दो भाई दो बहन compleet

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raj..
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Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: दो भाई दो बहन

Unread post by raj.. » 24 Dec 2014 06:23

24

गतान्क से आगे.......

रिया जानती थी कि वो रोमा से अच्छा लंड चूसना जानती है. और राज

ये बात जानता था क्यों कि लंड चूसवाना राज की कमज़ोरी थी....वो

खुशी खुशी एक बार फिर राज का लंड चूसने लगी.

"तुम यही चाहते हो ना.... " एक वासनात्मक मुस्कान के साथ उसने पूछा

और फिर से उसके लंड को मुँह मे ले चूसने लगी.

"हाआन्न....ऐसी ही चूसो....ओह हाँ और ज़ोर से जीब को भींच कर

चूसो." राज सिसकते हुए बोला.

"ठीक है में चूस कर तुम्हारा पानी छुड़ा दूँगी... लेकिन हमारे

घर पहुँचने पर अगर रोमा सो चुकी होती तो आज कि रात तुम्हे मेरे

साथ सोना होगा." रिया ने कहा.

"तुम जो कहोगी में करूँगा.... लेकिन अभी रूको मत....बस ज़ोर ज़ोर

से चूस्ति रहो...ऑश हाआँ चूवसू."

रिया राज के लंड को जोरों से चूसने लगी.... वो उसे अपने होठों से

दबा अपनी जीब से रगड़ते हुए चूस रही थी... उसका मुँह लंड पर

तेज़ी से उपर नीचे हो रहा था....

"ऑश हाआँ ऐसे ही... हाआँ जूओरों से.... तुम कितना अच्छा लंड

चूस्टी हूओ ऑश हाआँ... में गया...." बड़बड़ाते हुए राज ने अपनी

कमर उपर को उठाया और उसके गले मे ज़ोर की पिचकारी छोड़ दी...

रिया उसके वीर्य को पी गयी... उसके लंड को मसल्ते हुए वो एक एक

बूँद को निचोड़ निचोड़ कर पीने लगी.

"आज हम दोनो कितने खुश हैं... है ना?" रिया ने मुँह को उसके लंड

पर से हटाते हुए कहा.

"हां रिया आज में बहोत खुश हूँ..." राज ने उसके होठों को

चूमते हुए कहा.

थोड़ी देर सुसताने के बाद दोनो ने अपने कपड़े ठीक किए... और घर

की ओर चल पड़े.....

"राज याद है ना मेने क्या कहा था... अगर रोमा सो रही होगी तो

तुम्हे मेरे साथ सोना होगा." रिया ने उसकी जाँघ पर हाथ फिराते हुए

कहा.

दोनो घर पहुँचे तो देखा कि रोमा सो ही नही रही थी बल्कि ज़ोर

ज़ोर से खर्राटें ले रही थी.... रोमा को इस तरह सोते देख दोनो के

चेहरे पर खुशी छा गयी....

रिया किचन मे खड़ी अपने लिए पानी का ग्लास भर रही थी कि तभी

फोन की घंटी बजी... उसने कमरे मे आकर फोन उठा लिया.

"हेलो?"

"रिया?" उसे दूसरी तरफ से जय की आवाज़ सुनाई पड़ी.

"हाई भाई.. कैसे हो? कितने दीनो बाद फोन कर रहे हो" रिया ने खुश

हो कर कहा. "हम दोनो एक ही शहर मे रहते हुए भी बड़ी मुश्किल से

एक दूसरे से मिल पाते है."

"क्या हम बात कर सकते है?"

रिया सोच मे पड़ गयी... उसे कुछ शक़ होने लगा... जय को कभी

पूछने की ज़रूरत नही थी... उसकी घबराई हुई आवाज़ ने उसे डरा दिया

था.

"सब कुछ ठीक तो है ना जय?" रिया ने पूछा.

दूसरी तरफ जय थोड़ी देर शांत रहा, "नही... क्या हम कहीं अकेले मे

मिल सकते है.. मुझे तुमसे कुछ बात करनी है."

