57
करीब पांच बजे भौजी फिर उठीं और मेरा बुखार चेक करने लगीं| जैसे ही उनके हाथ का मुझे स्पर्श हुआ मैं एक दम से जग गया|
भौजी: अरे ...सॉरी मैंने आपको उठा दिया|
मैं: कोई बात नहीं...मैं वैसे भी उठने वाला था|
भौजी: अभी पौने पाँच हुए हैं.... आप सो जाओ|
मैं: अरे बाबा मैं बहुत तारो-ताजा महसूस कर रहा हूँ|
भौजी: आप मेरी बात कभी नहीं मानते|
मैं: क्या करें! वैसे आप कुछ भूल नहीं रहे?
भौजी: क्या?....... ओह! आपकी Good Morning Kiss ना.... वो अभी नहीं मिलेगी|
मैं: क्यों?
भौजी: आप मेरी बात जो नहीं मानते|
मैं: हाय तो आपकी Good Morning Kiss के लिए वापस सो जाएँ?
भौजी: हाँ..... तब मिलेगी|
मैं: चलो ठीक है ना तो ना सही... पर देख लो अगर अभी नहीं दी तो सारे दिन ना लूंगा...और ना ही लेने दूँगा|?
भौजी: ठीक है! देखते हैं!
मैं उठा...ब्रश, कुल्ला, sponge bath लिया और कपडे बदल के तैयार हो गया| चाय पी... और तभी माँ ने कमरे में तंगी टी-शर्ट देख ली|
माँ: अरे ये टी-शर्ट किसकी है?
मैं: जी मेरी|
माँ: तूने कब ली ये टी-शर्ट?
मैं: जी ...वो.....
इतने में भौजी नाश्ता लेके आ गईं;
भौजी: माँ.... वो मैंने दी है| (आज पहली बार उन्होंने माँ के सामने उन्हें माँ कहा था|)
भौजी के मुँह से माँ सुन के माँ को थोड़ा अलग लगा! पर उन्होंने कुछ कहा नहीं| पर उनके चेहरे पे मुझे कुछ अलग भाव दिखे| शायद उन्हें कभी उम्मीद नहीं थी की भौजी उन्हें माँ कह के पुकारेंगी|
माँ: बहु... क्यों लाइ तू इसके लिए टी-शर्ट? जर्रूर इस नालायक ने ही माँगी होगी| क्यों रे लाडसाहब?
भौजी: नहीं माँ....वो घर में माँ और पिताजी इनसे मिलना चाहते थे| आखिर इनके कहने पर ही तो मैं मायके गई थी| अब इनसे मिलना तो हो नहीं पाया इसलिए माँ-पिताजी ने मुझे कहा की तुम एक अच्छी सी टी-शर्ट गिफ्ट कर देना| तो उस दिन मैं अपने भाई के साथ बाजार गई थी| वहाँ मुझे ये टी-शर्ट पसंद आई तो मैं ले आई|
माँ: तू झूठ तो नहीं बोल रही ना?
भौजी: नहीं माँ
माँ: बेटा क्या जर्रूरत थी पैसे खर्च करने की|
भौजी: माँ ये तो प्यार है...... अम्म्म….. माँ-पिताजी का!
(भौजी ने जैसे-तैसे बात को संभाला|)
मुझे नहीं पता की माँ के दिल में उस वक़्त क्या चल रहा था| पर हाँ एक बात तो तय थी की माँ को ये बात कहीं न कहीं लग चुकी थी|कुछ देर बाद माँ अपने कामों में लग गई और मैं वहीँ बैठ रहा| करीब दस बजे बड़की अम्मा आईं उन्हें बाजार जाना था किसी काम से तो वो माँ को साथ ले गईं| पिताजी और नादके दादा तो पहले से ही खेत पर थे| घर पे अब, मैं, भौजी, वरुण और रसिका भाभी ही बचे थे| मैं रसोई के पास छप्पर के नीचे तख़्त पे बैठा था| भौजी मेरे पास बैठीं थीं और रसिका भाभी नहा के अभी-अभी निकलीं थीं| वो वहीँ खड़ी अपने बाल सुख रहीं थीं| जैसे ही रसिका भाभी बड़े घर की ओर बढ़ीं भौजी ने मुझसे कहा;
भौजी: अब तबियत कैसी है आप की?
मैं: Fit and Fine !!!
भौजी: तो आप यहाँ बैठो मैं नहा के आती हूँ|
मैं: यार नहाना तो मुझे भी है|
भौजी: तो आप पहले नहा लो|
मैं: हम्म्म ....
भौजी: साथ नहाएं?
मैं: नेकी ओर पूछ-पूछ !
मैं ओर भौजी फटा-फ़ट उनके घर में घुस गए ओर भौजी ने जल्दी से दरवाजे की कुण्डी लगा दी| दिल में तरंगे उठने लगीं थी ओर मन उतावला हो रहा था| पर मैं हाथ बांधे खड़ा था...खुद को समेटे हुए| भौजी दरवाजा लगा के आईं और मेरे सामने खड़ी हो गईं| फिर उन्होंने अपने दोनों हाथ मेरे कन्धों पे रख दिए ओर हमारी आँखें एक दूसरे से मिलीं! मैंने अपने दाहिने हाथ से भौजी के बाएं गाल को सहलाया और भौजी ने अपनी गर्दन भी उसी दिशा में मोड़ ली जिधर मेरा हाथ था| मैंने सीधे हाथ से उनकी गर्दन को पकड़ा और उन्हें अपनी ओर खींचा| भौजी मुझे Kiss करना चाहतीं थीं और इसलिए उन्होंने अपने होठों से मेरे होठों को छूने की कोशिश कि पर मैंने उनके और अपने होठों के बीच एक ऊँगली रख दी|
भौजी: क्या हुआ?
मैं: कुछ भी तो नहीं|
भौजी: फिर मुझे Kiss करने से क्यों रोका?
मैं: भूल गए सुबह की बात?
भौजी: ऑफ ओह्ह !!! Please lemme kiss naa!!!
मैं: ना
भौजी: awww
भौजी: प्लीज.... आगे से कभी नहीं मना करुँगी|
मैं: ना
भौजी: जब घी सीढ़ी ऊँगली से ना निकले तो ऊँगली टेढ़ी करनी पड़ती है| Kiss तो मैं कर के रहूंगी|
मैं: Give it your best shot!
भौजी: Oh I Will!!!
इतना कह के उन्होंने मेरी टी-शर्ट पकड़ के मुझे अपनी ओर खींचा पर मैंने अपनी गर्दन दूर कर ली| उन्होंने मेरी टी-शर्ट के अंदर अपने हाथ डाले और मेरी छाती पे फिराने लगीं| गिर हाथों को ऊपर गले तक ले गईं और मेरी टी-शर्ट गर्दन से निकाल फेंकी| नीचे मैंने जीन्स पहनी हुई थी...भौजी ने उसका बटन खोला...फिर जीप खोली और हाथ अंदर डाल के मेरा लंड को कच्छे के ऊपर से पकड़ लिया| उसे पकड़ के वो सहलाने लगीं| मेरी नजर उनके चेहरे पे थी और भौजी बड़े ही सेक्सी तरह से अपने होठों को काटती ..कभी एक डैम सिकोड़ के Kiss करने की आकृति बनाती| फिर उन्होंने नीचे बैठ के मेरी जीन्स उतार डाली|अब मैं सिर्फ कच्छे में रह गया था, पर जिस तरह से भौजी मुझे Tease कर रहीं थीं मन बेकाबू होने लगा था|भौजी ने बैठे-बैठ ही मेरा कच्छा निकाल फेंका|अब मैं पूर्ण नंगा था|भौजी कड़ी हो गईं और मुझे निहारने लगीं, जैसे आज पहली बार ऐसे देखा हो? वो बार-बार अपने होठों पे जीभ फिरा रहीं थीं ...कभी-कभी अपने गुलाबी होठों को दाँतों तले दबा भी लेतीं थी|
मैंने आँखों के इशारे से उन्हें बताया की आपने अभी तक कपडे पहने हुए हैं| जब उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो मैंने खुद आगे बढ़ कर उनके पल्लू कोखींचा जिससे उनके वक्ष सामने से नंगे हो गए| मतलब मैं उनका क्लीवेज देख पा रहा था| मन तो कर रहा था की खींच के भौजी के सारे कपडे फाड़ दूँ वॉर वो जंगलीपना होता| बड़ी मुश्किल से खुद को रोक और सहज दिखाया| शायद एक पल को तो भौजी भी हैरान थी वो था ही इतना कातिलाना सीन|
मैं: क्या देख रहे हो?
भौजी: हैरान हूँ ...कैसे कंट्रोल कर लेते हो खुद को? मेरा तो मन कर रहा है की खा जाऊँ तुम्हें|
मैं: मैं वहशी नहीं हूँ.... जो टूट पडूँ आप पर और आपके कपडे फाड़ डालूँ|
भौजी: हाय!!! आपकी इसी अदा के तो कायल हैं हम|
मैं: हमारे सारा दिन नहीं है, मैं जा रहा हूँ नहाने| (मैंने भौजी को छेड़ा)
भौजी: आप यहाँ नहाने आये हो?
मैं: तो और किस लिए आया हूँ मैं? मैं नहाऊँगा और आप मेरी पीठ मलोगे!
भौजी: हुँह...जाओ मैं बात नहीं करती आपसे|
भौजी मुंह मोड़ के कड़ी हो गईं| मैं जानता था की उनका गुस्सा जूठा है इसलिए मैं उनके पीछे एक दम से सट के खड़ा हो गया| मेरा लंड उनकी नितम्ब में अच्छे तरीके से चुभ रहा था| मैंने अपने हाथों को उनकी कमर से होते हुए पेट पे ले जाके लॉक कर दिया| अब भौजी मुझसे बिलकुल चिपक के खड़ीं थीं और मेरा लंड उनकी नितम्ब में धंसा था| भौजी के मुंह से सिसकारी फुट निकली.... मैंने अपने हाथ ऊपर की और ले जाने शुरू किये और उनके ब्लाउज के अंदर घुसा दिए| उनके स्तन मेरे हाथों में थे और मैं उन्हिएँ बड़े प्यार से सहला रहा था| इधर भौजी के शरीर ने भी प्रतिक्रिया देनी शुरू कर दी थी| उन्होंने स्वयं अपने ब्लाउज खोल दिए ताकि मैं आसानी से उनके स्तनों का मंथन कर सकूँ| ब्लाउज सामने की और से बिलकुल खुला था पर उनकी पीठ का हिस्सा मेरी नंगी छाती को भौजी की पीठ से मिलने नहीं दे रहा था इसलिए मैंने भौजी के स्तनों को एक पल के लिए छोड़ा और स्वयं उनके ब्लाउज को उनके शरीर से जुदा कर दिया| अब मैं पीछे खड़ा उनके गले पे किश कर रहा था और अपने दोनों हाथों से उनके स्तनों के साथ खेल रहा था| भौजी का हाथ अपने आप मेरे सर पे आज्ञा और वो मेरे बालों में अपनी उँगलियाँ चलाने लगीं और मुझे प्रोत्साहन देने लगीं|मैंने अपना एक हाथ उनकी साडी के अंदर डाला और भौजी की योनि पे अपनी ऊँगली से स्पर्श किया| भौजी समझ गईं की मैं चाहता हूँ की वे अपनी साडी उतार दें| इसलिए उन्होंने अपने साडी जल्दी-जल्दी में खींचना शुरू कर दी| और देखते ही देखते उनकी साडी जमीन पे पड़ी थी| मैंने अपने दोनों हाथों से भौजी के पेटीकोट का नाद खोला और वो सरक के नीचे गिर गया| भौजी मेरी ओर पलटी ओर मुझे एक बार फिर Kiss करना चाहा| पर मैं फिर से अपनी गर्दन को उनके होठों की पहुँच से दूर रखने में सफल रहा|
भौजी: (मुझसे विनती करते हुए) प्लीज...प्लीज ... एक Kiss दे दो|
पर पता नहीं क्यों उन्हें तड़पाने में मुझे बहुत मजा आरहा था|
मैं: दे देता .... पर एक दिन Late आने की सजा तो मिलनी चाहिए ना?
