"काफ़ी खूबसूरत लग रही हो बहूरानी" भूषण ने कहा
रूपाली ने मुस्कुरा कर उसका शुक्रिया अदा किया और सफाई में उसका हाथ बटाने लगी.
"आप रहने दीजिए"भूषण ने मना किया भी तो रूपाली हटी नही
"ऐसी अच्छी लगती हैं आप. ऐसी ही रहा करो. भरी जवानी में ही सफेद सारी में लिपटी मत रहा करो" भूषण ने कहा तो रूपाली ने उसकी तरफ देखा
"पिताजी ने लाकर दी है" रूपाली ने कहा तो भूषण काम छ्चोड़कर कुच्छ सोचने लगा
"मैं जानती हून आप क्या सोच रहे हैं काका. कल रात की बात ना. आपने कल रात जो देखा था वो मेरी मर्ज़ी थी. इस हवेली में फिर से सब कुच्छ पहले जैसा हो उसके लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी है के पिताजी होश में आए. आअप जानते हैं ना मैं क्या कह रही हूँ?" रूपाली ने पुचछा
भूषण ने सर इनकार में हिलाया.
"आपकी ग़लती नही है काका. मैं शायद खुद भी नही जानती के मैं क्या कह रही हूँ, क्या सोच रही हूँ और क्या कर रही हूँ. मैं सिर्फ़ इतना जानती हूँ के मेरे नंगे जिस्म की हल्की सी झलक पाकर पिताजी ने परसो पूरा दिन शराब नही पी थी और काफ़ी अरसे बाद अब वो हवेली से बाहर निकले हैं." रूपाली ने कहाँ तो भूषण ने हैरानी से उसकी तरफ देखा.
"आप ठीक सोच रहे हो काका."रूपाली ने जैसे उसका चेहरा पढ़ते हुए कहा "और इसलिए मैने आपसे कहा था के मुझे आपकी मदद चाहिए. ये बात हवेली से बाहर ना निकले. बदले में आप जो चाहें आपको मिल जाएगा. जो कल रात मैने आपको दिया वो मैं दोबारा देने को तैय्यार हूँ"
रूपाली ने जो बे झिझक कहा था वो बात सुनकर भूषण का सर चकराने लगा था. रूपाली कुच्छ करने वाली है ये बात वो जानता था पर क्या अब समझ आया. वो अपने ही ससुर के साथ सोने की बात कर रही थी.
"पर बहूरानी"भूषण से कुच्छ बोलते नही बन पा रहा था.
"पर क्या काका?" अब दोनो में से कोई कुच्छ काम नही कर रहा था.
रूपाली अच्छी तरह से जानती थी के भूषण का खामोश रहना कितना ज़रूरी था. ये बात अगर गाओं में फेल गयी तो रही सही इज़्ज़त भी चली जाएगी. इस हवेली की तो कोई ख़ास इज़ात नही बची थी पर उसके आपके पिता और भाई की इज़्ज़त पर भी दाग लग जाएगा. क्या सोचेंगे वो ये जानकर के उनकी अपनी बेटी अपने ससुर से चुदवा रही है.
"बहूरानी आपके पिता समान हैं वो. पाप है ये" भूषण ने हिम्मत जोड़कर कहा
"पाप और पुण्या क्या है काका? मैने तो कभी कोई पाप नही किया था आज तक पर मुझे क्या मिला? भारी जवानी में एक सफेद सारी?"कहते हुए रूपाली भूषण के करीब आई
"और आप काका? आप पाप की बात कर रहे हैं? क्या आप मेरे पिता समान नही हैं? कल रात जब मेरी टाँगो के बीच में अपनी उंगलियाँ घुसा रहे थे तब ये ख्याल आया था आपको के मैं आपकी बेटी जैसी हूँ? जब मेरी छाति को दबा रहे थे तब ये ख्याल आया था के ये पाप है"रूपाली का चेहरा अब सख़्त हो चला था. वो सीधा भूषण की आँखो में झाँक रही थी.
"कल जब मैने आपका अपने मुँह में ले रखा था तब ये ख्याल आया था आपको काका? नही. नही आया था क्यूंकी तब आपके साआँने आपकी बेटी जैसी एक लड़की नही सिर्फ़ एक औरत थी. मुझमें आपको सिर्फ़ एक औरत का नंगा जिस्म दिखाई दे रहा था और कुच्छ नही." कहते हुए रूपाली फिर आगे आई और अपनी सारी का पल्लू गिरा दिया.
सारी का पल्लू जैसे ही हटा तो ब्लाउस में बंद रूपाली की दोनो छातियाँ भूषण के सामने आ गयी. ब्लाउस रूपाली की बड़ी बड़ी चुचियों के हिसाब से छ्होटा था इसलिए दोनो छातियाँ जैसे बाहर को निकलकर गिर रही थी.क्लीवेज ही इतना ज़्यादा दिखाई दे रहा था के किसी के भी मुँह में पानी आ जाए.भूषण का सर चकराने लगा. उसने अपने मुँह दूसरी तरफ कर लिया.
"क्या हुआ काका? रात तो बड़ी ज़ोर से दबाया था. अब उधर क्यूँ देख रहे हो?"कहते हुए रूपाली ने भूषण का सर पकड़ा और अपनी चुचियों की तरफ घुमाया
रूपाली की दोनो छातियाँ अब भूषण के चेहरे से ज़रा ही दूर थी. रूपाली उससे लंबी थी. 70 साल का वो बूढ़ा जिस्मानी तौर पे रूपाली से कमज़ोर था. उसका चेहरा सिर्फ़ रूपाली की दोनो चुचियो तक ही आ रहा था इसलिए वो उसकी नज़रों के सामने थी. रूपाली ने फिर वो किया जिससे भूषण की रही सही हिम्मत भी जवाब दे गयी. उसने भूषण का सर पकड़कर आगे की तरफ खींचा और अपने क्लीवेज में दबा लिया. इसके साथ ही रूपाली और भूषण दोनो के मुँह से आह निकल गयी.
भूषण का चेहरा आगे से रूपाली के नंगे क्लीवेज पे दब रहा था. उसके नंगे जिस्म का स्पर्श मिलते ही भूषण के जिस्म में फिर हलचल होने लगी. बुद्धा ही सही पर था तो मर्द ही. जब रूपाली ने पकड़ ढीली की तो उसने अपने सर पिछे हटाया और रूपाली की दोनो चुचियों की तरफ देखने लगा. कल रात उसने एक हाथ से एक छाती दबाई ज़रूर थी पर अंधेरे में कुच्छ देख ना सका था और दबाई भी बस पल भर के लिए थी. अगले ही पल रूपाली झाड़ गयी थी और उससे अलग हो गयी थी. उसकी दोनो नज़रें जैसे रूपाली की छातियों से चिपक कर रही गयी.
"क्या हुआ काका? अब ध्यान नही आ रहा बेटी और पाप का?"रूपाली ने कहा पर भूषण अब उसकी कोई बात नही सुन रहा था. वो तो बस एकटक उसकी चुचियों को ब्लाउस के उपेर से निहार रहा था. पर उसकी हिम्मत नही पड़ रही थी के इसके अलावा कुच्छ आगे कर सके.
रूपाली ने जैसे उसके दिल में उठती ख्वाहिश को ताड़ लिया और अपने ब्लाउस के बटन खोलने लगी.
"लो काका. आप भी क्या याद रखोगे. इस उमर में एक जवान जिस्म का नज़ारा करो" रूपाली को खुद पे हैरत होने लगी थी. पिच्छले दो दिन में वो दिमागी तौर पे तो बदल ही गयी थी पर उसकी ज़ुबान पे एकदम से अलग हो गयी थी. कहाँ दबी दबी सी आवाज़ में बोलने वाली एक मासूम सी लड़की और कहाँ बेबाक उँची आवाज़ में बोलती एक शेरनी के जैसी औरत जिसने शब्द भी रंडियों की तरह बोलने शुरू कर दिए थे.
रूपपली ने बटन तो सारे खोल दिए थे पर ब्लाउस को दोनो तरफ से पकड़ रखा था. भूषण इंतेज़ार कर रहा था के वो ब्लाउस दोनो तरफ से खोले तो उसे अंदर का नज़ारा मिले पर रूपाली वैसे ही खड़ी रही.
"क्या हुआ काका?"रूपाली ने पुचछा तो भूषण ने उसकी तरफ देखा पर कुच्छ बोला नही. मगर उसकी आँखें सॉफ उसके दिल की की बात कह रही थी.
"रूपाली धीरे से मुस्कुराइ और ब्लाउस को दोनो तरफ से छ्चोड़ दिया और ब्रा में बंद उसकी चुचियाँ भूसान के सामने थी. गोरी चाँदी पे काला ब्रा अलग ही खिल रहा था. भूषण की साँस तेज़ होने लगी थी. इस उमर में इतनी उत्तेजना उससे बर्दाश्त नही हो रही थी. लग रहा था जैसे अभी हार्ट अटॅक हो जाएगा.
"ये आपके लिए है काका. देखो जी भर के देखो" कहते हुए रूपाली ने भूषण का हाथ पकड़ा और अपनी एक चुचि पे रख दिया. उसने भूषण के हाथ पे थोड़ा ज़ोर डाला और उसका इशारा पाकर भूषण ने भी अपने हाथ को थोड़ा बंद किया. नतीजा? रूपाली की छाती थोड़ी सी दब गयी.
"ओह काका" रूपाली के मुँह से निकल पड़ा"थोड़ा सा और ज़ोर लगाओ"
उसने कहा तो भूषण ने अपना हाथ और ज़ोर से दबाया और उसकी ब्रा के उपेर से ही छाती को मसल्ने लगा.
"हां काका. ऐसे ही. और ज़ोर से. मज़ा आ रहा है ना आपको भी" कहते हुए रूपाली ने अपनी आँखें बंद कर ली.
भूषण को इतना इशारा काफ़ी थी. उसने अपना दूसरा हाथ भी रूपाली की छाती पे रख दिया और दोनो छातियों को दबाने लगा. दोनो की साँस भारी हो चली थी. भूषण कभी उसकी चुचियों को सहलाता तो कभी ज़ोर लगाकर दबाता पर अब उसके हाथ में इतनी ताक़त नही बची थी. रूपाली और ज़ोर से दबाओ कह रही थी और भूषण पूरा ज़ोर लगा रहा था. दोनो एकदम चिपके खड़े थे.
रूपाली ने अपनी आँखें बंद किए ही अपना एक हाथ थोड़ा नीचे किया और पाजामे के उपेर से भूषण का लंड टटोलने लगी. उसके जिस्म में आग लगी हुई थी. टांगे कमज़ोर हुई जा रही थी. उसने भूषण के छ्होटे से लंड को हाथ से पकड़के दबाया. उसे हैरत थी के भूषण का लंड अब भी बैठा हुआ था पर शायद इस उमर में इससे ज़्यादा वो कर भी नही सकता था. ये सोचकर रूपाली ने अपना एक हाथ अपनी ब्रा के नीचे रखा और अपनी ब्रा को एक तरफ से खींचकर अपनी छाती को बाहर निकाल दिया.
अब उसकी एक छाती ब्रा के अंदर थी और दूसरी नीचे की तरफ से बाहर. वो भूषण से लगी खड़ी थी और उसका एक हाथ पाजामे के उपेर से लंड हिला रहा था. उसने आँखें खोली तो भूषण आँखें फाडे उसकी बाहर निकली छाती को देख रहा था. धीरे से भूषण का हाथ उपेर आया और उसकी नंगी छाती पे पड़ा. रूपाली जैसा पागल होने लगी. घर के बूढ़े नौकर का ही सही पर हाथ था तो एक मर्द का. उसके निपल्स खड़े हो गये थे. भूषण एक बार फिर उसकी छाती पे लग गया था और पूरी ताक़त लगाकर दबा रहा था जैसे आटा गूँध रहा हो.
"चूसोगे नही काका" रूपाली ने कहा और फिर खुद ही अपनी एक छाती को पकड़कर भूषण के मुँह की तरफ कर दिया. उसका निपल भूषण के मुँह से जा लगा. भूषण ने मुँह खोला और निपल को मुँह में लेने ही लगा था के रूपाली ने कहा
"चूसो काका. अपनी बेटी समान लड़की की छाती चूसो. जो करना है करो. पाप को भूल जाओ पर एक बात याद रखना. ये बात अगर हवेली के बाहर गयी तो गर्दन काटकर हवेली के दरवाज़े पे टाँग दूँगी"
रूपाली की आवाज़ में कुच्छ ऐसा था के भूषण अंदर तक काँप गया. जैसे किसी घायल शेरनी के गुर्र्रने की आवाज़ सुनी हो. उसका खुला मुँह बंद हो गया और वो रूपाली की तरफ देखने लगा. उसकी आँखों में डर रूपाली को सॉफ नज़र आ रहा था और रूपाली की आँखों में जो था वो देखकर तो भूषण को लगा के वो पाजामे में ही पेशाब कर देगा.
"डरो मत काका"रूपाली फिर मुस्कुराइ तो भूषण की जान में जान आई"खेलो मेरे जिस्म से. ये आपका हो सकता है जब भी आप चाहो बस आपकी ज़ुबान बंद रहे और जो मैं कहूँ वो हो जाए. आपको मेरे साथ मेरी हर बात मान लेनी होगी बिना कोई सवाल किए. समझे?" रूपाली ने पुचछा. भूषण ने हां में सर हिला दिया.
तभी बाहर कार की आवाज़ सुनकर दोनो अलग हो गये. ठाकुर शौर्या सिंग वापस आ गये थे. दोनो एक दूसरे से अलग हुए और अपने कपड़े ठीक करने लगे.
इससे पहले के ठाकुर शौर्या सिंग हवेली के अंदर आते, रूपाली अपने कपड़े ठीक करते हुए जल्दी जल्दी उपेर अपने कमरे की तरफ चली गयी. उसका ब्लाउस अभी भी खुला हुआ था और एक छाती अब भी ब्रा से बाहर थी. उसने ऐसे ही आगे से ब्लाउस को दोनो तरफ से थामा और लगभग दौड़ती हुई अपने कमरे में पहुँची. कमरे के अंदर पहुँचते ही उसे एक लंबी साँस छ्चोड़ दी. ब्लाउस छ्चोड़ दिया और उसकी एक छाती फिर बाहर निकल पड़ी. रूपाली अंदर से बहुत गरम हो चुकी थी. 2 दिन से यही हो रहा था. 2 बार अपने ससुर और 2 बार भूषण के करीब जाने से उसके जिस्म में जैसे आग सी लगी हुई थी. उसे खुद अपने उपेर हैरत थी के उसके जिस्म की ये गर्मी इतने सालो से कहाँ थी जो पिच्छले 2 दिन में बाहर आई थी. वजह शायद ये थी के उसने अब अपने आपको मानसिक तौर पे बदला था जिसका नतीजा अब पूरे जिस्म पे नज़र आ रहा था. वो ऐसे ही बिस्तर पे गिर पड़ी और अपनी बाहर निकली छाती को खुद ही दबाते हुए भूषण की कही बात के बारे में सोचने लगी. उसे इस हवेली के अंदर से ही तलाश शुरू करनी थी. अब 2 दिन से चल रहे खेल से आगे बढ़ने का वक़्त आ गया था. उसे चीज़ों को अब अपने हाथ में लेना था. भूषण उसकी मुट्ठी में आ चुका था. और अब बारी थी इस कड़ी के सबसे ख़ास हिस्से की, ठाकुर शौर्या सिंग की.
रूपाली शाम तक अपने ही कमरे में रही. भूषण खाने को पुच्छने आया था उसने अपने कमरे में ही मंगवा लिया. रात का अंधेरा फेल चुका था. भूषण जब खाना देने आया था उसने धीरे से रूपाली के कान में कहा के ठाकुर साहब ने उसे आज मालिश के लिए माना किया है. कहा है के आज ज़रूरत नही है.
रूपाली उसकी बात समझते हुए बोली "आज से उन्हें मालिश की ज़रूरत आपसे नही है काका" भूष्ण समझ गया के वो क्या कहना चाह रही है. वो इस हवेली में बहुत कुच्छ होता देख चुका था.
