जिस्म की प्यास compleet

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raj..
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Re: जिस्म की प्यास

Unread post by raj.. » 14 Oct 2014 08:13

शन्नो इतना तो जान गयी थी कि ये आदमी मानने वालो में से नहीं है तो उसने बिना बिनति करें गाना

शुरू करा...

"मैं चीज़ बड़ी हू मस्त मस्त...

मैं चीज़ बड़ी हू मस्त मस्त मैं चीज़ बड़ी हू मस्त

नहीं मुझको कोई होश होश उसपर जोबन का जोश जोश

नहीं मेरा कोई दोष दोष मदहोश हू मैं हर वक्त वक्त

मैं चीज़ बड़ी हू मस्त मस्त मैं चीज़ बड़ी हू मस्त"

पूरे गाने के वक़्त हॉलो मॅन तेज़ तेज़ साँसें ले रहा था शायद वो अपने लंड को साथ में सहला

रहा था.... शन्नो को काफ़ी शरमिंदगी उठानी पड़ रही थी... ऐसे गाने उसे सुनने भी पसंद नही थे

मगर वो अब एक अंजान इंसान के लिए वो गा रही थी... शन्नो ने जैसे ही गाना ख़तम करा हॉलो

मॅन ने कहा "हाए मज़ा आ गया... अब उस लंड के पास एक चौकोर सा बटन है उसको उपर की तरफ करदो और

बॉम्ब बंद हो जाएगा"

शन्नो ने घबराते हुए उस चौकोर बटन को उपर की तरफ कर दिया और वो लंड ज़ोर ज़ोर से हिलने (वाइब्रट)

लग गया और धडाम से उसके हाथ से निकल के गिर गया.... हॉलो मॅन उस लंड की हिलने की आवाज़ से ज़ोर ज़ोर

से हँसने लग गया... शन्नो गुस्से में बोली "तुमने मुझे बेवकूफ़ बनाया... " हॉलो मॅन की हस्सी रुकने

का नाम ही नही ले रही थी और शन्नो ने फोन रख दिया.... मगर अभी भी वो लंड ज़मीन पे पड़ा हुआ था और

उसकी हिलने की आवाज़ शन्नो को परेशान कर रही थी... शन्नो ने उसको हाथ में उठाया 2 सेकेंड उसको देखा

और बंद करके डिब्बा समैत अपने कमरे की अलमारी में छुपा के रख दिया....

पूरी रात शन्नो अकेले बिस्तर पर कारबट लेती रही... जब भी वो अपनी आँखें बंद करती तो उसे वोई गंदी

आवाज़ उससे गंदे गंदे सवाल पूच्छने लगती और जब उससे बचने के लिए वो अपनी आँखें खोलती तो उसका

दिमाग़ उस तोहफे के बारे में सोचने लगता जो उस हॉलो मॅन ने उसे दिया था..... वो हिलते हुए (वाइब्रट)

लंड को वो अपने ज़हेन से निकाल नही पा रही थी.... उस रात ललिता भी सो नहीं पाई. उसके दिमाग़ वो सब चलता

रहा जो अभी तक उसने और चंदर ने कर रखा था. मगर वो सब रात के अंधेरे में था और कल

वो दिन के उजाले में होगा.. ललिता बस सुबह के इंतजार में थी.

शन्नो सुबह ललिता को अपने आप तैयार होके देख चौक गयी. शन्नो ने पूछा "अर्रे बेटा आज ये कैसे हो गया"

ललिता ये सुनके हँसने लगी..

ललिता ने अपने एक काली जीन्स और एक लाल टी-शर्ट पहेन रखी थी.... उन कपड़ो में उसका जिस्म काफ़ी ज़्यादा

ढका हुआ था.... अच्छे से बालो में कंघी करके उनको काले रिब्बन में बाँध लिया और कपड़ो के अंदर उसने

अच्छी लड़कियों की तरह सफेद ब्रा और पैंटी पहनी थी. चंदर के घर जाने का प्लान 10 बजे का था तो वो

सबसे पहले अपने घर से निकल कर अपनी दोस्त रिचा के घर गयी जोकि उसके घर से ज़्यादा दूर नहीं था....

जैसे तैसे वो रिचा के घर पहुचि. ललिता ने किसिको भी आज के बारे में नहीं बताया था क्यूंकी

वो नहीं चाहती थी कि किसी तरह भी किसिको पता चलें. रिचा को भी उसने कहीं और जाने का बताया था.

