संघर्ष--39
गतान्क से आगे..........
सावित्री भी गुलाबी को अर्धनग्न स्थिति मे देख कर मानो सन्न रह गई थी. लेकिन धन्नो चाची के पाँव जैसे ही कोठरी मे दाखिल हुए कि सावित्री भी अपने कदम उस कोठरी मे रख दी. और जैसे ही कोठरी मे दूसरी ओर चौकी पर लेटे ठाकुर साहेब पर पड़ी तो एक दम कांप सी गई. एकदम नंगे ही लेटे हुए ठाकुर साहेब भी जवान गदराई सावित्री की ओर देखे, फिर एक बार अपने लंड के उपर जैसे तैसे रखी हुई धोती के उपर से ही तेल लगे लंड को मसल कर बोले “धन्नो....ये कौन है...? “ मानो सावित्री के बारे मे धन्नो के मुँह से सुनना चाह रहे हों. तब धन्नो सावित्री की ओर देखते बोली “बाबू जी...ये सावित्री है...मेरे गाँव की लड़की....बहुत अच्छी है....मैं सोची इसे भी अपने साथ घुमा दूं...सो इसे लेते आई...” फिर धन्नो ठाकुर गुलाबी की ओर देखते बोली “लेकिन बाबू जी...आज तो मुझे ऐसे लग रहा है मानो..मैं कबाब मे हड्डी बन गई...आप का मिज़ाज़ खराब हो गया होगा....” तब ठाकुर साहेब बोले ”कोई बात नई धन्नो...आज दोपहर मे ये औजार पर तेल लगा रही थी...और कुच्छ नही...” तब धन्नो बोली “तो हम दोनो जा रहे हैं ..आप तेल मालिश करवा लो बाबू जी इस गुलाबी से ..” इतना बोल कर धन्नो गुलाबी को आहिस्ते से छेड़ते हुए धकेल दी. गुलाबी की दोनो नंगी चुचियाँ हिल गई. और गुलाबी भी तनक कर बोली “मैं तो तेल लगा दी हूँ और तेरे लिए तैयार है...बाबू जी का लॉडा ..” गुलाबी की बातें सुनकर ठाकुर साहेब हंसते हुए चौकी पर बैठ गये. सावित्री जब गुलाबी के मुँह ऐसी बात सुनी तो पूरी तरह से सकपका गई. ठाकुर साहेब की नज़र सावित्री के चौड़े चूतदों पर ही थी. फिर धन्नो बोली “जब तू तेल लगाई है तो...लंड थामते थामते तेरी पनिया भी गई होगी...तो गर्मी शांत कर ले...” फिर ठाकुर साहेब की ओर देख कर बोली “बाबू जी इसे अब पटक कर चोद दीजिए...देर मत कीजिए...ये हरजाई चू रही है पेटिकोट मे...” ठाकुर साहेब भी गुलाबी की सहेली धन्नो को भी ना जाने कितनी बार चोद चुके थे. इसलिए कोई लाज़ शर्म नही थी. एकदम खुल्लम खुल्ला बातें होती थीं. लेकिन सावित्री के लिए सब कुच्छ नया था. उसका कलेजा ऐसे धक धक कर रहा था मानो कोई हथोडा चल रहा हो. ठाकुर साहेब को भी समझते देर नही लगी कि धन्नो छिनार अपने साथ इस लड़की को घुमाने के साथ साथ छिनार बनाने लाई है. वो जानते थे कि निर्जन जगह पर खेतों के बीच बनी इस कोठरी पे दोपहर को क्या होता है, धन्नो को खूब पता था. फिर ठाकुर साहेब सावित्री के झुके हुए चेहरे पर छाई हुई शर्म को पढ़ते हुए बोले “अरे धन्नो ये गुलाबी तो साली रोज खाती है तेल लगा के...आज तू ही खा ले ना...” फिर आगे बोले “ये लड़की डरेगी तो नही मेरे ओंज़ार को देख कर...?” तब गुलाबी बोली “नाही बाबू जी....ये दोनो की दोनो छिनार हैं....डरेगी क्या....आप तो जानते ही हैं कि इसका गाँव चोदुओ का गाँव है....ना जाने कितने लंड देखी होगी....ये छोकरि...” गुलाबी की इतनी गंदी बात सुनकर एकबार तो सावित्री का खून खौल उठा, लेकिन कुछ आगे सोचती कि धन्नो मानो बचाव करते बोली “.बाबू जी...ये रंडी अपनी तरह सबको समझती है....बाबू जी ये लंड के लिए बेकरार है..इसी लिए बक बक कर रही है...” धन्नो और गुलाबी के बीच शब्दो की जंग मानो छिड़ने लगी थी. दोनो हंस भी रही थी एकदुसरे पर अश्लील बाते बोलकर. ठाकुर साहेब दोनो की बातों मे रस लेते हुए बोले “लो गुलाबी कहती है तो मान लेता हूँ...धोती हटा देता हूँ..” इतनी बात बोल कर ठाकुर साहेब ने जैसे ही धोती को तेल से सने लंड के उपर से हटा कर चौकी पर रखी कि तीनो की नज़रें एक बार अनायास ही उनके लोहे की तरह सख़्त लंड पर पड़ी तो सावित्री का कलेज़ा दहल गया. सावित्री ने उस काले लंड को देखकर सर से पाँव तक कांप सी गई. ठाकुर साहेब दूसरे ही पल अपने लंड पर हाथ फेरते हुए सावित्री की ओर देखे तब अचानक ही सावित्री की आँखें ठाकुर साहेब की आँखों से टकरा गयी और सावित्री लाज़ से पानी पानी होती हुई अपनी सर को कोठरी के ज़मीन मे धंसा ली.
