ननद ने खेली होली--13
पहले तो नन्दोई जी के ही पैरों में घुंघरु बांधे गये। साडी ब्लाउज में गजब के लग रहे थे। खूब ठुमके दिखाये उन्होने। उसके बाद हम लोग...।
होली का सदा बहार गीत...रंग बरसे भीगे चुनर वाली...रंग बरसे...और शुरु मैने ही किया...खूब अदा से ...।
अरे सोने के थाली में जेवना परोसों अरे...( और फिर मैने लाइन थोडी बदल दी और ननदोई जी के गोद में जा के बैठ गई)
अरे सोने के थाली में जुबना परोसों अरे जोबना परोंसों...( और दोनॊ हाथॊ से अपने दोनो उभार उठा के सीधे ननदोई जी के होठों पे लगा दिया)
अरे जेवे ननद जी का यार बलम तरसै...बलम तरसैं...ननदोई जी को दोनों हाथॊ से पकड के उनकी ओर देख के..।
फिर ननद जी का नम्बर आया तो उन्होने..।
पान इलाची का बीडा लगायों गाया और खिलाया भी अपने सैंया कॊ भी और भैया को भी।
लेकिन मजा आया गुड्डी के साथ ...उसने बडी अदा से छोटे छोटे चूतड ,मटकाते हुये ठुमके लगाये...और गाया..।
अरे बेला चुन चुन सेजियां सेजियां लगाई, अरे सेजियां लगाई..।
मैं सोच रही थी की देखें वो किसका नाम लेती ही लेकिन पहले तो उसने अपने जीजू कॊ खूब ललचाया रिझाया फिर मेरे सैंया की गोद में बैठ के लाइन पूरी की,
अरे सोवे गोरी का यार जीजा तरसैं...अरे सोवे मेरा यार..।
ननदोई जी ने मुझे चैलेंजे किया, अरे होली के गाने हों और जोगीडा ना हो कबीर ना हो...ये फिल्मी विल्मी तो ठीक है...।
मैने पहले तो थोडा नखडा किया फिर लेकिन शर्त रखी की सब साथ साथ गायेंगे खास के नन्दोई जी और वो ढोलक भी बजायेंगे...।
उन्होने ढोलक पकडी और लाली ननद जी ने मंजीरे,
मैने गाना शुरु किया और गुड्डी भी साथ दे रही थी..।
अरे होली में नंदोई जी की बहना का सब कोइ सुना हाल अरे होली में,
अरे एक तो उनकी चोली पकडे दूसरा पकडे गाल,
अरे हेमा जी का अरे हेमा जी का तिसरा धईले माल...अरे होली में..।
कबीरा सा रा सा रा..।
हो जोगी जी हां जॊगी जी
ननदोई जी की बहना तो पक्की हईं छिनाल..।
कोइ उनकी चूंची दबलस कोई कटले गाल,
तीन तीन यारन से चुद्व्वायें तबीयत भई निहाल..।
जोगीडा सा रा सा रा
अरे हम्ररे खेत में गन्ना है और खेत में घूंची,
लाली छिनारिया रोज दबवाये भैया से दोनों चूंची,
जोगीडा सा रा सा रा...अरे देख चली जा..।
चारो ओर लगा पताका और लगी है झंडी,
गुड्डी ननद हैं मशहूर कालीन गंज में रंडी...।
चुदवावै सारी रात....जोगीडा सा रा रा ओह सारा.।
ओह जोगी जी हां जॊगी जी,
अरे कहां से देखो पानी बहता कहां पे हो गया लासा...अरे
अरे लाली ननद की लाली ननद की बुर से पानी बहता
और गुड्डी की बुर हो गई लासा..।
एक ओर से सैंया चोदे एक ओर से भैया..।
यारों की लाइन लगी है
....जरा सा देख तमाशा
जोगीडा सा रा सा रा.। .।
और इस गाने के साथ मैं और गुड्डी जम के अबीर गुलाल उडा रहे थे और एक बार फिर से सूखे रंगों की होली शुरु हो गई।
बेचारे जीत नन्दोइ जी को तो हम लोगों ने इस हालत में छोडा नहीं था की वो ड्राइव कर पाते, इसलिये ये ही लाली, जीत और गुड्डी को छोडने गये। उसके बाद से उन्हे अल्पी और क्म्मॊ को ले के शापिंग पे जाना था।
मैं बेड रूम में जा के लेट गई। डबल होली में, ननद और ननदोइ दोनों के साथ मजा तो बहोत आया लेकिन मैं थोडी थक गई थी।
जब हम लोग दूबे भाभी के यहां होली खेल रहे थे और यहां गुड्डी की रगडाइ हो थी, वो सब कैमरे में रिकार्ड करवा लिया था कैसे अपने भैया और जीजू के साथ , एक साथ। मैनें देखना शुरु किया, थोडा फास्ट फारवर्ड कर के , थोडा रोक रोक के। वो सीन बहोत जोरदार था जब मेरी ननद रानी, वो किशोर किसी एक्स्पर्ट की तरह दो दो लंड को एक साथ....जीत का लंड उसने मुंह में लिया था और अपने भैया का मुठीया रही थी। और फिर दोनों लंड को ...बारी बारी से ...जीभ निकाल के जैसे कॊइ लडकी एक साथ दो दो लालीपाप चाटे...उसकी जीभ लपट झपट के पहले मेरे सैंया के सुपाडे के चारो ओर ...और फिर ननदोइ जी के ...उसके जवान होठ गप्प से सुपाडे को होंठॊ में भर लेते, दबा देते, भींच लेते...और जीभ पी होल को छॆडती...और जिस तरह से प्यार से उसकी बडी बडी कजरारी आंखे...चेहरा उठा के वो देखती...जब चूसते चूसते गाल थक जाते तो अपने टेनिस बाल साइज के छोटे छोटे कडे जोबन के बीच दबा के लंड को रगडती...अकेली उस लडकी ने दोनों मदों की हालत खराब कर रखी थी। चल मैं सोच रही थी...३ दिन की बात और है। नरसों होली है और उसके अगले दिन सुबह ही इस बुलबुल को ले के हम फुर हो जायेंगें। साल भर की कोचिंग में नाम लिखवाना है उसका, लेकिन असली कोचिंग तो उसे मैं दूंगी। लंड की कोई कमी नहीं होगी..एक साथ दो तीन...हरदम उसकी चूत से वीर्य बहता रहेगा।
