंने तो पाँव ही कुल्हाड़ी पे दे मारा|
रसिका भाभी मुझे उठाने आईं पर मैं तो पहले ही जाग चूका था;
रसिका भाभी: चलो मानु जी... खाना खा लो?
मैं: (अकड़ते हुए) आपको मेरा जवाब मालूम है ना? फिर क्यों पूछ रहे हो?
रसिका भाभी: नहीं आने वाली आपकी भौजी! अब कम से कम पंद्रह दिन बाद आएँगी तो तब तक यूँ ही भूखे बैठे रहोगे?
मैं: आपको इससे क्या?
रसिका भाभी: दीदी आके मुझे डाटेंगी की मैंने तुम्हारा ख़याल नहीं रखा!
मैं: आपने तो हद्द से ज्यादा ही ख्याल रखा है... इतना ख्याल रखा की मेरी हालत ख़राब कर दी| आप जाओ और मुझे सोने दो|
रसिका भाभी: मानु जी ... मान जाओ पिछले तीन दिनों से आप्पने कुछ नहीं खाया और आज भी सारा दिन हो गया कुछ नहीं खाया| मेरा गुस्सा खाने पे मत निकालो और कृपा करके कुछ खा लो|
मैं: मुझे नहीं खाना!!
मैं वापस लेट गया, और चादर सर पे डाल ली| रसिका भाभी पिनाक के चली गईं अब मुझे चिंता हुई की मैं आज सोऊंगा कहाँ? आँगन में सोया तो यी फिर काल रात वाला सीन दोहरायेेंगी और आज तो मुझ में इतनी ताकत भी नहीं की मैं इनका सामना कर सकूँ| मैंने एक आईडिया निकला, मैं अपने कमरे में सोने के लिए चल दिया| अब दिक्कत ये थी की कमरे के दरवाजे में अंदर से चिटकनी नहीं थी जिससे मैं दरवाजा लॉक कर सकूँ! फिर उसका भी रास्ता धुंध लिया मैंने| कमरे में एक चारपाई पड़ी थी मैंने उसे दरवाजे के सामने इस तरह से बिछा दिया की दरवाजा खुले ही ना| जब मैं चारपाई पे लेट गया तो वजन से दरवाजा बहुत थोड़ा ही खुल पाता था .. उतने Gap से केवल एक हाथ ही अंदर आ सकता था| मेरे लेटने के करीब घण्टे भर बाद भाभी आ गईं और मुझे घर के अंदर ना पाके आवाज मारने लगी| मैं कुछ नहीं बोला... कुछ देर बाद उन्होंने कमरे की खिड़की जो दरवाजे के बगल में लगी थी उसमें से झाँका तो देखा अंदर मैं सो रहा था;
रसिका भाभी: हाय राम.... बहुत उस्ताद हो? दरवाजा बंद करके सो रहे हो? डर रहे हो की मैं कल वाली हरकत फिर दोहराऊंगी?
मैं कुछ नहीं बोला बस ऐसा जताया जैसे मैं गहरी नींद में हूँ|
रसिका भाभी: अच्छा बाबा मैं कुछ नहीं करुँगी... अब तो बहार आ जाओ| मैं यहाँ अकेले कैसे सोउंगी?
मैं कुछ नहीं बोला और आखिर में भाभी हार मान के आँगन में अपनी चारपाई पे लेट गईं| सुबह कब हुई पता ही नहीं चला| सुबह मुझे बड़के दादा ने जगाया| उन्होंने दरवाजे पे दस्तक दी तब जाके मैं उठा और मैंने दरवाजा खोला| घडी सुबह के साढ़े नौ बजा चुकी थी| शरीर बिलकुल जवाब दे चूका था... जरा सी भी ताकत नहीं बची थी| बड़के दादा मेरे पास बैठे और मेरे सर पे हाथ फेरा तब उन्हें पता चला की मुझे बुखार है| उन्होंने मुझे आराम करने की हिदायत दी और खेत पे चले गए| मैं वापस लेट गया, कुछ देर बाद वरुण मेरे पास आया| मैंने उसे ये कहके खुद से दूर कर दिया की "मुझे जुखाम-खांसी है... और अगर आप मेरे पास रहोगे तो आपको भी हो जायेगा|" वो बिचारा बच्चा चुप-चाप बाहर चला गया| ऐसा नहीं है की मैं उससे नफरत करता था, पर मैं नहीं चाहता था की वो मेरी वजह से बीमार पड़ जाए|
अभी मैंने चैन की सांस ली ही थी की इतने में भाभी आ गईं;
रसिका भाभी: मानु जी... ये गर्म-गर्म काली मिर्च वाली चाय पी लो, जुखाम-खांसी ठीक हो जायेगा|
मैं: No Thank You !
मैं और कुछ नहीं बोला और अपने दाहिने हाथ से आँखों को ढका और सोने लगा| घड़ी में करीब डेढ़ बजा होगा जब किसी ने मुझे जगाया| ये कोई और नहीं बड़की अम्मा थीं|
बड़की अम्मा: मुन्ना तुम्हें तो बुखार है?
मैं: अम्मा.... आप कब आए?
बड़की अम्मा: कुछ देर हुई बेटा| पर तुम ये बताओ की ये क्या हाल बना रखा है? तुम्हारे बड़के दादा तो कह रहे थे मुन्ना ने बहुत काम किया खेत में| आधा खेत तो उसने ही काटा है! लगता है बेटा कुछ ज्यादा ही म्हणत कर ली तुमने?
मैं: अरे नहीं अम्मा...वो तो बस...... खेर एक बात कहूँ अम्मा आज आपके हाथ की अदरक वाली चाय पीने का मन कर रहा है|
बड़की अम्मा: पर बेटा ये तो खाने का समय है?
