खानदानी चुदाई का सिलसिला
Re: खानदानी चुदाई का सिलसिला
Us raat party ke baad Sakhi apne kamre men chali gai. Jaisa ki mujhe, Kanchan aur tumhare Phoophaa ko umeed thi Sakhi ki Maa hamare sath baith ke gappen maarne lagi. Ham sab Kanchan ke kamre men the aur hamen pata tha ki Sakhi kahan se hamen dekhegi. Tab tumhare Phoophaa ke ishare pe main aur Kanchan kitchen men chale gae. Idhar tumhare Phoopha ne apna rasiya roop dikhaate hue apni baaton se Sakhi ki Maa ki bahut garam kar dia. Unhone Sakhi ki Maa ko apni baaton men itna romanchit kar dia ki woh bathroom men ghus gai. Shayad apni choot ki khujli ko shaant karne ke lie. Uske andar jaate hi Phoophaa ne mujhe aur kanchan ko bula lia aur Kanchan ko apne paas bitha ke usse maze lene lage. Meri sagi behen apne pati ke sath mere saamne pehli baar sex ke mood men aa gai. Par abhi Sakhi ko Maa ko bhi iss khel men shaamil karna baaki tha. So usne thori unchi awaz men tumhare Phoophaa ko mana kia sex ke lie.
Mere bhai ke saamne tum mere sath ye sab mat karo..aisa usne oonchi awaaz men kaha.
To kya hua woh bhi to mard hai ..aur phir tera chhota bhai hai..usse kya sharam..kyon saale sahib apni behen ko apne jeeja ke sath dekhte hue bura to nahi lag raha..?? main to kehta hoon Kanchan ki aaj ki raat tum mere aur Rajpal ke sath mazae lo ek sath.. tumhare Phoophaa bhi oonchi awaaz men bole. Ye sab baate yakeenan Sakhi ki Maa ke kaano tak jaa rahi thi.
Kya baat karte ho ji..mere chhote bhai se mra kaam karwaoge...sharam karo..use kya aisa samjha hua hai..woh nahi karega agar main chahoon bhi to..koi bhai aise hi apni behen ke sath thore hi karega....sharam karo..ye kehte hue Kanchan tumhare Phoophaa se alag hoke mere pass aa gai.
Ab uss samay main kahan pichhe hatne wala tha aur maine bhi keh dia ki Kanchan didi tum bhai behen ki baat mat karo abhi. Sirf marad aur aurat ki baat karo. Main bhi marad hoon aur kaafi din se bur ka bhookha hoon. Agar tumhari nahi milegi to apni saheli ki hi dilwa do.
Bas mera ye kehna tha aur Kanchan ne oonche swar men kaha ..ja ja bada aaya marad ka bachha... arre meri saheli ko kya samjha hai tune woh koi aisi waisi nahi hai. Usne apne pati ke baad aaj tak kisi mard ko dekha nahi hai. Khabardaar jo tune uski aur aise dekha bhi to. Agar itni hi hawas hai to tu mere sath kar le ..meri saheli bhi hai woh aur meri mehmaan bhi aur mehmaan ki izzat pe aanch nahi aane doongi...
Bas maine usi samay keh dia ki Didi tum apni saheli ki izzat bachao aur main tumhari izzat loot leta haoon aur kanchan ko apni baahon men le lia. 2 - 3 minute men hi main aur woh ek dam nange ho gae aur tumhare Phoophaa ji hamen dekhte rahe. Tab Kanchan ne unhe bhi apne paas bula lia aur mere lund ko choot pe ghiste hue unka lund choosne lagi.