"अब और ना जाने क्या क्या देखना होगा" सोचते हुए वो वापिस चला गया.
रूपाली खाना खाकर नीचे आई तो भूषण जा चुका था. अब हवेली में सिर्फ़ वो और शौर्या सिंग रह गये थे. उसने अपने ससुर के कमरे की तरफ देखा जो शायद अंदर से बंद था. वो कमरे के आगे से निकली और किचन तक पहुँची. किचन में उसने एक कटोरी में तेल लिया और हल्का सा गरम किया. हाथ में तेल की कटोरी लिए वो शौर्या सिंग के कमरे तक पहुँची और धीरे से नॉक किया.
"अंदर आ जाओ बहू" शौर्या सिंग जैसे उसके आने का ही इंतेज़ार कर रहे थे.
रूपाली कमरे के अंदर पहुँची. वो लाल सारी में थी. हाथ में तेल की कटोरी थी. ब्लाउस के उपर का एक बटन उसने खुद ही खोला छ्चोड़ दिया था. तेल की कटोरी एक तरफ रखकर उसके अपने ससुर की तरफ देखा.
शौर्या सिंग सिर्फ़ धोती पहने खड़े थे. कुर्ता वो पहले ही उतार चुके थे. शौर्या सिंग और रूपाली की नज़रें मिली. दोनो ने कुच्छ नही कहा. एक दूसरे की तरफ पल भर देखने के बाद शौय सिंग बिस्तर पे जाके लेट गये और रूपाली तेल की कटोरी लिए बिस्तर तक पहुँची. साइड में रखी टेबल पे तेल रखकर वो भी बिस्तर पे चढ़ गयी. अपने ससुर के बिस्तर पर. लाल सारी में.
शौर्या सिंग उल्टे पेट के बाल लेटे हुए थे. रूपाली ने पीठ पे थोड़ा तेल गिराया और धीरे धीरे मालिश करने लगी. उसके हाथ ठाकुर की पूरी पीठ पे फिसल रहे थे. कंधो से शुरू होकर ठाकुर की गांद तक.
"थोड़ा सख़्त हाथ से करो बहू" शौर्या सिंग ने कहा तो रूपाली थोड़ा आगे होकर अपने ससुर के उपेर झुक सी गयी जिससे के उसके हाथ का वज़न ठाकुर के पीठ पे पड़े. वो अपने घुटनो के बल खड़ी सी थी. घुटने के नीचे का हिस्सा ठाकुर के फेले हुए हाथ को च्छू रहा था. ठाकुर का हाथ नीचे से उसके पेर पे सटा हुआ था और रूपाली को महसूस हो रहा था के वो उसे सहला रहे हैं. उसके खुद के जिस्म में धीरे धीरे से फिर वही आग उठ रही थी जिसे वो पिच्छले 2 दिन से महसूस कर रही थी.
जब वो पीठ पे हाथ फेरती हुई नीचे ठाकुर की गांद की तरफ जाती और फिर हाथ उपेर लाती तो उसका हाथ ठाकुर की धोती में हलसा सा अटक जाता. ऐसे ही एक बार जब हाथ फिसलकर नीचे आया तो नीचे ही चला गया. रूपाली को महसूस ही ना हुआ के कब ठाकुर ने अपनी धोती ढीली कर दी थी जिसकी वजह से उसका हाथ ठाकुर की धोती के अंदर तक चला गया. शौर्या सिंग ने धोती के नीचे कुच्छ नही पहेन रखा था इसलिए जब रूपाली का हाथ नीचे गया तो सीधा रेंग कर ठाकुर की गांद पे चला गया. रूपाली ने फ़ौरन अपना हाथ वापिस खींचा जैसे 100 वॉट का झटका लगा हो और शौर्या सिंग की तरफ देखा पर वो वैसे ही लेटे रहे जैसे कुच्छ हुआ ही ना हो. रूपाली एक पल के लिए रुकी और उठकर ठाकुर के पैरो की तरफ आ गयी.
उसने तेल अपने हाथ में लेकर अपने ससुर की पिंदलियों में पे तेल मलना शुरू किया. घुटनो के नीचे नीचे उसने सख़्त हाथ से ठाकुर की टाँगो की मालिश शुरू कर दी. वो फिर अपने घुटनो के बल बिस्तर पे खड़ी सी थी और ठाकुर के दोनो पावं उसके बिल्कुल सामने. जब वो हाथ घुटनो की तरफ उपेर की और ले जाती तो उसे थोड़ा आगे होकर झुकना पड़ता और हाथ नीचे की और लाते हुए फिर वापिस पिछे आना पड़ता. मालिश करते हुए रूपाली ने महसोस्स किया के वो थोडा सा आगे खिसक गयी थी और जब झुककर वापिस पिछे आती तो ठाकुर का पंजा नीचे से उसकी जाँघ पे अंदर की और टच होता. चूत से सिर्फ़ कुच्छ इंच की दूरी पर. फिर भी रूपाली वैसे ही मालिश करती रही. ठाकुर के पेर का स्पर्श उसे अच्छा लग रहा था. उसने नज़र उठाकर ठाकुर के चेहरे की तरफ देखा तो वो दोनो आँखें बंद किए पड़े थे. धोती खुली होने की वजह से थोड़ी नीचे सरक गयी थी और ठाकुर की गांद आधी खुल गयी थी.
"सीधे हो जाइए पिताजी" रूपाली ने बिस्तर के एक तरफ होते हुए कहा.
उसके पुर हाथों में तेल लगा हुआ था जो उसकी सारी पे भी कई जगह लग चुका था. सारी बिस्तर पे इधर उधर होने की वजह से सिकुड़कर घुटनो तक उठ गयी थी और घुटनो के नीचे रूपाली की दोनो टांगे खुल गयी थी.
ठाकुर उठकर सीधे हुए तो रूपाली को एक पल के लिए नज़रें नीचे करनी पड़ गयी. वजह थी ठाकुर का लंड जो पूरी तरफ खड़ा हो चुका था और धोती में टेंट बना रहा था. धोती खुली होने की वजह से ऐसा लग रहा था जैसे लंड के उपेर बस एक कपड़ा सा डाल रखा हो. रूपाली ने ठाकुर के चेहरे की तरफ देखा तो उन्होने अब भी अपनी दोनो आँखें बंद कर रखी थी. वो फिर धीरे से आगे बढ़ी और ठाकुर की छाती पे तेल लगाने लगी. तेल लगाकर वो फिर अपने घुटनो के बल खड़ी सी हो गयी और हाथों पे वज़न डालकर तेल छाती से पेट तक रगड़ने लगी. उसकी नज़र अब भी ठाकुर के खड़े लंड पे ही चिपकी हुई थी. धोती थोड़ी से नीचे की और सरक गयी थी जिससे उसे ठाकुर की झाँटें सॉफ नज़र आ रही थी. वो जब तेल रगड़ती नीचे की और जाती तो लंड की जड़ से बस कुच्छ इंच की दूरी पे ही रुकती. दिल तो उसका कर रहा था के आगे बढ़कर लंड पकड़ ले पर अपने दिल पे काबू रखा और तेल लगाती रही. इसी चक्कर में उसकी सारी का पल्लू खिसक कर नीचे गिर पड़ा था जिसे रूपाली ने दोबारा उठाकर ठीक करने की कोशिश नही की. उसकी दोनो छातियाँ ब्लाउस में उपेर नीचे हो रही थी. उपेर का एक बटन खुला होने के कारण क्लीवेज काफ़ी हाढ़ तक गहराई तक नज़र आ रहा था. एक ही पोज़िशन में रहने के कारण रूपाली का घुटना अकड़ने लगा तो उसने अपनी पोज़िशन हल्की सी चेंज के और उसकी टाँग ठाकुर के हाथ से जा लगी. ठाकुर का हाथ सीधा उसकी घुटनो से नीचे नंगी टाँग पे आ टिका. पर ना तू रूपाली ने साइड हटने की कोशिश की और ना ही ठाकुर ने अपना हाथ हटाने की कोशिश की. रूपाली वैसे ही ठाकुर की छाती पे तेल रगड़ती रही और नीचे धीरे धीरे ठाकुर ने उसकी टाँग को सहलाना शुरू कर दिया. रूपाली की आँखें भी बंद होने लगी.
अब मालिश मालिश ना रह गयी थी. रूपाली भी वैसे ही बस एक ही जगह आँखें बंद किया हाथ ठाकुर की छाती पे रगड़ रही थी और ठाकुर उसकी घुटनो से नीचे नंगी टाँग को सहला रहा था. अचानक रूपाली ने महसूस किया के ठाकुर का हाथ उसकी सारी में उपेर की और जाने की कोशिश कर रहा है. जैसे ही ठाकुर की हाथ अंदर उसकी नंगी जाँघ पे लगा तो रूपाली की दोनो आँखें खुल गयी. उसे झटका सा लगा और वो अंजाने में ही एक तरफ को हो गयी. ठाकुर का हाथ उसकी टाँग से अलग हो गया.
एक पल को रूपाली को भी बुरा सा लगा के वो अलग क्यूँ हुई क्यूंकी ठाकुर के सहलाने में उसे भी मज़ा आ रहा था. उसने फिर थोड़ा सा तेल अपने हाथ में लिया और ठाकुर के पेट पे डाला. तेल को उसके रगड़कर हाथ सख़्त करने के लिए जैसे ही अपना वज़न अपने हाथ पे डाला ठाकुर के मुँह से कराह निकल गयी. शायद वज़न कुच्छ ज़्यादा हो गया था. वो हल्का सा मुड़े और एक हाथ से रूपाली की कमर को पकड़ लिया.
"माफ़ कीजिएगा पिताजी" रूपाली ने ठाकुर की तरफ देखा पर वो कुच्छ नही बोले और आँखें वैसे ही बंद रही.
रूपाली ने फिर मालिश करनी शुरू कर दी पर ठाकुर का हाथ वहीं उसकी कमर पे ही रहा. उन्होने उसकी ब्लाउस और पेटिकोट के बीच के हिस्से से कमर को पकड़ रखा था. नंगी कमर पे उनका हाथ पड़ते ही रूपाली जैसे हवा में उड़ने लगी. ठाकुर का हाथ धीरे धीरे फिर उसकी कमर को सहलाने लगा और रूपाली की आँखें फिर बंद हो गयी. वो ठाकुर को पेट को सहलाती रही और वो उसकी नंगी कमर को. हाथ धीरे से आगे से होकर उसके पेट पे आया और फिर कमर पे चला गया. अब वो उसके नंगे पेट और कमर को सिर्फ़ सहला नही रहे थे, बल्कि मज़बूती से रगड़ रहे थे. एक बार ठाकुर का हाथ रूपाली के पेट पे गया तो सरक कर आगे आने की बजाय नीचे की और उसकी गांद पे गया. उन्होने एक बार हाथ रूपाली की पूरी गांद पे फिराया और फिर उसके एक कूल्हे को अपने मुट्ठी में पकड़ लिया.
रूपाली फिर चिहुन्क कर एक तरफ को हुई. वो शायद इन अचानक हो रहे हमलो से थोड़ा सा घबरा सी जाती पर ठाकुर का हाथ हट जाते ही अगले ही पल खुद अफ़सोस करती क्यूँ ठाकुर के हाथ का मज़ा आना बंद हो जाता.
"लाइए आपके हाथ पे कर देती हूँ" कहते हुए रूपाली ने ठाकुर का अपनी तरफ का हाथ सीधा किया. ठाकुर का पंजा उसके कंधे पे आ गया और वो दोनो हाथ से अपने ससुर की पूरी आर्म पे तेल लगाके मालिश करने लगी. उसकी सारी का पल्लू अब भी नीचे था और छातियाँ सिर्फ़ ब्लाउस में थी. ब्रा रूपाली आने से पहले ही उतारकर आई थी. उसके ससुर की कलाई उसकी एक छाती पे दब रही थी जिसकी वजह से ब्लाउस पे पूरा तेल लग गया था. लाल ब्लाउस होने के बावजूद उसके निपल्स सॉफ नज़र आने लगे थे. जैसे जैसे उसकी मालिश का दबाव ठाकुर के हाथ पे बढ़ रहा था वैसे वैसे ही उनकी कलाई का दबाव उसकी छाती पे बढ़ रहा था. धीरे धीरे हाथ कंधे से सरक कर उसके गले पे आ गया और ठाकुर की आर्म उसकी दोनो छातियों पे दब गयी. रूपाली की साँस भारी हो चली थी और उसे महसूस हो रहा था के ठाकुर की साँस भी तेज़ हो रही है. रूपाली ने बंद आँखें खोली तो देखा के ठाकुर की छाती तेज़ी से उपेर नीचे हो रही है. लंड अब पूरा अकड़ चुका था और धोती में हिल रहा था. धोती अब भी लंड के उपेर पड़ी थी इसलिए रूपाली सिर्फ़ अंदाज़ा ही लगा सकती थी के वो कैसा होगा. चाहकर भी वो धोती को लंड से हटाने से अपने आपको रोके हुए थी. ठाकुर ने अब उसकी छातियों पे अपनी आर्म का दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया था. उनके हाथ का पंजा रूपाली के क्लीवेज पे हाथ और नीचे वो अपनी कलाई से उसकी दोनो छातियों को रगड़ रही थी.
रूपाली ने ठाकुर के अपनी तरफ के हाथ को छ्चोड़कर दूसरे हाथ को उठाया. वो अब भी उसी साइड बैठी हुई थी जिसकी वजह से उसे दूसरा हाथ अपनी तरफ लेना पड़ा. पहले हाथ की तरफ ये हाथ उसके कंधे तक नही पहुँचा. ठाकुर ने उसके इशारे से पहले ही खुद डिसाइड कर लिया के हाथ कहाँ रखा जाना चाहिए. उन्होने हाथ उठाकर सीधा रूपाली की दोनों चूचियों पे रख दिया. रूपाली की साँस अटकने लगी. ये ठाकुर का अपने हाथ से उसकी चूची पे पहला स्पर्श था. उसने इस बार ना तो पिछे होने की कोशिश की और ना ही हाथ हटाके कहीं और रखने की कोशिश की. वो चुपचाप आर्म पे मालिश करने लगी और ठाकुर ने अब सीधे सीधे उसकी दोनो चूचियों को दबाना शुरू कर दिया. दोनो की साँस तेज़ हो चली थी और दोनो की ही आँखें बंद थी. ठाकुर ज़ोर ज़ोर से रूपाली की दोनो चूचियों को मसल रहे थे और वो भी अब मालिश नही, उनके हाथ को सहला रही थी जो उसे इतने मज़े दे रहा था. ठाकुर ने अपना दूसरा हाथ ले जाकर उसकी गांद पे रखा दिया और सहलाने लगे.वो उसके दोनो कूल्हे अपने हाथ में पकड़ने की कोशिश करते पर रूपाली की मोटी गांद का थोड़ा सा हिस्सा ही पकड़ पाते. अब दोनो के बीच पर्दे जैसे कुच्छ नही रह गया था और जो हो रहा था वो सॉफ तौर पे हो रहा था पर फिर भी दोनो में से बोल कोई कुच्छ नही रहा था. ठाकुर का हाथ अब सारी के उपेर से ही उसकी गांद के बीचो बीच रेंग रहा था और धीरे से पिछे से होता उसकी चूत पे आ गया और इस बार रूपाली और बर्दाश्त नही कर सकी. उसे लगा के अब अगर वो नही हटी तो ठाकुर को लगेगा के वो भी चुदने के लिए बेताब है जो उसके प्लान का हिस्सा नही था.
"मैं चलती हूँ पिताजी. मालिश हो गयी" कहकर रूपाली उठने लगी पर ठाकुर ने उसका एक हाथ पकड़के फिर बिठा लिया.