इतना देख कर केवल पेटिकोट मे खड़ी गुलाबी बोली “...ओ सावित्री देख ले ये बाबू जी का ओंज़ार है...पूरे 48 साल के बाबू जी हैं लेकिन लॉडा एकदम फौलाद है....देख ले जी भर के ...” सावित्री के अंदर लाज़ और गुस्से दोनो का समावेश इतना हो चुका था कि उसके मन मे एक पल आया कि वो वहाँ से तुरंत भाग जाए. अपनी सर को ज़मीन मे गढ़ाए खड़ी थी धन्नो भी सावित्री के चेहरे पर उभरने वाले भाव को देख कर महसूस कर रही थी कि ठाकुर साहेब का फौलादी लंड देख कर उसके उपर क्या गुज़र रही थी. फिर धन्नो सावित्री के तरफ से बोली “गुलाबी तू भी एक दम रंडी हो....कल की छोकरि है ...बेचारी ..कहीं डर गई तो देख कर....कोई तेरी जैसी चुदैल नही है ना....” फिर ठाकुर साहेब की ओर देखते बोली “बाबू जी अभी बच्ची है...उसे ढँक लो ..कहीं डर गई तो....!” इतनी बात सुनकर गुलाबी बोली “कोई साँप है क्या जो डर जाएगी....अरे बाबूजी आप इसकी बातों मे मत आना ....ये धन्नो खुद तो चुदति है घूम घूम कर, और इसे भी चोद्वा रही है,....देखिए बाबू जी, इसके चूतर पूरे के पूरे शादी शुदा की तरह हो गई है लंड खाते खाते...” गुलाबी के मुँह से निकली ये बात मानो सावित्री के अंदर बचे आत्मसम्मान को झकझोर कर रख दी.
संघर्ष
Re: संघर्ष
ऐसे मौके को ठाकुर साहेब भी गवाना नही चाहते थे. थोड़ी ही देर पहले गुलाबी के नाज़ुक हाथों से सरसो के तेल की मालिश पा कर साँवले रंग के ठाकुर साहेब जिनका कद काठी एक पहलवान की तरह था, घनी झांतों से घिरा हुआ उनका काला लंड एकदम तन्ना चुका था, और सूपड़ा किसी लाल टमाटर की तरह चमक रहा था,. और उसके उपर एक जवान शरमाने वाली गदराई छोकरि, जो धन्नो जैसी चुदैल के साथ इस दोपहर मे इस निर्जन स्थान पर बने कोठरी मे आई थी, ठाकुर साहेब के उपर मानो ज़ुल्म ढा रही थी. और उसके उपर से गुलाबी की ललकार ने ठाकुर साहेब के बँपिलाट भारी लंड मे एक ज़बर्दाश्त तूफान ला दी थी. एकदम नंगे ठाकुर साहेब के लंड मे मानो खून का बहाव काफ़ी तेज़ हो चुका था. उस भारी लंड पर खून की नशे एकदम उभर गयी थीं मानो फट ना जाय. एक बार तो धन्नो लंड के इस विकराल रूप को देखकर अपनी बुर को साड़ी के उपर से ही सहला कर रह गई. ठाकुर साहेब मानो अंदर ही अंदर सावित्री को चोद्ने की ठान लिए थे. खुद के लंड मे उठे उफान को महसूस करते हुए ठाकुर साहेब बोले “गुलाबी तू झूठे ही इस नाज़ुक कली को बदनाम कर रही है...देखने मे तो बड़ी भोली भाली लगती है...और तू कह रही है कि चोदि हुई लगती है..” फिर ठाकुर साहेब अपने तननाए लंड को चौकी पर बैठे सहलाते हुए धन्नो की ओर मुँह करके बोले “ धन्नो मैं तेरी बात पर भरोसा कर रहा हूँ लेकिन गुलाबी के कहने पर....इसे तो ठीक से देखना ही होगा...क्योंकि किसी की शक्ल पर शराफ़त थोड़ी लिखी होती है....” ठाकुर साहब की शरारत भरी बात सुनकर सावित्री एकदम से डर गई. तभी छिनार किस्म की गुलाबी ठाकुर साहेब के इस रसीले अंदाज़ को समझते बोली “हां बाबू जी....इस छोकरि की बुर चौड़ी करके देखिए की लंड खाई है या कुँवारी है....”