खैर किसी तरह उसने रिचा की बकवास को एक घंटे तक झेला और 9 बजे उसने अपना बस्ता खोला और उसमें से कपड़े निकाले. रिचा उन कपड़ो को देख कर चिढ़ के बोलने लगी "मेडम क्या प्लान है आपका??"

जिस बात का ललिता ने कुच्छ जवाब नही दिया.... ललिता उनको लेके सीधा टाय्लेट चली गयी चेंज करने के लिए.

उसने अपने पहले पहने हुए कपड़े उतार दिए और फिर ब्रा और पैंटी भी उतार दी.. टाय्लेट की सामने वाली

दीवार पर एक बड़ा शीशा था उसमें अपने हसीन जिस्म को देख के वो और मचल रही थी.. वो देख कर सोचने

लगी कि चंदर आज कहाँ कहाँ और किधर किधर अपना हाथ फेरेगा... उसने अपनी चूचियो को हल्का सा

छुआ और वो एक दम से ही सख़्त हो गये.. उसका जिस्म हवस की आग में अभी भी जल रहा था. उसने अपनी एक काली

रंग की ब्रा निकाली जिसपे खूबसूरत डिज़ाइन बना हुआ था और जो कि थोड़ी टाइट भी थी. उसको पहनने के बाद

उसने एक काली रंग का थॉंग निकाला जोकि उसने पहले खरीदा था और अपनी अलमारी में कहीं छुपके रखा था, उसको पहेन कर उसने अपनी नितंब को शीशे में देखा और धीरे से उसपे एक दो चान्टे भी लगाए और

वो आवाज़ सुनके हँसने लगी... वो आवाज़ बाहर बैठी रिचा ने भी सुनी और हंस पड़ी.....

वो इतना ज़रूर जानती थी कि चंदर के आज होश उड़ जाएँगे उसको देख कर...फिर उसने एक काली ड्रेस निकाली कम

बाजू वाली उसको पहेन लिया. वो पोशाक उसकी गोरी मोटी जाँघो को आधा ही ढक पा रही थी. उसका गला भी

गहरा था और किसी वजह से वो ज़्यादा झुकती तो उसका क्लीवेज सॉफ दिखाई पड़ता... फिर काली सॅंडल्ज़ पहनके

वो टाय्लेट से बाहर निकल गयी. वो ड्रेस उसके बदन पर चिपका हुआ था और उसके जिस्म की सारी गोलाई लंबाई

गहराई दिखा रहा था.... ललिता की सहेली उसको देख के दंग रह गयी. ललिता ने अपने बालो को सहलाया और अपना

बस्ता वहीं छोड़ के (ताकि उसको उठाना ना पड़े) अपनी सहेली के घर से चली गयी.

क्रमशः……………………….


raj..
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Re: जिस्म की प्यास

Unread post by raj.. » 15 Oct 2014 16:11

जिस्म की प्यास--14

गतान्क से आगे……………………………………

वो जानके पीछे के रास्ते से निकली ताकि उसको कोई जानने वाला उसको देख ना पाए.. उसे इतना यकीन था

कि 50 में 49 आदमिो/लड़को की नज़र उसके बदन पे घूम रही होगी और जो 1 बचा होगा वो अँधा ही होगा....

वो अपनी जाँघो को एक दम चिपकाके चलने लगी ताकि उसकी काली ड्रेस उपर ना हो जिस वजह उसकी चूत

के होंठ भी आपस में रगड़ने लगे और ललिता थे.... जब वो चल रहीथी तो उस हील्स की

वजह से उसकी गान्ड बाहर की तरफ हो गयी और उसकी पूरी गोलाई पीछे वालो को नज़र आ रही थी...

वो बस या मेट्रो में नहीं जाना चाहती क्यूंकी उसमें ऐसे जाना ख़तरे से खाली नही होता इसलिए उसने ऑटो

ढूँढना शुरू किया. मैन सड़क पे खड़ी हुई वो ऑटो का इंतजार करने लगी.... गाड़ी वाले, बाइक वाले और

यहा तक साइकल वाले भी उसको पीछे मूड मूड के देखे जा रहे थे जिस बात से उसे कोई ग़लत फरक

नही पड़ा उल्टा वो खुश थी कि ये लोग उसकी मदमस्त जवानी के शिकार हो गये है.... फिर उसके सामने ही

2 ऑटो वाले उसके सामने रुक गये. दोनो बड़े उत्सुक होके ललिता से पुछ्ने लगे "कहाँ जाना है आपको?"

