सेक्सी हवेली का सच--7
ज़मीन का वो टुकड़ा जिसकी बात भूषण कर रहा था उसे ढूँढने में रूपाली को ज़्यादा तकलीफ़ नही हुई. वजह ये थी के गाओं के आस पास के ज़्यादातर ज़मीन ठाकुर शौर्या सिंग की ही थी, या यूँ कहा जाए के हुआ करती थी और अब जय ने अपने नाम पे कर ली थी. जिस हिस्से को भूषण ने ज़मीन का एक टुकड़ा बताया था वो एक बहुत लंबा चौड़ा खेत था. रूपाली ने कार कच्चे रास्ते पर उतार दी और ज़मीन के चारो तरफ एक चक्कर लगाने की सोची. वो काफ़ी देर तक ड्राइव करती रही और आस पास निगाह दौड़ती रही. चारो तरफ सूखी पड़ी ज़मीन थी. कहीं खेती का कोई नामो निशान नही था. रूपाली ये देखकर खुद हैरत में थी. ठाकुर की ज़मीन हर साल गाओं वाले या तो किराए पर लेकर उसमें खेती करते थे या फिर ठाकुर के लिए ही काम करते थे. रूपाली की याददास्त के मुताबिक तो ऐसा ही होता था पर ज़मीन की जो अब हालत थी उसे देखके तो लगता था के इसपर बरसो से खेती नही हुई.
रूपाली ने एक पेड़ देखकर उसके नीचे गाड़ी रोकी और खड़ी होकर चारो तरफ देखने लगी. दोपहर का सूरज सर पर आ चुका था. गर्मी की वजह से जैसे ज़मीन आग उगल रही थी. थोड़ी देर यूँ ही खड़े रहकर रूपाली ने वापिस लौटने का इरादा किया ही था के पिछे से किसी ने उसका नाम पुकारा.
"मालकिन"
आवाज़ सुनकर रूपाली पलटी तो पिछे एक गाओं की एक औरत खड़ी थी
"आप ठाकुर साहब की बहू रूपाली हैं ना?" उस औरत ने रूपाली से पुचछा
"हां" रूपाली ने उसकी तरफ देखते हुए जवाब दिया. औरत ने फ़ौरन अपने हाथ जोड़ दिए
"आज पहली बार आपको देख रही हूँ मालकिन. लोगों से सुना था के आप बहुत सुंदर हैं पर आज देखा पहली बार है"
अपनी तारीफ सुन रूपाली मुस्कुरा उठी
"तुम कौन हो?" उसने उस औरत से पुचछा
"जी मैं यहीं ठाकुर साहब की ज़मीन की देख रेख करती हूँ. असल में काम तो ये मेरे मर्द का था पर उसके मरने के बाद अब मैं और मेरी बेटी करते हैं" उस औरत ने बताया
रूपाली ने उस औरत को गौर से देखा. वो कोई 40 साल के करीब लग रही थी या उससे एक दो साल उपेर ही. एक गंदी से सारी उसने लपेट रखी थी. जिस बात ने रूपाली का ध्यान अपनी तरफ खींचा वो ये थी के इस उमर में भी उस औरत का बदन एकदम गठा हुआ था. कहीं फालतू चरबी या मोटापा नही आया था. शायद सारा दिन खेतो में काम करती है इस वजह से.
"तुम्हारे पास पानी होगा? मुझे प्यास लगी है" रूपाली ने उस औरत से कहा
"मेरा मकान यहीं पास में ही है. अगर मालकिन को ऐतराज़ ना हो तो आप आ जाइए. थोड़ी देर आराम भी कर लीजिएगा"
रूपाली ने देखा के जिस तरफ वो औरत इशारा कर रही थी वहाँ एक झोपड़ी बनी हुई. थोड़ी सी दूरी पर थी पर कार वहाँ तक नही जा सकती थी. रूपाली ने कार वही पेड़ के नीचे छ्चोड़ी और उस औरत के साथ चल पड़ी.
"काब्से काम कर रही हो यहाँ पर" चलते चलते रूपाली ने उस औरत से पुचछा " और तुम्हारा नाम क्या है?"
"मेरा नाम बिंदिया है मालकिन. मेरा मर्द पहले ठाकुर साहब की ज़मीन की देखभाल करता था इसलिए मैने तो जबसे उससे शादी की तबसे यही काम कर रही हूँ" उस औरत ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया
"तुम यहाँ अकेली रही हो? गाओं से बाहर?" रूपाली ने पुचछा
"मैं और मेरी बेटी यहाँ रहते हैं. अब हमारे पास अपना घर या ज़मीन तो है नही मालकिन इसलिए यहीं ठाकुर साहब की ज़मीन पे गुज़ारा करते हैं. गाओं में रहें गे कहाँ" बिंदिया ने बताया
चलते चलते वो दोनो झोपड़ी तक पहुँचे. रूपाली ने देखा के बिंदिया ने अपनी ज़मीन के आस पास थोड़ी सब्ज़ियाँ और कुच्छ फूल उगा रखे थे. झोपड़ी के बाहर कोई 18 साल की एक लड़की बैठी हुई कपड़े धो रही थी.
"ये मेरी पायल है" बिंदिया ने उस लड़की की तरफ इशारा किया
रूपाली ने उस लड़की की तरफ देखा. उसकी शकल देखके सॉफ मालूम होता था के वो अभी 18-19 साल से ज़्यादा की नही है पर सर के नीचे जिस्म किसी पूरी तरह जवान औरत का था. उसने जो कपड़े पहेन रखे थे उसे देखके मालूम पड़ता था के उसने काफ़ी वक़्त से कपड़े नही सिलवाए. पुराने वही कपड़े बचपन से पहेन रही है जो अब उसके जिस्म पे छ्होटे पड़ रहे हैं. चोली इतनी तंग हो चुकी थी के पायल की बड़ी बड़ी चूचियाँ उसमें समा नही रही थी, आधी से ज़्यादा चूचियाँ उपेर से बाहर की तरफ निकल रही थी. उसका घाघरा सिर्फ़ घुटनो तक आ रहा था और बैठे होने की वजह से रूपाली को उसकी जांघें सॉफ नज़र आ रही थी.
रूपाली को देख वो लड़की हाथ जोड़कर उठ कही हुई
"नमस्ते मालकिन"
रूपाली ने अंदाज़ा लगाया के बेटी का जिस्म भी अपनी मान की तरह एकदम गठा हुआ था.
बिंदिया ने वहीं पास पड़ी एक चारपाई पर चादर डाल दी. पायल भागकर एक ग्लास पानी ले आई.
"आज इस तरफ कैसे आना हुआ मालकिन" बिंदिया ने नीचे ज़मीन पर बैठे हुए कहा. पायल जाकर अपने धोए हुए कुच्छ कपड़े बाल्टी में डालने लगी.
"हवेली में कुच्छ करने को था नही" रूपाली ने जवाब दिया " इसलिए सोचा के ज़मीन का ही एक चक्कर लगा आऊँ"
कहते हुए उसने पायल की तरफ देखा जो झुकी हुई कपड़े बाल्टी में डाल रही थी. झुकी होने की वजह से उसकी चूचियाँ ब्लाउस में से बाहर निकलकर गिरने को तैय्यार थी. रूपाली ने अंदाज़ा लगाया के उसकी चूचियाँ कम से कम 36 साइज़ की होंगी उसके बावजूद उसने ब्रा नही पहेन रखी थी
"बेचारी के पास पहेन्ने को कपड़े तो हैं नही ढंग के. ब्रा कहाँ से लाएगी" रूपाली ने मन ही मन सोचा
"अब यहाँ क्या बचा है देखने को मालकिन" बिंदिया उसके सामने बैठी उसे बता रही थी " कुच्छ साल पहले तक यहाँ लहराते हुए हारे भरे खेत होते थे पर अब तो सिर्फ़ ये बंजर ज़मीन है"
"तुम यहाँ खेती क्यूँ नही करती?" रूपाली ने बिंदिया से पुचछा
"हमारी ऐसी औकात कहाँ के इतनी बड़ी ज़मीन पर खेती करें" बिंदिया ने जवाब दिया " पहले ठाकुर साहब के इशारे पर ही यहाँ फसल उगा करती थी. हर तरफ हरियाली होती थी पर अब तो सब ख़तम हो गया"
"कितनी बड़ी है ये ज़मीन?" रूपाली ने पुचछा
"गाओं के इस तरफ की सारी ज़मीन ठाकुर साहब की है" बिंदिया ने ठंडी आह भरते हुए कहा" जहाँ तक आपकी नज़र जा रही है ये सब ज़मीन आपकी ही है. कभी गाओं के दूसरी तरफ की ज़मीन भी ठाकुर साहब की ही थी पर अब वो आपका देवर जय देखता है. वहाँ अब भी खेती होती है पर गाओं के इस तरफ तो सब बंजर हुआ पड़ा है. अब ठाकुर साहब को तो जैसे होश ही नही रहा अपनी जायदाद का"
रूपाली से बेहतर इस बात को कौन जान सकता था के क्यूँ होश नही रहा इसलिए वो कुच्छ नही बोली
"तुम माँ और बेटी अपना गुज़ारा कैसे चलाते हो?" रूपाली ने पुचछा
"गुज़ारा कहाँ चलता है मालकिन" बिंदिया बोली " बस जैसे तैसे वक़्त गुज़ार रहे हैं. मेरे मर्द के मरने के बाद तो सब तबाह हो गया हमारे लिए. वो होता था तो ज़मीन भी देखता था और हमें भी. अब बस मैं ही हूँ जो थोड़ा बहुत हाथ पेर मारकर हम दोनो को ज़िंदा रखे हुए हों"
पायल तब तक कपड़े सुखाकर अपनी माँ के पास आ बैठी थी. नीचे बैठे होने के कारण उसका घाघरा उपेर चढ़ गया था और रूपाली को उसकी जांघें काफ़ी अंदर तक दिखाई दे रही थी.
गर्मी बढ़ती जा रही थी. रूपाली को अपने बदन में जलन महसूस होने लगी थी. वो उठ खड़ी हुई
"एक काम करो बिंदिया. कल तुम अपनी बेटी को लेकर हवेली आ जाओ. वहाँ कुच्छ काम है वो कर लिया करना. मैं पैसे दे दूँगी तुम्हें"
"जी बहुत अच्छा" बिंदिया ने कहा " पर ठाकुर साहब से बिना पुच्छे ..... "
"उसकी तुम चिंता मत करो. बस कल सुबह तक वहाँ पहुँच जाना" कहते हुए रूपाली अपनी कार की तरफ बढ़ गयी. बिंदिया और पायल उसे कार तक छ्चोड़ने उसके पिछे पिछे आ रहे थे.
रूपाली वापिस हवेली पहुँची. आज उसने काफ़ी अरसे बाद कार चलाई थी इसलिए उसे ड्राइव करना अच्छा भी लग रहा. गाड़ी बाहर छ्चोड़ वो अंदर हवेली में पहुँची.
"पिताजी नही आए?" उसने सामने खड़े भूषण से पुचछा
"नही अभी तक तो नही आए. आप कुच्छ खावगी?" भूषण ने कहा
"नही मुझे कोई ख़ास भूख नही. थोड़ी देर आराम करूँगी. पिताजी आएँ तो मुझे आवाज़ दे दीजिएगा" रूपाली ने पानी पीते हुए कहा
वो उपेर अपने कमरे में आई और कपड़े बदलने लगी. ब्लाउस खोलकर ब्रा निकाला तो उसकी नज़र अपनी चूचियों पर पड़ी. फ़ौरन उसके ध्यान में पायल की चूचियाँ आ गयी. रूपाली 30 साल के करीब थी और पायल मुश्किल से 18 फिर भी पायल की चूचियाँ तकरीबन रूपाली के बराबर ही थी. थोड़ी देर अपनी चूचियों को देखकर रूपाली को खुद पे हैरत होने लगी. उसने कभी सोचा भी ना था के एक लड़की का जिस्म देखकर ही उसे ऐसा महसूस होगा. उसकी नज़र में अब भी पायल की चूचियाँ घूम रही थी. इस ख्याल को अपने दिमाग़ से झटक कर रूपाली बाथरूम में नहाने के लिए घुस गयी.
नहाकर रूपाली थोड़ी देर लेटी ही थे के उसके ध्यान में घर के बाकी कमरों पर एक नज़र डालने पा गया. वो उठी और अलमारी से चाबियाँ निकालकर अपने कमरे से बाहर निकली. भूषण नीचे किचन में था इसलिए उससे कोई ख़तरा भी नही था. और अगर वो देख भी लेता तो रूपाली को सिर्फ़ अपनी चूत उसके सामने खोलनी थी. भूषण का मुँह बंद करना एक बहुत आसान काम था.
रूपाली कामनि के कमरे के सामने से होती अपने सबसे छ्होटे देवर कुलदीप के कमरे के सामने पहुँची. उसके कमरे से रूपाली को कुच्छ ख़ास मिलने के उम्मीद नही थी फिर भी उसने कमरा खोला.
कुलदीप ठाकुर का सबसे छ्होटा बेटा और घर का सबसे ज़्यादा लाड़ला भी. छ्होटा होने की वजह से उसका हर कोई बहुत लाड़ किया करता था. दोनो माँ बाप,2 बड़े भाई और एक छ्होटी बहेन, साबकी आँखों का तारा था वो. रूपाली की उससे ज़्यादा मुलाक़ात नही हुई थी और ना ही कोई ज़्यादा बात. वजह थी के कुलदीप बचपन से ही विदेश में पढ़ा था और बस साल में एक बार कुच्छ दीनो के लिए छुट्टियों पर आया करता था. पुरुषोत्तम ने एक बार रूपाली को बताया था के यहाँ गाओं में कुलदीप का दिल नही लगता था इसलिए वो कम ही आता था. घर के बाकी लोग अक्सर उससे मिलने विदेश जाते रहते थे. इसी बहाने उससे मिल भी लेते थे और घूमना फिरना भी हो जाता था. एक बार पुरुषोत्तम रूपाली को लेकर कुलदीप से मिलने जाना चाहता था पर किसी वजह से वो प्लान बन नही पाया था.
जब रूपाली इस घर में आई थी तो कुलदीप 17-18 साल का था, रूपाली से सिर्फ़ 2-3 साल छ्होटा. वो हमेशा से ही बहुत शर्मिला था और इसलिए जब भी जब भी रूपाली उसे अपने पास बुलाती तो वो शर्माके भाग जाता. आखरी बार वो पुरुषोत्तम के मरने से पहले आया था और उसके बाद कभी नही. रूपाली ने उसे पिच्छले 10 साल से नही देखा था. और ना ही घर से किसी ने उसे यहाँ वापिस बुलाने की सोची थी. उल्टा कामिनी भी अपने भाई के पास ही चली गयी थी और दोनो जैसे बस वहीं के होके रह गये थे.
रूपाली ने कुलदीप का कमरा खोला और अंदर दाखिल हुई. लाइट ऑन करते ही उसके दिल से वाह निकल गयी. ये कमरा घर के बाकी कमरों से कहीं ज़्यादा सॉफ सुथरा था. हर चीज़ अपनी जगह पर थी और कहीं भी कुच्छ इधर उधर नही था. हर छ्होटी से छ्होटी चीज़ भी सलीके से रखी हुई थी. रूपाली को ध्यान आया के कुलदीप भी ऐसा ही था. हमेशा सॉफ सुथरा रहता. कपड़े पे एक धब्बा भी लग जाए तो फ़ौरन बदल देता. घर में भी वो ऐसे बन ठनके रहता था जैसे बस अभी कहीं बाहर जाने वाला हो. ज़रा सा हाथ भी गंदा हो जाए तो हाथ धोने के बजाय वो नहाने ही चला जाता था. दिन में 10 बार तो वो इस बहाने से नहा ही लेता था.