रूपाली ने ठाकुर की तरफ देखा तो वो आँखें खोल चुके थे. उसे सवालिया नज़रों से ठाकुर की तरफ देखा जैसे पुच्छ रही हो के अब क्या और इससे पहले के कुच्छ समझ पाती, ठाकुर ने एक हाथ से अपनी खुली हुई धोती को एक तरफ फेंक दिया और दूसरे हाथ से रूपाली का हाथ अपने लंड पे रख दिया जैसे कह रहे हों के यहाँ की मालिश रह गयी.
रूपाली ने हाथ हटाने की कोशिश की पर ठाकुर ने उसका हाथ मज़बूती से पकड़ रखा था. कुच्छ पल दोनो यूँ ही रुके रहे और फिर धीरे से रूपाली ने अपना हाथ लंड पे उपेर की और किया. ठाकुर इशारा समझ गये की रूपाली मान गयी है और उन्होने अपना हाथ हटा लिया. रूपाली ने दूसरे हाथ से लंड पे थोड़ा तेल डाला और अपना हाथ उपेर नीचे करने लगी. ठाकुर के लंड पे जैसे उसकी नज़र चिपक गयी थी. उसने अब तक देखे सिर्फ़ 2 लंड थे. अपने पति का और अब ठाकुर का. यूँ तो उसने भूषण का लंड भी पकड़ा था पर उसे देखा नही थी. और भूषण का छ्होटा सा लंड तो ना होने के बराबर ही था. वो दिल ही दिल में ठाकुर के लंड को अपने पति के लंड से मिलाने लगी. ठाकुर का लंड लंबाई और चौड़ाई दोनो में उसके पति के लंड से दुगना था. रूपाली के मुँह में जैसे पानी सा आने लगा और नीचे चूत भी पूरी तरह गीली हो गयी. अब जैसे उसे खबर ही नही थी के वो क्या कर रही है. बस एकटूक लंड को देखते हुए अपना हाथ ज़ोर ज़ोर से उपेर नीचे कर रही थी. थोड़ी देर बाद जब उसका हाथ थकने लगा तो उसने अपना दूसरा हाथ भी लंड पे रख दिया और दोनो हाथों से लंड को हिलाने लगी जैसे कोई खंबा घिस रही हो. ठाकुर को एक हाथ वापिस उसकी गांद पे जा चुका था और नीचे सारी के उपेर से उसकी चूत को मसल रहा था. रूपाली दोनो हाथों से लंड पे मेहनत कर रही थी और नीचे ठाकुर की अंगलियों उसकी चूत को जैसे कुरेद रही थी. रूपाली ने इस बार हटने की कोई कोशिश नही की थी. चुपचाप बैठी हुई थी और चूत मसलवा रही थी. उसका ब्लाउस तेल से भीग चुका था और उसके दोनो निपल्स सॉफ नज़र आ रहे थे पर उसे किसी बात की कोई परवाह नही थी. उसे तो बस सामने खड़ा लंड नज़र आ रहा था. ठाकुर ने दूसरा हाथ उठाके उसकी छाती पे रख दिया और उसकी बड़ी बड़ी छातियों को रगड़ने लगे. एक उंगली उसके क्लीवेज से होती दोनो छातियों के बीच अंदर तक चली गयी. फिर उंगली बाहर आई और इस बार ठाकुर ने पूरा हाथ नीचे से उसके ब्लाउस में घुसाकर उसकी नंगी छाती पे रख दिया. ठीक उसी पल उन्होने अपने दूसरे हाथ की उंगलियों को रूपाली की चूत पे ज़ोरसे दबाया. रूपाली के जिस्म में जैसे 100 वॉट का कुरेंट दौड़ गया. वो ज़ोर से ठाकुर के हाथ पे बैठ गयी जैसे सारी फाड़ कर उंगलियों को अंदर लेने की कोशिश कर रही हो. उसके मुँह से एक लंबी आआआआआअहह छूट पड़ी और उसकी चूत से पानी बह चला.. अगले ही पल ठाकुर उठ बैठे, रूपाली को कमर से पकड़ा और बिस्तर पे पटक दिया.इससे पहले के रूपाली कुच्छ समझ पाती, लंड उसके हाथ से छूट गया और ठाकुर उसके उपेर चढ़ बैठे. उसकी पहले से ही घुटनो के उपेर हो रखी सारी को खींचकर उसकी कमर के उपेर कर दिया. रूपाली आने से पहले ही ब्रा और पॅंटी उतारके आई थी इसलिए सारी उपेर होते ही उसकी चूत उसके ससुर के सामने खुल गयी. रूपाली को कुच्छ समझ में नही आ रहा था इसलिए उसकी तरफ से ठाकुर को कोई प्रतिरोध का सामना ना करना पड़ा. वो अब अब तक ठाकुर के अपनी चूत पे दभी उंगलियों के मज़े से बाहर ही ना आ पाई थी. जब तक रूपाली की कुच्छ समझ आया के क्या होने जा रहा है तब तक ठाकुर उसकी दोनो टांगे खोलके घुटनो से मोड़ चुके थे. उसके दो पावं के पंजे ठाकुर के पेट पे रखे हुए थे जिसकी वजह से उसकी चूत पूरी तरह से खुलके ठाकुर के सामने आ गयी थी. रूपाली रोकने की कोशिश करने ही वाली थी के ठाकुर ने लंड उसकी चूत पे रखा और एक धक्का मारा.
रूपाली के मुँह से चीख निकल गयी. उसे लगा जैसे किसी ने उसके अंदर एक खूँटा थोक दिया हो. एक तो वो 10 साल से चुदी नही थी और 10 साल बाद जो लंड अंदर गया वो हर तरह से उसके पति के लंड से दोगुना था. उसकी चूत से दर्द की लहर उठकर सीधा उसके सर तक पहुँच गयी. उसका पूरा जिस्म अकड़ गया और उसने अपने दोनो पावं इतनी ज़ोर से झटके के ठाकुर की मज़बूत पकड़ में भी नही आए. उसने बदन मॉड्कर लंड चूत से निकालने की कोशिश की पर तब तक ठाकुर उसके उपेर लेट चुके थे. रूपाली ने अपने दोनो नाख़ून ठाकुर की पीठ में गाड़ दिए. कुच्छ दर्द की वजह से और कुच्छ गुस्से में और कुच्छ ऐसे जैसे बदला ले रही हो. उसके दाँत ठाकुर के कंधे में गाडते चले गये. इसका नतीजा ये हुआ के ठाकुर गुस्से में थोड़ा उपेर को हुए और उसके ब्लाउस को दोनो तरफ से पकड़के खींचा. खाट, खाट, खाट, ब्लाउस के सारे बटन खुलते चलये गये. ब्रा ना होने के कारण रूपाली की दोनो चुचियाँ आज़ाद हो गयी. बड़ी बड़ी दोनो चूचियाँ देखते ही ठाकुर उनपर टूट पड़े. एक चूची को अपने हाथ में पकड़ा और दूसरी का निपल अपने मुँह में ले लिया. रूपाली के जिस्म में अब भी दर्द की लहरें उठ रही थी. तभी उसे महसूस हुआ के ठाकुर अपना लंड बाहर खींच रहे हैं पर अगले ही पल दूसरा धक्का पड़ा और इस बार रूपाली की आँखों के आगे तारे नाच गये. चूत पूरी फेल गयी और उसे लगा जैसे उसके अंदर उसके पेट तक कुच्छ घुस गया हो. ठाकुर के अंडे उसकी गांद से आ लगे और उसे एहसास हुआ के पहले सिर्फ़ आधा लंड गया था इस बार पूरा घुसा है. उसकी मुँह से ज़ोर से चीख निकल गयी
"आआआआहह पिताजी" रूपाली ने कसकर दोनो हाथों से ठाकुर को पकड़ लिया और उनसे लिपट सी गयी जैसे दर्द भगाने की कोशिश कर रही हो.
उसका पूरा बदन अकड़ चुका था. लग रहा था जैसे आज पहली बार चुद रही हो. बल्कि इतना दर्द तो तब भी ना हुआ था जब पुरुषोत्तम ने उसे पहली बार चोदा था. उसके पति ने उसे आराम से धीरे धीरे चोदा था और उसके ससुर ने तो बिना उसकी मर्ज़ी की परवाह के लंड जड़ तक अंदर घुसा दिया था.. ठाकुर कुच्छ देर यूँही रुके रहे. दर्द की एक ल़हेर उसकी छाती से उठी तो रूपाली को एहसास हुआ के दूसरा धक्का मारते हुए उसके ससुर ने उसकी एक चूची पे दाँत गढ़ा दिए थे. ठाकुर ने अब धीरे धीरे धक्के मारने शुरू कर दिए थे. लंड आधा बाहर निकालते और अगले ही पल पूरा अंदर घुसा देते. रूपाली के दर्द का दौर अब भी ख़तम नही हुआ था. लंड बाहर को जाता तो उसे लगता जैसे उसके अंदर से सब कुच्छ लंड के साथ साथ बाहर खींच जाएगा और अगले पल जब लंड अंदर तक घुसता तो जैसे उनकी आँखें बाहर निकलने को हो जाती. उसकी पलकों से पानी की दो बूँदें निकलके उसके गाल पे आ चुकी थी. उसकी घुटि घुटि आवाज़ में अब भी दर्द था जिससे बेख़बर ठाकुर उसे लगातार चोदे जा रहे था. लंड वैसे ही उसकी चूत में अंदर बाहर हो रहा था बल्कि अब और तेज़ी के साथ हो रहा था. ठाकुर के हाथ अब रूपाली की मोटी गांद पे था जिसे उन्होने हाथ से थोड़ा सा उपेर उठा रखा था ताकि लंड पूरा अंदर तक घुस सके. वो उसके दोनो निपल्स पे अब भी लगे हुए थे और बारी बारी दोनो चूस रहे थे. रूपाली की दोनो टाँगें हवा में थी जिन्हें वो चाहकर भी नीचे नही कर पा रही थी क्यूंकी जैसे ही घुटने नीचे को मोडती तो जांघों की नसे अकड़ने लगती जिससे बचने के लिए उसे टांगे फिर हवा में सीधी करनी पड़ती. कमरे में बेड की आवाज़ ज़ोर ज़ोर से गूँज रही थी.रूपाली की गांद पे ठाकुर के अंडे हर झटके के साथ आकर टकरा रहे थे. दोनो के जिस्म आपस में टकराने से ठप ठप की आवाज़ उठ रही थी. ठाकुर के धक्को में अब तेज़ी आ गयी थी. अचानक एक ज़ोर का धक्का रूपाली के चूत पे पड़ा, लंड अंदर तक पूरा घुसता चला गया और उसकी चूत में कुच्छ गरम पानी सा भरने लगा. उसे एहसास हुआ के ठाकुर झाड़ चुके हैं. मज़ा तो उसे क्या आता बल्कि वो तो शुक्र मना रही थी के काम ख़तम हो गया. ठाकुर अब उसके उपेर गिर गये थे. लंड अब भी चूत में था, हाथ अब भी रूपाली के गांद पे था और मुँह में एक निपल लिए धीरे धीरे चूस रहे थे. रूपाली एक लंबी साँस छ्चोड़ी और अपनी गर्दन को टेढ़ा किया. उसकी नज़र दरवाज़े पे पड़ी जो हल्का सा खुला हुआ था और जिसके बाहर खड़ा भूषण सब कुच्छ देख रहा था.
सेक्सी हवेली का सच compleet
Re: सेक्सी हवेली का सच
सेक्सी हवेली का सच--4
रूपाली की आँख खुली तो रात अब भी पुर नूर पे थी. उसने घड़ी की तरफ देखा तो रात के 2 बज रहे थे. वो अब भी आधी नंगी हालत में पड़ी थी. .साड़ी उपेर को खिसकी हुई थी और कमर से खुल गयी थी. उसकी चूत तो ढाकी हुई थी पर टांगे जाँघ तक खुली हुई थी. ब्लाउस के सारे बटन ठाकुर ने तोड़ दिए थे जिसके कारण वो उसे चाहकर भी बंद नही कर सकती थी. ब्लाउस उसके सीने से हटकर दोनो तरफ से कमर के नीचे दबा हुआ था और दोनो चूचियाँ खुली पड़ी थी. रूपाली ने गर्दन घूमाकर ठाकुर की तरफ देखा तो वो भी वैसे ही नंगे सोए पड़े थे. लंड बैठ चुका था और उनका एक हाथ अब भी रूपाली के पेट पे था. रूपाली ने उठने की कोशिश की तो दर्द से उसकी चीख सी निकल गयी. उसकी चूत में अब भी दर्द हो रहा था. छातियाँ चूसे जाने की वजह से पूरी लाल थी और एक छाती पे ठाकुर के दाँत के निशान बने हुए थे. रूपाली ने अपनी चूत पे हाथ फिराया तो कराह उठी. नीचे उसकी गांद पे भी ठाकुर ने अपने नाख़ून गाड़ा दिए थे.
रूपाली ने ठाकुर का हाथ अपने पेट से हटाया और फिर बिस्तर पे गिर पड़ी. उसने अपने आपको ढकने की कोई कोशिश नही की. फायडा भी नही था. वो चाहती भी तो यही थी के ऐसा हो पर ये नही जानती थी के इस तरह होगा. ठाकुर ने उसको संभलने का कोई मौका नही दिया. जो आग 10 साल से जमा हो रही थी एक झटके में रूपाली के उपेर निकाल दी. इससे पहले के रूपाली कुच्छ समझ पाती वो चुद रही थी अपने ही ससुर से. उन्होने उसके दर्द की कोई परवाह नही की. बस उसे किसी रंडी की तरह नीचे पटका और उसपर चढ़ गये.
रूपाली का ध्यान फिर से अपने गुज़रे कल में चला गया. कहाँ वो सीधी सादी से लड़की जो अपने भगवान में खोई रहती थी और कहाँ ये बदली हुई औरत जो अपने ससुर के बिस्तर पे नंगी पड़ी हुई थी, उनसे चुद्वने के बाद. जिसकी चूत में उसका नौकर तक उंगलियाँ कर चुका था. उसने एक ठंडी आह भारी और अपने भगवान को कोसने लगी. उसने क्या सोचा था और नसीब ने उसे क्या दिन दिखाए थे. कहाँ वो इस हवेली में एक बहू की हैसियत से आई थी और अपने ही ससुर की रखेल बनने की तैय्यारि कर रही थी. वजह सिर्फ़ एक थी. उसे अपने पति के क़ातिल का पता लगाना था, पता करना था के वो कौन शक्श था जिसने उसकी ज़िंदगी बर्बाद की थी.
"यही बदला दिया है तूने मेरी पूजा पाठ का, है ना?" उसने अपने दिल ही दिल में भगवान पे जैसे चीखते हुए कहा.
अचानक उसका ध्यान दरवाज़े की तरफ गया जो अब बंद हो चुका था. भूषण ने उसकी पूरी चुदाई देखी थी. जाने वो काब्से दरवाज़े पे खड़ा सब कुच्छ देख रहा था. शायद रूपाली के चीख सुनकर आया था या शायद उससे पहले ही खड़ा था. जब ठाकुर के झाड़ जाने के बाद रूपाली ने उसकी तरफ देखा तो एक पल के लिए दोनो की नज़र एक दूसरे से टकराई. रूपाली ने सीधे भूषण की आँख में आँख डालकर देखा तो भूषण ने नज़र नीची कर ली और दरवाज़ा बंद करके वापिस चला गया. उसके बाद ठाकुर यूँ ही थोड़ी देर रूपाली के उपेर. लंड सिकुड़कर खुद ही चूत से बाहर निकल गया तो वो बिस्तर पे ढेर हो गये. दोनो जाग रहे थे पर किसी ने कुच्छ नही कहा. ना रूपाली ने उठकर अपने आपको ढकने की कोशिश की और ना ही ठाकुर बिस्तर से उठे. दोनो यूँ ही नंगे पड़े पड़े जाने कब सो गये थे.