आज दूबे भाभी ने क्या कया करम नहीं किए लाली ननद के और उसके बाद वो एक दम सुधर गईं। कहां तो वो ननदोई जी को गुड्डी पे हाथ नहीं डालने दे रही थीं और कहां उनके सामने उनकी छोटी बहन ने अपने जीजू का लंड न सिर्फ चूसा, बल्की उनसे कहलवाया भी। और उनके भैया के सामने नंगा करके मैने क्या कुश्ती लडी...अरे होली में ये सब ना हो तो मजा कया है। तब तक वो सीन आ गया जिसमें गुड्डी की सैंड विच बनी। एक एक बार दोनों से चुद चुकी थी वो। दोनों का लंड चाट चाट के फिर उसने खडा कर दिया था। और अबकी उसके भैया ने लेट के उसे अपने उपर ले लिया...खूब मजे से वो छिनार उनका इतना मोटा लंड घोंट गई....खैर चिल्लाती भी कैसे उसके मुंह में उसके जीजा लंड पेल रहे थे और दोनों हाथों से उसके कंधे को पकड के राजीव के लंड के उपर उसे कस के दबा भी रहे थे।
राजीव भी उसकी पतली कमर को पकड के पूरी ताकत से उसे अपनी ओर खींच रहे थे और इंच इंच कर के उस छिनाल ने वो लंड घॊंट ही लिया। पी र्कैसे आराम से खुद ही उपर नीचे कर के ...चूत में दो बार की चुदाइ का माल भरा था..इस लिये खूब सटासट जा रहा था। नन्दोई जी मेरे सैंया को आंख मारी और उन्होने पूरी ताकत से खींच के उसे अपनी ओर कर लिया। पीछे से नन्दोई जी गांड सहला रहे थे....कितने दिनों से वो उसकी इस छोटी छोटी कसी गांड के दीवाने थे...और उसे पता तो चल ही गया होगा खास कर जब उन्होने थूक लगा के उसकी गांड की दरार पे उंगली रगडनी चालू कर दी। खूब क्रींम लगाया उन्होने अपने सुपाडे में ...नन्दोई जी का खूब मोटा है लेकिन राजीव से १८ होगा...इसी लिये मैने राजीव को मना किया था...उनका तो मेरी मुट्ठी इतना होगा।
Holi sexi stories-होली की सेक्सी कहानियाँ
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ननद ने खेली होली--14
मैने प्लान बना रखा था जब ये हम लोगों के साथ रहेगी....मैं अपने उपर लेके अपनी चूंची उसके मुंह में घुसेड के राजीव से उसकी गांड मरवाउंगी, अपने सामने...और सिर्फ थूक लगा के। अरे गांड मारी जाय ननद की और चीख चिल्लाहट ना हो दर्द ना हो...तो क्या मजा। चीख तो वो अभी भी रही थी, लेकिन राजीव ने उसके मुंह में जीभ डाल के उसे बंद कर दिया। नन्दोई जी भी सुफाडा ठेल के रुक गये। वो गांड पटकती रही छटपटाती रही, लेकिन एक बार गांड के छल्ले को लंड पार कर ले ना फिर तो...उसके बाद धीरे धीरे आधा लंड...नीचे से राजीव धक्का दे रहे थे और उपर से ....कभी बारी बारी से कभी साथ साथ...वो चीख रही थी, सिसक रही थी...उसके बाद दो बार और चुदी वो। और राजीव उसके भैया जब उसके मुंह में झडे तो साल्ली....पूरा गटक गई। एक बूंद भी बाहर नहीं। और मैं कब सो गई पता नहीं।
अगले दिन दिया आइ, गुड्डी और अल्पी की सहेली। मैने बताया था ना की ननद की ट्रेनिंग में...गुड्डी की सहेली जो अपने सगे भाई से फंसी थी और जिसको देख के राजीव का टन टना गया था और उसकी भी गीली हो गई थी।
खूब गदराइ, गोरी, जब से चूंचिया उठान शुरु हुआ था नौवें -दसवें क्लास से ही दबवा मिजवा रही थी। इसलिये खूब भरे भरे....( अरे जोबन तो आते ही हैं मर्दों के लिये फालतू में लडकियां इतना बचा छुपा के रखती हैं, मेरी एक भाभी कहती थीं), शोख धानी शलवार, कुर्ता।
गुड्डी आई है क्या...उसने पूछा। लेकिन उसकी चपल आंख टेबल पे पडी प्लेट में गुलाल अबीर पे थी ( होली शुरु हो चुकी थी, इस लिये मैं प्लेट में गुलाल अबीर जरूर रखती थी और नीचे छुपा के पक्के रंग)।
पहले तू ये बता की तू सहेली किसकी है फिर मैं रिश्ता तय कर के आगे बरताव करुं। हंस के मैं बोली। अल्पी को मेरी बहन बनने की और राजीव को जीजू बना के, उनके साथ उसके मजे लेने की खबर उसकी सारी सहेलियों को लग चुकी थी।