भौजी: आपकी ये सजा मेरी जान ले लेगी| आप चाहे मुझे खाना मत दो..पानी मत दो... पर आपकी ये kiss ना देने की बात....हाय!!!
इससे पहले की भौजी तीसरी बारकोशिश करतीं, मैं स्वयं नीचे बैठ गया और उनकी नंगी योनि कपाटों पर अपने होंठ रख दिए| भौजी ने एक दम से मेरा सर पकड़ लिया और बालों में अपनी उँगलियाँ फिराने लगी| मैंने भी उनकी योनि में अपनी जीभ प्रवेश करा दी और उनकी योनि से रास की एक एक बूँद को अपनी जीभ से खाने लगा| भौजी के मुंह से "सी..सी...सी....सी..." की आवाजें निकल रहीं थी| मैंने अपना मुंह पूरा खोला...जितना खोल सकता था और उनकी योनि को अंदर भर लिया| इसी दौरान मैंने अपनी जीभ उनकी योनि के अंदर-बहार करने लगा| भौजी की हालत ख़राब होने लगी| उन्होंने खड़े-खड़े ही अपनी एक टांग उठा के मेरे बाएं कंधे पे रख दी| अब तो उनकी योनि पूरे तरीके से मेरे मुंह में आ पा रही थी| पांच मिनट.....बस इतना ही टिक पाईं वो और उन्होंने अपना झरना बहाना शुरू कर दिया| ऐसा झरना जिसकी एक-एक बूँद मेरे मुंह में समां गई|भौजी स्खलित होने के बाद एक पल के लिए लड़खड़ा गईं, मैंने उन्हें सहारा दे के संभाला|
भौजी: उम्म्म्म.... मुझे जरा एक पल के लिए बैठने दो|
मैं: क्यों क्या हुआ? तबियत तो ठीक है ना?
भौजी: हाँ....बस चक्कर सा लगा| वो आज बहुत दिनों बाद इतना बड़ा Orgasm हुआ की... चक्कर सा आ गया|
मैं: आपने मेरी जान ही निकाल दी थी| चलो आप लेट जाओ और थोड़ा आराम करो तब तक मैं जल्दी से नहा लेता हूँ|
भौजी कुछ नहीं बोलीं...और ना ही लेटीं| मैंने जैसे ही पानी का लोटा सर पे डाला तो मेरी कंप-कंपी छूट गई| मेरी पीठ भौजी की ओर थी ओर मैंने साबुन लगा रहा था| तभी भौजी के हाथ मुझे मेरी पीठ पे महसूस हुए| वो पीछे से आके मुझसे चिपक के खड़ी हो गईं| उनके स्तन मेरी पीठ में धंसे हुए थे| फिर उन्होंने ऊपर-नीचे होना शुरू कर दिया जैसे वो अपने स्तनों से मेरी पीठ पे साबुन मल रहीं हों|मैं: आप आराम कर लो|
भौजी: हाय...कितनी चिंता है आप को मेरी! पर इतना सेक्सी सीन का फायदा उठाने का मुका कैसे छोड़ दूँ|
ये कहते हुए उन्होंने मुझे अपनी तरफ घुमाया और नीचे बैठ के मेरे लंड को अपने मुंह में भर लिया| लंड सिकुड़ चूका था, पर जैसे ही भौजी के जीभ ने उसे छुआ वो एकदम से खड़ा हो गया| जैसे कोई inflatable raft तैयार हो जाती है! भौजी ने उसे अपने दोनों होठों से पकड़ा और जीभ से चाटने लगीं| मैंने उन्हें कन्धों से पकड़ा और खड़ा किया| फिर उन्हें उल्टा घुमाया और खड़े-खड़े ही लंड को पकड़ के उनकी योनि के भीतर प्रवेश करा दिया| फिर उनकी दायीं टांग को पकड़ के उठा दिया और पीछे से धक्के लगाना शुरू कर दिया|करीब दस मिनट की धकम-पेली के बाद मैं उनके भीतर ही झड़ गया| मेरे झड़ने के तुरंत बाद ही भौजी भी दुबारा स्खलित हो गईं|
एक अनोखा बंधन
-
- Platinum Member
- Posts: 1803
- Joined: 15 Oct 2014 22:49
Re: एक अनोखा बंधन
58
भौजी: (हाँफते हुए) हाय... थक गई!
मैं: चलो मैं आपको नहला देता हूँ|
मैंने भौजी को स्नानघर में पटरे पे बिठाया और उनके हर एक अंग पर अच्छे से साबुन लगाया| साबुन लगते समय मैं जान-बुझ के नके अंगों को कभी सहला देता तो कभी प्यार से नोच देता| मेरा िासा करने पे भौजी मुस्कुरा देतीं या हलके से सिसिया देती|होम दोनों के नहाने के बाद मैंने उनके शरीर से पानी पोछा और तब भौजी ने चौथी बार कोशिश की मुझे Kiss करने की पर इस बार मैंने हम दोनों के होठों के बीच तौलिया रख दिया|
भौजी: अब मान भी जाओ न..... प्लीज!!!
मैं: ना!!! अभी तो आधा दिन बाकी है|
मैं इतना कहके, फटाफट कपडे पहने और मुस्कुराता हुआ बहार आ गया| कुछ समय बाद भौजी भी कपडे पहन के बहार आईं|
भौजी बार-बार मुंह बना के कह रहीं थी की एक Kiss ....बस एक Kiss ... पर मैं उन्हें तड़पाये जा रहा था| वो भोजन बनाते समय भी बार-बार अपनी जीभ निकाल के चिढ़ाती तो कभी अपने होठों को काटते हुए "प्लीज" कहतीं| पर मैं हर बार ना में सर हिला देता| कुछ देर बाद नेहा स्कूल से आ गई, माँ और अम्मा भी घर आ गए, बड़के दादा और पिताजी भी खेत से घर आ गए| सब ने एक साथ खाना खाया और भोजन के पश्चात माँ और बड़की अम्मा तो छप्पर के नीचे लेटीं बातें कर रहीं थीं| वरुण और रसिका भाभी एक चारपाई पे पसरे हुए थे और मैं, नेहा और भौजी भौजी के घर के आँगन में दो चारपाइयों पे लेटे थे| एक चारपाई पे मैं और नेहा और दूसरी पे भौजी|
भौजी: नेहा देख ना...तेरे पापा मुझे Kissi नहीं देते!
मैं: Kissi तो आपको नहीं मिलेगी .... पर हाँ नेहा का जर्रूर मिलेगी| (और मैंने नेहा के गालों को चुम लिया)
बेटा आप जाके मम्मी को kiss करो और उन तक मेरी किश पहुँच जाएगी|
नेहा उठी और जाके भौजी के गाल पे kiss करके वापस आ गई और फिर मेरे पास लेट गई|
भौजी: अरे बेटा kissi तो हवा में उड़ गई| पापा से कहो की मुझे डायरेक्ट kiss करें|
मैं: ना... बेटे आज सुबह जब मैंने आप्पकी मम्मी से कहा की Good Morning Kiss दो तो उन्होंने मना कर दिया| अब आप भी तो रोज सुबह मुझे Godd Morning Kiss देते हो ना?
नेहा ने हाँ में सर हिलाया|
भौजी: Sorry बाबा! आजके बाद कभी मना नहीं करुँगी.... अब तो दे दो?
मैं: ना
भौजी: अच्छा नेहा अगर आप मुझे पापा से kissi दिलाओगे तो मैं आपको ये चिप्स का पैकेट दूंगी? (ये कहते हुए उन्होंने अपने तकिये के नीचे से एक चिप्स का पैकेट निकला|)
मैं: ओह तो अब आप मेरी बेटी को रिश्वत दोगे?
नेहा उठ के भौजी की तरफ जाने लगी तो मैंने नेहा का हाथ पलाद के रोक और उसके कान में खुसफुसाया; "बेटा ये लो दस रुपये और चुप-चाप चिप्स का पैकेट खरीद लाओ|" नेहा ने चुपके से पैसे अपने हाथ में दबाये और बाहर भाग गई| किस्मत से मेरी पेंट में दस का नोट था जो काम आगया|
भौजी: नेहा कहाँ गई?
मैं: चिप्स लेने !!!
भौजी: हैं??? (भौजी ने बड़े ताव से ये बोला ) ठीक है बहुत हो गया अब! सुबह से कह रहीं हूँ.... सीढ़ी ऊँगली से घी निकालना चाहा नहीं निकला...ऊँगली टेढ़ी की पर फिर भी नहीं ....अब तो घी का डिब्बा ही उल्टा करना होगा!!!
मैं: क्या मतलब?
भौजी: वो अभी बताती हूँ|
मैं पीठ के बल लेटा हुआ था, भौजी एकदम से उठीं और मेरी चारपाई के नजदीक आके खडी हो गईं| वो एक दम से मुझपर कूद पड़ीं और जैसे मल युद्ध करते समय दो पहलवान हाथों को लॉक करते हैं, ठीक उसी तरह भौजी ने मेरे और अपने हाथों को लॉक किया| अब वो मेरे ऊपर बैठीं हुई थीं;
मैं: ही..ही...ही... वाह रे मेरी जंगली बिल्ली!
भौजी: मिऊ....