रूपाली ने नज़र उठाकर घड़ी की तरफ देखा तो 3 बज चुके थे. उसने एक पल के लिए उठकर अपने कमरे में जाने की सोची पर फिर एक ठंडी आह भारी, अपने आपको किस्मत के हवाले किया और वहीं अपने ससुर के बिस्तर पे ही फिर सो गयी और सपने मैं खो गयी
रूपाली एक जंगल के बीचो बीच खड़ी थी. चारो तरफ ऊँचे पेड़ थे. अजीब अजीब सी आवाज़ आ रही थी. अंधेरा इतना के हाथ को हाथ नही सूझ रहा था. उसने पेर आगे बढ़ाने की कोशिश की तो दर्द की एक तेज़ ल़हेर उठी. वो नंगे पेर थी और उसने एक काँटे पे पेर रख दिया था. रूपाली ने अपना पेर उठाया और काँटे को बाहर खींचकर फिर लड़खड़ा कर आगे बढ़ी. आसमान पे नज़र डाली तो पूरा चाँद था पर चाँदनी नही थी. कोई रोशनी कहीं से नज़र नही आ रही थी. हर तरफ घुप अंधेरा. पास ही किसी साँप की फूंकारने की आवाज़ आ रही थी जो धीरे धीरे नज़दीक आ रही थी. शायद वो साँप उसी की तरफ बढ़ रहा था. रूपाली ने तेज़ी से कदम उठाए और आवाज़ से दूर भागने लगी. पर जैसे जैसे वो कदम आगे उठा रही थी किसी शेर के गुर्राने की आवाज़ नज़दीक आ रही थी. शायद आगे कोई शेर था जिसकी तरफ वो भागी जा रही थी. रूपाली फ़ौरन रुकी और दूसरी तरफ भागने लगी. साँप और शेर की आवाज़ अब भी उसके पिछे से आ रही थी. अचानक एक शोर सा पेड़ से उठा और रूपाली को बहुत से बंदर हल्के हल्के दिखाई दिए. वो बंदर बहुर शोर मचा रहे थे. शायद उन्हें उसका अपने इलाक़े में आना पसंद नही आ रहा था. रूपाली रुकी और फिर पलटकर दूसरी तरफ को भागने लगी. पर अब बंदर भी उसके पिछे पड़े हुए थे. उसके पिछे साँप, शेर और बंदर तीनो आ रहे थे. रूपाली को समझ नही आ रहा था के क्या करे. बस बदहवास भागती जा रही थी. साँप से दूर. शेर से दूर, बंदरों से दूर.
भागती भागती अचानक वो जंगल से निकलकर एक खुले मैदान में आ पहुँची. यहाँ अंधेरा नही था. यहाँ चाँदनी थी. रोशनी में आई तो रूपाली को एहसास हुआ के उसकी ब्लाउस खुली हुई है और अंदर ब्रा नही थी जिसकी वजह से उसकी दोनो बड़ी बड़ी चूचियाँ खुली हुई थी और भागते हुए उपेर नीचे हो रही थी. रूपाली ने एकदम अपने ब्लाउस को पकड़के सामने किया और अपने सीने को ढका. वो भागते भागते थक चुकी थी और जानवर शायद अब उसके पिछे नही थे क्यूंकी शोर बंद हो गया था. रूपाली तक कर ज़मीन पे बैठी ही थी के शोर फिर उठा. वो एक खुले मैदान में थी जिसके चारों तरफ घना जंगल था. ऊँचे पेड़ थे जिनके अंदर अंधेरे की वजह से कुच्छ नज़र नही आ रहा था. अचानक शोर फिर उठा और एक तरफ से सारे पेड़ हिलने लगे. उनपर से बड़े बड़े बंदर ज़मीन पे उतरकर चीखते हुए दाँत दिखाते हुए रूपाली के तरफ बढ़ने लगे. रूपाली घबराकर फिर उठी और भागने को हुई ही थी के देखा के दूसरी तरफ से एक बड़ा सा साँप जंगल से निकला और उसकी तरफ बढ़ा. तीसरी तरफ से एक बहुत बड़ा शेर जंगल से निकल गुर्राते हुए उसकी तरफ आने लगा. बंदरों का शोर उसके कानो के पर्दे फाड़ रहा था. वो तीन तरफ से घिर चुकी थी. रूपाली के पास अब और कोई चारा नही था सिवाय इसके के चौथी तरफ से फिर जंगल में भाग उठे. वो फिर जंगल की तरफ भागी पर अचानक उसके सामने से एक तेज़ रोशनी आती हुई दिखाई दी. रूपाली फिर सहम कर रुक गयी. रोशनी धीरे धीरे नज़दीक आती गयी और साथ ही कार के एंजिन की आवाज़ भी आने लगी. रोशनी अब बहुत नज़दीक आ गयी थी और रूपाली को अपनी आँखों पे हाथ रखना पड़ा. अचानक एक कार जंगल से निकली और रूपाली से थोड़ी दूर जाकर रुक गयी. रूपाली ने आँखें खोलकर देखा तो वो कार पुरुषोत्तम की थी. उसकी जान में जान आ गयी. उसका पति उसे बचाने को आ गया था. वो खुश होते हुई कार की तरफ भागी तो ध्यान दिया के सारे जानवर अब जा चुके हैं. शायद कार से डरकर भाग गये थे. वो खुश होती कार के पास पहुँची ही थी के कार का दरवाज़ा खुला और खून से लथपथ पुरुषोत्तम गाड़ी से बाहर निकलकर गिर पड़ा. उसकी आँख, नाक, कान मुँह हर जगह से खून निकल रहा था. उसने ज़मीन पे गिरे गिरे मदद के लिए रूपाली की तरफ हाथ उठाया. रूपाली अपने पति के पास पहुँची और ज़मीन पे बैठ कर उसका सर अपनी गोद में रख लिया.
"क्या हुआ आपको?" उसने लगभग चिल्लाते हुए पुरुषोत्तम से पुचछा.
"रूपाली ..................." पुरुषोत्तम जवाब में बस इतना ही कह सका. उसके मुँह से खून अब और ज़्यादा बहने लगा था. आअंखों में खून उतर जाने की वजह से आँखें लाल हो गयी थी.
रूपाली ने परेशान होकर अपने चारों तरफ देखा जैसे मदद के लिए किसी को ढूँढ रही हो और सामने से उसे भूषण आता हुआ दिखाई दिया एक बार फिर उसकी हिम्मत बँधने लगी.
"भूषण काका" वो भूषण की तरफ देखके चिल्लाई " देखिए इन्हें क्या हो गया है. मदद कीजिए. इन्हें डॉक्टर के पास ले जाना पड़ेगा"
पर भूषण अब उससे थोड़ी दूर रुक गया था और खड़ा हुआ सिर्फ़ देख रहा था.
"आप रुक क्यूँ गये. इधर आइए ना" रूपाली फिर चिल्लाई पर भूषण वहीं खड़ा हुआ उसे एक मुर्दे की तरह देखता रहा.
"रूपाली" अपने पिछे से एक जानी पहचानी भारी सी आवाज़ सुनकर रूपाली पलटी तो देखा के पिछे उसके ससुर ठाकुर शौर्या सिंग खड़े हुए थे.
"पिताजी" रूपाली की आँखों में खुशी के आँसू आ गये
"देखिए क्या हो गया" उसने अपनी पति की तरफ इशारा किया.
जवाब में ठाकुर ने उसके बाल पकड़े और उसे खींचकर सीधा खड़ा कर दिया. पुरुषोत्तम का सिर उसकी गोद से निकलकर ज़मीन पे गिर पड़ा. रूपाली की कुच्छ समझ नही आ रहा था के क्या हो रहा है. ठाकुर उसे बाल से पकड़कर खींचता हुआ कार की तरफ ले गया और कार के बोनेट पे उसे गिरा दिया.
"क्या कर रहे हैं पिताजी?" रूपाली ने पुचछा तो ठाकुर ने उसे खींचकर फिर सीधा खड़ा किया, घुमाया और उसे झुककर उसका सर कार के बोनेट से लगा दिया. अब रूपाली झुकी हुई अपने ससुर के सामने खड़ी थी.
उसने उठने की कोशिश की पर पिछे उठ नही पाई. ठाकुर अब पिछे से उसकी सारी उठा रहे थे और रूपाली चाहकर भी कुच्छ नही कर पा रही थी. जैसे उसके हाथ पावं में जान ही ना बची हो. जैसे किसी अंजान ताक़त ने उसे पकड़ रखा हो. ठाकुर सारी उठाकर अब उसकी कमर पे डाल चुके थे. नीचे से रूपाली की दोनो टाँगें और गांद खुल गयी थी. उसकी चूत पिछे से ठाकुर के सामने खुली हुई थी.ठंडी हवा लगी तो रूपाली को महसूस हुआ के आज तो उसने पॅंटी भी नही पहनी थी.
"ये कैसे हुए, कैसे भूल गयी मैं" रूपाली सोच ही रही थी के उसे अपनी चूत में कुच्छ घुसता हुआ महसूस हुआ. उसके बदन में दर्द की चुभन उठती चली गयी. लगा जैसे चूत को फाड़ कर दो हिस्सो में कर दिया गया हो. वो लंबी सी मोटी चीज़ अब भी उसके अंदर घुसती चली जा रही थी. उसका सर और हाथ कार के बोनेट पे रखे हुए थे और दोनो चूचियाँ सामने लटक गयी थी. एक हाथ आगे आया और उसके एक चूची को पकड़कर दबाने लगा.
रूपाली के अंदर जान बाकी नही थी. वो चाहकर भी कुच्छ ना कर पा रही थी. बश झुकी खड़ी थी. पीछे से उसके ससुर ने एक हाथ से उसकी गांद और दूसरे हाथ से उसकी एक चूची पकड़ रखी थी. थोड़ी दूर खड़ा भूषण अब ज़ोर ज़ोर से हस रहा था. एक लंबी मोटी से चीज़ उसकी चूत में अब भी और अंदर घुसने की कोशिश कर रही थी.
हड़बड़ा कर रूपाली की आँख खुली तो देखा के वो एक सपना देख रही. उसके पूरा बदन पसीने से भीग चुका था और वो सूखे पत्ते की तरफ काँप रही थी. ठाकुर अब उसकी साइड में नही थे और वो अकेली ही बिस्तर पे आधी नंगी पड़ी थी. उसे बहुत ज़ोर से सर्दी लग रही थी. हाथ लगाया तो देखा के उसका माथा किसी तवे की तरह गरम हो चुका था. सपना जैसे अब भी उसकी आँखों के सामने घूम रहा था और भूषण के हस्ने की आवाज़ अब भी उसके कान में थी.
रूपाली लड़खड़ाते हुए बिस्तर से उठी. खड़ी होते ही खुली हुई साड़ी ज़मीन पे जा गिरी. रूपाली ने झुक कर उसे उठाया पर बाँधने की कोई कोशिश नही की. सामने से ब्लाउस खुला हुआ था और उसकी चूचियाँ बाहर लटक रही थी. रूपाली ने साडी को अपने सामने पकड़ा और चूचियों को ढका. वो धीरे धीरे चलती ठाकुर के कमरे से बाहर निकली और इधर उधर देखा. हवेली सुनसान पड़ी थी. भूषण भी कहीं नज़र नही आ रहा था. वो धीमे कदमों से सीढ़ियाँ चढ़ते अपने कमरे में पहुँची और फिर जाकर अपने बिस्तर पे गिर पड़ी. उसके जिस्म में बिल्कुल जान नही थी. पूरा बदन आग की तरह गरम हो रहा था. सर्दी भी उसे बहुत लग रहा था. माथा गरम हो चुका था और बुखार की वजह से आँखें भी लाल हो रही थी. रूपाली बिस्तर पे पड़े पड़े ही अपने जिस्म से कपड़े हटाए और नंगी होकर बाथरूम में आई. दरवाज़े का सहारा लिए लिए ही उसने बाथटब में पानी भरा और नहाने के लिए टब में उतर गयी.
शाम ढल चुकी थी. रूपाली अब भी अपने कमरे में ही थी. उसने सुबह से कुच्छ नही खाया था और ना ही अपने कमरे से निकली थी. बुखार अब और तेज़ और हो चुका था और रूपाली के मुँह से कराहने की आवाज़ निकलने लगी थी. उसने कई बार बिस्तर से उठने की कोशिश की पर नाकाम रही. गर्मी के मौसम में भी उसने अलमारी से निकालकर रज़ाई ओढ़ रखी थी पर सर्दी फिर भी नही रुक रही थी. वो बिस्तर पे सिकुड सी गयी. जब दर्द की शिद्दत बर्दाश्त नही हुई तो उसकी आँखो से आँसू बह चले और वो बेज़ार रोने लगी.
उसे याद था के पुरुषोत्तम के मरने से पहले जब वो एक बार बीमार हुई थी तो किस तरह उसके पति ने उसका ख्याल रखा था और आज वो अकेली बिस्तर पे पड़ी कराह रही थी. पति की याद आई तो उसका रोना और छूट पड़ा. वो बराबर रज़ाई के अंदर रोए जा रही थी पर जानती थी के ये रोना सुनने वाला अब कोई नही है. उसे खुद ही रोना है और खुद ही चुप हो जाना है. आँसू अब उसके चेहरे से लुढ़क कर तकिये को गीला कर रहे थे.
"बहू" दरवाज़े पे दस्तक हुई. बाहर भूषण खड़ा था
"खाना तैय्यार है. आके खा लीजिए." वो उसे रात के खाने पे बुला रहा था.
"नही मुझे भूख नही है" रूपाली ने हिम्मत बटोरकर कहा.
भूषण वापिस चला गया तो रूपाली को फिर अपने उपेर तरस आ गया. आज बीमार में उसे कोई खाने को पुच्छने वाला भी नही है. उसे अपनी माँ और भाई की याद आई जो कैसे उसे लाड से ज़बरदस्ती खिलाया करते थे, उसे अपने पति की याद आई जो उसकी कितनी देखभाल करता था.
थोड़ी देर बाद दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई तो रूपाली ने रज़ाई से सर निकालकर बाहर देखा. दरवाज़े पे उसके ससुर खड़े थे जो हैरानी से उसे देख रहे थे. वजह शायद रज़ाई थी जो उसने गर्मी के मौसम में भी अपने उपेर पूरी लपेट रखी थी.
"क्या हुआ?" ठाकुर ने पुचछा
"जी कुच्छ नही. बस थोड़ी तबीयत खराब है" रूपाली ने उनकी तरफ देखते हुए कहा
ठाकुर धीरे से उसके नज़दीक आए और उसके माथे को छुआ. अगले ही पल उन्होने हाथ वापिस खींच लिया.
"हे भगवान. तुम्हें तो बहुत तेज़ बुखार है बहू" ठाकुर ने कहा
"नही बस थोड़ा सा ऐसे ही बदन टूट रहा है. आप फिकर ना करें" रूपाली ने उठने की कोशिश करते हुए कहा.
ठाकुर ने उसका कंधा पकड़कर उसे वापिस लिटा दिया.
"हमें माफ़ कर दो बेटी. हम जानते हैं के ये हमारी वजह से हुआ है. कल रात हमने तुम्हें बहुत तकलीफ़ पहुँचाई थी." ठाकुर की आवाज़ भी भारी हो चली. जैसे अभी रोने को तैय्यार हों.
रूपाली ने जवाब में कुच्छ ना कहा.
"बहू, कल रात जो हुआ हम उसके लिए माफी माँगते हैं. कल रात.............." ठाकुर बोल ही रहे थे की रूपाली ने उनकी बात बीच में काटी दी.
"पिताजी कल रात जो हुआ वो मर्ज़ी से होता है, ज़बरदस्ती से नही. ज़रा सोचिए के जब आपको मर्ज़ी हासिल हो चुकी थी तो बलात्कार की क्या ज़रूरत थी"
रूपाली के मुँह से निकली इस बात ने बहुत कुच्छ कह दिया था. उसने अपने ससुर के सामने सॉफ कर दिया था के वो खुद चुदवाने को तैय्यार है, उन्हें उसे ज़बरदस्ती हासिल करने की कोई ज़रूरत नही है. वो खुद उनके साथ सोने को तैय्यार है तो उन्हें खुद उसे पकड़के गिराने की क्या ज़रूरत है. उसने सॉफ कह दिया था के असली मज़ा तो तब है जब वो खुद भी अपनी मर्ज़ी से चुदवाके साथ दे रही हो. उसमें क्या मज़ा के जब वो नीचे पड़ी दर्द से कराह रही हो.
