नौकरी हो तो ऐसी

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The Romantic
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Re: नौकरी हो तो ऐसी

Unread post by The Romantic » 24 Dec 2014 13:01

नौकरी हो तो ऐसी--13

गतान्क से आगे......
सेठानी ने अभी लंड अपने मुँह मे से निकाला और लड़की की बुर से निकल रहे वीर्य को चाटने लगी.. अपनी जीब को वो लड़की की बुर के कोमल होंठो को बड़े आराम से अलग कर के अंदर डाल रही थी और उस वीर्य का स्वादिस्त मज़ा ले रही थी…


तभी पंडितजी बोले “अरे चलो यहाँ से नही तो कोई आ जाएगा तो अपनी पूरी योजना निष्प्रभाव हो जाएगी और सबको कानो कान खबर लग जाएगी”
पंडितजी ने अपने लंड को एक कपड़े से पोछते हुए कहा , सेठानी बोली “मेरी शांति तो आपने की ही नही” तब पंडित जी बोले “अरे तुम्हारी शांति अभी अगली बार ज़रूर करेंगे… बस इस लड़की को किसी बहाने इधर ही छोड़ जाना.. बहुत ही मजेदार चीज़ है…”

तो सेठानी बोली “अरे नही बाबा इसे मैं यहा रखूँगी तो इसे तुम चोद चोद के रंडी बना दोगे… और मैं सेठ जी को क्या जवाब दूँगी…”
पंडितजी बोले “ठीक है तो मैं ही कुछ इंतज़ाम करता हू हवेली पे फिर”
ये कह के पंडितजी उस कमरे से निकल गये सेठानी अपनी सारी ठीक ठाक करने लगी और वो भी निकलने की तैयारी करने लगी उसने लड़की के कपड़े ठीक करके उसके उपर चादर डाल के बड़े आराम से उसे सुला दिया जैसे कुछ हुआ ही नही पर सिर्फ़ मुझे ही पता था कि पिछले 15 मिनट मे यहा क्या हुआ था और कैसे हुआ था ये सारी जानकारी मुझे भविश्य मे बहुत ही उपयोगी आनेवाली थी ये मैं भी नही जानता था.

मैं जल्दिसे निकल आया और अपनी जगह पे जाके बैठने के लिए जल्दी जल्दी चल दिया मैं मंदिर पहुचा तो सब लोग खड़े थे और आरती चल रही थी मैं भी चुपके से उनमे समा गया और आरती चल रही थी.

राव साब ने एक महिला शिष्या की सफेद सारी मे अंदर पीछे से हाथ डाला हुआ था और पता नही पर उनकी हर्कतो से मालूम पड़ रहा था कि वो उसकी गांद को अच्छे से मसल रहे थे. सारी एक दम ढीली हो गयी थी और ऐसा लग रहा था कि किसी भी क्षण गिर सकती है… कॉंट्रॅक्टर बाबू और वकील बाबू दोनो हस रहे थे… वो महिला शिष्या गरम हो रही थी पर कोई ज़्यादा ध्यान नही दे रहा था मानो जैसे कुछ हो ही नही रहा है इससे पता चल रहा था कि इन लोगो की इधर कितनी चलती है.

महा पूजा ख़तम हो गयी थी… सब लोग निकलने लगे और अपनी अपनी गाडियो मे जाके बैठने लगे मैं इस बार पहलिवाली गाड़ी मे बैठ नही पाया जिसमे मैं आया था, मुझे सोभाग्यवश इस बार घर की महिलाओ की गाड़ी मे बैठने को बोला गया… गाड़ी मे ड्राइवर के साथ एक महिला बीच वाली सीट मे तीन महिला और पीछे मैं और 2 घर की महिला ऐसे सब मिलके आठ लोग बैठे थे..इनमे सेठानी नही थी..

मैं समझ नही पा रहा था कि सेठानी छोड़ के ये लोग तो चार भाइयो की चार बीविया होनी चाहिए तो ये लोग 6 कैसे है?