भौजी ने पूरी कोशिश की मुझे kiss करने की पर मैं हर बार मुंह फिरा लेता| उनका हर एक शॉट टारगेट मिस कर रहा था! अब बारी मेरी थी, मैंने अपना दाहिना हाथ छुड़ाया,और अचानक से करवट ली| हमला अचानक था इसलिए भौजी अब सीधा मेरे नीचे थीं| अब मैं ऊपर था और भौजी मेरे नीचे.... बीस सेकंड तक मैं भौजी की आँखों में देखता रहा| मुझे उनकी आँखों में ललक दिख रही थी| उनके होंठ थर-थारा रहे थे| एक बार को तो मन किया की उनके होंठों को चूम लूँ पर नहीं....अभी थोड़ा तड़पना बाकी था| कहते हैं ना ...बिरहा के बाद मिलने का आनंद ही कुछ और होता है!!! हम ऐसे ही एक दूसरे की आँखों में देखते रहे तभी वहाँ नेहा आ गई| मैं कूद के उनके ऊपर से हैट गया और भौजी की चारपाई पे बैठ हँसने लगा|
खेर नेहा जो चिप्स लाइ थी वो हम ने मिल के खाया और मैंने जानबूझ के बात बदल दी| शाम हुई... सब ने चाय पी... फिर रात हुई...भोजन खाया और सोने की तैयारी करने लगे|
पिताजी: अरे भई कभी हमारे पास भी सोया करो|
मैं: अब पिताजी घर में तीन ही तो "मर्द" हैं| तीनों यहाँ सो गए तो वहाँ बाकियों की रक्षा कौन करेगा?
मेरी बात सुन के बड़के दादा और पिताजी दोनों ठहाका मार के हँसने लगे| मैं जानबूझ के पिताजी और बड़के दादा के पास बैठा रहा और यहाँ-वहाँ की बातें करता रहा, कुछ न कुछ सवाल पूछता रहा| इसके पीछे मेरा मकसद ये था की ताकि भौजी मेरे सोने से पहले सो जाएँ वरना वो मेरे पहले सोने का फायदा उठाने से बाज़ नहीं आएँगी| और हुआ वही जो मैं चाहता था! घडी में रात के दस बजे थे| जब मैं बड़े घर के अंदर पहुँचा तो सब सो चुके थे| भौजी की चारपाई सब से पहले थी...उसके बगल में मेरी चारपाई और मेरे बगल में माँ लेटी थीं| मैं भौजी के सिरहाने रुका और अपने घुटनों पे बैठा| भौजी बिलकुल सीढ़ी लेटीं थी और मैंने झुक के उनके होंठों को चूम लिया| मैं उनके नीचले होंठ को मुंह में भर के चूस रहा था और भौजी भी अब तक समझ चुकीं थी की जिस kiss के लिए वो इतना व्याकुल थीं वो आखिर उन्हें मिल ही गई|
दो मिनट के "रसपान" के बाद हम अलग हुए और मैं अपनी चारपाई पे चुप-चाप लेट गया| कुछदेर बाद एक हाथ मेरी छाती पे था| ये किसी और का हाथ नहीं बल्कि माँ का हाथ था| एक पल के लिए तो मेरी धड़कन ही रूक गई थी| फिर मैंने थोड़ा गौर से देखा तो माँ और मेरी चारपािर पास-पास थी...या ये कहें की सटी हुई थीं| माँ गहरी नींद में थी और मैं बिना कुछ बोले सो गया| सुबह पाँच बजे Good Morning kiss के साथ भौजी ने मुझे जगाया|
भौजी: How’d you like my Good Morning Kiss?
मैं: Awesome !!!
पर आज सुबह के लिए मेरे पास एक जबरदस्त प्लान था| ऐसा प्लान जो मेरे दिमाग में रात भर चल रहा था|
कुछ दिन पहले बिस्तर लगाते समय भौजी ने कहा था की काश एक रात मैं और वो एक साथ बिता सकते| उस समय मैंने बात को टाल दिया था पर रात भर वो बात दिमाग में गूँजती रही| अब मेरा प्लान पूरी तरह से तैयार था| सुबह तैयार हो के मैं भौजी को ढूंढते हुए उनके घर पहुँच गया| भौजी उस वक़्त साडी पहन रही थी| उनके दांतों तले साडी का पल्लू दबा हुआ था...और वो बड़ी सेक्सी लग रहीं थी|
मैं: मुझे एक छोटा सा काम था आपसे?
भौजी: हाँ बोलिए....
मैं: आप बड़े सेक्सी लग रहे हो| ख़ास कर आपकी नाभि.....सीईईईईई ....मन कर रहा है Kiss कर लूँ?
भौजी: तो आप पूछ क्यों रहे हो?
मैं: नहीं....अभी नहीं..... खेर आपको मेरा एक छोटा सा काम करना होगा| आज जो भी बात में पिताजी के सामने आपसे पूछूँ आप बस उसमें हाँ में हाँ मिला देना?
भौजी: ठीक है...पर बात क्या है?
मैं: सरप्राइज है....अभी नहीं बता सकता|
भौजी: हाय...आप फिर से अपने सरप्राइज से तड़पाओगे?
मैं: हाँ... शायद आपको अच्छा भी लगे|
भौजी: आपका दिया हुआ हर सरप्राइज मुझे अच्छा लगता है| पर इस बार क्या चल रहा है आपे दिमाग में?
मैं: सब अभी बता दूँ?
ये कह के मैं बाहर भाग आया|आज पिताजी और बड़के दादा पास ही के गाँव में एक ठाकुर साहब के यहाँ गए थे| मैं उन्हें ढूंढते हुए वहाँ पहुँच गया|
ठाकुर साहब: अरे आओ बेटा! बैठो...अरे सुनती हो? जरा बेटे के लिए शरबत लाना|
पिताजी: बेटा ये अवधेश जी हैं|
मैं: पांयलागि ठाकुर साहब!
ठाकुर साहब: अरे भािशाब, बोली भाषा से तो आपका लड़काबिलकुल शहरी नहीं लगता? कोई घमंड नहीं.... वाह! अच्छे संस्कार डाले हैं आपने|
बड़के दादा: बहुत आज्ञाकारी है हमारा मानु| पर हाँ एक बात है....अन्याय बर्दाश्त नहीं करता|
ठाकुर साहब: वाह भई वाह! सोने पे सुहागा!!! लो शरबत पियो|
वहाँ सब बातों में व्यस्त थे .... और मैं इधर मारा जा रहा था अपनी बात कहने को| अब अगर में बीच में उन्हें टोकता तो सब को बुरा लगता| और वैसे भी अभी-अभी तारीफ हुई थी मेरी...इतनी जल्दी इज्जत का भाजी-पाला करना ठीक नहीं होता| इसलिए मैं चुप-चाप बैठा रहा और बातें सुनता रहा| कुछ ही देर में वहाँ ठाकुर साहब की बेटी आ गई| उसका नाम सुनीता था...वो आई और सब को प्रणाम किया और फिर ठाकुर साहब की बगल में बैठ गई|
ठाकुर साहब: अरे भाईसाहब ...अगर आपको बुरा ना लगे तो बच्चे जरा आस-पास टहल आएं?
पिताजी: जी इसमें बुरा मैंने वाली क्या बात है| जाओ बेटा
मेरी आखें बड़ी हो गईं...की आखिर ये हो क्या रहा है? कहीं पिताजी यहाँ मेरा रसिहत पक्का तो करने नहीं आये? पर अब अगर अपनी बात मनवानी थी तो जो पिताजी कहेंगे वो करना तो पड़ेगा ही| इसलिए मैं सुनीता के साथ उसके कमरे की ओर चल पड़ा|
सुनीता: आपका नाम क्या है?
मैं: मानु...ओर आपका?
सुनीता: सुनीता
मैं: कौन सी क्लास में पढ़ती हैं आप?
सुनीता: जी ग्यारहवीं| और आप?
मैं: बारहवीं| सब्जेक्ट्स क्या हैं आपके.....मेरा मतलब विषय?
सुनीता: जी मैं समझ गई...कॉमर्स|
मैं: (मन में सोचते हुए: इसे अंग्रेजी आती है) cool
सुनीता: और आपके?
मैं: कॉमर्स... तो कौन सा सब्जेक्ट बोरिंग लगता है आपको? (मैंने उसकी अकाउंट की बुक उठाते हुए कहा|)
सुनीता: जो आपके हाथ में है|
मैं: एकाउंट्स? This is the easiest subject.
सुनीता: That's because you're good in it.
मैं: आपको बस Debit - Credit की चीजें पता होनी चाहिए| इसका बहुत ही आसान तरीका है, All you’ve to do is remember the golden rules of accounting:
1. Debit what Comes in and Credit what goes out!
2. Debit the receiver and credit the giver!
3. Debit all Expenses and Losses and Credit all Incomes and Gains!
सुनीता: Easy for you to say!
अब चूँकि हम थोड़ा खुल चुके थे तो समय था अपने मन में उठ रहे सवाल का जवाब जानने का|
मैं: आपके पिताजी ने मुझे और आपको यहाँ अकेला भेज दिया....कहीं यहाँ शादी की बात तो नहीं चल रही?
सुनीता: पता नहीं.... पर मैं अभी शादी नहीं करना चाहती|
मैं: Same Here !!!
हम वहीँ खड़े स्कूल और सब्जेक्ट्स पे बात कर रहे थे...तभी वहाँ सुनीता की माँ हमारे "दूध" ले आईं| हम बिलकुल दूर-दूर खड़े थे .... और बातें चल रहीं थी| बातों-बातों में पता चला की वो काफी हद्द तक मेरे टाइप की लड़की है... मेरा मतलब बातें काम करती है और इन बातों के दौरान उसने एक भी बार सेक्स, गर्लफ्रेंड, बॉयफ्रेंड आदि जैसे टॉपिक नहीं छेड़े| हमारी बातें बस Hobbies तक सीमित थीं| पर दिल में उस लड़की के लिए कोई जज्बात नहीं थे और ना ही मन कुछ कह रहा था| दिखने में लड़की बहुत simple थी...कोई दिखावा नहीं| बातों-बातों में पता चला की उसे गाना गाना (singing) अच्छा लगता है| थोड़ी देर में हम बहार अ गए और वापस अपनी-अपनी जगह बैठ गए| करीब एक घंटे बाद पिताजी ने विदा ली, हालाँकि ठाकुर साहब बहुत जोर दे रहे थे की हम भोजन कर के जाएँ पर पिताजी ने क्षमा माँगते हुए "अगली बार" का वादा कर दिया| ठाकुर साहब बातों से तो मुझे नरम दिखाई दिए पर इसके आगे का मैं उनके बारे में कुछ नहीं जान सका, और वैसे भी मुझे क्या करना था इस पचड़े में पड़ के|
भौजी: (हाँफते हुए) हाय... थक गई!