रूपाली के बात सुनकर ठाकुर ने उसकी आँख में आँख डालकर देखा. जवाब में रूपाली ने भी अपना चेहरा पक्का करके नज़र से नज़र मिला दी, झुकाई नही. दोनो इस बात को जानते थे के अब उनके बीच हर बात सॉफ हो चुकी है. ठाकुर ने प्यार से फिर उसका सर सहलाया और पास पड़ा फोन उठाकर डॉक्टर का नंबर डायल करने लगे.
रूपाली की आँख खुली तो रात अब भी पुर नूर पे थी. उसने घड़ी की तरफ देखा तो रात के 2 बज रहे थे. वो अब भी आधी नंगी हालत में पड़ी थी. .साड़ी उपेर को खिसकी हुई थी और कमर से खुल गयी थी. उसकी चूत तो ढाकी हुई थी पर टांगे जाँघ तक खुली हुई थी. ब्लाउस के सारे बटन ठाकुर ने तोड़ दिए थे जिसके कारण वो उसे चाहकर भी बंद नही कर सकती थी. ब्लाउस उसके सीने से हटकर दोनो तरफ से कमर के नीचे दबा हुआ था और दोनो चूचियाँ खुली पड़ी थी. रूपाली ने गर्दन घूमाकर ठाकुर की तरफ देखा तो वो भी वैसे ही नंगे सोए पड़े थे. लंड बैठ चुका था और उनका एक हाथ अब भी रूपाली के पेट पे था. रूपाली ने उठने की कोशिश की तो दर्द से उसकी चीख सी निकल गयी. उसकी चूत में अब भी दर्द हो रहा था. छातियाँ चूसे जाने की वजह से पूरी लाल थी और एक छाती पे ठाकुर के दाँत के निशान बने हुए थे. रूपाली ने अपनी चूत पे हाथ फिराया तो कराह उठी. नीचे उसकी गांद पे भी ठाकुर ने अपने नाख़ून गाड़ा दिए थे.
रूपाली ने ठाकुर का हाथ अपने पेट से हटाया और फिर बिस्तर पे गिर पड़ी. उसने अपने आपको ढकने की कोई कोशिश नही की. फायडा भी नही था. वो चाहती भी तो यही थी के ऐसा हो पर ये नही जानती थी के इस तरह होगा. ठाकुर ने उसको संभलने का कोई मौका नही दिया. जो आग 10 साल से जमा हो रही थी एक झटके में रूपाली के उपेर निकाल दी. इससे पहले के रूपाली कुच्छ समझ पाती वो चुद रही थी अपने ही ससुर से. उन्होने उसके दर्द की कोई परवाह नही की. बस उसे किसी रंडी की तरह नीचे पटका और उसपर चढ़ गये.
रूपाली का ध्यान फिर से अपने गुज़रे कल में चला गया. कहाँ वो सीधी सादी से लड़की जो अपने भगवान में खोई रहती थी और कहाँ ये बदली हुई औरत जो अपने ससुर के बिस्तर पे नंगी पड़ी हुई थी, उनसे चुद्वने के बाद. जिसकी चूत में उसका नौकर तक उंगलियाँ कर चुका था. उसने एक ठंडी आह भारी और अपने भगवान को कोसने लगी. उसने क्या सोचा था और नसीब ने उसे क्या दिन दिखाए थे. कहाँ वो इस हवेली में एक बहू की हैसियत से आई थी और अपने ही ससुर की रखेल बनने की तैय्यारि कर रही थी. वजह सिर्फ़ एक थी. उसे अपने पति के क़ातिल का पता लगाना था, पता करना था के वो कौन शक्श था जिसने उसकी ज़िंदगी बर्बाद की थी.
"यही बदला दिया है तूने मेरी पूजा पाठ का, है ना?" उसने अपने दिल ही दिल में भगवान पे जैसे चीखते हुए कहा.
अचानक उसका ध्यान दरवाज़े की तरफ गया जो अब बंद हो चुका था. भूषण ने उसकी पूरी चुदाई देखी थी. जाने वो काब्से दरवाज़े पे खड़ा सब कुच्छ देख रहा था. शायद रूपाली के चीख सुनकर आया था या शायद उससे पहले ही खड़ा था. जब ठाकुर के झाड़ जाने के बाद रूपाली ने उसकी तरफ देखा तो एक पल के लिए दोनो की नज़र एक दूसरे से टकराई. रूपाली ने सीधे भूषण की आँख में आँख डालकर देखा तो भूषण ने नज़र नीची कर ली और दरवाज़ा बंद करके वापिस चला गया. उसके बाद ठाकुर यूँ ही थोड़ी देर रूपाली के उपेर. लंड सिकुड़कर खुद ही चूत से बाहर निकल गया तो वो बिस्तर पे ढेर हो गये. दोनो जाग रहे थे पर किसी ने कुच्छ नही कहा. ना रूपाली ने उठकर अपने आपको ढकने की कोशिश की और ना ही ठाकुर बिस्तर से उठे. दोनो यूँ ही नंगे पड़े पड़े जाने कब सो गये थे.
रूपाली ने नज़र उठाकर घड़ी की तरफ देखा तो 3 बज चुके थे. उसने एक पल के लिए उठकर अपने कमरे में जाने की सोची पर फिर एक ठंडी आह भारी, अपने आपको किस्मत के हवाले किया और वहीं अपने ससुर के बिस्तर पे ही फिर सो गयी और सपने मैं खो गयी
रूपाली एक जंगल के बीचो बीच खड़ी थी. चारो तरफ ऊँचे पेड़ थे. अजीब अजीब सी आवाज़ आ रही थी. अंधेरा इतना के हाथ को हाथ नही सूझ रहा था. उसने पेर आगे बढ़ाने की कोशिश की तो दर्द की एक तेज़ ल़हेर उठी. वो नंगे पेर थी और उसने एक काँटे पे पेर रख दिया था. रूपाली ने अपना पेर उठाया और काँटे को बाहर खींचकर फिर लड़खड़ा कर आगे बढ़ी. आसमान पे नज़र डाली तो पूरा चाँद था पर चाँदनी नही थी. कोई रोशनी कहीं से नज़र नही आ रही थी. हर तरफ घुप अंधेरा. पास ही किसी साँप की फूंकारने की आवाज़ आ रही थी जो धीरे धीरे नज़दीक आ रही थी. शायद वो साँप उसी की तरफ बढ़ रहा था. रूपाली ने तेज़ी से कदम उठाए और आवाज़ से दूर भागने लगी. पर जैसे जैसे वो कदम आगे उठा रही थी किसी शेर के गुर्राने की आवाज़ नज़दीक आ रही थी. शायद आगे कोई शेर था जिसकी तरफ वो भागी जा रही थी. रूपाली फ़ौरन रुकी और दूसरी तरफ भागने लगी. साँप और शेर की आवाज़ अब भी उसके पिछे से आ रही थी. अचानक एक शोर सा पेड़ से उठा और रूपाली को बहुत से बंदर हल्के हल्के दिखाई दिए. वो बंदर बहुर शोर मचा रहे थे. शायद उन्हें उसका अपने इलाक़े में आना पसंद नही आ रहा था. रूपाली रुकी और फिर पलटकर दूसरी तरफ को भागने लगी. पर अब बंदर भी उसके पिछे पड़े हुए थे. उसके पिछे साँप, शेर और बंदर तीनो आ रहे थे. रूपाली को समझ नही आ रहा था के क्या करे. बस बदहवास भागती जा रही थी. साँप से दूर. शेर से दूर, बंदरों से दूर.
भागती भागती अचानक वो जंगल से निकलकर एक खुले मैदान में आ पहुँची. यहाँ अंधेरा नही था. यहाँ चाँदनी थी. रोशनी में आई तो रूपाली को एहसास हुआ के उसकी ब्लाउस खुली हुई है और अंदर ब्रा नही थी जिसकी वजह से उसकी दोनो बड़ी बड़ी चूचियाँ खुली हुई थी और भागते हुए उपेर नीचे हो रही थी. रूपाली ने एकदम अपने ब्लाउस को पकड़के सामने किया और अपने सीने को ढका. वो भागते भागते थक चुकी थी और जानवर शायद अब उसके पिछे नही थे क्यूंकी शोर बंद हो गया था. रूपाली तक कर ज़मीन पे बैठी ही थी के शोर फिर उठा. वो एक खुले मैदान में थी जिसके चारों तरफ घना जंगल था. ऊँचे पेड़ थे जिनके अंदर अंधेरे की वजह से कुच्छ नज़र नही आ रहा था. अचानक शोर फिर उठा और एक तरफ से सारे पेड़ हिलने लगे. उनपर से बड़े बड़े बंदर ज़मीन पे उतरकर चीखते हुए दाँत दिखाते हुए रूपाली के तरफ बढ़ने लगे. रूपाली घबराकर फिर उठी और भागने को हुई ही थी के देखा के दूसरी तरफ से एक बड़ा सा साँप जंगल से निकला और उसकी तरफ बढ़ा. तीसरी तरफ से एक बहुत बड़ा शेर जंगल से निकल गुर्राते हुए उसकी तरफ आने लगा. बंदरों का शोर उसके कानो के पर्दे फाड़ रहा था. वो तीन तरफ से घिर चुकी थी. रूपाली के पास अब और कोई चारा नही था सिवाय इसके के चौथी तरफ से फिर जंगल में भाग उठे. वो फिर जंगल की तरफ भागी पर अचानक उसके सामने से एक तेज़ रोशनी आती हुई दिखाई दी. रूपाली फिर सहम कर रुक गयी. रोशनी धीरे धीरे नज़दीक आती गयी और साथ ही कार के एंजिन की आवाज़ भी आने लगी. रोशनी अब बहुत नज़दीक आ गयी थी और रूपाली को अपनी आँखों पे हाथ रखना पड़ा. अचानक एक कार जंगल से निकली और रूपाली से थोड़ी दूर जाकर रुक गयी. रूपाली ने आँखें खोलकर देखा तो वो कार पुरुषोत्तम की थी. उसकी जान में जान आ गयी. उसका पति उसे बचाने को आ गया था. वो खुश होते हुई कार की तरफ भागी तो ध्यान दिया के सारे जानवर अब जा चुके हैं. शायद कार से डरकर भाग गये थे. वो खुश होती कार के पास पहुँची ही थी के कार का दरवाज़ा खुला और खून से लथपथ पुरुषोत्तम गाड़ी से बाहर निकलकर गिर पड़ा. उसकी आँख, नाक, कान मुँह हर जगह से खून निकल रहा था. उसने ज़मीन पे गिरे गिरे मदद के लिए रूपाली की तरफ हाथ उठाया. रूपाली अपने पति के पास पहुँची और ज़मीन पे बैठ कर उसका सर अपनी गोद में रख लिया.
"क्या हुआ आपको?" उसने लगभग चिल्लाते हुए पुरुषोत्तम से पुचछा.
"रूपाली ..................." पुरुषोत्तम जवाब में बस इतना ही कह सका. उसके मुँह से खून अब और ज़्यादा बहने लगा था. आअंखों में खून उतर जाने की वजह से आँखें लाल हो गयी थी.
रूपाली ने परेशान होकर अपने चारों तरफ देखा जैसे मदद के लिए किसी को ढूँढ रही हो और सामने से उसे भूषण आता हुआ दिखाई दिया एक बार फिर उसकी हिम्मत बँधने लगी.
"भूषण काका" वो भूषण की तरफ देखके चिल्लाई " देखिए इन्हें क्या हो गया है. मदद कीजिए. इन्हें डॉक्टर के पास ले जाना पड़ेगा"
पर भूषण अब उससे थोड़ी दूर रुक गया था और खड़ा हुआ सिर्फ़ देख रहा था.
"आप रुक क्यूँ गये. इधर आइए ना" रूपाली फिर चिल्लाई पर भूषण वहीं खड़ा हुआ उसे एक मुर्दे की तरह देखता रहा.
"रूपाली" अपने पिछे से एक जानी पहचानी भारी सी आवाज़ सुनकर रूपाली पलटी तो देखा के पिछे उसके ससुर ठाकुर शौर्या सिंग खड़े हुए थे.
"पिताजी" रूपाली की आँखों में खुशी के आँसू आ गये
"देखिए क्या हो गया" उसने अपनी पति की तरफ इशारा किया.
जवाब में ठाकुर ने उसके बाल पकड़े और उसे खींचकर सीधा खड़ा कर दिया. पुरुषोत्तम का सिर उसकी गोद से निकलकर ज़मीन पे गिर पड़ा. रूपाली की कुच्छ समझ नही आ रहा था के क्या हो रहा है. ठाकुर उसे बाल से पकड़कर खींचता हुआ कार की तरफ ले गया और कार के बोनेट पे उसे गिरा दिया.
"क्या कर रहे हैं पिताजी?" रूपाली ने पुचछा तो ठाकुर ने उसे खींचकर फिर सीधा खड़ा किया, घुमाया और उसे झुककर उसका सर कार के बोनेट से लगा दिया. अब रूपाली झुकी हुई अपने ससुर के सामने खड़ी थी.
उसने उठने की कोशिश की पर पिछे उठ नही पाई. ठाकुर अब पिछे से उसकी सारी उठा रहे थे और रूपाली चाहकर भी कुच्छ नही कर पा रही थी. जैसे उसके हाथ पावं में जान ही ना बची हो. जैसे किसी अंजान ताक़त ने उसे पकड़ रखा हो. ठाकुर सारी उठाकर अब उसकी कमर पे डाल चुके थे. नीचे से रूपाली की दोनो टाँगें और गांद खुल गयी थी. उसकी चूत पिछे से ठाकुर के सामने खुली हुई थी.ठंडी हवा लगी तो रूपाली को महसूस हुआ के आज तो उसने पॅंटी भी नही पहनी थी.
"ये कैसे हुए, कैसे भूल गयी मैं" रूपाली सोच ही रही थी के उसे अपनी चूत में कुच्छ घुसता हुआ महसूस हुआ. उसके बदन में दर्द की चुभन उठती चली गयी. लगा जैसे चूत को फाड़ कर दो हिस्सो में कर दिया गया हो. वो लंबी सी मोटी चीज़ अब भी उसके अंदर घुसती चली जा रही थी. उसका सर और हाथ कार के बोनेट पे रखे हुए थे और दोनो चूचियाँ सामने लटक गयी थी. एक हाथ आगे आया और उसके एक चूची को पकड़कर दबाने लगा.
रूपाली के अंदर जान बाकी नही थी. वो चाहकर भी कुच्छ ना कर पा रही थी. बश झुकी खड़ी थी. पीछे से उसके ससुर ने एक हाथ से उसकी गांद और दूसरे हाथ से उसकी एक चूची पकड़ रखी थी. थोड़ी दूर खड़ा भूषण अब ज़ोर ज़ोर से हस रहा था. एक लंबी मोटी से चीज़ उसकी चूत में अब भी और अंदर घुसने की कोशिश कर रही थी.
हड़बड़ा कर रूपाली की आँख खुली तो देखा के वो एक सपना देख रही. उसके पूरा बदन पसीने से भीग चुका था और वो सूखे पत्ते की तरफ काँप रही थी. ठाकुर अब उसकी साइड में नही थे और वो अकेली ही बिस्तर पे आधी नंगी पड़ी थी. उसे बहुत ज़ोर से सर्दी लग रही थी. हाथ लगाया तो देखा के उसका माथा किसी तवे की तरह गरम हो चुका था. सपना जैसे अब भी उसकी आँखों के सामने घूम रहा था और भूषण के हस्ने की आवाज़ अब भी उसके कान में थी.