मैं: अम्मा आप तो देख ही रहे हो की गाला भारी है... अदरक वाली चाय पियूँगा तो गले को आराम मिलेगा और ताकत भी आएगी| अभी आधा खेत भी तो बाकी है!
बड़की अम्मा: नहीं बेटा तुम आराम करो.....काम होता रहेगा|
मैं: नहीं अम्मा....आप देख ही रहे हो मौसम अचानक से ठंडा हो गया है| अगर बारिश हो गई तो बहुत नुक्सान होगा|
बड़की अम्मा: पर बेटा....
मैं: नहीं अम्मा ... प्लीज!!!
बड़की अम्मा: ठीक है बेटा ... पहले मैं चाय लाती हूँ|
मैं उठा और बड़की अम्मा के पीछे-पीछे जा पहुंचा| दरअसल मैं ये पक्का करना चाहता था की चाय अम्मा ही बनाएं| मैं छप्पर के नीचे तख़्त पे पसर गया| मेरी नजर रसोई पे थी... अम्मा ने हाथ-मुंह धोया और चाय बनाने घुस गईं| बड़के दादा ने मुझे खाने के लिए कहा पर मैंने ये बहन कर दिया की खाना खाने से सुस्ती आएगी और मुझे खेतों में काम करना है| रसिका भाभी ने मेरी शिाकायत करनी चाही;
बड़के दादा: मुन्ना कुछ तो खा लो?
मैं: नहीं दादा... अभी मन सिर्फ अम्मा के हाथ की चाय पीने का है| शहर में तो पेपरों के दिनों में मैं सिर्फ माँ की हाथ की चाय ही पीटा हूँ| ताकि दिन में नींद ना आये|
रसिका भाभी: पिताजी...मानु जी ने चार दिनों से.....
मैं: (बीच में बात काटते हुए) अम्मा... माँ और पिताजी कब आ रहे हैं?
बड़की अम्मा: बेटा वो परसों आएंगे|
मैं: तो आप अकेले आए हो?
बड़की अम्मा: नहीं बेटा ... तुम्हारे मामा का लड़का छोड़ गया था|
मैंने इसी तरह बातों का सील-सिला जारी रखा ताकि भाभी को बोलने का मौका ही ना मिले| मैंने अम्मा और दादा को बातों में असा उलझाया की रसिका भाभी को बात शुरू करने का कोई मौका ही नहीं मिला| बातें करते-करते हम खेत चले गए और मैंने अपनी पूरी ताकत कटाई में झौंक दी| शाम को वापस आए तो मेरी हालत नहीं थी की मैं कुछ कर सकूँ| मैं बस अपने कमरे में गया और वहां चारपाई पे पसर गया| सारा दिन मैंने खुद को बहुत सजा दी थी... बीमार होते हुए भी कटाई जारी रखी.... हाँ एक बात थी की अम्मा के हाथ की बानी चाय ने मुझ में कुछ तो जान फूंकी थी!!! करीब दो घंटे ककी कटाई रह गई थी बाकी सब मैंने और बड़के दादा ने मिलके काट डाला था| चारपाई पे लेटते ही मैं बेसुध होके सो गया| बस सुबह आँख खुली और अब मेरी तबियत बहुत खराब थी| बुखार से बदन तप रहा था .. गले से आवाज नहीं निकल रही थी क्योंकि खांसी और बलगम ने गला चोक कर दिया था| मैं बस एक चादर ओढ़े पड़ा था| दिमाग ने तो भौजी के आने की उम्मीद ही छोड़ दी थी पर दिल था जो अब भी कह रहा था की नहीं तेरा प्यार जर्रूर आएगा|
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Re: एक अनोखा बंधन
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अब आगे...
सुबह छः बजे मेरी आँख खुली| मैंने उठने की कोशिश की पर ताकत नहीं थी... बहुत कमजोरी थी! अब मूतने जाना था तो उठना तो पड़ता ही| जैसे-तैसे कर के सहारा लेते हुए मैं उठ बैठा और स्नानघर तक लड़खड़ाते हुए पहुँच गया| मूट के वापस आ रहा था तो अम्मा दिखीं;
बड़की अम्मा: अरे मुन्ना तुम्हारी तबियत तो और ख़राब लग रही है| तुम आज आराम करो! खेत में अब जयदा काम नहीं है|
मैं चुप-चाप चारपाई पे पीठ के बल लेट गया और उसके बाद क्या हुआ मुझे कुछ पता नहीं| आगे जो भी हुआ वो मुझे भौजी ने ही बताया था| तो मैं आगे की कहानी भौजी की जुबानी सुना रहा हूँ|
करीब दस बजे भौजी घर पहुंची और सब से पहले मुझे ढूंढने लगीं| उन्हें मैं ना तो खेतों में मिला...न प्रमुख आँगन में और ना ही उनके घर में| जब उन्होंने रसिका भाभी से पूछा तब पता चला की मैं अपने कमरे में हूँ| भौजी दौड़ती हुई कमरे में दाखिल हुईं और मुझे सोते हुए देख उन्होंने मुझे पुकारा; "सुनिए..........सुनिए.........सुनिए......" तीन बार पुकारने पर भी जब मैं कुछ नहीं बोला तो उन्हें चिंता हुई और उन्होंने मेरा हाथ पकड़ के हिलाया| मेरा शरीर बुखार से तप रहा था| उन्होंने मेरा हाथ पकड़ के हिलाया पर मैं तब भी नहीं उठा, तो भौजी के मन में बुरे ख्याल आने लगे की कहीं मैं मर तो नहीं गया| ये ख्याल आते ही उनके आँखों से आँसूं बह निकले| उन्होंने चीखते हुए कहा; "No.No.No….. you can’t do this to me! …Please…. Talk to me!!! Please …." इतना कहते उए वो बिलख-बिलख के रोने लगीं... उन्होंने मेरी छाती पे अपना कान लगा की मेरे दिल की धड़कन चेक की.... वो अब भी उनके लिए धड़क रहा था| वो तुरंत भाग के बहार आइन और लोटे में पानी ले के उसके कुछ छींटें मेरे मुख पे मारे|
पानी की ठंडी बूंदों ने मेरी चेतना को भांग किया और मैं बेहोशी की हालत से बाहर आया| जब आँख खुली तो शुरू-शुरू में सब धुंधला सा दिखा क्योंकि बहार से प्रकाश तेजी से आँखों को चुभ रहा था| जब गर्दन घुमा के भौजी को देखा तो दिल की धड़कन तेज हो गई| एल पल के लिए तो विश्वास ही नहीं हुआ की भौजी मेरे पास बैठीं हैं| मन तो किया की उन्हें कस के गले लगा लूँ पर शरीर साथ नहीं दे रहा था| भौजी को रोता हुआ देख के मन दुखा पर ये समझ नहीं आया की वो रो क्यों रहीं है| मेरा गाला सुख रहा था इसलिए शब्द बड़ी मुश्किल से बाहर आये; "आप.....रो क्यों......रहे हो?"