देखिये भाभी ...गुड्डी मेरी पक्की सहेली है इसलिये आपको तो मैं भाभी ही कहुंगी और मेरा आपका तो रिश्ता पहले दिन से ही ननद भाभी का है, लेकिन अल्पी मेरी अच्छी सहेली है और जो उसके जीजू वो मेरे जीजू...और जो उसका हक जीजू पे वो मेरा...खास तौर से फागुन में तो जीजा साली का ...मुस्करा के वो बोली।
तो फिर भाभी से ...थोडा सा लगवा लो...हाथ में गुलाल ले के उसके गोरे गदराये गालों की ओर बढी।
ना ना भाभी ...आज नहीं होली के दिन..। होली के दिन आप चाहे जितना डालियेगा मैं मना नहीं करुंगी। उसने नखडा बनाया।
अरे चल जरा सा बस सगुन के लिये...और मैने थोडा सा गुलाल गाल में लगा दिया। देख कितना सुंदर लगता है तेरे गोरे गाल पे ये गुलाल...और फिर मैने एक चुटकी माथे पे भी लगा दिया और फिर दुबारा गाल पे लगा के अबकी कस के मीज दिया। कितने मुलायम गाल हैं, इनके और नन्दोई जी के हाथ आ गये तो कच कचा के काटे बिना छोडेंगे नहीं, और कस कस के मसलेंगें।
झुक के प्लेट से उसने भी अबीर उठा ली...थोडा मैं भी तो लगा दू और मेरे चेहरे पे लगाने लगी।
गाल से मेरा हाथ गले पे आ गया। हल्का सा गुलाल मैने वहां भी लगा दिया।
वो मेरा इरादा सम्झ गई और जोर से उसने दोनो हाथ गले के पास ला के मेरा हाथ रोकने की कोशिश की, नहीं भाभी वहां नहीं।
क्यों वहां कोई खास चीज है क्या और उसके रोकते रोकते....मैं बहोत ननदों से होली खेल चुकी थी...मेरा हाथा सीधे उसके कबूतर पे..।
क्या मस्त उभार थे, इस उमर में भी आल्मोस्ट मेरी साइज के...खूब कडे...मेरे हाथ पहले उसके उरोज के उपर के हिस्से पे...एक बार होली में जब हाथ ब्रा के अंदर घुस जाय तो निकालना मुश्किल होता है....और थोडी देर में ही मेरा हाथ कस कस के मींज रहा था, दबा रहा था, चल तेरे जीजू जबतक नहीं आते भाभी से ही काम चला मैने चिढाया.।
धत्त भाभी...मैने ऐसा तो नहीं कहा था...बस हो गया प्लीज ....हाथ ....निकाल....ओह ..ओह..।
चल तू भी क्या याद करेगी किस सीधी भाभी से पाला पडा था और मैने हाथ ब्रा से तो निकाल लिया लेकिन उस हाथ से उसका कुर्ता पूरी तरह फैला के रखा और दूसरे हाथ से बडी प्लेट का गुलाल उठा के ( उसमें पक्का सूखा लाल रंग भी मिला हुआ था) सीधे उसके कुर्ते के अंदर...ब्रा ....ब्रा के अंदर लाल...लाल। अ
अरे एक गलती हो गई...ननद की मांग तो भरी ही नहीं...और ढेर सारा गुलाल ...उसकी मांग में...अब चल तेरी मांग मैने भरी है, तो सुहाग रात भी मैं मनाउंगी मैने चिढाया।
भाभी अब मुझे भी तो लगाने दीजिये...वो बोली।
एक् दम बोल कहो कहां लगाना है और मैने खुद आंचल हटा दिया, मेरे लो कट ब्लाउज से....वो गाल ...गले से होते हुए मेरे उभार तक..।
और मौके का फायदा उठा के मैने उसके कुर्ते के सारे बटब खॊल दिये...ब्रा साफ साफ दिख रही थी। गुलाल से रंगी...।
मैने तेरे एक कबूतर पे तो गुलाल लगाया दूसरे पे नहीं ...और मैने अबकी खुल के अंदर हाथ डाल के उसका दूसरा जोबन पकड लिया।
मेरा दूसरा हाथ उसके शलवार के नाडे पे था।
१० मिनट के अंदर हम दोनों के कपडे दूर पडे थे,,,अबीर गुलाल से लथ पथ...हम दोनो सिक्स्टी नाइन की पोज में....मेरी जीभ उसकी जांघॊं के बीच में और उसकी मेरी ...जैसे अखाडे में लड रहे पहलवानों की देह धूल मिट्टी में लिपटी रह्ती है...उसी तरह गुलाल अबीर में लिपटी हम ननद भौजाइ, एक किशोरी एक तरुणी..।
गुलाल से सने मेरे दोनों हाथ अभी भी उसके चूतड रंग रहे थे और जीभ....कभी उसकी लेबिया को फ्लिक करती, कभी क्लिट को...।
और दिया उमर में कम भले हो लेकिन अनुभव में कम नहीं लग रही थी। उसके भी हाथ, उंगलिया, जीभ मेरे तन मन को रंग रहे थे।
हम दोनों एक दूसरे को किनारे पे पहुंचाते पहुंचाते रुक जाते...और फिर से शुरु हो जाते।
तभी मुझे जीत और इनकी आवाज सुनाई पडी...।
आ जाओ तुम दोनों के लिये गिफ्ट है ...मैने हंस के दावत दी।
और राजी्व ने तो जब से पहली बार दिया को देखा था तब से...उनका उसके लिये तन्नाया था। वो मेरे सर की ओर आये । एक हाथ से मैने दिया की लेबिया कस के फैलाई और राजीव का बीयर कैन ऐसा मोटा लंड पकड के उसकी चूत में लगा दिया। राजीव ने कस के उसके दोनों किशोर चूतड पकडे और पूरी ताकत से एक बार में अपना हलब्बी लौंडा पेल दिया।
