खानदानी चुदाई का सिलसिला--7
गतान्क से आगे..............
दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा इस कहानी सातवाँ पार्ट लेकर हाजिर हूँ
कम्मो ने रमेश को रोकने के लिए उसे खाना खा के जाने को कहा. रमेश ने मना किया तो कम्मो बोली कि तेरे चाचा के लिए भी बनाया था तो अब जब वो नही खा रहे तो खाना वेस्ट होगा. तू खा के जा. रमेश मान गया. कम्मो को मन में शरारत सूझ रही थी. उसने सलवार कमीज़ पहनी हुई थी. खाना लगाने से पहले वो बाथरूम में अपनी ब्रा उतार के आ गई. रमेश वरामदे में चारपाई पे बैठा था. कम्मो ने उसके सामने एक छ्होटा टेबल लगा दिया और खाना परोसने लगी. साथ ही साथ वो रमेश को छेड़ भी रही थी.
'' क्यों रे रमेश अब तू इतना बड़ा हो गया कि तेरा ब्याह हो रहा है....?''
'' देखो वक़्त कैसे गुज़रता है..कल तक चड्डी बनियान में घूमता फिरता था और आज...''
'' तुझे पता भी है कि शादी का मतलब क्या होता है...? किसी ने बताया तुझे कि नही..? अर्रे बोलता क्यूँ नही घर में लुगाई आने वाली है और तुझे उसको खुश रखना होगा ..सो किसी से कुच्छ सीखा कि नही कि लुगाई को खुश कैसे रखते हैं..??''
कम्मो अपनी बड़ी बड़ी चूचिओ को अच्छे से झुक झुक के दिखा रही थी और खाना लगा रही थी. रमेश उससे सिर्फ़ 2 फुट दूर था. मस्ती लेते हुए कम्मो के चूचक भी सख़्त हो गए थे. चूत में अजीब सी बेचैनी होने लगी थी. रमेश चाची के चूचकों को देख पा रहा था. उसे भी अजीब सा लग रहा था. उसके बड़े भाई ने उसे कुच्छ बातें बताई थी सुहागरात के बारे में. पर इतना खुल के कुच्छ ना बोला था. चाची के सवालों से उसकी जवानी देख के रमेश के कछे में भी कुच्छ हो रहा था. जब अपने खेतों में रमेश किसी सांड़ को किसी गाए पे चढ़ते हुए देखता था तो उसे जो मन करता था वैसा ही उसका मॅन अब भी कर रहा था.
'' जीि चाची बड़े भैया ने बताया था ..कि जब बीवी पहली बार घर आएगी तो क्या करना है..'' रमेश की नज़रे कम्मो की छाती पे गढ़ी थी पर वो ज़ियादा कुच्छ बोल नही पा रहा था.
'' क्या बताया रे तुझे उसने..मैं भी सुनू. '' कम्मो ने रमेश के लए खाना परोस दिया और अपनी थाली लेके वहीं ज़मीन पे बैठ गई. उसे अपने मादक मम्मे अच्छे से दिखाने थे इस नए नए जवान हुए लौंदे को.
'' जी वो उन्होने बताया कि कैसे पहली बार जब वो साथ होगी तो क्या क्या करना है मुझे. कैसे उससे बात करनी है और कैसे उसे आराम से अपने से गले लगाना है..और फिर उन्होने कहा कि उसके बाद सब अपने आप हो जाएगा.'' रमेश खाना खाते हुए बोला.
'' अच्छाअ. तेरे बड़े भाई ने ये बताया कि आगे क्या होगा अपने आप ?'' कम्मो मुस्कुरा रही थी. उससे पता था कि इस सवाल के जवाब के हिसाब से उसको मौका मिल सकता है.
'' नही चाची उन्होने कहा कि सब ठीक होगा और मैं कोई ज़बरदस्ती ना करूँ. सब अपने आप हो जाएगा. मुझे कुच्छ करने की ज़रूरत नही पड़ेगी.'' रमेश बोला.
'' ह्म्म्म्म लगता है तेरा भाई भी तेरे जैसा बुध्हु है...पता नही अपनी लुगाई को कैसे खुश रखता होगा ?'' कम्मो मन ही मन खुश थी कि अब उसके हाथ एक सुनेहरी मौका है.