भौजी कुछ बोलीं नहीं बस मुझसे लिपट गई और फुट-फुट के रोने लगीं| मैंने उनकी पीठ को सहलाया और उन्हें चुप कराया| उन्होंने आँसूं पोछते हुए कहा; "आपने मेरी जान ही निकाल दी थी!"
मैं: क्यों..... मैंने क्या ....किया?
भौजी: आप बेहोश थे! और मैं कितना डर गई थी ... आपको नहीं पता|
मैं: हुंह.....
भौजी: ये क्या हालत बना ली है आपने? आपका शरीर बुखार से जल रहा है... आँखें सूजी हुई हैं... DARK CIRCLES हो गए हैं.... इतनी कमजोरी.... जब मेरे बिना रह नहीं सकते तो क्यों भेजा आपने मुझे?
मैं: मैं.... भी यही... सोच रहा था| पर....
भौजी: पहले आप पानी पीओ....
भौजी ने मुझे सहारा दे के बैठाया और पानी पिलाया| पर सच में अब मुझ में वो शक्ति नहीं थी की मैं बैठ पाऊँ इसलिए मैं पुनः लेट गया| भौजी: अब मैं आपको छोड़के कहीं नहीं जाऊंगी....
इतने में रसिका भाभी आ गईं;
भौजी: क्यों छोटी.... तूने ध्यान नहीं रखा इनका? और आप बताओ की आखिर हुआ क्या है?
मैं कुछ नहीं बोला बस अपना मुँह फेर लिया.... भौजी समझ गईं की कुछ तो बात है जो मैं उनसे छुपा रहा हूँ| भौजी ने रसिका भाभी से कहा की वो नेहा को देखें वो कहाँ है?
भौजी: अब आप बताओ क्या बात है?
मैं कुछ नहीं बोला ...
भौजी: आपको मेरी कसम...मुझसे कुछ मत छुपाना!
अब मुझे उनकी कसम दी गई थी तो मैंने उन्हें सारी बात बता दी| ये सब सुन के भौजी का चेहरा देखने लायक था| गुस्से से उनका मुँह तमतमाया हुआ था| उन्होंने गरज के आवाज लगाईं;
भौजी: रसिका !!! रसिका !!!
मैं: आप प्लीज शांत हो जाओ...सीन मत CREATE करो!
भौजी: मैं आज इसे नहीं छोडूंगी|
भौजी की सांसें तेज हो गईं थी.. वो इतना गुस्से में थी की सामने वाले को चीर दें और आज उनकी बिजली रसिका नाम की बेल पर गिरने वाली थी जिसने उनके प्यारे से घरौंदे को अपने वष में करने की कोशिश की थी|
इतने में रसिका भाभी नेहा को लेके आ गईं, और भौजी को तमतमाया देख उनकी फटी जर्रूर होगी|
भौजी: तेरी हिम्मत कैसे हुई इनहें छूने की? ये सिर्फ मेरे हैं!!! और अगर तू इनके आस पास भी भटकी ..या आँख उठा के देखा तो मैं तेरी चमड़ी उधेड़ दूँगी!!