गुलाबी भी सावित्री को ठाकुर साहेब के सामने फूहड़ बातें करके अश्लीलता का स्वर्गिक आनंद ले रही थी. उसे धन्नो ने पहले ही दिन बताई थी कि सावित्री को अपने रास्ते पर चलाने की कोशिस कर रही है और जल्द ही एक छिनार निकाल देगी. गुलाबी भी एक नई लड़की को छिनार बनाने के इस मौके को खोना नही चाह रही थी. इस काम मे उसे भी असीम सुख मिल रहा था. इसीलिए सावित्री के अंदर की लाज़, शर्म या हया के उपर गुलाबी की अश्लीलता से भरे एक एक शब्द भारी पड़ने लगे थे. वैसे धन्नो ने पहले ही दिन गुलाबी को बता दी थी कि सावित्री अब चालू हो गई है यानी लंड खाने लगी है. लेकिन यह भी बताई थी कि उसके अंदर शर्म लाज़ अभी भी बहुत है. तब गुलाबी ने उससे कही थी कि जब कई मर्दों के नीचे दबेगी तभी किस्म किस्म के लंड खाने की आदत पड़ जाएगी. धन्नो सोच समझ कर ही मौका पाते ही सावित्री को इस निर्जन जगह पर बने इस कोठरी मे लाई थी. उसे यकीन था कि ठाकुर साहेब होंगे, फिर उनके सामने सावित्री के साथ गंदी और अश्लील मज़ाक करने का मज़ा मिल जाएगा. और मौका भी बढ़िया ही था, ठाकुर साहेब भी थे और उनका लंड एकदम लाल हो कर मानो चोद्ने के लिए तैयार था.
वैसे धन्नो के मन मे भी एक डर था कि कहीं सावित्री बिदाक ना जाए, इसी वजह से वो सावित्री को अपने तरफ से फूहड़ बातें ज़्यादे नही कर रही थी. हाँ गुलाबी के फूहड़ हरकत मे आ रही तेज़ी को देख कर अंदर ही अंदर खुश थी. धन्नो एक आत्मविश्वास से भरी पूरी औरत थी, निर्णय लेने मे वो साहस का परिचय ज़रूर देती थी, अपने जीवन मे बहुत उतार चढ़ाव देखी थी, कितनी बदनामियो को झेली थी, लेकिन अपने अंदर मजबूती को कभी कम नही होने दी थी. आज कोठरी के अंदर गुलाबी की अश्लीलता और ठाकुर साहेब के अंदर की आतूरता के बीच शर्म से पानी पानी हो चुकी सहमी से सावित्री को देख कर मानो खुद को प्रफुल्लित कर रही थी, क्योंकि आज सावित्री की लाज़ और शर्म को एक निर्जन स्थान मे एक बार और स्खलित करने का मौका मिल गया था. फिर ठाकुर साहेब के चेहरे पर सावित्री के लिए उठ रहे उतावले पन को भाँपते हुए धन्नो भी गुलाबी के साथ छिनार्पन के इस खेल मे कूद गई और फिर गुलाबी के जबाव मे सावित्री का पक्ष लेते बोली ..
“....अरे क्या देखेगी....मैं कोई झूठ थोड़ी बोलती रे हरजाई....जो देखना है देख ले....और ठाकुर साहेब को भी दीखा दे...” धन्नो की ये बातें सावित्री को किसी तीर की तरह लगी और एकदम से कांप उठी. उसे लगा मानो उसके उपर कोई पहाड़ गिर पड़ा हो. गुलाबी भी चहक कर बोली “तो देर किस बात की बाबू जी भी हैं ...देख कर तुरंत फ़ैसला कर देंगे...खुलवा दे बुर को ...” गुलाबी के मुँह से निकले ये शब्द मानो अश्लीलता के सारी सीमाएँ तोड़ डी. सावित्री खुद की बुर के बारे मे इतने खुले और अश्लील तरीके से हो रही बातों को सुनकर एकदम सहम और लज़ा गई थी. उसे विश्वास नही हो रहा था कि ठाकुर साहेब और गुलाबी के साथ धन्नो भी इतनी गंदी बातें करती हैं. शायद आज छिनार किस्म के दोनो औरतों और चोदु किस्म के पुराने चुड़क्कड़ ठाकुर साहेब, तीनो के साथ आज पहली बार पाला पड़ा था. सावित्री के शरीर मे एक सनसनाहट दौड़ रही थी. उसे लग रहा था कि कहीं सच मे ना दोनो उसे ठाकुर साहेब के सामने नंगी कर दें. क्योंकि दोनो जिस तरीके से गंदी गंदी बातें कर रही थीं उससे यही लग रहा था कि इस निर्जन जगह पर बनी इस कोठरी मे ठाकुर साहेब के सामने सब कुच्छ हो सकता है उसकी चुदाई भी.