खाना ख़तम हुआ तो कम्मो ने बर्तन धो के किचन में रख दिए. बर्तन धोते हुए उसने जान भूज के अपने सूट को आगे से थोड़ा गीला कर लिया. उसके सूट का लेफ्ट हिस्सा भीगा हुआ था और उसके चूचक सॉफ दिख रहे थे. काली घुंडी क्रीम सूट के कपड़े से चिपकी हुई थी और खड़ी थी. कम्मो चारपाई पे आके बैठ गई और रमेश से सिर्फ़ 1 फुट की दूरी पे थी. घर की बत्तियाँ बंद कर दी थी और बाहर वरामदे में दोनो चारपाई पे बैठे थे. तकरीबन आधा चाँद निकला हुआ था.
'' चाची अब मैं घर जाता हूँ.. मा इंतेज़ार करेगी खाने पे.'' रमेश उठने को हुआ.
'' अर्रे बैठ ना .. मुझे पता है कि तू कहाँ जाएगा इस समय. वो तेरे बेकार के दोस्तों के साथ बैठ के गप्पें हाँकेगा. अभी मुझे एक बात पुच्छनी है तुझसे ? वो बता दे और फिर चले जइयो. '' कम्मो ने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे बिठा लिया. हाथ पकड़ते ही कम्मो को कुच्छ होने लगा. रमेश का हाथ बहुत बड़ा और कठोर था.
'' ये बता कि तेरे भाई ने तुझे कहा कि तुझे कुच्छ करने की ज़रूरत नही होगी.. तो क्या तुझे लगता है कि सब कुच्छ तेरी लुगाई करेगी ? तू कुच्छ नही करेगा ? '' कम्मो उसके हाथ को सहला रही थी.
'' चाची मुझे लगता है कि वो ही करेगी. भैया ने कहा कि मैं ना करूँ तो इसका मतल्ब तो लुगाई ही करेगी..अब क्या करेगी ये नही पता.'' रमेश के कछे में तनाव बन रहा था.
'' अच्छा चल ठीक है अगर ऐसा है तो एक काम करते हैं. तू मुझे अपनी लुगाई समझ के अपनी छाती से लगा और फिर देखते हैं कि बिना तेरे कुच्छ किए क्या होता है. '' कम्मो थोड़ा खिसक के रमेश से सॅट के बैठ गई. उसे थोड़ा मुड़ना पड़ा रमेश की तरफ जिससे उसके सूट का भीगा हुआ हिस्सा रमेश के दाहिने हाथ की साइड पे था.
'' चाची आप मेरी लुगाई थोड़े हो..आप तो चाची हो और आपको कैसे लगाऊ अपनी छाती से. क्या चाची आप मुझे शर्मिंदा ना करो...''
''' अर्रे मेरे भोले भतीजे अगर मैने तुझे कुच्छ सीखा दिया तो इसमे ग़लत क्या है ...चाची हूँ मुँह बोली कोई सग़ी थोड़े ही हूँ. चल अब नखरा छोड़ और ले मुझे अपनी बाहों में. फिर देखते हैं क्या होता है...'' कम्मो मुस्कुराते हुए बोली. उसका हाथ बड़ी नर्मी से रमेश के बालों में फिर रहा था.
रमेश ने सिर झुकाए हुए कम्मो की चूचिओ को देखा और फिर उसे धीरे से कंधों से पकड़ के अपनी छाती से लगा लिया. कम्मो उस पोज़िशन में जितना अपने को रमेश से चिपका सकती थी चिपकाने लगी. उसने रमेश की पीठ पर अपनी बाहें कस दी और रमेश ने उसकी कमर के आसपास उसे पकड़ा हुआ था.
खानदानी चुदाई का सिलसिला
Re: खानदानी चुदाई का सिलसिला
दोनो बदन में एक अजीब सी गर्मी हो चुकी थी. रमेश को समझ नही आ रहा था कि वो आगे क्या करे. उसके हाथ कम्मो की कमर पे थे और उसे अपनी बालों वाली छाती में कम्मो के चूचक चुभ रहे थे. उसका मन कर रहा था कि वो कम्मो को ज़ोर से जाकड़ ले और उसे अपने शरीर से चिपका ले. पर उसे अपने भाई की कही बात याद आ रही थी कि उसे कुच्छ करने की ज़रूरत नही तो वो थोड़ा कंट्रोल करता रहा. कम्मो ने भी कुच्छ नही किया बस उससे चिपकी रही और मन ही मन उसकी उलझन पे मुस्कुराती रही. इसी पोज़ में करीब आधा मिनिट हो गया दोनो को.