रूपाली ने कमरे पर नज़र डाली और कुलदीप की अलमारी की तरफ बढ़ी. अलमारी खोलने की कोशिश की तो वो लॉक्ड थी. रूपाली ने बाकी चाबियाँ लगाने की कोशिश की पर अलमार खोल नही सकी. जाने से पहले कुलदीप ने अपनी अलमारी बंद की थी और चाबियाँ शायद साथ ले गया था. रूपाली को हैरत नही हुई. जिस तरह से कुलदीप अपनी चीज़ों को सॉफ सुथरा रखता था उससे ज़ाहिर था के वो नही चाहता था के उसकी चीज़ों के साथ कोई छेड़ छाड करे. अलमारी की तरह ही उसके कमरे के बाकी सब कबोर्ड्स ताले लॉक थे और चाबियों का कहीं पता नही था. कुलदीप के कमरे में कहीं एक काग़ज़ भी इधर उधर नही था. रूपाली ने उसके बेड के उपेर नीचे तलाशी लेनी चाही पर वहाँ भी कुच्छ हासिल नही हुआ. तक कर रूपाली वापिस कुलदीप के कमरे से बाहर आ गयी. कमरे का दरवाज़ा उसने बंद किया ही था के उसकी नज़र में कुच्छ ऐसा आया के उसने दरवाज़ा वापिस खोल दिया और फिर कुलदीप की अलमारी की तरफ आई.
अलमारी यूँ तो बंद थी पर साइड से कपड़े का एक टुकड़ा हल्का सा बाहर निकला रह गया था जिसपर रूपाली की कमरा बंद करते वक़्त नज़र पड़ गयी थी. रूपाली नीचे बैठी और कपड़े को बाहर पकड़कर खींचे की कोशिश की पर अलमारी बंद होने के कारण वो किवाड़ के बीच में फसा हुआ था. रूपाली ने गौर से देखा तो वो एक ब्रा की स्ट्रॅप थी जो हल्की सी शायद अलमारी बंद करते हुए बाहर रह गयी और कुलदीप ने ध्यान नही दिया. रूपाली को बहुत हैरानी हुई. कुलदीप के कमरे में एक ब्रा क्या कर रही थी? वो ये कहाँ से लाया और क्यूँ लाया? रूपाली ने ब्रा की स्ट्रॅप को देखकर अंदाज़ा लगाया के ये प्लैइन ब्रा नही थी. काफ़ी सारे रंग थे उसपर. शायद कलर स्ट्रिपेस थी या कई रंग के फूल बने हुए था या रंग के छीटे थे. रूपाली का सर चकराने लगा. इस घर में उस वक़्त 3 ही औरतें थी जिस वक़्त कुलदीप यहाँ आया था. रूपाली ने अपनी कपड़ो की तरफ ध्यान दिया तो उसके पास इस तरह की कोई ब्रा नही थी. उसकी सारी ब्रा या तो सफेद रंग की थी या काले और यही हाल उसकी सास सरिता देवी का भी था. उनके आखरी वक़्त में रूपाली ही उनका ध्यान रखती थी और उनके कपड़े वगेरह धुलवाती थी. तब उसने अपनी सास के कपड़े देखे थे और सरिता देवी या तो प्लैइन वाइट या ब्लॅक ब्रा ही पेहेन्ति थी. बची कामिनी? क्या ये कामिनी की ब्रा हो सकती है? पर अगर है भी तो कुलदीप की अलमारी में क्या कर रही है?
रूपाली फ़ौरन कुलदीप के कमरे से निकली और बंद करके कामिनी के कमरे में पहुँची. उसने कामिनी के कपड़े इधर उधर किए और उसकी ब्रा देखने लगी. कामिनी की अलमारी में उसे कुच्छ ब्रा दिखाई दी और उसने राहत की साँस ली. कामिनी की कुच्छ ब्रा कोलोरेड थी पर सब प्लैइन कोलोरेड थी. कोई भी ऐसे नही थी जिसपे कई सारे रंग हो. पूरी ब्रा एक ही रंग की थी. कामिनी की ब्रा के स्ट्रॅप्स देखकर रूपाली ने अंदाज़ा लगाया के कुलदीप की अलमारी में रखी ब्रा कामिनी की ब्रा से काफ़ी अलग थी.
रूपाली कुलदीप को अपने छोटे देवर और उसके खामोश और सुलझे हुए नेचर की वजह से काफ़ी पसंद करती थी. जब उसे लगा के ये ब्रा कामिनी की है तो वो परेशान हो गयी थी ये सोचकर के क्या कुलदीप अंदर अंदर अपनी ही बहेन की ब्रा चुरा ले गया था? पर जब उसने कामिनी की ब्रा देखी तो उसे अच्छा लगा. कुलदीप अपनी खुद की बहेन पर नज़र नही रखता था. वो मानसिक तौर पर भी ठीक था फिर भी सवाल ये था के उसके कमरे में एक ब्रा क्या कर रही थी?
रूपाली ने कामिनी के कपड़े वापिस रखे और अलमारी बंद करने लगी. फिर कुच्छ सोचकर उसने कामिनी के कुच्छ कपड़े उठा लिए और कुच्छ ब्रा और पॅंटीस भी और उन्हें लेकर अपने कमरे में आ गयी.
रात को रूपाली फिर अपने ससुर के बिस्तर पे नंगी पड़ी हुई थी. उनके लंड उसके हाथ में जिसे वो ज़ोर ज़ोर से हिला रही थी. ठाकुर उसके साइड में लेते हुए थे. रूपाली का एक निपल उनके मुँह में था जिसे वो चूस रहे थे और 2 उंगलियाँ रूपाली की चूत में अंदर बाहर हो रही थी.
"पिताजी" रूपाली ने ज़ोर ज़ोर से साँस लेते हुए कहा
"ह्म्म्म्म" ठाकुर ने जवाब दिया और रूपाली की चूत से उंगलियाँ निकल कर उसके उपेर चढ़ गये. अब रूपाली की दोनो चुचियाँ उनके हाथों में थी जिन्हें वो बारी बारी चूसने लगे.
रूपाली से सबर करना मुश्किल हो रहा था अगर राज शर्मा होता तो कबका चोद चुका होता ठाकुर के लंड पे उसकी गिरफ़्त मज़बूत हो गयी थी और हाथ तेज़ी के साथ उपेर नीचे हो रहा था
"आअज मैं ज़मीन देखने गयी थी" उसने अपनी भारी हो रही साँसों के बीच बोला
"ह्म" ठाकुर ने फिर इतना ही कहा और रूपाली की चुचियाँ छोड़ थोड़ा नीचे होकर उसके पेट को चूमने लगे. हाथ अभी भी दोनो चुचियाँ मसल रहे थे.
"मैं वहाँ काम करने वाली एक औरत से मिली. वो कह रही थी के उसके आदमी को आपने ज़मीन के देख भाल करने के लिए रखा था पर उसके मरने के बाद अब वो और उसकी बेटी ये काम करती हैं" रूपाली बड़ी मुश्किल से बोल सकी. उसकी धड़कन तेज़ हो चली थी. ठाकुर उसके पेट को चूम रहे थे. रूपाली की दोनो टांगे खुली हुई थी और चूत गीली हो रही थी. उसका दिल कर रहा था के ठाकुर सब छ्चोड़कर लंड उसके अंदर घुसा दें.
"हमने काम के लिए काफ़ी लोग रखे हुए थे. धीरे धीरे सब चले गये क्यूंकी ज़मीन पे कुच्छ काम ही नही था. फसल लगवानी हमने बंद कर दी थी.बस एक कालू ही रह गया था. शायद तुम उसकी बीवी से ही मिली होंगी. वो कुच्छ दिन पहले मर गया था. उसकी बीवी को हम अभी भी कुच्छ पैसे भेजते हैं. वैसे तो ज़मीन में देखभाल करने को कुच्छ बचा नही पर फिर भी तरस खाकर हमने उसे हटाया नही." कहते हुए ठाकुर ने रूपाली की दोनो टाँगें खोलकर अपने कंधे पे रख ली और थोड़ा और नीचे हो गये. रूपाली की चूत अब उनके चेहरे के सामने थी.
"नाम तो नही बताया उसने अपनी पति का पर हां शायद वो ही थी. उसकी बेटी भी है" रूपाली ने कहा. उसकी समझ नही आ रहा था के ठाकुर क्या कर रहे हैं. वो लंड के लिए मरी जा रही थी और ठाकुर इतनी देर से लंड घुसाने का नाम नही ले रहे थे. वो अब उसके टाँगो को अपने कंधे पे रखकर उसकी जाँघो को चूम रहे थे.
"हां वही होगी. बिंदिया नाम है शायद उस औरत का" ठाकुर उसकी जाँघो को चूमते हुए धीरे धीरे उसकी चूत की तरफ आ रहे थे.
" हां बिंदिया ही था" रूपाली ने कहा और इससे पहले के वो कुच्छ समझ पाती ठाकुर ने अपने होंठ उसकी चूत पे रख दिए
"आआआआआआआहह पिताजी" रूपाल की जैसे चीख निकल पड़ी. उसके जिस्म में बढ़ती गर्मी एक ज्वालामुखी बनकर फॅट पड़ी. उसकी चूत पे आज तक किसी ने मुँह नही लगाया था. ठाकुर ने जैसे ही अपने होंठ उसकी चूत पे रखकर जीभ उसकी चूत पे फिराई, रूपाली की चूत ने पानी छ्चोड़ दिया.
रूपाली ने कसकर ठाकुर के सर को पकड़ लिया और अपनी चूत में और ज़ोर से घुसाने लगी. उसने अपने टाँगो को अपने ससुर के कंधो पर लपेट दिया जैसे अपनी टाँगो में उन्हें दबाकर मारना चाहती हो. ठाकुर की जीभ उसकी चूत पे उपेर से नीचे तक जा रही थी. रूपाली के पति ने कभी ये ना तो किया था और ना ही करने की कोशिश की थी. रूपाली को तो पता भी नही था के चूत में इस तरह भी मज़ा लिया जा सकता है. ठाकुर की एक उंगली अब उसकी चूत में घुस चुकी थी और अंदर बाहर हो रही थी. साथ साथ वो उसकी चूत की चाट भी रहे थे.
"मैने कल उसे यहाँ हवेली में बुलाया है" रूपाल ने कहा. उसने ठाकुर के बॉल पकड़ रखे थे और चूत में उनका मुँह दबा रही थी. उसके कमर मूड गयी थी. चूचियाँ उपेर छत की तरफ हो गयी थी, सर पिछे झटक दिया था और नीचे से गांद अपने आप हिलने लगी थी. वो खुद ही ठाकुर के मुँह पे अपनी चूत रगड़ रही थी.
"क्यूँ" कहते हुए ठाकुर रूपाली की टाँगें खोलते हुए सीधे हुए और घूमकर उसके उपेर आ गये. अब उनका मुँह रूपाली की चूत पर था और रूपाली का सर उनकी टाँगो के बीच. लंड सीधा रूपाली के मुँह के उपेर लटक रहा था.
"इसे कहते हैं 69 पोज़" ठाकुर नीचे से रूपाली की तरफ देखकर मुस्कुराए और फिर उसकी चूत चाटने लगे. रूपाली का जिस्म फिर गरम हुआ जा रहा था. उसने एक लंभी साँस छ्चोड़ी और ठाकुर का लंड अपने मुँह में ले लिया.
"क्यूँ बुलाया है" ठाकुर ने उसकी चूत पे जीभ फिरते हुए कहा
"हवेली की सफाई करनी है. मैने सोचा के उसकी बेटी मेरा हाथ बटा देगी." रूपाली ने लंड मुँह से निकाल कर कहा और फिर लंड मुँह में ले लिया
"वो मान गयी?" ठाकुर ने कहा और रूपाली की चूत से मुँह हटाकर साइड बैठ गये. दोनो हाथों से रूपाली के सर को पकड़ा और लंड उसके मुँह में अंदर बाहर करने लगे. दीपाली भी ठाकुर का लंड ऐसे पी रही थी जैसे अपने राज शर्मा का पी रही हो
"ह्म्म्म्मम" लंड मुँह में होने के कारण रूपाली इतना ही कह सकी.उसके ससुर उसके मुँह को चोद रहे थे.
थोड़ी देर लंड मुँह में हिलने के बाद ठाकुर बिस्तर से उतर गये और रूपाली को भी नीचे आने का इशारा किया. सवालिया नज़र से ठाकुर को देखती रूपाली बिस्तर से नीचे उतर खड़ी हुई जैसे पुच्छ रही हो के क्या हुआ?
ठाकुर ने उसे बिस्तर पे हाथ रखने को कहा और धीरे से उसे झुका दिया. रूपाली समझ गयी. उसने अपनी टांगे फेला दी, हाथ बिस्तर पे रहे और गांद पिछे को निकालकर खड़ी हो गयी, चुदने के लिए तैय्यार. ठाकुर उसके पिछे आए, दोनो हाथो से उसकी गांद को पकड़ा और एक ही झटके में लंड उसकी चूत के अंदर पूरा घुसा दिया.
"इसी बहाने सोच रही थी के हवेली के बाहर भी कुच्छ सफाई हो गयी. बाहर से देखने से तो लगता ही नही के अब हवेली में कोई रहता भी है" रूपाली ने कहा. उसकी चूत पे ठाकुर धक्के मार रहे थे. उसकी दोनो छातियाँ लटकी हुई उसके नीचे झूल रही थी. हर धक्के पे रूपाली थोड़ा आगे को सरक्ति और उसकी दोनो चूचियाँ बिस्तर के कोने से टकराती.
"जैसा आप ठीक समझें" ठाकुर ने कहा और धक्को की रफ़्तार बढ़ाकर पूरे ज़ोर से रूपाली को चोदने लगे.
सेक्सी हवेली का सच compleet
Re: सेक्सी हवेली का सच
सेक्सी हवेली का सच--8
अगले ही दिन सुबह सुबह पायल हवेली आ पहुँची. वो अकेली ही थी.
"तेरी माँ कहाँ है?" रूपाली ने उसे देखते हुए पुचछा
"माँ को कुच्छ काम पड़ गया था मालकिन" पायल ने जवाब दिया"इसलिए मुझे अकेले ही भेज दिया. कह रही थी के वो शाम को आएगी"
"ठीक है"कहते हुए रूपाली ने पायल को उपेर से नीचे तक देखा.
शकल सूरत से पायल भले ही बहुत ज़्यादा नही पर सुंदर ज़रूर थी. उसने एक चोली पहनी हुई थी जो छ्होटी होने से उसके जिस्म पे बहुत ज़्यादा फसि हुई थी. पीछे खींचकर बँधे जाने की वजह से पायल की दोनो चूचियाँ बुरी तरह से दब रही थी और लग रहा था के या तो चोली फाड़कर बाहर आ जाएँगी या उपेर से उच्छालकर बाहर आ गीरेंगी. रूपाली को हैरत हुई के ये लड़की साँस भी कैसे ले रही है. चोली ठीक पायल की दोनो चूचियों के नीचे ही ख़तम हो रही थी. उसका पूरा पेट खुला हुआ था. ल़हेंगा चूत से बस ज़रा सा ही उपेर बँधा हुआ था और मुश्किल से घुटनो तक आ रहा था. एक तरह से देखा जाए तो पायल जैसे आधी नंगी ही थी.