मैं: चलो मैं आपको नहला देता हूँ|
मैंने भौजी को स्नानघर में पटरे पे बिठाया और उनके हर एक अंग पर अच्छे से साबुन लगाया| साबुन लगते समय मैं जान-बुझ के नके अंगों को कभी सहला देता तो कभी प्यार से नोच देता| मेरा िासा करने पे भौजी मुस्कुरा देतीं या हलके से सिसिया देती|होम दोनों के नहाने के बाद मैंने उनके शरीर से पानी पोछा और तब भौजी ने चौथी बार कोशिश की मुझे Kiss करने की पर इस बार मैंने हम दोनों के होठों के बीच तौलिया रख दिया|
भौजी: अब मान भी जाओ न..... प्लीज!!!
मैं: ना!!! अभी तो आधा दिन बाकी है|
मैं इतना कहके, फटाफट कपडे पहने और मुस्कुराता हुआ बहार आ गया| कुछ समय बाद भौजी भी कपडे पहन के बहार आईं|
भौजी बार-बार मुंह बना के कह रहीं थी की एक Kiss ....बस एक Kiss ... पर मैं उन्हें तड़पाये जा रहा था| वो भोजन बनाते समय भी बार-बार अपनी जीभ निकाल के चिढ़ाती तो कभी अपने होठों को काटते हुए "प्लीज" कहतीं| पर मैं हर बार ना में सर हिला देता| कुछ देर बाद नेहा स्कूल से आ गई, माँ और अम्मा भी घर आ गए, बड़के दादा और पिताजी भी खेत से घर आ गए| सब ने एक साथ खाना खाया और भोजन के पश्चात माँ और बड़की अम्मा तो छप्पर के नीचे लेटीं बातें कर रहीं थीं| वरुण और रसिका भाभी एक चारपाई पे पसरे हुए थे और मैं, नेहा और भौजी भौजी के घर के आँगन में दो चारपाइयों पे लेटे थे| एक चारपाई पे मैं और नेहा और दूसरी पे भौजी|
भौजी: नेहा देख ना...तेरे पापा मुझे Kissi नहीं देते!
मैं: Kissi तो आपको नहीं मिलेगी .... पर हाँ नेहा का जर्रूर मिलेगी| (और मैंने नेहा के गालों को चुम लिया)
बेटा आप जाके मम्मी को kiss करो और उन तक मेरी किश पहुँच जाएगी|
नेहा उठी और जाके भौजी के गाल पे kiss करके वापस आ गई और फिर मेरे पास लेट गई|
भौजी: अरे बेटा kissi तो हवा में उड़ गई| पापा से कहो की मुझे डायरेक्ट kiss करें|
मैं: ना... बेटे आज सुबह जब मैंने आप्पकी मम्मी से कहा की Good Morning Kiss दो तो उन्होंने मना कर दिया| अब आप भी तो रोज सुबह मुझे Godd Morning Kiss देते हो ना?
नेहा ने हाँ में सर हिलाया|
भौजी: Sorry बाबा! आजके बाद कभी मना नहीं करुँगी.... अब तो दे दो?
मैं: ना
भौजी: अच्छा नेहा अगर आप मुझे पापा से kissi दिलाओगे तो मैं आपको ये चिप्स का पैकेट दूंगी? (ये कहते हुए उन्होंने अपने तकिये के नीचे से एक चिप्स का पैकेट निकला|)
मैं: ओह तो अब आप मेरी बेटी को रिश्वत दोगे?
नेहा उठ के भौजी की तरफ जाने लगी तो मैंने नेहा का हाथ पलाद के रोक और उसके कान में खुसफुसाया; "बेटा ये लो दस रुपये और चुप-चाप चिप्स का पैकेट खरीद लाओ|" नेहा ने चुपके से पैसे अपने हाथ में दबाये और बाहर भाग गई| किस्मत से मेरी पेंट में दस का नोट था जो काम आगया|
भौजी: नेहा कहाँ गई?
मैं: चिप्स लेने !!!
भौजी: हैं??? (भौजी ने बड़े ताव से ये बोला ) ठीक है बहुत हो गया अब! सुबह से कह रहीं हूँ.... सीढ़ी ऊँगली से घी निकालना चाहा नहीं निकला...ऊँगली टेढ़ी की पर फिर भी नहीं ....अब तो घी का डिब्बा ही उल्टा करना होगा!!!
मैं: क्या मतलब?
भौजी: वो अभी बताती हूँ|
मैं पीठ के बल लेटा हुआ था, भौजी एकदम से उठीं और मेरी चारपाई के नजदीक आके खडी हो गईं| वो एक दम से मुझपर कूद पड़ीं और जैसे मल युद्ध करते समय दो पहलवान हाथों को लॉक करते हैं, ठीक उसी तरह भौजी ने मेरे और अपने हाथों को लॉक किया| अब वो मेरे ऊपर बैठीं हुई थीं;
मैं: ही..ही...ही... वाह रे मेरी जंगली बिल्ली!
भौजी: मिऊ....
भौजी ने पूरी कोशिश की मुझे kiss करने की पर मैं हर बार मुंह फिरा लेता| उनका हर एक शॉट टारगेट मिस कर रहा था! अब बारी मेरी थी, मैंने अपना दाहिना हाथ छुड़ाया,और अचानक से करवट ली| हमला अचानक था इसलिए भौजी अब सीधा मेरे नीचे थीं| अब मैं ऊपर था और भौजी मेरे नीचे.... बीस सेकंड तक मैं भौजी की आँखों में देखता रहा| मुझे उनकी आँखों में ललक दिख रही थी| उनके होंठ थर-थारा रहे थे| एक बार को तो मन किया की उनके होंठों को चूम लूँ पर नहीं....अभी थोड़ा तड़पना बाकी था| कहते हैं ना ...बिरहा के बाद मिलने का आनंद ही कुछ और होता है!!! हम ऐसे ही एक दूसरे की आँखों में देखते रहे तभी वहाँ नेहा आ गई| मैं कूद के उनके ऊपर से हैट गया और भौजी की चारपाई पे बैठ हँसने लगा|
खेर नेहा जो चिप्स लाइ थी वो हम ने मिल के खाया और मैंने जानबूझ के बात बदल दी| शाम हुई... सब ने चाय पी... फिर रात हुई...भोजन खाया और सोने की तैयारी करने लगे|
पिताजी: अरे भई कभी हमारे पास भी सोया करो|
मैं: अब पिताजी घर में तीन ही तो "मर्द" हैं| तीनों यहाँ सो गए तो वहाँ बाकियों की रक्षा कौन करेगा?
मेरी बात सुन के बड़के दादा और पिताजी दोनों ठहाका मार के हँसने लगे| मैं जानबूझ के पिताजी और बड़के दादा के पास बैठा रहा और यहाँ-वहाँ की बातें करता रहा, कुछ न कुछ सवाल पूछता रहा| इसके पीछे मेरा मकसद ये था की ताकि भौजी मेरे सोने से पहले सो जाएँ वरना वो मेरे पहले सोने का फायदा उठाने से बाज़ नहीं आएँगी| और हुआ वही जो मैं चाहता था! घडी में रात के दस बजे थे| जब मैं बड़े घर के अंदर पहुँचा तो सब सो चुके थे| भौजी की चारपाई सब से पहले थी...उसके बगल में मेरी चारपाई और मेरे बगल में माँ लेटी थीं| मैं भौजी के सिरहाने रुका और अपने घुटनों पे बैठा| भौजी बिलकुल सीढ़ी लेटीं थी और मैंने झुक के उनके होंठों को चूम लिया| मैं उनके नीचले होंठ को मुंह में भर के चूस रहा था और भौजी भी अब तक समझ चुकीं थी की जिस kiss के लिए वो इतना व्याकुल थीं वो आखिर उन्हें मिल ही गई|
दो मिनट के "रसपान" के बाद हम अलग हुए और मैं अपनी चारपाई पे चुप-चाप लेट गया| कुछदेर बाद एक हाथ मेरी छाती पे था| ये किसी और का हाथ नहीं बल्कि माँ का हाथ था| एक पल के लिए तो मेरी धड़कन ही रूक गई थी| फिर मैंने थोड़ा गौर से देखा तो माँ और मेरी चारपािर पास-पास थी...या ये कहें की सटी हुई थीं| माँ गहरी नींद में थी और मैं बिना कुछ बोले सो गया| सुबह पाँच बजे Good Morning kiss के साथ भौजी ने मुझे जगाया|
भौजी: How’d you like my Good Morning Kiss?
मैं: Awesome !!!
पर आज सुबह के लिए मेरे पास एक जबरदस्त प्लान था| ऐसा प्लान जो मेरे दिमाग में रात भर चल रहा था|
कुछ दिन पहले बिस्तर लगाते समय भौजी ने कहा था की काश एक रात मैं और वो एक साथ बिता सकते| उस समय मैंने बात को टाल दिया था पर रात भर वो बात दिमाग में गूँजती रही| अब मेरा प्लान पूरी तरह से तैयार था| सुबह तैयार हो के मैं भौजी को ढूंढते हुए उनके घर पहुँच गया| भौजी उस वक़्त साडी पहन रही थी| उनके दांतों तले साडी का पल्लू दबा हुआ था...और वो बड़ी सेक्सी लग रहीं थी|
मैं: मुझे एक छोटा सा काम था आपसे?
भौजी: हाँ बोलिए....
मैं: आप बड़े सेक्सी लग रहे हो| ख़ास कर आपकी नाभि.....सीईईईईई ....मन कर रहा है Kiss कर लूँ?
भौजी: तो आप पूछ क्यों रहे हो?
मैं: नहीं....अभी नहीं..... खेर आपको मेरा एक छोटा सा काम करना होगा| आज जो भी बात में पिताजी के सामने आपसे पूछूँ आप बस उसमें हाँ में हाँ मिला देना?
भौजी: ठीक है...पर बात क्या है?
मैं: सरप्राइज है....अभी नहीं बता सकता|
भौजी: हाय...आप फिर से अपने सरप्राइज से तड़पाओगे?
मैं: हाँ... शायद आपको अच्छा भी लगे|
भौजी: आपका दिया हुआ हर सरप्राइज मुझे अच्छा लगता है| पर इस बार क्या चल रहा है आपे दिमाग में?
मैं: सब अभी बता दूँ?
ये कह के मैं बाहर भाग आया|आज पिताजी और बड़के दादा पास ही के गाँव में एक ठाकुर साहब के यहाँ गए थे| मैं उन्हें ढूंढते हुए वहाँ पहुँच गया|
ठाकुर साहब: अरे आओ बेटा! बैठो...अरे सुनती हो? जरा बेटे के लिए शरबत लाना|
पिताजी: बेटा ये अवधेश जी हैं|
मैं: पांयलागि ठाकुर साहब!