रमेश का लंड अब कछे में ऐंठ रहा था. उसका मंन कर रहा था कि अपने लंड को हाथ में ले के मुठियाए. गाए/सांड़ को देख के वो अक्सर मुठियाता था. पर चाची के सामने सब कैसे करूँगा. यहाँ से निकलूं तो घर जाके करूँगा. उसे क्या पता था कि आज उसकी लॉटरी लगेगी. कम्मो ने जान भूज के कुच्छ नही किया और कुच्छ सेकेंड के बाद उससे अलग हो गई.
'' अब बोल तू ..क्या हुआ ..क्या मैने कुच्छ किया. नही ना ..अर्रे रमेश तेरा भाई बहुत निक्कमा है जो तुझे ठीक से समझाया नही. तुझे लगता है कि मैं ये करके खुश हो गई ? तेरी लुगाई इससे खुश हो जाएगी ? बोल...'' कम्मो ने रमेश के गालों पे एक हल्की सी चपत दी.
'' नही चाची मुझे नही लगता कि वो इससे खुश होगी.. अब भैया ने जितना कहा मैने आपके साथ किया. आगे मुझे नही आता...आप ही बताओ क्या क्या करना होगा मुझे.'' रमेश परेशान था और उसकी परेशानी सॉफ झलक रही थी. उसका लंड उसे दिक्कत दे रहा था और कछे में तंबू बन चुका था.
'' चल आजा मैं तुझे सिखाती हूँ सब कि एक औरत को क्या क्या चाहिए. आजा मेरे भतीजे आज मैं तेरी लुगाई बन जाती हूँ. '' ये कहते हुए कम्मो उठी और उसका हाथ पकड़ के अपने कमरे में ले गई.
कमरे में डबल बेड पे पहुँच के कम्मो ने उसे बिठा दिया. '' अब जो जो मैं कहूँगी तू करता जा और सीखता रह.'' कहते हुए कम्मो एक चुन्नी ले आई, दरवाज़ा बंद की और बत्ती जला दी और अपने सिर पे लेके एक नई दुल्हन की तरह बेड पे जाके बैठ गई. दोनो हाथ उसके मुड़े हुए घुटनो पे थे. उसने अपनी चुन्नी से घूँघट बना के अपना चेहरा च्छूपा लिया.
'' चल अब मेरे नज़दीक आ और मेरा घूघत उठा. और फिर मेरे चेहरे को अपने हाथों में पकड़.''
'' अब मेरे माथे को चूम और मेरी बंद आँखों को... अब मेरे गालों को सहला और मेरी चुन्नी मेरे शरीर से अलग कर दे.''
'' अब मेरी ठोडी को पकड़ के मेरे चेहरे को उपर उठा और उसे देख और फिर मेरे होठों पे अपने होंठ लगा.''
रमेश के होंठ अपने होठों पे लगते ही कम्मो के शरीर में आग लग गई. रमेश भी पागल हो गया और आव ना देखा ताव उसे बेतहाशा चूमने लगा. कम्मो को अब नई दुल्हन बन के नही रहना था. उसने लाज शरम सब छोड़ दी और रमेश को अपने गले से लगा दिया. रमेश उसकी गर्दन गाल और चेहरे को चूमे जा रहा था.
दोनो अब गरम चुके थे. कम्मो बिस्तर पे लेट गई और रमेश को अपने उपर खींच लिया. फिर रमेश का चेहरा पकड़ के उसके होंठो को चूसने लगी और अपनी जीभ उसके मुँह में घुसा दी. कम्मो की जीब मुँह में घुसते ही रमेश की लार टपकने लगी और उसका थूक बाहर निकल आया. कम्मो के होंठ और आस पास का हिस्सा उसके थूक से भर गया.