"वा री ग़रीबी" रूपाली ने सोचा
"तेरा समान कहाँ है?" उसे पायल से पुचछा
"समान?" पायल ने सवालिया नज़रों से रूपाली को देखा. उसके इस तरह देखने से ही रूपाली समझ गयी के उस बेचारी के पास समान कुच्छ है ही नही.
"आजा अंदर आजा" उसने पायल को इशारा किया
पायल रूपाली के पिछे पिछे हवेली में दाखिल हुई. हवेली में घुसते ही वो आँखे फाडे चारो तरफ देखने लगी
"क्या हुआ" रूपाली ने पुचछा
"इतना बड़ा घर" पायल घूमकर हवेली देखते हुए बोली " इतना आलीशान. यहाँ तो बहुत सारे लोग रहते होंगे ना मालकिन?"
"नही" रूपाली हस्ते हुए बोली " बहुत कम लोग रहते हैं"
पायल हवेली और अंदर हर चीज़ को ऐसे देख रही थी जैसे कहीं जादू की नगरी में आ गयी हो
"ऐसा तो मैने कभी सपने में भी नही देखा था मालकिन" उसे पायल के पिछे पिछे सीढ़ियाँ चढ़ते हुए कहा
"अब रोज़ देखती रहना. यहीं रहेगी तू" कहते हुए रूपाली उसे लेकर अपने कमरे तक बढ़ी.
रूपाली के कमरे से लगता हुआ एक छ्होटा कमरा था. वो कमरा ज़्यादातर समान रखने के काम ही आता था, किसी स्टोर रूम की तरह. उस कमरे का एक दरवाज़ा रूपाली के कमरे में भी खुलता था. कमरा बनवाया इसलिए गया था के अगर रूपाली वाले कमरे में समान ज़्यादा होने लगे तो छ्होटे कमरे में रख दो और अंदर से दरवाज़ा होने की वजह से जब चाहो उठा लाओ. रूपाली पायल को लेकर कमरे के अंदर पहुँची.
"ये आज से तेरा कमरा होगा" रूपाली ने पायल से कहा
कमरे में हर तरफ समान बिखरा पड़ा था. पायल कभी कमरे को देखती तो कभी रूपाली को
"ऐसे क्या देख रही है?" रूपाली ने कहा "ये सारा समान हट जाएगा यहाँ से. अपना कमरा सॉफ कर लेना. जो समान तुझे चाहिए रख लेना बाकी निकालकर स्टोर रूम में पहुँचा देना"
"नही मालकिन वो......" पायल ने कहने की कोशिश की
"क्या?"रूपाली ने पुचछा
"नही वो आपने कहा के मेरा कमरा. मतलब मैं यहीं रहूंगी? हवेली में?" पायल बोली
"हां और नही तो क्या" रूपाली वहीं दीवार से टेक लगते हुए बोली " तू यहीं रहकर मेरे काम में हाथ बटाएगी"
"पर माँ?" पायल फिर अटकते हुए बोली
"तेरी माँ की चिंता मत कर. उसे मैं कह दूँगी. और फिर यहाँ काम करने के हर महीने पैसे भी तो दूँगी मैं तुझे" रूपाली ने ऐसे कहा जैसे फ़ैसला सुना रही हो
"जी ठीक है" पायल ने रज़ामंदी में सर हिलाया
"अगर तुझे बाथरूम वगेरह जाना हो तो सामने गेस्ट रूम है वहाँ चली जाना. इस कमरे में बाथरूम नही है. और ये दरवाज़े के इस तरफ मेरा कमरा है" रूपाली ने अंदर वाले दरवाज़े की तरफ इशारा करते हुए कहा
पायल ने फिर रज़ामंदी में सर हिला दिया
"चल अब तू नहा ले. कितनी गंदी लग रही है. मैं तुझे कुच्छ कपड़े ला देती हूँ." रूपाली ने कहा
"कपड़े?" पायल ने ऐसे पुचछा के जैसे पुच्छ रही हो के कपड़े क्या होते हैं
"हां कपड़े?" रूपाली ने कहा " तेरे पास इस चोली और ल़हेंगे के साइवा पहेन्ने को कुच्छ नही है ना?"
पायन ने इनकार में सर हिला दिया.
रूपाली उसे लेकर गेस्ट रूम में पहुँची और बाथरूम का दरवाज़ा खोला.
"तू नहा ले. मैं तुझे कुच्छ और कपड़े ला देती हूँ" पायल को गेस्ट रूम में छ्चोड़कर रूपाली कमरे से बाहर निकल गयी
रूपाली कामिनी के कमरे में पहुँची और उसकी अलमारी से 3 जोड़ी सलवार कमीज़ निकल लिया. उसने जान भूझकर वही कपड़े निकाले थे जिन्हें पुराना हो जाने की वजह से कामिनी ने अलमारी में नीचे की तरफ फेंका हुआ था और कभी उन्हें पेहेन्ति नही थी. कपड़े लेकर वो वापिस गेस्ट रूम में पहुँची तो पायल वैसी की वैसी ही खड़ी थी.
"क्या हुआ? अंदर जाकर नहा ले ना" उसने पायल से कहा
"पर यहाँ पानी कहाँ है?" पायल ने जवाब दिया
रूपाली की जैसे हसी छ्होट पड़ी.
"अरे पगली यहाँ कोई कुआँ नही है जहाँ से तूने पानी निकालके नहाना है"रूपाली बाथरूम में दाखिल हुई " ये देख इसे शोवेर घूमाते हैं. इसे इस तरफ घुमाएगी तो उपेर यहाँ से पानी गिरेगा और ऐसे उल्टा घुमाएगी तो बंद हो जाएगा. समझी"
पायल ने हैरत से शवर की तरफ देखता हुआ फिर गर्दन हिला दी.
"ये यहाँ साबुन रखा हुआ है. नाहकार बाहर आजा" कहते हुए रूपाली बाथरूम से निकल गयी.
वो वापिस नीचे बड़े कमरे में पहुँची. ठाकुर सुबह सवेरे ही कहीं बाहर चले गये थे. किचन में भूषण दोपहर के खाने की तैय्यारि कर रहा था. रूपाली को आता देख उसकी तरफ मुस्कुराया
"एक काम कीजिए काका" रूपाली ने भूषण से कहा "ये लड़की अबसे यहीं हवेली में रहेगी और काम में हाथ बटाएगी. इसके साथ मिलकर हवेली की पूरी सफाई कर दीजिएगा"
"कौन है ये लड़की?" भूषण ने पुचछा
"गाओं की ही है" रूपाली ने जवाब दिया " और एक काम और करना. ये हवेली के बाहर जितना भी जंगल उगा पड़ा है इसे कटवाकर बाहर फिर से लॉन और गार्डेन लगवाना है"
"जैसा आप कहो" भूषण ने कहा " पर हवेली के आस पास इतनी जगह है के सफाई करने में एक हफ़्ता निकल जाएगा"
"कोई बात नही" रूपाली ने कहा
:और इसलिए लिए गाओं से आदमी बुलाने पड़ेंगे." भूषण ने बाहर खिड़की से बाहर देखते हुए कहा. एक वक़्त था जब हवेली के आस पास घास का कालीन सा बिच्छा हुआ था और अब सिर्फ़ झाड़ियाँ
"ठीक है आप आदमी बुला लेना" कहते हुए रूपाली बड़े कमरे में आई और सोफे पे बैठ कर टीवी देखने लगी
थोड़ी देर बाद वो वापिस गेस्ट रूम में पहुँची तो पायल नाहकार बाहर निकली ही थी. उसने फिर अपना चोली और ल़हेंगा पहेन लिया था. उसे देखते ही रूपाली को ध्यान आया के वो कामिनी के कपड़े पायल के लिए ले तो आई थी पर उसे बताना भूल गयी थी.
"अरी पगली. ये दोबारा क्यूँ पहेन लिया" उसने पायल से कहा " ये नही अब ये कपड़े पहना कर"
रूपाली ने कामिनी के कपड़े पायल की तरफ बढ़ाए.
पायल पूरी भीगी खड़ी थी. नाहकार उसने बिना बदन पोन्छे ही कपड़े पहेन लिए थे जिसकी वजह से कपड़े गीले होकर उसके बदन से चिपक गये थे. चोली छातियों से जा लगी थी और निपल्स कपड़े के उपेर उभर गये थे. नीचे ल़हेंगा जो वैसे ही सिर्फ़ घुटनो तक आता था भीगने के कारण उसकी टाँगो से चिपक गया था और उपेर टाँगो के बीच चूत का उभार सॉफ नज़र आने लगा था. पायल की घाघरे के उपेर से ही चूत का उभार देखकर रूपाली ने अंदाज़ा लगाया के उसने अंदर पॅंटी भी नही पहेन रखी थी. पायल के दोनो हाथ पीठ के पिछे थे
"क्या हुआ?" रूपाली ने पुचछा
"जी वो ये चोली बँध नही रही" पायल ने शरमाते हुए कहा
रूपाली फ़ौरन समझ गयी. पायल की चूचियाँ काफ़ी बड़ी बड़ी थी और उसकी चोली इतनी छ्होटी के वो खुद उसे पिछे बाँध ही नही सकती थी. ज़रूर उसकी माँ ही खींचकर बाँधती होगी
"उसे छ्चोड़ दे. ये कमीज़ सलवार पहेन ले" रूपाली ने कामिनी के कपड़े पायल की तरफ बढ़ाए
पायल एक सलवार कमीज़ लेकर वापिस बाथरूम की तरफ बढ़ी. उसकी पीठ पर चोली खुली हुई थी जिससे उसकी कमर बिल्कुल नंगी थी.
"सुन" रूपाली ने उसकी नंगी कमर की तरफ देखते हुए कहा जहाँ ब्रा के स्ट्रॅप्स ना देखकर उसे कुच्छ याद आया था " तू ब्रा नही पेहेन्ति ना?"
"ब्रा?" पायन ने घूमते हुए ऐसे कहा जैसे किसी अजीब सी चीज़ का ज़िक्र हो रहा हो
"अरे वो जो औरतें छातियों पे पेहेन्ति हैं. तेरी माँ नही पेहेन्ति?" रूपाली ने पुचछा
पायल ने इनकार में गर्दन हिल्याई
"तेरे पास नही है?" रूपाली ने पुचछा तो पायल ने फिर इनकार में गर्दन हिला दी.
रूपाली ने ठंडी साँस ली
"अब इसे ब्रा कहाँ से दूं?" उसने दिल में सोचा फिर ख्याल आया के अपनी कोई पुरानी ब्रा दे दे.
"पर मेरी ब्रा आएगी इसे?" उसने दिल में सोचा और पायल की तरफ देखा
"इधर आ" उसने पायल को नज़दीक आने का इशारा किया " साइज़ कितना है तेरा?"
"जी?" पायल ने फिर हैरा से पुचछा
"अरे साइज़ पगली. तेरी चूचोयो का. कितनी बड़ी हैं तेरी?" रूपाली ने थोड़ा गुस्से में पुचछा
पायल सहम गयी. हाथ में पकड़े कपड़े ऐसे अपने सामने की तरफ कर लिए जैसे रूपाली से अपनी चूचियों को च्छूपा रही हो
"ओफहो" रूपाली झुंझला गयी पर अगले ही पल ख्याल आया के ये बेचारी गाओं की एक ग़रीब सीधी सादी लड़की है.इसे क्या पता होगा ये सब
"चल कोई नही. मैं दे दूँगी ब्रा. इसे सामने से हटा ज़रा." रूपाली ने पायल के हाथ में पकड़े हुए कपड़ों की तरफ इशारा किया
पायल ने शरमाते हुए कमीज़ हटा दी. रूपाली गौर से उसकी चूचियों को देखने लगी. पायल की दोनो चूचियाँ काफ़ी बड़ी थी, बल्कि बहुत बड़ी. रूपाली ने थोड़ा और गौर से देखा तो महसूस हुआ के 18 साल की उमर में ही पायल की चुचियाँ खुद उसके बराबर ही थी. मतलब के पायल को उसका ब्रा आ जाना चाहिए
"ज़रा घूम" कहते हुए रूपाली ने पायल को घुमाया और उसकी नंगी कमर को देखते हुए पिछे से ब्रा का अंदाज़ा लेने लगी. उसने नज़र नीचे की तरफ गयी तो देखा के गीला होने की वजह से पायल का ल़हेंगा उसकी गांद से चिपक गया था. गांद का पूरा शेप ल़हेंगे के उपेर से नज़र आ रहा था.
"यहीं रुक" कहती हुई पायल कमरे से बाहर निकली और अपने कमरे से 2 ब्रा और अपनी 2 पॅंटीस उठा लाई
"ये पहना कर कपड़े के नीचे" उसे ब्रा और पॅंटीस पायल को दी " अब ये पहेन, फिर सलवार कमीज़ पहन कर नीचे आ"
पायल ब्रा को हाथ में पकड़े देखने लगी और फिर रूपाली को देखा
"अब क्या हुआ" रूपाली ने पुचछा
"इसे पेहेन्ते कैसे हैं?" उसने एक बेवकूफ़ की तरफ रूपाली से पुचछा
"हे भगवान" कहते हुए रूपाली करीब आई " चल मैं बताती हूँ. अपनी चोली उतार"
"जी?" पायल ने सुना तो शर्माके 2 कदम पिछे हट गयी
"अरे" रूपाली ने गुस्से से उसकी तरफ देखा" शर्मा क्या रही है. जो तेरे पास है वही मेरे पास भी है. जो मेरी ब्लाउस में च्छूपा हुआ है वही है तेरी चोली में भी. चल उतार."
रूपाली पायल के पास आई और उसके दोनो हाथ पकड़कर सीधे किया. फिर उसने खींचकर चोली को उतार दिया. पायल ने रोकने की कोशिश की तो रूपाली ने घूरकर उसकी तरफ देखा और चोली को जिस्म से अलग करके बिस्तर पे फेंक दिया
चोली उतरते ही पायल की दोनो चूचियाँ रूपाली की आँखो के सामने थी. खुद एक औरत होते हुए भी पायल की चुचियों को देखकर रूपाली की धड़कन जैसे तेज़ हो गयी हो. पायल की चुचियाँ इतनी बड़ी हैं इसका अंदाज़ा उसे चोली के उपेर से हो गया था पर चोली उतरते ही तो जैसे दो पहाड़ सामने आ गये हो. हल्के सावली रंग की 2 चुचियाँ और उनपर काले रंग के निपल्स. और इतनी बड़ी बड़ी होने की वजह से अपने ही वज़न से हल्का सा निच्चे को झुक गयी थी. पायल ने रूपाली को अपनी चुचियों को घूरते देखा तो हाथ आगे करके अपनी छाती ढक ली. रूपाली मुस्कुरा दी
"कितनी उमर है तेरी?" रूपाली ने पुचछा
"जी 18 साल" पायल ने शरमाते हुए जवाब दिया
"और अभी से इतनी बड़ी बड़ी लेके घूम रही है?" रूपाली ने हस्ते हुए कहा तो पायल पे जैसे घड़ो पानी गिर गया.