Shayad ye sab awaazen Sakhi ki Maa tak pahunch gai thi aur usse bathroom men ruka nahi gaya. Usne bathroom ka darwaza khola to bister pe ho rahe kaand ko dekh ke dang rah gai. Kanchan mere upar mere lund pe nangi kood rahi thi aur tumhare Phoophaa ji ka mota lund uske muh men tha. Phoophaa ji bistar pe khade the aur unhone kapde bhi poore utaare nahi the. Kanchan unki aadhi nangi gaand ko pakde hue unka lund apne muh men andar tak bhar rahi thi. Kanchan ki peeth meri taraf thi aur main Sakhi ki Maa ko dekh raha tha. Uske dono hath apne muh pe the aur shareer pe gown tha. Uske niche shayad woh bhi nangi thi. Baal khule hue the aur kamar tak latke hue the. Kasam se bahut sunder lag rahi thi iski Maa.
Isse pehle ki woh kuchch kehti main hi bol pada. Didi dekh aa gai teri saheli tujhe apne bhai aur pati se chudta dekhne...isi ke lie tune apni izzat mujhe di naa aaj pehli baar..dekh saali kaise tere pati ke lund ko ghoor rahi hai...kutiya ki laar tapak rahi hai..Didi tu apni choot to sikwaa rahi hai iski choot ko bhi dhanya karwa de... mera nahi to Jijaji ka hi dalwa de iski choot men.
Didi ab tak garma chuki thi aur boli..AHAAAAANNN meri balaa se jisa marzi le ye...saali ki laar to tapkegi naaa ek behenchod ko dekh ke aur upar se ye mere haraami pati ka mota kaala loda bhi to phudak raha hai...kyonji loge iski ...daaloge iski sikudi hui choot men apna moosal...bol riii meri banno legi mere pati ka andar.....uuuhhhhh maaaa....bol nahi to mujhe hi lena padega ise bhiii......
Tab jaise Sakhi ki Maa ke andar ki soi hui sherni jaag gai. Woh ek dam se boli..haaan chhinaal iska bhi loongi aur tere is behenchod ka bhi...saali randi shaam se puchhh rahi hoon ki ye chodu akele kaise guzara karta hai ...saala muthiya muthiya ke thakta nahi hai kyaa aur tu haramzaadi bata hi nahi rahi thi...ab samjha men aaya ki apni choot pilwaati hai isse aur iske lode ko sukh deti hai...saali ab na rehne ki main pichhe aur pehle tere saamne hi gapaa gap tere pati ko khaungi aur phir tere bhai ko.
Re: खानदानी चुदाई का सिलसिला
खानदानी चुदाई का सिलसिला--9
गतान्क से आगे..............
उसके बाद हम चारों के बीच जो घमासान चला वो याद रखने वाला था. सखी की मा ने मेरी और तुम्हारे फूफा की इज़्ज़त लूट ली उस रात..साली ने कम से कम भी 3 - 3 बार हमें चोदा. एक समय तो मैं और तुम्हारे फूफा दोनो इसकी मा की चूत और गांद में घुसे पड़े थे और तुम्हारी कंचन बुआ अपनी चूत सटाये हुए थी उसके मूह से. सच में बड़ा मुश्किल टेस्ट था हमारे लिए. पर बड़ा मज़ा भी आया. सुबह पूरे बेड पे जगह जगह वीर्य ही वीर्य था. इन दोनो रॅंडियो की चूते सूजी हुई थी और हमारे लंड छिले पड़े थे. पर जो इंपॉर्टेंट चीज़ थी वो था इस एग्ज़ॅम का रिज़ल्ट. जब हम लोग सुबह 6 बजे उठे और तैयार हुए तो उस समय सखी सोई पड़ी थी. हमारी चुदाई रात 3 बजे तक चली थी. सखी की मा को हमने रात में ही सखी के रिश्ते के लिए मना लिया था. उसे ये कहा कि अगर ये रिश्ता हो जाता है तो बिना झिझक के उसके और हम तीनो के सेक्स संबंध बने रह सकते हैं. इसी बात पे वो छिनाल खुशी खुशी तैयार भी हो गई. तब हमने उससे अगले ही दिन सगाई की तैयारी के लिए कहा और सुबह जल्दी उठा के घर जाने को कहा.