ललिता ने दोनो को देखा और बोली "मुझे नोएडा सेक 16 जाना है.. मगर मीटर से चलना पड़ेगा"

दोनो एक दम से राज़ी हो गये (जोकि एक लड़के से करना असंभव कार्य होता)... ललिता अपने सीधे हाथ

वाले ऑटो की तरफ जाके बैठने लगी और जब उसने अपनी सीधे टाँग अंदर की तरफ बढ़ाई तो उसका भी स्ट्रेच

हो गया और उसकी गान्ड की गोलाई और भी ज़्यादा दिखाने लग गया... वो ऑटोवाला अपने आपको खुश

नसीब समझ रहा था कि ये परी उसके ऑटो में बैठ रही है.... ऑटो वाला अपने आप ही बोलना शुरू हो

गया और ललिता से बात करने की कोशिश करता रहा. ललिता ने एक काले रंग के गॉगल्स पहेन लिए और

उसको टरकाने के लिए फोन पे बात करने का नाटक किया.. जब ऑटो एक रेड लाइट पे खड़ा हुआ तो एक गाड़ी

में बैठा हुआ आदमी ललिता की मलाई जैसी टाँगो को घूर्ने लगा.... ललिता को ये नही पता था क्यूंकी वो

पीछे होके बैठी थी मगर ऑटोवाले को सॉफ नज़र आ रहा था.... ऑटो वाले को लगा कि लड़की

अभी बिज़ी है तो उसने अभी अपने शीशे को ठीक करा ताकि वो लड़की को देख पाए.

ललिता अपने उल्टे हाथ से अपने बालो को सहला रही थी जिस वजह उसके स्तन उस टाइट ड्रेस में थोड़ा थोड़ा

हिल रहे थे.... एक नज़र मम्मो पे डालके उसने शीशे नीचे की तरफ कर दिया यानी के ललिता के टाँगो

की तरफ कर दिया. ललिता ने देख लिया था कि उसने शीशा नीचे करा है और अच्छी तरह समझ

भी गयी थी कि थर्कि ऑटोवाले की नज़र कहाँ पे है. ललिता अपनी टाँगें एक के उपर एक करके बैठी हुई थी

मगर थोड़ी मस्ती के लिए उसने अपनी टाँगें थोड़ी सी फेला दी. ऑटो वाले को जब मौका मिलता तो वो उन मोटी

मलाई टाँगो को देखने लगता. ललिता अभी भी फोन पे बात करने का नाटक कर रही थी ताकि ऑटो वाले

को शक़ ना हो. एक बार फिर से रेड लाइट आई तो ऑटोवाला मीटर देखने के बहाने पीछे मुड़ा

और ललिता के जिस्म को ताड़ने लगा. पुर 5 सेक तक उसने मज़ा उठाया और फिर ऑटो चलाने लगा.

फिर ललिता के पास चंदर के नंबर. से मैसेज आया ये जानने के लिए की वो कहाँ पहुचि..

ललिता झुक के मैसेज का रिप्लाइ करने लगी और उसका क्लीवेज दिखाई देने लगा.. ललिता को एक दम से ऑटो वाले

का ध्यान आया मगर वो फिर भी झुकी रही. 5 मिनट में चंदर का घर आने वाला था और ललिता ने

मज़े लेने के लिए ऑटो वाले का दिन बना दिया. उसने अपने उल्टे घुटने पे अपनी सीधी टाँग रखी

मगर इस बारी वो साथ में अपनी सॅंडल ठीक करने लगी.. ऑटो वाले को काफ़ी हद तक सानिया की जांघे

दिख गयी.. इतनी दूधिया जांघें ऑटो वाले ने इतनी पास से कभी नहीं देखी थी.

raj..
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Re: जिस्म की प्यास

Unread post by raj.. » 15 Oct 2014 16:12

चंदर एक कोठी में रहता था.. कोई चौकीदार ना दिखते हुए ललिता ने दरवाज़ा

खोला और अंदर चली गयी.. एक छोटा सा गार्डेन था अंदर और उसके आगे में दरवाज़ा था.. ललिता ने चंदर को मैसेज करके बताया कि वो आगयि है तो एक दम से दरवाज़ा

खुला और ललिता अंदर गयी. तभी ललिता की आँखों पे एक रेशमी रुमाल से पट्टी

बाँध दी.. ललिता ने शर्मा के बोला 'ये क्या कर रहे हो" तो उसने बोला "स्शह कुच्छ ना बोलो"

... ललिता अपनी नंगी बाँहो पे उसके मर्दाने हाथ को महसूस कर रही थी....