"अच्छा शर्मा मत. हाथ आगे कर" कहते हुए रूपाली ने ब्रा आगे की और पायल को ब्रा कैसे पेहेन्ते हैं बताने लगी. ब्रा को फिर करते हुए उसी बारी बारी पायल की दोनो चुचियों को हाथ से पकड़ना पड़ा ताकि ब्रा ढंग से पहना सके. उसने पहली बार किसी और औरत की चूचियों को हाथ लगाया. खुद रूपाली को समझ नही आया के उसे मज़ा आया या कैसा लगा पर जो भी था, अजीब सा था. उसकी धड़कन अब भी जैसे तेज़ होने चली थी
"हो गया" पीछे से ब्रा के हुक्स लगते हुए रूपाली बोली " अब तो खुद पहेन लेगी ना या रोज़ाना सुबह सवेरे मुझे तेरी छातियाँ देखना पड़ा करेंगी?" रूपाली पिछे से हटे हुए बोली.
"नही मुझे आ गया. अबसे खुद पहेन लिया करूँगी" जवाब में पायल भी मुस्कुराते हुए बोली
"वैसे एक बात तो है. काफ़ी बड़ी बड़ी और मुलायम सी हैं तेरी" कहते हुए रूपाली ने पायल की दोनो चूचियों पे हाथ फेरा और ज़ोर से हस्ने लगी
"क्या मालकिन आप भी" पायल शरमाते हुए आगे को बढ़ी
"अरे सुन" पीछे से रूपाली ने उसका हाथ पकड़ा" वो सामने पॅंटी पड़ी है. ये तो खुद पहेन लेगी ना या मैं ही पहनाके दिखाऊँ?"
"नही आप रहने दीजिए" रूपाली ने फ़ौरन अपने ल़हेंगे को ऐसे पकड़ा जैसे रूपाली उसे खींचकर उतार देगी" मैं खुद पहेन लूँगी"
"हाँ पहना कर. वरना ल़हेंगे के उपेर से तेरा पूरा पिच्छवाड़ा नज़र आता है" कहते हुए रूपाली ने पिछे से पायल की गांद पे पिंच किया
अगले ही दिन सुबह सुबह पायल हवेली आ पहुँची. वो अकेली ही थी.
"तेरी माँ कहाँ है?" रूपाली ने उसे देखते हुए पुचछा
"माँ को कुच्छ काम पड़ गया था मालकिन" पायल ने जवाब दिया"इसलिए मुझे अकेले ही भेज दिया. कह रही थी के वो शाम को आएगी"
"ठीक है"कहते हुए रूपाली ने पायल को उपेर से नीचे तक देखा.
शकल सूरत से पायल भले ही बहुत ज़्यादा नही पर सुंदर ज़रूर थी. उसने एक चोली पहनी हुई थी जो छ्होटी होने से उसके जिस्म पे बहुत ज़्यादा फसि हुई थी. पीछे खींचकर बँधे जाने की वजह से पायल की दोनो चूचियाँ बुरी तरह से दब रही थी और लग रहा था के या तो चोली फाड़कर बाहर आ जाएँगी या उपेर से उच्छालकर बाहर आ गीरेंगी. रूपाली को हैरत हुई के ये लड़की साँस भी कैसे ले रही है. चोली ठीक पायल की दोनो चूचियों के नीचे ही ख़तम हो रही थी. उसका पूरा पेट खुला हुआ था. ल़हेंगा चूत से बस ज़रा सा ही उपेर बँधा हुआ था और मुश्किल से घुटनो तक आ रहा था. एक तरह से देखा जाए तो पायल जैसे आधी नंगी ही थी.
"वा री ग़रीबी" रूपाली ने सोचा
"तेरा समान कहाँ है?" उसे पायल से पुचछा
"समान?" पायल ने सवालिया नज़रों से रूपाली को देखा. उसके इस तरह देखने से ही रूपाली समझ गयी के उस बेचारी के पास समान कुच्छ है ही नही.
"आजा अंदर आजा" उसने पायल को इशारा किया
पायल रूपाली के पिछे पिछे हवेली में दाखिल हुई. हवेली में घुसते ही वो आँखे फाडे चारो तरफ देखने लगी
"क्या हुआ" रूपाली ने पुचछा
"इतना बड़ा घर" पायल घूमकर हवेली देखते हुए बोली " इतना आलीशान. यहाँ तो बहुत सारे लोग रहते होंगे ना मालकिन?"
"नही" रूपाली हस्ते हुए बोली " बहुत कम लोग रहते हैं"
पायल हवेली और अंदर हर चीज़ को ऐसे देख रही थी जैसे कहीं जादू की नगरी में आ गयी हो
"ऐसा तो मैने कभी सपने में भी नही देखा था मालकिन" उसे पायल के पिछे पिछे सीढ़ियाँ चढ़ते हुए कहा
"अब रोज़ देखती रहना. यहीं रहेगी तू" कहते हुए रूपाली उसे लेकर अपने कमरे तक बढ़ी.
रूपाली के कमरे से लगता हुआ एक छ्होटा कमरा था. वो कमरा ज़्यादातर समान रखने के काम ही आता था, किसी स्टोर रूम की तरह. उस कमरे का एक दरवाज़ा रूपाली के कमरे में भी खुलता था. कमरा बनवाया इसलिए गया था के अगर रूपाली वाले कमरे में समान ज़्यादा होने लगे तो छ्होटे कमरे में रख दो और अंदर से दरवाज़ा होने की वजह से जब चाहो उठा लाओ. रूपाली पायल को लेकर कमरे के अंदर पहुँची.
"ये आज से तेरा कमरा होगा" रूपाली ने पायल से कहा
कमरे में हर तरफ समान बिखरा पड़ा था. पायल कभी कमरे को देखती तो कभी रूपाली को
"ऐसे क्या देख रही है?" रूपाली ने कहा "ये सारा समान हट जाएगा यहाँ से. अपना कमरा सॉफ कर लेना. जो समान तुझे चाहिए रख लेना बाकी निकालकर स्टोर रूम में पहुँचा देना"
"नही मालकिन वो......" पायल ने कहने की कोशिश की
"क्या?"रूपाली ने पुचछा
"नही वो आपने कहा के मेरा कमरा. मतलब मैं यहीं रहूंगी? हवेली में?" पायल बोली
"हां और नही तो क्या" रूपाली वहीं दीवार से टेक लगते हुए बोली " तू यहीं रहकर मेरे काम में हाथ बटाएगी"
"पर माँ?" पायल फिर अटकते हुए बोली
"तेरी माँ की चिंता मत कर. उसे मैं कह दूँगी. और फिर यहाँ काम करने के हर महीने पैसे भी तो दूँगी मैं तुझे" रूपाली ने ऐसे कहा जैसे फ़ैसला सुना रही हो
"जी ठीक है" पायल ने रज़ामंदी में सर हिलाया
"अगर तुझे बाथरूम वगेरह जाना हो तो सामने गेस्ट रूम है वहाँ चली जाना. इस कमरे में बाथरूम नही है. और ये दरवाज़े के इस तरफ मेरा कमरा है" रूपाली ने अंदर वाले दरवाज़े की तरफ इशारा करते हुए कहा
पायल ने फिर रज़ामंदी में सर हिला दिया
"चल अब तू नहा ले. कितनी गंदी लग रही है. मैं तुझे कुच्छ कपड़े ला देती हूँ." रूपाली ने कहा
"कपड़े?" पायल ने ऐसे पुचछा के जैसे पुच्छ रही हो के कपड़े क्या होते हैं
"हां कपड़े?" रूपाली ने कहा " तेरे पास इस चोली और ल़हेंगे के साइवा पहेन्ने को कुच्छ नही है ना?"
पायन ने इनकार में सर हिला दिया.
रूपाली उसे लेकर गेस्ट रूम में पहुँची और बाथरूम का दरवाज़ा खोला.
"तू नहा ले. मैं तुझे कुच्छ और कपड़े ला देती हूँ" पायल को गेस्ट रूम में छ्चोड़कर रूपाली कमरे से बाहर निकल गयी
रूपाली कामिनी के कमरे में पहुँची और उसकी अलमारी से 3 जोड़ी सलवार कमीज़ निकल लिया. उसने जान भूझकर वही कपड़े निकाले थे जिन्हें पुराना हो जाने की वजह से कामिनी ने अलमारी में नीचे की तरफ फेंका हुआ था और कभी उन्हें पेहेन्ति नही थी. कपड़े लेकर वो वापिस गेस्ट रूम में पहुँची तो पायल वैसी की वैसी ही खड़ी थी.
"क्या हुआ? अंदर जाकर नहा ले ना" उसने पायल से कहा
"पर यहाँ पानी कहाँ है?" पायल ने जवाब दिया
रूपाली की जैसे हसी छ्होट पड़ी.
"अरे पगली यहाँ कोई कुआँ नही है जहाँ से तूने पानी निकालके नहाना है"रूपाली बाथरूम में दाखिल हुई " ये देख इसे शोवेर घूमाते हैं. इसे इस तरफ घुमाएगी तो उपेर यहाँ से पानी गिरेगा और ऐसे उल्टा घुमाएगी तो बंद हो जाएगा. समझी"
पायल ने हैरत से शवर की तरफ देखता हुआ फिर गर्दन हिला दी.
"ये यहाँ साबुन रखा हुआ है. नाहकार बाहर आजा" कहते हुए रूपाली बाथरूम से निकल गयी.
वो वापिस नीचे बड़े कमरे में पहुँची. ठाकुर सुबह सवेरे ही कहीं बाहर चले गये थे. किचन में भूषण दोपहर के खाने की तैय्यारि कर रहा था. रूपाली को आता देख उसकी तरफ मुस्कुराया
"एक काम कीजिए काका" रूपाली ने भूषण से कहा "ये लड़की अबसे यहीं हवेली में रहेगी और काम में हाथ बटाएगी. इसके साथ मिलकर हवेली की पूरी सफाई कर दीजिएगा"
"कौन है ये लड़की?" भूषण ने पुचछा
"गाओं की ही है" रूपाली ने जवाब दिया " और एक काम और करना. ये हवेली के बाहर जितना भी जंगल उगा पड़ा है इसे कटवाकर बाहर फिर से लॉन और गार्डेन लगवाना है"
"जैसा आप कहो" भूषण ने कहा " पर हवेली के आस पास इतनी जगह है के सफाई करने में एक हफ़्ता निकल जाएगा"
"कोई बात नही" रूपाली ने कहा
:और इसलिए लिए गाओं से आदमी बुलाने पड़ेंगे." भूषण ने बाहर खिड़की से बाहर देखते हुए कहा. एक वक़्त था जब हवेली के आस पास घास का कालीन सा बिच्छा हुआ था और अब सिर्फ़ झाड़ियाँ
"ठीक है आप आदमी बुला लेना" कहते हुए रूपाली बड़े कमरे में आई और सोफे पे बैठ कर टीवी देखने लगी
थोड़ी देर बाद वो वापिस गेस्ट रूम में पहुँची तो पायल नाहकार बाहर निकली ही थी. उसने फिर अपना चोली और ल़हेंगा पहेन लिया था. उसे देखते ही रूपाली को ध्यान आया के वो कामिनी के कपड़े पायल के लिए ले तो आई थी पर उसे बताना भूल गयी थी.
"अरी पगली. ये दोबारा क्यूँ पहेन लिया" उसने पायल से कहा " ये नही अब ये कपड़े पहना कर"
रूपाली ने कामिनी के कपड़े पायल की तरफ बढ़ाए.
पायल पूरी भीगी खड़ी थी. नाहकार उसने बिना बदन पोन्छे ही कपड़े पहेन लिए थे जिसकी वजह से कपड़े गीले होकर उसके बदन से चिपक गये थे. चोली छातियों से जा लगी थी और निपल्स कपड़े के उपेर उभर गये थे. नीचे ल़हेंगा जो वैसे ही सिर्फ़ घुटनो तक आता था भीगने के कारण उसकी टाँगो से चिपक गया था और उपेर टाँगो के बीच चूत का उभार सॉफ नज़र आने लगा था. पायल की घाघरे के उपेर से ही चूत का उभार देखकर रूपाली ने अंदाज़ा लगाया के उसने अंदर पॅंटी भी नही पहेन रखी थी. पायल के दोनो हाथ पीठ के पिछे थे
"क्या हुआ?" रूपाली ने पुचछा
"जी वो ये चोली बँध नही रही" पायल ने शरमाते हुए कहा
रूपाली फ़ौरन समझ गयी. पायल की चूचियाँ काफ़ी बड़ी बड़ी थी और उसकी चोली इतनी छ्होटी के वो खुद उसे पिछे बाँध ही नही सकती थी. ज़रूर उसकी माँ ही खींचकर बाँधती होगी
"उसे छ्चोड़ दे. ये कमीज़ सलवार पहेन ले" रूपाली ने कामिनी के कपड़े पायल की तरफ बढ़ाए
पायल एक सलवार कमीज़ लेकर वापिस बाथरूम की तरफ बढ़ी. उसकी पीठ पर चोली खुली हुई थी जिससे उसकी कमर बिल्कुल नंगी थी.
"सुन" रूपाली ने उसकी नंगी कमर की तरफ देखते हुए कहा जहाँ ब्रा के स्ट्रॅप्स ना देखकर उसे कुच्छ याद आया था " तू ब्रा नही पेहेन्ति ना?"
"ब्रा?" पायन ने घूमते हुए ऐसे कहा जैसे किसी अजीब सी चीज़ का ज़िक्र हो रहा हो
"अरे वो जो औरतें छातियों पे पेहेन्ति हैं. तेरी माँ नही पेहेन्ति?" रूपाली ने पुचछा
पायल ने इनकार में गर्दन हिल्याई
"तेरे पास नही है?" रूपाली ने पुचछा तो पायल ने फिर इनकार में गर्दन हिला दी.
रूपाली ने ठंडी साँस ली
"अब इसे ब्रा कहाँ से दूं?" उसने दिल में सोचा फिर ख्याल आया के अपनी कोई पुरानी ब्रा दे दे.
"पर मेरी ब्रा आएगी इसे?" उसने दिल में सोचा और पायल की तरफ देखा
"इधर आ" उसने पायल को नज़दीक आने का इशारा किया " साइज़ कितना है तेरा?"
"जी?" पायल ने फिर हैरा से पुचछा
"अरे साइज़ पगली. तेरी चूचोयो का. कितनी बड़ी हैं तेरी?" रूपाली ने थोड़ा गुस्से में पुचछा
पायल सहम गयी. हाथ में पकड़े कपड़े ऐसे अपने सामने की तरफ कर लिए जैसे रूपाली से अपनी चूचियों को च्छूपा रही हो
"ओफहो" रूपाली झुंझला गयी पर अगले ही पल ख्याल आया के ये बेचारी गाओं की एक ग़रीब सीधी सादी लड़की है.इसे क्या पता होगा ये सब
"चल कोई नही. मैं दे दूँगी ब्रा. इसे सामने से हटा ज़रा." रूपाली ने पायल के हाथ में पकड़े हुए कपड़ों की तरफ इशारा किया
पायल ने शरमाते हुए कमीज़ हटा दी. रूपाली गौर से उसकी चूचियों को देखने लगी. पायल की दोनो चूचियाँ काफ़ी बड़ी थी, बल्कि बहुत बड़ी. रूपाली ने थोड़ा और गौर से देखा तो महसूस हुआ के 18 साल की उमर में ही पायल की चुचियाँ खुद उसके बराबर ही थी. मतलब के पायल को उसका ब्रा आ जाना चाहिए
"ज़रा घूम" कहते हुए रूपाली ने पायल को घुमाया और उसकी नंगी कमर को देखते हुए पिछे से ब्रा का अंदाज़ा लेने लगी. उसने नज़र नीचे की तरफ गयी तो देखा के गीला होने की वजह से पायल का ल़हेंगा उसकी गांद से चिपक गया था. गांद का पूरा शेप ल़हेंगे के उपेर से नज़र आ रहा था.