उईईईईईईईईईईईई माआआआआं......हम दोनों के मुंह से एक साथ निकला।
पीछे से नन्दोई जी ने अपना लंड मेरी चूत में पेल दिया था। फिर तो दोनों ने हम दोनों की एक साथ हचक हचक के वो चुदाइ की...सिक्स्टी नाइन करते चुदवाने का ये मेरा पहला मौका था.।
मैं राजीव के मोटे लंड को दिया की चूत में रगडते, फैलाते घुसते देख रही थी.।
मेरी जीभ अब भी चुप नहीं थी....वो अब राजीव के मोटॆ चिकने लंड को चाट रही थी जब तक वो दिया की कसी चूत में कच कचा के घुसता...और जब पूरा लंड दिया की चूत में होता तो मेरे होंठ कस के उसकी क्लिट को चूसते, भींचते और हल्के से काट लेते.।
दिया की जीभ भी यही बदमाशियां कर रही थी। मैं मजे से एक साथ ननद और ननदोइ का मजा लूट रही थी होली में...और आधे घंटे की नान स्टाप चुदाइ के बाद हम चारों एक साथ झडे।
मैने प्लान बना रखा था जब ये हम लोगों के साथ रहेगी....मैं अपने उपर लेके अपनी चूंची उसके मुंह में घुसेड के राजीव से उसकी गांड मरवाउंगी, अपने सामने...और सिर्फ थूक लगा के। अरे गांड मारी जाय ननद की और चीख चिल्लाहट ना हो दर्द ना हो...तो क्या मजा। चीख तो वो अभी भी रही थी, लेकिन राजीव ने उसके मुंह में जीभ डाल के उसे बंद कर दिया। नन्दोई जी भी सुफाडा ठेल के रुक गये। वो गांड पटकती रही छटपटाती रही, लेकिन एक बार गांड के छल्ले को लंड पार कर ले ना फिर तो...उसके बाद धीरे धीरे आधा लंड...नीचे से राजीव धक्का दे रहे थे और उपर से ....कभी बारी बारी से कभी साथ साथ...वो चीख रही थी, सिसक रही थी...उसके बाद दो बार और चुदी वो। और राजीव उसके भैया जब उसके मुंह में झडे तो साल्ली....पूरा गटक गई। एक बूंद भी बाहर नहीं। और मैं कब सो गई पता नहीं।
अगले दिन दिया आइ, गुड्डी और अल्पी की सहेली। मैने बताया था ना की ननद की ट्रेनिंग में...गुड्डी की सहेली जो अपने सगे भाई से फंसी थी और जिसको देख के राजीव का टन टना गया था और उसकी भी गीली हो गई थी।
खूब गदराइ, गोरी, जब से चूंचिया उठान शुरु हुआ था नौवें -दसवें क्लास से ही दबवा मिजवा रही थी। इसलिये खूब भरे भरे....( अरे जोबन तो आते ही हैं मर्दों के लिये फालतू में लडकियां इतना बचा छुपा के रखती हैं, मेरी एक भाभी कहती थीं), शोख धानी शलवार, कुर्ता।
गुड्डी आई है क्या...उसने पूछा। लेकिन उसकी चपल आंख टेबल पे पडी प्लेट में गुलाल अबीर पे थी ( होली शुरु हो चुकी थी, इस लिये मैं प्लेट में गुलाल अबीर जरूर रखती थी और नीचे छुपा के पक्के रंग)।
पहले तू ये बता की तू सहेली किसकी है फिर मैं रिश्ता तय कर के आगे बरताव करुं। हंस के मैं बोली। अल्पी को मेरी बहन बनने की और राजीव को जीजू बना के, उनके साथ उसके मजे लेने की खबर उसकी सारी सहेलियों को लग चुकी थी।
देखिये भाभी ...गुड्डी मेरी पक्की सहेली है इसलिये आपको तो मैं भाभी ही कहुंगी और मेरा आपका तो रिश्ता पहले दिन से ही ननद भाभी का है, लेकिन अल्पी मेरी अच्छी सहेली है और जो उसके जीजू वो मेरे जीजू...और जो उसका हक जीजू पे वो मेरा...खास तौर से फागुन में तो जीजा साली का ...मुस्करा के वो बोली।
तो फिर भाभी से ...थोडा सा लगवा लो...हाथ में गुलाल ले के उसके गोरे गदराये गालों की ओर बढी।
ना ना भाभी ...आज नहीं होली के दिन..। होली के दिन आप चाहे जितना डालियेगा मैं मना नहीं करुंगी। उसने नखडा बनाया।
अरे चल जरा सा बस सगुन के लिये...और मैने थोडा सा गुलाल गाल में लगा दिया। देख कितना सुंदर लगता है तेरे गोरे गाल पे ये गुलाल...और फिर मैने एक चुटकी माथे पे भी लगा दिया और फिर दुबारा गाल पे लगा के अबकी कस के मीज दिया। कितने मुलायम गाल हैं, इनके और नन्दोई जी के हाथ आ गये तो कच कचा के काटे बिना छोडेंगे नहीं, और कस कस के मसलेंगें।
झुक के प्लेट से उसने भी अबीर उठा ली...थोडा मैं भी तो लगा दू और मेरे चेहरे पे लगाने लगी।
गाल से मेरा हाथ गले पे आ गया। हल्का सा गुलाल मैने वहां भी लगा दिया।
वो मेरा इरादा सम्झ गई और जोर से उसने दोनो हाथ गले के पास ला के मेरा हाथ रोकने की कोशिश की, नहीं भाभी वहां नहीं।