सीडी चढ़ते चढ़ते ललिता को एक कमरे में ले गया और उसको बिस्तर पे बिठा दिया.

फिर ललिता ने अपने आँखो से पट्टी हटाई और दंग रह गयी. ललिता के सामने

चंदर और उसके छोटे भाई का दोस्त मयंक खड़ा था. ललिता ने हड़बड़ाते हुए

अपनी ड्रेस को नीचे करा और पूछा "तुम यहाँ कैसे" मयंक ने ललिता से नज़रे

मिलाते हुए कहा "चंदर ने नहीं मैने ही तुमको बुलाया था यहाँ"

"क्या मतलब है तुम्हारा" ललिता ने गुस्से में पूछा

मयंक बोला " जो मैं कहने वाला हूँ वो ध्यान से सुनना बड़ी लंबी और

रंगीन कहानी है.. याद है तुम्हे कि मैं चेतन के घर आया था और

जब हम दोनो मिले थे?? उसी दिन जब मैं टाय्लेट ढूँढने गया था तब वहाँ

मुझे फर्श पे तेरी उतरी हुई एक खुश्बुदार सफेद पैंटी मिली थी.. उसी बात से

मुझे समझ आ गया था कि मेरे दोस्त की बहन कितनी अच्छी लड़की है.."

ललिता हैरान परेशान होके ये सब सुनती रही.. " मन था तुझे उसी वक़्त चोद्ने

का मगर मैने अपने आप को रोका ताकि मैं सोच समझ के कदम उठाउ....

मुझे पूरी तरह बात तब समझ आई जब हम डार्क रूम खेल रहे थे..

याद है कि तू बिस्तर के पीछे छुपी हुई थी अपनी गान्ड उपर करके और मैने

हिम्मत दिखाते हुए तेरी गुलाबी सफेद फ्रोक में अपना हाथ डाल दिया था

और तेरी मदमस्त चूत को रगरहने लगा था.. उस वक़्त कैसे जल बिन मछली की

तरह तड़प रही थी तू.." ललिता के गोरे बदन को घूरते घूरते उसकी

साँसें तेज़ होने लग गयी और ललिता अभी भी थोड़े झटके में थी....

मयंक बोला "मुझे लगा तुझे पता है कि ये मैं यानी के मयंक कर रहा है मगर

जब तू वहाँ से भाग गयी तो मैं डर गया था.... असली राज़ तब सामने आया

जब मेरी ये आँखें फॅट गयी तुझे चंदर को तुझे चूमते हुए देख के मैं

समझ गया कि तेरा उसका चक्कर चल रहा है.. साले चंदर को तो लॉटरी लग गयी थी...." कुच्छ देर रुकने के बाद वो फिर बोला " मुझे यकीन नही हो रहा था कि

वो साला भी इतनी आगे जा सकता है... खैर सबसे हसीन बात थी जब मैने तुझे

सबके लिए कोल्ड ड्रिंक डालते हुए देख लिया था.. तूने सबके ग्लास में नींद की गोली

डाली थी सिवाए अपने आशिक़ चंदर के.. मगर मैं भी कितना बड़ा हरामी हू...

मैने अपनी कोक चंदर को ज़बरदस्ती देदि और वो बिचारे ने पी भी ली...

फिर वो रात आई जब तू बिस्तर पे पड़े चंदर का इंतजार कर रही थी...

उस रात तेरे कमरे में मैं आया था." ये सुनके ललिता के होश उड़ गये..

"उस रात को तो हम दोनो ही नहीं भूल सकते.. हैईना?? क्या राप्चन्दुस रात थी वो

मज़े आ गये थे.. मैने पूरी कोशिश करी थी कि तुझे पता ना चले कि मैं

मयंक हूँ चंदर नहीं और उसमें मैं सफल भी हो गया और तू भी कैसी कुतिया

की तरह तड़प रही थी चुद्ने के लिए.. उस रात के बाद हर बारी मुझे तेरे सपने आने लगे.. मैं किसी तरह तुझसे मिलना चाहता था मगर मुझे रास्ता नहीं मिल रहा था..

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