"यहीं रुक" कहती हुई पायल कमरे से बाहर निकली और अपने कमरे से 2 ब्रा और अपनी 2 पॅंटीस उठा लाई
"ये पहना कर कपड़े के नीचे" उसे ब्रा और पॅंटीस पायल को दी " अब ये पहेन, फिर सलवार कमीज़ पहन कर नीचे आ"
पायल ब्रा को हाथ में पकड़े देखने लगी और फिर रूपाली को देखा
"अब क्या हुआ" रूपाली ने पुचछा
"इसे पेहेन्ते कैसे हैं?" उसने एक बेवकूफ़ की तरफ रूपाली से पुचछा
"हे भगवान" कहते हुए रूपाली करीब आई " चल मैं बताती हूँ. अपनी चोली उतार"
"जी?" पायल ने सुना तो शर्माके 2 कदम पिछे हट गयी
"अरे" रूपाली ने गुस्से से उसकी तरफ देखा" शर्मा क्या रही है. जो तेरे पास है वही मेरे पास भी है. जो मेरी ब्लाउस में च्छूपा हुआ है वही है तेरी चोली में भी. चल उतार."
रूपाली पायल के पास आई और उसके दोनो हाथ पकड़कर सीधे किया. फिर उसने खींचकर चोली को उतार दिया. पायल ने रोकने की कोशिश की तो रूपाली ने घूरकर उसकी तरफ देखा और चोली को जिस्म से अलग करके बिस्तर पे फेंक दिया
चोली उतरते ही पायल की दोनो चूचियाँ रूपाली की आँखो के सामने थी. खुद एक औरत होते हुए भी पायल की चुचियों को देखकर रूपाली की धड़कन जैसे तेज़ हो गयी हो. पायल की चुचियाँ इतनी बड़ी हैं इसका अंदाज़ा उसे चोली के उपेर से हो गया था पर चोली उतरते ही तो जैसे दो पहाड़ सामने आ गये हो. हल्के सावली रंग की 2 चुचियाँ और उनपर काले रंग के निपल्स. और इतनी बड़ी बड़ी होने की वजह से अपने ही वज़न से हल्का सा निच्चे को झुक गयी थी. पायल ने रूपाली को अपनी चुचियों को घूरते देखा तो हाथ आगे करके अपनी छाती ढक ली. रूपाली मुस्कुरा दी
"कितनी उमर है तेरी?" रूपाली ने पुचछा
"जी 18 साल" पायल ने शरमाते हुए जवाब दिया
"और अभी से इतनी बड़ी बड़ी लेके घूम रही है?" रूपाली ने हस्ते हुए कहा तो पायल पे जैसे घड़ो पानी गिर गया.
"अच्छा शर्मा मत. हाथ आगे कर" कहते हुए रूपाली ने ब्रा आगे की और पायल को ब्रा कैसे पेहेन्ते हैं बताने लगी. ब्रा को फिर करते हुए उसी बारी बारी पायल की दोनो चुचियों को हाथ से पकड़ना पड़ा ताकि ब्रा ढंग से पहना सके. उसने पहली बार किसी और औरत की चूचियों को हाथ लगाया. खुद रूपाली को समझ नही आया के उसे मज़ा आया या कैसा लगा पर जो भी था, अजीब सा था. उसकी धड़कन अब भी जैसे तेज़ होने चली थी
"हो गया" पीछे से ब्रा के हुक्स लगते हुए रूपाली बोली " अब तो खुद पहेन लेगी ना या रोज़ाना सुबह सवेरे मुझे तेरी छातियाँ देखना पड़ा करेंगी?" रूपाली पिछे से हटे हुए बोली.
"नही मुझे आ गया. अबसे खुद पहेन लिया करूँगी" जवाब में पायल भी मुस्कुराते हुए बोली
"वैसे एक बात तो है. काफ़ी बड़ी बड़ी और मुलायम सी हैं तेरी" कहते हुए रूपाली ने पायल की दोनो चूचियों पे हाथ फेरा और ज़ोर से हस्ने लगी
"क्या मालकिन आप भी" पायल शरमाते हुए आगे को बढ़ी
"अरे सुन" पीछे से रूपाली ने उसका हाथ पकड़ा" वो सामने पॅंटी पड़ी है. ये तो खुद पहेन लेगी ना या मैं ही पहनाके दिखाऊँ?"
"नही आप रहने दीजिए" रूपाली ने फ़ौरन अपने ल़हेंगे को ऐसे पकड़ा जैसे रूपाली उसे खींचकर उतार देगी" मैं खुद पहेन लूँगी"
"हाँ पहना कर. वरना ल़हेंगे के उपेर से तेरा पूरा पिच्छवाड़ा नज़र आता है" कहते हुए रूपाली ने पिछे से पायल की गांद पे पिंच किया
Re: सेक्सी हवेली का सच
शाम को पायल अपनी माँ का इंतेज़ार करती रही पर वो नही आई. रात को खाने की टेबल पर रूपाली ने पायल को ठाकुर से मिलवाया.
"इसे मैने रख लिया है काम में मेरा हाथ बटाने के लिए. खाना वगेरह बनाना इसे आता नही पर धीरे धीरे सीख जाएगी" रूपाली ने कहा
ठाकुर ने सिर्फ़ सहमति में सर हिलाया, एक नज़र पायल पर डाली और खाना खाने लगे. रूपाली ठाकुर के साइड में ही बैठी खा रही थी. एक मौका ऐसा आया जब पायल ठाकुर के सामने रखे ग्लास में पानी डालने लगी. वो रूपाली के सामने टेबल के दूसरी और खड़ी थी इसलिए पानी डालने के लिए उसे थोड़ा झुकना पड़ा. झुकने से उसके ब्रा में बंद दोनो चूचियाँ सॉफ दिखने लगी. रूपाली और ठाकुर दोनो की नज़र एक साथ पायल के क्लीवेज पर पड़ी. ठाकुर ने एक नज़र डाली और दूसरे ही पल नज़र हटाकर खाना खाने लगे, जैसे कुच्छ देखा ही ना हो. ये बात भले ही छ्होटी सी थी पर रूपाली ने ये देखा तो उसके दिल में खुशी की एक ल़हेर दौड़ गयी. जिसे वो चाहती थी वो सिर्फ़ उसे ही देखता था.
खाना खाने के बाद रूपाली के सामने मुसीबत ये थी के पायल उसके अगले कमरे में ही थी और रूपाली रात तो अपने ससुर के बिस्तर पर चुद रही होती थी. अगर पायल रात को उठकर उसके कमरे पर आई तो हक़ीक़त खुलने का डर था. रूपाली की समझ में कुच्छ ना आया था उसने ठाकुर को धीरे से कह दिया के वो रात को पायल के सोने के बाद उनके कमरे में आ जाएगी.
धीरे धीरे काम ख़तम करने के बाद सब अपने अपने कमरे में चले गये. रूपाली अपने कमरे में बैठी बेसब्री से वक़्त गुज़रने का इंतेज़ार कर रही थी ताकि पायल नींद में चली जाए और वो उठकर अपने ससुर के कमरे में जा सके. उसकी टाँगो के बीच आग लगी हुई थी और उसकी नज़र के सामने रह रहकर ठाकुर का लंबा मोटा लंड घूम रहा था. अचानक कमरे के बीच के दरवाज़े पर दस्तक हुई. दस्तक पायल के कमरे की तरफ से थी.
"हां क्या हुआ?" रूपाली ने दरवाज़ा खोलते हुए कहा
"आज तक मैं कभी अकेली सोई नही मालकिन. डर सा लग रहा है इतने बड़े घर में" पायल ने कहा
"अरे इसमें डरने की क्या बात है. इस कमरे में मैं हूँ ना" रूपाली ने कहा तो पायल सर हिलाती हुई फिर अपने बिस्तर की तरफ बढ़ गयी. रूपाली ने दरवाज़ा बंद किया और आकर अपने बिस्तर पर लेट गयी.
करीब एक घंटा गुज़र जाने के बाद रूपाली उठी और दरवाज़ा खोलकर पायल के कमरे में पहुँची. पायल बेख़बर सोई पड़ी थी. उसके कमरे में एक पंखा चल रहा था पर फिर भी कमरे में गर्मी थी. शायद इसी वजह से पायल ने अपनी कमीज़ उतार दी थी और सिर्फ़ ब्रा पहने सो रही थी. उसकी बड़ी बड़ी चूचियाँ ब्रा में उसकी साँस के साथ उपेर नीचे हो रही थी. रूपाली ने एक नज़र उसे देखा तो उसका दिल किया के एक बार पायल की चुचियों पर हाथ लगाके देखे पर इस इरादे को उसने अपने दिल में ही रखा. वो चुपचाप वापिस अपने कमरे में आई, पायल के कमरे से लगे दरवाज़े को अपनी तरफ से बंद किया और अपने कमरे से निकालकर नीचे ठाकुर के कमरे में पहुँची. दरवाज़ा खोलकर अंदर दाखिल हुई तो कमरे में हल्की रोशनी थी.
"हम आप ही का इंतेज़ार कर रहे थे" उसे देखते हुए ठाकुर ने कहा
रूपाली अपने ससुर के बिस्तर के पास पहुँची तो देखा के वो पहले से ही पुर नंगे पड़े अपना लंड हिला रहे थे. लंड टंकार पूरी तरह खड़ा हुआ था. रूपाली मुस्कुराइ और अपने कपड़े उतारने लगी. पूरी तरह से नंगी होकर वो भी बिस्तर पर ठाकुर के पास आकर लेट गयी.
सुबह 4 बजे का अलार्म बजा तो रूपाली की आँख खुली. वो नंगी अपने ससुर की बाहों में पड़ी हुई थी जो बेख़बर सो रहे थे. रात चुद्नने के बात सोने से पहले ही रूपाली ने ठाकुर को बता दिया था के वो सुबह सुबह ही अपने कमरे में लौट जाएगी ताकि पायल को शक ना हो. इसलिए वो सुबह 4 बजे का अलार्म लगाके सोई थी. धीरे से वो बिस्तर से उठी और अपने कपड़े उठाकर पहेन्ने लगी. कपड़े पहेंकर रूपाली ने झुक कर ठाकुर के होंठ एक बार धीरे से चूमे और हल्के कदमों से चलती हुई दरवाज़े की तरफ बढ़ी ताकि ठाकुर की नींद खराब ना हो. दरवाज़ा खोलकर रूपाली पानी पीने के लिए किचन की तरफ बढ़ी. बाहर के कमरे में एक ऐसी खिड़की भी थी जहाँ से हवेली के बड़ा दरवाज़ा सीधा नज़र आता था. हवेली से लेकर बड़े दरवाज़े तक तकरीबन 200 मीटर्स का फासला था जिसमें बीचे में कभी घास बिछि होती थी पर अब सिर्फ़ सूखी ज़मीन थी. हवेली के चारो तरफ तकरीबन 10 फुट की दीवार थी और उतना ही बड़ा लोहे का बड़ा दरवाज़ा भी था. कभी यहाँ 24 घंटे 2 आदमी पहरे पर रहते थे पर अब कोई नही होता था. कभी कभी तो रात को दरवाज़ा बंद तक नही होता था.
रूपाली खिड़की के सामने से निकली तो उसके पावं जैसे वहीं जम गये. नज़र खिड़की से होती हुई बड़े दरवाज़े से चिपक गयी. एक पल के लिए उसे लगा के उसने किसी को दरवाज़े से बाहर जाते देखा है. पर दरवाज़ा काफ़ी दूर होने के कारण वो सॉफ तौर पर कुच्छ देख नही पाई. दरवाज़े के पास एक ट्यूबलाइज्ट जल रही थी और उसकी की रोशनी में एक पल को यूँ लगा जैसे कोई चादर सी लपेटे अभी दरवाज़े से बाहर निकला है. रूपाली वहीं सहम कर खिड़की के साइड में छिप कर खड़ी सी हो गयी और खिड़की के बाहर देखने लगी. सुबह के 4 बज रहे थे. बाहर अब भी घुप अंधेरा था. बड़े दरवाजे के पास जल रही ट्यूबलाइज्ट की रोशनी और खिड़की के बीचे में कुच्छ नज़र नही आ रहा. बस दूर लोहे का वो दरवाज़ा दिखाई दे रहा था जो अब भी हल्का सा खुला हुआ था. रूपाली चारो तरफ अंधेरे में नज़र घूमती रही. 15 मिनट यूँ ही गुज़र गये. उसे समझ नही आ रहा था के ये उसका ख्याल था या उसने सच में किसी को देखा था. अचानक उसके दिल में एक ख्याल आया और वो भागती हुई से हवेली के दरवाज़े पर पहुँची. दरवाज़ा अंदर से बंद था. यानी के जो कोई भी था, वो बड़े दरवाज़े से अंदर आया पर हवेली के अंदर दाखिल नही हो पाया. बस हवेली के कॉंपाउंड तक ही आ पाया होगा. पर इस वक़्त चोरों की तरह कौन हो सकता है. सोचती हुई रूपाली फिर खिड़की तक पहुँची और थोड़ी देर तक फिर बाहर झाँकति रही. जब और कुच्छ दिखाई नही दिया तो वो किचन में पहुँची और पानी पीकर अपने कमरे में आ गयी.
कमरे में आकर रूपाली कपड़े बिस्तर पर लेटकर फिर उस आदमी के बारे में सोचने लगी. क्या उसे सच में किसी को देखा था या बस अंधेरे में यूँ ही वहाँ हुआ था. उसने खुद को समझने की कोशिश की के ये उसका भ्रम था. हवेली में यूँ रात को कोई क्यूँ आएगा. अब तो हवेली को मनहूस कहते हुए लोग हवेली के पास को भी नही आते अंदर आने की हिम्मत कौन करेगा? पर फिर भी उसका दिल जाने क्यूँ इस बात को समझने को तैय्यार नही था. उसका दिल बार बार यही कह रहा था के उसने किसी को देखा है. खुद रूपाली को भी इस बात पे हैरत थी के वो इस बात को लेके इतना घबरा क्यूँ रही थी? इतना डर क्यूँ गयी थी.
वो यूँ ही अपनी सोच में खोई हुई थी के अचानक उसके दिल में पायल का ख्याल आया. अपनी तसल्ली करने के लिए के पायल अब भी सो रही है वो बीच का दरवाज़ा खोलकर पायल के कमरे में आई.
पायल अब भी वैसे ही बेख़बर घोड़े बेचकर सोई पड़ी थी. फ़र्क सिर्फ़ ये था के अब उसने ब्रा भी एक तरफ उतारकर रख दी थी. वो उल्टी सोई हुई थी और उसकी दोनो चुचियाँ खुली हुई उसके नीचे दबकर साइड से बाहर को निकल रही थी. रूपाली धीमे कदमों से चलती उसके पास पहुँची और पायल की नंगी कमर को देखने लगी. दुबली पतली सावली सी कमर देखकर उसे अपने शादी से पहले के दिन याद आए. कभी वो भी ऐसी ही थी. दुबली पतली, उठी हुई गांद और बड़ी बड़ी चुचियाँ. अब जिस्म थोड़ा भर गया था. जाने किस ख्याल में वो वही पायल के बिस्तर पर बैठ गयी और एक हाथ उसकी कमर पर रखकर सहलाने लगी. पायल की नंगी कमर पर उसने धीरे से हाथ फिराया और साइड से उसकी एक चूची को च्छुआ. छाती पर हाथ लगते ही पायल नींद में थोड़ा हिली और रूपाली फ़ौरन उठकर बिस्तर से खड़ी हो गयी. उसने अपने सर को एक हल्का सा झटका दिया और पायल के कमरे से वापिस अपने कमरे में आ गयी. अब उसके दिमाग़ में दो ख्याल चल रहे थे. एक तो दरवाज़े पे दिखे आदमी का और दूसरा ये के क्या वो खुद ठीक है जो एक औरत के जिस्म को यूँ देखती है?