ठाकुर साहब: अरे भािशाब, बोली भाषा से तो आपका लड़काबिलकुल शहरी नहीं लगता? कोई घमंड नहीं.... वाह! अच्छे संस्कार डाले हैं आपने|
बड़के दादा: बहुत आज्ञाकारी है हमारा मानु| पर हाँ एक बात है....अन्याय बर्दाश्त नहीं करता|
ठाकुर साहब: वाह भई वाह! सोने पे सुहागा!!! लो शरबत पियो|
वहाँ सब बातों में व्यस्त थे .... और मैं इधर मारा जा रहा था अपनी बात कहने को| अब अगर में बीच में उन्हें टोकता तो सब को बुरा लगता| और वैसे भी अभी-अभी तारीफ हुई थी मेरी...इतनी जल्दी इज्जत का भाजी-पाला करना ठीक नहीं होता| इसलिए मैं चुप-चाप बैठा रहा और बातें सुनता रहा| कुछ ही देर में वहाँ ठाकुर साहब की बेटी आ गई| उसका नाम सुनीता था...वो आई और सब को प्रणाम किया और फिर ठाकुर साहब की बगल में बैठ गई|
ठाकुर साहब: अरे भाईसाहब ...अगर आपको बुरा ना लगे तो बच्चे जरा आस-पास टहल आएं?
पिताजी: जी इसमें बुरा मैंने वाली क्या बात है| जाओ बेटा
मेरी आखें बड़ी हो गईं...की आखिर ये हो क्या रहा है? कहीं पिताजी यहाँ मेरा रसिहत पक्का तो करने नहीं आये? पर अब अगर अपनी बात मनवानी थी तो जो पिताजी कहेंगे वो करना तो पड़ेगा ही| इसलिए मैं सुनीता के साथ उसके कमरे की ओर चल पड़ा|
सुनीता: आपका नाम क्या है?
मैं: मानु...ओर आपका?
सुनीता: सुनीता
मैं: कौन सी क्लास में पढ़ती हैं आप?
सुनीता: जी ग्यारहवीं| और आप?
मैं: बारहवीं| सब्जेक्ट्स क्या हैं आपके.....मेरा मतलब विषय?
सुनीता: जी मैं समझ गई...कॉमर्स|
मैं: (मन में सोचते हुए: इसे अंग्रेजी आती है) cool
सुनीता: और आपके?
मैं: कॉमर्स... तो कौन सा सब्जेक्ट बोरिंग लगता है आपको? (मैंने उसकी अकाउंट की बुक उठाते हुए कहा|)
सुनीता: जो आपके हाथ में है|
मैं: एकाउंट्स? This is the easiest subject.
सुनीता: That's because you're good in it.
मैं: आपको बस Debit - Credit की चीजें पता होनी चाहिए| इसका बहुत ही आसान तरीका है, All you’ve to do is remember the golden rules of accounting:
1. Debit what Comes in and Credit what goes out!
2. Debit the receiver and credit the giver!
3. Debit all Expenses and Losses and Credit all Incomes and Gains!
सुनीता: Easy for you to say!
अब चूँकि हम थोड़ा खुल चुके थे तो समय था अपने मन में उठ रहे सवाल का जवाब जानने का|
मैं: आपके पिताजी ने मुझे और आपको यहाँ अकेला भेज दिया....कहीं यहाँ शादी की बात तो नहीं चल रही?
सुनीता: पता नहीं.... पर मैं अभी शादी नहीं करना चाहती|
मैं: Same Here !!!
हम वहीँ खड़े स्कूल और सब्जेक्ट्स पे बात कर रहे थे...तभी वहाँ सुनीता की माँ हमारे "दूध" ले आईं| हम बिलकुल दूर-दूर खड़े थे .... और बातें चल रहीं थी| बातों-बातों में पता चला की वो काफी हद्द तक मेरे टाइप की लड़की है... मेरा मतलब बातें काम करती है और इन बातों के दौरान उसने एक भी बार सेक्स, गर्लफ्रेंड, बॉयफ्रेंड आदि जैसे टॉपिक नहीं छेड़े| हमारी बातें बस Hobbies तक सीमित थीं| पर दिल में उस लड़की के लिए कोई जज्बात नहीं थे और ना ही मन कुछ कह रहा था| दिखने में लड़की बहुत simple थी...कोई दिखावा नहीं| बातों-बातों में पता चला की उसे गाना गाना (singing) अच्छा लगता है| थोड़ी देर में हम बहार अ गए और वापस अपनी-अपनी जगह बैठ गए| करीब एक घंटे बाद पिताजी ने विदा ली, हालाँकि ठाकुर साहब बहुत जोर दे रहे थे की हम भोजन कर के जाएँ पर पिताजी ने क्षमा माँगते हुए "अगली बार" का वादा कर दिया| ठाकुर साहब बातों से तो मुझे नरम दिखाई दिए पर इसके आगे का मैं उनके बारे में कुछ नहीं जान सका, और वैसे भी मुझे क्या करना था इस पचड़े में पड़ के|
-
- Platinum Member
- Posts: 1803
- Joined: 15 Oct 2014 22:49
Re: एक अनोखा बंधन
59
हम घर पहुंचे और भोजन के बाद पिताजी और बड़के दादा एक चारपाई पे बैठे बातें कर रहे थे| मैं भी वहीँ बैठ गया...अब पिताजी समझ तो चुके थे की कोई बात अवश्य है पर मेरे कहने का इन्तेजार कर रहे थे| करीब पाँच मिनट बड़के दादा को कोई बुलाने आया और वो चले गए| अब मैं और पिताजी अकेले बैठे थे, यही सही समय था बात करने का|
मैं: पिताजी....आपकी मदद चाहिए थी?
पिताजी: हाँ बोल?
मैं: वो पिताजी .... मैंने किसी को वादा कर दिया है|
पिताजी: कैसा वादा? और किसको कर दिया तूने वादा?
मैं: जी .... मैंने भौजी से वादा किया की मैं उन्हिएँ और नेहा को अयोध्या घुमाने ले जाऊँगा| अकेले नहीं....आपके और माँ के साथ|
पिताजी: अच्छा तो?
मैं: अब अकेले तो मैं जा नहीं सकता ..... तो आप ही प्लान बनाइये ना? प्लीज ...प्लीज.... प्लीज!!!
पिताजी: (हँसते हुए) ठीक है... पर पहले अपनी भौजी को बुला, उनसे पूछूं तो की तू सच बोल रहा है या जूठ?
मैंने भौजी को वहीँ बैठे-बैठे इशारे से बुलाया| भौजी डेढ़ हाथ का घुंगट काढ़े आके मेरे पास खड़ी हो गईं?
पिताजी: बहु....मैंने सुना है की लाडसाहब ने तुम्हें वादा किया है की वो तुम दोनों माँ-बेटी ओ अयोध्या घुमाने ले जायेंगे? ये सच है?
भौजी: जी....पिताजी|
पिताजी: (थोड़ा हैरान होते हुए) ठीक है... हम कल जायेंगे....सुबह सात बजे तैयार रहना|
बस भौजी चुप-चाप चलीं गईं| पर जाते-जाते मुड़ के मेरी और देखते हुए भाओें को चढ़ाते हुए पूछ रहीं थी की ये क्या हो रहा है?
मैं: तो पिताजी...मैंने पता किया है की वहाँ घूमने के लिए बहुत सी जगहें हैं .... तो हमें एक रात stay करना होगा वहीँ|
पिताजी: ह्म्म्म्म्म ... आजकल बहुत कुछ पता करने लगा है तू?
मैं झेंप गया और वहाँ से चल दिया| अब सब बातें क्लियर थीं| हम रात वहाँ रुकेंगे...तीन कमरे बुक होंगे...एक में पिताजी और माँ....एक में मैं...और एक कमरे में भौजी और नेहा| रात को मेरा फुल चाँस भौजी के साथ रात गुजारने का| इस तरह भौजी की Wish भी पूरी हो जाएगी| हाँ एक बात थी ... की मुझे भौजी को इस रात के Stay के बारे में कुछ नहीं बताना|
पर मैं नहीं जानता था की किस्मत को कहानी में कुछ और ही ट्विस्ट लाना है|
मैं भौजी के पास जब पहुंचा तो उन्होंने पूछा;
भौजी: सुनिए....आप जरा बताने का कष्ट करेंगे की अभी-अभी जो पिताजी ने कहा वो क्या था? आपने कब मुझसे वादा किया?
मैं: यार ... मैं आपको और नेहा को घुमाना चाहता था.... तो मैंने थोडा से जूठ बोला| That's it!!
भौजी: ओह्ह्ह्ह! तो ये सरप्राइज था..... !!! पर आपने ठीक नहीं किया... खुद भी माँ-पिताजी से जूठ बोला और मुझसे भी जूठ बुलवाया|
मैं: यार कहते हैं ना, everything is fair in Love and War!!!
रात में मेरा और भौजी दोनों का बहुत मन हो रहा था की हम एक साथ सोएं या प्यार करें पर कल सुबह मंदिर जाना था तो किसी तरह अपने मन को समझा बुझा के मना लिया|सबसे ज्यादा खुश तो नेहा थी| वो मुझसे चिपटी हुई थी और बहुत लाड कर रही थी| बार बार कहती... "पापा... वहां हम ये करेंगे...वो करेंगे.... ये खाएंंगे ...वहां जायेंगे" सबसे ज्यादा उतसाहित तो वही थी|अगली सुबह जल्दी-जल्दी तैयार हुए....और हाँ Good Morning Kiss भी मिली! निकलने से पहले माँ ने मुझे हजार रूपए दिए संभालने को| दरअसल मेरी माँ कुछ ज्यादा ही सोचती हैं...जब भी हम किसी भीड़ भाड़ वाली जगह जाते हैं तो वो आधे पैसे खुद रखतीं हैं| आधे पिताजी को देती हैं और थोड़ा बहुत मुझे भी देती हैं| ताकि अगर कभी जेब कटे तो एक की कटे...!!! खेर सवा सात तक हम घर से निकल लिए| माँ-पिताजी आगे-आगे थे और मैं और भौजी पीछे-पीछे थे| नेहा मेरी गोद में थी और सब से ज्यादा खुश तो वही थी| हम मैन रोड पहुंचे और वहां से जीप की ...जिसने हमें बाजार छोड़ा| वहाँ से दूसरी जीप की जिसने हमें अयोध्या छोड़ा| कुल मिला के हमें दो घंटे का असमय लगा अयोध्या पहुँचने में| वहाँ सब से पहले हम मंदिरों में घूमे, मैं नेहा को वहाँ की कथाओ के बारे में बताने लगा और घूमते-घूमते भोजन का समय हो गया| वहाँ एक ही ढंग का रेस्टुरेंट था जहाँ हम बैठ गए| खाना आर्डर मैंने किया ... टेबल पर हम इस प्रकार बैठे थे; एक तरफ माँ और पिताजी और दूसरी तरफ मैं, नेहा और भौजी| खाना आया और मैं नेहा को खिलाने लगा... भौजी ने इशारे से मुझे कहा की वो मुझे खाना खिला देंगी पर मैंने उन्हें घूर के देखा और जताया की पिताजी और माँ सामने ही बैठे हैं| भोजन अभी चल ही रहा था की मैंने होटल की बात छेड़ दी;
मैं: पिताजी इस रेस्टुरेंट के सामने ही होटल है...चल के वहाँ पता करें कमरों का?