क्यों वहां कोई खास चीज है क्या और उसके रोकते रोकते....मैं बहोत ननदों से होली खेल चुकी थी...मेरा हाथा सीधे उसके कबूतर पे..।
क्या मस्त उभार थे, इस उमर में भी आल्मोस्ट मेरी साइज के...खूब कडे...मेरे हाथ पहले उसके उरोज के उपर के हिस्से पे...एक बार होली में जब हाथ ब्रा के अंदर घुस जाय तो निकालना मुश्किल होता है....और थोडी देर में ही मेरा हाथ कस कस के मींज रहा था, दबा रहा था, चल तेरे जीजू जबतक नहीं आते भाभी से ही काम चला मैने चिढाया.।
धत्त भाभी...मैने ऐसा तो नहीं कहा था...बस हो गया प्लीज ....हाथ ....निकाल....ओह ..ओह..।
चल तू भी क्या याद करेगी किस सीधी भाभी से पाला पडा था और मैने हाथ ब्रा से तो निकाल लिया लेकिन उस हाथ से उसका कुर्ता पूरी तरह फैला के रखा और दूसरे हाथ से बडी प्लेट का गुलाल उठा के ( उसमें पक्का सूखा लाल रंग भी मिला हुआ था) सीधे उसके कुर्ते के अंदर...ब्रा ....ब्रा के अंदर लाल...लाल। अ
अरे एक गलती हो गई...ननद की मांग तो भरी ही नहीं...और ढेर सारा गुलाल ...उसकी मांग में...अब चल तेरी मांग मैने भरी है, तो सुहाग रात भी मैं मनाउंगी मैने चिढाया।
भाभी अब मुझे भी तो लगाने दीजिये...वो बोली।
एक् दम बोल कहो कहां लगाना है और मैने खुद आंचल हटा दिया, मेरे लो कट ब्लाउज से....वो गाल ...गले से होते हुए मेरे उभार तक..।
और मौके का फायदा उठा के मैने उसके कुर्ते के सारे बटब खॊल दिये...ब्रा साफ साफ दिख रही थी। गुलाल से रंगी...।
मैने तेरे एक कबूतर पे तो गुलाल लगाया दूसरे पे नहीं ...और मैने अबकी खुल के अंदर हाथ डाल के उसका दूसरा जोबन पकड लिया।
मेरा दूसरा हाथ उसके शलवार के नाडे पे था।
१० मिनट के अंदर हम दोनों के कपडे दूर पडे थे,,,अबीर गुलाल से लथ पथ...हम दोनो सिक्स्टी नाइन की पोज में....मेरी जीभ उसकी जांघॊं के बीच में और उसकी मेरी ...जैसे अखाडे में लड रहे पहलवानों की देह धूल मिट्टी में लिपटी रह्ती है...उसी तरह गुलाल अबीर में लिपटी हम ननद भौजाइ, एक किशोरी एक तरुणी..।
गुलाल से सने मेरे दोनों हाथ अभी भी उसके चूतड रंग रहे थे और जीभ....कभी उसकी लेबिया को फ्लिक करती, कभी क्लिट को...।
और दिया उमर में कम भले हो लेकिन अनुभव में कम नहीं लग रही थी। उसके भी हाथ, उंगलिया, जीभ मेरे तन मन को रंग रहे थे।
हम दोनों एक दूसरे को किनारे पे पहुंचाते पहुंचाते रुक जाते...और फिर से शुरु हो जाते।
तभी मुझे जीत और इनकी आवाज सुनाई पडी...।
आ जाओ तुम दोनों के लिये गिफ्ट है ...मैने हंस के दावत दी।
और राजी्व ने तो जब से पहली बार दिया को देखा था तब से...उनका उसके लिये तन्नाया था। वो मेरे सर की ओर आये । एक हाथ से मैने दिया की लेबिया कस के फैलाई और राजीव का बीयर कैन ऐसा मोटा लंड पकड के उसकी चूत में लगा दिया। राजीव ने कस के उसके दोनों किशोर चूतड पकडे और पूरी ताकत से एक बार में अपना हलब्बी लौंडा पेल दिया।
उईईईईईईईईईईईई माआआआआं......हम दोनों के मुंह से एक साथ निकला।
पीछे से नन्दोई जी ने अपना लंड मेरी चूत में पेल दिया था। फिर तो दोनों ने हम दोनों की एक साथ हचक हचक के वो चुदाइ की...सिक्स्टी नाइन करते चुदवाने का ये मेरा पहला मौका था.।
मैं राजीव के मोटे लंड को दिया की चूत में रगडते, फैलाते घुसते देख रही थी.।
मेरी जीभ अब भी चुप नहीं थी....वो अब राजीव के मोटॆ चिकने लंड को चाट रही थी जब तक वो दिया की कसी चूत में कच कचा के घुसता...और जब पूरा लंड दिया की चूत में होता तो मेरे होंठ कस के उसकी क्लिट को चूसते, भींचते और हल्के से काट लेते.।
दिया की जीभ भी यही बदमाशियां कर रही थी। मैं मजे से एक साथ ननद और ननदोइ का मजा लूट रही थी होली में...और आधे घंटे की नान स्टाप चुदाइ के बाद हम चारों एक साथ झडे।
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Re: Holi sexi stories-होली की सेक्सी कहानियाँ
ननद ने खेली होली--15
जब दिया उठी तो उसने एक खुश खबरी दी...अल्पी और गुड्डी के क्लास की आज फेयर वेल थी और उसकी तीन सहेलियां आ रही थी होली खेलने, मधु, शिखा और नीतू।
चलो तैयार हो जाओ तुम दोनॊं...मैने उनसे और ननदोई जी से कहा।