गुलाबी भी सावित्री को ठाकुर साहेब के सामने फूहड़ बातें करके अश्लीलता का स्वर्गिक आनंद ले रही थी. उसे धन्नो ने पहले ही दिन बताई थी कि सावित्री को अपने रास्ते पर चलाने की कोशिस कर रही है और जल्द ही एक छिनार निकाल देगी. गुलाबी भी एक नई लड़की को छिनार बनाने के इस मौके को खोना नही चाह रही थी. इस काम मे उसे भी असीम सुख मिल रहा था. इसीलिए सावित्री के अंदर की लाज़, शर्म या हया के उपर गुलाबी की अश्लीलता से भरे एक एक शब्द भारी पड़ने लगे थे. वैसे धन्नो ने पहले ही दिन गुलाबी को बता दी थी कि सावित्री अब चालू हो गई है यानी लंड खाने लगी है. लेकिन यह भी बताई थी कि उसके अंदर शर्म लाज़ अभी भी बहुत है. तब गुलाबी ने उससे कही थी कि जब कई मर्दों के नीचे दबेगी तभी किस्म किस्म के लंड खाने की आदत पड़ जाएगी. धन्नो सोच समझ कर ही मौका पाते ही सावित्री को इस निर्जन जगह पर बने इस कोठरी मे लाई थी. उसे यकीन था कि ठाकुर साहेब होंगे, फिर उनके सामने सावित्री के साथ गंदी और अश्लील मज़ाक करने का मज़ा मिल जाएगा. और मौका भी बढ़िया ही था, ठाकुर साहेब भी थे और उनका लंड एकदम लाल हो कर मानो चोद्ने के लिए तैयार था.
वैसे धन्नो के मन मे भी एक डर था कि कहीं सावित्री बिदाक ना जाए, इसी वजह से वो सावित्री को अपने तरफ से फूहड़ बातें ज़्यादे नही कर रही थी. हाँ गुलाबी के फूहड़ हरकत मे आ रही तेज़ी को देख कर अंदर ही अंदर खुश थी. धन्नो एक आत्मविश्वास से भरी पूरी औरत थी, निर्णय लेने मे वो साहस का परिचय ज़रूर देती थी, अपने जीवन मे बहुत उतार चढ़ाव देखी थी, कितनी बदनामियो को झेली थी, लेकिन अपने अंदर मजबूती को कभी कम नही होने दी थी. आज कोठरी के अंदर गुलाबी की अश्लीलता और ठाकुर साहेब के अंदर की आतूरता के बीच शर्म से पानी पानी हो चुकी सहमी से सावित्री को देख कर मानो खुद को प्रफुल्लित कर रही थी, क्योंकि आज सावित्री की लाज़ और शर्म को एक निर्जन स्थान मे एक बार और स्खलित करने का मौका मिल गया था. फिर ठाकुर साहेब के चेहरे पर सावित्री के लिए उठ रहे उतावले पन को भाँपते हुए धन्नो भी गुलाबी के साथ छिनार्पन के इस खेल मे कूद गई और फिर गुलाबी के जबाव मे सावित्री का पक्ष लेते बोली ..
“....अरे क्या देखेगी....मैं कोई झूठ थोड़ी बोलती रे हरजाई....जो देखना है देख ले....और ठाकुर साहेब को भी दीखा दे...” धन्नो की ये बातें सावित्री को किसी तीर की तरह लगी और एकदम से कांप उठी. उसे लगा मानो उसके उपर कोई पहाड़ गिर पड़ा हो. गुलाबी भी चहक कर बोली “तो देर किस बात की बाबू जी भी हैं ...देख कर तुरंत फ़ैसला कर देंगे...खुलवा दे बुर को ...” गुलाबी के मुँह से निकले ये शब्द मानो अश्लीलता के सारी सीमाएँ तोड़ डी. सावित्री खुद की बुर के बारे मे इतने खुले और अश्लील तरीके से हो रही बातों को सुनकर एकदम सहम और लज़ा गई थी. उसे विश्वास नही हो रहा था कि ठाकुर साहेब और गुलाबी के साथ धन्नो भी इतनी गंदी बातें करती हैं. शायद आज छिनार किस्म के दोनो औरतों और चोदु किस्म के पुराने चुड़क्कड़ ठाकुर साहेब, तीनो के साथ आज पहली बार पाला पड़ा था. सावित्री के शरीर मे एक सनसनाहट दौड़ रही थी. उसे लग रहा था कि कहीं सच मे ना दोनो उसे ठाकुर साहेब के सामने नंगी कर दें. क्योंकि दोनो जिस तरीके से गंदी गंदी बातें कर रही थीं उससे यही लग रहा था कि इस निर्जन जगह पर बनी इस कोठरी मे ठाकुर साहेब के सामने सब कुच्छ हो सकता है उसकी चुदाई भी.