भौजी का ये रोद्र रूप देख के बेचारी नेहा सहम गई और आके मेरी चारपाई के नीचे छिप गई| मैं भी हैरान था की भौजी मुझे लेके इतनी Possessive हैं!!! और सच कहूँ तो मैं भी थोड़ा डर गया था| मैं परेशान था की भौजी ने बिना डरे रसिका भाभी से ये कह दिया की "ये मेरे है"... अब अगर रसिका भाभी ने जलन के मारे ये बात किसी से कह दी तो? रसिका भाभी मोटे-मोटे आँसूं गिराते हुए वहाँ से चली गईं और इधर भौजी करीब दो मिनट तक आँगन में अकेली कड़ी रहीं| वो सर झुकाये कुछ सोच रहीं थीं...फिर वो अंदर कमरे में आई| मैं कुछ नहीं बोला...बस उन्हें एकटक देख रहा था| भौजी मुझसे कुछ नहीं बोलीं, फिर अचानक उठीं और मुझसे पूछा; "आपका पर्स कहाँ है?" मैंने इशारे से उन्हें बताय की दरवाजे के पीछे टंगी पैंट की जेब में है| भौजी ने पर्स निकला और उसमें कुछ ढूंढने लगीं| फिर उन्होंने पर्स से एक कागज का टुकड़ा निकला और उसे लेके बहार चलीं गई| मुझे याद आया की नेहा चारपाई के नीचे छुपी है| मैंने उसे पुकारा और उसे बहार निकलने को बोला| नेहा बहार आई तो सहमी थी और रो रही थी| मैंने उसके आँसूं पोछे; उसने अपनी प्यारी सी आवाज में पूछा, "पापा....मम्मी च्जची को डाँट क्यों रही थी?" मैंने उसे कहा; " बेटा आपकी चाची ने कुछ गलत काम किया इसलिए उन्हें झाड़ पड़ी| आप घबराओ मत और यहाँ कुर्सी पे बैठो|" नेहा ने मेरी बगल में लेटना चाहा तो मैंने उसे ये कह के मना कर दिया की, " बेटा मुझे खांसी-जुखाम है... आप मुझसे थोड़ा दूर रहो नहीं तो आपको भी हो जायेगा?" नेहा ने अच्छे बच्चे की तरह मेरी बात मान ली और सामने पड़ी कुर्सी पे बैठ गई और वहीँ से मेरे साथ "चिड़िया उडी" खेलने लगी|
करीब पांच मिनट बाद भौजी लौटीं और अब वो नार्मल लग रहीं थीं| एक बार फिर उन्हें देख नेहा डर गई और मेरे पास आके बैठ गई|
भौजी कुर्सी पे बैठ गई और मुझसे बोलीं;
भौजी: थोड़ी देर में डॉक्टर साहब आ रहे हैं|
दरअसल भौजी नेमेरे पर्स से डॉक्टर का नंबर ढूंढा था ओर डॉक्टर साहब को फ़ोन कर के बुला लिया था|
मैं: ठीेक है| (मैंने कोई बहस नहीं की)
भौजी: नेहा चलो आप कपडे बदल लो और फिर पापा के पास सो जाना तब तक मैं खाना बनाती हूँ|
मैं: नहीं...नेहा बेटा आप मेरे साथ मत सोना!
भौजी: क्यों?
मैं: मुझे जुखाम-खांसी है और मैं नहीं चाहता की नेहा बीमार पड़ जाए|
भौजी: कुछ नहीं होगा!
मैं: नहीं ...
भौजी समझ गई की उनके बर्ताव ना केवल नेहा डरी हुई है बल्कि मैं भी नाराज हूँ| पर अब भी उनका गुस्सा शांत नहीं हुआ था और वो अगर बहस करती तो बात बिगड़ जाती| इसलिए वो चुप-चाप खाना बनाने चली गईं| नेहा डर के मारे कहीं नहीं गई और मेरे पास बैठ के मुझे कंपनी देने लगी और बीच-बीच में अपने प्यारे-प्यारे सवालों से मुझे हँसाती रही| करीब आधे घंटे बाद डॉक्टर साहब आये और मेरे पास कुर्सी पे बैठ गए| उन्हें देखते ही नेहा भौजी को बुलाने चली गई|
डॉक्टर साहब: Hey Friend….How are you feeling now?
मेरे जवाब देने से पहले ही भौजी आ गईं और मेरे सिरहाने आके बैठ गईं| मैंने उनकी ओर देखते हुए जवाब दिया:
मैं: Well I’m feeling better…Cause I’m in safe hands now!
डॉक्टर साहब: Oh! Okay your bhabhi told me that you haven’t eaten anything since she was gone to her Mom’s.
मैं: Yeah….. I was missing her!
भौजी हमारी बातें समझ चुकी थीं ओर उनके मुख पे मैंने वही प्यारी मुस्कान देखी| उन्होंने बीच में ही अपनी बात जोड़ दी ओर मेरी बात को नया मोड़ दे दिया;
भौजी: डॉक्टर साहब दरअसल इन्हें नेहा की याद बहुत आई| इनका उसके साथ लगाव इतना है की क्या बताऊँ| वहाँ नेहा का भी यही हाल था...बार बार इनके बारे में पूछती थी| रोने लगती थी ...की मुझे इनके पास जाना है|
भौजी ने नेहा की आध लेके अपने दिल के बात सामने रख दी| मैं हैरान था की एक तरफ तो भौजी खुद रसिका भाभी के सामने हमारे रिश्ते को उजागर कर रहीं थी ओर दूसरी तरफ अभी डॉक्टर साहब के सामने जब मैंने कुछ कहँ अ चाहा तो उन्होंने बातों को घुमा दिया|
डॉक्टर साहब: यार तुम्हें कमजोरी बहुत हो गई है| मैं तुम्हें एक इंजेक्शन दे रहा हूँ| इससे कमजोरी कम होगी पर हाँ जरा चलने फिरने में ध्यान रखना कहीं गिर ना जाओ|
भौजी: आप चिंता ना करें डॉक्टर साहब, अब मैं आ गईं हूँ तो मैं मैं इनका पूरा ध्यान रखूँगी|
डॉक्टर साहब: That's Good ! ठन्डे पानी से नहाना मत ओर ठंडी चीजों से परहेज करना| ओर ये दवाइयाँ समय पे लेते रहना| वैसे इस इंजेक्शन से बुखार कम हो जायेगा बाकी काम ये दवाइयाँ कर देंगी| हो सकता है की रात में बुखार चढ़ जाए...ऐसे में आपको (भौजी) को थोड़ा ध्यान रखना होगा| अगर बुखार चढ़ गया तो ठन्डे पानी की पत्तियां बदलते रहना ओर मुझे कल फ़ोन करके जर्रूर बुलाना नहीं तो बिमारी बढ़ जाएगी|
भौजी: जी डॉक्टर साहब|
मैं: अच्छा डॉक्टर साहब एक बात आपसे पूछनी है? आपने तो देखा ही है की मुझे जुखाम-खांसी है, जो की एक COMMUNICABLE DISESASE है और ऐसे में मैं नेहा को खुद से दूर रखता हूँ तो इन्हें (भौजी को) बड़ी तकलीफ होती है| मैं कहता हूँ की बच्ची को भी ये बिमारी लग जाएगी तो ये कहतीं हैं की कुछ नहीं होगा| अब आप ही इन्हें (भौजी को) समझाइये!