पिताजी: नहीं बेटा हम Stay नहीं करेंगे|
मैं: (पिताजी का जवाब सुन मैं अवाक रह गया|) पर क्यों?....अभी तो बहुत कुछ देखना बाकी है?
पिताजी: फिर कभी आ जायेंगे....
मेरी हालत ऐसी थी मानो जैसे किसी ने जलते तवे पर ठंडा पानी डाल दिया हो! सारा प्लान फ्लॉप! मन में गुस्सा बहुत आया और मन कर रहा था की अभी भौजी को ले के भाग जाऊँ! पर मजबूर था!! इधर मेरे चेहरे पर उड़ रहीं हवाइयां भौजी समझ चुकीं थीं| पर किस्मत को कुछ और मंजूर था|
भोजन की उपरांत हम घाट पे बैठे थे| अभी घडी में दो बजे थे... पिताजी ने कहा की अब चलना चाहिए| हम सीढ़ियां चढ़ की ऊपर आये और टैक्सी स्टैंड जो वहाँ से करीब बीस मिनट की दूरी पर था उस दिशा में चल दिए| रास्ते में पिताजी को एक और मंदिर दिखा और हम वहीँ चल दिए| उसी दिन वाराणसी में "हनुमान गढ़ी" नमक मंडी है जहाँ आतंकवादियों ने बम रखा था| अयोध्या से वाराणसी की दूरी यही कोई चार घंटे के आस-पास की होगी, रेल से तो ये और भी काम है| वहाँ जब ये घटना घाटी तो उसका सेंक अयोध्या तक आया और अचानक से उसी समय वहाँ चौकसी बढ़ा दी गई| भगदड़ के हालत बनने लगी...खबर फेल गई की वाराणसी में बम धमाका हुआ है और इसके चलते अनेक श्रद्धालु भड़क गए ...पुलिस ने सबकी चेकिंग शुरू कर दी| भीड़ को रोक पाना मुश्किल सा हो रहा था| हम जहाँ खड़े थे वहाँ भी मंदिर हैं तथा किसी बेवकूफ ने बम की अफवाह फैला दी| भीड़ बेकाबू हो गई और भगदड़ मच गई|
माँ-पिताजी आगे थे और पीछे से आये भीड़ के सैलाब ने हमें अलग कर दिया|फिर भी मैं दूरी से उन्हें देख पा रहा था... और सागर चाहता तो हम वापस मिल सकते थे| पर नाजाने मुझ पे क्या भूत सवार हुआ...मैंने भौजी का हाथ पकड़ा...और नेहा तो पहले से ही मेरी गोद में थी और सहमी हुई थी ...और मैं धीरे-धीरे पीछे कदम बढ़ाने लगा| भौजी मेरा मुँह टाक रहीं थी की आखिर मैं कर क्या रहा हूँ पर मैंने कुछ नहीं कहा और पीछे हत्ता रहा| पिताजी को लगा की भीड़ के प्रवाह से हम अलग हो रहे हैं| जब पिताजी और हमारे में फासला बढ़ गया तो मैं भौजी और नेहा को लेके कम भीड़ वाली गली में घुस गया|
भौजी: (चिंतित स्वर में) माँ-पिताजी तो आगे रह गए?
मैं: हाँ....
मैं इधर-उधर नजर दौड़ाने लगा... और आखिर में मुझे करीब सौ कदम की दूरी पर एक होटल का बोर्ड दिखाई दिया| मैं भौजी और नेहा को वहीँ ले गया, दरवाजा बंद था अंदर से और मैं जोर-जोर से दरवाजा पीटने लगा| जब दरवाजा नहीं खुला तो मैंने चीख के कहा; "प्लीज दरवाजा खोलो...मेरे साथ मेरे बीवी और बच्ची है|" तब जाके एक बुजुर्ग से अंकल ने दरवाजा खोला|
मैं: प्लीज अंकल मदद कीजिये|
बुजुर्ग अंकल: जल्दी अंदर आओ|
हम जल्दी अंदर घुस गए और अंकल ने दरवाजा बंद कर दिया|
मैं: Thank You अंकल| हम यहाँ घूमने आये थे और अचानक भगदड़ में अपने माँ-पिताजी से अलग हो गए| आपके पास फ़ोन है?
बुजुर्ग अंकल: हाँ... ये लो|
मैंने तुरंत पिताजी का मोबाइल नंबर मिलाया|
मैं: पिताजी...मैं मानु बोल रहा हूँ|
पिताजी: (चिंतित होते हुए) कहाँ हो बेटा तुम? ठीक तो हो ना?
मैं: हमने यहाँ एक होटल में शरण ली है| यहाँ भीड़ बेकाबू हो गई है.. आप लोग ठीक तो हैं ना?
पिताजी: हाँ बेटा...भीड़ के धक्के-मुक्के में हम टैक्सी स्टैंड तक पहुँच गए और यहाँ पोलिसेवाले किसी को रुकने नहीं दे रहे हैं| उन्होंने हमें जीप में बिठा के भेज दिया है| तुम भी जल्दी से वहाँ से निकलो|
मैं: पिताजी .... पूरी कोशिश करता हूँ पर मुझे यहाँ हालत ठीक नहीं लग रहे| भगवान न करे अगर दंगे वाले हालत हो गए तो ....
पिताजी: नहीं...नहीं...नहीं.. तुम रुको और जैसे ही हालत सुधरें वहाँ से निकलो|
मैं: जी|
पिताजी: निकलने से पहले फोन करना|
मैं: जी जर्रूर|
मैंने फोन रख दिया और अंकल जी को आवाज दी|
मैं: आपका बहुत-बहुत धन्यवाद! आपने ऐसे समय पर हमारी मदद की|
बुजुर्ग अंकल: अरे बेटा मुसीबत में मदद करना इंसानियत का धर्म है|
मैं: अच्छा अंकल जी .... यहाँ कमरा मिलेगा?
बुजुर्ग अंकल: हाँ ..हाँ जर्रूर| ये लो रजिस्टर और अपना नाम पता भर दो|
मैंने रजिस्टर में Mr. and Mrs. Manu XXXX (XXXX का मतलब मेरा surname है|) लिखा|
बुजुर्ग अंकल: और इस गुड़िया का नाम क्या है?
मैं: नेहा
बुजुर्ग अंकल मुस्कुरा दिए और मुझे कमरे की चाभी दी| होटल का किराया ५००/- था.. शुक्र है की मेरे पास माँ के दिए हुए १०००/- रूपए थे वरना आज हालत ख़राब हो जाती| कमरा सेकंड फ्लोर पे था और एक दम कोने में था| जब हम कमरे में घुसे तो कमरे में एक सोफ़ा था... AC था.... TV था.... और एक डबल बैड| नेहा तो TV देख के खुश थी.... मैंने उसे कार्टून लगा के दिया और वो सोफे पे आलथी-पालथी मार के बैठ गई और मजे से कार्टून देखने लगी| मैं उसकी बगल में बैठा, अपने घुटनों पे कोणी रख के अपना मुँह हथेलियों में छुपा के कुछ सोचने लगा| भौजी दरवाजा अबंद करके आईं और मेरी बगल में बैठ गईं| उन्होंने अपने दोनों हाथों की मेरे कन्धों पे रखा और मुझे अपनी और खींचा| और मैं उनकी गोद में सर रख के एक पल के लेट गया| दिल को थोड़ा सकून मिला|
फिर मैं उठा और उनसे पूछा;
मैं: आप चाय लोगे?
भौजी: पहले आप बताओ की क्या हुआ आपको?
मैं: कुछ नहीं...मैं अभी चाय बोलके आता हूँ|
भौजी: नहीं चाय रहने दो...रात को खाना खाएंगे|
मैं: आप बैठो मैं अभी आया|
मैं नीचे भाग आया और दो कूप चाय और एक गिलास दूध बोल आया| वापस आके मैंने दरवाजा बंद किया और पलंग पे लेट गया|
भौजी: बात क्या है? आप क्या छुपा रहे हो मुझ से| (और भौजी उठ के मेरे पास पलंग पे बैठ गई)
मैं: दरअसल आपको घुमाने का मेरा प्लान नहीं था| मेरा प्लान था की एक रात हम साथ गुजारें ....जैसा आप चाहती थी| आपने कुछ दिन पहले कहा था ना...?
भौजी: ओह... तो ये बात है|
मैं: मैंने सोचा की घूमने के बहाने पिताजी तीन कमरे बुक करेंगे, एक में माँ-पिताजी ..एक में मैं और एक में आप और नेहा होंगे| रात को मैं आपके कमरे में आ जाता और एक रात हम साथ गुजारते| पर पिताजी ने मेरे सारे प्लान पे पानी फेर दिया| जब भगदड़ मची तो मैंने सोचा की हम अलग हो जायेंगे और हम रात एक साथ बिताएंगे| पर हालात और भी ख़राब हो चुके हैं...अगर दंगे भड़क उठे तो मैं कैसे आपको और नेहा को सम्भालूंगा... और अगर आप में से किसी को कुछ हो गया तो मैं भी जिन्दा नहीं रहूँगा| (ये कहते हुए मेरी आँखें भर आईं|)
भौजी: कुछ नहीं होगा हमें, आपके होते हुए कुछ नहीं होगा| मुझे आप पे पूरा भरोसा है....आप सब संभाल लेंगे| देख लेना हम सही सलामत घर पहुँच जायेंगे| अब आप अपना मूड ठीक करो!
इतना में दरवाजे पे दस्तक हुई|
मैं: चाय आई होगी|
भौजी: मैंने मना किया था न....
भौजी ने दरवाजा खोल के चाय और दूध ले लिया और मैं भी उठ के उनके पीछे खड़ा हो गया और उस लड़के को दस रुपये टिप भी दे दिए|
भौजी: दूध? आप ना पैसे बर्बाद करने से बाज नहीं आओगे!
मैं: बर्बाद....वो मेरी भी बेटी है|
हमने बैठ के चाय पी और नेहा को दूध पिलाया| नेहा को तो टॉम एंड जेरी देखने में बड़ा मजा आ अहा था और वो उन्हें देख हँस रही थी|
मैं: आपको इतना भरोसा है मुझ पे?