जान भूज के कंचन ने सखी के कमरे का दरवाज़ा खटखटाया. जब वो नही उठी तो कंचन ने उसको उठाने के बहाने से खिड़की से जाके उसको आवाज़ लगाई. वहाँ से कमरे का नज़ारा देख के कंचन को आइडिया हो गया कि रात में खीरे से सखी ने अपनी प्यास भुज़ाई थी. नंगी हालत में ये खीरे को चूत के नज़दीक रख के सोई पड़ी थी. जब फाइनली ये कमरे से बाहर निकली तो 7 बज चुके थे और मैं, तुम्हारे फूफा और सखी की मा सगाई की तैयारी के लिए निकल गए थे. कंचन ने बाद में हमें बताया कि सखी की आँखें सुर्ख लाल थी जैसे वो रात को बहुत लेट सोई. इसने बहाना बनाया कि रात को ये लेट तक मूवी देख रही थी. तब कंचन ने इससे पुछा कि ऐसी कौन सी मूवी देखी जो खीरे की ज़रूरत पड़ी. तब ये झेंप गई. उस समय कंचन को यकीन हो गया कि इसने रात भर हमारी चुदाई देखी है. तब कंचन ने इससे बताया कि अब तेरे खीरे वाले दिन गए और असली डंडे की पिटाई के लिए तैयार हो जा.
उस शाम को इसकी और संजय की मँगनी हुई और फिर 4 महीने बाद शादी. मुझे तभी से पता था कि इससे हमारी योग्य बहू बनने में कोई वक़्त नही लगेगा और हुआ भी वैसा ही.''
ये कहते हुए बाबूजी ने अपनी कहानी ख़तम की और सखी को गोद से उठा के सामने खड़ा कर दिया. 2 मिनट में नंगी सखी उनके लंड के चुस्के ले रही थी और कमरे में एक तरफ कपड़ो का ढेर लगना शुरू हो गया.
बाबूजी के कहे अनुसार तीनो भाइयों ने मिल के तीनो औरतों को रेग्युलर्ली चोद्ना शुरू कर दिया. हर रोज़ शाम को बाबूजी की सूपरविषन में 2 भाई तीनो का चोदन करते. तीसरा भाई लंड हिलाता और औरतों की चूते चाट के या उनके मम्मे दबा के उन्हे तैयार रखता. बाबूजी अपना मूसल कभी किसी की गांद में देते तो कभी चुस्वा लेते. चूत से दूर रहते थे हमेशा. पर ये भी बड़ा कठिन समय था बाबूजी के लिए. उनके जैसा थर्कि चोदु आख़िर कितने दिन तक चूत से वंचित रहता. बाबूजी दिन में कम्मो पे कड़ी नज़र रखते थे. उन्होने कम्मो के हाव भाव पढ़ने शुरू कर दिए. कम्मो किस समय क्या करती है और क्या नही, कैसे मटकती है, घर के सदस्यों से कैसे बात करती है ये सब बाबूजी ने नोटीस करना शुरू कर दिया. ऐसे ही दिन हफ्तों और हफ्ते महीनो में बदल गए. बाबूजी समझ चुके थे कि कम्मो भी कामुक है और लंड की भूखी है.
उधर कम्मो को जब भी मौका मिलता वो रमेश को बुलवा लेती. रमेश भी धीरे धीरे माँझा खिलाड़ी बन रहा था. उसे कम्मो से अच्छी सीख मिल रही थी और फ्री की चूत को कौन मना करेगा. वो मौका ढूंढता रहता था कि कब कम्मो का पति बाहर जाए. मौके भी बढ़ रहे थे क्योंकि रमेश का बाप कम्मो के पति को शादी के कामों में उलझाए रखता था. दिक्कत बस बच्चों की थी. रमेश की चुदाई का असर कम्मो पे दिखने लगा था. अब वो खिली खिली रहती थी और बाबूजी के घर के सदस्यों से चुटकी करती रहती थी. कभी कभी वो बाबूजी को भी छेड़ देती थी. बाबूजी ने भी मन बनाना शुरू कर दिया कि वो कम्मो की चूत को अपने वीर्य से भाव विभोर ज़रूर करेंगे. पर ऐसा कब और कैसे करना है ये उन्होने डिसाइड नही किया था.