पर मेरे इस सवाल का जवाब मैं किसीसे नही पूछ सकता था. मैं शांति से पीछे बैठ गया और मेरे सामने वाली सीट मे 2 घर की महिला बैठ गयी जैसे कि लाइट चालू नही थी और रास्ता बहुत ही खराब था कुछ समझ नही आ रहा था कि सामने कौन बैठी है पर हां एक बात थी कि मास्टर जी की बीवी जिसको चोदते चोदते मैं ट्रेन से यहाँ आया थॉ वो पिछली वाली सीट मे नही थी वो शायद ड्राइवर के बाजुवाली सीट मे थी…

मेरा लंड पूरा तन चुका था और हर तरीके से उड़ने की कोशिश कर रहा था पर कोई भी दर्रार उसे नही मिलने के कारण वो हवा मे ही आग उबल रहा था….

तभी मैने जाना कि मेरे पैर पे किसी का पैर है मैने चप्पल पहनी थी, उस पैर मे चप्पल नही थी मैने सामने देखा तो कुछ समझ नही रहा था कि किसका पैर है…

उस पैर ने घिस घिस के मेरे पैर से चप्पल उतरवा दी और वो पैर अभी उपर उपर चढ़ने लगा तभी मैने पाया कि दूसरी और से एक और पैर आया और जाँघो पे ठहर गया. मैं अचंभे मे था कि रात के एक बजे इन लोगो को इतना मज़ा लेनेकी पड़ी है… मेरी जाँघॉपे जो पैर थॉवो भी मेरे लंड तक पहुच गया और मेरे लंड को सहलाने लगा मैं पीछे खिड़की से पूरी तरह चिपक गया और अपनी कमर को नीचे छोड़ दिया जिससे सामने वालो को शक नाहो कि पीछे कुछ हो रहा है



तभी मैने सामने होनेवाली हलचल से भाँपा कि कोई अपनी चोली के हुक खोल रहा है. जैसे ही हुक खोले मैने दो बड़ी चुचिया बाहर निकली पाई…. वाह मज़ा आ गया मुझे चुचिया दिख नही रही थी पर उनका आकर देख के मुझे बड़ा ही गरम लग रहा था… तभी मैने पाया एक हाथ मेरी गर्दन की तरफ आया और एक झटके मे मुझे उन चुचियो पे खिसका के ले गया अगले ही पल मेरा मुँह दोनो चुचियो के बीच और दो सीट के बीच की जगह मे घुटने के बल बैठा मैं… मेरा मुँह पूरी अच्छी तरह से चुचियो मे दबाया जा रहा था मेरी साँस तेज़्ज़ हो गयी थी..



मैने अपना मुँह पीछे करते हुए एक चुचि पे ध्यान देना चाहा और एक चुचि को अपने मुँह मे लेके चूसने की कोशिश करने लगा मुझे बड़े दबाव से चुचियो पे घिसे जा रहा था लग रहा था कि इस ओरत ने पिछले 5-6 महीने मे सम्भोग नही किया हो…. कुतिया की तरह मेरी जान के पीछे पड़ी थी…

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Re: नौकरी हो तो ऐसी

Unread post by The Romantic » 24 Dec 2014 13:02


मैने थोडिसी साँस को काबू मे किया और फिरसे चुचि को चूसने की कोशिश करने लगा मैने जैसे ही एक चुचि की गुलाबी निपल को अपने मुँह मे लिया…वाह मज़ा आ गया… क्या अचंभा था …उसमे से स्वादिष्ट नमकीन मलाईदार दूध निकल के आया इसका मतलब ये था कि सेठ जी के घर मे अभी 2-2 गाये बच्चे जनि थी और दूध दे रही थी… मैने ट्रेन मे जो दूध पिया था उससे भी ये दूध मुझे बहुत अच्छा और स्वादिष्ट लग रहा था मैने कस कस के चुचि को दबाना चालू रखा और दूध को अपने मुँह से खिचता चला गया





5-10 मिनट के दूध ग्रहण करने के बाद मुझे दूसरी और खिचा गया और जब मुझे पता चला तो मैने पाया कि मेरी नाक मे नोकिले बाल जा रहे है और मेरा मुँह दूसरी महिला की बुर पे टिका हुआ है… उस बुर की वो नमकीन सुगंध से मैं और भी पागल सा हो गया मैने भी अपनी जीब निकाली और उस बालो की जंगली बुर मे डाल दी और उस बुर के मोती को चूसने लगा और अपनी अदाकारी से जीब को बुर के अंदर ही अंदर डालने लगा…