डॉक्टर साहब: देखिये ये कोई बड़ी बिमारी नहीं है पर फिर भी एक इंसान से दूसरे को बड़ी आसानी से लग जाती है| जल्द ही मानु ठीक हो जायेगा तब आप अपने चाचा के साथ खूब खेलना| (उन्होंने नेहा के सर पे हाथ फेरते हुए कहा)
मैंने मेरे सिरहाने पड़े पर्स से ५००/- रूपए निकाल के डॉक्टर को दिए तो भौजी मुझे रोकने लगीं की मैं दूँगी तो मैंने जिद्द करके दे दिए| भौजी का मुँह बन गया! डॉक्टर साहब तो चले गए ....पर यहाँ मेरे ओर भौजी में शीत युद्ध का माहोल बन गया|
खेर ये युद्ध कम शरारत ज्यादा थी...भौजी ने शिकायती लहजे में कहा;
भौजी: आपने पैसे क्यों दिए?
मैं: क्यों क्या हुआ?
भौजी: मैंने उन्हें बुलाया था...पैसे मुझे देने थे ओर आप.....
मैं: अरे बाबा, पैसे मैं दूँ या आप बात तो एक ही है|
भौजी: नहीं ...आप मुझे कभी भी कुछ नहीं करने देते|
मैं: अच्छा बाबा...अगली बार आप दे देना|
भौजी: मतलब अगली बार फिर बीमार पड़ोगे?
भौजी की इस बात पे हम दोनों खिल-खिला के हंस पड़े| वाकई कई दिनों बाद मैं हँसा था....!!! दोपहर को उन्हीं के हाथ का बना खाना मैंने खाया जिसे उन्होंने मुझे खुद खिलाया| मैं उनसे कहा भी की मैं खुद खा लूंगा पर वो नहीं मानी| खाने में, अरहर की दाल, चावल, रोटी और भिन्डी की सब्जी थी| अब हमारे गाँव में यही म मिलता है तो क्या करें! खाना मैं कम ही खा रहा था क्योंकि पेट को आदत नहीं थी इतना प्यार भरा खाना खाने की! शाम को भौजी ने चाय बनाई और मुझे पिलाई...घर में बड़के दादा और अम्मा भी खुश थे| क्योंकि एक तो मैंने काम बहुत किया था ऊपर से भौजी की वजह से मैं खुश था| शाम को सब साथ बैठे थे और शादी में क्या-क्या हुआ उसकी बातें चल रही थी| रसिका भाभी भी पास ही बैठी थीं पर वो कुछ बोल नहीं रही थी, शायद भौजी का खौफ अब भी उनके दिल में था| रात को सबने भोजन एक साथ बड़े घर में खाया क्योंकि मैं कमजोरी महसूस कर रहा था और मैं अकेला खाता इसलिए अम्मा, बड़के दादा सब मेरे पास ही बैठ के खाना खाने लगे| हाँ एक बात और अब बड़के दादा और बड़की अम्मा को ये बात साफ़ पता चल गई थी की मैं खाना भौजी की वजह से नहीं खा रहा था,पर वो ये बात नहीं जानते थे की रसिका भाभी ने मेरे साथ कैसा अभद्र व्यवहार किया था| उन्होंने जो सवाल पूछा वो कुछ इस प्रकार था;
"मुन्ना ...अब हम समझे तुम खाना क्यों नहीं खा रहे थे? अपनी भौजी को याद करके तुमने अन्न-जल त्याग दिया था| बेटा प्यार...मोह ठीक है.... पर अधिक हो जाए तो कष्ट अवश्य देता है| खेर ये बात तो तुम समझ ही गए होगे|" इस बात पे सब खाना खा के हटे और मैं अपनी चाराई पे फ़ैल गया|
कुछ समय बाद भौजी आईं, और मेरे सिराहने बैठ गईं... फिर धीरे-धीरे उन्होंने मेरे सर को सहलाना शुरू कर दिया|
अब आगे...