3 महीने के अंतराल में मिन्नी, राखी और सखी तीनो पेट से हो गई. घर में कोई बड़ी औरत नही थी सो इसलिए बाबूजी ने सखी की मा के लिए बुलावा भेजा कि कुच्छ महीनो के लिए वो उनके साथ आके रुक जाएँ. राखी और मिन्नी ने अपने अपने मैके जाने से मना कर दिया. बाबूजी ने डिसाइड किया कि 3नो बहुओं के बच्चे ससुराल में ही होंगे. सखी की मा के घर में आते ही माहौल एक बार फिर बदल गया. सखी की मा को घर के राज़ के बारे में कुच्छ नही पता था. सो इसलिए सबको अपनी अपनी पत्निओ के साथ सोना पड़ता था. सखी की मा ने सब मर्दों को निर्देश दिया कि पहले 3 महीने वो लोग अपनी बिवीओ के साथ कुच्छ ना करें. उसके हिसाब से पहले 3 महीने में किसी एग्ज़ाइट्मेंट की वजह से बच्चा गिरने का डर हो सकता था. साथ ही साथ सखी की मा ने अपने डोरे फिर से बाबूजी पे डालने शुरू कर दिए. सखी की शादी और अब तक वो बाबूजी से सिर्फ़ 3 बार और चुदी थी. पहली रात के बाद शादी से कुच्छ दिन पहले वो और बाबूजी उसके घर पे दिन में अकेले रहे थे. उसके बाद जब सखी को मिलने 2 दिन आके रुकी थी तो उसने बाबूजी का बिस्तर शाम की तरफ गरम किया था. इन दिनो में उसने कंचन के पति के साथ खूब मज़े लिए थे. कंचा का पति उसे रेग्युलर्ली अपने या उसके घर में पेलता था.
पर जब से वो सखी की ससुराल में आई थी तब से उसको कंचन के घर जाने का मौका नही मिला था. इधर 3नो लड़के भी अपनी अपनी बिवीओ की चूतो से वंचित थे. बस लंड चुस्वा के गुज़ारा कर रहे थे. घर के ये हालत देखते हुए बाबूजी ने एक प्लान बनाया और एक दिन उन्होने अनाउन्स किया की तीनो जोड़े एक सॅटर्डे को एक पिक्निक स्पॉट पे रात रुकने के लिए जाएँगे. इससे सभी लोगों का मनोरंजन हो जाएगा और हवा पानी बदल जाएगा. सखी की मा ने कहा कि वो भी साथ जाएगी. बाबूजी को इस बात की उम्मीद थी कि वो ऐसी बात कह सकती है. सो उन्होने सखी की मा को भी साथ जाने की अनुमति दे दी.
गतान्क से आगे..............
उसके बाद हम चारों के बीच जो घमासान चला वो याद रखने वाला था. सखी की मा ने मेरी और तुम्हारे फूफा की इज़्ज़त लूट ली उस रात..साली ने कम से कम भी 3 - 3 बार हमें चोदा. एक समय तो मैं और तुम्हारे फूफा दोनो इसकी मा की चूत और गांद में घुसे पड़े थे और तुम्हारी कंचन बुआ अपनी चूत सटाये हुए थी उसके मूह से. सच में बड़ा मुश्किल टेस्ट था हमारे लिए. पर बड़ा मज़ा भी आया. सुबह पूरे बेड पे जगह जगह वीर्य ही वीर्य था. इन दोनो रॅंडियो की चूते सूजी हुई थी और हमारे लंड छिले पड़े थे. पर जो इंपॉर्टेंट चीज़ थी वो था इस एग्ज़ॅम का रिज़ल्ट. जब हम लोग सुबह 6 बजे उठे और तैयार हुए तो उस समय सखी सोई पड़ी थी. हमारी चुदाई रात 3 बजे तक चली थी. सखी की मा को हमने रात में ही सखी के रिश्ते के लिए मना लिया था. उसे ये कहा कि अगर ये रिश्ता हो जाता है तो बिना झिझक के उसके और हम तीनो के सेक्स संबंध बने रह सकते हैं. इसी बात पे वो छिनाल खुशी खुशी तैयार भी हो गई. तब हमने उससे अगले ही दिन सगाई की तैयारी के लिए कहा और सुबह जल्दी उठा के घर जाने को कहा.