Re: संघर्ष
मस्ती का समा बाँधते देख लोहे की तरह भारी लंड पर हाथ फेरते ठाकुर साहेब बोले “...क्या नाम बताया...स सावित्री...तू इधेर आ ...ज़रा मेरे पास तो आ...” इतना कहने के बाद खुद ही चौकी पर से सावित्री की ओर आने लगी. और कोई कुच्छ सम्झ पाए कि इससे पहले उन्होने सावित्री की एक हाथ की कलाई पकड़ कर चौकी की ओर ले जाने लगे. सावित्री को ऐसा लगा मानो कोई यमदूत उसे पकड़ कर ले जा रहा हो. सावित्री एक पल के लिए ठिठकते हुए रुकना चाही लेकिन उसे लगा मानो ठाकुर साहेब उसे चौकी की ओर खींचते ले जा रहे हों.
सावित्री एक पूरी तरह से घबडा चुकी थी और अपनी पूरी ताक़त से हाथ को छुड़ाने के लिए ठाकुर साहेब के हाथ को अपने दूसरे हाथ से छुड़ाना चाही पर, ठाकुर साहेब का हाथ मानो लोहे का हो, टस से मस नही हुआ. फिर सावित्री एकदम रोने की तरह मुँह बनाती ज़मीन पर बैठ गई और फिर हाथ छुड़ाने लगी. ठाकुर साहेब सावित्री की इस हालत को देख कर बोले ".....आररीई....ये क्या कर रही है रीए......" फिर धन्नो की ओर मुँह घुमा कर कुच्छ पुच्छने की अंदाज़ मे बोले "....किसी मरद से पाला नही पड़ा है क्या री इसका....एकदम अन्छुइ कुँवारी की तरह....चुंहूक उच्छल रही है..." तब धन्नो सावित्री की ओर लपक कर पहुँची और उसके पीछे से दोनो हाथों को पकड़ कर मानो खड़ी करते बोली "......ई ये ...क्या कर रही है......हरजाई....ऐसे पसर क्यों रही है....मानो ठाकुर साहेब जान ले लेंगे तेरी...चल ..ठीक से खड़ी हो ...." फिर धन्नो ने पूरी ताक़त से सावित्री को पीछे से धकेल कर मानो खड़ी कर दे और ठाकुर साहेब की ओर धकेलने लगी. ये सब देख रही गुलाबी भी हंस कर बोली "......बाबू जी .....सांड़ देख कर इसकी गांद फट रही है....हे हे..." फिर धन्नो भी मुस्कुरा कर बोली "....अभी नई नई है रे.....सो डर रही है...." तब गुलाबी बोली "...तेरे साथ रहती है और नई है....ना जाने कितनो ने चोद डाला होगा....अरी अब तो तुझे चोद्ने वाले भी इसी की नई गाड़ी चलाते होंगे....हे हे " फिर दोनो हंस पड़ी. सावित्री दोनो की बातें सुनकर सन्न रह गई. लेकिन दूसरे ही पल ठाकुर साहेब ने सावित्री की एक चुचि को दुपट्टे के नीचे से थाम लिया और मसल्ने लगे. गुलाबी तुरंत बगल से हाथ डाल कर सावित्री के दुपट्टे को सरकाती हुई खींच ली और सावित्री की दोनो बड़ी बड़ी चुचियाँ ठाकुर साहेब के सामने समीज़ मे उभर कर आ गईं. ठाकुर साहेब का एक हाथ सावित्री की एक चुचि को थामे हुए था. और उनका दूसरा हाथ सावित्री की कलाई को पकड़े था. पीछे धन्नो किसी चट्टान की तरह खड़ी थी. तभी ठाकुर साहेब मौका देखकर सावित्री को ज़बरदस्ती गोद मे उठा कर चौकी पर पटक कर खुद ही चौकी पर चढ़ गये. सावित्री हक्का बक्का रह गई और चौकी पर खुद को समहालती कि उसके पहले ठाकुर साहेब उसे चौकी पर चित करते हुए समीज़ के उपर से ही दोनो बड़ी बड़ी गोल चुचिओ को दोनो हाथों मे पकड़ लिए और मीस्ते हुए बोले "अरी बड़ी गजब की चुचियाँ है री...धन्नो ...इसकी तो चुचियाँ मालूम ही नही चल रही थी कि इतनी बड़ी और ठोस हैं...." धन्नो कुच्छ बोलती कि इसके पहले गुलाबी चौकी के बगल मे खड़ी हो कर सावित्री के दोनो हाथों को कस के पकड़ते बोली "...बाबू जी ....समीज़ निकाल के मीसो....तब देखो कि धन्नो इस छिनाल को कहाँ च्छूपा के रखी थी..." सावित्री अपनी दोनो चुचिओ पर ठाकुर साहेब के हाथों की मीसावट से कुच्छ गरम होने लगी थी. गुलाबी की बात सुनकर उसे और डर लगने लगा. तभी गुलाबी आगे बोली "...निकाल दे ...री इसे...