वापिस अपने कमरे में आकर रूपाली सो गयी. आँख खुली तो सुबह के 9 बज चुके थे और पायल बाहर दरवाज़े पर चाइ लिए खड़ी थी. फ्रेश होकर रूपाली नीचे आई तो बड़े कमरे में ठाकुर बैठे कुच्छ काग़ज़ देख रहे थे. रूपाली को आता देख वो उसकी तरफ मुस्कुराए.
"आँख खुल गयी आपकी?"
"पता नही क्यूँ आजकल इतनी नींद आने लगी है" रूपाली पास बैठते हुए मुस्कुराइ.
"क्यूंकी हमेशा बचपन से सुबह 5 बजे उठ जाती थी ना इसलिए. अब वो नींद पूरी कर रही हैं आप" कहकर ठाकुर हँसने लगे.
रूपाली ने मुस्कुराते हुए सामने रखे पेपर्स की तरफ देखा
"ये क्या है?" उसने ठाकुर से पुचछा
"कुच्छ नही. बॅंक स्टेट्मेंट्स और कुच्छ जायदाद के पेपर्स." ठाकुर थोड़ा सीरीयस होते हुए बोले "अंदाज़ा लगा रहे हैं के पिच्छले 10 साल में अपने बेटे और अपनी इज़्ज़त के सिवा और हमने कितना कुच्छ खोया है"
कमरे में थोड़ी देर खामोशी सी छा गयी. ना रूपाली कुच्छ बोली और ना ही ठाकुर. खामोशी टूटी पायल की आवाज़ से
"मैं आज क्या करूँ मालकिन?" उसने रूपाली से पुचछा
"बताती हूँ. किचन में चल" रूपाली ने पायल को किचन की तरफ जाने का इशारा किया. पायल के जाने के बाद वो ठाकुर की तरफ पलटी
"आप आज कहीं जा रहे हैं?"
"नही क्यूँ?" ठाकुर ने पुचछा
"नही मैं सोच रही थी के ज़मीन की तरफ आज एक फिर चक्कर लगा आऊँ. और फिर ये भी सोच रही थी के भूषण को बोलकर कुच्छ आदमी गाओं से बुलवा लूँ और हवेली के आस पास थोड़ी सफाई करा दूं" रूपाली ने कहा
"ज़मीन का चक्कर? क्यूँ?" ठाकुर ने पुचछा
"बंजर पड़ी ज़मीन किस काम की पिताजी?" मैं वहाँ दोबारा खेती शुरू करना चाहती हूँ
"तो वो हम पर छ्चोड़ दीजिए. आपको वैसे भी इस बारे में क्या पता?" ठाकुर ने कहा
"नही पिताजी. इस बार मुझे करने दीजिए. मैं हवेली को दोबारा पहले जैसा देखना चाहती हूँ और ये काम मैं खुद करना चाहती हूँ" रूपाली ने ऐसा कहा जैसे कोई फ़ैसला सुना रही हो
"ठीक है जैसा आप ठीक समझें" ठाकुर ने सामने खड़ी बला की खूबसूरत लग रही रूपाली के सामने हथ्यार से डाल दिए
"मैं भूषण को बोल देती हूँ के कुच्छ आदमी गाओं से बुलवा ले. आप देख लीजिएगा" रूपाली ने ठाकुर से कहा और किचन की तरफ बढ़ी.
पायल को उसने हवेली के कुच्छ हिस्सो में सफाई करने के बारे में बता दिया. पायल किसी समझदार बच्ची की तरह उसके पिछे गर्दन हिलती घूमती रही और समझती रही के उसे आज क्या करना है.
पायल को सब समझाकर रूपाली गाड़ी लेकर हवेली से बाहर निकल गयी. उसने फिर ज़मीन को उस हिस्से की तरफ गाड़ी घुमा दी जहाँ पायल और उसकी माँ बिंदिया का घर था. बिंदिया ने उसे कहा था के वो हमेशा से यहीं काम करती थी और उसका मर्द उससे पहले से. यानी बिंदिया उसे काफ़ी कुच्छ बता सकती है जो रूपाली को पता नही था. रूपाली की शादी से पहले के बारे में. उन दीनो के बारे में जब उसका पति पुरुषोत्तम सब काम देखा करता था. रूपाली का इरादा ये था का कहीं से उसे कुच्छ ऐसा पता चल जाअए जिससे उसे अपने पति की मौत की वजह का कोई सुराग मिले. इसलिए उसने ठाकुर को भी साथ आने से मना कर दिया था. क्यूंकी वो बिंदिया से अकेले में बात करना चाहती थी.
गाड़ी चलती रूपाली उसी जगह पहुँची जहाँ बिंदिया उसे पहले मिली थी. गाड़ी को उसी पेड़ के नीचे छ्चोड़कर रूपाली पैदल बिंदिया की झोपड़ी की तरफ बढ़ी. झोपड़ी का दरवाज़ा खुला हुआ था. दरवाज़े पर पहुँचकर रूपाली ने बिंदिया के नाम से उसे आवाज़ लगाई पर कोई हलचल नही हुई. दरवाज़े पर खड़ली रूपाली ने अंदर देखा तो कोई नज़र नही आया. रूपाली दरवाज़े से हटकर घूमकर झोपड़ी के पिछे आई ये सोचकर के शायद बिंदिया पिछे हो. सामने का नज़ारा देखकर उसके कदम वही जम गये और वो दो कदम पिछे हटकर फिर झोपड़ी की आड़ में चली गयी. एक पल को झोपड़ी के दीवार के सहारे खड़े रहकर उसने धीरे से थोड़ा आगे बढ़ी और दम साधे देखने लगी.
सामने एक नीम का पेड़ था जिसके नीचे एक चादर बिछी थी. चादर पर दो नंगे जिस्म एक दूसरे से उलझे हुए थे, एक मर्दाना और एक ज़नाना. मर्दाना जिस्म जिस किसी का भी था वो नीचे लेटा हुआ था और औरत उपेर बैठी हुई थी. हाथ आगे आदमी के सीने पर रखकर वो औरत आगे को झुकी हुई थी. रूपाली जहाँ खड़ी थी वहाँ से उसे उस औरत की कमर और आदमी की औरत की गांद के नीचे से निकलती हुई टांगे नज़र आ रही थी. औरत का मुँह रूपाली से दूसरी तरफ था और क्यूंकी वो आदमी के उपेर बैठी हुई थी इसलिए रूपाली को आदमी का चेहरा नज़र नही आ रहा था.
औरत आदमी के उपेर घुटने टांगे मोदकर बैठी हुई थी. उसकी दोनो टांगे आदमी के पेट के दोनो तरफ थी और घुटनो ज़मीन पर टीके हुए थे. वो हाथ सामने आदमी के सीने पर रखकर अपनी गांद को उपेर नीचे कर रही थी और पिछे से रूपाली को लंड उस औरत की चूत में अंदर बाहर होता नज़र आ रहा था. देखने से ही अंदाज़ा होता था के आदमी कोई छोटी कद काठी का था और औरत उससे लंबी और चौड़ी थी. रूपाली दम साधे देखती रही. उस औरत की मोटी गांद लंड पर तेज़ी के साथ उपेर नीचे हो रही थी और रूपाली की नज़र चूत में अंदर बाहर होते लंड पर जम गयी.उस आदमी का लंड भी इतना बड़ा नही था. शायद उसके छ्होटे जिस्म के हिसाब से लंड भी छ्होटा था. कई बार वो औरत उपेर को जाती तो लंड चूत से बाहर फिसल जाता जिसे वो फिर हाथ में पकड़कर लंड के अंदर घुसाती और उपेर नीचे होने लगती.
थोड़ी देर तक यही माजरा चलता रहा. अचानक वो औरत उस आदमी के उपेर से उठकर खड़ी हो गयी और तब रूपाली को उसका चेहरा नज़र आया. वो बिंदिया थी और इस वक़्त पूरी तरह से नंगी खड़ी हुई थी. रूपाली उसके जिस्म को देखकर दिल ही दिल में वा किए बिना ना रह सकी. इस औरत की 18 साल की एक बेटी थी पर जिस्म अब भी खुद किसी 18-19 साल की लड़की से कम नही था. कहीं भी जिस्म के किसी हिस्से में ढीला पन नही था. बड़ी बड़ी तनी हुई चूचियाँ, पतली कमर, सपाट पेट,मोटी उठी हुई गांद, खूबसूरत टाँगें. कहीं कोई फालतू मोटापा नही. गांद भी ना ज़्यादा फेली हुई और ना ही छ्होटी. तभी रूपाली की नज़र उस आदमी पर पड़ी और उसे समझ आया के वो क्यूँ छ्होटी सी कद काठी का लग रहा था. वो मुस्किल से 16-17 साल का एक लड़का था और कद में अपनी उमर के लड़को से कुच्छ छ्होटा ही था. रूपाली चुपचाप खड़ी देखती रही.
बिंदिया ने खड़ी होकर उस लड़के को उठने को कहा. वो चुपचाप उसकी बात मानकर खड़ा हो गया. बिंदिया उसके सामने घुटनो पे बैठ गयी और उसका लंड मुँह में लेकर चूसने लगी. लड़के का लंड पूरा खड़ा हुआ था पर फिर भी बिंदिया उसे पूरा मुँह में ले गयी. कभी वो उसके लंड को मुँह में अंदर बाहर करती तो कभी जीभ से उसे चाटने लगती, तो कभी लड़के के अंडे अपने मुँह में लेके चूस्ति. लड़का आँखें बंद किए खड़ा था और अपने दोनो हाथों से बिंदिया का सर पकड़ रखा था. थोड़ी देर लंड चूसने के बाद बिंदिया अपने घुटनो पे किसी कुतिया के तरह झुक गयी. घुटने फैलाकर उसके अपनी गांद उपेर को उठा दी ताकि उसकी चूत खुलकर लड़के के सामने आ जाए. उसकी दोनो चूचियाँ सामने से नीचे चादर पे रगड़ रही थी.
लड़का इशारा समझ गया और बिंदिया के पिछे आ गया. जहाँ रूपाली खड़ी थी वहाँ से उसे दोनो साइड से नज़र आ रहे थे. घुटनो पे झुकी हुई बिंदिया और उसके पिछे उसकी गांद पे हाथ रखे वो लड़का.
"रुक ज़रा वरना तू पिच्छली बार की तरह ग़लती से फिर गांद में डाल देगा" कहते हुए बिंदिया ने एक हाथ पिछे ले जाकर उस लड़के का लंड पकड़ा और उसे अपनी चूत का रास्ता दिखाया. एक बार लंड अंदर हुआ तो लड़के ने चूत पे धक्के मारने शुरू कर दिए. पीछे से उसकी टाँगो की बिंदिया की गांद पे ठप ठप टकराने की आवाज़ और सामने से बिंदिया के मुँह से आ आ की आवाज़ ने अजीब सा महॉल बना दिया था. थोड़ी देर बाद शायद बिंदिया झड़ने के करीब आ गयी थी. वो खुद भी अपनी गांद हिलाने लगी और लड़के को और ज़ोर से चोदने को कहने लगी. लड़का भी पूरा जोश में था. वो अपना लंड उसकी चूत में ऐसे पेल रहा था जैसे आज चूत फाड़ के ही दम लेगा. उसके हर धक्के से बिंदिया का सर नीचे ज़मीन से टकराता और वो उसे और ज़ोर से धक्का मारने को कहती.
अचानक बिंदिया ज़ोर से चीखी और उसने सामने से चादर को अपने दोनो हाथों में कासके पकड़ लिया. उसने अपना सर नीचे ज़मीन पे टीकाया और उसका पूरा जिस्म कापने लगा. उसकी आ आ और तेज़ हो गयी. चादर खींचकर उसने अपने मुँह में भींच ली और ज़ोर ज़ोर से ज़मीन पे हाथ मारते हुए आआआआअहह आआआआआअहह चीखने लगी. पीछे से लड़का भी पूरी जान लगाकर उसकी चूत पे धक्के मारने लगा. थोड़ी देर ऐसे ही चीखने के बाद बिंदिया ठंडी पड़ी तो रूपाली समझ गयी के वो ख़तम हो चुकी है. लड़का भी अब पूरी तेज़ी से उसकी चूत में लंड पेल रहा था.
"चूत में मत निकल देना" बिंदिया ने लड़के से कहा
लड़के ने हां में सर हिलाया और 3-4 और ज़ोर के झटके मारकर लंड बिंदिया की चूत से बाहर खींचा और उसकी गांद पे रख दिया. लंड ने पिचकारी छ्चोड़ी और कुच्छ बिंदिया की गांद पर गिरा, कुच्छ कमर पर और कुच्छ उसके बालों पर.
रूपाली धीरे से पिछे हुई और झोपड़ी के सामने रखी चारपाई पर आकर बैठ गयी.
थोड़ी ही देर बाद माथे से पसीना पोंचछति बिंदिया भी झोपड़ी के पिछे से निकली. उसके पिछे पिछे वो लड़का भी था. दोनो ने अपने अपने कपड़े पहेन लिए थे. रूपाली को बैठा देखकर दोनो ठिठक गये.
"अरे मालकिन आप? आप कब आई?" बिंदिया ने रूपाली से पुचछा
"बस अभी आई एक मिनट पहले" रूपाली ने झूठ बोला " तुम नही दिखी तो सोचा के इंतेज़ार कर लूँ"
"हां वो मैं ज़रा थोड़ा कुच्छ काम से गयी थी. ये चंदर है." बिंदिया ने कहा
लड़के ने हाथ जोड़कर रूपाली के सामने सर हल्का सा झुकाया और चला गया.
"आअप पानी लेंगी?" उसके जाने के बाद बिंदिया ने रूपाली से पुचछा
"हां" रूपाली ने कहा
बिंदिया झोपड़ी में जाकर एक ग्लास में पानी ले आई और रूपाली को दिया
"मालकिन वो मैं ..... " झिझकते हुए बिंदिया बोली
"ठीक है बिंदिया" रूपाली ने ग्लास एक तरफ रखते हुए कहा "तुम जो कर रही थी वो दुनिया की हर औरत करती है. शरमाने की ज़रूरत नही"
रूपाली ने बिंदिया के सामने सॉफ ज़ाहिर कर दिया के उसने सब देख लिया था. बिंदिया ने फिर भी कुच्छ नही कहा और सर झुकाए ज़मीन की और देखती रही.
"बाकी सब तो ठीक है पर थोड़ा छ्होटा नही था? इतने से काम चल जाता है तुम्हारा?" रूपाली ने हस्ते हुए कहा तो बिंदिया की भी हसी छूट पड़ी.
"नही मेरा मतलब था के लड़का थोड़ा छ्होटा नही है? तुम्हारी बेटी की उमर का लगता है" रूपाली ने कहा
"नही मेरी बेटी से 2 साल छ्होटा है" बिंदिया वहीं ज़मीन पर बैठते हुए बोली "पर काम चल जाता है. इसके माँ बाप नही हैं. इसलिए मैं ही खाने वगेरह को दे देती हूँ"
"और बदले में थोड़ा काम निकल लेती हो?" रूपाली मुस्कुराते हुए बोली
बिंदिया हँसने लगी
"नही ये तो पता नही कैसे हो गया वरना ये तो बहुत छ्होटा था जब मैं इसके माँ बाप मर गये थे. गाओं से मैं इसे लाई और यूँ समझिए के अपनी बेटी के साथ इसे भी बड़ा किया"बिंदिया ने कहा. रूपाली ने ग्लास से पानी का आखरी घूंठ लिया और ग्लास बिंदिया को दिया.