जान भूज के कंचन ने सखी के कमरे का दरवाज़ा खटखटाया. जब वो नही उठी तो कंचन ने उसको उठाने के बहाने से खिड़की से जाके उसको आवाज़ लगाई. वहाँ से कमरे का नज़ारा देख के कंचन को आइडिया हो गया कि रात में खीरे से सखी ने अपनी प्यास भुज़ाई थी. नंगी हालत में ये खीरे को चूत के नज़दीक रख के सोई पड़ी थी. जब फाइनली ये कमरे से बाहर निकली तो 7 बज चुके थे और मैं, तुम्हारे फूफा और सखी की मा सगाई की तैयारी के लिए निकल गए थे. कंचन ने बाद में हमें बताया कि सखी की आँखें सुर्ख लाल थी जैसे वो रात को बहुत लेट सोई. इसने बहाना बनाया कि रात को ये लेट तक मूवी देख रही थी. तब कंचन ने इससे पुछा कि ऐसी कौन सी मूवी देखी जो खीरे की ज़रूरत पड़ी. तब ये झेंप गई. उस समय कंचन को यकीन हो गया कि इसने रात भर हमारी चुदाई देखी है. तब कंचन ने इससे बताया कि अब तेरे खीरे वाले दिन गए और असली डंडे की पिटाई के लिए तैयार हो जा.
उस शाम को इसकी और संजय की मँगनी हुई और फिर 4 महीने बाद शादी. मुझे तभी से पता था कि इससे हमारी योग्य बहू बनने में कोई वक़्त नही लगेगा और हुआ भी वैसा ही.''
ये कहते हुए बाबूजी ने अपनी कहानी ख़तम की और सखी को गोद से उठा के सामने खड़ा कर दिया. 2 मिनट में नंगी सखी उनके लंड के चुस्के ले रही थी और कमरे में एक तरफ कपड़ो का ढेर लगना शुरू हो गया.
बाबूजी के कहे अनुसार तीनो भाइयों ने मिल के तीनो औरतों को रेग्युलर्ली चोद्ना शुरू कर दिया. हर रोज़ शाम को बाबूजी की सूपरविषन में 2 भाई तीनो का चोदन करते. तीसरा भाई लंड हिलाता और औरतों की चूते चाट के या उनके मम्मे दबा के उन्हे तैयार रखता. बाबूजी अपना मूसल कभी किसी की गांद में देते तो कभी चुस्वा लेते. चूत से दूर रहते थे हमेशा. पर ये भी बड़ा कठिन समय था बाबूजी के लिए. उनके जैसा थर्कि चोदु आख़िर कितने दिन तक चूत से वंचित रहता. बाबूजी दिन में कम्मो पे कड़ी नज़र रखते थे. उन्होने कम्मो के हाव भाव पढ़ने शुरू कर दिए. कम्मो किस समय क्या करती है और क्या नही, कैसे मटकती है, घर के सदस्यों से कैसे बात करती है ये सब बाबूजी ने नोटीस करना शुरू कर दिया. ऐसे ही दिन हफ्तों और हफ्ते महीनो में बदल गए. बाबूजी समझ चुके थे कि कम्मो भी कामुक है और लंड की भूखी है.