मुझे बड़ा ही मज़ा आ रहा था क्यू कि इतनी रसीली बुर मैने कभी नही चूसी थी… बुर के होठ तो इतने कोमल थे कि मैं उनको अपने दांतो के बीच रखता तो भी वो मेरे दांतो के बीच से निकल जा रहे थे उस कोमल और रसीली बुर ने मुझे पागल बनाया था मैं उसमे और अंदर और अंदर अपनी जीब को घुसा रहा था और उससे निकल रहे योनिरस को पिए जा रहा था…


थोड़ी देर मे उस कोमल योनि से अचानक एक कोमल मादक रस की धार निकल आई उससे मुझे पता चल गया कि ये तो झाड़ गयी है… उस औरत ने मुझे उपर उठाया और मेरे होंठो को चूमने लगी उधर दूसरी ने मेरे पॅंट मे हाथ डाल के मेरे काले साँवले महाराज को बाहर निकाल दिया और जोरो से हिलाना शुरू किया मैं इस धक्के से अपने सीट पे बैठ गया और वो महिला बीच की जगह मे घुटनो के बल बैठी मेरा लंड अपना मुँह घुसाए जा रही थी और अपने पूरे बल से मेरे लंड की चमड़ी उपर नीचे उपर नीचे कर रही थी....


सबेरे से देखी जा रही इन सब घटनाओ से मैं पहले ही चरम सीमा पे था, इसलिए मुझे पता था कि ये गरम हाथ जब अपने लंड पे पड़ा है तो अभी मैं इसे ज़्यादा वक़्त नियंत्रण मे नही रख सकता उस औरत ने फिरसे मुँह मे मेरा लंड लिया और जोरोसे उसे चूसने लगी… मेरा बेलन इतना बड़ा मूसल शायद ही आधा उसके मुँह मे जा रहा था पर होनेवाली गर्मिसे मुझे अभी काबू जाता हुआ नज़र आया अगले ही पल मैने उस महिला के मुँह मे अपनी गंगा जमुना बहानी चालू की और उसके सर को अपने लंड पे जोरोसे दबाया…वो भी कच्ची खिलाड़ी नही लग रही थी उसने भी अपने मुँह से लंड को हरगिज़ बाहर नही निकाला और पूरा वीर्य निगल लिया….


इसके बाद हम तीनो लगभग शांत हो गये… और अभी गाव भी लगभग आही गया था तो हम पीछे अपने कपड़े सवारने लगे अगले 10 मिनट मे हम लोग हवेली के सामने थे……….






हवेली के सामने उतरते ही सब लोग अंदर चले गये. नौकर और ड्राइवर जो कुछ सामान था वो लेके अंदर जाने लगे. मैने अपने शरीर से थोड़ा आलस्य दूर किया और मैं भी अंदर आ गया. सब के चेहरे पे भारी नींद दिख रही थी. सब अपने अपने कमरो मे सोने के लिए चल पड़े. मुझे सेठ जी ने एक कमरा दिखाया मैं उधर जाके गद्दे पे लेट गया, कब आँख लगी पता ही नही चला…..
सबेरे खिड़की से सूर्य की शांत और लुभावनी किरणें मेरे चेहरे पे पड़ी तब मैं थोड़ा सा जाग गया और घड़ी मे वक़्त देखा, सुबह के 7 बजे थे.. मुझे पहलेसे ही कसरत का शौक था. मैने उठ कर अपने शरीर को उपर नीचे दाए बाए मोडके, फिर सूर्यनामस्कार किए और थोडा उठक बैठक करके अपनी कसरत को पूर्णविराम दिया.


मैं नीचे आके सोफे पे बैठ गया उतने मे उधरसे सेठ जी आए और बोले “तुम अभी नहा धोके जल्दी तैय्यार हो जाना… आज मुझे तुम्हे सब काम कैसे चलता है और सब हिस्साब किताब बताना है….”

और उन्होने आवाज़ लगाई “चंपा ….इन्हे जल्दी से तैय्यार करदो…” सेठ जी की आवाज़ सुनते ही चंपा अपने चूतादो को हिलाते हुए और अपनी मस्त चुचियो को हिलाते हुए आई और “हाँ सेठ जी” कह के मुझे अपने साथ चलने का इशारा करके चली गयी. मैं उसके पीछे पीछे चला गया उसने मुझे नाहने की जगह दिखाई वो एक बड़ा सा कमरा लग रहा था उसमे सब सुविधाए थी… मैं अंदर जाके नहा लिया और तैय्यार होके चंपा के हाथ का बना नाश्ता कर के सेठ जी के साथ निकल गया…

क्रमशः……………………..