रमेश के हाथ अब कम्मो की चूचियो पे थे. वो उन्हे ज़ोर ज़ोर से दबा रहा था. कम्मो ने उसे एक धक्का दिया और उसे बिस्तेर पे चित कर दिया. कम्मो उसकी कमर के आस पास पैर करके बैठ गई और अपनी कमीज़ उतार दी. अपने मोटे गथीले मम्मो को पकड़ के ज़ोर से दबाया और फिर अपने निपल खींच के लंबे किए. रमेश का हाथ उसके पेट पे चल रहा था. कम्मो ने आगे झुक के रमेश के मुँह से मुँह लगाया और उसके मुँह में थूका. फिर उसके मुँह में अपनी चूची लगा दी. रमेश हवस में पागल हो चुका था. उसे चूची का स्वाद बहुत मज़ेदार लगा और बेसब्र होके उसे चूसने लगा. उसने दोनो मम्मो को साइड से पकड़ लिया और बीच की तरफ भींचने लगा. दोनो निपल उसके मुँह के सामने थे और उसने एक साथ दोनो निपल को मुँह में भर लिया. कम्मो की सिसकी निकल गई. आज तक दोनो निपल एक साथ किसी ने नही चूस थे. उसकी चूत पनिया गई थी.
कम्मो ने और देर नही की और रमेश को नंगा करने लगी. रमेश का पाजामा उतरते ही उसने उसने लोडा मुँह में भर लिया. रमेश का लंड करीब 7 - 8 इंच का था. शुपाडे पे प्री कम लगा था. लंड की चॅम्डी ने सुपादे को आधा ढक्का हुआ था. हाथ से मुठियाते हुए कम्मो ने लंड को अपनी जीभ से चॅटा और फिर जीभ से लंड को मारने लगी. रमेश के मुँह से सिसकियाँ निकली और उसने गांद उठा के अपना लंड कम्मो के मुँह में धकेला. कम्मो गुप्प से लंड को 4 - 5 इंच अपने मुँह में ले गई और उसपे थूक उदेलने लगी. उसके हाथ रमेश की जांघों और टट्टों से खेल रहे थे. रमेश अपने बाल सॉफ नही करता था. उसके लंड और टट्टों से पसीने की हल्की स्मेल आ रही थी. कम्मो ने बहुत दिन के बाद एक अच्छा तगड़ा मूसल मुँह में लिया था. उस मादक गंध से वो पागल हुई जा रही थी और उसके सब्र के बाँध टूट रहे थे.
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कम्मो ने अपनी सलवार खोली और अपनी सॉफ चूत को लंड के सुपादे से भिड़ा दिया और धीरे धीरे उसपे बैठने लगी. कम्मो की चूत में इतना रस था कि लंड एक ही झटके में खिसकता हुआ उसकी बच्चेदानी तक चला गया. एक पल के लिए जैसे सब कुच्छ थम गया दोनो के लिए. कम्मो की आँखें बंद हो गई और उसका मुँह खुल गया. उसमे से एक हल्की सी सिसकी निकली और उसने अपने चेहरा छत की तरफ कर दिया. रमेश ने उसका चेहरा देखा और उसके मम्मे दबाने लगा. रमेश को अंदाज़ा नही था कि उसका लंड इतना सुख दे सकता है किसी औरत को. उसके टटटे कम्मो के रस से भीगे हुए थे. उसने अपने गांद मटकानी शुरू की तो जैसे कम्मो को होश आ गया.
कम्मो ने आगे झुक के रमेश के सिर के पिछे अपने दोनो हाथ रखे और उसे थोड़ा उठा के अपने चूचे चुसवाने लगी. साथ ही साथ उसने अपनी गांद को गोल गोल घुमाना शुरू कर दिया. देखते ही देखते उसके मम्मो के लाल लाल निशान बनने लगे और उसके चूतड़ अपने आप उपर नीचे होने लगे. करीब आधा लंड उसकी चूत में होता तो वो खट्ट से नीचे बैठ जाती. आज उसे अपनी चूत की सिकाई करनी थी. मम्मो को चटवा के उसने रमेश को अलग किया और पिछे की तरफ होके वो रमेश के लंड पे कूदियाँ मारने लगी. बुरी तरह से पनियाई चूत और एक नौ सीखिया लोडा आख़िर ज़ियादा देर नही रुक पाए और दोनो 1 ही मिनट में झर गए. सिर्फ़ 5 - 10 मीं में ही चुदाई का पहला दौर ख़तम हो चुका था.