उधर कम्मो को जब भी मौका मिलता वो रमेश को बुलवा लेती. रमेश भी धीरे धीरे माँझा खिलाड़ी बन रहा था. उसे कम्मो से अच्छी सीख मिल रही थी और फ्री की चूत को कौन मना करेगा. वो मौका ढूंढता रहता था कि कब कम्मो का पति बाहर जाए. मौके भी बढ़ रहे थे क्योंकि रमेश का बाप कम्मो के पति को शादी के कामों में उलझाए रखता था. दिक्कत बस बच्चों की थी. रमेश की चुदाई का असर कम्मो पे दिखने लगा था. अब वो खिली खिली रहती थी और बाबूजी के घर के सदस्यों से चुटकी करती रहती थी. कभी कभी वो बाबूजी को भी छेड़ देती थी. बाबूजी ने भी मन बनाना शुरू कर दिया कि वो कम्मो की चूत को अपने वीर्य से भाव विभोर ज़रूर करेंगे. पर ऐसा कब और कैसे करना है ये उन्होने डिसाइड नही किया था.
3 महीने के अंतराल में मिन्नी, राखी और सखी तीनो पेट से हो गई. घर में कोई बड़ी औरत नही थी सो इसलिए बाबूजी ने सखी की मा के लिए बुलावा भेजा कि कुच्छ महीनो के लिए वो उनके साथ आके रुक जाएँ. राखी और मिन्नी ने अपने अपने मैके जाने से मना कर दिया. बाबूजी ने डिसाइड किया कि 3नो बहुओं के बच्चे ससुराल में ही होंगे. सखी की मा के घर में आते ही माहौल एक बार फिर बदल गया. सखी की मा को घर के राज़ के बारे में कुच्छ नही पता था. सो इसलिए सबको अपनी अपनी पत्निओ के साथ सोना पड़ता था. सखी की मा ने सब मर्दों को निर्देश दिया कि पहले 3 महीने वो लोग अपनी बिवीओ के साथ कुच्छ ना करें. उसके हिसाब से पहले 3 महीने में किसी एग्ज़ाइट्मेंट की वजह से बच्चा गिरने का डर हो सकता था. साथ ही साथ सखी की मा ने अपने डोरे फिर से बाबूजी पे डालने शुरू कर दिए. सखी की शादी और अब तक वो बाबूजी से सिर्फ़ 3 बार और चुदी थी. पहली रात के बाद शादी से कुच्छ दिन पहले वो और बाबूजी उसके घर पे दिन में अकेले रहे थे. उसके बाद जब सखी को मिलने 2 दिन आके रुकी थी तो उसने बाबूजी का बिस्तर शाम की तरफ गरम किया था. इन दिनो में उसने कंचन के पति के साथ खूब मज़े लिए थे. कंचा का पति उसे रेग्युलर्ली अपने या उसके घर में पेलता था.
पर जब से वो सखी की ससुराल में आई थी तब से उसको कंचन के घर जाने का मौका नही मिला था. इधर 3नो लड़के भी अपनी अपनी बिवीओ की चूतो से वंचित थे. बस लंड चुस्वा के गुज़ारा कर रहे थे. घर के ये हालत देखते हुए बाबूजी ने एक प्लान बनाया और एक दिन उन्होने अनाउन्स किया की तीनो जोड़े एक सॅटर्डे को एक पिक्निक स्पॉट पे रात रुकने के लिए जाएँगे. इससे सभी लोगों का मनोरंजन हो जाएगा और हवा पानी बदल जाएगा. सखी की मा ने कहा कि वो भी साथ जाएगी. बाबूजी को इस बात की उम्मीद थी कि वो ऐसी बात कह सकती है. सो उन्होने सखी की मा को भी साथ जाने की अनुमति दे दी.
Re: खानदानी चुदाई का सिलसिला
बाबूजी के प्लान के हिसाब से सॅटर्डे को 3नो जोड़े और सखी की मा एक साथ पिक्निक स्पॉट पे चले गए. शनिवार की दोपहर को जब कम्मो घर में काम ख़तम कर चुकी तो बाबूजी ने उसे अपने कमरे में बुलवाया.