"तुम कल आई नही पायल के साथ?" रूपाली ने बिंदिया से पुचछा
"नही कल चंदर की तबीयत थोड़ी खराब थी. सुबह से ही हल्का बुखार था इसे तो मैं यहीं रुक गयी और पायल को भेज दिया. वो काम ठीक से कर तो रही है ना मालकिन?" बिंदिया ने पुचछा
"हां सब ठीक है." रूपाली ने कहा और फिर थोड़ा रुकते हुए बोली " मैं असल मैं तुमसे थोड़ा बात करने आई थी. अकेले में इसलिए किसी को साथ नही लाई"
"हां कहिए" बिंदिया बोली. तभी चंदर आया और हाथ के इशारे से बिंदिया को कुच्छ बताने लगा.
"हां ठीक है जा पर शाम तक आ जाना. आते हुए गाओं से थोड़ा दूध लेता आना. पैसे हैं ना तेरे पास?" बिंदिया चंदर से बोली. चंदर ने हां में सर हिलाया और चला गया
"बोल नही सकता बेचारा. गूंगा है" बिंदिया रूपाली की तरफ देखती हुई बोली
"काब्से?" रूपाली ने पुचछा
"बचपन से ऐसा ही है. इसके माँ बाप के मरने के बाद जब मैं इसे लाई तो बहुत वक़्त लग गया मुझे इसे बातें समझाने में. इसके इशारे समझ ही नही आते थे पहले तो" बिंदिया बोली
"माँ बाप कैसे मारे थे इसके?" रूपाली ने पुचछा तो बिंदिया बगले झाँकने लगी. थोड़ी देर तक वो यूँ ही चुप बैठी रही.
"क्या हुआ. बताओ ना" रूपाली ने दोबारा पुचछा
"छ्चोड़िए मालकिन. आपको अच्छा नही लगेगा" बिंदिया ने कहा
"क्यूँ?" रूपाली हैरत में बोली
"क्यूंकी इसके माँ बाप ठाकुर साहब की गोली के शिकार हुए थे. ठाकुर साहब ने ही एक रात दोनो को मौत की नींद सुलाया था."
"इसे मैने रख लिया है काम में मेरा हाथ बटाने के लिए. खाना वगेरह बनाना इसे आता नही पर धीरे धीरे सीख जाएगी" रूपाली ने कहा
ठाकुर ने सिर्फ़ सहमति में सर हिलाया, एक नज़र पायल पर डाली और खाना खाने लगे. रूपाली ठाकुर के साइड में ही बैठी खा रही थी. एक मौका ऐसा आया जब पायल ठाकुर के सामने रखे ग्लास में पानी डालने लगी. वो रूपाली के सामने टेबल के दूसरी और खड़ी थी इसलिए पानी डालने के लिए उसे थोड़ा झुकना पड़ा. झुकने से उसके ब्रा में बंद दोनो चूचियाँ सॉफ दिखने लगी. रूपाली और ठाकुर दोनो की नज़र एक साथ पायल के क्लीवेज पर पड़ी. ठाकुर ने एक नज़र डाली और दूसरे ही पल नज़र हटाकर खाना खाने लगे, जैसे कुच्छ देखा ही ना हो. ये बात भले ही छ्होटी सी थी पर रूपाली ने ये देखा तो उसके दिल में खुशी की एक ल़हेर दौड़ गयी. जिसे वो चाहती थी वो सिर्फ़ उसे ही देखता था.
खाना खाने के बाद रूपाली के सामने मुसीबत ये थी के पायल उसके अगले कमरे में ही थी और रूपाली रात तो अपने ससुर के बिस्तर पर चुद रही होती थी. अगर पायल रात को उठकर उसके कमरे पर आई तो हक़ीक़त खुलने का डर था. रूपाली की समझ में कुच्छ ना आया था उसने ठाकुर को धीरे से कह दिया के वो रात को पायल के सोने के बाद उनके कमरे में आ जाएगी.
धीरे धीरे काम ख़तम करने के बाद सब अपने अपने कमरे में चले गये. रूपाली अपने कमरे में बैठी बेसब्री से वक़्त गुज़रने का इंतेज़ार कर रही थी ताकि पायल नींद में चली जाए और वो उठकर अपने ससुर के कमरे में जा सके. उसकी टाँगो के बीच आग लगी हुई थी और उसकी नज़र के सामने रह रहकर ठाकुर का लंबा मोटा लंड घूम रहा था. अचानक कमरे के बीच के दरवाज़े पर दस्तक हुई. दस्तक पायल के कमरे की तरफ से थी.
"हां क्या हुआ?" रूपाली ने दरवाज़ा खोलते हुए कहा
"आज तक मैं कभी अकेली सोई नही मालकिन. डर सा लग रहा है इतने बड़े घर में" पायल ने कहा
"अरे इसमें डरने की क्या बात है. इस कमरे में मैं हूँ ना" रूपाली ने कहा तो पायल सर हिलाती हुई फिर अपने बिस्तर की तरफ बढ़ गयी. रूपाली ने दरवाज़ा बंद किया और आकर अपने बिस्तर पर लेट गयी.
करीब एक घंटा गुज़र जाने के बाद रूपाली उठी और दरवाज़ा खोलकर पायल के कमरे में पहुँची. पायल बेख़बर सोई पड़ी थी. उसके कमरे में एक पंखा चल रहा था पर फिर भी कमरे में गर्मी थी. शायद इसी वजह से पायल ने अपनी कमीज़ उतार दी थी और सिर्फ़ ब्रा पहने सो रही थी. उसकी बड़ी बड़ी चूचियाँ ब्रा में उसकी साँस के साथ उपेर नीचे हो रही थी. रूपाली ने एक नज़र उसे देखा तो उसका दिल किया के एक बार पायल की चुचियों पर हाथ लगाके देखे पर इस इरादे को उसने अपने दिल में ही रखा. वो चुपचाप वापिस अपने कमरे में आई, पायल के कमरे से लगे दरवाज़े को अपनी तरफ से बंद किया और अपने कमरे से निकालकर नीचे ठाकुर के कमरे में पहुँची. दरवाज़ा खोलकर अंदर दाखिल हुई तो कमरे में हल्की रोशनी थी.
"हम आप ही का इंतेज़ार कर रहे थे" उसे देखते हुए ठाकुर ने कहा
रूपाली अपने ससुर के बिस्तर के पास पहुँची तो देखा के वो पहले से ही पुर नंगे पड़े अपना लंड हिला रहे थे. लंड टंकार पूरी तरह खड़ा हुआ था. रूपाली मुस्कुराइ और अपने कपड़े उतारने लगी. पूरी तरह से नंगी होकर वो भी बिस्तर पर ठाकुर के पास आकर लेट गयी.
सुबह 4 बजे का अलार्म बजा तो रूपाली की आँख खुली. वो नंगी अपने ससुर की बाहों में पड़ी हुई थी जो बेख़बर सो रहे थे. रात चुद्नने के बात सोने से पहले ही रूपाली ने ठाकुर को बता दिया था के वो सुबह सुबह ही अपने कमरे में लौट जाएगी ताकि पायल को शक ना हो. इसलिए वो सुबह 4 बजे का अलार्म लगाके सोई थी. धीरे से वो बिस्तर से उठी और अपने कपड़े उठाकर पहेन्ने लगी. कपड़े पहेंकर रूपाली ने झुक कर ठाकुर के होंठ एक बार धीरे से चूमे और हल्के कदमों से चलती हुई दरवाज़े की तरफ बढ़ी ताकि ठाकुर की नींद खराब ना हो. दरवाज़ा खोलकर रूपाली पानी पीने के लिए किचन की तरफ बढ़ी. बाहर के कमरे में एक ऐसी खिड़की भी थी जहाँ से हवेली के बड़ा दरवाज़ा सीधा नज़र आता था. हवेली से लेकर बड़े दरवाज़े तक तकरीबन 200 मीटर्स का फासला था जिसमें बीचे में कभी घास बिछि होती थी पर अब सिर्फ़ सूखी ज़मीन थी. हवेली के चारो तरफ तकरीबन 10 फुट की दीवार थी और उतना ही बड़ा लोहे का बड़ा दरवाज़ा भी था. कभी यहाँ 24 घंटे 2 आदमी पहरे पर रहते थे पर अब कोई नही होता था. कभी कभी तो रात को दरवाज़ा बंद तक नही होता था.
रूपाली खिड़की के सामने से निकली तो उसके पावं जैसे वहीं जम गये. नज़र खिड़की से होती हुई बड़े दरवाज़े से चिपक गयी. एक पल के लिए उसे लगा के उसने किसी को दरवाज़े से बाहर जाते देखा है. पर दरवाज़ा काफ़ी दूर होने के कारण वो सॉफ तौर पर कुच्छ देख नही पाई. दरवाज़े के पास एक ट्यूबलाइज्ट जल रही थी और उसकी की रोशनी में एक पल को यूँ लगा जैसे कोई चादर सी लपेटे अभी दरवाज़े से बाहर निकला है. रूपाली वहीं सहम कर खिड़की के साइड में छिप कर खड़ी सी हो गयी और खिड़की के बाहर देखने लगी. सुबह के 4 बज रहे थे. बाहर अब भी घुप अंधेरा था. बड़े दरवाजे के पास जल रही ट्यूबलाइज्ट की रोशनी और खिड़की के बीचे में कुच्छ नज़र नही आ रहा. बस दूर लोहे का वो दरवाज़ा दिखाई दे रहा था जो अब भी हल्का सा खुला हुआ था. रूपाली चारो तरफ अंधेरे में नज़र घूमती रही. 15 मिनट यूँ ही गुज़र गये. उसे समझ नही आ रहा था के ये उसका ख्याल था या उसने सच में किसी को देखा था. अचानक उसके दिल में एक ख्याल आया और वो भागती हुई से हवेली के दरवाज़े पर पहुँची. दरवाज़ा अंदर से बंद था. यानी के जो कोई भी था, वो बड़े दरवाज़े से अंदर आया पर हवेली के अंदर दाखिल नही हो पाया. बस हवेली के कॉंपाउंड तक ही आ पाया होगा. पर इस वक़्त चोरों की तरह कौन हो सकता है. सोचती हुई रूपाली फिर खिड़की तक पहुँची और थोड़ी देर तक फिर बाहर झाँकति रही. जब और कुच्छ दिखाई नही दिया तो वो किचन में पहुँची और पानी पीकर अपने कमरे में आ गयी.
कमरे में आकर रूपाली कपड़े बिस्तर पर लेटकर फिर उस आदमी के बारे में सोचने लगी. क्या उसे सच में किसी को देखा था या बस अंधेरे में यूँ ही वहाँ हुआ था. उसने खुद को समझने की कोशिश की के ये उसका भ्रम था. हवेली में यूँ रात को कोई क्यूँ आएगा. अब तो हवेली को मनहूस कहते हुए लोग हवेली के पास को भी नही आते अंदर आने की हिम्मत कौन करेगा? पर फिर भी उसका दिल जाने क्यूँ इस बात को समझने को तैय्यार नही था. उसका दिल बार बार यही कह रहा था के उसने किसी को देखा है. खुद रूपाली को भी इस बात पे हैरत थी के वो इस बात को लेके इतना घबरा क्यूँ रही थी? इतना डर क्यूँ गयी थी.
वो यूँ ही अपनी सोच में खोई हुई थी के अचानक उसके दिल में पायल का ख्याल आया. अपनी तसल्ली करने के लिए के पायल अब भी सो रही है वो बीच का दरवाज़ा खोलकर पायल के कमरे में आई.
पायल अब भी वैसे ही बेख़बर घोड़े बेचकर सोई पड़ी थी. फ़र्क सिर्फ़ ये था के अब उसने ब्रा भी एक तरफ उतारकर रख दी थी. वो उल्टी सोई हुई थी और उसकी दोनो चुचियाँ खुली हुई उसके नीचे दबकर साइड से बाहर को निकल रही थी. रूपाली धीमे कदमों से चलती उसके पास पहुँची और पायल की नंगी कमर को देखने लगी. दुबली पतली सावली सी कमर देखकर उसे अपने शादी से पहले के दिन याद आए. कभी वो भी ऐसी ही थी. दुबली पतली, उठी हुई गांद और बड़ी बड़ी चुचियाँ. अब जिस्म थोड़ा भर गया था. जाने किस ख्याल में वो वही पायल के बिस्तर पर बैठ गयी और एक हाथ उसकी कमर पर रखकर सहलाने लगी. पायल की नंगी कमर पर उसने धीरे से हाथ फिराया और साइड से उसकी एक चूची को च्छुआ. छाती पर हाथ लगते ही पायल नींद में थोड़ा हिली और रूपाली फ़ौरन उठकर बिस्तर से खड़ी हो गयी. उसने अपने सर को एक हल्का सा झटका दिया और पायल के कमरे से वापिस अपने कमरे में आ गयी. अब उसके दिमाग़ में दो ख्याल चल रहे थे. एक तो दरवाज़े पे दिखे आदमी का और दूसरा ये के क्या वो खुद ठीक है जो एक औरत के जिस्म को यूँ देखती है?
वापिस अपने कमरे में आकर रूपाली सो गयी. आँख खुली तो सुबह के 9 बज चुके थे और पायल बाहर दरवाज़े पर चाइ लिए खड़ी थी. फ्रेश होकर रूपाली नीचे आई तो बड़े कमरे में ठाकुर बैठे कुच्छ काग़ज़ देख रहे थे. रूपाली को आता देख वो उसकी तरफ मुस्कुराए.
"आँख खुल गयी आपकी?"
"पता नही क्यूँ आजकल इतनी नींद आने लगी है" रूपाली पास बैठते हुए मुस्कुराइ.
"क्यूंकी हमेशा बचपन से सुबह 5 बजे उठ जाती थी ना इसलिए. अब वो नींद पूरी कर रही हैं आप" कहकर ठाकुर हँसने लगे.
रूपाली ने मुस्कुराते हुए सामने रखे पेपर्स की तरफ देखा
"ये क्या है?" उसने ठाकुर से पुचछा
"कुच्छ नही. बॅंक स्टेट्मेंट्स और कुच्छ जायदाद के पेपर्स." ठाकुर थोड़ा सीरीयस होते हुए बोले "अंदाज़ा लगा रहे हैं के पिच्छले 10 साल में अपने बेटे और अपनी इज़्ज़त के सिवा और हमने कितना कुच्छ खोया है"
कमरे में थोड़ी देर खामोशी सी छा गयी. ना रूपाली कुच्छ बोली और ना ही ठाकुर. खामोशी टूटी पायल की आवाज़ से
"मैं आज क्या करूँ मालकिन?" उसने रूपाली से पुचछा
"बताती हूँ. किचन में चल" रूपाली ने पायल को किचन की तरफ जाने का इशारा किया. पायल के जाने के बाद वो ठाकुर की तरफ पलटी
"आप आज कहीं जा रहे हैं?"