"तुम किसी भी समय घर पर आ सकते हो.... रोमा अपने नये टूटर के

साथ बाहर गयी है....और राज लाइब्ररी गया गया है कुछ रिपोर्ट

तैयार करने" रिया ने जे से कहा.

में जितनी जल्दी हो सका वहाँ पहुँचता हूँ." जे ने जवाब दिया.

"रानी कहाँ है?" रिया ने अपने भाई से पूछा.

"वो यहीं है.. में उससे कोई बहाना बनाकर अभी तुम्हारे पास

पहुँचता हूँ" जय ने जवाब दिया.

फोन रखकर रिया सोचने लगी कि जय को ऐसा क्या काम पड़ गया..

उसपर ऐसी क्या मुसीबत आ गयी है..... पानी का ग्लास लिए वो खिड़की

के पास आई और पर्दे हटा कर बाहर देखने लगी.

अगले बीस मिनिट तक रिया के मन मे अलग अलग विचार आते रहे.. क्या

हुआ जय और रानी के बीच... क्या दोनो आपस मे झगड़ पड़े या फिर कोई

बीमार हो गया है....

जब दरवाज़े की घंटी बजी तो रिया के चेहरे पर मुस्कान आ गयी.. अपने

भाई से मिलने की खुशी मे वो उछल कर दरवाज़े तक गयी और दरवाज़ा

खोल दिया.


raj..
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Re: दो भाई दो बहन

Unread post by raj.. » 24 Dec 2014 06:24

"जय आऊ..." उसने खुशी मे जय को गले लगा लिया. फिर थोड़ा पीछे

हटकर जय को निहारने लगा... उसका भाई कितना बदल गया था.. चौड़ा

सीना खिला हुआ चेहरा...

"आओ अंदर आओ और आराम से बैठ कर मुझे बताओ क्या हुआ..." रिया ने

उसका हाथ पकड़ उसे सोफे पर बिठाया, "जब से तुम्हारा फोन आया मुझे

कितनी चिंता हो रही है."

जय सोफे पर बैठ गया तो रिया उसके बगल मे बैठ कर अपने हाथ को

उसके कंधे पर रख दिया.... कितने दिनो बाद आज वो अपने भाई से मिल

रही थी.

"रानी मा बनने वाली है" जे ने कहा.

"मुबारक हो! ये तो खुशी की बात है." रिया ने उसे गले लगाते हुए कहा.

पर रिया को लगा कि जय इस बात से खुश नही है और कोई तो बात है

जो उसे खाए जा रही है..

"ऑश अब समझी शायद तुम ये सब इतनी जल्दी नही चाहते थे.. है

ना?" रिया ने कहा.

"हां... कल मेरे और रानी के बीच इस बात को लेकर काफ़ी बहस भी

हुई.. " जय ने जवाब दिया. "समझ मे नही आता क्या करूँ.. जब ज़्यादा

दिन हो जाएँगे तो उसे अपना काम छोड़ना पड़ेगा और में अकेला इतने सारी

ज़िम्मेदारियों को नही निभा पाउन्गा.. घर का खर्चा..गाड़ी वग़ैरह..

समझ मे नही आता में क्या और कैसे करूँ."

रिया ने प्यार से उसके गालों को चूम लिया और अपना सिर उसके कंधे पर

रख दिया.. "पता है जय में कितनी खुश थी तुम्हे लेकर.... काश

मेरे पास इस समस्या का कोई हल या जवाब होता.."

"में तुमसे कोई मदद माँगेने नही आया.. ये तो में भी समझता हूँ

कि इसका हल तो मुझे और रानी को मिलकर ही निकलना है.. " जय ने उसकी

कमर मे हाथ डालते हुए कहा." वो तो बस तुम्हारी याद आ रही थी और

में सोच रहा था कि तुम्हारी जिंदगी कैसे गुज़र रही है."

रिया ने अपना चेहरा उठाया और उसके बालों मे अपना हाथ फिराने लगी..

उसके दिल का दर्द आँसू बन उसके चेहरे पर छलक आया.

"माफ़ करना रिया.. में तुम्हे तकलीफ़ नही देना चाहता था." जय अपनी

बेहन को गले लगाते हुए बोला.