ठीक से मीस्वा ले ठाकुर साहेब से..." और दूसरे ही पल गुलाबी सावित्री की समीज़ को उपर की ओर करने लगी. फिर ठाकुर साहेब भी दोनो चुचिओ पर से हाथ हटा लिए और वो भी समीज़ को उपर की ओर खिसकाने लगे. तभी सावित्री ने धन्नो की ओर मुँह करके रुन्वासे आवाज़ मे गिडगिडाते बोली "...च चाची....नही...." और अगले ही पल अपने हाथों से उपर की ओर खिसक चुकी समीज़ को झट से पकड़ ली और नीचे की ओर करने लगी. इतना देख कर गुलाबी सावित्री के दोनो हाथों को उसके सिर की ओर ले जाकर कस के पकड़ ली और बोली "....बाबू जी ...आप निकालो इस रंडी की समीज़....बहुत नाटक कर रही है..." चौकी पर चित लेटी हुई सावित्री के दोनो हाथ उसके सिर की ओर गुलाबी के दोनो हाथों मे जाकड़ जाने के बाद ठाकुर साहेब उसकी समीज़ को तेज़ी से उपर की ओर जैसे ही सरकाए तो सावित्री आँखे मूंद कर कसमासाई लेकिन कमर के हिस्से पर ठाकुर साहेब का कब्जा था सो थोड़ी सी हिल कर रह गई. और दोनो बड़ी बड़ी गोल चुचियाँ ब्रा मे कसी हुई ठाकुर साहेब के सामने एकदम उभर कर आ गयीं. फिर गुलाबी बोली "...लो बाबू जी दबाओ अब ....बड़ी गदराई है...." फिर ठाकुर साहेब ने सावित्री की दोनो चुचिओ को ब्रा के उपर से ही दो चार बार कस कस के मीसा तो सावित्री सिसकार उठी. तब गुलाबी बोली "....बस थोड़ी ही देर मे....चूहने लगेगी...ये ठाकुर साहेब का हाथ है..." फिर बगल मे खड़ी धन्नो की ओर देखते आगे बोली "...बाबू जी चाहें तो चुचि ही मीस मीस कर बुर का पानी निकाल दे ....चोद्ने की ज़रूरत ही ना पड़े और वैसे ही झाड़ दे तुझे...हे हे ..." फिर दोनो हंस पड़ी और अपनी तारीफ सुनकर ठाकुर साहेब भी मुस्कुरा उठे. और ब्रा के उपर से ही दोनो चुचिओ को पूरे हाथ मे लिए मीस रहे थे. सावित्री लाज़ के मारे अपनी आँख मुंदी हुई थी. लेकिन उसे लग रहा था कि चुचिओ के मीसाई से उसकी बुर मे सनसनाहट जैसे लग रही थी. ये सब तब हो रहा था जब एक मर्द के हाथों से चुचिओ की मीसावट से सावित्री का बदन चुदासि होता जा रहा था. फिर ठाकुर साहेब सावित्री के बगल मेलेट गये और उसकी ब्रा के किनारे को उंगलिओ से एक तरफ ज़ोर से सरकाए ही थे कि उसकी एक बड़ी और गोल चुचि निकल कर बाहर आ गयी और दूसरे पल ही ठाकुर साहेब बिना वक़्त गवाएँ अपने हाथों मे ले लिए और उसकी नंगी चुचि को मीसने लगे मानो आटा गुथ रहें हों. सावित्री एक पल के लिए फिर कसमसा कर रह गई. थोड़ी देर तक एक चुचि को मीसने के बाद दूसरी चुचि के ब्रा को उंगली से खिसकाये और वो भी उसी तरह छलक कर बाहर आ गई. फिर उस पर भी ठाकुर साहेब का हाथ तेज़ी से चलने लगा. सावित्री ने एक गहरी सांस ली और गुलाबी देखी कि उसका मुँह खुल गया और मानो मुँह से ही सांस ले रही थी. गुलाबी के साथ ठाकुर साहेब और धन्नो, तीनो ने महसूस किया कि सावित्री अब गरम हो रही है. फिर गुलाबी ने सावित्री के दोनो हाथों को आज़ाद कर दिया. सावित्री अपने हाथों को सीधे ही नंगी हो चुकी दोनो चुचियाँ, जो ठाकुर साहेब मीस रहे थे, उस पर जैसे ही ले गई गुलाबी फिर चिल्लाते बोली ".....आरीए...तू हरजाई क्या नौटंकी कर रही है....मीसने दे बाबू जी को.....चल हाथ हटा ...ठीक से मीस्वा ले बहुत मज़ा आएगा..." इतनी बात पूरी होते ही गुलाबी ने सावित्री के हाथों को उसकी चुचिओ से दूर झटक दिया. फिर सावित्री दुबारा चुचिओ पर हाथ नही ले गयी. अब ठाकुर साहेब आराम से दोनो चुचिओ को मीस रहे थे. कभी घुंडीओ को तो कभी पूरी चुचिओ को रगड़ रगड़ कर मीसना चालू रखा. कुच्छ देर तक मीसाई के बाद ठाकुर साहेब एक हाथ बढ़ा कर उसकी पीठ पर ले गये और उसकी ब्रा के हुक को खोल दिए.