रूपाली लड़खड़ाते हुए बिस्तर से उठी. खड़ी होते ही खुली हुई साड़ी ज़मीन पे जा गिरी. रूपाली ने झुक कर उसे उठाया पर बाँधने की कोई कोशिश नही की. सामने से ब्लाउस खुला हुआ था और उसकी चूचियाँ बाहर लटक रही थी. रूपाली ने साडी को अपने सामने पकड़ा और चूचियों को ढका. वो धीरे धीरे चलती ठाकुर के कमरे से बाहर निकली और इधर उधर देखा. हवेली सुनसान पड़ी थी. भूषण भी कहीं नज़र नही आ रहा था. वो धीमे कदमों से सीढ़ियाँ चढ़ते अपने कमरे में पहुँची और फिर जाकर अपने बिस्तर पे गिर पड़ी. उसके जिस्म में बिल्कुल जान नही थी. पूरा बदन आग की तरह गरम हो रहा था. सर्दी भी उसे बहुत लग रहा था. माथा गरम हो चुका था और बुखार की वजह से आँखें भी लाल हो रही थी. रूपाली बिस्तर पे पड़े पड़े ही अपने जिस्म से कपड़े हटाए और नंगी होकर बाथरूम में आई. दरवाज़े का सहारा लिए लिए ही उसने बाथटब में पानी भरा और नहाने के लिए टब में उतर गयी.
शाम ढल चुकी थी. रूपाली अब भी अपने कमरे में ही थी. उसने सुबह से कुच्छ नही खाया था और ना ही अपने कमरे से निकली थी. बुखार अब और तेज़ और हो चुका था और रूपाली के मुँह से कराहने की आवाज़ निकलने लगी थी. उसने कई बार बिस्तर से उठने की कोशिश की पर नाकाम रही. गर्मी के मौसम में भी उसने अलमारी से निकालकर रज़ाई ओढ़ रखी थी पर सर्दी फिर भी नही रुक रही थी. वो बिस्तर पे सिकुड सी गयी. जब दर्द की शिद्दत बर्दाश्त नही हुई तो उसकी आँखो से आँसू बह चले और वो बेज़ार रोने लगी.
उसे याद था के पुरुषोत्तम के मरने से पहले जब वो एक बार बीमार हुई थी तो किस तरह उसके पति ने उसका ख्याल रखा था और आज वो अकेली बिस्तर पे पड़ी कराह रही थी. पति की याद आई तो उसका रोना और छूट पड़ा. वो बराबर रज़ाई के अंदर रोए जा रही थी पर जानती थी के ये रोना सुनने वाला अब कोई नही है. उसे खुद ही रोना है और खुद ही चुप हो जाना है. आँसू अब उसके चेहरे से लुढ़क कर तकिये को गीला कर रहे थे.
"बहू" दरवाज़े पे दस्तक हुई. बाहर भूषण खड़ा था
"खाना तैय्यार है. आके खा लीजिए." वो उसे रात के खाने पे बुला रहा था.
"नही मुझे भूख नही है" रूपाली ने हिम्मत बटोरकर कहा.
भूषण वापिस चला गया तो रूपाली को फिर अपने उपेर तरस आ गया. आज बीमार में उसे कोई खाने को पुच्छने वाला भी नही है. उसे अपनी माँ और भाई की याद आई जो कैसे उसे लाड से ज़बरदस्ती खिलाया करते थे, उसे अपने पति की याद आई जो उसकी कितनी देखभाल करता था.
थोड़ी देर बाद दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई तो रूपाली ने रज़ाई से सर निकालकर बाहर देखा. दरवाज़े पे उसके ससुर खड़े थे जो हैरानी से उसे देख रहे थे. वजह शायद रज़ाई थी जो उसने गर्मी के मौसम में भी अपने उपेर पूरी लपेट रखी थी.
"क्या हुआ?" ठाकुर ने पुचछा
"जी कुच्छ नही. बस थोड़ी तबीयत खराब है" रूपाली ने उनकी तरफ देखते हुए कहा
ठाकुर धीरे से उसके नज़दीक आए और उसके माथे को छुआ. अगले ही पल उन्होने हाथ वापिस खींच लिया.
"हे भगवान. तुम्हें तो बहुत तेज़ बुखार है बहू" ठाकुर ने कहा
"नही बस थोड़ा सा ऐसे ही बदन टूट रहा है. आप फिकर ना करें" रूपाली ने उठने की कोशिश करते हुए कहा.
ठाकुर ने उसका कंधा पकड़कर उसे वापिस लिटा दिया.
"हमें माफ़ कर दो बेटी. हम जानते हैं के ये हमारी वजह से हुआ है. कल रात हमने तुम्हें बहुत तकलीफ़ पहुँचाई थी." ठाकुर की आवाज़ भी भारी हो चली. जैसे अभी रोने को तैय्यार हों.
रूपाली ने जवाब में कुच्छ ना कहा.
"बहू, कल रात जो हुआ हम उसके लिए माफी माँगते हैं. कल रात.............." ठाकुर बोल ही रहे थे की रूपाली ने उनकी बात बीच में काटी दी.
"पिताजी कल रात जो हुआ वो मर्ज़ी से होता है, ज़बरदस्ती से नही. ज़रा सोचिए के जब आपको मर्ज़ी हासिल हो चुकी थी तो बलात्कार की क्या ज़रूरत थी"
रूपाली के मुँह से निकली इस बात ने बहुत कुच्छ कह दिया था. उसने अपने ससुर के सामने सॉफ कर दिया था के वो खुद चुदवाने को तैय्यार है, उन्हें उसे ज़बरदस्ती हासिल करने की कोई ज़रूरत नही है. वो खुद उनके साथ सोने को तैय्यार है तो उन्हें खुद उसे पकड़के गिराने की क्या ज़रूरत है. उसने सॉफ कह दिया था के असली मज़ा तो तब है जब वो खुद भी अपनी मर्ज़ी से चुदवाके साथ दे रही हो. उसमें क्या मज़ा के जब वो नीचे पड़ी दर्द से कराह रही हो.
रूपाली के बात सुनकर ठाकुर ने उसकी आँख में आँख डालकर देखा. जवाब में रूपाली ने भी अपना चेहरा पक्का करके नज़र से नज़र मिला दी, झुकाई नही. दोनो इस बात को जानते थे के अब उनके बीच हर बात सॉफ हो चुकी है. ठाकुर ने प्यार से फिर उसका सर सहलाया और पास पड़ा फोन उठाकर डॉक्टर का नंबर डायल करने लगे.
Re: सेक्सी हवेली का सच
सेक्सी हवेली का सच---5
रूपाली यूँ ही कुच्छ देर तक कामिनी की डायरी के पेजस पलट कर देखती रही पर वहाँ से कुच्छ हासिल नही हुआ. उसमें सिर्फ़ कुच्छ बड़े शायरों की लिखी हुई गाज़ल थी, कुच्छ ऐसी भी जो काई सिंगर्स ने गायी थी. जब डायरी से कुच्छ हासिल नही हुआ तो परेशान होकर रूपाली ने कामिनी की अलमारी खोली पर वहाँ भी सिवाय कपड़ो के कुच्छ ना मिला. रूपाली कामिनी के कमरे की हर चीज़ यहाँ से वहाँ करती रही और जब कुच्छ ना मिला तो तक कर वहीं बैठ गयी.
उसे कामिनी के कमरे में काफ़ी देर हो गयी थी.शाम ढलने लगी थी. रूपाली ने एक आखरी नज़र कामिनी के कमरे में फिराई और उठकर बाहर निकलने ही वाली थी के उसकी नज़र कामिनी के बिस्तर की तरफ गयी. चादर उठाकर बिस्तर के नीचे देखा तो हैरान रह गयी. नीचे एक अश् ट्रे और कुच्छ सिगेरेत्टेस के पॅकेट रखे थे. कुच्छ जली हुई सिगेरेत्टेस भी पड़ी हुई थी.
"कामिनी और सिगेरेत्टेस?" रूपाली सोचने पे मजबूर हो गयी क्यूंकी कामिनी ही घर में ऐसी थी जो अपने दूसरे भाई तेज को सिगेरेत्टे छ्चोड़ने पे टोका करती थी. वो हर बार यही कहती थी के उसे सिगेरेत्टे पीने वालो से सख़्त नफ़रत होती है तो फिर उसके कमरे में सिगेरेत्टेस क्या कर रही है? या वो बाहर सिर्फ़ तमाशा करती थी और अपने कमरे में चुप चाप बैठ कर सिगेरेत्टे पिया करती थी? पर अगर वो पीटी भी थी तो सिगेरेत्टे कहाँ से लाती थी? गाओं में जाकर ख़रीदती तो पूरा गाओं में हल्ला मच जाता?
रूपाली हैरानी से सिगेरेत्टेस की और देखती रही. शायद रूपाली किसी और से ये सिगेरेत्टे मँगवाती थी पर किससे? घर में कौन ऐसा था जो ये ख़तरा उठा सकता था क्यूंकी अगर किसी को पता चल जाता तो कामिनी को तो कोई कुच्छ ना कहता पर उस इंसान का गला ज़रूर कट जाता जो कामिनी को सिगेरेत्टेस लाके देता था.
रूपाली फिर परेशान होकर कमरे में ही बैठ गयी. ये सच था के कामिनी हमेशा उसे परेशानी में डाल देती थी. उसे देखकर ही रूपाली को लगता था के वो जो दिखती है वैसी है नही. लगता था जैसे पता नही कितने राज़ उसने अपने दिल में दफ़न कर रखे थे. रूपाली ने जब भी उससे बात करने की कोशिश की थी, कामिनी हर बार दूसरी तरफ मुँह घुमा लेती थी जैसे उससे नज़र मिलाने से घबरा रही हो. अचानक रूपाली को कुच्छ ध्यान आया और उसे एक सवाल का जवाब मिल गया. घर में उसके देवर तेज के अलावा सिगेरेत्टे सिर्फ़ भूषण पिया करता था. बाद में डॉक्टर के मना करने पे छ्चोड़ दी थी पर जब कामिनी यहाँ थी तो वो सिगेरेत्टे रखा करता था अपने पास. और वही एक ऐसा था जो एक बार ठाकुर के गुस्से का सामना कर सकता था क्यूंकी वो इस घर के सबसे पुराना नौकर था. रूपाली ने सोच लिया के वो भूषण से इस बारे में बात करेगी.
सिगेरेत्टेस वापिस बिस्तर के नीचे सरका कर रूपाली उठी और कामिनी की डायरी उठाकर कमरे से बाहर निकली. कमरे पे फिर से उसने लॉक लगाया और डायरी पढ़ती हुई नीचे की और चल दी. डायरी में हर शायरी ऐसी थी जिसे पढ़कर सिर्फ़ लिखने वाले के दर्द का अंदाज़ा लगाया जा सकता था. हर शायरी में मौत का ज़िक्र था. हर पेज में लिखने वाले ने अपनी मर जाने की ख्वाहिश का ज़िक्र किया था. डायरी पढ़ती हुई रूपाली अपने कमरे में पहुँची और डायरी को सामने रखी टेबल की तरफ उच्छाल दिया. डायरी थोड़ी सी खुली और एक पेज उसमें से निकल कर बाहर गिर पड़ा. रूपाली ने झुक कर काग़ज़ का वो टुकड़ा उठाया और पढ़ने लगी
तूने मयखाना निगाहों में च्छूपा रखा है
होशवालो को भी दीवाना बना रखा है
नाज़ कैसे ना करूँ बंदा नवाज़ी पे तेरी
मुझसे नाचीज़ को जब अपना बना रखा है
हर कदम सजदे बशौक किया करता हूँ
मैने काबा तेरे कूचे में बना रखा है
जो भी गम मिलता है सीने से लगा लेता हूँ
मैने हर दर्द को तक़दीर बना रखा है
बख़्श कर आपने एहसास की दौलत मुझको
ये भी क्या कम है के इंसान बना रखा है
आए मेरे परदा नशीन तेरी तवज्जो के निसार
मैने इश्क़ तेरा दुनिया से च्छूपा रखा है
काग़ज़ के टुकड़े पे लिखी ग़ज़ल को पढ़कर रूपाली ने जल्दी से कामिनी की डायरी खोली और पेजस पलटने लगी. कुच्छ बातों पे फ़ौरन उसका ध्यान गया. पहली तो ये के ये काग़ज़ इस डायरी का हिस्सा नही था. सिर्फ़ डायरी के अंदर कुच्छ इस अंदाज़ से रखा गया था के डायरी उठाने पर बाहर निकलकर ना गिरे. कामिनी की डायरी इंपोर्टेड थी जो उसके सबसे छ्होटे भाई ने विदेश से भेजी थी इसलिए पेपर्स की क्वालिटी काफ़ी अच्छी थी जबकि जो काग़ज़ उसमें रखा गया था वो एक सादा पेपर था जो किसी स्कूल के बच्चे की नोटबुक से फाडा हुआ लगता था. ऐसी नोटबुक जो गाओं में कहीं भी आसानी से मिल सकती थी. दूसरी और सबसे ज़रूरी चीज़ ये थी के ये लाइन्स कामिनी ने नही लिखी थी. हॅंडराइटिंग बिल्कुल अलग थी. रूपाली की हॅंडराइटिंग बहुत सॉफ थी और काग़ज़ पे लिखी हुई लाइन्स को देखके तो लगता था जैसे किसी ने काग़ज़ पे कीड़े मार दिए हों. तीसरी बात ये थी की कामिनी की डायरी में लिखी हुई सब लाइन्स एक लड़की की तरफ से कही गयी शायरी थी और काग़ज़ पे लिखी हुई ग़ज़ल एक लड़के की तरफ से कही गयी थी. चौथी बात ये के डायरी में कामिनी ने जो भी लिखा था सब इंग्लीश में था. लाइन्स तो सब उर्दू या हिन्दी में थी पर स्क्रिप्ट इंग्लीश उसे की थी. रूपाली जानती थी के कामिनी हिन्दी अच्छी तरह से लिख नही सकती थी इसलिए स्क्रिप्ट वो हमेशा इंग्लीश ही उसे करती थी पर काग़ज़ में स्क्रिप्ट भी हिन्दी ही थी.
रूपाली फिर सोच में पड़ गयी. क्या सच में कामिनी का कोई प्रेमी था? शायरी को पढ़कर तो यही लगता था के वो जो कोई भी था, कामिनी को बहुत चाहता था पर इश्क़ मजबूरी ज़ाहिर नही कर सकता था. रूपाली का सर जैसे दर्द की वजह से फटने लगा. वो उठी और डायरी को उठाकर अपनी अलमारी में रख दिया.
खिड़की पे नज़र पड़ी तो बाहर अंधेरा हो चुका था. वो जानती थी के आज रात वो अपने कमरे में नही सोने वाली है. आज की रात तो उसने ठाकुर के कमरे में सोना है, उनकी बीवी की तरह. रात भर अपने ससुर से चुदवा है. यही सोचते हुए वो शीसे के सामने पहुँची और मुस्कुराते हुए जैसे एक नयी दुल्हन की तरह सजकर तैय्यार होने लगी. उसने सोच लिया था के बिस्तर पे ठाकुर से बात करेगी और हवेली के बारे में वो सब मालूम करेगी जो वो जानती नही. जो उसके इस घर में आने से पहले हुआ था.
त्य्यार होकर रूपाली बाहर आई तो भूषण किचन में था.
"पिताजी जाग गये?" रूपाली ने भूषण से पुचछा
"नही अभी सो ही रहे हैं. मैं जगा दूं?" भूषण ने जवाब दिया
"नही मैं ही उठा देती हूँ. आप खाना लगाने की तैय्यार कीजिए" कहते हुए रूपाली किचन से बाहर जाने लगी पर फिर रुक गयी और भूषण की तरफ पलटी
"काका आप सिगेरेत्टे पीते हैं क्या"
भूषण हैरानी से रूपाली की और देखने लगा
"नही अब नही पीता. पहले पीता था पर फिर डॉक्टर ने मना किया तो छ्चोड़ दी. क्यूँ?" उसे रूपाली के बात का जवाब देते हुए पुचछा
"नही ऐसे ही पुच्छ रही थी. घर में और कोई भी सिगेरेत्टे पीता था? मेरे यहाँ आने से पहले?" रूपाली फिर भूषण के पास वापिस आकर खड़ी हो गयी
"सिर्फ़ एक छ्होटे ठाकुर पीते हैं. आपके देवर तेज सिंग" भूषण ने जवाब दिया
"पहले तो घर में इतने नौकर होते थे. कोई नौकर वगेरह?" रूपाली ने फिर पुचछा
"नही बेटी. नौकरों की कहाँ इतनी हिम्मत के हवेली में सिगेरेत्टे या बीड़ी पिएं. अपनी नौकरी सबको प्यारी होती है" भूषण बोला
"पर आप तो पीते थे ना काका. आपको नौकरी प्यारी नही थी?" रूपाली ने सीधे भूषण की आँखों में देखते हुए कहा
भूषण से इस बात का जवाब देते ना बना.