सुबह छः बजे मेरी आँख खुली| मैंने उठने की कोशिश की पर ताकत नहीं थी... बहुत कमजोरी थी! अब मूतने जाना था तो उठना तो पड़ता ही| जैसे-तैसे कर के सहारा लेते हुए मैं उठ बैठा और स्नानघर तक लड़खड़ाते हुए पहुँच गया| मूट के वापस आ रहा था तो अम्मा दिखीं;
बड़की अम्मा: अरे मुन्ना तुम्हारी तबियत तो और ख़राब लग रही है| तुम आज आराम करो! खेत में अब जयदा काम नहीं है|
मैं चुप-चाप चारपाई पे पीठ के बल लेट गया और उसके बाद क्या हुआ मुझे कुछ पता नहीं| आगे जो भी हुआ वो मुझे भौजी ने ही बताया था| तो मैं आगे की कहानी भौजी की जुबानी सुना रहा हूँ|
करीब दस बजे भौजी घर पहुंची और सब से पहले मुझे ढूंढने लगीं| उन्हें मैं ना तो खेतों में मिला...न प्रमुख आँगन में और ना ही उनके घर में| जब उन्होंने रसिका भाभी से पूछा तब पता चला की मैं अपने कमरे में हूँ| भौजी दौड़ती हुई कमरे में दाखिल हुईं और मुझे सोते हुए देख उन्होंने मुझे पुकारा; "सुनिए..........सुनिए.........सुनिए......" तीन बार पुकारने पर भी जब मैं कुछ नहीं बोला तो उन्हें चिंता हुई और उन्होंने मेरा हाथ पकड़ के हिलाया| मेरा शरीर बुखार से तप रहा था| उन्होंने मेरा हाथ पकड़ के हिलाया पर मैं तब भी नहीं उठा, तो भौजी के मन में बुरे ख्याल आने लगे की कहीं मैं मर तो नहीं गया| ये ख्याल आते ही उनके आँखों से आँसूं बह निकले| उन्होंने चीखते हुए कहा; "No.No.No….. you can’t do this to me! …Please…. Talk to me!!! Please …." इतना कहते उए वो बिलख-बिलख के रोने लगीं... उन्होंने मेरी छाती पे अपना कान लगा की मेरे दिल की धड़कन चेक की.... वो अब भी उनके लिए धड़क रहा था| वो तुरंत भाग के बहार आइन और लोटे में पानी ले के उसके कुछ छींटें मेरे मुख पे मारे|
पानी की ठंडी बूंदों ने मेरी चेतना को भांग किया और मैं बेहोशी की हालत से बाहर आया| जब आँख खुली तो शुरू-शुरू में सब धुंधला सा दिखा क्योंकि बहार से प्रकाश तेजी से आँखों को चुभ रहा था| जब गर्दन घुमा के भौजी को देखा तो दिल की धड़कन तेज हो गई| एल पल के लिए तो विश्वास ही नहीं हुआ की भौजी मेरे पास बैठीं हैं| मन तो किया की उन्हें कस के गले लगा लूँ पर शरीर साथ नहीं दे रहा था| भौजी को रोता हुआ देख के मन दुखा पर ये समझ नहीं आया की वो रो क्यों रहीं है| मेरा गाला सुख रहा था इसलिए शब्द बड़ी मुश्किल से बाहर आये; "आप.....रो क्यों......रहे हो?"
भौजी कुछ बोलीं नहीं बस मुझसे लिपट गई और फुट-फुट के रोने लगीं| मैंने उनकी पीठ को सहलाया और उन्हें चुप कराया| उन्होंने आँसूं पोछते हुए कहा; "आपने मेरी जान ही निकाल दी थी!"
मैं: क्यों..... मैंने क्या ....किया?
भौजी: आप बेहोश थे! और मैं कितना डर गई थी ... आपको नहीं पता|
मैं: हुंह.....
भौजी: ये क्या हालत बना ली है आपने? आपका शरीर बुखार से जल रहा है... आँखें सूजी हुई हैं... DARK CIRCLES हो गए हैं.... इतनी कमजोरी.... जब मेरे बिना रह नहीं सकते तो क्यों भेजा आपने मुझे?
मैं: मैं.... भी यही... सोच रहा था| पर....
भौजी: पहले आप पानी पीओ....
भौजी ने मुझे सहारा दे के बैठाया और पानी पिलाया| पर सच में अब मुझ में वो शक्ति नहीं थी की मैं बैठ पाऊँ इसलिए मैं पुनः लेट गया| भौजी: अब मैं आपको छोड़के कहीं नहीं जाऊंगी....
इतने में रसिका भाभी आ गईं;
भौजी: क्यों छोटी.... तूने ध्यान नहीं रखा इनका? और आप बताओ की आखिर हुआ क्या है?
मैं कुछ नहीं बोला बस अपना मुँह फेर लिया.... भौजी समझ गईं की कुछ तो बात है जो मैं उनसे छुपा रहा हूँ| भौजी ने रसिका भाभी से कहा की वो नेहा को देखें वो कहाँ है?
भौजी: अब आप बताओ क्या बात है?
मैं कुछ नहीं बोला ...
भौजी: आपको मेरी कसम...मुझसे कुछ मत छुपाना!
अब मुझे उनकी कसम दी गई थी तो मैंने उन्हें सारी बात बता दी| ये सब सुन के भौजी का चेहरा देखने लायक था| गुस्से से उनका मुँह तमतमाया हुआ था| उन्होंने गरज के आवाज लगाईं;
भौजी: रसिका !!! रसिका !!!
मैं: आप प्लीज शांत हो जाओ...सीन मत CREATE करो!
भौजी: मैं आज इसे नहीं छोडूंगी|
भौजी की सांसें तेज हो गईं थी.. वो इतना गुस्से में थी की सामने वाले को चीर दें और आज उनकी बिजली रसिका नाम की बेल पर गिरने वाली थी जिसने उनके प्यारे से घरौंदे को अपने वष में करने की कोशिश की थी|
इतने में रसिका भाभी नेहा को लेके आ गईं, और भौजी को तमतमाया देख उनकी फटी जर्रूर होगी|
भौजी: तेरी हिम्मत कैसे हुई इनहें छूने की? ये सिर्फ मेरे हैं!!! और अगर तू इनके आस पास भी भटकी ..या आँख उठा के देखा तो मैं तेरी चमड़ी उधेड़ दूँगी!!