भौजी: जो इंसान मेरी एक खवाइश के लिए सब से लड़ पड़े उसपे भरोसा नहीं होगा तो किस पे होगा|
हमने चाय पी और पलंग पे सहारा ले के बैठे थे| भौजी बिलकुल मेरे साथ चिपक के बैठीं थीं और उनका सर मेरे कंधे पे था और वो भी टॉम एंड जेरी देखने लगीं| शायद उन्हें भी वो प्रोग्राम अच्छा लग रहा था| कुह देर में में आँख लग गई और जब मैं जाएगा तो मेरा सर उनकी गोद में था और वो बड़े प्यार से मेरे बालों को सहला रहीं थी| घडी सात बजा रही थी... मैं उठा और फ्रेश हो के आया और भौजी से पूछा;
मैं: खाना खाएं?
भौजी: अभी? आप बैठो मेरे पास| थोड़ा देर से खाते हैं|
मैं: As you wish!
अब भौजी की बारी थी उन्होंने मेरी गोद में सर रख लिया और TV देखने लगीं| मैं उनके बालों में उँगलियाँ फेरने लगा...मैं अपनी उँगलियों को चलते हुए उनके कान के पास ले आता और फिर एक उन्ग्लिस से उनके कान के पीछे के हिस्से को आहिस्ता-आहिस्ता सहलाता| भौजी को बड़ा अच्छा लग रहा था| फिर मैंने अपनी उँगलियों को उनके चेहरे की outline पे फिराने लगा|
भौजी: You’ve magical fingers! कहाँ सीखा ये सब?
मैं: बस आपको छूना अच्छा लगता है...और ये सब अपने आप होने लगता है!
आठ बजे तो नेहा मेरे पास आई और बोली;
नेहा: पापा...पापा... भूख लगी है!
मैं: ठीक है...बताओ आप क्या खाओगे?
भौजी: इससे क्या पूछ रहे हो आप...जो भी मिलता है बोल दो!
मैं: बेटा चलो मेरे साथ... हम खाना आर्डर कर के आते हैं|
भौजी: अरे इसे कहाँ ले जा रहे हो?
मैं: You’ve a problem with tha?
भौजी: No ... आपकी बेटी है... जहाँ चाहे ले जाओ| पर कुछ महंगा आर्डर मत करना!
भौजी जानती थी की खाने-पीने के मामले में मेरा हाथ खुला है और मैं पैसे खर्च करने से नहीं हिचकता| मैं नेहा को गोद में लिए रिसेप्शन पे गया और खाना आर्डर कर दिया| कुछ ससमय में खाना आया| खाना देख के भौजी को प्यार भरा गुस्सा आया|
हम घर पहुंचे और भोजन के बाद पिताजी और बड़के दादा एक चारपाई पे बैठे बातें कर रहे थे| मैं भी वहीँ बैठ गया...अब पिताजी समझ तो चुके थे की कोई बात अवश्य है पर मेरे कहने का इन्तेजार कर रहे थे| करीब पाँच मिनट बड़के दादा को कोई बुलाने आया और वो चले गए| अब मैं और पिताजी अकेले बैठे थे, यही सही समय था बात करने का|
मैं: पिताजी....आपकी मदद चाहिए थी?
पिताजी: हाँ बोल?
मैं: वो पिताजी .... मैंने किसी को वादा कर दिया है|
पिताजी: कैसा वादा? और किसको कर दिया तूने वादा?
मैं: जी .... मैंने भौजी से वादा किया की मैं उन्हिएँ और नेहा को अयोध्या घुमाने ले जाऊँगा| अकेले नहीं....आपके और माँ के साथ|
पिताजी: अच्छा तो?
मैं: अब अकेले तो मैं जा नहीं सकता ..... तो आप ही प्लान बनाइये ना? प्लीज ...प्लीज.... प्लीज!!!
पिताजी: (हँसते हुए) ठीक है... पर पहले अपनी भौजी को बुला, उनसे पूछूं तो की तू सच बोल रहा है या जूठ?
मैंने भौजी को वहीँ बैठे-बैठे इशारे से बुलाया| भौजी डेढ़ हाथ का घुंगट काढ़े आके मेरे पास खड़ी हो गईं?
पिताजी: बहु....मैंने सुना है की लाडसाहब ने तुम्हें वादा किया है की वो तुम दोनों माँ-बेटी ओ अयोध्या घुमाने ले जायेंगे? ये सच है?
भौजी: जी....पिताजी|
पिताजी: (थोड़ा हैरान होते हुए) ठीक है... हम कल जायेंगे....सुबह सात बजे तैयार रहना|
बस भौजी चुप-चाप चलीं गईं| पर जाते-जाते मुड़ के मेरी और देखते हुए भाओें को चढ़ाते हुए पूछ रहीं थी की ये क्या हो रहा है?
मैं: तो पिताजी...मैंने पता किया है की वहाँ घूमने के लिए बहुत सी जगहें हैं .... तो हमें एक रात stay करना होगा वहीँ|
पिताजी: ह्म्म्म्म्म ... आजकल बहुत कुछ पता करने लगा है तू?
मैं झेंप गया और वहाँ से चल दिया| अब सब बातें क्लियर थीं| हम रात वहाँ रुकेंगे...तीन कमरे बुक होंगे...एक में पिताजी और माँ....एक में मैं...और एक कमरे में भौजी और नेहा| रात को मेरा फुल चाँस भौजी के साथ रात गुजारने का| इस तरह भौजी की Wish भी पूरी हो जाएगी| हाँ एक बात थी ... की मुझे भौजी को इस रात के Stay के बारे में कुछ नहीं बताना|
पर मैं नहीं जानता था की किस्मत को कहानी में कुछ और ही ट्विस्ट लाना है|
मैं भौजी के पास जब पहुंचा तो उन्होंने पूछा;
भौजी: सुनिए....आप जरा बताने का कष्ट करेंगे की अभी-अभी जो पिताजी ने कहा वो क्या था? आपने कब मुझसे वादा किया?
मैं: यार ... मैं आपको और नेहा को घुमाना चाहता था.... तो मैंने थोडा से जूठ बोला| That's it!!
भौजी: ओह्ह्ह्ह! तो ये सरप्राइज था..... !!! पर आपने ठीक नहीं किया... खुद भी माँ-पिताजी से जूठ बोला और मुझसे भी जूठ बुलवाया|
मैं: यार कहते हैं ना, everything is fair in Love and War!!!
रात में मेरा और भौजी दोनों का बहुत मन हो रहा था की हम एक साथ सोएं या प्यार करें पर कल सुबह मंदिर जाना था तो किसी तरह अपने मन को समझा बुझा के मना लिया|सबसे ज्यादा खुश तो नेहा थी| वो मुझसे चिपटी हुई थी और बहुत लाड कर रही थी| बार बार कहती... "पापा... वहां हम ये करेंगे...वो करेंगे.... ये खाएंंगे ...वहां जायेंगे" सबसे ज्यादा उतसाहित तो वही थी|अगली सुबह जल्दी-जल्दी तैयार हुए....और हाँ Good Morning Kiss भी मिली! निकलने से पहले माँ ने मुझे हजार रूपए दिए संभालने को| दरअसल मेरी माँ कुछ ज्यादा ही सोचती हैं...जब भी हम किसी भीड़ भाड़ वाली जगह जाते हैं तो वो आधे पैसे खुद रखतीं हैं| आधे पिताजी को देती हैं और थोड़ा बहुत मुझे भी देती हैं| ताकि अगर कभी जेब कटे तो एक की कटे...!!! खेर सवा सात तक हम घर से निकल लिए| माँ-पिताजी आगे-आगे थे और मैं और भौजी पीछे-पीछे थे| नेहा मेरी गोद में थी और सब से ज्यादा खुश तो वही थी| हम मैन रोड पहुंचे और वहां से जीप की ...जिसने हमें बाजार छोड़ा| वहाँ से दूसरी जीप की जिसने हमें अयोध्या छोड़ा| कुल मिला के हमें दो घंटे का असमय लगा अयोध्या पहुँचने में| वहाँ सब से पहले हम मंदिरों में घूमे, मैं नेहा को वहाँ की कथाओ के बारे में बताने लगा और घूमते-घूमते भोजन का समय हो गया| वहाँ एक ही ढंग का रेस्टुरेंट था जहाँ हम बैठ गए| खाना आर्डर मैंने किया ... टेबल पर हम इस प्रकार बैठे थे; एक तरफ माँ और पिताजी और दूसरी तरफ मैं, नेहा और भौजी| खाना आया और मैं नेहा को खिलाने लगा... भौजी ने इशारे से मुझे कहा की वो मुझे खाना खिला देंगी पर मैंने उन्हें घूर के देखा और जताया की पिताजी और माँ सामने ही बैठे हैं| भोजन अभी चल ही रहा था की मैंने होटल की बात छेड़ दी;
मैं: पिताजी इस रेस्टुरेंट के सामने ही होटल है...चल के वहाँ पता करें कमरों का?
पिताजी: नहीं बेटा हम Stay नहीं करेंगे|
मैं: (पिताजी का जवाब सुन मैं अवाक रह गया|) पर क्यों?....अभी तो बहुत कुछ देखना बाकी है?
पिताजी: फिर कभी आ जायेंगे....
मेरी हालत ऐसी थी मानो जैसे किसी ने जलते तवे पर ठंडा पानी डाल दिया हो! सारा प्लान फ्लॉप! मन में गुस्सा बहुत आया और मन कर रहा था की अभी भौजी को ले के भाग जाऊँ! पर मजबूर था!! इधर मेरे चेहरे पर उड़ रहीं हवाइयां भौजी समझ चुकीं थीं| पर किस्मत को कुछ और मंजूर था|
भोजन की उपरांत हम घाट पे बैठे थे| अभी घडी में दो बजे थे... पिताजी ने कहा की अब चलना चाहिए| हम सीढ़ियां चढ़ की ऊपर आये और टैक्सी स्टैंड जो वहाँ से करीब बीस मिनट की दूरी पर था उस दिशा में चल दिए| रास्ते में पिताजी को एक और मंदिर दिखा और हम वहीँ चल दिए| उसी दिन वाराणसी में "हनुमान गढ़ी" नमक मंडी है जहाँ आतंकवादियों ने बम रखा था| अयोध्या से वाराणसी की दूरी यही कोई चार घंटे के आस-पास की होगी, रेल से तो ये और भी काम है| वहाँ जब ये घटना घाटी तो उसका सेंक अयोध्या तक आया और अचानक से उसी समय वहाँ चौकसी बढ़ा दी गई| भगदड़ के हालत बनने लगी...खबर फेल गई की वाराणसी में बम धमाका हुआ है और इसके चलते अनेक श्रद्धालु भड़क गए ...पुलिस ने सबकी चेकिंग शुरू कर दी| भीड़ को रोक पाना मुश्किल सा हो रहा था| हम जहाँ खड़े थे वहाँ भी मंदिर हैं तथा किसी बेवकूफ ने बम की अफवाह फैला दी| भीड़ बेकाबू हो गई और भगदड़ मच गई|
माँ-पिताजी आगे थे और पीछे से आये भीड़ के सैलाब ने हमें अलग कर दिया|फिर भी मैं दूरी से उन्हें देख पा रहा था... और सागर चाहता तो हम वापस मिल सकते थे| पर नाजाने मुझ पे क्या भूत सवार हुआ...मैंने भौजी का हाथ पकड़ा...और नेहा तो पहले से ही मेरी गोद में थी और सहमी हुई थी ...और मैं धीरे-धीरे पीछे कदम बढ़ाने लगा| भौजी मेरा मुँह टाक रहीं थी की आखिर मैं कर क्या रहा हूँ पर मैंने कुछ नहीं कहा और पीछे हत्ता रहा| पिताजी को लगा की भीड़ के प्रवाह से हम अलग हो रहे हैं| जब पिताजी और हमारे में फासला बढ़ गया तो मैं भौजी और नेहा को लेके कम भीड़ वाली गली में घुस गया|
भौजी: (चिंतित स्वर में) माँ-पिताजी तो आगे रह गए?