"चलिए छ्चोड़िए. एक बात और बताइए. इस हवेली में आपने आज तक सबसे अजीब क्या देखा है जो आज तक आपकी समझ में नही आया और जिस बात ने आज तक आपको परेशान किया है" रूपाली ने पुचछा
भूषण परेशान होकर इधर उधर देखने लगा. उससे रूपाली के इस सवाल का जवाब भी नही दिया जा रहा था. रूपाली समझ गयी के वो परेशान क्यूँ है और बोल क्यूँ नही रहा. उसका इशारा खुद रूपाली की हरकतों की तरफ था.
"नही काका. जो मैं कर रही हूँ उसके अलावा" रूपाली ने कहा
भूषण ने एक लंबी साँस छ्चोड़ी और वहीं किचन में दीवार का सहारा लेकर खड़ा हो गया
"देखो बेटी. कभी कभी ये ज़रूरी हो जाता है के जो गुज़र चुका है उसे गुज़रने दिया जाए. पुरानी बातों को जानकार क्या करोगी. क्यूँ अचानक गढ़े मुर्दे उखाड़ने की कोशिश कर रही हो तुम?" उसे रूपाली से कहा
"आप मेरी बात का जवाब दीजिए काका. जिन गढ़े मुर्दों की आप बात कर रहे हैं उनमें एक मेरा पति भी है" रूपाली की आवाज़ ठंडी हो चली थी
भूषण ने जब देखा के वो नही मानेगी तो उसने हथ्यार डाल दिए
"ठीक है तो सुनो. मैने इस हवेली में अपनी पूरी ज़िंदगी गुज़ार दी. यहाँ जो होता था एक तरीके से होता था. बड़े ठाकुर की मर्ज़ी से होता था. उनके गुस्से के सामने कोई मुँह नही खोलता था और ना ही किसी की हिम्मत होती थी के उनकी मर्ज़ी के खिलाफ कुच्छ कर सके. पर एक किस्सा ऐसा है जो आज तक मुझे समझ नही आया."
"क्या काका" रूपाली ने कहा
"तुमने हवेली के पिछे वाला हिस्सा देखा है? जहाँ अब पूरा बबूल की झाड़ियों का जंगल उग चुका है?" भूषण ने पुचछा
"हां देखा है. क्यूँ?" रूपाली अब गौर से सुन रही थी
"कभी उस जगह पे फूलों का एक बगीचा होता था. ठाकुर साहब को फूल बहुत पसंद थे. जब तुम आई थी तब भी तो था. याद है?" भूषण ने 10 साल पहले की बात की तरफ इशारा किया
रूपाली ने दिमाग़ पे ज़ोर डाला तो ध्यान आया के भूषण सच कह रहा था. वहाँ एक बगीचा हुआ करता था. बहुत खूबसूरत. वो खुद भी अक्सर वहाँ जाकर बैठा करती थी अकेले. उसके पति के मरने के बाद किसी ने हवेली के उस हिस्से की तरफ ध्यान नही दिया और बगीचा सूख कर झाड़ियों में तब्दील हो गया.
"हां याद है." रूपाली ने कहा
"उस बगीचे में कयि फूल ऐसे थे जो विदेश से मँगवाए गये थे. उनको पानी की ज़रूरत ज़्यादा होती थी. हर 2 घंटे में पानी डालना होता था तो मैं अक्सर रात को उठकर उस तरफ जाया करता था पानी डालने के लिए." कहकर भूषण चुप हो गया जैसे आगे की बात कहना ना चाह रहा हो
"आगे बोलिए काका" रूपाली ने कहा
भूषण रुक रुक कर फिर बोला, जैसे शब्द ढूँढ रहा हो
"हवेली में रात को कोई आया करता था बेटी. उस बगीचे में मैने कई बार महसूस किया के जैसे मैने एक साया देखा हो जो मेरा आने पे च्छूप गया. मैने काई बार कोशिश की पर मिला नही कोई पर मुझे महसूस होता रहता था के जो कोई भी है, वो मुझे च्छूप कर देख रहा है. मेरे वापिस जाने का इंतेज़ार कर रहा है"
भूषण बोलकर चुप हो गया और रूपाली एक पल के लिए उसके चेहरे को देखती रही. थोड़ी देर खामोश रहने के बाद वो बोली
"मैं कुच्छ समझी नही काका"
"हवेली में रात को कोई चुपके से दाखिल होता था. मैं नही जानता के वो कौन था और क्या करने आता था पर फूलों के बगीचे के आस पास ही मुझे ऐसा लगता था के कोई मेरे अलावा भी मौजूद है वहाँ" भूषण ने कहा
"पर कोई हवेली में कैसे आ सकता था? बाहर दरवाज़े पे उन दीनो 3 गार्ड्स होते थे, घर के कुत्ते खुले होते थे और हवेली के चारो तरफ ऊँची दीवार है जिसे चढ़ा नही जा सकता" रूपाली एक साँस में बोल गयी
"मैं नही जनता बेटी के वो कैसे आता था पर आता ज़रूर था. शायद हर रात" भूषण की आवाज़ में यकीन सॉफ झलक रहा था
"आप इतने यकीन से कैसे कह सकते हैं काका? अभी तो आपने कहा के आपको बस ऐसा महसूस होता था. आपका भरम भी तो हो सकता है. इतने यकीन क्यूँ है आपको?" रूपाली ने पुचछा तो भूषण ने जवाब नही दिया. रूपाली ने उसकी आँखों में देखा तो अगले ही पल अपने सवाल का जवाब आप मिल गया
"आपने देखा था उसे है ना काका? कौन था?" रूपाली ने कहा. अचानक उसकी आवाज़ तेज़ हो चली थी. उतावलापन आवाज़ में भर गया था.
"मैं ये नही जनता के वो कौन था बेटी" भूषण ने अपनी बात फिर दोहराई"और ना ही मैने उसे देखा था. मुझे बस उसकी भागती हुई एक झलक मिली थी वो भी पिछे से"
"मैं सुन रही हूं" कहकर रूपाली खामोश हो गयी
"उस रात मैने अपने दिल में ठान रखी थी की इस खेल को ख़तम करके रहूँगा. मैं अपने कमरे में आने के बजाय शाम को ही बगीचे की तरफ चला गया और वहीं च्छूप कर बैठ गया. जाने कब तक मैं यूँ ही बैठा रहा और फिर मुझे धीरे से आहट महसूस हुई. मुझे लगा के आज मैं राज़ से परदा हटा दूँगा पर तभी कुच्छ ऐसा हुआ के मेरा सारा खेल बिगड़ गया"
"क्या हुआ?" रूपाली ने पुचछा
"उपेर हवेली के एक कमरे में अचानक किसी ने लाइट ऑन कर दी. मैं हिफ़ाज़त के लिए अपने साथ एक कुत्ते को लिए बैठा था. लाइट ऑन होते ही उस कुत्ते ने भौकना शुरू कर दिया और शायद वो इंसान समझ गया के उसके अलावा भी यहाँ कोई और है. मैं फ़ौरन अपने च्चिपने की जगह से बाहर आया और उस शक्श को भागकर अंधेरे हिस्से की तरफ जाते देखा. बस पिछे से हल्की सी एक झलक मिली जो मेरे साथ खड़े कुत्ते ने भी देख ली. कुत्ता उस साए के पिछे भागा और कुत्ते के पिछे पिछे मैं भी" भूषण ने कहा
"फिर?" रूपाली ने पुचछा
"पर वो साया तो जैसे हवा हो गया था. ना मुझे उसका कोई निशान मिला और ना ही कुत्ते को. मैं 3 घंटे तक पूरी हवेली के आस पास चक्कर लगाता रहा पर कहीं कोई निशान नही मिला. हवेली और दीवार के बीच में काफ़ी फासला है. अब तो जैसे पूरा जंगल उग गया है पर उस वक़्त सॉफ सुथरा हुआ करता था फिर भी ना तो मैं कुच्छ ढूँढ सका और ना ही मेरे साथ के कुत्ते"
भूषण बोलकर चुप हो गया तो रूपाली भी थोड़ी देर तक नही बोली. आख़िर में भूषण ने ही बात आगे बढ़ाई.
इसके बाद एक हफ्ते तक मैने एक दो बार और कोशिश की पर शायद उस आदमी को भी पता लग गया था के उसका आना अब च्छूपा नही है इसलिए उसके बाद वो नही आया. और उसके ठीक एक हफ्ते बाद आपके पति पुरुषोत्तम की हत्या कर दी गयी थी. फिर क्या हुआ ये तो आप जानती ही हो"
रूपाली ये सुनकर हैरत से भूषण की और देखने लगी
"कितने वक़्त तक चला ये किस्सा? मेरा मतलब काब्से आपको ऐसा लगता था के कोई है जो आता जाता है रात को?" रूपाली ने पुचछा
"आपके पति के मरने से एक साल पहले से. एक साल तक तकरीबन हर रात यही किस्सा दोहराया जाता था" भूषण अलमारी से प्लेट्स निकालते हुए बोला
"आपने किसी से कहा क्यूँ नही काका?" रूपाली उसकी कोई मदद नही कर रही थी. वो तो बस खड़ी हुई आँखें फाडे भूषण की बातें सुन रही थी
"मैं क्या कहता बेटी? सब कहते के मेरा भरम है और मज़ाक उड़ाते. आखरी हवेली में रात को घुसने की हिम्मत कर भी कौन सकता था वो भी गार्ड्स और कुत्तो के रहते" भूषण प्लेट्स कपड़े से सॉफ करने लगा
"पर मेरे पति के मरने के बाद तो कह सकते थे. आप जानते हैं के आपने क्या च्छूपा रखा था? हो सकता है मेरे पति की जान उसी आदमी ने ली हो"रूपाली लगभग चीख पड़ी
"मैं अपना मुँह कैसे खोल सकता था बेटी?" भूषण ने नज़र झुका ली " मैं तो एक मामूली नौकर था. किसी से क्या कहता के मैने क्या देखा है जबकि ....... " भूषण ने बात अधूरी छ्चोड़ दी.
"जबकि क्या?" रूपाली से भूषण की खामोशी बर्दाश्त नही हो रही थी.
जब भूषण ने जवाब नही दिया तो रूपाली ने फिर वही सवाल दोहराया
"उस रात ये सब मैने अकेले नही देखा था. कोई और भी था जो ये सब देख रहा था" भूषण अटकते हुए बोला
"कौन?" रूपाली ने पुचछा
"आपकी सास" भूषण ने नज़र उठाकर कहा " घर की मालकिन श्रीमती सरिता देवी"
रूपाली यूँ ही कुच्छ देर तक कामिनी की डायरी के पेजस पलट कर देखती रही पर वहाँ से कुच्छ हासिल नही हुआ. उसमें सिर्फ़ कुच्छ बड़े शायरों की लिखी हुई गाज़ल थी, कुच्छ ऐसी भी जो काई सिंगर्स ने गायी थी. जब डायरी से कुच्छ हासिल नही हुआ तो परेशान होकर रूपाली ने कामिनी की अलमारी खोली पर वहाँ भी सिवाय कपड़ो के कुच्छ ना मिला. रूपाली कामिनी के कमरे की हर चीज़ यहाँ से वहाँ करती रही और जब कुच्छ ना मिला तो तक कर वहीं बैठ गयी.
उसे कामिनी के कमरे में काफ़ी देर हो गयी थी.शाम ढलने लगी थी. रूपाली ने एक आखरी नज़र कामिनी के कमरे में फिराई और उठकर बाहर निकलने ही वाली थी के उसकी नज़र कामिनी के बिस्तर की तरफ गयी. चादर उठाकर बिस्तर के नीचे देखा तो हैरान रह गयी. नीचे एक अश् ट्रे और कुच्छ सिगेरेत्टेस के पॅकेट रखे थे. कुच्छ जली हुई सिगेरेत्टेस भी पड़ी हुई थी.
"कामिनी और सिगेरेत्टेस?" रूपाली सोचने पे मजबूर हो गयी क्यूंकी कामिनी ही घर में ऐसी थी जो अपने दूसरे भाई तेज को सिगेरेत्टे छ्चोड़ने पे टोका करती थी. वो हर बार यही कहती थी के उसे सिगेरेत्टे पीने वालो से सख़्त नफ़रत होती है तो फिर उसके कमरे में सिगेरेत्टेस क्या कर रही है? या वो बाहर सिर्फ़ तमाशा करती थी और अपने कमरे में चुप चाप बैठ कर सिगेरेत्टे पिया करती थी? पर अगर वो पीटी भी थी तो सिगेरेत्टे कहाँ से लाती थी? गाओं में जाकर ख़रीदती तो पूरा गाओं में हल्ला मच जाता?
रूपाली हैरानी से सिगेरेत्टेस की और देखती रही. शायद रूपाली किसी और से ये सिगेरेत्टे मँगवाती थी पर किससे? घर में कौन ऐसा था जो ये ख़तरा उठा सकता था क्यूंकी अगर किसी को पता चल जाता तो कामिनी को तो कोई कुच्छ ना कहता पर उस इंसान का गला ज़रूर कट जाता जो कामिनी को सिगेरेत्टेस लाके देता था.
रूपाली फिर परेशान होकर कमरे में ही बैठ गयी. ये सच था के कामिनी हमेशा उसे परेशानी में डाल देती थी. उसे देखकर ही रूपाली को लगता था के वो जो दिखती है वैसी है नही. लगता था जैसे पता नही कितने राज़ उसने अपने दिल में दफ़न कर रखे थे. रूपाली ने जब भी उससे बात करने की कोशिश की थी, कामिनी हर बार दूसरी तरफ मुँह घुमा लेती थी जैसे उससे नज़र मिलाने से घबरा रही हो. अचानक रूपाली को कुच्छ ध्यान आया और उसे एक सवाल का जवाब मिल गया. घर में उसके देवर तेज के अलावा सिगेरेत्टे सिर्फ़ भूषण पिया करता था. बाद में डॉक्टर के मना करने पे छ्चोड़ दी थी पर जब कामिनी यहाँ थी तो वो सिगेरेत्टे रखा करता था अपने पास. और वही एक ऐसा था जो एक बार ठाकुर के गुस्से का सामना कर सकता था क्यूंकी वो इस घर के सबसे पुराना नौकर था. रूपाली ने सोच लिया के वो भूषण से इस बारे में बात करेगी.