रिया ने अपने आँसू पौन्छे और अपने जज्बातों को हटाते हुए बोली, "कोई

बात नही जय... में भी अपने दिल की बात तुमसे करना चाहती हूँ..

वो क्या है ना रोमा मेरे और राज के बीच आ गयी है..फिर भी हम

दोनो आपस मे समय निकाल ही लेते है.."

"क्या तुम उससे बहोत प्यार करती हो?" जे ने पूछा.

रिया ने अपनी गर्दन हन मे हिला दी.

"जानती हो रिया जब तुमने हमारे साथ तालाब के किनारे आना शुरू किया

में तभी समझ गया था. कि राज तुम्हे पसंद है.. लेकिन ये जज़्बा

इतना बढ़ जाएगा ये मुझे मालूम ना था."

"राज भी मुझसे बहोत प्यार करता है" रिया ने तुरंत कहा, "लेकिन वो

अपनी बेहन को भी उतना ही प्यार करता है... कभी कभी तो मुझे

लगता है कि वो अपनी बेहन के साथ खुश नही है.. इसीलिए में

इंतेज़ार कर रही हूँ उस दिन का जिस दिन वो उसे छोड़ मेरे पास आ जाएगा."

जय मुस्कुराते हुए रिया को देखने लगा... वो बचपन से ही रिया की

बहोत इज़्ज़त करता था और दिल से उसे बहोत प्यार करता था... वो जाने

अंजाने मे भी उसे कोई तकलीफ़ नही पहुँचाना चाहता था.... पर जो हो

सकता है वो तो उसे कहना ही था, "हो सकता है राज रोमा का साथ कभी

ना छोड़े?"

जय की बात सुन रिया की रुलाई फुट पड़ी"में भी ये जानती

हूँ....पर में क्या करू.. में राज के बिना नही रह सकती.. बहोत

प्यार करती हूँ उससे." उसने रोते हुए अपना चेहरा जय के कंधों मे

छुपा लिया....जय उसकी पीठ को सहला उसे सांत्वना देने लगा.

"माफ़ करना रिया,... काश हम अपने गुज़रे हुए कल को वापस ला सकते..

मुझे आज भी वो दिन याद है जब तुम कॉलेज से छुटकर घर आती और

हम सब मिलकर तालाब के किनारे मज़े करते."

"हां सो तो है.. काश वो दिन वापस लौट आते?" रिया ने सोच भरी

आवाज़ मे कहा.

अचानक रिया ने अपने होंठ जय के होठों पर रख दिए.. दोनो के होठ

मिले और दोनो एक दूसरे के होठों को चूसने लगे.

"जय पता है में तुम्हे कितना मिस कर रही थी.. हमेशा तुम्हारी

याद आती रहती थी." रिया ने कहा, "आज बता दो कि तुम मुझे उतना ही

याद करते थे और उतना ही प्यार करते हो जितना पहले करते थे."

रिया की बात सुनकर जय सोच मे पड़ गया.... वो रानी के बारे मे सोचने

लगा.. अगर उसे पता चल गया कि उसका अपनी ही बेहन के साथ रिश्ता

है तो आफ़त खड़ी हो जाएगी... पर रिया के शब्दों की मायूसी और दिल

मे चाहत... वो एक धरम संकट मे फँस चुका था.. उसकी समझ मे

नही आ रहा था कि वो क्या करे क्या कहे.

"प्लीज़ जय में समझ रही हूँ तुम क्या सोच रहे है.. लेकिन आज

मुझे तुम्हारी ज़रूरत है.. में किसी अपने के स्पर्श के लिए तरस

रही हूँ... प्लीज़ मुझे प्यार करो ना." रिया ने लगभग गिड़गिदते

हुए कहा.

"यहाँ हाल मे नही कभी भी कोई भी आ सकता है और में कोई ख़तरा

नही उठा सकता." जय ने जवाब दिया.

"तो फिर मेरे बेडरूम मे चलते है." रिया ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा.