भौजी का ये रोद्र रूप देख के बेचारी नेहा सहम गई और आके मेरी चारपाई के नीचे छिप गई| मैं भी हैरान था की भौजी मुझे लेके इतनी Possessive हैं!!! और सच कहूँ तो मैं भी थोड़ा डर गया था| मैं परेशान था की भौजी ने बिना डरे रसिका भाभी से ये कह दिया की "ये मेरे है"... अब अगर रसिका भाभी ने जलन के मारे ये बात किसी से कह दी तो? रसिका भाभी मोटे-मोटे आँसूं गिराते हुए वहाँ से चली गईं और इधर भौजी करीब दो मिनट तक आँगन में अकेली कड़ी रहीं| वो सर झुकाये कुछ सोच रहीं थीं...फिर वो अंदर कमरे में आई| मैं कुछ नहीं बोला...बस उन्हें एकटक देख रहा था| भौजी मुझसे कुछ नहीं बोलीं, फिर अचानक उठीं और मुझसे पूछा; "आपका पर्स कहाँ है?" मैंने इशारे से उन्हें बताय की दरवाजे के पीछे टंगी पैंट की जेब में है| भौजी ने पर्स निकला और उसमें कुछ ढूंढने लगीं| फिर उन्होंने पर्स से एक कागज का टुकड़ा निकला और उसे लेके बहार चलीं गई| मुझे याद आया की नेहा चारपाई के नीचे छुपी है| मैंने उसे पुकारा और उसे बहार निकलने को बोला| नेहा बहार आई तो सहमी थी और रो रही थी| मैंने उसके आँसूं पोछे; उसने अपनी प्यारी सी आवाज में पूछा, "पापा....मम्मी च्जची को डाँट क्यों रही थी?" मैंने उसे कहा; " बेटा आपकी चाची ने कुछ गलत काम किया इसलिए उन्हें झाड़ पड़ी| आप घबराओ मत और यहाँ कुर्सी पे बैठो|" नेहा ने मेरी बगल में लेटना चाहा तो मैंने उसे ये कह के मना कर दिया की, " बेटा मुझे खांसी-जुखाम है... आप मुझसे थोड़ा दूर रहो नहीं तो आपको भी हो जायेगा?" नेहा ने अच्छे बच्चे की तरह मेरी बात मान ली और सामने पड़ी कुर्सी पे बैठ गई और वहीँ से मेरे साथ "चिड़िया उडी" खेलने लगी|
करीब पांच मिनट बाद भौजी लौटीं और अब वो नार्मल लग रहीं थीं| एक बार फिर उन्हें देख नेहा डर गई और मेरे पास आके बैठ गई|
भौजी कुर्सी पे बैठ गई और मुझसे बोलीं;
भौजी: थोड़ी देर में डॉक्टर साहब आ रहे हैं|
दरअसल भौजी नेमेरे पर्स से डॉक्टर का नंबर ढूंढा था ओर डॉक्टर साहब को फ़ोन कर के बुला लिया था|
मैं: ठीेक है| (मैंने कोई बहस नहीं की)
भौजी: नेहा चलो आप कपडे बदल लो और फिर पापा के पास सो जाना तब तक मैं खाना बनाती हूँ|
मैं: नहीं...नेहा बेटा आप मेरे साथ मत सोना!
भौजी: क्यों?
मैं: मुझे जुखाम-खांसी है और मैं नहीं चाहता की नेहा बीमार पड़ जाए|
भौजी: कुछ नहीं होगा!
मैं: नहीं ...
भौजी समझ गई की उनके बर्ताव ना केवल नेहा डरी हुई है बल्कि मैं भी नाराज हूँ| पर अब भी उनका गुस्सा शांत नहीं हुआ था और वो अगर बहस करती तो बात बिगड़ जाती| इसलिए वो चुप-चाप खाना बनाने चली गईं| नेहा डर के मारे कहीं नहीं गई और मेरे पास बैठ के मुझे कंपनी देने लगी और बीच-बीच में अपने प्यारे-प्यारे सवालों से मुझे हँसाती रही| करीब आधे घंटे बाद डॉक्टर साहब आये और मेरे पास कुर्सी पे बैठ गए| उन्हें देखते ही नेहा भौजी को बुलाने चली गई|
डॉक्टर साहब: Hey Friend….How are you feeling now?
मेरे जवाब देने से पहले ही भौजी आ गईं और मेरे सिरहाने आके बैठ गईं| मैंने उनकी ओर देखते हुए जवाब दिया:
मैं: Well I’m feeling better…Cause I’m in safe hands now!
डॉक्टर साहब: Oh! Okay your bhabhi told me that you haven’t eaten anything since she was gone to her Mom’s.
मैं: Yeah….. I was missing her!