एक दम फटा फट...और दोनो गायब हो गये।
थोडी देर में तूफान की तरह तीनों दाखिल हुयीं।
जैसे गुलाल और अबीर के इंद्र धनुष आ गयें हो लाल गुलाबी पीले धानी चुनरियां दुपटे...और दिया भी उनके साथ शामिल हो गई।
मधु टाप और जीन्स में, शिखा चुनरी और चोली में और नीतू स्कूल के सफेद ब्लाउज और स्कर्ट में....।
रंग, गुलाल से लैस हाथों में पहले से रंग लगाये..।
ब्रज में आज मची होरी ब्रज में...।
अपने अपने घर से निकरीं कोई सांवर कोई गोरी रे...।
कोइ जोबन ...कोइ उमर की थोरी रे..।
और ये और जीत भी सफेद कुर्ते पाजामें में बेकाबू हो रहे थे।
हे नहीं मैने उन सबों के अरमानों पे पानी फेर दिया, चलो पहले एक दो मेरे साथ किचेन में हेल्प कराओ और हां रंग वंग सब पीछे....पहले मैं अपनी ननदों कॊ खिला पिला लूंगी फिर होळी और ....उन लडकियों से मैने पूछा, तुम लोग तो सिर्फ ननदोइ जी से खेलोगी ये तो तुम्हारे भाई लगेंगें।
नहींंंंंंंंंंंं अब समवेत स्वर में चिल्लाइं। अल्पी के जीजू तो हमारे भी जीजू।
गुड्डी तो मुझे मालूम था की नहीं आयेगी। उसकी बडी बहन लाली ने तय किया था की वो आज ही होली का सब काम खतम कर लेंगी और कल सिर्फ औरतों लडकियों की होली...और उसमें वो लेसबियन कुश्ती ...भी होनी थी ....मेरी और लाली की...तो कल तो टाइम मिलता नहीं...पर अल्पी...मेरे पूछे बिना नीतू बोली, भाभी वो थोडी थकी थकी लग रही थी...फिर उसको भी घर जल्दी लौटना था। मैं समझ गई कल इन्होने वो हचक के उसे चोदा था ....होली थी ...छोटी साली थी और फिर कल की गुड्डी के घर होने वाली होली में मेरी असिस्टेंट तो वहॊ थी। तो उसे भी होली का सब काम आज ही निपटाना था।
किचेन में ढेर सारी गरम गुझिया बना के मैं और नीतू बाहर आये तो वहां दिया, शिखा और मधु ने सब इंतजाम कर दिया था। घर के पिछवाडॆ एक छोटा सा पांड जैसा था, छाती तक पानी होगा, मैने पहले ही टेसू डाल के उसे रंगीन कर दिया था चारों ओर दहकते हुये पलाश के पेड, बौराये हुये आम.। खूब घने पेड आउर चारों ओर दीवार भी....मैने अपनी ननदों को सब समझा दिया...यहां तक की ट्रिक भी बता दिया...जीत मेरे ननदोइ और उनके जीजा...उन्हे गुद गुदी बहोत लगती है और ये ...ये तो बस दो चार लड्कियां रिक्वेस्ट कर लें चुप चाप रंग लगवा लेंगें...उन्हे मैने ढेर सारे रंग भी दिये। तब तक जीत और ये भी आ गये मैने सब को जबर्न गुझिया खिलाई और ठंडाई पिलाई...ये कहने की बात नहीं...की सबमें डबल भांग मिली हुई थी। और बोला,
चलिये सबसे पहले इतनी सुंदर सेक्सी ननदें आई हैं रंग खेलने इसलिये पहले आप दोनों चुप चाप रंग लगवा लें...एक एक पे दो...दो...उन के मुलायम किशोर हाथों से गालों सीने पे रंग लगवाने में उन दोनों को भी मजा आ रहा था। लेकिन होली में कोइ रुल थोडी चलता है पहले तो मधु के के टाप में जीत ने हाथ डाला और फिर फिर शिखा की चोली में इन्होने घात लगाई। और वो सब साल्लीयां आई भी तो इसीलिये आई थीं। और फिर तालाब में पहले नीतू..और फिर जो जाके निकलती वो दूसरे को भी। ....शिखा थोडा नखडा कर रही थी...लेकिन सबने मिल के एक साथ उसे हाथ पांव पकड के पानी में...और जब वो सारी निकलीं तो...देह से चिपके टाप, चोली, चूतडों के बीच में धंसी शलवार, लहंगा...सब कुछ दिखता है....तब तक इन्होने मेरी ओर इशारा किया और जब तक मैं सम्हलूं...चारों हाथ पैर ननदो के कब्जे में थे और मैं पानी में....दो ने मिल के मेरी साडी खींची और दो ने सीधे ब्लाउज फाड दिया। मुझे लगा की जीत या कम से कम ये तो मेरी सहायता के लिये उत्रेंगे लेकिन ये बाहर खडे खडे खी खी करते रहे...खैर मैने अकले ही किसी का टाप किसी का ब्लाउज...और हम सब थोडी देर में आल्मोस्ट टापलेस थे और उसके बाद उन दोनों का नम्बर था।
अब तक भांग का असर पूरी तरह चढ गया था...फिर तो किसी के पैंटी मे हाथ था तो किसी के ब्रा में और मैने भी एक साथ दो दो ननदों की रगडाइ शुरु कर दी।
सालियां ४ और जीजा दो फिर भी अब अक उन के कपडे बचे हैं कैसी साली हो तुम सब....और फिर चीर हरण पूरा हो गया।
हे इतनी मस्त सालियांं और अभी तक ...बिना चुदे कोई गई तो...अरे लंड का रंग नहीं लगा तो फिर क्या जीजा साली की होली....मैने ललकारा....फिर तो वो बो होल्ड्स बार्ड होली शुरु हुई...।