* * * * * * * * *

पता नही क्यों रोमा को घबराहट के मारे माथे पर पसीना आ रहा

था... उसने अपने माथे का पसीना रूमाल से पौंच्छा और जीत के मकान

की घंटी बज़ा दी. उसने नीले रंग की डेनिम की शॉर्ट्स पहन रखी थी

और उस पर एक पीच रंग का टी शर्ट. अपने कपड़ों को ठीक कर वो

दरवाज़ा खुलने का इंतेज़ार करने लगी. जब दरवाज़ा खुला और जीत का

चेहरा नज़र आया तो उसके होठों पर मुस्कान आ गयी.

raj..
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Re: दो भाई दो बहन

Unread post by raj.. » 24 Dec 2014 06:24

"तुम मुस्कुरा रही हो इसका मतलब है कि तुम्हारे पेपर ठीक हुए है."

जीत ने कहा.

"हां ये सब तुम्हारी वजह से हुआ है... थॅंक्स." रोमा ने जवाब दिया.

"आओ अंदर आओ." जीत ने उसकी कमर मे हाथ डालते हुए कहा.

जीत के हाथों का स्पर्श अपनी कमर पर रोमा को अछा लग रहा था....

"चलो आज इस खुशी मे बाहर जाकर कहीं पार्टी करते है." जीत ने

कहा.

"में एक अछा रेस्टोरेंट जानता हूँ.. चलो वहीं चलते है.. तुम्हे

अछा लगेगा." जीत ने कहा.

रोमा का दिल खुशी से भर उठा.. "जीत तुम बहुत अच्छे हो.. तुम इतना

सब मेरे लिए क्यों कर रहे हो?" रोमा ने अपना सिर उसके कंधों पर

रखते हुए पूछा.

"इसलिए की मुझे तुम्हारा साथ अच्छा लगता है." जीत ने अपने दिल की

बात कही. जीत रोमा के खिलखिलाते चेहरे और उस पर छाई खुशी को

नही देख सका.

बीस मिनिट बाद दोनो एक रेस्टोरेंट मे दाखिल हो रहे थे जिसका नाम

था 'कपल्स'

"ये तुम मुझे कहाँ ले आए." रेस्टोरेंट का नाम पढ़ वो हंसते हुए बोली.

"कहनी नही बस.. तुम्हे इस सहर की सैर करा रहा हूँ."

दोनो रेस्टोरेंट के अंदर आकर एक कॅबिन मे बैठ गये... जीत ने

वेटर को बुला कर खाने का ऑर्डर दे दिया.

थोड़ी देर मे वेटर टेबल पर खाना लगा गया.. वेटर के जाते ही

जीत ने रोमा की कमर मे हाथ डाल उसे अपने नज़दीक खींच लिया..

मुस्कुराते चेहरे से वो रोमा के चेहरे को निहारने लगा... उसका बदन

कांप रहा था... वो उसे चूमना चाहता था लेकिन हिक्किचाहत और डर

के मारे वो ऐसा नही कर पाया.

"तुम बहोत सुंदर हो रोमा... जी करता है कि तुम्हे चूम लूँ." जीत

हिक्किचाते हुए कहा.

"तो फिर चूमते क्यों नही...." रोमा ने मुक्सुरा कर जवाब दिया.

जीत ने उसके चेहरे को अपने हाथो मे लिया और अपने होठ उसके होठों

पर रख उसे चूमने लगा... इतने महीनों मे वो पहली बार इस तरह

रोमा को चूम रहा था... रोमा भी उसका साथ देने लगी और उस पर

झुकते हुए उसने अपनी चुचियों को उसके छाती पर गढ़ा दी.

अपनी चुचियों को उसकी छाती पर रगड़ते हुए रोमा ने अपनी जीब उसके

होठों मे डाल दी.... जीत भी काम विभोर हो उसकी जीब को चूसने

लगा....

रोमा भी उत्तेजित हो गयी थी... उसकी चुचियों कठोर हो गयी थी और

निपल तन कर खड़े हो चुके थे...जीत का हाथ अब उसके चेहरे से हट

कर उसकी पीठ पर आ गया था और वो उसकी पीठ को सहलाने

लगा......फिर फिसलते हुए उसके हाथ उसके कुल्हों पर आ गये और उसने

उसके कुल्हों को अपने हाथों मे भर मसल दिया.... रोमा अपनी चुचियों

को और ज़ोर से उसकी छाती पर रगड़ने लगी... जीत का लंड भी पॅंट के

अंदर हरकत करने लगा था....