'' बाबूजी आपने बुलाया. कोई काम था क्या..'' कम्मो ने अपने सूट की चुन्नि से हाथ पोन्छ्ते हुए पुछा.
'' हां मुझे तुझको कुच्छ देना है. दरअसल तुझे पता है कि बहुएँ पेट से हैं और तुझ पे आजकल सारा काम का बोझ आ गया है. मैं जानता हूँ कि तू कितनी मेहनती है. इसलिए मैं तुझे कुच्छ इनाम देना चाहता हूँ. '' ये कहते हुए बाबूजी ने आल्मिराह से 3 बढ़िया क्वालिटी के सूट निकाले. तीनो सूट काफ़ी मेह्न्गे थे और सिले सिलाए थे.
सूट देख के कम्मो की बान्छे खिल गई. उसे यकीन नही हो रहा था कि बाबूजी उसको इतने महनगे सूट दे सकते हैं. बाबूजी ने उसे कहा कि वो कोई 2 सूट ले ले. ये बात सुनते ही कम्मो थोरी कन्फ्यूज़ हो गई पर कुच्छ बोली नही. उसने एक गुलाबी और एक हरा सूट चूज़ किया. बाबूजी ने दोनो सूट खोल दिए और कम्मो से कहा कि वो उनको ट्राइ करे और दिखाए. ये बात सुनते ही कम्मो थोड़ा शर्मा गई और सकपका गई.
'' बाबूजी हम ये सूट कैसे ट्राइ करें आपके सामने. ये लगते तो हमारे साइज़ के हैं पर आपको कैसे दिखाएँ पहेन के. हम घर जाके पहेन लेंगे. अगर कुच्छ उन्च नीच होगी तो दर्ज़ी से ठीक करवा लेंगे.'' कम्मो शरम से नज़रे झुकाए बोली.
'' अररी पगली तू बिना झुझक के पहेन के दिखा मुझे और फिर मैं बताता हूँ कि मैने तुझे ट्राइ करने को क्यों कहा है. चल जा मेरे बाथरूम में जाके बदल ले और दिखा. अगर नही दिखाएगी तो इन्हे यहीं छोड़ दे. मैं किसी और को दे दूँगा. '' बाबूजी ने थोड़ी कड़क आवाज़ में कहा.
अब कम्मो उनका विरोध नही कर सकती थी. उसका मॅन ललचाया हुआ था. उसने गुलाबी सूट उठाया और बाथरूम में चली गई. सूट काफ़ी हेवी था और उसपे अच्छी कारी गरि हुई पड़ी थी. पर सूट का फ्रंट और बॅक दोनो काफ़ी लो थे. सूट पहेन के उसने अपने आप को आईने में देखा और थोड़ी घबरा गई. उसकी चूचियो की दरार का करीब 2 इंच का हिस्सा सॉफ दिख रहा था. सूट को अगर वो आगे से उपर करती तो पिछे से ब्रा का स्ट्रॅप दिखने लगता. जिसने भी सूट बनाया था बड़ी सोच से बनाया था कि हर हाल में मॅग्ज़िमम हिस्सा एक्सपोज़ होगा ही होगा. उसके मम्मे बिल्कुल सही तरीके से सूट में सटे हुए थे. कमर पे सूट चिपका हुआ था और उसके चूतरो पे आस पास पर्फेक्ट फॉल आ रही थी. उससे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसका नाप लेके सूट बनाया हो.
इसी पेशोपश में उसे बाबूजी की आवाज़ सुनाई दी. घबराते और शरमाते हुए बिना चुन्नी के वो बाथरूम से बाहर निकली. बाबूजी ड्रेसिंग टेबल में देख के अपनी मूच्छों को ताव दे रहे थे. उनकी पीठ कम्मो की तरफ थी. कम्मो की रिफ्लेक्षन ड्रेसिंग टेबल के शीशे में नज़र आ रही थी. कम्मो ने अपने दोनो हाथ अपने कंधों पे रखे हुए थे. वो अपने मम्मो की दरार को छुपा रही थी.