जो उन दोनों से बचती उसे मैं पकड लेती...।
तीन चार घंटे तक चली होली....तिजहरिया में वो वापस गई<
अगले दिन गुड्डी के घर` सिर्फ औरतों की होली...सारी ननद भाभीयां...१४ से ४४ तक....और दरवाजा ना सिर्फ अंदर से बंद बल्की बाहर से भी ताला मारा हुआ...और आस पास कोइ मर्द ना होने से...आज औअर्तें लडकियां कुछ ज्यादा ही बौरा गईं थी। भांग,ठंडाइ का भी इसमें कम हाथ नहीं था। जोगीडा सा रा सा रा...कबीर गालियों से आंगन गूंज रहा था। कुच बडी उमर की भौजाइयां तो फ्राक में छोटे छोटे टिकोरे वाली ननदों को देख के रोक नहीं पा रहीं थीं.रंग, अबीर गुलाल तो एक बहाना था। असली होली तो देह की हो रही थी.....मन की जो भी कुत्सित बातें थी जो सोच भी नहीं सकते थे...वो सब बाहर आ रही थीं। कहते हैं ना होली साल भर का मैल साफ करने का त्योहार है, तन का भी मन का भी...तो बस वो हो रहा था। कीचड साफ करने का पर्व है ये इसीलिये तो शायद कई जगह कीचड से भी होली खेली जाती है..और वहां भी कीचड की भी होली हुई।
पहले तो माथे गालों पे गुलाल, फिर गले पे फिर हाथ सरकते स्ररकते थोडा नीचे...।
नहीं नहीं भाभी वहां नहीं....रोकना , जबरद्स्ती...।
अरे होली में तो ये सगुन होता है....।
उंह..उंह....नहीं नहीं..।
अरे क्यों क्या ये जगह अपने भैया केलिये रिजर्व की है क्या या शाम को किसी यार ने टाइम दिया है...फिर कचाक से पूरा हाथ...अंदर..।
और ननदें भी क्यों छोडने लगी भौजाइयों को...।
क्यों भाभी भैया ऐसे ही दबाते हैं क्या....अरे भैया से तो रात भर दबाती मिजवाती हैं हमारा जरा सा हाथ लगते ही बिचक रही हैं..।
अरे ननद रानी आप भी तो बचपन से मिजवाती होंगी अपने भैया से...तभी तो नींबू से बडके अनार हो गये...आपको तो पता ही होगा और फिर भाभी के हाथ में ननद के...अरे ऐसे ...नही ऐसे दबाते हैऔर निपल खींच के इसे भी तो..।
जब दिया उठी तो उसने एक खुश खबरी दी...अल्पी और गुड्डी के क्लास की आज फेयर वेल थी और उसकी तीन सहेलियां आ रही थी होली खेलने, मधु, शिखा और नीतू।
चलो तैयार हो जाओ तुम दोनॊं...मैने उनसे और ननदोई जी से कहा।
एक दम फटा फट...और दोनो गायब हो गये।
थोडी देर में तूफान की तरह तीनों दाखिल हुयीं।
जैसे गुलाल और अबीर के इंद्र धनुष आ गयें हो लाल गुलाबी पीले धानी चुनरियां दुपटे...और दिया भी उनके साथ शामिल हो गई।
मधु टाप और जीन्स में, शिखा चुनरी और चोली में और नीतू स्कूल के सफेद ब्लाउज और स्कर्ट में....।
रंग, गुलाल से लैस हाथों में पहले से रंग लगाये..।
ब्रज में आज मची होरी ब्रज में...।
अपने अपने घर से निकरीं कोई सांवर कोई गोरी रे...।
कोइ जोबन ...कोइ उमर की थोरी रे..।
और ये और जीत भी सफेद कुर्ते पाजामें में बेकाबू हो रहे थे।
हे नहीं मैने उन सबों के अरमानों पे पानी फेर दिया, चलो पहले एक दो मेरे साथ किचेन में हेल्प कराओ और हां रंग वंग सब पीछे....पहले मैं अपनी ननदों कॊ खिला पिला लूंगी फिर होळी और ....उन लडकियों से मैने पूछा, तुम लोग तो सिर्फ ननदोइ जी से खेलोगी ये तो तुम्हारे भाई लगेंगें।
नहींंंंंंंंंंंं अब समवेत स्वर में चिल्लाइं। अल्पी के जीजू तो हमारे भी जीजू।
गुड्डी तो मुझे मालूम था की नहीं आयेगी। उसकी बडी बहन लाली ने तय किया था की वो आज ही होली का सब काम खतम कर लेंगी और कल सिर्फ औरतों लडकियों की होली...और उसमें वो लेसबियन कुश्ती ...भी होनी थी ....मेरी और लाली की...तो कल तो टाइम मिलता नहीं...पर अल्पी...मेरे पूछे बिना नीतू बोली, भाभी वो थोडी थकी थकी लग रही थी...फिर उसको भी घर जल्दी लौटना था। मैं समझ गई कल इन्होने वो हचक के उसे चोदा था ....होली थी ...छोटी साली थी और फिर कल की गुड्डी के घर होने वाली होली में मेरी असिस्टेंट तो वहॊ थी। तो उसे भी होली का सब काम आज ही निपटाना था।