"नही क्यूँ?" ठाकुर ने पुचछा
"नही मैं सोच रही थी के ज़मीन की तरफ आज एक फिर चक्कर लगा आऊँ. और फिर ये भी सोच रही थी के भूषण को बोलकर कुच्छ आदमी गाओं से बुलवा लूँ और हवेली के आस पास थोड़ी सफाई करा दूं" रूपाली ने कहा
"ज़मीन का चक्कर? क्यूँ?" ठाकुर ने पुचछा
"बंजर पड़ी ज़मीन किस काम की पिताजी?" मैं वहाँ दोबारा खेती शुरू करना चाहती हूँ
"तो वो हम पर छ्चोड़ दीजिए. आपको वैसे भी इस बारे में क्या पता?" ठाकुर ने कहा
"नही पिताजी. इस बार मुझे करने दीजिए. मैं हवेली को दोबारा पहले जैसा देखना चाहती हूँ और ये काम मैं खुद करना चाहती हूँ" रूपाली ने ऐसा कहा जैसे कोई फ़ैसला सुना रही हो
"ठीक है जैसा आप ठीक समझें" ठाकुर ने सामने खड़ी बला की खूबसूरत लग रही रूपाली के सामने हथ्यार से डाल दिए
"मैं भूषण को बोल देती हूँ के कुच्छ आदमी गाओं से बुलवा ले. आप देख लीजिएगा" रूपाली ने ठाकुर से कहा और किचन की तरफ बढ़ी.
पायल को उसने हवेली के कुच्छ हिस्सो में सफाई करने के बारे में बता दिया. पायल किसी समझदार बच्ची की तरह उसके पिछे गर्दन हिलती घूमती रही और समझती रही के उसे आज क्या करना है.
पायल को सब समझाकर रूपाली गाड़ी लेकर हवेली से बाहर निकल गयी. उसने फिर ज़मीन को उस हिस्से की तरफ गाड़ी घुमा दी जहाँ पायल और उसकी माँ बिंदिया का घर था. बिंदिया ने उसे कहा था के वो हमेशा से यहीं काम करती थी और उसका मर्द उससे पहले से. यानी बिंदिया उसे काफ़ी कुच्छ बता सकती है जो रूपाली को पता नही था. रूपाली की शादी से पहले के बारे में. उन दीनो के बारे में जब उसका पति पुरुषोत्तम सब काम देखा करता था. रूपाली का इरादा ये था का कहीं से उसे कुच्छ ऐसा पता चल जाअए जिससे उसे अपने पति की मौत की वजह का कोई सुराग मिले. इसलिए उसने ठाकुर को भी साथ आने से मना कर दिया था. क्यूंकी वो बिंदिया से अकेले में बात करना चाहती थी.
गाड़ी चलती रूपाली उसी जगह पहुँची जहाँ बिंदिया उसे पहले मिली थी. गाड़ी को उसी पेड़ के नीचे छ्चोड़कर रूपाली पैदल बिंदिया की झोपड़ी की तरफ बढ़ी. झोपड़ी का दरवाज़ा खुला हुआ था. दरवाज़े पर पहुँचकर रूपाली ने बिंदिया के नाम से उसे आवाज़ लगाई पर कोई हलचल नही हुई. दरवाज़े पर खड़ली रूपाली ने अंदर देखा तो कोई नज़र नही आया. रूपाली दरवाज़े से हटकर घूमकर झोपड़ी के पिछे आई ये सोचकर के शायद बिंदिया पिछे हो. सामने का नज़ारा देखकर उसके कदम वही जम गये और वो दो कदम पिछे हटकर फिर झोपड़ी की आड़ में चली गयी. एक पल को झोपड़ी के दीवार के सहारे खड़े रहकर उसने धीरे से थोड़ा आगे बढ़ी और दम साधे देखने लगी.
सामने एक नीम का पेड़ था जिसके नीचे एक चादर बिछी थी. चादर पर दो नंगे जिस्म एक दूसरे से उलझे हुए थे, एक मर्दाना और एक ज़नाना. मर्दाना जिस्म जिस किसी का भी था वो नीचे लेटा हुआ था और औरत उपेर बैठी हुई थी. हाथ आगे आदमी के सीने पर रखकर वो औरत आगे को झुकी हुई थी. रूपाली जहाँ खड़ी थी वहाँ से उसे उस औरत की कमर और आदमी की औरत की गांद के नीचे से निकलती हुई टांगे नज़र आ रही थी. औरत का मुँह रूपाली से दूसरी तरफ था और क्यूंकी वो आदमी के उपेर बैठी हुई थी इसलिए रूपाली को आदमी का चेहरा नज़र नही आ रहा था.
औरत आदमी के उपेर घुटने टांगे मोदकर बैठी हुई थी. उसकी दोनो टांगे आदमी के पेट के दोनो तरफ थी और घुटनो ज़मीन पर टीके हुए थे. वो हाथ सामने आदमी के सीने पर रखकर अपनी गांद को उपेर नीचे कर रही थी और पिछे से रूपाली को लंड उस औरत की चूत में अंदर बाहर होता नज़र आ रहा था. देखने से ही अंदाज़ा होता था के आदमी कोई छोटी कद काठी का था और औरत उससे लंबी और चौड़ी थी. रूपाली दम साधे देखती रही. उस औरत की मोटी गांद लंड पर तेज़ी के साथ उपेर नीचे हो रही थी और रूपाली की नज़र चूत में अंदर बाहर होते लंड पर जम गयी.उस आदमी का लंड भी इतना बड़ा नही था. शायद उसके छ्होटे जिस्म के हिसाब से लंड भी छ्होटा था. कई बार वो औरत उपेर को जाती तो लंड चूत से बाहर फिसल जाता जिसे वो फिर हाथ में पकड़कर लंड के अंदर घुसाती और उपेर नीचे होने लगती.
थोड़ी देर तक यही माजरा चलता रहा. अचानक वो औरत उस आदमी के उपेर से उठकर खड़ी हो गयी और तब रूपाली को उसका चेहरा नज़र आया. वो बिंदिया थी और इस वक़्त पूरी तरह से नंगी खड़ी हुई थी. रूपाली उसके जिस्म को देखकर दिल ही दिल में वा किए बिना ना रह सकी. इस औरत की 18 साल की एक बेटी थी पर जिस्म अब भी खुद किसी 18-19 साल की लड़की से कम नही था. कहीं भी जिस्म के किसी हिस्से में ढीला पन नही था. बड़ी बड़ी तनी हुई चूचियाँ, पतली कमर, सपाट पेट,मोटी उठी हुई गांद, खूबसूरत टाँगें. कहीं कोई फालतू मोटापा नही. गांद भी ना ज़्यादा फेली हुई और ना ही छ्होटी. तभी रूपाली की नज़र उस आदमी पर पड़ी और उसे समझ आया के वो क्यूँ छ्होटी सी कद काठी का लग रहा था. वो मुस्किल से 16-17 साल का एक लड़का था और कद में अपनी उमर के लड़को से कुच्छ छ्होटा ही था. रूपाली चुपचाप खड़ी देखती रही.
बिंदिया ने खड़ी होकर उस लड़के को उठने को कहा. वो चुपचाप उसकी बात मानकर खड़ा हो गया. बिंदिया उसके सामने घुटनो पे बैठ गयी और उसका लंड मुँह में लेकर चूसने लगी. लड़के का लंड पूरा खड़ा हुआ था पर फिर भी बिंदिया उसे पूरा मुँह में ले गयी. कभी वो उसके लंड को मुँह में अंदर बाहर करती तो कभी जीभ से उसे चाटने लगती, तो कभी लड़के के अंडे अपने मुँह में लेके चूस्ति. लड़का आँखें बंद किए खड़ा था और अपने दोनो हाथों से बिंदिया का सर पकड़ रखा था. थोड़ी देर लंड चूसने के बाद बिंदिया अपने घुटनो पे किसी कुतिया के तरह झुक गयी. घुटने फैलाकर उसके अपनी गांद उपेर को उठा दी ताकि उसकी चूत खुलकर लड़के के सामने आ जाए. उसकी दोनो चूचियाँ सामने से नीचे चादर पे रगड़ रही थी.
लड़का इशारा समझ गया और बिंदिया के पिछे आ गया. जहाँ रूपाली खड़ी थी वहाँ से उसे दोनो साइड से नज़र आ रहे थे. घुटनो पे झुकी हुई बिंदिया और उसके पिछे उसकी गांद पे हाथ रखे वो लड़का.
"रुक ज़रा वरना तू पिच्छली बार की तरह ग़लती से फिर गांद में डाल देगा" कहते हुए बिंदिया ने एक हाथ पिछे ले जाकर उस लड़के का लंड पकड़ा और उसे अपनी चूत का रास्ता दिखाया. एक बार लंड अंदर हुआ तो लड़के ने चूत पे धक्के मारने शुरू कर दिए. पीछे से उसकी टाँगो की बिंदिया की गांद पे ठप ठप टकराने की आवाज़ और सामने से बिंदिया के मुँह से आ आ की आवाज़ ने अजीब सा महॉल बना दिया था. थोड़ी देर बाद शायद बिंदिया झड़ने के करीब आ गयी थी. वो खुद भी अपनी गांद हिलाने लगी और लड़के को और ज़ोर से चोदने को कहने लगी. लड़का भी पूरा जोश में था. वो अपना लंड उसकी चूत में ऐसे पेल रहा था जैसे आज चूत फाड़ के ही दम लेगा. उसके हर धक्के से बिंदिया का सर नीचे ज़मीन से टकराता और वो उसे और ज़ोर से धक्का मारने को कहती.
अचानक बिंदिया ज़ोर से चीखी और उसने सामने से चादर को अपने दोनो हाथों में कासके पकड़ लिया. उसने अपना सर नीचे ज़मीन पे टीकाया और उसका पूरा जिस्म कापने लगा. उसकी आ आ और तेज़ हो गयी. चादर खींचकर उसने अपने मुँह में भींच ली और ज़ोर ज़ोर से ज़मीन पे हाथ मारते हुए आआआआअहह आआआआआअहह चीखने लगी. पीछे से लड़का भी पूरी जान लगाकर उसकी चूत पे धक्के मारने लगा. थोड़ी देर ऐसे ही चीखने के बाद बिंदिया ठंडी पड़ी तो रूपाली समझ गयी के वो ख़तम हो चुकी है. लड़का भी अब पूरी तेज़ी से उसकी चूत में लंड पेल रहा था.
"चूत में मत निकल देना" बिंदिया ने लड़के से कहा
लड़के ने हां में सर हिलाया और 3-4 और ज़ोर के झटके मारकर लंड बिंदिया की चूत से बाहर खींचा और उसकी गांद पे रख दिया. लंड ने पिचकारी छ्चोड़ी और कुच्छ बिंदिया की गांद पर गिरा, कुच्छ कमर पर और कुच्छ उसके बालों पर.
रूपाली धीरे से पिछे हुई और झोपड़ी के सामने रखी चारपाई पर आकर बैठ गयी.
थोड़ी ही देर बाद माथे से पसीना पोंचछति बिंदिया भी झोपड़ी के पिछे से निकली. उसके पिछे पिछे वो लड़का भी था. दोनो ने अपने अपने कपड़े पहेन लिए थे. रूपाली को बैठा देखकर दोनो ठिठक गये.
"अरे मालकिन आप? आप कब आई?" बिंदिया ने रूपाली से पुचछा
"बस अभी आई एक मिनट पहले" रूपाली ने झूठ बोला " तुम नही दिखी तो सोचा के इंतेज़ार कर लूँ"
"हां वो मैं ज़रा थोड़ा कुच्छ काम से गयी थी. ये चंदर है." बिंदिया ने कहा
लड़के ने हाथ जोड़कर रूपाली के सामने सर हल्का सा झुकाया और चला गया.
"आअप पानी लेंगी?" उसके जाने के बाद बिंदिया ने रूपाली से पुचछा
"हां" रूपाली ने कहा
बिंदिया झोपड़ी में जाकर एक ग्लास में पानी ले आई और रूपाली को दिया
"मालकिन वो मैं ..... " झिझकते हुए बिंदिया बोली
"ठीक है बिंदिया" रूपाली ने ग्लास एक तरफ रखते हुए कहा "तुम जो कर रही थी वो दुनिया की हर औरत करती है. शरमाने की ज़रूरत नही"
रूपाली ने बिंदिया के सामने सॉफ ज़ाहिर कर दिया के उसने सब देख लिया था. बिंदिया ने फिर भी कुच्छ नही कहा और सर झुकाए ज़मीन की और देखती रही.
"बाकी सब तो ठीक है पर थोड़ा छ्होटा नही था? इतने से काम चल जाता है तुम्हारा?" रूपाली ने हस्ते हुए कहा तो बिंदिया की भी हसी छूट पड़ी.
"नही मेरा मतलब था के लड़का थोड़ा छ्होटा नही है? तुम्हारी बेटी की उमर का लगता है" रूपाली ने कहा
"नही मेरी बेटी से 2 साल छ्होटा है" बिंदिया वहीं ज़मीन पर बैठते हुए बोली "पर काम चल जाता है. इसके माँ बाप नही हैं. इसलिए मैं ही खाने वगेरह को दे देती हूँ"
"और बदले में थोड़ा काम निकल लेती हो?" रूपाली मुस्कुराते हुए बोली
बिंदिया हँसने लगी
"नही ये तो पता नही कैसे हो गया वरना ये तो बहुत छ्होटा था जब मैं इसके माँ बाप मर गये थे. गाओं से मैं इसे लाई और यूँ समझिए के अपनी बेटी के साथ इसे भी बड़ा किया"बिंदिया ने कहा. रूपाली ने ग्लास से पानी का आखरी घूंठ लिया और ग्लास बिंदिया को दिया.
"तुम कल आई नही पायल के साथ?" रूपाली ने बिंदिया से पुचछा
"नही कल चंदर की तबीयत थोड़ी खराब थी. सुबह से ही हल्का बुखार था इसे तो मैं यहीं रुक गयी और पायल को भेज दिया. वो काम ठीक से कर तो रही है ना मालकिन?" बिंदिया ने पुचछा
"हां सब ठीक है." रूपाली ने कहा और फिर थोड़ा रुकते हुए बोली " मैं असल मैं तुमसे थोड़ा बात करने आई थी. अकेले में इसलिए किसी को साथ नही लाई"
"हां कहिए" बिंदिया बोली. तभी चंदर आया और हाथ के इशारे से बिंदिया को कुच्छ बताने लगा.
"हां ठीक है जा पर शाम तक आ जाना. आते हुए गाओं से थोड़ा दूध लेता आना. पैसे हैं ना तेरे पास?" बिंदिया चंदर से बोली. चंदर ने हां में सर हिलाया और चला गया
"बोल नही सकता बेचारा. गूंगा है" बिंदिया रूपाली की तरफ देखती हुई बोली
"काब्से?" रूपाली ने पुचछा
"बचपन से ऐसा ही है. इसके माँ बाप के मरने के बाद जब मैं इसे लाई तो बहुत वक़्त लग गया मुझे इसे बातें समझाने में. इसके इशारे समझ ही नही आते थे पहले तो" बिंदिया बोली
"माँ बाप कैसे मारे थे इसके?" रूपाली ने पुचछा तो बिंदिया बगले झाँकने लगी. थोड़ी देर तक वो यूँ ही चुप बैठी रही.
"क्या हुआ. बताओ ना" रूपाली ने दोबारा पुचछा
"छ्चोड़िए मालकिन. आपको अच्छा नही लगेगा" बिंदिया ने कहा
"क्यूँ?" रूपाली हैरत में बोली
"क्यूंकी इसके माँ बाप ठाकुर साहब की गोली के शिकार हुए थे. ठाकुर साहब ने ही एक रात दोनो को मौत की नींद सुलाया था."