'' लीजिए बाबूजी देखिए..हमने सूट पहेन लिया.'' सहमी हुई आवाज़ में कम्मो बोली.
'' ये क्या कम्मो ऐसे कैसे पता चलेगा कि सूट तुझ पे अच्छा लगता है या नही.. हाथ तो नीचे कर..ह्म्म्म्मम घबरा नही सिर्फ़ यहीं से देखूँगा.'' बाबूजी अभी भी कम्मो को शीशे में ही देख रहे थे और मूच्छों पे ताव दे रहे थे.
कम्मो ने सिर झुकाते हुए अपने हाथ साइड में किए. बाबूजी की धोती में उनका लंड अब कड़ा होने लगा था. कच्छा तो उन्होने पहना ही नही था. बाबूजी पैनी नज़रों से कम्मो के एक एक अंग को घूर रहे थे. 2 बच्चों की मा लगती भी और नही भी. उसका झुका हुआ चेहरा एक मिड्ल एज औरत की मेचुरिटी बयान करता था. बदन का गातीलापन एक जवान औरत जैसा था पर बदन की बनावट एक भारी खेली खिलाई औरत की. कम्मो के जिस्म में एक्सट्रा माँस था पर सही जगहों पे. पर वो एक्सट्रा माँस एक तरीके से मसल्स के रूप में था. बाबूजी उसकी चूचिओ को देखने लगे. सूट में उसकी चूचियाँ अच्छी कसी हुई थी. करीब 15 सेकेंड तक बाबूजी उसे निहारते रहे. गुलाबी रंग उसके गेहुएँ रंग को सूट कर रहा था.
'' अच्छा ज़रा पिछे मूड के दिखा.'' बाबूजी ने हुकुम सुनाया.
शरमाते हुए कम्मो मूड गई और उसे अपनी तकरीबन 25% नंगी पीठ का एहसास हुआ. कम्मो के दिमाग़ में भी अब हलचल थी. वो हलचल अब उसकी चूत में उत्तेजना पैदा कर रही थी. चूचे भी कड़े हुए पड़े थे पर पूरे नही. कम्मो के निपल बहुत बड़े थे. उसे डर था की कहीं वो थरक गई तो निपल सॉफ सॉफ दिखने लगेंगे.
उसे अपनी पीठ पे बाबूजी की नज़रें गढ़ी हुई महसूस हो रही थी. बाबूजी उसकी पीठ, उसकी कमर और उसके चूतरो का ज़यज़ा ले रहे थे. फिर से करीब 15 सेकेंड तक उससे निहार लेने के बाद बाबूजी ने कम्मो को दूसरा सूट पहेन के आने को कहा.
कम्मो ने मूड के बेड से दूसरा हरा सूट उठाया. उसकी चूचियो की दरार जो करीब 2 इंच दिख रही थी झुकने से और भी दिखने लगी. सूट में कसाव था नही तो शायद उसके मम्मे उच्छल के बाहर आ जाते. एक बार फिर कम्मो बाथरूम में चली गई. जैसे ही उसने सूट को पहनने के लिए खोला तो वो हैरान रह गई. हरा सूट बहुत ही महनगा था. कम्मो के अंदाज़ से कम से कम 5000 का होगा. दूसरी बार वो तब चौंकी जब उसने उस सूट की बनावट देखी. कम्मो के पैर काँपने लगे और उसकी धधकने तेज़ हो गई. अपने आप को बाबूजी के सामने उस सूट में सोच के वो घबरा गई. पर तभी उसकी चूत ने जवाब दे दिया. उसकी चूत बुरी तरह पनिया गई. कम्मो का दिमाग़ ठीक से काम नही कर रहा था पर उसकी जवानी अंगड़ाई ले रही थी.