भौजी हमारी बातें समझ चुकी थीं ओर उनके मुख पे मैंने वही प्यारी मुस्कान देखी| उन्होंने बीच में ही अपनी बात जोड़ दी ओर मेरी बात को नया मोड़ दे दिया;
भौजी: डॉक्टर साहब दरअसल इन्हें नेहा की याद बहुत आई| इनका उसके साथ लगाव इतना है की क्या बताऊँ| वहाँ नेहा का भी यही हाल था...बार बार इनके बारे में पूछती थी| रोने लगती थी ...की मुझे इनके पास जाना है|
भौजी ने नेहा की आध लेके अपने दिल के बात सामने रख दी| मैं हैरान था की एक तरफ तो भौजी खुद रसिका भाभी के सामने हमारे रिश्ते को उजागर कर रहीं थी ओर दूसरी तरफ अभी डॉक्टर साहब के सामने जब मैंने कुछ कहँ अ चाहा तो उन्होंने बातों को घुमा दिया|
डॉक्टर साहब: यार तुम्हें कमजोरी बहुत हो गई है| मैं तुम्हें एक इंजेक्शन दे रहा हूँ| इससे कमजोरी कम होगी पर हाँ जरा चलने फिरने में ध्यान रखना कहीं गिर ना जाओ|
भौजी: आप चिंता ना करें डॉक्टर साहब, अब मैं आ गईं हूँ तो मैं मैं इनका पूरा ध्यान रखूँगी|
डॉक्टर साहब: That's Good ! ठन्डे पानी से नहाना मत ओर ठंडी चीजों से परहेज करना| ओर ये दवाइयाँ समय पे लेते रहना| वैसे इस इंजेक्शन से बुखार कम हो जायेगा बाकी काम ये दवाइयाँ कर देंगी| हो सकता है की रात में बुखार चढ़ जाए...ऐसे में आपको (भौजी) को थोड़ा ध्यान रखना होगा| अगर बुखार चढ़ गया तो ठन्डे पानी की पत्तियां बदलते रहना ओर मुझे कल फ़ोन करके जर्रूर बुलाना नहीं तो बिमारी बढ़ जाएगी|
भौजी: जी डॉक्टर साहब|
मैं: अच्छा डॉक्टर साहब एक बात आपसे पूछनी है? आपने तो देखा ही है की मुझे जुखाम-खांसी है, जो की एक COMMUNICABLE DISESASE है और ऐसे में मैं नेहा को खुद से दूर रखता हूँ तो इन्हें (भौजी को) बड़ी तकलीफ होती है| मैं कहता हूँ की बच्ची को भी ये बिमारी लग जाएगी तो ये कहतीं हैं की कुछ नहीं होगा| अब आप ही इन्हें (भौजी को) समझाइये!
डॉक्टर साहब: देखिये ये कोई बड़ी बिमारी नहीं है पर फिर भी एक इंसान से दूसरे को बड़ी आसानी से लग जाती है| जल्द ही मानु ठीक हो जायेगा तब आप अपने चाचा के साथ खूब खेलना| (उन्होंने नेहा के सर पे हाथ फेरते हुए कहा)
मैंने मेरे सिरहाने पड़े पर्स से ५००/- रूपए निकाल के डॉक्टर को दिए तो भौजी मुझे रोकने लगीं की मैं दूँगी तो मैंने जिद्द करके दे दिए| भौजी का मुँह बन गया! डॉक्टर साहब तो चले गए ....पर यहाँ मेरे ओर भौजी में शीत युद्ध का माहोल बन गया|
खेर ये युद्ध कम शरारत ज्यादा थी...भौजी ने शिकायती लहजे में कहा;
भौजी: आपने पैसे क्यों दिए?
मैं: क्यों क्या हुआ?
भौजी: मैंने उन्हें बुलाया था...पैसे मुझे देने थे ओर आप.....
मैं: अरे बाबा, पैसे मैं दूँ या आप बात तो एक ही है|
भौजी: नहीं ...आप मुझे कभी भी कुछ नहीं करने देते|
मैं: अच्छा बाबा...अगली बार आप दे देना|
भौजी: मतलब अगली बार फिर बीमार पड़ोगे?
भौजी की इस बात पे हम दोनों खिल-खिला के हंस पड़े| वाकई कई दिनों बाद मैं हँसा था....!!! दोपहर को उन्हीं के हाथ का बना खाना मैंने खाया जिसे उन्होंने मुझे खुद खिलाया| मैं उनसे कहा भी की मैं खुद खा लूंगा पर वो नहीं मानी| खाने में, अरहर की दाल, चावल, रोटी और भिन्डी की सब्जी थी| अब हमारे गाँव में यही म मिलता है तो क्या करें! खाना मैं कम ही खा रहा था क्योंकि पेट को आदत नहीं थी इतना प्यार भरा खाना खाने की! शाम को भौजी ने चाय बनाई और मुझे पिलाई...घर में बड़के दादा और अम्मा भी खुश थे| क्योंकि एक तो मैंने काम बहुत किया था ऊपर से भौजी की वजह से मैं खुश था| शाम को सब साथ बैठे थे और शादी में क्या-क्या हुआ उसकी बातें चल रही थी| रसिका भाभी भी पास ही बैठी थीं पर वो कुछ बोल नहीं रही थी, शायद भौजी का खौफ अब भी उनके दिल में था| रात को सबने भोजन एक साथ बड़े घर में खाया क्योंकि मैं कमजोरी महसूस कर रहा था और मैं अकेला खाता इसलिए अम्मा, बड़के दादा सब मेरे पास ही बैठ के खाना खाने लगे| हाँ एक बात और अब बड़के दादा और बड़की अम्मा को ये बात साफ़ पता चल गई थी की मैं खाना भौजी की वजह से नहीं खा रहा था,पर वो ये बात नहीं जानते थे की रसिका भाभी ने मेरे साथ कैसा अभद्र व्यवहार किया था| उन्होंने जो सवाल पूछा वो कुछ इस प्रकार था;
"मुन्ना ...अब हम समझे तुम खाना क्यों नहीं खा रहे थे? अपनी भौजी को याद करके तुमने अन्न-जल त्याग दिया था| बेटा प्यार...मोह ठीक है.... पर अधिक हो जाए तो कष्ट अवश्य देता है| खेर ये बात तो तुम समझ ही गए होगे|" इस बात पे सब खाना खा के हटे और मैं अपनी चाराई पे फ़ैल गया|
कुछ समय बाद भौजी आईं, और मेरे सिराहने बैठ गईं... फिर धीरे-धीरे उन्होंने मेरे सर को सहलाना शुरू कर दिया|