जीत ने अपने आप को रोमा से अलग किया, "तुम्हे चूम कर बहोत अछा

लगा रोमा."

"अगर अछा लगा तो रुक क्यों गये..?" रोमा ने पूछा.

"हमे खाना भी तो खाना है." जीत ने टेबल पर पड़े खाने की ओर

देखते हुए कहा.

"हां वो तो है." रोमा ने खिलखिलते हुए कहा... जीत की हालत देख

उसे हँसी आ रही थी.

जीत के अलग होते ही रोमा ने अपनी निगाह उसकी जाँघो की ओर डाली जहाँ

लंड तन कर खड़ा हो चुका था... रोमा ने अपनी उंगली धीरे से पॅंट

के उपर से लंड पर फिराई.... और फिर अपना हाथ हटा हँसने लगी.

"तुम बहोत शैतान हो?" जीत ने उसे डाँटते हुए कहा.

"हां वो तो हूँ... और कभी कभी इससे भी ज़्यादा शैतान हो जाती

हूँ." रोमा ने फिर हंसते हुए कहा.

दोनो मिलकर खाना खाने लगा... जीत एक निहायत ही शरीफ और

हॅंडसम नौजवान था.. रोमा उसे पसंद करने लगी थी.. उससे उमर मे

थोड़ा बड़ा था तो क्या हुआ....आख़िर वो कब तक अकेली रहेगी.. जिससे वो

सच्चा प्यार करती थी उसका भाई राज.. उसे रिया मे दिलचस्पी ज़्यादा

थी.....दिल मे छुपे दर्द ने एक बार फिर उसकी आँखों को भीगो दिया.

जीत रोमा को देख सोचने लगा... उसे नही पता था कि रोमा के साथ

बढ़ता रिश्ता कहाँ तक जाएगा.. जब उसने रोमा की मदद करने को कहा

तो उसके दिल मे कोई भावना नही थी.. वो एक शरीफ इंसान की तरह

उसकी मदद करना चाहता था... उसने दिल और मन दोनो लगाकर उसकी

पढ़ाई मे मदद की थी.

पर वक्त के साथ हालत और रिश्ते बदल गये थे.. वो रोमा को पसंद

करने लगा था.. रोमा भी काफ़ी बदल गयी थी...दिल कहता था कि रोमा

को उससे प्यार हो गया था लेकिन वो अपने प्यार का इज़हार करते हुए डरता

था... कई रातें उसने अपने लंड को मसल्ते रोमा के सपने देखे

थे... और रोमा की हरकत सॉफ इशारा कर रही थी कि उसका सपना

हक़ीकत मे बदालने वाला था.

* * * * * * *

बेडरूम मे आते ही रिया ने अपने कपड़े उतारे और नंगी अपने पलंग पर

लेट गयी.. जे भी पीछे नही रहा वो भी नंगो होकर अपनी बेहन के

बगल मे लेट गया.... उसका लंड अभी तन कर खड़ा नही हुआ था....

"जय आज में तुम्हारी हूँ.." रिया ने अपने नंगे जिस्म को अपने भाई को

पेश करते हुए कहा, "तुम जैसे चाहो इससे खेल सकते हो.. में कुछ

नही कहूँगी."

"में चाहता हूँ कि तुम मेरा लंड चूसो... जब तुम्हारे होठ मेरे

लंड को अपनी गिरफ़्त मे ले चूस्ते है तो मुझे बहोत अछा लगता है."

जय ने कहा.

जय अपनी आँखे बंद किया लेटा रहा और रिया उसकी टाँगो के बीच आकर

उसने उसके लंड को अपने मुँह मे ले चूसने लगी.

"क्या रानी भी तुम्हारे लंड को चूस्ति है?" रिया ने पूछा.

"कभी कभी." जय ने जवाब दिया.

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