किचेन में ढेर सारी गरम गुझिया बना के मैं और नीतू बाहर आये तो वहां दिया, शिखा और मधु ने सब इंतजाम कर दिया था। घर के पिछवाडॆ एक छोटा सा पांड जैसा था, छाती तक पानी होगा, मैने पहले ही टेसू डाल के उसे रंगीन कर दिया था चारों ओर दहकते हुये पलाश के पेड, बौराये हुये आम.। खूब घने पेड आउर चारों ओर दीवार भी....मैने अपनी ननदों को सब समझा दिया...यहां तक की ट्रिक भी बता दिया...जीत मेरे ननदोइ और उनके जीजा...उन्हे गुद गुदी बहोत लगती है और ये ...ये तो बस दो चार लड्कियां रिक्वेस्ट कर लें चुप चाप रंग लगवा लेंगें...उन्हे मैने ढेर सारे रंग भी दिये। तब तक जीत और ये भी आ गये मैने सब को जबर्न गुझिया खिलाई और ठंडाई पिलाई...ये कहने की बात नहीं...की सबमें डबल भांग मिली हुई थी। और बोला,
चलिये सबसे पहले इतनी सुंदर सेक्सी ननदें आई हैं रंग खेलने इसलिये पहले आप दोनों चुप चाप रंग लगवा लें...एक एक पे दो...दो...उन के मुलायम किशोर हाथों से गालों सीने पे रंग लगवाने में उन दोनों को भी मजा आ रहा था। लेकिन होली में कोइ रुल थोडी चलता है पहले तो मधु के के टाप में जीत ने हाथ डाला और फिर फिर शिखा की चोली में इन्होने घात लगाई। और वो सब साल्लीयां आई भी तो इसीलिये आई थीं। और फिर तालाब में पहले नीतू..और फिर जो जाके निकलती वो दूसरे को भी। ....शिखा थोडा नखडा कर रही थी...लेकिन सबने मिल के एक साथ उसे हाथ पांव पकड के पानी में...और जब वो सारी निकलीं तो...देह से चिपके टाप, चोली, चूतडों के बीच में धंसी शलवार, लहंगा...सब कुछ दिखता है....तब तक इन्होने मेरी ओर इशारा किया और जब तक मैं सम्हलूं...चारों हाथ पैर ननदो के कब्जे में थे और मैं पानी में....दो ने मिल के मेरी साडी खींची और दो ने सीधे ब्लाउज फाड दिया। मुझे लगा की जीत या कम से कम ये तो मेरी सहायता के लिये उत्रेंगे लेकिन ये बाहर खडे खडे खी खी करते रहे...खैर मैने अकले ही किसी का टाप किसी का ब्लाउज...और हम सब थोडी देर में आल्मोस्ट टापलेस थे और उसके बाद उन दोनों का नम्बर था।
अब तक भांग का असर पूरी तरह चढ गया था...फिर तो किसी के पैंटी मे हाथ था तो किसी के ब्रा में और मैने भी एक साथ दो दो ननदों की रगडाइ शुरु कर दी।
सालियां ४ और जीजा दो फिर भी अब अक उन के कपडे बचे हैं कैसी साली हो तुम सब....और फिर चीर हरण पूरा हो गया।
हे इतनी मस्त सालियांं और अभी तक ...बिना चुदे कोई गई तो...अरे लंड का रंग नहीं लगा तो फिर क्या जीजा साली की होली....मैने ललकारा....फिर तो वो बो होल्ड्स बार्ड होली शुरु हुई...।
जो उन दोनों से बचती उसे मैं पकड लेती...।
तीन चार घंटे तक चली होली....तिजहरिया में वो वापस गई<
अगले दिन गुड्डी के घर` सिर्फ औरतों की होली...सारी ननद भाभीयां...१४ से ४४ तक....और दरवाजा ना सिर्फ अंदर से बंद बल्की बाहर से भी ताला मारा हुआ...और आस पास कोइ मर्द ना होने से...आज औअर्तें लडकियां कुछ ज्यादा ही बौरा गईं थी। भांग,ठंडाइ का भी इसमें कम हाथ नहीं था। जोगीडा सा रा सा रा...कबीर गालियों से आंगन गूंज रहा था। कुच बडी उमर की भौजाइयां तो फ्राक में छोटे छोटे टिकोरे वाली ननदों को देख के रोक नहीं पा रहीं थीं.रंग, अबीर गुलाल तो एक बहाना था। असली होली तो देह की हो रही थी.....मन की जो भी कुत्सित बातें थी जो सोच भी नहीं सकते थे...वो सब बाहर आ रही थीं। कहते हैं ना होली साल भर का मैल साफ करने का त्योहार है, तन का भी मन का भी...तो बस वो हो रहा था। कीचड साफ करने का पर्व है ये इसीलिये तो शायद कई जगह कीचड से भी होली खेली जाती है..और वहां भी कीचड की भी होली हुई।
पहले तो माथे गालों पे गुलाल, फिर गले पे फिर हाथ सरकते स्ररकते थोडा नीचे...।
नहीं नहीं भाभी वहां नहीं....रोकना , जबरद्स्ती...।
अरे होली में तो ये सगुन होता है....।
उंह..उंह....नहीं नहीं..।
अरे क्यों क्या ये जगह अपने भैया केलिये रिजर्व की है क्या या शाम को किसी यार ने टाइम दिया है...फिर कचाक से पूरा हाथ...अंदर..।
और ननदें भी क्यों छोडने लगी भौजाइयों को...।
क्यों भाभी भैया ऐसे ही दबाते हैं क्या....अरे भैया से तो रात भर दबाती मिजवाती हैं हमारा जरा सा हाथ लगते ही बिचक रही हैं..।
अरे ननद रानी आप भी तो बचपन से मिजवाती होंगी अपने भैया से...तभी तो नींबू से बडके अनार हो गये...आपको तो पता ही होगा और फिर भाभी के हाथ में ननद के...अरे ऐसे ...नही ऐसे दबाते हैऔर निपल खींच के इसे भी तो..।