क्रमशः………………………………………..
सावित्री एक पूरी तरह से घबडा चुकी थी और अपनी पूरी ताक़त से हाथ को छुड़ाने के लिए ठाकुर साहेब के हाथ को अपने दूसरे हाथ से छुड़ाना चाही पर, ठाकुर साहेब का हाथ मानो लोहे का हो, टस से मस नही हुआ. फिर सावित्री एकदम रोने की तरह मुँह बनाती ज़मीन पर बैठ गई और फिर हाथ छुड़ाने लगी. ठाकुर साहेब सावित्री की इस हालत को देख कर बोले ".....आररीई....ये क्या कर रही है रीए......" फिर धन्नो की ओर मुँह घुमा कर कुच्छ पुच्छने की अंदाज़ मे बोले "....किसी मरद से पाला नही पड़ा है क्या री इसका....एकदम अन्छुइ कुँवारी की तरह....चुंहूक उच्छल रही है..." तब धन्नो सावित्री की ओर लपक कर पहुँची और उसके पीछे से दोनो हाथों को पकड़ कर मानो खड़ी करते बोली "......ई ये ...क्या कर रही है......हरजाई....ऐसे पसर क्यों रही है....मानो ठाकुर साहेब जान ले लेंगे तेरी...चल ..ठीक से खड़ी हो ...." फिर धन्नो ने पूरी ताक़त से सावित्री को पीछे से धकेल कर मानो खड़ी कर दे और ठाकुर साहेब की ओर धकेलने लगी. ये सब देख रही गुलाबी भी हंस कर बोली "......बाबू जी .....सांड़ देख कर इसकी गांद फट रही है....हे हे..." फिर धन्नो भी मुस्कुरा कर बोली "....अभी नई नई है रे.....सो डर रही है...." तब गुलाबी बोली "...तेरे साथ रहती है और नई है....ना जाने कितनो ने चोद डाला होगा....अरी अब तो तुझे चोद्ने वाले भी इसी की नई गाड़ी चलाते होंगे....हे हे " फिर दोनो हंस पड़ी. सावित्री दोनो की बातें सुनकर सन्न रह गई. लेकिन दूसरे ही पल ठाकुर साहेब ने सावित्री की एक चुचि को दुपट्टे के नीचे से थाम लिया और मसल्ने लगे. गुलाबी तुरंत बगल से हाथ डाल कर सावित्री के दुपट्टे को सरकाती हुई खींच ली और सावित्री की दोनो बड़ी बड़ी चुचियाँ ठाकुर साहेब के सामने समीज़ मे उभर कर आ गईं. ठाकुर साहेब का एक हाथ सावित्री की एक चुचि को थामे हुए था. और उनका दूसरा हाथ सावित्री की कलाई को पकड़े था. पीछे धन्नो किसी चट्टान की तरह खड़ी थी. तभी ठाकुर साहेब मौका देखकर सावित्री को ज़बरदस्ती गोद मे उठा कर चौकी पर पटक कर खुद ही चौकी पर चढ़ गये. सावित्री हक्का बक्का रह गई और चौकी पर खुद को समहालती कि उसके पहले ठाकुर साहेब उसे चौकी पर चित करते हुए समीज़ के उपर से ही दोनो बड़ी बड़ी गोल चुचिओ को दोनो हाथों मे पकड़ लिए और मीस्ते हुए बोले "अरी बड़ी गजब की चुचियाँ है री...धन्नो ...इसकी तो चुचियाँ मालूम ही नही चल रही थी कि इतनी बड़ी और ठोस हैं...." धन्नो कुच्छ बोलती कि इसके पहले गुलाबी चौकी के बगल मे खड़ी हो कर सावित्री के दोनो हाथों को कस के पकड़ते बोली "...बाबू जी ....समीज़ निकाल के मीसो....तब देखो कि धन्नो इस छिनाल को कहाँ च्छूपा के रखी थी..." सावित्री अपनी दोनो चुचिओ पर ठाकुर साहेब के हाथों की मीसावट से कुच्छ गरम होने लगी थी. गुलाबी की बात सुनकर उसे और डर लगने लगा. तभी गुलाबी आगे बोली "...निकाल दे ...री इसे...ठीक से मीस्वा ले ठाकुर साहेब से..." और दूसरे ही पल गुलाबी सावित्री की समीज़ को उपर की ओर करने लगी. फिर ठाकुर साहेब भी दोनो चुचिओ पर से हाथ हटा लिए और वो भी समीज़ को उपर की ओर खिसकाने लगे. तभी सावित्री ने धन्नो की ओर मुँह करके रुन्वासे आवाज़ मे गिडगिडाते बोली "...च चाची....