पर जैसे ही कम्मो को होश आया उसने झट से अपनी चूत लंड से हटाई और आगे बढ़ के रमेश के मुँह पे बैठ गई. उसे रमेश से एक बार और चुद्ने का मन था और उसे रमेश को दोबारा तैयार करना था. रमेश उसकी सॉफ चिकनी चूत में अपना वीर्य टपकता देख के थोड़ा झिझका पर कम्मो कहाँ रुकने वाली थी. उसने अपनी चूत रमेश की नाक और होठों पे रगरनी शुरू कर दी. कम्मो का रस और रमेश का वीर्य का मिश्रण रमेश की साँसों में समा गया. बरबस उसकी जीभ बाहर लपलापाई और कम्मो की चूत में घुस गई. 2 - 3 बार में ही रमेश को स्वाद ठहेर गया ओए उसने कम्मो की गांद को भींचते हुए अपने मुँह से चूत को सटा लिया. चाहे इंसान कितना भी भोला हो चूत की खुश्बू उसे सीखा ही देती है सब...आज पहली बार कम्मो अपनी वीर्य भरी चूत को किसी से चटवा रही थी. कम्मो की जांघें काँप रही थी, उसकी आँखों में वहशिपन था. उसने हाथ पिछे बढ़ा के रमेश के लंड को टटोला और मुठियाना शुरू किया. रमेश का लंड भी गजब हालत में था और सटाक से तन गया. अब कम्मो आराम से धक्के लगवा के चुदवाना चाहती थी.
कम्मो ने अपनी चूत रमेश के मुँह से हटाई तो रमेश चिहुनक उठा. जैसे के बच्चे के मुँह से दूध की बॉटल निकाल ली हो. कम्मो ने मुस्कुराते हुए अपनी पीठ के बल लेट के उसे अपनी तरफ खींचा. रमेश का लोडा कम्मो की जाँघ से रगड़ खा रहा था. उसका हाथ चूत के उपर के मांसल हिस्से को दबोचे हुए था. कम्मो ने उसका चेहरा पकड़ के उसको चूमा और जीभ से जीभ भिड़ाई. दोनो की जीभें अपने अपने मुँह से बाहर निकल के लपलपाने लगी. छाती से छाती मिली हुई थी. निपल कड़े हुए पड़े थे. गांदें गोल गोल घूम रही थी. बिस्तर पे जो चुदाई का आलम था वो देखे बनता था.
जैसे चूत चाटना रमेश ने अपने आप सीख लिया था वैसे ही उसने कम्मो की जांघों के बीच अपनी जगह बनाई और लोडा चूत की दरार पे टीकाया. कम्मो ने हाथ बढ़ाकर लोडा पकड़ा और उसे छेद पे लगा के खींचा. लंड आधा अंदर गया तो कम्मो ने हाथ खींच लिया और दोनो हाथों से रमेश की गांद भर ली. रमेश के दोनो हाथ उसकी पीठ पे लगे थे. रमेश की जीभ उसके मुँह को चाट रही थी.
'' क्यों रे अब समझा आया कि औरत को खुश कैसे करते हैं..'' कम्मो ने गांद अड्जस्ट करते हुए पुछा. लंड पूरा जड़ तक घुसा हुआ था.
'' हां चाची अब समझ आ गया कि भैया कितना बड़ा चूतिया है जो मुझे कुच्छ भी नही समझाया. आप ना होती तो मैं तो लुगाई को खुश नही कर पाता और पता नही वो कल को किसी और का डंडा अंदर ले लेती. आपका बहुत बहुत शुक्रिया चाची'' रमेश गांद मतकाते हुए बोला.
'' चाची के चोदु भतीजे ये जो तेरा लंड है इसने आज मेरी चूत की अच्छी बजाई है..तेरा धन्यवाद तो वहीं पूरा हो गया. अब तो मैं तुझे धन्यवाद दूँगी गांद उच्छाल के. देख इस बार तस्सल्ली से चोद और सीख और मेरे चेहरे को देखते रहना कि कब कब कैसे तेरे मूसल के धक्कों से मुझे आनंद मिलता है. ये सब तेरी लुगाई को भी मिलेगा. '' कम्मो मुस्कुरा रही थी और अपनी चूचिओ को रमेश की छाती से रगड़ रही थी.
'' ठीक है चाची जैसा तुम बोलो मैं तो धन्य हो गया.'' रमेश ने सटा सॅट लंड अंदर बाहर किया.
तो दोस्तो कैसा लगा ये पार्ट ज़रूर बताए आपका दोस्त राज शर्मा
क्रमशः,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,