मैं: हाँ....
मैं इधर-उधर नजर दौड़ाने लगा... और आखिर में मुझे करीब सौ कदम की दूरी पर एक होटल का बोर्ड दिखाई दिया| मैं भौजी और नेहा को वहीँ ले गया, दरवाजा बंद था अंदर से और मैं जोर-जोर से दरवाजा पीटने लगा| जब दरवाजा नहीं खुला तो मैंने चीख के कहा; "प्लीज दरवाजा खोलो...मेरे साथ मेरे बीवी और बच्ची है|" तब जाके एक बुजुर्ग से अंकल ने दरवाजा खोला|
मैं: प्लीज अंकल मदद कीजिये|
बुजुर्ग अंकल: जल्दी अंदर आओ|
हम जल्दी अंदर घुस गए और अंकल ने दरवाजा बंद कर दिया|
मैं: Thank You अंकल| हम यहाँ घूमने आये थे और अचानक भगदड़ में अपने माँ-पिताजी से अलग हो गए| आपके पास फ़ोन है?
बुजुर्ग अंकल: हाँ... ये लो|
मैंने तुरंत पिताजी का मोबाइल नंबर मिलाया|
मैं: पिताजी...मैं मानु बोल रहा हूँ|
पिताजी: (चिंतित होते हुए) कहाँ हो बेटा तुम? ठीक तो हो ना?
मैं: हमने यहाँ एक होटल में शरण ली है| यहाँ भीड़ बेकाबू हो गई है.. आप लोग ठीक तो हैं ना?
पिताजी: हाँ बेटा...भीड़ के धक्के-मुक्के में हम टैक्सी स्टैंड तक पहुँच गए और यहाँ पोलिसेवाले किसी को रुकने नहीं दे रहे हैं| उन्होंने हमें जीप में बिठा के भेज दिया है| तुम भी जल्दी से वहाँ से निकलो|
मैं: पिताजी .... पूरी कोशिश करता हूँ पर मुझे यहाँ हालत ठीक नहीं लग रहे| भगवान न करे अगर दंगे वाले हालत हो गए तो ....
पिताजी: नहीं...नहीं...नहीं.. तुम रुको और जैसे ही हालत सुधरें वहाँ से निकलो|
मैं: जी|
पिताजी: निकलने से पहले फोन करना|
मैं: जी जर्रूर|
मैंने फोन रख दिया और अंकल जी को आवाज दी|
मैं: आपका बहुत-बहुत धन्यवाद! आपने ऐसे समय पर हमारी मदद की|
बुजुर्ग अंकल: अरे बेटा मुसीबत में मदद करना इंसानियत का धर्म है|
मैं: अच्छा अंकल जी .... यहाँ कमरा मिलेगा?
बुजुर्ग अंकल: हाँ ..हाँ जर्रूर| ये लो रजिस्टर और अपना नाम पता भर दो|
मैंने रजिस्टर में Mr. and Mrs. Manu XXXX (XXXX का मतलब मेरा surname है|) लिखा|
बुजुर्ग अंकल: और इस गुड़िया का नाम क्या है?
मैं: नेहा
बुजुर्ग अंकल मुस्कुरा दिए और मुझे कमरे की चाभी दी| होटल का किराया ५००/- था.. शुक्र है की मेरे पास माँ के दिए हुए १०००/- रूपए थे वरना आज हालत ख़राब हो जाती| कमरा सेकंड फ्लोर पे था और एक दम कोने में था| जब हम कमरे में घुसे तो कमरे में एक सोफ़ा था... AC था.... TV था.... और एक डबल बैड| नेहा तो TV देख के खुश थी.... मैंने उसे कार्टून लगा के दिया और वो सोफे पे आलथी-पालथी मार के बैठ गई और मजे से कार्टून देखने लगी| मैं उसकी बगल में बैठा, अपने घुटनों पे कोणी रख के अपना मुँह हथेलियों में छुपा के कुछ सोचने लगा| भौजी दरवाजा अबंद करके आईं और मेरी बगल में बैठ गईं| उन्होंने अपने दोनों हाथों की मेरे कन्धों पे रखा और मुझे अपनी और खींचा| और मैं उनकी गोद में सर रख के एक पल के लेट गया| दिल को थोड़ा सकून मिला|
फिर मैं उठा और उनसे पूछा;
मैं: आप चाय लोगे?
भौजी: पहले आप बताओ की क्या हुआ आपको?
मैं: कुछ नहीं...मैं अभी चाय बोलके आता हूँ|
भौजी: नहीं चाय रहने दो...रात को खाना खाएंगे|
मैं: आप बैठो मैं अभी आया|
मैं नीचे भाग आया और दो कूप चाय और एक गिलास दूध बोल आया| वापस आके मैंने दरवाजा बंद किया और पलंग पे लेट गया|
भौजी: बात क्या है? आप क्या छुपा रहे हो मुझ से| (और भौजी उठ के मेरे पास पलंग पे बैठ गई)
मैं: दरअसल आपको घुमाने का मेरा प्लान नहीं था| मेरा प्लान था की एक रात हम साथ गुजारें ....जैसा आप चाहती थी| आपने कुछ दिन पहले कहा था ना...?
भौजी: ओह... तो ये बात है|
मैं: मैंने सोचा की घूमने के बहाने पिताजी तीन कमरे बुक करेंगे, एक में माँ-पिताजी ..एक में मैं और एक में आप और नेहा होंगे| रात को मैं आपके कमरे में आ जाता और एक रात हम साथ गुजारते| पर पिताजी ने मेरे सारे प्लान पे पानी फेर दिया| जब भगदड़ मची तो मैंने सोचा की हम अलग हो जायेंगे और हम रात एक साथ बिताएंगे| पर हालात और भी ख़राब हो चुके हैं...अगर दंगे भड़क उठे तो मैं कैसे आपको और नेहा को सम्भालूंगा... और अगर आप में से किसी को कुछ हो गया तो मैं भी जिन्दा नहीं रहूँगा| (ये कहते हुए मेरी आँखें भर आईं|)
भौजी: कुछ नहीं होगा हमें, आपके होते हुए कुछ नहीं होगा| मुझे आप पे पूरा भरोसा है....आप सब संभाल लेंगे| देख लेना हम सही सलामत घर पहुँच जायेंगे| अब आप अपना मूड ठीक करो!
इतना में दरवाजे पे दस्तक हुई|
मैं: चाय आई होगी|
भौजी: मैंने मना किया था न....
भौजी ने दरवाजा खोल के चाय और दूध ले लिया और मैं भी उठ के उनके पीछे खड़ा हो गया और उस लड़के को दस रुपये टिप भी दे दिए|
भौजी: दूध? आप ना पैसे बर्बाद करने से बाज नहीं आओगे!
मैं: बर्बाद....वो मेरी भी बेटी है|
हमने बैठ के चाय पी और नेहा को दूध पिलाया| नेहा को तो टॉम एंड जेरी देखने में बड़ा मजा आ अहा था और वो उन्हें देख हँस रही थी|
मैं: आपको इतना भरोसा है मुझ पे?
भौजी: जो इंसान मेरी एक खवाइश के लिए सब से लड़ पड़े उसपे भरोसा नहीं होगा तो किस पे होगा|
हमने चाय पी और पलंग पे सहारा ले के बैठे थे| भौजी बिलकुल मेरे साथ चिपक के बैठीं थीं और उनका सर मेरे कंधे पे था और वो भी टॉम एंड जेरी देखने लगीं| शायद उन्हें भी वो प्रोग्राम अच्छा लग रहा था| कुह देर में में आँख लग गई और जब मैं जाएगा तो मेरा सर उनकी गोद में था और वो बड़े प्यार से मेरे बालों को सहला रहीं थी| घडी सात बजा रही थी... मैं उठा और फ्रेश हो के आया और भौजी से पूछा;
मैं: खाना खाएं?
भौजी: अभी? आप बैठो मेरे पास| थोड़ा देर से खाते हैं|
मैं: As you wish!
अब भौजी की बारी थी उन्होंने मेरी गोद में सर रख लिया और TV देखने लगीं| मैं उनके बालों में उँगलियाँ फेरने लगा...मैं अपनी उँगलियों को चलते हुए उनके कान के पास ले आता और फिर एक उन्ग्लिस से उनके कान के पीछे के हिस्से को आहिस्ता-आहिस्ता सहलाता| भौजी को बड़ा अच्छा लग रहा था| फिर मैंने अपनी उँगलियों को उनके चेहरे की outline पे फिराने लगा|
भौजी: You’ve magical fingers! कहाँ सीखा ये सब?
मैं: बस आपको छूना अच्छा लगता है...और ये सब अपने आप होने लगता है!
आठ बजे तो नेहा मेरे पास आई और बोली;
नेहा: पापा...पापा... भूख लगी है!
मैं: ठीक है...बताओ आप क्या खाओगे?
भौजी: इससे क्या पूछ रहे हो आप...जो भी मिलता है बोल दो!
मैं: बेटा चलो मेरे साथ... हम खाना आर्डर कर के आते हैं|
भौजी: अरे इसे कहाँ ले जा रहे हो?
मैं: You’ve a problem with tha?
भौजी: No ... आपकी बेटी है... जहाँ चाहे ले जाओ| पर कुछ महंगा आर्डर मत करना!
भौजी जानती थी की खाने-पीने के मामले में मेरा हाथ खुला है और मैं पैसे खर्च करने से नहीं हिचकता| मैं नेहा को गोद में लिए रिसेप्शन पे गया और खाना आर्डर कर दिया| कुछ ससमय में खाना आया| खाना देख के भौजी को प्यार भरा गुस्सा आया|