नही...." और अगले ही पल अपने हाथों से उपर की ओर खिसक चुकी समीज़ को झट से पकड़ ली और नीचे की ओर करने लगी. इतना देख कर गुलाबी सावित्री के दोनो हाथों को उसके सिर की ओर ले जाकर कस के पकड़ ली और बोली "....बाबू जी ...आप निकालो इस रंडी की समीज़....बहुत नाटक कर रही है..." चौकी पर चित लेटी हुई सावित्री के दोनो हाथ उसके सिर की ओर गुलाबी के दोनो हाथों मे जाकड़ जाने के बाद ठाकुर साहेब उसकी समीज़ को तेज़ी से उपर की ओर जैसे ही सरकाए तो सावित्री आँखे मूंद कर कसमासाई लेकिन कमर के हिस्से पर ठाकुर साहेब का कब्जा था सो थोड़ी सी हिल कर रह गई. और दोनो बड़ी बड़ी गोल चुचियाँ ब्रा मे कसी हुई ठाकुर साहेब के सामने एकदम उभर कर आ गयीं. फिर गुलाबी बोली "...लो बाबू जी दबाओ अब ....बड़ी गदराई है...." फिर ठाकुर साहेब ने सावित्री की दोनो चुचिओ को ब्रा के उपर से ही दो चार बार कस कस के मीसा तो सावित्री सिसकार उठी. तब गुलाबी बोली "....बस थोड़ी ही देर मे....चूहने लगेगी...ये ठाकुर साहेब का हाथ है..." फिर बगल मे खड़ी धन्नो की ओर देखते आगे बोली "...बाबू जी चाहें तो चुचि ही मीस मीस कर बुर का पानी निकाल दे ....चोद्ने की ज़रूरत ही ना पड़े और वैसे ही झाड़ दे तुझे...हे हे ..." फिर दोनो हंस पड़ी और अपनी तारीफ सुनकर ठाकुर साहेब भी मुस्कुरा उठे. और ब्रा के उपर से ही दोनो चुचिओ को पूरे हाथ मे लिए मीस रहे थे. सावित्री लाज़ के मारे अपनी आँख मुंदी हुई थी. लेकिन उसे लग रहा था कि चुचिओ के मीसाई से उसकी बुर मे सनसनाहट जैसे लग रही थी. ये सब तब हो रहा था जब एक मर्द के हाथों से चुचिओ की मीसावट से सावित्री का बदन चुदासि होता जा रहा था. फिर ठाकुर साहेब सावित्री के बगल मेलेट गये और उसकी ब्रा के किनारे को उंगलिओ से एक तरफ ज़ोर से सरकाए ही थे कि उसकी एक बड़ी और गोल चुचि निकल कर बाहर आ गयी और दूसरे पल ही ठाकुर साहेब बिना वक़्त गवाएँ अपने हाथों मे ले लिए और उसकी नंगी चुचि को मीसने लगे मानो आटा गुथ रहें हों. सावित्री एक पल के लिए फिर कसमसा कर रह गई. थोड़ी देर तक एक चुचि को मीसने के बाद दूसरी चुचि के ब्रा को उंगली से खिसकाये और वो भी उसी तरह छलक कर बाहर आ गई. फिर उस पर भी ठाकुर साहेब का हाथ तेज़ी से चलने लगा. सावित्री ने एक गहरी सांस ली और गुलाबी देखी कि उसका मुँह खुल गया और मानो मुँह से ही सांस ले रही थी. गुलाबी के साथ ठाकुर साहेब और धन्नो, तीनो ने महसूस किया कि सावित्री अब गरम हो रही है. फिर गुलाबी ने सावित्री के दोनो हाथों को आज़ाद कर दिया. सावित्री अपने हाथों को सीधे ही नंगी हो चुकी दोनो चुचियाँ, जो ठाकुर साहेब मीस रहे थे, उस पर जैसे ही ले गई गुलाबी फिर चिल्लाते बोली ".....आरीए...तू हरजाई क्या नौटंकी कर रही है....मीसने दे बाबू जी को.....चल हाथ हटा ...ठीक से मीस्वा ले बहुत मज़ा आएगा..." इतनी बात पूरी होते ही गुलाबी ने सावित्री के हाथों को उसकी चुचिओ से दूर झटक दिया. फिर सावित्री दुबारा चुचिओ पर हाथ नही ले गयी. अब ठाकुर साहेब आराम से दोनो चुचिओ को मीस रहे थे. कभी घुंडीओ को तो कभी पूरी चुचिओ को रगड़ रगड़ कर मीसना चालू रखा. कुच्छ देर तक मीसाई के बाद ठाकुर साहेब एक हाथ बढ़ा कर उसकी पीठ पर ले गये और उसकी ब्रा के हुक को खोल दिए.
क्रमशः………………………………………..