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Re: नौकरी हो तो ऐसी

Unread post by The Romantic » 24 Dec 2014 13:02

नौकरी हो तो ऐसी--14

गतान्क से आगे…………………………………….

सेठ जी के साथ जीप मे बैठ के हम लोग खेतो की ओर चल दिए गाव से बाहर निकलते ही सेठ जी के सारे खेत दिखने शुरू हो गये सेठ जी बताने लगे “ये सब मेरे पिताजी दादा और परदादा की ज़मीन है …इन लोगोने खूब मेहनत करके ये ज़मीन अपने नाम से जाने से रोकी है …अभी लगभग हम लोग 300-400 एकर के मालिक है…. इसमे 100-200 कूल्हे है… लगभत 90 प्रतिशत ज़मीन बागायती है और बाकी की ज़मीन जानवर चराने के लिए रखी है… मैं चाहता हू कि तुम अब कारोबार पे अच्छे से ध्यान दो… हमारे पहले मुनीम जी अच्छे से इस कारोबार को संभालते थे पर अब तुम्हे ये सब देखना होगा ” मैं हाँ करके मुँह हिला रहा था सेठ जी बोले“पहले मुनीम्जी अच्छे थे पर मेरे बेटे उन्हे ठीक से हर एक काम पे कितने रुपये खर्च हुए इसका हिसाब किताब बराबर से नही देते थे तो उन्हे ज़रा परेशानी रहती थी ….तुम्हे अगर कोई भी परेशानी आए तो तुम मुझे बेझीजक बताना पर हां हिसाब के बारे एक दम बराबर रहना…” हम अभी खेतो से निकल के सेठ जी के कार्यालय कीतरफ निकल पड़े…

जैसे कि मैं यूनिवर्सिटी का ग्रॅजुयेट था और मैं एक चार्टर्ड अकाउंट के नीचे काम किया था… मुझे हिसाब किताब मे किए जानेवाली हर एक चीज़ का बारीकी से ग्यान था और हिसाब मे की गयी कोई भी लापरवाही या मिलीभगत मैं यू पकड़ सकता था…..



हम कार्यालय पे पहुचे… कार्यालय मतलब एक गोदाम था जहाँ मुनीमाजी और सेठ जी बैठते थे वहाँ पे बहुत सारे अनाज की बोरिया लगी हुई थी करीब 1000-2000 अलग अलग किस्म के अनाज की बोरिया थी…पर उन्हे बहुत ही अच्छे से रखा गया था…बहुत सारे मजदूर लोग वहाँ मौजूद थे जो साफ सफाई और देखभाल के लिए रखे थे…. गोदाम पुरखो का और मजबूत लग रहा था… उसकी हाल ही मे पुताई भी की गयी हो ऐसे लग रहा था …यही मेरी काम की जगह बनने वाली थी आजसे….


उधर ही गोदाम के अंदर एक बाजू मे सेमेंट का बड़ा उँचा एक बरामदा तैय्यार किया था जहापे सब हिस्साब किताब की पुस्तक और कापिया रखी थी… नीचे बैठने के लिए तीन चार गद्दे और लोड लगाए थे …..3-4 छोटे छोटे मेज भी थे जहापे मूंदी डाल के अच्छे से हिसाब किताब कर सकते थे …. हम लोग उधर आए और उस बरामदे मे सीडी से चढ़ गये…. लगभग 20 सीडी चढ़ के हम बरामदे मे पहुच गये.

सेठ जी अपनी मेज के पास बैठ गये और मुझे बाजू बिठा के सब हिसाब किताब समझाने लगे “ये ऐसा है… वो वैसा है ..इस साल इतना गेहू हुआ था ..उस साल उतना चावल हुआ था…. इसकी इतनी उधारी है… उसके उतने देने है… ये सब इसके बिल है… ये पिछले साल के कूल्हे बनाने का खर्चा है …ये सब कामगारो की पगार के हिसाब की पुस्तक है… ”

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