सिगेरेत्टेस वापिस बिस्तर के नीचे सरका कर रूपाली उठी और कामिनी की डायरी उठाकर कमरे से बाहर निकली. कमरे पे फिर से उसने लॉक लगाया और डायरी पढ़ती हुई नीचे की और चल दी. डायरी में हर शायरी ऐसी थी जिसे पढ़कर सिर्फ़ लिखने वाले के दर्द का अंदाज़ा लगाया जा सकता था. हर शायरी में मौत का ज़िक्र था. हर पेज में लिखने वाले ने अपनी मर जाने की ख्वाहिश का ज़िक्र किया था. डायरी पढ़ती हुई रूपाली अपने कमरे में पहुँची और डायरी को सामने रखी टेबल की तरफ उच्छाल दिया. डायरी थोड़ी सी खुली और एक पेज उसमें से निकल कर बाहर गिर पड़ा. रूपाली ने झुक कर काग़ज़ का वो टुकड़ा उठाया और पढ़ने लगी
तूने मयखाना निगाहों में च्छूपा रखा है
होशवालो को भी दीवाना बना रखा है
नाज़ कैसे ना करूँ बंदा नवाज़ी पे तेरी
मुझसे नाचीज़ को जब अपना बना रखा है
हर कदम सजदे बशौक किया करता हूँ
मैने काबा तेरे कूचे में बना रखा है
जो भी गम मिलता है सीने से लगा लेता हूँ
मैने हर दर्द को तक़दीर बना रखा है
बख़्श कर आपने एहसास की दौलत मुझको
ये भी क्या कम है के इंसान बना रखा है
आए मेरे परदा नशीन तेरी तवज्जो के निसार
मैने इश्क़ तेरा दुनिया से च्छूपा रखा है
काग़ज़ के टुकड़े पे लिखी ग़ज़ल को पढ़कर रूपाली ने जल्दी से कामिनी की डायरी खोली और पेजस पलटने लगी. कुच्छ बातों पे फ़ौरन उसका ध्यान गया. पहली तो ये के ये काग़ज़ इस डायरी का हिस्सा नही था. सिर्फ़ डायरी के अंदर कुच्छ इस अंदाज़ से रखा गया था के डायरी उठाने पर बाहर निकलकर ना गिरे. कामिनी की डायरी इंपोर्टेड थी जो उसके सबसे छ्होटे भाई ने विदेश से भेजी थी इसलिए पेपर्स की क्वालिटी काफ़ी अच्छी थी जबकि जो काग़ज़ उसमें रखा गया था वो एक सादा पेपर था जो किसी स्कूल के बच्चे की नोटबुक से फाडा हुआ लगता था. ऐसी नोटबुक जो गाओं में कहीं भी आसानी से मिल सकती थी. दूसरी और सबसे ज़रूरी चीज़ ये थी के ये लाइन्स कामिनी ने नही लिखी थी. हॅंडराइटिंग बिल्कुल अलग थी. रूपाली की हॅंडराइटिंग बहुत सॉफ थी और काग़ज़ पे लिखी हुई लाइन्स को देखके तो लगता था जैसे किसी ने काग़ज़ पे कीड़े मार दिए हों. तीसरी बात ये थी की कामिनी की डायरी में लिखी हुई सब लाइन्स एक लड़की की तरफ से कही गयी शायरी थी और काग़ज़ पे लिखी हुई ग़ज़ल एक लड़के की तरफ से कही गयी थी. चौथी बात ये के डायरी में कामिनी ने जो भी लिखा था सब इंग्लीश में था. लाइन्स तो सब उर्दू या हिन्दी में थी पर स्क्रिप्ट इंग्लीश उसे की थी. रूपाली जानती थी के कामिनी हिन्दी अच्छी तरह से लिख नही सकती थी इसलिए स्क्रिप्ट वो हमेशा इंग्लीश ही उसे करती थी पर काग़ज़ में स्क्रिप्ट भी हिन्दी ही थी.
रूपाली फिर सोच में पड़ गयी. क्या सच में कामिनी का कोई प्रेमी था? शायरी को पढ़कर तो यही लगता था के वो जो कोई भी था, कामिनी को बहुत चाहता था पर इश्क़ मजबूरी ज़ाहिर नही कर सकता था. रूपाली का सर जैसे दर्द की वजह से फटने लगा. वो उठी और डायरी को उठाकर अपनी अलमारी में रख दिया.
खिड़की पे नज़र पड़ी तो बाहर अंधेरा हो चुका था. वो जानती थी के आज रात वो अपने कमरे में नही सोने वाली है. आज की रात तो उसने ठाकुर के कमरे में सोना है, उनकी बीवी की तरह. रात भर अपने ससुर से चुदवा है. यही सोचते हुए वो शीसे के सामने पहुँची और मुस्कुराते हुए जैसे एक नयी दुल्हन की तरह सजकर तैय्यार होने लगी. उसने सोच लिया था के बिस्तर पे ठाकुर से बात करेगी और हवेली के बारे में वो सब मालूम करेगी जो वो जानती नही. जो उसके इस घर में आने से पहले हुआ था.
त्य्यार होकर रूपाली बाहर आई तो भूषण किचन में था.
"पिताजी जाग गये?" रूपाली ने भूषण से पुचछा
"नही अभी सो ही रहे हैं. मैं जगा दूं?" भूषण ने जवाब दिया
"नही मैं ही उठा देती हूँ. आप खाना लगाने की तैय्यार कीजिए" कहते हुए रूपाली किचन से बाहर जाने लगी पर फिर रुक गयी और भूषण की तरफ पलटी
"काका आप सिगेरेत्टे पीते हैं क्या"
भूषण हैरानी से रूपाली की और देखने लगा
"नही अब नही पीता. पहले पीता था पर फिर डॉक्टर ने मना किया तो छ्चोड़ दी. क्यूँ?" उसे रूपाली के बात का जवाब देते हुए पुचछा
"नही ऐसे ही पुच्छ रही थी. घर में और कोई भी सिगेरेत्टे पीता था? मेरे यहाँ आने से पहले?" रूपाली फिर भूषण के पास वापिस आकर खड़ी हो गयी
"सिर्फ़ एक छ्होटे ठाकुर पीते हैं. आपके देवर तेज सिंग" भूषण ने जवाब दिया
"पहले तो घर में इतने नौकर होते थे. कोई नौकर वगेरह?" रूपाली ने फिर पुचछा
"नही बेटी. नौकरों की कहाँ इतनी हिम्मत के हवेली में सिगेरेत्टे या बीड़ी पिएं. अपनी नौकरी सबको प्यारी होती है" भूषण बोला
"पर आप तो पीते थे ना काका. आपको नौकरी प्यारी नही थी?" रूपाली ने सीधे भूषण की आँखों में देखते हुए कहा
भूषण से इस बात का जवाब देते ना बना.
"चलिए छ्चोड़िए. एक बात और बताइए. इस हवेली में आपने आज तक सबसे अजीब क्या देखा है जो आज तक आपकी समझ में नही आया और जिस बात ने आज तक आपको परेशान किया है" रूपाली ने पुचछा
भूषण परेशान होकर इधर उधर देखने लगा. उससे रूपाली के इस सवाल का जवाब भी नही दिया जा रहा था. रूपाली समझ गयी के वो परेशान क्यूँ है और बोल क्यूँ नही रहा. उसका इशारा खुद रूपाली की हरकतों की तरफ था.
"नही काका. जो मैं कर रही हूँ उसके अलावा" रूपाली ने कहा
भूषण ने एक लंबी साँस छ्चोड़ी और वहीं किचन में दीवार का सहारा लेकर खड़ा हो गया
"देखो बेटी. कभी कभी ये ज़रूरी हो जाता है के जो गुज़र चुका है उसे गुज़रने दिया जाए. पुरानी बातों को जानकार क्या करोगी. क्यूँ अचानक गढ़े मुर्दे उखाड़ने की कोशिश कर रही हो तुम?" उसे रूपाली से कहा
"आप मेरी बात का जवाब दीजिए काका. जिन गढ़े मुर्दों की आप बात कर रहे हैं उनमें एक मेरा पति भी है" रूपाली की आवाज़ ठंडी हो चली थी
भूषण ने जब देखा के वो नही मानेगी तो उसने हथ्यार डाल दिए
"ठीक है तो सुनो. मैने इस हवेली में अपनी पूरी ज़िंदगी गुज़ार दी. यहाँ जो होता था एक तरीके से होता था. बड़े ठाकुर की मर्ज़ी से होता था. उनके गुस्से के सामने कोई मुँह नही खोलता था और ना ही किसी की हिम्मत होती थी के उनकी मर्ज़ी के खिलाफ कुच्छ कर सके. पर एक किस्सा ऐसा है जो आज तक मुझे समझ नही आया."
"क्या काका" रूपाली ने कहा
"तुमने हवेली के पिछे वाला हिस्सा देखा है? जहाँ अब पूरा बबूल की झाड़ियों का जंगल उग चुका है?" भूषण ने पुचछा
"हां देखा है. क्यूँ?" रूपाली अब गौर से सुन रही थी
"कभी उस जगह पे फूलों का एक बगीचा होता था. ठाकुर साहब को फूल बहुत पसंद थे. जब तुम आई थी तब भी तो था. याद है?" भूषण ने 10 साल पहले की बात की तरफ इशारा किया
रूपाली ने दिमाग़ पे ज़ोर डाला तो ध्यान आया के भूषण सच कह रहा था. वहाँ एक बगीचा हुआ करता था. बहुत खूबसूरत. वो खुद भी अक्सर वहाँ जाकर बैठा करती थी अकेले. उसके पति के मरने के बाद किसी ने हवेली के उस हिस्से की तरफ ध्यान नही दिया और बगीचा सूख कर झाड़ियों में तब्दील हो गया.
"हां याद है." रूपाली ने कहा
"उस बगीचे में कयि फूल ऐसे थे जो विदेश से मँगवाए गये थे. उनको पानी की ज़रूरत ज़्यादा होती थी. हर 2 घंटे में पानी डालना होता था तो मैं अक्सर रात को उठकर उस तरफ जाया करता था पानी डालने के लिए." कहकर भूषण चुप हो गया जैसे आगे की बात कहना ना चाह रहा हो
"आगे बोलिए काका" रूपाली ने कहा
भूषण रुक रुक कर फिर बोला, जैसे शब्द ढूँढ रहा हो
"हवेली में रात को कोई आया करता था बेटी. उस बगीचे में मैने कई बार महसूस किया के जैसे मैने एक साया देखा हो जो मेरा आने पे च्छूप गया. मैने काई बार कोशिश की पर मिला नही कोई पर मुझे महसूस होता रहता था के जो कोई भी है, वो मुझे च्छूप कर देख रहा है. मेरे वापिस जाने का इंतेज़ार कर रहा है"
भूषण बोलकर चुप हो गया और रूपाली एक पल के लिए उसके चेहरे को देखती रही. थोड़ी देर खामोश रहने के बाद वो बोली
"मैं कुच्छ समझी नही काका"
"हवेली में रात को कोई चुपके से दाखिल होता था. मैं नही जानता के वो कौन था और क्या करने आता था पर फूलों के बगीचे के आस पास ही मुझे ऐसा लगता था के कोई मेरे अलावा भी मौजूद है वहाँ" भूषण ने कहा
"पर कोई हवेली में कैसे आ सकता था? बाहर दरवाज़े पे उन दीनो 3 गार्ड्स होते थे, घर के कुत्ते खुले होते थे और हवेली के चारो तरफ ऊँची दीवार है जिसे चढ़ा नही जा सकता" रूपाली एक साँस में बोल गयी
"मैं नही जनता बेटी के वो कैसे आता था पर आता ज़रूर था. शायद हर रात" भूषण की आवाज़ में यकीन सॉफ झलक रहा था
"आप इतने यकीन से कैसे कह सकते हैं काका? अभी तो आपने कहा के आपको बस ऐसा महसूस होता था. आपका भरम भी तो हो सकता है. इतने यकीन क्यूँ है आपको?" रूपाली ने पुचछा तो भूषण ने जवाब नही दिया. रूपाली ने उसकी आँखों में देखा तो अगले ही पल अपने सवाल का जवाब आप मिल गया
"आपने देखा था उसे है ना काका? कौन था?" रूपाली ने कहा. अचानक उसकी आवाज़ तेज़ हो चली थी. उतावलापन आवाज़ में भर गया था.
"मैं ये नही जनता के वो कौन था बेटी" भूषण ने अपनी बात फिर दोहराई"और ना ही मैने उसे देखा था. मुझे बस उसकी भागती हुई एक झलक मिली थी वो भी पिछे से"
"मैं सुन रही हूं" कहकर रूपाली खामोश हो गयी
"उस रात मैने अपने दिल में ठान रखी थी की इस खेल को ख़तम करके रहूँगा. मैं अपने कमरे में आने के बजाय शाम को ही बगीचे की तरफ चला गया और वहीं च्छूप कर बैठ गया. जाने कब तक मैं यूँ ही बैठा रहा और फिर मुझे धीरे से आहट महसूस हुई. मुझे लगा के आज मैं राज़ से परदा हटा दूँगा पर तभी कुच्छ ऐसा हुआ के मेरा सारा खेल बिगड़ गया"
"क्या हुआ?" रूपाली ने पुचछा
"उपेर हवेली के एक कमरे में अचानक किसी ने लाइट ऑन कर दी. मैं हिफ़ाज़त के लिए अपने साथ एक कुत्ते को लिए बैठा था. लाइट ऑन होते ही उस कुत्ते ने भौकना शुरू कर दिया और शायद वो इंसान समझ गया के उसके अलावा भी यहाँ कोई और है. मैं फ़ौरन अपने च्चिपने की जगह से बाहर आया और उस शक्श को भागकर अंधेरे हिस्से की तरफ जाते देखा. बस पिछे से हल्की सी एक झलक मिली जो मेरे साथ खड़े कुत्ते ने भी देख ली. कुत्ता उस साए के पिछे भागा और कुत्ते के पिछे पिछे मैं भी" भूषण ने कहा
"फिर?" रूपाली ने पुचछा
"पर वो साया तो जैसे हवा हो गया था. ना मुझे उसका कोई निशान मिला और ना ही कुत्ते को. मैं 3 घंटे तक पूरी हवेली के आस पास चक्कर लगाता रहा पर कहीं कोई निशान नही मिला. हवेली और दीवार के बीच में काफ़ी फासला है. अब तो जैसे पूरा जंगल उग गया है पर उस वक़्त सॉफ सुथरा हुआ करता था फिर भी ना तो मैं कुच्छ ढूँढ सका और ना ही मेरे साथ के कुत्ते"
भूषण बोलकर चुप हो गया तो रूपाली भी थोड़ी देर तक नही बोली. आख़िर में भूषण ने ही बात आगे बढ़ाई.
इसके बाद एक हफ्ते तक मैने एक दो बार और कोशिश की पर शायद उस आदमी को भी पता लग गया था के उसका आना अब च्छूपा नही है इसलिए उसके बाद वो नही आया. और उसके ठीक एक हफ्ते बाद आपके पति पुरुषोत्तम की हत्या कर दी गयी थी. फिर क्या हुआ ये तो आप जानती ही हो"
रूपाली ये सुनकर हैरत से भूषण की और देखने लगी
"कितने वक़्त तक चला ये किस्सा? मेरा मतलब काब्से आपको ऐसा लगता था के कोई है जो आता जाता है रात को?" रूपाली ने पुचछा
"आपके पति के मरने से एक साल पहले से. एक साल तक तकरीबन हर रात यही किस्सा दोहराया जाता था" भूषण अलमारी से प्लेट्स निकालते हुए बोला
"आपने किसी से कहा क्यूँ नही काका?" रूपाली उसकी कोई मदद नही कर रही थी. वो तो बस खड़ी हुई आँखें फाडे भूषण की बातें सुन रही थी
"मैं क्या कहता बेटी? सब कहते के मेरा भरम है और मज़ाक उड़ाते. आखरी हवेली में रात को घुसने की हिम्मत कर भी कौन सकता था वो भी गार्ड्स और कुत्तो के रहते" भूषण प्लेट्स कपड़े से सॉफ करने लगा
"पर मेरे पति के मरने के बाद तो कह सकते थे. आप जानते हैं के आपने क्या च्छूपा रखा था? हो सकता है मेरे पति की जान उसी आदमी ने ली हो"रूपाली लगभग चीख पड़ी
"मैं अपना मुँह कैसे खोल सकता था बेटी?" भूषण ने नज़र झुका ली " मैं तो एक मामूली नौकर था. किसी से क्या कहता के मैने क्या देखा है जबकि ....... " भूषण ने बात अधूरी छ्चोड़ दी.
"जबकि क्या?" रूपाली से भूषण की खामोशी बर्दाश्त नही हो रही थी.
जब भूषण ने जवाब नही दिया तो रूपाली ने फिर वही सवाल दोहराया
"उस रात ये सब मैने अकेले नही देखा था. कोई और भी था जो ये सब देख रहा था" भूषण अटकते हुए बोला
"कौन?" रूपाली ने पुचछा
"आपकी सास" भूषण ने नज़र उठाकर कहा " घर की मालकिन श्रीमती सरिता देवी"